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से प्राप्त होने वाले सब स्थानोंको जानते हो. अवरक पूछता हूँ कि स्वर्गादि लोक में मेरे पुण्यले प्राप्त हुए कई स्थान है या नहीं ! ययाति बोले----हे नरेन्द्र सिंह ! सुनो, इस भूमण्डल में गौ अ पर्वतके जितने पशु हैं स्वर्गलोक में उतने ही तुम्हारे पुरवसे उपार्जित स्थान हैं।
इस संवादसे पता लगता है कि इस क्रर्मभूमि भारतवर्ष में यज्ञादिकर्म करके उसमें देवतोंको प्रश्न संचय देने से त्रिविष्टपमें रहने के लिये उनको स्थान प्राप्त होते थे । इसी प्रकारके स्थान राजाको प्राप्त हुए थे, यह बात राजा ययाति खर्गमें जीवित दश में ही गये थे. उस समय उन्होंने प्रत्यक्ष देख ली थी और वही बांत अष्टक से उन्होंने कह दी। स्वर्गमें स्थान प्राप्त करनेका साधन यश करना और उसके द्वारा देवजातिके मनुष्योंका अभाग देना ही एक मात्र या ।"
महाभारतकी समालोचना, भाग, २ देवों का अन्न ।
यज्ञ उ देवानामन्नम् । श० ब्रा० ८ १ १ । २ । १० "शही देवोंका अन्न है।" अर्थात् यज्ञसे ही देवोंको अन मिलता है । इन्द्र के लिये यह अन भाग वरुण के लिये यह अभ भाग इस प्रकार हर एक देवता के उद्देश्यसे अलग अलग अन्न भाग रखकर उनको धन्न भाग दे दिये जाते हैं। इस प्रकार जो पुरुष अधिक से अधिक अन्न भांग देवा था, उसके लिये स्वर्ग लोकमें अधिक उत्तम स्थान रहने के लिए मिलता था।
भारतीय सम्राट बड़े बड़े यज्ञ करते थे, और उस समय देवों के लिए बहुत ही अ भाग मिल जाता था। जो भारतीय सम्राट सौ यज्ञ करता था, उसको स्वर्गमें सबसे श्रेष्ट स्थान मिलता