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अलग २ दिखाई देते हैं उनके स्वभाव ही अलग हैं इसलिये उन्हें एक कैसे माना जा सकता है ? एक मानना तो इस प्रकारसे हो सकता है कि प्रथम तो जितने अलग : पदार्थ हैं उनके समुदायकी कल्पनासे कुछ नाम रख लिया जाय । जैसा घोड़ा हाथी, श्रादि मिन्न पदार्थ की सेना नामसे कहा जाता है. उनसे अलग कोई मेना नामर्फ बन्न नहीं है. अगर इसी तरह सर्व पदार्थोका नाम ब्रह्म है तो ब्रह्म कोई अलग बस्तु न रह कर कल्पना मात्र ही रहा ! दुसरा प्रकार यह है कि पदार्थ व्यक्तिकी अपेक्षा भिन्न २ है किन्तु, जातिकी अपेक्षा उन्हें कल्पनासे एक कहा जाता है जैसे घोड़े व्यक्तिरूपसे अलग अलग होते हुये भी प्राकारादिककी. सम नतासे उनी जाति कही बानी पा जाति पोहोंसे कुछ अलग नहीं है । यदि ब्रह्म भी इसी तरह सबोंकी एक जातिके रूपमें है तो ब्रह्म यहाँ भी कल्पनामात्रके सिवाय अलग वस्तु कोई नहीं रहा । सीसरा प्रकार यह है कि अलग २ पदार्थों के मिलनेसे एक स्कन्धको एक कहा जाता है, जैसे जलके अलग २. परमाणु मिलकर एक समुद्र कहलाता है, पृथ्वीके परमाणु मिलकर घड़ा श्रादि कहलाते हैं। यहाँ धड़ा और समुद्र उन परमाणुओंसे अलग कोई वस्तु नहीं है। इसी प्रकार वछि संपूर्ण. अलग २ पदार्थ मिलकर एक ब्रह्म होजाते हैं तो ब्रह्म उनसे अलग कोई पदार्थ नहीं रहा। चौथा प्रकार यह है कि अंग अलग हैं और जिसके वे अन्न हैं वह एक अङ्गी कहलाता है। जैसे आँख, हाथ, पैर श्रादि भिन्न भिन्न हैं और जिसके यह हैं वह एक अङ्गी ग्राम है. यह सारा लोक विराट स्वरूप है ब्रह्मका अल है अगर ऐसी मान्यता है तो मनुष्य के हाथ पर श्रादिके अङ्ग अलग अलग रह कर एक अङ्गी नही कहला सकते जुड़े रहने पर ही शरीर कहलाते हैं परन्तु लोकमें पदार्थोका अलगाना प्रत्यक्ष दीखता है।