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उनका आर्योसे परस्पर मेलमिलापका संबंध था, उस समय पूर्वोक्त स्वर्गवासादि शब्द मरणोत्तरकी अवस्था बताने वाले में के। महाभारतमें भी इसके कई प्रमाण मिल सकते हैं.
-श्रल सीखनेके लिये वीर अर्जुन स्वर्गमें गया था, इन्द्र के . पास चार वर्ष रहा था, और वहाँ अस्त्र विद्या सीखकर वापस . श्रीगया था । यह अर्जुनका स्वर्गवास जीवित दशामें ही हुभा था। (इन्द्रलोकाभिगमनपर्व-वनपर्व अ, ४६-४७)
. २-नारदमुनि खासे भारतवर्षमें और यहाँ से नालोकमें काई कार भ्रमण कर चुके थे । उनको देवोंके मुनि कहते थे। इनका राजनैतिक कार्य इतिहासमें प्रसिद्ध है। ये स्वर्गमें रहते हुए भारत में भी रहते थे।
३-लोमस ऋषि स्वर्गमें गये थे और बहाँका वृत्तांत उन्होंने धर्मराजको कथन किया है।
(वनपर्व प्रह ये सब जीवित दशामें ही स्वर्गवासी होगये थे। इस प्रकार कई प्रमाया दिये जा सकते हैं परन्तु सत्र प्रमाण यहाँ रख देनेकी कोई आवश्यकता नहीं है। महाभारतके पाठ करते ५ ये प्रमाण पाठकोंके सन्मुख आसकते हैं। तात्पर्य, उस अतिप्राचीन समयमें स्वर्गवास जीतेजी होता था और उसका अर्थ "तिब्धतमें निवास" इतना ही था। यहाँ पाठक पूछ सफड़े है कि स्वर्गका प्रलोभन इतना विशेष क्यों है ? यहाँ तो भोजनके लिये अन्न भी पैदा नहीं होता. फिर वहाँ जोकर रहनेसे सुख किस प्रकार होसकता है ? इसका असर जिन्होंने हिमालयको मैरकी है उनको कहनेकी आवश्यकता नहीं है । हिमालयकी पहाड़ियों में खाने-पीने के पार्थ इतने विपुल नहीं प्राप्त होते, परन्तु वहाँकी जल वायुके सुख , और