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( हड )
। युवमग्निञ्च वृषणापश्च वनस्पतीं
अश्वि-- द्वय रविनात्रैरयेथाम् | १|१५७५श
युर्वेद गर्भ जगतीषु भ्रत्थो युवं विश्वेषु भुवनेष्वन्तः ॥
अश्विनी कुमार ही अग्नि को उसके काम में लगाते हैं । अश्विनी कुमार ही इस जगत् के गर्भ स्वरूप (कारण - बीज) हैं, एवं विश्व भर में टिके हुए हैं ॥
* पाठक । अग्नि सोम इन्द्र, विष्णु सविता अश्विनिय के सम्बन्ध में ऊपर जो उक्तियाँ उदधृत की गई, वे निश्चय ही देवताओं में अनुस्यूत हम सत्ता को लक्ष्य करता है। अन्यथा सारी उक्तियाँ निरर्थक ही पड़ेगी। फिर हम नाना स्थानोंमें ऐसी ही उक्तियां पाते हैं कि अग्नि सब देवताओं का समष्टि स्वरूप हैं. सूर्य भी सब देवों का समष्टि स्वरूप है. ऊषा भी आदित्यगण का समष्टि स्वरूप हैं एवं देवताओं की माता है ।
'त्रितन्तु उन्स' की ओर उपस्थित होता है" ( १ | ३० | ६ ) । यह बात कही गई है। त्रितन्तु उस सत्व रज तमोगुणात्मक कारण सत्ता व्यतीत ग्रन्य कुछ नहीं । सुतरां जलके मध्य कारण सत्ता का ही निर्देश किया गया है। जिस समय भारत वर्ष में घर २ में नित्य ही वेदग्रन्थ पड़े जाते थे उस समय सभी लोग जानते थे कि ऋग्वेदमं व्यवहृत श्रभियादि देवताओं का अर्थ क्या है तब किसीको भी भ्रम नहीं होता था। इस समय वेदोंकी आलोचना नहीं इससे किस श्रथमं वरुण अभि यदि शब्द प्रयुक्त हुए है सो बात लोग भूल गये हैं अन्नादेके समय जल के प्रति प्रार्थना देवकर अनेक व्यक्तियोंको मामित्र होने लगता है कि मानो जड़की उपासना है ।
इसीलिये संध्या