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आधीन होनेसे काम क्रोधादिक के सिवाय और क्या पैदा हो सकता है। इन काम क्रोधादिकी ब्रह्मादिकके तीमना पाई जाती है। कामकी तीव्रतासे खियोंके वश होकर उन्होंने नृत्य गान आदि किया है. विह्वल हुए है. अनेक प्रकार की कुचेष्टा की हैं। क्रोधके यशीभूत होकर अनेक युद्धादि कार्य किये हैं. मानके वशीभूत होकर अपनी उच्चता प्रकट करने के लिये अनेक उपाय किए हैं, मावाके वशीभूत होकर चल किया हैं, लोभके वशीभूत होकर परिग्रहका खूब सग्रह किया है।
यदि यह कहा जाय कि इनको काम क्रोधादि व्याप्त नहीं होते. यह तो परमेश्वरकी लीला है। सो भी ठीक नहीं है क्योंकि ऐसे कार्योको वे इच्छासे करते हैं या विना इच्छासे करते हैं ? अदि इच्छा से करने हैं तो स्त्री सेवनकी इच्छा ही का नाम काम है. युद्ध करने की इच्छा ही का नाम कोध है इसी तरह
और भी समझना चाहिये। अगर बिना इच्छा करते हैं तो चिना चाहे किसी कामका होना पराधीनताका सूचक है. वह पराधीनता उनके कैसे संभव हो सकती है ? और अगर यह लीला है कि परमेश्वर अवतार धारण कर इन कार्यों में लीला करता है तो अन्य जीवोंको इन कार्योसे छुड़ाकर मुक्त करनेका उपदेश क्यों दिया जाता है । फिर तो क्षमा, शील, संतोष. सयमादिकका उपदेश सब भूठा कहलाया। लोक प्रवृत्ति या प्राणियोंके निग्रह अनुग्रहके
लिये सृष्टि रचना का खण्डन इस पर अगर यह कहा जाय कि परमेश्वरको तो कुछ मतलब नहीं किन्तु लोकनीतिको चलाने के लिये अथवा भक्तों की रक्षा और