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चसना शक्ति और किनाशक्ति दो प्रकारका है। वह पारमा और ब्रह्ममें हैं । ब्रह्म ही ईश्वर है, वही जगतका कारण है । प्रभाव प्रकृति या परमागु, जगत के कारण नहीं है । प्रवादियोंका ग्रह पूर्वपक्ष है। यायिक इसका उत्तर देत है कि आत्माको जानने के लिचे प्रात्मा लिङ्ग रूप. बुध, इच्छा श्रादि विशेष गुण पाये जाते हैं ब्रह्म ता निरुपाधिक है । उसको जानने के लिए कोई लिङ्ग था निशानी नहीं है। मुख्य घात तो यह है कि प्रमाण के बिना प्रमेयकी सिद्धि नहीं हो सकेगी । ब्रह्मकी सिद्धि. तुम किस प्रमाणने करोगे ? प्रत्यक्ष तो ब्रह्मका नहीं हो सकता, क्योंकि वह किसी भी इन्द्रियके द्वारा ग्राम नहीं है । ब्रह्मको बताने वाला कोई खास हेतु नहीं है. अतः अनुमानस भी ग्राहा नहीं होसकना। सर्वसम्मत अगम प्रमाण भी नहीं है । इसत्ति ये भाष्यकार कहते हैं कि
'प्रत्यक्षानुमानागमविषयातीतं का शक्न उपपादयितुम्'
प्रमाणके विषयसे रहित ब्रह्मका उपपादन करने के लिए कौन समर्थ हो सकता ? कोई नहीं। जब ब्रह्माकी उपपत्ति नहीं हो सकती तो उसको उपादानकारण माननेकी बात मूलसे ही उड़ जाती है । मूल नास्ति कुतः शास्त्रा' अर्थात जहाँ मूल ही नहीं है वहाँ शाखा को क्या बात की जाय ? नयाग्रिक कहना है कि इस लिये आत्म विशेष रूप ईश्वरका जगनका उपादान कारण नहीं किन्त निमित्त कारण मान ली। प्राणायाक कर्मों के अनुसार वह जगन बनाता है । वस्तुतः ईश्वरधादियांका यही सिद्धान्त है। प्राचीनतम नैयायिक प्राचार्य तो ईश्वरको नियन्तामात्र ही मानने हैं काररूपसे नहीं । इत्यलं विस्तरन् ।