________________
एन साधीन होता है अथवा आधीन करता है। जिस प्रकार सैनिक व्यक्तियोंको उपयोंको आवश्यक्ता है और राजाको सेनाकी क्योंकि उसको शत्रुओंका भय है कि कहीं उसके देशपर चढ़ाई न कर दें। यदि दुश्मन इस पर चढ़ाई कर दे तो ग्रह बेचारा अकेला कुछ भी नहीं कर सकता इसलिये इसे सेनाकी यान थादि अन्य साधनोंकी आवश्यक्ता है. अतः वह इनको एकत्रित करके रखता है। तथा सेना आदि और राजा क दुसरेके आधीन होते हैं। धर्थान राजाकें श्राधीन सेना होती है और सेनाके अाधीन गजा होता है । अतः इनको ईश्वरके श्राधीन मान भी लिया जाये तो भी आपके सिद्धान्तकी पुष्टि नहीं हो सकती क्योंकि उस अवस्था में ईश्वर पराधीन निर्बल. संगी द्वेषी, अनेक कामनाओं वाला, सुखी, दुखी बन जायेगा । पुनः संसारी जीवमें और इस ईश्वरमें क्या मेद रहेगा । क्या उसका ऐश्वर्य महान है इसलिये उसे ईश्वर माना जाये ? ऐसी अवस्थामें यह महान दुखी भी सिद्ध हो जायेगा. क्योंकि हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि जिसका जितना श्वयं है उतना ही वह अधिक दुखी है। अत: यह सिद्ध होता है कि यह ईश्वर विषयक कल्पना, किसी संसारी मनुष्य की कल्पना है। अतः इन देवताओंको ईश्वरकी शक्तियाँ नहीं कह सकते ! क्योंकि शक्ति और शक्तिमान भिन्न २ पदार्थ नहीं है। इससे या तो जड़ातबाद सिद्ध होगा या चेतनाद्वैतवाद । किन्तु अद्वैतवाद न तो युक्तियुक्त है और येदिक । स्वर्गीय पं. टोडरमल जीने अद्वैतवादके खण्डन में निश्न युक्तियाँ दी हैं।
सर्वव्यापी अद्वैत ब्रह्मका खण्डन "अद्वैत ब्रह्मको सर्वव्यापी सबका को माना जाता है लेकिन ऐसी बात नहीं है केवल मिथ्या कल्पना है । पहले तो यही ठीक नहीं है कि वह सर्व व्यापी है क्योंकि संपूर्ण पदार्थ प्रत्यक्षरूपसे