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वहां की शांति अद्वितीय ही है। इस कारण इस समय भी उत्तर भारत के लोग मास दो मास की छुट्टियोंमें पहाड़ की सेर जरूर करते हैं, तथा धनिक लोग सोलन आदि स्थानोंमें छोटासा मकान बनानेकी इच्छा करते हैं। इससे स्पष्ट है कि हिमालय और उसके उत्तरभागके स्थानों में कुछ विशेष सुख है, जो यहाँ विपुल धान्य होते हुए भी नहीं मिल सकता । इसीलिये प्राचीन काल के लोग स्वर्ग में अपने लिये कुछ स्थान मिलनेका प्रयत्न करते थे, स्थान मिलने पर वृद्धावस्था में वहाँ जाकर आनन्दसे रहते थे । भारतदेश में जीवन कलह है वह यहाँ नहीं, सादा रहना और हवाकी उत्तमता रहने के कारण आरोग्य स्वभावतः ही रहता है, जलकी निर्मलता के कारण रोग कम होते हैं इत्यादि अनेक सुख स्वर्गदेश के हैं। इसलिये भारतीय लोग स्वर्गमें थोड़ी भूमि प्राप्त करनेके इच्छुक थे और जो बहुत करते थे और देवोको धान्याள் दिक बहुत देते थे उनको तिब्बतमें थोड़ा स्थान दिया भी जाता था। देखिये इस विषय में महाभारतकी साक्षी
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अष्टक उवाच -
पृच्छामित्वमा प्रपत प्रपातं यदि लोकाः पार्थिव संतिमेsa | यद्यन्तरिक्षे यदि वा दिवि स्थिताः क्षेत्रनं त्वां तस्य धर्मस्य मन्ये ॥ ६ ॥
ययातिरुवाच -
यावत्पृथिव्यां विहितं गवाश्वं सहारण्येः पशुभिः पाईतेथ । तावन्लोका दिवि ते संस्थिता वै तथा विजानीह नरेन्द्रसिंह ॥ १० ॥
अष्टक बोले- हे पृथ्वीनाथ ! मुझको जान पड़ता है कि तुम