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परित मना विषुरूपः (अग्नि) ५१५४ विवान वः पुरुका सपर्यन (अग्नि) ११७०।५ स कविः काव्या पुरुरूप 'पुष्यति (वरुण) ४११५ विश्वा रूपा प्रविचक्षाणो अस्य (सोम) हा८५१२ विश्वा रूपाणि प्रतिमुचते कविः (मुविता) श८१२ देवरतुष्टी सविता विश्वरूपः (सविता) ३।५१४ पुरुरूप उग्रः (रुद्र) २।३३।४ विभषि विश्वरूपम् , २१३३३१० _ विश्वरूपम् वृहस्पतिम् , १०१६७१०
इस प्रकार हम बहुत प्रमाण उद्धृत कर दिखामकते हैं कि ऋग्वेदके देवता वाँका काय-भेद, कथन मात्र ही है। सब देवता सब कार्य करने में समर्थ हैं। इसलिये देवताओंमें कार्यगत कोई भेद नहीं है।
(२) देवताओंमें कार्योकी भाँति नामोंकी भी भिन्नता नहीं है देवता वर्गमें केवल कार्यगत भाव नहीं यही नहीं. किन्तु इनमें नामगत भेट भी नहीं है। नामगत भिन्नता भी कहने मात्रको है यथार्थमें काई भिन्नता नहीं। वैदिक ऋषि एक देवताको अन्य देवताकै नामले सम्बोधन करते हैं। वे जानते थे कि देवता जैसे कार्यतः भिन्न नहीं है वैसे ही वे मामतः भी भिन्न नहीं हैं।
प्रसिद्ध वैदिक पंडित श्रीयुत् सत्यव्रत सामनमी महाशयने यास्ककी युक्तिका अनुसरण कर यह सिद्धान्त किया है कि, ऊषोदय पाहीं अमरणोदय काल होता है। अरुणोदयके पश्चात जब