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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव
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अस्थिमज्जापाक में निम्न शारीरिक लक्षण ( symptoms ) मिल सकते हैं :१. विषरक्तता के साथ तीव्र उपसर्ग में पाये जाने वाले सब लक्षण जैसे उच्चसन्ताप, ज्वर के साथ कम्पन ( rigors ) तथा कभी-कभी प्रलाप ( delirium ) ।
२. सितकोशोत्कर्ष ( leucocytosis )।
३. पाक के स्थान पर घोर शूल मिलता है और वह स्थान उष्ण, लाल और फूला हुआ रहता है ।
अस्थि, पर्यस्थ तथा अस्थिमज्जा पर व्रणशोथ का जो परिणाम होता है उसे हमने बहुत पृथक करने का यत्न पीछे किया है परन्तु सब का सब इतना मिला जुला है. कि उसे इन तीन भागों में बाँटा नहीं जा सकता । पर्यस्थ से लेकर मज्जा तक अस्थि का इतना एक दूसरे भाग से घनिष्ठ सम्बन्ध है कि एक में पाक दूसरे और तीसरे भाग को बहुत अधिक प्रभावित करता है । अतः यदि सब पार्कों को अस्थिपाक (osteitis) नाम दिया जाय तो वह पूर्णतः युक्तियुक्त है हम इसके प्रमाण स्वरूप निम्न उद्धरण पाठकों के लाभार्थ उद्धृत करते हैं:
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"That the various parts of the bone are one, the perios teum, osteum, and medula being intimately connected and continuous with one another; wherefore it follows that an inflammatory process in a bone will affect all these structures in a greater or lesser degree, and it is thus absured to discus the diseases of the three constituent parts separately. Hence the older terms, periostitis, osteitis, and osteomyelitis, as denoting separate diseases, will be abandoned and the inflammations of bone tissue alluded to as osteitis a term which can be regarded as covering all the essential structures of a bone'.
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The Science and Practice of Surgery. अस्थिशिरपाक ( Epiphysitis )
अस्थिदण्ड में पाक होने पर कभी-कभी अस्थिशिर पर उसकी कास्थि में भी शोथ देखा जाता है। उसे अस्थिशिरपाक कहते हैं । यह तीव्र, अनुतीव्र तथा चिरकालीन या जीर्ण तीनों प्रकार का हो सकता है । तीव्र या घोर अस्थिशिरपाक ( acute epiphysitis ) बालकों की मारक स्वरूप की व्याधि होती है । यह मालागोलाणुओं से उत्पन्न हुआ करती है। इसकी तथा अस्थिपाक की विकृति में कोई अन्तर विशेष नहीं होता । अस्थिकारी न्यष्टीला ( ossific nucleus ) में पहले उपसर्ग पहुँचता है और वही इस उपसर्ग का केन्द्र रहती है । वहाँ तक उपसर्ग रक्त के उस चक्र द्वारा पहुँचाया जाता है जो सन्धि की श्लेष्मलकला, पर्यस्थ भाग आदि