Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उबंगसुत्ताणि [खण्ड ओवाइयं * रायपसेणियं जीवाजीवाभिगमे वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक युवाचार्य महाप्रज्ञ For Private & Pensenal use only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य तुलसी अमृत महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में निग्गंथं पावयणं उवंगसुत्ताणि (खण्ड १) ओवाइयं • रायपसेणियं • जीवाजीवाभिगमे वाचना प्रमुख : आचार्य तुलसी संपादक : युवाचार्य महाप्रज्ञ प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं (राजस्थान) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक: जैन विश्व भारती, लाडनूं प्रबंध सम्पादक : श्रीचन्द रामपुरिया, आर्थिक सहयोग : श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि: विक्रम सम्वत् २०४४ (दीपावली) ई० १९८७ पृष्ठांक :८०० मूल्य ४००/ मुद्रक : मित्र परिषद् कलकत्ता के आर्थिक सौजन्य से स्थापित जैन विश्व भारती प्रेस, लाडनूं (राजस्थान) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ On the occasion of Ācārya Tulsi Amrit Mahotsava Year Niggantbam Pāvayanam UVANGA SUTTANI IV (PART 1) OVAIYAM, RĀYAPASEŅIYAM . JIVĀJIVĀBHIGAME (Original Text Critically Edited) Vācanā-pramukha : ĀCĀRYA TULSI Editor : YUVĀCĀRYA MAHĀPRAJNA Publisher : JAIN VISHVA BHARATI LADNUN (RAJASTHAN) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Publisher : JAIN VISHVA BHARATI Ladnun-341 306 Managing Editor : Shrichand Rampuria, By Munificence : Shri Ramjal Hansraj Golchha Viratnagar (Nepal) Year of Publication: Vikram Samvat 2044 (Dipāvali 1987 A.D. Pages : 800 Price i 400/ Printers : JAIN VISHVA BHARATI PRESS, [Established through the financial co-operation of Mitra Parishad, Calcutta) Ladnun (Rajasthan) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुम निकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है। चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोधपूर्णसम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमी क्षण उसमें लगे। संकल्प फलवान् बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया। अत: मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता है, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं। संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है: संपादक: युवाचार्य महाप्रज्ञ पाठ-संशोधन सहयोगी : मुनि सुदर्शन , मुनि मधुकर " मुनि हीरालाल शब्दकोश : संविभाग हमारा धर्म है। जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूं कि उनका भविष्य इस महान कार्य का भविष्य बने । प्राचार्य तुलसी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण पुट्ठो वि पण्णा-पुरिसो सुदक्खो, प्राणा-पहाणो जणि जस्स निच्चं । सच्चप्पप्रोगे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स प्पणिहाणपुव्वं ॥ जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु, होकर भी आगम-प्रधान था। सत्य-योग में प्रवर चित्त था, उसी भिक्षु को विमल भाव से । विलोडियं प्रागमदुद्धमेव, लद्धं सुलद्ध णवणीयमच्छं। समाय-सज्माण-रयस्स निच्चं, जयस्स तस्स प्पणिहाणपुध्वं ॥ जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचर नवनीत । श्रुत-सद्ध्यान लीन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से। पवाहिया जेण सुयस्स धारा, गणे समस्ये मम माणसे वि। जो हेउभूनो स्स पवायणस्स, कालुस्स तस्स प्पणिहाणपुरुवं । जिसने श्रत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में । हेतुभूत थत सम्पादन में, कालुगणी को विमल भाव से। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. प्रकाशकीय २. सम्पादकीय (हिन्दी) ३. भूमिका (हिन्दी) ४. सम्पादकीय (अंग्रेजी ) ५. भूमिका (अंग्रेजी) ६. विषयानुक्रम ७. संकेत निर्देशिका ८. ओवाइयं ६. रायपसेणियं १०. जीवाजीवाभिगमे ग्रन्थानुक्रम परिशिष्ट १. संक्षिप्त-पाठ, पूर्त स्थल और पूर्ति आधार-स्थल २. तुलनात्मक ३. शब्द कोश ४. शुद्धिपत्र Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय आगम संपादन एवं प्रकाशन की योजना इस प्रकार है१. आगम-सुत्त ग्रंथमाला----मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुती करण। २. आगम-अनुसंधान ग्रन्थमाला--मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला---आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला-----आगमों से संबंधित कथाओं का संकलन और अनुवाद । ५. वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला-आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । ६. आगमों के केवल हिंदी अनुवाद के संस्करण । प्रथम आगम-सुत्त ग्रन्थमाला में निम्न ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं(१) दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि (२) आयरो तह आयारचूला (३) निसीहज्झयणं (४) उववाइयं (५) समवाओ (६) अंगसुत्ताणि (खं० १)-इसमें आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग-ये चार अंग समाहित हैं। (७) अंगसुत्ताणि (खं० २)--इसमें पंचम अंग भगवती प्रकाशित है। (८) अंगसुत्ताणि (खं० ३)-इसमें ज्ञाताधर्मकया, उपासकदशा, अंतकृतदशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, प्रश्नव्याकरण और विपाक-ये ६ अंग हैं। (९) नवसुत्ताणि (खं० ५)--इसमें आवस्सयं, दसवेआलियं' उत्तरज्झयणाणि, नंदी, अणओगदाराई, दसाओ, कप्पो, ववहारो, निसीहज्झयण-ये नौ आगम ग्रन्थ हैं। उक्त में से प्रथम पांच ग्रन्थ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित हए हैं एवं अंतिम चार ग्रन्थ जैन विश्व भारती, लाडन द्वारा प्रकाशित हुए हैं। द्वितीय आगम अनुसंधान ग्रन्थमाला में निम्न ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं १) दसवेवालियं Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) उत्तरज्झयणाणि (भाग १ और २) (३) ठाणं (४) समवाओ (५) सूयगडो (भाग १ और भाग २) उक्त में से प्रथम दो ग्रन्थ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित हुए हैं और अंतिम तीन ग्रन्थ जैन विश्व भारती, लाडनं द्वारा प्रकाशित हए हैं। दसवेआलियं का द्वितीय संस्करण भी जन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा प्रकाशित हुआ है। तीसरी आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला में निम्न दो ग्रन्थ निकल चुके हैं(१) दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन । (२) उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन । चौथी आगम-कथा ग्रन्थमाला में अभी तक कोई ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हो पाया है। पांचवीं वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला में दो ग्रन्थ निकल चुके हैं(१) दशवकालिक वर्गीकृत (धर्मप्रज्ञप्ति खं० १) (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्मप्रज्ञप्ति खं० २) छठी ग्रन्थमाला में केवल आगम हिंदी अनुवाद ग्रन्थमाला के संस्करण के रूप में एक 'दशवैकालिक और उत्तराध्ययन' ग्रन्थ का प्रकाशन हुआ है। उक्त प्रकाशनों के अतिरिक्त दशवकालिक एवं उत्तराध्ययन (मूल पाठ मात्र) गुटकों के रूप में प्रकाशित किए जा चुके हैं। प्रस्तुत प्रकाशन उवंगसुत्ताणि, खंड १ मे (१) ओवाइयं (२) रायपसेणियं और (३) जीवाजीवाभिगमे......इन तीन उपांग आगमों का पाठान्तर सहित मुलपाठ मद्रित है। साथ ही साथ इन तीनों उपांगों की संयुक्त शब्दसूची भी अन्त में संलग्न कर दी गई है। भूमिका में इन ग्रन्थों का संक्षेप में परिचय प्राप्त है, अत: यहां इस विषय पर प्रकाश डालने की आवश्यकता नहीं है। आगम प्रकाशन कार्य की योजना में निम्न महानुभावों का सहयोग रहा(१) सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविंदालालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगो)। (२) रामलालजी हंसराजजी गोलछा, विराटनगर । (३) स्व. जयचंदलालजी गोठी, सरदारशहर। (४) रामपुरिया चेरिटेबल ट्रस्ट, कलकत्त।। (५) बेगराज भंवरलाल चोरडिया चेरिटेबल ट्रस्ट । इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनार (नेपाल) निवासी श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हुआ है । इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है। यह ग्रन्थ जैन विश्व भारती के निजी मुद्रणालय में मुद्रित होकर प्रकाशित हो रहा है। मुद्रणालय के स्थापन में मित्र-परिषद, कलकत्ता के आर्थिक सहयोग का सौजन्य रहा, जिसके लिए उक्त Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संस्था को अनेक धन्यवाद। यह ग्रन्थ आचार्य तुलसी अमृत-महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में प्रकाशित हो रहा है । आगम-संपादन के विविध आयामों के वाचना-प्रमुख हैं आचार्यश्री तुलसी और प्रधान संपादक तथा विवेचक हैं युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी । इस कार्य में अनेक साधु-साध्वी सहयोगी रहे हैं। इस तरह अथक परिश्रम के द्वारा प्रस्तुत इस ग्रन्थ के प्रकाशन का सुयोग पाकर जैन विश्व भारती अत्यंत कृतज्ञ है। श्रीचंद रामपुरिया जैन विश्व भारती १६-११-८७ लाडनूं (राज.) कुलपति Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय प्रस्तुत पुस्तक में तीन ग्रन्थ हैं - ओवाइयं, रायपसेणियं और जीवाजीवाभिगमे । ओवाइयं औपपातिकका पाठ आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर स्वीकार किया गया है। प्रस्तुत सूत्र में वाचनान्तरों की बहलता है। यह सूत्र वर्णनकोश है। इसलिए अन्य आगमों में स्थान-स्थान पर 'जहा ओववाइए' इस प्रकार का समर्पण-वचन मिलता है। उन आगमों के व्याख्याकारों द्वारा अपने व्याख्या-ग्रन्थों में अवतरित पाठ तथा कहीं-कहीं समर्पण-सूत्रों के पाठ औपपातिक के स्वीकृत पाठ में नहीं मिलते हैं। वे पाठ वाचनान्तर में प्राप्त हैं। समर्पण-वचन पढ़ने वालों के लिए यह एक समस्या बन जाती है। प्रस्तुत आगम का पाठ आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर ही नहीं, किन्तु अन्य आगमों व व्याख्या-ग्रन्थों में प्राप्त अवतरणों व समर्पणों के आधार पर भी निर्धारित होना चाहिए था। किन्त समग्र अवतरणों व समर्पणों का संकलन हए बिना वैसा करना संभव नहीं। इस विषय में कुछ संकलन हमने किया हैभगवई ७।१७५ एवं जहा ओववाइए जाव ७.१७६ एवं जहा उववाइए (दो बार) ७।१९६ जहा कूणिओ जाव पायच्छित्ते ६।१५७ "जहा ओववाइए जाव एगाभिमुहे।" "एवं जहा ओववाइए जाव ति विहाए"। ६।१५८ "जहा ओववाइए जाव सत्थवाह" । "जहा ओववाइए जाव खत्तियकुंडग्गामे"। ६।१६२ ओववाइए परिसा वण्णओ तहा भाणियब्वं । ६।२०४ "जहा ओववाइए जाव गगणतलमणुलिहंती"। "एवं जहा ओववाइए तहेव भाणियब्वं"। २०४ जहा मोववाइए जाव महापुरिस" २०८ जहा ओववाइए जाव अभिनंदता २०६ एवं जहा ओवबाइए कुणिओ जाव निग्गच्छइ १६५६ जहा ओववाइए जहा ओववाइए कूणियस्स १११८५ जहा ओववाइए जाव गहणयाए Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११।८८, १६८ ११।१३८ ११११५४ ११।१५६ ११११५६ ११११६६ १२॥३२ १३३१०७ १४।१०७ १४।११० १५॥१८६ १५१८६ २५५६६ २५१५७० २५॥५७१ एवं जहेव ओववाइए तहेव जहा ओववाइए तहेव अट्टणसाला तहेव मज्जणघरे एवं जहा दढपइण्णस्स एवं जहा दढपइण्णे जहा ओववाइए जहा अम्मडो जाव बंभलोए एवं जह । कणिओ तहेव सव्व जहा कुणिओ ओववाइए जाव पज्जुवासइ एवं जहा ओववाइए जाव आराहगा एवं जहा ओववाइए अम्मडस्स वत्तव्वया एवं जहा ओववाइए दढप्पइण्णवत्तव्वया एवं जहा ओवयाइए जाव सव्वटुक्खाणमंतं जहा ओववाइए जाव सुद्धेसणिए जहा ओववाइए जाव लूहाहारे जहा ओववाइए जाव सव्वगाय" भगवई वृत्ति पत्र ७ पत्र ११ पत्र ३१७ पत्र ३१८ पत्र ३१६ पत्र ४६२ पत्र ४६३ पत्र ४६३ पत्र ४६३ पत्र ४६३ पत्र ४७६ पत्र ४७६ पत्र ४८१ पत्र ४८२ पत्र ५१६ पत्र ५२० पत्र ५२१ औपपातिकात् सव्याख्यानोऽत्र दृश्यः औपपातिकवद्वाच्या "एवं जहा उववाइए" त्ति तत्र चेदं सूत्रमेवम् "एवं जहा उववाइए जाव" इत्यनेनेदं सूचितम् "जहा चेव उववाइए" त्ति तत्र चैवमिदं सूत्रम् "जहा उववाइए" त्ति तत्र चेदं सूत्रमेवं लेशतः "जहा उववाइए" ति तदेव लेशतो दर्श्यते "एवं जहा उववाइए" तत्र चैतदेवं सूत्रम् "जहा उववाइए" त्ति चेदमेवं सूत्रम् "जहा उववाइए परिसावन्नओ" ति यथा कौणिकस्यौपपातिके "जहा उववाइए" त्ति एवं चैतत्तत्र "जहा उववाइए" त्ति अनेन यत्सूचितं तदिदम् "जहा उववाइए" त्ति करणादिदं दृश्यम् "एवं जहा उववाइए" त्ति अनेन यत्सूचितं तदिदम "जहा उववाइए" इत्येतस्मादतिदेशादिदं दृश्यम् "एवं जहा उववाइए" इत्येतत्करणादिदं दृश्यम् "एवं जहेवे" त्यादि “एवम्' अनंतरदशितेनाभिलापेन यथोपपातिके सिद्धानधिकृत्य संहननाद्युक्तं तथैवेहापि वाक्यपद्धतिरोपपातिकप्रसिद्धाऽध्येता पत्र ५२१ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र ५४२ पत्र ५४५ पत्र ५४५ पत्र ५४८ पत्र ५४६ पत्र ५६३ विवागसु १११७० २११३६ २।१०।१ पत्र ५६३ पत्र ६६६ पत्र ६२४ पत्र ६२४ पत्र ६२४ ज्ञातावृत्ति पत्र २ वर्णकग्रन्थो त्रावसरे वाच्यः रायपसेणियं सू० ३, ४ सू० ६८८ रायपसेणिय वृत्ति पृ० ३ पृ० पृ० १० ८ 15 पृ० २७ पृ० ३० पृ० ३६ १५ "जहा उववाइए तव अट्टणसाला तहेव मज्जणघरे" त्ति यथोपपातिकेऽट्टणसाला व्यतिकरो .......... "जहा दढपइन्ने” त्ति यथोपपातिके दृढप्रतिज्ञोऽधीतस्तथाऽयं वक्तव्यः तच्चैवम् "एवं जहा दढपइन्नो" इत्यनेन यत्सूचितं तदेवं दृश्यम् "जहा उववाइए" इत्यनेनयत्सूचितम् "जहा अम्मडो" त्ति यथोपपातिके अम्मडोऽधीतस्तथाऽयमिह वाच्यः " एवं जहा उववाइए जाव आराहग" त्ति इह यावत्करणादिदमर्थतो लेशेन दृश्यम् — "एवं जहे" त्यादिना यत्सूचितम् "एवं जहा उववाइए" इत्यादि भावितमेवाभ्मडपरिव्राजककथानक इति । "जहा उववाइए" त्ति अनेनेदं सूचितम् "जहा उववाइए" त्ति अनेनेदं सूचितम् "जहा उववाइए" त्ति अनेनेदं सूचितम् जहा ढ जहा दढपणे जहा दढपणे असोयवरपायवे पुढविसिलापट्टए वत्तव्वया ओववाइयगमेणं नेया एदिसाए जहा उववाइए जाव अप्पेगतिया सम्प्रत्यस्था नगर्या वर्णकमाह- ( यहां औपपातिक का उल्लेख नहीं ) यावच्छन्दकरणात् "सद्दिए कित्तिए नाए सच्छत्ते" इत्याद्योपपातिकग्रन्थप्रसिद्धवर्णकपरिग्रहः अशोकवरपादपस्य पृथिवीशिलापट्टकस्य च वक्तव्यता औपपातिकग्रन्थानुसारेण ज्ञेया । यावच्छब्दकरणाद्राजवर्णको देवीवर्णकः समवसरणं चोपपातिकानुसारेण तावद्वक्तव्यं यावत्समवसरणं समाप्तम् यावच्छब्दकरणात् “आइकरे तित्थगरे" इत्यादिकः समस्तोपि औपपातिकग्रन्थप्रसिद्धो भगवतद्वर्णको वाच्यः स चातिगरीयानिति न लिख्यते, केवलमोपपातिकग्रन्थादवसेयः बहवे उग्गा भोगा इत्याद्योपपातिक ग्रन्थोक्तं सर्वमवसातव्यं यावत् समग्रापि राजप्रभृतिका परिषत्पर्युपासीना अवतिष्ठते Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "एवं जहा उववाइए तहा भाणियव्वं" इति एवं यथा औपपातिके ग्रन्थे तथा वक्तव्यम् । तच्च एवं पृ० २८८ इत्यादिरूपा धर्मकथाऔपपातिकग्रन्थादवसेया जंबुद्दीवपण्णत्ती २०६५ एवं जाव णिग्गच्छइ जहा ओक्वाइए जाव आउल बोलबहलं २।८३ एवं जहा ओववाइए सच्चेव अणगारवष्णओ जाव उड्ढे जाण ३११७८ एवं ओववाइयगमेणं जाव तस्स जंबुद्दीवपण्णत्ती वृत्ति शा० वृ० पत्र १४ "वष्णओं" त्ति ऋद्धस्तिमितसमृद्धा इत्यादि औपपातिकोपाङ्गप्रसिद्धः समस्तोपि वर्णको द्रष्टव्य: चिरातीत मित्यादिवर्ग कस्तत्परिक्षेपि वनखण्डवर्णकसहितऔपपातिकतोऽवसेयः 'वष्णओ" त्ति अत्र राज्ञा "मल्याहिमवन्तमहन्ते" त्यादिको राज्ञाश्च "सूकूमालपाणिपाये" त्यादिको वर्णकः प्रथमोपाङ्गप्रसिद्धोऽभिधातव्यः यथा च समवसरणवर्णकं तथौपपातिकग्रन्थादवसेयं "तए णं मिहिलाए णयरीए सिंघाडगे" त्यादिकं "जाव" पंजलिउडा पज्जवासंती" ति पर्यन्तमौपपातिकगतमवगन्तव्यम् ........ एवोपागादवगन्तव्यमिति शा० ३० पत्र १४३ “यथोपपातिके” एवं यथा प्रथमोपाङ्गे ............ निपात:, औपपातिक गमश्चायं शा० ७० पत्र १५४ यथोपपातिके सर्वोऽणगारवर्णकस्तथाऽत्रापि वाच्यः शा. वृ० पत्र १५५ कियद्यावदित्याह-ऊर्ध्वजानुनी येषां ते ऊर्ध्वजानवः ..........."अत्र यावत्पद संग्राह्यः "अप्पेगइया दोमासपरिआया" इत्यादिक: औपपातिकग्रन्थो विस्तर भयान्न लिखित इत्यवसेयम् शा० वृ० पत्र २६४ एवमुक्तक्रमेण औपपातिकगमेन-प्रथमोपाङ्गगतपाठेन तावद् वक्तव्यं यावत्तस्य राज्ञः पुरतो महाश्वाः शा० वृ० पत्र ३२५ वृक्षवर्णनं प्रथमोपाङ्गतो ऽवसेयम् सूरपण्णत्ती वृत्ति पत्र २ यावच्छब्देनौपपातिकग्रन्थ प्रतिपादित: समस्तोपि वर्णक: आइन्नजणसमूहा" इत्या दिको द्रष्टव्यः पत्र २ तस्यापि चैत्यस्य वर्णको वक्तव्यः स चौपपातिकग्रन्थादवसेयः पत्र २ तस्य राज्ञः तस्याश्च देव्या औपपातिकग्रन्थोक्तो वर्णकोऽभिधातव्यः पत्र २ समवसरणवर्णनं च भगवत औपपातिकग्रन्थादवसेयम् पत्र ३ "बहवे उग्गा भोगा" इत्याद्यौपपातिकमन्थोवत्तम पत्र ३ अत्र यावच्छब्दादिदमौपपातिकग्रन्थोक्तं द्रष्टव्यम Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्रपण्णत्ती हस्तलिखित वृत्ति पत्र ५ पत्र ५ पत्र ५ पत्र ५ पत्र ६ उवंगा १।१४१ २।१३ दसाओ १०१२ १०।१४-१६ दसा. हस्त. वृत्ति वृत्ति पत्र ११ औपपातिकग्रन्थप्रसिद्धः समस्तोपि वर्णको द्रष्टव्यः स च ग्रन्थगौरवभयान्नलिख्यते केवलं तत एवोपपातिका दवसेयः औपपातिकग्रन्थोक्तो वेदितव्यः तस्य राज्ञस्तस्याश्च देव्या औपपातिक ग्रन्थोक्तो वर्णकोऽभिधातव्यः समवसरणवर्णनं च भगवत औपपातिक ग्रन्थादव सेयम् " बहवे उग्गा भोगा" इत्याद्योपपातिक ग्रन्थोक्तं सर्वमवसेयम् जहा दढपणो जहा दढपइण्णो 2 सू० ३२ सू० ३३ सू० ३६ सू० ४० रावणओ एवं जहा ओववातिए जाव चेल्लणाए सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं उववाइयगमेणं नेयव्वं जाव पज्जु वासइ द० ५५ ह०वृ० पत्र द० ५।६ वृ० पत्र ११ द० १०।२ ह०वृ० पत्र २५ " तस्य वर्णको यथा औपपातिकनाम्नि ग्रन्थेऽभिहितस्तथा" पपातिकग्रन्थप्रतिपादितः समस्तोपि वर्णको वाच्यः स चेह ग्रंथगौरवभयान्न लिख्यते केवलं तत एवोपपातिकादवसेयः । दसा. ५|४ ११ चैत्यवर्णको भणितव्यः सोप्यौपपातिकग्रन्थादवसेयः औपपातिकोक्तं पाठसिद्धं सर्वमवसेयं........ द० १०१२ ह०वृ० पत्र २५ विस्तरव्याख्या तूपपातिकानुसारेण वाच्या द० १०/३ ह०वृ० पत्र २५ आदिकरः यावत्करणात् " • समस्तो औपपातिकग्रन्थप्रसिद्धो ....... केवलमोपपातिकग्रंथादवसेयः -- द० १०।६ ह०वृ० पत्र २६ जावत्ति यावत्करणात् जणवू हेइ वा उग्गा भोगा - इत्याद्योपपातिकग्रन्थोक्तम् — द० १०।१४- १६ ह०वृ०पत्र २८ उववातियगमेणीति औपपातिकग्रंथो क्तकौणिक वंदन गमन प्रकारेणायमपि निर्गतः द० १० २१ ह०वृ० पत्र २६ इहावसरे धर्म्मकथा औपपातिकोक्ता भणितव्या अन्य आगमों में ओवाइयं के सूत्र : ओवाइयं भगवई २५।५५६-५६३ २५।५६४-५६८ २५।५७६-५७६ २५५८२-५६८ राय० जंबु ० Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सू० ४४ ओवाइयं भगवई राय० जंबु. सू० ४३ २५॥६००-६१२ २५२६१३-६१८ सू० ६४ ९।२०४ सू० ४६-५५ ३।१७८ सू० ६५ ३११८० ३३१७६ समर्पण सूत्र संक्षिप्त पद्धति के अनुसार औपपातिक में समर्पण के अनेक रूप मिलते हैं :जाव-उदए जाव झीणे (११७) एवं जाव- अपडिविरया एवं जाव (१६१) सेसं तं चेव--परलोगस्स आराहगा सेसं तं चेव (१५७) एवं-एवं उवज्झायाणं थेराणं (१६) अभिलावेणं-एवं एएणं अभिलावेणं (७३) एवं तं चेव-सगडं वा एवं तं चेव भाणियव्वं जाव णण्णत्थ गंगामट्टियाए (१२३) भाणियध्वं—एवं चेव पसत्थं भाणियव्वं (४०) कंदमंतो एएसि वण्णओ भाणियव्यो जाव सिविय (१०) णेयव्वं-त चेव पसत्थं यध्वं । एवं चेव वइविणओ वि एएहि पएहि चेव णेयध्वो (४०) शब्दान्तर और रूपान्तर व्याकरण और आर्ष-प्रयोग-सिद्ध शब्दान्तर एवं रूपान्तर भाषा-शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। इसलिए उन्हें पाठान्तर से पृथक् रखा है। सूत्र १ कुक्कुड मुसुंढि मुसंढि० (क, ख) वक्क भत्त °हत्त° कीला °खीला (क, ख) °तुरग° 'तुरंग दरिसणिज्जा दरिसणीया (क, ख) कालागरु कालागुरु °कहग °कहक° (क, ख, ग) निकुरंबभूए °णिउरंबभूए (ख) दरिसणिज्जा दरसणिज्जा (क, ख) गुलुइय अभितर अब्भंतर बाहिर बहिर णीवेहि णितेहिं कुंकड ०वंक orrrrrrrrrxxx ururu गुलइय Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "हलधर' "हलहर (व) भुयगीसर अकरंड्य 'च्छर भुयईसर अकरंदु (क, ख, ग) (क, ख) 'गोफे 'पीढणं जदा 'वीढेणं जया आयावाया परवाया ओमोयरिया बारसभत्ते आदावाया परवादा अवमोयरिया बारसमभत्ते बारसमेभत्ते (व) चउद्दस चोद्दसम (क, ख) सोलस (क, ख) (ग) चउमासिए 'भोइत्ति दव्वाभि एतस्स 'पउत्ते उसण्ण चोइसमे सोलसम सोलसमे घउम्मासिए 'भोईत्ति दवभि' इंतस्स 'पजुत्ते बोसण्ण (क,ग) 'स्यी दरिसणावरणिज्ज 'वीची तोयपट्ठ 'वणिय विहस्सती 'तिरीडधारी महप्फलं गयगया पच्चोरुहंति पाडियक्कपाडियक्काई पओय-लदि दसणावरणीय 'वीती (ग) 'तोयवट्ठ (क) 'पण्णिय वहस्सती 'किरीडधारी (ख) महाफलं (क, ख, ग) गतगता (क) पच्चोरुभंति (ग) पाडिएक्कपाडिएक्काई(ख) पतोद-लद्रि पयोत्त-लदि (ग) Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिगेहिं 'मिसिमिसंत' 'सुसिलिट्ठ 'वीइयंगे कूवग्गाहा 'तुरगाणं सखिखिणी 'मुइंग भट्टित्तं अब्भंगेहिं 'मिसमिसंत सुसलिट्ठ वीजियंगे कूतुयग्गाहा 'तुरंगाणं सकिंकिणी (ग) (क, ग) __ (क) (क) 'मुदंग भट्टत्तं 'कोंच वइर' 'णिघस वेयणिज्ज से जे से जाओ 'उरियाओ कुक्कुइया "अहव्वण अलाउ चरिमेहि वेंटिया __(ख) 'कुंच' (ग, वृ) वज्ज 'निकस' वेदणिज्जं (क, ग) सेज्जे (क, ख) सेज्जाओ पुरियाओ (क, ग) कोकुइया (ख, ग) 'अथव्वण' (क, ख, ग) लाउ (ग) चरमेहि वंटिया (क, ख, ग) अणकारा (क, ग) तिल्ल (क); तेल' (ख) वइ (क, ख, ग) पत्तिट्ठिया (क, ख) LETEEEEEEEEEEE भूइ भूई अणगारा तेल्ला वय गा. १ पइट्रिया १७५ " १६५ प्रति-परिचय, ) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय', सरदारशहर से श्री मदनचन्द जी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ४० तथा पृष्ठ ८० है। प्रत्येक पत्र ११॥ इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में ४ से १३ तक पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४६ तक अक्षर हैं। पत्र के चारों ओर सूक्ष्माक्षरों में टीका लिखी हुई है। प्रति सुन्दर, कलात्मक तथा पठित मालूम होती है । प्रति के अंत में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है : इति श्री उववाईसूत्रं समाप्तं ॥ ग्रन्थ ११६७ ॥छ। संवत् १६२३ वर्षे फाल्गुन सुदि ३ दिने। आगरा नगरे। पातिसाह श्री अकबर जलालदीन राज्य प्रवर्त्तमाने ॥ श्री बृहत् खरतर गच्छालंकार श्री पूज्यराज श्री ६ जिनरि. घसूरिविजयराज्ये पंडित श्रीलब्धिवर्द्धन Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ मुनिभिरुपपातिका नाम उपांगं लिखापितं ॥छ। वाच्यमानं चिरं नद्यात् ॥ शुभं भवतु लेखकवाचकयोः ॥श्री॥ (ख) यह प्रति 'श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय' सरदारशहर से श्री मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ५६ तथा पृष्ठ ११८ है। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा ४॥ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में पाठ की ७ से 8 तक पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। पाठ के ऊपर-नीचे दोनों ओर राजस्थानी भाषा का अर्थ है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति श्री उवाई उपांग पढमं समत्तं ॥ ग्रंथाग्रं १२२५ ।। ॥छ।। ॥श्री।। ।। संवत् १६६५ वर्षे पोष मासे शुक्लपक्षे सप्तमी तिथौ श्री सोमवारे । श्री श्री विक्रम नगरे । महाराजाधिराज महाराजा श्री रायसिंहजी विजयराजे पं० कर्मसिंह लिपीकृता॥छ।। 1) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय' सरदारशहर से श्री मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र २६ तथा पृष्ठ ५२ हैं। प्रत्येक पत्र १०॥ इंच लम्बा तथा ४१ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पंक्ति में १५ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में ४६ से ४८ तक अक्षर हैं। प्रति के अन्त में हैउवाईयं समत्तं ।। ग्रन्थान १२०० शुभमस्तु ॥छ। श्री।। लिखा है किन्तु संवत नहीं दिया है। पर पत्र, अक्षर तथा चित्रों के आधार से यह प्रति १७ वीं शताब्दी की होनी चाहिए। हस्तलिखित वत्ति की प्रति: यह 'श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय', सरदारशहर से श्री मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसकी पत्र संख्या ७५ तथा पृष्ठ १५० हैं। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५५ से ६० तक अक्षर हैं। प्रति १० इंच लम्बी तथा ४। इंच चौड़ी है। प्रति शुद्ध तथा स्पष्ट है। अंतिम प्रशस्ति में लिखा है शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु ।। लेखकपाठकयोश्च भद्र भवतु ॥छ। संवत् १९६६ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि भोमे लिखितं ॥छ।। श्रीः ।। यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा ।। तादृशं लिखितं मया ॥ यदि शुद्धमशुद्धं वा । मम दोषो न दीयते।। छ ।॥छ।। (वृ०पा०) वृत्ति-सम्मत पाठान्तर कुछ विशेष-हस्तलिखित वृत्ति तथा मुद्रित वृत्ति में वाचनान्तर पाठ सदृश नहीं है। हमने मूल आधार हस्तलिखित वृत्ति को माना है । रायपसेणियं प्रस्तुत सूत्र का पाठ-निर्णय हस्तलिखित आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर किया गया है। सूर्याभ के प्रकरण में जीवाजीवाभिगम और दृढप्रतिज्ञ के प्रकरण में औपपात्तिक सूत्र का भी उपयोग किया है। वृत्तिकार ने स्थान-स्थान पर वाचनाभेद की प्रचुरता का उल्लेख किया है। वृत्तिकाल में पाठभेद की समस्या उग्र थी, उत्तरकाल में वह उग्रतर हो गई। फिर भी हमने उपलब्ध साधन-सामग्री का सूक्ष्मेक्षिकया प्रयोग कर पाठ निर्धारण किया है। अधिकार की भाषा में कोई नहीं कह सकता कि यह पाठ-निर्धारण सर्वात्मना त्रुटि रहित है, किन्तु इतना कहा जा सकता है कि इस कार्य में तटस्थता और धृति का सर्वात्मना उपयोग किया गया है। प्रस्तुत सूत्र की पाठपूर्ति अत्यन्त श्रम साध्य हुई है । पाठपूर्ति से सूत्र का शरीर बृहत् हुआ है। साथ-ही-साथ पाठ-बोध की सुगमता और कथावस्तु को सरसता बढ़ी है। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ मतुड हंत शब्दान्तर और रूपांतर व्याकरण और आर्ष-प्रयोग-सिद्ध शब्दान्तर एवं रूपान्तर भाषा शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं; इसलिए उन्हें पाठान्तर से पृथक् रखा है। सूत्र संख्या ८ मउड °धेयं °धेज्ज णाई णादि (क,ख,ग,च) उकिट्ठाए ओकिट्ठाए पढ़े वढे (ख,ग); मट्ठ (च) णाइय णातिय (क,ख,ग,घ,च,छ) (च) अभिवंदए अभिवंदते (छ) आयंस' आतंस (घ,च) मिउ मउ (क,ख,ग) पासाईए पासातीए (क,ख,ग,घ) अतीव अतीत तिसोवाण तिसोमाण (क,ख,ग,च) महालतेणं महालएणं (ख,ग,घ) वेमाणिएहि वेमाणितेहिं (क,ख,ग,घ) विरचिय विरतिय (क,ख,ग,च) वायाणं वाइयाण (क,ख,ग,छ) वाययाणं (घ) ओणमंति तोनमंति (क,घ) मउ (क्वचित्) 'टाणं 'ताणं (क,च,छ) ११८ मत्थए (क,ख,ग,घ) जएणं विजएणं जतेणं विजतेणं (क,ख,ग,घ) बहुईओ बहुगीओ (क,ख,ग,घ) बहुगीतो " १२६ दार वार (क,ख,ग,च,छ;) बार (घ) १३० 'कवेल्लुयाओ 'कवेलुयातो (क,ख,ग,घ) १३५ संकलाओ संखलाओ (क्वचित्) १३७ पगंठगा पकंठगा (घ,च) साए पहाए पएसे साते पहाते पतेसे (क,ख,ग,घ, मिउ ७७ मत्थते १२४ (च,छ) Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ १७३ १७३ १८६ १६७ १६७ तो २२८ २४५ ६५४ चरियासु चलियासु ६८३ (घ) १५६ सव्वोउय सव्वोउत° (क,ख,ग,ध) पिणद्ध विनद्ध तिठाण तित्थाण. (क,ख,ग,घ,च,छ) १८५ आईणग आदीणग (क,ख,ग,घ) उड्ढं उद्धं 'वेइया वेतिया (क,ख,ग,घ,च,छ) फलएसु °फलतेसु (क,ख,ग,घ,च,छ) २१६ तगो (क); ततो (छ) "बिटा बेंटा क,ख,ग,छ; बेठा (च) सुविरइ-रयत्ताणे सुइरइ-रइत्ताणे (क,ख,ग,घ,छ) २६२ कडुच्छ्यं कडुच्छ्यं (क,ख,ग,घ) (क,ख,ग) पीय पील (क,ख,ग) 'विंद °वंद ६८७ 'वूहे (क,ख,ग) ६६५ 'परिभाइत्ता परिभागेत्ता (क,ख,ग,घ,च,छ) ७०६ कोट्टयाओ कोट्ठाओ (क,घ) ७२० अगिलाए अइलाए (क,च) ७५४ अओ' अयो (क,ख,ग); अय° (घ) ७५५ भिच्चा (घ) ७६० किसिए कसिए (क,ख,ग,घ,छ) ७७१ वाउकायस्स वाउयागस्स (क,ख,ग,घ,च,छ) ७८७ भिक्खुयाणं भिछुयाणं (घ, च) , ७६१ प्पओगेण प्पयोगेण प्रति-परिचय क) यह प्रति सरदारशहर 'श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय' से प्राप्त है। इसके ४६ पत्र तथा १८ पृष्ठ हैं। प्रत्येक पत्र की लम्बाई १०।। इंच तथा चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५० से ५५ तक अक्षर है यह प्रति वि० सं० १६७१ की लिखी हुई है। इसकी पुष्पिका निम्नोक्त है नमो जिणाणं जियभयाणं णमोसुय देवयाए भगवईए णमो पण्णत्तीए भगवईए णमो भगवओ अरहओ पासस्स पस्से सुपस्से पस्सवणीणभए । छ। रायपसेणइयं समत्तं । छ । ग्रंथाग्रं २०७६ समथितमिदं सूत्रं छ संवत १६७१ वर्षे भाद्रवा सुदि ११ । आगे भी पष्पिका है पर उस पर हड़ताल फेरी हुई है। ) पत्र क्रमश: ५५, ६१ । ये दोनों प्रति 'क' प्रति के सदश ही हैं। (घ) यह प्रति यति कनकचन्दजी' पाली (मारवाड़) की है। इसके पत्र ५४ व पृष्ठ १०८ हैं । भेच्चा ___(घ) Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ प्रत्येक पत्र की लम्बाई १०॥ इंच व चौड़ाई ४ ॥ इंच है । प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४६-४८ अक्षर हैं। यह प्रति वि०सं० १५६६ की लिखी हुई है। प्रति के अन्त में निम्न पुष्पिका है ॥ छ ॥ शुभं भवतु लेखकपाठकयोः श्री संघस्य च ॥ संग १५६६ वर्षे चैत्र सुदि २ तिथी अद्येह श्रीमदणहिल्लपत्तने श्री बृहत्वरतरगच्छे श्रीवर्धमानसूरि संताने श्री जिनभद्रसूरिपट्टानुक्रमेण श्री जिनहंससूरि राज्ये वाचनाचार्यजयाकारगणिशिष्य वा० धर्मविलासगणिवाचनार्थं भ० वस्तुपालभार्यया लीली श्रावकया । पुत्ररत्न भ० सालिगपुमुखपरिवार स श्रीकया सू श्रेयार्थं च लेखितं श्री राजप्रश्नीयोपांगं । (च) यह प्रति पूनमचन्द बुद्धमल दुधोड़िया, छापर ( राजस्थान) के संग्रह से प्राप्त है । इस प्रति के ४२ पत्र तथा ८४ पृष्ठ | प्रत्येक पत्र की लम्बाई १२ इंच तथा चौड़ाई ५ इंच है। प्रत्येक पत्र १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४८ से ५४ तक अक्षर हैं। प्रथम दो पत्रों में २ चित्र हैं । लिपि सुन्दर पर अशुद्धि बहुल है । यह प्रति अनुमानित सोलहवीं शताब्दि की है । (छ) यह प्रति भी उपरोक्त दुधोड़िया, छापर ( राजस्थान) के संग्रह से प्राप्त है इस प्रति के पत्र ४१ व पृष्ठ ८२ हैं । प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५७ से ६० अक्षर हैं । लिपि साधारण पर शुद्ध । अन्त में लिखा है - लिपि सं० १६६५ वर्षे कार्तिक मासे शुक्ल पक्षे सप्तमी शुक्रे बब्बेरकपुरे पं० लब्धि कल्लोलगणिनालेखि । (a) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया पुस्तकालय' सरदारशहर से प्राप्त है । इसके ५२ पत्र तथा १०४ पृष्ठ हैं । प्रत्येक पत्र की लम्बाई १०|| इंच तथा चौड़ाई ४ || इंच है । प्रत्येक पत्र में १७ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६५ से ७० तक अक्षर हैं यह प्रति वि० सं० १६०५ में लिखी हुई है। इसकी पुष्पिका निम्नोक्त हैं इति मलयगिरिविरचिता राजप्रश्नीयोपांग वृत्तिका समर्थता ॥ समाप्तमिति । प्रत्यक्षरगणनया ग्रन्थाग्रं ॥छ।। ।।छ।। प्रत्यक्षर गणनातो ग्रन्यमानं विनिश्चितं । सप्तत्रिंशत्शतान्यत्र । श्लोकानां सर्व संख्ययाः ॥छ।। ग्रन्थाग्रं श्लोक ३७०० ॥ छ ॥ श्री ॥ संवत् १६०५ वर्षे श्रावण सुदि १३ भौमे पतन वास्तव्यं ॥ पं० रद्रासु त्जगनाथ लिखितं । शुभं भवतु ॥ जीवाजीवाभिगमे प्रस्तुत सूत्र का पाठ निर्णय हस्तलिखित आदर्शो तथा वृत्ति के आधार पर किया गया है । मलयगिरि की वृत्ति प्राचीन आदर्श के आधार पर निर्मित है इसीलिए ताडपत्रीय आदर्श और वृत्ति का पाठ समान चलता है। इस विषय में ३।२१८, ४५७,५७८, ८२६ सूत्र तथा इनके पाद टिप्पण द्रष्टव्यं है । अर्वाचीन आदर्शों में पाठ का इतना बड़ा अन्तर मिलता है यह बहुत ही विमर्शनीय और अन्वेषणीय है । जीवाजीवाभिगम के आदर्शों में पाठ की एक समानता नहीं रही है इसकी सूचना जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के वृत्तिकार शान्तिचन्द्र ने भी दी है ।' १. जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति वृत्ति पत्र १०८ अत्र चाधिकारे जीवाभिगमसूत्रादर्शे क्वचिदधिकपदम् अपि दृश्यते तत्तु वृत्तावत्याख्यातं स्वयं पर्यालोच्यमानमपि न नार्थप्रदमिति न लिखितं, तेन तत् सम्प्रदायादवगन्तव्यं तमन्तरेण सम्यक् पाठशुद्धेरपि कर्त्तुमशक्यत्वादिति । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपाध्याय शान्तिचन्द्र ने कल्पवृक्ष के विवरण का पाठ जीवाजीवाभिगम से उद्धृत किया है। चतुर्थ कल्पवृक्ष के स्वरूप वर्णन में उन्होंने कणग निगरण' पाठ उदधत किया है। उसका अर्थ किया है सूवर्ण राशि। जीवाजीवाभिगम की वृत्ति में 'कणग निगरण' पाठ व्याख्यात है-"कनकस्य निगरणं कनकनिगरणं गालितं कनकमिति भावः । लिपि-परिवर्तन के कारण पाठ परिवर्तन हुआ है। आदर्शों में 'कूडागारटु' पाठ मिलता है । मुद्रित तथा हस्तलिखित वृत्ति में भी 'कूटागाराद्यानि' पाठ उपलब्ध होता है। ___ जीवाजीवाभिगम की वृत्ति में यह व्याख्यात नहीं है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति में इसकी व्याख्या मिलती है-'कुटाकारेण -शिखराकृत्याढ्यानि"" ___आचार्य मलयगिरि ने आदर्शगत पाठभेद का स्वयं उल्लेख किया है। वृत्तिकार ने जिन गाथाओं को अन्यत्र कहकर उद्धत किया है। अर्वाचीन आदर्शों में वे गाथाएं मूल पाठ में समाविष्ट हो गई। वत्ति में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की टीका का उल्लेख मिलता है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के व्याख्याकार मलयगिरि के उत्तरवर्ती ही हैं। इसलिए यह उल्लेख प्रक्षिप्त है अथवा मलयगिरि के सामने उसकी कोई प्राचीन व्याख्या रही है यह अन्वेषण का विषय है। कहीं-कहीं वृत्ति में भी कुछ विमर्शनीय लगता है । 'सिरिवच्छ' पाठ की व्याख्या वृतिकार ने श्रीवक्ष' की है। प्रकरण की दृष्टि से 'श्रीवत्स होना चाहिए। मूल टीकाकार और मलयगिरि के सामने पाठभेद तथा अर्थभेद की जटिलता रही है और व्याख्याकारों के समय में इस विषय में कुछ चर्चाएं भी होती रही हैं। इस विषय में वत्ति का एक उल्लेख बहुत ही ऐतिहासिक महत्त्व का है। वृत्तिकार ने लिखा है कि यह सूत्र विचित्र अभिप्राय वाला होने के कारण दुर्लक्ष्य है। इसकी व्याख्या सम्यक् सम्प्रदाय के आधार पर ही ज्ञातव्य है। सूत्र १. जम्बूद्वीप वृ० ५० १०२-'कनकनिकरः सुवर्ण राशिः।" २. जीवाजीवाभिगम वृ०प० २६७ । ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति वृ० १० १०७ देखें जीवाजीवाभिगम ३१५६४ का पादटिप्पण । ४. (क) जीवाजीवाभिगम वृ० प ३२१ "इह बहुषा सूत्रेषु पाठभेदाः परमेतावानेव सर्वत्राप्यर्थो नार्थभेदान्तरमित्येतद्व्याख्यानुसारेण सर्वप्यनुगन्तव्या न मोग्धव्यमिति ।" (ख) जीवा० वृ० ५० ३७६ । इह भूयान् पुस्तकेषु वाचनाभेदो गलितानि च सुत्राणि बहुषु पुस्तकेषु ततो यथाऽवस्थितवाचनाभेदप्रतिपत्यर्थगलितसूत्रोद्धरणार्थ चैवं सुगमान्यपि विवियन्ते। ५. जीवा वृ०प० ३३१, ३३३, ३३४ तथा ३८२०, ८३०, ८३४, ८३७ के पादटिप्पण द्रष्टव्य हैं। ६. जीवाभिगम वृ०प० ३८२ क्वचित्सिहादीनां वर्णनं दृश्यते तद् बहुषु पुस्तकेषु न दृष्टमित्युपेक्षितं अवश्यं चेत्तद्वयाख्यानेन प्रयोजनं तर्हि जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका परिभावनीया, तत्र सविस्तरं तद् व्याख्यानस्य कृतत्वात्। ७. जीवा जीवाभिगम वृ०५० २७१--- 'श्रीवक्षणांकितं-लाछिछितम् वृक्षो येषां ते श्री वृक्षलाञ्छित वक्षसः" । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ (ता) के अभिप्राय को जाने बिना मनमाने ढंग से व्याख्या करना उनकी अवहेलना करना है। सूत्र की आशातना या अवहेलना न हो इस दृष्टिकोण ने पाठ और अर्थ की परम्परा को सुरक्षित रखने में काफी योग दिया है फिर भी बुद्धि की तरतमता और लिपिप्रमाद के कारण पाठ और अर्थ में परिवर्तन हुआ है। पाठ की विविधता के कारण हमें भी पाठ के निर्धारण में काफी श्रम करना पड़ा है। पाठान्तर और उनके टिप्पणों से उसका अंकन किया जा सकता है। 'ता' संकेतित प्रति संक्षिप्त पाठप्रधान है, जैसे १:४१ सूत्र से ..."ताई भंते किं पुडाई आहारेंति अपू गोयमा पुट्टा णो अपु । आगाणो अणोगा अणंतरी वरं अणइं पि आ बायराइं पिआ उडढं वि इ आदि पि इ सविसए णो अविसए आणुपुवि णो अणाणुपुब्धि आच्छद्दि वाघातं प सिय तिदिसि ष्क । नो वण्णतो काला नी गंधतो सु २ रसतो नो फासही ते पोराणं विपरिणामेत्ता अपुव्व वण्ण गुण एक उप्पाएत्ता आतसरीर खेत्तोगाढ़े पोग्गले सव्वप्पणत्ताए आहारमाहारंति" । लिपि-दोष के कारण "किं तिदिसि के स्थान में "कतिदिसि" (क)। 'ता' का अनेक जगह पाठान्तर नहीं लिया है, वहां पाठ बहुत संक्षिप्त है। शब्दान्तर और रूपान्तर १११ जिणक्खायं जिणखायं (ख) जिणखातं (ता) अणुवीइ अणुवीतियं रोएमाणा रोतमाणा १।१४ संघयण संघतण (ता) सण्णामओ सण्णातो जोगुवओगे जोगुवतोगे १।१६ कोहकसाए कोहकसाते १२२१ कण्हलेस्सा किण्हलेस्सा (ग,ट) श२६ आणपाणु° आणपाण' १२७२ छीरविरालिया छिरविरालिया (क) छिरिविरालिया (ख;) १. जीवाजीवाभिगम वृ०५० ४५० "सत्राणि ह्यमूनि विचित्राभिप्रायतया दुर्लक्ष्याणीति सम्यकसंप्रदायादवसातव्यानि, सम्प्रदायश्च यथोक्तस्वरूप इति न काचिदनुपपत्तिः, न च सूत्राभिप्रायमज्ञात्वा अनुपपत्ति रुद्भावनीया, महाशासनायोगतो महाऽनर्थप्रसक्तेः सूत्रकृतो हि भगवन्तो महीयांसः प्रमाणीकृताश्च महीयस्तरस्तकालवत्तिभिरन्यविद्वद्भिस्ततो न तत्सूत्रेषु ननागप्यनुपपत्तिः, केवलं सम्प्रदायावसाये यत्नो विधेयः ये तु सूत्राभिप्रायभज्ञात्वा यथा कञ्चिदनुपपत्तिमुद्भावयन्ते ते महतो महीयस प्राशातयन्तीति दीर्घतरसंसारभाजः, आह च टीकाकारः --"एवं विचित्राणि सूत्राणि सम्यक्संप्रदायादवसेयानीत्यविज्ञाय तदभिप्राय नानुपपत्तिचोदना कार्या, महाशातनायोगतो महाऽनर्थप्रसंगादिति" एवं च ये सम्प्रति दुष्षमानुभावतः प्रवचनस्योपप्लवाय धूमकेतव इवोस्थिताः सकलकाल सुकराव्यवच्छिन्नसुविधिमार्गानुष्ठातृसुविहितसाधुषु मत्सरिणस्तेऽपि वृद्धपरम्परायातसम्प्रदायादवसेयं सूत्राभिप्रायमपास्योत्सूत्रं प्ररूपपत्तो नहाशातनाभाज. प्रतिपत्तव्या अपकर्णयितव्याश्च दूरतस्तत्ववेदिभिरिति कृतं प्रसङ्गेन"। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७३ १११०० १११०१ (ता) (ग) २१५६ २।६० २०७४ २।१२ २।२४१ २।१४६ ३६ ३३३३ ३१४८ ३७३ ३१७७ थीहू तहप्पगारा दुआगइया आहारो पलिओवमाई अब्भहियाई फुफुअग्गि वासपुहत्तं एतासि वणस्सति° जोयण आवबहुले अबाधाए जे णं इमं असीउत्तरं अडहत्तरे किण्हपुड बाहल्लेणं केरिसगा फुडित° उसिणवेदणिज्जेसु विरचिय एगाहं एत्थ जंबूणदमया उवगारियालय ३१७७ किण्णपुड छिरियविरालिया (ग,ट); छीरवीराली (ता) थिभु तहप्पकारा (क,ख,ग,ट) दुयागतिया (ग) आधारो पलितोवमाई (क,ख,ग,ट) अब्भधियाई (ग) फुफअग्गि (क); पुंफअग्गि वासपुधत्तं (क); वासपुहुत्तं (ग,ट) एतेसि (क,ख,ग,ट); एगासि वणप्फइ° (क,ख,ग) जोतण अवबहुले (क); आवबहुले आबाधाए जेणिमं (ता) आसीउत्तरे (ता) अडसत्तरी (ग); अछुत्तरे (क,ग) पाहलेणं केरिसता (क,ख,ग) फुडिग (ता); (मवृ) उसुणवेदणिज्जेसु (ता) विरइय (क,ग,ट) एकाहं (ख,ग,ट) तत्थ (क,ख,ग,ट); यत्थ (ता) जंबूणतमया (क); जंबूणतामया (ग,ट,ता) ओवारियलयण (क,ख,ग,ट,त्रि;) उवकारियलयणे (ता) थंभुग्गय (क,ग) धूमधडियाओ (क,ख) उब्धितिय (क,ख); उविश्य बादालोस बातालीसं (ता) केतिलासे (ख); कइलासे (ग,ट,त्रि) इऊयाल (क); ऊयाल (ख,ता;) (ग) ३१८० ३।१४ स्फुटित ३।११८ ३।११८ ३।११६ ३।२३४ ३३३२३ ३।३७१ ३३३७२ ३।४१२ ३१५६३ ३१७३३ ३१७५० ३१७४८ ३१७६४ खंभुग्गय धूवधडियाओ ओवियः बायालीसं (ता) केलासे एगुणयालं इगुयालं Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ (ता) ३१७९८ इगयालीसं एयालीसं (क,ख,ट); एगयालीसं (ग) इतालीसं (ता) ३८२६ तेणट्ठणं एएणठेणं (ग,त्रि) ३१८३८।१३ मणुस्साणं मणूसाणं (ता) ३१८४० कयाइ कदायी ३१८४१ बलाहका बलाहता (ता) बादरे विज्जुकारे वातरे विज्जुतारे (ता) बादरे थणियस वातरे थणितसद्दे (ता) ३।८४१ नदीओइ वा णिहीति वा णंदीति वा णिधयोति वा (ता) ३८६० सुपक्कखोयरसेइ सुपिक्कखोतरसेति (ता) ३८७७ खोदवरणं खोयवरणं (क,ख,ग,ट,त्रि) ३३९४६ खोदसरिसं खोतोदसरिसं (ता) ३९६८ हेटुिंपि हट्ठिपि (ग,ट,ता); हिट्ठपि (त्रि) ३११००७ सवहेट्ठिल्लं सव्वहेट्ठिमयं ३।१००७ सव्वोवरिल्लं सव्वुप्परिल्लं (क,ख,ट) ३३१००७ सम्वभितरिल्लं सव्वब्भंतरं (ता) ५३७ णिओदा णिोता °णिओदजीवा °णिगोदजीवा (क,ख,ग,ट,त्रि) °णिओदजीवा °णिओयजीवावि (क,ख,ग,ट,त्रि) ६।११ अणाइए अणादीए ९।२८ सकासाई सकसादी (ता) ६।१३१ ओहिदसणी अवधिदसणी (ग,त्रि) ओधिदंसणि (ता) प्रति परिचय (क) (मलपाठ) पत्र ६४ संवत् १५७५ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र ६४ व पृष्ठ १८८ हैं। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्ति में ५३-५६ तक अक्षर हैं। इसकी लम्बाई १३॥ इंच व चौड़ाई ५ इंच है । यह अति सुन्दर लिखी हुई है । अन्तिम पुष्पिका निम्न प्रकार है-- संवत १५७५ वर्षे आश्विनमासे कृष्णपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ भगुवासरे पत्तननगरमध्ये मोढजातीय जोशी वीटूलसुत लटकणलिखितम् ।छ। यादशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया यदि शुद्धमशुद्ध वा मम दोषो न दीयते ॥१॥ शुभं भवतु, लेखक-पाठकयोः कल्याणमस्तु छ । छ । श्री। श्री। छ । ० ५२०० (ख) (मूलपाठ) पत्र ८० 'पूर्वलिखित सरदारशहर की है। इसके पत्र ८० व पृष्ठ १६० हैं। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्ति में ६१ करीब अक्षर है। इसकी लम्बाई १२ इंच व चौड़ाई ४। इंच है। ५२५४ ५१५८ (ता) Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रति' प्राचीन है व बहुत जीर्ण है, अन्त में लिपि संवत् नहीं है परन्तु अनुमानतः १६ वीं शताब्दी की होनी चाहिए। (ग) (मूलपाठ) पत्र ६० सचित्र यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय की है। इसके पत्र ६० व पृष्ठ १८० हैं। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां है और प्रत्येक पंक्ति में ६३ करीब अक्षर लिखे हुए हैं। इसकी लम्बाई ११॥ इंच व चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रति के आदि पत्र में तीर्थंकर देव की प्रतिमा का सुनहरी स्याही में सुन्दर चित्र है । प्रति बहुत सुंदर लिखी हुई है। 'प्रति' के मध्य 'बावडी' व उसके मध्य लाल बिन्दु हैं। इस प्रति के अन्त में पुष्पिका व लिपि संवत् नहीं है परन्तु अनुमानतः १६ वीं शताब्दी की होनी चाहिए यह प्रति 'ताडपत्रीय प्रति' व टीका से प्रायः मेल खाती है। 'ता' ताडपत्रीय फोटो प्रिन्ट (जैसलमेर भण्डार) यह प्रति टीका से प्रायः मिलती है। इसमें तीसरी प्रतिपत्ति' के १०५ सूत्र से ११५ सुत्र तक के पत्र नहीं हैं। (ट) (टब्बा) लिपि संवत् १८०० यह प्रति संघीय ग्रन्थालय लाडनूं की है। यह प्रति कालूगणी द्वारा पठित (पारायणकृत) है व उनके द्वारा स्थान-स्थान पर पाठ संशोधन भी किया हुआ है । जीवाजीवाभिगम टीका (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्दजी गणेशदासजी गधैया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र २५० व पृष्ठ ५०० हैं। प्रत्येक पत्र में पंक्ति १५ अक्षर ६५ करीब है। लम्बाई १०x४३ लिपि सं० १७१७, प्रति की लिपि सुन्दर है। सहयोगानुभूति जैन-परंपरा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीम है। आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चकी हैं। देवद्विगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गये थे, वे इस लंबी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गये हैं। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका। अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, गवेषणापूर्ण, तटस्थदृष्टिसमन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगम-वाचना का कार्य प्रारंभ हुआ।। हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन हैं। हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन-कार्य के अनेक अंग हैं-पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन, तुलनात्मक अध्ययन आदि-आदि । इन सभी प्रवृत्तियों में आचार्यश्री का हमें सक्रिय योग मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है। यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति बीज है। मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर भार-मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनं । प्रस्तुत ग्रन्थ के ओवाइयं तथा रायपसेणियं के पाठ सम्पादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी तथा जीवाजीवाभिगमे के पाठ सम्पादन में मुनि सुदर्शनजी और मुनि हीरा Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लालजी ने श्रम और निष्ठापूर्वक योग दिया है। जीवाजीवामिगमे के पाठ सम्पादन में मुनि छत्रमल जी, मनि बालचंदजी, मुनि हंसराजजी और मुनि मणिलाल जी का भी सहयोग रहा है। ओवाइयं की शब्द सूची मुनि श्रीचन्दजी तथा रायपसेणियं और जीवाजीवाभिगमे की मुनि हीरालालजी ने तैयार की है। प्रफ संशोधन के कार्य में मुनि सुदर्शनजी, मुनि हीरालालजी और साध्वी सिद्धप्रज्ञाजी व समणी कुसुम प्रज्ञा का सहयोग रहा है। ओवाइयं तथा रायपसेणियं का ग्रन्थ-परिमाण मुनि मोहनलालजी "आमेट" ने तैयार किया है। इस ग्रन्थ के प्रथम दो परिशिष्ट मुनि हीरालालजी ने तैयार किए है। पाठ के पुननिरीक्षण के समय भी मुनि हीरालालजी विशेषतः संलग्न रहे हैं। कार्य-निष्पत्ति में इनके योग का मूल्यांकन करते हए में इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता आगमविद् और आगम संपादन के कार्य में सहयोगी स्व० श्री मदनचंदजी गोठी को इस अवसर पर विस्मत नहीं किया जा सकता। यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता। आगम के प्रबन्ध-सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया/कूलपति-जैन विश्व भारती/प्रारंभ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं । आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वे कृत-संकल्प और प्रयत्नशील है। अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर वे अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं। जैन विश्व भरती के अध्यक्ष खेमचन्दजी सेठिया और मंत्री श्रीचन्द बैंगाणी का भी योग रहा है। संपादकीय और भूमिका का अंग्रेजी अनुवाद जैन विश्व भारती के अन्तर्गत अनेकान्त शोधपीठ के डायरेक्टर नथमल टांटिया ने तैयार किया है। एक लक्ष्य के लिये समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहार पूति मात्र है। वास्तव में यह हम सबका पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है। -युवाचार्य महाप्रज्ञ अध्यात्म साधना केन्द्र, महरोली अक्षय तृतीया १ मई, १९८७ नई दिल्ली Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका प्रस्तुत पुस्तक का नाम उवंगसुत्ताणि है । इसमें बारह उपांगों का पाठान्तर तथा संक्षिप्तपाठ सहित मूलपाठ है । इसके दो खण्ड हैं । प्रथम खण्ड में तीन उपांग हैं: १. ओवाइयं २. रायपसेणियं ३. जीवाजीवाभिगमे । द्वितीय खंड में नौ उपांग हैं १. पण्णवणा ५. निरयावलियाओ [ कप्पियाओ ] ८. पुष्पचू लियाओ प्राचीन व्यवस्था के अनुसार आगम के दो वर्गीकरण मिलते हैं । १. अंगप्रविष्ट २. जंबुद्दीवपण्णत्ती ३. चंदपण्णत्ती ६. कप्पवडिसियाओ ७. पुल्फियाओ ६. वहिदाओ २. अंगबाह्य उपांग नाम का वर्गीकरण प्राचीनकाल में नहीं था । नन्दीसूत्र में उपांग का उल्लेख नहीं है । उससे पहले के किसी आगम में उपांग की कोई चर्चा नहीं है । तत्वार्थभाष्य में उपांग का प्रयोग मिलता है । उपलब्ध प्रयोगों में सम्भवतः यह सर्वाधिक प्राचीन है । ' अंग और उपांग को संबन्ध योजना तत्वार्थ भाष्य में उपांग शब्द का उल्लेख है, किन्तु उसमें अंगों और उपांगों का सम्वन्ध चर्चित नहीं है । इसकी चर्चा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति तथा निरयावलिका के वृत्तिकार श्रीचन्द्रसूरि द्वारा रचित सुखबोधा सामाचारी नामक ग्रन्थ में मिलती है । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति के अनुसार अंगों और उपांगों की सम्बन्ध-योजना इस प्रकार है: - अंग आचारांग सूत्रकृतांग स्थानांग समवायांग भगवती उपांग औपपातिक राजप्रश्वीय जीवाजीवाभिगम प्रज्ञापना जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति १. तत्त्वार्थ भाष्य १/ २० : तस्य च महाविषयत्वात्तस्तानर्थानधिकृत्य प्रकरणसामत्यपेक्ष मंगोपांगनानात्वम् । २. सुखबोधा सामाचारी, पृष्ठ ३४ । ४. सूरपण्णत्ती Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ ज्ञाताधर्मकथा चन्द्रप्रज्ञप्ति उपासकदशा सूर्यप्रज्ञप्ति अन्तकृतदशा निरयावलिका [कल्पिका] अनुत्तरोपपातिकदशा कल्पावतसिका प्रश्नव्याकरण पुष्पिका विपाकश्रुत पुष्पचूलिका दृष्टिवाद वृष्णिदशा १. ओवाइयं नाम बोध प्रस्तुत आगम का नाम ओवाइयं [औपपातिक] है। इस का मुख्य प्रतिपाद्य उपपात है। समवसरण इसका प्रासंगिक विषय है। मुख्य प्रतिपाद्य के आधार पर प्रस्तुत सूत्र का नाम 'ओवाइयं' किया गया है। इसका संस्कृत रूप औपपातिक होता है। प्राकृत नियम के अनुसार बकार का लोप करने पर 'ओववाइय' का 'ओवाइय' रूप बन गया। नंदी सूत्र में यही नाम उपलब्ध होता है। विषय-वस्तु औपपातिक का मुख्य विषय पुनर्जन्म है । उपपात के प्रकरण में अमुक प्रकार के आचरण से अमुक प्रकार का आगामी उपपात होता है, यही विषय चचित है । उपोद्घात प्रकरण में अनेक वर्णक हैं—नगरी वर्णक, चैत्य वर्णक, उद्यान वर्णक, राज वर्णक आदि-आदि । इन वर्णकों से प्रस्तुत सूत्र वर्णक सूत्र बन गया। इन्हीं वर्णकों के कारण अनेक समर्पणों में इसका उपयोग हुआ है। व्याख्या ग्रंथ औपपातिक का प्रथम व्याख्या ग्रन्थ नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरिकृत वृत्ति है। उसके प्रारम्भिक श्लोक से यह ज्ञात होता है कि अभयदेवसूरि को इस वृत्ति से पूर्व कोई अन्य वृत्ति प्राप्त नहीं थी। उन्होंने अन्य ग्रन्थों का अवलोकन कर इसका निर्माण किया था। स्वयं उन्होंने लिखा है श्रीवर्द्धमानमानम्य, प्रायोऽन्यग्रन्थवी क्षिता । औपपातिकशास्त्रस्य, व्याख्या काचिद्विधीयते ।। वृत्तिकार ने कुछ स्थलों पर पूर्वज आचार्यों के अभिमतों का उल्लेख भी किया है१. स्नानाद्वा पाण्डुरीभुत गात्रा इति वृद्धा: [वृत्ति, पृ० १७१] । २. चणिकारस्त्वाह [वृत्ति पृ० २२४] ३. अस्य च वृद्धोक्तस्याधिकृतगाथाविवरणस्यार्थं भावार्थः । [वृत्ति, पृ० २२५] १. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, शान्तिचन्द्रीया वृत्ति, पत्र १,२ । २. नन्दी, सूत्र ७६ । Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ यह वृत्ति न बहुत विस्तृत है और न अति संक्षिप्त । इसके मध्यम आकार में विवेचनीय स्थल अधिकांशतया व्याख्यात हैं।' प्रस्तुत सूत्र में वाचनान्तरों की बहुलता है। वत्तिकार ने प्रथम सूत्र की व्याख्या में लिखा है-इस सूत्र में बहुत वाचनाभेद है। जो बुद्धिगम्य होगा उसकी मैं व्याख्या करुंगा।' सम्भवत: इतने वाचनान्तर किसी अन्य सूत्र में प्राप्त नहीं हैं। यदि वृत्तिकार ने इनका संकलन नही किया होता तो ये लुप्त हो जाते। ___वृत्ति के अन्त में त्रिश्लोकी प्रशस्ति है। उसमें वृत्तिकार ने अपने गुरु श्री जिनेश्वरसूरि, चन्द्रकुल तथा रचनास्थल-अणहिलपाटकनगर और वृत्ति के संशोधक द्रोणाचार्य का उल्लेख किया है चन्द्रकुल-विपुल-भूतल-गुगप्रवर-वर्धमानकल्पतरोः । कुसुमोपमस्य सूरेः, गुणसौरभ-भरित-भवनस्य ॥१।। निस्सम्बन्धविहारस्य सर्वदा श्रीजिनेश्वराह्वस्य । शिष्येणाभयदेवाख्यसूरिणेयं कृता वृत्तिः।।२।। अणहिलपाटकनगरे श्रीमद्रोणाख्यसूरिमुख्येन। पण्डितगुणेन गुणवत्प्रियेण संशोधिता चेयम् ।।३।। इसका दूसरा व्याख्या-ग्रन्थ स्तबक है । यह विक्रम की अठारहवीं शती का है। इसके कर्ता संभवतः धर्मसी मुनि हैं। २. रायपसेणियं नाम बोध प्रस्तुत सूत्र का नाम 'रायपसेणियं' है। पं० बेचरदास दोशी ने प्रस्तुत सूत्र का नाम 'रायपसेणइयं' रखा है। उन्होंने सिद्धसेनगणी द्वारा उल्लिखित 'राजप्रसेनकीय' और मुनि चन्द्रसूरि द्वारा उल्लिखित 'राजप्रसेनजित' को इसका आधार माना है। प्रस्तुत सूत्र का सर्वाधिक प्राचीन उल्लेख नंदी सूत्र में मिलता है। वहां इसका नाम 'रायपसेणिय' है। नंदी की चूणि और उसकी हरिभद्रसूरि तथा आचार्य मलयगिरि कृत वृत्तियों में इसकी व्याख्या नहीं है। आचार्य मलयगिरि ने प्रस्तुत सूत्र के विवरण में 'राजप्रश्नीय' नाम का उल्लेख किया है। राजा प्रदेशी ने केशीस्वामी से प्रश्न पूछे थे। प्रस्तुत सूत्र में उनका वर्णन है। अतः इसका नाम 'राजप्रश्नीय' है। १. औपपातिक, वृत्ति, पृ० २ : इह च बहवो वाचनाभेदा दृश्यन्ते, तेषु च यमेवावभोत्स्यामहे तमेव व्याख्यास्यामः। २. रायपसेण इयं, प्रवेशक, पृ० ६,७ । ३. नंदी, सू० ७७ । ४. (क) रायपसेणिय वृत्ति, पृ० १: अथ कस्माद् इदमुपाङ्ग राजप्रश्नीयाभिधानमिति ? उच्यते, इह प्रदेशिनामा राजा भगवतः केशिकुमारश्रमणस्य समीपे यान् जीवविषयान् प्रश्नानकार्षीत्, यानि च तस्मै केशिकुमारश्रमणो गणभृत् व्याकरणानि व्याकृतवान् । (ख) रायपसेणिय वृत्ति, पृ० २ राजप्रश्नेषु भवं राजप्रश्नीयम् । Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ विषय-वर्णन की दृष्टि से मलयगिरि की व्याख्या उचित है और उसके आधार पर उनके द्वारा स्वीकृत नाम भी अनुचित प्रतीत नहीं होता, किन्तु शब्दशास्त्रीय दृष्टि से उनके द्वारा स्वीकृत नाम समालोच्य है। पं० बेचरदासजी ने उसकी समालोचना की है। उनका तर्क है--- 'प्रश्न शब्द का प्राकृत रूप 'पण्ह' और 'पसिण' होता है, किन्तु 'पसेण' नहीं होता। उच्चारण शास्त्र की वैज्ञानिक रीति से 'पसिण' तक का परिवर्तन ही उचित नहीं लगता है। प्राकृत व्याकरण की दृष्टि से भी 'पसेण' रूप घटित नहीं होता। इसे आर्षे रूप मान तो फि टूट जाएगी।" पण्डितजी का तर्क बलवान् है फिर भी अमीमांस्य नहीं है । हमारी दृष्टि के अनुसार [१] 'पसेणिय' का मूल रूप पसिणिय' [सं० प्रश्नित] है। इकार का एकार होना उच्चारण शास्त्र की दृष्टि से असंगत नहीं है। यह परिवर्तन अनेक स्थानों में मिलता है। उदाहरण के लिए कुछ शब्द यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं:पिहुणीणं पेहुणेणं [दे०] णिव्वाणं णेवाणं [सं० निर्वाणम्] णिव्वुती णेन्वुती [सं० निर्वृत्तिः] तिगिच्छियं तेगिच्छियं [सं० चिकित्सितम्] बिटा [सं० वृत्तम्] [सं० द्वि] तिकालं तेकालं [सं० त्रिकालम्] [२] आगम-सूत्रों तथा प्राचीन ग्रन्थों में 'रायपसेणिय' पाठ उपलब्ध है। 'रायपसेणइय' पाठकहीं भी उपलब्ध नहीं है। नंदी सूत्र में रायपसेणिय' नाम मिलता है। इसका उल्लेख पहले किया जा चुका है। पाक्षिक सूत्र में भी रायप्पसेणिय' पाठ मिलता है। पाक्षिक सूत्र के अवचूरि. कार ने भी इसका संस्कृत रूप 'राजप्रश्नियं' किया है।' [३] प्रसेनजित् का प्राकृत रूप 'पसेणइय' बनता है। स्थानांग में पांचवें कुलकर का नाम पसेणइय' है। अन्यत्र भी अनेक स्थलों में यह मिलता है। प्रस्तत सत्र का विषयवस्तु यदि राजा प्रसेनजित् से संबद्ध होता तो इसका नाम 'रायपसेणइयं' होता. किन्तु इसकी विषयवस्तु राजा पएसी से संबद्ध है। इस दृष्टि से भी 'रायपसेणइय' नाम संगत नहीं है। दीघनिकाय में पायासी राजा प्रसेनजित् के सामंत रूप में उल्लिखित है। किन्तु प्रस्तुत सत्र में राजा प्रसेनजित का कोई उल्लेख नहीं है। अतः 'रायपसेणइयं' नाम का कोई आधार प्राप्त नहीं होता। बेटा १. रायपसेणइयं, प्रवेशक, पृ०६ २. पाक्षिक सूत्रम्, पृ०७६ ३. पाक्षिक सूत्रम्, अवचूरि, पृ० ७७ राज्ञः प्रदेशि नाम्नः प्रश्नानि, तान्यधिकृत्य कृतमध्ययनम-राजप्रश्नियम् । ४. ठाणं, ७६२ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ विषयवस्तु के आधारपर 'रायपएसिय' नाम की कल्पना की जा सकती है। किन्तु इसका कोई प्राचीन आधार प्राप्त नहीं है। राजा प्रदेशी के प्रश्न प्रस्तुत सूत्र की रचना के आधार रहे हैं, इसलिए इसका नाम रायपसेणिय' ही होना चाहिए। व्याख्या ग्रन्थ प्रस्तुत सूत्र के व्याख्या-ग्रंथ दो हैं---[१] वृत्ति और [२] स्तबक [टब्बा, बालावबोध] । वत्ति संस्कृत में लिखित है और स्तबक गुजराती मिश्रित राजस्थानी में। वृत्ति के लेखक सुप्रसिद्ध टीकाकार आचार्य मलयगिरि हैं और स्तबककार हैं पार्श्वचन्द्रगणी [१६ वी शती] और मुनि धर्मसिंह [१८ वीं शती] । स्तबक संक्षिप्त अनुवाद ग्रन्थ है । प्रस्तुत सुत्र के रहस्यों को स्पष्ट करने वाला व्याख्या ग्रन्थ वास्तव में वृत्ति ही है । वृत्तिकार ने सूत्र के सब विषयों को स्पष्ट नहीं किया है, फिर में अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनाएं दी हैं। वत्तिकार को वृत्ति-निर्माण में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनके सामने सबसे बड़ी कठिनाई पाठ-भेद की थी। इसका उन्होंने स्थान-स्थान पर उल्लेख किया है। वर्तमान कठिनाइयों के आधार पर वृत्ति दो भागों में विभक्त हो गई । पूर्वभाग में वृत्तिकार ने सुगमपदों की भी व्याख्या की है। उत्तरभाग में केवल विषमपदों की व्याख्या की है। अतएव पूर्वभाग की व्याख्या विस्तृत और उत्तरभाग की संक्षिप्त है । पूर्वभाग की विस्तृत व्याख्या के उन्होंने दो हेतु बतलाए हैं १. विषय की नवीनता २. पाठ-भेद की प्रचुरता उत्तरभाग की संक्षिप्त व्याख्या के भी तीन हेतु बतलाए हैं१. पाठ की सुगमता २. पूर्व व्याख्यातपदों की पुनरावृत्ति ३. पाठ-भेद की अल्पता। वत्तिकार ने लौकिक विषयों को लौकिक कला के निष्णात व्यक्तियों से जानने का अनरोध किया है। राजप्रश्नीय और जीवाभिगम में अनेक स्थलों पर प्रकरण की समानता है। दोनों के व्याख्याकार आचार्य मलयगिरि हैं। इसलिए उनके समप्रकरणों की वृत्ति में भी प्रचुर समानता है। वृत्तिकार को जीवाभिगम की मूल टीका प्राप्त थी। उसका वृत्तिकार ने प्रस्तुत वृत्ति में स्थान-स्थान १. रायपसेणिय वृत्ति, पृ० २०४, २४१, २५६ २. रायपसेणिय वृत्ति, पृ० २३६ : ___ इह प्राक्तनो ग्रन्थः प्रायोऽपूर्वः भूयानपि च पुस्तकेषु वाचनाभेदस्ततो माऽभूत् शिष्याणां सम्मोह इति क्वापि सुगमोऽपि यथावस्थितवाचनाक्रमप्रदर्शनार्थ लिखित, इत ऊध्वं । प्रायः सुगमः प्राग्व्याख्यातस्वरूपश्च न च वाचना-भेदोऽप्यतिबादर इति स्वयं परिभावनोयः, विषमपदव्याख्या तु विधास्यते इति । ३. वही, पृ० १४५ : एते नर्तनविधयः अभिनयविधयश्च नादयकुशलेम्यो वेदितव्याः । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर उल्लेख किया है।' एक स्थान पर जीवाभिगम-चूणि का भी उल्लेख किया है। वृत्ति का ग्रन्थ परिमाण तीन हजार सात सौ श्लोक है: प्रत्यक्षरगणनातो ग्रन्थमानं विनिश्चितम् । सप्तत्रिशच्छतान्यत्र श्लोकानां सर्वसंख्यया ।। १. (क) रायपसेणियवृत्ति पृ० १०० आह च जीवाभिगममूलटीकाकृत्-विजयदूष्यं वस्त्रविशेषः इति । (ख) वही, पृ० १५८ आह च जीवाभिगममूलटीकाकारः अर्गलाप्रासादा यत्रार्गला नियम्यन्ते इति । जीवाभिगममूलटीकाकारेण-आवर्तनपीठिका यत्रेन्द्र कीलको भवति इति । (ग) वही, पृ० १५६ आह च जीवाभिगममूलटीकाकृत् --कूटो माडभागः उच्छयः शिखरम् इति । आह च--जीवाभिगममूलटीकाकृत्-अंकमयाः पक्षास्तदेकदेशभूता एवं पक्ष बाहवोऽपि द्रष्टव्या इति। (घ) वही, पृ० १६० उक्तं च जीवाभिगममूलटीकाकारेण ओहाडणी हारग्रहणं महत् क्षुल्लकं च पुंछनी इति । (च) वही, पृ० १६१ ___ आह च जीवाभिगममूलटीकाकृत् - नेषेधिकी निषीदनस्थानम् इति । (छ) वही, पृ० १६८ आह च जीवाभिगममूलटीकारः प्रकण्ठौ पीठविशेषी इति । (ज) वही, पृ० १६६ उक्तं च जीवाभिगममूलटोकायाम्-प्रासादावतंसको प्रासादविशेषौ इति । (झ) वही, पृ० १७६ उक्तं च जीवाभिगममूलटीकायाम्- मनोगुलिका नाम पीठिका" इति । (ट) वही, पृ० १७७ उक्तं च जीवाभिगममूलटीकाकारेण-हयकण्ठौ-हयकण्ठप्रमाणो रत्नविशेषौ एवं सर्वेऽपि कण्ठा वाच्या इति। (8) वही, पृ० १८० उक्तं च जीवाभिगममूलटोकायाम् --तैलसमुद्गको सुगन्धितैलापारौ । (3) वही, पृ० १८६ जीवाभिगममूलटीकायामपि ४६ ..."उप्पित्थं श्वासयुक्तम्” इति । (6) वही, पृ० १६५ उक्तं च जीवाभिगममूलटीकायाम् -- दगमण्डपाः... स्फाटिका मण्डपा इति । (त) वही, पृ० २२६ जीवाभिगममूलटीकाकारः----"बिब्बोयणा-उपधानकान्युच्यन्ते” इति । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ति के प्रारंभ में वृत्तिकार ने भगवान् महावीर को नमस्कार किया है और गुरु के आदेश से राजप्रश्नीय सूत्र के विवरण की सूचना दी है: वृत्ति की परिसमाप्ति में वृत्तिकार ने गुरु की विजयकामना और पाठक की ज्ञानकामना की है- २. ३. ४. ५ नामबोध I प्रस्तुत आगम का नाम जीव जीवाभिगमे है । इसमें जीव और अजीव इन दो मूलभूत तत्त्वों का प्रतिपादन है । इसलिए इसका नाम जीवाजीवाभिगमे रखा गया है । इसमें नो प्रतिपत्तियां [ प्रकरण ] हैं। इनमें जीवों के संख्यापरक वर्गीकरण किए गए हैं। १. 'संसारीजीव के दो प्रकार त्रस और स्थावर । ६. ७. प्रणमत - वीरजिनेश्वरचरणयुगं परमपाटलच्छायम् । अधरीकृतनतवासव मुकुटस्थितरत्न रुचिचक्रम् ॥ राजप्रश्नीयमहं विवृणोमि यथाऽगमं गुरुनियोगात् । तत्र च शक्तिमशक्ति, गुरवो जानन्ति का चिन्ता ॥१॥ ८. अधकृत चिन्तामणि- कल्पलता- कामधेनुमाहात्म्याः । विजयन्तां गुरुपादाः विमलीकृतशिष्यमतिविभवाः । राजप्रश्नीयमिदं गम्भीरार्थं विवृण्वता कुशलं ॥ यदवापि मलयगिरिणा साधुजनस्तेन भवतु कृती । ३. जीवाजीवाभिगमे संसारी जीव के तीन प्रकार-स्त्री, पुरुष और नपुंसक । संसारजीव के चार प्रकार - नैरयिक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव 1 संसारीजीव के पांच प्रकार — एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय । संसारीजीव के छह प्रकार --- पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक वनस्पतिकायिक और कायिक | संसारजीव के सात प्रकार -- --नैरयिक, तिर्यञ्च तिर्यञ्चणी, मनुष्य, मनुष्यणी, देव और देवी । संसारीजीव के आठ प्रकार - प्रथम समय नैरयिक, अप्रथम समय नैरयिक, प्रथम समय तिर्यञ्च, अप्रथम समय तिर्यञ्च । प्रथम समय मनुष्य, अप्रथम समय मनुष्य प्रथम समय देव, अप्रथम समय देव | संसारीजीव के नौ प्रकार – पृथ्वी कायिक अपकायिक, तेजस्कायिक वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय । ९. संसारीजीव के दस प्रकार - प्रथम समय एकेन्द्रिय, अप्रथम समय एकेन्द्रिय प्रथम समय द्वीन्द्रिय, अप्रथम समय द्रीन्द्रिय । Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम समय त्रीन्द्रिय. अप्रथम समय त्रीन्द्रिय प्रथम समय चतुरिन्द्रिय, अप्रथम समय चतुरिन्द्रिय प्रथम समय पञ्चेन्द्रिय, अप्रथम समय पञ्चेन्द्रिय । नौवीं प्रतिपत्ति के आठवें सूत्र से अन्त तक सर्व जीवाभिगम का निरुपण किया गया है। वह वर्गीकरण भिन्न दृष्टि से किया गया है, उदाहरणस्वरूप—जीव के दो प्रकार सिद्ध और असिद्ध । जीव के तीन प्रकार सम्यकदृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यमिथ्यादृष्टि । प्रस्तत आगम में अवान्तर विषय विपल मात्रा में उपलब्ध है। इसमें भारतीय समाज और जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। स्थापत्य कला की दृष्टि से पद्मवरवेदिका और विजयद्वार का वर्णन बहुत महत्त्वपूर्ण है। प्रस्तुत आगम मे आदेशों का संकलन मिलता है। एक विषय में स्थविरों के अनेक मत थे। मत के लिए आदेश शब्द का प्रयोग किया गया है। प्रस्तुत आगम उत्तरवर्ती ग्रन्थ है। इसलिए इसमें स्थविरों के अनेक मतों का संकलन मिलता है। वृत्तिकार ने आदेश का अर्थ प्रकार किया है।' तात्पर्यार्थ में अनेक मतों का संकलन भी सिद्ध होता है। जीवा० २/२० में चार आदेशों का संकलन है। २/४८ में पांच आदेश उपलब्ध हैं । वृत्तिकार ने लिखा है कि पांच आदेशों में कौन सा आदेश समीचीन है, इसका निर्णय अतिशय ज्ञानी ही कर सकते हैं। सूत्रकार स्थविरों के समय में वे अतिशयज्ञानी उपलब्ध नहीं थे इसलिए सूत्रकार ने इस विषय में कोई निर्णय नहीं किया, केवल उपलब्ध आदेशों का संकलन कर दिया। रचनाकार प्रस्तुत आगम की रचना स्थविरों ने की है। इसका आगम के प्रारंभ में स्पष्ट निर्देश है।' व्याख्या ग्रन्थ प्रस्तुत आगम की दो व्याख्याएं उपलब्ध हैं एक आचार्य हरिभद्रकृत और दूसरी आचार्य मलयगिरिकृत । आचार्य हरिभद्रकृत टीका संक्षिप्त है, मलयगिरिकृत टीका बहुत विस्तृत है। मलयगिरि ने अपनी वृत्ति में 'इतिवृद्धाः' तथा मूलटीका, मूलटीकाकार और चूणि का अनेक स्थानों पर उल्लेख किया है । १. जीवजीवाभिगम वृ० ५० ५३ "आदेश शब्द इह प्रकारवाची" आदेसोत्ति पगारो "इतिवचनात, एकेन प्रकारेण, एक प्रकारमधिकृत्येतिभावार्थः।" २. वही व०प० ५९ "अमीषां च पञ्चानामादेशानामन्यतमादेशसमीचीनतानिर्णयोऽतिशयजानिभिः सर्वोत्कृष्ट-श्रुतलब्धि-संपन्नैर्वा कर्तुं शक्यते, ते च सूत्रकृतप्रतिपत्तिकाले नासीरन्निति सूत्रकृम्न निर्णयं कृतवानिति"। ३. जीवाजीवाभिगमे १/१-'इह खलु जिणमयं जिणाणु मयं जिणाणलोमं जिणप्पणीतं जिणपरूवियं जिणक्खायं जिणाणचिण्णं जिणपण्णत्तं जिणदेसियं जिणपसत्थं अणवीइ तं सहहमाणा तं पत्तियमाणा तं रोएमाणा थेरा भगवन्तो जीवाजीवाभिगमे णामज्झयणं पण्णवइंस"। Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'इतिवृद्धाः इयं च व्याख्या मूलटीकानुसारेण कृता। "उक्तञ्च मूलटीकायाम्"।' 'आह च मूलटीकाकृत्"४ "ताइ च मूलटीकाकृता वैविक्त्येन न व्याख्याता इति संप्रदायादवसेयाः"५ "मूलटीकाकारेणाव्याख्यानात्" "आह च मूलटीकाकार:"-"उक्तं चौं" 'आह च मूलटीकाकारः"--"उक्तञ्च मूलटीकाकारेण" ।' उक्तं मूलटीकायाम् "आह च मूलटीकाकार:: "उक्तं च मूलटीकायाम्"" "आह च मूलटीकाकारः१५ "आह च मूलटीकाकार:"३३ "उक्तं च मूलटीकायां"१४ "उक्तं च मूलटीकाकारेण"१५ "आह च मूलटीकाकारः"-"णिकास्त्वेवमाह"१६ "आह च मूलटीकाकारः"-"आह च चूर्णिकृत्"१० "उक्तं च मूलटीकायां"--"जीवाभिगम मूलटीकायां"१८ "आह च मूलटीकाकारोपि”—“आह च चूणिकृत्" "तथा चाह मूलटीकाकार:"२० "आह च मूलचूर्णिकृत्"२१ "मूलटीकाकारोप्याह"चूर्णिकारोप्याह"२९ "आह चूर्णिकृत्" "तथा चाह मूलटीकाकारः"३४ "आह च चूर्णिकृत्"२५ "उक्तं चूणी" "आह च मूलटीकाकार:"१७ "आह चणिकृत आह च टीकाकार:२८ मूलटीकाकारेणापि""आहच मलटीकाकार:३० १. वृ०प० २७ ६. वृ० ५० १४१ १७. वृ०प० २१०।। २. वृ० प० ६४ १०, ११. वृ० ५० १४२ १८. वृ०प० २१४ । ३. वृ० ५० १०६ १२. वृ० प० २७७ १६. वृ० प० ३२१ । ४. वृ० ५० १२२ १३. वृ०प०१८४२.. ३०५०३५४ । ५, ६. वृ० ५० १३६ १४. वृ० प० २०४ २१. वृ०५० ३६६ ७. वृ० प० १३७ १५. वृ० प० २०५ २२. वृ० ५० ३७० ८. वृ० ५० १८० १६. वृ० ५० २०९ २३. वृ०प० ३८४ २४. वृ०प०४३८ २५. वृ०५०४४१ २६. ५० ५० ४४२ २७.३०प०४४४ २८. वृ० प० ४५० २६. ५० ५० ४५२ ३०.०प० ४५७ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्य संपूति इसके संपादन का बहुत कुछ श्रेय युवाचार्य महाप्रज्ञ को है, क्योंकि इस कार्य में अहर्निश के जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य संपन्न हो सका है अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुह होता। इनकी वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है। सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर रहस्य पकड़ने में इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रमपरायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्ष मानता ही पाई है। इनकी कार्य क्षमता और कर्तव्यपरता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। प्रस्तुत आगमों के पाठ संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा। उन सबको में आशीर्वाद देता हूं कि उनकी कार्यजा शक्ति और अधिक विकसित हो। अपने शिष्य साधु-साध्वियों के सहयोग से पाठ संशोधन का बृहत् कार्य सम्यगु रूप से सम्पन्न हो सका है, इसका मुझे परम हर्ष है। अक्षय तृतीय, १ मई १९८७ अध्यात्म साधना केन्द्र, महरोली – नई दिल्ली आचार्य तुलसी Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EDITORIAL The present volume consists of three āgamas-Ovõiyam, Rāyapaseniyam and Jivājivābhigame. OVĀIYAM The text of Aupapātika sutra has been constituted on the basis of the manuscripts and the vstti. The references to different ancient versions in this sūtra are in abundance. It is a repository of descriptions. That is why we find at various places the instruction-jahå ovavāle (as in Ovavaia), referring to similar describers of the other agamas Neither the commentaries of those agamas nor their authentic texts of the latter contain the describers accepted in the Aupapātika. Those describers, however, are available in other versions. It poses a problem for those who study the describers. The text of this Agama must be determined not only on the basis of adarśas and vrtti but also on the basis of the describers available in the agamic commentaries and the texts of the other agamas. But it is difficult to do so without the compilation of the totality of describers. Some of the describers are as follows: Bhagavai : 7/175 : evam jahā ovavāie jāva 7/176 : evam jahā uvavāje, evaṁ jahā uvavāie 7/196 : jahā kūņio jāva pāyacchitte 9/157 : "jahā ovavāje jāva egābhimuhe" "evam jahā ovavāie jāva tivihãe” 9/158 : "jahā ovavāie jāva satthavāha" "jahā ovavāie jāva khattiya kuņdaggāme" 9/162 : ovavāie parisā vannao tahā bhāņiyavvam 9/204 : "jahā ovayāje jāva gaganatalamaņulihanti" "evam jaha ovavāje taheva bhāņiyavvam" 9/204 : jahā ovavāie jāva mahāpurisa 9/208 · jahā ovavāie jāva abhinandată 9/209 : evam jahā ovavāie kūņio jāva piggacchai 11/59 : jahā ovavāie 11/61 : jahā ovavāie kūņiyassa 11/85: jahā ovavăje jāva gahanayãe Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ 11/88 198 evarh jaheva ovavšie taheva 11/138 jahā ovava je taheva allapaṣālā taheva majjapaghare 11/154 evam jaha daḍhapainpassa 11/156 evam jahā daḍhapaiņņe 11/159 jaha ovavāie 11/169 jaha ammado jāva bambhaloe 12/32: evam jahā kūnio taheva savvam 13/107 jaha kupio ovavāie jāva pajjuvāsai 14/107 evam jahā ovaväie jāva ārāhagā 14/110 evam jaha ovavšie ammadassa vattavvays 15/186 evam jaha ovavšie dadhappaippavattavvayā 15/189 evam jaha ovaväe jäva savvadukkhāpamantam 25/569: jaha ovaväie jäva suddhesapie 25/570: jaha ovaväie jäva 10hähäre 25/571 jaha ovavāie jāva savvagāya Bhagavai Vrtti: patra 7 aupapātikāt savyäkhyāno'tra drsyab ,. 11: aupapätikavadvācyā 317 "evam jahä uvavāie" tti tatra cedam sūtramevam....... 318 "evam jahā uvavāie jāva" ityanenedam súcitam......... ,, 319: "jaha ceva uvavāie" tti tatra caivamidam sūtram......... ,, 462 "jaha uvaväie" tti tatra cedamh sūtramevam leśatab... ., 463: "jaha uvavāie" tti tadeva lesato darsyate......... 463 "evam jahā uvaväje" tatra caitadevam sütram......... در , 463: "jahā uvaväie" tti cedamevaṁ sūtram......... "3 ,, 463: "jaha uvaväje parisavannao" tti yathā kaunikasyaupapatike 476 "jaha uvaväie" tti evath caitattatra...... 479: "jahā uvavãie" tti anena yatsucitam tadidam...... 481: "jaha uvavāie" ttı karaṇādidam dṛśyam...... 482: "evam jahā uvavāie" tti anena yatsûcitam tadidam...... 519 "jahā uvavāie" ityetasmādatideśadidam drsyam...... 39 ,, 520 "evam jaha uvavšie" ityetatkarapadidam drsyam....... 521 "evam jaheve" tyädi "evam", anantaradarśitenäbhiläpena yathaupa patike siddhanadhikrtya samhananadyuktam tathaivehäpi...... vakyapaddhatiraupapātikaprasiddha'dhyetā...... 23 33 "" ,,521 ,,542 "jaha uvavāie taheva attapasālā taheva majjapaghare" tti yathau. papātike'ṭṭaņasālā vyatikaro...... .. 545: "jahā dadhapainne" tti yathaupapatike drdhapratijão'dhītastatha' yam vaktavyaḥ taccaivam...... ,, 545 "evam jahā dad hapainno" ityanena yatsucitam tadevam drsyam...... ., 548 "jaha uvaväie" ityanena yatsucitam ,, 549 jaha ammado" tti yathaupapatike ammado'dhitastatha'yamiha vacyab Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ patra 563: "evarh jaha uvavāie jāva ärahaga" tti iha yavatkarapadidamarthato lesena drsyam...... 563: "evath jahe" tyädinä yatsucitam....... ,, 696: "evat jaha uvaväie" ityädi bhävitamevämmadaparivrājakakathānaka iti 924: "jahā uvavāie" tti anenedam sucitam...... ,, 924: "jaha uvaväie" tti anenedam sucitam ..... 924: "jaha uvaväie" tti anenedam sucitam... در Jäätävṛtti Vivägasuyam 2: "varpakagrantho'trävasare väcyab....... 1/1/70 jaha dadhapaiņņe 2/1/36 jaha dadhapainpe 2/10/1 jaha dadhapaippe وو 82 Rayapaseniyam sūtra 3,4 asoyavarapayave pudhavisiläpattae vattavvaya ovaväiyagamenath neya 688 egadisãe jahä uvavāie jāva appegatiya Rayapaseniya vṛttl page 3 sampratyasya nagaryä varpakamaha-(Here Aupapātika has not been mentioned) 33 .. 