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( १३८ ) असि भगो'' 'अपि मश्या पधवत्भ्यः इन्द्रो।
५४ श्रर्य पूषारयिभंगः सोमः पुनानः अर्षति । ६।१०१७ ऊते कृयन्तु धीतयो देवानां नाम विभ्रतीः | KIRRIA
सारांश यह कि हे सोम ? श्राप इन्द्र सविता आदि है। आप ही राजा वरुण हैं। वरुपके काय अापके ही हैं । आपका धाम घ स्थान ( कारण-सत्ता ) बृहत् एवं गंभीर है । सोमने ही श्राकाशमें ऊपर सूर्यरूपसे अवस्थित होकर जनम-जननी तुल्य धुलोक और भूलोकको शुद्ध पवित्र किरणों द्वारा ज्योतिर्मय धनाया है। भग, इन्द्र पूषा. रयि, भर्ग, सोमके ही नाम है। सकल देवसाओंके नामोंसे सम्मिलित स्तुति द्वारा सोमको बुलाते हैं।
सविताका–सूर्य. पूषा, मित्र, चन्द्र. वरुण, एवं पायक नामसे निर्देश किया गया है।
उत सूर्यस्य रश्मिभिः समुन्यसि । उत रात्रीभृभयत्तः परीयसे। उत मित्रो भवसि देव धर्मभिः ॥ ५। ८१ | ४ उत्त पूषा भवसि देव धामभिः । ५।८१ । ५ येना पावकचक्षसा भ्ररस्यन्तं जना अनु स्वं वरुण पश्यसि । १। ५० । ६
हे सविता ! तुम सूर्य किरण द्वारा सङ्गत हुश्रा करते हो । तुम उभय पाश्र की रात्रिके मध्य में होकर भी गमन करते हो
सूर्योदय के पूर्वका नाम 'सविता' है उदयसे लेकर अस्त होने पर्यन्त का साधारण नाम "सूर्य" है । सायणाचार्य