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कहते हैं, और पिशाचोंकी भाषाको पैशाची भाषा कहते हैं, उसी प्रकार संस्कृसका नाम देखभाषा इस लिये पड़ा था, कि वह देव भातिके मानवोंकी भाषा थी।
.. देवजातिके मानवाँसे आर्यजासिके मानवों का अति घनिष्ठ संबंध होनेसे देवोंकी भाषा आर्य जातिक पास आ गई और देवजातिके नामके पश्चात् उस देवभाषाने आर्यदेशमें अपना निवास किया', यही देवभाषा असुरादि देशोंमें भी गई थी, परन्तु असुर जातिके विकृत उच्चारणों के कारण इस देवभाषाकी विकृति असुर देशोंमें बड़ी ही विलक्षण हुई। इस भारतदेशमें प्राकृत भाषाओंके रूपसे भी संस्कृत भाषाका विकृत रूप दिखाई देता है. उससे भी अधिक विकार असुर देशोंमें हुअा है. यह आजकल भी देखने बालोंको दिखाई देगा। अर्थात् देवभाषाकी विकृति भारतदेशकी अशिक्षित जनतामें कुछ अंशमें दिखाई देती है।
जिस प्रकार युरूप भरमें मच भाषाका प्रचार इस समय में भी सिद्ध कर रहा है कि चोंकी सभ्यता एक समय सबसे अधिक श्रेष्ठ मानी जाती थी और चोंका राजनैतिक प्रभाव भी अधिक एक समय युरूपमें था। वही बात देवभाषाका प्रचार जो आजकल असुर देशों और आर्य देशोंमें अपभ्रष्ट शब्दों के रूपमें दिखाई देता है यह स्पष्टतासे सिद्ध कर रहा है कि देवजातिकी सभ्यता सथा राजनैतिक श्रेष्ठता अति प्राचीन काल में सबके लिये शिरोधार्य श्री । देवजातिकी सभ्यताका.प्रभाव न केवल सम्पूर्ण
आर्यजगत् में प्रत्युल अंसुर जगतमें भी बन्दनीय हुआ था। इस देवजातिकी सभ्यताका समय आर्य सभ्यता के पूर्वकालमें निश्चित करना चाहिये और इससे पूर्व आसुरी सभ्यताका समय है, क्यों कि असुर देवोंसे भी "पूर्व-देव" थे अर्थात् देवोंके भी पूर्वकालीन