8 yavacchabdakaranät "saddie kittie ne sacchatte" ityädyaupapätikagranthaprasiddhavarppakaparigrahab 39 10 aśokavarapadapasya pṛthivlsilapaṭṭakasya ca vaktavyatā aupapātikagranthanusāreņa jñeyā ,, 27 yavacchabdakaraṇādrājavarņako devivarņakaḥ samavasaraṇam caupapätikānusäreņa tävadvaktavyam yävatsamavasarapaṁh samap tam ,, 30 yāvacchabdakaranāt "äikare titthagare" ityādikaḥ samasto'pi aupapatikagranthaprasiddho bhagavadvarṇako vācyaḥ, sa cătigariyaniti na likhyate, kevalamaupapātikagranthadavaseyaḥ ,, 39 bahave ugga bhoga ityädyaupapatikagranthoktam sarvamavasätavyam yavat samagräpi rajaprabhṛtikā pariṣatparyupāsīnā avatiṣṭhate ,, 116: "evam jaha uvaväie taha bhāniyavvam" iti evam yatha aupapatike granthe tatha vaktavyam. tacca evam 288: ityādirūpā dharmakath&aupapātikagranthädavaseyā Jambuddivapanṇattl 2/65 evam java niggacchai jaha ovavšie jāva Aulabolabahulam 2/83: evah jaha ovavāje sacceva anagāravanpao jāva uḍḍhafijāņā 3/178 evam ovavaiyagameņam jāva tassa Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jambuddivapannatti Vrtti : Śä. Vs. patra 14 : “vannao" tti [ddhastimit asamțddhā ityādi aupapātikopāngaprasiddhaḥ samasto'pi varņako drastavyaḥ cirātītamityādirvarņakastatpariksepi vanakhandavarṇa kasa hitaaupapātikato'vaseyaḥ "vanpao" tti atra rājño “mahayāhimavantamahante" tyādikorājñāśca "sukumā) apāņīpāye" tyādikovarņakaḥ prathamopāngaprasiddho'bhidhātavyaḥ yathā ca samavasaraṇavarņakaṁ tathaupapātikagranthādavaseyam "tae nam mihilāe naya.ie singhädage” tyadikaṁ “jāva' pañjaliuļā pajjuvāsanti' ti paryantamaupapātikagatamavagantavyam... evo pāngādavagantavyamiti „,143 : "yathaupapātike” evaṁ yathā prathamopānge... nipātaḥ, aupa pātikagamaścāyam ,,154 : yathaupapātike sarvo’ņagāravarnakastathā'trāpi väcyah „, 155 : kiyadyāvadityāna-ürdhva í jānuni yeşāîn te urdhvajānavah......atra yāvatpadasamgrāhyaḥ "appegaiyā domāsapariāyā” ityādikaḥ aupa pātikagrantho vistarabhayānna likhita ityavaseyam ..264 : evamuktakrameņa aupapātikagamena prathamopāngagatapāthena tävad vakta vyam yāvattasya rājñaḥ purato mahāśvāḥ „, 325 : vškşavarņa nam prathamopāngato'vaseyam Surapannatti Vrtti patra 2 : "yāvacchabdenaupapātikagranthapratipāditab samasto'pi varņakah āinnajanasamūhā” ityādiko drasta vyaḥ ..2: tasyāpi caityasya varņako vaktavyaḥ sa caupapätikagrauthādava seyaḥ ..2: tasya răjñaḥ tasyāśca devyā aupapātikagranthokto varņako'bhidhā tavyah „ 2 : samavasaraṇavarnanam ca bhagavata aupapātikagranthādavaseyaṁ ,, 3: “bahave uggā bhogā” ityādyaupapātikagranthovaktam ... 3 : atra yāvacchabdādidamaupapätikagranthoktam drastavyam Candrapaņņatti (Ms. Vrtti) patra 5 : aupapātikagranthaprasiddhaḥ samasto'pi varņako drastavyaḥ sa ca granthagauravabhayānna likhyate kevalam tata evaupapātikādava seyaḥ „ 5: aupapātikagranthokto veditavyaḥ „ 5: tasya rājñastasyāśca devyā aupapātikagranthokto varņako'bhidhä tavyah , 5 : samavasara navarnanam ca bhagavata aupapātikagranthädavaseyam .6: "bahave uggá bhoga" ityādyaupapātikagranthoktam sarvamava seyam Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Uyanga 1/141 : jahā dadhapaiņņo 2/13 : jahā dadhapaino Dasão 10/2 : rāyavaộnao evam jahā ovavātie jāva cellanae 10/14-19 : sakorențamalladāmeṇam chatteņaṁ dharijjamāņenam uvavāiyaga meņam neyavvam jāva pajjuvāsai...... Dasā. (Ms. Vrtti) Vịtti patra 11 : aupapātikagranthapratipăditaḥ samasto'pi varņako vācyah sa ceha granthagauravabhayānna likhyate kevalam tata evaupapā. tikādavaseyah. Dasā, 5/4 D. 5/5, Ms. Vịtti patra 11 : caityavarņako bhanitavyaḥ sopyaupapātikagranthādavaseyaḥ D. 5/6, Ms. Vsttipatra 11 : aupapātikoktam pāțhasiddham sarvamavaseyam...... D. 10/2, Ms. Vsttipatra 25 : "tasya varoako yathā aupapātikanämnigranthe'bhihitastathā” D. 10/2, Ms. Vsttipatra 25 : vistaravyākhyā tūpapatikānusāreņa vācya...... D. 10/3, Ms. Vsttipatra 25 : ādikaraḥ yāyatkaraņāt...... samasto aupapātikagranthaprasiddho .. kevalamaupapātikagranthādavaseyaḥ... D. 10/6, Ms. Vsttipatra 26 : jāvatti yāvatkaraṇāt jaņavāhei vā......uggā bhogā......ityādyaupa pātikagranthoktam ..... D: 10/14-19, Ms. Vsttipatra 28 : uvavātiyagameņīti aupapātikagranthoktakauņikavandanagamana prakāreņāyamapi nirgataḥ D. 10/21, Ms. Vsttipatra 29 : ihāvasare dharmmakathā aupapātikoktā bhaạitavyā Sutras of Ovāiyam in other agamas : Oväiya Bhagavai Rāya. Jambu. Sūtra 32 25/559-563 25/564-568 25/576-579 25/582-598 25/600-612 25/613-618 9/204 Sū. 49-55 3/178 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ » 65 3/180 3/179 » 66 The Describer sūtras The Describer sūtras take several concise forms in the Aupapātika. These are : jāva : udae jāva jhine (117) evam jāva : apaļivirayā evam jāva (161) sesam tam ceva: paralogassa ärähagă sesam tam ceva (157) evam : evam uvajjhāyāṇam therāņam (16) abhilāveņam : evam eenar abhilāveņaṁ (73) evam tam ceva : sagadam vă evaṁ tam ceva bhāņiyavvam jāva pannattha gangāmattiyāe (123) bhāpiyavvam : evam ceva pasattham bhāņiyavvam (40) kandamanto eesim vannao bhāņiyavvo jāva siviya (10). neyavvam : tam ceva pasattham negavvam. evam ceva vaiviņao vi eehim paehim ceva peyavvo. (40) Variant words and forms The variant words and forms as approved by Grammar and holy usage in Agamas are important from the linguistic standpoint. Hence they have been distinguished from the variant readings and are given below : Sutra 1 kukkuda kunka da (kha) 'musundhio musandhi (ka, kha) vařka ovakka (ga) bhattao hattao (ka) okīlao khilão (ka, kha) oturagao oturanga (ka) darisanijjā darisaniya (ka, kha) kājägaru kālāguru (ka) kahaga kahaka (ka, kha, ga) 'nikurambabhūe 'ạiurambabhūe (kha) darisanijjā darasaņijjā (ka, kha) gulaiya guluiya (ka) abbhintarao abbhantarao (ka) bāhira bahira ņīvehim nitehim (ka) haladhara Phalahara (vp) ohaņue "haņue (ka) bhuyagisar ao bhuyaisarao (ka, kha, gal akaranduyao akaranduyao (ka, kha) Occharu otharuo (vr) (ga) Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sutra ga) (ka, kha) (ka) (ga) (ga) (vr) (ka) (ga) (ka, kha) (ga) (ka, kha) (ga) (kha) (ga) (ka) (ga) (ga) (ka, ga) orul (ga) gupphe ogophe 'vidhenam pidhenam jaya jadā āyāyāyā ādāvāyā paravāyā paravādā omoyarıyā avamoyariya bārasabhatte s bārasamabhatte bārasamebhatte cauddasao scoddasama coddasame solasao solasamao solasame caumāsie caummāsie obhoitti bhoitti davvābhio davvabhio entassa intassa pautte opajutte usappao osaņpao Oruyt darisapăvarapijjao damsaņāvaraniya vicio "vītio toyapattham 'toyavatham ovanniyao opaộniyao vihassati vahassati tiridadhārt kirīdadhāri mahapphalam mahāphalam gayagayā gatagatā paccoruhanti paccorubhanti pādiyakkapādiyakkājṁ pādiekkapädiekkäiń paoya-lațghiń Spatoda-lațțhim payotta-latthim abbhimgehim abbamgehjm misinisanta omismisanta 'susiliţthao osusalitphao viiyange ovijiyange kuvaggāhā kütuyaggāhā oturagāņam oturangānań sakhinkhiņio sakinkinio muingao °mudangao bhattittam bhattattam okoñca okuñcao letadlaseteltettristiche beestele (kha) (ga) (ka) (ga) (ga) (kha) (ka, kha, ga) (ka) (ga) (kha) (ka) (ga) (ka) (ga) (ka, ga) (ka) (ga) (ka) (ka) (ga) (ka) (ga, vr) Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ lău 170 tella , 175 Vayao vairao vajja (kha) opighasa 'nikasa (kha) veyaņijjam vedaņijja (ka, ga) se je sejje (ka, kha) se jão sejjão (ka kha) Puriyão opuriyão (ka, ga) kukkuiyā kokuiya (kha, ga) Pahavvana Pathavvanao (ka, kha, ga) alāuo (ga) carimehim caramehim (ka) 'veñțiya ovañțiya (kha) bhūjo bhủfo (ka, kha ga) anagārā aņakārā (ka, ga) Stilla (ka) telao (kha) vaio (ka, kha, ga) „ 195 gã. 1, paitthiya pattitthiyā (ka, kha) Description of the Manuscripts (5) This was obtained from Gadhaiyā Library, Sardarshahar, through Shri Madanchandji Gauthi. It contains 40 leaves and 80 pages. Each leaf is 11-3/4" long and 4-1/2" wide. There are 4 to 13 lines in each leaf, each line containing 40 to 46 letters. Commentary is inscribed in very small letters in the margin on all sides. The manuscript is beautiful, artistic and appears to have been used and read. The following eulogy is given at the end of the copy “iti śri uvavāīsūtram samāptam. grantha 1167. cha. Samvat 1623 varse phālguna sudi 3 dine. Agra nagare. pātisāha śri Akbara Jalaludīna rājya pravartamāne. sri vịhat kharataragacchālankāra sri pujyarāja śrī 6 Jinasinghasūrivijayarajye p andita śri Labdhivardhanamunibhirupapātikā nāma upāngam likhăpitam. cha. vācyamānam ciram nandyāt. śubham bhavatu lekhakavācakayoḥ. śrl.” (a) This manuscript was also obtained through Shri Madanchandji Gauthi from Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 59 leaves and 118 pages. Each page is 10-1/4" long and 4-1/2" wide. There are 7 to 9 lines in each leaf and each line contains 40 to 45 letters. The upper and lower margins of the page contain the translation of the text in Rajasthani language. The following eulogy by the scribe appears at the end of the manuscript - "Śrī uvāí upāngam padhamam samattam. granthägram 1225. cha. Śri. Samvat 1665 varṣe paușa māse śuklapakşe saptami tithau śri so maväsare. śrī śri vikrama nagare mahārājādhiraja mahārājā śri rāyasinghji vijayarāje pandita karmasinghena lipikstā. cha." Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XT (T) This manuscript was also obtained through Sri Madanchandji Gauthi from Gadhaiya Library, Sardarshahar. Each page contains 26 leaves and 52 pages. Each page is 10-1/2" long and 4-1/2" wide. Each page contains 15 lines with 46 to 48 letters in each line. The manuscript concludes with"uvalyam samattam, granthägra 1200, Subhamastu cha, fri," but the year is not mentioned therein. Looking at its leaves, letters and illustrations, the copy must be belonging to the 17th century. (4) This manuscript of the vṛtti was obtained through Shri Madanchandji Gauthi from Gadhaiya Library, Sardarshahar. It has 75 leaves and 150 pages. Each leaf contains 13 lines with 55 to 60 letters in each line. The size of the leaf is 10-1/4"x4-1/4". The manuscript is revised and clear. In the eulogy the following is inscribed-"Subham bhavatu, kalyāṇamastu. lekhakapāthakayośca bhadram bhavatu, cha. samvat 1996 varse Märgasirza sudi 1, bhaume likhitam, cha. śrī yadriam pustake drstvā, tādṛśam likhitam maya/yadi fuddhamaluddham vā, mama dogo na diyatell cha, cha. (..) Variant readings based on the Vitti There are no identical readings of different versions in the special manuscript of the vrti and the printed vṛtti. We have taken the manuscript vetti as authoritative. Rayapaseniyam The text of this sutra has been determined on the basis of manuscripts and the Vrtl. Jiväjiväbhigama and Aupapätika-sütras have also been used for determining the texts of the Süryabha and the Drahapratijña chapters respectively. The commentator has mentioned the abundance of variant readings in different versions at every step. At the time of composing the commentary it posed a serious problem, but in later times it assumed still more serious dimensions. Even then we have revised the text by analysing the available material very minutely. None can claim that the revision of this text is totally flawless but this much can be asserted that we have maintained utmost neutrality and patience in our attempt to perform the task. The construction of the text of this sutra has exacted vast labour, and resulted in the enlargement of the body of the sutra, as also in the intelligibility of the text and the tastefulness of the subject-matter. Variant words and forms The variant words and forms as approved by grammatical rules and holy usage in Agamas are important from the linguistic standpoint, so they have been distinguished from the variant readings and are given below Sūtra No. 8 mauda matuḍa (ka) Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ dheyam ņājo ņādio ukiţthe patthe ņāiya hanta abhivandae āyamsao miuo pāsāie ativa tisovāņa mahālatenam vemāņiehim viraciya ovāyāņam onamanti mau oțāņam matthae jaeņaṁ vijaenam odhejjam (ka) (ka, kha, ga, ca) okitthāe (cha) vaţthe (kha, ga) matthe (ca) ņātiya (ka, kha, ga, gha, ca cha) handa (ca) abhivandate (cha) ātańsao (gha, ca) mauo (ka, kha, ga) pāsātie (ka, kha ga, gha) atīta (ca) tisomāņa (ka, kha, ga, ca) mahālaenam (kha, ga, gha) vemāņtehim (ka, kha, ga, gha) viratiya (ka, kha, ga, ca) s vāiyāṇam (ka, kha, ga, cha) vāyayāņam (gha) tonamanti (ka, gha) miu (kvacit) otānam (ka, ca, cha) matthate (ka, kha, ga, gha) jatenaṁ vijateņam (ka, kha, ga, gha) s bahugio (ka, kha, ga, gha) bahugito (ca, cha) vāra (ka, kha, ga, ca, cha) bāra (gha) okaveluyāto (ka, kha, ga, gha) sankhalão (kvacit) pakanthagā (gha, ca) sāte pahāte patese (ka, kha, ga, gha, ca, cha) savvouta (ka, kha, ga, gha) 'vin addha (gha) titthānao (ka, kha,ga,gha, ca, cha) ādinaga (ka, kha, ga, gha) uddham (ka) ovetiyā (ka, kha, ga, gha, ca, cha) ophalatesu (ka, kha, ga, gha, ca, cha) 118 118 124 bahuio dārao 130 135 "kavelluyao sankalão paganthagā sāe pahāe paese 137 154 159 173 173 185 189 197 197 savvouyao piņaddha tithāņa āīnaga uddham oveiyā phalaesu , Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 219 228 245 pīyao pilao 687 ovūne 720 754 aoo ayoo (oba 755 tao S tago (ka) tato (cha) "binţă sobență (ka kha, ga, cha) bethā (ca) suvirai-rayattāņe suirai-raittāne (ka, kha, ga, gha, cha) 292 kaducchuyam kaducchayam (ka, kba, ga, gha) 654 cariyāsu caliyāsu (ka, kha, ga) (ka, kha, ga) 683 ovinda 'vandao (gha) pühe (ka, kha, ga) oparibhäittă paribhāgettă (ka, kha, ga, gha, ca, cha) 706 kotthayão kotthao (ka, gha) agilāe aile (ka, ca) (ka, kha, ga) ayao (gha) bhicca bheccā (gha) 760 kisie kasie (ka, kha, ga,gha, cha) », 771 vāukāyassa vāuyāgassa (ka, kha, ga, gha, ca, cha) » 787 bhikkhuyāņam bhichuyānam (gha, ca) , 791 oppaogeņa oppayogeņa (gha) Description of the Manuscript (*) This manuscript was obtained from Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 49 leaves and 98 pages. Each leaf is 10-1/2 x 4-1/2”, with 13 lines in each leaf and 50-55 letters in each line. It was scribed in V.S 1671 and the following is its colophon : "namo jiņāņam jiyabhayāņam pamosuya devayāe bhagavale namo pannattie bhagavale namo bhagavao arahao pasassa passe supasse passavaṇīņabhoe. cha. Rāyapasenaiyam samattam. cha. granthāgram 2079 samarthitamidam sūtram. cha. samvat 1671 varșe bhādravā sudi 11" This colophon runs still further, but this faint portion is coloured with yellow. (a) They contain 55 and 61 leaves respectively. (FT) Both of them are similar to the manuscript (*) (9) This manuscript belongs to Yati Kanakachandji of Pali (Marwar). Its size is 10%" x 41'. It contains 54 leaves and 108 pages, with 13 lines in each page and 46 to 48 letters in each line. Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ It was scribed in V.S 1566. The following colophon is appended at the end of the manuscript : "cha. subhamh bhavatu lekhake-pathakayob śri sanghasya ca. sarhvat 1566 varse caitra sudi 2 tithau adyeha śrimadaṇahillapattane śrl vṛhat-kharataragacche śr Vardhamanasürisantāne śri jinabhadrasûripaṭṭānukrameņa śr jinahathsasûrirajye väcanacharyajayākäraganisiṣya vacanacharyajayakaragaṇiśisya vä. dharma-vilāsagaṇivacanärtharh bha. vastupälabhāryaya lili śravikaya. Putraratna bha, såliga pumukhaparivära saśrīkaya suśreyärtham ca lekhitath śri Rajapraślyopängam. () This manuscript was obtained from the collection of Punamchand Buddhamal Dudheria of Chhapar (Rajasthan). Each leaf is 12" x 5". There are 42 leaves and 84 pages in this copy, with 15 lines in each page and 48 to 54 letters in each line. Two illustrations are given in the first two pages. The script is beautiful but abounds in mistakes. Approximately it belongs to the sixteenth century. () This manuscript also was obtained from the collection of Punamchand Buddhamal Dudheria of Chhapar (Raj.) It contains 41 leaves and 82 pages, with 15 lines in each page and 57 to 60 letters in each line. The script is ordinarily fair but flawless,. It ends with the following colophon-"lipi samvat 1665 varse kärtika mase śukla pakse saptami śukre Babberakapure pandita Labdhikallolagaṇinā lekhi." () It was obtained from Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. Its size is 101"x4". It contains 52 leaves and 104 pages, with 17 lines in each page and 65 to 70 letters in each line. This manuscript was scribed in V.S. 1605 and ends with the following colophon: "iti malayagiriviracitä rajapraśniyopangavṛttika samarthita, samaptam iti. pratyakṣaragananaya granthagram. cha, cha. pratyakṣaragananãto granthamanamh viniscitam. saptatrithśatsatanyatra. slokānāṁ sarvasath khyayab. cha, granthagram sloka 3700, cha. śrl. samhvat 1605 varse śrävana sudi 13, bhaume pattana västavyam, pandita Rudrasuta Jiganatha likhitam. bhavatu. subham JIVAJIVABHIGAME The text of this sütra has been revised on the basis of manuscripts and its vetti. The verti by Malayagiri is based on old ddarfa, hence the texts of palm leaf and the vṛtti are identical. The sutras 3/218, 457, 578, 826 together with their footnotes may be consulted in this connection. A great variety of readings in the relatively later editions provides ample room for deliberation and research. Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 목록 The fact regarding the dissimilarity of readings in the manuscripts of Jīvājivabhigama has also been pointed out by Santicandra, the commentator of Jambudvipaprajñapti. Upadhyāya Santicandra has quoted the text about the description of the Kalpavrksa from Jivājīvābhigama. In describing the fourth Kalpavṛksa he has quoted the reading 'Kanaga-nigarana" which he explains as 'the heap of gold." In the Vriti of Jiväjīvābhigama the term 'Kanaganigaraṇam' has been explained as *Kanakasya nigaraṇam, kanaka-nigaranam, gālitaṁm, kanakamiti bhavaḥ". The change in script has led to change in reading. We find the reading "Kūdāgāraftha" in some manuscripts. In the printed editions as well as the hand-written copy we find the reading 'Kütägärädyāni". It has not been explained in the Vruti of Jiväjlvabhigama. Of course, it has been explained in the Vrtti of "Jambudvipaprajñapti"-"Kājākāreṇa-sikharakṛtyäḍhyäni." Acarya Malayagiri has himself mentioned the variant readings of the manuscripts. The verses, which the commentator quotes from other sources, have been included in the original text in comparatively recent manuscripts." In the Vriti we find the mention of the commentary on Jambudvipa-prajñaptl. The commentators of Jambudvipa-prajñapti definitely belong to a period later than that of Malayagiri. Hence it is a matter worthy of investigation whether this mention is an interpolation or whether Malayagiri had really got with him some old commentary of Jambádvipa-prajñapti. At some places the vṛtti contains a lot of matter worth deliberation. The commentator has explained the term "Siri vaccha as śrivṛkşa. Looking to the context it should be śrivatsa." 1. Jambudvipaprajñapti Vṛtti. p. 108: atra cadhikare jīvābhigamasutradarse kvacidadhikapadam api dṛśyate tattu vṛttāvatyākhyatam svayam paryalocyamānamapi na narthapradamiti na likhitam, ten tat sampradayāda vagantavyam, tamantarena samyak päthaśuddherapi kartumaśakyatvaditi. 1. Jambudvipa Vr. patra 102: kanakanikaraḥ suvarṇarāśiḥ. 2. Jiväjivabhigama, Vr. p. 267. 3. Jambudvipaprajñapti Vr. p. 107: See the footnote of Jiväjiväbhigama, 3/594. 4. (a) Ibid. Vr. p. 321: iha bahudhā sūtreşu pāṭhabhedāḥ parametāvāneva sarvatrapyartho nārthabhedantaramityetadvyäkhyānusärena sarvepyanugantavya na mogghavyamiti. (b) Ibid. Vr. p. 376: "iha bhūyan pustakeşu vācanābhedo galitani ca sūtrani bahuşu pustakeşu tato yathavasthitavācanābhedapratipattyartham galitasūtroddharaṇārtham caivam sugamanyapi vivriyante. 5. Ibid, Vrtti p. 331, 333, 334, 334; 3/820, 830, 834, 837: The footnotes are worth seeing. 6. jIväbhigama, Vitti p. 382: kvacit simhādinām varnanam drśyate tad bahuşu pustakeşu na dṛṣṭamityupekşitam, avaśyam cettadvyäkhyanena prayojanam tarhi Jambudvipaprajñapti tīkā paribhavaniyā tatra savistaram tadvyäkhyānasya kṛtatvät. 7. Ibid., vrtti p. 271: "Śrīvrksapakita-läñchita vгkşɔ yeşim te srtvrksatañchita vaksasab." Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The original commentator and Malayagiri had before them the intricacies of variant readings and different expositions and in the times of later commentators also such discussions were often held. In this connection, a topic mentioned in the vṛtti is of historical importance. The commentator writes that this sūtra is obscure on account of the peculiarity of aim and purpose. It can be explained only on the basis of the right tradition and solid ground. It is sheer repudiation of the sutra if it is explained carelessly and whimsically. Due care had been taken that the sutra may not be repudiated or wrongly interpreted. Consequently, attempt was made to preserve the text and its meaning. Even then due to variation in intelligence and scribe's carelessness discrepancies in readings and expositions have taken place. On account of the variant readings we had to take great pains in arriving at the correct text. The reader can estimate the labour involved by the variant readings and notes thereon appended in the edition. The manuscript marked "a" is an abridged version of the text, e.g. the following sutra 1/41-taim bhante kith pudáimh ähärenti apu goyamā puṭṭhā no apu. ogā no apogā avantaro pavaram anûim pi a bayaräimh pia uddham vi i adith pi i savisae po avisae äpupuvvih po anapupuvvim acchaddi väghātarh pa siya tidisi ska. no vappato kālā nī gandhato su 2 rasato no phasaho tesim poră. pam vipariņāmettä apuvva vanna guna ska uppäettä ätasarīra khettogadhe poggale savvappapattãe ähāramāhārenti," yv Due to the flaw in script the reading like katidisim (ka) has found place in place of kirtidisim. We have not accepted the readings of the at manuscript in many places, because they are too much abridged. Variant words and forms 1/1 Jinakkayam anuvli roemănă sanghayana Jiņakhāyam Jinakhatam anuvitiyam rotamānā sanghatana (kha) (tā) (ka, kha) (tā) (tā) 1/14 1. Ibid., Vṛtti p. 450: sūträni hyamuni viciträbhiprayataya durlaksyäpiti samyaksampradayadavasätavyāni, sompradayaśca yathoktasvarüpa iti na kacidanupapattib, na ca süträbhiprāyamajñātvå anupapattirudbhavaniya, mahāśatanayogato maha'narthaprasaktch, sütrakṛto hi bhagavanto mahtyänsaḥ pramāṇīkṛtāśca mahiyastaraistatkälavarttibhiranyairvidvadbhistato na tatsūtreşu manāgapyanupapattih, kevalam sampradayavasaye yateo vidheyah, ye tu süträbhiprayamajñātvä yathakathañcidanupapattimudbhavayante te mahato mahiyasa äsätayantiti dirghatārasamsärabhajaḥ, äha ca tikākāraḥ-"evam vicitrāņi sūtraņi samyaksampradāyādavaseyānītyavijñāya tadabhiprāyam nanupapatticodanā karya, mahāśātanayogato maha'narthaprasangăditi" evam ca ye samprati duşşamânubhavataḥ pravacanasyopaplavaya dhümaketava ivotthitäh sakalakalasukarāvyavacchinnas uvidhimärgānusthätṛsuvihitasādhuşu matsarinaste'pi vṛddhaparamparăyatasampradayadavaseyam süträbhiprāyamapäsyotsütram prarüpayanto mahāśatanābhājaḥ pratipattavya apakarṇayitavyāśca düratastattvavedibhiriti krtam prasangena". F Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33 1/19 1/21 1/26 1/72 1/73 1/100 1/101 1/119 2/59 2/60 2/74 2/92 2/241 2/149 3/5 3/6 3/33 3/48 3/73 3/77 3/77 3/80 3/94 3/96 3/118 3/118 3/119 3/234 3/323 sannão joguvaoge kohakasãe kanhalessä ǎnapāņu" chiraviraliya thihu tahappagara dungaiyā āhāro paliovamâim abbhahiyāim phumphuaggi väsapuhattam etāsi vanassati joyana" āvabahule abädhäc je nam imam asiuttaram adahattare kinhapuda bähallenam kerisaga phudita usiņavedanijjesu viraciya egäham ettha jambūpadamaya #% sannāto joguvatoge kohakasāte kinhalessä ǎnapāna chiraviraliya chiriviraliya chirivavirália chiravīrāļi thibhu tahappakārā duyägatiya ādhāro palitovamäim abbhadhiyāim phumphaaggi pumphaaggi väsapudhattam vāsapuhuttam etesi egăsi vanapphai jotana avabahule āvabahule ābādhāe jeņimam āsīuttare aḍasattari atthuttare kinnapuda pāhalepam kerisatā phudiga sphutita" usuņavedanijjesu viraiya ekāham tattha yattha jambūṇatamaya iambūṇatāmaya (ka) (ka) (ka) (ga, ta) (t) (k) (kha) (ga, ta) (ta) (ka) (ka, kha, ga, ta) (ga) (tā) (ka, kha, ga, ta) (ga) (ka) (ga) (ka) (ga, ta) (ka, kha, ga, (a) (tā) (ka, kha, ga) (ka) (ka) (tā) (ka, kha, fa) (tā) (tā) (ga) (tā) (ka, ga) (ta) (ka, kha, ga) (tā) (ma, vr) (tā) (ka, ga, ta) (kha, ga, ta) (ka, kha, ga, ta) (tā) (ka) (ga, ta, ta) Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3/371 3/372 3/412 3/593 (ga) 3/733 3/750 3/748 3/794 (ga) 31798 (ga) (tā) (tā 3/829 3/838/13 3/840 3/841 3/841 uvagāriyālayaņe ovāriyalayaņe (ka, kha, ga, ța, tri) uvakäriyalayaņe (tā) khambhuggaya thambhuggaya (ka, ga) dhūvadhadiyão dhūmadhadiyão (ka, kha) oviyao uvvitiya (ka, kha) uvviiya bāyālisam bādālisam (tā) bāyālīsam bātālīsam (tā) kelāse ketilāse (kha) kailāse (ga, ţa, tri) eguņayālam iūyālam (ka) āyālam (kha, tā) iguyālam egayālīsam eyālisam (ka, kha, ļa) egayālisam itālīsam teņaţthenam eenathenam (ga, tri) maņussāņam maņūsāņam kayāi kadāyi (tā) balāhakā balāhatā bādare vijjukāre vătare vijjutāre (tā) badare thaniyasadde vātare thaạitasadde (tā) nadi oi vă ņihīti vã mandīti vā pidhayoti vā supakkakhoyarasei supikkakhot araseti (tā) khodavarannam khoyavarapņam (ka, kha, ga, ţa, tri) khodasarisam khotodasarisam (tā) heţthimpi hatthimpi (ga, ţa, tā) hitthampi (tri) savvahetthillam savvahetthimayam savvovarilla m savvupparillam (ka, kha, ța) savvabbhimtarillam savvabbhantaram ņiodā ņiotā oņiodajīvā 'nigodajīvā (ka, kha, ga, ța, tri) oņiodajīvā oņioyajīyāyi (ka, kha, ga, ța, tri) aņāie aņādie (tā) sakāsäi sakasādi ohidamsaņi avadhidamsaņi (ga, tri) odhidamsaņi (tā) (tā) (tā) 3/841 3/860 3/877 3/949 31998 (tā) (tā) (tā) 3/1007 3/1007 3/1007 5/37 5/54 5/58 9/11 9/28 9/131 (tā) Description of the Manuscript (5) Original text : leaves 94; samvat 1575; Hand-written. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 This Ms. belongs to Shrichand Ganeshdas Gadhaia Library, Sardarshahar. It contains 94 leaves and 188 pages with 15 lines in each page and 53-56 letters in each line. Its size is 131" x 5". It is beautifully scribed. The following is the eulogy at the end : "Samvat 1575 varse äsvinamäse kṛṣṇapakṣe trayodaśyam tithau bhrguvasare pattananagaramadhye modhajatiya Jost vitthalasuta laṭakanalikhitam. yad sam pustake drstam, tādṛśam likhitam maya/yadi śuddhamaśuddham va mama doso na diyate /1/ subham bhavatu lekhaka-pathakayoḥ kalyanamastu. cha. cha. śrī. śri. cha. granthagra 5200. () Original text: leaves 80. This Ms. belongs to Sardarshahar mentioned above. It contains 80 leaves and 160 pages, with 15 lines in each page and nearly 61 letters in each line. Its size. 12" x 41". The Ms. is very old and tattered. The scribing year is not mentioned at the end, but most probably it must belong to the 16th century. (T) Original text: leaves 90. Illustrated. It belongs to Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 90 leaves and 180 pages with 15 lines in each page and about 63 words per line. Its size is 11x4. On the first page there is beautiful illustration in golden ink of the image of the Tirthankaradeva. It is very beautifully scribed. In the centre there is bāvaḍī and in the middle of that there is a red circular spot. There is no puspika and scribing year at the end of the ms, but most probably it belongs to the 16th century. It almost tallies with the palmleaf manuscript and the commentary. (ar) Palmleaf photo-print of Jaisalmer Bhandara. This copy mostly tellies with the commentary. It does not contain the pages containing the sutras 105-115 of the third pratipatti. (z) Scribing year 1800. It belongs to the Order's Library, Ladnun. It had been thoroughly studied by Acarya Kālūgaṇī (the eighth pontiff) and the text had been corrected by him at various places. Jīvājīvābhigama tīkā (Hand-written) It belongs to Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 250 leaves, and 500 pages with 15 lines per page and about 65 letters per line. Its size is 10" x 4-1/4". The scribing year is samvat 1717. The script is very beautiful. Acknowledgements Jainisam has a long tradition of councils held for compiling the texts of the Agamas. Ere 1500 years from today there had been four councils on Agama. After Devarddhigani no well-plaaned Agama council was held. The Agamas Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ compiled at that time fell into disorder during this long internal. So a wellorganised council was the need of the hour to revise the Āgamas again. Acārya Tulsī tried his best for a general consensus on Agama-editing but it could not materialise. Lastly it was decided that if our editing of Agamas is research-oriented, unbiased and punctilious, it will be universally accepted. On this consideration we started our work of holding the council for critically editing the Āgamas. Ācāryasri Tulsi is the chief of this vācana. Vacană means "teaching", that comprises so many activities like search of the ccrrect text, translation, critical and comparative study, and so on. In all these activities the active cooperation, guidance and encouragement from the Ācāryaśri is always available to us. It was our forte for undertaking such onerous task. Instead of expressing my gratitude to the Acāryaśri and thereby feeling relieved from the burden of his gratefulness, I feel it better to require more energy through his blessings and become heavier for taking up the next assignment. In editing the texts of Ovāiyam and Rāyapaseniyam of this book Muni Sudarshan, Muni Madhukara, Muni Hiralal and in editing the text of jīvājīvābhigame Muni Sudarshan & Muni Hiralal have worked with diligence and perseverance. Muni Chatramal, Muni Balchand, Muni Hansraj and Muni Manilal have also lent remarkable cooperation is editing the text of Jivājīvābhigame. Word index of Oväiyam has been prepared by Muni Shrichand and that of Rāyapaseniyam and Jivājīvābhigame by Muni Hiralal. Muni Sudarshan, Muni Hiralal and Sādhvi Siddhaprajñā, and Samaņi Kusumaprajñā actively cooperated in correcting the proofs of the book. The general get-up of Ovãiyam and Rāyapaseņiyam has been prepared by Muni Mohanlal “Amet". The first two indexes have been prepared by Muni Hiralal. In the revision of the text also he was remarkably helpful. While evalua ting their cooperation in the accomplishment of this assignment I express my gratefulness to all of them. The services of Late Madanchand Gauthi, who had a deep insight into the Agamas and who helped me in editing the text of the Āgamas, cannot be forgotten at this stage. If he had been alive, he would have been very happy at this achievemnt, Shri Shrichand Rampuria, Kulapati, Jain Vishva Bharati and the Managing Editor of Āgama Literature, has been actively involved in the Agama work from the very beginning. He is fully-determined and working hard to reach the Āgama literature to the laymen. Having relieved himself of his well-set Advocate's job he has been devoting most of his time to the Agama programme. Shri Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 모른 Khemchand Sethia, President and Shri Shrichand Bengani, Secretary of Jain Vishva Bharti have also actively cooperated in this task. The English rendering of the Editorial and the Introduction were done under the supervision of Dr. N. Tatia and Dr. V. P. Jain by Shri R.S. Soni & Samanis Chinmayapräjñā and Ujjvalaprajñā have also been actively associated with it. It is simple formality to mention the names of those proceeding in the same direction with the same speed for a common goal. Really it is a sacred duty for us and we have all fulfilled it. -Yuvacārya Mahāprajña Adhyatma Sadhana Kendra, Mehrauli, Delhi. Aksaya Trtiya, 1st May, 1987. Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION The present book is Uvangasuttani. It contains the original text of twelve Upāngas with variant readings and abbreviated texts. It has two parts. The first part contains three Agamas (1) Oväiyam, (2) Rayapaseniyam and (3) Jīvājīvābhigame. The second part contains nine ägamas : (1) Pannavana, (2) Jambuddivapannatti, (3) Candapannatti, (4) Sürapannatti, (5) Nirayāvaliyao (Kappiyão), (6) Kappavadisiyão (7) Pupphiyão, (8) Pupphacũliyão, (9) Vanhidasão. In the ancient tradition we find the following two classifications of the āgamas : (1) Angapravişta and (2) Angabahya. There was no such categorisation as Upånga in the old tradition. Nandīsätra bears no mention of any Upanga. In any older agama too, Upārga has not been mentioned. The Tattvārthabhāşya uses this word for the first time, which is the earliest in the available texts." Relation between Anga and Upanga Tattvārthasūtra mentions the word Upanga, but it does not indicate any relationship between them. We find it mentioned in the vrtti of Jambūdvīpaprajñapti and the Sukhabodha Samācāri at page 34, composed by Shrichandra Sūri, the commentator of Nirayāvalikā. According to Jambūdvīpaprajñapti, the interrelationship between angas and upārgas is shown as under :Anga Upārga Acāsānga -Aupapātika Sūtrakstāiga -Rājapraśniya Sthanānga -Jivajivābhigama Samavāyānga - Prajapana Bhagavati -Jambūdvipaprajfiapti Jñātādharmakatha -Candraprajāapti Upăsakadašā -Sūryaprajñapti AntakȚddaśa - Nirayāvalikā( Kalpika) Anuttaropapātikadasă - Kalpāvatansika 1. Tattvārthabhāşya, 1/20 : tasya ca mahăvişayatvättăastānarthanadhikrtya prakaranasamāptya peksamangopānganādātvam. Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Praśnavyākarapa - Puspika Vipāka śruta - Puşpaculika Drștivāda -Vịşņidaśal 1. Oviyam Nomenclature The present agama is called Ovāiyam (Aupapātikā). Its main theme is upapāta. Samavasaraņa is its incidental treatment. On the basis of the main theme treated herein, it is known as Ovãiyam (Skt. Aupapāt ika). On deleting letters "va” as per the Prakrit Grammar Rule, we get ovāiyam form in place of ovaväiyam. We come across the same name in the Nandisūtra.? Subject Matter The main theme enunciated in the Aupapātika is 'rebirth', that so and so upapāta (instantaneous rebirth) takes place because of such and such conduct. The exordium consists of many types of descriptions of town, monastery, garden, king etc. The present sūtra has come to be known as a Varņaka (describer) sūtra because of these descriptions and has been used in various epilogues for this reason. Commentaries The first commentary of the Aupapātika is the vstti by Abhayadeva Sūri, the commentator of the nine ägomas. The introductory verse shows that Abhayadeva Sūri had got no other earlier vrtti in front of him. He composed this vrtti with the help of other texts. He himself mentions : Śrīvarddhamānamānamya prāyo'nyagranthavīkşitā / aupapātikaśāstrasya vyākhyā kācidvidhiyate // The commentator has mentioned the views of the foregoing åcāryas at - several places. 1. snānādvă pāņdurībhūtagātrā iti vsddhāh/(Vștti p. 171) 2. cūrnikārastvāha/(Vịtti p. 224) 3. asya ca víddhoktasyādhikstagāthāvivaraṇasyärtham bhāvārthah/ (Vrtti p. 225) This commentary is neither too elaborate nor too abridged. Its medium size contains most of the points worth discussing. The Ovāiyam contains numerous variant readings. Abhayadeva has described the first sūtra thus-"This sūtra is abundant in variant readings. I shall deal with only what is intelligible." Most probably such variant readings do 1. Jambūdvipaprajñapti, Sánticandriya Vsti, patra 1, 2. 2. Nandisutra, 76. 3, Aupapātika, viti, page 2: jha ca bahavo vācapābhedā drśyante, teșu ca yamevāvabhotsyāmahe tameva vyākhyāsyāmah. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ not appear in any other sūtra. If the commentator had not compiled them, they would have passed into oblivion. The commentary ends with an eulogy in three verses, in which the commentator mentions the names of his guru-Shri Jineśvara Suri, of the Candra lineage, and the place of composition- Anahilapāțakanagar and Droņācārya who revised the Vștti: candrakula-vipula-bhūtala-yugapravara-vardhamānakalpataroh / kusumopamasya süreh guộasaurabha-bharita-bhavanasya // nissambandhavihārasya sarvadā śrijineśvarāhvasya / šisyeņābhayadevākhyasūriņeyam kstā vịttiḥ 11 anahilapāțakanagare śrímaddroņākhyasūrimukhyena / panditagupena gunavatpriyeņa samsodhitā ceyam // The second commentary on the Ovãiya is 'Stabaka', which was probably composed by Muni Dharmasi and belongs to the eighteenth century of the Vikram era. 2. Rāyapaseniyam Nomenclature This sūtra is called Rāyapaseniyam. Pt. Bechardas Doshi has named it as Rayapaseņaiyam, stating that it is based on the 'Rājaprasenakiya' referred to by Siddhasenagani and Rājaprasenajita referred to by Muni Candrasûri." The earliest mention of this sütra is found in Nandisutra, under the name Rāyapaseniya. The name has not been explained in the Nandi cūrni and its commentaries by Haribhadrasūri and Acārya Malayagiri who has named it as "Rājapraśniya' while dealing with it. King Pradeśi had asked some questions to Kesīsvāmi. The present sutra contains replies to the questions and hence the name 'Rajapraśniya'.3 From the point of view of treatment of the subject matter, Malayagiri's commentary is quite in order and the name does not sound awkward or improper on that account. But lexicographically the name is open to criticism, specially by Pt. Bechardas who contends that the word 'praśna' takes the forms 'panha' and 'pasina' in Prakrit, and not the form 'pasena'. There is no form as 'pasena' according to Prakrit grammar. If we recognise it 1. Rāyapaseņaiyam, praveśaka, page 6 & 7. 2. Nandi, sūtra 77. 3. (a) Rāyapasep ya vftti, page 1 : atha kasmăd idam upāngam rājaprašatyābhidhānamiti? ucyate, iha pradeśināmā räjä bhagavatah kesikumāraśramanasya samipe yan jivavisayān praśnānakärşit, yāni ca tasmai kesikumāraśramaņoganabbst vyäkaraṇāni vyākstavān. (6) Rāyapaseniya Vseti, page 2: rājapraśneşu bhavam rājapraśniyam. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ qv as an authoritative form (arsa), all rules about the correct or wrong usage of words in Prakrit would have been set to naught." Pt. Bechardas's contention may be valid, but it is not irrefutable. In our view (1) The original form of 'paseniya' is 'pasiniya' (Skt. prašnita). In pronunciation, assumption of the form 'i' by 'e' is quite consistent. We find such departure elsewhere too. For example : pihuṇīņam ṇivvāṇam nivvutl tigicchiyam bință bi tikālam pehuneṇam Devväņam nevvuti tegicchiyam bență be tekālam (2) In the Agama-sutras and old scriptures we find the text as rayapaseniya". The usage 'rayapasepaiya' is not available anywhere. In the Nandisutra we come across 'rayapasepiya' as mentioned earlier. In 'Pakşika sūtra' too, 'rayappaseniya' occurs. The composer of the avacuri of Päkşika sütra gives its Sanskrit form as 'rajapraśniyam"." (Dell) (Skt. nirvanam) (Skt. nirvrttih) (Skt. cikitsitam) (Skt. vrttam) (Skt. dvi) (Skt. trikålam) (3) Prasenajit takes the form 'pasenaiya' in Prakrit In the Sthänänga sutra the fifth kulakara is named as 'pasepaiya'. This form is available at various other places too. If the subject-matter of the present sütra had been related to King Prasenajit, the name could have been "Rayapasenaiyam". But in fact the subject-matter relates to King Paesl; hence the form "rayapaseṇaiya" is not compatible. In the Dighanikaya King Päyäsi is mentioned as a feudal lord to Prasenajit. But here we find no mention of King Prasenajit. Therefore the usage 'Rayapaseṇalyam' has no basis. From the point of view of the subject-matter we may conjecture about the name 'Rayapaesiyam', but there is no basis for such a conjecture. King Pradesl's quesies form the basis of the composition of the sutra in question. Therefore its name must be 'Rayapaseniya' and none else. Commentaries Its two commentaries are named as (i) vetti, and (ii) stabaka tabbā or 1. Rayapasenaiyam, praveśaka, page 6. 2. Pākṣikasūtram, page 76. 3. Pākṣikasūtram Avacuri, page 77: Rajñaḥ pradesi nämnaḥ praśnāni, tänyadhikṛtya kitam adhyayanam-rajapraśniyam. 4. Thanam, 7/62 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ bālāvabodha). The former is in Sanskrit while the latter is in the admixture of Rajasthani and Gujarati. Vstti was composed by the renowned annotator Ācārya Malayagiri while the stabaka was written jointly by Pärávacandragaội (16th Century) and Muni Dharmasingh (18th Century). Stabaka is a short piece of translation but vrtti is the real commentary which clarifies the underlying meaning of the sūtra. Although the vruti has not been able to explain the whole theme, yet the commentator has provided valuable information at various places. The author had to face many obstacles in writing the vrtti, the most difficult of them being the variations in text. He has mentioned this difficulty at several places. To surmount these obstacles the vruti has been bifurcated in two parts : (i) The first part : for commentary of intelligible words, and (ii) the later part : for commentary of technical terms. Thus the first part is quite extensive, while the later part is brief. The causes of detailed treatment in the first part are twofold : (a) Novelty of the subject matter. (b) Abundance of variant readings. Likewise the later part has been treated in brief due to the following reasons: (a) Intelligibility of the text. (b) Repetition of the terms already explained. (c) Small number of variant readings.? The commentator desires us to learn the mundane topics from the experts of that art.3 Both Rājapraśniya and Jīvābhigama bear identical topics at various places. Acārya Malayagiri is the commentator of both of them. That is why the topics of the commentaries are largely identical. The commentator had obviously got the original commentary of Jivābhigama, which fact has been mentioned time and again in this commentary. 1. Rayapaseniya Vetti, p. 204,241,259. 2. Rayapaseniya Vštti, page 239 : iha prāktano granthaḥ prāyo'pūrvah bhūyānapi ca pustakesu vācanabhedastato mā'bhūt sisvänām sammoha iti kväpi sugamo'pi yathavasthitavācanākramapradarśanärtham likhita, ita ūrhvam tu prāyaḥ sugamaḥ prägvyakhyātasvarūpasca na ca vācanābhedo'pyatibādara iti svayam paribhāvaniyaḥ, vişamapadavyakhya tu vidhäsyate ita. 3. Ibid., page 145: ete nartanavidhayah abhinayavidhayaśca nāțyakusalebhyo veditavyāḥ. 4. (a) Ibid, page 100: āha ca jīvābhigamamūlaţikākst vijayadūşyam vastraviśeşah iti. (b) Ibid, page 158 : äha ca jivābhigamamülatikākārah argalāprāsādā yaträrgalā niyamyante iti, Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ At one stage Jīyābhigama cürņi has also been mentioned. Vịtti contains 3700 ślokas :pratyakşaragañanāto granthamānam viniścitam / saptatrimśacchatānyatra ślokānām sarvasamkhyayā // At the very outset, the commentator remembers Lord Mahāvīra reverentially and with guru's permission proceeds with the commentary on the Rājapraśniya sutra : prañamata vīrajineśvaracaranayugam paramapāțalacchāyam / adharikstanatavāsavamukuțasthitaratnarucicakram // rājapraśniyamaha vivịnomi yathā'gamam guruniyogāt / tatra ca śaktimaśaktim guravo jānanti kā cintā // At the end, the commentator prays for the victory of his preceptor as also attainment of knowledge for the reader : adharikstacintāmaņi-kalpalatā-kāmadhenu-māhātmyāḥ / vijayantāṁ gurupādāḥ vimalikệtaśışyamativibhavāḥ // rājapraśniyamidam gambhirärtham vivļņvatā kuśalam yadavāpi malayagiriņā sādhujanastena bhavatu krti |1|| jīvåbhigamamulaţikākāreņa-āvarttanapithikā yat rendrakilako bhavati sti. (c) Ibid, page 159 : āha ca jīvābhigamamülatīkākst-kūto mādabhāgah ucсhayaḥ śikharam iti. äha ca-jīväbhigamamūlaţikākst-ankamayah pakşāstadekadeśabhūtā evam paksa bāhavo'pi drstavyā iti. (d) Ibid, p. 160: uktanca jivābhigamamülatīkākārena ohadapi hāragrahanam ? mabat kşullakam ca punchani' iti. (e) Ibid, p. 161 : äha ca jivābhigamamūlațīkākļi-naisedhiki nişidanasthanam iti. (f) Ibid. p. 168 : āha ca jīvābhigamamulațīkākārah-prakanthau pithaviśeşi iti. (g) loid, p. 169: uktañ ca jīvābhigamamülaţikāyām--prāsādāvatamsakau prāsādaviśeşau iti. (h) Ibid, p. 176: uktañ ca jīvābhigamamülatīkāyām-manogulikā nāma pithikā iti. (i) Ibid, p. 177: uktañ ca jīvābhigamamulaţikākāreņa--haya kanthau-hayakanthapramānau ratnaviś sau evam sarve'pi kanthă vacyā iti. () Ibik, p. 180: uktañ ca jivābhigamamūlaţikāyām--tailasamudgakau sugandhitailādhārau. (k) Ibid, p. 189: jivābhigamamulaţikāyāmapi (46)-uppittham śvāsayuktam iti. (1) Ibid, p. 195: uktañ ca jīvābhigamamulaţikāyām-dagamandapāh-sphātikā mandapā iti. (m) Ibid, p. 226: jivābhigamamülaţikākārah-bibboyaņā- upadhānakāpyucyante iti, . Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JIVĀJIVĀBHIGAME Nomenclature The āgama under review is Jīvājīvābhigame. Jiva and ajiva—the two basic tattvas-have been dealt with herein, hence it has been named as Jīvājīvā. bhigama. It contains nine chapters in which the sentient beings have been numerically classified :1. Two kinds of mundane beings-mobile and immobile. 2. Three kinds of mundane beings--woman, man and eunuch. 3. Four kinds of mundane beings-hellish-beings, animals, men and gods. 4. Five kind of mundāne beings--one-sensed, two-sensed, three-sensed, four sensed and five-sensed. 5. Six kinds of mundane beings-earth-bodied, water-bodied, fire-bodied, air bodied, vegetation-bodied and mobile-bodied beings. 6. Seven kinds of mundane beings-hellish, male animals, female animals, men, women, gods and goddesses. 7. Eight kinds of mundane beings-first time hellish, second time hellish, first time animal, second time animal, first time man, second time man, first time god, second time god. 8. Nine kinds of mundane beings-earth-bodied, water-bodied, fire-bodied, air bodied, vegetation-bodied, two-sensed, three sensed, four-sensed and five-sensed. 9. Ten kinds of mundane beings--one time one-sensed, second time one-sensed, one time two-sensed, second time two-sensed, one time three-sensed, second time threesensed, one time four-sensed, second time four-sensed, first time five-sensed, second time five-sensed. The whole of Jīvābhigama has been dealt with upto the end of the eighth sutra of the ninth pratipatti. This classification is based on various other criteria, e.g., two kinds of sentient beings--emancipated (siddha) and nonemancipated (asiddha). A sentient being has three other categories too--one possessing right vision, perverted vision and right-cum-perverted vision. In this agama secondary subjects are available in abundance, which provide detailed information about Indian society and life. From the architectural point of view the description of “padmavara' (lotus) altar and 'vijayadvāra' (gate of victory) is very important. The agama is a compilation of various ādeśas (view-points). The sthaviras Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 held divergent views on single topics. The word ādeśa was used for a viewpoint. This agama is supplementary in nature. Hence it embodies various view-points of the sthaviras. The commentator uses ādesa in the sense of “kinds”.1 In essence the compilation of various viewpoints is clearly proved. In Jivājīyābhigame, 2/20, we find four ādeśas whereas in 2/48 there are five. The commentator is of the view that only the extraordinarily gifted persons can pass a judgment as to which of five aleśas is proper. There were no such gifted persons during the period of the sthaviras, hence the commentator has obviously abstained from expressing his own views on the subject. He has simply compiled the available adeśas. The sthaviras are the authors of this āgāma. This is clearly indicated at the beginning of the āgama.3 Commentaries Two commentaries are available on this sūtra-one by Acārya Haribhadra, and the other by Ācārya Malayagiri. The former is concise whereas the latter is quite eloborate. Malayagiri's vịtti contains the ascription "iti vśddhäḥ" as well as the mention of the original text, the commentator and the cürņi at several places : 'iti vặddhāḥ 4 ‘iyam ca vyākhyā mūlaţikānusāreņa kstā? fuktañca mülatīkāyām8 'āha ca mūlațīkākst? tâi ca mülaţikākstā vaiviktyena na vyākhyātā iti sampradāyādavaseyāḥ°8 mūlaţikākāreņāvyākhyānāt": ‘āha ca mulațīkākāraḥ---uktam cūrņau'10 aha ca mülaţikākāraḥ-uktam mülatīkākāreņa'li 1. Jīvājīvābhigama, Vţtti p. 53 : "ādeśa śabda iha prakāravācī"-'ādesotti pagaro'iti vacanāt, ekenaprakāreņa, ekaprakāramadhikrtyetibhāvārthaḥ'. 2. Ibid., p. 59: amisam ca pancānāmādeśānāmanyatamādeśasamīcinatānirnayo'tisayajñānibhiḥ sarvotkrstaśruta labdhisampapnairvā kartum sakyate te ca sūtrakrtpratipattikāle nāsiranniti sūtrakrona nirnayam ktavāniti". 3. Jivājīvābhigame, 1/1 : "iha khalu jiņamayam jiņāņumayam jiņāņulomam jiņappaņītam jiņaparūviyam jiņakkhāyam jīņāņuciņņam jiņapaņņatam jinadesiyam jiņapasatthm aņuvii tam saddahamāņā tam pattiyamāņā tam pattiyamāņā tam roemaņā therā bhagavanti jīvājivăbhigame ņāmajjhayanam pannavaimsu". 4. Vţtti, p. 27 8. , p. 136 5. , P. 64 9., p. 136 6. , 10., p. 137 11., p. 180 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ fuktam mülaţikāyām' ‘äha ca mülatīkākāraḥ2 ‘uktam ca mülaţikāyām”3 'āha ca mülaţikākäraḥ 4 "aha ca mūlațīkākārah' Suktañca mülaţikāyāṁ's ‘uktañca mülaţikākāreņa'? "aha ca mülaţikäkārah', 'cūrnikāstvevamāha'8 āha ca mülatīkākārah' "aha ca cūrņikst'' ‘uktanca mülaţikāyām', 'Jīvābhigama mūlaţikāyām 10 ‘äha ca mūlaţikākāro’pi’ ‘āha ca cūrņikst'11 'tathā cāha mulaţikäkāraḥ 12 'âha ca mülacūrņikst'13 'mülațīkākāro'pyāha ......cũrộikāro'pyāha?14 'āha cūrņikyt'5 'tathä сāha mülațīkākaraḥ:16 'āha ca cūrņikst’17 ‘uktam cūļņau'18 ‘āha ca mūlaţikākāraḥ:19 'āha cũrņikst āha ca tīkākāraḥ 20 'mūlațīkākāreņāpi'21 ‘āha ca mülatīkākāraḥ 22 Fulfilling the assignment The credit of editing this text goes to a great extent to Yuvācārya Mahāprajña, because the work has been accomplished through his perseverance day and night, otherwise this onerous task was difficult to be finalised He is basically inclined towards yoga. Therefore it is easy for him to maintain his equipoise (concentration). Not only that, being engrossed in the study of the Āgamas in a routine manner he has developed a keen intellect in grasping the inner mysteries of things. The credit of his intellectual development goes to his humbleness, diligence and total surrender to his preceptor. He has been displaying such inclination since childhood. Since he came over to me, this 1. Vrtti, p. 141 12. Vrtti, p. 354 2. p. 142 13., p. 369 3. , p. 142 14. p. 370 4. , p. 277 15: ,, p. 384 5. p. 186 16. p. 438 6. , p. 204 17. , p.441 7. , P 205 18., p. 442 8. , p. 209 19. p. 444 9., p. 210 20., p. 450 10., p. 214 21. , p. 452 p. 321 22. , p. 457 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ learning has been gradually increasing. I am quite satisfied with his capacity to work and his dutifulness. Seve.al other saints have cooperated in revising the text of this agama. I heartily bless them and wish that their work-born capacity should develop all the more. My joy knows no bounds to see that the gigantic task of text revision has been successfully brought to completion through the cooperation of my disciples --the monks and nuns of the order. -Ācārya Tulsi Adhyātma Sadhana Kendra, Mehrauli-New Delhi, Akşaya Tștiyā, 1st May, 1987. Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम ओवाइयं समोसरण-पयरणं सूत्र १ से ८१ पृ०१ से २१ चंपानयरी-वण्णग-पदं १, पूण्णभद्दचे इय-वण्णग-पदं २, वणसंड-वण्णग-पदं ३, असोगपायव-वण्णगपदं ८, पुढविसिलापट्टय-वण्णग-पदं १३, कूणिय राय-वण्णग-पदं १४, धारिणीदेवी वण्णग-पदं १५, पवित्ति-वाउय-पदं १६, महावीर-वण्णग-पदं १६, पवित्ति-वाउयस्स निवेदण-पदं २०, सविहिणमोत्थु-पदं २१, भगवओ उवागम-पदं २२, समण-वण्णग-पदं २३, निग्गंथ-वण्णग-पदं २४, थेर-वण्णग-पदं २५, अणगार-वण्णग-पदं २७, अपडिबंध-विहार-पदं २८, तवोवहाण-वण्णग-पदं ३०, अणगार-वष्णग-पदं ४५, भवणवासि-वण्णग-पदं ४७, वाणमंतर-वण्णग-पदं ४६, जोइसियवण्णग-पदं ५०, वेमाणिय-वण्णग-पदं ५१, परिसा-निग्गमण-पदं ५२, पवित्ति-वाउयस्स निवेदणपदं ५३, सविहि-णमोत्थु-पदं ५४, बलवाउय-निद्देस-पदं ५५, हत्थिवाउय-निद्देस-पदं ५६, जाणसालिय-निद्देस-पदं ५८, णयरगुत्तिय-निद्देस-पदं ६०, बलवाउयरस निवेदण-पदं ६२, कणियसज्जा-पदं ६३, परिकरसज्जा-पदं ६४, कूणियस्स निग्गमण-पदं ६५, आसीवयण-पदं ६८, कुणिय-पज्जुवासणा-पदं ६६, देवी-पज्जुवासणा-पदं ७०, धम्मदेसणा-पदं ७१, धम्मपडिवत्ति-पदं ७८, परिसा-पडिगमण-पदं ७६, कूणिय-पडिगमण-पदं ८०, देवी-पडिगमण-पदं ८१। ओवाइय-पयरणं सूत्र ८२ से १९५ पृ०५१ से ७७ गोयम-वण्णग-पदं ८२, कम्मबंध-पदं ८४, णेरइय-उववाय-पदं ८७, वाणमंतर-उववाय-पदं ८८, जोइसिय-उववाय-पदं ६४, कंदप्पिय-उववाय-पदं ९५, परिवायग-चरिया-पदं १६, अम्मडअंतेवासि-पदं ११५, अम्मड-चरिया-पदं ११८, दढपइण्ण-पदं १४१, देवकिब्बिसिय-उववाय-पदं १५५, सहस्सार-उववाय-पदं १५६, आजीवयाणं अच्चय-उववाय-पदं १५८, समणाणं आभिओगिय-उववाय-पदं १५६, णिण्हगाणं गेवेज्ज-उववाय-पदं १६०, देस-विरय-वण्णग-पदं १६१, सव्वविरय-वण्णग-पदं १६३, केवलिसमुग्घाय-पदं १६६, जोग-निरोह-पदं १८१, सिद्ध-वष्णग-पदं १८३, ईसीपब्भारापुढवी-वण्णग-पदं १६२, सिद्ध.वण्णग-पदं १६५ । रायपसेणियं सूरियाभो सूत्र १ से ६६८ पृ०१ से १६१ उक्खेव-पदं १, सूरियाभस्स ओहिपओग-पदं ७, सूरियाभेण भगवओ वंदण-पदं ८, आभिओगिय-देव-पेसण-पदं ६, आभिओगिय-देवेहिं भगवओ वंदण-पदं १०, वंदणाणुमोदण-पदं ११, Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ आभिओगिएहि जोयणमंडलनिव्वत्तण-पदं १२, सूरियाभस्स गमण-घोसणा-पदं १३, सूरियाभविमाणवासिदेवाणं समवसरण-पदं १६, जाणविमाण-विउवण-पदं १७, तिसोवाणपडिरूवगविउवण-पदं १६, तोरण-पदं २०, ०अट्टमंगल-पदं २१, ०झय-पदं २२, ०छत्तातिछत्तआदिपदं २३, ० भूमिभाग-विउव्वण-पदं २४, ०मणि-वण्णावास-पदं २५, ०पेच्छाघरमंडव-विउव्वणपदं ३२, ०पेच्छाघरमंडवे भूमिभाग-विउव्वण-पदं ३३, ०पेच्छाघरमंडवे उल्लोय-विउव्वण-पदं ३४, ०पेच्छाघरमंडवे अक्खाडग-विउव्वण-पदं ३५, ०अक्खाडए मणिपेढिया-विउब्बण-पदं ३६, मणिपेढियाए सीहासण-विउव्वण-पदं ३७, ०सीहासणे विजयदूस-विउव्वण-पदं ३८, ०विजयदूसे अंकुस-विउव्वण-पदं ३६, अंकुसे मुत्तादाम-विउव्वण-पदं ४०, ०भद्धासण-विउवण-पदं ४१, जाणविमाण-विउव्वणस्स निगमण-पदं ४५, जाण विमाणारोहण-पदं ४७, पयाण-सज्जापदं ४६, जाणविमाण-पच्चोरहण-पदं ५६, सूरियाभस्स वंदण-पदं ५८, वंदणाणमोदण-पदं ५६, पज्जुवासणा-पदं ६०, धम्मदेसणा-पदं ६१, पण्ह-वागरण-पदं ६२, नट्टविहि-उवदसण-पदं ६३, कडागारसाला-दिळंत-पदं १२१, सूरियाभ-विमाण-पदं १२४, ०पागार-पदं १२७, ०कविसीसपदं १२८, ०दार-पदं १२६, ०वंदणकलस-पदं १३१, ०णागदंत-पदं १३२, ० सालभंजिया-पदं १३३, जालकडग-पदं १३४, ०घंटा-पदं १३५, ०वणमाला-पदं १३६, ०पगंठग-पदं १३७, तोरण-पदं १३८, ०दार-पदं १६२, ०वणसंड-पदं १७०, ०वणसंड-भुमिभाग-पदं १७१, ०वणसंड-जलासय-पदं १७४, ०वणसंड-घरग-पदं १८२, ०वणसंड-मंडवग-पदं १८४, ०वणसंड-पासायवडेंसग-पदं १८६, भूमिभाग-पदं १८७, . ० उवगारिया-लयण-पदं १८८, ०पउमवरवेइया-पदं १८६, ०उवगारिया-लयण-पदं २०२, भूमिभाग-पदं २०३, मूलपासायवडेंसग-पदं २०४, ०पासायवडेंसग-पदं २०५, ०सुहम्म-सभा-पदं २०६, सुहम्म-सभा-दारपदं २१०, ०मुहमंडव-पदं २११, ०दार-पदं २१२, ०भूमिभाग-उल्लोय-पदं २१३, मंगलगपदं २१४, ०पेच्छाघर-मुहमंडव-पदं २१५, ०भूमिभाग-उल्लोय-पदं २१६, ०अवखाडग पदं २१७, ०मणिपेढिया-पदं २१८, ०सीहासण-पदं २१६, मंगलग-पदं २२०, ०मणिपेढिया-पदं २२१, ०चेइयथभ-पदं २२२, मंगलग-पदं २२३, ०मणिपे ढिया-पदं २२४, जिणपडिमा-पदं २२५, मणिपेढिया-पदं २२६, ०चेइयरुक्ख-पदं २२७, मंगलग-पदं २२६, ०मणिपेढिया-पदं २३०, ०महिंदज्झय-पदं २३१, मंगलग-पदं २३२, ०नंदापुक्खरिणी-पदं २३३, ०तिसोवाणपडिरूवगपदं २३४. ०मणोगुलिया-पदं २३५, ०गोनाणसिया-पदं २३६, ०भूमिभाग-पदं २३७, मणिपेढिया-पदं २३८, ०चेइय-खंभ-पदं २३६, जिण-पकहा-पदं २४०, मंगलग-पदं २४१, ० मणिपेढिया-पदं २४२, ०सीहासण-पदं २४३, ०मणिपेढिया-पदं २४४, ०देवसयणिज्ज-पदं २४५, मणिपेढिया-पदं २४६, ०महिंदज्झय-पदं २४७, मंगलग-पदं २४८, ०पहरणकोस-पदं २४६, मंगलग-पदं २५०, सिद्धायतण-पदं २५१, ०मणिपेढिया-पदं २५२, जिणपडिमा-पदं २५३, ० उववायसभा पदं २६०, ०अभिसेगसभा-पदं २६५, अलंकारियसभा-पदं २६७, ०ववसायसभा-पदं २६६, सूरियाभदेव-पदं २७४, सूरियाभस्स अभिसेग-पदं २७७, अभिसेगकाले देवकिच्च-पदं २८१, वद्धावण-पदं २८२, अलंकरण-पदं २८३, सिद्धायतणपवेस-पदं २८८, ०थुइ-पदं २६२, ०दाहिणिल्लं पइ गमण-पदं २६४, उत्तरिल्लं पइ गमण-पदं ३१३, ०पुरस्थिमिल्लं पइ गमण-पदं ३३२, सुहम्मसभापवेस-पदं ३५१, ०उववायसभापवेस-पदं ४१४, अभिसेगसभापवेस-पदं ४७४, ०अलंकारसभापवेस-पदं ५३४, ०ववसायसभापवेस-पदं ५६४, सूरियाभविमाणे अच्चणिया-पदं ६५४, ०नंदापुक्खरिणी-गमण-पदं ६५६, ०सुहम्मसभा-निसीदणपदं ६५६, सूरियाभ-वष्णग-पदं ६६५। Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ परसि कहाणगं सूत्र ६६८ से ८१७ १६२ से २१२ केयइ-अद्ध-पदं ६६८, सेयविया - पदं ६६६, भिगवण - पदं ६७०, पएसि पदं ६७१, सूरियकंतापदं ६७२, सूरियकंत पदं ६७३, चित्त-सारहि पदं ६७५, कुणाला-पदं ६७६, सावत्थी- पदं ६७७, कोट्ठय-पदं ६७८, जियसत्तु पदं ६७६, पाहुड उवणयण-पदं ६८०, चित्तस्स आवासपदं ६८५, केसि - आगमण पदं ६८६, चित्तस्स जिण्णासा- पदं ६८७, कंचुइपुरिसस्स निवेदणपदं ६८६, चित्तस्स केसि समीवे गमण-पदं ६६०, धम्मदेसणा-पदं ६६३, चित्तस्स गिहिधम्म - विज्जण पदं ६६५, समणोवासय-वण्णग-पदं ६६८, जियसत्तुणा पाहुड - पेसण-पदं ६६६, चित्तस्स निवेयण-पदं ७०० केसिस्स पडिवयण-पदं ७०३, पुणोनिवेयण- अब्भुवगमण पदं ७०४, उज्जाणपाल - निद्दे सण-पदं ७०६, पाहुड उवणयण-पदं ७०८, केसिस्स सेयविया आगमण-पदं ७११, उज्जाणपालगाणं चित्तस्स निवेदण-पदं ७१३, चित्तस्स केसि - पज्जुवासणा-पदं ७१४, चाउज्जाम-धम्मदेसणा-पदं ७१७, चित्तस्स निवेदण-पदं ७१८, केसिस्स पडिवयण-पदं ७१६, चित्त - एसि पदं ७२३, पए सि के सि पदं ७३६, जीव- सरीर अण्णत्त पदं ७४८, तज्जीव- तच्छरीरपदं ७५०, जीव- सरीर अण्णत्त-पदं ७५१, तज्जीव- तज्छरीर- पदं ७५२, जीव- सरीर अण्णत्त-पदं ७५३, तज्जीव- तच्छरीर-पदं ७५४, जीव- सरीर अण्णत्त-पदं ७५५, तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७५६, जीव- सरीर - अण्णत्त-पदं ७५७, तज्जीव- तच्छरीर- पदं ७५८, जीव सरीर अण्णत्त-पदं ७५६, तज्जीव- तच्छरीर- पदं ७६०, जीव- सरीर- अण्णत्त पदं ७६१, तज्जीव- तच्छरीर-पदं ७६२, जीव- सरीर - अण्णत्त - पदं तज्जीव- तच्छरीर- पदं ७६४, मूढ-कट्ठहारय-पदं ७६५, अक्को पर पति विक्कणा-पदं ७६६, के सिस्स समाधाण-पदं ७६७, पए सिस्स पडिकूलवट्टण - हेउ पदं ७६८, ववहारग- पदं ७६६, जीवोवदंसणट्ठ-निवेदण-पदं ७७०, के सिस्स समाधान- पदं ७७१, हरिथ कुंथु - जीव- समाणत्त पदं ७७२, कुल परंपरागयदिट्टि -अच्छडण-पदं ७७३, अयहारग-दिट्ठत-पदं ७७४, पएसिस्स गिहिधम्म- पडिवज्जण-पदं ७७५, आयरियविजयपडिवत्ति-पदं ७७६, पएसिस्स अत्त - निवेदण-पदं ७७७, पएसिस्स खामणा-पदं ७७८, चाउज्जामधम्म- कहण-पदं ७७६, रमणिज्ज-अरमणिज्ज-पद ७८०, पएसिणा रज्जस्स चउभागकरण-पदं ७८८, एसिस्स समणोवासयत्त-पदं ७८६, एसिस्स रज्जोवर इ-पदं ७६०, सूरिकताए सूरियकंतेण मंतणा-पदं ७६१, सूरियकंताए विसप्पओग पदं ७६३, पएसिस्स समाहि-मरण-पदं ७६५, सूरियाभ देव पदं ७९७, दढपइण्णग पदं ७६६ ॥ ७६३, जीवाजीवाभिगमे पढमा दुविहपवित्ती सूत्र १४३ पृ० २१५ से २३७ १३, आउका इय-पदं उक्खेव - पदं १, अजीवाभिगम-पदं ३, जीवाभिगम-पदं ६, पुढविकाइय-पदं ६३, वणस्स इकाइय-पदं ६६, तेउकाइय-पदं ७६, वाउकाइय पदं ८०, बेइंदिय-पदं ८४, तेइंदिय-पदं चरिदिय-पदं, नेरइय-पदं ६२, तिरिक्खजोणिय पदं ६७, मणुस्स पदं १२६, देव- पदं १३५ । दोच्चातिविहपडिवत्ती सू० १५१ पृ० २३८ से २५६ तच्चा चव्विहपडिवत्ती सू० ११३८ पृ० २५७ से ४७३ नेरइयउद्देसओ बीओ ७६, नेरइय उद्देसओ तइओ १२८, तिरिक्खजोणिय देओ पढमो १३०, तिरिवखजोणिय उद्देसओ बीओ १८३, विसुद्धलेस्स - पदं २०४, मणुस्साधिगारो Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२, देवाधिकारो २३०, दीवसमुद्द वत्तव्वयाधिकारो २५७, विजयदाराधिकारो २९९, विजयाए रायहाणीए अधिकारो ३५१, विजयदेवाधिगारो ४३६, वेजयंतादि-अधिगारो ५६६, जंबुद्दीवाधिगारो ५७१, जंबुद्दीवे चंदसूरादि-अधिगारो ७०३, लवणसमुद्दाधिगारो ७०४, धायइसंडदीवाधिगारो ७९६, कालोदसमुद्दाधिगारो ८१०, पुक्खरवरदीवाधिगारो ८२१, मणुस्सखेत्ताधिगारो ८३५, जोइसमंडलाधिगारो ८३८, माणुस्सोत्तरपवताधिगारो ८३६, चंदादीणं उबवन्नाधिगारो ८४२, पुक्खरोदसमुद्दाधिगारो ८४८, वरुणवरदीवाधिगारो ८५६, वरुणोदसमुद्दाधिगारो ८५६, खीरवरदीवाधिगारो ८६२, खीरवरसमुदाधिगारो ८६२, घयवरदीवाधिगारो ८६८, घयोदसमुद्दाधिगारो ८७१, खोदवरदीवाधिगारो ८७४, खोदोदसमुद्दाधिगारो ८७७, णंदिस्सरवरदीवाधिगारो ८८०, णंदिस्स रोदसमुद्दाधिगारो ९२५, अरुणादिदीवसमुद्दाधिगारो ६२७, दीवसमुद्दपरिमाणाधिगारो ६५३, लवणादिसमुद्द-उदयरसाधिगारो ६५५, समुद्देसु जीवाधिगारो ९६५, दीवसमुदाणं नामधेज्जादिअधिगारो ६७२, इंदियविसयाधिगारो ६७६, देवगति-पदं ९८८, देवविगुव्वणा-पदं ६६०, जोइसउद्देसओ REE, वेमाणियउद्देसओ पढमो १०३८, वेमाणियउद्देसओ बीओ १०५७ चउत्थी पंचविहपडिवत्ती सू० २५ पृ० ४७४ से ४७६ पंचमी छव्धिहपडिवत्ती सू० ६० पृ० ४७७ से ४८७ छट्ठी सत्तविहपडिवत्ती सू० १२ पृ० ४८८ से ४८६ सप्तमी अट्टविहपडिवत्ती पृ० ४६० से ४६१ अट्ठमी नवविहपडिवत्ती सू०५ पृ० ४६२ नवमी दसविहपडिवत्ती सू० २९३ पृ० ४६३ से ५१५ सू० २३ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत-निर्देशिका • • ये दोनों बिन्दु पाठ-पूर्ति के द्योतक हैं। पाठ-पूर्ति के प्रारम्भ में भरे बिन्दु और समापन्न में रिक्त बिन्दु ० का संकेत किया गया है । देखे, पृष्ठ ८, सू ८ ।' यह दो या उससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है। ० पाठ में संलग्न दिया गया एक बिन्दु अपूर्ण पाठ होने का सूचक है। देखें, पृष्ठ ३, पाठान्तर १२, पृ० ११६, सूत्र १४२ [?] कोष्ठकवर्ती प्रश्नचिह्न आदर्शों में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक है । देखें, पृ० २२, सूत्र ३२ x क्रोस पाठ नहीं होने का द्योतक है। देखें, पृ० ६ पाठान्तर ६ जाव आदि पर जो अंक है वे प्रति आधार स्थल के द्योतक है। जैसे-पृ०६, पाठान्तर १५ पृ० १०२ सूत्र ६६ पाठान्तर का अंक ६ पृ० ६७, सूत्र ४५, पाठान्तर का अंक ५ पृ० ११५, सूत्र १३६, पाठान्तर का अंक १४ पृ० ११६, सूत्र १४२, पाठान्तर का अंक २ पृ० १२५, सूत्र १२६, पादटिप्पणांक १,२,३ आदि सं० पा. संक्षिप्त पाठ नावृ० नायाधम्मकहाओ वृत्ति जं० पुवृ० जंबुद्दीवपण्णत्ती पुण्यसागरीयवृत्ति " शावृ० , , शान्तिचन्द्रीयवृत्ति , हीवृ० , , हीरविजयवृत्ति राय० ०० रायपसेणियं वृत्ति राय० सू० रायपसेणियं सूत्र ओ०सू० ओवाइयं सूत्र उत्त० उत्तरज्झयणाणि भ० भगवती पण्ण. पण्णवणा जी० जीवा जीवाजीवाभिगमे जंबु० जंबू० जंबुद्दीवपण्णत्ती पण्हा० पण्हावागरणं Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं चंपानयरी-वण्णग-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था-रिद्ध-स्थिमिय'-समिद्धा 'पमुइय-जणजाणवया आइण्ण-जण-मणूसा' हल-सयसहस्स-संकिट्ठ- विकिट्ठ-लट्ठपण्णत्त'-सेउसीमा कुक्कुड-संडेय-गाम-पउरा 'उच्छु-जव-सालिकलिया" गो-महिस-गवेलगप्पभूया' 'आयारवंत -चेइय-जुवइविविहसण्णिविट्ठबहुला" उक्कोडिय-गायगंठिभेयरभड"-तक्कर-खंडरक्खरहिया खेमा णिरुवद्दवा" सुभिक्खा वीसत्थसुहावासा" अणेगकोडि१. त्थमिय (क, ख, ग,)। फलितो भवति । २. पमुइयजणुज्जाणजणवया (वृपा)। ११. 