________________
भाग स्वयं लेती थीं । परन्तु पश्चात् उन्होंने स्वयं यज्ञमें उपस्थित होना छोड़ दिया । यज्ञों में देवोंकी उपस्थिति होनेके वर्णन महाभारतमें भी कई स्थानों पर हैं और अन्यान्य पुराणों में भी कई स्थानों में हैं। इस वियषमें महाभारतका सुकन्या का थाख्यान अथवा च्यवन ऋषिकी कथा देखने योग्य है
च्यवन ऋषि । - च्यवन ऋपिकी कथा अथवा सुकन्याका श्राख्यान महाभारत वनपर्व अध्याय ५२१ से १.५ तक है। ग्रह मास्यान वहाँ पाठक विस्तारसे देख सकते हैं । इसका सारांश यह है__ "शर्याति नामक एक राजा था, उसकी सुकन्या नामक एक कन्या थी । इस कन्याने च्यवन ऋषिका कुछ अपराध क्रिया, इसलिये राजाको बड़ा कष्ट हुश्रा । पश्चात् राजाने अपनी कन्या, च्यवन ऋषिको विवाह करके दाम दी । इससे च्यवन संतुष्ट हुमा । च्यवन ऋषि बड़ा वृद्ध था और यह कन्या तरुणी थी। एक समय देवोंके वैद्य अश्विनीकुमार वहाँ गये, उन्होंने सुकन्यासे कहा कि वृद्ध यवन को छोड़ दे और हमसे शादी कर । सुकन्या ने माना नहीं । पश्चात् बातचीत होकर अश्विनी कुमारोंने कुछ चिकित्सा के द्वारा च्यवनको तरूण बनानेका भार स्वीकार किया। उन्होंने अपनी चिकित्सा द्वारा च्यवनको तरुण बनाया। इस उपकारके बदले अश्विनी कुमारोंको यज्ञमें अन्नभाग देना भी च्यवन ऋषिने स्वीकृत कर लिया। क्योंकि इस समय तक अश्विनीकुमारोंको ( वैद्योंको) अन्नभाग लेनेका यज्ञमें अधिकार न था। अन्त में क्यवन ऋषिने यज्ञ किया, उसमें सब देव आगये,
और जिस समय च्यवन ऋषि अश्विनीकुमारोंको अनदेने लगा उस समय देव सम्राट इन्द्र कहता है