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( ८५ ) इन देवताओं को साकार चेतन पुरुषों की भांति स्तुति की गई हैं । साकार पुरुषों की भांति उनके नाम भी हैं । साकार पुरुषों के अंगों के तुल्य इनके अंगोंकी भी स्तुतिको गई है।"
यह वैदिक-धर्म कब का है • श्रीपं नरदेवजी शास्त्रांग ऋग्वेद लीयामें ले किं--
'हमारा प्रबल अनुमान है कि वैदिक धर्म और यज्ञपद्धति हिम युग के पश्चात् की है । इसके श्रादि मूल का पता लगाना कठिन है तो भी आदि आर्यों ने ध्रव विशिष्ट लक्षणों से वैदिक देवताओं की निर्सग शक्ति को देवनाओं की पदवी दी है, वह दशा पुगणों में बस मे स्थल अथवा उत्तरध्र व प्रदेशों में रहने के समय की थी. इसमें सन्धेह नहीं । हिमपान से इस स्थान का नाश हुआ फिर बचे हुये श्रायं अपने साथ बची हुई सभ्यता और धर्म को लेकर यहां से चल पड़े. और उन्होंने धर्म
और मभ्यता के इन्हीं अवशेषों पर हिमोत्सर कालीन धर्म की रचना की।
तथा श्रीमान ६५ जगन्नाथप्रसाद, पचौली गौड, सागर (सी० पी०) ने अपनी पुस्तक वेद और पुराण में इसी विषय का अनेक प्रमाणों से सिद्ध किया है।
तथा श्री लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का भी यही मत था। इसी मत की पुष्टि. पं. उमेशचन्द्र विद्या रत्न. ने की है। सभी निष्पक्ष विद्वाना का प्रायः यही मत है।
सारांश निरुक्त कार ने तीन प्रकार के ही मन्त्र बताये हैं. (१) प्रत्यक्ष