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अर्थ-यजमान श्राइतिसे देवताओंको पुष्ट करता है तथा दक्षिणामे विद्वानोंको। . देवता सत्य (अमर) हैं और मनुष्य अनत (मरणधर्मा) हैं।
पृथक पृथक दो गालियां हैं. एक देवयानी. नुमरी मनुध्ययानी. देवनानि अन्य है। और मनुष्य योनि अन्य है । देवता. पूर्व अर्थात् प्रथम उत्पन्न हुए। मनुग्न पश्चात । प्रजापति ने श्रेष्ठ प्राणी से देवोंको बनाया नया निम्न प्राणोंने मनुष्योंका बनाया इत्यादि। इस प्रकार शनशः प्रमाण दिया जा सकते हैं जिनसे यह सिद्ध है कि देवता एक योनी विशेष हैं, और उनकी पृथक पृथक सत्ता है। चंद स्वयं कहता है कि..
स्वाहाकत हवि रक्षन्तु देवाः । ऋ० १० । ११० | ११
स्वाहा शन्द्र द्वारा प्रदान की हुई हविको देवता खा । तथा वेदान्त दर्शनमें लिखा है कि
अभिमानी व्यपदेशस्तु विशेषानुगतिभ्याम् ॥ २११॥ . देवांका दो प्रकारका स्वरूप है एक तो अनि श्रादिका प्रत्यक्ष रूप. दुसरा अग्नि अादिका अभिमानीदेव, जैसे मनुष्य आदिका प्रत्यक्ष शरीर तथा उनका पृथक पृथक अभिमानी जीवात्मा हैं। __ इमी प्रकार देवताओंके दो दो रूप हैं। अभिप्राय यह है कि वैदिक विद्वानों में देवता विषयक विवाद था, कोई कहना था "पुरुष विधाः स्युः । तथा अन्योंका मत था अपुरुप विश्वाः स्युः" । ( जैसा कि निरुक्तमें लिखा है कि देवता पुस्पाकार है तथा अन्य कहते थे कि जड़ात्मक ही है । इसका समाधान व्यास ने किया है कि-देवता बाह्यरूपसे जडात्मक है नथा अभिमानी देवत्व