'अरहंतचेइयजणवइविसण्णिविट्ठबहुला' इति ३. मणुस्सा (नावृ पत्र १)। पाठान्तरं प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्ती जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ते: ४. वियट्ठ (नावृ पत्र १); विगिट्ठ (जं० पुवृ पत्र पुवृ पत्र ३, हीवृ पत्र ८, इतिवृत्तिद्वयेपि ३); विअट्ठ (जं० हीवृ पत्र ८)। व्याख्यातमस्ति । 'सूवयागचित्तचेइयजूयचिइ५. वियलट्ठ (ग)। सण्णिविट्ठबहुला' इति पाठान्तरं प्रस्तुतसूत्रस्य ६. पण्णत्ता (क); पण्णत्त' त्ति योग्यीकृता वृत्तौ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ते: हीवृसङ्केतितायां वृत्ताबीजवपनस्य (वृ); सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तौ (पत्र वेव व्याख्यातमस्ति । रायपसेणइयवृत्ती २९३) अस्य पदस्य व्याख्या एवं उपलभ्यते- (पृ० ४)-आयारवंत-चेइय-जुवइविसिट्ठप्रज्ञया-विशिष्टकर्मविषयबुद्ध्या आप्ते—प्राप्ते सण्णिविटूबहला' इति पाठो व्याख्यातोस्तिअतीव सुष्ठु परिकम्मिते इति भावः । आकारवन्ति सुन्दराकारानि चैत्यानि युवतीनां ७. कुंकुड (ख)। च पण्यतरुणीनामिति भावः, विशिष्टानि ८. 'सालियकलिया (क); उच्छुजवसालिमालि- सन्निविष्टानि, सन्निवेशपाटका इति भावः, णीया (वृपा); रायपसेण इयवृत्तौ एष पाठो बहुलानि बहूनि यस्यां सा तथा। नास्ति व्याख्यातः । १२. भेयय (क, ग,); गाहगंठिभेयय (वृपा)। ६. गवेलप्पभूया (क)। १३. रायपसेणइयवृत्तौ (पृ० ४) एतत्पदं नास्ति १०. 'आकारवन्ति सुन्दराकाराणि, आकारचित्राणि व्याख्यातम् । वा' इति वृत्तिव्याख्यानात् 'आयारवंत' इति १४. निरुवदुया (ख, ग, नावृ)। मूलपाठः, 'आयारचित्त' इति पाठभेदश्च १५. प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ ज्ञाताधर्मकथायाः वृत्ती Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं कोडुंबियाइण्ण'-णिव्वुयसुहा नड-णट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबग'-कहग-पवग-लासगआइक्खग-लंख-मंख-तूणइल्ल-तुंबवीणिय-अणेगतालायराणुचरिया आरामुज्जाण-अगडतलाग-दीहिय-वप्पिणि' गुणोववेया उव्विद्ध-विउल-गंभीर-खायफलिहा चक्क-गय-मुसुंढि-- ओरोह-सयग्घि-जमलकवाड-घणदुप्पवेसा धणुकुडिलवंकपागारपरिक्खित्ता कविसीसगवट्टरइय-संठियविरायमाणा अट्टालय-चरिय-दार-गोपुर-तोरण-उण्णय -सुविभत्तरायमग्गा छेयायरिय-रइय-दढफलिह-इंदकीला विवणि-वणियछित्त-सिप्पियाइण्ण-णिव्वुयसुहा 'सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-पणियावण-विविहवत्थुपरिमंडिया" सुरम्मा नरवइ-पविइण्ण-महिवइपहा अणेगवरतुरग-मत्तकुंजर-रहपहकर-सीय-संदमाणियाइण्ण-जाण-जुग्गा विमउल-णवणलिणि-सोभियजला ‘पंडुरवर-भवण-सण्णिम हिया९ उत्ताणगनयण-पेच्छणिज्जा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ पुण्णभद्दचेइ य-वण्णग-पदं २. तीसे णं चंपाए णयरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए पुण्णभद्दे नामं चेइए होत्था--चिराईए" पुव्वपुरिस-पण्णत्ते पोराणे" सद्दिए कित्तिए" णाए सच्छत्ते सज्झए जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः हीरविजयवृत्ती च पाषण्डिनां भिधीयते तत्र च छेकशिल्पिकाकीर्णेति गहस्थानां च' इति व्याख्यागतं विद्यते । जम्ब- व्याख्येयम् (व) । द्वीपप्रज्ञप्तेः पुण्यसागरवृत्तौ तु 'पासंडिगिहत्थ- ८. निवुयसुहा (ग)। वीसत्थसुहावासा' इति मूलपाठः उल्लिखि- ६. 'विविहवेसपरिमंडिया (ग); विविहवसुपरितोस्ति । सुहवासा (क)। मंडिया (रायद पृ० ६, जं० पूर्व पत्र ४, हीव १. कोडंबियाइण्ण (क, ग)। पत्र); पुस्तकान्तरेधीयते-सिंघाडगतिग२. विलंबय (ग)। चउक्कचच्चरचउम्मुहमहापहपहेसु पणियावण३. वप्पिण (क, ग, नाव, जं पुवृ, शावृ)। विविहवेसपरिमंडिया (वृ)। ४. उप अप इत इत्येतस्य शब्दत्रयस्य स्थाने १०. पवरकर (ग)। शकन्ध्वादिदर्शनादकारलोपे उपपेतेति भवति ११. रायपसेणइयवृत्तौ 'पंडुरवरभवणपंतिमहिया' (व) । अतोने सर्वेषु प्रयुक्तादर्गेषु 'नंदणवण- इति पाठो लिखितोस्ति । सन्निभप्पगासा' इति पाठो दृश्यते । जम्बूद्वीप- १२. उत्ताणनयण (क, ख, ग, नावृ पत्र ३)। प्रज्ञप्तेः हीरविजयवृत्तावपि एष लभ्यते, प्रस्तुत- १३. चिराइए (ग); चिर:-चिरकालः आदि:सूत्रस्य वृत्तौ अस्य पाठान्तरत्वेन उल्लेखोस्ति, निवेशो यस्य तच्चिरादिकम् (व); ज्ञाताधर्मज्ञाताधर्मकथाया वृत्तौ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः पुण्य- कथाया वृत्तौ (पत्र ४) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः सागरवत्तौ च नैष लभ्यते, तेनासौ पाठान्तरत्वेन पुण्यसागरवृत्तौ (पत्र ४) च 'चिरादिकं' इत्येव स्वीकृतः । व्याख्यातमस्ति, किन्तु तस्याः हीरविजयवृत्ती ५. मुसंढि (रायवृ पृ० ५, जं० पुवृ पत्र ४, ही (पत्र ११) 'चिरातीत' इत्यपि व्याख्यातपत्र ६)। मस्ति-चिरकाले भूतभूय: काले आदिनिवेशो ६. समुण्णय (ख, ग)। यस्य तच्चिरादिकं चिरकालोतीतो यस्मात्तच्चि७. वणिच्छित्त (ख, ग, नावृ पत्र ३, राय व पृ० रातीतं वा चिराचिरकालीनपर्यायप्राप्तानति ६); वाचनान्तरे छेत्तशब्दस्य स्थाने छेयशब्दो- क्रम्य गच्छतीति चिरातिगं वा चिरकालीनेष Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं सघंटे सपडागाइपडागमंडिए' सलोमहत्थे कयवेयदिए' लाउल्लोइय-महिए गोसीससरसरत्तचंदण-दद्दर-दिण्णपंचंगुलितले उवचियवंदणकलसे' वंदणघड-सुकय-तोरण-पडिदुवारदेसभाए आसत्तोसत्त-विउल-वट्ट-वग्धारिय-मल्लदामकलावे 'पंचवण्ण-सरससुरभिमुक्क"-पुप्फपुंजोवयारकलिए कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरक्क'-धूव-मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामे सुगंधवरगंधगंधिए गंधवट्टिभूए नड-णट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबग-पवग-कहगलासग-आइक्खग-लंख-मंख-तूणइल्ल-तुंबवीणिय-भुयग-मागहपरिगए बहुजण-जाणवयस्स विस्सुयकित्तिए बहुजणस्स आहस्स' आहुणिज्जे पाहुणिज्जे अच्चणिज्जे वंदणिज्जे नमंसणिज्जे पूयणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासणिज्जे दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सण्णिहियपाडिहेरे 'जाग-सहस्सभाग-पडिच्छए'९० बहुजणो अच्चेइ आगम्म पुण्णभदं" चेइयं पुण्णभई चेइयं ॥ वणसंड-वण्णग-पदं ३. से णं पुण्णभद्दे चेइए एक्केणं महया वससंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते ।। ४. से णं वणसंडे किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे णिद्धे गिद्धोभासे तिव्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए गिद्धे णिद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घणकडियकडच्छाए" रम्मे श्रेष्ठमित्यर्थः । स्वीकृतपाठे चिरातीत' मिति ७. सुगंधवरगंधिए (ख)। व्याख्यातमभिप्रेतमस्ति । ८. जणवयस्स (ग)। १४. पुराणे (नावृ पत्र ४, रायवृ पृ० ८, जं० पुवृ० ६. क्वचिदिदं न दृश्यते (वृ); जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः पत्र ५)। पुण्यसागरवृत्तावपि एतत्पदं नैव दृश्यते । १५. वित्तिए (क, ख, ग, वृ, नावृ); कित्तिए १०. जागभागदायसहस्सपडिच्छए (वृपा)। (वृपा); रायपसेणइयवृत्तावपि 'कित्तिए' इति ११,१२. पुण्णभद्द (क)। पदं लिखितमस्ति । १३. घणकडियकडिच्छाए (क, ख); कडच्छए १. सपडाए पडागाइपडागमंडिए (वृपा)। (ग); जीवाजीवाभिगमवृत्तौ (पत्र १८७) २. वयद्दीए (क); वयड्डिए (ख, जं० पुवृ घणकडितडच्छाए' इति पाठः मूलपाठरूपेण _पत्र ५)। 'घणकडियकडच्छाए' इति च पाठान्तररूपेण ३. बहुष्वादशेषु 'उवचियचंदणकलसे' इत्यपि पाठो व्याख्यातोस्ति-इह शरीरस्य मध्यभागे कटिदृश्यते किन्तु 'वंदण' स्थाने 'चंदण' इति पाठो स्ततोन्यस्यापिमध्यभागः कटिरिव कटिरित्युजात: वृत्तौ वन्दनकलशा: माङ्गल्यघटाः इति च्यते, कटिस्तटमिव कटितट धना अन्यान्यव्याख्यातमस्ति, अनेन 'वंदणकलसे' इत्येव पाठः शाखानु प्रवेशतो निबिडा कटितटे-मध्यभागे सिद्धयति । छाया यस्य स घनकटितटच्छायः, मध्यभागे ४. पंचविहसरिस' (क); ज्ञाताधर्मकथायाः वृत्ती निबिडतरच्छाय इत्यर्थः, क्वचित्पाठ: 'घनकडि (पत्र ४) 'सरस' इति पदं व्याख्यातं नैव यकडच्छाए' इति, तत्रायमर्थः-कट: सजातोदृश्यते। स्येति कटितः कटान्तरेणोपरि आवत इत्यर्थः ५. तुरुक्क (नावृ पत्र ४, जं० पुवृ पत्र ५) कटितश्चासौ कटश्च कटितकटः घना-निबिडा ६. मघत (क, ख)। कटितकटस्येवाधोभूमौ छाया यस्य स धन Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं महामेहनिकुरंवभूए॥ ५. से' णं पायवे मूलमंते कंदमंते खंधमंते तयामते सालमंते पवालमंते पत्तमंते पुप्फमते फलमंते बीयमंते' अणुपुव्व-सुजाय-रुइल-वट्टभावपरिणए ‘एक्कखंधी अणेगसाला अणेगसाह-प्पसाह-विडिमे अणेगनरवाम-सुप्पसारिय-अगेज्झ-घण-विउल-बद्ध [वट्ट ?] कटितकटच्छायः। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ (पत्र २८) हीरविजयवृत्तौ (पत्र १२) चापि एवमेवास्ति । १. निकुरुंबभूए (जं० ही पत्र १२) । २. अभयदेवसूरिणा प्रस्तुतसूत्रस्यवृत्तौ ज्ञाताधर्मकथायाः वृत्तौ (पत्र ६) च ते णं पायवा, पिडिम गीहारिम' इति सूत्रद्वयं बहुवचनान्तं सुय-बरहिण' इति सूत्रं एकवचनान्तं व्याख्यातमस्ति । मलयगिरिसूरिणा जीवाजीवाभिगमवृत्तौ (पत्र १८७) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ (पत्र २६) च त्रीण्यपिसूत्राणि बहुवचनान्तानि व्याख्यातानि सन्ति । अभयदेवसूरिणा प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ वाचनान्तरस्य उल्लेख: कृतोस्ति-एतान्येव वक्षविशेषणानि वनषण्डविशेषणतया वाचनान्तरेऽधीतानि । एतस्य वाचनान्तरस्याधारेण त्रिष्वपि सूत्रषु एकवचनान्त: पाठः स्वीकृतः । आदर्शगतः पाठ एवमस्ति-ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंधमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंत्तो पुप्फमंतो फलमंतो बीयमंतो अणपुव्व-सुजाय-रुइल-वट्टभावपरिणया अणगसाह-प्पसाह-विडिमा अणेगनरवाम-सुप्पसारिय-अगेज्म-घण-विउल-बद्ध-(वट ?) खंधा अच्छिद्रपत्ता अविरलपत्ता अवाईणपत्ता अणइइपत्ता निद्धय-जरढ-पंडपत्ता णवहरिय-भिसंत-पत्तभारंधयोरगंभीरदरिसणिज्जा उवणिग्गय-णव-तरुण-पत्त-पल्लव-कोमलउज्जलचलंतकिसलय-सुकुमालपवाल सोहियवरंकुरग्गसिहरा णिच्चं कुसुमिया णिच्चं माइया णिच्चं लवइया णिच्चं थवइया णिच्चं गुलइया णिच्चं गोच्छिया णिच्चं जमलिया णिच्च जुवलिया णिच्चं विणमिया णिच्चं पणमिया (णिच्चं सुविभत्त-पिडि-मंजरि-वडेंसग-धरा ? ) णिच्चं कुसुमिय-माइय-लवइय-थवइय-गुलइय-गोच्छिय-जमलियजवलिय-विणमिय-पणमिय-सुविभत-पिडि-मंजरि-वडेसंगधरा । पिडिम-णीहारिमं सुगंधि सुह-सुरभि-मणहरं च महया गंधद्धणि मुयंता णाणाविहगुच्छगुम्ममंडवगघरगसुहसे उके उबहुला अणेगरह-जाण-जुग्ग-सिविय-पविमोयणा सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। ३. 'हरियमंता' इति क्वचिद् दृश्यते (व)। ४. अणुपुचि (ग, राय वृ० १०) ५. 'क' प्रतौ 'एक्कखंधा अणेगसाला' 'ग' प्रतौ 'एक्कखंधा' इति पाठभेदाः लभ्यन्ते । वृत्तौ एतत्पाठद्वयमपि नास्ति व्याख्यातम् । ज्ञाताधर्मकथाया वृत्तावपि (पत्र ५) नानयोख्यिा विद्यते । रायपसेणइय वृत्तौ (पृ० १०) जीवाजीवाभिगमवृत्तौ (पत्र १८७) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ (पत्र २६) च 'एगखंधी' इति पाठो व्याख्यातोस्ति–ते पादपाः प्रत्येकमेकस्कन्धाः, प्राकृते चास्य स्त्रीत्वमिति एगक्खंधी। ६. ज्ञाताधर्मकथायाः वत्तौ (पत्र ५) अभयदेवसुरिणा प्रस्तुतपाठो व्याख्यातस्तत्र 'वट' पदमेव व्याख्यात. मस्ति-विपुलो विस्तीर्णो वृत्तश्च स्कन्धो येषां ते तथा मलयगिरिणा जीवाजीवाभिगमस्य वृत्तौ (पत्र १८७) रायपसेणइयवृत्तौ (पृ० १३) च 'वृत्तस्कन्धा' इति व्याख्यातमस्ति । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ (पत्र २६) 'बद्ध वृत्त' इति पदद्वयमपि नास्ति व्याख्यातम् । Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं खंधे' अच्छिद्दपत्ते अविरलपत्ते अवाईणपत्ते अणईइपत्ते' निद्धूय'- जरढ- पंडुपत्त - णवहरियभिसंत-पत्तभारंधयार-गंभीरदरिसणिज्जे उवणिग्गय' - णव तरुण पत्त-पल्लव- कोमल उज्जलचलंतकिसलय-सुकुमालपवाल-सोहियवरंकुरग्गसिहरे णिच्चं कुसुमिए णिच्चं माइए' णिच्च लवइए णिच्च थवइए णिच्चं गुलइए णिच्चं गोच्छिए णिच्चं जमलिए णिच्च जुबलिए णिच्चं विणमिए णिच्चं पणमिए [ णिच्चं सुविभत्त-'पिंडि-मंजरि "-वडेंसगधरे ? ] ' णिच्च कुसुमिय-माइय- लवइय-थव इय - गुलइय-गोच्छिय- जमलिय जुवलिय विणमिय- पणमियसुविभत्त-पिंडि' - मंजरि-वडेंसगधरे ॥ ६. सुय-वरहिण-मयणसाल - कोइल कोहंगक" भिंगारग" - कोंडलग " - जीवंजीवग-णंदीमुहafar - पिंगलवखग - कारंडक * - चक्कवाय- कलहंस-सारस- अणेगसउणगणमिहुणविरइयसद्दुण्णइयमहुरसरणाइए सुरम् संपिंडियदरिय भमर - महुयरिपहकर परिलितमत्तछप्पयकुसुमासवलोल-महुरगुमगुमंतगुंजंतदेसभाए 'अब्भितरपुप्फफले बाहिर - पत्तोच्छणे पत्ते ह यहि ओच्छन्न- लिच्छन्ने" 'साउफले निरोयए अकंटए" 'णाणाविहगुच्छ-गुम्म१. वाचनान्तरेऽत्रस्थानेधिकपदान्येवं दृश्यते- जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः शान्तिचन्द्रीयवृत्तावपि ( पत्र २५) एषोस्ति व्याख्यातः, तत्र औपपतिकस्य उल्लेख विद्यते - औपपातिकादौ तु 'सुविभत्तपिडिमंजरीव डिसगधराओ' इति पाठः । संकलितपाठे एष पाठो विद्यते, तेन पृथक् पाठेपि एष युक्तोस्ति । पाईण पडीणाययसाला उदी - दाहिणविच्छिण्णा ओणय-नय- पणयविप्पहाइयओलंबपलंबलंबसाहप्पसाहविडिमा अवाईणपत्ता अणुइणपत्ता | २. अणईयपत्ता ( ख, ग ) ; अणीइपत्ता ( जं० शावृ पत्र २९) । ६. पिंड ( ग ) । ३. निद्धय ( ख ) ; निद्धय ( ग ) । ४. औपपातिकस्य अप्रयुक्तादर्शे १०. कोभंगक ( औपपातिकवृत्ति हस्तलिखित ) ; कोरक ( जी० ३।२७५, रायवृ० पृ० १५, जं० शावृ० पत्र ३०) । ११. भिंगारक (क, ख ); भिंगार ( ग ) । 'पंडुरपत्ता' इत्यपि पाठो लभ्यते । ५. उबविणिग्गय ( राय वृ०पृ० १४, जी० ३।२७४, पत्र १३ ) । जं० शावृ पत्र २६, ही ६. मुकुलिता (राय वृ० पृ० १५, जीवॄ पत्र १८२ जं० शावृ० पत्र २५ ); मुकुलिता मयूरिता ( जं० ही ० पत्र १३) । ७. रायपरेणइयवृत्ती ( पृ० १५) जीवाजीवाभिगम वृत्तौ ( पत्र १८२ ) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः शान्तिचन्द्रीयवृत्तौ ( पत्र २५) च 'पडि-मंजरि' इति पाठो व्याख्यातोस्ति । ८. कोष्ठकान्तर्वर्ती पाठ: आदर्शोषु नोपलभ्यते, वृत्तावपि नास्ति व्याख्यातः, किन्तु रायपसे - इयवृत्ती ( पृ० १५) जीवाजीवाभिगमवृत्तौ ( पत्र १८२ ) च एष पाठो व्याख्यातोस्ति, ७ १२. कडिलका ( ख ) ; कोंडल (ग) 1 १३. कारंड ( क, ख ); कारंडग ( ग ) । १४. एतानि त्रिण्यपि क्वचिद् वृक्षाणां विशेषणानि दृश्यन्ते ( वृ) । १५. निरोया अकंटया साउफला निद्धफला (जी० ३।२७५); रायपसेणइयवृत्ता ( पृ० १६ ) वपि एतानि चत्वारि पदानि एतेनैव क्रमेण व्याख्यातानि सन्ति । नीरोगकाः .......अकण्टकाः.... स्वादुफला, स्निग्धफला इत्यपि क्वचित् ( जं० शावृ पत्र ३० ) ; साउफले मिट्टफले निरोयए ( नावृ० पत्र ६ ); प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ 'साउफले' त्ति मिष्ठफलः इति व्याख्यातमस्ति । Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं मंडवगसोहिए" 'विचित्तसुहकेउभूए" वावी-पुक्खरिणी'-दीहियासु य सुनिवेसियरम्मजालहरए॥ ७. 'पिंडिम-णीहारिमं सुगंधि" सुह-सुरभि-मणहरं च महया गंधद्धणि मुयंते णाणाविहगुच्छगुम्ममंडवगघरग-सुहसेउकेउबहुले 'अणेगरह-जाण-जुग्ग-सिविय-पविमोयणे सुरम्मे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ असोगपायव-वण्णग-पदं ८. तस्स णं वणसंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एक्के असोगवरपायवे पण्णत्तेकुस-विकुस-विसुद्ध-रुक्खमूले मूलमंते कंदमंते खंधमंते तयामते सालमंते पवालमते पत्तमंते पुप्फमते फलमंते बीयमंते अणुपुव्व-सुजाय-रुइल-वट्टभावपरिणए अणेगसाह-प्पसाह-विडिमे अणेगनरवाम-सुप्पसारिय-अग्गेज्झ-घण-विउल-बद्ध [वट्ट ? ] खंधे अच्छिद्दपत्ते अविरलपत्ते अवाईणपत्ते अणईइपत्ते निळ्य-जरढ-पंडुपत्ते णवहरियभिसंत-पत्तभारंधयार-गंभीरदरिसणिज्जे उवणिग्गय-णव-तरुण-पत्त-पल्लव-कोमल उज्जलचलंतकिसलय-सुकुमालपवालसोहियवरंकरग्गसिहरे णिच्चं कसमिए णिच्चं माइए णिच्चं लवडा णिच्चं थवइए णिच्चं गुलइए णिच्चं गोच्छिए णिच्चं जमलिए णिच्च जुवलिए णिच्च विणमिए णिच्चं पणमिए [णिच्चं सुविभत्त-पिंडि-मंजरि-वडेंसगधरे ?] णिच्चं कुसुमिय-माइय-लवइय-थवइयगुलइय-गोच्छिय-जमलिय-जुवलिय-विणमिय-पणमिय-सुविभत्त-पिंडि-मंजरि-वडसगधरे। १. मंडवगरम्मसोहिए (ग); क्वचित् 'णाणाविह- रीए णाणासउणगणमिहुणसुमहुरकण्णसुहपलत्त गुच्छगुम्ममंडवगरम्मसोहिए' रम्मेत्ति क्वचिन्न- सद्दमहुरे (वृ)। रायपसेणइयवृत्तौ (पृ० १०) दृश्यते (वृ)। एष पाठो ग्रन्थान्तरप्रसिद्धपाठरूपेण व्याख्यातो २. विचित्तसुहसेउकेउबहुले (वृपा); विचित्तसुह- दृश्यते-'दूरुग्ग्यकंदमूलवट्टलसंधि - असिलिट्ठ के उबहुले (जी० ३।२७५; जं० शावृपा० पत्र धणमसिणसिणिद्धअणुपुव्विसुजायणिरुवहतोव्वि द्धपवरखंधी अणेगणरपवरभुयअगेज्झे कुमुमभर३. पुक्खरणी (क, ख, ग)। समोणमंतपत्तलविसालसाले महुकरिभमरगण४. पिंडिमं णीहारिमं सुगंधि (क); पिडिमणीहा- गुमुगुमाइयणिलितउडेतसस्सिरीए णाणास उणरिमसुगंधि (ख, ग)। गणमिहुणसुमहुरकण्णसुहपलत्तसद्दमहुरे कुसवि५. गंधद्धृणिं (ख, ग)। कुसविसुद्धरुक्खमूले पासाइए दरिसणिज्जे ६. सुहसे उकेउबहुला (रायवृ० पृ० १७, जी० अभिरूवे पडिरूवे ।' अस्य वाचनान्तरस्य ३।२७६)। रायपसेणियवत्तिगतपाठस्य च अध्ययनेन एतत ७. अणेगसगड - रह-जाण-जुग्ग-सीया-संदमाणिय- स्पष्टं भवति-लिपिदोषेण पाठानां परिवर्तनं पडिमोयणा (जी० ३।२७६)। जातम्, वृत्तिकारैरपि यादृशाः पाठा लब्धास्ता८. अशोकपादपवर्णके क्वचिदिदमधिकमधीयते दृशा व्याख्याताः । उदाहरणरूपेण चिन्हाङ्कितदूरोवगयकंदमूलवट्टलट्ठसंठियसिलिट्ठधणमसिण- पाठानां वाचनान्तरपाठस्तुलना कार्या। निद्धजायनिरुवहउन्विद्धपवरखंधी अणेगणरप- ६. सं० पा०—कंदमंते जाव पविमोयणे । वरभयागेज्झे कुसुमभरसमोणमंतपत्तलविसाले १०,११. द्रष्टव्यं पञ्चमसूत्रस्य पादटिप्पणम् । महकरिभमरगणगुमगुमाइयनिलितउडितसस्सि Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पय रणं पिंडिम- नीहारिमं सुगंधि सुह-सुरभि मणहरं च महया गंधद्धणि मुयंते णाणाविहगुच्छगुम्म मंडवगघरग- सुहसेउके उबहुले अणेग रह जाण - जुग्ग- सिविय' - पविमोयणे' सुरम्मे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरू परूिवे || ६. से णं असोगवरपायवे अण्णेहि बहूहिं तिलएहिं लउएहिं छत्तोवेहिं सिरीसेहि सत्तिवण्णेहिं दहिवण्णेहिं लोद्धेहि धवेहि चंदणेहिं अज्जुणेहि णीवेहिं कुडएहि कलंबेहि फणसेहि दाडिमेहि' सालेहि तालेहि तमालेहि पियएहि पियगूहिं पुरोवगेहि राय रुक्खेहि दिक्aहिं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते । १०. . ते णं तिलया लउया' 'छत्तोवा सिरीसा सत्तिवण्णा दहिवण्णा लोद्धा धवा चंदा अज्जुणा णीवा कुडया कलंबा फणसा दाडिमा साला ताला तमाला पियया पियंगू पुरोवगा रायरुक्खा मंदिरुक्खा कुस - विकुस - विसुद्ध - रुक्खमूला मूलमंतो कंदमंतो' जाव" • णिच्चं कुसुमिय-माइय-लवइय-थवइय- गुलइय-गोच्छिय - जमलिय- जुवलिय- विणमिय पणमिय-सुविभत्त-पिंडि-मंजरि-वडेंसगधरा । पिंडिम-णीहारिमं सुगंधि सुह-सुरभि मणहरं च महया गंधद्धणि मुयंता णाणाविहगुच्छ गुम्ममंडवगघरग- सुहसे उकेउबहुला अणेगरह - जाण - जुग्ग - सिविय-पविमोयणा " सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ १ ११. ते णं तिलया लउया जाव" मंदिरुक्खा अण्णाहिं" बहूहिं पउमलयाहि णागलयाहि असोगलयाहिं चंपगलयाहि चूयलयाहि वणलयाहि वासंतियलयाहिं अइमुत्तयलयाहिं कुंदलयाहिं सामलयाहि सव्वओ समता संपरिक्खित्ता । ताओ णं पउमलयाओ 'जाव सामलयाओ"" णिच्चं कुसुमियाओ जाव" वडेंसगधराओ" पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ ॥ १. परिमोयणे ( ख ) । २. अण्णेहिय ( ग ) । ३. बउएहिं (क); बकुलैः (वृ.) । ४. सत्तवण्णेहिं (रायवृ० पृ० १२) । ५. कलंबेहि सव्वेहिं (क, ख ) ; सव्वेहिं (ग, वृ); जीवाजीवाभिगमे ( ३।३८८) तद्वृत्तौ च तथा रायसेइयवृत्ता ( पृ० १२) वुद्धृते प्रस्तुतसूत्रपाठे 'सब्वेहि' एतत्पदं नैव दृश्यते । ६. X ( क, ख ) । ७. रायपसेणियवृत्ता ( पृ० १२) बुद्ध ते पाठे एतत्पदं नैव दृश्यते । जीवाजीवाभिगमे ( ३।३८८) च अस्य स्थाने 'पारावय' इति पदं लभ्यते । ८. सं० पा०लउया जाव णंदिरुक्खा । ६. सं० पा० - कंदमंतो एएसि वण्णओ भाणियो जाव सिविय । १०. ओ० सू० ५ । ११. परिमोयणा ( ख, ग ) । १२. ओ० सू० १० । १३. अण्णेहिं (क, ग); अण्णेहिय ( ख ) । १४ X ( क, ख, ग ) ; रायपसेणइयवृत्ता ( पृ० १८ ) वुद्धते औपपातिकपाठे चिह्नाङ्कितः पाठो विद्यते । तदाधारेणासौ मूले स्वीकृतः, उक्त क्रमेणाप्यसौ युज्यते । जीवाजीवाभिगमे ( ३।३६० ) पि एतत्संवादी पाठो दृश्यते । १५. ओ० सू० ५ । १६. वडियधयो (क, ग ); वडिसयधारीओ ( ख ) । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं १२. तस्स' णं असोगवरपायवस्स उवरि बहवे अट्ठ अट्ठ मंगलगा पण्णत्ता, तं जहा -- सोवत्थिय - सिरिवच्छ- नंदियावत्त' - वद्धमाणग-भद्दासण-कलस-मच्छ - दप्पणा रयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्ठा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पा समीरिया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा । सव्व तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरि बहवे किण्हचामरज्झया नीलचामरज्झया लोहियचामरज्झया हालिचामरज्झया सुक्किलचामरज्झया अच्छा सहा रुप्पपट्टा वइरदंडा जलयामल गंधिया सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा । तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरि बहवे छत्ताइछत्ता पडागाइपडागा घंटाजुयला चामरजुयला उप्पलहत्थगा पउमहत्थगा कुमुयहत्थगा' नलिणहत्थगा सुभगहत्थगा सोगंधियहत्थगा पुंडरीयहत्थगा महापुंडरीयहत्थगा सयपत्तहत्थगा सहस्सपत्तहत्थगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ पुढविसिलापट्ट्य- वण्णग-पदं १३. तस्स णं असोगवरपायवस्स हेट्ठा 'ईसि खंध * - समल्लीणे", एत्थ णं महं एक्के पुढविसिलापट्टए पण्णत्ते - विक्खभायाम' - उस्सेह - सुप्पमाणे किण्हे 'अंजणग-वाण- कुवलय" १. वृत्तिकृता एतत् सूत्रं वाचनान्तरत्वेन उट्टङ्कितम् - इह लतावर्णनान्तरमशोकवर्णकं पुस्तकान्तरे इदमधिकमधीयते । रायपसेणइयसूत्रे ( ३, ४) ओवाइयगमेणं इति संक्षिप्तपाठोस्ति तस्य वृत्तौ मलयगिरिणा एतत्पूर्ण सूत्रं व्याख्यातमस्ति । प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ अभयदेवसूरिणा ये ये पाठाः वाचनान्तरत्वेन उट्टङ्कितास्ते भगवत्यादिसूत्राणां वृत्तौ मूलपाठत्वेन व्याख्याताः सन्ति । तेन ज्ञायते अभयदेवसूरिणा ये आदर्शाः प्रमाणीकृतास्ते मूलपाठरूपेण अन्ये च वाचनान्तररूपेण उट्टङ्किताः । २. क्वचिद् 'नंदावत्त' इति पाठ: ( रायवृ पृ० १६) । ३. 'कुसुमहत्थय' त्ति पाठान्तरं ( वृ ) । ४. खंधी ( क ) । ५. मलयगिरिणा रायपसेणइयवृत्तौ ( पृ० २२ ) 'ईसि खंध - समल्लीणे' इति पाठ: 'पुढविसिलापट्टए पण्णत्ते' इति पाठानन्तरं व्याख्यातः - एको महान् पृथ्वीसिलापट्टक प्रज्ञप्तः, कथम्भूत इत्याह 'ईसि खंध - समल्लीणे' इत्यादि, इह स्कन्धः स्थुडमित्युच्यते तस्याशोकव रपादपस्य यत् ६. अतः पाठ: प्राय: स्थुडं तत् ईषद् - मनाक् सम्यग्लीनस्तदासन्न इत्यर्थः । प्रस्तुतसूत्रे अभयदेवसूरिणा पूर्वमेव व्याख्यात:-- 'ईसि खंध- समल्लीणे' मनाक् स्कन्धासन्न इत्यर्थः । ' एत्थ णं महं एक्के' इत्यत्र 'एत्थ णं' ति शब्दः अशोकवरपादपस्य यदधोत्रेत्येवं सम्बन्धनीयः । रायपसेणइय सूत्रस्य समायोजना अधिकं सङ्गतास्ति । रायपसेणइयवृती व्याख्यातः स्वीकृतपाठाद्भिन्नोस्ति । वाचनान्त रपाठेन तस्य साम्यमस्ति - विक्खंभायामसुप्पमाणे किण्हे अंजणगघणकुवलयहल हरकोसेज्जसरिसो आगासके सकज्जलकक्केय इंदनीलअयसिकुसुमपगासे भिगंजणभंगभेयरिट्ठगनीलगुलियगवलाइरेगे भमरनिकुरंबभूए जंबूफल असणकुसुमबंधनीलुप्पलपत्तनिक रमरगयासासगनयणकीयासिवणे णिद्धे घणे अज्भुसिरे रूवगपडिरूवगदरिस णिज्जे आयंसत लोवमे सुरम्मे सीहासणसंठिए सुरूवे मुत्ताजालखइयंत कम्मे आइणगरूय-बुर-नवणीय तुलफासे सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिवे । ७. अंजणवाणकुवलयघणकुवलय ( क ) । Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोस रण-पय रण हलधरकोसेज्जागास-केस- कज्जलंगी खंजण- सिंगभेद - रिट्ठय- जंबूफल - असणग-सणबंधणणी लुप्पलपत्तनिकर-अयसिकुसुमप्पगासे मरगय-मसार कलित्त-णयणकीयरासिवणे' गिद्ध - घणे सिरे आयंसय-तलोवमे सुरम्मे ईहामिय-उसभ तुरग णर-मगर- विहग वालगकिण्णर- रुरु- सरभ- चमर-कुंजर' - वणलय - पउमलयभत्तिचित्ते' आईणग- रूय - बूर-णवणीयतू फासे सीहा सणसंठिए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे परूिवे ' ।। कुणियराय वण्णग-पदं १४. तत्थ णं चंपाए णयरीए कूणिए णामं राया परिवसइ - महयाहिमवंत-महंतमलय-मंदर-महिंदसारे अच्चंत विसुद्ध - दीहराय -कुल-वंस सुप्पसूए णिरंतरं रायलक्खणविराइयंगमंगे 'बहुजण - बहुमाण- पूइए" सव्वगुण-समिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धा हिसित्ते माउपिउ सुजादयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मणुस्सिदे जणवयपिया जणवयपाले जणवयपुरोहिए सेउकरें केउकरे णरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्धे पुरिसासीविसे पुरिसपुंडरी पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिण्ण- विउल-भवण-सयणासणजाण - वाहणाणे बहुधण - बहुजायरूवरयए आओग-पओग-संपत्ते विच्छड्डिय-परबहुदासी दास-गो-महिस - गवेल गप्पभूए पडिपुण्ण - जंत कोस- कोट्ठागाराउधागा रे बलवं दुब्बलपच्चामित्ते ओहयकंटयं निहयकंटयं मलियकंटयं उद्धियकंटयं अकंट' ओहयसत्तुं हियसत्तुं मलियसत्तुं उद्धियसत्तुं निज्जियसत्तुं पराइयसत्तुं ववगयदुभिक्खं मारिभय-विप्पक्कं मं सिवं सुभिक्खं 'पसंत- डिव- डमरं "" रज्जं पसासेमाणे " विहरइ ॥ धारिणी देवी वण्णग-पदं १५. तस्स णं कोणियस्स रण्णो धारिणी णामं देवी होत्था - सुकुमाल - पाणिपाया 'अहीण - पडिपुण-पंचिदियसरीरा लक्खण वंजण- गुणोववेया माणुम्माणप्पमाण- पडिपुण्णसुजाय - सव्वंगसुंदरंगी ससिसोमाकार " कंत पिय- दंसणा सुरूवा करयल-परिमिय-पसत्थतिवली - वलिय- मज्झा 'कुंडलुल्लिहिय-गंडलेहा" कोमुइ" - रयणियर विमल - पडिपुण्ण- सोम १. रासिदित्ते ( ख ) । २. × (वृ) । ३. भित्तिचित्ते ( वृ) । ११ ६. X (व) । ७. पुरिसवरपुंडरीए (ख, रायवृ० पृ० २५) । उहघरे (रायवू० पृ० २६) । 8. अप्पडिकटयं ( रायवृ० पृ० २६) । ८. ४. रुय (ख, वृ ) । १० 'पसंता हिय डमरं' ति क्वचित्पाठः (वृ) ११. पसाहेमाणे (क, ग, वृपा ) । ५. वाचनान्तरे पुनः सिलापट्टकवर्णकः किञ्चिदन्यथा दृश्यते - अंजणगघणकुवलय हल हरकोसेज्जसरिसे आगासकेसकज्जलकक्केयणइंदणीलअय- १२. अहीणपंचिदियसरीरा (क); क्वचित्तु - सिकुसुमप्पगासे भिगंजण सिंगभेयरिट्ठगनीलगुलिया गवलाइ रेगभम रनिकुरंबभूए जंबूफलअसणकुसुम बंधन नीलुप्पलपत्तनिग रमरगयासासगनयणरासिवण्णे निद्धे घणे अज्भुसिरे रूवगपरुिवदरिस णिज्जे अहीणपुणपंचिदिसरा ( वृ ) । मुत्ताजालखइयंत कम्मे (वृ) । १३. सोम्माकार ( वृ) । १४. कुंडलल्लिहिय ( क ) ; कुंडलोल्लिखितपीन गंडलेखा (वृपा) । १५. कोमुई ( क ) ; कोमुईय ( ख ) ; सर्वासु प्रतिषु 'कोमुइ... सोमवयणा' अयं पाठः पूर्वं वर्तते, Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ ओवाइयं वयणा सिंगारागार - चारुवेसा संगय-गय- हसिय- भणिय 'विहिय-[चिट्ठिय' ?"] विलाससललिय-संलाव- णिउण-जुत्तोवयार-कुसला' 'सुंदरथण - जघण- वयण-कर-चरण- नयणलावण्ण विलास कलिया" पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा कोणिएण रण्णा भिसारपुत्ते 'सद्धि अणुरत्ता अविरत्ता इट्ठे सह-फरिस - रस- रूव-गंधे पंचविहे माणुस्साए कामभोए पच्चणुभवमाणी' विहरइ ॥ पवित्ति-वाउय-पदं १६. तस्स णं कोणियस्स' रण्णो एक्के पुरिसे विउल-कय-वित्तिए भगवओ पवित्तिवाउ भगवओ तद्देवसियं पवित्त णिवेदेइ || १७. तस्स णं पुरिसस्स बहवे अण्णे पुरिसा दिण्ण- भति-भत्त-वेयणा' भगवओ पवित्तिवाउया भगवओ तद्देवसियं पवित्त णिवेदेति ॥ सालाए १८. तेणं कालेणं तेणं समएणं कोणिए राया भिभसारपुत्ते' बाहिरियाए उवट्ठाणअणे गगणणायग-दंडणायग" - राईसर- तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय " -मंति- महामंतिगणग-दोवारिय-अमच्च - चेड - पीढमद्द - नगर-निगम - सेट्ठि - सेणावइ- सत्थवाह- दूय- संधिवालसद्धि संपरिवुडे विहरs || महावीर - वण्णग-पदं १६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे 'कुंडलुल्लि हियगंडलेहा' इति पाठ: पश्चात् वर्तते । १. वृत्तिकृता विहितं चेष्टितम्' इति व्याख्यातम् । ५१ सूत्रस्य वाचनान्तरे 'चेट्टिय' इति पदमुपलभ्यते । रायपसेणइयवत्ती ( पृ० २६ ) समुद्धृते पाठेपि 'चेट्ठिय' इति पदं दृश्यते, सम्भाव्यते अत्रापि प्राचीनलिप्यां विद्यमानं 'चिट्ठिय' इति पदं अर्वाचीन लिप्यां 'विहिय' मिति रूपे प्रावर्तितमभूत् । २. कुसला बिबोट्ठी ( क ) । ३. X ( क, ख, ग, वृ); क्वचिदिदमन्यद् दृश्यते - सुंदरथण - जघण वयण - कर-चरणनयण - लावणविलासकलिया ( वृ ) । ४. दशाश्रुतस्कंधस्य दशम्या दशाया द्वितीय सूत्रस्य व्याख्यायां वृत्तिकृता भिन्नपद्धतिकः पाठ: समुद्धृतः -- तस्य देवी समस्तान्तःपुरप्रधाना भार्या सकलगुणसमन्विता चेल्लणा नाम्नी तस्या वर्णको यथा औपपातिकनाम्नि ग्रंथेऽभिहितस्तथाभिधातव्यः, स चायं - 'सुकुमालपाणिपाया अहीण पडिपुणपंचेंद्रिय - सरीरा लक्खणवंजणगुणोववेया माणुम्माणपमाणपडिपुण्णसुजाय सव्वंगसुंदरगा' इत्यादि वर्णको वाच्यः जावत्ति यावत्करणात् 'चेल्लणाए सद्धि अणुरते अविरते इट्ठे सद्दफरिसे रसरूवगंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरई' इति पदकदम्बकपरिग्रहः विस्तरव्याख्या तूपपातिकानुसारेण वाच्या नेह विस्तरभिया प्रतन्यते । किन्तु चेल्लणायाः वर्णने नैष पाठः सङ्गच्छते । 'सेणिएणं सद्धि अणुरत्ता अविरत्ता' इत्यादिपाठपद्धतिः समीचीना भवेत् । ५. X (वृ) । ६. पच्चणुब्भवमाणी (क, ग) । ७. कुणियस्स ( क, ख ) । ८. वेदा (क) 1 ६. भंभसारपुत्ते ( क ); भिभिसारपुत्ते ( वृ) | १०. X ( क, ख, ग ) । ११. कोडंबिय (क, ख, ग ) । Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोस रण-पयरणं पुरिसोत्तमे पुरिससी पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए मग्गदए सरण - द जीवदए दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी अप्पडियवरनाणदंसणधरे विट्टछउमे' जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वष्णू सव्वदरिसी सिवमयल मरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुण रावत्तगं सिद्धिगइणामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे - भुयोग - भिंग - नेल- कज्जल- पहट्ठभमरगण णिद्ध-निकुरुंब- निचिय -कुंचिय- पयाहिणावत्तमुरिए दालिमपुप्फप्पगास तवणिज्जसरिस - निम्मल - सुणिद्ध' - केसंत-केस भूमी घण- निचियसुबद्ध- लक्खणुन्नय - कूडागारनिभ - पिंडियग्गसिरए छत्तागारुत्तिमंगदेसे णिव्वण-सम- लट्ठमट्ठ-चंदद्धसम- णिडाले उडुवइपडिपुण्ण-सोमवयणे अल्लीणपमाणजुत्तसवणे सुसवणे' पीणमंसल कवोल देसभाए 'आणामियचावरुइल- किण्हब्भराइ तणु-कसिण- णिद्धभमुहे" अवदालियपुंडरीयणय कोयासिय धवल-पत्तलच्छे गरुलायतउज्जु-तुंग- णासे ओयविय-सिल-प्पवालबिफल-सणिभाह रोट्ठे पंडुरससिसयल - विमलणिम्मल संख-गोक्खीर- फेण-कुंद- दगरयमुणा लिया- धवलदंतसेढी अखंडदंते अप्फुडियदंते अविरलदंते सुणिद्धदंते सुजायदंते एगदंतसेढी विव अगदंते हुयवहणिद्धंत धोय-तत्त- तवणिज्ज-रत्ततलतालुजीहे अवट्ठिय-सुविभत्तचित्तमंसू मंसलसंठिय-पसत्थ- सद्दूल - विउलहणुए चउरंगुल - सुप्पमाण-कंबुवर सरिसगीवे १. विट्टछउमे अरहा जिणे केवली सत्तहत्थुस्सेहे समचउरंस संठाणसंठिए वज्जरिसहनाराय संघणे अणुलोमवाउगे कंकग्गहणी कवोयपरिणामे सउणिपोसपिट्ठत रोरुपरिणए पउमुप्पलगंधसरिसनिस्सास सुरभिवयणे छवि निरायंकउत्तमपसत्यअ इसे यनिरुवमपले ( पाठान्तरेण - तले) जल्ल मल्लकलंक सेय रयदोस वज्जियस रीरनिरुवलेवे छाया उज्जोइयंगमंगे घणनिचियसुबद्धलक्खणुण्णयकूडागारनिभपिडियग्गसिरए सामलि वाचनान्तरेस्ति इति न स्पष्टं भवति । तथापि अधिकृत वाचना भुजमोचक शब्दादेव 'प्रतीयते' अन्यथा शरीरवर्णकविशेषणानां द्विरुक्तता स्यात् । प्रतिपाठावलोकनेनापि एतन्मतं समर्थितं भवति । वियट्टछउमे अरहा जिणे केवली जिणे जाणए तिष्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी सत्तहत्थुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहसंघयणे सरीरे निरुवलेवे छाया उज्जोइयंगमंगे जल्लमल्लकलंक सेय रहियसरीरे सिवमयल.... (क) । वियट्टछउ मे अरहा जिणे केवली जिणे जाणए तिने तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वष्णू सव्वदरिसी सत्तहत्थुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहना रायसंघयणे जल्लमल्लकलंक सेय रहियसरीरे सिवमयल .... ( ख ) । २. सिद्धि ( क ) । बोंडघणनिचियच्छो डियमिउविसयपसत्यसुहुमलक्खणसुगंधसुन्दरे.... (वृ) । वृत्तिकृता 'संपाविउकामे' इति पाठस्य व्याख्यानन्तरं लिखितमस्ति — 'जिणे जाणए' इत्यादि विशेषणानि क्वचिन्न दृश्यन्ते, दृश्यन्ते पुनरिमानि - अहं' त्ति ( वृत्ति पत्र २९ ) अत्र वृत्तिकृता न स्पष्टीकृतं वाचनान्तरे कियन्ति विशेषणानि दृश्यन्ते । 'भुयमोयग ' इति पाठस्य व्याख्यावसरे वृत्तिकृता लिखितम् - अधिकृतवाचनायां भुजमोचक शब्दादारभ्यवेदमधीयते ( 'दारभ्यचेद - मुद्रितवृत्ति) न सामलीत्यादि । किन्तु एतेन 'अरहा' इत्यतः प्रारभ्य सामलि" वाक्यांशपर्यन्तं पाठो १३ ३. × (क, ख ) । ४. वाचनान्तरे तु दृश्यते - 'आणामियचावरुइलकिण्हब्भराइसंठियसंगयआय यसुजायभमुए' (वृ) । Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं वरमहिस-वराह-सीह-सल-उसभ- नागवरप डिपुण्णविउलक्खंधे 'जुगसन्निभ- पीण - रइयपीवर - पउट्ठसंठिय' -सुसिलिट्ठ - विसिट्ठ-घण- थिर-सुबद्ध - संधि-पुरवर फलिह - वट्टियभुए' भुयगीसर- विउलभोग आयाण- पलिहउच्छूढ - दीहबाहू" रत्तत लोवइय-मउय-मंसल - सुजायलक्खणपसत्थ-अच्छिद्दजालपाणी पीवरकोमलवरंगुली ' आयंब - तंब - तलिण- सुइ रुइल- णिद्धणखे चंदपाणिलेहे सूरपाणिलेहे संखपाणिलेहे चक्कपाणिलेहे दिसासोत्थियपाणिलेहे 'चंद - सूर-संखचक्क- दिसासोत्थियपाणिलेहे" 'कणग-सिलायलुज्जल-पसत्थ- समतल उवचिय - विच्छिण्णपिहुलवच्छे सिरिवच्छंकियवच्छे' अकरंडुय-कणग-रुयय-निम्मल सुजाय-निरुवहयदेहधारी' सण्णयपासे संगयपासे सुंदरपासे सुजायपासे मियमाइय- पीण - रइय-पासे उज्जुय - सम-सहियजच्च तणु-कसिण- णिद्ध - आइज्ज - लडह-रमणिज्जरोमराई झस - विहग - सुजाय- पीण-कुच्छी 'झसोयरे सुइकरणे "" गंगावत्तग-पयाहिणावत्त-तरंगभंगुर - रविकिरणतरुण-बोहिय-अकोसायंतपउम-गंभीर - वियडणाभे" साहय - सोणंद मुसल दप्पण-णिक रियवर कण गच्छरुसरिस-वरवइरवलियमज्झे पमुइयवर-तुरंग-सीहवर" - वट्टियकडी 'वरतुरग-सुजाय-सुगुज्झदेसे"" आइण्णउव्व- णिरुवलेवे वरवारण-तुल्ल - विक्कम विलसियगई गयससण-सुजाय-सन्निभोरू सामुग्ग"निमग्ग- गूढजाणू एणी - कुरुविंद" - वत्त- वट्टाणुपुव्वजंघे संठिय-सुसिलिट्ठ "- गूढगुप्फे सुप्पइट्ठियकुम्मचारुचलणे अणुपुव्वसुसंहयंगुलीए " उण्णय- तणु- तंब - णिद्धणवखे रत्तुप्पलपत्त-मउयसुकुमाल-कोमलतले अट्ठसहस्सव रपुरिसलक्खणधरे" आगासगएणं चक्केणं, आगास गएणं १०. सोयरे सुइकरणे पउमवियडणाभे ( क ) ; झसोदरपउमवियडणाभे ( वृपा ) । ११० ११. विउडणाभे ( क, ख ) विडणाहे ( वृ) । १२. सीहअइरेग (वृपा ) । १३. वाचनान्तरे तु 'पसत्थव रतुरगगुज्भदेसे' (वृ) । १४. समुग्ग ( ग ) । १५. कुरुविंद (क, ख ) । १६. सुसलिट्ठविसि ( क ) ; सुसिलिट्ठविसिट्ठ ( ख ) । १७. अणुपुव्वसुसाहयपीवरंगुलीए ( वृ ) । १८. वाचनान्तरेधीयते -- नगनगरमगरसागरचक्कं १४ १. सुसंठिया ( ख, ग ) । २. सुसलिट्ठ ( क ) ; सलिट्ठ ( वृ० ) । ३. वट्टियबाहू (वृ); वाचनान्तरे - 'पुरवरफलिहट्टियभूए' इत्येतावदेव भुजविशेषणं दृश्यते । (वृ०) । ४. पलिउच्छूड ( क ) ; फलिह उच्छूढ (ग, वृपा ) । ५. वाचनान्तरे - 'युगसन्निभपीन रतिदपी व रप उट्ठसंठिसुसिलिट्ठविसिघणथि रसुबद्धसंधि' (वृ) । ६. क्वचित् तु दृश्यते - पीवरवट्टियसुजायकोमलवरंगुली' (वृ) ७. वाचनान्तरेऽधीयते रविससिसंखव रचक्कसोत्थियविभत्तसुविरइयपाणिले हे 'अणेगवरलक्खणुत्तिमपसत्थसुइरइयपाणिले हे ' ( वृ ) । ८. वाचनान्तरे तु वक्षोविशेषणान्येवं दृश्यन्ते -- 'उवचिय पुरवरकवाडविच्छिन्नपिहुलवच्छे, 'कणयसिलायलुज्जलपसत्यसमतल सिरिवच्छर इयवच्छे' (वृ) । त्ति C. 'अहस्पतिपुण्णव रपुरिसलवखणधरे' क्वचिद् दृश्यते ( वृ); 'क, ख' आदर्शयोरपि पाठो दृश्यते । - - कवरंकमंगलंकियचलणे विसिट्टरूवे हुयवहनिद्धूमजलियतडित डिय तरुण रविकिरणसरिसतेए अणासवे अममे अकिंचणे छिन्नसोए निरुवलेवे ववगयपेम रागदोसमोहे निग्गंथस्स पवयणस्स देसए सत्यनायगे पट्टावए समणगपई समणगविदपरिवढिए चउत्तीसबुद्धवयणाइसेसपत्ते पणतीससच्चवयणाइसेसे (वृ); 'क' आदर्श पि एष पाठो लभ्यते । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं छत्तेणं, आगासियाहिं चामराहिं, आगासफालियामएणं सपायवीढेणं सीहासणेणं,धम्मज्झएणं पुरओ पकड्ढिज्जमाणेणं, चउद्दसहि समणसाहस्सीहि, छत्तीसाए अज्जियासाहस्सीहिं सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे चंपाए नयरीए बहिया उवणगरग्गामं उवागए चंपं नगरि पुण्णभदं चेइयं समोसरिउकामे ।। पवित्ति-वाउयस्सनिवेदण-पदं २०. तएणं से पवित्ति'-वाउए इमीसे कहाए लद्धढे समाणे हट्ठ-तुट्ठ-चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए हाए कयबलिकम्मे कय-कोउयमंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता चंपाए णयरीए मज्झमज्झेणं जेणेव कोणियस्स रण्णो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव कणिए राया भिंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं कंखंति, जस्स णं देवाणुप्पिया सणं पीहंति , जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं पत्थंति', जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं अभिलसंति, जस्स णं देवाणुप्पिया णामगोयस्स वि सवणयाए हट्ठ-तुट्ठ'चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण हियया भवंति, से णं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे चंपाए णयरीए उवणगरग्गामं उवागए चंपं गरि पुण्णभदं चेइयं समोसरिउकामे । 'तं एयं णं देवाणुप्पियाणं पियट्ठयाए पियं णिवेदेमि, पियं भे भवउ ॥ सविहि-णमोत्थु-पदं २१. तए णं से कूणिए राया भिभसारपुत्ते तस्स पवित्ति-वाउयस्स अंतिए एयमट्ठ सोच्चा णिसम्म हट्ठ-तुट्ठ"- चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण•हियए' वियसिय-वरकमल-णयण-वयणे पयलिय-वरकडग-तुडिय-केऊर-मउड-कुंडल-हारविरायंतरइयवच्छे" पालंब-पलबमाण-घोलंतभसणधरे ससंभमं तरियं चवलं नरिंदे सीहासणाओ अब्भुठेइ, अब्भुठेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता" पाउयाओ ओमुयइ, १. सेयवरचामराहिं (ख)। १०. एतेणं (क); एएणं (ख)। २. आगासफलियामएणं (क, ग); आगासगएणं ११. सं० पा०-हट्ठतुट्ठ जाव हियए । फलियामएणं (ख)। १२. 'धाराहयनीवसुरहिकुसुम व चंचुमालइयऊसवि३. पउत्ति (क, वृ)। यरोमकूवे' इदं च विशेषणं क्वचिदेव दृश्यते ४. मंगल्लाइं (ग, वृ)। (वृ)। ५. भंभसारपुत्ते (ग)। १३. विराइयवच्छे (ख)। ६. अंजुलि (क)। १४. क्वचिदिदं पादुकाविशेषणं दृश्यते-वेरुलिय७. पेहेंति (ख)। वरिटअंजणनिउणोवियमिसिमिसितमणिरयण . ८. पीच्छंति (क); पिच्छंति (ख) । मंडियाओ (ब)। ६. सं० पा०-हट्टतुट्ठ जाव हियया । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं ओमुइत्ता' एगसाडियं उत्तरासंग करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए अंजलिमउलियहत्थे तित्थगराभिमुहे सत्तट्ठपयाइं अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणं धरणितलंसि साहट तिक्खत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेई'. निवेसेत्ता ईसिं पच्चुण्णमइ, पच्चुण्ण मित्ता कडग-तुडिय-थंभियाओ भयाओ पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता करयल परिम्ग हियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिकट्ट एवं वयासी-णमोत्थ णं अरहताणं भगवंताणं आइगराणं तित्थगराणं सहसंबुद्धाणं पुरिसोत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं वियट्टछउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाणं मुत्ताणं मोयगाणं बुद्धाणं बोहयाणं सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगइणामधेनं ठाणं संपत्ताणं । णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आदिगरस्स तित्थगरस्स' 'सहसंबुद्धस्स पुरिसोत्तमस्स पुरिससीहस्स पुरिसवरपुंडरीयस्स पुरिसवरगंधहत्थिस्स अभयदयस्स चक्खुदयस्स मग्गदयस्स सरणदयस्स जीवदयस्स दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिस्स अप्पडिहयवरनाणदंसणधरस्स वियट्टछउमस्स जिणस्स जाणयस्स तिण्णस्स तारयस्स मुत्तस्स मोयगस्स बुद्धस्स बोहयस्स सव्वण्णुस्स सव्वदरिसिस्स सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगइणामधेज्जं ठाणं° संपाविउकामस्स ममं धम्मायरियस्स धम्मोपदेसगस्स, वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए", पासई" मे भगवं तत्थगए इहगयं ति कटु वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीइत्ता तस्स पवित्ति-वाउयस्स अठ्ठत्तरं सयसहस्सं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता एवं वयासी-जया णं देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे इहमागच्छेज्जा इह समोसरिज्जा इहेव चंपाए णयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरेज्जा तया णं मम एयमढ़ निवेदिज्जासि त्ति कटु विसज्जिए" ॥ भगवओ उवागमण-पदं २२. तए णं समणे भगवं महावीरे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल१. तथेदमपि 'अवहट्ट पंच रायककुहाई, तं जहा- (क, ख)। खग्गं छत्तं उप्फेसं वाहणाओ वालवीयणं' ८. संपत्ताणं नमोजिणाणं (क, ख) । (व); 'क' आदर्शपि एष पाठो लभ्यते । ६. सं० पा०-तित्थगरस्स जाव संपाविउकामस्स २. मउलियग्गहत्थे (ख)। १०. इहमागए (ख, ग)। ३. णिनेमि (क); णमेइ (ख); णिमेइ (ग)। ११. पासउ (क, ख, ग)। ४. सं० पा०-करयल जाव कट्ट । १२. चेइए अरहा जिणे केवली समणगणपरिवडे ५. अरिहंताणं (ख)। ६. सयंसंबुद्धाणं (क, ख, ग)। १३. एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसूणेइ ७. गंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोग- त्ति वाचनान्तरे वाक्यम् (वृ) । हियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं १७ कोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास-किसुय सुयमुह-गुंजद्ध-रागसरिसे कमलागरसंडबोहए उठ्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव चंपा णयरी जेणेव पुणभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता' संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ समण-वण्णग-पदं २३. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवाओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे समणा भगवंतो-अप्पेगइया उग्गपव्वइया भोगपव्वइया राइण्ण-णाय-कोरव्व-खत्तियपव्वइया भडा जोहा सेणावई पसत्थारो सेट्ठी इब्भा अण्णे य बहवे एवमाइणो उत्तमजाइ-कुल-रूव-विणयविण्णाण-वण्ण-लावण्ण-विक्कम-पहाण-सोभग्ग-कंतिजुत्ता 'बहुधण-धण्ण-णिचय - परियाल'फिडिया" णरवइगुणाइरेगा इच्छियभोगा सुहसंपललिया किंपागफलोवमं च मुणियविसयसोक्खं, जलबुब्बुयसमाणं कुसग्ग-जलबिंदुचंचलं जीवियं य णाऊण, अद्धवमिणं रयमिव पडग्गलग्गं संविधुणित्ताणं, चइत्ता हिरण्णं चिच्चा सुवण्णं चिच्चा धणं एवं-धण्णं बलं वाहणं कोसं कोट्ठागारं रज्जं रट्ठ पुरं अंतेउरं, चिच्चा विउलधण-कणग-रयण-मणि-मोत्तियसंख-सिलप्पवाल-रत्तरयणमाइयं संत-सार-सावतेज्जं, विच्छड्डइत्ता विगोवइत्ता, दाणं' च दाइयाणं परिभायइत्ता, मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया-अप्पेगइया अद्धमासपरियाया अप्पेगइया मासपरियाया अप्पेगइया दुमासपरियाया अप्पेगइया तिमासपरियाया जाव अप्पेगइया एक्कारसमासपरियाया अप्पेगइया वासपरियाया अप्पेगइया दुवासपरियाया अप्पेगइया तिवासपरियाया अप्पेगइया अणेगवासपरियाया-- संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ॥ निग्गंथ-वण्णग-पदं २४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे निग्गंथा भगवंतो-अप्पेगइया आभिणिबोहियणाणी' 'अप्पेगइया सुयणाणी अप्पेगइया ओहिणाणी अप्पेगइया मणपज्जवणाणी अप्पेगइया केवलणाणी अप्पेगइया मणबलिया अप्पेगइया वयबलिया अप्पेगइया कायबलिया अप्पेगइया मणेणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया वएणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया काएणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया १. अहापंडरे (क); अहापंडुरे (ख)। ____६. आचारचूलायां (१५॥१३) 'दाय' इति पाठः २. जलंते असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलावट्ट- स्वीकृतोस्ति प्रस्तुतप्रकरणे एष एव पाठः गंसि परत्याभिमुहे पलियंकनिसन्ने अरहा जिणे समीचीनः प्रतीयते, किन्तु प्रस्तुतसूत्रादर्शेषु केवली सभणगणपरिवुडे (क); 'संपलियंक- 'दाय' इति पाठः क्वापि नोपलब्धः, तेन 'दाणं' निसन्ने' इदं च वाचनान्तरपदम् (व)। इति पाठः स्वीकृतः । ३. ओगिण्हित्ता आगासगएणं चक्केणं जाव सुह- ७. सं० पा०-आभिणिबोहियणाणी जाव केवलीसुहेणं विहरमाणे (क)। __णाणी। ४. परिवार (गः)। ८. 'नाणबलिया दंसणबलिया चारित्तबलिया' ५. बहुधणधण्णणिचय • परिवारठिइगिहवासा वाचनान्तराधीतं चेदं विशेषणत्रयम् (व) । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं खेलोसहिपत्ता 'अप्पेगइया जल्लोसहिपत्ता अप्पेगइया विप्पोसहिपत्ता अप्पेगइया आमोसहिपत्ता अप्पेगइया सव्वोसहिपत्ता" अप्पेगइया कोट्ठबुद्धी अप्पेगइया बीयबुद्धी अप्पेगइया पडबुद्धी अप्पेगइया पयाणुसारी' अप्पेगइया संभिण्णसोया अप्पेगइया खीरासवा अप्पेगइया महुयासवा अप्पेगइया सप्पियासवा अप्पेगइया अक्खीणमहाणसिया' अप्पेगइया उज्जमई अप्पेगडया विउलमई अप्पेगडया विउव्वणिडिढपत्ता अप्पेगडया चारणा अप्पेगडया विज्जाहरा अप्पेगइया आगासाइवाई अप्पेगइया कणगावलि तवोकम्म पडिवण्णा" अप्पेगइया एगावलि तवोकम्म पडिवण्णा अप्पेगइया खड्डागं सीहनिक्की लियं तवोकम्म पडिवण्णा अप्पेगइया महालयं सीहणिक्कीलियं तवोकम्म पडिवण्णा अप्पेगइया भद्दपडिमं तवोकम्म पडिवण्णा अप्पेगइया महाभद्दपडिमं तवोकम्म पडिवण्णा अप्पेगइया सव्वओभद्दपडिमं तवोकम्म पडिवण्णा अप्पेगइया आयंबिलवद्धमाणं' तवोकम्म पडिवण्णा अप्पेगइया मासियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया दोमासियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया तेमासियं भिक्खपडिम पडिवण्णा जाव अप्पेगइया सत्तमासियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया पढमसत्तराइंदियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया बीयसत्तराइंदियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा अप्पेगइया तच्चसत्तराइंदियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा अप्पेगइया राइंदियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया एगराइयं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा अप्पेगइया सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया अट्ठअट्ठमियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा अप्पेगइया णवणवमियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अप्पेगइया दसदसमियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा' अप्पेगइया खुड्डियं मोयपडिम पडिवण्णा अप्पेग़इया महल्लियं १. एवं जल्लोसहिपत्ता विप्पोसहिपत्ता आमोसहि- वत्तौ एकादश्या: प्रतिमाया व्याख्या इत्थमस्तिपत्ता सव्वोसहिपत्ता (क, ग)। एकादशी अहोरात्रप्रमाणा-अहोरात्रिकी'। २. पयाणुसारा (क, ख)। द्वादश्या व्याख्या तत्रैवेत्थमस्ति-एकरात्रि३. महाणसीया (वृ)। दिवा- एकरात्रिप्रमाणा। अत्र रात्रिदिवा ४. आगासावासी (क, ख)। शब्दादपि रात्रिरेव ग्राह्या, अन्यथा एक५. पडिवण्णगा (वृ)। रात्रिकी इत्यस्य विरोधात् ।' अत्र वृत्तिकृता ६. 'वद्धमाणकं (क, ख)। द्वितीयः पाठः समीचीनो नोपलब्ध इति प्रति७,८. अहोराइंदियं (क, ख, ग)। एक्कराइंदियं भाति । इत्थं प्रतीयते क्वचिद् 'अहो' शब्द (क, ख, ग); अर्थदृष्ट्या उभावपि पाठौ न आसीत् क्वचिच्च 'दिवा'। प्रतिलिपिषु जायसंगच्छेते । प्रथमे पाठे 'अहो' 'दियं' द्वावपि मानासु द्वयोरेकत्रयोगो जातः । तथैव 'राइयं' शब्दौ दिवसवाचिनौ स्तः । द्वितीये पाठे दियं' इत्यत्रापि पूर्वप्रतिमायाः 'राइंदियं पाठानुसतिशब्दोधिकोस्ति । तेनास्माभिर्वृत्तिगतः पाठः जर्जाता। सो काया प्रतिमा को रा. ९. क्वचिदिहस्थाने-भद्रा सुभद्रा महाभद्रा सर्वतोदियं' तथा द्वादश्याः प्रतिमायाः कृते 'एगराइयं' भद्रा भद्रोत्तराश्च भिक्षुप्रतिमाः पठ्यन्ते, तदनु सारी पाठ इत्थं जायते-भद्दपडिम पडिवण्णा पाठो लभ्यते । समवायाङ्गे (१२११) उक्त- सुभद्दपडिम पडिवण्णा महाभद्दपडिम पडिवण्णा प्रतिमयोः कृते 'अहोराइया' तथा 'एगराइया' सव्वओभद्दपडिम पडिवण्णा भददुत्तरपडिम पाठः प्राप्यते । दशाश्रुतस्कन्ध (७।३१,३२) पडिवण्णा ।' (व)। Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं १६ मोयपडिमं पडिवण्णा अप्पेगइया जवमझं चंदपडिमं पडिवण्णा अप्पेगइया वइरमज्झं चंदपडिम पडिवण्णा'-संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरंति ॥ थेर-वण्णग-पदं २५. तेंणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भग़वओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे थेरा भगवंतो-जाइसंपण्णा कुलसंपण्णा बलसंपण्णा रूवसंपण्णा विणयसंपण्णा णाणसंपण्णा दसणसंपण्णा चरित्तसंपण्णा लज्जासंपण्णा लाघवसंपण्णा ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी, जियकोहा' जियमाणा जियमाया जियलोभा जिइंदिया जियणिद्दा जियपरीसहा जीवियासमरणभय-विप्पमुक्का, वयप्पहाणा गुणप्पहाणा करणप्पहाणा चरणप्पहाणा णिग्गहप्पहाणा निच्छयप्पहाणा अज्जवप्पहाणा मद्दवप्पहाणा लाघवप्पहाणा खंतिप्पहाणा मुत्तिप्पहाणा विज्जप्पहाणा मंतप्पहाणा वेयप्पहाणा बंभप्पहाणा नयप्पहाणा नियमप्पहाणा सच्चप्पहाणा सोयप्पहाणा, चारुवण्णा लज्जा तवस्सी जिइंदिया सोही अणियाणा अप्पोसुया अबहिल्लेसा अप्पडिलेसा सुसामण्णरया दंता-इणमेव णिग्गंथं पावयणं पुरओकाउं विहरंति ॥ २६. तेसि णं भगवंताणं 'आयावाया वि" विदिता भवंति, 'परवाया वि" विदिता भवंति, आयावायं जमइत्ता नलवणमिव' मत्तमातंगा अच्छिद्दपसिणवागरणा रयणकरंडगसमाणा कुत्तियावणभूया परवाइपमद्दणा दुवालसंगिणो समत्तगणिपिडगधरा सव्वक्खरसण्णिवाइणो सव्वभासाणुगामिणो अजिणा जिणसंकासा जिणा इव अवितह वागरमाणा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ।। अणगार-वण्णग-पदं २७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे अणगारा भगवंतो इरियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाण-भंड-मत्त-णिक्खेवणासमिया उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिट्ठावणियासमिया मणगुत्ता वयगुत्ता काय १. वाचनान्तराधीतमथ पदचतुष्कम्-'विवेगपडिम पडिवण्णा विउसग्गपडिम पडिवण्णा उवहाणपडिम पडिवण्णा पडिसंलीणपडिम पडिवण्णा' २. जियकोहे (क) अग्रे सर्वत्र 'एकारः'।। ३. क्वचिदेवं च पठ्यते-'बहणं आयरियाणं बहणं उवज्झायाणं बहणं गिहत्थाणं पव्वइयाणं च दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा' (वृ)। ४. आयावाइणो (व)। ५. परवादा (ग); परवाइणो (वृपा) । ६. नलवणा इव (वृपा)। ७. परवाइयपमद्दणा (व)। ८. "परवाईहिं अणोक्ता इत्यादि चोइसपुवी' इत्यन्तं वाचनान्तरं परवाईहिं अणोक्कता अण्णउत्थिएहिं अणोद्धसिज्जमाणा विहरंति 'अप्पेगइया आयारधरा........।' वृत्तिकृत्ता 'अप्पेगइया..."सुगमानि' इति लिखितम्, तदाधारेण एषा पाठपद्धतिः सम्भाव्यते-अप्पेगइया आयारधरा एवं सूयगड-ठाण-समवायविवाहपण्णत्ति - नायाधम्मकहा- उवासगदसाअंतगडदसा-अणुत्तरोववाइयदसा-पण्हावागरणदसा-विवागसुयधरा एगारसंगधरा दुवालसंगधरा नवपुवी दसपुत्वी चोद्दसपुवी (वृ)। ६. जिणो (क, ख)। Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ओवाइयं गुत्ता गुत्ता गुत्तिदिया गुत्तबंभयारी अममा अकिंचणा' निरुवलेवा कंसपाईव मुक्कतोया, संखो' इव निरंगणा', जीवो विव अप्पडिहयगई, जच्चकणगं पिव जायरूवा, आदरिसफलगा इव पागडभावा, कुम्मो इव गुत्तिदिया, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवा, ग़गणमिव निरालंबणा, अणिलो इव निरालया, चंदो इव सोमलेसा, सूरो इव दित्ततेया', सागरो इव गंभीरा, विहग इव सव्वओ विप्पमुक्का, मंदरो इव अप्पकंपा, सारयसलिलं व सुद्धहियया, खग्गविसाणं' व एगजाया, भारुडपक्खी' व अप्पमत्ता, कुंजरो इव सोंडीरा, वसभो इव जायत्थामा, सीहो इव दुद्धरिसा, वसुंधरा इव सव्वफासविसहा, सुहुययासणो इव तेयसा जलंता ॥ अपडिबंध-विहार-पदं २८. नत्थि ‘णं तेसिं" भगवंताणं कत्थइ पडिबंधे। [से य पडिबंधे चउविहे भवइ, तं जहा"-दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ। दव्वओ-सचित्ताचित्तमीसिएसु" दव्वेसु । खेत्तओ-गामे वा णयरे वा रण्णे वा खेत्ते वा खले वा घरे वा अंगणे वा । कालओ--समए वा आवलियाए वार 'आणापाणुए वा थोवे वा लवे वा मुहुत्ते वा अहोरत्ते वा पक्खे वा १. वाचनान्तरे 'अकोहे' त्यादीन्येकादशपदानि कान्तरे विशेषणानि सर्वाण्येतानीदं चाधिकम् दृश्यन्ते-'अकोहा अमाणा अमाया अलोभा 'आदरिसफलगा इव पायडभावो'-- इति संता पसंता उवसंता परिणिव्व्या अणासवा गृहीतम्, प्रतिषु विशेषणमिदं 'जच्चकणगं' अग्गंथा छिण्णसोया' (वृ); सूत्रकृताङ्गे- अतोनन्तरमस्ति । द्रष्टव्यं अंगसूत्ताणि भाग (२।२।६४) प्येष पाठो विद्यते । १: परिशिष्ट २ आलोच्यपाठ तथा वाचना२. संख (क, ग)। न्तर। ३. निरंजणा (ग)। ८. तेसि णं (क, ख)। ४. तेयंसि (ख, ग)। ९. पडिबंधे भवइ (ग, व)। ५. खग्गिविसाणं (क्वचित्)। १०. वाचनान्तरे पुनः 'तं जहा' इत्यतः परंगमान्तं ६. भारंडपक्खी (ख, वृ)। (सुत्र २८, २६ पर्यन्तं) यावदिदं पठ्यते७. वत्तिकृता 'कंसपाईव मुक्कतोया' इत्यादिपदानां अंडए इ वा पोयए इ वा 'अंडजे इ वा बोंडजे व्याख्या द्वितीयाचाराङ्गस्य भावनाध्ययनान्तर्ग- इवा' इत्यत्र पाठान्तरे उग्गहिए इ वा पग्गतसङ्ग्रहगाथे अनुसृत्य कृतास्ति, तथा वाचना- हिए वा जणं जं दिसं इच्छंति तं णं तं णं न्तरेपि तथैव पाठो लब्धः-निरुवलेपतामेवो दिसं विहरंति सुइभूया लघुभूया अणप्पगंथा पमानराह-वक्ष्यमाणपदानां च भावनाध्यय (वृ); सूत्रकृताङ्गे (२।२।६६) प्येतादृश: नाद्युक्ते इमे संग्रहगाथे पाठो विद्यते-अंडए इ वा पोयए इ वा कंसे संखे जीवे, गयणे वाए य सारए सलिले । उग्गहे इ वा पग्गहे इ वा जण्णं जण्णं दिसं पुक्खरपत्ते कुम्मे, विहगे खग्गे य भारंडे ॥१॥ इच्छंति तण्णं तण्णं दिसं अपडिबद्धा सुइभुया कंजर वसहे सीहे, नगराया चेव सागरमखोहे। लभूया अप्पग्गंथा संजमेणं तवसा अप्पाणं चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव सुहुयहुए ॥२॥ भावेमाणा विहरंति। उक्तगाथानुक्रमेण तानि पदानि व्याख्यास्यामः, ११. 'मीसएसु (क, ख, ग)। वाचनान्तरे इत्थमेव दृष्टत्वादिति (वृ० पृ० १२. सं० पा०-आवलियाए वा जाव अयणे । ६७); वृत्तिकृता सर्वेषां विशेषणानामन्ते पुस्त Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं २१ मासे वा अयणे वा अण्णयरे वा दीहकालसंजोगे। भावओ-कोह वा माणे वा मायाए वा लोहे वा भए वा हासे वा। एवं तेसिं ण भवई] ॥ २६. तेणं भगवंतो वासावासवज्जं अट्ठ गिम्ह-हेमंतियाणि मासाणि गामे एगराइया णयरे पंचराइया वासीचंदणसमाणकप्पा समलेठुकंचणा समसुहदुक्खा इहलोगपरलोगअप्पडिबद्धा संसारपारगामी कम्मणिग्घायणट्ठाए अब्भुठ्ठिया विहरंति ॥ तवोवहाण-वण्णग-पदं ३०. तेसि णं भगवंताणं एएणं विहारेणं विहरमाणाणं इमे एयारूवे सभितर-बाहिरए तवोवहाणे होत्था', तं जहा--अभितरए वि' छव्विहे, बाहिरए वि छविहे ।। ३१. से किं तं बाहिरए" ? बाहिरए छव्विहे, तं जहा-अणसणे ओमोयरिया भिक्खायरिया रसपरिच्चाए कायकिलेसे पडिसंलीणया । ३२. से किं तं अणसणे ? अणसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-इत्तरिए य आवकहिए य । से' किं तं इत्तरिए ? इत्तरिए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा-चउत्थभत्ते, छट्ठभत्ते, अट्ठमभत्ते, दसमभत्ते, बारसभत्ते, चउद्दसभत्ते, सोलसभत्ते, 'अद्धमासिए भत्ते" मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते, चउमासिए भत्ते, पंचमासिए भत्ते, छम्मासिए भत्ते । से तं इत्तरिए। से किं तं आवकहिए ? आवकहिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पाओवगमणे य भत्तपच्चक्खाणे य। से किं तं पाओवगमणे ? पाओवगमणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-वाघाइमे य १. दशाश्रुतस्कन्धस्य पर्युषणाकल्पे (७६) अन्या- तेन तत्र तत्र स्थले सूत्रसंख्या विपर्ययो न न्यपि पदानि दृश्यन्ते-पेज्जे वा दोसे वा कलहे स्यात् इत्याशङ्कयैव एतत्परिवर्तनमशक्यमस्ति । वा अब्भक्खाणे वा पेसुन्ने वा परपरिवाए वा ७.४ (क, ख, ग)। अरतिरती वा मायामोसे वा मिच्छादसणसल्ले ८. पायवगमणे (क)। वा। ६. स्थानाङ्गे (२१४१५,४१६) भगवत्यां उत्तरा२. कोष्ठकत्तिपाठो व्याख्यांशः प्रतीयते । ध्ययने च भिन्ना पाठपरम्परा लभ्यते-पाओ३. वाचनान्तरे-'जायामायावित्ति' 'अदुत्तरं वा' वगमणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-नीहारिमे य, (वृ); सूत्रकृताङ्गे (२।२।६६) प्येतादृशः अणीहारिमे य। नियमं अपडिकम्मे । भत्तपाठो विद्यते-'तेसिं णं भगवंताणं इमा एया- पच्चक्खाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-नीहारिमे रूवा जायामायावित्ती होत्था'। य, अणीहारिमे य। नियमं सपडिकम्मे (भ० ४. X (क)। २५१५६२, ५६३); अहवा सपरिकम्मा ५. बाहिरए तवे (ख, ग)। अपरिकम्मा य आहिया। नीहारिमणीहारी ६. भगवत्यां (२।५६०) प्रतिप्रश्नस्य सूत्रसंख्या आहारच्छेओ य दोसु वि (उत्त० ३०।१३) स्वतंत्रा विद्यते। प्रस्तुतसूत्रे प्रतिविषयस्य भगवत्याराधनाया: भक्तप्रत्याख्यानस्य 'सविएकव सूत्रसंख्यास्ति । अयं भेदः यद्यपि समालो- चारं अविचार' इति भेदद्वयं कृतमस्तिच्योस्ति, तथापि नात्र परिवर्तनं कर्तुं दुविहं तु भत्तपच्चक्खाणं सविचारमध अविचारं शक्यम् । प्रस्तुतसूत्रस्य अनेकानि सूत्राणि अने (२०६५)। केषु आगमेषु साक्ष्यरूपेण उट्टङ्कितानि वर्तन्ते, Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ ओवाइयं निव्वाघाइमे य । णियमा अप्पडिकम्मे । से तं पाओवगमणे। से किंतं भत्तपच्चक्खाणे ? भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-वाघाइमे य निव्वाघाइमे य। णियमा सपडिकम्मे । से तं भत्तपच्चक्खाणे। [से तं आवकहिए ?] । से तं अणसणे॥ ३३. से किं तं ओमोदरियाओ ? ओमोदरियाओ दुविहा पण्णत्ताओ, तं जहादव्वोमोदरिया य भावोमोदरिया य। ___ से किं तं दव्वोमोदरिया ? दव्वोमोदरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-उवगरणदव्वोमोदरिया य भत्तपाणदव्वोमोदरिया य । से किं तं उवगरणदव्वोमोदरिया ? उवगरणदव्वोमोदरिया ति विहा पण्णत्ता, तं जहा-एगे वत्थे, एगे पाए, चियत्तोवकरणसाइज्जणया । से तं उवगरणदव्वोमोदरिया। से कि तं भत्तपाणदव्वोमोदरिया ? भत्तपाणदव्वोमोदरिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा--अट्ठ कुक्कुडअंडगप्पमाणमेत्ते' कवले आहारमाहारेमाणे' अप्पाहारे, दुवालस कुक्कुडअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे अवड्ढोमोदरिए, सोलस कुक्कुडअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे दुभागपत्तोमोदरिए, चउवीसं कुक्कुडअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे पत्तोमोदरिए, 'एक्कतीसं कुक्कूडअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे किंचूणोमोदरिए", बत्तीसं कुक्कुडअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे पमाणपत्ते, एत्तो एगेण वि घासेणं' ऊणयं आहारमाहारेमाणे समणे णिग्गंथे णो पकामरसभोइ त्ति वत्तव्वं सिया। से तं भत्तपाणदव्वोमोदरिया । से तं दव्वोमोदरिया। से किं तं भावोमोदरिया ? भावोमोदरिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-अप्पकोहे, अप्पमाणे, अप्पमाए, अप्पलोहे, अप्पसद्दे, अप्पझंझे। से तं भावोमोदरिया । से तं ओमोदरिया ।। ३४. से किं तं भिक्खायरिया ? भिक्खायरिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहादव्वाभिग्गहचरए खेत्ताभिग्गहचरए कालाभिग्गहचरए भावाभिग्गहचरए उक्खित्तचरए णिक्खित्तचरए उक्खित्तणिक्खित्तचरए णि क्खित्तउक्खित्तचरए वट्टिज्जमाणचरए साहरिज्जमाणचरए उवणीयचरए अवणीयचरए उवणीयअवणीयचरए अवणीयउवणीयचरए संसट्ठचरए असंसट्ठचरए तज्जायसंसठ्ठचरए अण्णायचरए मोणचरए' दिट्ठलाभिए अदिट्ठलाभिए पुट्ठलाभिए अपुट्ठलाभिए भिक्खलाभिए अभिक्खलाभिए अण्णगिलायए ओवणिहिए परिमियपिंडवाइएसद्धेसणिए संखादत्तिए । से तं भिक्खायरिया ॥ ३५. से किं तं रसपरिच्चाए ? रसपरिच्चाए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा-निव्विइए', १. एतन्निगमनं भगवत्यां (२५५५६३) द्रष्टव्यं व्यवहारस्य (८।१७) पादटिप्पणम् । उपलभ्यते । अत्रापि अपेक्षितमस्ति, परन्तु ५. गासेणं (क)। आदर्शेष नोपलभ्यते ।। ६. अप्पझंझे अप्पतुमंतुमे (भ० २५॥५३८) । २. कुक्कड (क); कुक्कुडि° (क्वचित्) । ७. मोणचरए दिट्ठचरए अदिट्ठचरए (ख,ग)। ३. आहारेमाणे (ग)। ८. पिंडलाभिए (ख, ग)। ४. चिन्हाङ्कितः पाठः भगवत्यां (७।२४) ६. निव्वीए (क, ख); निव्वीयए (व); नोपलभ्यते । तद्वत्तावपि नास्ति व्याख्यतः । निन्विगितिए (भ० २५१५७०) Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोस रण-पयरणं पणीयरसपरिच्चाए, आयंबिलए', आयामसित्थभोई, अरसाहारे, विरसाहारे, अंताहार, पंताहारे, लूहाहारे । से तं रसपरिच्चाए । ३६. से कि तं कायकिलेसे ? कायकिलेसे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा – ठाणट्ठिइए* उक्कुडुयासणिए पडिमट्ठाई वीरासणिए नेसज्जिए' आयावए अवाउडए अकंडुयए अह' सव्वगायपरिकम्म विभूस विप्पमुक्के । से तं कायकिले से || ३७. से किं तं पडिसंलीणया ? पडिसंलीणया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहाstusicीया सायपडिलीणया जोगपडि संलीयणया विवित्तसयणासण सेवणया । २३ से किं तं इंदियपडिसलीणया ? इंदियपडिसंलीणया पंचविहा पण्णत्ता, तं जहासोइंदियविसयप्पया रनि रोहो वा सोइंदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा, चक्खिदियविसयप्पयारनिरोहो वा चक्खिदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा, घाणिदिविसयप्पयारनिरोहो वा घाणिदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा, जिब्भिदियवियप्पयारनि रोहो वा जिब्भिदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा, फासिंदियविसयप्पया रनि रोहो वा फासिंदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा । सेतं इंदियपडिलीणया । से किं तं कसाय डिलीणया ? कसायपडिसंलीणया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहाकोहस्सुदयनि रोहो' वा उदयपत्तस्स वा कोहस्स विफलीकरणं, माणस्सुदयनि रोहो वा उदयपत्तस्स वा माणस्स विफलीकरणं, मायाउदयणिरोहो वा उदयपत्ताए वा माया विफलीकरणं, लोहस्सुदयणिरोहो वा उदयपत्तस्स वा लोहस्स विफलीकरणं । तं कसाय डिलीणया । तं जहा से किं तं जोगपडिसंलीणया ? जोगपडिसंलीणया तिविहा पण्णत्ता, जोगपडिलीणया वइजोगपडिसलीणया कायजोगपडिसंलीणया । से किं तं मणजोगपडिलीणया ? मणजोगपडिलीणया - अकुसल मणणिरोहो वा, कुसलमणउदीरणं वा । से तं मणजोगपडिसलीणया । से किं तं वइजोगपडिसंलीणया ? वइजोगपडिसलीणया - अकुसल वइणिरोहो वा, कुसलवइउदीरणं वा' । से तं वइजोगपडिसंलीणया । से किं तं कायजोगपडिसंलीणया ? कायजोगपडिसंलीणया - जण्णं सुसमाहियपाणिपा' कुम्मो इव गुतिदिए सव्वगायपडिलीणे" चिट्ठइ । से तं कायजोगपडिलीणया । १. आयंबिल (वृ) २. लुक्खाहारे ( क ) ; लूहाहारे तुच्छाहारे (वृपा ) | ३. ठाणाइए (ग, वृपा ) ; ठाणातिए ( ठाणं ५/४२ ) ; ठाणादीए ( भ० २५/५७१) । ४. 'दंडायए लगंडसाई' ति क्वचिद् दृश्यते (वृ) । ५. 'धुय के समंसुलोम' ति क्वचिद् दृश्यते ( वृ ) । ६. कोहोदय ं (ख, ग ) । ७. वा, मणस्स वा एगत्तीभावकरणं ( भ० २५ । ५७७)। ८. वा, वईए वा एगत्तीभावकरणं ( भ० २५।५७७) । ६. सुसमाहिय - पसंत साहरियपाणिपाए २५।५७८) । १०. अल्लीण - पल्लीणे ( भ० २५।५७८ ) । ( भ० Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं [से तं जोगपडिसलीणया ?']। से किं तं विवित्तसयणासणसेवणया ? विवित्तसयणासणसेवणया--जण्णं आरामसु उज्जाणेसु देवकुलेसु सहासु पवासु 'पणियगिहेसु पणियसालासु'' इत्थी-पसु-पंडगसंसत्तविरहिया वसहीसु फासुएसणिज्ज पीढफलगसेज्जासंथारगं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। [से तं विवित्तसयणासणसेवणया ?] से तं पडिसलीणया। से तं बाहिरए तवे । ३८. से किं तं अभितरए तवे ? अभितरए तवे छविहे पण्णत्ते, तं जहा'पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं सज्झाओ झाणं विउस्सग्गो" ॥ ३६. से किं तं पायच्छित्ते ? पायच्छित्ते दसविहे पण्णत्ते, तं जहा--आलोयणारिहे पडिक्कमणारिहे तदुभयारिहे विवेगारिहे विउस्सग्गारिहे तवारिहे छेदारिहे मूलारिहे अणवठ्ठप्पारिहे पारंचियारिहे । से तं पायच्छित्ते ॥ ४०. से किं तं विणए ? विणए सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा–णाणविणए दंसणविणए चरित्तविणए मणविणए वइविणए कायविणए लोगोवयारविणए। __से किं तं णाणविणए ? णाणविणए पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-आभिणिबोहियणाणविणए सुयणाणविणए ओहिणाणविणए मणपज्जवणाणविणए केवलणाणविणए। से तं णाणवणिए। से किं तं दंसणविणए ? दंसणविणए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुस्सूसणाविणए य अणच्चासायणाविणए य। ___ से कि तं सुस्सूसणाविणए ? सुस्सूसणाविणए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा--अब्भुट्ठाणेई वा, आसणाभिग्गहेइ वा, आसणप्पयाणंति' वा, सक्कारेइ वा, सम्माणेइ वा, किइकम्मेइ वा, अंजलिप्पग्गहेइ वा, एंतस्स अभिगच्छणया, ठियस्स पज्जुवासणया, गच्छंतस्स पडिसंसाहणया । से तं सुस्सूसणाविणए। से किं तं अणच्चासायणाविणए ? अणच्चासायणाविणए पणयालीसविहे पण्णत्ते, तं जहा-अरहताणं अणच्चासायणा अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अणच्चासायणा आयरियाणं अणच्चासायणा एवं उवज्झायाणं थेराणं कुलस्स गणस्स संघस्स किरियाणं संभोगस्स आभिणिवोहियणाणस्स सुयणाणस्स ओहिणाणस्स मणपज्जवणाणस्स केवलणाणस्स. एएसिं चेव भत्ति-बहुमाणेणं, एएसि चेव वण्णसंजलणया। से तं अणच्चासायणाविणए । से तं दंसणविणए। १. एतन्निगमनं भगवत्या (२५१५७८) उपलभ्यते । अत्रापि अपेक्षितमस्ति परन्तु आदर्शेषु नोपलभ्यते । २. x (भ० २०५७६)। ३. पंडगविवज्जियासु (भ० २५५७६) । ४. पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ। झाणं विउसग्गो, (क,ख)। ५. भगवत्यां (२५॥५८५) पदानां क्रमभेदो लभ्यते--सक्कारे इ वा सम्माणे इ वा किइकम्मे इ वा अब्भट्टाणे इ वा अंजलिपग्गहे इ वा आसणाभिग्गहे इ वा आसणाणुप्पदाणे इ वा, एतस्स पच्चुग्गच्छाणया ठियस्स पज्जुवासणया, गच्छंतस्स पडिसंसाहणया । ६. आसणप्पयाणाति (ख, ग)। ७. अणुगच्छणया (क, ख) । Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं २५ से किं तं चरित्तविणए ? चरित्तविणए पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-सामाइयचरित्तविणए छेदोवट्ठावणियचरित्तविणए परिहारविसुद्धिचरित्तविणए' सुहुमसंपरायचरित्तविणए अहक्खायचरित्तविणए । से तं चरित्तविणए। से किं तं मणविणए ? मणविणए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पसत्थमणविणए अपसत्थमणविणए। से' किं तं अपसत्थमणविणए ? अपसत्थमणविणए जे य मणे सावज्जे सकिरिए सकक्कसे कडुए णिठुरे फरसे अण्हयकरे छेयकरे भेयकरे परितावणकरे उद्दवणकरे भूओवघाइए तहप्पगारं मणो णो पहारेज्जा । से तं अपसत्थमणविणए। से किं तं पसत्थमणविणए ? पसत्थमणविणए 'जे य मणे असावज्जे अकिरिए अकक्कसे अकडए अणिटठरे अफरुसे अणण्हयकरे अछेयकरे अभयकरे अपरितावणकरे अणुद्दवणकरे अभूओवघाइए तहप्पगारं मणो पहारेज्जा । से तं पसत्थमणविणए। से तं मणविणए। __ से किं तं वइविणए? वइविणए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पसत्थवइविणए अपसत्थवइविणए। __ से किं तं अपसत्थवइविणए ? अपसत्थवइविणए जा य वई सावज्जा सकिरिया सकक्कसा कडया णिठुरा फरुसा अण्हयकरी छेयकरी भेयकरी परितावणकरी उद्दवणकरी भूओवघाइया तहप्पगारं वइं णो पहारेज्जा । से तं अपसत्थवइविणए। से किं तं पसत्थवइविणए ? पसत्थवइविणए जा य वई असावज्जा अकिरिया अकक्कसा अकडुया अणिठुरा अफरुसा अणण्हयकरी अछेयकरी अभेयकरी अपरितावणकरी अणुद्दवणकरी अभूओवघाइया तहप्पगारं वइं पहारेज्जा। से तं पसत्थवइविणए । से तं वइविणए। से किं तं कायविणए ? कायविणए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पसत्थकायविणए अपसत्थकायविणए। से किं तं अपसत्थकायविणए ? अपसत्थकायविणए सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहाअणाउत्तं गमणे अणाउत्तं ठाणे अणाउत्तं निसीदणे अणाउत्तं तुयट्टणे अणाउत्तं उल्लंघणे अणाउत्तं पल्लंघणे अणाउत्तं सबिदियकायजोगजुंजणया । से तं अपसत्थकायविणए। से किं तं पसत्थकायविणए ? पसत्थकायविणए 'सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा-आउत्तं गमणे आउत्तं ठाणे आउतं निसीदणे आउत्तं तुयट्टणे आउत्तं उल्लंघणे आउत्तं पल्लंघणे १. परिहारविशुद्ध (क) । सेत्त पसत्थमणविणए । अग्रे सूत्रत्रयेपि सप्तव २. स्थानाने (७।१३१-१३४) भगवत्यां (२५ भेदा विद्यन्ते ।। ५८६-५६३) च मनोवाग्विनययोः प्रकारभेदो ३. सं० पा०-तं चेव पसत्थं नेयव्वं, एवं चेव लभ्यते । उदाहरणरूपेण-से कि तं पसत्थमण- वइविणओवि एएहि पएहिं चेव णेयव्यो। विणए ? पसत्यमणविणए सत्तविहे पण्णते, तं ४. सविदियजोगजुजणया (ठाणं ७।१३६, भ० जहा-अपावए असावज्जे अकिरिए निरुव- २५।५६६) । केसे अणण्हवकरे अच्छविकरे अभ्याभिसंकणे। ५. सं० पा०-एवं चेव पसत्थं भाणियव्वं । Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं आउत्तं सव्विदियकायजोगजुंजणया । से तं पसत्थकायविणए। से तं कायविणए। से किं तं लोगोवयारविणए ? लोगोवयारविणए सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा-अब्भासवत्तियं परच्छंदाणवत्तियं कज्जहेउं कयपडिकिरिया अत्तगवेसणया देसकालण्णुया सव्वत्थेसु अप्पडिलोमया । से तं लोगोवयारविणए । से तं विणए । ४१. से कि तं वेयावच्चे ? वेयावच्चे दसविहे पण्णत्ते तं जहा-आयरियवेयावच्चे उवज्झायवेयावच्चे सेहवेयावच्चे गिलाणवेयावच्चे तवस्सिवेयावच्चे थेरवेयावच्चे साहम्मियवेयावच्चे कुलवेयावच्चे गणवेयावच्चे संघवेयावच्चे । से तं वेयावच्चे । ४२. से किं तं सज्झाए ? सज्झाए पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-वायणा पडिपुच्छणा' परियट्टणा अणुप्पेहा धम्मकहा। से तं सज्झाए ।। ४३. से किं तं झाणे ? झाणे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-अट्टे झाणे रुद्दे झाणे धम्मे झाणे सुक्के झाणे ॥ अट्टे झाणे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-अमणुण्ण-संपओग-संपउत्ते तस्स विप्पओगसतिसमण्णागए यावि भवइ, मणण्ण-संपओग-संपउत्तं तस्स विप्पआग-सातसमण्णागए यावि भवइ, आयंक-संपओग-संपउत्ते तस्स विप्पओग-सतिसमण्णागए यावि भवइ, परिजुसिय-कामभोग-संपओग-संपउत्ते तस्स अविप्पओग-सतिसमण्णागए यावि भवइ। अट्टस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा–कंदणया सोयणया तिप्पणया विलवणया। रुद्दे झाणे चउबिहे पण्णत्ते, तं जहा–हिंसाणुबंधी मोसाणुबंधी तेणाणुबंधी' सारक्खणाणुबंधी। रुद्दस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा-ओसण्णदोसे बहुदोसे अण्णाणदोसे आमरणंतदोसे। धम्मे झाणे चउविहे चउप्पडोयारे पण्णत्ते, तं जहा-आणाविजए अवायविजए विवागविजए" संठाणविजए। ___धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा-आणारुई णिसग्गरुई 'उवएसरुई सुत्तरुई। १. कयपडिकइया (ठाणं ७।१३७, भ० २५॥ (पत्र ६३६) 'बहुदोसे' इति पाठो व्याख्या५६७)। तोस्ति- 'बहुदोसे' त्ति बहुष्वपि सर्वेष्वपि । २. स्थानाङ्गे (१०।१७) भगवत्यां (२५।५६८) ७. विवादविजए (ग)। च पदानां क्रमभेदो विद्यते । ८. सुत्तरुई ओगाढरुई (ठाणं ४।६६); सुत्तरुयी ३. पुच्छणा (क)। ओगाढरुयी (भ० २५४६०६); स्थानाङ्गे ४. परिदेवणता (ठाणं ४।६२); परिदेवणया भगवत्यां च 'उवएसरुई' पदस्य स्थाने (भ० २५४६०२)। 'ओगाढरुई' इति पदं लभ्यते । उत्तराध्ययने ५. तेयाणुबंधी (भ० २५॥६०३) । (२८।१६) स्थानाङ्गस्य दशमे (१०४) ६. बहुलदोसे (भ० २५॥६०४); भगवतीवृत्ती स्थाने 'उवएसरुई' इत्येव लभ्यते । भगवत्यां Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरण २७ धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता, तं जहा-वायणा पुच्छणा परियट्टणा धम्मकहा। धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णताओ, तं जहा-'अणिच्चाणुप्पहा असरणाणुप्पेहा एगत्ताणुप्पेहा संसाराणुप्पेहा"। सुक्के झाणे चउविहे चउप्पडोयारे पण्णत्ते, तं जहा-पुहत्तवियक्के सवियारी एगत्तवियक्के अवियारी 'सुहुमकिरिए अप्पडिवाई समुच्छिण्णकिरिए अणियट्टी। सुक्कस्स' णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा-'विवेगे विउसग्गे अव्वहे असम्मोहे"। ___ सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता, तं जहा-खंती मुत्ती अज्जवे मद्दवे । सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- 'अवायाणुप्पेहा असुभाणुप्पेहा अणंतवत्तियाणुप्पेहा विपरिणामाणुप्पेहा | से तं झाणे ।। ४४. से किं तं विउस्सग्गे ? विउस्सग्गे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - दव्वविउस्सग्गे य भावविउस्सग्गे य। से किं तं दव्वविउस्सग्गे ? दव्वविउस्सग्गे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा–'सरीरविउस्सग्गे गणविउस्सग्गे उवहिविउस्सग्गे भत्तपाणविउस्सग्गे। से किं तं भावविउस्सग्गे ? भावविउस्सग्गे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-कसायविउस्सग्गे संसारविउस्सग्गे कम्मविउस्सग्गे। अवगाढरुचेर्यो वैकल्पिकोर्थः कृतस्तेन अनयो. लक्षणानां आलम्बनानां च व्यत्ययो लभ्यतेद्वयोः पदयोरेकार्थत्वमवसीयते--अथवा सूक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, 'ओगाढ' त्ति साधुप्रत्यासन्नीभूतस्तस्य साधू- तं जहा-खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे । पदेशाद् रुचिरवगाढरुचिः । सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा १. एगाणुप्पेहा अणिच्चाणुप्पेहा असरणाणुप्पेहा पण्णत्ता, तं जहा–अव्वहे, असंमोहे, विवेगे, संसाराणुप्पेहा (ठाणं ४।