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इसका एकपना कैसे जाना जाय । अलग रहकर भी अगर एकपना मान जाय तो भित्रपना कहाँ स्वीकार किया जायगा ? सूक्ष्मरूप ब्रह्म के अन्न विद्यमान हैं, उनमें
शंका-पत्र पदार्थ सब पदार्थ जुड़े हुए हैं ।
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सूक्ष्म
समधान - जो अङ्ग जिससे जुड़ा है वह उससे ही जुड़ा रहता है या टूट कर अन्य से जुड़ा करता है । यदि पहला पक्ष स्वीकार है तो जब सूर्यादिक गमन करते हैं तब जिन से जुड़े हैं वे भी गमन करते होंगे और वे सूक्ष्म बिना स्थूल से जुड़े हैं वे भी गमन करने होंगे इस सह संपूर्ण लोक स्थिर हो जायगा, जैसे शरीरका एक अङ्ग खींचने पर सारा शरीर खिंच जाता है वैसे ही एक पदार्थ गमन करने पर संपूर्ण पदार्थो का गमन होजायगा पर होता नहीं । अगर दूसरा पक्ष सं.कार किया जायगा तो से भिन्नपना हो जायगा एकपना कैसे रहेगा। इसलिये संपूर्ण लोकके एकपतेको ब्रह्म मानना भ्रम हो हैं ।
पांचवा प्रकार यह है कि पहले कोई पदार्थ एक था. बादमें अनेक हुआ फिर एक होयगा इसलिये एक है। जैसे जल एक था चरतनों में अलग होगया मिलने पर फिर एक होजायगा | अथवा जैसे सोनेकाला एक था वह कंकरा कुरडताविक रूप हुआ मिलकर फिर सोनेका एक ढला होगा । बसे हो ब्रह्म एक था पछे अनेक रूप हुआ फिर मिलकर एक रूप हो जायगा इसलिये एक है। इस प्रकार यदि एक माना जायगा तो ब्रह्म जब अनेक रूप हुआ तब जुड़ा रहा था या अलग होगया था। अगर जुड़ा कहा जायगा तो पहला दोष ज्यों-त्यों है अलग हुआ कहा जायगा तो उस समय एकत्र नहीं रहा। जल स्वर्णविकका भिन्न होकर जो एक होना कहा जाता है वह तो एक जाति
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