________________
शब्द कारण सत्ता का ही लक्ष्य करता है। सविता पर भी ऐसी ही उक्तियाँ मिलती हैं। न यस्येन्द्रो वरुणो न मित्रो व्रत पर्यमा न मिनन्ति रुद्रः
(२।३८ । ) यस्य प्रयाण मन्वन्यऽधयुर्देयाः । ॥१३॥ अभि यं देवी अदितिगृणाति सर्व देवस्य सवितुर्जुयाणा। अभि सम्राजो वरुणोगृणन्ति अभिमित्रासो अयमासजोषाः
(७ ! ३८ । ४) तदेकं देवानां श्रेष्ठं वपुषामपश्यम् । ५। ६२ । १ चक्षुत्रस्य वरुणस्याग्निः । देवानामजनिष्ट चतुः। ७ । ७६ १।।
इन्द्र. करुण, मित्र अर्यमा और भद्र कोई भी सविता के व्रत वा कर्म का परिणाम नहीं कर सकता। सूर्य की गति के ही अनुगत होकर अन्यान्य देवता गमन करते रहते हैं। सूर्य की गति से पृथक स्वतन्त्र रूप से किसी भी देवता का गमन सिद्ध नहीं होता। सविता द्वारा प्रेरित होकर ही अदिति, वरुण, मित्र, अर्यमा प्रभृति देवता वर्ग सविता की स्तुति किया करते हैं । वह एक सूर्य सब देवताओं में श्रेष्ट है, सविता मित्रादि देवोंका चक्षु है इत्यादि सब स्थानों में सविना शब्द कारण-मत्ता का ही बोधक है। सोम शब्द भी कारण सत्ता का निर्देश करता है । पाठक दो चार मन्त्र देख लें। ___ और लिखा है कि, सविता ही देवताओंके जन्मका नत्य जानन हैं 'वेद या देवानां जन्म । ६।५११९ । “पागावीत देवाः सविता जगन्"
५। १५.७ ॥ १६॥
ने से पृथक र अन्यान्य देवता र सकता। सूर्य भी सविता के