६८); एकत्ताणुप्पेहा विउस्सग्गे । असौ व्यत्ययश्च चिन्तनीयोस्ति । अणिच्चाणुप्पेहा असरणाणुप्पेहा संसाराणुप्पेहा स्थानाङ्गे (४१७०,७१) उत्तरवतिसाहित्ये च (भ० २५६०८)। सर्वत्रापि प्रस्तुतसूत्रसम्मता परम्परा अनुस्यू२. अत्र द्वे परम्परे उपलभ्येते । प्रस्तुतसूत्रे तास्ति । उत्तराध्ययने (२९७३) च सूक्ष्मक्रिय-अप्रति- ४. अव्वहे असम्मोहे विवेगे विउस्सग्गे (ठाणं ४॥ पाति, समुच्छिन्नक्रिय-अनिवृत्ति इति पाठो ७०)। लभ्यते । स्थानाङ्गे (४।६६) भगवत्यां (२॥ ५. अणंतवत्तियाणप्पेहा विप्परिणामाणप्पेहा ६०६) च सूक्ष्मक्रिय-अनिवृत्ति, समुच्छिन्न- असुभाणुप्पेहा अवायाणुप्पेहा (ठाणं ४।७२, क्रिय-अप्रतिपाति इति पाठो दृश्यते । उत्तर- भ० २५॥६१२)। वतिग्रन्थेषु प्रायः प्रस्तुतसूत्रपरम्परैव अनुसृता ६. गणविउसग्गे सरीरविउसग्गे (भ० २५॥ ६१४)। ३. भगवत्यां (२५।६१०,६११) शुक्लध्यानस्य दृश्यते । Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ मोवाइयं से कि तं कसायविउस्सग्गे ? कसायविउस्सग्गे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-कोहकसायविउस्सग्गे माणकसायविउस्सग्गे मायाकसायविउस्सग्गे लोहकसायविउस्सग्गे। से तं कसायविउस्सग्गे। से कि तं संसारविउस्सग्गे ? संसारविउस्सग्गे चउब्विहे पण्णत्ते, तं जहा-णेरइयसंसारविउस्सग्गे तिरियसंसारविउस्सग्गे मणुयसंसारविउस्सग्गे देवसंसारविउस्सग्गे। से तं संसारविउस्सग्गे। से कि तं कम्मविउस्सग्गे ? कम्मविउस्सग्गे अट्ठविहे पण्णत्ते, तं जहा-णाणावरणिज्जकम्मविउस्सग्गे दरिसणावरणिज्जकम्मविउस्सग्गे वेयणीयकम्मविउस्सग्गे मोहणीयकम्मविउस्सग्गे आउयकम्मविउस्सग्गे गोयकम्मविउस्सग्गे अंतरायकम्मविउस्सग्गे । से तं कम्मविउस्सग्गे । से तं भावविउस्सग्गे । [से तं अभितरए तवे ?] ॥ अणगार-वण्णग-पदं ४५. 'तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अणगारा भगवंतो"--अप्पेगइया आयारधरा' 'अप्पेगइया सूयगडधरा अप्पेगइया ठाणधरा अप्पेगइया समवायधरा अप्पेगइया विवाहपण्णत्तिधरा अप्पेगइया नायाधम्मकहाधरा अप्पेगइया उवासगदसाधरा अप्पेगइया अंतगडदसाधरा अप्पेगइया अणुत्तरोववाइयदसाधरा अप्पेगइया पण्हावागरणदसाधरा अप्पेगइया' विवागसुयधरा,' अप्पेगइया वायंति अप्पेगइया पडिपुच्छंति अप्पेगइया परियÉति अप्पेगइया अणुप्पेहंति, अप्पेगइया अक्खेवणीओ विक्खेवणीओ संवेयणीओ णिव्वेयणीओ चउन्विहाओ कहाओ कहंति, अप्पेगइया उड्ढंजाणू अहोसिरा झाणकोट्ठोवगया-संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ॥ ४६. संसारभउव्विग्गा जम्मण-जर-मरण-करण-गंभीर-दुक्ख-पक्खुभिय-पउर-सलिलं संजोग-विओग-वीचि-चिंता-पसंग-पसरिय-वह-बंध-महल्ल-विउल - कल्लोल-कलण-विलवियलोभ-कलकलेंत-वोलबहुलं अवमाणण-फेण-तिव्वखिसण-पुलंपुलप्पभूय'-रोगवेयण-परिभवविणिवाय-फरुसधरिसणा-समावडिय-कढिणकम्मपत्थर-तरंग-रंगत-निच्चमच्चुभय-तोयपढें कसाय-पायाल-संकुलं भवसयसहस्स-कलुसजल-संचयं पइभयं अपरिमियमहिच्छ-कलुसमइवाउवेग-उद्धम्ममाणदगरयरयंधकार-वरफेण-पउर-आसापिवास-धवलं मोहमहावत्त-भोगभममाण - गुप्पमाणुच्छलंत - पच्चोणिवयंतपाणिय - पमायचंडबहुदुट्ठसावय- समाहयुद्धायमाणपब्भार-घोरकंदियमहारव-रवंत-भेरवरवं अण्णाणभमंतमच्छ-परिहत्थ-अणिहुतिंदियमहामगरतुरिय-चरिय-खोखुब्भमाण-नच्चंत - चवल-चंचल-चलंत-घुम्मत-जल-समूहं अरइ-भय १. ते णं इत्यादि (क)। २. सं० पा०-आयारधरा जाव विवागसुयधरा। ३. अतः परं वृत्तौ वाचनान्तरस्य निर्देशोस्ति- 'तत्थ-तत्थ तहि-तहिं देसे-देसे गच्छागच्छि गुम्मागुम्मि फुडाफुडि' । 'ख,ग' आदर्शयोरपि एष पाठो लभ्यते । ४. बहुविहाओ (क)। ५. भवोव्विग्गा (क); भउव्विग्गाभीया (ख,ग)। ६. पलुंपणप्पभूय (वृपा)। ७. तरंग (क)।। ८. उद्धव्वमाण (ख,वृपा); उद्धव्वमाण (ग)। ६. सुप्पमाणुच्छलंत (वृ)। Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोस रण-परणं २६ विसायसोग - मिच्छत्त- सेलसंकडं अणाइसंताण-कम्मबंधणकि लेस चिक्खल्ल' - सुदुत्ता' अमरगर - तिरिय - णिरय गइ' - गमण- कुडिल परियत्त - विउल-वेलं चउरंतमहंतमणवयग्गं रुंद संसारसागरं भीमदरिसणिज्जं " तरंति धिइ धणिय-निप्पकंपेण तुरियचवलं' संवर" - वेरग्गतुंग-कूवय- सुसंपउत्तेणं णाण - सिय- विमलमूसिएणं सम्मत्त - विसुद्ध - लद्ध - णिज्जामएणं धीरा संजमपोएण सीलकलिया पसत्थज्झाण- तववाय-पणोल्लिय- पहाविएणं उज्जम ववसायगहिय - णिज्जरण-जयण उवओग णाण- दंसणविसुद्भवयभंड' - भरियसारा जिणवरवयणोवदिट्ठमग्गेण अकुडिलेण सिद्धि - महापट्टणाभिमुहा समणवरसत्थवाहा सुसुइ-सुसंभास - सुपण्हसासा गा-गामे एगरायं णगरे-नगरे पंचरायं दूइज्जता जिइंदिया ब्भिया गयभया सचित्ताचित्तमीसएस दव्वेसु विरागयं गया 'संजया विरता" मुत्ता लहुया णिरवकखा साहू या चरति धम्मं || भवणवासि वण्णग-पदं ४७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स वहवे असुरकुमारा देवा अंतियं पाउब्भवित्था - काल - महाणीलसरिस - गीलगुलिय- गवल - अय सिकुसुमप्पासा वियसिय सयवत्तमिव पत्तल - निम्मल " - ईसीसियरत्ततंव -णयणा गरुलायत उज्जु-तुंगणासा ओयविय"-सिल-प्पवाल- विवफलसण्णिभाहरोट्ठा पंडुरस सिसयल - विमल - णिम्मल-संखगोखीर- फेण दगर - मुणालिया- धवल दंत सेढी हुयवह- णिद्धंत धोय-तत्त तवणिज्ज-रत्ततलतालुजीहा अंजण-घण-कसिण - रुयग-रमणिज्ज-गिद्ध केसा वामेगकुंडलधरा अद्दचंदणाणुलित्तगत्ता ईसीसिधि - पुप्फप्पगासाइं असंकिलिट्ठाई सुहुमाइं वत्थाइं पवरपरिहिया वयं च पढमं समइक्कता बिइयं च असंपत्ता भद्दे जोव्वणे वट्टमाणा तलभंगय-तुडिय-पवरभूसण- निम्मलमणि - रयण - मंडिय- भुया दसमुद्दा- मंडियग्गहत्था 'चूलामणि- विधगया”, सुरूवा महिड्डिया महज्जुइया महब्बला" महायसा महासोक्खा महाणुभागा" हारविराइयवच्छा कडग- तुडिय थंभियभुया अंगय-कुंडल- मट्ठ- 'गंड- कण्णपीढधारी" विचित्तहत्था भरणा " विचित्तमालामउलि-मउडा कल्लाणग-पवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणा भासुरबोंदी " पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं रूवेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं १२. चूडामणिचिधा ( क, ख ) 1 १३. × (गः) । १४. अतो वृत्तौ वाचनान्तरस्य निर्देशोस्तिहा रविराइयवच्छा.... पलंबवणमालधरा । पूर्ण: पाठों मूले स्वीकृतोस्ति । १५. गंडतलकण्णपीढधारी (क); गंडगलकण्णपीढधारी ( ख ) । १६. विचित्तवत्थाभरणा ( क ) ; विचित्तहत्याभरणा विचित्तवत्थाभरणा (ख) । १७. भासरबोंदी (क) । १. 'चिक्खिल ( क ) ; 'चिक्खिल्ल ( ख ) । २. सुदुत्तरं (क, ख, ग ) । ३. णरय° (क) । ४. रुद्द ( ख ), अशुद्धं प्रतिभाति । ५. भीमं दरिसणिज्जं ( क ) । ६. तुरियं चवलं ( क ) ; तुरियचंचलं ( ख ) । ७. संवेग (क ) । ८. दंसणचरितविसुद्धवरभंडं (वृपा ) । ६. संचयाओविरया (वृपा) । १०. निम्मला ( क, ख ) । ११. उवचि ( ख ) । Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ओवाइयं संघाणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए' दिव्वाए जुईए' दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वा अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं आगम्मागम्म रत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो 'आयाहिण-पयाहिणं" करेंति", करेत्ता वंदंति, णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता' 'णच्चास णाइदूरे" सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासंति ।। ४८. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे असुरिंदवज्जिया भवणवासी देवा अंतियं पाउब्भवित्था णागपइणो सुवण्णा, विज्जू अग्गीया दीवा । उदही दिसाकुमारा य, पवणथणिया य भवणवासी ॥ १ ॥ णागफडा-गरुल-वइर-‘पुण्णकलस-सीह" - हयवर- 'गयंक-मयरंकवर " मउड-वद्धमाण- णिज्जुत्तविचित्त-विधगया सुरूवा महिड्डिया जाव' पज्जुवासंति ॥ वाणमंतर - वण्णग-पदं ४६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स वहवे वाणमंतरा देवा अंतियं पाउ भवित्था -- पिसायभूया" य जक्ख- रक्खस किण्णर- किंपुरिस-भुयग-पइणो य महाकाया गंधव्वणि कायगणा" णिउणगंधव्वगीयरइणो अणवण्णिय पणवण्णिय-इसिवादिय-भूयवादिय"- कंदिय - महाकंदिया य कुहंड- पययदेवा चंचल-चवल-चित्त- कीलण दवप्पिया 'गंभीरहसिय- भणिय - पिय-गीय णच्चणरई" वणमाला मेल-मउड-कुंडल सच्छंद विउब्वियाहरणचारुविभूसणधरा सब्वोउयसुरभि - कुसुम-सुरइयपलंव-सोभंत-कंत-वियसंत-चित्तवणमाल-रइयवच्छा कामगमा कामरूवधारी णाणाविहवण्णराग-वरवत्थ-चित्तचिल्लय - नियंसणा विविह देसीणेवच्छ-गहियवेसा पमुइय-कंदप्प-कलह-केली-कोलाहलप्पिया हासबोलबहुला * अणेगमणि-रयण- विविह- णिज्जुत्त-चित्त"- चिधगया सुरूवा महिड्ढया जाव" पज्जुवासंति ।। जोइसिय-वण्णग-पदं ५०. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स ( बहवे ? ) जोइसिया देवा अंतियं पाउन्भवित्था - विहस्सती चंदसूरसुक्कसणिच्छरा राहू धूमकेतुबुहा य अंगारका १. रिद्धीए ( वृ) । २. जुत्तीए (क, ग ) । ३. आयाहिणं पयाहिणं ( ख ) । ६. ओ० सू० ४७ । १०. पिसायाभूया ( ग ) । ११. गंधव्वाणिकायगया ( क, ख ) ; गंधव्वपइगणा ( वृपा ) । ४. करेइ (क, ख ) ५. वाचनान्तरे दृश्यन्ते – साई साई नामगोयाई १२. भूयवादी य ( क ) । साविति (वृ ) | ६. णच्चासण्णा णाइदूरा ( क ) । (वृ) । ७. इह सूत्रं ‘पुण्णकलससंकिण्णउप्फेससीहे' त्येवं १४. हासकेलिबहुला (वृपा) । क्वचिद्विशेषो दृश्यतो ( वृ) । १५. चित्राणि चिह्नानि ( वृ ) । १६. ओ० सू० ४७ । ८. गयकमलायर मयंकवर ( ख ) । १३. गहिरहसियगीयणच्चणरइ त्ति क्वचिद् दृश्यते Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं य तत्ततवणिज्जकणगवण्णा जे य गहा जोइसंमि' चारं चरंति केऊ य गइरइया अठ्ठावीसतिविहा य णक्खत्तदेवगणा णाणासंठाणसंठियाओ य पंचवण्णाओ ताराओ ठियलेसा' चारिणो य अविस्साममंडलगई पत्तेयं णामंक-पागडिय-चिंधमउडा महिड्ढिया जाव' पज्जुवासंति ॥ वेमाणिय-वण्णग-पदं __५१. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स (बहवे ? ) वेमाणिया देवा अंतियं पाउब्भवित्था-सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंद-बंभ-लंतग-महासूक्क-सहस्साराणय-पाणयारण-अच्चुयवई पहिट्ठा देवा जिणदसणुस्सुयागमण'-जणियहासा पालग१. जोइसं (क, ख)। २. चित्तलेसा (ख), वियाल (ग)। ३. ओ० सू० ४७। ४. वैमानिकवर्णकोपि व्यक्तो, नवर वाचनान्तरगतं किञ्चिदस्य व्याख्यायते, तदन्तरगतं किञ्चदधिकृतवाचनान्त रगतं च-तत्र सामाणियतायत्तीससहिया सलोगपालअग्गमहिसिपरिसाणियआयरक्खेहिं संपरिवुडा कोष्ठकवतिवृत्तेर्मूलपाठो नोपलभ्यते--(देवसहस्रानयातमा सुरवरगणेश्वरः प्रयतैः) समणुगम्मतसस्सिरीया (सर्वादरभूषिता सुरसमूहनायकाः सौम्य चारुरूपाः) देवसघजयसद्दकयालोया मिगमहिसवराहछगलददुरहयगयवइभुयगखग्गउसभंकविडिमपागडियचिंधमउडा पालगपुप्फगसोमणससिरिवच्छनंदियावट्टकामगमपीतिगममणोगमविमलसव्वओभहनामधेज्जेहिं विमाजेहिं तरुणदिवागरकरातिरेगप्पहेहि मणिकणगरयणघडियजालुज्जलहेमजालपेरंतपरिगएहि सपय रवरमुत्तदामलंबंतभूसणेहिं पचलियघंटावलिमहरसहवंसतंतीतलतालगीयवाइयरदेणं महरेणं मणोहरेण पूरयंता अंबरं दिसाओ य, सोभेमाणा तुरियं संपट्ठिया थिरजसा देविदा हट्टतुटुमणसा, सेसावि य कप्पवरविमाणाहिवा सविमाणविचित्तचिंधनामंकविगडपागडम उडाडोवसुभदंस णिज्जा समन्निति, लोयंतविमाणवासिणो यावि देवसंघा य पत्तेयविरायमाणविरइयमणिरयणकुंडलभिसंत निम्मलनियगंकियविचित्तपागडियचिंधमउठा दायंता अप्पणो समुदयं, पेच्छंतावि य परस्स रिद्धीओ जिणिदवंदणनिमित्तभत्तीए चोइयमई (हर्षितमानसाश्च जीतकल्पमनुवर्तयमाना देवाः) जिणदंससुयागमणजणियहासा विउलवलसमूहपिडिया संभमेणं गगणतलविमलविउलगमणगइचवलचलियमणपवणजइणसिग्घवेगा णाणाविहजाणवाहणगया ऊसियविमलधवलआयवत्ता विउव्वियजाणवाहणविमाणदेहरयणप्पभाए उज्जोएंता नहं वितिमिरं करेंता, सविड्ढीए हुलियं (प्रयाताः)। गमान्तर रमिदम-पसिढिलवग्मउडतिरीडधारी मउडदित्तसिरिया रत्ताभा पउमपम्हगोरा सेया। पुस्तकान्तरे देवीवर्णको दृश्यते, स चैवम् तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अच्छरगणसंघाया अंतियं पाउब्भवित्था। ताओ णं अच्छराओ धंतधोयकणगरुयगसरिसप्पभाओ समइक्कंता य बालभावं अणइवरसोम्मचारुरूवा निरुवहयसरसजोव्वणकक्कसतरुणबयभावमुवगयाओ निच्चामवट्ठियसहावा सव्वंगसुंदरीओ इच्छियनेवत्थ र इयरमणिज्जगहियवेसा किं ते हारद्धहारपाउत्तरयणकुंडलवामुत्तगहेमजालमणिजालकणगजालसुत्तमउरितिरिय (तिय) कडगखड्डुगएगावलिकंठसुत्तमगहगधरच्छगेवेज्जसोणिसुत्तगतिलगफुल्लगसिद्धत्थियकण्णवालियससिसूर Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ ओवाइयं पुप्फग - सोमणस'- सिरिवच्छ-णं दियावत्त- कामगम-पीइगम-मणोगम-विमल सव्वओभद्द' - णामधैज्जेहि विमाणेहि ओइण्णा 'वंदणकामा जिणाणं" मिग-महिस- वराह - छगल- ददुर-हयगयवइ-भुयग-खग्ग-उसक-विडिम- पागडिय - चिधमउडा पसिढिल - वरमउड- तिरीडधारी कुंडलुज्जोवियाणणा मउड - दित्त - सिरया रत्ताभा परम-पम्हगोरा सेया सुभवण्णगंधफासा उत्तम उब्विणो विविहवत्थगंधमल्लधारी महिड्डिया जाव' पज्जुवासंति ॥ परिसा - निग्गमण-पदं ५२. तए णं चंपाए णयरीए सिंघाडग-तिग- चउक्क-चच्चर- चउम्मुह - महापह-पहेसु मह्या 'जणसद्देइ वा', जणवूहेइ वा " जणवोलेइ वा जणकलकलेइ वा जणुम्मीइ वा जणुक्कलियाइ वा जणणिवाएइ वा बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ - एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे जाव' संपाविउकामे, पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दृइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव' चंपाए णयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगि हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तं महप्फलं खलु भो देवाणुप्पिया ! तहारुवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण - उसभचक्कय तलभंगयतुडियहत्थमालयहरिसकेऊरवलयपालंब पलंब अंगुलिज्जगवलक्खदीणारमालियाचंदसूरमालियाकं चिमेहलकलावपय रंगपरिहे रगपायजालघंटिया खिखिणिरयणो रुजाल खड्डियवरनेउरचलण मालिया कणगणिगल जालगमगर मुहवि रायमाणणेऊरपचलियस द्दाल भूस णधारणीओ दसद्धवण्णरागइरमणहरे ( महार्घाणीनासानिः श्वासवायुवाह्यानि चक्षर्हराणि वर्णस्पर्शयुक्तानि ) हयलालापेलवाइरेगे धवले कणगखचियंत कम्मे आगासफालियस रिसप्प हे अंसुयणियत्थाओ आयरेणं तुसार गोखी रहा रदगर पंडु र दुगुल्ल सुकुमाल सुकय र मणिज्जउत्तरिज्जाई पाउयाओ वरचंदणचच्चियाओ वराभरणभूसियाओ सव्वोउयसुरभिकुसुम सुरइयविचित्तवर मल्लधारिणीओ सुगंधिच्णंगरागवरवासपुप्फपूर गविराइया अहियसस्सिरीया उत्तमवरधूवधूविया सिरीसम्मणवेसा दिव्वकुसुम मल्लदामपब्भंजलिपुडाओ ( उच्चत्वेन ) चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमललाडाओ चंदाहियसोमदंसणाओ उक्काओ विव उज्जोयमाणाओ विज्जुघणमिरीइसूरदिप्पंत ते यअ हियत रसन्निगासाओ सिंगारागार चारुवेसाओ संगयगयहसियभणियचेट्ठियविलाससललिय संलावनिउणजुत्तोवयारकुसलाओ सुंदरथणजघणवयणकरचरणनयणलावण्णरूवजोव्वण विलासकलियाओ सुरवधूओ सिरीसनवणीयमउयसुकुमालतुल्लफासाओ ववगयकलिकलुसाओ धोयनिद्वंतरयमलाओ सोमाओ कंताओ पियदंसणाओ सुरूवाओ जिणभत्तिदंसणाणुरागेणं हरिसियाओ ओबइयाओ यावि जिणसगासं दिव्वेणं सेसं तं चेव नवरं ठियाओ चेव (वृ) । ५. जिणदंसणूस गागमण ( ख, ग ) । १. सोमणस्स (क, ख ) । २. सव्वओ भसरिस ( क, ख ) । ३. वंदका जिणिदं ( ग ) । ४. सिढिल (क, ख ) । ५. ओ० सू० ४७ । ६. क्वचिद् 'बहुजणसद्दे इवा' (बु) । ७. क्वचित्पठ्यते ' जाणवाए इ वा' 'जणुल्लावे इ. वा' (वृ.) । ८. ओ० सू० १९ । ६. इह (ख, ग. वृ) । १०. बाहि (क.) । Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं णमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स' धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामो णमसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो। एयं णे पेच्चभवे ‘इहभवे यर हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ त्ति कटु बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा भोगपुत्ता एवं दुपडोयारेणं-राइण्णा' खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई लेच्छईपुत्ता अण्णे य बहवे राईसरतलवर-माडंबिय'-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभितयो अप्पेगइया वंदणवत्तियं अप्पेगइया पूयणवत्तियं अप्पेगइया सक्कारवत्तियं अप्पेगइया सम्माणवत्तियं अप्पेगइया दसणवत्तियं अप्पेगइया कोऊहलवत्तियं अप्पेगइया अस्सुयाइं सुणेस्सामो सुयाइं निस्संकियाइं करिस्सामो' अप्पेगइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो, अप्पेगइया पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामो, अप्पेगइया जिणभत्तिरागेणं अप्पेगइया जीयमेयंति कटु ण्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता सिरसा कंठे मालकडा आविद्धमणि-सुवण्णा कप्पिय-हारद्धहार-तिसर-पालव-पलंबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोहाभरणा पवरवत्थपरिहिया चंदणोलित्तगायसरीरा, अप्पेगइया हयगया अप्पेगइया गयगया अप्पगइया रहगया" अप्पेगइया सिवियागया" अप्पेगइया संदमाणियागया अप्पेगइया पायविहार-चारेणं१३ परिसवग्गरा-परिक्खिता महया उक्किटठसीहणाय-बोल- कलकलरवेणं 'पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयं पिव'५ करेमाणा" चंपाए णयरीए मझंमज्झेणं णिग्गच्छंति, णिग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्तादीए तित्थगराइसेसे पासंति, पासित्ता जाणवाहणाई ठवेंति," ठवेत्ता जाणवाहणेहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता जेणेव १. आयरियस्स (क)। (वृ)। २. ४ (ख, वृ); इहभवे य परभवे य (वृपा)। १२. सीया' (वृ)। ३. क्वचित्पठ्यते 'इक्खागा नाया कोरव्वा' (व)। १३. चारिणो (क, ख, ग)। ४. लच्छइ (क, ख)। १४. वग्गावग्गि गुम्मागुम्मिति क्वचिद् दृश्यते ५. मांडबिय (वृ)। (वृ)। ६. 'प्पभिइओ (ख)। १५. "भूयमिव (क, ख)। ७. कोऊल्ल° (ग)। १६. अतः परं वृत्तौ वाचनान्तरस्य निर्देशः८. अप्पेगइया अट्ठविणिच्छयहेउं (क्वचित्)। क्वचिदिदं पदचतुष्टयं दृश्यते-पायदद्दरेणं ९. 'अट्ठाई हेऊइं कारणाई वागरणा पुच्छिस्सामो' भूमि कंपेमाणा अंबरतलं पिव फोडेमाणा त्ति क्वचिद् दृश्यते (बू)। एगदिसि एगाभिमुहा। भगवत्या (६।१५७) १०. 'उच्छोलणपधोय' त्ति क्वचिद् दृश्यते (वृ)। मेतद् मूलपाठरूपेण उपलभ्यते । ११. वाचनान्तराधीतमथपदपञ्चकम् - जाणगया १७. विट्ठब्भंति (वृपा) । जूग्गगया गिल्लिगया थिल्लिगया पवहणगया Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ओवाइयं समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता' समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण -पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासणे णारे सुस्समाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासंति ॥ पवित्ति-वाउयस्स निवेदण-पदं ५३. तए णं से पवित्ति - वाउए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठतुट्ठ' - 'चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए हाए 'कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छत्ते सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता 'चंप णयरिं", मज्झंमज्झेणं जेणेव बाहिरिया "उवट्ठाणसाला जेणेव कूणिए राया भिभसारपुत्ते तेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी - जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं कखंति, जस्स णं देवापिया दंसणं पीहंति, जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं पत्थंति, जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं अभिसंति, जस्स णं देवाणुप्पिया णामगोयस्स वि सवणयाए हट्ठतुट्ठ - चित्तमाणंदिया पी मणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया भवंति से णं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दृइज्जमाणे चंपं णगरि पुण्णभद्दं चेइयं समोसढे । तं एवं देवाप्पिया पियट्ट्याए पियं णिवेदेमि, पिय भे भवउ ॥ विहि-मोत्यु-पदं ५४. तणं से कूणिए राया भिभसारपुत्ते तस्स पवित्ति - वाउयस्स अंतिए एयमट्ठ सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठ- चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्पमाणहियए वियसिय- वरकमल-णयण - वयणे पर्यालय- वरकडग- तुडिय केऊर-मउड- कुंडल-हारविरायंतरइयवच्छे पालंब - पलंबमाण- घोलंत भूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं नरिंदे सीहासणाओ १. इतो वाचनान्तरगतं बहु लिख्यते— जाणाई मुयंति वाहणारं विसज्जेति पुप्फतंबोलाइयं आउमाइयं सचित्तालंकारं पाहणाओ य एगसाडियं उत्तरासंगं ( करेंति ? ) आयंता चोक्खा परमसुइभूया अभिगमेणं अभिगच्छंति, चक्खुफासे मणसा एगत्तीभावकरणेणं सुसमाहिपसंत साहरियपाणिपाया अंजलिमउलियहत्था एवमेयं भंते! अवितहमेयं असंदिद्धमेयं, इच्छियमेयं, पडिच्छियमेयं इच्छियपडिच्छियमेयं, सच्चेणं एसमट्ठे, माणसियाए - - तच्चित्ता तम्मणा तल्लेसा तदज्भवसिया तत्तिव्वज्भसाणा तदप्पिकरणा तयट्ठोवउत्ता तब्भावणाभाविया एगमणा अविमणा अणण्णमणा जिणवयणधम्माणुराग रत्तमणा वियसियवरकमलनयणवयणा पज्जुवा सह समोसरणाई गवेसह आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा आएसणेसु वा आवसहेसु वा पणियगेहेसु वा पणियसालासु वा जाणगिहेसु वा जाणसालासु वा कोट्ठागारेसु वा सुसाणेसु वा सुण्णागारेसु वा परिहिडमाणा परिघोलेमाणा ( वृ ) । २. पंजलिकडा ( ग ) । ३. सं० पा० - हट्ठतुट्ठ जाव हियए । ४. सं० पा० - हाए जाव अप्प० । ५. चंपायर ( क ) । ६. सं० पा० – सच्चेव हेट्टिल्ला वत्तव्वया जाव णिसीयइ | Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोस रण-परणं ३५ अब्भट्ठे, अब्भट्ठेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता गाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए अंजलि - मउलियहत्थे तित्थगराभिमुहे सत्तट्ठपयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि साहट्टु तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेइ, निवेसेत्ता ईसि पच्चण्णमइ, पच्चण्णमित्ता कडग - तुडिय - थंभियाओ भुयाओ पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - णमोत्थूणं अरहंताणं भगवंताणं आइगराणं तित्थगराणं सहसंबुद्धाणं पुरिसोत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाण पुरिसवरगंधहत्थीणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं अप्पडियवरणाणदंसणधराणं वियट्टछउमाणं जिणाणं जावयाणं तिष्णाणं तारयाणं मुत्ताणं मोयगाणं बुद्धाणं बोयाणं सव्वष्णूणं सव्वदरिसीणं सिवमय लमरुयमणं तमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगइणामधेज्जं ठाणंसंपत्ताणं । णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आदिगरस्स तित्थगरस्स सहसंबुद्धस्स पुरिसोत्तमस्स पुरिससीहस्स पुरिसवरपुंडरीयस्स पुरिसवरगंधहत्थिस्स अभयदयस्स चक्खुदयस्स मग्गदयस्स सरणदयस्स जीवदयस्स दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिस्स अप्पsिहयवरणाणदंसणधरस्स वियदृछउमस्स जिणस्स जाणयस्स तिण्णस्स तारयस्स मुत्तस्स मोयगस्स बुद्धस्स बोहयस्स सव्वण्णुस्स सव्वदरिसिस्स सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगणामधेज्जं ठाणं संपाविउकामस्स मम धम्मा रियस धम्मोवदेसगस्स । वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासइ मे भगवं तत्थगए इयं तिकट्टु वंदइणमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता सीहासणवर गए पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, णिसीइत्ता तस्स पवित्ति - वाउयस्स अद्धतेरस - सय सहस्साइं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ || बलवाउय- निद्देस -पदं ५५. तए णं से कूणिए राया भिभसारपुत्ते बलवाउयं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासीखप्पामेव भो देवाप्पिया ! आभिसेक्कं' हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं च चाउरंगिण सेणं सण्णा हेहि, सुभद्दापमुहाण' य देवीणं वाहिरियाए उवट्ठाण - सालाए 'पाडियक्क - पाडियक्काई" जत्ताभिमुहाई जुत्ताई" जाणाई उवट्ठवेहि, चंप णयरि सभितर बाहिरियं 'आसित्त- सम्मज्जिओवलित्तं सिंघाडग-तिय- चउक्क-चच्चर-चउम्मुहमहापह - पहेसु" आसित - सित्त- सुइ सम्मट्ठ-रत्थंतरावण - वीहियं मंचाइमंचकलियं णाणा १. अभिसेक्कं ( ख ) । २. सुभद्दपमुहाण ( क ) । ३. पाडेक्कं (वृ) । ४. जत्तागमणाई (वृ) । ५. क्वचिद् युग्यानि पठ्यन्ते ( वृ ) । ६. आसियसमज्जिउवलित्तं (क); 'ख, ग’ प्रत्यश्चिन्हाङ्कितः पाठो नोपलभ्यते । 'आसियसमज्जिओवलित्तं' 'सिंघाडगतिय चउक्कचच्चर वाक्यद्वयं उम्मुहमहापहपहेसु' इदं च क्वचिन्नोपलभ्यते (वृ) । ७. सुचिय (क, ख, ग ) । Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं विहराग-ऊसिय-'ज्झय-पडागाइपडाग-मंडियं' लाउल्लोइय-महियं गोसीस-सरसरत्तचंदण:'दद्दर-दिण्णपंचंगुलितलं उवचियवंदणकलसं वंदणघड-सुकय-तोरण-पडिदुवारदेसभायं आसत्तोसत्त-विउल-वट्ट-वग्घारिय-मल्लदामकलावं पंचवण्ण-सरससुरभिमुक्क-पुप्फपुंजोवयारकलियं कालगुरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरक्क-धूव-मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं° गंधवट्टिभूयं करेहि य कारवेहि य, करेत्ता य कारवेत्ता य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि । णिज्जाहिस्सामि समणं भगवं महावीरं अभिवंदए । हत्थिवाउय-निद्देस-पदं ५६. तए णं से बलवाउए कूणिएणं रण्णा एवं बुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ'-'चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण° हियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति आणाए विणएणं वयणं" पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता हत्थिवाउयं आमतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! कूणियस्स रण्णो भिभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय-गय-रह-पवरजोहक लियं चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेहि, सण्णाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ।। ५७. तए णं से हत्थिवाउए बलवाउयस्स एयमलैं सोच्चा' आणाए विणएणं वयणं" पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता छेयायरिय-उवएस-मइ-कप्पणा-विकप्पेहिं सुणिउणेहिं 'उज्जलणेवत्थि-हव्व-परिवच्छियं" सुसज्ज धम्मिय [वम्मिय ? ] सण्णद्ध-बद्धकवइयउप्पीलिय १. पडाग-मंडियं (क)। २. सं० पा०-चंदन जाव गंधवट्टिभूयं । ३. सं० पा०-हतुटु जाव हियए। ४. एवं वयासी (ख, ग)। ५. X (क, ग)। ६. x (क)। ७. x (क, ग)। ८. अतोने 'आभिसेयं हत्थिरयणं' ति यत् क्वचिद् दृश्यते सोऽपपाठः (वृ)। ६. उज्जलणेवत्थेहिं (वपा); भगवत्यादर्श ‘एवं जहा ओववाइए' इति पाठो लभ्यते, द्रष्टव्यं ७१७५ सूत्रस्य पञ्चमं पादटिप्पणम् । भगवतीवृत्तौ (पत्र ३१७) औपपातिकस्य पाठो लिखितोस्ति, तत्र ये ये पाठभेदा: सन्ति ते यथास्थानं दर्शयिष्यन्ते उज्जलणेवत्थं हव्व परिवच्छियं । १०. भगवतीवृत्तौ (पत्र ३१७) उद्धृते औपपातिक पाठे 'चम्मियसण्णद्ध' इति पाठो व्याख्यातोस्तिचर्मणि नियुक्ताश्चाम्मिकास्तैः सन्नद्धः कृतसन्नाहश्चाम्मिकसन्नद्धः । प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्ती च 'धम्मियसण्णद्ध' इति पाठो व्याख्यातोस्तिधर्मणिनियुक्ता धामिकाः तैः सन्नद्ध-कृतसन्नाहं यत्तद्धार्मिकसन्नद्धम् । अनयोर्द्वयोरपि सूत्रयोयाख्याकाराः अभयदेवसूरिणो वर्तन्ते । तैर्यथा यथा पाठो लब्धस्तथा तथा व्याख्यातः प्राचीनलिप्यां धकार-चकार-वकाराणां प्रायः सादश्यमस्ति, तेन अर्वाचीनलिप्यामत्र वर्णनविपर्ययो जातः इति कल्पनापि नास्वाभाविकी। अस्मिन् प्रकरणे 'वम्मिय' इति पाठो सर्वथा उपयुक्तोस्ति । 'सण्णद्धबद्धवम्मियकवए' (भ० ७।१८५) इति विशेषणं सैनिकस्य लभ्यते । युद्धसज्जे हस्तिनि चापि एतद्विशेषणमुपयुक्तमस्ति । सम्भाव्यते अस्य विपर्ययः धम्मिय, चम्मिय' रूपेण जातः । Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-परणं कच्छवच्छ'-‘गेवेज्जबद्धगल-वरभूसणविरायंतं" अहियतेयजुत्तं ' 'सललियव रकण्णपूरविराइयं पओचूल' - महुरकयंधयारं" चित्तपरिच्छेयपच्छयं' पहरणावरण'- भरिय-जुद्धसज्जं सच्छत्तं सज्झयं सघंट' पंचामेलय' - परिमंडियाभिरामं ओसारिय- जमलजुयलघंटं विज्जुपिणद्धं व कालमेहं उप्पाइयपव्वयं व चंकमंत" मत्तं गुलगुलंतं" मण-पवण- जइणवेगं " भीमं संगामियाओज्झ" आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेइ, पडिकप्पेत्ता हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउ रंगिण से सण्णाइ, सण्णहेत्ता जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ || ३७ जाणसालिय- निद्देस -पदं ५८. तए णं से बलवाउए जाणसालियं सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सुभद्दापमुहाणं देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडियक्कपाडियक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताइं जाणाई उवट्ठवेहि, उवट्ठवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चपाहि ॥ ५६. तए णं से जाणसालिए बलवाउयस्स एयमट्ठे आणाए विणणं वयणं पडिसुणे, पडणेत्ता जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाणाई पच्चुवेक्खेइ, पच्चुवेक्खेत्ता जाणाई संपमज्जेइ, संपमज्जेत्ता जाणाई संवट्टेइ, संवट्टेत्ता जाणाई जीणे, णीणेत्ता जाणाणं दूसे पवीणेइ, पवीणेत्ता जाणाई समलंकरेइ", समलंकरेत्ता जाणाई वरभंडग-मंडियाइं करेइ, करेत्ता जेणेव वाहणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाहणालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता वाहणाई पच्चुवेक्खेइ, पच्चुवेक्खेत्ता वाहणाई संपमज्जेइ, संपमज्जेत्ता वाहणाई णीणेइ, णीणेत्ता वाहणाई अप्फालेइ, अप्फालेत्ता दूसे १. 'वच्छकच्छ (वृपा, भ० वृत्ति पत्र ३१७) । २. गेवेज्जगबद्धभूसणवि राइयं (वृपा), गेवेज्ज - गबद्धगलगभूसणविराइयं ( भ० वृत्तिपत्र ३१७ ) ३. 'अहियाहियते यजुत्तं' ति क्वचिद् दृश्यते ( वृ) । ४. पलंबवचूल ( क ) । ५. वाचनान्तरं त्वेवं ज्ञेयं (नेयं मुद्रितवृत्ति ) - ‘विरइयवरकण्णपूरं सल लिय पलंबओचूल चामरुक्करकयंधयारं' (वृ) ; विरइयकण्णपूरसललियपलंबावचूलचामरुक्क रकयंधयारं ( भ० वृत्तपत्र ३१७ ) । ६. चित्तपरिच्छोयपच्छयं ( क, ख ) ; चित्तपरिच्छोय पच्छयं कणगघडियं सुत्तगसुबद्धकच्छं ( भ० वृत्तिपत्र ३१८ ) । ७. सचावसरपहरणा (वृपा); बहुपहरणावरण १४. समलंकारेइ ( क ) ; समालंकारेइ (ग, वृ) । ( भ० वृत्तिपत्र ३१८ ) । ८. 'सपडागं' इत्यपि दृश्यते । ( वृ ) । ६. पंचामेल (क, ख ) । १०. सक्ख (वृपा, भ० वृत्तिपत्र ३१८ ) । ११. क्वचित् 'महामेहमिव दृश्यते ( वृ) ; मेहमिव गुलगुलंत ( भ० वृत्तिपत्र ३१८ ) । १२. सिग्धवेगं ( वृपा) । १३. संगामियाओग्गं । (क, वृ); संगामियपाओग्गं ( ख ) ; संगामियअयोगं ( ग ) ; संगामिया - ओज्जं, संगामियाओज्भं (वृपा ) ; वृत्तेद्वितीयपाठान्तरं मूलपाठरूपेण स्वीकृतम् । भगवत्यां ( ७ । १७५) 'संगामियं अओज्' इति पाठो लभ्यते । अर्थसमीक्षया एष पाठः सम्यक् प्रतिभाति । Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं पवीणेइ, पवीणेत्ता वाहणाई समलंकरेइ, समलंकरेत्ता वाहणाई वरभंडग - मंडियाई करे, करेत्ता ' वाहणाई जाणाई जोएइ, जोएत्ता पओय लट्ठि पओय-धरए य समं आई, आहित्ता वट्टमग्गं गाहेइ, गाहेत्ता" जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवगच्छित्ता बलवाउयस्स एयमाणत्तियं पच्चप्पिणई' || रगुत्तिय - निद्देस -पदं ३८ ६०. तए णं से बलवाउए णयरगुत्तियं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चंप णयरिं सभितरबाहिरियं आसित्त' - सम्मज्जिओवलित्तं जाव कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चष्पिणाहि || ६१. तए णं से यर गुत्तिए बलवाउयस्स एयमट्ठ आणाए विणणं वयणं पडिसुणेइ, पडणेत्ता चपं यरि सम्भितर बाहिरियं आसित्त-सम्मज्जिओवलित्तं जाव' कारवेत्ता य जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ ॥ बलवा यस्स निवेदण-पदं ६२. तए णं से बलवाउए कोणियस्स रण्णो भिभसार पुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थि रयणं पडिकप्पियं पासइ, हय-गय-रह-पवरजोह - कलियं चाउरंगिण सेणं° सण्णाहियं पास, 'सुभद्दापमुहाण य" देवीणं पडिजाणाई उवट्ठवियाई पासइ, चंप णयरि सब्भितर' बाहिरियं " गंध भूयं कयं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए" पीइमणे" "परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्पमाण हियए जेणेव कूणिए राया भिभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वेावेत्ता एवं वयासी - कप्पिए णं देवाणुप्पियाणं आभिसेक्के हत्थिरयणे, हय-गय-रहपवरजोहकलिया य चाउरंगिणी सेणा सण्णाहिया, सुभद्दापमुहाण य देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडियक्क - पाडियक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताइं जाणारं उवट्ठावियाई, चंपायरी सभितर बाहिरिया आसित्त-सम्मज्जिओवलित्ता जाव " गंधवट्टिभूया कया, तं णिज्जंतु णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं अभिवंदया || कूणिय-सज्जा-पदं ६३. तए णं से कूणिए राया भिभसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठ" "चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्पमाण - हियए १. दशाश्रुतस्कन्धे (१०।१० ) चिह्नाङ्कित पाठस्य ७. सं० पा० - हयगय जाव सण्णाहियं । स्थाने भिन्नः क्रमो लभ्यते -- जाणाई जोएति, ८. सुभद्दापमुहाणं ( ग ) । जोएत्ता वट्टमग्गं गाति गाहेत्ता पओय8. अभितर ( क ) । afg ओधर य समं आडहर, आडहित्ता । १०. ओ० सू० ५५. । २. पच्चप्पिणाइ ( क ) 1 ११. चित्तमादिए दिए ( ग ) । ३. आसिय (क, ख ) । १२. सं० पा० - पीइमणे जाव हियए । ४. ओ० सू० ५५ । ५. X ( क, ग ) । ६. ओ० सू० ५५ । १३. ओ० सू० ५५ । १४. सं० पा०-हट्टतुट्ठ जाव हियए । Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं ३६ जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अणेगवायाम-जोग्ग-वग्गण-वामद्दण-मल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्संते सयपाग-सहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहि विहणिज्जेहिं सव्वि दियगायपल्हायणिज्जेहि" अभिगेहिं अभिगिए समाणे तेल्लचम्मंसि-पडिपुण्ण-पाणि-पाय-सुउमाल-कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तद्वेहि कुसलेहि मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं अभिंगण'-परिमद्दणुव्वलण-करण-गुणणिम्माएहिं अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए-चउविहाए संबाहणाए संबाहिए समाणे अवगय-खेय-परिस्ममे अट्टणसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघर तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समत्तजालाउलाभिरामे' विचित्त-मणिरयणकुटिमतले रमणिज्जे हाणमंडवंसि णाणामणि-रयण-भत्तिचित्तंसि हाणपीढंसि सुहणिसण्णे सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहिं पुणो-पुणो कल्लाणग-पवरमज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवरमज्जणावसाणे पम्हल-सुकुमाल-गंध-कासाइ-लूहियंगे सरस-सुरहि-गोसीस-चंदणाणुलित्तगत्ते अहय-सुमहग्घदूसरयण-सुसंवुए सुइमाला -वण्णग-विलेवणे य आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियहारद्वहार-तिसरयपालंब-पलंवमाण-कडिसुत्त-सुकयसोभे पिणद्ध'-गेवेज्जग-अंगुलिज्जग-ललियंगय-ललियकयाभरणे वरकडग-तुडिय-थंभियभुए अहियरूवसस्सिरीए मुद्दियपिंगलंगुलीए" कुंडलउज्जोवियाणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थय-सुकय-रइयवच्छे पालब-पलबमाण-पड-सुकयउत्तरिज्जे" णाणामणिकणग-रयण-विमल-महरिह-णिउणोविय-मिसिमिसंत-विरइय-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठलठ्ठ-आविद्ध-वीरवलए, कि बहुणा ? कप्परुक्खए चेव अलंकियविभूसिए णरवई सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामरवालवीइयंगे"-मंगल-जयसद्द-कयालोए'५ १. एतानि पदानि वाचनान्तरे क्रमान्तरेणाधीयन्ते ११. सुकय-पडउत्तरिज्जे (ना० १११।२५, जं० (व)। ३६)। २. पठेहि (ख, ग)। १२. सकोरेंट० (क, ग)। ३. अब्भंगण (क, ग, वृ)। १३. वाचनान्तरे पुनच्छत्रवर्णक एवं दृश्यते४. सेय (क, ख)। अब्भपडलपिंगलुज्जलेणं अविरलसमसहिय५. समुत्त० (वृपा)। चंदमंडलसमप्पभेणं मंगलसयभत्तिछेयचित्तियं६. कासाइय (ख, ग)। खिखिणिमणिहेमजालविरइयपरिगयपेरंतकणग - ७. संवए (ग, वृ); सुसंवुए (वृपा) । घंटिया पयलियकिणिकिणितसुइसुहसुमहुरसद्दाल८. सुरभिमाला (ख, ग)। सोहिएणं सप्पयरवरमुत्तदामलंबंतभूसणेणं' ६. पिणिद्ध (क, ख, ग)। नरिंदवामप्पमाणरुंदपरिमंडलेणं सीयायववाय१०. मुद्दियापिंगलंगुलीए (ख, ग); x (वृ); मुद्दि- वरिसविसदोसनासणेणं तमरयमलबहलपडलयपिंगलंगुलीए (वृपा)। धाडणपभाकरेणं उडुसुहसिवच्छायसमणुबद्धेणं १. मुद्रितवृत्तौ 'विचित्तिय' पाठस्तथा 'विचित्रितम्' विद्यते । व्याख्या विद्यते, किन्तु हस्तलिखितवृत्तौ २. भूसणधरेणं (हस्तलिखितवृत्ति) । 'चित्तियं' पाठस्तथा 'चित्रितम्' इति व्याख्या ३. उउ (मुद्रितवृत्ति)। Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अणेगगणनायग-दंडनायग-राईसर-तलवरमाडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-दूय-संधिवालसद्धि संपरिवुडे धवलमहामहणिग्गए इव गहगण-दिप्पंत-रिक्ख-तारागणाण' मज्झे ससिव्व पिअदसणे णरवई जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवई' णरवई दुरूढे ।। परिकर-सज्जा पदं ६४. तए णं तस्स कूणियस्स रण्णो भिभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरूढस्स वेरुलियदंडसज्जिएणं वइरामयवस्थिनिउणजोइ- जहा उववाइए जाव' इत्यनेनेदं सूचितम्यअट्टसहस्सव रकंचणसलागनिम्मिएणं सुणिम्मल- अणेगगणनायगदंडनायगराईसरतलवरमाडंबिय - रययसुच्छएणं निउणोवियमिसिमिसितमणि रय कोडुबियमंतिमहामंतिगणगदोवारियअमच्चचेड - णसूरमंडलवितिमिरकरनिग्गयग्गपडिहयपूणर - पीढमहणगरनिगमसेट्ठिसेणावइसत्थवाहदूयसंधि - विपच्चापडतचंचलमिरिइकवयं विणिमयंतेणं पालसद्धि संपरिवुडे धवलमहामेहनिग्गए विव सपडिदंडेणं धरिज्जमाणेणं आयवत्तेणं विरायंते गहगणदिप्पंतरिक्खतारागणमझे ससिव्व पिय(वृ)। दंसणे नरवई मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ १४. वाचनान्तरेतु-'चउहिय' पवरगिरिकुहर- मज्जणघराओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव । प्रस्तुतविवरणसमुइयनिरुवयचम रपच्छिमसरीरसंजा - सूत्रस्यअष्टादशे सूत्रे भगवतीवृत्ती (४६३) यसंगयाहि अमलियसियकमलविमलुज्जलियरय- च परिवारवर्णनेपि ईदृश: पाठो लभ्यते-- यगिरिसिहरविमलससिकिरणसरिसकलधोय अणेगगणनायगदंडनायगराईसरतलवरमाडंबिय - निम्मलाहिं पवणायचवलललियतरंगहत्थनच्च- कोडुबियमंतिमहामंति गणगदोवारियअमच्च - तवीइपसरियखीरोदगपवरसागरुप्पूरचंचलाहिं चेडपीढमद्दनगरनिगमसेट्ठिसत्थवाद्यसंधिवाल - माणससरपरिसरपरिचियावासविसयवेसाहि क- सद्धि संपरिवुडे । यत्र राज्ञः परिवारवर्णनं णगगिरिसिहरसंसियाहि ओवइयउप्पइयतुरिय- तत्रतादश: पाठो लभ्यते, यत्र च जनसमूहचवलजइणसिग्घवेगाहिं हंसवधूयाहिं चेव वर्णनं तत्र मतिमहामंति' आदिपदानि नैव कलिए। णाणामणिकणगरयणविमलमहरिह- दृश्यन्ते । द्रष्टव्यं प्रस्तुतसूत्रस्य ५२ सूत्रं तथा तवणिज्जुज्जलविचित्तदंडाहिं चिल्लियाहिं भगवतीवृत्तावपि (पत्र ४६३) उद्धृतः औपपानरवइसिरि' समुदयपगासणकरीहि वरपट्टणुग्ग- तिकपाठः- 'माहणा भडा जोहा मल्लई याहिं समिद्धरायकुलसेवियाहि कालागरु' पवर- लच्छई अण्ण य बहवे राईसरतलवरमाडबियकुंदुरुक्कतुरुक्कवरवण्णवासगंधुद्धयाभिरामाहि कोडुबियइब्भसेट्ठिसेणावइ त्ति । प्रस्तुतप्रकरणे सललियाहि उभओपासंपि उक्खिप्पमाणाहिं जनसमूहवर्णकः पाठः केनापि कारणेन प्रविष्टोचामराहि सुहसीयलवायवीइयंगे' (व)। भूत् इति सम्भाव्यते । १५. अतः परं 'जेणेव' अत: पूर्व भगवतीवृत्त्यां १. तारागण (क)। (पत्र ३१८) औपपातिकस्य यः पाठः उद्धृ- २. गयवरं (क)। तोस्ति स प्रस्तुतपाठात् भिन्नो लभ्यते-एवं १. 'ताहि य'त्ति क्वचित् (व) । ३. कालागरु:-कृष्णागरु: (हस्तलिखितवृत्ति)। २. सरि (हस्तलिखितवृत्ति) । ४. कलित इति वर्तते (व) । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं समाणस्स तप्पढमयाए इमे अट्ठट्ठ मंगलया पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया, तं जहासोवत्थिय - सिरिवच्छ-णंदियावत्त- वद्धमाणग-भद्दासण- कलस-मच्छ-दप्पणया । तयाणंतरं च णं पुण्णकलसभिगारं 'दिव्वा य छत्तपडागा" सचामरा दंसण- रइयआलोय-दरिसणिज्जा वाउद्धय' - विजयवेजयंती य ऊसिया गगणतल मणुलिहंती पुरओ अहावी संपट्ठिया । तयानंतरं च णं वेरुलिय-भिसंत-विमलदंडं पलंबकोरंटमल्लदामोवसोभियं चंदमंडलणिभं समूसियं विमलं आयवत्तं पवरं सीहासणं वरमणिरयणपादपीढं सपाउयाजोयसमा उत्तं' बहुकिंकर -कम्मकर- पुरिस - पायत्तपरिक्खित्तं पुरओ अहाणुपुव्वीए' संपट्ठियं । तयानंतरं च णं बहवे लट्ठिग्गाहा' कुंतंग्गाहा 'चामरग्गाहा पासग्गाहा चावग्गाहा " पोत्थयग्गाहा फलगग्गाहा पीढग्गाहा वीणग्गाहा कूवग्गाहा' हडप्पग्गाहा' पुरओ अहाणुपुव्वी संपट्ठिया । यानंतरं चणं बहवे दंडिणो मुंडिणो सिहंडिणो जडिणो पिंछिणो" हासकरा डमरकरा दवकारा चाडुकरा कंदप्पिया कोक्कुइया किड्डकरा य वायंता य गायंता य णच्चता य हसंता भासंताय 'सासंता य" सावेंता य रक्खंता" य आलोयं च करेमाणा जयजयसद्दं" पउंजमाण पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिया । तयाणंतरं 'चणं ९५ जच्चाणं तरमल्लिहायणाणं" थासग अहिलाण- चामर-गंड १. दिव्वायवत्तपडागा ( राय० सू० ५० ) । रायपसेणइयसूत्रस्य वत्ती ( पृ० १०८) दिव्यात पत्रपताका' इति व्याख्यातमस्ति, अतः 'दिव्वायवत्तपडागा' इति पाठ: फलितो भवति । सम्भाव्यते लिपिदोषेण वकारस्य स्थाने छकारो जात:, तेन पाठपरिवर्तनमभूत । २. वाउ ( ख ) । ३. सपाउयाजुग॰ (भ० वृत्तिपत्र ४७९ ) । ४. दासीदास किंकर (वृपा) । ५. अहापुवी ( क ) । ६. असिलट्टिग्गाहा (वृपा ) । ७. चावग्गाहा चामरग्गाहा पासग्गाहा (क, ख ) । ८. कूवयग्गाहा ( भ० वृत्तिपत्र ४७९ ) । 8. हडप्पयरगाहा (क); हडप्फयग्गाहा ( ख ) । १०. पिच्छिणो ( ग ) । ११. X ( क, ख ) ; सासिता य ( वृ ) । १. दंडप्पा (हस्तलिखिवृत्ति ) । २. पिच्छी ( मुद्रित वृत्ति) । १२. रावेंता (वृपा) । १३. जयसद्दं ( ग ) । १४. सङ्ग्रहगाथाश्चास्य गमस्य क्वचिद् दृश्यन्ते, तद्यथा ४१ असिलट्ठिकुंतचावे, चामरपासे य फलगपोत्थे य । वीणाकू हे तत्तो हडप्पग्गाहे' य ॥ दंड मुंडिसिहंडी, पिंछी' जडिगो य हासकिड्डा य । दवकार' चडुकारा, कंदप्पिय- कुक्कुइ गायए ॥ गायंता वायंता, नच्चंता तह हसंतहासेंता । सावेंता रावेंता, आलोयजयं परंजंता ॥ ( वृ) | १५. X ( क, ग ) । १६. वाचनान्तरेत्वेवमधीयते 'वरमल्लिभासणाणं हरिमेलाम उलमल्लियच्छाणं चंचुच्चियल लियपुलियचलचवलचंचल गईणं लंघणवग्गणधावणधोरण तिवई* जइणसिक्खियगईणं ललंतलामगललायवरभूसणाणं मुहभंडगओचूलगथासग ३. दवकारा (हस्तलिखितवृत्ति) । ४. तिवइ (हस्तलिखितवृत्ति) । Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं परिमंडियकडीणं किंकरवतरुणपरिग्गहियाणं' अट्ठसयं वरतुरगाणं पुरओ अहाणुपुव्वीए संपटियं। तयाणंतरं च णं ईसीदंताणं 'ईसीमत्ताणं ईसीतुंगाणं" ईसीउच्छंगविसाल-धवलदंताणं कंचणकोसी-पविठ्ठदंताणं कंचणमणिरयणभूसियाण' वरपुरिसारोहगसंपउत्ताण अट्ठसयं गयाणं पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठियं । ___ तयाणंतरं च णं सच्छत्ताणं सज्झयाणं सघंटाणं सपडागाणं सतोरणवराणं सणंदि घोसाणं सखिखिणीजाल-परिक्खित्ताणं हेमवय-चित्त-तिणिस-कणग-णिज्जुत्त-दारुयाणं कालायससुकयणेमि-जंतकम्माणं सुसिलिट्ठवत्तमंडलधुराणं आइण्णवरतुरगसुसंपउत्ताणं" कुसलनरच्छेयसारहिसुसंपग्गहियाणं' बत्तीसतोणपरिमंडियाणं' सकंकडवडेंसगाणं सचावसरपहरणावरणभरिय-जुद्धसज्जाणं अट्ठसयं रहाणं पुरओ अहाणुपुब्बीए संपठ्ठियं। तयाणंतरं च णं असि-सत्ति-कुंत-तोमर-सूल-लउल-भिडिमाल-धणुपाणिसज्ज पायत्ताणीयं पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठियं ॥ कूणियस्स निग्गमण-पदं ६५. तए णं से कूणिए राया हारोत्थय-सुकय-रइयवच्छे" कुंडलउज्जोवियाणणे मउडदित्तसिरए णरसीहे णरवई परिंदे णरवसहे मणुयरायवसभकप्पे अब्भहियं रायतेयलच्छीए दिप्पमाणे हत्थिक्खंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धव्वमाणीहिं-उद्धृव्वमाणीहिं वेसमणे विव" णरवई अमरवइसण्णिभाए इड्ढीए पहियकित्ती हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए समणुगम्ममाणमग्गे जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। मिलाणचमरीगंडपरिमंडियकडीणं किंकरवर ५. सखिखिणीजाला (ग)। तरुणपरिग्गहियाणं' (व); हरिमेलामउल- ६. क्वचिदृश्यते 'सुसंविद्धचक्कमंडलधुराणं (व)। मल्लियच्छाणं चंचुच्चियललियपुलियचलचवल- ७. तुरगसंपउत्ताणं (क, ख) । चंचलगईणं लंघणवग्गणधावणधोरणतिवई- ८. क्वचित्पठ्यते –'हेमजालगवक्खजालखिखिजइणसिक्खियगईणं ललंतलामगललायवरभूस- णीघंटजालपरिक्खित्ताणं (वृ)। णाणं मुहभंडगओचूलग (क, ख, ग), भगवती- ६. बत्तीसतोरण° (क, ग, वृपा)। वृत्तौ (पत्र ४७६) वाचनान्तररस्य पाठे 'वर- १०. वाचनान्तरे पून:-'सन्नद्धबद्धवम्मियकवयाणं मल्लिहाणाणं' इति मूलपाठत्वेन तथा 'वर- उप्पीलियसरासणवट्टियाणं पिणद्धगेवेज्जमल्लिहायणाणं' वरमल्लिभासणाणं' एतद् द्वयं विमलवरवचिधपट्टाणं गहियाउहप्पहरणाणं' पाठान्तरत्वेन उल्लिखितमस्ति । १. X (ग)। ११. अतः परं भगवतीवृत्तौ (पत्र ३१६) 'पालंब२. ईसीमंताणं (क, ग)। पलंबमाणपडसुकयउत्तरिज्जे' इति पाठ; उल्लि३. x (ग, वृ)। खितोस्ति, परन्तु प्रस्तुतसूत्रे नैष पाठो लभ्यते । ४. x (ग, वृ); वरपुरिसारोहगसंपउत्ताणं १२. चेव (वृ) । (वृपा)। Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं ६६. तए' णं तस्स कूणियस्स रण्णो भिभसारपुत्तस्स पुरओ महं आसा आसधरा', उभओ पासि णागा णागधरा', पिठो रहसंगेल्लि ॥ ६७. तए णं से कूणिए राया भिभसारपुत्ते अब्भुग्गय भिंगारे पग्गहियतालियंटे' ऊसवियसेयच्छत्ते पवीइयवालवीयणीए' सव्विड्ढीए सव्वजुतीए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं' सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारेणं सव्वतुडिय-सद्दसण्णिणाएणं महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडिय-जमगसमग-प्पवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरयमुइंग-दुंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं चंपाए णयरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ । आसीवयण-पदं ६८. तए णं तस्स कूणियस्स रण्णो 'चंपाए णयरीए'' मज्झमज्झेणं निग्गच्छमाणस्स बहवे अत्यत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किव्विसिया" कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया वद्धमाणा पूसमाणया खंडियगणा ताहिं इट्ठाहिं कंताहि पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहि मणाभिरामाहि" हिययगमणिज्जाहिं वग्गूहि जयविजयमंगलसएहिं अणवरयं अभिणंदंता य अभित्थणता य एवं वयासी-जय-जय गंदा ! जय-जय भद्दा ! भदं ते, अजियं जिणाहि जियं पालयाहि, जियमज्झे वसाहि। इंदो इव देवाणं चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं चंदो इव ताराणं भरहो इव मणुयाणं बहूई १. जम्बुद्वीपप्रज्ञप्तौ (३।१७९) एतत्सूत्रं पूर्व किट्टिसिक स्थाने 'किदिवसिय' त्ति पठ्यते (भ० विद्यते, ततश्च राजवर्णकं सूत्रं वर्तते । इह च वृत्तिपत्र ४८१)। राजवर्णकं सूत्रं पूर्वमस्ति ततश्च 'आसा आस- १२. पूसमाणवा (भ० वृत्तिपत्र ४८१); अतः धरा' एतत्सूत्रमस्ति । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ते: क्रमः परं भगवतीवत्तौ 'खंडियगणा' इति पाठो नास्ति, सम्यक् प्रतिभाति । प्रस्तुतसूत्रे न जाने केन- किन्तु तत्र त्रीणि पाठान्तराणि उल्लिखितानि कारणेन क्रमविपर्ययो जातः । सन्ति-'इज्जिसिया पिडिसिया घंटिय'पि २. आसवरा (क, ख, वृपा)। क्वचिदृश्यते, तत्र च इज्यां-पूजामिच्छन्त्ये३. णागवरा (क, ख, वृपा) । षयन्ति वा ये ते इज्यैषास्त एव स्वाथिके ४. "तालयंटे (ख, ग)। क प्रत्ययविधानाद् इज्यैषिकाः, एवं पिण्डैषिका ५. वीजिणीए (क, ख)। अपि, नवरं पिण्डो---भोजनम्, घाण्टिकास्तु ये ६. सव्वजुत्तीए (क, वृ); सव्वजुईए (ख)। घण्टया चरन्ति तां वा वादयन्ति । ७. क्वचिदिदं पदचतुष्कमधिकं दृश्यते-'पगईहिं १३. मणोभिरामाहि (क); वाचनान्तराधीतमथ नायगेहिं तालायरेहिं सव्वोरोहेहिं' (वृ) । प्रायो वाविशेषणकदम्बकम्-'उरालाहिं कल्ला ८. क्वचिदृश्यते-सव्वपूप्फवत्थगंधमल्लालंकार- णाहिं सिवाहिं धण्णाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरियाविक्कसाए' (व)। हिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं ६. मुरव (क, ख, ग)। मियमहरगंभीरगाहिगाहिं (मियमहरगंभीर१० चंप णयरि (ख)। सस्सिरियाहिं' ति क्वचिदृश्यते-भ० ११. 'इढिसिय' ति रूढिगम्याः 'किट्टिसिय' त्ति वृत्तिपत्र ४८२) असइयाहिं अपुणरुत्ताहि' किल्विषिका भाण्डादय इत्यर्थः, क्वचित (वृ)। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं वासाइं बहुइं वाससयाई 'बहूई वाससहस्साइं" 'बहूई वाससयसहस्साइं"२ अणहसमग्गो हट्ठतुट्ठो परमाउं पालयाहि इट्ठजणसंपरिवुडो चंपाए णयरीए अण्णेसिं च बहणं गामागरणयर-खेड-कब्बड-'दोणमुह-मडंव"-पट्टण-आसम-निगम-संवाह-संणिवेसाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं 'सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहयनट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहराहि त्ति कटु जय-जय सदं पउंजति ।। कूणिय-पज्जुवासणा पदं ६६. तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते नयणमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणेपेच्छिज्जमाणे हिययमालासहस्सेहिं अभिणंदिज्जमाणे'-अभिणं दिज्जमाणे मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे-विच्छिप्पमाणे वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे-अभिथुव्वमाणे कतिसोहग्गगुणेहि पत्थिज्जमाणे-पत्थिज्जमाणे बहूणं नरनारिसहस्साणं दाहिणहत्थेणं" अंजलिमालासहस्साइं पडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे 'मंजुमंजुणा घोसेणं आपडिपुच्छमाणेआपडिपुच्छमाणे" भवणपंतिसहस्साइं समइच्छमाणे-समइच्छमाणे" चंपाए नयरीए मज्झं१. X (ग)। (ख, वृपा); प्रस्तुतसूत्रस्य वाचनान्तरे पर्यु२. ४ (ख)। षणाकल्पे (सूत्र ७५) 'अपडिबुज्झमाणे' तथा ३. मडंबदोणमुह (ग, वृ)। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ (३।१८६) 'अपडिबुज्झमाणे' ४. x (ग, वृ)। इति पाठो लभ्यते। ५. भट्टित्तं सामित्तं (व)। ११. X (भ० वृत्तिपत्र ४८३) । ६. उन्नइज्जमाणे (वृपा)। १२. वाचनान्तरे त्वेवं-'तंती-तल-ताल-तुडिय'७. कंतिदिव्वसोहग्गगुणेहिं (क, ख); कंतिरूव- गीयवाइयरवेणं महुरेणं मणहरेणं जयसदुग्धोस___ सोहग्गजोव्वणगुणेहिं (भ० वृत्तिपत्र ४८३)। विसएणं' मंजुमंजुणा घोसेणं अपडिबुज्झमाणे ८. पिच्छिज्जमाणे (क, ग); पेच्छिज्जमाणे 'कंदरगिरिविवरकुहरगिरिवरपासादुद्धघणभवण(ख); पच्छिज्जमाणे (वृ)। देवकुलसिंघाडगतिगचउक्कचच्चरआरामुज्जाण६. अंगुलिमालासहस्सेहि दाइज्जमाणे २ दाहिण- काणणसभापवापदेसदेसभागे" 'पडिसुयासय हत्थेणं बहूणं नरनारिसहस्साणं (भ० वृत्तिपत्र । सहस्ससंकुल' करेंते'' हयहेसियहत्थिगुलगुलाइय४८३)। रहघणघणसद्दमीसएणं महया कलकलरवेण १०. अपडिबुज्झमाणे (क, वृपा); पडिबुज्झमाणे जणस्स ‘महुरेणं पूरयंते सुगंधवरकुसुमचुण्ण१.X(भ० वृत्तिपत्र ४८३) । सभापएस' त्ति (भ० वृत्तिपत्र ४८३) । २. मीसएणं-जयेति शब्दस्य यद् उद्घोषणं तेन ५. पडिसद्द (डिसुआ) (मुद्रितवृत्ति) । मिश्री यः (भ० वृत्तिपत्र ४८३)। ६. पडिसुयासयसहस्ससंकुले करेमाणे (भ० वृत्ति३. अपरिबुज्झमाणे (हस्तलिखितवृत्ति)। पत्र ४८३)। ४. अयं पुनर्दण्डकः क्वचिदन्यथा दृश्यते-'कंदर- ७. सुमहुरेणं पूरेंतोऽबरं समंता (भ० वृत्तिपत्र दरिकूहरविवरगिरिपायारद्धालचरियदारगोउर- ४८३)। पिसायदुवारभवणदेवकुलआरामुज्जाणकाणण Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं ४५ मज्झणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्ताईए तित्थयराइसेसे पासइ, पासित्ता आभिसेक्क हत्थिरयणं ठवेइ, ठवेत्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता अवहट्ट पंच रायकउहाइं, तं जहा-खग्गं छत्तं उप्फेसं वाहणाओ वालवीयणयं, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, [तं जहा-सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरणयाए एगसाडिय-उत्तरासंगकरणेणं चक्खुप्फासे अंजलिपग्गहेणं' मणसो एगत्तिभावकरणेणं"] । समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ। [तं जहा-काइयाए वाइयाए माणसियाए। काइयाए-ताव संकुइयग्गहत्थपाए सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जूवासइ । वाइयाए-जं जं भगवं वागरेइ एवमयं भंते ! तहमयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह अपडिकलमाण" पज्जुवासइ। माणसियाए-महयासंवेगं जण इत्ता तिव्वधम्माणुरागरत्ते पज्जुवासइ ] ॥ देवी पज्जुवासणा-पदं ७०. तए णं ताओ सुभद्दप्पमुहाओ देवीओ अंतोअंतेउरंसि व्हायाओ" कयबलिकम्माओ कय-कोउय-मंगल°-पायच्छित्ताओ सव्वालंकारविभूसियाओ" बहूहिं खुज्जाहिं चिलाईहिं वामणीहिं वडभीहि बब्बरीहिं पउसियाहिं जोणियाहिं पल्हवियाहि ईसिणियाहिं" थारुइणियाहिं" लासियाहिं लउसियाहिं सिंहलीहिं दमिलीहिं आरवीहिं पुलिंदीहिं उन्विद्धवासरेणुकविलं' नभं करेंते कालागुरु-कुंदुरुक्क तुरुक्क-धूवनिवहेणं जीवलोगमिव वासयंते समंतओखुभियचक्कवालं पउरजणबालवुड्ढपमुइयतुरियपहावियविउलाउल बोलबहुलं नभं करेंते' (व); भगवतीवृतौ (पत्र ४८३) एतद् वाचनान्तरं मूलपाठत्वेन उल्लिखितमस्ति । एतस्मिन् ये ये पाठभेदाः सन्ति ते यथास्थानमुपदर्शिताः। १. वालवीयणियं (क); वालवीयणिज्ज (ख,ग) १०. सं० पा.--ण्हायाओ जाव पायच्छित्ताओ । २. एगसाडिएणं (भ० २।६७) । ११. वाचनान्तरं - 'वाहुयसुभगसोवत्थियवद्धमाण३. 'हत्थिखंधविट्ठभणयाए' त्ति वाचनान्तरम् (वृ) पुस्समाणवजयविजयमंगलसएहिं अभिथुव्व४. मणसा (ग)। माणीओ कप्पाछेयायरियरइयसिरसाओ महया ५. एगत्तिकरणेणं (ख); एगत्तीकरणेणं (भ० गंधद्धणि मुयंतीओ' (व) । २।६७)। कोष्ठकवर्तिपाठो व्याख्यांशः प्रतीयते । १२. वडभियाहिं (व)। ६. पंजलिकडे (ग)। १३. पण्हवियाहिं (ख, ग)। ७. अपडिकूलेमाणे (ग)। १४. ईसिगिणियाहिं (भ० ६।१४४ का पाद८. कोष्ठकतिपाठो व्याख्यांशः प्रतीयते। टिप्पणम्) । ६. धारिणीप्पमुहाओ (वृपा)। १५. चारुणियाहिं (ख); चाराणियाहिं (ग) । १. रेणुमइलं (भ० वृत्तिपत्र ४८३) । २. पवरकुंदुरुक्क (भ० वृत्तिपत्र ४८३) । Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं पक्कणीहिं बहलीहिं मरुंडीहिं सबरीहिं पारसीहिं णाणादेसीहि विदेसपरिमंडियाहि' इंगिय-चितिय-पत्थिय-वियाणियाहिं सदेसणेवत्थ-गहियवेसाहिं चेडियाचक्कवाल-वरिसधरकंचुइज्ज-महत्तरवंदपरिक्खित्ताओ अंतेउराओ निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव पाडियक्कजाणाइं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पाडियक्क-पाडियक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाइं दुरूहंति, दुरूहित्ता णियगपरियालसद्धिं संपरिवुडाओ चंपाए णयरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामते छत्तादीए तित्थय राइसेसे पासंति, पासित्ता पाडियक्कपाडियक्काई जाणाइं ठवेंति, ठवेत्ता जाणेहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता बहुहिं खुज्जाहिं जाव चेडियाचक्कवाल-वरिसधर-कंचुइज्ज-महत्तरवंदपरिक्खित्ताओ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छंति । [तं जहा- सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरणयाए' विणओणयाए गायलट्ठीए चक्खुप्फासे अंजलिपग्गहेणं मणसो एगत्तिभावकरणणं] । समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति णमसंति, वंदित्ता णमसित्ता कूणियरायं पुरओ कटु ठिइयाओ चेव सपरिवाराओ अभिमुहाओ विणएणं पंजलिकडाओ पज्जुवासंति ।। धम्मदेसणा-पदं ७१. तए णं समणे भगवं महावीरे कूणियस्स रण्णो भिभसारपुत्तस्स सुभद्दापमुहाण य देवीणं तीसे य महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अणेगसयाए अणेगसयवंदाए अणेगसयवंदपरियालाए' ओहवले अइबले महब्बले अपरिमियबल-वीरिय-तेय-माहप्प-कंतिजुत्ते सारय-णवत्थणिय-महुरगंभीर-कोंचणिग्घोस-दुंदुभिस्सरे उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए" अमम्मणाए 'सुव्वत्तक्खर-सण्णिवाइयाए" पुण्णरत्ताए सव्वभासाणुगामिणीए सरस्सईए जोयणणीहारिणा सरेणं अद्धमागहाए भासाए भासइ-अरिहा धम्म परिकहेइ । तेसिं सव्वेसिं आरियमणारियाणं अगिलाए धम्म आइक्खइ। सावि य णं अद्धमाहगा भासा तेसिं सव्वेसिं आरियमणारियाणं अप्पणो" सभासाए परिणामेणं परिणमइ, तं जहा-अस्थि लोए अत्थि अलोए, अत्थि जीवा अत्थि अजीवा अत्थि बंधे अत्थि मोक्खे अत्थि पूण्णे अत्थि पावे अत्थि आसवे अत्थि संवरे अत्थि वेयणा अत्थि णिज्जरा, अत्थि अरहंता अस्थि चक्कवट्टी अत्थि बलदेवा अत्थि वासुदेवा, अत्थि नरगा अत्थि गेरइया अत्थि तिरिक्खजोणिया अत्थि तिरिक्खजोणिणीओ, अत्थि १. 'विदेसपरिपिडियाहिं' ति वाचनान्तरम् (व)। टिप्पणम् ।। २. पत्थियमणोगय (वृपा)। ८. सव्वक्खरसण्णिवाइयाए (ग); क्वचिदिदं ३. अविमोयणयाए (भ० ६।१४६) । विशेषणद्वयम्-'फुडविसयमहुरगंभीरगाहियाए ४. मणस्स (भ० ६।१४६)। सव्वक्खरसण्णिवाइयाए (व) । ५. कोष्ठकतिपाठो व्याख्यांशः प्रतीयते । ६. अरहा (क)। ६. परिवाराए (क, ख, ग)। १०. अप्पणो-अप्पणो (ख)। ७. द्रष्टव्यं रायपसेणइयसूत्रस्य ६१ सूत्रस्य पाद Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोसरण-पयरणं माया अत्थि पिया अत्थि रिसओ, अत्थि देवा अत्थि देवलोया, अत्थि सिद्धा अत्थि सिद्धी अत्थि परिणिव्वाणे अत्थि परिणिव्वया, अत्थि पाणाइवाए मुसावाए अदत्तादाणे मेहुणे परिग्गहे अत्थि कोहे माणे माया लोभे अत्थि पेज्जे दोसे कलहे अब्भक्खाणे पेसुण्णे परपरिवाए अरइरई मायामोसे मिच्छादसणसल्ले, अत्थि पाणाइवायवेरमणे मुसावायवेरमणे अदत्तादाणवेरमणे मेहणवेरमणे परिग्गहवेरमणे' 'अत्थि कोहविवेगे माणविवेगे मायाविवेगे लोभविवेगे पेज्जविवेगे दोसविवेगे कलहविवेगे अब्भक्खाणविवेगे पेसुण्ण विवेगे परपरिवायविवेगे अरतिरति विवेगे मायामोस विवेगे मिच्छादसणसल्लविवेगे', सव्वं अत्थिभावं अत्थि त्ति वयइ, सव्वं णत्थिभावं णत्थि त्ति वयइ, सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति फुसइ पुण्णपावे पच्चायंति जीवा सफले कल्लाणपावए । ७२. धम्ममाइक्खइ-इणमेव णिग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवलिए' संसुद्धे पडिपुण्णे णेयाउए सल्लकत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे ‘णिज्जाणमग्गे णिव्वाणमग्गे" अवितहमविसंधि' सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे। इत्थंठिया' जीवा सिझंति बुज्झंति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। एगच्चा पुण एगे भयंतारो' पुव्वकम्मावसेसेणं अण्णय रेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति–महड्ढिएसु 'महज्जुइएसु महब्ब लेसु महायसेसु° महासोक्खेसु महाणुभागेसु दूरंगइएसु चिरट्ठिइएसु। ते णं तत्थ देवा भवंति महिड्ढिया 'महज्जुइया महब्बला महायसा महासोक्खा महाणुभागा दूरंगइया चिरट्ठिइया हारविराइयवच्छा" 'कडग-तुडिय-थंभियभुया अंगय-कुंडल-मट्ठगंड-कण्णपीढधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमाला-मउलि-मउडा कल्लाणगपवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपवरमल्लाणलेवणा भासुरवोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं रूवेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघाएणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुईए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा कप्पोवगा गतिकल्लाणा आगमेसिभा •पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा. पडिरूवा॥ ७३. तमाइक्खइ- एवं खलु चउहिं ठाणेहिं जीवा णेरइयत्ताए कम्म पकरेंति, पकरेत्ता णेरइएसु उववज्जंति, तं जहा-महारंभयाए महापरिग्गयाए पंचिदियवहेणं कुणिमाहारेणं । •"एवं खलु चउहि ठाणेहिं जीवा तिरिक्खजोणियत्ताए कम्मं पकरेंति, पकरेत्ता १. सं० पा०-परिग्गहवेरमणे जाव मिच्छादसण- ७. भवंतारो (क) । सल्लविवेगे। ८. सं० पा०-महिड्ढिएसु जाव महासोक्खेसु । २. मिच्छादसणसल्लवेरमणे (ख) । ६. सं० पा०-महिड्ढिया जाव चिरट्टिया। ३. केवलि (ख, ग); केवले (वृ)। १०. सं० पा०-हारविराइयवच्छा जाव पभासे४. णिव्वाणमग्गे णिज्जाणमग्गे (क, ग)। माणा। ५. अवितहमविसंधे (क); अवितहमसंदिद्धे ११. सं० पा०-आगमेसिभद्दा जाव पडिरूवा । (ख)। १२. सं० पा०-एवं एएणं अभिलावेणं तिरिक्ख६. इहट्ठिया (ग, वृ)। जोणिएसु। Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ ओवाइयं तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति तं जहा॰—माइल्लयाए अलियवयणेण उक्कंचणयाए वंचणयाए। • एवं खलु चउहि ठाणेहिं जीवा मणुस्सत्ताए कम्मं पकरेंति, पकरेत्ता मणुस्सेसु उववज्जति, तं जहा-पगइभट्टयाए पगइविणीययाए साणक्कोसयाए अमच्छरिययाए। •एवं खलु चउहि ठाणेहिं जीवा देवत्ताए कम्मं पकरेंति, पकरेत्ता देवेसु उववज्जंति, तं जहा -सरागसंजमेणं संजमासंजमेणं अकामणिज्ज राए बालतवोकम्मेणं ।। ७४. तमाइक्खइ जह णरगा गम्मती, जे णरगा जा य वेयणा णरए। सारीरमाणसाइं', दुक्खाई तिरिक्खजोणीए ॥१।। माणुस्सं च अणिच्चं, वाहि-जरा-मरण-वेयणा-पउरं। देवे य देवलोए, देविढि देवसोक्खाई ॥२।। णरगं तिरिक्खजोणि, माणुसभावं च देवलोगं च। सिद्धे य सिद्धवसहिं, छज्जीवणियं परिकहेइ ॥३॥ जह जीवा बझंती, मुच्चती जह य संकिलिस्संति । जह दुक्खाणं अंतं, करेंति केई अपडिबद्धा ॥४॥ 'अट्टा अट्टियचित्ता", जह जीवा दुक्खसागरमुवेति । जह वेरग्गमुवगया, कम्मसमुग्गं विहाडेति ॥५।। जह रागण कडाणं, कम्माणं पावगो फल विवागो। जह य परिहीणकम्मा, सिद्धा सिद्धालयमुवेति ॥६।। ७५. तमेव धम्म दुविहं आइक्खइ, तं जहा–अगारधम्म अणगारधम्मं च ॥ ७६. अणगारधम्मो ताव-इह खलु सव्वओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइयस्स सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं मुसावाय-अदत्तादाण-महण-परिग्गहराईभोयणाओ वेरमण । अयमाउसो ! अणगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते । एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए णिग्गंथे वा णिग्गंथी वा विहरमाणे आणाए आराहए भवति । ७७. अगारधम्म दुवालसविहं आइवखइ, तं जहा-पंच अणुव्वयाइं, तिण्णि गुणव्वयाई, चत्तारि सिक्खावयाइं। पंच अणुव्वयाई, तं जहा-थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं, थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सदारसंतोसे, इच्छापरिमाणे । तिण्णि गुणव्वयाइं, तं जहा–'दिसिव्वयं, उवभोगपरिभोगपरिमाणं, १. सं० पा०-मणुस्सेसु । च एवं खलु जीवा निस्सीलेत्याद्यधीयते-एवं २. सं० पा०-देवेसु। खलु जीवा निस्सीला णिव्वया णिग्गुणा णिम्मेरा ३. सारीरमाणुसाइं (क, ख, ग)। निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा अक्कोहा णिक्कोहा ४. देवभोगाई (ख)। छीणक्कोहा' एवं मानाद्यभिलापका अपि अणु५. अट्टदुहट्टियचित्ता (क, ख, वृपा); अट्टणिय- पुवेणं अणमिच्छमीससम्ममित्यादिना क्रमेण ट्टियचित्ता (वपा) । (वृ)। ६. वाचनान्तरे गाथाः क्रमान्तरेणाधीयन्ते तदन्ते ७. आगारधम्म (क, ग)। Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोस रण-पयरणं अणत्थदंडवेरमणं" । चत्तारि सिक्खावयाई, तं जहा - सामाइयं, देसावयासियं, पोसहोववासे, अतिहिसंविभागे । अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणा' । अयमाउसो ! अगारसामाइ धम्मे पण्णत्ते । एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए समणोवासए वा समणोवासिया वा विहरमाणे आणाए आराहए भवइ ॥ धम्मपडिवत्ति-पदं ७८. तणं सा महतिमहालिया मणूसपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा णिसम्म हट्ठतुट्ठ- चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण हियया उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण'पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता अत्थेगइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारयं पव्वइया, अत्येगइया पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं पडवण्णा ॥ परिसा पडिगमण-पदं ७६. अवसेसा णं परिसा समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - सुअक्खाए ते भंते! निग्गंथे पावयणे, "सुपण्णत्ते ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुभासिए ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुविणीए ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुभाविए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, अणुत्तरे ते भंते! निग्गंथे पावयणे । धम्मं णं आइक्खमाणा उवसमं आइक्खह, उवसमं आइक्खमाणा विवेगं आइक्खह, विवेगं आइक्खमाणा वेरमणं आइक्खह, वेरमणं आइक्खमाणा अकरणं पावाणं कम्माणं आइक्खह । णत्थि णं अण्णे इ समणे वा माहणे वा जे एरिसं धम्ममाइक्खित्तए, किमंग पुण एत्तो उत्तरतरं ? एवं वदित्ता' जामेव दिसं पाया तामेव दिसं पडिगया || कूणिए पडिगमण-पदं ८०. तणं से कूणिए राया भिभसारपुत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठ'- 'चित्तमाणं दिए पी मणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण° हियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - सुयक्खाए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे", "सुपण्णत्ते ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुभासिए ते भंते! निग्गंथे पावणे, सुविणीए ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुभाविए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, अणुत्तरे ते भंते! निग्गंथे पावयणे । धम्मं णं आइक्खमाणा उवसमं आइक्खह, उवसमं आइक्ख १. अणत्थदंडवेरमणं दिसिव्वयं उवभोगपरिभोग परिमाणं (क, ग ) । २. जूसणा ( क ) । ३. महच्चपरिसा (ग, वृ ) । ४. सं० पा० - हट्ठतुट्ठ जाव हियया । ५. आयाहिणं ( ख ) । ૪૨ ६. सं० पा० – एवं सुपण्णत्ते सुभासिए सुविणीए सुभाविए । ७. धम्मे (क, ख, ग ) । ८. वंदित्ता ( क ग ) । ६. सं० पा० - हट्ठट्ठ जाव हियए । १०. सं० पा० - पावयणे जाव किमंग । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं माणा विवेगं आइक्खह, विवेगं आइक्खमाणा वेरमणं आइक्खह, वेरमणं आइक्खमाणा अकरणं पावाणं कम्माणं आइक्खह। णत्थि णं अण्णे केइ समणे वा माहणे वा जे एरिसं धम्ममाइक्खित्तए', किमंग पुण एत्तो उत्तरतरं ? एवं वदित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए॥ देवी-पडिगमण-पदं ८१. तए णं ताओ सुभद्दापमुहाओ देवीओ समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हतुट्ठ'- 'चित्तमाणंदियाओ पीइमणाओ परमसोमणस्सियाओ हरिसवस-विसप्पमाण °हिययाओ उट्ठाए उठेति, उठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासीसुयक्खाए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, सुपण्णत्ते ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, सुभासिए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, सुविणीए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, सुभाविए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, अणुत्तरे ते भंते ! निग्गथे पावयणे । धम्म णं आइक्खमाणा उवसमं आइक्खह, उवसमं आइक्खमाणा विवेगं आइक्खह, विवेगं आइक्खमाणा वेरमणं आइक्खह, वेरमणं आइक्खमाणा अकरण पावाण कम्माण आइक्खह । णत्थि ण अण्ण केइ समण वा माहणं वा जे एरिसं धम्ममाइक्खित्तए, किमंग पुण एत्तो उत्तरतरं? एवं वदित्ता जामेव दिसं पाउन्भूयाओ तामेव दिसं पडिगयाओ॥ १. सं० पा०-हदतट जाव द्रियए। २. सं० पा०-पावयणे जाव किमंग । Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयरणं गोयम-वण्णग-पदं ८२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूई णाम अणगारे 'गोयमे गोत्तेणं" सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कणग-पलग-णिघस-पम्द्र-गोरे उगतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छृढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से' समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढेजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ८३. तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पण्णसड्ढे उप्पण्णसंसए उप्पण्णकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पण्णसड्ढे समुप्पण्णसंसए समुप्पण्णकोऊहल्ले उट्ठाए उठेइ, उठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे एवं वयासीकम्मबंध-पदं __८४. जीवे णं भंते ! असंजए' अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतवाले एगंतसुत्ते पावकम्म अण्हाइ ? हंता अण्हाइ॥ ८५. जीवे णं भंते ! असंजए' 'अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते मोहणिज्जं पावकम्म अण्हाइ ? हंता अण्हाइ॥ ८६. जीवे णं भंते ! मोहणिज्ज कम्मं वेदेमाणे किं मोहणिज्ज कम्मं बंधइ ? वेयणिज्जं कम्मं बंधइ ? गोयमा ! मोहणिज्जं पि कम्मं बंधइ, वेयणिज्जं पि कम्मं बंधइ, णण्णत्थ चरिममोहणिज्जं कम्मं वेदेमाणे वेयणिज्ज कम्मं बंधइ, णो मोहणिज्जं कम्म बंधइ॥ १. गोयमसगोत्ते णं (भ० श६)। विशेषणान्यपि दृश्यन्ते–'चोद्दसपुव्वी चउनाणो२. महातवे घोरतवे (क, ख, ग) । भगवत्यामपि वगए सव्वक्खरसन्निवाती' । (१६) एतद् विशेषणं नास्ति । ४. अस्संजए (क)। ३. अतः परं भगवत्यां (१६) निम्ननिर्दिष्टानि ५. सं० पा०-असंजए जाव एगंतसुत्ते । Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ ओवाइयं रइय-उववाय-पदं ८७. जीवे णं भंते ! असंजए' 'अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवडे एगंतदंडे एगंतबाले° एगंतसुत्ते उस्सण्णं' तसपाणघाई कालमासे कालं किच्चा णेरइएसु उववज्जइ ? हंता उववज्जइ ।। वाणमंतर-उववाय-पदं ८८. जीवे णं भंते ! असंजए अविरए अप्पडियपच्चक्खायपावकम्मे इओ चुए पेच्च' देवे सिया ? गोयमा ! अत्थेगइया देवे सिया, अत्थेगइया णो देवे सिया ।। ८६. से केणठे भंते ! एवं वुच्चइ-अत्थेगइया देवे सिया ? अत्थेगइया णो देवे सिया ? गोयमा ! जे इमे जीवा गामागर-णयर-णिगम-गयहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुहमडब-पट्टणासम-संबाह - सण्णिवेसेसु अकामतण्हाए अकामछुहाए अकामबंभचेरवासेणं अकामअण्हाणग-सीयायव-दंसमसग-सेय-जल्ल-मल'-पंक-परितावेणं अप्पतरो वा भुज्जतरो वा कालं अप्पाणं परिकिलेसंति, परिकिलेसित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहि तेसिं गई, तहि तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! दसवाससहस्साइंठिई पण्णत्ता। अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इडढीइ वा जुईइ वा 'जसेइ वा' बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणठे समठे ।।। ६०. से जे इमे गामागर-णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडब-पट्टणासमसंबाह-सण्णिवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा-अंडुबद्धगा णियलबद्धगा हडिबद्धगा चारगबद्धगा हत्थछिण्णगा पायछिण्णगा कण्णछिण्णगा नक्कछिण्णगा ओट्ठछिण्णगा जिब्भछिण्णगा सीसछिण्णगा मुखछिण्णगा मज्झछिण्णगा वइकच्छछिण्णगा हियउप्पाडियगा णयणुप्पाडियगा दसणुप्पाडियगा वसणुप्पाडियगा तंदुलछिण्णगा कागणिमंसक्खावियगा ओलंबियगा लंबियगा पंसियगा घोलियगा फालियगा पीलियगा सूलाइयगा सूल भिण्णगा खारवत्तिया वज्झवत्तिया सीहपुच्छियगा दवग्गिदड्ढगा पंकोसण्णगा पंके खुत्तगा वलयमयगा वसट्टमयगा णियाणमयगा अंतोसल्लमयगा गिरिपडियगा तरुपडियगा मरुपडियगा गिरिपक्खंदोलगा तरुपक्खंदोलगा मरुपक्खंदोलगा जलपवेसी जलणपवेसी विसभक्खियगा सत्थोवाडियगा वेहाणसिया गेद्धपट्ठगा कतारमयगा दुब्भिक्खमयगा असंफिलिट्ठपरिणामा ते" कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, तहि तेसि ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते। तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई १. सं० पा०-असंजए जाव एगंतसुत्ते । ७. फोडियगा (ग)। २. ओसण्णं (ग)। ८. x (वृ); पीलियगा (वृपा)। ३. पेच्चा (क); पच्छा (ख)। ६. मरुपडियगा भरपडियगा (ग, वृपा)। ४. मल्ल (क, ख, ग)। १०. ४ (क, ख)। ५. तेहिं (ख, ग, वृ)। ११. तं (ख)। ६. जसे इ वा उट्ठाणेइ वा कम्मे इ वा (वृपा) । Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयरणं पण्णता ? गोयमा ! वारसवाससहस्साइं ठिई पण्णत्ता। अत्थि णं भंते ! तेसि देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणठे समझें ।।। ६१. से जे इमे गामागर'-'णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टणासम-संवाह-सण्णिवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा-पगइभद्दगा पगइउवसंता' पगइपतणुकोहमाणमायालोहा मिउमद्दवसंपण्णा अल्लीणा' विणीया अम्मापिउसुस्सूसगा' अम्मापिऊणं अणइक्कमणिज्जवयणा अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा अप्पेणं आरंभेणं अप्पेणं समारंभेण अप्पेणं आरंभसमारंभेणं वित्ति कप्पेमाणा बहूई वासाइं आउयं पालेंति, पालित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु "देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहि तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! चउद्दसवाससहस्साई ठिई पण्णत्ता । अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणठे समठे ॥ २. से जाओ इमाओ गामागर'-•णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंबपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु इत्थियाओ भवंति, तं जहा-अंतोअंतेउरियाओ गयपइयाओ मयपइयाओ बालविहवाओ छड्डियल्लियाओ माइरक्खियाओ पियरक्खियाओ भायरक्खियाओ" पइरक्खियाओ कुलघररक्खियाओ ससुरकुलरक्खियाओ" परूढणह-केस-कक्खरोमाओ२ ववगयपुप्फगंधमल्लालंकाराओ अण्हाणग-सेय-जल्ल-मल-पंक-परितावियाओ ववगग्र-खीर-दहि-णवणीय-सप्पि-तेल्ल-गुल-लोण-महु-मज्ज-मस-परिचत्तकयाहाराओ अप्पिच्छाओ अप्पारंभाओ अप्पपरिग्गहाओ अप्पेणं आरंभेणं अप्पेणं समारंभेणं अप्पेणं आरंभसमारंभेणं वित्ति कप्पेमाणीओ अकामबंभचेरवासेणं तामेव पइसेज्जं णाइक्कमति । ताओ णं इत्थियाओ एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणीओ बहई वासाइं . आउयं पालेंति पालित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, तहिं तेसि ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता ? गोयमा ! चउसट्ठिवाससहस्साइं ठिई पण्णत्ता। अत्थि णं भंते ! तेसि देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा वलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणठे समठे॥ १. सं० पा०-गामागर जाव सण्णिवेसेसु । वाससहस्साई। २. °उवसंतक्का (ग)। ६. सं० पा०-गामागर जाव सण्णिवेसेसु । ३. पगइतणु (क, ग)। १०. भातिरक्खियाओ (क)। ४. आलीणा (वृ); भद्दगा (वृपा) । ११. 'मित्तनाइनिययसंबंधिरक्खियाओ' त्ति क्वचित ५. अम्मापिउण' (ख); अम्मापिऊण" (ग)। ६. अम्मापिईणं (क, ख, ग)। १२. मंसुरोमाओ (वृपा)। ७. बहु (क)। १३. सं० पा०--सेसं तं चेव जाव चउसट्ठिवास८.सं० पा०-तं चेव सव्वं णवरं चउद्दस- सहस्साई ठिई पण्णत्ता। Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं १३. से जे इमे गामागर'-•णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडब-पट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा-दगबिइया दगतइया दगसत्तमा दगएक्कारसमा गोयम-गोव्वइय-गिहिधम्म-धम्मचिंतग-अविरुद्ध-विरुद्ध-वडढसावगप्पभितयो । तेसि णं मणुयाणं णो कप्पंति इमाओ नव रसविगईओ आहारेत्तए, तं जहा-खीरं दहिं णवणीयं सप्पि तेल्लं फाणियं महुं मज्जं मंसं। णण्णत्थ' एक्काए सरिसवविगईए । ते णं मणुया अप्पिच्छा "अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा अप्पेणं आरंभेणं अप्पेणं समारंभेणं अप्पेणं आरंभसमारंभेणं वित्ति कप्पेमाणा बहुइं वासाइं आउयं पालेंति, पालित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसि उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! चउरासीइवाससहस्साई ठिई पण्णत्ता। अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इडढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अस्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणठे समठे ॥ जोइसिय-उववाय-पदं ___६४. से जे इमे गंगाकूला' वाणपत्था तावसा भवंति, तं जहा-होत्तिया' पोत्तिया कोत्तिया जण्णई सढई थालई हुंबउट्ठा दंतुक्खलिया उम्मज्जगा सम्मज्जगा निमज्जगा संपक्खाला दक्खिणकूलगा उत्तरकूलगा संखधमगा' कूलधमगा मिगलुद्धगा हत्थितावसा उदंडगा दिसापोक्खिणो वाकवासिणों बिलवासिणो" जलवासिणो रुक्खमूलिया अंबुभक्खिणो वाउभक्खिणो सेवालभक्खिणो मूलाहारा कंदाहारा तयाहारा पत्ताहारा पुप्फाहारा फलाहारा बीयाहारा परिसडिय-कंद-मूल-तय-पत्त-पुप्फ-फलाहारा जलाभिसेयकढिणगाया" आयावणाहि पंचग्गितावेहिं इंगालसोल्लियं कंदुसोल्लियं कट्ठसोल्लियं पिव अप्पाणं करेमाणा बहूई वासाइं परियागं पाउणंति, पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं जोइसिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई पण्णत्ता । अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ बा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अस्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा? णो इणठे समठे ।। १. सं० पा०—गामागर जाव सण्णिवेसेसु । ८. संखधम्मगा (वृ)। २. अण्णत्थ (क)। ६. वाकवासिणो अंबुवासिणो (क, ख, ग); ३. सं० पा०-तं चेव सव्वं णवरं चउरासीइ 'वक्कलवासिणो' त्ति वल्कलवाससः (भ० वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता । वृत्तिपत्र ५१६)। ४. गंगाकूलक (ख)। १०. वेलवासिणो (वृपा)। ५. द्रष्टव्यं भगवतीसूत्रं (११।५६) तत् टिप्पणं ११. कढिणगायभूया (क, ख, ग, वृपा)। च। १२. आयावणेहिं (ग)। ६. वालई (क)। १३. सं० पा०-पलिओवमं वाससयसहस्समन्भहियं ७. हुंपउट्ठा (क, ख)। ठिई सेसं तं चेव । Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयरणं कंद प्पिय-उववाय-पदं १५. से जे इमे गामागर'-'णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंवपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु पन्वइया समणा भवंति, तं जहा-कंदप्पिया कुक्कुइया मोहरिया गीयरइप्पिया नच्चणसीला । ते णं एएणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंता' कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे कंदप्पिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, "तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई पण्णत्ता। अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अस्थि । तेणं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणठे समठे । परिवायग-चरिया-पदं ६६. से जे इमे गामागर-*णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टणासमसंवाह-सण्णिवेसेसु परिव्वाया भवंति, तं जहा–संखा जोगी काविला भिउव्वा हंसा परमहंसा बहुउदगा कुलिव्वया कण्हपरिवाया। तत्थ खलु इमे अट्ठ माहणपरिव्वाया भवंति, तं जहा कंड' य करकंटे य, अंबडे य परासरे। कण्हे दीवायाणे चेव, देवगुत्ते य नारए ॥१॥ तत्थ खलु इमे अट्ठ खत्तिय-परिव्वाया भवंति, तं जहासीलई मसिंहारे, नग्गई भग्गई ति य। विदेहे राया, रामे बले ति य ॥२॥ ६७. ते णं परिव्वाया रिउवेद-यजुव्वेद-सामवेद-अहव्वणवेद-इतिहासपंचमाणं निघंटछट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा पारगा धारगा सडंगवी सठितंतविसारया संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे अण्णेसु य बहुसु 'बंभण्णएस य सत्थेसु" सुपरिणिट्ठिया यावि होत्था ।।। ८. ते णं परिवाया दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणा पण्णवेमाणा परूवेमाणा विहरंति। जंणं अम्हं किं चि असुई भवइ तंणं उदएण य मट्टियाए य पक्खालियं समाणं सुई भवइ। एवं खलु अम्हे चोक्खा चोक्खायारा सुई सुइसमायारा भवित्ता अभिसेयजलपूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गमिस्सामो॥ ६. तेसि णं परिव्वायाणं णो कप्पइ अगडं वा तलायं वा नई वा वाविं वा पुक्खरिणिं वा दीहियं वा गुंजा लियं वा सरं वा सागरं वा ओगाहित्तए, णण्णत्थ अद्धाणगमणेणं ॥ १००. (तेसि णं परिव्वायाणं ?) णो कप्पइ सगडं वा 'रहं वा जाणं वा जुग्गं वा १. सं० पा.-गामागर जाव सण्णिवेसेसु । ६. कन्ने (क)।। २. अपडिक्कंता (ख)। ७. समंहारे (क); ससिंहारे (ग)। ३. सं० पा०--सेसं तं चेव णवरं पलिओवमं ८. वाचनान्तरे-परिव्वायएसु य नएसु (व)। वाससयसहस्समब्भहियाइं ठिई। ६. सरिसं (वृपा)। ४. सं० पा०-गामागर जाव सण्णिवेसेसु । १०. सं० पा०-सगडं वा जाव संदमाणियं । ५. कुडिव्वया (ख, ग)। Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ ओवाइयं गिल्लि वा थिल्लिका पवहणं वा सीयं वा संदमाणियं वा दुरुहित्ता णं गच्छत्तए । १०१. तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ आसं वा हत्थि वा उट्टं वा गोणं वा महिसं वा खरं वा दुरुहित्ताणं गमित्तए, णण्णत्थ बलाभिओगेणं || १०२. तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ नडपेच्छा इ वा' 'णट्टगपेच्छा इ वा जल्लपेच्छा इ वा मल्लपेच्छा इ वा मुट्ठियपेच्छा इ वा वेलंबगपेच्छा इ वा पवगपेच्छा इ वा कहगपेच्छा इ वा लासगपेच्छा इ वा आइक्खगपेच्छा इ वा लंखपेच्छा इ वा मंखपेच्छा इ वा तूणइल्लपेच्छा इ वा तुंबवीणिपेच्छा इ वा भुयगपेच्छा इ वा° मागहपेच्छा इ वा पेच्छित्तए । १०३. तेसिं परिव्वायगाणं णो कप्पइ हरियाणं लेसणया वा घट्टणया वा भणया वा 'लूसणया वा” उप्पाडणया वा करित्तए । १०४. तेसिं परिव्वायगाणं णो कप्पइ इत्थिकहा इ वा भत्तकहा इ वा रायकहा इ वा देसकाइ वा चोरकहा इ वा जणवयकहा इ वा अणत्थदंड' करित्तए । १०५. तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ अयपायाणि वा तंबपायाणि वा तयपायाणि वा सीसगपायाणि वा रयय - जायरूव - काय वेडंतिय- वट्टलोह-कंसलोह-हारपुडयरीतिया-मणि-संख-दंत-चम्मचेल - सेल - पायाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई महद्वणमोल्लाई' धारित्तए, णण्णत्थ अलाउपाएण वा दारुपाएण वा मट्टियापाएण वा ।। १०६. तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ अयबंधणाणि वा' 'तंब - बंधणाणि वा तयबंधणाणि वा सीसगबंधणाणि वा रयय - जायरूव काय वेडंतिय- वट्टलोह- कंसलोह - हारपुडयरीतिया -मणि-संख - दंत - चम्मचेल सेल - बंधणाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई' 'महद्वणमोलाई धारित ॥ १०७. तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ णाणाविहवण्णरागरत्ताइं वत्थाइं धारितए, णण्णत्थ एगाए धाउरत्ताए ॥ १०८. तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ हारं वा अद्धहारं वा एगावलि वा मुत्तावलि वा कणगावलि वा रयणालि वा मुरवि वा कंठमुरवि वा पालंबं वा तिसरयं वा कडिसुतं वा दसमुद्दिआणंतगं वा कडयाणि वा तुडियाणि वा अंगयाणि वा केऊराणि वा कुंडलाणि वा मउडं वा चूलामणि वा पिणिद्धत्तए, गण्णत्थ एगेणं तंविएणं पवित्तणं ॥ १०६. तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ गंथिम - वेढिम- पूरिम संघाइमे चउब्विहे मल्ले धारित्तए, णण्णत्थ एगेणं कण्णपूरेणं ॥ ११०. तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ अगलुएण वा चंदणेण वा कुंकुमेण वा गायं पित्त, त्थ एक्काए गंगामट्टियाए । १. सं० पा० – नडपेच्छाइ वा जाव मागहपेच्छा । २. x ( वृ); लूसणया वा ( वृपा ) । ३. अट्टादंड (ग) । ४७. बहुमुल्लाणि (क, ख, ग ); आचारचूलायां (६।१३ ) ' विरूवरूवादं महद्धणमुल्लाई' इति पाठो विद्यते । ५. सं० पा० – अयबंधणाणि वा जाव महद्धणमोल्लाई । ६. पुस्तकान्तरे समग्रमिदं सूत्रद्वय ( १०५, १०६ ) मस्त्येव (वृ) । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयरणं ५७ १११. तेसि णं परिव्वायगाणं कप्पइ मागहए पत्थए जलस्स पडिगाहित्तए, से वि य वहमाणए णो चेव णं अवहमाणए, से वि य थिमिओदए णो चेव णं कद्दमोदए, से वि य बहुप्पसण्णे णो चेव णं अबहुप्पसण्णे, से वि य परिपूए णो चेव णं अपरिपूए, से वि य दिण्णे णो चेव णं अदिण्णे, से वि य पिबित्तए णो चेव णं हत्थ-पाय-चरु-चमस-पक्खालणट्ठाए सिणाइत्तए वा ॥ ११२. तेसिं णं परिव्वायगाणं कप्पइ मागहए अद्धाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, से वि य वहमाणए' •णो चेव णं अवहमाणए, से वि य थिमिओदए णो चेव णं कद्दमोदए, से वि य बहुप्पसण्णे णो चेव णं अबहुप्पसण्णे, से वि य परिपूए णो चेव णं अपरिपूए, से वि य दिण्णे° णो चेव णं अदिणे, से वि य हत्थ-पाय-चरु-चमस-पक्खालणट्ठाए णो चेव णं पिबित्तए सिणाइत्तए वा॥ ११३. तेसि णं परिव्वायगाणं कप्पइ मागहए आढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, से वि य वहमाणए •णो चेव णं अवहमाणए, से वि य थिमिओदए णो चेव णं कद्दमोदए, से वि य बहुप्पसण्णे णो चेव णं अबहुप्पसण्णे, से वि य परिपूए णो चेव णं अपरिपूए, से वि य दिण्णे णो चेव णं अदिण्णे, से वि य सिणाइत्तए णो चेव णं हत्थ-पाय-चरु-चमस-पक्खालणट्ठाए पिबित्तए वा।। ११४. ते णं परिव्वायगा एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं परियायं पाउणंति, पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसि गई, "तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! दससागरोवमाइंठिई पण्णत्ता। अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणठे समझें ॥ अम्मड-अंतेवासि-पदं ११५. तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अंतेवासिसया गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलमासंमि गंगाए महानईए उभओकूलेणं कंपिल्लपुराओ णयराओ पुरिमतालं णयरं संपठ्ठिया विहाराए। ११६. तए णं तेसिं परिव्वायगाणं तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से पुव्वग्गहिए उदए अणुपुव्वेणं परिभुजमाणे झीणे ।। ११७. तए णं ते परिव्वाया झीणोदगा समाणा तण्हाए पारब्भमाणा-पारब्भमाणा उदगदातारमपस्समाणा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इसीसे अगामियाए 'छिण्णावायाए दीहमद्धाए° अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से पुव्वग्गहिए उदए' 'अणुपुव्वेणं परिभुंजमाणे झीणे । तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं १,२. सं० पा०-वहमाणए जाव णो । ४. सं० पा०-अगामियाए जाव अडवीए । ३. सं० पा०-दससागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता सेसं ५. सं० पा०---उदए जाव झीणे । तं चेव। Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ aarti इसे अगामिया' 'छिण्णावायाए दीहमद्धाए' अडवीए उदगदातारस्स सव्वओ समंता मग्गण - गवेसणं करित्तए त्ति कट्टु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमट्ठे पडिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता तीसे अगामियाए' 'छिण्णावायाए दीहमद्धाए° अडवीए उदगदातारस्स सव्वाओ समंता मग्गण - गवेसणं करेंति, करेत्ता उदगदातारमलभमाणा दोच्चपि अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी - इहणं देवाणुप्पिया ! उदगदातारो णत्थि तं णो खलु कप्पइ अम्हं अदिण्णं गिहित्तए', अदिण्णं साइज्जित्तए, तं मा णं अम्हे इयाणि आवइकालं पि अदिण्णं गिण्हामो, अदिणं साइज्जामो मा णं अम्हं तवलोवे भविस्सइ । तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! तिदंडए य कुंडियाओ य कंचणियाओ य करोडियाओ य भिसियाओ य छण्णालए य अंकुस य केसरियाओ य पवित्तए य गणेत्तियाओ य छत्तए य वाहणाओ य धाउरत्ताओ य एते डित्ता गंगं महाणइ ओगाहित्ता वालुयासंथारए संथरित्ता संलेहणा - झूसियाणं भत्तपाण -पडियाक्खियाणं पाओवगयाणं कालं अणकंखमाणाणं विहरित्तए त्ति कट्टु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमट्ठ पडिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता दिंडए य' 'कुंडियाओ य कंचणियाओ य करोडियाओ य भिसियाओ य छण्णालए य अंकुसए य केसरियाओ य पवित्तए य गणेत्तियाओ य छत्तए य वाहणाओ य धाउरत्ताओ य° एगंते एडेंति, एडेत्ता गंगं महाणई ओगाहेंति, ओगत्ता वालुयासंथारए संथरंति, संधारित्ता वालुयासंथारयं दुरुहंति, दुरुहित्ता पुरत्याभिमुहा संपलियंक निसण्णा करयल ' - 'परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी -- णमोत्थु णं अरहंताणं जाव सिद्धिगणामधेयं ठाणं संपत्ताणं । णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव' संपाविउकामस्स । णमोत्थु णं अम्मडस्स परिव्वायगस्स अहं धम्मायरियस धम्मोवदेसगस्स । पुव्वि णं अम्हेहि अम्मडस्स परिव्वायगस्स अंतिए 'थूलए पाणाइवाए" पच्चक्खाए जीवज्जीवाए, मुसावाए अदिण्णादाणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, सव्वे मेहुणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए जावज्जीवाए । इयाणि अम्हे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, ""सव्वं मुसावायं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं अदिण्णादाणं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं मेहुणं पच्चवखामो जावज्जीवाए, सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं कोहं माणं मायं लोहं पेज्जं दोसं कलहं अब्भक्खाणं पेसुण्णं परपरिवार्य अरइरई मायामोसं मिच्छादंसणसल्लं 'अकरणिज्जं जोगं" पच्चक्खामो जावज्जीवाए, सव्वं असणं पाणं खाइमं साइमं - चउव्विहं पि आहारं पच्चक्खामो जावज्जीवाए । जंपि य इमं सरीरं इट्ठे कंतं पियं मणुष्णं मणाणं पेज्जं " वेसासियं संमयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं " माणं सीयं, माणं उन्हं, माणं खुहा, माणं पिवासा, मा णं वाला, मा णं चोरा, मा णं दंसा, मा णं मसगा, माणं वाइय ५८ १.२. सं०पा० अगामियाए जाव अडवीए । ३. भुंजित्तए ( वृपा ) । ४. तववयलोवे (क) ५. सं० पा० - तिदंडए य जाव एगंते । ६. सं० पा० - करयल जाव कट्टु । ७,८. ओ० सू० २१ । ६. थूलगपाणाइवाए ( क ) । १०. सं० पा० एवं जाव सव्वं परिग्गहं । ११. x (क, ख, ग ) । १२. थेज्जं (क, ख, वृपा) । १३. रयणकरंडग° ( ख ) । Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पय रण ५६ पित्तिय- सिभिय-सण्णिवाइय' विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु त्ति कट्टु एयंपि णं चरिमेहिं ऊसासणीसासेहि वोसिरामित्ति कट्टु संलेहणा - झूसिया' भत्तपाणपडिया इक्खिया पाओवगया कालं अणवकखमाणा विहरंति । तए णं ते परिव्वाया बहूई भत्ताई अणसणाए छेदेंति, छेदित्ता आलोइय-पडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववण्णा । तहि तेसि गई, तहि तेसि ठिई, तहिं तेसि उववा पण्णत्ते । सिणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! दससागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । अथ भंते तेसि देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेड वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते! देवा परलोगस्स आराहगा ? हंता अस्थि || अम्मड-चरिया-पदं ११८. बहुजणे णं भंते ! अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ – एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वह उवे । से कहमेयं भंते ! एवं खलु गोयसा ! जं णं से बहुजणे अण्णमण्णस्स एवमाइक्खई" "एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ - एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे" "णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि गोमा ! एवमाक्खामि ' ' एवं भासामि एवं पण्णवेमि एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए' 'कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए' वर्साह उवेइ ॥ ११६. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ - अम्मडे परिव्वायए' 'कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए° वसहि उवेइ ? गोयमा ! अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स पगइभद्दयाए' 'पगइउवसंतयाए पाइपतणुकोहमाणमायालोहयाए मिउमद्दव संपण्णयाए अल्लीणया विणीययाए छट्ठछट्ठेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ परिज्झियपरिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पत्थेहि अज्झवसाणेहिं साहिं विसुज्झमाणीहि 'अण्णया कयाइ"" तदावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूह"-मग्गण - गवेसणं करेमाणस्स वीरियलद्धीए " वेउब्वियलद्धीए ओहिणाणलद्धी" समुप्पण्णा । तए णं से अम्मडे परिव्वायए तीए वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए ओहिणाणली समुपण्णाए जणविम्हावणहेउं कंपिल्लपुरे णयरे घरसए" "आहारमाहरेइ, १. इह प्रथमाबहुवचनलोपो विद्यते । ठिई पण्णत्ता २. भूसा झूसिया (वृपा ) | ३. सं० पा० - दससागरोवमाई परलोगस्स आहगा सेसं तं चैव । ४. सं० पा० एवमाइक्खइ जाव एवं । ५. सं० पा०- • कंपिल्लपुरे जाव घरसए । ६. सं० पा० - एवमाइक्खामि जाव परूवेमि । ७८. सं० पा० - परिव्वायए जाव वहिं । ६. सं० पा० - पगइभट्याए जाव विणीययाए । वृत्तिकृता ६१ सूत्रे क्वचित् 'भद्दगा' इत्युल्लि - खितम् । प्रस्तुतसूत्रस्य पूर्तिर्वृत्तौ कृतास्ति, तत्र 'भट्याए' इति पाठः स्वीकृतः, इत्यस्ति समीक्षास्पदम् । १०. x ( क, ख, ग ) । ११. हाबू ( ग ) ; ईहाबुह ( वृ ) । १२. वाचनान्तरे 'वीरियलद्धी वेउव्वियलद्धी' त्ति पठ्यते ( वृ) । १३. ओहिणाणलद्धीए (क) । १४. सं० पा० - घरसए जाव वसहि । Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ओवाइयं I घरसए° वसहिं उवेइ । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वच्चइ - अम्मडे' परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए' 'आहारमाहरेइ, घरसए सहि उवेइ ॥ १२०. पहूणं भंते ! अम्मडे परिव्वायए देवाणुप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ? णो इणट्ठे समट्ठे । गोयमा ! अम्मडे णं परिव्वायए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे' 'उवलद्धपुण्णपावे आसव-संवर-निज्जर-किरिया गरण-बंध- मोक्खकुसले असहेज्जदेवासुरणाग सुवण्ण-जक्ख- रक्खस- किन्नर - किंपुरिस- गरुल' - गंधव्त्र-महोरगाइएहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जे इणमो निग्गंथे पावणे णिस्सकिए णिक्कखिए निव्विति गच्छे लट्ठे गहियट्ठे पुच्छियट्ठे अभिगयट्ठे विणिच्छियट्ठे अट्ठिमिजपेमाणुरागरत्ते 'अयमाउसो ! निग्गंथे" पावयणे अट्ठे अयं परमट्ठे सेसे अणट्ठे चउद्दसअट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं अणुपालेमाणे समणे निग्गंथे फासुएस णिज्जेणं असण-पाण-खाइम- साइमेणं वत्थ-पडिग्गह- कंवल- पायपुच्छणेणं ओसहभंसज्जेणं पाडिहा - रिएणं पीढफलगसेज्जा- संथारएणं पडिलाभेमाणे सीलव्वय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मे हिं' अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ १२१. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए ' • मुसावाए अदिण्णादाणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए सव्वे मेहुणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए थूलए परिग्गहे पच्चवखाए जावज्जीवाए || १२२. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ अक्खसोयप्पमाणमेत्तंपि जलं सयराहं उत्तरित्तए, णण्णत्थ अद्धाणगमणेणं ॥ १२३. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ सगडं वा" "रहं वा जाणं वा जुग्गं वा गिल्लि वा थिल्लि वा पवहणं वा सीयं वा संदमाणियं वा दुरुहित्ताणं गच्छित्तए ॥ १२४. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पर आसं वा हत्थिं वा उट्टं वागणं वा महिसं वा खरं दुरुहित्ताणं गमित्तए, णण्णत्थ बलाभिओगेणं ॥ १२५. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ नडपेच्छाइ वा णट्टगपेच्छाइ वा जल्लपेच्छाइ वा मल्लपेच्छाइ वा मुट्ठियपेच्छाइ वा वेलंबगपेच्छाइ वा पवगपेच्छाइ वा कहगपेच्छाइ वा लासगपेच्छाइ वा आइक्खगपेच्छाइ वा लंखपेच्छाइ वा मंखपेच्छाइ वा तूणइल्लपेच्छाइ वा तुंववीणियपेच्छाइ वा भुयगपेच्छाइ वा मागहपेच्छाइ वा पेच्छित्तए । १२६. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पर हरियाणं लेसणया वा घट्टणया वा भणया वा लूसणया वा उप्पाडणया वा करित्तए । १. क्वचित् 'अम्बडे' दृश्यते तदयुक्तम् (वृ) । २. सं० पा० – घरसए जाव वसहि । ३. सं० पा० - अभिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, पवरं ऊसिफलि अदुवा चियत्तंतेउरघरदारपवेसी ( क्वचित् 'चियत्तघरं ते उरपवेसी' ति - वृ) एयं ण वुच्चइ । ४. क्वचित् 'गरुडे' त्ति नाधीयते ( वृ ) । ५. क्वचित् 'इमो निग्गंथे ' इति दृश्यते ( वृ) | ६. सं० पा०-- जावज्जीवाए जाव परिग्गहे णवरं सव्वे मेहुणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए । ७. सं० पा० – सगडं वा तं चैव भाणियव्वं जाव roणत्थ एक्काए गंगा मट्टियाए । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयरणं १२७. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ इत्थिकहाइ वा भत्तकहाइ वा रायकहाइ वा देसकहाइ वा चोरकहाइ वा जणवयकहाइ वा अणत्थदंडं करित्तए॥ १२८. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ अयपायाणि वा तंवपायाणि वा तउयपायाणि वा सीसगपायाणि वा रयय-जायरूव-काय-वेडंतिय-वट्टलोह-कंसलोह-हारपुडयरीतिया-मणि-संख-दंत-चम्म-चेल-सेल-पायाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई महद्धणमोल्लाइंधारित्तए, णण्णत्थ अलाउपाएण वा दारुपाएण वा मट्टियापाएण वा ।। १२६. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ अयबंधणाणि वा तंवबंधणाणि वा तउयबंधणाणि वा सीसगबंधणाणि वा रयय-जायरूव-काय-वेडंतिय-वट्टलोह-कंसलोहहारपुडय-रीतिया-मणि-संख-दंत-चम्म-चेल-सेल-बंधणाणि वा अण्णयराइं वा तहप्पगाराई महद्धणमोल्लाई धारित्तए॥ १३०. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ णाणाविहवण्णरागरत्ताई वत्थाई धारित्तए, णण्णत्थ एगाए धाउरत्ताए । १३१. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ हारं वा अद्धहारं वा एगावलि वा मत्तावलि वा कणगावलि वा रयणावलि वा मुरवि वा कंठमरवि वा पालंबं वा तिसरयं वा कडिसुत्तं वा दसमुद्दिआणतगं वा कडयाणि वा तुडियाणि वा अंगयाणि वा केऊराणि वा कुंडलाणि वा मउडं वा चूलामणि वा पिणिद्धत्तए, णण्णत्थ एगेणं तंबिएणं पवित्तएणं ।। १३२. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघाइमे चउविहे मल्ले धारित्तए, णण्णत्थ एगेणं कण्णपुरेणं ।। १३३. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ अगलुएण वा चंदणेण वा कुंकुमेण वा गायं अणुलिपित्तए', णण्णत्थ एक्काए गंगामट्टियाए । १३४. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ आहाकम्मिए वा उद्देसिए वा मीसजाएइ वा अज्झोयरएइ वा पूइकम्मेइ वा कीयगडेइ वा पामिच्चेइ वा अणिसिठेइ वा अभिहडेइ वा 'ठवियएइ वा" 'रइयएइ वा” कतारभत्तेइ वा दुब्भिक्खभत्तेइ वा गिलाणभत्तेइ वा बद्दलियाभत्तेइ वा पाहुणगभत्तेइ वा भोत्तए वा पायए वा ॥ १३५. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ मूलभोयणेइ वा' 'कंदभोयणेइ वा फलभोयणेइ वा हरियभोयणेइ वा बीयभोयणेइ वा भोत्तए वा पायए वा ॥ १३६. अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स चउविहे अणट्ठादंडे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, तं जहा-अवज्झाणायरिए पमायायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे ।। १३७. अम्मडस्स कप्पइ मागहए अद्धाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, से वि य वहमाणए णो चेव णं अवहमाणए', 'से वि य थिमिओदए णो चेव णं कद्दमोदए, से वि य वहप्पसणे जो चेव णं अबहुप्पसण्णे", से वि य परिपूए णो चेव णं अपरिपूए, से वि य सावज्जे त्ति काउं५ णो चेव णं अणवज्जे, से वि य जीवा ति काउं' णो चेव णं अजीवा, से वि य दिण्णे १. ठव इत्तए वा (ख)। ४. सं० पा०-अवहमाणए जाव से। २. रइत्तए वा (क, ख); X (ग)। ५. कटुं (ग, वृ)। ३. सं० पा०-मूलभोयणे इ वा जाव बीयभोयणे । ६. कटुं (क, ग, व)। Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ अोवाइयं णो चेव णं अदिण्णे, से वि य हत्थ-पाय-चरु-चमस-पक्खालाणट्ठयाए पिबित्तए वा णो चेव णं सिणाइत्तए॥ १३८. अम्मडस्स कप्पइ मागहए आढए जलस्स पडिग्गाहित्तए से वि य वहमाणए' •णो चेव णं अवहमाणए, से वि य थिमिओदए णो चेव णं कद्दमोदए, से वि य बहुप्पसण्णे णो चेव णं अबहुप्पसण्णे, से वि य परिपूए णो चेव णं अपरिपूए, से वि य सावज्जे त्ति काउं णो चेव णं अणवज्जे, से वि य जीवा ति काउंणो चेव णं अजीवा, से वि य दिण्णे° णो चेव णं अदिण्णे, से वि य सिणाइत्तए णो चेव णं हत्थ-पाय-चरु-चमस-पक्खालणठ्याए पिबित्तए वा॥ १३६. अम्मडस्स णो कप्पइ अण्णउत्थिए वा अण्णउत्थियदेवयाणि वा अण्णउत्थियपरिग्गहियाणि 'वा चेइयाई" वंदित्तए वा णमंसित्तए वा' 'पूइत्तए वा सक्कारित्तए वा सम्माणित्तए वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं° पज्जुवासित्तए वा, णण्णत्थ 'अरहंतेहिं वा ॥ १४०. अम्मडे णं भंते ! परिव्वायए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववज्जिहिति ? गोयमा ! अम्मडे णं परिव्वायए उच्चावएहिं सील-व्वय-गुणवेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेमाणे बहई वासाइं समणोवासय-परियायं पाउणिहिति, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सट्ठि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिति । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दससागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं अम्मडस्स वि देवस्स दससागरोवमाइं ठिई। दढपइण्ण-पदं १४१. से णं भंते ! अम्मडे देवे ततो देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्ख१. मागहए य (क)। ७. भगवत्याः एकादशशतके (१६६) औपपातिक२. सं० पा०-वहमाणए जाव णो। स्य अम्मडप्रकरणस्य सूचनमस्ति तथा वृत्ती ३. अण्णउत्थिया (ख) । (पत्र ५४६) स पाठः उद्धृतोस्ति—यथोपपा४. अरहंतचेइयाइं (क); अरहंतचेइयाणि वा तिके अम्बडोधीतस्तथायमिह वाच्यः, तत्र च (ग)। यावत्करणादेतत्सूत्रमेवं दृश्यं - 'गहगणनक्खत्त५. सं० पा०-णमंसित्तए वा जाव पज्जुवा- तारारूवाणं बहूई जोयणाई बहूई जोयणससित्तए। याई बहूई जोयणसहस्साई बहूई जोयणसयसह६. अरहंतेहिं वा अरहंतचेइयाई वा (क,ख, ग); स्साई बहूई जोयणकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता वृत्तौ ‘णण्णत्थ अरहंतेहिं वा एतदेव व्याख्यात- सोहम्मीसाणसणंकुमारमाहिंदे कप्पे वीइवइत्त' मस्ति 'अरहंत चेइयाई वा' इति व्याख्यातं त्ति । किन्तु प्रस्तुतसूत्रादर्शषु वृत्तौ च एष पाठः नास्ति। आदर्शेष एतद् वाक्यं लभ्यते । सम्प्रति नैव लभ्यते । केनापि कारणेन त्रुटितो 'अण्णत्थ' योगे पंचमी विभक्तिर्भवति । तदपे- भूदिति सम्भाव्यते। क्षया 'अरहंतचेइयाइं वा' इति वाक्यमशुद्धमपि ८. ताओ (ख) । विद्यते। Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयरणं एणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति' ? कहिं उववज्जिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे जाई कुलाइं भवंति अड्ढाइं दित्ताइं वित्ताइ वित्थिण्ण-विउल-भवण-सयणासण-जाणवाहणाई बहुधण-जायरूव'-रययाइं आओग-पओग-संपउत्ताइं विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणाई बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूयाई बहुजणस्स अपरिभूयाइं तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाहिति ॥ १४२. तए' णं तस्स दारगस्स गब्भत्थस्स चेव समाणस्स अम्मापिईणं धम्मे दढा पइण्णा भविस्सइ । १४३. से णं तत्थ णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण' राइंदियाणं वीइक्कताणं सुकुमालपाणिपाए' 'अहीणपडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे लक्खण वंजण-गुणोववेए माणुम्माण-प्पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे दाराए पयाहिति ।। १४४. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठिइवडियं काहिति, तइयदिवसे चंदसुरदंसणियं काहिति, छठे दिवसे जागरियं' काहिंति, एक्कारसमे दिवसे वीइक्कते णिव्वत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते वारसाहे" अम्मापियरो इम" एयारूवं गोणं' १. चई (ग)। सरपासणियं व' त्ति अन्वर्थानुसारिणं तृतीय २. गमिहिति (ग)। दिवसोत्सवम् । रायपसेणइय (८०२) सूत्रस्य ३. तत्तय (क)। 'दढपइण्णा' प्रकरणे 'ततियदिवसे' इति पाठो४. कुले (वृपा)। स्ति, नायाधम्मकहाओ (१।११६१) सूत्रेपि ५. पुत्तत्ताए (क)। इत्थमेवास्ति, तेन 'बिइय' इति अशुद्ध प्रति६. प्रस्तुतागमे रायपसेणइयसूत्रे च दृढप्रतिज्ञस्य भाति। प्रकरणं प्रायः समानमस्ति, केवलं पाठरचना- ११. धम्मजागरियं (क)। या: किञ्चित्-किञ्चिद् भेदो दृश्यते । १२. बारसाहे दिवसे (क, ख, ग, वृ); विपाकसूत्रे ७. अट्ठमाण य (ख)। (२०४८) 'संपत्ते बारसाहे' पाठोस्ति । केषु८. आदर्शेषु 'दारए' इति कर्तृपदं लभ्यते । वस्तुतः चिदादर्शेषु 'संपत्ते बारसमे दिवसे' इति इदं कर्मपदं स्यादिति युक्तमस्ति 'पयाहिति' पाठोस्ति । 'बारसाहे दिवसे' अनयोः संयुक्तरूपं इति क्रियापदस्य सन्दर्भ तथा स्थानाङ्ग (६२) प्रतिभाति । वृत्तिकारस्य सम्मुखे एष एव पाठ रायपसेणइय (८०१) सूत्रयोः साक्ष्येण च अस्य आसीत् । अस्य पाठस्य वृत्तिर्यथा तथा कर्मपदस्य पुष्टि र्जायते । तदेवं पाठरचना एवं कृतास्ति । यथा--तत्र 'बारसाहे दिवसे' ति भवति-वीइक्कंताणं सा सुकुमालपाणिपायं.... द्वादशाख्ये दिवसे इत्यर्थः, अथवा द्वादशानासुरूवं दारयं पयाहिति । मह्नां समाहारो द्वादशाहं तस्य दिवसो येनासौ ६. सं० पा०-सुकुमालपाणिपाए जाव ससिसोमा- पूर्णो भवतीति द्वादशाहदिवसस्तत्र (पृ० १९३) कारे । वस्तुतः 'बारसमे दिवसे', अथवा 'बारसाहे' १०. बिइय० (ग); 'चंदसूरदंसणियं' तृतीय दि- अनयोर्मध्ये एकेन पाठेन भवितव्यम् । अस्माकं वसस्य उत्सवो विद्यते । विपाकवृत्तौ (२।४७) सम्मुखे एका स्तबकप्रतिरस्ति तस्यां केवलं एतत् संवादी उल्लेखोपि लभ्यते, यथा-'चंद- 'बारसाहे' पाठोस्ति। रायपसेणइयसूत्रे Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ओवाइयं गुणणिप्फण्णं णामधेज काहिंति-जम्हा णं अम्हं इमंसि दारगंसि गब्भत्थंसि चेव समाणंसि धम्मे दढापइण्णा', तं होउ णं अम्हं दारए दढपइण्णे णामेणं । तएणं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णामधेज्जं करेहिति दढपइण्णत्ति' ।। १४५. तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो साइरेगट्ठवासजायगं' जाणित्ता सोभणंसि तिहि-करण'-णक्खत्त-मुहत्तंसि कलायरियस्स उवणेहिति ।। १४६. तए णं से कलायरिए तं दढपइण्णं दारगं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ वावत्तरि कलाओ सुत्तओ य अत्थओ य करणओ य सेहाविहिति सिक्खाविहिति, तं जहा–१. लेहं २. गणियं ३. रूवं ४. णट ५. गीयं ६. वाइयं ७. (८०२) पि बारसमे दिवसे' पाठोस्ति । अस्माभिरत्र स एव स्तबकप्रतिगतः पाठः स्वीकृतः । १३. अयं (वपा)। १४. गोण्णं (क)। १. दढपइण्णा (क, ख, ग)। २. होऊ (क, ख)। ३. इह स्थाने पुस्तकान्तरे 'पंच धाइपरिग्गहिए' इत्यादि ग्रन्थो दृश्यते, स च प्राग्वद् व्याख्येय:, किंचिच्च तस्य व्याख्यायते-'हत्था हत्थं संहरिज्जमाणे ति हस्ताद्धस्तान्तर सह्रियमाणानीयमानः, अङ्कादक़ परिभुज्यमानः-- उत्सङ्गादुत्सङ्गान्तरं परिभोज्यमान: उत्सङ्गस्पर्शसुखमनुभाव्यमानः, 'उवनच्चिज्जमाणे' त्ति उपनय॑मानो नर्तनं कार्यमाण इत्यर्थः, उपगीयमानः-तथाविधबालोचितगीतविशेषर्गीयमानो गाप्यमानो वा, 'उवलालिज्जमाणे' त्ति उपलाल्यमानः क्रीडादिलालनया, 'उवगूहिज्जमाणे' त्ति उपगह्यमानः आलिङ्ग्यमानः 'अवयासिज्जमाणे' त्ति अपत्रास्यमानः अपगतत्रासः क्रियमाणः, अपयास्यमानो वा उत्कण्ठातिरेकान्निर्दयालिङ्गनेनापीड्यमानः, अप्रयास्यमानो वा समीहितपूरणेन प्रयासमकार्यमाणः, 'परिवंदिज्जमाणे' त्ति परिवन्धमानः स्तूयमानः परिचम्ब्यमान:- इति व्यक्तं, परंगिज्जमाणे' त्ति प्ररङ्ग्यमाणः चक्रम्यमाणः, एतेषां च संह्रिय- माणादिपदानां द्विवचनाभीक्ष्ण्यविवक्षयेति 'निव्वायनिव्वाघायं' ति निर्वातं निर्व्याघातं च यद् गिरिकन्दरं तदालीन इति (व)। भगवतीवृत्तावपि (पत्र ५४५) । औपपातिकस्य एष पाठः उद्धृतोस्ति-जहा दढपइन्ने' त्ति औपपातिके दृढप्रतिज्ञोधीतस्तथायं वक्तव्यः, तच्चैवं-'मज्जणधाईए मंडणधाईए कीलावणधाईए अंकधाइए' इत्यादि, 'निव्वायनिव्वाघायंसि' इत्यादि च वाक्यमिहवं संबन्धनीय 'गिरिकंदरमल्लीणेव्व चंपगपायवे निव्वायनिव्वाघायंसि सुहंसुहेणं परिवड्ढइ' त्ति 'परंगामणं' ति भूमौ सप्पणं 'पयचंकामणं' त्ति पादाभ्यां सञ्चारणं 'जेमामणं' ति भोजनकारणं पिंडवद्धणं' ति कवलवृद्धिकारणं 'पज्जपावणं' ति प्रजल्पनकारणं 'कण्णवेहणं' ति प्रतीतं 'संवच्छरपडिलेहणं' ति वर्षग्रंथिकरणं 'चोलोयणं, ति चुडाधरणं उवणयणं' ति कलाग्राहणं गब्भाहाणजम्मणमाइमाई कोउयाई करेंति' त्ति गर्भाधानादिषु यानि कौतुकानिरक्षाविधानादीनि तानि गर्भाधानादीन्येवोच्यन्त इति गर्भाधानजन्मादिकानि कौतुकानीत्येवं समानाधीकरणतया निर्देशः कृतः । द्रष्टव्यं रायपसेणइयसूत्रस्य ८०३,८०४ सूत्रद्वयम् । ४. साइरेगटूवरिसजायगं (व)। ५. करण-दिवस (क, ख)। Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयर सरगयं ८. पुक्खरगयं ६. समतालं १०. जूयं ११. जणवार्य १२. पासगं १३. अट्ठावयं १४. पोरेकव्वं' १५. दगमट्टियं १६. अण्णविहि १७. पाणविहि १८. वत्थविहिं १६. विलेवणविहि २०. सयणविहि २१. अज्जं २२. पहेलियं २३. मागहियं २४. गाहं २५. गीइयं २६. सिलोयं २७. हिरण्णजुति २८. सुवण्णजुत्ति' २६. गंधजुत्ति' ३०. चुणजुति ३१. आभरणविहिं ३२. तरुणीपडिकम्मं ३३. इत्थिलक्खणं ३४ पुरिसलक्खणं ३५. हयलक्खणं ३६. गयलक्खणं ३७. गोणलक्खणं ३८. कुक्कुडलक्खणं ३६. छत्तलक्खणं ४०. दंडलक्खणं ४१. असिलक्खणं ४२. मणिलक्खणं ४३. काकणिलक्खणं" ४४. वत्थु विज्जं ४५. खंधावारमाणं' ४६. नगरमाणं ४७. वूहं ४८. पडिवूहं ४६. चारं ५०. पडिचारं ५१. चक्कवूहं ५२. गरुलवूहं ५३. सगडवूहं ५४. जुद्धं ५५ निजुद्धं ५६. जुद्धाइ - जुद्धं ५७. मुट्ठिजुद्धं ५८. वाहुजुद्धं ५६. लयाजुद्धं ६०. ईसत्थं ६९ छरुप्पवाद' ६२. धणुवेदं" ६३. हिरण्णपागं ६४. सुवण्णपागं ६५. वट्टखेड्डुं " ६६. सुत्तखेडुं ६७. णालियाखेडुं ६८. पत्तच्छेज्जं ६६. कडगच्छेज्जं ७०. सज्जीवं ७१. निज्जीवं ७२. सउणरुयं - इति सेहावित्ता सिक्खावेत्ता अम्मापिईणं उवणेहिति ॥ १४७. तए णं तस्स दढपइण्णस्स दारगस्स अम्मापियरो तं कलायरियं विउलेणं असणपाण- खाइम साइमेणं वत्थगंधमल्लालंकारेण य सक्कारेहिति सम्माहिति सक्कारिता सम्मात्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलइस्संति, दलइत्ता पडिविसज्जेहिति ॥ १४८. तए णं से दढपणे दारए" वावत्तरिकलापंडिए नवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारसदेसी-भासाविसारए गीयरई गंधव्वणट्टकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुही बाहुप्पमद्दीवियालचारी साहसिए अलंभोगसमत्थे यावि भविस्सइ ॥ १४६. तए णं तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो वावत्तरिकलापंडियं" "नवंगसुत्तपडिबोहियं अट्ठारसदेसी-भासाविसारयं गीयरई गंधव्वणट्टकुसलं हयजोहि गयजोहि रहजोहि बाहुजोहि बाहुप्पम वियालचारि साहसियं अलंभोग समत्थं च वियाणित्ता विउले हिं अण्णभोगेहि पाणभोगेहि लेणभोगहिं वत्थभोगेहिं सयणभोगेहि कामभोगेहि उवणिमंहति ॥ १५०. तए णं से दढपइण्णे दारए तेहि विउलेहि अण्णभोगेहि" "पाणभोगेहि लेणभोगेहि वत्थभोगेहि सयणभोगेहि कामभोगेहिं णो सज्जिहिति णो रज्जिहिति णो गिज्झि १. दूयं ( ख ) । २. जणवयं ( ख, ग ) । ३. पुरेकव्वं ( ग ) । ४. विहि (क); लेणविहि विलेवणविहि ( ख ) । ६५ ५. X( क, ख, ग ) । ६. × (क) । ७. कागिणि' (क ) । ८. बंधारा (क, ग) । ९. छप्पवाहं ( क ) । १०. धणुव्वेहं ( क ) । ११. चक्खेड्डुं (ख) ; बंधुखेड्डुं ( ख ) ; पब्भखेडुं (ग) । १२. 'विन्नयपरिणयमेत्ते' त्ति क्वचित् (वृ) । १३. सं० पा० पंडियं जाव अलंभोगसमत्थं । १४. सं० पा० - अण्णभोगेहि जाव सयणभोगेहि । Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोवाइयं हिति णो मुज्झिहिति' णो अज्झोववज्जिहिति । से जहाणामए उप्पलेइ वा पउमेइ वा कुमुएइ वा नलिणेइ वा सुभगेइ वा सुगंधिएइ वा पोंडरीएइ वा महापोंडरीएइ वा सयपत्तेइ वा सहस्सपत्तेइ वा पंके जाए जले संवुड्ढे गोवलिप्पइ पंकरएणं णोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव दढपइण्णे वि दारए कामेहि जाए भोगेहिं संवुड्ढे णोवलिप्पिहिति कामरएणं णोवलिप्पिहिति भोगरएणं णोवलिप्पिहिति मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परिजणणं ॥ १५१. से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहिं बुज्झिहिति, बुज्झित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिति॥ १५२. से णं भविस्सइ अणगारे भगवंते इरियासमिए' 'भासासमिए एसणासमिए आयाण-भंड-मत्त-निक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिट्ठावणियासमिए मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए° गुत्तबंभयारी॥ १५३. तस्स णं भगवओ एएणं विहारेणं विहरमाणस्स अणंते अणुत्तरे णिव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जिहिति ॥ १५४. तए णं से दढपइण्णे केवली बहूई वासाई केवलिपरियागं पाउणिहिति, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सठ्ठि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता जस्सट्ठाए कीरइ नग्गभावे मंडभावे अण्हाणए अदंतवणए केसलोए बंभचेरवासे अच्छत्तगं अणोवाहणगं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कट्ठसेज्जा परघरपवेसो लद्धावलद्धं परेहिं हीलणाओ निंदणाओ खिसणाओ गरहणाओ 'तज्जणाओ तालणाओ" परिभवणाओ पव्वहणाओ उच्चावया गामकंटगा बावीसं परीसहोवसग्गा अहियासिज्जति तमट्ठमाराहित्ता चरिमेहिं उस्सासणिस्सासेहिं सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाणमंतं करेहिति ।। देवकिब्बिसिय-उववाय-पदं १५५. सेज्जे इमे गामागर' •णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंबपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा-आयरियपडिणीया उवज्झायपडिणीया तदुभयपडिणीया कुलपडिणीया गणपडिणीया आयरिय-उवज्झायाणं अयसकारगा अवण्णकारगा अकित्तिकारगा बहूहिं असब्भावुब्भावणाहि मिच्छत्ताभिणिवेसेहि य अप्पाणं च परं च तदुभयं च बुग्गाहेमाणा वुप्पाएमाणा" विहरित्ता बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कता" कालमासे कालं किच्चा १. ४ (क, ख, वृ)। संकेतो भिन्नी वर्तेते, तेनैव पाठयोः पूतिभिन्न२. सुगंधेति (क)। स्थलाभ्यां कृतास्ति । ३. वा सयसहस्सपत्ते इ वा (क, ख, ग); ५. सं० पा०-इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी। 'सयसहस्सपत्ते इ वा' एष पाठः चिन्तनीयोस्ति ६. अदंतधावणए (क)। प्रायः 'सहस्सपत्ते' इत्येव पाठो दृश्यते। ७. फलहकसेज्जा (क, ख)। शतसहस्रपत्रं इति पदं विश्रुतं नास्ति। ८. तालणाओ तज्जणाओ (क, ख, ग) ४. प्रस्तुतसूत्रे आदर्शेष 'गुत्तबंभयारी' इति पर्यन्तः ६. सं० पा०-गामागर जाव सण्णिवेसेसु पाठो लभ्यते । १६४ सूत्रे पाठः किञ्चिद् १०. उप्पाएमाणा (क, ख)। विस्तृतोस्ति । अतः द्वयोरपि संक्षिप्तपाठयोः ११. अपडिक्कता (ख, ग) । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोवाइय-पयरणं उक्कोसेणं लंतए कप्पे देवकिब्बिसिएसु देवकिब्बिसियत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, "तहिं तेसि ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! तेरससागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अस्थि । तेणं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणठे समठे। सहस्सार-उववाय-पदं १५६. सेज्जे इमे सण्णि-पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिया पज्जत्तया भवंति, तं जहाजलयरा थलयरा खहयरा । तेसि णं अत्थेगइयाणं सुभेणं परिणामणं पसत्थेहिं अज्झवसा हिं लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं' ईहापूह-मग्गणगवेसणं करेमाणाणं सण्णीपुव्वजाइ-सरणे समुप्पज्जई ॥ १५७. तए णं ते समुप्पण्णजाइ-सरणा समाणा सयमेव पंचाणुव्वयाई' पडिवज्जंति, पडिवज्जित्ता बहूहि सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणा बहूई वासाइं आउयं पालेंति, पालेत्ता भत्तं पच्चक्खंति, पच्चक्खित्ता बहूई भत्ताई अणसणाए छेदेंति, छेदेत्ता आलोइयपडिक्कता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं सहस्सारे कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, तहिं तेसि ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते। तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठारस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। अत्थि णं भंते ! तेसि देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अत्थि! ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा? हंता अत्थि° ॥ आजीवयाणं-अच्चुय-उववाय-पदं १५८. से जे इमे गामागर'- णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंबपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु आजीवया भवंति, तं जहा–दुघरंतरिया तिघरंतरिया सत्तघरंतरिया उप्पलवेंटिया घरसमुदाणिया विज्जुयंतरिया उट्टियासमणा । ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूइं वासाइं परियायं पाउणंति, पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, "तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा ! बावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा ? हंता अस्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणठे समठे । समणाणं आमिओगिय-उववाय-पदं १५६. सेज्जे इमे गामागर - णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब१.सं० पा० तेरस सागरोवमाइं ठिई अणा- परलोगस्स आराहगा सेसं तं चेव । राहगा सेसं तं चेव। ५. सं० पा०-गामागर जाव सण्णिवेसेसु । २. खोवसमएणं (क)। ६. सं० पा०-बावीसं सागरोवमाई ठिई अणारा३. पंचणुव्वयाहिं (क)। हगा सेसं तं चैव । ४. सं० पा०-अट्ठारस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ५. सं० पा०-गामागर जाव सण्णिवेसेसु । Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ मोबाश्य पट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा-अत्तुक्कोसिया' परपरिवाइया भूइकम्मिया भुज्जो-भज्जो कोउयकारगा। ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपदिक्कता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे आभिओगिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, तहिं तेसि ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते। तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! बावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। अत्थि णं भंते ! तेसि देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा ? हंता अस्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा? णो इणठे समठे ॥ णिण्हगाणं गेवेज्ज-उववाय-पदं १६०. सेज्जे इमे गामागर"-णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडब-पट्टणासम-संवाह-सण्णिवेसेसु णिण्हगा भवंति, तं जहा-बहुरया, जीवपएसिया, अव्वत्तिया, सामुच्छेइया', दोकिरिया, तेरासिया, अबद्धिया" इच्चेते सत्त पवयणणिण्हगा केवलं चरियालिंग-सामण्णा मिच्छद्दिट्टी बहुहिं असब्भावुब्भावणाहि मिच्छत्ताभिणिवेसेहि य अप्पाणं च परं च तदुभयं च बुग्गाहेमाणा वुप्पाएमाणा विहरित्ता 'बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता" कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं उवरिमेसु गेवेज्जेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई, "तहिं तेसि ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! एक्कतीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । अत्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणठे समठे° ॥ देस-विरय-वण्णग-पदं १६१. सेज्जे इमे गामागर'-•णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंबपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा-'अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मप्पलोई" धम्मपलज्जणा धम्मसमुदायारा धम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा सुसीला" सुव्वया सुप्पडियाणंदा साहूहिं, एगच्चाओ" पाणाइवायाओ १. अत्तुक्कसिया (ग)। ६. सं० पा०-गामागर जाव सण्णिवेसेसु । २. सं० पा०-बावीसं सागरोवमाइं ठिई परलो- १०. १६३ सूत्रे 'अणारंभा अपरिग्गहा' इति पाठो गस्स अणाराहगा सेसं तं चेव। विद्यते । तथैव पद्धत्या अत्रापि चिहान्तर३. सं० पा०-गामागर जाव सण्णिवेसेस । वतिपाठो युज्यते । सूत्रकृताने (२।२।७१) पि ४. सामुच्छिया (क, ख); सामुच्छित्तिया (ग)। एष पाठो लभ्यते । ५. अव्वद्धिया (क, ख, ग)। ११. धम्मप्पलोइया (ग)। ६. मिच्छद्दिट्टिहिं (क, ग)। १२. सूत्रकृताङ्गे (२।२।७१) एतत्पदं दृश्यते । ७. ४ (क)। प्रस्तुतसूत्रस्य पाठशोधनाय अप्रयुक्तेषु आदर्शषु ८. सं० पा०-एक्कतीसं सागरोवमाइं ठिई एतत्पदं लभ्यते । प्रलोगस्स अणाराहगा। १३. एगइयाओ (वृपा) Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयरणं ६६ पडरिया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया' । 'एगच्चाओ मुसावायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया । एगच्चाओ अदिण्णादाणाओ पडिविरया जावजीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया । एगच्चाओ मेहुणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अडिविया । एगच्चाओ परिग्गहाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविया । एगच्चाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोहाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अभक्खाणाओ पेसुणाओ परपरिवायाओ अरइरईओ मायामोसाओ मिच्छादंसणसल्लाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया । एगच्चाओ आरंभ-समारंभाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया । एगच्चाओ करण-कारावणाओ पडिविरया जावज्जीवाए एगच्चाओ अपडिविरया । एगच्चाओ पयण-पयावणाओ पडिविरया जावजीवाए, एगचाओ 'पयण-पयावणाओ" अपडिविरया । एगच्चाओ कोट्टण-पिट्टण-तज्जणतालण-वह-बंध - परिकिलेसाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया । गच्चाओ हाण - मद्दण-वण-विलेवण-सह-फरिस रस- रूव-गंध-मल्लालंकाराओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया । जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जजोगोafter कम्ता परपणपरियावणकरा कज्जंति, तओ वि एगच्चाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया || १६२. तं जहा —— समणोवासगा भवंति, अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपुण्णपावा आसवसंवर-निज्जर-किरिया-अहिगरण - बंधमोक्खकुसला असहेज्जा देवासुर-णाग- सुवण्ण'- जक्खरक्खस- किन्नर - कपुरिस गरुल- गंधव्व-महोरगाइएहि देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ austaमणिज्जा निग्गंथे पावयणे णिस्संकिया णिक्कंखिया निव्वितिगिच्छा लट्ठा गहिया पुच्छियट्ठा अभिगयट्ठा विणिच्छियट्ठा अट्ठिमिजपेमाणुरागरत्ता 'अयमाउसो ! निग्गंथे पावणे अट्ठे अयं परमट्ठे सेसे अणट्ठे' ऊसियफलिहा अवंगुयदुवारा चियत्तंतेउर-परघरदारप्पवेसा' चा उद्दसमुद्दिट्ठपुण्णमा सिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेत्ता समणे निग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण- पाण- खाइम - साइमेणं वत्थ - पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणं ओसहभेसज्जेणं पाडिहारिएण' य पीढ - फलग - सेज्जा - संथारएणं पडिला भेमाणा विहरति, विहरित्ता भत्तं पच्चक्खंति, ते बहूई भत्ताइं अणसणाए छेदेंति, छेदेत्ता आलोइयपडिक्कता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवति । तहि तेसि गई, "तहि तेसि ठिई, तहिं तेसि उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! बावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । अस्थि णं भंते ! तेसि देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कार १. सं० पा० अपडिविरया एवं जाव परिग्गहाओ । २. एतादृश्यावृत्तिरन्यवाक्येषु नास्ति । ३. वाचनान्तरे 'सावज्जा अबोहिया' (वृ) । ४. से जहाणामए ति क्वचित् (वृ) । ५. × (क, ग) । ६. पुरघरदार' (क); घरदार ( ग ) । ७. वत्थगंध ( ग ) । ८. पडिहारिएण ( क ) । ६. सं० पा०-- बाबीसं सागरोवमाई ठिई आराहगा सेसं तं चेव । तहेव ( क, ख ) । 1 Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोवाइयं परक्कमेइ वा ? हंता अत्थि । ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? हंता अत्थि° ॥ सव्व-विरय-वण्णग-पदं ७० १६३. सेज्जे इमे गामागर' - 'णयर - णिगम - रायहाणि खेड - कब्बड - दोणमुह-मडंबपट्टणासम-संबाह°-सण्णिवेसेसु मणुया भवंति तं जहा - 'अणारंभा अपरिग्गहा ” धम्मिया 'धम्माणुया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मपलोई धम्मपलज्जणा धम्मसमुदायारा धम्मेणं चेव वित्त' कप्पेमाणा सुसीला सुव्वया सुपडियाणंदा साहू, सव्वाओ पाणाइवायाओ पडिविरिया' "सव्वाओ मुसावायाओ पडिविरया, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ पडिविरया, सव्वाओ मेहुणाओ पडिविरया, सव्वाओ परिग्गहाओ पडिविरया । सव्वाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोभाओ' 'पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ, पेसुण्णाओ परपरिवायाओ अरइरईओ मायामोसाओ मिच्छादंसण सल्लाओ पडिविरया । सव्वाओ आरंभ-समारंभाओ पडिविरया । सव्वाओ करण-कारावणाओ पडिविरया । सव्वाओ पयणपावणाओ पडिविरया । सव्वाओ कोट्टण - पिट्टण-तज्जण तालण-वह-बंध-परिकिलेसाओ पडिविरया । सव्वाओ पहाण - मद्दण-वण्णग- विलेवण-सह-फरिस-रस- रूव-गंध-मल्लालंकाओ पडिविया । जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जजोगोवहिया कम्मंता परपाणपरियावणकरा कज्जति, तओ वि पडिविरया जावज्जीवाए || १६४. ‘से जहाणामए" अणगारा भवंति - इरियासमिया भासासमिया' 'एसणासमिया आयाण - भंड- मत्तणिक्खेवणासमिया उच्चार- पासवण - खेल - सिंघाण- जल्ल-पारिट्ठावणिआसमिया मणसमिया वइसमिया कायसमिया मणगुत्ता वइगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुतिदिया गुत्तभयारी चाई लज्जू धन्ना खंतिखमा जिइंदिया सोहिया अणियाणा अप्पूया अहिल्लेसा सुसामण्णरया दंता इणमेव निग्गंथं पावयणं पुरओकाउं विहरति ॥ १६५. तेसि णं भगवंताणं एएणं विहारेणं विहरमाणाणं अत्थेगइयाणं अनंते' • अणुत्तरे णिव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जइ । ते बहू वासाई केवल परियागं पाउणंति, पाउणित्ता भत्तं पच्चक्खंति, पच्चक्खित्ता बहूई भत्ताइं अणसणाए छेदेंति, छेदेत्ता जस्सट्ठाए कीरइ नग्गभावे" "मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए केसलोए बंभचेरवासे अच्छत्तगं अणोवाहणगं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कट्टसेज्जा परघरपवेसो लद्धावलद्धं परेहिं हीलणाओ निंदणाओ खिसणाओ गरहणाओ तज्जगाओ ताल ओ परिभवणाओ पवहणाओ उच्चावया गामकंटगा बावीसं परीसहोवसग्गा अहियासिज्जंति, तमट्ठमाराहित्ता चरिमेहि उस्सासणिस्सासेहि सिज्झति बुज्झति मुच्चति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाण मंतं करेंति ॥ १६६. जेसि पि य णं एगइयाणं णो केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जइ । ते बहूइं सल्लाओ । ७. से जहाणामए ति क्वचिन्न ( वृ ) । ८. सं० पा०-- भासासमिया जाव इणमेव । ८. सं० पा० – अणते जाव केवलवरणाणदंसणे । मिच्छादंसण- १०. सं० पा० नग्गभावे जाव मंतं । १. सं० पा०—गामागर जाव सण्णिवेसेसु । २. × (ख, ग ) । ३. सं० पा० धम्मिया जाव कप्पेमाणा । ४. साहूह ( ख ) । ५. पडिविरिया जाव सव्वाओ । ६. सं० पा० - लोभाओ जाव Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१ ओवाइय-पयरणं वासाई छउमत्थ-परियागं पाउणंति, पाउणित्ता आबाहे उप्पण्णे वा अणुप्पण्णे वा भत्तं पच्चक्खति । ते बहूई भत्ताइं अणसणाए छेदेंति, छेदेत्ता जस्सट्ठाए कीरइ नग्गभावे' • मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए केसलोए बंभचेरवासे अच्छत्तगं अणोवाहणगं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कट्टसेज्जा परघरपवेसो लद्धावलद्धं परेहिं हीलणाओ निंदणाओ खिसणाओ गरणाओ तज्जणाओ तालणाओ परिभवणाओ पव्वणाओ उच्चावया गामकंटगा बावीसं परीसहोवसग्गा अहियासिज्जति, तमट्ठमाराहित्ता चरिमेहि उस्सासणिस्सासेहिं अनंतं अणुत्तरं निव्वाघायं निरावरणं कसिणं पडिपुण्णं केवलवरणाणदंसणं उप्पाडेंति', तओ पच्छा सिज्झिहिति' 'बुज्झिहिति मुचिर्हिति परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाण मंत कहति ॥ १६७. एगच्चा पुण एगे भयंतारो पुव्वकम्मावसेसेणं कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं सव्वसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहि तेसि गई, "तहिं तेसि ठ, तहि सिउवा पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । अत्थि णं भंते ! तेसि देवाणं इड्ढीइ वा जुईइ वा जसेइ वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा ? हंता अत्थि । तेणं भंते! देवा परलोगस्स आराहगा ? हंता अत्थि ॥ १६८. सेज्जे इमे गामागर - 'णयर - णिगम-रायहाणि खेड- कब्बड - दोणमुह-मडंबपट्टणासम-संबाह°-सण्णिवेसेसु मणुया भवंति तं जहा - सव्वकामविरया सव्वरागविरया ' सव्वसंगातीता सव्वसिणेहाइक्कंता अक्कोहा निक्कोहा खीणक्कोहा "अमाणा निम्माणा खमाणा अमाया निम्माया खीणमाया अलोहा निल्लोहा खीणलोहा अणुपुव्वेणं अट्ठ कम्पयडीओ खवेत्ता उप्पि लोयग्गपइट्टाणा भवंति ॥ केवलिसमुग्धाय-पदं १६६. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवलिसमुग्धाएणं समोहए" केवलकप्पं लोयं फुसित्ता णं चिट्ठइ ? हंता चिट्ठइ । से णूणं भंते ! केवलकप्पे लोए तेहि निज्जरापोग्गलेहि फुडे ? हंता फुडे । छउमत्थे णं भंते ! मणुस्से तेसिंणिज्जरापोग्गलाणं किंचि वण्णं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे ॥ १७०. से केणट्ठेणं भंते ! एवं बुच्चइ - छउमत्थे णं मणुस्से तेसि णिज्जरापोग्गलाणं णो किचि वण्णं वण्णं" गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ ? गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापूयसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए, वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए, वट्टे पडिपुण्ण१. सं० पा० – नग्गभावे जाव तमट्ठमाराहित्ता । हगा चेव सेसं तं चेव । ७. सं० पा० – गामागर जाव सण्णिवेसेसु । २. समुपाडिति ( क ) । ३. सं० पा० - सिज्झिहिति जाव मंतं । ४. काहिति ( ख, ग ) । ५. तेहिं ( क, ख, ग ) । ६. सं० पा० - तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई आरा ८. X (क, ख, ग ) । ६. सं० पा० - माणे माया लोहा । १०. समोहणइ २त्ता (क, ख, ग ) ११. सं० पा०वणं जाव जाणइ । Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइयं चंदसंठाणसंठिए, एक्कं जोयणस्यसहस्सं आयामविक्खंभेणं तिण्णि जोयणसय सहस्साई सोलससहस्साइं दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिष्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुस तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलियं च किचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते । देवे णं महिड्ढीए महज्जुतीए महब्बले महाजसे महासोक्खे महाणुभावे सविलेवणं गंधसमुग्गयं गिues, गिहित्ता तं अवदालेइ, अवदालेत्ता जाव इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबुद्दी व दीवं तिहि अच्छरा - णिवा एहिं तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टित्ता णं हव्वमा गच्छेज्जा । से णूणं गोयमा ! से केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे तेहि घाणपोग्गलेहिं फुडे ? हंता फुडे । छउमत्थे णं गोयमा ! मणुस्से तेसि घाणपोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं' 'गंधेण गंध रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ ? भगवं ! णो इणट्ठे समट्ठे । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइछत्थे णं मणुस्से तेसि णिज्जरा-पोग्गलाणं णो किचि वण्णेणं वण्णं 'गंधेणं गंध रसेणं रसं फासेणं फासं° जाणइ पासइ । एसुहुमा णं ते पोग्गला पण्णत्ता समणाउसो ! सव्वलोयं पियणं ते फुसित्ता णं चिट्ठति । १७१. कम्हाणं भंते ! केवली समोहणंति ? कम्हा णं केवली समुग्धायं गच्छति ? गोयमा ! केवलीणं चत्तारि कम्मंसा अपलिक्खीणा' भवंति तं जहा - वेयणिज्जं आउयं णाम गतं । सव्ववहुए से वेणिज्जे कम्मे भवइ, सव्वत्थोवे से आउए कम्मे भवइ, विसमं समं करेइ, बंधणेहि ठिईहि य, विसमसमकरणयाए, बंधणेहि ठिईहि य । एवं खलु केवली समोहणंति, एवं खलु केवली समुग्घायं गच्छति ॥ १७२. सव्वे वि णं भंते ! केवली समुग्धायं गच्छति ? णो इणट्ठे समट्ठे । 'अकिया ण" समुग्धायं, अणंता केवली जिणा । जर मरणविपमुक्का, ' सिद्धिं वरगई गया ॥ १ ॥ ७२ १७३. कइसमए णं भंते ! आवज्जीकरणे पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए पण्णत्ते ॥ १७४. केवलिसमुग्धाए णं भंते ! कइसमइए पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ठसमइए पण्णत्ते, तं जहा --पढमे समए दंड करेइ, बीए समए कवाडं करेइ, तइए समए मंथ करेइ, उत्थे समए लोयं पूरेइ, पंचमे समए लोयं पडिसाहरइ, छट्ठे समए मंथं पडिसाहरइ, सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ, पंडिसाहरित्ता सरीरत्थे भवइ ॥ १७५. से णं भंते ! तहा समुग्धायगए कि मणजोगं जुंजइ ? वयजोगं जुंजइ ? कायजोगं जुंजइ ? गोयमा ! णो मणजोगं जुंजइ, णो वयजोगं जुंजइ, कायजोगं जुंजइ ॥ १७६. कायजोगं जुंजमाणे कि ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ ? ओरालियमीसासरीरकायजोगं' जुंजइ ? वेउव्वियसरीरकायजोगं जुजइ ? वेउब्वियमीसासरीरकायजोगं जुंजइ ? आहारगसरीरकायजोगं जुंजइ ? आहारगमीसासरीरकायजोगं जुंजइ ? कम्मग५. जाइजरामरणविप्पमुक्का ( ख, ग ) । ६. 'मीससरीर' ( ख, ग ) ; 'मिस्ससरीर' ( क्वचित् ) । १, २. सं० पा० - वण्णं जाव जाणइ । ३. 'अवेइया अनिज्जिणा' त्ति क्वचिद् दृश्यते (वृ) । ४. अकिरिया ण (ख); अकित्ता णं ( क्वचित् ) । Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-पयरणं सरीरकायजोगं' जुंजइ ? गोयमा ! ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ, ओरालियमीसासरीरकायजोगं पि जुंजइ, णो वे उव्वियसरीरकायजोगं जुंजइ, णो वेउव्वियमीसासरीरकायजोगं जुंजइ णो आहारगसरीरकायजोगं जुजइ, णो आहारगमीसासरीरकायजोगं जुंजइ, कम्मगसरीरकायजोगं पि जुंजइ । पढमट्ठमेसु समएस ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ, बिइ छ- सत्तमे समएसु ओरालिमीसासरीरकायजोगं जुजइ, तइय- चउत्थ-पंचमे हि कम्मसरीरकायजोगं जुंजइ ॥ १७७. से णं भंते ! तहा समुग्धायगए 'सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिब्वाइ सव्वदुक्खाणमंत करेइ ? णो इणट्ठे समट्ठे । से णं तओ पडिणियत्तइ, पडिणियत्तित्ता इहमागच्छइ, आगच्छित्ता तओ पच्छा मणजोगं पि जुंजइ, वयजोगं पि जुजइ, कायजोगं पि जुंजइ ॥ १७८. मणजोगं जुंजमाणे किं सच्चमणजोगं जुंजइ ? मोसमणजोगं जुंजइ ? सच्चामोसमणजोगं जुंजइ ? असच्चामोसमणजोगं जुंजइ ? गोयमा ! सच्चमणजोगं जुंजइ, णमो समणजोगं जुंज, णो सच्चामोसमणजोगं जुंजइ, असच्चामोसमणजोगं पि जुंजइ ॥ ७३ १७९. वयजोगं जुंजमाणे कि सच्चवइजोगं जुंजइ ? मोसवइजोगं जुंजइ ? सच्चामोसवइजोगं जुजइ ? असच्चामोसवइजोगं जुजइ ? गोयमा ! सच्चवइजोगं जुंजइ, णो मोसवइजोगं, जुजइ, णो सच्चामोसवइजोगं जुजइ, असच्चामोसवइजोगं पि जुंजइ ॥ १८०. कायजोगं जुंजमाणे आगच्छेज्ज वा चिट्ठेज्ज वा णिसीएज्ज वा तुयट्टेज्ज वा उल्लंघेज्ज वा पल्लंघेज्ज वा, उक्खेवणं वा अवक्खेवणं वा तिरियक्खेवणं वा करेज्जा, पाsिहारियं वा पीढ - फलग - सेज्जा - संथारगं पच्चप्पिणेज्जा ।। जोग निरोह-पदं १८१. से णं भंते । तहा सजोगी सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाण मंत करेइ' ? णो इणट्ठे समट्ठे ॥ १८२. से णं पुव्वामेव सण्णिस्स पंचिदियस्स पज्जत्तगस्स जहण्णजोगिस्स' हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं पढमं मणजोगं निरंभइ, तयाणंतरं च णं बिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहण्णजोगिस्स' हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं विइयं वइजोगं निरंभ, तयानंतरं च मस्स पण जीवस्स' अपज्जत्तगस्स जहण्णजोगिस्स" हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तइयं कायजोगं णिरुंभइ । से णं 'एएणं उवाएणं" पढमं मणजोगं णिरुंभइ, णिरंभित्ता वयजोगं १. कम्मसरीर° ( क ) ; कम्मासरीर° ( ख, ग ) । (ख); जहण्ण जोगस्स २. सिज्झिहि बुज्झिहिर मुच्चिहि परिनिव्वाहिइ (क, ख, ग ) । ६. जहण्णमणजोगिस्स (ग) । ७. पंचिदियस ( क, ख ) । ८. जहण्णवयजोगस्स ( ख ) । 8. पणगस्स ( क ) । १०. जहण्णकायजोगस्स ( ख, ग ) । ११. पउत्तेणं उवाएणं (क) ३. पक्खेवणं ( क ) । ४. सिज्झिहिति (क, ख, ग ); सं० पा० भइ जावत । ५. करिहति ( क, ख ) । Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोवाइयं णिरंभइ, णिभित्ता कायजोगं णिरंभइ, णिरंभित्ता जोगनिरोहं करेइ, करेत्ता अजोगत्तं' पाउणइ, पाउ णित्ता ईसिंहस्स पंचक्खरुच्चारणद्धाए' असंखेज्जसमइयं अंतोमुहुत्तियं' सेलेसि पडिवज्जइ । पुव्वरइयगुणसेढीयं च णं कम्मं तीसे सेलेसिमद्धाए असंखेज्जाहिं गुणसेढी हिं अनंते कम्मंसे खवयंतो वेयणिज्जाउयणामगोए इच्चेते चत्तारि कम्मंसे जुगवं खवेइ, खवेत्ता ओरालियतेयकम्माई' सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहित्ता' उज्जुसेढीपडिवण्णे अफुसमाणगई उड्ढ" एक्कसमएणं अविग्गहेणं गंता ' सागरोवउत्ते सिज्झइ ॥ सिद्ध-वण्णग-पदं ७४ १८३. ते णं तत्थ सिद्धा हवंति सादीया अपज्जवसिया असरीरा जीवघणा दंसणजाणवत्ता निट्टियट्ठा निरेयणा नीरया णिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सासयमणागयद्ध' चिट्ठति । १८४. से केणट्ठणं भंते ! एवं बुच्चइ-ते णं तत्थ सिद्धा भवंति सादीया अपज्जवसिया" "असरीरा जीवघणा दंसणणाणोवउत्ता निट्ठियट्ठा निरेयणा नीरया गिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सासयमणागयद्धं° चिट्ठति ? गोयमा ! से जहाणामए बीयाणं अग्गिदड्ढाणं पुणरवि अंकुरुपत्ती ण भवइ, एवामेव सिद्धाणं कम्मबीए दड्ढे पुणरवि जम्मुप्पत्ती न भवइ । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - ते णं तत्थ सिद्धा भवंति सादीया अपज्जवसिया " ● असरीरा जीवघणा दंसणणाणोवउत्ता निट्टियट्ठा निरेयणा नीरया णिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सासयमणागयद्धं° चिट्ठति ॥ १८५. जीवा णं भंते! सिज्झमाणा कयरम्मि संघयणे सिज्झति ? गोयमा ! वइरोसभणारायसंघयणे सिज्झति ॥ १८६. जीवा णं भते ! सिज्झमाणा कयरम्मि संठाणे सिज्झति ? गोयमा ! छण्ह संठाणाणं अण्णयरे संठाणे सिज्झति ।। १८७. जीवा णं भंते! सिज्झमाणा कयरम्मि उच्चत्ते सिज्झति ? गोयमा ! जहणे सत्तरयणीए उक्कोसेणं पंचधणुसइए सिज्झति ॥ १८८. जीवा णं भंते ! सिज्झमाणा कयरम्मि आउए सिज्झति ? गोयमा ! जहणणं साइरेगट्ठवासाउए, उक्कोसेणं पुव्वकोडियाउए सिज्झति ॥ १८६. अस्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पहाए पुढवीए अहे सिद्धा परिवसंति ? णो इणट्ठे समट्ठे । एवं जाव" अहसत्तमाए ॥ १६०. अत्थि णं भंते ! सोहम्मस्स कप्पस्स अहे सिद्धा परिवसंति ? णो इणट्ठे समट्ठे । एवं सव्वेसि पुच्छा - ईसाणस्स सणकुमारस्स जाव" अच्चुयस्स गेवेज्जविमाणाणं १. अजोगयं (वृ) । २. ईसिपंच रहस्सक्खरुच्चारणद्धाए ( ख, ग ) । ३. अंतो मुद्दत्तं ( ग ) । ४. खवेइ ( ख ) । ५. तेयाक माई (क, ग ) । ६. विप्पजहइ, २ ता ( क ) । ७. × (वृ) । ८. उड्ढं गंता (बृ) । ९. मणागयद्धं कालं ( ख ) । १०, ११. सं० पा० अपज्जवसिया जाब चिट्ठति । १२. भ० २७५ । ११. ओ० सू० ५१ । Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवाइय-परणं अणुत्तरविमाणा || ११. अत्थि णं भंते ! ईसीप भाराए पुढवीए अहे सिद्धा परिवसंति ? णो इणट्ठे समट्ठे ॥ सीप भारापुढवी- वण्णग-पदं १९२. से कहि खाइ णं' भंते ! सिद्धा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पहाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-ग्गहगण णक्खत्त-तारारूवाणं' बहूइं जोयणाई, बहूइं जोयणसयाई, बहूइं जोयणसहस्साई, बहूइं जोयणसयसहस्साई, बहूओ जोयकोडीओ बहूओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाण सणकुमारमाहिद- बंभ-लंतग- महासुक्क सहस्सार- आणय-पाणय- आरण-अच्चुए तिणि य अट्ठारे गेविज्जविमाणावाससए वीईवइत्ता विजय- वेजयंत- जयंत अपराजिय- सव्वट्टसिद्धस्स य महाविमाणस्स सव्वुवरिल्लाओ' थू भियग्गाओ दुवालसजोयणाई अबाहाए एत्थ णं ईसीप भारा णाम पुढवी पण्णत्ता - पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयाम - विक्खंभेणं, एगा जोयकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोणि य अउणापणे जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिरएणं । ईसीपब्भाराए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभाए अट्ठखेत्ते अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं, तयाणंतरं च णं मायाए- मायाए परिहायमाणी - परिहायमाणी सव्वेसु चरिम- पेरतेसु मच्छियपत्ताओ तणुयतरी ' अंगुलस्स असंखेज्जइभागं बाहल्लेणं पण्णत्ता || १६३. ईसीप भाराए णं पुढवीए दुवालस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा - ईसीई वा ईसीप भाइ वा तणूइ वा तणुयरीइ' वा सिद्धीइ वा सिद्धालएइ वा मुत्तीइ वा मुत्तालएइ वा लोयग्गेइ वा लोयग्गभिगाइ वा लोयग्गपडिबुज्झणाइ वा सव्वपाण-भूय-जीव-सत्तसुहावहाइ वा ॥ १९४. ईसीपब्भारा णं पुढवी सेया संखतल' - विमलसोल्लिय'- मुणाल " - दगरय-तुसारगोक्खीर- हारवण्णा उत्ताणयछत्तसंठाणसंठिया सव्वज्जुणसुवण्णगमई अच्छा सहा लहा घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिक्कंकडच्छाया समरीचिया" सुप्पभा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ सिद्ध-वण्णग-पदं १६५. ईसीप भाराए णं पुढवीए सीयाए जोयणंमि लोगंतो । तस्स जोयणस्स जे से उवरिल्ले गाउए, तस्स णं गाउयस्स जे से उवरिल्ले छब्भागे, तत्थ णं सिद्धा भगवंतो " सादीया अपज्जवसिया 'अणेगजाइ जरा मरण - जोणि-वेयणं संसारकलंकलीभाव- पुणब्भव १. x (क, ख, ग ) । २. ताराभवणाओ ( ग ) । ३. सव्वुष्परिल्लाओ (क, ग) । ४. माता पएसपरिहाणीए ( पण्ण० २२६४) । ५. तनुयरी ( ग ) । ६. तणतणूई ( क ) ; तणूअरीइ ( ग ) । ७५ ७. पडिपुच्छणाई ( ग ) । ८. आयंस (वृ); संखतल ( बूपा ) । ९. विमलसोत्थिय ( पण्ण० २।६६ ) । १०. मुणालय ( ख ) । ११. समीरिचिया ( क ) । १२. भगवंता ( ग ) । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ मोवाइव गब्भवासवसही-पवंचं अइक्कंता" सासयमणागयद्धं चिट्ठति । कहि' पडिहया सिद्धा ? कहिं सिद्धा पइट्ठिया ? । कहिं बोंदि चइत्ताणं, कत्थ गंतूण सिज्झई ? ॥१॥ अलोगे पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्ठिया। इहं बोंदि चइत्ताणं तत्थ गंतूण सिज्झई ॥२॥ जं संठाणं तु इहं, भवं चयंतस्स चरिमसमयंमि । आसी य पएसघणं, तं संठाणं तहिं तस्स ॥३॥ दीहं वा हस्स" वा, जं चरिमभवे हवेज्ज संठाणं । तत्तो तिभागहीणा, सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥४॥ तिण्णि सया तेत्तीसा, धणुत्तिभागो य होइ बोद्धव्वो। एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया ॥५॥ चत्तारि य रयणीओ, रयणितिभागूणिया य बोद्धव्वा । एसा खलु सिद्धाणं, मज्झिमओगाहणा भणिया ॥६॥ एक्का य होइ रयणी साहीया' अंगुलाई' अट्ठ भवे । एसा खलु सिद्धाणं, जहण्णओगाहणा भणिया ॥७॥ ओगाहणांए सिद्धा 'भव-तिभागेण" होंति परिहीणा । संठाणमणित्थंथं, जरामरणविप्पमुक्काणं ॥८॥ जत्थ य एगो सिद्धो, तत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का। अण्णोण्णसमोगाढा, पुट्ठा सव्वे य लोगते ।।६।। फुसइ अणते सिद्धे, सव्वपएसेहि णियमसा' सिद्धो। ते वि असंखेज्जगुणा, देसपएसेहिं जे पुट्ठा ॥१०॥ असरीरा जीवघणा, उवउत्ता दसणे य णाणे य। सागारमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ॥११॥ केवलणाणुवउत्ता", जाणंती सव्वभावगुणभावे । पासंति सव्वओ खलु, केवलदिट्ठीहि" णंताहिं ॥१२॥ १. पाठान्तरमिदम् 'अणेगजाइजरामरणजोणि- ४. चरम (ख) । संसारकलंकलीभावपुणब्भवगब्भवासवसहिपवंच- ५. हुस्सगं (ख) । समइक्कत' त्ति (व)। ६. साहिया (ख)। २. कालं चिट्ठति (पण्ण० २।६७)। ७. अंगुलाई (क, ख)। ३. अतः पूर्व प्रज्ञापनायां (२०६७) एषा गाथा ८. भव-भागेण (ख)। दृश्यते ६. णियमसो (ग)। तत्थ वि य ते अवेदा, अवेदणा निम्ममा १०. केवलनाणोउवत्ता (ख) असंगया य। ११. केवलदिट्ठीहिं (ग)। संसारविप्पमुक्का, पदेसा निव्वत्तसंठाणा ॥१॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोवाइय-पयरणं वि अत्थि माणुसणं तं सोक्खं ण वि य सव्वदेवाणं । जं सिद्धाणं सोक्खं, अव्वाबाहं जं देवाणं सोक्खं, सव्वद्धापिडियं ण य पावइ मुत्तिसुहं णंताहिं' सिद्धस्स सुहो रासी, सव्वद्धापिंडिओ जइ हवेज्जा । सोणंतवग्ग भइओ, सव्वागासे ण माज्जा ।।१५।। जह णाम कोई मिच्छो, नगरगुणे बहुविहे वियाणंतो । न चएइ परिकहेउं, उवमाए तहिं असंती ॥ १६ ॥ इय सिद्धाणं सोक्खं, अणोवमं णत्थि तस्स ओवम्मं । किंचि विसेसेणेत्तो, ओवम्ममिणं सुणह वोच्छं ॥ १७ ॥ जह सव्वकामगुणियं, पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई । तहा छुहाविमुक्को, अच्छेज्ज जहा अमियतित्तो ॥ १८ ॥ इय सव्वकालतित्ता, अउलं निव्वाणमुवगया सिद्धा । सासयमव्वाबाहं, चिट्ठति सुही सुहं पत्ता ॥ १६॥ सिद्धत्ति य बुद्धत्तिय, पारगयत्ति य परंपरगय त्ति । उम्मुक्क - कम्म- कवया, अजरा अमरा असंगा य ॥२०॥ णिच्छिण्ण सव्वदुक्खा, जाइजरामरणबंधण विमुक्का । अव्वाबाहं सुक्खं अणुहोंती सासयं सिद्धा ||२१|| अतुल सुहसागरगया,' अव्वाबाहं अणोवमं पत्ता | सव्वमणागयमद्धं, चिट्ठेति 'सुही सुहं पत्ता ॥२२॥ अक्षर-परिमाण : अनुष्टुप - श्लोक : १. अताहिवि ( ख ) । २. बुद्धित्ति ( ख ); बोद्धत्ति ( ग ) । उवगयाणं ॥ १३ ॥ अनंतगुणं । वग्गवग्गूहिं ॥ १४॥ ग्रन्थ- परिमाण ४८४१६ १५१३ अक्षर ३ ७७ ३. प्रज्ञापनायां (२।६७) एषा गाथा नैव दृश्यते । ४. सुह संपत्ता ( ख ) । Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो उक्खेव-पदं १. तेणं' कालेणं तेणं समएणं आमलकप्पा नाम' नयरी होत्था-'रिद्ध-त्थिमिय'समिद्धा जाव पासादीया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा ॥ २. तीसे णं आमलकप्पाए नयरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए अंबसालवणे नामं चेइए होत्था-चिराईए' जाव पडिरूवे ॥ ३. "तस्स णं वणसंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे असोगवरपायवे पण्णत्ते ॥ __४. तस्स णं असोगवरपायवस्स हेट्ठा ईसिं खंधसमल्लीणे, एत्थ णं महं एक्के पुढविसिलापट्टए पण्णत्ते॥ ५. सेयो राया । धारिणी देवी॥ ६. सामी समोसढे । परिसा निग्गया जाव राया पज्जुवासइ । सूरियाभस्स ओहिपओग-पदं ____७. तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरियाभे" देवे सोहम्मे कप्पे सूरियाभे विमाणे सभाए सुहम्माए सूरियाभंसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहि, चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अणिएहिं, सतहिं अणियाहिवईहिं, सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अन्नेहिं बहूहिं सूरियाभविमाणवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धि संपरिवुडे महयाहयनट्ट"-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवादियरवेणं दिव्वाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति, इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं १. नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं ७. ओ० सू० २-७ । नमो उवज्झायाणं नमो लोए सव्व साहणं । ८. सं० पा०–असोयवरपायवे पुढविसिलापट्टए तेणं (क, ख, ग, घ, च, छ) । वत्तव्वया ओववाइयगमेणं नेया। पूर्णपाठार्थ २. नाम (क, ख, छ); णाम (च)। द्रष्टव्यं ओ० सू०८-१३ । ३. रिद्धथमिय (क, ख, ग, च); रिद्धिस्थिमिय ६. ओ० स० १९-६६ । (घ, छ)। १०. सूरियाभे णाम (वृ)। ४. ओ० सू०१। ११. महतामहतनट्ट (क, ख, ग, च)। ५. दरिसणिज्जा (व)। १२. परुप्पवादियरवेणं (ख)। ६. पोराणे (क, ख, ग, घ, च, छ) । