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लिये दयान ने वैदिकभाय किया है. उसी प्रकार कौत्स चार्वाक, आदि वेद विरोधी पंथों के दबाने के लिये यास्क ने निरक्त रचा। उसने आर्य भाषा के बहुत प्राचीन शब्दों की कपोल कल्पित भ्रमात्मक. असभ्य पूर्ण व्युतपत्ति दी । उसको इतना तक तो मालूम न था कि एक पदार्थ को सूचित करने वाले भिन्न भिन्न संस्कृत शब्दों में क्या भेद है।
गौ. ग्मा, दमा, भू भूमि श्रादि शब्द सब उसके लिये पर्याय वाचक हैं। उन शब्दों में क्या भेद है इसको प्रकाशित करने में रूप से था श्रीद्धति का यह परिणाम है कि दयानन्द पंथियों ने वेदों में वर्तमान युग के नवीन नवीन आविष्कारों को निकालने का बीड़ा उठा लिया है : ऋग्वेद का ऐतिहासिक पक्ष कितना महत्वपूर्ण है. इसका ज्ञान इससे हो सकता है कि ऋग्वेद के बहुत से राजा सूसा, सुमरे अक्कद हित, फीनीशिया मिस्र आदि देशों के शासक थे ।
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तिथि, भूमि, लड़ाई वंश आदि भी उनके ज्ञात हैं।" आदि आपने अपने इस पक्ष को प्रथम प्रमाणों और युक्तियों से सिद्ध किया है। वैदिक शब्दों का मिलान उन उन देशों को प्रचीन भाषा से किया है उनमें आश्चर्य जनक साम्य है। आपने यह भी सिद्ध किया है कि इन्द्र आदि वैदिक देवता, मिस्र आदि देशों के राजा थे । तथा यह इन्द्र आदि उपाधिवाचक शब्द है । अर्थात ये शब्द राजाओं की उपाधि सूचक थे। इसी प्रकार वैदिक सृष्टि के पियों में भी अनेक रहस्य प्रकट किये हैं। आपने वैबोलियन जाति में पुजने वाले प्राचीन देवताओं के चित्रों से वैदिक मन्त्रों के देवों का सुन्दर मिलान किया हैं। उन सबसे वैदिक देवताओं का रहस्य प्रकट हो जाता है ।
* नोट सात लेकर जी द्वारा लित्रित महाभारत की सम्मा लोचना से भी उपरीकत की पुष्टि होती है।