________________
करवा-उसी. यम यमी और सूपासून पर रचित श्राख्यायिकाण अनेक वेदेतर अन्यों में पाई जाती हैं और उन्होंके अनुकरण में विष्णु के त्रिपद पर बलि--वामनकी कथा भी पुराण में गढ़ी गई । यह प्रवृत्ति वेद मन्त्रक सर्व धर्म मूलत्वकी प्रतीतिको प्रमारिणत करती है और यह विचारनेका अवसर बनाती है कि 'अग्नि मीले के स्तुतिवाद पर भारतीय ईश्वरवादका विकाश किस प्रकार किया गया ।
साधक भेद से दैवत भेद अनेक विद्वानों का मत है कि वैदिक देवताओं में नो भेद नहीं हैं, साधक भेदसे उनमें भेद कर दिया गया है। उनका कथन है कि
केवल कमां और झान विशिष्ट कमी-य दो श्रेणी के साधक हैं। द्रव्यात्मक और भावनात्मक यह दो प्रकार के यज्ञ है, इस यज्ञ के फल निशान और, देवयान मार्गद्वय मे साधकों की गति होती है । यह सब तत्व अग्वेद में मिल जाता है। प्रिय पाठकों ने जान लिया है कि उपनिषद् और बेदान्त सूत्रों के भाष्य में श्रीशंकर स्वामी जी ने भी इसे दो प्रकार के साधन का ही निर्देश किया है।
ऋग्वेद के सूक्क दा श्रेणियों में विभक्त है।
१४। हम यदि ऋग्वेद के सूक्तों का विशेष मनन करते है परयं भले प्रकार अालोचना करने है, संथ भी यही सिद्धान्न अनिवार्य हो उठता है देवताओं के उद्देश्य से विरचित सूक्त अधिकारी भेट से प्रधानतः दो प्रकार के ही देखे जाते हैं। पर जो दो प्रकार की उपासना एवं दो श्रेणी के साधन देखे गये है तदनुसार
- "अनामिणो धगिनिश्च कार्य, अझोपासकाः हीनहरयः। 'कारण अझोपासकाः मध्यम दृष्टयः | अद्वितीय ब्रदर्शन शीलास्लु उत्तम दृश्यः । उत्तम. दृष्टि प्रवेशार्थ दयालुना वेदेनोपाभना इदिवा" गोलपावकारिका भाश्य ध्यासपायाम् श्रानन्द गिरिश।१६।।