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ रायपसेणइयं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासति' ।। सूरियाभेण भगवओ वंदण-पदं । ८. तत्थ समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे (दीवे ? ) भारहे वासे आमलकप्पाए नयरीए वहिया अंबसालवणे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणं पासति, पासित्ता हट्टतुटु-चित्तमाणं दिए पीइमणे' परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए विगसियवरकमलणयणे पयलिय'-वरकडग-तुडिय-केऊर-मउड-कुंडलहार-विरायंतरइयवच्छे पालंव-पलबमाण-घोलंत-भूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं सुरवरे सीहासणाओ अब्भुठेइ, अब्भुठेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेति, करेत्ता 'तित्थयराभिमुहे सत्तटुपयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि निहट्ट तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेइ, निवेसेत्ता" ईसिं पच्चुन्नमइ, पच्चुन्नमित्ता कडयतुडियथंभियाओ भुयाओ पडिसाहरइ, पडिसाहरेत्ता करयलपरिग्गहियं 'दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासीनमोत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं आदिगराणं तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं 'पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं" लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं जीवदयाणं सरणदयाण बोहिदयाणं धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं वियदृछउमाणं" जिणाणं जावयाणं ५ 'तिण्णाणं तारयाणं बुद्धाणं वोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं 'सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वावाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आइगरस्स तित्थयरस्स जाव सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउकामस्स । वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगते, पासइ मे भगवं तत्थगते इहगतं ति कटु वंदति णमंसति, वंदित्ता णमंसित्ता 'सीहासणवरगए पुव्वाभिमुहं सण्णिसण्णे""॥ १. पासइ पासित्ता (क, छ)। १३. ४ (क, ख, ग, घ)। २. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। १४. विउट्टछम्माणं (क); ४ (ख, ग, घ); ३. पीयमणे (क, ख, ग, घ, च, छ) । विउट्टछउमाणं (च)। ४. हरसवस (घ)। १५. जाणगाणं (क, ख, ग, घ)। ५. विहसिय" (छ)। १६. बुद्धाणं बोहयाणं मूत्ताणं मोयगाणं तिण्णाणं ६. पचलिय (च)। तारयाणं (क, ख, ग, घ)। ७. सत्तट्ठपयाइं तित्थयराभिमुहे (क, ख, ग, घ, १७. x (क, ख, ग, घ); सव्वन्नूणं सव्वदंसीणं च, छ)। ८. जाणं (च, छ)। १८. 'मपुणरावत्ति (च)। ६. णिमेइ णिमेत्ता (क, ख, ग, च)। १६. 'नामधेज्ज (क)। १०. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । २०. पासउ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ११. सिरसावत्तं दसनहं (क, ख, ग, घ, च, छ)। २१. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ); सिंहासनवरगतः १२. सहसंबुद्धाणं (ओ० सू० २१)। गत्वा च (व)। Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरियाभो आभिओगिय-देव-पेसण-पदं ६. 'तए णं तस्स सूरियाभस्स" इमे एयारूवे 'अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे' समुपज्जित्था-सेयं खलु मे समणं भगवं महावीरं वंदित्तए नमंसित्तए सक्कारित्तए सम्माणित्तए कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासित्तएत्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता आभिओगिए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आमलकप्पाए नयरीए बहिया अंबसालवणे चेइए अहापडिरूवं ओग्ग ओगिण्डित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरह। तं गच्छह णं तमें देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवं दीवं भारहं वासं आमलकप्पं नयरिं अंवसालवणं चेइयं समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेह, करेत्ता वंदह णमंसह, वंदित्ता णमंसित्ता साइं-साइं नामगोयाई साहेह, साहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वओ समंता जोयणपरिमंडलं जं किंचि 'तणं वा पत्तं वा कळं वा सक्करं वा असुइं अचोक्खं पूइयं दुब्भिगंधं तं सव्वं आहुणिय-आहुणिय एगते एडेह, एडेता णच्चोदगं णाइमट्टियं पविरलफुसियं' रयरेणुविणासणं दिव्वं सुरभिगंधोदयवासं वासह, वासित्ता णिहयरयं णट्ठरयं भट्टरयं' उवसंतरयं पसंतरयं करेह, करेत्ता जलयथलयभासुरप्पभूयस्स बेंटट्ठाइस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमस्स जन्नुस्सेहपमाणमेत्ति ओहि वासं वासह, वासित्ता कालागरु-पवरकुंदुरुक्क -तुरुक्कधूव"-मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंध"-वरगंधगंधियं" गंधवट्टिभूतं दिव्वं सुरवराभि १. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि २. मणोगए अज्झथिए चितिए पत्थिए संकप्पे णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं (वृ)। देवयं चेइयं पज्जुवासामि। एयं मे पेच्चा ३. 'सेयं खलु' अतः प्रारभ्य 'पज्जुवासित्तएत्ति हियाए सुहाए खमाए दयाए णिस्सेयसाए कट्ट' इतिपर्यन्तः पाठो वृत्त्याधारेण स्वीकृतः। आणगामियत्ताए भविस्सतित्ति कटु । ज्ञाताधर्मकथायां अस्य संवादी पाठो लभ्यते। ४. तुब्भे (छ)। द्रष्टव्यं अंगसुत्ताणि भाग ३ पृष्ठ ३७१: ५. तणं वा, काष्ठं वा, काष्ठशकलं वा, पत्रं वा, नायाधम्मकहाओ २।१।१।१२। आदर्शेषु कचवरं वा (व)। विस्ततः पाठो लभ्यते-एवं खलु समणे भगवं ६. पफुसियं (क, ख, ग, घ, च)। महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आमल- ७. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । कप्पाए नयरीए बहिया अंबसालवणे चेइए ८. °पमाणमेत्तं (क, ख, ग, घ) । अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं ६. ओह (क, घ, च)। तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तं महाफलं १०. 'कंदुरुक्क (क, ख, ग, घ, च); 'कुंदरुक्क खलु तहारूवाणं अरहताणं णामगोयस्स वि (छ)। सवणयाए किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण- ११. धूय (क, ख, ग, घ); धूमय (च)। पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? एगस्स वि १२. सुगंधि (पइण्णगसमवाओ सू० १४४) । आयरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए १३. वरगंधियं (घ) । किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ रायपसेणइयं गमणजोग्गं करेह य 'कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता" य खिप्पामेव एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ आभिओगिय-देहि भगवओ वंदण-पदं १०. तए णं ते आभिओगिया देवा सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतु?' चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण° हियया करयलपरिग्गहियं दसणह सिरसावत्तं 'मत्थए अंजलि'' कटु एवं देवो! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणेत्ता उत्तरपुरथिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंडं निसिरंति, तं जहा--रयणाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं' अंजणाणं अंजणपुलगाणं रययाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्राणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेति, परिसाडेत्ता अहासूहमे पोग्गले परियायंति, परियाइत्ता दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता उत्तरवेउव्वियाई रूवाई विउव्वंति, विउव्वित्ता ताए उक्किट्ठाएं तुरियाए 'चवलाए चंडाए० जवणाए" सिग्घाए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुदाणं मझमज्झेणं वीईवयमाणावीईवयमाणा जेणेव जंबुद्दीवे दीवे जेणेव भारहे वासे जेणेव आमलकप्पा णयरी जेणेव अंवसालवणे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं महावीरं तिक्खुत्तो 'आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-अम्हे णं भंते ! सूरियाभस्स देवस्स आभियोग्गा देवा देवाणुप्पियं वंदामो णमसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो ।। वंदणाणुमोदण-पदं ११. देवाइ" ! समणे भगवं महावीरे ते देवे'" एवं वयासी-'पोराणमेयं देवा ! जायमेयं देवा ! किच्चमेयं देवा ! करणिज्जमेयं देवा! आइण्णमेयं देवा ! अब्भणुण्णायमेयं देवा! जण्णं भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियदेवा अरहंते भगवंते वंदंति १. कारावेह करेत्ता य कारावेत्ता (क, ख, ग, घ, ६. ओकिट्ठाए (घ)। च)। १०. चंडाए चवलाए (क, ख, ग, घ, च, छ)। २. सर्वादशॆषु एवमाणत्तियं' पाठोस्ति, किन्तु ११. जयणाए (क, ख, ग, घ, च, छ) । अर्थविचारणया तथा औपपातिकं (६१ सूत्र) १२. आयाहिणपयाहिणं (क, छ)। अनुसत्य 'एयमाणत्तियं' पाठः स्वीकृतः । १३. देवाय (क, ख, ग, च, छ); तए णं देवा य 'एवमाणत्तियं' लिपिदोषाज्जात इति संभाव्यते। (घ)। ३. सं० पा०-हट्टतुट्ट जाव हियया । १४. देवा (क, ख, ग, घ, च, छ)। ४. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। १५. जुत्तमेयं देवा पोराणमेयं देवा किच्चमेयं देवा ५. अंजलि मत्थए (क, ख, ग, घ, च, छ) । .... (छ); पौराणमेतत्""जीतमेतत् अभ्यनु६. जोइरसाणं (घ, च)। ज्ञातमेतत्... करणीयमेतत् .. आचीर्णमेतत... ७. रयणाणं जाव (च, छ) । (वृ)। ८. समोहणंति (क, ख, ग, घ, छ) । Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो ८५ नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता तओ साई-साइं णामगोयाइं साहिति तं पोराणमेयं देवा ! १ • जीयमेयं देवा ! किच्चमेयं देवा ! करणिज्जमेयं देवा ! आइण्णमेयं देवा ! ० अब्भदेवा ! | अभिओगिएहि जोयणमंडल निव्वत्तण-पदं १२. तए णं ते अभिओगिया देवा' समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वृत्ता समाणा हट्ट' 'तु चित्तमाणं दिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस - विसप्पमाण हियया समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता उत्तरपुरत्थिम दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंड निसिरंति, तं जहा - रयणाणं" "वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंजणाणं अंजणपुलगाणं रययाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहावायरे' पोग्गले परिसाडेंति, परिसाडेत्ता अहासुहुमे पोग्गले परियाति, परियाइत्ता दोच्च पि वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहणंति, समोहणित्ता संवट्टयवाए विउव्वंति से जहाणामए - भइयदारए' सिया तरुणे 'बलवं जुगवं जुवाणे" अप्पायंके" थिरग्गहत्थे 'दढपाणि-पाय-पिट्ठत रोरुपरिणए" घण- णिचिय- वट्टवलियखंधे " चम्मेदृगदुघण- मुट्ठिय-समाय - निचियगत्ते उरस्सबलसमण्णागए तलजमलजुयलबाहू लंघण-पवणजइण- मद्दणसमत्थे " छेए दक्खे पत्तट्ठे" कुसले मेधावी णिउणसिप्पोवगए एगं महं 'दंडसंपुच्छण वा सलागाहत्थगं वा" वेणुसलाइयं वा गहाय रायंगणं वा रायंते उरं वा 'आराम वा उज्जाणं वा देवउलं वा सभं वा पवं वा "" अतुरियमचवलमसंभंत निरंतरं सुनिउणं सव्वतो समंता संपमज्जेज्जा, एवामेव तेवि सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा संवट्टयवाए " क्रमो भिन्नो विद्यते -- लंघणवग्गणजवणवायामसमत्थे (गयणवायामणसमत्थे - च, जयण वायामपमद्दणसमत्थे – छ) चम्मेदुदुघणमुट्ठियसमायनिचियगत्ते ( गायगते - क, ख, ग, घ) उरस्सबलसमण्णागए तालजमलजुयलबाहू ( 'जुयलफलिहनिभबाहू (क, ख, ग, घ, च) । १. पोराणयमेयं ( क, ख, ग, घ, च) । २. सं० पा० – देवा जाव अब्भगुणायमेयं । ३. देवा २ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ४. सं० पा० - हट्ट जाव हियया । ५. सं० पा० - रयणाणं जाव रिट्ठाणं । ६. अहबारे (क, ख, ग, च) । ७. संवट्टावाए ( क ) । ८. कम्मारदारए (क, ख, ग, घ, च) ; भइयदारए कम्मादार (छ) । ६. जुगवं बलवं (क, ख, ग, घ, च, छ) । १०. अप्पायंके थिरसंघयणे (क, ख, ग, घ, च, छ ) ११. पडिपुण्णपाणिपाए पिट्ठतरोरुपरिणए ( क, ख, ग, घ, च, छ); दढपाणिपायपासपिट्ठत रोरुपरिणते (अणु० ४१६, जी० ३।११८ ) । १२. वलियावलियखंधे (क, ख, ग, घ, छ); वलियवलियखंधे (च ) ; अतः परं आदर्शेषु पाठानां १३. वायामणसमत्थे (वृपा) । १४. पट्ठे – प्रष्ठो -- वाग्मी (वृ, जी० ३।११८ ) । १५. सलागाहत्थगं वा दंडसंपुच्छण वा (वृ) । १६. देवउलं वा सभं वा पवं वा आरामं वा उज्जाणं वा (वृ) । १७. एवमेव (च); एवमे (छ) । १८. संवट्टवाए ( क, ख, ग, घ, छ); संवट्टावाए (च) । Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं विउव्वंति, विउव्वित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वतो समंता जोयणपरिमंडलं जं किंचि 'तणं वा पत्तं वा' 'कट्ठ वा सक्करं वा असुइं अचोक्खं पूइयं दुन्भिगंधं तं सव्वं° आहणिय-आहणिय एगते एडेंति, एडित्ता खिप्पामेव उवसमंति', उवसमित्ता--दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहणंति, समोहणित्ता अब्भवद्दलए विउव्वंति', से जहाणामएभइयदारगे सिया तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए एगं महं दगवारगं वा 'दगथालगं वा दगकलसगं वा दगकुंभगं वा गहाय आरामं वा 'उज्जाणं वा देवउलं वा सभं वा° पवं वा अतुरिय 'मचवलमसंभंत निरंतरं सुनिउणं° सव्वतो समंता आवरिसेज्जा, एवामेव तेवि सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा अब्भवद्दलए विउव्वंति, विउव्वित्ता खिप्पामेव पतणतणायंति', पतणतणाइत्ता खिप्पामेव विज्जुयायंति, विज्जुयाइत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वओ समंता जोयणपरिमंडलं णच्चोदगं णातिमट्टियं तं पविरल-फुसियं रयरेणुविणासणं दिव्वं सुरभिगंधोदगं वासं वासंति, वासेत्ता णिहयरयं णट्टरयं भट्टरयं उवसंतरयं पसंतरयं करेंति, करेत्ता खिप्पामेव उवसामंति, उवसामित्ता____ तच्चं पि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता पुप्फवद्दलए विउव्वंति, से जहाणामए–मालागारदारए सिया तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए एगं महं 'पुप्फछज्जियं वा पुप्फपडलगं वा पुप्फचंगेरियं वा गहाय रायंगणं वा" 'रायंतेउरं वा आरामं वा उज्जाणं वा देवउलं वा सभं वा पवं वा अतुरियमचवलमसंभंतं निरंतरं सुनिउणं° सव्वतो समंता कयग्गहगहियकरयलपब्भट्ठविप्पमुक्केणं दसद्धवण्णणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेज्जा, एवामेव ते सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा पुप्फवद्दलए विउव्वंति, विउव्वित्ता खिप्पामेव पतणतणायंति', 'पतणतणाइत्ता खिप्पामेव विज्जुयायंति, विज्जुयाइत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वओ समंता° जोयणपरिमंडलं जलयथलयभासुरप्पभूयस्स बेंटट्ठाइस्स दसद्धवण्णकुसुमस्स जण्णुस्सेहपमाणमेत्ति ओहिं" वासं वासंति, वासित्ता कालागरुपवरकंदुरुक्क"-तुरुक्क-धूव-मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं" गंधवभितं दिव्वं सुरवराभिगमणजोग्गं करेंति य कारवेंति य करेत्ता य कारवेत्ता य खिप्पामेव उवसामंति, उवसामित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं १. सं० पा०-पत्तं वा तहेव । ६. पप्फुसियं (क, ख, ग, घ)। २. तृणकाष्ठादि (वृ)। १०. पुप्फडलगं वा पुप्फचंगेरियं वा पुप्फवत्थियं वा ३. उवसमिति (च, छ); पच्चुवसमंति (वृ)। (क, ख, ग, घ, च); पुप्फपडलगं वा पुप्फ४. विउव्वंति अब्भवद्दलए विउवित्ता (क, ख, पत्थियं वा पुप्फचंगेरियं वा पुप्फछज्जियं वा ग, घ, च, छ) । (छ) । ५. दगवेलगं° (क, ख, ग, घ, च); दगवालगं' ११. सं० पा० रायंगणं वा जाव सव्वतो। (छ); दगकुंभगं वा दगथालगं वा १२. पतणुतणायंति (क, ख, ग, घ, छ); दगकलसगं वा (व)।। सं०पा०-पतणतणायंति जाव जोयणपरिमंडलं । ६. सं० पा०–आरामं वा जाव पर्व । १३. उव्विं (क); ओहं (च)। ७. सं० पा०-अतुरिय जाव सव्वतो। १४. कुंदरुक्क (ख, ग, घ, च)। ८. पतणुतणायंति (क, ख, ग, घ, छ)। १५. गंधवरगंधियं (च, छ) । Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७ सूरियाभो महावीरं तिक्खुत्तो' 'आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ अंबसालवणाओ चेइयाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता ताए उक्किटाए' 'तुरियाए चवलाए चंडाए जवणाए सिग्याए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मझमझेणं° वीईवयमाणा-वीईवयमाणा जेणेव सोहम्मे कप्पे जेणेव सूरियाभे विमाणे जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ सूरियामस्स गमण-घोसणा-पदं १३. तए णं से सूरियाभे देवे तेसि आभिओगियाणं देवाणं अंतिए एयमट्ट सोच्चा निसम्म हदुतु?- चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण° हियए पायत्ताणियाहिवइं देवं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो ! देवाणप्पिया ! सूरियाभे विमाणे सभाए सुहम्माए मेघोघरसियगंभीरमहुरसइं जोयणपरिमंडल सूसरं घंटे तिक्खुत्तो उल्लालेमाणे-उल्लालेमाणे महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणे-उग्धोसेमाणे एवं 'वयाहि-आणवेइ" णं भो ! सूरियाभे देवे, गच्छति णं भो! सूरियाभे देवे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आमलकप्पाए णयरीए अंवसालवणे चेइए समणं भगवं महावीरं अभिवंदए, तुब्भेवि णं भो ! देवाणुप्पिया ! सव्विड्ढीए' 'सव्वजुतीए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारेणं सव्वतुडियसद्दसण्णिनाएणं महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडियजमगसमग-पड़प्पवाइयरवेण संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमूहि-हडक्क-मुरयमुइंग-दंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं णियगपरिवालसद्धि संपरिवुडा साइं-साइं जाणविमाणाई दुरूढा समाणा अकालपरिहीणं चेव सूरियाभस्स देवस्स अंतियं पाउब्भवह ॥ १४. तए णं से पायत्ताणियाहिवती देवे सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ट'चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण° हियए" करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं देवो ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव सूरियाभे विमाणे जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव मेघोघरसियगंभीरमहुरसद्दा जोयणपरिमंडला सुस्सरा घंटा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तं मेघोघ१. सं० पा.-तिक्खुत्तो जाव वंदित्ता। . अंतिके (व)। २. सं० पा०-उक्किट्ठाए जाव वीईवयमाणा। १०. सं० पा०-हट्टतुट्ठ जाव हियए। ३. अंते (क, ख, ग)। ११. अतः परं 'क, च, छ' इत्यादर्शेष एवं देवो' ४. सं० पा०-हतुटु जाव हियए। 'ख, ग' आदर्शयोः ‘एवं देवा' इत्येव पाठो ५. वयासी आणवेसि (क, ख, ग, घ, च, छ)। विद्यते । वत्ती 'जाव पडिसूणित्ता' इति संक्षिप्त६. सव्वड्ढीए (छ); सं० पा०-सविडढीए पाठस्य निर्देशोस्ति-यावच्छब्दकरणात् 'करजाव णाइयरवेणं। यलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए ७. णातियरवेणं (क, ख, ग, घ, च, छ) । अंजलि कट्ट एवं देवा! तहत्ति आणाए ८. अकालपरिहीणा (ख, ग, घ, च, छ) । विणएणं वयणं पडिसुणेई' त्ति द्रष्टव्यम् । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 55 रसियगंभीर महुरसद्दं जोयणपरिमंडलं सूसरं घंटं तिक्खुत्तो उल्लालेति । तए णं तीसे' मेघोघरसियगंभीरमहुरसद्दाए जोयणपरिमंडलाए सूसराए घंटाए तिक्खुत्तो उल्लालियाए समाणीए से सूरियाभे विमाणे पासायविमाण-णिक्खुडावडिय सघंटापडिया ' -सय सहस्ससंकुले जाए यावि होत्या ।। १५. एणं सिं सूरियाभविमाणवासिणं वहूणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य एगंतरइपसत्त-निच्चप्पमत्त-विसय- सुहमुच्छियाणं सूसरघंटारव - विउलवोल - 'तुरिय-चवल" - पोहणे कए समाणे घोसणकोऊहल दिण्णकण्ण एगग्गचित्त उवउत्त- माणसानं से पायताणीया हिवई देवे तस्सि घंटारवंसि गित - पसंतंसि मया - महया सद्देणं उग्घोसेमाणे एवं वयासी - हंत' सुणंतु भवंतो सूरियाभविमाणवासिणो वहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य सूरियाभविमाणपणो वयणं हियसुहत्थं । आणवेइ णं भो ! सूरियाभे देवे, गच्छइ णं भो ! सूरिया देवे जंबुद्दीवं दीवं भारहं वासं आमलकप्पं नयर अंबसालवणं चेइयं समणं भगवं महावीरं अभिवंदए, तं तुब्भेवि णं देवाणुप्पिया ! सव्विड्ढीए' अकालपरिहीणं चेव सूरियाभस्स देवस्स अंतियं पाउन्भवह || सूरियाभविमाणवासिदेवाणं समवसरण-पदं १६. तए णं ते सूरियाभविमाणवासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य पायत्ताहिस्स देवस अंतिए एयमट्ठे सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ - 'चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस - विसप्पमाण हियया अप्पेगइया वंदणवत्तियाए अप्पेगइया पूणवत्तया अप्पेगइया सक्कारवत्तियाए अप्पेगइया सम्माणवत्तियाए' अप्पेगइया कोऊ - हलवत्तियाए 'अप्पेगइया असुयाई सुणिस्सामो अप्पेगइया सुयाई अट्ठाई हेऊई पसिणाई कारणा' वागरणाई पुच्छिस्सामो, अप्पेगइया सूरियाभस्स देवस्स वयणमणुयत्तेमाणा" अप्पेगइया अण्णमण्णमणुवत्तेमाणा" अप्पेगइया जिणभतिरागेणं 'अप्पेगइया धम्मो ति अप्पेगइया जीयमेयं ति कट्टु सव्विड्ढीए जाव" अकालपरिहीणं" चेव" सूरियाभस्स देवस्स अंतियं पाउब्भवंति || १. तीए ( ख, ग, घ, च, छ) । २. समाणाए (घ ) । ३. वडिया (क, ख, ग, घ, च) । रायपसेणइयं ४. X ( ख, ग, घ, च) । ५. हंद (च) ; अहं भो (छ) । ६. पूर्णपाठार्थं द्रष्टव्यं त्रयोदशसूत्रम् । ७. अकालपरिहीणा (क, ख, ग, घ, च, छ) । ८. सं० पा०-हदृतुट्ट जाव हियया । ६. अतः परं औपपातिके ( सू० ५२ ) जम्बूद्वीप - प्रज्ञप्ती ( ५।२७) च 'दंसणवत्तियं' पाठो विद्यते । नात्रासौ लभ्यते । १०. को उहल्लवत्तियाए (क, घ) ; कोऊहल्लवत्तिया (च) ; कुतूहल जिनभक्तिरागेण ( वृ ) । ११. अप्पेगइया सूरियाभस्स देवस्स वयणमणुयत्तेमाणा अप्पेगइया अस्सुयाई सुणेस्सामो अप्पेगया सुयाई निस्संकियाई करिस्सामो (वृ) | १२. अण्णमण्णमन्नेमाणा ( च, छ ) । १३. × (वृ) । १४. राय० सू० १३ । १५. अकालपरिहीणा (क, ख, ग, घ, च, छ) । १६. एव (क, घ) ; एवं ( ख, ग, च, ) । Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो जाणविमाण-विउव्वण-पदं १७. तए णं से सूरियाभे देवे ते सूरियाभविमाणवासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य सविडढीए जाव' अकालपरिहीणं चेव अंतियं पाउब्भवमाणे पासति, पासित्ता हट्टतु?'-'चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण° हियए आभिओगियं देवं सद्दावेति. सहावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो! देवाणु प्पिया ! अणेगखंभसयसण्णिविळं लीलट्ठियसालभंजियागं ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालगकिन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलयभत्तिचित्तं खंभुग्गय-वइरवेइया -परिगयाभिरामं विज्जाहर-जमलजुयल-जंतजुत्तं पिव अच्चीसहस्समालणीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं भिब्भिसमाणं" चक्खुल्लोयशलेस सुहफासं सस्सिरीयरूवं घंटावलि-चलियमहुर-मणहरसरं मुहं कंतं दरिसणिज्ज णि उणओविय-मिसिमिसेंतमणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्तं' जोयणसयसहस्सवित्थिण्णं दिव्वं गमणसज्ज सिग्घगमणं णाम जाणविमाण विउव्वाहि, विउव्वित्ता खिप्पामेव एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि॥ १८. तए णं से आभिओगिए देवे सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ट 'चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण° हियए करयलपरिग्गहियं 'दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं देवो ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता संखेज्जाइजोयणाई 'दंडं निसिरति, तं जहा-रयणाणं वइराण वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाण जोईरसाणं अंजणाणं अंजणपुलगाणं रययाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाण° अहावायरे पोग्गले 'परिसाडेइ, परिसाडित्ता अहासुहमे पोग्गले परियाएइ, परियाइत्ता" दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णति, समोहणित्ता अणेगखंभसयसण्णिविट्ठ५ 'लीलट्ठियसालभंजियागं ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-प उम - लयभत्तिचित्तं खंभुग्गय-वइरवेइया-परिगयाभिरामं विज्जाहर-जमलजुयल-जंतजुत्तं पिव अच्चीसहस्समालणीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफासं सस्सिरीयरूवं घंटावलि-चलिय-महुर-मणहरसरं सुहं कंतं दरिसणिज्ज णिउण१. राय० सू० १३ । ८. "उचितानि (वृ)। २. मं० पा०-हट्टतुट्ट जाव हियए। है. मिसिमिसेंतरयण' (क, ख, ग, घ, च)। ३. "सालिभंजियागं (च, छ) । १०. एवमाणत्तियं (ख, ग, घ, च, छ)। ४. वरवइरवेइया (क, ख, ग, घ, च); पवरवइर- ११. सं० पा०-हटुतुटु जाव हियाए। वेइया (छ)। १२. सं० पा०-करयलपरिग्गहियं जाव पडिसुणेइ। ५- अच्चीसहस्समालिणीयं (क, ख, ग, घ, च, १३. सं० पा०--जोयणाई जाव अहाबायरे । छ) । १४. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. भासिमाणं (क, ख, घ, च); भासमाणं १५. सं० पा०-अणेगखंभसयसण्णिविटठं जाव (ग); भिसिमाणं (छ)। जाणविमाणं। ७. भिब्भिसिमाणं (क, ख, ग, घ)। Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं ओविय-मिसिमिसेंतमणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्तं जोयणसयसहस्सवित्थिण्णं दिव्वं गमणसज्जं सिग्घगमणं णाम दिव्वं जाणविमाणं वेउन्विउं' पवत्ते यावि होत्था ॥ • तिसोवाणपडिरूवग-विउव्वण-पदं १६. तए णं से आभिओगिए देवे तस्स दिव्वस्स जाणविमाणस्स तिदिसिं' तिसोवाणपडिरूवए विउव्वति, तं जहा-पुरत्थिमेणं दाहिणणं उत्तरेणं । तेसिं तिसोवाणपडिरूवगाणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा~-वइरामया णिम्मा, रिट्ठामया पतिट्ठाणा, वेरुलियामया खंभा, सुवण्णरुप्पामया फलगा, लोहितक्खमइयाओ सूईओ, वइरामया संधी, णाणामणिमया अवलंबणा अवलंबणबाहाओ य पासादीया' 'दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा॥ ० तोरण-पदं २०. तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं 'पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं तोरणा पण्णत्ता। तेसि णं तोरणाणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-तेणं तोरणा णाणामणिमया, णाणामणिएसु" थंभेसु उवनिविट्ठसण्णिविट्ठा, विविहमुत्तंतरारूवोवचिया, विविहतारारूवोवचिया" ईहा मिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजरवणलय-पउमलयभत्तिचित्ता खंभुग्गय-वइरवेइया-परिगयाभिरामा विज्जाहर-जमलजुयलजंतजुत्ता पिव अच्चीसहस्समालणीया रूवगसहस्सकलिया भिसमाणा भिब्भिसमाणा चक्खल्लोयणलेसा सुहफासा सस्सिरीयरूवा घंटावलि-चलिय-महुर-मणहरसरा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा॥ ० अट्ठमंगल-पदं २१. तेसि णं तोरणाणं उप्पि अट्ठमंगलगा पण्णत्ता, तं जहा-सोत्थिय-सिरिवच्छणंदियावत्त-वद्धमाणग-भद्दासण-कलस-मच्छ-दप्पणा' 'सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पभा समरीइया सउज्जोया पासादीया दरिसण्णिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।। • झय-पदं २२. तेसि णं तोरणाणं उप्पि बहवे किण्हचामरज्झए 'नीलचामरज्झए लोहियचामर१. विउव्वियं (क, ख, ग, च, छ) ; वेउव्वियं मणिमया णाणामणिमएसु (व) । ७. विविहमुत्तंतरोवचिया (जी० ३।२८८) । २. तिदिसि ततो (क, ख, ग, घ, च)। ८. विविहतारारूवोवइया विविहमुत्तंतरोवविया ३. X (क, ख, ग, घ, च, छ) । (क, ख, ग, घ, च, छ); सं० पा०४. सं० पा०-पासादीया जाव पडिरूवा । विविहतारारूवोवचिया जाव पडिरूवा। ५. तिसोमाण (च)। क्वचिदेतत्साक्षाल्लिखितमपि दृश्यते (व)। ६. पुरतो तोरणे विउव्वति ते णं तोरणा णाणा- ६. सं० पा०-दप्पणा जाव पडिरूवा। मणिमएसु (क, ख, ग, घ);पुरतो तोरणा १०.सं० पा०-किण्हचामरज्झए जाव सुक्किलविउव्वंति ते णं तोरणा णाणामणिमएसु चामरज्झए। (छ);पुरतो तोरणे विउव्वइ तोरणा जाणा Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो ज्झए हालिचामरज्झए सुक्किलचामरज्झए अच्छे सण्हे रुप्पपट्टे वइरदंडे' जलयामलगंध सुरम् पासादी दरिसणिज्जे अभिरूवे परूिवे विउव्व ॥ o छत्तातिछत्तआदि-पदं २३. तेसि णं तोरणाणं उप्पि बहवे छत्तातिछत्ते 'पडागाइपडागे घंटाजुगले चामरजुगले" उप्पलहत्थए पउम णलिण सुभग- सोगंधिय- पोंडरीय - महापोंडरीय सतपत्तसहस्सपत्तहत्थए सव्वरयणामए अच्छे " " सण्हे लहे घट्ठे मट्ठे णीरए निम्मले निप्पंके निक्कंकडच्छाए सप्पभे समरीइए सउज्जीए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे' पडिरूवे विउव्व ॥ ० - भूमिभाग - विजब्वण-पदं २४. तए णं से आभिओगिए देवे तस्स दिव्वस्स जाणविमाणस्स अंतो बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं विउव्वति से जहाणामए - आलिंगपुक्खरेइ वा मुइंगपुक्खरेइ वा "परिपुणे सरतलेइ" वा करतलेइ वा चंदमंडलेइ वा सूरमंडलेइ वा आयंसमंडलेइ वा उरब्भचम्मेइ वा ‘वसहचम्मेइ वा " वराहचम्मेइ वा सीहचम्मेइ वा वग्घचम्मेइ वा 'मिगचम्मेइ वा" दीवियचम्मेइ वा अणेगसंकुकीलगसहस्सवितते', आवड- पच्चावड-सेढि - पसेढि - 'सोत्थिय-सोवत्थिय-पूसमाणव वद्धमाणग- 'मच्छंडग-मगरंडग""-" जार-मार" - फुल्लावलि - पउमपत्त-सागरतरंग-वसंतलय-पउमलयभत्तिचित्तेहिं सच्छाएहि सप्पभेहि समरीइए हिं सउज्जोएहिं णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहि उवसोभिए, तं जहा - किण्हेहिं णीलेहि लोहिएहि हालिदेह सुक्कलेहि । ० मणि-वण्णावास - पदं ६१ २५. तत्थ णं जेते किण्हा मणी, तेसिं णं मणीणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए - जीमूतएइ वा अंजणेइ वा खंजणेइ वा कज्जलेइ वा 'मसीइ वा मसीगुलियाइ वा"" गवलेइ वा गवलगुलियाइ वा भमरेइ वा भमरावलियाई वा भमरपतंगसारेइ" वा १. वइरामयदंडे (क, ख, ग, घ, च, छ) । २. सुकम्मे (क, ख, ग, घ ) । ३. घंटाजुयले पडागाइपडागे (क, ख, ग, घ, च); घंटाजुयले चामरजुयले पडागाइपडागे (छ) । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ती (४१३०) गंगामहानद्यास्तोरणवर्णने तथा जीवाजीवाभिगमे ( ३।२६१ वापीवर्णने च स्वीकृतपाठस्य संवादी पाठो लभ्यते । ४. अत्र सर्वासु प्रतिषु 'कुमुद' इति पाठो लभ्यते, किन्तु वृत्तौ 'पद्महस्तकाः' पाठो व्याख्यातोस्ति तथा १३८ सूत्रे जाव 'उमहत्या' एवंविधः पाठ: प्राप्यते, तेनात्र 'पउम' इति पाठो युज्यते । ५. सं० पा० अच्छे जाव पडिरूवे । ६. परिपुण्णसरतलेइ (वृ) । ७. X ( क, ख, ग, घ, च, छ) । ८. छगलचम्मेइ वा (वृ); जीवाजीवाभिगमे (३।२७७) 'विगचम्मेति वा' इति पाठोस्ति । ६. सहसवित णाणाविहपंचवन्नेहिं मणीहि उवसोभिते ( वृ) | १०. सोवत्थिय (च) ; सोत्थिय (छ) । ११. मच्छंडा मगरंडा (च, छ) । १२. जारा-मारा (च) । १३. x ( क, ख, ग, घ, च, छ); क्वचित् 'मसी इति वा मसीगुलिया इति वा' न दृश्यते ( वु ) | १४. पत्तसारेइ (क, ख, ग, घ, छ) । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ रायपसेणइयं जंबूफलेइ वा अद्दारिद्रुइ वा परपुट्टेइ' वा गएइ वा गयकलभेइ वा 'किण्हसप्पेइ वा किण्हकेसरेइ वा आगासथिग्गलेइ वा किण्हासोएइ वा किण्हकणवीरेइ वा किण्हबंधुजीवेइ वा भवे एयारूवे सिया ? णो इणठे समठे, 'ते णं किण्हा" मणी इत्तो इटुतराए चेव कंततराए चेव 'पियतराए चेव" मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव वण्णणं पण्णत्ता ॥ २६. तत्थ णं जेते नीला मणी, तेसि णं मणीणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहानामए-भिंगेइ वा भिंगपत्तेइ वा सुएइ वा स्यपिच्छेद वा चासेइ वा चासपिच्छेड वा णीलीइ वा णीलीभेदेइ वा णीलीगुलियाइ वा सामाएइ वा 'उच्चंतगेइ वा वणरातीइ वा हलधरवसणे इ वा मोरग्गीवाइ वा 'पारेवय ग्गीवाइ वा अयसिकुसुमेइ वा 'वाणकूसमेइ वा" अंजणके सियाकुसुमेइ वा नीलुप्पलेइ वा णीलासोगेइ वा ‘णीलकणवीरेइ वा णीलबंधजीवेइ वा भवे एयारूवे सिया? णो इणठे समठे, ते णं णीला मणी एत्तो इतराए चेव 'कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव वण्णेणं पण्णत्ता ।। २७. तत्थ णं जेते लोहिया मणी, तेसि णं मणीणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए ---'ससरुहिरेइ वा उरब्भरुहिरेइ वा वराहरुहिरेइ वा मणुप्सरुहिरेइ वा महिसरुहिरेइ वा वालिंदगोवेइ" वा वालदिवाकरेइ वा संझब्भ रागेइ वा गुंजद्धरागेइ वा जासुअणकुसुमेइ वा किसुयकुसुमेइ वा पालियायकुसुमेइ वा जाइहिंगुल एइ वा सिलप्पवालेइ वा पवालअंकुरेइ वा लोहियक्खमणीइ वा लक्खारसगेइ वा किमिरागकंवलेइ वा चीणपिटरासीइ वा 'रत्तुप्पलेइ वा१६ रत्तासोगेइ वा रत्तकणवीरेइ वा रत्तबंधुजीवेइ वा भवे एयारूवे सिया? जो इणठे समठे, ते णं लोहिया मणी इत्तो इतराए चेव 'कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव वण्णेणं पण्णत्ता ॥ २८. तत्थ णं जेते हालिद्दा मणी, तेसि णं मणीणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए-चंपएइ वा चंपगछल्लीइ वा 'चंपगभेएइ वा हालिद्दाइ वा हालिद्दाभेदेइ वा हलिद्दागुलियाइ वा हरियालियाइ वा हरियालभेदेइ वा हरियालगुलियाइ वा 'चिउरेइ वा १. परट्टतेइ (क, ख, ग, च); परठ्ठतेइ (घ)। १०. सं० पा०-इट्ठतराए चेव जाव वण्णेणं । २. x (क, ख, ग, घ, च)। ११. उरब्भरुहिरेइ वा ससरुहिरेइ वा नररुहिरेइ वा ३. गोयमा ! णो (जी० ३।२७८) । वराहरुहिरेइ वा बालिंदगोवेइ (क, ख, ग, ४. ओवम्म समणाउसो! ते णं किण्हा (व) । घ); उरभरुहिरेइ वा नररुहिरेइ वा वराहरु५. x (वृ)। हिरे वा बालिदगोवेइ (च); उरब्भरुहिरेइ वा ६. उच्चंतेति वा (क, ख, ग, घ)। ससरुहिरेइ वा वराहरुहिरेइ वा बालिंदगोवेइ ७. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। (छ)। ८. x (क, ख, ग, घ, च, छ); इत उर्ध्व १२. किमिकंदलेइ (क, ख, ग); किमिरागरत्त क्वचित् -'इंदनीलेइ वा महानीलेइ वा मरग- कंबलेइ (जी० ३।२८०)। तेइ वा' इति दृश्यते (वृ)। १३. ४ (क ,ख, ग, घ)। ६. णीलबंधुजीवेइ वा णीलकणवीरेइ वा (क, १४. सं० पा०–इट्टतराए चेव जाव वण्णेणं । ख, ग, घ, च, छ)। १५. x (क, ख, ग, घ)। Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो चिउरंगरातेइ वा " " वरकणगेइ वा ” वरकणगनिघसेइ वा वरपुरिसवसणेइ वा अल्लकीकुसुमेइ वा चंपाकुसुमेइ वा कुहंडियाकुसुमेइ वा 'कोरंटकदामेइ वा " तडवडाकुसुमेइ वा घोडियाकुसुमेइ वा सुवण्णजूहियाकुसुमेइ वा सुहिरण्णकुसुमेइ वा 'वीययकुसुमेइ वा " पीयासोगेइ वा पीयकणवीरेइ वा पीयबंधुजीवेइ वा भवे एयारूवे सिया ? णो इणट्ठे समट्ठे, ते णं हालिद्दा मणी एत्तो इट्टतराए चेव' 'कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव वण्णेणं पण्णत्ता ॥ २६. तत्थ णं जेते सुक्किला मणी, तेसि णं मणीणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहानामए - अंकेइ वा 'संखेइ वा चंदेइ वा कुमुद - उदक- दयरय - दहिघण- खीर - खीरपूरेइ वा कोंचावलीइ वा हारावलीइ वा हंसावलीइ वा बलागावलीइ वा चंदावलीइ वा" सारतियबलाहएइ वा धंतधोयरुप्पपट्टेइ वा सालिपिट्ठरासीइ वा कुंदपुप्फरासीइ वा कुमुदरासीइ वा सुक्कच्छिवाडीइ वा पितुर्णामजियाइ वा भिसेइ वा मुणालियाइ वा गयदंतेइ वा लवंगदलes वा पडरियदलएइ वा' सेयासोगेइ वा सेयकणवीरेइ वा सेयबंधुजीवेइ वा भवे एयारूवे सिया ? णो इणट्ठे समट्ठे, ते णं सुक्किला मणी एत्तो इट्टतराए चेव' "कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव' वण्णं पण्णत्ता ॥ ३०. तेसि णं मणीणं इमेयारूवे गंधे पण्णत्ते से जहाणामए - कोटुपुडाण वा तगर - पुडाण वा एलापुडाण वा चोयपुडाण वा चंपापुडाण वा दमणापुडाण वा कुंकुमपुडाण वा चंदणपुडाण वा उसीरपुडाण वा मरुआपुडाण वा जातिपुडाण वा जूहियापुडाण वा मल्लिया - पुडा वा हाणमल्लियापुडाण वा केतगिपुडाण वा पाडलिपुडाण वा णोमालियापुडाण वा अगुरुपुडाण वा लवंगपुडाण वा 'वासपुडाण वा कप्पूरपुडाण वा" अणुवायंसि वा ओभिज्जमाणा वा कोट्टिज्जमाणाण वा भंजिज्जमाणाण" वा उक्किरिज्जमाणाग वा विविकरिज्जमाणाण वा परिभुज्जमाणाण " वा भंडाओ" भंड साहरिज्जमाणाण वा " ओराला मणुण्णा महरा घाणमनिव्वुतिकरा सव्वओ समंता गंधा अभिनिस्सवंति" भवे एयारूवे सिया ? १. चउरंगेइ वा चउरंगरातेइ वा (क, च, छ ) ; चउरंगेइ वा चिउरंगरातेइ वा ( ख, ग ) ; चिउरंगेइ वा चिउरंगरातेइ वा (घ ) । २. × (वृ) । ३. वा सुवण्णसिप्पेइ वा (क, ख, ग, घ, च, छ ) । ४. x ( क, ख, ग, घ, च, छ ) । ५. कोरंटवरमल्लदामेति वा (क, ख, ग, च, छ); बीअकुसुमेइ वा कोरंटवर मल्लदामेति वा (घ) । ६. सं० पा०-- इट्टतराए चेव जाव वण्णेणं । ७. संखेति वा चंदेति वा कुंदेति वा दंतेति वा हंसावलीति वा कोंचावलीति का हारावलीति वा चंदावलीति वा (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६३ ८. वासिंधुवारमल्लदामेति वा ( जी० ३।२८२ ) । ६. सं० पा० - इट्ठतराए चेव जाव वण्णेणं । १०. मालिया (च) । ११. कप्पूरपुडाण वा वासपुडाण वा (क, ख, ग, घ, च, छ) । १२. वा पडिकूलवासि (छ) । १३. रुचिज्जमाणाण (जी० ३।२८३ ) । १४. परिभाइज्जमाणाण वा (वृपा ) । १५. भंडाओ वा (क, ख, ग, घ, च, छ) । १६. × (छ) । १७. अभिनिस्सति ( क, ख, ग ); अभिनिस्सरंति ( छ, वृ); अभिनिस्सवन्ति ( वृपा ) । Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ रायपसेणइयं णो इणटठे समटठे. ते णं मणी एत्तो इतराए चेव' 'कंततराए चेव पियतराए चेव मणण्णतराए चेव मणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ता ॥ ३१. तेसि णं मणीणं इमेयारूवे फासे पण्णत्ते, से जहानामए-आइणेइ वा रूएइ वा बूरेइ वा णवणीएइ वा हंसगब्भतूलियाइ वा सिरीसकुसुमनिचयेइ वा बालकुमुदपत्तरासीइ वा भवे एयारूवे सिया ? णो इणठे समठे, ते णं मणी एत्तो इट्ठतराए चेव' 'कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव° फासेणं पण्णत्ता। ० पेच्छाघरमंडव-विउवण-पदं । ३२. तए णं से आभिओगिए देवे तस्स दिव्वस्स जाणविमाणस्स बहुमज्झदेसभागे, एत्थ णं महं पिच्छाघरमंडवं विउव्वइ-अणेगखंभसयसन्निविट्ठे अब्भुग्गय - सुकयवइरवेइया-तोरणवररइय-सालभंजियागं' सुसिलिट्ठ - विसिट्ठ-लट्ठ-संठिय-पसत्थ-वेरुलियविमलखंभं णाणामणिकणगरयणखचिय-उज्जलबहुसमसुविभत्तभूमिभागं ईहामिय-उसभतुरग - नर - मगर-विहग-वालग-किन्नर-रुरु-सरभ - चमर-कुंजर-वणलय-पउमलयभत्तिचित्तं 'खंभुग्गय - वइरवेइयापरिगयाभिरामं विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्तं पिव अच्चीसहस्समालणीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफासं सस्सिरीयरूवं कंचणमणिरयणथूभियागं णाणाविहपंचवण्णघंटापडागपरिमंडियग्गसिहरं चवलं मरीतिकवयं विणिम्मयंतं लाउल्लोइयमडियं गोसीस-सरस-रत्तचंदण-दहार-दिन्नपंचंगलितलं उवचियवंदणकलसं वंदणघड-सुकय-तोरणपडिदुवारदेसभागं आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं पंचवण्णसरससुरभिमुक्क - पुप्फपुंजोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्कतुरुक्क-धूव-मघमघेतगंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूतं 'अच्छर-गण-संघसंविकिण्णं दिव्वतुडियसहसंपणाइयं" अच्छं सण्हं लण्हं घळं मह्र णीरयं निम्मलं निप्पंक निक्कंकडच्छायं सप्पभं समरीइयं सउज्जोयं पासादीयं दरिसणिज्ज अभिरूवं° पडिरूवं । • पेच्छाघरमंडवे भूमिभाग-विउव्वण-पदं ३३. तस्स णं पिच्छाघरमंडवस्स अंतो" बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं विउव्वति जाव" मणीणं फासो॥ १. सं० पा०-इट्टतराए चेव जाव गंधेणं । ६. सालिभंजियागं (क, ख, ग, घ, च, छ)। २. बालकुसुमपत्तरासीइ (क,ख,ग,घ,च, वृपा)। ७. सुविभत्तदेसभायं (क, ख, ग, घ, च); ३. सं० पा०—इतराए चेव जाव फासेणं । सुविभत्तदेसभूमिभायं (छ) । ४. वरवेइया (क, ख, ग, घ, च, छ); वृत्तावपि ८. ४ (च)। 'वरवेदिका' इति व्याख्यातमस्ति, किंतु जीवा- १. मिरीति° (क, ख, ग, घ, च, छ) । जीवाभिगमस्य (३।३७२) सूत्रस्य तथा ज्ञाता- १०. लाइयउल्लोइयमहियं (व) । धर्मकथायाः (१।१।८६) सूत्रस्य सन्दर्भ 'वइर- ११. दिव्वतडियसहसंपणाइयं अच्छरघणसंघसंविइण्णं वेइया' इति पाठ उपयुक्तोस्ति । प्रस्तुतसूत्रस्य (क, ख, ग, घ, च, छ) । (१७) सूत्रे यानविमानवर्णनेपि 'वइरवेइया' १२. सं० पा०-अच्छं जाव पडिरूवं। इति पाठो लभ्यते । १३. X (क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. तोरणवरवइर (क, ख, ग, घ)। १४. राय० सू० २४-३१ । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो ० पेच्छाघरमंरवे उल्लोय-विउव्वण-पदं ३४. तस्स णं पेच्छाघरमंडवस्स उल्लोयं विउव्वति-पउमलयभत्तिचित्तं' अच्छं' •सण्हं लण्हं घट्ट मळं णीरयं निम्मलं निप्पंक निक्कंकडच्छायं सप्पभं समरीइयं सउज्जोयं पासादीयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं ।। ० पेच्छाघरमंडवे अक्खाडग-विउव्वण-पदं ३५. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगं वइरामयं अक्खाडगं विउव्वति ॥ • अक्खाडए मणिपेढिया-विउव्वण-पदं ३६. तस्स णं अक्खाडयस्स बहुमज्झदेसभागे, एत्थ णं महेगं मणिपेढियं विउव्वतिअट्र जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमयं अच्छं' 'सण्हं लण्ह घटुं मट्ठ णीरयं निम्मलं निप्पंक निक्कंकडच्छायं सप्पभं समरीइयं सउज्जोयं पासादीयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं ।। ० मणिपेढियाए सोहासण-विउव्वण-पदं ३७. तीसे णं मणिपेढियाए उरि, एत्थ णं महेगं सीहासणं विउव्वइ। तस्स णं सीहासणस्स इमेयारूसे वण्णावासे पण्णत्ते-तवणिज्जामया चक्कला, रययामया सीहा, सोवणिया पाया, णाणामणिमयाइं पायसीसगाई, जंबूणयमयाइं गत्ताइ, वइरामया संधी, णाणामणिमए वेच्चे से णं सीहासणे ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किन्नररुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलयभत्तिचित्ते ससारसारोवचियमणिरयणपायपीढे अत्थरग-मिउमसूरग-णवतयकुसंत-लिव-केसर-पच्चत्थुयाभिरामे' 'आईणग-रूय-बूर-णव१. जीवाजीवाभिगमे (३१३०८) 'पउमलयाभत्ति- एतैः पाठभेदयिते 'लिव्व' इति पाठस्य चित्ता जाव सामलयाभत्तिचित्ता सव्वतवणिज्ज- 'लिच्च' इति रूपे परावर्तनं जातम् । वृत्तिकारैमया' इति पाठो लभ्यते । किन्तु प्रस्तुतसूत्रा- र्यथा यथा पाठो लब्धस्तथा तथा व्याख्यात:दर्शेषु केवलं पद्मलताया एव उल्लेखो विद्यते, नायाधम्मकहाओ (वृत्तिपत्र १७) लिम्बोवृत्तावपि इत्थमेवास्ति - पालताभक्तिचित्रं बालोरभ्रस्योर्णायुक्ताकृत्तिः । जीवाजीवाभिगमे 'जाव पडिरूवमि' ति, यावच्छब्दकरणात् (वृत्तिपत्र २१०) लिच्चानि-नमनशीलानि 'अच्छं सण्ह' मित्यादिविशेषणकदम्बकपरिग्रहः । च केशराणि । रायपसेणइयवृत्ती लिम्बानि २, ३. सं० पा०-अच्छं जाव पडिरूवं । कोमलानि नमनशीलानि च केशराणि मध्ये ४. वच्चे (च)। यस्य मसूरकस्य तत् नवत्वक्कुशान्तलिम्ब५. संसार' (क, ख, ग, च, छ) । केशरम् । रायपसेणइयवृत्तौ कोमलानि, जीवा६. प्रस्तुतसूत्रे अस्य पदस्य द्वौ पाठभेदी लभ्येते जीवाभिगमस्य वृत्तौ नमनशीलानि इति लिक्ख (क); लिव (ख, ग, घ, च, छ)। व्याख्यातमस्ति । अनेन अर्थसादश्यं प्रतीयते । ज्ञाताधर्मकथायां (१।१।१८) अस्य पदस्य लिच्च' इति पदं लिपिकाराणां प्रसादत एवं 'लिव्व' इति पाठभेदो विद्यते। जीवाजीवा- जातमस्ति। भिगमे (३।३११) मूलपाठे 'लिच्च' इति पदं ७. पत्थयाभिरामे (च); पडुत्थयाभिरामे (छ) । विद्यते, पाठान्तरे च 'लिक्ख' इति पदमस्ति । Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ रायपसेणइयं णीय-तूलफासे सुविरइयरयत्ताणे ओयवियखोमदुगुल्लपट्टपडिच्छायणे रत्तंसुअसंवुए सुरम्मे" पासाईए' दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ ० सीहासणे विजयदूस-विउव्वण-पदं ३८. तस्स णं सीहासणस्स उरिं, एत्थ णं महेगं विजयदूसं विउव्वइ-संखंक -कुंददगरय-अमयमहियफेणपुंजसन्निगासं सव्वरयणामयं अच्छं सह पासादीयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं ॥ ० विजयदूसे अंकुस-विउव्वण-पदं __३६. तस्स णं सीहासणस्स उवरि विजयदूसस्स य बहुमज्झदेसभागे, एत्थ णं महं एगं वयरामयं अंकुसं विउव्वति ।। ० अंकुसे मुत्तादाम-विउव्वण-पदं ४०. तम्सि च णं वयरामयंसि अंकुसंसि कुंभिक्कं मुत्तादामं विउव्वति । से णं कुंभिक्के मुत्तादामे अण्णेहिं च उहिं कुंभिक्केहि मुत्तादामेहिं तदद्धच्चत्तपमाणमेत्तेहि सव्वओ समंता संपरिखित्ते । ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा सुवण्णपयरमंडियागा णाणामणिरयणविविहहारद्धहारउवसोभियसमुदया" ईसि अण्णमण्णमसंपत्ता पुव्वावरदाहिणुत्तरागएहिं वाएहिं मंदायं-मंदायं 'एज्जमाणा-एज्जमाणा'५३ पलंबमाणा"-पलबमाणा" पझंझमाणा"-पझंझमाणा उरालेणं मणुण्णणं मणहरेणं कण्णमणणिव्वुतिकरेणं सद्देणं ते पएसे सब्बओ समंता आपूरेमाणा-आपूरेमाणा सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ ० भद्दासण-विउव्वण-पदं ४१. तए णं से आभिओगिए देवे तस्स सीहासणस्स अवरुत्तरेणं" उत्तरेणं उत्तरपुर१. सुविरइ-रयत्ताणे (रइत्ताणे --- ख, ग, घ) १०. पयरगमंडियागा (ख, ग); पइरमंडियागा ओयविय (उवचिय---क,च,छ) खोमदुगुल्लपट्ट- (च); x (व)। पडिच्छायणे रत्तंसुअसंवुए (संवुडे – च, छ) ११. समुदाया (वृ)। सुरम्मे आईणगरूयबुरणवणीयतूलफासमउए १२. संपत्ता वाएहिं (घ, च, छ)। (क, ख, ग, घ, च, छ)। १३. एईज्जमाणाणं २ (क, ख, ग); एइज्जमाणाणं २. पासातीए (क, ख, ग, घ)। २ (घ); एइज्जमाणं एइज्जमाणं (च); ३. विउव्वंति (व) । एकवचनस्य कर्ता कथं बहु- एयज्जमाणाणं एयज्जमाणाणं (छ) । वचनं क्रियायाम् । १४. बलंबमाणा (क, ख, ग)। ४. संख (घ, छ, वृ)। १५. पलंबमाणाणं (घ)। ५. जीवाजीवाभिगमे (३।४१२) जाव पदेन पूर्णः १६. पडंकमाणा (क) : पब्भकमाणा (ख,ग,च,छ) । पाठः सूचितोस्ति । १७. अतीत (च)। ६, ७. विउव्वंति (व) । एक वचनस्य कर्ता कथं १८. 'अवरुत्तरेणं' अत्र सप्तमी स्थाने ततीया वर्तते । स्थानाङ्गसूत्रे वृत्तिकारेण 'दाहिणेणं' 'एतादृशेषु बहुवचनं क्रियायाम् । प्रयोगेष णं' वाक्यालंकारत्वेन स्वीकृतम । ८. अद्धकुंभिक्केहिं (क, ख, ग, घ, च, छ) । किन्तु अत्र वृत्तिकृता तृतीया सप्तमी ६. पमाणेहिं (क, ख, ग, घ, च, छ)। विभक्तिरूपेण व्याख्याता। Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७ सूरियाभो त्थमेणं, एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तारि भद्दास साह - सीओ विउव्वइ || ४२. तस्स णं सीहासणस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स चउण्हं अग्गमहिसी सपरिवाराणं चत्तारि भद्दासणसाहस्सीओ विउव्वइ ॥ ४३. तस्स णं सीहासणस्स दाहिणपुरत्थिमेणं, एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स अभितरपरिसाए अट्टहं देवसाहस्सीणं अट्ठ भद्दासणसाहस्सीओ विउव्वइ । एवं - दाहिणेणं मज्झिमपरिसाए दसहं देवसाहस्सीणं दस भद्दा सणसाहस्सीओ विउव्वति । दाहिणपच्चत्थिhi बाहिरपरिसाए बारसहं देवसाहस्सीणं वारस भद्दासणसाहस्सीओ विउव्वति । पच्चत्थिhi सत्तहं अणियाहिवतीणं सत्त भद्दासणे विउव्वति ॥ ४४. तस्स णं सीहासणस्स चउदिसिं, एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं सोलस भद्दासणसाहस्सीओ विउव्वति, तं जहा - पुरत्थिमेणं चत्तारि साहसीओ, दाहिणेणं चत्तारि साहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं चत्तारि साहस्सीओ, उत्तरेणं चत्तारि साहस्सीओ ॥ जाणविमाण- विउठवणस्स निगमण-पदं ४५. तस्स दिव्वस्स जाणविमाणस्स इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते से जहानामए - अरुग्गयस्स वा हेमंतयबालियसूरियस्स', खयरिंगालाण वा रति पज्जलियाणं, जवाकुसुमवणस्स' वा केसुयवणस्स वा पारियायवणस्स वा सव्वतो समंता संकुसुमियस्स भवे एयारूवे सिया ? णो इणट्ठे समट्ठे । तस्स णं दिव्वस्स जाणविमाणस्स एत्तो इतराए चेव" "कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव° वण्णे पण्णत्ते । गंध य फासो य जहा ' मणीणं ॥ ४६. तए गं से आभियोगिए देवे दिव्वं जाणविमाणं विउव्वइ, विउव्वित्ता जेणेव सूरिया देवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं" "दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्भावेति वद्धावेत्ता तमाणत्तियं पच्चष्पिणति || जाणविमाणारोहण-पदं ४७. तणं से सूरिया देवे आभियोगस्स देवस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म हट्ट" "तु चित्तमाणं दिए पी मणे परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्पमाण° हियए दिव्वं जिणिदाभिगमणजोगं उत्तरवेउव्वियख्वं विउव्वति, विउव्वित्ता चउहिं अग्गमहिसीहि सपरिवाराहिं, दोहिं अणिएहि, तं जहा - गंधव्वाणिएण य णट्टाणिएण य सद्धि संपरिवुडे तं दिव्वं जाणविमाणं अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहति, १. बालसूरियस (छ) । २. जासुमणस्स (क, ख, ग, घ, च) ; जावसुमणस्स (छ) । ३. इणमट्ठे (क, ख, ग, घ, च) । ४. सं० पा० – इट्ठतराए चेव जाव वण्णे । , ५. राय० सू० ३०,३१ । ६. सं० पा० - करयलपरिग्गहियं जाव पच्चप्पि णति । ७. सं० पा० - हट्ट जाव हियए । Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं दुरुहित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सणसणे ॥ ६५ ४८. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ तं दिव्वं जाणविमा अणुपयाहिणीक रेमाणा उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं दुरुहंति, दुरुहित्ता पत्तेयंपत्तेयं पुव्वत्थेहि भद्दासणेहिं णिसीयंति । अवसेसा देवा य देवीओ य तं दिव्वं जाणविमाणं' 'अणुपयाहिणीकरे माणा दाहिणिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं दुरुहंति, दुरुहित्ता पत्तेयंपत्तेयं पुव्वणत्थेहि भद्दासहि निसीयंति ॥ पयाण-सज्जा-पदं ४६. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स तं दिव्वं जाणविमाणं दुरुढस्स समाणस्स अट्ठ मगला' पुरतो अहाणुपुव्वीए संपत्थिया, तं जहा -सोत्थिय - सिरिवच्छ'-'णंदियावत्तवद्धमाणग-भद्दासण - कलस-मच्छ'- दप्पणा ॥ ५०. तयणंतरं च णं पुण्णकलसभिंगार - दिव्वायवत्तपडागा सचामरा दंसणरइया आलोयदरिसणिज्जा' वाउयविजयवेजयंतीपडागा ऊसिया गगणतलमणुलिहंती पुरतो अहावीए संपत्थिया ।। ५१. तयतरं च णं वेरुलियभिसंतविमलदंडं पलंब कोरंट मल्लदामोवसोभितं चंदमंडलनिभं समुस्सियं विमलमायवत्तं पवरसीहासणं च मणिरयणभत्तिचित्तं सपायपीढं सपाउयाजोयसमा उत्तं" बहुकिंकरामरपरिग्गहियं पुरतो अहाणुपुव्वी संपत्थियं ॥ ५२. तयतरं च णं वइरामय- वट्ट - लट्ठ - संठिय-सुसिलिट्ठ परिघट्ट-मट्ठ- सुपतिट्ठिए विसिट्ठे' अणेगवरपंचवण्णकुडभी- सहस्सपरिमंडियाभिरामे' वाउय विजयवे जयंतीपडागच्छत्तातिच्छत्तकलिए तुंगे गगणतलमगुलिहंत सिहरे जोयणसहस्समूसिए महति महालए मझिए पुरतो अहाणुपुव्वीए संपत्थिए । ५३. तयणंतरं च णं सुरूव" - णेवत्थ- परिकच्छिया सुसज्जा सव्वालंकारभूसिया महया भड-चडगर-पहगरेणं पंच अणीयाहिवइणो पुरतो अहाणुपुव्वीए संपत्थिया ॥ ५४. तयणंतरं" च णं बहवे आभियोगिया देवा देवीओ य सएहि सएहि रूवेहि, 'सहि-सएहि, विसेसेहि, सहि-सएहिं विहवेहि, सहि-सएहि णिज्जोएहि, "" सहि-सएहि पुरतो अहाणुपुव्वीए संपत्थिया ॥ १. सं० पा० - जाणविमाणं जाव दाहिणिल्लेणं । २. मंगलगा (वृ) । ३. सं० पा० – सिरिवच्छ जाव दप्पणा । ४. दिव्वाय छत्तपडागा (ओ० सू० ६४, जं० ३।१७८) । ५. लोयदरिसणिज्जा (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. तयानंतरं (क, ख, ग, घ, च, छ ) । ७. समाजया (क, ख, ग, च ) 1 ८. सिट्टो (क, ख, ग ) ; सिट्ठे (घ, च, छ) । C. सहस्सुस्सिए (वृ) । १०. सरूव (क, ख, ग, घ, च, छ) । ११. एतत्सूत्रं वृत्तौ नास्ति व्याख्यातम् । १२. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ती (३।१७८) चिह्नाङ्कितपाठस्य स्थाने एतादृश: पाठो विद्यते एवं वेसे हि चिधेहि निओएहि' । अस्य पाठस्य 'वेसे हिं' इति पदं सम्यक् प्रतिभाति । 'विसेसेहि' इति पदस्य कश्चिद् विशिष्टोर्थो नैव ज्ञायते । णेज्जा एहि (क, ख, ग, घ ) 1 Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ &ε सूरिवाभो ५५. तयतरं च णं सूरियाभविमाणवासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य सव्विड्ढीए जाव' नाइयरवेणं सूरियाभं देवं पुरतो पासतो य मग्गतो य समणुगच्छति ॥ जाणविमाण- पच्चोरहण-पदं ५६. तणं से सूरियाभे देवे तेणं पंचाणीयपरिखित्तेणं वइरामयवट्ट-लट्ठ-संठिय'• सुसिलिट्ट - परिघट्ट- मट्ट- सुपतिट्ठिएणं विसिट्ठेणं अणेगवरपंचवण्णकुडभी-सहस्सपरिमंडियाभिरामेणं वाउद्ध्यविजयवेजयंतीप डागच्छत्तातिच्छत्तक लिएणं तुंगेणं गगणतलमणुलिहंत सिंहरेण जोयणसहस्समूसिएणं महतिमहालतेणं महिदज्झएणं पुरतो कड्ढिज्जमाणेणं चउहिं सामाणि साहस्सीहिं', 'चउहि अग्ग महिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहि परिसाहि, सत्तहि अणिएहि सतह अणियाहिवईहिं' सोलसहिं आयरक्खदेव साहस्सीहि अण्णेहि य वहूहि सूरियाभविमाणवासहि माणिएहि देवेहि देवीहि यसद्धि संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव णाइयरवेणं सोधमस्स कप्पस मज्झमज्झेणं तं दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवजुति दिव्वं देवाणुभावं उवदंसेमाणेउवदंसेमाणे 'पडिजागरेमाणे - पडिजागरेमाणे " जेणेव सोहम्मस्स कप्पस्स उत्तरिल्ले णिज्जा मग्गे तेणेव उवागच्छति, जोयणसयसाहस्सिएहि विग्गहेहिं ओवयमाणे वीतिवयमाता उक्किट्ठा 'तुरियाए चवलाए चंडाए जवणाए सिघाए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए तिरियमसंखिज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झमज्झेणं वीतीवयमाणे- वीतीवयमाणे जेणेव 'नंदीसरवरे दीवे" जेणेव दाहिणपुरत्थिमिल्ले रतिकरपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दिव्वं देविड्ढि ' 'दिव्वं देवजुति दिव्वं देवाणुभावं पडसाहरेमाणेपडाहरेमाणे परिसंखेवेमाणे- पडिसंखेवेमाणे जेणेव जंबुद्दीवे दीवे जेणेव भार हे वासे जेणेव आमलकप्पा नयरी जेणेव अंबसालवणे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तेणं दिव्वेणं जाणविमाणेणं" तिक्खुत्तो आयाहिणं पाहणं करे, करेत्ता" समणस्स भगवओ महावीरस्स उत्तरपुरत्थि मे दिसीभागे" तं दिव्वं जाणविमाणं ईसि चउरंगुलमसंपत्तं धरणितलंसि ठवेई, ठवेत्ता चउहिं अग्गमहिसीहि सपरिवाराहिं, दोहिं अणिएहि य- गंधव्वाणिएण य णट्टाणिएणय सद्धि संपरिवुडे ताओ दिव्वाओ जाणविमाणाओ पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहति ॥ ५७. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ ताओ दिव्वाओ जाणविमाणाओ उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति । अवसेसा देवाय देवीओ य ताओ दिव्वाओ जाणविमाणाओ दाहिणिल्लेणं तिसोवाणपडिवणं पच्चोरुहंति || १. राय० सू० १३ । २. सं० पा० - संठिय जाव जोयणसहस्समूसिएणं । ३. सं० पा० - सामाणियसाहस्सीहि जाव सोल सहि । ४. राय ० सू० १३ । ५. उवलालेमाणे उवलालेमाणे ( वृ ) । ६. वयमाणे (क, ख, ग, घ, च) । ७. सं० पा० - उक्किट्ठाए जाव तिरियमसंखिज्जाणं । ८. नन्दीश्वरो द्वीप: ( वृ) । ६. सं० पा० – देविड्ढि जाव दिव्वं । १०. विमाणेणं ( क, ख, ग, घ, च, छ ) । ११. x (क, ख, ग, घ, च) । १२. दिसाभागे (क, ग, च) । Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० रायपसेणइयं सूरियाभस्स-वंदण-पद ५८. तए णं से सूरियाभे देवे [चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं ? ]' चउहिं अग्गमहिसीहि सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अणिएहिं, सत्तहिं अणियाहिवईहिं', सोलसहिं आयरक्खदेव-साहस्सीहि अण्णेहि य बहहिं सूरियाभविमाणवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव' णाइयरवेणं" जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेति, करेत्ता वंदति नमसति, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी--अहण्णं भंते! सूरियाभे देवे देवाणप्पियं वदामि नमसामि' 'सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि ।। वंदणाणुमोदण-पदं ५६. सूरियाभाइ ! समणे भगवं महावीरे सूरियाभं देवं एवं वयासी-पोराणमेयं सूरियाभा ! 'जीयमेयं सूरियाभा !" किच्चमेयं सूरियाभा ! करणिज्जमेयं सूरियाभा ! आइण्णमेयं सूरियाभा ! अब्भणुण्णायमेयं सूरियाभा ! जण्णं भवणवइ-वाणमंतर-जोइसवेमाणिया देवा अरहते भगवंते वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता तओ पच्छा साइं-साई नाम-गोत्ताई साहिति, तं" पोराणमेयं सूरियाभा ! जाव अब्भणुण्णायमेयं सूरियामा ! पज्जुवासणा-पदं ६०. तए णं से सूरियाभे देवे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ट 'तुद्र-चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उढाए उठेति, उठेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे नातिदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासति ।। धम्मदेसणा-पदं ६१. तए णं समणे भगवं महावीरे सूरियाभस्स देवस्स तीसे य महतिमहालियाए 'इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जतिपरिसाए विदुपरिसाए देवपरिसाए खत्तियपरिसाए इक्खागपरिसाए कोरव्वपरिसाए अणेगसयाए अणेगवंदाए अणेगसयवंदपरिवाराए परिसाए ओहबले अइवले महब्बले अपरिमियबल-वीरिय-तेय-माहप्प-कतिजुत्ते सारय-णवत्थणिय-महरगंभीरकोंचणिग्घोस-दुंदुभिस्सरे, उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाएं' अमम्म१. सप्तमसूत्रानुसारेणात्रैष पाठो युज्यते। ५. सं० पा०-नमंसामि जाव पज्जुवासामि । २. सं० पा०–अग्गमहिसीहिं जाव सोलसहिं । ६. ४ (क, ख, ग, च, छ) । ३. राय० सू० १३ । ७. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। ४. णाइएणं (क, ख, ग, घ, च)। ८. सं० पा०-हट्ट जाव समणं । ६. रायपसेणइयवृत्तौ आचार्यमलयगिरिणा औपपातिकस्य पाठः समुद्धृतः, स च अभयदेवसुरिव्याख्यातपाठात् किञ्चिद् भिद्यते(ओवाइय वृत्ति पृ० १४७.) (रायपसेणइय वृत्ति पृ० ११६ अगरलयाए अमम्मणाए सव्वक्खरसण्णि पं० बेचरदास द्वारा संपादित) वाइयाए पुण्णरत्ताए सव्वभासाणुगामिणीए अगग्गयाए अमम्मणाए फुडविसयमहरगंभीरसरस्सईए गाहिगाए सव्वक्खरसन्निवाइयाए गिराए Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १०१ णाए सुव्वत्तक्खर-सण्णिवाइयाए पुण्ण रत्ताए सव्वभासाणुगामिणीए सरस्सईए जोयणणीहारिणा सरेणं अद्धमागहाए भासाए भासइ-अरिहा धम्म परिकहेइ" जाव परिसा जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया ॥ पण्ह-वागरण-पदं ६२. तए णं से सूरियाभे देवे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ- चित्तमाणंदिए पीइमाणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण-हियए उठाए उठेति, उठेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी -अहण्णं भंते ! सूरियाभे देवे किं भवसिद्धिए ? अभवसिद्धिए ? सम्मदिट्ठी? मिच्छदिट्ठी ? परित्तसंसारिए ? अणंतसंसारिए ? सुलभवोहिए ? दुल्लभबोहिए ? आराहए ? विराहए? चरिमे ? अचरिमे ? सूरियाभाइ ! समणे भगवं महावीरे सूरियाभं देवं एवं वयासी-सूरियाभा ! तुमण्णं भवसिद्धिए, नो अभवसिद्धिए। 'सम्मदिट्ठी, नो मिच्छदिट्ठी। परित्तसंसारिए, नो अणंतसंसारिए। सुलभबोहिए, नो दुल्लभबोहिए। आराहए, नो विराहए। चरिमे, नो अचरिमे॥ नट्टविहि-उवदंसण-पदं ६३. तए णं से सूरियाभे देवे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हद्वतुटुचित्तमाणंदिए' पीइमणे° परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-तुब्भे णं भंते ! सव्वं जाणह सव्वं पासह, 'सव्वओ जाणह सव्वओ पासह, सव्वं कालं जाणह सव्वं कालं पासह, 'सव्वे सव्वभासाणुगामिणीए सव्वसंसयविमोयणीए अपुणरुत्ताए सरस्सईए अत्र 'अगरलयाए,' 'पुण्णरत्ताए' इति शब्दद्वयं आलोच्यमस्ति । 'अगरलयाए' (सुविभक्ताक्षरतया) इति पाठापेक्षया 'अगग्गयाए' (अगद्गदया) इति पाठः समीचीनः प्रतिभाति । 'पुण्णरत्ताए' इति पाठस्य व्याख्या अभयदेवसूरिणा इत्थं कृतास्ति-'पूर्णा च स्वरकलाभिः रक्ता च-गेयरागानुरक्ता या सा तथा तया।' वत्तिकारेण आदर्श एतादृश एव पाठो लब्धस्तेन तथा व्याख्यातः ।। रायपसेणइयवृत्ती (पृ० १६०) गेयस्य अष्टगुणानां व्याख्या प्रसंगे 'पूर्ण', 'रक्तं' इतिगुणद्वयं व्याख्यातमीरितं यथा--तत्र यत् स्वरकलाभिः परिपूर्ण गीयते तत् 'पूर्णम्,' गेय रागानुरक्तेन यद् गीयते तद् 'रक्तम् । एषा व्याख्या अभयदेवसूरिकृत ‘पूर्णरक्त' व्याख्यया तुल्यास्ति । अनया ज्ञायते सा व्यर्था नास्ति, तेन आचार्यमलयगिरिणा समुदधत: औपपातिकपाठो वाचनाभेदस्य प्रतीयते। १. चिन्ह्नाङ्कितपाठ आदर्शेषु नोपलभ्यते । एष ४. सं० पा०—चित्तमाणंदिए जाव परमसोमण वृत्त्याधारण स्वीकृतः । द्रष्टव्यानि औपपातिकस्य ७१ से ७६ सूत्राणि । ५. सोमणसे (क, ख, ग, च, छ) । २. सं० पा०-हटुतुटु जाव यिए । ६. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ३.सं० पा०-अभवसिद्धिए जाव चरिमे । तिए। Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ रायपसेणइयं भावे जाणह सव्वे भावे पासह" । जाणंति णं देवाणुप्पिया ! मम पुव्विं वा पच्छा वा ममेयरूवं दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवजुइं दिव्वं देवाणुभावं लद्धं पत्तं अभिसमण्णागयं ति, तं इच्छामि णं देवाणुप्पियाणं भत्तिपुव्वर्ग गोयमातियाणं समणाणं निग्गंथाणं दिव्वं देविडिढ दिव्वं देवजुइं दिव्वं देवाणुभावं दिव्वं बत्तीसतिवद्धं नट्टविहिं उवदंसित्तए॥ ६४. तए णं समणे भगवं महावीरे सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे सूरियाभस्स देवस्स एयमलृ णो आढाइ णो परियाणइ तुसिणीए संचिट्ठति ।। ६५. तए णं से सूरियाभे देवे समणं भगवं महावीरं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासीतुब्भे णं भंते! सव्वं जाणह' 'सव्वं पासह, सव्वओ जाणह सव्वओ पासह, सव्वं कालं जाणह सव्वं कालं पासह, सव्वे भावे जाणह सव्वे भावे पासह । जाणंति णं देवाणुप्पिया ! मम पुवि वा पच्छा वा ममेयरूवं दिव्वं देविडिढं दिव्वं देवजुइं दिव्वं देवाणुभावं लद्धं पत्तं अभिसमण्णागयं ति, तं इच्छामि णं देवाणुप्पियाणं भत्तिपुव्वगं गोयमातियाणं समणाणं निग्गंथाणं दिव्वं देविडिढं दिव्वं देवजडं दिव्वं देवाणभावं दिव्वं बत्तीस तिबद्धं नटविहिं० उवदंसित्तएत्ति कटु समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ', समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरति', 'तं जहा-रयणाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंजणाणं अंजणपुलगाणं रययाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहावायरे पोग्गले परिसाडेति, परिसाडेत्ता अहासुहुमे पोग्गले परियाएइ परियाइत्ता दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णति, समोहणित्ता वहुसमरमणिज्जं भूमिभाग विउव्वति, से जहानामए-आलिंगपुक्खरेइ वा जाव" मणीणं फासो ॥ ६६. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागे पिच्छाघरमंडवं विउव्वति-अणेगखंभसयसन्निविट्ठ वण्णओ अंतो बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं उल्लोयं अक्खाडगं च मणिपेढियं च विउव्वति ॥ ६७. तीसे णं मणिपेढियाए उरि सीहासणं सपरिवारं जाव" दामा चिट्ठति ।। ६८. तए णं से सूरियाभे देवे समणस्स भगवतो महावीरस्स आलोए पणामं करेति, करेत्ता अणुजाणउ मे भगवंति कटु सीहासणवरगए तित्थयराभिमुहे सण्णिसण्णे ।। ६६. तए णं से सूरियाभे देवे तप्पढमयाए नाणामणिकणगरयणविमल-महरिह'निउण-ओविय-मिसिमिसेतविरचियमहाभरण-कडग-तुडियवरभूसणुज्जलं पीवरं पलंबं दाहिणं भुयं पसारेति। १. ४ (क, ख, ग, च, छ) । २. सं० पा०-जाणह जाव उवदंसित्तए । ३. समोहणइ (क, ख, ग, च, छ)। ४. सं० पा०-निसिरति अहाबायरे अहासुहमे दोच्चपि वेउब्वियसमग्घाएणं जाव बहुसम। ५. राय० सू० २४-३१ । ६. राय० सू० ३२-३६ । ७. राय० सू० ३७-४४ । ८. निउणोविय (क, ख, ग); निउणोवचिय (घ, च)। ६. कणग (क, ख, ग, घ, च)। Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १०३ तओ णं सरिसयाणं सरित्तयाणं सरिव्वयाणं सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वण-गुणोववेयाणं एगाभरण-वसणगहियणिज्जोयाणं दुहओ संवेल्लियग्गणियत्थाणं 'आविद्धतिलयामेलाणं पिणद्धगेवेज्जकंचयाणं" उप्पीलिय-चित्तपट्ट-परियर-सफेणकावत्तरइय-संगय-पलंब-वत्थंतचित्त-चिल्ललग-नियंसणाणं एगावलि-कंठरइय-सोभंत-वच्छ-परिहत्थ-भूसणाणं अट्ठसयं नट्टसज्जाणं देवकुमाराणं णिग्गच्छइ ॥ ७०. तयणंतरं च णं नानामणि' 'कणगरयणविमल-महरिह-निउण-ओविय-मिसिमिसेतविरचियमहाभरण-कडग-तुडियवरभूसणुज्जलं° पीवरं पलंबं वाम भुयं पसारेति । - तओ णं सरिसियाणं' सरित्तयाण सरिव्वतीणं सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वण-गुणोववेयाणं एगाभरण-वसणगहियणिज्जोईणं दुहओ संवेल्लियग्गणियत्थीणं आविद्धतिलयामेलीणं पिणद्धगेवेज्जकंचुईणं नानामणि-कणग'-रयण-भूसण-विराइयंगमंगीणं चंदाणणाणं चंदद्धसमनिलाडाणं चंदाहियसोमदंसणाणं उक्का इव उज्जोवेमाणीणं सिंगारागारचारुवेसाणं संगयागय-हसिय-भणिय-चिट्ठिय-विलासललिय-संलावनिउणजुत्तोवयारकुसलाणं गहियाउज्जाणं अट्ठसयं नट्टसज्जाणं देवकुमारीणं णिग्गच्छइ ।। ७१. तए णं से सूरियाभे देवे 'अट्ठसयं संखाणं विउव्वइ, अट्ठसयं संखवायाणं विउव्वइ, अट्ठसयं सिंगाणं विउव्वइ, अट्ठसयं सिंगवायाणं विउव्वइ, अट्ठसयं संखियाणं विउव्वइ, अट्ठसयं संखियवायाणं विउव्वइ", अट्ठसयं खरमुहीणं विउव्वइ, अट्ठसयं खरमुहिवायाणं विउव्वइ, अट्ठसयं पेयाणं विउव्वइ, अट्ठसयं पेयावायगाणं विउव्वइ, अट्ठसयं पिरिपिरियाणं विउव्वइ, अट्ठसयं पिरिपिरियावायगाणं विउव्वई', एवमाइयाई एगणपण्णं आउज्जविहाणाइं विउव्वइ, विउव्वित्ता तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीयाओ य सद्दावेति ।। ७२. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य सूरियाभेणं देवेणं सद्दाविया समाणा हट्ट तुट्ठ-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमण स्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं 'दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी-संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! जं अम्हेहिं कायव्वं ।। ७३. तए णं से सूरियाभे देवे ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य एवं वयासीगच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेह, १. X (वृ)। ६. अतः परं वृत्तौ अन्येषां आतोद्यानां नामान्यपि २. तयाणंतरं (क, ख, ग, घ, च, छ) । उल्लिखितानि सन्ति द्रष्टव्यानि वत्तिपत्राणि ३. सं० पा०-नानामणि जाव पीवरं । १२६-१२८ । ७७ सूत्रे शेषातोद्यानां नामानि ४. सरिसयाणं (क, ख, ग, वृ)। साक्षाल्लिखितानि सन्ति । ५. 'मेलाणं (छ)। १०. एवमातियाणं (क, ख, ग, घ, छ); एवमाति६. ४ (क, ख, ग, घ, च) । याणि (च)। ७. x (ख, ग, घ)। ११. सं० पा०-हट्ट जाव जेणेव । ८. परिपरियाणं (च, छ) । १२. सं० पा०-करयलपरिग्गहियं जाव वद्धावेत्ता । Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ रायपसेणइयं करेत्ता वंदह नमसह, वंदित्ता नमंसित्ता गोयमाइयाणं समणाणं निग्गंथाणं तं दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुति दिव्वं देवाणुभावं दिव्वं बत्तीसइबद्धं णट्टविहिं उवदंसेह, उवदंसित्ता खिप्पामेव एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। ७४. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठ' 'तुटु-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं देवो! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं 'तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव गोयमादिया समणा निग्गंथा तेणेव निग्गच्छंति ॥ ७५. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समामेव समोसरणं करेंति, करेत्ता समामेव पंतीओ बंधंति, बंधित्ता समामेव ओणमंति, ओणमित्ता समामेव उण्णमंति', उण्णमित्ता एवं सहियामेव ओणमंति, ओणमित्ता सहियामेव उण्णमंति, उण्णमित्ता संगयामेव ओणमंति, ओणमित्ता संगयामेव उण्णमंति, उण्ण मित्ता थिमियामेव ओणमंति, ओणमित्ता थिमियामेव उण्णमंति, उण्णमित्ता समामेव पसरंति, समामेव आउज्जविहाणाई गेण्हंति, गेण्हित्ता समामेव पवाएंसु समामेव पगाइंसु समामेव पणच्चिंसु॥ ७६. किं ते ? उरेण मंदं, सिरेण तारं, कंठेण वितारं, तिविहं तिसमय -रेयग-रइयं गंजावंककुहरोवगूढं रत्तं तिढाणकरणसुद्धं सकूहरगंजत-वंस-तंती-तल-ताल-लय-गहसूसंपउत्तं महरं समं सललियं मणोहरं मउरिभियपयसंचारं सुरई सूणति वरचारुरूवं दिव्वं णमुसज्ज गेयं पगीया" वि होत्था ॥ ७७. 'किं ते ? उद्धमंताणं-संखाणं सिंगाणं संखियाणं खरमुहीणं पेयाणं पिरिपिरियाणं, आहम्मंताणं--पणवाणं पडहाणं, अप्फालिज्जमाणाणं-भंभाणं होरंभाणं, तालिज्जतीणं-भेरीणं झल्लरीणं दुंदुहीणं, आलवंताणं"-मुरयाणं" मुइंगाणं नंदीमुइंगाणं, उत्तालिज्जताणं-आलिंगाणं कुतुंवाणं गोमुहीणं मद्दलाणं, मुच्छिज्जंताणं-वीणाणं विपंचीणं बल्लकीणं, कुट्टिज्जंतीणं-महंतीणं कच्छभीणं चित्तवीणाणं, सारिज्जंताणं-बद्धीसाणं सुघोसाणं नंदिघोसाणं, फुट्टिज्जंतीण-भामरीणं छब्भामरीणं परिवायणीणं, छिप्पंताणं १. गोयमातियाणं (च)। १०. सकुहरकुजत (क, ख, ग, च) । २. द्वात्रिंशद्विधम् (व)। ११. गीया (क, ख, ग, घ, च, छ) । ३. सं० पा०--हट्ठ जाव करयल जाव पडिसुणंति । १२. किं च ते देवकुमारा देवकुमारिकाश्च प्रगीतवन्त ४. सं० पा०-महावीरं जाव नमंसित्ता। प्रतितवन्तश्च ? (वृ)। ५. उब्भमंति (क, ख, ग)। १३. आलिपंताणं (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. थिमियमेव (क, घ, च); थिमियामेव (छ)। १४. मुरयवराणं (क, छ); मुरजवराणं (घ) । ७. संगयामेव (क, घ, च)। १५. मद्दीलीणं मद्दलाणं (घ)। ८. तिसम (क, ख, ग, घ, च)। १६. स्पन्दनम् (वृ)। ६. कुंजावंक (क) । गुंजा+अवंक =गुंजावंक। १७. उब्भामरीणं (क, ख, ग)। Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो तूणाणं तुंबवीणाणं, आमोडिज्जंताणं-आमोटाणं' झंझाणं' नउलाणं, अच्छिज्जतीणंमुगुंदाणं हुडुक्कीणं विचिक्कीणं, वाइज्जंताणं-करडाणं डिडिमाण किणियाणं' कडंबाणं', ताडिज्जंताणं-दद्दरगाणं दद्दरिगाणं कुतुंबराणं' कलसियाणं मड्डयाणं' आताडिज्जंताणंतलाणं तालाणं कंसतालाणं, घट्टिज्जंताणं-रिंगिसियाणं लत्तियाणं मगरियाणं सुसुमारियाणं, फूमिज्जंताणं-वंसाणं वेलूणं वालीणं परिलीणं बद्धगाणं"॥ ७८. तए णं से दिव्वे गीए 'दिव्वे नट्टे दिव्वे वाइए"", १५ अब्भुए गीए अब्भुए नट्टे अब्भुए वाइए, सिंगारे गीए सिंगारे नट्टे सिंगारे वाइए, उराले गीए उराले नट्टे उराले वाइए, मणुण्णे गीए मणुण्णे नट्टे मणुण्णे वाइए', 'मणहरे गीए मणहरे नट्टे" मणहरे वाइए, उप्पिजलभूते कहकहभूते" दिव्वे देवरमणे पवत्ते यावि होत्था ॥ ७६. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स सोत्थिय-सिरिवच्छ-नंदियावत्त-वद्धमाणग-भद्दासण-कलस-मच्छ-दप्पण-मंगलभत्तिचित्तं णाम दिव्वं नट्टविधि उवदंसेंति ॥ ८०. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समामेव समोसरणं करेंति, करेत्ता तं चेव भाणियव्वं जाव" दिव्वे देवरमणे पवत्ते यावि होत्था । ८१. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स आवड-पच्चावड-सेढि-पसेढि-सोत्थिय-सोवत्थिय"-पूसमाणव-वद्धमाणग-'मच्छंडा-मगरंडाजारा-मारा-फुल्लावलि-पउमपत्त-सागरतरंग-वसंतलता"-पउमलयभत्तिचित्तं णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेति ॥ ८२. एवं च एक्किक्कियाए णट्टविहीए समोसरणादिया एसा वत्तव्वया जाव" दिव्वे देवरमणे पवत्ते यावि होत्था । ८३. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स १. आमोताणं (क, च, छ) । १२. सं० पा.-एवं अन्झए सिंगारे उराले २. कुंभाणं (क, ख, ग, घ, च, छ) । मणुन्ने। ३. किरियाणं (क, ख, ग, घ)। १३. मणहरे नट्टे मणहरे गीते (क, ख, ग, घ, च, ४. करंबाणं (क)। ५. कुतुंबाणं (क, ख, ग, घ, च, छ); एतत्पदं १४. कहा (क, ख, ग, घ, च, छ); कहग' वृत्त्याधारेण स्वीकृतम् । वृत्तेः १२७ पृष्ठेपि (घ)। 'कुस्तुम्बराणाम्' इति पदं दृश्यते । १५. राय० सू० ७५-७८ । ६. मडुयाणं (क, ख, ग, घ, च, छ)। १६. + (च, छ)। ७. आवडिज्जंताणं (क, ख, ग, च, छ)। १७. पूसमाणग (क, ख, ग, च, छ); पूसमाण ८. गिरिसियाएणं (क); गिरिसियाणं (ख, ग, (घ)। घ, च, छ)। १८. मच्छंडग-मगरंडग-जार-मारा (छ)। ६. कुमिवंसाणं (क)। १६. चतुविशतितमे सूत्रे 'लय' शब्दो विद्यते अत्र तु १०. पव्वगाणं (क, ख, ग, घ, च, छ) । 'लता'। ११. दिब्वे वाइए दिव्वे नट्टे (वृ)। २०. राय० सू० ७५-७८ । Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ रायपसेणइयं ईहामिअ-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग - वालग-किन्नर-रुरु - सरभ-चमर - कुंजर- वणलयपउमलयभत्तिचित्तं णाम दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥ ८४. एगओवंक, ‘एगओखहं दुहओखहं", 'एगओचक्कवालं दुहओचक्कवालं चक्कद्धचक्कवालं" णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ।। ८५. चंदावलिपवित्तिं च सूरावलिपविभत्ति च वलयावलिपविभत्ति च हंसावलिपविभत्तिं च एगावलिपवित्ति च तारावलिपविभत्ति च 'मुत्तावलिपविभत्ति च कणगावलिपविभत्ति च" रयणावलिपविभत्ति च 'आवलिपवित्ति च" णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥ ८६. चंदुग्गमणपविभत्ति च सूरुग्गमणपविभत्तिं च उग्गमणुग्गमणपविभत्तिं च णाम दिव्वं णट्टविहि उवदंसें ति ॥ ८७. चंदागमणपविभत्ति च सूरागमणपविभत्तिं च आगमणागमणपविभत्तिं च णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥ ८८. चंदावरणपवित्तिं च सूरावरणपविभत्ति च आवरणावरणपविभत्तिं च णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ।। ८६. चंदत्थमणपविभत्ति च सूरत्थमणपविभत्ति च अत्थमणत्थमणपविभत्ति च णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥ ६०. चंदमंडलपविभत्तिं च सूरमंडलपविभत्तिं च नागमंडलपविभत्तिं च जक्खमंडलपविभत्तिं च भूतमंडलपविभत्तिं च 'रक्खस-महोरग-गंधव्वमंडलपविभत्तिं च" मंडलपविभत्तिं च णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥ ६१. 