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'न नाटक पदार्थप्रतीतेः ' ( सा० दे० १ १ २४ )
भावार्थ-जगत में पेमा काई पदार्थ हा प्रतीत नहीं होता है। मापक्ष सन असन तो मिल सकता है मगर चौथी कादि वाली निरपेच सन् अमन वस्तु परस्पर विरुद्ध होनेसे कहीं भी प्रतीत नहीं होती । अन्य यह भी दोष है कि यदि अविद्याको साक्षान अन्धका हेतु मानोगे तो मानसे अधिमाका नाश होने पर प्रारब्ध भोगकी अनुपपत्ति होगी । कयाकि दुःस्व भोगरूप अन्धके कारगा का नाश होने पर कार्यको निवृत्ति हो जायगी। हमारे मनसे सां अविदया जन्मादि संयोग द्वारा बयका हेतु होगी । जन्मादि संयोग प्रारब्धको समाप्तिक बिना नष्ट नहीं होते । इन्यंस विस्तरमा । ब्रह्मवादके विषयमें नैयायिकोका उत्तरपक्ष
बुद्धयादिभिश्चात्मलिङ्ग निरुपारव्यमीश्वरं प्रत्यक्षानुमानागम भविष्यातीतं कः शक्त उत्पादयितुम् ।।
(न्या० वा. भा० ४३२१) अंथ-ब्रह्वात्रादा ब्रह्मको जगतका उपादान कारण मानते हैं । ईश्वर कारणं पुरुषकर्मा फल्यदर्शनात् ।। ४ । १ । १६ । इस सूत्र में आये हुए ईश्वर शब्द का अर्थ व ब्रह्म करते हैं।
ईश्वरो ब्रह्म । ईशनायोगात । ईशना च चेतना शक्तिः क्रियाशनिश्च । मा चात्मनि ब्रह्मनीति । ब्रह्मा ईश्वरः स एम कारणं जगतः । न च भावो ना प्रधान चा परमाणवो वा चेतयते ।।
अर्थ-ईशमायांगसे ईश्वर शरद निष्पन्न होता है । ईशना