________________
t
( ८६ ) कृत, (२) परीक्ष कृत (३) अध्यात्मिक इनमें प्रत्यक्ष कुन मन्त्रों में तो सूर्य. अभि आदि जड़ पदार्थों की स्तुति आदि हैं । तथा परोक्ष कृत मन्त्रों में इन जड़ देवताओं का एक एक अधिष्ठाता देव मानकर इनकी स्तुति की गई है। अध्यात्मिक मन्त्रों में आत्मा का तथा उसके शरीर आदि का कथन है। इन्हीं की अधिमेतिक बाद, तथा आधिदैविक वाद और साध्यात्मिक बाद ना कहते है ( इनमें से अधिमतिक, बाद ही प्राचीन है, तथा श्राधिदैविक (याशिक ) बाद उसके पश्चात का है (आध्यात्मिक वाद नवीन तर हैं। वैदिक आध्यात्म वाद में और वर्तमान अध्यात्म बाद में रात और दिन का अन्तर है. जिसका वर्णन हम आगे करेंगे यहां तो यही प्रकरण है कि इन तीनों प्रकार के मन्त्रों में वर्तमान ईश्वर का कहीं संकेत मात्र भी नहीं है । यह ईश्वर कल्पना भक्तों की भक्ति का था वेश मात्र है। न यह कल्पना for है. और न वैज्ञानिक |
विशेष विचार
देवताओं के सम्बन्ध में निम्न बातें भी विचारणीय हैं। (१) सम्पूर्ण देवता उत्पन्न धर्म्मा हैं ।
(२) सब देवता विभक्त कर्मा हैं । अर्थात प्रत्येक देवता के
3
कार्य निश्चित हैं तथा अभि का कार्य देवताओं को हवि पहुंचाना हैं । इन्द्रका कार्य असुरों को नष्ट करना है। वरुणका कार्य शन्ति है । विदेषों का कार्य देवों की चिकित्साकरना है आदि आदि ।
(३) सब देवों के शगर, हाथ, पैर, मुव आदि हैं (४) सत्र देव वस्त्र, आभूषण, आदि पहनते हैं ।
(५) सब के शस्त्र आदि प्रथक पृथक