'उसभमंडलपविभत्तिं च सीहमंडलपविभत्तिं च", हयविलंबियं गयविलंबियं, 'हयविलसियं गयविलसियं', मत्तहयविलसियं मत्तगयविलसियं, 'मत्तयविलंबियं मत्तगयविलंबियं दुयविलंबियं णामं दिव्वं पट्टविहिं उवदंसेंति ।। ६२. सागरपविभत्तिं च नागरपविभत्तिं च सागर-नागरपविभत्तिं च णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ।। ६३. नंदापविभत्तिं च चंपापविभत्तिं च नंदा-चंपापविभत्तिं च णामं दिव्वं णट्टविहिं १. ४ (ख, ग, वृ)। णागमणपविभत्ति, क्वचिद् एतद् नास्ति । अत्र २. चक्कदुचक्कवालं (क, घ)। जीवाजीवाभिगमवृत्ति (पत्र २४६) रपि द्रष्टव्या ३. वा (घ)। ७. णट्टविहं (घ, च, छ)। ४. वलियावलि (क, ख, ग)। ८. x (व)। ५. कणगावलिपवित्ति च मुत्तावलिपवित्तिं च ६. उसभललियविक्कंतं सीहल लियविक्कंतं (क,ख, (घ)। ग, घ, च, छ) । ६. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । आदर्शेषु एतेषां १०. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । नाट्यविधीनां पाठः सर्वत्र एकरूपो नास्ति । ११. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । क्वचित् नाट्यविधेमौलिक नाम लिखितमुप- १२. सगडुद्धियपवित्तिं च सागर (क, ख, ग, घ, लभ्यते, यथा---उग्गमणुग्गमणपविभत्ति आगम- च, छ) । Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियामो उवदंसेंति ॥ ६४. मच्छंडापविभत्तिं च मयरंडापविभत्ति च 'जारापविभत्ति च मारापविभत्ति च" मच्छंडा-मयरंडा-जारा-मारापविभत्ति च णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥ ६५. 'क' त्ति ककारपविभत्ति च 'ख' त्ति खकारपविभत्ति च 'ग' त्ति गकारपविभत्ति च 'घ'त्ति घकारपविभत्ति च 'ङ' त्ति डकारपविभत्तिं च ककार-खकार-गकार-घकारङकार-पविभत्तिं च णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ।। ६६. एवं-चकारवग्गो वि ।। ६७. टकारवग्गो वि॥ १८. 'तकारवग्गो वि ।। ६६. पकारवग्गो वि॥ १००. असोयपल्लवपविभत्तिं च अंबपल्लवपविभत्तिं च जंबूपल्लवपविभत्तिं च कोसंबपल्लवपविभत्तिं च पल्लवपविभत्तिं च णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥ १०१. पउमलयापविभत्तिं च नागलयापविभत्तिं च असोगलयापविभत्तिं च चंपगलयापविभत्तिं च चूयलयापविभत्तिं च वणलयापविभत्तिं च वासंतियलयापविभत्तिं च अइमुत्तयलयापविभत्तिं च कुंदलयापविभत्ति च° सामलयापविभत्तिं च लयापविभत्तिं च णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥ १०२. दुयं णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥ १०३. विलंबियं णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥ १०४. दुयविलंबियं णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ।। १०५. अंचियं णामं दिव्वं पट्टविहिं उवदंसेति ॥ १०६. रिभियं णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥ १०७. अंचियरिभियं णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसं ति ।। १०८. आरभड णामं दिव्वं णविहिं उवदंसति ।। १०६. भसोलं णाम दिव्वं णदविहिं उवदंसेंति ॥ ११०. आरभडभसोलं णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसें ति ।। १११. उप्पायनिवायपसत्तं संकुचिय-पसारियं रियारियं भंतसंभंतं णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेति ॥ ११२. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समामेव समोसरणं करेंति जाव दिव्वे देवरमणे पवत्ते यावि होत्था ॥ १. जारपवित्तिं च मारपविभत्ति च (छ)। ६. उप्पायनिवायपवत्तं (क, ख, ग, घ, च); २. तवग्गो वि पवग्गो वि (क, ख, ग, च, छ)। उप्पायनिवायपविभत्तं (छ); अयं पाठो वृत्त्य३. पल्लव २ पविभत्तिं च (क, ख, ग, घ)। नुसारी स्वीकृतः । ४. सं० पा०-पउमलयापविभत्ति जाव सामलया- ७. रयारइयं (क, ख, ग, घ, च, छ) ; रेवकापविभत्ति । रचितं (व)। ५. लया २ पविभत्ति (घ)। ८. राय० सू० ७५-७८ । . Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ रायपसेणइयं ११३. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स 'चरमपूव्वभवणिबद्धं च चरमचवणनिबद्धं च चरमसाहरणनिबद्धं च चरमजम्मणनिबद्धं च चरमअभिसेअनिबद्धं च चरमबालभावनिबद्धं च चरमजोव्वणनिबद्धं च चरमकामभोगनिबद्धं च चरमनिक्खमणनिबद्धं च चरमतवचरणनिबद्धं च चरमणाणुप्पायनिबद्धं च चरमतित्थपवत्तणनिबद्धं च चरमपरिनिव्वाणनिबद्धं च चरमनिबद्धं च" णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति ॥ ११४. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य चउव्विहं वाइत्तं वाएंति, तं जहा-ततं विततं घणं सुसिर । ११५. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ च चउन्विहं गेयं गायंति, तं जहा–'उक्खित्तं पायंत मंदायं रोइयावसाणं च ॥ १. पव्वभवचरियनिबद्धं च देवलोयचरियणिबद्धं च चवणचरियणिबद्धं च साहरणचरियणिबद्धं च जम्मणचरियणिबद्धं च अभिसेअचरियनिबद्धं च बालभावचरियनिबद्धं च कामभोगचरियनिबद्धं च तवचरणचरियनिबद्धं च तित्थपवत्तणचरियनिबद्धं च परिनिव्वाणचरियनिबद्धं च चरिमचरियनिबद्धं च (क, ख, ग, घ, च, छ)। २. झुसिरं (जी० ३।४४७) । ३. रायपसेणइय (सू० ११५)रायपसेणइय (सू०२८१)स्थानांग (४।६३४) जीवाजीवाभिगम (३३४४७) उक्खित्तं उक्खित्तायं उक्खित्तए उक्खित्तं पायंत पायंतायं पत्तए पवत्तं मंदायं मंदायं मंदए मंदायं रोइयावसाणं रोइयावसाणं रोविंदए रोइयावसाणं रायपसेणइय (सू० ११५) वृत्ति :-उत्क्षिप्तं प्रथमतः समारभ्यमाणम् पादान्तम्-पादवद्धम वद्धादि-चतुर्भागरूपपादबद्धम् इति भावः । मध्यभागे मूर्छनादिगुणोपेततया मन्दं मन्दं घोलनात्मकम रोचितावसानम् इति-रोचितं यथोचित लक्षणोपेततया भावितम्-सत्यापितम् इति यावत् अवसानं यस्य तद् रोचितावसानम् (वृत्ति, पृ० १४४,१४५) । रायपसेणइय सू० २८१ । अत्र वृत्तिकृता नास्ति किञ्चिद् व्याख्यातम् स्थानाङ्ग (४।६३४) वृत्तिकारेण लिखितमत्र-नाट्यगेयाभिनयसूत्राणि सम्प्रदायाभावान्न विवृतानि (वृत्ति, पत्र २७२) । जीवाजीवाभिगम (३।४४७) । वृत्ति :-'उत्क्षिप्त' प्रथमतः समारभ्यमाणम् 'प्रवृत्तम्' उत्क्षेपावस्थातो विक्रान्तं मनाग्भरेण प्रवर्तमानं मन्दायमिति--मध्यभागे मूर्छनादि गुणोपेततया मन्दं मन्दं घोलनात्मक रोचितावसान' मिति रोचितं-यथोचितलक्षणोपेततया भावितं सत्यापितममिति यावत अवसानं यस्य तद् रोचितावसानम् (वत्ति, पत्र २४७)। रायपसेणइयसूत्रे द्विवारं गेयस्य उल्लेखोस्ति, तत्र द्वितीयवारे प्रथमवतिनो द्वयोः शब्दयोः स्वार्थिकः क प्रत्ययः कृतोस्ति तेन ‘उक्खितायं, पायंतायं' पाठो जातः। यद्यपि आदर्शेषु 'पायत्तायं' पाठो दृश्यते किन्तु लिपि दोषाद् एवं जातः प्रतीयते । तेन अस्माभिर्मूले 'पायंतायं' पाठः स्वीकृतः । जीवाजीवाभिगमे त्रयः शब्दा: रायपसेणइयशब्देभ्यस्तुल्या वर्तन्ते केवलं द्वितीयशब्दो भिन्नोस्ति । स्थानांगे 'पत्तए, रोविंदए' द्वौ शब्दो भिन्नौ वर्तते । असौ वाचनाभेदोस्ति अथवा लिपिदोषेण परिवर्तनं जातमिति न निश्चेतुं शक्यते । Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १०९ ११६. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य चउन्विहं णट्टविहिं उवदंसेंति, तं जहा---अंचियं रिभियं आरभडं भसोलं च ।। ११७. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य चउव्विहं अभिणयं' अभिणेति, तं जहा–'दिलैंतियं पाडंतियं सामन्नओविणिवाइयं लोगमज्झावसाणियं च ।। ११८. तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य गोयमादियाणं समणाणं निग्गंथाणं दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवजुति दिव्वं देवाणुभाव' दिव्वं बत्तीसइबद्ध" नट्टविहिं उवदंसित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ ११६. तए णं से सूरियाभे देवे तं दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवजुइं दिव्वं देवाणुभावं पडिसाहरइ, पडिसाहरेत्ता खणेणं जाते एगे एगभूए । १२०. तए णं से सूरियाभे देवे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ वंदति नमसति, वंदित्ता नमसित्ता नियगपरिवालसद्धि संपरिवुडे तमेव दिव्वं जाणविमाणं दुरुहति, दुरुहित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए॥ १. णटें अभिणयं (क, ख, ग, घ, च)। २. पाडियंतियं (क,घ); पाडियं (ख, ग, च, छ); २८१ सूत्रेपि सर्वप्रतिष 'पाडंतियं' पाठो विद्यते । ३. सामंतोवणिवाइयं (क, ख, ग, घ, च, छ)। ४. अंतोमज्भावसाणियं (क, ख, ग, घ); २८१ सूत्रे एतत्तुल्यप्रकरणे सर्वासु प्रतिषु 'लोगमज्झाव साणियं' इति पाठोस्ति तथा जीवाजीवाभिगमे (३।४४७) पि एष पाठो लभ्यते । ५. रायपसेणइय (सू० ११७,२८१) स्थानांग (४१६३७) जीवाजीवाभिगम (३।४४७) दिलैंतियं दिलृतिते दिलृतियं पाडंतियं पाडिसुते पाडिसुयं सामन्नओविणिवाइयं सामन्नओविणिवाइयं सामन्नतोविणिवातियं लोगमज्झावसाणियं लोगमभावसिते लोगमज्झावसाणियं स्थानाङ्गवृत्तौ नास्ति व्याख्यातोसौ पाठः । रायपसेणइयसूत्रे प्रथमवारमसो व्याख्यातोस्ति-'दार्टान्तिकम् प्रात्यन्तिकम् सामान्यतोविनिपातम् लोकमध्यावसानिकम् ।' (वृत्ति, पृ० १४५) । वृत्त्यनुसारेणात्र 'सामन्नओविणिवातं' पाठो युज्यते। जीवाजीवाभिगमवृत्तावपि 'सामान्यतोविनिपातिकम्' इति व्याख्यातमस्ति । आदर्शेषु 'सामंतोवणिवाइयं' जातम् । सम्भवतः ‘सामन्नओ' स्थाने 'सामन्नो' जातः अस्यैव 'सामन्तो' रूपे परिवर्तनं जातमिति प्रतीयते । स्थानांगे 'पडिसुते' पाठस्तथा जीवाजीवाभिगमवृत्ती 'प्रतिश्रुतिकम्' इति व्याख्यातोस्ति पाठः । एतौ द्वावपि रायपसेणइयसूत्रस्य' 'पाडंतिय' शब्दाद वाचनाभेदं गच्छतः । ६. देवाणुभागं (क, ख, ग, घ, च, छ)। ७. बत्तीसइनिबद्धं (क, ख, च, छ)। ८. एवमाणत्तियं (क, ख, ग, घ, च, छ) । Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० कूडागारसाला - दिट्ठत-पदं १२१. 'भंतेति' ! भयवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नम॑सति, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी” रायपसेणइयं १२२. सूरियाभस्स णं भंते! देवस्स एसा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे वाणुभावे हि गते कह अणुप्पविट्ठे ? गोयमा ! सरीरं गए सरीरं अणुप्पविट्ठे || १२३. से केणट्ठणं भंते ! एवं बुच्चइ - सरीरं गए सरीरं अणुप्पविट्ठे ? गोयमा ! से जहानामए कूडागारसाला सिया - दुहतो लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा णिवाया शिवाय गंभीरा । तीसे णं कूडागारसालाए अदूरसामंते, एत्थ णं महेंगे 'जणसमूहे एगं" महं अब्भवद्दल वा वासवद्दलगं वा महावायं वा एज्जमाणं पासति, पासित्ता तं कूडागारसालं अंतो अणुप्पविसित्ताणं चिट्ठइ । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चति - सरीरं गए, सरीरं अणुप्पविट्ठे ॥ सूरियाभ- विमाण-पदं १२४. 'कहिं णं" भंते! सूरियाभस्स देवस्स सूरिया नामं विमाणे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभागातो उड्ढं चंदिम-सूरिय- गहगण - नक्खत्त- तारारूवाणं पुरओ' बहूई जोयणाई बहूइं जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साइं बहूई जोयणसयसहस्साई 'बहुईओ जोयकोडीओ बहुईओ जोयणकोडाकोडीओ" उड्ढं दूरं वीतीवइत्ता, एत्थ णं सोहम्मे नाम १. भंतेत्ति ( क, ख, ग ) । २. पुस्तकान्तरे तु इदं वाचनान्तरं दृश्यते - ' तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जिट्ठे अन्तेवासी' इत्यादि --' इंदभूई नामं अणगारे गोयमसगोत्ते सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरि सहनारायसंघयणे कणगपुलग निघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे महातवे उराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविपुलतेयलेस्से चउदसपुथ्वी चउनाणोवगए सव्व - क्खरसन्निवाई समणस्स भगवतो महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेण तवसा अप्पा भावेमाणे विहरइ । तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायको उहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोउहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायको उहल्ले, समुप्पण्णसड्ढे समुप्पण्णसंसए समुप्पण्णको उहल्ले, उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठाए उट्ठित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवंतं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति, तिक्खुत्तो याहिणपयाहिणं करेत्ता वंदति नम॑सति, वंदिता नमसित्ता एवं वयासी' - ( वृ) | ३. जणसमूहे चिट्ठति, तए णं से जणसमूहे एगं ( च, छ); जनसमूह : तिष्ठति, स च एकं (वृ) । ४. एज्जमाणं वा (क, ख, ग, घ ) । ५. कहणं ( क ); कहणं ( ख, ग, च, छ ) ; कहं णं (घ ) । ६. x ( क, ख, ग, घ, च ) । ७. बहुगीतो जोयणसहस्सातो बहुगीतो जोयणकोडाकोडीतो बहुगीतो जोयणसहस्सकोडीओ (क, ख, ग, च) ; बहुगीतो जोयणकोडीतो बहुगीतो जोयणको डाकोडीतो बहुगीतो जोयणय सहस्सकोडीतो (घ ) । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो कप्पे पण्णत्ते--पाईणपडीणायते उदीणदाहिणवित्थिण्णे अद्धचंदसंठाणसंठिते अच्चिमालिभासरासिवण्णाभे, असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयामविक्खंभेणं, असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं, 'सव्वरयणामए अच्छे सण्हे लण्हे घट्टे मछे णीरए निम्मले निप्पंके निक्कंकडच्छाए सप्पभे समरीइए सउज्जोए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे, एत्थ' णं सोहम्माणं देवाणं बत्तीसं विमाणावाससयसहस्साई भवंति इति मक्खायं । ते णं विमाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ १२५. तेसिं णं विमाणाणं बहुमज्झदेसभाए पंच वडेंसया पण्णत्ता, तं जहा-असोगवडेंसए सत्तवण्णव.सए' चंपगवडेंसए चूयव.सए मज्झे सोधम्मवडेंसए ते णं वडेंसगा सव्वरयणामया अच्छा जाव' पडिरूवा ।।। १२६. तस्स णं सोधम्मवडेंसगस्स महाविमाणस्स पुरत्थिमेणं तिरियं असंखेज्जाइं जोयणसयसहस्साई वीईवइत्ता, एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स सूरियाभे विमाणे पण्णत्तेअद्धतेरस जोयणसयसहस्साई आयामविक्खंभेणं, गुणयालीसं च सयसहस्साई वावन्नं च सहस्साइं अट्ठ य अडयाले जोयणसते परिक्खेवेणं, [सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे ?] ॥ ० पागार-पदं १२७. से णं एगेणं पागारेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। से णं पागारे तिण्णि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले एग जोयणसयं विक्खंभेणं, मज्झे पन्नासं जोयणाई विक्खंभेणं, उप्पि पणवीसं जोयणाई विक्खंभेणं । मूले वित्थिपणे मज्झे संखित्ते उप्पि तणुए, गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वरयणामए" अच्छे जाव पडिरूवे॥ • कविसीस-पदं १२८. से णं पागारे णाणाविहपंचवण्णेहि कविसीसएहिं उवसोभिए, तं जहाकिण्हेहिं नीलेहिं लोहितेहिं हालिद्देहिं सुक्किलेहिं कविसीसएहिं । ते णं कविसीसगा एगं जोयणं आयामेणं, अद्धजोयणं विक्खंभेणं, देसूणं जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामया" अच्छा जाव" पडिरूवा ॥ १. प्रतिषु एष पाठो नास्ति। वृत्तिगतस्य ६. कोष्ठकवर्ती पाठः प्रतिषु नोपलभ्यते, किन्तु 'सर्वात्मना रत्नमयः यावत् करणात् अच्छे १२४ सूत्रक्रमेण अत्रासौ यूज्यते। संक्षिप्तसण्हे घट्टे' इति पाठस्यानुसारेण स्वीकृतोयं पद्धत्यनुसारेण लिपिकारनं लिखित इत्यनपाठः। मीयते । २. तत्र (व)। १०. पणुवीसं (घ)। ३. विमाणवास (क, ख, ग, छ)। ११. सव्वकणगामए (क, ख, ग, घ, च, छ)। ४. मक्खाया (क, ख, ग, घ, च, छ)। १२. राय० सू० २३ । ५. सहिवण्ण (क, ख, ग)। १३. णाणामणिपंचवण्णेहिं (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. राय० सू० २१। । १४. सव्वमणिया (क, ख, ग, घ, च, छ) । .. ७. वीतीवइज्जा (क, ख, ग, घ)। १५. राय० सू० २१। ८. ऊयालीसं (क, ख, ग, घ)। Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं • द्वार-पदं १२६. सूरियाभस्स णं विमाणस्स एगमेगाए बाहाए दारसहस्सं-दारसहस्सं भवतीति मक्खायं । ते णं दारा पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाइं जोयणसयाई विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगथूभियागा ईहामिय-उसभ-तुरग-णर-मगर-विहगवालग-किन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कंजर - वणलय - पउमलयभत्तिचित्ता खंभुग्गय - वइरवेइयापरिगयाभिरामा विज्जाहर-जमल-जुयल-जंतजुत्ता पिव अच्चीसहस्समालणीया' रूवगसहस्सकलिया भिसमाणा भिब्भिसमाणा चक्खुल्लोयणलेसा सुहफासा सस्सिरीयरूवा ।। १३०. वण्णो दाराणं तेसि होइ, तं जहा-वइरामया णिम्मा, रिट्ठामया पइट्ठाणा, वेरुलियमया खंभा, जायरूवोवचिय - पवरपंचवण्णमणिरयणकोट्टिमतला, हंसगब्भमया' एलुया, गोमेज्जमया इंदकीला, लोहियक्खमईओ दारचेडाओ, जोईरसमया उत्तरंगा, लोहियक्खमईओ सूईओ, वइरामया संधी, नाणामणिमया समुग्गया, वइरामया अग्गला अग्गलपासाया, रययामईओ' आवत्तणपेढियाओ, अंकुत्तरपासगा, निरंतरियघणकवाडा, भित्तीसु चेव भित्तिगुलिया छप्पन्ना तिण्णि होंति, गोमाणसिया तत्तिया, णाणामणिरयणवालरूवग'-लीलट्ठियसालभंजियागा, वइरामया कूडा, रययामया' उस्सेहा, सव्वतवणिज्जमया उल्लोया, णाणामणिरयणजालपंजर-मणिवंसग -लोहियक्ख-पडिवंसग'-रययभोमा', अंकामया पक्खा पक्खबाहाओ, जोईरसमया" वंसा वंसकवेल्लुयाओ", रययामईओ पट्टियाओ, जायरूवमईओ ओहाडणीओ, वइरामईओ उवरिपुंछणीओ, सव्वसेयरययामए छायणे, अंकमय-कणगकूडतवणिज्जथूभियागा, सेया 'संखतल-विमल-निम्मल-दधिघण-गोखीरफेणरययणिगरप्पगासा, तिलग-रयणद्धचंदचित्ता", नाणामणिदामालंकिया, अंतो बहिं च सण्हा, तवणिज्ज-वालुया-पत्थडा, सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा॥ • वंदणकलस-पदं १३१. तेसि णं दाराणं उभओ पासे" दुहओ निसीहियाए सोलस-सोलस वंदणकलसपरिवाडीओ पण्णत्ताओ। ते णं वंदणकलसा वरकमलपइट्ठाणा सुरभिवरवारिपडिपुण्णा १. "मालिणीया (क, ख, ग, घ, च, छ)। पाठः । २. गया (क, ख, ग, घ, च)। ७. वंस (क, ख, ग, घ, च, छ) । ३. अतः परं जीवाजीवाभिगमे (३।३००) ८. वंस (क, ख, ग, घ, च, छ)। 'वेरुलियामया कवाडा'इति पाठी विद्यते। ६. भोम्मा (क, ख, ग, च)। ४. वइरामई (जी० ३।३००); आह च जीवा- १०. रसा (क, ख, ग, छ) । भिगममूलटीकाकार :-'अर्गलाप्रासादा यत्रा- ११. कवेडयातो (छ) । गला नियम्यते' इति । एतौ द्वौ अपि वज्ररत्न- १२. संखतल - विमल-निम्मल-दहिघण-गोखीरफेणमयौ ()। रययनियर-प्पगासद्धचंदचित्ताई (वृपा); 'इत्ता ५. वालगरूबग (क, ख, ग, घ, च, छ) । (क, ख, ग, घ, च)। ६. रयणामय (क, ख, ग, घ, च, छ); जीवाजीवा- १३. पासा (क, ख, ग, च, छ) । भिगमस्य (३।३००) अनुसारेण स्वीकृतोयं Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो ११३ चंदणकयचच्चागा आविद्धकंठेगुणा पउमुप्पलपिधाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव' पडिरूवा' महया-महया महिंदकुंभसमाणा' पण्णत्ता समणाउसो ! ।। ० णागदंत-पदं १३२. तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस-सोलस णागदंतपरिवाडीओ पण्णत्ताओ। ते णं नागदंता मुत्ताजालंतरुसियहेमजाल-गवक्खजाल-खिखिणीघंटाजालपरिक्खित्ता" अब्भुग्गया अभिणिसिट्ठा तिरियं सुसंपग्गहिया अहेपन्नगद्धरूवगा पन्नगद्धसंठाणसंठिया सव्ववइरामया अच्छा जाव' पडिरूवा महया-महया गयदंतसमाणा पण्णत्ता समणाउसो! तेसु णं णागदंतएसु बहवे किण्हसुत्तबद्धा वग्धारियमल्लदामकलावा णीलसुत्तबद्धा वग्घारियमल्लदामकलावा लोहितसुत्तबद्धा वग्घारियमल्लदामकलावा हालिद्दसुत्तबद्धा वग्धारियमल्लदामकलावा सुक्किलसुत्तबद्धा वग्धारियमल्लदामकलावा । ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा सुवण्णपयरमंडियगा नाणामणिरयण-विविहहारद्धहार उवसोभियसमुदया“ •ईसिं अण्णमण्णमसंपत्ता पुव्वावरदाहिणुत्तरागएहिं वाएहिं मंदायंमंदायं एज्जमाणा-एज्जमाणा पलंबमाणा-पलंबमाणा पझंझमाणा-पझंझमाणा उरालेणं णुण्णणं मणहरेणं कण्णमणणिव्वतिकरेणं सद्देणं ते पएसे सव्वओ समता आपूरेमाणाआपूरेमाणा सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति। ___ तेसि णं णागदंताणं उरि अण्णाओ सोलस-सोलस नागदंतपरिवाडीओ पण्णत्ताओ। ते णं नागदंता' 'मुत्ताजालंतरुसियहेमजाल - गवक्खजाल - खिखिणीघंटाजालपरिक्खित्ता अब्भुग्गया अभिणिसिट्ठा तिरियं सुसंपग्गहिया अहेपन्नगद्धरूवा पन्नगद्धसंठाणसंठिया सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा महया-महया गयदंतसमाणा पण्णत्ता समणाउसो ! तेसु णं णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता। तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वेरुलियामईओ धूवघडीओ पण्णत्ताओ। ताओ णं धूवघडीओ कालागरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्क-धूव-मघमघेतगंधुद्धयाभिरामाओ सुगंधवरगंधियाओ गंधवट्टिभूयाओ ओरालेणं मणुण्णेणं मणहरेणं घाणमणणिव्वुतिकरेणं गंधेणं ते पदेसे सव्वओ समंता आपूरेमाणा-आपूरेमाणा" 'सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ ० सालभंजिया-पदं १३३. तेसिं णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस-सोलस सालभंजिया१. राय० सू० २१ । ६. राय० सू० २१ । २. पडिरूवगा (वृ)। ७. मण्डितानि (व) : पतरगमंडिता (जी. ३. इंदकुंभसमाणा (क, ख, ग, घ, च, छ); ३।३०२); प्रस्तुतागमस्य चत्वारिंशत्तमे सूत्रे जीवाजीवाभिगमे (३।३०१) पि 'महिंदकुंभ- पयरमंडियागा' इति पाठो विद्यते । समाणा' इति पाठो विद्यते ।। ८. सं० पा०- समुदया जाव सिरीए । ४. जाला-खिखिणीजाल (क, ख, ग, घ, च, ६. सं० पा०-नागदंता तं चेव गयदंतसमाणा। छ)। १०. सं० पा०-आपूरेमाणा जाव चिट्ठति । ५. सुसंपरिग्गहिया (वृ)। Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ रायपसेणइयं परिवाडीओ पण्णत्ताओ। ताओ णं सालभंजियाओ लीलट्ठियाओ सुपइट्ठियाओ सुअलंकियाओ' णाणाविहरागवसणाओ णाणामल्लपिणद्धाओ मुट्टिगेज्झसुमज्झाओ आमेलग-जमलजुयल-वट्टिय-अब्भुण्णय-पीण-रइय-संठियपओहराओ' रत्तावंगाओ असियकेसीओ मिउविसय-पसत्थ-लक्खण-संवेल्लियग्गसिरयाओ ईसि असोगवरपायवसमुट्ठियाओ वामहत्थग्गहियग्गसालाओ ईसिं अद्धच्छिक डक्खचिट्ठितेहिं लूसमाणीओ विव, चक्खुल्लोयणलेसेहि अण्णमण्णं खिज्जमाणीओ विव, पुढविपरिणामाओ सासयभावमुवगयाओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ चंदाहियसोमदंसणाओ उक्का विव उज्जोवेमाणाओ विज्जु-घण-मिरिय-सूर-दिप्पंत-तेय-अहिययर-सन्निकासाओ सिंगारागारचारुवेसाओ पासाईयाओ' 'दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ तेयसा अतीव-अतीव उवसोभेमाणीओउवसोभेमाणीओ चिट्ठति ॥ ० जालकडग-पदं १३४. तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस-सोलस 'जालकडगा पण्णत्ता" । ते णं जालकडगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ • घंटा-पदं १३५. तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ निसीहियाए सोलस-सोलस घंटापरिवाडीओ पण्णत्ताओ । तासि णं घंटाणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते तं जहा-जंबूणयामईओ घंटाओ. वइरामईओ लालाओ, णाणामणिमया घंटापासा, तवणिज्जामईओ संकलाओ, रययामयाओ रज्जूओ । ताओ णं घंटाओ ओहस्सराओ मेहस्सराओ हंसस्सराओ कुंचस्सराओ सीहस्सराओ दुंदुहिस्सराओ णंदिस्सराओ णंदिघोसाओ मंजुस्सराओ मंजुघोसाओ सुस्सराओ सुस्सरघोसाओ ओरालेणं मणुण्णेणं मणहरेणं कण्णमणनिव्वुतिकरेणं सद्देणं ते पदेसे सव्वओ समंता आपूरेमाणाओ-आपूरेमाणाओं' 'सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणाओ-उवसोभेमाणाओ चिट्ठति ॥ ० वणमाला-पदं १३६. तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस-सोलस वणमालापरिवाडीओ पण्णत्ताओ । ताओ णं वणमालाओ णाणादुमलय-किसलय-पल्लव-समाउलाओ छप्पयपरिभुज्जमाण-सोहंत-सस्सिरीयाओ पासाईयाओ" 'दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ १. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। याम् । २. संठियपीवरपओहराओ (क, ख, ग, घ, च, ४. °माणाओ (घ) । छ)। ५. लेसातो (क, ख, ग, घ)। ३. कडक (क, घ, च); 'कडक्क (ख, ग); ६. सं० पा०-पासाईयाओ जाव चिट्ठति । वृत्तिकारेण 'अर्ध' तिर्यग् वलितं इति व्याख्या- ७. जालकडगपरिवाडीओ पण्णत्ताओ (क, ख, ग, तम् । जीवाजीवाभिगमस्य (पत्र २०७) वृत्तौ घ, च, छ) । 'अड्ड' तिर्यग् वलितं इति व्याख्यातमस्ति। ८. "णिग्घोसाओ (क, ख, ग, घ, च, छ)। अत्रापि 'अड्डु' इति पदं युक्तमस्ति। एतद् ६.सं० पा०—आपूरेमाणाओ जाव चिट्ठति । देशीभाषा पदं विद्यते, 'आडो' इति भाषा- १०.सं० पा०-पासाईओ। Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो पडरूवाओ ॥ ० पगंठग-पदं १३७. तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ णिसीहियाए सोलस - सोलस पगंठगा पण्णत्ता । ते णं पगंठगा अड्ढाइज्जाई जोयणसयाई आयाम विक्खंभेणं, पणवीसं जोयणसयं बाहल्लेणं, सव्ववइरामया अच्छा जाव' पडिरूवा । तेसि णं पगंठगाणं उवरिं पत्तेयं-पत्तेयं पासायवडेंसगा पण्णत्ता । तेणं पासायवडेंसगा अड्ढाइज्जाई जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, पणवीसं' जोयणसयं विक्खंभेणं', अब्भुग्गयमूसिय-पहसिया इव, विविह्मणिरयणभत्तिचित्ता वारद्धय विजयवैजयंतीपडाग-च्छत्ताइछत्तकलिया तुंगा गगणतलमणुलिहंत सिहरा जालंतररयण' पंजरुम्मिलियव्व मणिकणगथूभियागा वियसियस्यवत्त - पोंडरीय'- तिलगरयणद्धचंदचित्ता' अंतोहिं च सण्हा तवणिज्ज' - वालुयापत्थडा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा जाव दामा' ॥ • तोरण-पदं १३८. तेसि णं दाराणं उभओ पासे [ दुहओ णिसीहियाए" ? ] सोलस - सोलस तोरणा पण्णत्ता – णाणामणिमया णाणामणिमएसु खंभेसु उवणिविद्वसन्निविट्ठा जाव" पउमहत्थगा ॥ १३६. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो सालभंजियाओ " पण्णत्ताओ । जहा ट्ठा तव ॥ १४०. तेसि णं तोरणाणं पुरओ नागदंतगा पण्णत्ता । जहा हेट्ठा जाव" दामा || १४१. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयसंघाडा गयसंघाडा नरसंघाडा किन्नर संघाडा faraiघाडा महोरगसंघाडा गंधव्वसंघाडा उसभसंघाडा सध्वरयणामया अच्छा जाव" पडिरूवा ॥ १. राय० सू० २१ । २. पणु (च) । ३. अत्र 'आयाम - विक्खंभेणं' इति पाठ: अपेक्षितोस्ति । जीवाजीवाभिगमे ( ३।३०७ ) एततुल्यप्रकरणे ' आयाम - विक्खंभेणं' इति पाठो विद्यते । ४. पहासिया ( छ, वृ ) । ५. सूत्रे चात्र विभक्तिलोपः प्राकृतत्वात् (वृ) । ६. रीया (क, ख, ग, घ ) । ७. अतो आदर्शेषु 'णाणामणिदामालंकिया' इति पाठो लभ्यते । वृत्तौ नास्ति व्याख्यातोसौ । जीवाजीवाभिगमवृत्तावपि ( पत्र २०६) नास्ति व्याख्यातः । मुद्रितवृत्तौअसौ केनापि प्रक्षिप्तः । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेर्वृत्तित्रयेसौ व्याख्यातो दृश्यते । ८. णिज्जा (क, ख, ग, घ, च) । ११५ ६. जावदामा उवरि पगंठगाणं ज्झया छत्ताइच्छत्ता (क, ख, ग, घ, च, छ) 'दामा' इति पाठग्रहणेन ३३ - ४० सूत्रस्य 'चिट्ठति' पर्यन्तः पाठो ग्राह्यः । १०. उभयोः पार्श्वयोरेकैकनैषेधिकीभावेन या द्विधा नैषेधिकी तस्याम् — इति वृत्त्यनुसारेण कोष्ठकान्तर्गतः पाठो युज्यते । ११. राय० सू० २०-२३ । १२. पुरतः प्रत्येकम् (वृ) । १३. सालि (च छ) । १४. राय० सू० १३३ । १५. राय० सू० १३२ । १६. राय० सू० २१ । १७. अतः परं जीवाजीवाभिगमे ( ३।३१८ ) संक्षिप्तपाठ एव स्वीकृतोस्ति । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ रायपसेणइयं १४२. "तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयपंतीओ। १४३. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयवीहीओ° ॥ १४४. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयमिहणाई ।। १४५. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो पउमलयाओ' 'दो दो नागलयाओ दो दो असोगलयाओ दो दो चंपगलयाओ दो दो चूयलयाओ दो दो वणलयाओ दो दो वासंतियलयाओ दो दो अइमुत्तयलयाओ दो दो कुंदलयाओ दो दो सामलयाओ णिच्चं कुसुमियाओ' •णिच्चं माइयाओ णिच्चं लवइयाओ णिच्चं थवइयाओ णिच्चं गुलइयाओ णिचं गोच्छियाओ णिच्चं जमलियाओ णिच्चं जुवलियाओ णिच्चं विणमियाओ णिच्चं पणमियाओ [णिच्चं सुविभत्त-पिंडि-मंजरि-वडेंसगधरीओ ?] णिच्चं कुसुमिय-माइय-लवइय-थवइयगुलइय-गोच्छिय-जमलिय-जुवलिय-विणमिय-पणमिय-सुविभत्त-पिडि-मंजरि-वडेंसगधरीओ 'सव्वरयणामईओ अच्छाओ" 'सण्हाओ लण्हाओ घट्ठाओ मट्ठाओ णीरयाओ निम्मलाओ निप्पंकाओ निक्कंकडच्छायाओ सप्पभाओ समरीइयाओ सउज्जोयाओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ। १४६. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो दिसासोवत्थिया' पण्णत्ता-सव्वरयणामया" अच्छा पडिरूवा ॥ १४७. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो वंदणकलसा पण्णत्ता। ते णं वंदणकलसा वरकमलपइट्ठाणा' 'सुरभिवरवारिपडिपुण्णा चंदणकयचच्चागा आविद्धकंठेगुणा पउमुप्पलपिधाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा महया-महया महिंदकुंभसमाणा पण्णत्ता समणाउसो° ! ॥ १४८. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो भिंगारा पण्णत्ता । ते णं भिंगारा वरकमलपइट्ठाणा' 'सुरभिवरवारिपडिपुण्णा चंदणकयचच्चागा आविद्धकंठेगुणा पउमुप्पलपिधाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा महया मत्तगयमहामुहाकतिसमाणा" पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ १४६. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो आयंसा पण्णत्ता । तेसि णं आयंसाणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-तवणिज्जमया पगंठगा," अंकामया मंडला 'अणुग्घसितनिम्म१. सं० पा०–एवं पंतीओ वीही मिहुणाई;. ६. सं० पा०-वरकमलपइट्टाणा जाव महया। वीहीतो पंतीतो (क, ख, ग, घ, च, छ)। १०. मत्तगयमुहाकति° (क, ख, ग, घ, च, छ); २. राय० सू० १४१। मत्तगयमहामुहागिइ' (वृ)। ३. सं० पा०-पउमलयाओ जाव सामलयाओ। ११. अतः परं प्रयुक्तादर्शेषु एतादृशः पाठो ४. सं० पा०-कुसुमियाओ सव्वरयणामईओ। लभ्यते-वेरुलियमया सुरया वइरामया ५. "मय अच्छा (व); सं०पा०-अच्छाओ जाव दोवारंगा नानामणिया मंडला' एष वृत्ती पडिरूवाओ। नास्ति व्याख्यातः । जीवाजीवाभिगमादर्शष ६. अक्खयसोवत्थिया (क, ख, ग, घ, च, छ)। (३।३२२) एष पाठः किञ्चिद्भेदेनोप७. जाम्बूनदमया (वृपा)। लभ्यते-वेरुलियमया छरूहा वइरामया वरंगा ८, सं० पा०-वरकमलपइट्ठाणा तहेव । णाणामणिमया वलक्खा अंकमया मंडला । तस्य Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो ११७ लाए छायाए" समणुबद्धा, चंदमंडलपडिणिकासा महया-महया अद्धकायसमाणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ १५०. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो वइरनाभा थाला पण्णत्ता-अच्छ-तिच्छाडियसालि-तंदुल-णहसंदिट्ठ-पडिपुण्णा इव चिट्ठति सव्वजंबूणयमया अच्छा जाव पडिरूवा महया-महया रहचक्कसमाणा' पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ १५१. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो पातीओ पण्णत्ताओ। 'ताओ णं" पातीओ अच्छोदगपरिहत्थाओ णाणाविहस्स' फलहरियगस्स बहुपडिपुण्णाओ विव चिट्ठति सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ महया-महया गोकलिंजगचक्कसमाणीओ' पण्णत्ताओ समणाउसो! ॥ १५२. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो सुपइट्ठगा" पण्णत्ता । 'ते णं सुपइट्टगा सुसव्वोसहिपडिपुण्णा णाणाविहस्स च पसाधणभंडस्स बहुपडिपुण्णा" इव चिट्ठति सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ १५३. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो मणोगुलियाओं पण्णत्ताओ। तासु णं मणोगुलियासु बहवे सुवण्णरुप्पामया फलगा पण्णत्ता । तेसु णं सुवण्णरुप्पामएसु फलगेसु बहवे वइरामया नागदंतया पण्णत्ता । तेसु णं वइरामएसु णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता। तेसु णं रययामएसु" सिक्कगेसु बहवे वायकरगा पण्णत्ता। ते णं वायकारगा किण्हसुत्तसिक्कग-गवच्छिया" णीलसुत्तसिक्कग-गवच्छिया लोहियसुत्तसिक्कग-गवच्छिया हालिद्दसुत्तसिक्कग-गवच्छिया सुक्किलसुत्तसिक्कग-गवच्छिया सव्ववेरुलियमया अच्छा जाव पडिरूवा॥ वत्तावपि (पत्र-२१३) असो व्याख्यातोस्ति । ७. सुपइट्टा (क, ख, ग, घ, च, छ) । प्रस्तुतागमे वृत्तिकारेण मलयगिरिणा उपलब्धा- ८. णाणाविहभंडविरइया (क, ख, ग, घ, च, दर्शष नैष पाठो दृष्टः तेन न व्याख्यातः छ); मूलपाठः वृत्त्याधारेण स्वीकृतोस्ति । अथवा उत्तरतिििलपिकारैः जीवाजीवा जीवाजीवाभिगमे (३।३२५) पि एतादृश भिगमादर्शमनुसृत्य अत्रापि प्रक्षिप्तः अथवा एव पाठो दृश्यते। वाचना भेदस्यापि संभावन कर्तं शक्या। ६. मणगु° (क, ख, ग, घ); मणिगु (च, छ)। १. निम्मलाते छायाते (क, ख, ग, घ); १०. वइरामया (क, ख, ग, घ, च, छ); वृत्ती ____x (च, छ)। तथा जीवाजीवाभिगमस्य (३२३२६) २. सालिय (क, ख, ग, घ, च, छ) । आदर्शेषु वृत्तावपि (पत्र २१४) च रजतप३. रहचक्कवालसमाणा (क, ख, ग, घ, च, छ); दमुपलभ्यते । प्रस्तुतागमस्यादर्शषु 'वइर' इति वृत्तौ 'रथचक्रसमानानि' इति व्याख्यात- पदं केनापि लिपिदोषादिकारणेन प्रविष्टममस्ति। जीवाजीवाभिगमे (३।३२३) पि भूत् । 'रहचक्कसमाणा' इति पाठोस्ति । ११. वइरामएसु (क, ख, ग, घ, च, छ)। ४. तोणं (क, ख, ग, घ, च)। १२. "सिक्का (क, ख, ग, घ, च, छ)। ५. णाणामणिपंचवण्णस्स (क, ख, ग, घ, छ)। १३. गवत्थिता (घ) । ६. गोकलिंजर (क, ख, ग, घ, च, छ)। पता Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं १५४. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो चित्ता रयणकरंडगा पण्णत्ता-से जहाणामए रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चित्ते रयणकरंडए वेरुलियमणि'-फालियपडल-पच्चोयडे साए पहाए ते पएसे सव्वतो समंता ओभासेति उज्जोवेति तावेति पभासेति', एवमेव तेवि चित्ता रयणकरंडगा साए पभाए ते पएसे सव्वओ समंता ओभासेंति उज्जोवेति तावेंति पभासेंति । १५५. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयकंठा गयकंठा नरकंठा किन्नरकंठा किंपुरिसकंठा महोरगकंठा गंधव्वकंठा उसभकंठा सव्वरयणामया' अच्छा जाव पडिरूवा ॥ १५६. 'तेसि णं तोरणाणं पुरओ' दो दो पुप्फचंगेरीओ मल्लचंगेरीओ चुण्णचंगेरीओ गंधचंरीओ वत्थचंगेरीओ आभरणचंगेरीओ सिद्धत्थचंगेरीओ लोमहत्थचंगेरीओ पण्णत्ताओ सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ ।। १५७. 'तेसि णं तोरणाणं" परओ दो दो पप्फपडलगाई मल्लपडलगाइं चण्णपडलगाई गंधपडलगाई वत्थपडलगाई आभरणपडलगाइं सिद्धत्थपडलगाइं लोमहत्थपडलगाई पण्णत्ताई सव्वरयणामयाइं अच्छाई 'सण्हाइं लण्हाइं घट्ठाई मट्ठाइं णीरयाई निम्मलाई निप्पंकाई निक्कंकडच्छायाइं सप्पभाई समरीइयाइं सउज्जोयाइं पासादीयाई दरिसणिज्जाइं अभिरूवाइं पडिरूवाई ।। १५८. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो सीहासणा पण्णत्ता। तेसि णं सीहासणाणं वण्णाओ जाव" दामा॥ १५९. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो रुप्पमया" छत्ता पण्णत्ता। ते णं छत्ता वेरुलियविमलदंडा" जंबूणयकण्णिया वइरसंधी मुत्ताजालपरिगया अट्टसहस्सवरकंचणसलागा दद्दरमलयसुगंधि-सव्वोउयसुरभिसीयलच्छाया मंगलभत्तिचित्ता चंदागारोवमा ॥ १६०. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो चामराओ पण्णत्ताओ । ताओ णं चामराओ 'चंदप्पभ-वेरुलिय-वइर-नानामणिरयणखचियचित्तदंडाओ'" 'सुहमरययदीहवालाओ संखंककुंद - दगरय - अमयमहियफेणपुंजसन्निगासातो५ सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। १. वेरुलिया (क, ख, ग, घ, च)। १०. सं० पा०-अच्छाई जाव पडिरूवाइं। २. फलिहौं (क, ख, ग, घ, च, छ)। ११. राय० सू० ३७-४० । ३. पगासति (क, ख, ग, घ, च, छ)। १२. रुप्पच्छदा (जीवा० ३।३३२) । ४. पगासेंति (क, ख, ग, घ)। १३. तिविठ्ठदंडा (क, ख, ग); निविट्ठदंडा ५. वइरामया (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. तेसु णं हयकंठएसु जाव उसभकंठएसु (क, ख, १४. णाणामणिकणगरयणविमलमहरिहतवणिज्जुज्जग, घ, च, छ) । लविचित्तदंडाओ चिल्लियाओ (क, ख, ग, घ, ७. सिद्धत्था (ख, ग, च, छ); सिद्धत्थग' (वृ)। च, छ) । ८. तासु णं पुप्फचंगेरीसु जाव लोमहत्थचंगेरीसु १५. संखक-कुंद - दगरय-अमयमहियफेणपुंजसन्निगा__क, ख, ग, घ, च, छ) । साओ सुहुमरययदीहवालाओ (क, ख, ग, घ, ६. सं० पा०-पुप्फपडलगाइं जाव लोमहत्थपड- च, छ)। लगाई। Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो ११६ १६१. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो तेल्लसमुग्गा कोट्ठसमुग्गा पत्तसमुग्गा' चोयगसमुग्गा तगरसमुग्गा एलासमुग्गा हरियालसमुग्गा हिंगुलयसमुग्गा मणोसिलासमुग्गा अंजणसमुग्गा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ० दार पदं १६२. सूरिया णं विमाणे एगमेगे दारे अट्ठसयं चक्कज्झयाणं, एवं मिगज्झयाणं' गरुडज्झयाणं' रुच्छज्झयाणं छत्तज्भयाणं पिच्छज्झायाणं सउणिज्झयाणं सीहज्झयाणं, उसभज्झायाणं, अट्ठसय सेयाणं चउ-विसाणाणं नागवरकेऊणं ॥ १६३. एवामेव सपुव्वावरेणं सूरियाभे विमाणे एगमेगे दारे 'असीयं असीयं" केउसहस्सं भवति इति मक्खायं ॥ १६४. 'तेसि णं दाराणं एगमेगे दारे" पण-पर्णाट्ठ भोमा पण्णत्ता । तेसि णं भोमाणं भूमिभागा उल्लोया य भाणियव्वा " [तेसि णं भोमाणं बहुमज्झदेसभाए जाणि तेत्तीमाणि भोमाणि " ] । तेसि णं भोमाणं बहुमज्झदेसभागे पत्तेयं पत्तेयं सीहासणे [पण्णत्ते ? ] सीहासणवण्णओ" सपरिवारो । अवसेसेसु भोमेसु पत्तेयं - पत्तेयं 'सीहासणे पण्णत्ते"" "I १६५. तेसि णं दाराणं उत्तरागारा" सोलसविहेहि रयणेहिं उवसोभिया, तं जहा - रयणेहिं" "वइरेहिं वेरुलिएहिं लोहियक्खेहिं मसारगल्लेहिं हंसगब्भेहिं पुलगेहिं सोगंधिएहिं जोईरसेहिं अंजणेहिं अंजणपुलगेहि रयएहिं जायरूवेहि अंकेहिं फलिहेहिं रिट्ठेहिं ॥ १६६. तेसि णं दाराणं उप्पिं अट्ठट्ठ मंगलगा" पण्णत्ता" । १. x ( क, ख, ग, घ ) । २. हिंगुरु ( क ) ; हिंगुलु ( ख, ग, व ) । ३. वारे (क, ख, ग, घ, च, छ) । ४. असयं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. मिगि (च ) । ६. जंग० ( च, छ) । ७. पण्डितबेचरदासजीसंपादितवृत्तौ ( पृ० १८० ) 'रुद्ध' इतिपदं मुद्रितमस्ति, किन्तु नास्यात्रसङ्गतिर्दृश्यते । प्रस्तुतसूत्रस्य हस्तलिखितवृत्तौ 'ऋच्छ' इति पदमस्ति । 'घ' संकेतितादर्शेपि 'ऋच्छ' इतिपदं लभ्यते । जीवाजीवाभिगमसूत्रस्य ( ३।३२५) हस्तलिखितवृत्तावपि 'ऋच्छ' इतिपदं निर्दिष्ट मस्ति । शेषप्रयुक्ता - दषु एतत् पदं अस्य स्थाने वा अन्यत् पदमनुपलब्धमस्ति । ८. आसीयं (क, ख, ग, च) ; असीयं (घ, छ) । ६. सुरिया विमाणे (क, ख, ग, घ, च, छ) । १०. राय० सू० २४-३१, ३४ । ११. कोष्ठक वर्तिपाठः आदर्शेषु नोपलभ्यते, वृत्तावस्ति व्याख्यातः - बहुमध्यदेशभागे यानि त्रयस्त्रिशत्तमानि भौमानि । जीवाजीवाभिगमे ( ३१३३६ ) एतत् संवादी पाठो विद्यते । १२. राय० सू० ३७-४४ । १३. भद्दासणा पण्णत्ता (क, ख, ग, घ, च, छ ) ; शेषेषु च भौमेषु प्रत्येकमेकैकं सिंहासनं परिवारहितम् (वृ) । १४. उत्तिमा (क, ख, ग, ग, च, छ ) ; उवरिमा ( वृपा) । १५. सं० पा० – रयणेहि जाव रिट्ठेहि । १६. सं० पा० - मंगलगा सज्झया जाव छत्ताति छत्ता । १७. राय० सू० २१ । Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० १६७. तेसि णं दाराणं उप्पिं बहवे किण्हचामरज्झया" | १६८. तेसि णं दाराणं उप्पिं बहवे छत्तातिछत्ता ॥ १६९. 'एवामेव सपुव्वावरेणं सूरियाभे विमाणे चत्तारि दारसहस्सा भवतीति मक्खायं ॥ • वणसंड-पदं १७० - सूरियाभस्स विमाणस्स चउद्दिसिं पंच जोयणसयाई अवाहाए चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा - 'असोगवणे, सत्तवण्णवणे चंपगवणे, वूयवणे" पुरत्थि मेणं' असोगवणे, दाहिणं सत्तवण्णवणे, पच्चत्थिमेणं चंपगवणे, उत्तरेणं चूयवणे । तेणं वणसंडा साइरेगाई अद्धतेरस जोयणसय सहस्साइं आयामेणं, पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं, 'पत्तेयं पत्तेयं" पगारपरिखित्ता 'किण्हा किण्होभासो" "नीला नीलोभासा हरिया हरिओभासा सीया सीओ भासा णिद्धा णिद्ध भासा तिव्वा तिव्वोभासा किण्हा किण्हच्छाया नीला नीलच्छाया हरिया हरियच्छाया सीया सीयच्छाया गिद्धा णिद्धच्छाया तिव्वा तिव्वच्छाया घणकडियकडच्छाया" रम्मा महामेहणिकुरंबभूया वणसंडवण्णओ" । o वणसंड-भूमिभाग-पदं १७१. तेसि णं वणसंडाणं अंतो वहुसमरणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता - से जहानामए आलिंगपुखरेति वा जाव" णाणाविह" पंचवण्णेहि 'मणीहि य" तणेहि य उवसोभिया" । १७२. तेसि णं गंधो फासो णायव्वो" जहक्कमं ॥ १७३. तेसि णं भंते ! तणाण य मणीण य पुव्वावरदाहिणुत्तरागतेहिं वातेहिं १. राय० सू० २२ । २. राय० सू० २३ । ३. x (वृ ) ? एवामेव ''मक्खायं (वृपा) । ४. आबाहाते (क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. X ( क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. पुव्वेणं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. जोयणसहस्साइं ( च, छ) । ८. पत्तेयं (क, ख, ग, घ, च) । ६. किण्हा किण्होभासा जाव पडिमोयणा सुरम्मा (वृ); अत्र वृत्तिकृतान्येपि केचिच्छन्दा व्याख्याताः । सं० पा० - किण्होभासा ते णं पायवा मूलमंतो । १०. वृत्तौ यावत्पदसूचितः पाठो व्याख्यातोस्ति । तत्र 'घणasaडियच्छाया' इति पाठस्य उपलभ्यते—'घनकडितडियच्छाया, व्याख्या रायपसेणइयं इति इह शरीरस्य मध्यभागे कटिस्ततोऽन्यस्यापि मध्यभागः कटिरिव कटिरित्युच्यते, कटिस्तटमिव कटितटं घना अन्योऽन्यशाखाप्रशाखानुप्रवेशतो निविडा कटितटे-मध्यभागे छाया येषां ते तथा मध्यभागे निविडतरच्छाया इत्यर्थः । अस्माभिः यावत्पदसूचितः पाठ: औपपाति कादवतारितः तेन तदनुसारी एव पाठः स्वीकृतः । द्रष्टव्यं औपपातिक ( सू० ४ ) सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ११. ओ० सू० ५-७ । १२. राय० सू० २४ । १३. णाणामणि ( क ) । १४. x (क, च, छ) । १५. राय० सू० २४-२६ । १६. राय० सू० ३०, ३१ । Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो 'मंदाय - मंदा" एइयाणं वेइयाणं 'कंपियाणं चालियाणं फंदियाणं” घट्टियाणं खोभियाण उदीरयाणं केरिस सद्दे भवइ ? गोयमा ! से जहानामए सीयाए वा संदमाणीए वा रहस्स वा सच्छत्तस्स सज्झयस्स सघंटस्स सपडागस्स सतोरणवरस्स सनंदिघोसस्स सखिखिणिहेमजालपरिखित्तस्स हेमवय-चित्तविचित्त'- तिणिस-कणगणिज्जुत्तदाख्यायस्स सुपिणद्धारकमंडलधुरागस्स' कालायससुकयणेमिजंतकम्मस्स आइण्णवरतुरगसुसंपउत्तस्स कुसलणरच्छेयसा रहि- सुसंपरिग्गहियस्स' सरसय बत्तीस तोण-परिमंडियस्स सकंकडावयंसगस्स सचाव-सर-पहरण- आवरण भरियजोह जुज्झ' - सज्जस्स रायंगणंसि वा रायंते उरंसि वा, रम्मंसि वा मणिकोट्टिमतलंसि अभिक्खणं - अभिक्खणं अभिघट्टिज्जमाणस्स उराला मण्णा मोहरा कण्ण मणनिव्वुइकरा सद्दा सव्वओ समंता अभिणिस्सवंति, भवेयारूवे सिया ? णो इणट्ठे समट्ठे । से जहाणामए वेयालियवीण ए उत्तरमंदा-मुच्छियाए" अंके" सुपट्टियाए कुसल नरनारिसुसंपग्गहियाते चंदण-सार-निम्मिय- कोण-परिघट्टियाए पुव्वरत्तावरत्तकालसमयम्मि मंदायं मंदायं एइयाए वेश्याए [ कंपियाए" ] चालियाए [ फंदियाएं ? ] घट्टियाए खोभियाए उदीरियाए ओराला मणुष्णा मणहरा कण्णमणनिव्वुइकरा सद्दा सव्वओ समंता अभिनिस्सवंति, भवेयारूवे सिया ? णो इणट्ठे समट्ठे । से जहा नामए किन्नराण वा किंपुरिसाण वा महोरगाण वा गंधव्वाण वा भद्दसालवणगयाणं वा नंदणवणगयाणं वा 'सोमणसवणगयाणं वा"" पडगवणगयाणं वा हिमवंत मलयमंदरगिरि"-गुहासमन्नागयाणं वा एगओ सहियाणं " सन्निसन्नाणं समुव्विद्वाण" पमुइयपक्की लियाणं गीयरइ-गंधव्वहरिसियमणाणं" गज्जं पज्जं कत्थं गेयं पयबद्धं पायबद्धं १. मंदाय (क, ख, ग, घ, च, छ) । २. चालिया (क, ख, ग, घ, च) ; चलियाणं स्पन्दियाणं (छ) । ३. छ प्रतौ 'विचित्त' इति पाठोस्ति, अन्यासु च १५. x (क, ख, ग, घ, च) । प्रतिषु 'चित्त' इति पाठः, किन्तु वृत्तौ जीवाजीवाभिगमे ( ३।२८५) तद्वृत्तौ ( पत्र १९२ ) च - चित्रविचित्रं - मनोहारिचित्रोपेतम् इति व्याख्यातमस्ति । ४. णिज्जत्त' (क, ख, ग, घ, च) । ५. द्धाचक्क° (क, ख, ग, च) । ६. संसंपग्ग (क, ख, ग, घ, च, छ ) । ७. कंकडा° (क, ख, ग, घ, च) । ८. भरियज्भ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. नियट्टिज्जमाणस्स उराला (छ) । १०. x (वृ) । ११. समुच्छियाए ( च, छ ) । १२. अंक (क, च, छ); अंक ( ख, ग, घ ) । १३,१४. अस्मिन्नेव सूत्रे पूर्वं 'कंपियाणं चालियाणं फंदियाणं' इति पाठः, तद्वत् अत्र 'कंपियाए - फंदियाए' इति पाठो न लभ्यते । जीवाजीवाभिगमे ( ३।२८५) एष पाठ उपलब्धोस्ति । १२१ १६. कंदर (क, ख, ग, घ ) ; मंदिर (छ) । १७. एकयओ (क, ख, ग, घ ) । १८. संगहियाणं ( च, छ ) । १६. सहिताणं संमुहागयाणं समुपविद्वाणं संनिविट्ठाणं (जीवा० ३।२८५ ) । २०. अत्रादर्शेषु गंधव्वर इहसियमणाणं' इति पाठो लभ्यते । वृत्तौ नास्त्यसौ व्याख्यातः । पंडित बेचरदाससम्पादिते प्रस्तुतसूत्रे 'गंधव्वहसियमगाणं' इति पाठो दृश्यते । किन्तु अर्थ विचार या नैषोपि सम्यक प्रतिभाति । जीवाजीवाभिगमस्य ( ३।२८५) सन्दर्भे असौ पाठ: स्वीकृतोस्ति । २१. गच्छं (क, ख, ग, घ, च) । Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ रायपसेणइयं 'उक्खित्तायं पायत्तायं" मंदायं रोइयावसाणं सत्तसरसमन्नागयं अट्ठरससुसंपउत्तं छद्दोसविप्पमुक्कं एक्कारसालंकारं अट्ठगुणोववेयं, गुंजावंककुहरोवगूढ' रत्तं' तिट्ठाणकरणसुद्ध •सकुहरगुंजंतवंस-तंती-तल-ताल-लय-गहसुसंपउत्तं महुरं समं सललियं मणोहरं मउरिभियपयसंचारं सुरई सुणति वरचारुरूवं दिव्वं णट्टसज्जं गेयं पगीयाणं भवेयारूवे सिया ? हंता सिया ॥ ० वणसंड-जलासय-पदं १७४. तेसि णं वणसंडाणं तत्थ तत्थ 'देसे तहिं तहिं बहूओ खुड्डा-खुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरसीओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ अच्छाओ सहाओ रययामयकूलाओ समतीराओ वयरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण-सुज्झ-रयय-वालुयाओ वेरुलिय-मणि-फालिय-पडल-पच्चोयडाओ सुओयार"-सुउत्ताराओ णाणामणि-तित्थ"-सुबद्धाओ चाउक्कोणाओ आणुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ४२ संछन्नपत्तभिस-मणालाओ बहउप्पल-कमय-नलिण-सुभग-सोगंधियपोंडरीय-सयवत्त-सहस्सपत्त-केसरफुल्लोवचियाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ 'पडिहत्थभमंतमच्छकच्छभ-अणेगसउणमिहुणगपविचरिताओ पत्तेयंपत्तेयं पउमवरवेदियापरिक्खित्ताओ पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिखित्ताओ" अप्पेगइयाओ आसवोयगाओ 'अप्पेगइयाओ वारुणोयगाओ'१४ अप्पेगइयाओ खीरोयगाओ अप्पेगइयाओ घओयगाओ अप्पेगइयाओ खोदोयगाओ५ अप्पेगतियाओ पगईए" उयगरसेणं पण्णत्ताओ पासादीयाओं दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओं पडिरूवाओं। १७५. तासि णं खड्डाखुड्डियाणं वावीणं" 'पुक्खरिणीणं दीहियाणं गुंजालियाणं सरसीणं सरपंतियाणं सरसरपंतियाणं बिलपंतियाणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि - १. ओक्खित्तायं पयत्तायं (च, छ); उक्खित्तायं ८. 'कडाओ (क, ख, ग, घ, च, छ) । पवत्तायं (जीवा० ३।२८५)। ६ सज्झ (क, ख, ग, घ, च); सुब्भं (जीवा० २. x (क, ख, च, छ); जीवाजीवाभिगमे ३।२८६) ।। (३।२८५) प्यसावस्ति । १०. सुहोयार (जीवा० ३।२८६) । ३. गुंजावक्क (क, ख, ग, घ, च, छ)। गुंजा+ ११. ४ (क, ख, ग, घ, च)। अवंक --- गुंजावंक। १२. अणु (क, ख, ग, घ, च)। ४. x(क, ख, ग, घ, च, छ) । १३. x (क, ख, ग, घ, च, छ); जीवाजीवाभिगमे ५. सं० पा०-तिट्ठाणकरणसुद्धं पगीयाणं । (३।२८६) प्यसावस्ति । ६. तहिं तहिं देसे देसे (क, छ); तहिं देसे देसे १४. X(क, ख, ग, घ, च)। (ख, ग, घ, च)। जीवाजीवाभिगमे १५. खोयगातो (घ) । अतः परं जीवाजीवाभिगमे (३।२८६) पि 'देसे तहिं तहिं' इत्येव दृश्यते। (३।२६६) एतत् अतिरिक्तं विशेषणं लभ्यते७.४ (क, ख, ग, घ, च, छ); वृत्त्याधारेण अप्पेगतियाओ अमयरससमरसोदाओ। स्वीकृतोसौ पाठः । जीवाजीवाभिगमे (३।२८६) १६. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । पि दश्यते, तवृत्तावपि चास्ति व्याख्यातः । १७. सं० पा०-वावीणं जाव बिलपंतियाणं । Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १२३ तिसोमाणपडिरूवगा पण्णत्ता। तेसि णं तिसोमाणपडिरूवगाणं 'अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-वइरामया नेमा रिट्ठामया पतिढाणा, वेरुलियामया खंभा, सुवण्णरुप्पमया फलगा, लोहितक्खमइयाओ सूइओ, वयरामया संधी, णाणामणिमया अबलंबणा अवलंबणबाहाओ य पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा" ॥ १७६. "तेसि णं तिसोमाणपडिरूवगाणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं तोरणं पण्णत्तं ॥ १७७. तेसि णं तिसोमाणपडिरूवगाणं उप्पि अट्ठमंगलगा पण्णत्ता ॥ १७८. तेसि णं तिसोमाणपडिरूवगाणं उप्पि बहवे किण्हचामरज्झया ॥ १७९. तेसि णं तिसोमाणपडिरूवगाणं उप्पि बहवे छत्तातिछत्ता ॥ १८०. 'तासि णं खुड्डाखुड्डियाणं वावीणं 'पुक्खरिणीणं दीहियाणं गुंजालियाणं सरसीणं सरपंतियाणं सरसरपंतियाणं बिलपंतियाणं" तत्थ तत्थ 'देसे तहिं तहिं" बहवे उप्पायपव्वयगा नियइपव्वयगा" जगईपव्वयगा' दारुइज्जपव्वयगा दगमडवा दगमंचगा" दगमालगा दगपासायगा" उसड्डा" खुड्डखुड्डगा अंदोलगा पक्खंदोलगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा॥ १८१. तेसु" णं उप्पायपव्वएसु" •नियइपव्वएसु जगईपव्वएसु दारुइज्जपव्वएसु दगमंडएसु दगमंचएसु दगमालएसु दगपासायएसु उसड्डएसु खुड्डखुड्डएसु अंदोलएसु° पक्खंदोलएसु बहूई हंसासणाई कोंचासणाई गरुलासणाई उण्णयासणाई पणयासणाई दीहासणाई 'भद्दासणाई पक्खासणाई मगरासणाईसीहासणाइं पउमासणाई दिसासोवत्थियासणाई सव्वरयणामयाई अच्छाई जाव पडिरूवाई ॥ ० वणसंड-घरग-पदं १८२. तेसु णं वणसंडेसु तत्थ तत्थ 'देसे तहिं तहिं" बहवे आलिघरगा मालिघरगा कयलिघरगा लयाघरगा अच्छणधरगा पिच्छणघरगा मज्जणघरगा पसाधणघरगा गब्भ१. वण्णो (क, ख, ग, घ, च); वण्णतो (छ)। ११. जई (क, ख, ग)। २.सं० पा०-तोरणाणं झया छत्ताइछत्ता य १२. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। यव्वा । १३. पव्वयगा (क, ख, ग, घ, च)। ३. राय० सू० २०। १४. उसरदगा (क, ख, ग, घ, च, छ) । ४. राय० सू० २१ । १५. तेसि (क, ख, ग, घ, च, छ)। ५. राय० सू० २२ । १६. सं० पा०-उप्पायपव्वएसु पक्खंदोलएसु । ६. राय० सू० २३ । १७. पक्खासणाई मगरासणाई भद्दासणाई (क, ख, ७. सं० पा०-वावीणं जाव बिलपंतियाणं । ग, घ, छ)। ८. तासु (तासि) णं खुड्डावावीसु जाव बिलपंति- १८. उसभासणाई सीहासणाई (क, ख, ग, घ, ___ यासु (क, ख, ग, घ, च, छ)। च, छ)। ६. तहिं तहिं देसे देसे (क, ख, ग, घ); तेहि तेहिं १६. तहि तहि देसे देसे (क, ख, ग, घ, च, छ)। देसे देसे (च, छ)। २०.(क, ख, ग, घ, च)। १०. नियय (क, ख, ग, घ, च, छ, वृपा)। Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ रायपसेणइयं घरगा मोहणघरगा' सालघरगा जालघरगा 'कुसुमघरगा चित्तघरगा" गंधव्वघरगा आयंसघरगा' सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ १८३. तेसु णं आलिघरगेसु मालिघरगेसु कयलिघरगेसु लयाघरगेसु अच्छणघरगेसु पिच्छणघरगेसु मज्जणघरगेसु पसाधणघरगेसु गब्भघरगेसु मोहणघरगेसु सालघर गेसु जालघरगेसु कुसुमघरगेसु चित्तघरगेसु गंधव्वघरगेसु° आयंसघरगेसु तर्हि तहि घर सु बहूई हंसासणाई " " कोंचासणाई गरुलासणाई उण्णयासणाई पणयासणाई दीहासणाई भासणाई पक्खासणाई मगरासणाई सीहासणाई पउमासणाई दिसासोवत्थियासणाई सव्वरयणामयाइं अच्छाई जाव पडिरूवाई ॥ वणसंड- मंडवग-पदं १८४. तेसु णं वणसंडेसु तत्थ तत्थ देसे' तहिं तहिं बहवे जाइमंडवगा' जूहियामंडवगा 'मल्लिया मंडवगा णोमालियामंडवगा" वासंतिमंडवगा' 'दहिवासुयमंडवगा सूरिल्लि - मंडवगा" तंबोलिमंडवगा मुद्दियामंडवगा गागलयामंडवगा अतिमुत्तलयामंडवगा अप्फोयामंडवगा" मालुयामंडवगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ११० ० १८५. तेसु णं जाइमंडवएसु" "जूहियामंडवसु मल्लियामंडवसु णोमालियामंडव सु वासंतिमंडवाएसु दहिवासुयमंडवसु सूरिल्लिमंडवएस तंबोलिमंडवसु मुद्दियामंडएस णागलयामंडवसु अतिमुत्तलयामंडवसु अप्फोया मंडव सु° मालुयामंडवसु बहवे पुढविसिलापट्टगा अप्पेगतिया हंसासणसंठिया जाव अप्पेगतिया दिसासोवत्थियासणसंठिया अण्णेय बहवे वरसयणासणविसिट्ठसंठाणसंठिया पुढविसिला पट्टगा पण्णत्ता समणाउसो! आईणग-रूप- बूर" - णवणीय - तूल- फासा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा । तत्थ" णं बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य आसयंति सयंति चिट्ठेति निसीयंति तुयद्वृति हसंति" रमंति ललंति कीलंति कित्तंति" मोहेंति पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलविवागं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति" ॥ १. मोह° (क, ख, ग, घ ) । २. चित्तघरगा कुसुमघरगा ( क, ख, ग, घ, च, छ) । ३. x (क, ख, ग, घ, च, छ ) । ४. सं० पा०--आलिघरगेसु जाव आयंसघरगेसु । ५. सं० पा०-- हंसासणाई जाव दिसासोवत्थियास - णाई | ६. देसे देसे (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. जाति मंडवसंठाणगा (क, ख, ग, घ, छ) । ८. मालिया मल्लिया (घ ) ; मल्लिय (छ) । ६. वासंतिय (क, ख, ग, घ ) । नोमालिया ' १०. सुरिल्लिमंडवगा दहिवासुयमंडवगा ( क, ख, ग, घ ) । ११. अणया° (क, ख, ग, घ ) । १२. सं० पा० – जाइमंडव एसु जाव मालुयामंडवसु । १३. मंसलसुघट्टविसिट्ठ° (क, ख, ग, घ, च, छ, वृपा) । १४. पूर (क, ख, ग, घ ) । १५. अत्थि (क, ख, ग, घ, च) । १६. × (वृ) । १७. × (वृ) । १८. चिट्ठेति विहति ( च, छ) । Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो • वणसंड-पासायवडेंसग-पदं १८६. तेसि णं वणसंडाणं वहुमज्झदेसभाए पत्तेयं - पत्तेयं पासायवडेंसगा पण्णत्ता । ते पासायवडेंसगा पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाई जोयणसयाई विक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसिय-पहसिया इव' तहेव' बहुसमरमणिज्जभूमिभागो उल्लोओ सीहासणं सपरिवारं । तत्थं णं चत्तारि देवा महिड्डिया "महज्जुइया महाबला महायसा महासोक्खा महाणुभागा° पलिओवमट्टितीया परिवसंति, तं जहा - असोए ' सत्तपणे चंपए चू' ।। भूमिभाग-पदं O १८७. सूरियाभस्स णं देवविमाणस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव' तत्थ णं बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य आसयंति' 'सयंति चिट्ठति निसीयंति तुयदृति, हसंति रति लंति की लंति कित्तंति मोहेंति पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडा कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलविवागं पच्चणुब्भवमाणा' विहरति ॥ • उवगारिया-लयण-पदं १८८. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसे, एत्थ णं महेगे उवगारिया - लयणे पण्णत्ते - एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साइं दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिन्नि य कोसे अट्ठावीस च तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलं च किंचिविसेसूणं परिक्खेवेणं, जोयणं वाहल्लेणं, सव्वजंबूणयामए अच्छे जाव पडिरूवे ॥ ० पउमवरवेइया-पदं १८६. से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेण सव्वओ समंता संपरिखित्ते । सा णं पउमवरवेइया अद्धजोयणं उड्नुं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई विक्खंभेणं, उवकारियलेणसमा परिक्खेवेणं ॥ १६०. तीसे णं पउमवरवेइयाए इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा -- वइरामया" १. राय० सू० १३७ । २. राय० सू० २४-३४ । ३. राय० सू० ३७-४४ । ४. सं०पा० - महिड्डिया जाव पलिओवमट्टितीया । १२५ ५. आसोए ( क, ख, ग, घ, च) । ६. वृत्तौ अतोग्रे अधिकं विवृतमस्ति -- ' ते णं इत्यादि ते अशोकादयो देवाः स्वकीयस्य वनखण्डस्य स्वकीयस्य प्रासादावतंसकस्य, सूत्रे बहुवचनं प्राकृतत्वात् प्राकृते वचनव्यत्ययोऽपि भवतीति स्वकीयानां सामानिकदेवानां स्वासां स्वासामग्रमहिषीणां सपरिवाराणां स्वासां स्वासां परिषदां स्वेषां स्वेषामनीकानां स्वेषां स्वेषामनीकाधिपतीनां स्वेषां स्वेषामात्म रक्षाणां 'आहेवच्चं पोरेवच्च' इत्यादि प्राग्वत् । 'प्राग्वद्' इति वृत्तिकारस्य सूचनया ज्ञायते वृत्तिकारस्य सम्मुखे भिन्नवाचनायाः मूलपाठः आसीत् । ७. पण्णत्ते, तं जहा - वणसंडविणे क, ख, ग, घ, च, छ) । यद्यप्यसौ पाठः सर्वासु प्रतिषु लभ्यते तथापि नावश्यकः प्रतिभाति । वृत्तावपि गृहीतो । ८. राय० सू० २४-३१ । ६. सं० पा० - आसयंति जाव विहरति । १०. उवारिय (घ) ; उवाइय (छ) । ११. सं० पा० - वइरामया सुवण्णरुप्पामया फलगा नाणामणिमया । Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ रायपसेणइयं 'नेमा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पामया फलगा लोहितक्खमईयो सूईओ वडरामया संधी नाणामणिमया कलेवरा णाणामणिमया कलेवरसंघाडगा णाणामणिमया रूवा णाणामणिमया रूवसंघाडगा अंकामया' 'पक्खा पक्खबाहाओ, जोईरसमया वंसा वंसकवेल्लूयाओ रययामईओ पट्टियाओ जायरूवमईओ ओहाडणीओ, वइरामईओ° उवरिपुंछणीओ सव्वसेयरययामर छायणे" ॥ १६१. सा णं पउमवरवेइया एगमेगेणं हेमजालेणं एगमेगेणं गवक्खजालेणं एगमेगेणं खिंखिणीजालेणं एगमेगेणं 'घंटाजालेणं एगमेगेणं मुत्ताजालेणं' एगमेगेणं मणिजालेणं एगमेगेणं कणगजालेणं एगमेगेणं रयणजालेणं' एगमेगेणं पउमजालेणं' सव्वतो समंता संपरिखित्ता'। ते णं जाला तवणिज्जलंबूसगा जाव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ १६२. तीसे गं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे हयसंघाडा" 'गयसंघाडा नरसंघाडा किन्नरसंघाडा किंपुरिससंघाडा महोरगसंघाडा गंधव्वसंघाडा उसभसंघाडा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा" । १६३. 'तीसे णं पउमवरवेयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे हयपंतीओ०॥ १६४. तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे हयवीहीओ० ॥ १६५. तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहूई हयमिहुण्णाइं० ॥ १६६. तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं वहवे पउमलयाओ०५ ॥ १६७. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ-पउमवरवेइया पउमवरवेइया ? गोयमा ! पउमवरवेइयाए णं तत्थ तत्थ देसे" तहिं तहिं वेइयासु वेइयाबाहासु य वेइयफलएसु" य वेइयपुडंतरेसु य, खंभेएसु खंभबाहासु खंभसीसेसु खंभपुडंतरेसु, सूईसु सूईमुखेसु सूईफलएसु १. सं० पा०–अंकामया... उवरिपुंछणीओ। ५. X (छ)। २. सव्वरयणामए अच्छायणे (ख, ग, घ, च, ६. परिक्षिप्ताः (वृ)। छ); जीवाजीवाभिगमवृत्ती (३।२६४, वृत्ति ७. दामा (क, ख, ग, घ, च, वृपा)। पत्र १८०) सव्वसेयरययामए छायणे' इति पाठो ८. राय० स० ४०। व्याख्यातोस्ति । रायपसेणीयवृत्तौ 'सव्वरयणा- ६. देसे देसे (क, ख, ग, च, छ) । मए' इति पाठो लिपिदोषाज्जातः। वृत्तिकृता १०. सं० पा०-हयसंघाडा जाव उसभसंघाडा । 'एतत् सर्वं द्वारवत् भावनीयं' इत्युल्लिखितम् । ११. सं० पा०-पडिरूवा जाव पंतीतो वीहीतो तत्रापि च 'सव्वसेयरययामए' इति पाठोस्ति मिहणाणि लयाओ। (राय० सू० १३०), वृत्तावपि (पृ० १६०) १२,१३,१४. राय सू० १६२ । 'रजतमयं' इति व्याख्यातमस्ति । १५. राय० सू० १४५ । ३. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। १६. देसे देसे (क, ख, ग, च, छ)। ४. रयणजालेणं सव्वरयणजालेणं (क, ख, ग, घ १७. x (वृत्ति, जी० ३।२६६) । च); सव्वरयणजालेणं (छ) । १८. फलतेसु (क, ख, ग, घ, च, छ) । Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १२७ सूईपुडतरेसु, पक्खेसु पक्खबाहासु पक्खपेरंतेसु पक्खपुडंतरेसु" बहुयाइं उप्पलाई पउमाई कुमुयाई णलिणाइं सुभगाइं सोगंधियाइं पोंडरीयाइं महापोंडरीयाई सयवत्ताइं सहस्सवत्ताई सव्वरयणामयाइं अच्छाई पडिरूवाइं महया वासिक्कछत्तसमाणाई पण्णत्ताई समणाउसो ! से एएणं अट्ठणं गोयमा ! एवं वुच्चइ--प'उमवरवेइया पउमवरवेइया । १६८. पउमवरवेइया णं भंते ! कि सासया असासया ? गोयमा! सिय सासया सिय असासया ॥ १६६. से केणठेणं भंते ! एवं वच्चइ-सिय सासया सिय असासया ? गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासया, वण्णपज्जेवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं फासपज्जवेहिं असासया । से एएणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-सिय सासया सिया असासया ॥ __२००. पउमवरवेइया णं भंते ! कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! ण कयाति णासि, ण कयाति णत्थि, ण कयाति न भविस्सइ, भुवि 'च भवइ य" भविस्सइ य, धुवा णियया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिया णिच्चा पउमवरवेइया ॥ २०१. सा णं पउमवरवेइय। एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई चक्कवालविक्खंभेणं, उवयारिया -लेणसमे परिक्खेवेणं। वणसंडवण्णओ भाणियव्वो जाव विहरंति ।। ० उवगारिया-लयण-पदं २०२. तस्स णं उवयारिया-लेण त्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता वण्णओ तोरणा झया छत्ताइच्छत्ता"। ० भूमिभाग-पदं २०३. तस्स णं उवयारिया-लयणस्स उरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जावर मणीणं फासो॥ ० मूलपासायव.सग-पदं २०४. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महेगे मूलपासायवडेंसए पण्णत्ते । से णं मूलपासायवडेंसते पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाइं जोयणसयाइं विक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसिय वण्णओ" भूमिभागो उल्लोओ" सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं अट्ठ मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता । १. ४ (वृत्ति); जीवाजीवाभिगमे (३।२६९) ८. राय० सू० १७०-१८५। __ 'पक्खपेरंतेसु' इत्येकमेव पदमस्ति । १०. अतः परं 'अट्ठमंगलगा इति पदं गम्यमस्ति । २. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ११. राय० सू०१६-२३ । ३. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । १२. राय० सू० २४-३१ । ४. राय० सू० १५७ । १३. पासाय (क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. वासिक्कय (क, ख, ग, घ, छ) । १४. राय० सू० १३७ ।। ६. भवइ (क, ख, ग, घ, च, छ)। १५. राय० सू० २४-३४ । ७,६. उवारिया (क, ख, ग, घ, च)। १६. राय० सू० ३७-४४ । Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ • पासावडेंसग पदं । २०५. से णं मूलपासायवडेंसगे' अण्णेहिं चउहिं पासायवडेंसएहिं तयद्धुच्चत्तप्पमाणतेहिं सव्वओ समंता संपरिखित्ते' । ते णं पासायवडेंसगा अड्ढाइज्जाई जोयणसयाई उड्ढ उच्चत्तेणं पणवीसं जोयणसयं विक्खंभेणं अब्भुमुग्गयमूसिय जाव वण्णओ' भूमिभागो उल्लोओ' सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं ' अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता' ॥ २०६. ते णं पासायवडेंसया अण्णेहिं चउहिं पासायवडेंसएहिं तयद्धुच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं सव्वओ समता संपरिखित्ता । ते णं पासावडेंसया पणवीसं जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं, बाव जोयणाई अद्धजोयणं च विक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसिय वण्णओ भूमिभागो उल्लोओ सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्तातिच्छत्ता ॥ २०७. ते णं पासायवडेंसगा अण्णेहिं चउहिं पासायवडेंसएहिं तदद्धुच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं सव्वओ समता संपरिक्खित्ता । ते णं पासायवडेंसगा वावट्ठि जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं वण्णओ उल्लोओ' सीहासणं अपरिवार' अट्ठट्ठ" मंगलगा झया छत्तातिछत्ता || २०८. ते" णं पासायवडेंसया अण्णेहिं चउहिं पासायवडेंसगेहिं तदद्धुच्चत्तप्पमाणमेत्तेहि सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता । ते णं पासायवडेंसगा एक्कतीस जोयणाई कोसं च उड्ढ उच्चत्तेणं, पन्नरसजोयणाई अड्ढाइज्जे कोसे विक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसिय वण्णओ भूमिभागो जाव" झया छत्तातिछत्ता ॥ • सुहम्म सभा-पदं २०ε. तस्स णं मूलपासायवडेंसयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं सभा सुहम्मा पण्णत्ताएवं जोयस आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, बाबत्तरिं जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अगखंभसयसन्निविद्वा जाव" अच्छरगणसंघसंविकिष्णा दिव्वतुडियसद्दसंपणाइया अच्छा जाव पडिवा ॥ १. पासाय° (क, ख, ग, घ, च, छ) । २. परिक्षिप्तः (वृ ) । ३. राय ० सू० १३७ ॥ ४. राय० सू० २४-३४ । ५. राय० सू० ३७-४४ । ६. राय० सू० २१-२३ । ७. राय० सू० १३७ । ८. राय० सू० २४-३४ । ६. सपरिवारं (क, ख, ग, घ, च, छ ) । १०. पासायउवरि अट्टट्ट (क, ख, ग, घ, च, छ)। ११. 'च, छ' प्रत्योरेतत्सूत्रं नैव दृश्यते । वृत्तौ ( पृ० २१३ ) अर्द्ध तृतीय कोशाधिकपंचदश योजनोsवनां प्रासादावतंसकानां सूत्रमस्ति रायपसेणइयं व्याख्यातम् । यथा - ते पि प्रासादावतंसका अन्यश्चतुर्भिः प्रासादावतंसकैस्तदर्द्धाच्चत्व प्रमाणैः अनन्तरोक्तप्रासादावतंसकाद्धच्चत्व प्रमाणैर्मूलप्रासादावतंसकापेक्षया षोडशभागप्रमाणैः सर्वतः समंतात् संपरिक्षिप्ताः; तदर्द्धाच्चत्व प्रमाणमेव दर्शयति — एकत्रिशतं योजनानि कोशं च ऊर्ध्वमुच्चैस्त्वेन पंचदशयोजनानि अर्द्धतृतीयांश्चैवक्रोशान् विष्कम्भतः । एतेषामपि स्वरूपादि वर्णनमनन्तरोक्तम्' । १२. राय० सू० २०५ । १३. राय० सू० ३२ । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १२९ ० सुहम्म-सभा-दार-पदं २१०. सभाए णं सुहम्माए तिदिसिं तओ दारा पण्णत्ता, तं जहा--पुरत्थिमेणं दाहिणणं उत्तरेणं । ते णं दारा' सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगथूभियागा' जाव' वणमालाओ । • मुहमंडव-पदं २११. तेसि णं दाराणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं मुहमंडवे पण्णत्ते। ते णं मुहमंडवा एगं जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाइं विक्खंभेणं, साइरेगाइं सोलस जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं "अणेगखंभसयसन्निविट्ठा जाव' अच्छरगणसंघसंविकिण्णा दिव्वतुडियसद्दसंपणाइया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ० दार-पदं २१२. तेसि णं मुहमंडवाणं तिदिसि तओ दारा पण्णत्ता, तं जहा-पुरत्थिमेणं दाहिणणं उत्तरेणं । ते णं दारा सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगथूभियागा जाव वणमालाओ ।। • भूमिभाग-उल्लोय-पदं ___ २१३. तेसि णं मुहमंडवाणं भूमिभागा उल्लोया'। • मंगलग-पवं २१४. तेसि णं मुहमंडवाणं उरि अट्ट मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता० ॥ ० पेच्छाघर-मुहमंडव-पदं २१५. तेसि णं मुहमंडवाणं पुरतो पत्तेयं-पत्तेयं पेच्छाघरमंडवे पण्णत्ते। मुहमंडववत्तव्वया" जाव" दारा॥ ० भूमिभाग-उल्लोय-पदं "२१६. " तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं भूमिभागा उल्लोया " ।। • अक्खाडग-पदं २१७. तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं वइरामए अक्खाडए पण्णत्ते ॥ ० मणिपेढिया-पदं २१८. तेसि णं वइरामयाणं अक्खाडगाणं बहुमज्झदेसभागे पत्तेय-पत्तेयं मणिपेढिया १. दारा साइरेगाइं (छ)। ८. राय० सू० १२६-१३६ । २. सोलस सोलस (व)। ६. राय० सू० २४-३४ । ३. वरकमल° (छ)। १०. राय० सू० २१-२३ । ४. राय० सू० १२६-१३६ । ११. महमंडवा वण्णेयव्वा (क, ख, ग, घ, च, छ)। ५. वणमालाओ तेसि णं दाराणं उरि मंगलरूवा १२. राय० सू० २११, २१२ । छत्ताइछत्ता (छ)। १३. सं० पा०-भूमिभागा उल्लोया । ६. सं० पा०-वण्णओ सभाए सरिसो । १४. राय० सू० २४-३४ । ७. राय० सू० ३२। Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० रायपसेणइयं पण्णत्ता । ताओ णं मणिपेढियाओ अट्ठ जोयणाई आयामविवखंभेणं चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ || सोहासण-पदं २१. तासि णं मणिपेढियाणं उवरि पत्तेयं पत्तेयं सीहासणे पण्णत्ते । सीहासणवण्णओ' सपरिवारो ॥ ० मंगलग - पदं ० २२०. तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं उवरि अट्टट्ठ मंगलगा झया छत्तातिछत्ता' ॥ ० मणिपेढिया-पदं २२१. तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ पत्तेयं पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ । ताओ णं मणिपेढियातो सोलस जोयणाई आयाम विक्खभेणं, अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ || • चेइयथूम-पदं २२२. तासि णं मणिपेढियाणं' उवर पत्तेयं पत्तेयं चेइयथूभे पण्णत्ते । ते णं चेइयभा सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, साइरेगाई सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, सेया संखंक'- 'कुंद- दगरय-अमय महिय फेणपुंजसन्निगासा° सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ० मंगलग-पदं २२३. तेसि णं चेइयथूभाणं उवरि अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्तातिछत्ता जाव सहस्सपत्तहत्यया ॥ ० मणिपेढिया पदं २२४. सिणं चेइयथूभाणं 'पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं" मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ । ताओ मणिपेढयाओ अट्ठ जोयणाई आयामविवखंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ || ० जिणपडिमा पदं २२५. तासि णं मणिपेढयाणं उवरिं चत्तारि जिणपडिमातो जिणुस्सेहपमाणमेत्ताओ पलियंक निसन्नाओ" थूभाभिमुहीओ सन्निखित्ताओ चिट्ठति तं जहा -उसभा वद्धमाणा चंदाणणा वारिसेणा ॥ ० मणिपेढिया पदं २२६. तेसि णं चेइयथूभाणं पुरओ पत्तेयं पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ । ताओ णं मणिपेढिताओ सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं, 'चेइय' इति पदं युज्यते । १. राय० सू० ३७-४४ । २. राय० सू० २१-२३ । ३. x ( क, ख, ग, घ, च, छ) । ४. थूभे ( क, ख, ग, घ, च, छ); वृत्तेस्तथा जीवाजीवाभिगमस्य ( ३।३८१) अनुसारेण ५. सं० पा०—संखंक सव्वरयणामया । ६. चउद्दिसि पत्तेयं - पत्तेयं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. सन्निसण्णा (वृ) । Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ ॥ ० चेइयरुक्ख-पदं २२७. तासि णं मणिपेढियाणं उरि पत्तेयं-पत्तेयं चेइयरुक्खे पण्णत्ते । ते णं चेइयरुक्खा अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धजोयणं उव्वेहेणं, दो जोयणाई खंधो, 'अद्धजोयणं विक्खंभेणं", छ जोयणाई विडिमा, बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं', साइरेगाइं अट्ठ जोयणाइं सव्वग्गेणं पण्णत्ता ॥ २२८. तेसि णं चेइयरुक्खाणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-वइरामयमूलरययसुपइट्टियविडिमा' रिट्टामय-विउलकंद-वेरुलिय"-रुइलखंधा सुजायवरजायरूवपढमगविसालसाला नाणामणिमयरयणविविहसाहप्पसाह-वेरुलियपत्त-तवणिज्जपत्तबिंटा जंबूणय-रत्त-मउय-सुकुमाल-पवाल-पल्लव-वरंकुरधरा५ विचित्तमणि रयणसुरभि-कुसुम'फल-भर-नमियसाला 'सच्छाया सप्पभा सस्सिरीया सउज्जोया" अहियं नयणमणणिव्वइकरा अमयरससमरसफला पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा" ।। १. अट्ठजोयणाई (क, ख, ग, घ, च, छ); 'अद्धजोयणं विक्खंभेणं' एष वृत्त्यनुसारी पाठोस्ति । प्रत्यनुसारी पाठ इत्थमस्ति-'अटू जोयणाई विक्खंभेणं' प्रतीनां 'अट्ट जोयणाई' एष पाठः अशुद्धः प्रतीयते । जीवाजीवाभिगमे (३३३८६) 'अद्धजोयणं विक्खंभेणं' इत्येव पाठो दृश्यते। २. विष्कम्भेन (व)। ३. सुविडिमा (क, ख, ग, घ, च, छ)। ४. विउलाकंदा वेरुलिया (क, ख, ग, घ, च), वृत्ती 'विउल' शब्दो न व्याख्यातः । ५. सोभियावरंकुरग्गसिहरा (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. भरभरिय (क, ख, ग, घ, च, छ)। ७.४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। ८. मणनयणणि° (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. 'फला सच्छाया सप्पभा सस्सिरिया सउ ज्जोया (क, ख, ग, घ, च, छ)। १०. २२८ सूत्रानन्तरं प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्ती एवं व्याख्यातमस्ति-एते च चैत्यवृक्षा अन्यैर्बहुभिस्तिलकलवक-च्छत्रोपग- शिरीष-सप्तपर्ण - दधिपर्ण-लोध्र-धव-चन्दन-नीप-कुटज-पनस-ताल तमाल- प्रियाल- प्रियगु- पारापत - राजवृक्ष: नन्दिवृक्षः सर्वतः समन्तात् सम्परिक्षिप्ता, ते च तिलका यावन्नन्दिवृक्षा मूलमन्तः कन्दमन्त इत्यादि सर्वमशोकपादपवर्णनायामिव तावद् वक्तव्यं यावत् परिपूर्ण लतावर्णनम् । प्रयुक्तादर्शषु एतद्व्याख्यानुसारी पाठो नैव लभ्यते। किन्तु जीवाजीवाभिगस्य आदर्शेष तादृशः पाठो लभ्यते स चैवमस्ति- तेणं चेइयरुक्खा अण्णेहिं बहूहिं तिलय-लवयछत्रोवग-सिरीस-सत्तिवण्ण-दहिवण्ण -लोद्ध-धवचंदण-(अज्जुण? ) नीव-कुडय- कयंब - पणस - ताल-तमाल-पियाल-पियंगु - पारावय-रायरुक्खनंदिरुक्खेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। ते णं तिलया जाव नंदिरुक्खा कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला मूलमंतो कंदमंतो जाव सुरम्मा। ते णं तिलया जाव नंदिरुक्खा अण्णाहिं बहहिं पउमलयाहि जाव सामलयाहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। ताओ णं पउमलयाओ जाव सामलयाओ निच्चं कुसुमियाओ जाव पडिरूवाओ (जीवा० ३।३८८-३६०)। जीवाजीवाभिगमस्य वृत्तावपि एष व्याख्यातोस्ति। Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ रायपसेणइयं • मंगलग-पदं २२६. तेसि णं चेइयरुक्खाणं उवरि अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्ताइछत्ता ॥ ० मणिपेढिया-पदं २३०. तेसि णं चेइयरुक्खाणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता। ताओ णं मणिपेढियाओ अट्ठ जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ॥ • महिंदज्झय-पदं २३१. तासि णं मणिपेढियाणं उवरिं पत्तेयं-पत्तेयं महिंदज्झए पण्णत्ते । ते णं महिंदज्झया सर्टि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उव्वेहेणं, अद्धकोसं' विक्खंभेणं वइरामयवट्ट-'लट्ठ-संठिय-सुसिलिट्ठ-परिघट्ठ-मट्ठ-सुपतिट्ठिया विसिट्ठा अणेगवरपंचवण्णकुडभीसहस्सपरिमंडियाभिरामा वाउछुयविजय-वेजयंती-पडाग-च्छत्तातिच्छत्तकलिया' तुंगा गगणतलमणुलिहंतसिहरा' पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ ० मंगलग-पदं २३२. तेसि णं महिंदज्झयाणं उरिं अट्ठ मंगलगा झया छत्तातिछत्ता । ० नंदापुक्खरिणी-पदं २३३. तेसि णं महिंदज्झयाणं पुरतो पत्तेयं-पत्तेयं नंदा' पुक्खरिणी पण्णत्ता । ताओ णं पुक्खरिणीओ एगं जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं, अच्छाओ जाव पगईए' उदगरसेणं पण्णत्ताओ" 'पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ° । पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ताओ, पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ" । ० तिसोवाणपडिरूवग-पदं २३४. तासि णं णंदाणं पुक्खरिणीणं तिदिसिं तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता। तिसोवाणपडिरूवगाणं वण्णओ" तोरणा झया छत्तातिछत्ता। • मणोगुलिया-पदं २३५. सभाए णं सुहम्माए अडयालीसं मणोगुलियासाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तं जहापुरत्थिमेणं सोलससाहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं सोलससाहस्सीओ, दाहिणेणं अट्टसाहस्सीओ, उत्तरेणं अट्ठसाहस्सीओ। तासु णं मणोगुलियासु बहवे सुवण्णरुप्पामया फलगा पण्णत्ता। तेसु णं सुवण्णरुप्पामएसु फलगेसु बहवे वइरामया णागदंतया पण्णत्ता । तेसु णं वइरामएसु १. जोयणं (क, ख, ग, घ); जोइणं (च, छ)। ७. द्वाविंश (छ) । २. लट्ठि पसिलिट्ठ (क, ख, ग, घ, च)। ८. राय० सू० १७४। ३. ४ (क, ख, ग, घ, च)। ६. पागइयाओ (क, ख, ग, घ, च); पगइयाओ ४. ०छत्तकलिया (क, ख, ग, घ, च, छ)। (छ)। ५. गगणतलमभिकंखमाण (क, ख, ग, घ, च, १०. सं० पा०-पण्णत्ताओ। ११. राय० सू० १८६-२०१। ६. नंदाओ (क, ख, ग)। १२. राय० सू० १६-२३ । . Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो णागदंतएसु किण्हसुत्तबद्धा वग्घारियमल्लदामकलावा' चिट्ठति ॥ ० गोमाणसिया-पदं २३६. सभाए णं सुहम्माए अडयालीसं गोमाणसियासाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तं जहा"पुरत्थिमेणं सोलससाहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं सोलससाहस्सीओ, दाहिणेणं अट्ठसाहस्सीओ, उत्तरेणं अट्ठसाहस्सीओ। तासु णं गोमाणसियासु बहवे सुवण्णरुप्पामया फलगा पण्णत्ता। तेसु णं सुवण्णरुप्पामएसु फलगेसु बहवे वइरामया नागदंतया पण्णत्ता । तेसु णं वइरामएसु णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता। तेसु णं रययामएसु सिक्कगेसु बहवे वेरुलियामइओ धूवघडियाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं धूवघडियाओ कालागरु-पवर' 'कुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूवमघमघेतगंधुद्धयाभिरामाओ सुगंधवरगंधियाओ गंधवट्टिभूयाओ ओरालेणं मणुण्णणं मणहरेणं घाणमणणिबुतिकरेणं गंधेणं ते पदेसे सव्वओ समंता आपूरेमाणा-आपूरेमाणा सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा' चिट्ठति ॥ • भूमिभाग-पदं २३७. सभाए णं सुहम्माए अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव' मणीहिं उवसोभिए मणिफासो य उल्लोओ य ।। ० मणिपेढिया-पदं २३८. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णता-सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ० चेइय-खंभ-पद २३६. तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं, एत्थ णं माणवए चेइयखंभे पण्णत्ते-सटुिं जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, जोयणं उव्वेहेणं, जोयणं विक्खंभेणं, 'अडयालीससिए अडयालीसइकोडीए अडयालीसइविग्गहिए" सेसं जहा महिंदज्झयस्स ।। ० जिण-सकहा-पदं २४०. माणवगस्स णं चेइयखंभस्स उवरिं बारस जोयणाई ओगाहेत्ता, हेद्वावि बारस जोयणाई वज्जेत्ता, मज्झे छत्तीसाए" जोयणेसु, एत्थ णं बहवे सुवण्णरुप्पामया फलगा पण्णत्ता । तेसु णं सुवण्णरुप्पामएसु फलएसु बहवे वइरामया णागदंता पण्णत्ता। तेसु णं वइरामएसु नागदंतेसु बहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता। तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वइरामया गोलवट्टसमुग्गया पण्णत्ता । तेसु णं वयरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहुयाओ १. अत्र समर्पणसूचकः संकेत: केनापि कारणेन अडयालीसं सइविग्गहे (क, ख, ग, घ, च, त्रुटितोस्ति । १३२ सूत्रमिह प्राप्तमस्ति । छ)। द्रष्टव्यं जीवाजीवभिगमस्य ३।३६७ सूत्रम् । ६. राय० सू० २३१, २३२ । २. सं० पा०–जहा मणोगुलिया जाव णागदंतया। ७. बत्तीसाए (क, ख, ग); छव्वीसाए (च); ३. सं० पा०-कालागरुपवर जाव चिट्ठति । तीसाए (छ)। ४. राय० सू० २४-३४ । ८. बहवे (क, ख, ग, घ, च, छ)। ५. अडयालीसं असीइए अडयालीसं सइकोडिए Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ रायपसेणइयं जिण-सकहाओ संनिखित्ताओ चिट्ठति । ताओ णं सूरियाभस्स देवस्स अन्नेसिं च बहणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ' 'वंदणिज्जाओ पूयणिज्जाओ माणणिज्जाओ सक्कारणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जाओ। ० मंगलग-पदं ___२४१. माणवगस्स चेइयखंभस्स उवरि अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता ।। ० मणिपेढिया-पदं २४२. तस्स माणवगस्स चेइयखंभस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता-अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा॥ ० सीहासण-पदं २४३. तीसे णं मणिपेढियाए उरि, एत्थ णं महेगे सीहासणे पण्णत्ते-सीहासणवण्णतो सपरिवारो॥ • मणिपेढिया-पदं २४४. तस्स णं माणवगस्स चेइयखंभस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता-अट्ठ जोयणाई आयामविक्खं भेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा।। • देवसयणिज्ज-पदं २४५. तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं, एत्थ णं महेगे देवसयणिज्जे पण्णत्ते । तस्स णं देवसयणिज्जस्स इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा--णाणामणिमया पडिपाया, सोवण्णिया पाया, णाणामणिमयाइं पायसीसगाई, जंबूणयामयाइं गत्तगाई, 'वइरामया संधी", णाणामणिमए वेच्चे, रययामई तूली, 'लोहियक्खमया बिब्बोयणा, तवणिज्जमया गंडोवहाणया"। से णं देवसयणिज्जे 'सालिंगणवट्टिए उभओबिब्बोयणे" दुहओ उण्णते मज्झे णयगंभीरे गंगापुलिणवालुया" उद्दालसालिसए सुविरइयरयत्ताणे ओयवियखोमदुगुल्लपट्टपडिच्छयणे रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे आईणग-रूय-बूर-णवणीय-तूलफासे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ ० मणिपेढिया-पदं २४६. तस्स णं देवसयणिज्जस्स उत्तरपुरत्थिमेणं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता-अट्ट जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा॥ १. सं० पा०-~-अच्चणिज्जाओ जाव पज्जुवासणि- ५. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । ज्जाओ। ६. णयगंभीरे सालिंगणवट्टीए (क, ख, ग, घ, २. राय० सू० ३७-४४ । च)। ३. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. "बाल (क, ख, ग, घ, च); 'वालुए (छ)। ४. तवणिज्जमया गंडोवहाणया लोहियक्खमया ८. अत्र वृत्ती प्रतिच्छदनं' विद्यते, किन्तु ३७ सूत्रे (मई) बिब्बोयणा (क, ख, ग, घ, च, छ)। 'प्रतिच्छादनम्' अस्ति । Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १३५ ० महिंदज्झय-पदं २४७. तीसे णं मणिपेढियाए उरि, एत्थ णं खुड्डुए' महिंदज्झए पण्णत्ते-सद्धिं जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उव्वेहेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, वइरामयवट्टलट्ठसंठियसुसिलिट्ठ'- परिघट्ठ-मट्ठ-सुपतिट्ठिए विसिठे अणेगवरपंचवण्णकुडभीसहस्सपरिमंडियाभिरामे वाउद्धयविजय-वेजयंतीपडागच्छत्तातिच्छत्तक लिए तुंगे गगणतलमणुलिहंतसिहरे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे° पडिरूवे ।। ० मंगलग-पदं २४८. तस्स णं खुड्डामहिंदज्झयस्स उरि अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्तातिच्छत्ता ।। ० पहरणकोस-पदं २४६. तस्स णं खुड्डामहिंदज्झयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स महं एगे चोप्पाले नाम पहरणकोसे पण्णत्ते-सव्ववइरामए अच्छे जाव पडिरूवे। तत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स फलिहरयण-खग्ग-गया-धणुप्पमुहा बहवे पहरणरयणा संनिखित्ता चिठ्ठति-उज्जला निसिया सुतिक्खधारा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। • मंगलग-पदं २५०. सभाए णं सुहम्माए उवरिं अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्तातिच्छत्ता ॥ • सिद्धायतण-पदं २५१. सभाए णं सुहम्माए उत्तरपुरथिमेणं, एत्थ णं महेगे सिद्धायतणे पण्णत्तेएगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं, बावत्तरि जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं सभागमएणं जाव' गोमाणसियाओ, भूमिभागा उल्लोया तहेव' । ० मणिपेढिया-पदं २५२. तस्स णं सिद्धायतणस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता-सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, अट्र जोयणाई वाहल्लेणं ।। •जिणपडिमा-पदं २५३. तीसे णं मणिपेढियाए उवरि, एत्थ णं महेगे देवच्छंदए पण्णत्ते-सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, साइरेगाइं सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे ॥ - २५४. तत्थ णं अट्ठसयं जिणपडिमाणं जिणुस्सेहप्पमाणमित्ताणं संनिखित्तं संचिट्ठति । तासि णं जिणपडिमाणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-तवणिज्जमया हत्थतलपायतला, अंकामयाइं नक्खाइं अंतोलोहियक्खपडिसेगाई, कणगामईओ जंघाओ, कणगामया १. खुड्ड (क, ग)। ४. राय० सू० २०९-२३६ । २. २३१ सूत्रे 'अद्धकोस' पाठो विद्यते, अत्र तु ५. राय० सू० २४-३४ । सर्वासु प्रतिष 'जोयणं' पाठो लभ्यते । वृत्त्यनुसारेणापि अद्धकोसं' पाठो युज्यते, यथा- ७. अतः परं जीवाजीवाभिगमे (३।४१५) अत्र एष 'तस्य प्रमाणं वर्णकश्च महेन्द्रध्वजवद् पाठो विद्यते-कणगामया पादा, कणगामया वक्तव्यम्। गोप्फा' । आनखशिखवर्णने एष उपयुक्तोस्ति । ३. सं० पा०-सुसिलिट्ठ पडिरूवे । Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ रायपसेणइयं जाणू, कणगामया ऊरू, कणगामईओ गायलट्ठीओ, 'तवणिज्जमईओ नाभीओ, रिटामईओ रोमराईओ, तवणिज्जमया चूचुया", तवणिज्जमया सिरिवच्छा', सिलप्पवालमया ओट्ठा, फालियामया दंता, तवणिज्जमईओ जीहायो, तवणिज्जमया' तालुया, कणगामईओ नासिगाओ अंतोलोहियक्खपडिसेगाओ, अंकामयाणि अच्छीणि अंतोलोहियक्खपडिसेगाणि', 'रिद्वामईओ ताराओ', रिट्टामयाणि अच्छिपत्ताणि, रिट्टामईओ भमुहाओ, कणगामया कवोला', कणगामया सवणा, कणगामईओ णिडालपट्टियाओ, वइरामईओ सीसघडीओ, तवणिज्जमईओ केसंतकेसभूमीओ, रिट्टामया उवरिमुद्धया ।। २५५. तासि णं जिणपडिमाणं पिट्टतो पत्तेयं-पत्तेयं छत्तधारगपडिमाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं छत्तधारगपडिमाओ हिमरययकुंदेंदुप्पगासाइं सकोरंटमल्लदाम -धवलाई आयवत्ताइं सलीलं 'धारेमाणीओ-धारेमाणीओ" चिट्ठति ॥ २५६. तासि णं जिणपडिमाणं उभओ पासे 'दो दो" चामरधारपडिमाओ" पण्णत्ताओ। ताओ णं चामरधारपडिमाओ चंदप्पह-वइर-वेरुलिय-नानामणिरयणखचियचित्तदंडाओ' 'सुहम रययदीहवालाओ संखंककंददगरयअमयमहियफेणपुंजसन्निगासाओ"२ 'धवलाओ चामराओ"२ 'गहाय सलील वीजेमाणो ओ" 'सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ५॥ २५७. तासि णं जिणपडिमाणं पुरतो दो दो नागपडिमाओ 'जक्खपडिमाओ भूयपडिमाओ६ कुंडधारपडिमाओ संनिखित्ताओ चिट्ठति-सव्वरयणामईओ अच्छाओ १. तवणिज्जमया चुच्चया तवणिज्जामईओ द्वे' इति व्याख्यातमस्ति, अनेन 'दो दो' इति नाभीओ रिद्रामईओ रोमराईओ (क, ख, पाठः सङ्गच्छते। द्रष्टव्यम्-जीवाजीवाग, घ, च, छ) । भिगमस्य ३।४१७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । २. अतः परं जीवाजीवाभिगमे (३।४१५) अत्र १०. "धारग" (क, ख, ग, घ)। एष पाठो विद्यते--'कणगमईओ बाहाओ, ११. णाणामणिकणगरयणविमलमहरिहतवणिज्जु . कणगमईओ पासाओ, कणगमईओ गीवाओ, जलविचित्तदंडाओ चिल्लियाओ (क, ख, ग, रिट्ठामए मंसू'। घ, च, छ)। ३. तवणिज्जा (च,छ) । १२. संखंककुंदगरयअमयमहियफेणपुंजसन्निगासाओ ४. सेगाओ (च, छ)। ___ सुहुमरययदीहवालाओ (क,ख,ग,घ,च,छ) । ५. x (व)। १३. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। ६. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। १४. सलीलं उधारेमाणीतो २ (क, ख, ग, घ); ७. दामाइं (च, छ)। वृत्ती एकवचनं व्याख्यातम् । सलीलं धारेमाणीओ २ (च, छ)। स्वीकृतपाठः ८. उधारेमाणीओ-उधारेमाणीओ (क, ख, ग, घ वृत्त्यनुसारी वर्तते । जीवाजीवाभिगम- (३। ४१७) सूत्रेपि एष एव पाठः स्वीकृतोस्ति । ६. पत्तेयं पत्तेयं (क, ख, ग, घ, च, छ); मूल- १५. X (क, ख, ग, घ, च, छ) । पाठः वत्त्याधारण स्वीकृतः । पूर्ववर्ती 'पत्तेयं १६. भूयपडिमाओ जक्खपडिमाओ (क, ख, ग, घ, पत्तेयं' इति पाठस्य 'एकका' इति व्याख्यात- च, छ)। मस्ति । अत्र 'प्रत्येकम् उभयोः पार्श्वयोः 'द्वे Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १३७ जाव पडिरूवाओ॥ २५८. 'तत्थ णं देवच्छंदए" जिणपडिमाणं पुरतो अट्ठसयं घंटाणं अट्ठसयं वंदणकलसाणं अट्ठसयं भिंगाराणं एवं-आयंसाणं थालाणं पाईणं सुपइट्ठाणं मणोगुलियाणं वायकरगाणं चित्ताणं रयणकरंडगाणं, हयकंठाणं' 'गयकंठाणं नरकंठाणं किन्नरकंठाणं किंपुरिसकंठाणं महोरगकंठाणं गंधव्वकंठाणं, उसभकंठाणं पुप्फचंगेरीणं' 'मल्लचंगेरीणं चुण्णचंगेरीणं गंधचंगेरीणं वत्थचंगेरीणं आभरणचंगेरीणं सिद्धत्थचंगेरीणं° लोमहत्थचंगेरीणं, पुप्फपडलगाणं' 'मल्लपडलगाणं चुण्णपडलगाणं गंधपडलगाणं वत्थपडलगाणं आभरणपडलगाणं सिद्धत्थपडलगाणं लोमहत्थपडलगाणं, सीहासणाणं छत्ताणं चमराणं, तेल्लसमुग्गाणं 'कोट्ठसमुग्गाणं पत्तसमुग्गाणं चोयगसमुग्गाणं तगरसमुग्गाणं एलासमुग्गाणं हरियालसमुग्गाणं हिंगुलयसमुग्गाणं मणोसिलासमुग्गाणं अंजणसमुग्गाणं, अट्ठसयं झयाणं', अट्ठसयं धूवकडुच्छयाणं संनिखित्तं चिट्ठति ॥ २५६. तस्स णं सिद्धायतणस्स उरि अट्रट्रमंगलगा झया छत्तातिच्छत्ता ॥ उववायसभा-पदं २६०. तस्स णं सिद्धायतणस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महेगा उववायसभा पण्णत्ता जहा सभाए सुहम्माए तहेव जाव' 'उल्लोओ य" । २६१. 'तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागे, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता"-अट्ठजोयणाई 'आयाम-विक्खंभेणं चत्तारि जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा। देवसयणिज्जं तहेव सयणिज्जवण्णओ"। अट्ठा मंगलगा झया छत्तातिछत्ता ॥ २६२. तीसे णं उववायसभाए उत्तरपुरत्यिमेणं, एत्थ णं महेगे हरए पण्णत्ते-एगं जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाइं विक्खंभेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं तहेव" ॥ १. तासि णं (क, ख, ग, घ, च, छ)। ७. राय० सू० २०९-२३७; तस्याश्च सुधर्मागमेन २.सं० पा०-हयकंठाणं जाव उसभकंठाणं । स्वरूपवर्णन-पूर्वादिद्वारत्रयवर्णनमुखमण्डप-प्रेक्षा३. सं० पा०-पुप्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थचंगे- गहमण्डपादिवर्णनादिप्रकाररूपेण तावत् वक्तव्यं रीणं। यावत् उल्लोकवर्णनम् (वृ)। ४. सं० पा०-पुप्फपडलगाणं जाव लोमहत्थपडल- ८. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। गाणं। ६. असौ पाठो वृत्त्यनुसारी स्वीकृत:-तस्य च ५. सं० पा० --तेल्लसमुग्गाणं जाव अंजण- बहुसमरणीयभूमिभागस्य बहुमध्यदेशभागेत्र समुग्गाणं । ___ महत्येका मणिपीठिका प्रज्ञप्ता (व) । ६. वृती सङग्रहणीगाथाद्वयमपि दृश्यते- १०. सं० पा०-अट्ठजोयणाई । चंदणकलसा भिंगारगा य, आयंसया य थाला य । ११. राय० सू० २४५ । पातीउ सुपइट्ठा मणगुलिका वायकरगा य॥१॥ १२. अत्र प्रारम्भे 'उववायसभाए णं उरि' इति चिता रयणकरंडा, हय-गय-नरकंठगा य चंगेरी। वाक्यशेषः । पडलग-सीहासण-छत्त-चामरा समुग्गय-झया य १३. राय० सू० २३३ । ॥२॥ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ रायपसेणइयं २६३. से णं हरए एगाए पउमवरवेइयाए एगेण वणसंडेण सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । पउमवरवेइया वणसंडवण्णओ ॥ २६४. तस्स णं हरयस्स तिदिसं तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता' ।। ० अभिसेगसभा-पदं २६५. तस्स णं हरयस्स उत्तरपुरस्थिमेणं, एत्थ णं महेगा अभिसेगसभा पण्णत्ता सुहम्मागमएणं जाव' गोमाणसियाओ। मणिपेढिया' सीहासणं अपरिवारं" जाव' १. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। राय० सू० १८६-२०१ । २. राय० सू० २३४ । ३. राय० सू० २०९-२३७ । ४. राय० सू० २६१ । ५. सपरिवारं (क, ख, ग, घ, च, छ) । २६५, २६७, २६६ एष त्रिष्वपि सूत्रेषु 'सीहासणं अपरिवार' इति पाठो युज्यते, यद्यपि आदर्शेषु तथा पंडितबेचरदास-संपादितवृत्तौ सीहासणं सपरिवारं' पाठो लभ्यते, किन्तु २६५ सूत्र 'जाव दामा' इति समर्पणवाक्येन 'सीहासणं अपरिवार' अस्यैव पाठस्य पुष्टिर्जायते । वृत्तिकृत्ता अपरिवारं सिंहासनं व्याख्यातम्, किन्तु लिपिदोषेण मुद्रणदोषेण वा अपरिवारस्य स्थाने सपरिवारं जातम् । जीवाजीवाभिगमवत्त्यवलोकनेन एतत् स्पष्टं भवति । __ जीवाजीवाभिगमवृत्ति (पत्र २३६) रायपसेणइयवृत्ति (पृ० २३५, २३६) सिंहासनवर्णकः प्रागवत, नवरमत्र परिवार- सिंहासनवर्णक: प्राग्वत् नवरमत्र परिवारभूतानि भद्रासनानि न वक्तव्यानि । भूतानि भद्रासनानि च वक्तव्यानि । तस्याश्चाभिषेकसभाया उत्तरपूर्वस्यां तस्याश्च अभिषेकसभाया उत्तरपूर्वस्यां दिशि अत्र महत्येकालंकारसभा प्रज्ञप्ता, दिशि अत्र महत्येका अलंकारसभाप्रज्ञप्ता, सा च प्रमाणस्वरूपद्वारत्रयमुखमण्डप सा अभिषेकसभावत् प्रमाण-स्वरूप-द्वारत्रयप्रेक्षागृहमण्डपादिवर्णनप्रकारेणाभिषेक - मुखमण्डप - प्रेक्षागृहमण्डपादिवर्णनप्रकारेण सभावत्तावद्वक्तव्या यावदपरिवार तावद् वक्तव्या यावत् परिवारसिंहासनम् । सिंहासनम् । तस्या अलंकारसभाया उत्तरपूर्वस्यां तस्याश्च अलंकारसभाया उत्तरपूर्वस्यां दिशि अत्र महत्येका व्यवसायसभा प्रज्ञप्ता, दिशि अत्र महत्येका व्यवसायसभा प्रज्ञप्ता, सा चाभिषेकसभावत्प्रमाणस्वरूपद्वारश्रय सा च अभिषेकसभावत् प्रमाण-स्वरूपमुखमण्डपादिवर्णनप्रकारेण तावद्वक्तव्या द्वारत्रय-मुखमण्डपादिवर्णनप्रकारेण तावद् यावदपरिवारं सिंहासनम् । वक्तव्या यावत् सिंहासनं सपरिवारम् । रायपसेणइयवृत्तौ 'न वक्तव्यानि' स्थाने 'च वक्तव्यानि' मुद्रितमस्ति । वृत्त्यनुसारेण अलंकारसभायाः व्यवसायसभायाश्च अभिषेकसभावत वर्णनमस्ति तेनानयोरपि सूत्रयोरपरिवारं सिंहासनं युज्यते । अत्र वृत्तौ च 'यावदपरिवारं सिंहासनं' स्थाने यावत परिवारसिंहासन' तथा 'यावत सिंहासनं सपरिवारं' इति मुद्रितमस्ति । जीवाजीवाभिगमवृत्तेः सन्दर्भे तथा प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तेर्दिन मुद्रितपाठोऽशुद्ध: प्रतीयते । तेनास्माभिः 'अपरिवारं' इति पाठः स्वीकृतः । ६. राय० सू० ३७-४० । Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरियाभो चिट्ठति ॥ २६६. तत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स सुबहु अभिसेयभंडे' संनिखित्ते चिट्ठइ । अट्ठट्ठ मंगलगा तहेव ' ॥ • अलंकारियसभा-पदं २६७. तीसे णं अभिसेगसभाए उत्तरपुरत्थिमेणं, 'एत्थ णं महेगा" अलंकारियसभा पण्णत्ता । जहा सभा सुधम्मा मणिपेढिया अट्ठ जोयाणाई' सीहासणं अपरिवारं ॥ २६८. 'तत्थ " सूरियाभस्स देवस्स सुबहु अलंकारियभंडे संनिखित्ते चिट्ठति । सेसं हे ' ॥ • ववसायसभा-पदं २६. तीसे णं अलंकारियसभाए उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महेगा ववसायसभा पण्णत्ता । जहा उववायसभा जाव मणिपेढिया सीहासणं अपरिवारं " अट्ठट्ठ" मंगलगा || २७० तत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स एत्थ णं महेंगे पोत्थयरयणे सन्निखित्ते चिट्ठइ । तस्स णं पोत्थयरयणस्स इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - 'रिट्ठामईओ कंबिआओ"", तवणिज्जमए" दोरे, नाणामणिमए गंठी, अंकमयाई पत्ताई", वेरुलियमए" लिप्पासणे", 'तवणिज्जमई संकला, रिट्ठामए छादणे", रिट्ठामई मसी, वइरामई लेहणी", रिट्ठामयाई अक्खराई, धम्मिए लेक्खे" || १. आभि (क, ख, ग, घ ) । २. अत्र प्रारम्भे 'अभिसेयसभाए णं उवर' इति वाक्यशेषः । ३. राय ० सू० २१-२३ । प्रमाण-स्वरूप द्वारत्रय ४. महा (क, ख, ग, घ ) । ५. अभिषेकसभावत् मुखमण्डप प्रेक्षागृह मण्डपादिवर्णनप्रकारेण तावद् वक्तव्या यावत् परिवारसिंहासनम् (वृ ) | राय० सू० २०६-२३७ । ६. राय ० सू० २६१ । ७. सपरिवारं (क, ख, ग, घ, च, छ); द्रष्टव्यं २६५ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । राय० सू० ३७-४० । ८. तओ (क, ख, ग, घ ) । ६. राय० सू० २६६ । १०. अभिषेकसभावत् १३६ प्रमाण-स्वरूप द्वारत्रय मुखमण्डपादिवर्णनप्रकारेण तावद् वक्तव्या यावत् सिहासनं सपरिवारम् (वृ) । राय० सू० २६०-२६१ । ११. सपरिवारं (क, ख, ग, घ, च, छ ); द्रष्टव्यं २६५ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । राय० सू० ३७-४० । १२. अत्र प्रारम्भे 'ववसायसभाए णं उर्वार' इति वाक्यशेषः । राय० सू० २१-२३ । १३. तस्स (क, ख, ग, घ ) । १४. रयणामइयाई रिट्ठाई उकंठियाई (क, ख, ग, च, छ ) ; रिट्ठकंठियाई रयणामयाई (घ ) । १५. रयणामए ( वृ ) ; जीवाजीवाभिगमवृत्ती ( पत्र २३७) रजतमयो दवरगः । १६. x (क, ख, ग, घ, च, छ ) । १७. नाणामणिमए ( वृ) ; जीवाजीवाभिगमवृत्तौ ( पत्र २३७ ) नाणामणिमयं लिप्यासनम् । १८. लिवासणे (क, ख, ग, च) ; लिवीमाणे (घ ) । १६. रिट्ठामए छंदणे तवणिज्जामई संकला ( क, ख, ग, घ, च, छ) । २०. लेहिणी (घ ) । २१. सत्थे (क, ख, ग, घ, च, छ, वृपा) । Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० रायपसेणइयं २७१. ववसायसभाए णं उरि अट्ठमंगलगा'। २७२. तीसे' णं ववसायसभाए उत्तरपुरत्थिमेणं, महेगे बलिपीढे पण्णत्ते-अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई वाहल्लेणं, सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे ।। २७३. तस्स णं बलिपीढस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महेगा' नंदा पुक्खरिणी पण्णत्ता । हरयसरिसा॥ सूरियाभदेव-पदं [तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरियाभे देवे सूरियाभे विमाणे उववातसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए उववण्णे ।] २७४. तए णं से सूरियाभे देवे अहुणोववण्णमित्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं' गच्छइ, [तं जहा-आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणपाणपज्जत्तीए भासमणपज्जत्तीए] । २७५. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तोए पज्जत्तिभावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था-'किं मे पुब्वि करणिज्जं ? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पुवि सेयं ? किं मे पच्छा सेयं ? कि मे पूवि पि पच्छा वि"हियाए सुहाए खमाए णिस्सेयसाए आणगामियत्ताए भविस्सइ ? || २७६. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववण्णगा देवा सूरियाभस्स देवस्स इमेयारूवं अज्झत्थियं चितियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं समुप्पण्णं समभिजाणित्ता जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छंति, सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं सूरियाभे विमाणे सिद्धायतणंसि जिणपडिमाणं जिणुस्सेहपमाणमेत्ताणं अट्ठसयं संनिखित्तं चिति । सभाए णं सुहम्माए माणवए चेइए खंभे, वइरामएस गोलवसमग्गएस बहूओ जिण-सकहाओ संनिखित्ताओ चिळंति । ताओ णं देवाणुप्पियाणं अण्णेसिं च बहूणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ 'वंदणिज्जाओ पूयणिज्जाओ माणणिज्जाओ सक्कारणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जाओ। तं एयण्णं देवाणुप्पियाणं पुव्वि करणिज्जं, तं एयण्णं देवाणुप्पियाणं पच्छा करणिज्ज, तं एयण्णं देवाणुप्पियाणं पुटिव सेयं, तं एयणं देवाणुप्पियाणं पच्छा सेयं, तं एयण्णं" देवाणुप्पियाणं १. राय० सू० २१-२३ । ६. पज्जत्तभावं (क, ख ग, घ, च, छ)। २. प्रयुक्तादर्शेषु २७२, २७३ सूत्रयोः क्रमभेदो ७. कोष्ठकान्तरवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । विद्यते । ८. किं मे पुदि सेयं किं मे पुवि पच्छाएवि ३. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । (क, ख, ग, घ, च) ४. राय० सू० २६२-२६४ । ६. सं० पा०-अज्झत्थियं जाव समुप्पण्णं । ५. एतत् कोष्ठकवत्तिसूत्रं आदर्शषु नोपलभ्यते, १०. सं० पा०-अच्चणिज्जाओ जाव पज्जुवासवत्तौ व्याख्यातमस्ति । णिज्जाओ। जीवाजीवाभिगमस्य ३।४३६ सूत्रेणापि अस्य ११. एतं णं (क, ख, ग, घ)। समर्थनं जायते ॥ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो पुचि पि' पच्छा वि हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सति ॥ सूरियाभस्स अभिसेग-पदं २७७. तए णं से सूरियाभे देवे तेसिं सामाणियपरिसोववण्णगाणं देवाणं अंतिए एयमढें सोच्चा निसम्म हट्टतुटु' 'चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण° हियए' सयणिज्जाओ अब्भुट्ठति, अब्भुठेत्ता उववायसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ, जेणेव हरए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता हरयं अणुपयाहिणीकरेमाणे-अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पुरत्थिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जलावगाहं करेइ, करेत्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता जलकिड्डं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुईभए हरयाओ पच्चोत्तरइ, पच्चोत्तरित्ता जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अभिसेयसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे-अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे सण्णिसण्णे ॥ २७८. तए णं सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववण्णगा देवा आभिओगिए देवे सहावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! सूरियाभस्स देवस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं इंदाभिसेयं उवट्ठवेह ॥ २७६. तए णं ते आभिओगिआ देवा सामाणियपरिसोववण्णेहिं देवेहिं एवं वुत्ता समाणा हट्ट' 'तुटु-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण हियया करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं देवा ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं' पडिसुणंति, पडिसुणित्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाई 'दंडं निसिरंति, तं जहा-रयणाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंजणाणं अंजणपुलगाणं रययाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसा.ति, परिसाडेता अहासुहुमे पोग्गले परियायंति, परियाइत्ता दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता अट्ठसहस्सं सोवण्णियागं कलसाणं, अट्ठसहस्सं रुप्पमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सं मणिमयाणं कलसाणं, असहस्सं सूवण्णरुप्पामयाणं कलसाणं, असहस्सं सूवण्णमणिमयाणं कलसाणं. अट्ठसहस्सं रुप्पमणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सं सुवण्णरुप्पमणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सं भोमिज्जाणं कलसाणं, एवं-भिंगाराणं आयंसाणं थालाणं पाईणं १. ४ (क, ख, ग, घ)। २. सं० पा०-हट्टतुट्ठ जाव हियए। ३. हयहियए (ख, ग, घ, च, छ) । ४. पुरथिमेणं (क, ख, ग, घ, च) । ५. सं० पा०-हट्ठ जाव हियया। ६. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. सं पा०-जोयणाइं जाव दोच्चं । ८. अट्ठसयं (क, ख, ग, घ, च)। Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ रायपसेणइयं सुपतिद्वाणं 'मणोगुलियाणं वायकरगाणं चित्ताणं" रयणकरंडगाणं, पुप्फचंगेरीणं' • मल्लचंगेरीणं चुण्णचंगेरीणं गंधचंगेरीणं वत्थचंगेरीणं आभरणचंगेरीणं सिद्धत्थचंगेरीण लोमहत्थचंगेरीणं, पुप्फपडलगाणं' 'मल्लपडलगाणं चुण्णपडलगाणं गंधपडलगाणं वत्थपडल गाणं आभरणपडलगाणं सिद्धत्थपडलगाणं लोमहत्थपडलगाणं, सीहासणाणं छत्ताणं चामराणं, तेल्लसमुग्गाणं • कोट्ठसमुग्गाणं पत्तसमुग्गाणं चोयगसमुग्गाणं तगरसमुग्गाणं एलासमुग्गाणं हरियालसमुग्गाणं हिंगुलयसमुग्गाणं मणोसिलासमुग्गाणं° अंजणसमुग्गाणं अस्सं झयाणं, अट्टसहस्सं' धूवकडुच्छुयाणं विउव्वंति, विउब्वित्ता ते साभाविए य वेउfore य कलसे य जाव कडुच्छुए य गिण्हंति, गिव्हित्ता सूरियाभाओ विमाणाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए" "चंडाए जवणाए सिग्धाए उद्धयाए दिव्वाए देवगईए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झमज्झेणं° वीतिवयमाणा - वीतिवयमाणा जेणेव खीरोदयसमुद्दे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता खीरोयगं गिति, गिण्हित्ता 'जाई तत्थुप्पलाई ' ' पउमाई कुमुयाई णलिणाई सुभगाई सोगंधियाई पोंडरीयाई महापोंडरीयाई सयवत्ताई' सहस्सपत्ताई ताई गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पुक्खरोद समुद्दे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पुक्खरोदयं गेण्हंति, गेण्हित्ता जाई तत्थुप्पलाई जाव सहस्सपत्ताई ताई गिण्हंति, गिहित्ता" जेणेव समयखेत्ते जेणेव भर हेरवयाइं वासाई जेणेव मागहवरदामपभासाई तित्थाइं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तित्थोदगं गेव्हंति, गेण्हित्ता तित्थमट्टियं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव गंग - सिंधू - रत्ता-रत्तवईओ महानईओ तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदग़ " हंति, गेण्हित्ता उभओकूलमट्टियं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव चुल्लहिमवंत सिहरि वासहरपव्वया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वत्यरे" सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पउम - पुंडरीय दहा " तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दहोदगं गेव्हंति, गेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताई ताई गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव हेमवय- एरण्णवयाइं वासाइं जेणेव रोहिय" -रोहियंस -सुवण्णकूलरुप्पकूलाओ महाणईओ तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता १. x ( क, ख, ग, घ, च, I २. सं० पा० - पुप्फ चंगेरीणं जाव लोमहत्यचंगेरीणं । ३. सं० पा० - पुप्फपडलगाणं जाव लोमहत्थपडलगाणं । ४. सं० पा० - तेल्लसमुग्गाणं जाव अंजणसमुग्गाणं । ५. असयं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. ॰च्छयाणं (क, ख, ग, घ, च, छ ) 1 ७. सं० पा० - चवलाए जाव तिरियमसंखेज्जाणं जाव वीतिवयमाणा । ८. संपा० -- तत्थुप्पलाई जाव सहस्सपत्ताई । ९. जाई तत्थुप्पलाई ताई गेण्हंति गेण्हित्ता (क, ख, ग, घ ) । १०. सरितोदगं ( जी० ३।४४५) । ११. सव्वतुरे (क, ख, ग, घ, च, छ) । १२. 'दहे (छ) । १३. x (क, ख, ग, घ ) । Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १४३ उभओकूलमट्टियं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव 'सद्दावाति-वियडावाति"-वट्टवेयड्ढपव्वया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्व तूयरे' 'सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए गिण्हंति, गिण्हित्ता' जेणेव महाहिमवंत-रुप्पिवासहरपव्वया तेणेव उवागच्छंति', 'उवागच्छित्ता सव्वतूयरे सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए गिण्हंति गिण्हित्ता जेणेव महापउम-महापुंडरीयद्दहा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दहोदगं गिण्हंति, गिण्हित्ता 'जाइं तत्थ उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई ताइं गेहंति, गेण्हित्ता जेणेव हरिवासरम्मगवासाइं जेणेव हरि-हरिकंत-नरनारिकताओ महाणईओ तेणेव उवागच्छंति', 'उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता उभओकूलमट्टियं गेण्हंति गेण्हित्ता जेणेव गंधावालि-मालवंतपरियागा वट्टवेयड्ढपव्वया तेणेव 'उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव णिसढ-णीलवंत-वासधरपव्वया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव तिगिच्छि-केसरिदहाओ तेणेव उवागच्छंति", 'उवागच्छित्ता दहोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जाइं तत्थ उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताई ताई गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव पुव्व विदेहावरविदेहवासाइं२ जेणेव सीता"-सीतोदाओ महाणदीओ तेणेव उवागच्छंति", "उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेहंति, गेण्हित्ता उभओकूलमट्टियं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव सव्वचक्कवट्टिविजया जेणेव सव्वमागहवरदामपभासाइं तित्थाई 'तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तित्थोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता तित्थमट्टियं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव सव्वंतरणईओ 'तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेहंति, गेण्हित्ता उभओकूलमट्टियं गेहंति, गेण्हित्ता जेणेव सव्ववक्खारपव्वया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे 'सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए य गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव मंदरे पव्वते जेणेव भद्दसालवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वत्यरे सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए य गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव णंदणवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए य सरसं च गोसीसचंदणं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव सोमणसवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे जाव १. सद्दावतिवियडावतिपरियागा (क, ख, ग, घ, ६. सं० पा०-वासधरपव्वया तहेव जेणेव । च,छ) स्वीकृतपाठः वृत्त्यनुसारी वर्तते । द्रष्टव्यं १०. तिगच्छि (क, घ, ग, घ, च)। _ 'ठाणं' ४१३०७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ११. सं० पा०-उवागच्छंति तहेव जेणेव । २. सं० पा.-सव्वतूयरे तहेव जेणेव । १२. महाविदेहेवासे (क, ख, ग, घ, च, छ) । ३. सं० पा०-उवागच्छंति तहेव जेणेव । १३. ४ (क, ख, ग, घ)। ४. सं० पा०-गिण्हित्ता तहेव जेणेव । १४. सं० पा०-उवागच्छंति तहेव जेणेव । ५. हरिसलिल (क, ख, ग घ, च, छ)। १५. जीवाजीवाभिगमे (३।४४५) 'वक्खारपव्वया' ६. नरकंतो (घ); नारिकंताओ (छ) । पाठः अत: पूर्व विद्यते। ७. सं० पा०-उवागच्छंति तहेव जेणेव । १६. सं० पा०-सव्वंतरणईओ जेणेव । ८. सं० पा० तेणेव तहेव जेणेव । १७. सं० पा०-सव्वतूयरे तहेव जेणेव । Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ रायपसेणइयं सव्वोसहिसिद्धत्थए य सरसं च गोसीसचंदणं च दिव्वं च 'सुमणदाम गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पंडगवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए च सरसं च गोसीसचंदणं च दिव्वं च" सुमणदामं दद्दरमलयसुगंधियगंधे गिण्हंति, गिण्हित्ता एगतो मिलायंति, मिलाइत्ता ताए उक्किट्ठाए' 'तुरियाए चवलाए चंडाए जवणाए सिग्याए उद्ध्याए दिव्वाए देवगईए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झमज्झेणं वीईवयमाणावीईवयमाणा जेणेव सोहम्मे कप्पे जेणेव सूरिया भे विमाणे जेणेव अभिसेयसभा जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धाति, बद्धावेत्ता तं महत्थं महग्धं महरिहं विउलं इंदाभिसेयं उवट्ठति ॥ २८०. तए णं तं सूरियाभं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ, चत्तारि अग्गमहिसीओ सपरिवारातो, तिण्णि परिसाओ, सत्त अणियाओ, सत्त अणियाहिवइणो', 'सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ, अण्णेवि बहवे सूरियाभविमाणवासिणो देवा य देवीओ य तेहिं साभाविएहि य वेउव्विएहि य वरकमलपइट्ठाणेहि सुरभिवरवारिपडिपुण्णेहिं चंदणकयचच्चाएहिं आविद्धकंठेगुणेहिं पउमुप्पलपिहाणेहि सुकुमालकरयलपरिग्गहिएहिं अट्ठसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाणं', 'अट्ठसहस्सेणं रुप्पमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सेणं मणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सेणं सुवण्णरुप्पामयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सेणं सुवण्णमणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सेणं रुप्पमणिमयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सेणं सुवण्णरुप्पमणिमयाणं कलसाणं', अट्ठसहस्सेणं भोमिज्जाणं कलसाणं सव्वोदएहिं सव्वमट्टियाहिं सव्वतूयरेहिं 'सव्वपुप्फेहिं सव्वगंधेहिं सव्वमल्लेहिं॰ सव्वोसहिसिद्धत्थएहिं य सव्विड्ढीए जाव" नाइयरवेणं" महया-महया इंदाभिसेएणं अभिसिंचंति ।। अभिसेगकाले देवकिच्च-पदं २८१. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स महया-महया इंदाभिसेए वट्टमाणे-अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं नच्चोयगं नातिमट्टियं पविरलफुसियरयरेणुविणासणं दिव्वं सुरभिगंधोदगवासं वासंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं हयरयं नट्ठरयं भट्ठरयं उवसंतरयं पसंतरयं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं आसियसंमज्जिवलित्तं सुइ-संमट्ठरत्यंतरावणवीहियं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं मंचाइमंचकलियं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं णाणाविहरागोसियझयपडागाइपडागमंडियं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं लाउल्लोइयमहियं गोसीससरसरत्तचंदणदद्दर१. X (क, ख, घ, घ)। ८.सं० पा०-कलसाणं जाव अट्टसहस्सेणं । २. सं० पा०--उक्किट्टाए जाव जेणेव । ६. सं० पा०-सव्वतूयरेहिं जाव सव्वोसहिसिद्ध३. सेयं तो (क, ख, ग, घ, च, छ) । त्थएहिं । ४. सं० पा०-अणियाहिवइणो जाव अण्णेवि। १०. राय० सू०१३ । ५. "टाणेहि य (क, ख, ग, घ, च, छ)। ११. नाइएणं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ) । १२. सुइं (क, ख, ग, घ); सुयं (छ) । ७. °सएणं (क, ख, ग, घ, च, छ) । Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १४५ दिण्णपंचंगुलितलं करेंति, अप्पेगतिया देवा सुरियाभं विमाणं उवचियवंदणकलसं वंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं पंचवण्णसुरभि'-मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं कालागरुपवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-मघमघेतगंधुद्धयाभिरामं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं सुगंधगंधियं गंधवट्रिभूतं करेंति, अप्पेगतिया देवा हिरण्णवासं वासंति, सुवण्णवासं वासंति, रयणवासं वासंति वइरवासं वासंति, पुप्फवास वासंति, ‘फलवासं वासंति", मल्लवासं वासंति, गंधवासं वासंति, चुण्णवासं वासंति, आभरणवासं वासंति, अप्पेगतिया देवा हिरण्णविहिं भाएंति, एवं-सुवण्णविहिं रयणविहिं पुप्फविहिं फलविहिं मल्लविहिं गंधविहिं चुण्णविहिं आभरणविहिं भाएंति, अप्पेगतिया देवा चउन्विहं वाइत्तं वाएंतिततं विततं घणं सुसिरं, अप्पेगइया देवा चउव्विहं गेयं गायंति, तं जहा-उक्खित्तायं पायंतायं मंदायं रोइयावसाणं, अप्पेगतिया देवा दुयं नट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा विलंबियं णट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा दुय-विलंबियं णट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा अंचियं नट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा रिभियं नट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगइया देवा अंचिय-रिभियं नट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगइया देवा आरभडं नट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगइया देवा भसोलं नट्टविहिं उवदंसें ति, अप्पेगइया देवा आरभड-भसोलं नट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेइगया देवा उप्पायनिवायपसत्तं संकुचिय-पसारियं रियारियं भंत-संभंतं णामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा चउन्विहं अभिणयं अभिणयंति, तं जहा-दिह्रतियं पाडंतियं सामन्नओविणिवाइयं लोगमज्झावसाणियं, अप्पेगतिया देवा 'बुक्कारेंति, अप्पेगतिया देवा पीणेति, अप्पेगतिया लासेंति, अप्पेग तिया तंडवेंति", अप्पेगतिया बुक्कारेंति, पीणें ति, लासें ति, तंडवेंति, अप्पेगतिया अप्फोडेंति, अप्पेगतिया वगंति, अप्पेगतिया तिवई छिंदति, अप्पेगतिया अप्फोडें ति, वग्गंति, तिवई छिंदंति, अप्पेगतिया हयहेसियं करेंति, अप्पेगतिया हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, अप्पेगतिया रहघणघणाइयं करेंति, अप्पेगतिया हयहेसियं करेंति, हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, रहघणघणाइयं करेंति, अप्पगतिया “उच्छलेंति, अप्पेगतिया पोच्छलेंति", अप्पेगतिया उक्किट्टियं १. वण्णसरससुरभि (ओ० सू० २)। ६. पायत्तायं (क, ख, ग, घ, च, छ)। २. सुगंधियं (घ); सुगंधवरगंधगंधिए (ओ० ७. रोइंदा' (क, ख, ग, घ, च, छ); द्रष्टव्यं सू० २)। ११५ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ३. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । ८. रेयाइयं (क, ख, ग, घ, च, छ)। ४. अतः परं वइरविहिं' इति पाठः प्राप्तोस्ति, ६. सामंतो (क, ख, ग, च, छ); द्रष्टव्यं ११७ किन्त आदर्शेष नोपलभ्यते जीवाजीवाभिगम- सूत्रस्य पादटिप्पणम। वृत्ती 'वइरवासं वइरविहि' एतौ द्वावपि न स्तो १०. वक्कारेंति अप्पेगतिया पीणेति अप्पेगतिया व्याख्यातौ। आगसेंति अप्पेगतिया तंडावेंति (क, च)। ५. तत्थ अप्पेगइया देवा आभरण' (क, ख, ग, ११. उच्छोलेंति अप्पेगतिया पच्छोलेंति (क, ख, ग, घ, च, छ)। Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ रायपसेणइयं करेंति, अप्पेगतिया उच्छलेंति, पोच्छलेंति, उक्किट्टियं करेंति, अप्पेगतिया ओवयंति', अप्पेगतिया उप्पयंति, अप्पेगतिया परिवयंति, अप्पेगइया तिण्णि वि, अप्पेगइया सीहनायं नयंति, अप्पेगतिया पाददद्दरयं करेंति, अप्पेगतिया भूमिचवेडं दलयंति, अप्पेगतिया तिण्णि वि, अप्पेगतिया गज्जंति, अप्पेगतिया विज्जुयायंति, अप्पेगइया वासं वासंति, अप्पेगतिया तिण्णि वि करेंति, अप्पेगतिया जलंति, अप्पेगतिया तवंति, अप्पेगतिया पतवेंति, अप्पेगतिया तिण्णि वि, अप्पेगतिया हक्कारेंति, अप्पेगतिया थुक्कारेंति', अप्पेगतिया थक्कारेंति, अप्पेगतिया 'साइं साइं नामाइं साहेति", अप्पेगतिया चत्तारि वि, अप्पेगतिया देवसण्णिवायं करेंति, अप्पेगतिया देवुज्जोयं करेंति, अप्पेगइया देवुक्कलियं करेंति, अप्पेगइया देवकहकहगं" करेंति, अप्पेगतिया देवदुहदुहगं करेंति, अप्पेगतिया चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगइया देवसण्णिवायं, देवुज्जोयं, देवुक्कलियं, देवकहकहगं, देवदुहदुहगं, चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगतिया उप्पलहत्थगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया, अप्पेगतिया वंदणकलसहत्थगया अप्पेगतिया भिंगारहत्थगया जाव' धूवकडुच्छयहत्थगया हट्ठतु?' 'चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण हियया सव्वओ समंता आहावंति परिधावंति। वद्धावण-पदं २८२. तए णं तं सूरियाभं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अण्णे य बहवे" सूरियाभरायहाणिवत्थव्वा देवा य देवीओ य महया-महया इंदाभिसेगेणं अभिसिंचंति, अभिसिंचित्ता पत्तेयं-पत्तेयं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-जय-जय नंदा ! जय-जय भहा ! 'जय-जय नंदा ! भई ते", अजियं जिणाहि, जियं च पालेहि, जियमझे वसाहि-इंदो इव देवाणं, चंदो इव ताराणं, चमरो इव असुराणं, धरणो इव नागाणं, भरहो इव मणुयाणं-बहूइं पलिओवमाइं बहूई सागरोवमाइं बहूइं पलिओवम-सागरोवमाई चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं सूरियाभस्स विमाणस्स अण्णेसिं च बहूणं सूरियाभविमाणवासीणं देवाण य देवीण य 'आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहराहि त्ति कटु महया-महया सद्देणं जय-जय सदं पउंजंति ॥ १. जीवाजीवाभिगमे (३।४४७) केषाञ्चित् १०. बहेव य (क, ख, ग, घ)। पदानां व्यत्ययो दृश्यते।। ११. जय नंदा भई ते (क, ख, ग, छ); जय जय २. वुक्कारेंति (च, छ); थूत्कुर्वन्ति (वृ)। भदं ते (घ)। ३. साई नामाई सावेंति (क, ख, ग, घ, च, छ)। १२. यद्यपि प्रतिषु 'आहेवच्चं जाव महया-महया ४. अप्पेगइया देवा (क, ख, ग, घ, च, छ)। कारेमाणे पालेमाणे विहराहि' एवं पाठो लभ्यते, ५. देवा (क, ख, ग, घ, च, छ)। किन्तु लिपिदोषादसौ पाठः अशुद्धो जात इति ६. दुहुदुहुगं (क, ख, ग, घ, च, छ)। प्रतीयते । जीवाजीवाभिगमे (३।४४८) एष ७. राय० सू० २७६ । पाठः समीचीनो वर्तते-आहेवच्चं जाव ८. सं० पा०-हट्टतुट्ठ जाव हियया। आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे ६. अतः परं सूरियाभे विमाणे' इति पाठोपेक्ष्यते, विहराहित्ति कट्ट महता-महता सद्देणं जय-जय द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३।४४७ सूत्रम् ।। सई पउंजति । Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो अलंकरण-पदं २८३. तए णं से सूरियाभे देवे महया- महया इंदाभिसेगेणं अभिसित्ते समाणे ' अभिसेसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छति, निग्गच्छित्ता जेणेव अलंकारियसभा ' तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अलंकारियसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे - अणुपयाहिणीकरेमाणे अलंकारिसभं पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासणवरगते पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे || २८४. तणं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववण्णगा देवा अलंकारियभंड वेंति ॥ २८५. एणं से सूरियाभे देवे तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए सुरभीए गंधकासाईए गाया लूति, लत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलिपति, अणुलिपित्ता नासानीसास - वाय- वोज्झं चक्खुहरं वण्णफरिसजुत्तं हयलाला पेलवातिरेगं धवलं कणग-खचियंतकम्मं आगासफालिय-समप्पभं दिव्वं देवदूसजुयलं नियंसेति, नियंसेत्ता हारं पिणिद्धेति, पिणित्ता अद्धहारं पिणिद्धेइ, पिणिद्धेत्ता एगावलि पिणिद्धेति, पिणिद्धेत्ता मुत्तावलि पिणिद्धेति, पिणिद्धेत्ता रयणावलि पिणिद्धेइ, पिणिद्धेत्ता एवं - अंगयाई केयूराई कडगाई तुडियाई कत्तिगं' दसमुद्दाणंतगं विकच्छसुत्तगं मुरवि कंठमुरवि पालंबं कुंडलाई चूडामणि चित्तरयणसंकड* मउड-पिणिद्धेइ, पिणिद्धेत्ता गंथिम- वेढिम- पूरिम-संघाइमेणं चविणं मल्लेणं कप्परुक्खगं पिव अप्पाणं अलंकिय-विभूसियं करेइ, करेत्ता दद्दरमलयसुगंधगंधिएहिं गायाई भुकुंडेति' दिव्वं च सुमणदामं पिणिइ ॥ २८६. तए णं से सुरियाभे देवे केसालंकारेणं मल्लालंकारेणं आभरणालंकारेणं वत्थालंकारेण - चउव्विहेणं अलंकारेणं अलंकियविभूसिए समाणे पडिपुण्णालंकारे सीहासणाओ अब्भुट्ठेति, अब्भुट्ठेत्ता अलंकारियसभाओ पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छति, ववसायसभं अणुपयाहिणीकरेमाणेअणुपयाहिणीकरेमाणे पुरत्थि मिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे' तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहा सणवरगते पुरत्थाभिमुहे सण्णिसणे ॥ २८७. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववण्णगा देवा पोत्थयरयणं उणें ॥ १४७ सिद्धायतणपवेस-पदं २८८. तते गं से सूरियाभे देवे पोत्थयरयणं गिण्हति गिण्हित्ता 'पोत्थयरयणं मुयइ, १. माणे (क, ख, ग, घ ) । २. आलंकारिया (क, ख, ग ) । ३. कडिसुत्तगा ( क, ख, ग, घ, च) । ४. प्रयुक्तादर्शेषु एष पाठो नोपलभ्यते, वृत्तौ एष व्याख्यातोस्ति । भगवत्यां ( ६।१९० ) एवं जहा सूरियाभस्स अलंकारो तहेव जाव चित्तं' इति समर्पणपाठोस्ति तद्वृत्तो 'रयणसंकडुक्कड' इति पाठो व्याख्यातोस्ति । ५. भखंडेइ (क, ख, ग, घ, च, छ); द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३।४५१ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ६. सं० पा०- सीहासणे जाव सण्णिसण्णे । ७. उवणमंति (क, ख, ग, घ, च, छ ) । Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ रायपसेणइयं मुत्ता" पोत्थय रयणं विहाडेइ, विहाडित्ता पोत्थयरयणं वाएति, वाएत्ता धम्यियं ववसायं 'ववसइ, ववसइत्ता” पोत्थयरयणं पडिणिक्खिवइ', पडिणिक्खिवित्ता सीहासणातो अब्भुट्ठेति, अब्भुट्ठेत्ता ववसायसभातो पुरथिमिल्लेणं दारेणं पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव नंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता णंदं पुक्खरिणि पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता हत्थपादं पक्खालेति, पक्खालेत्ता आयंते चोक्खे परमसुईभूए एगं महं सेयं रययामयं विमलं सलिलपुण्णं मत्तगयमहामहागितिसमाणं भिगारं पगेण्हति, पगेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई 'पउमाई कुमुयाई णलिणाई सुभगाई सोगंधिया पोंडरीयाई महापोंडरीयाई सयवत्ताई' सहस्सपत्ताई ताई गेण्हति, हत्ता दातो पुक्खरिणीतो 'पच्चोत्तरति, पच्चोत्तरित्ता" जेणेव सिद्धायतणे तेणेव पहारेत्थ गमणाए । २८. तए णं तस्स सूरियाभरस देवस्स" चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अण्णे य बहवे सूरियाभविमाणवासिणो' 'वैमाणिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया उप्पल हत्थगया जाव सहस्रपत्तहत्थगया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पितो समणुगच्छंति । २६०. तए णं 'तस्स सूरियाभस्स देवस्स” आभिओगिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया वंदणकलसहत्थगया जाव अप्पेगतिया धूवकडुच्छुयहत्थगया हट्टतुट्ट" - "चित्तमाणं दिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस - विसप्पमाण हियया सूरियाभं देवं तो-पितो समनुगच्छति ॥ २१. तए से सूरियाभे देवे चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव आयरक्खदेवसाहवह य" "सूरियाभविमाणवासीहि वेमाणिएहि देवेहिय देवीहि यसद्धि संपरिवडे सव्विड्ढी जाव" णातियरवेणं जेणेव सिद्धायतणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सिद्धायतणं * पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव देवच्छंद जेणेव १. x ( क, ख, ग, घ, च, छ) । १३. राय० सू० १३ । ३. पडिणिक्खवइ ( क ) ; पडिक्खिवइ ( ख, ग, घ ) । ४.x क, ख, ग, च, छ ) । २. गिहिति गिहित्ता ( क, ख, ग ) गिण्हति १४. जीवाजीवाभिगमे ( ३।४५७ ) अतो यः गिव्हित्ता (घ ) । पाठोस्ति स प्रकरणदृष्ट्या सङ्गतोस्ति । प्रस्तुतसूत्रादर्श स नोपलभ्यते । वृत्तिश्च संक्षिप्तास्ति किन्तु तं पाठं बिना प्रकरणसम्बन्धो नैव जायते स च एवमस्ति - अप्पयाहिणीकरेमाणे - अणुप्पयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता आलोए जिणपडिमाणं पणामं करेति, करेत्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवच्छंदए जेणेव जिणपडिमाओ तेणेव उवागच्छई, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता जिणपडिमाओ पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वा दगधाराए हावेति, महावित्ता सरसेणं ५. सं० पा० – उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताइं । ६. पच्चो रुहति पच्चो रुहित्ता (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. तं सूरियाभं देवं (क, ख, ग, घ, च, छ ) । ८. सं० पा० - सूरियाभविमाणवासिणो देवीओ | जाव ६. तं सूरियाभं देवं (क, ख, ग, च, छ) । १०. राय० सू० २७६ । ११. सं० पा० - हट्टतुट्ट जाव सूरियाभं । १२. सं० पा० - बहूहि य जाव देवेहि । Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १४६ जिणपडिमाओ तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जिणपडिमाणं आलोए पणाम करेति, कत्ता लोमहत्थगं गिहति, गिव्हित्ता 'जिणपडिमाणं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता " freefsमाओ सुरभिणा' गंधोद णं ण्हाएइ, व्हाइत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलिपइ, अणुलिपइत्ता, जिणपडिमाणं अयाई देवसजुयलाई नियंसेइ नियंसेत्ता 'अग्गेहिं वरेहिं गंधेहि मल्लेहि य अच्चेइ, अच्चेत्ता पुप्फारुहणं मल्लारुहणं वण्णारुहणं चुण्णारुहणं गंधारुणं आभरणारुहणं” करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तवि उलवट्टवग्घारियमल्ल दामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गहगहियक रयलपब्भट्टविप्पमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता जिप डिमाणं पुरतो अच्छेहिं सहेहिं रययामएहि अच्छरसा' - तंदुलेहि अट्ठट्ठ मंगले आलिहइ, तं जहा – सोत्थियं • सिरिवच्छं नंदियावत्तं वद्धमाणगं भद्दासणं कलसं मच्छं दप्पणं ॥ थुइ-पदं .११ २६२. तयानंतरं चणं चंदप्पभ - वइरवेरुलिय' - विमलदंडं कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-मघमघेत-गंधुत्तमाणुविद्धं च धूवर्वाट्ट विणिम्मयंत वेरुलियमयं कडुच्छुयं पग्गहिय पयत्तेणं' धूवं दाऊण जिणवराणं सत्तट्ठ पदाणि ओसरति, ओसरित्ता संगुलि अंजलि करियमत्थयम्मि य पयत्तेणं," अट्ठसय विसुद्धगंथजुतेहि अत्थजुत्तेहि " अपुणरुत्तेहि महावितेहि संथणइ, संथुणित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचित्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंस हिट्ट तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवाडेइ", निवाडित्ता ईसि पच्चुण्णमइ, पच्चनमित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी -- नमोत्थुणं अरहंताणं भगवंताणं आदिगराणं तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं पुरिसोत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाण पुरिसवरगंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं लोगणाहाणं लोगहिआणं लोगपईवाणं गोसीसचंदणेणं गाताई अणुलिप, अणुलिपित्ता पिडिमा अाई देवदूतजुयलाई णियंसेइ, नियंसेत्ता अग्गेहि वरेहिं गंधेहि मल्लेहि य अच्चेति, अच्चेत्ता पुप्फारुहणं मल्लारुहणं वण्णारुहणं चुण्णारुहणं गंधारुहणं आभरणारुहणं करेति, करेत्ता जिणपडिमाणं पुरतो अच्छे हि सहि रययामहिं अच्छरसा-तंदुलेहि अट्ठमंगलए आलिहति, आलिहिता कयगाहग्गहितकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दसद्धवणेणं कुसुमेणं पुष्कपुंजोवयारकलितं करेति, करेत्ता o चंदप्प १. x ( क, ख, ग, च, छ) । २. सुरभि (क, ख, ग, घ, च, छ ) । ३. × (क, ख, ग, घ, छ); स्वीकृत: पाठो जीवाजीवाभिगमवृत्तावपि (पत्र २५४ ) व्याख्या - तोस्ति । ४. सहेहि सेएहि (च, छ) । ५. अच्छरसाहि (क, ख, ग, घ, च, छ); जीवाजीवाभिगमवृत्तौ ( पत्र २५४ ) अच्छरसतन्दुलाः पूर्वपदस्य दीर्घान्तता प्राकृतत्वात् । ६. अट्ठ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. सं० पा० सोत्थियं जाव दप्पणं । ८. रणवइरवेरुइय (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. पत्तयं (क, ख, ग, च) ; पत्तेयं (घ ) । १०. x ( क, ख, ग, घ, च, छ) । ११. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । १२. संथुणित्ता सत्तट्ठपयाई पच्चोसक्कइ पच्चोसकित्ता (क, ख, ग, घ, च, छ) । १३. निवडेइ (क, ख, ग, घ, च, छ) । Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० रायपसेणइयं लोगपज्जोयगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं वोहिदयाणं धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मणायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं अप्पडिहयवरणाणदसणधराणं विअट्टच्छउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाणं बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं सिवं अयलं अरुअं अणंतं अक्खयं अव्वावाहं अपुणरावित्तिसिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्ताणं बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता २६३. जेणेव सिद्धायतणस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितलं 'दलयइ, दल इत्ता कयग्गहगहियं' 'करयलपब्भट्ठविप्पमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फ पुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयइ, दल यित्ता-- ० दाहिणिल्लं पइ गमण-पदं २६४. जेणेव सिद्धायतणस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ. परामुसित्ता दारचेडाओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्त 'विउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गहगहियक रयलपब्भट्ठविप्पमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयइ, दलयित्ता २६५. जेणेव दाहिणिल्ले दारे मुहमंडवे जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता बहुमज्झदेसभागं लोमहत्थेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भक्खेइ, अब्भक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितलं मंडलगं आलिहइ, आलिहित्ता कयग्गहगहिय करयलपन्भट्ठविप्पमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयइ, दलयित्ता २६६. जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स पच्चत्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता दारचेडाओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलयित्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्त' •विउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गहगहियकरयलपब्भट्ठविप्पमुक्केणं दसद्धवण्णणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयइ, १. उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता सिद्धायतणस्स बहुमझदेसभागं लोमहत्थेणं पमज्जति पमज्जित्ता (क, ख, ग, घ, च, छ) । २. पंचांगुलितलं ददाति (व); मंडलगं आलिहइ, आलिहित्ता (क, ख, ग, घ, च, छ) । ३. कयग्गाह (क, ख, ग, घ, छ) । सं० पा०-कयग्गहगहियं जाव पुंजोवयारकलियं । ४. सं० पा०-आसत्तोसत्त जाव धूवं । ५. सं० पा०–कयग्गहगहिय जाव धूवं । ६. सं० पा०-आसत्तोसत्त कयग्गहगहिय धूवं । Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो दलयित्ता - २७. जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स उत्तरिल्ला खंभपंती तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थं परामुसइ, परामुसित्ता खंभे य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जिना जहा चेव पच्चत्थिमिल्लस्स दारस्स जाव' धूवं दलयइ, दलयित्ता २६८. जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरत्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता दारचेडाओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थे मज्जइ, पमज्जित्ता तं चैव सव्वं ॥ २६९ जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दारचेडाओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता तं चेव' सव्वं ॥ ३००. जेणेव दाहिणिल्ले पेच्छाघरमंडवे जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स बहुमज्झदेसभागे जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता अक्खाडगं च मणिपेढियं च सीहासणं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलयित्ता पुप्फारुहणं" "जाव आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्ल दामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गहगहियकरयल पब्भट्टविप्पमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता° धूवं दलयइ, दलइत्ता--- १५१ ३०१. जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पच्चत्थिमिल्ले दारे" "तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव ॥ ३०२. जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे ( उत्तरिल्ला खंभपंती' ? ) तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव ।। ३०३. जेणेव दाहिणिल्लरस पेच्छाघरमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव ॥ ३०४. जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' तं चेत्र ॥ १. राय० सू० २६६ । २. राय० सू० २६६ । ३. राय० सू० २६६ । ४. सं० पा० - पुप्फारुहणं आसत्तोसत्त जाव धूवं । ५. सं० पा० - पच्चत्थिमिल्ले दारे तं चेव, उत्तरिल्ले दारे तं चेव, पुरथिमिल्ले दारे तं चेव, दाहिणिल्ले दारे तं चैव । ६. राय० सू० २६६ । ७. यथा - २६७ सूत्रे 'उत्तरिल्ला खंभपंती' ३२५, ३३० सूत्रयोः 'दाहिणिल्ला खंभपंती' ३३५,३४० सूत्रयोः पच्चत्थिमिल्ला खंभपंती' - इति पाठो विद्यते, अतः अस्मिन् सूत्रे 'उत्तरिल्ले दारे' इत्यस्य स्थाने 'उत्तरिल्ला खंभपंती' इति पाठो युज्यते । किन्तु एष पाठो वृत्तौ प्रतिषु च क्वापि नोपलब्ध: तेन मूलपाठे 'उत्तरिल्लेदारे' इत्येव सुरक्षित: । Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ रायपसेणइयं ३०५. जेणेव दाहिणिल्ले चेइयथूभे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' 'लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता चेइय° थूभं च मणिपेढियं च "लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलयित्ता पुप्फारुहणं' •जाव आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गहगहियकरयलपब्भट्ठविणमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता ध्वं दलयइ, दलयित्ता--- ३०६. जेणेव पच्चत्थिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पच्चथिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जिणपडिमाए आलोए पणामं करेइ, करेत्ता तं चेव ।। ३०७. जेणेव उत्तरिल्ला मणिपेढिया जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव सव्वं ।। ३०८. जेणेव पुरथिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव ॥ ३०६. जेणेव दाहिणिल्ला मणिपेढिया जेणेव दाहिणिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव सव्वं ।। _३१०. जेणेव दाहिणिल्ले चेइयरुक्खे तेणेव उवागच्छइ, "उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामसित्ता चेइयरुक्खं च मणिपेढियं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता तं चेव ।। ३११. जेणेव दाहिणिल्ले महिंदज्झए 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामु सित्ता महिंदज्झयं च मणिपेढियं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता' तं चेव सव्वं ॥ ३१२. जेणेव दाहिणिल्ला नंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता तोरणे य तिसोवाणपडिरूवए य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भक्खेइ, अब्भक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं "चच्चए दलयइ, दलयित्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं करेइ, करेता कयग्गहगहियकरयलपब्भट्ठविप्पमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता° धूवं दलयति, दलइत्ता० उत्तरिल्लं पइ गमण-पदं ३१३. सिद्धायतणं अणुपयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला णंदापुक्खरिणी तेणेव १. सं. पा०-उवागच्छित्ता थूभं । ६. राय० सू० २६४ । २. सं० पा०-मणिपेढियं च दिव्वाए। १०. सं० पा०-महिंदज्झए तं चेव । ३. सं० पा०-पुप्फारहणं आसत्तोसत्त जाव धूवं । ११. राय० सू० २६४ । ४. राय० सू० २६१,२६२ । १२. सं० पा०-गोसीसचंदणेणं पुप्फारुहणं आस५,६,७. राय० सू० २६१, २६२ । त्तोसत्त धूवं । ८. सं० पा०-उवागच्छइ तं चेव । Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १५३ उवागच्छति, उवागच्छित्ता तं चेव' । ३१४. जेणेव उत्तरिल्ले महिंदज्झए तेगेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' । ३१५. जेणेव उत्तरिल्ले चेइय रुक्खे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३१६. जेणेव उत्तरिल्ले चेइयथूभे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' । ३१७. जेणेव पच्चत्थिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पच्चथिमिल्ला जिणपडिमा' 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव ॥ ३१८. जेणेव उत्तरिल्ला मणिपेढिया जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव ॥ ३१६. जेणेव पुरथिमिल्ला मणिपढिया जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव ॥ ३२०. जेणेव दाहिणिल्ला मणिपेढिया जेणेव दाहिणिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव ॥ ३२१. जेणेव उत्तरिल्ले पेच्छाघरमंडवे जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स बहमज्झदेसभागे जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जा चेव दाहिणिल्ले वत्तव्वया सा चेव सव्वा । ३२२. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पच्चत्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३२३. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता" । ३२४. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ।। ३२५. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स दाहिणिल्ला खंभपंती तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता॥ ३२६. जेणेव उत्तरिल्लस्स दारे मुहमंडवे जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता" ॥ ३२७. जेणेव उत्तरिल्ले मुहमडवस्स पच्चत्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता" ।। ३२८. जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता॥ ३२९. जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, १. राय० सू० ३१२ । २. राय० सू० ३११ । ३. राय० सू० ३१० । ४. सं० पा०-जिणपडिमा तं चेव । ५,६,७,८. राय० सू० ३०६ । ६. राय० सू० ३००। १०,११,१२. राय० सू० २६६ । १३. राय० सू० २६७ । १४. राय० सू० २६५ । १५,१६. राय० सू० २६६ । Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं उवागच्छित्ता। ३३०. जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिणिल्ला खंभपंती तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता॥ ३३१. जेणेव सिद्धायतणस्स उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं चेव ॥ ० पुरथिमिल्लं पइ गमण-पदं ३३२. जेणेव सिद्धायतणस्स पुरिथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता॥ ३३३. जेणेव पुरथिमिल्ले दारे मुहमंडवे जेणेव पुरिथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स बहुमज्झदेसभागे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३३४. जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे' 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता । ३३५. जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स पच्चथिमिल्ला खंभपंती तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता॥ ___ ३३६. जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता॥ ३३७. जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३३८. जेणेव पुरथिमिल्ले पेच्छाघरमंडवे 'जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता" ।। ३३६. जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३४०. जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पच्चत्थिमिल्ला खंभपंती तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता" ॥ ३४१. जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ १. राय० सू० २६६ । ६. राय० सू० २६६ । २. राय० सू० २६७। १०. सं० पा०—पेच्छाघरमंडवे एवं थूभे जिण३,४. राय० सू० २६४। पडिमाओ चेइयरुक्खा महिंदज्झया नंदापुक्ख५. राय० सू० २६५। रिणी तं चेव जाव धूवं दलइ २त्ता । ६. सं० पा०-दाहिणिल्ले दारे पच्चत्थिमिल्ला ११. राय० सू० ३०० । खंभपंती उत्तरिल्ले दारे तं चेव पुरथिमिल्ले १२. राय० सू० २६७ । दारे तं चेव। १३. राय० सू० २६७ । ७. राय० सू० २६६ । १४. राय० सू० २६६ । ८. राय० सू० २६७ । Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १५५ ३४२. जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता'। ३४३. जेणेव पुरथिमिल्ले चेइयथूभे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता॥ ३४४. जेणेव दाहिणिल्ला मणिपेढिया जेणेव दाहिणिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' । ३४५. जेणेव पच्चत्थिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पच्चत्थिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३४६. जेणेव उत्तरिल्ला मणिपेढिया जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता॥ ३४७. जेणेव पुरथिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता। ३४८. जेणेव पुरथिमिल्ले चेइयरुक्खे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' ।। ३४६. जेणेव पुरथिमिल्ले महिंदज्झए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३५०. जेणेव पुरथिमिल्ला नंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता'। सुहम्मसभापवेस-पदं ३५१. जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सभं सुहम्म पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं अणपविसइ, अणपविसित्ता जेणेव" माणवए चेइयखंभे जेणेव वडरामया गोलवट्टसमुग्गा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता वइरामए गोलवट्टसमुग्गए लोमहत्थेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता वइरामए गोलवट्टसमुग्गए विहाडेइ, विहाडेता जिणसकहाओ लोमहत्थेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता सुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेइ, पक्खालेत्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहि य मल्लेहि य अच्चेइ, अच्चेत्ता धूवं दलयइ, दलयित्ता जिणसकहाओ वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु पडिणिक्खिवइ, पडिणिक्खिवित्ता माणवगं चेइयखंभं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलयित्ता पुप्फारुहणं जाव" धूवं दलयइ, १. राय० सू० २६६ । चैत्यस्तम्भो यत्र वज्रमयाः गोलवृत्ताः २. राय० सू० ३०५। समुद्गकाः तत्रागत्य समुद्गकान् गृह्णाति, ३,४,५. राय० सू० ३०६ । गहीत्वा विघाटयति, विधाट्य च लोमहस्तक ६. राय० सू० ३०६ । परामश्य तेन प्रमायं उदकधारया अभ्युक्ष्य ७. राय० सू० ३१०।। गोशीर्षचन्दनेनानुलिम्पति, ततः प्रधानन्ध८. राय० सू० ३११ ।। माल्यैरर्चयति धूपं दहति, तदनन्तरं भूयोऽपि ६. राय० सू० ३१२। वज्रमयेषु गोलवृत्तसमुद्गेषु प्रतिनिक्षिपति । १०. अतः पिडिणिक्खिवइ' पर्यन्तं वत्ती (पृष्ठ द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य-३१५१६ २६४) भिन्नः पाठो व्याख्यातोस्ति-यत्रैव सूत्रम् । मणिपीठिका तत्रागच्छति, आलोके च जिन- ११. राय० सू० २६४ । सक्थां प्रणाम करोति, कृत्वा यत्र माणवक Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं दलयित्ता ३५२. जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता मणिपेढियं च सीहासणं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता तं चेव ॥ ३५३. जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवसयणिज्जे 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता मणिपेढियं च देवसयणिज्जं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता तं चेव ॥ ३५४. जेणेव मणिपेढिया जेणेव खुड्डागमहिंदज्झए' 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता मणिपेढियं च खुड्डागमहिंदज्झयं च लोमहत्थएणं पमज्जइ पमज्जित्ता तं चेव ॥ ३५५. जेणेव पहरणकोसे चोप्पालए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामसइ, परामुसित्ता फलिहरयणपामोक्खाइं पहरणरयणाई लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलयित्ता पुप्फारुहणं 'जाव आभरणारुहणं आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गहगहियकरयलपब्भट्ठविप्पमुक्केणं दसद्धवण्णणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयइ, दलयित्ता ३५६. जेणेव सभाए सुहम्माए बहुमज्झदेसभाए' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव धूवं दलयइ, दलयित्ता ३५७. जेणेव सभाए सुहम्माए दाहिणिल्ले दारे" तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता१. सं० पा०-सीहासणे तं चेव । जेणेव देवसयणिज्जे तेणेव-इति पाठोस्ति २. राय० सू० २६४। किन्तु जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवसयणिज्जे' ३. सं० पा०-देवसयणिज्जे तं चेव । अयं पाठः पूर्वपंक्तावेवागतस्तेन पुनर्न युज्यते । ४. राय० सू० २६४। १०. राय० सू० २६३ । ५. सं० पा०-खुडागमहिंदज्झए तं चेव । ११. सं० पा०-दाहिणिल्ले दारे तहेव अभिसेयस६. राय० सू० २६४। भासरिसं जाव पुरथिमिल्ला नंदा पुक्खरिणी ७. पहरणकोसं चोप्पालं (क, ख, ग, घ, च, छ); जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ २ ता तोरणे २४६ सूत्रस्य सन्दर्भ आदर्शगत: पाठः सम्यग् य तिसोवाणे य सालिभंजियाओ बालरूवए न प्रतिभाति । य तहेव, जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छइ ८. सं० पा०-पुप्फारुहणं आसत्तोसत्त जाव २ ता तहेव सीहासणे च मणिपेढियं च सेसं धूवं। तहेव आययणसरिसं जाव पुरथिमिल्ला नंदा ६. प्रस्तुतसूत्रस्य तथा जीवाजीवाभिगमस्य (पत्र पुक्खरिणी जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवा २५७) सभायाः सुधर्माया बहुमध्यदेशभागेऽर्च- गच्छइ २ ता जहा अभिसेयसभा तहेव सव्वं निका पूर्ववत् करोति-इति विवरणानुसारी जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छइ २ त्ता पाठोत्र स्वीकृतः । यद्यपि प्रतिषु जेणेव सभाए तहेव लोमहत्थयं परामुसइ, पोत्थयरयणे लोमसुहम्माए बहमझदेसभाए जेणेव मणिपेढिया हत्थएणं पमज्जइ २ ता दिवाए दगधाराए Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो ३५८-३७५. ( जहा २९४ - ३१२ सुत्ताणि तहेव यव्वाणि) ।। ३७६. सभं सुहम्मं अणुपयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ३७७-३६३. (जहा ३१३-३३० सुत्ताणि तहेव णेयव्वाणि) || ३६४. जेणेव सभाए सुहम्माए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' ॥ ३६५. जेणेव सभाए सुहम्माए पुरत्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता-३९६-४१३. (जहा ३३२-३५० सुत्ताणि तहेव यव्वाणि ) || • उववाय सभापवेस-पदं ४१४. जेणेव उववायसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उववायसभं पुरत्थि - मिल्लेणं दारेण अणुपविसइ अणुपविसित्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवसयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता मणिपेढियं च देवसयणिज्जं च लोमहत्थ एणं पमज्जइ, पमज्जित्ता' ॥ १५७ ४१५. जेणेव उववायसभाए बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' ॥ ४१६. जेणेव उववायसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता४१७-४३४. (जहा २६४-३१२ सुत्ताणि तहेव णेयव्वाणि ) || ४३५. उववायसभं अणुपयाहिणीक रेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ४३६-४५२. (जहा ३१३-३३० सुत्ताणि तहेव यव्वाणि ) || ४५३. जेणेव उववायसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ४५४. जेणेव उववायसभाए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता४५५-४७२. ( जहा ३३२-३५० सुत्ताणि तहेव यव्वाणि) ।। ४७३. जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता तोरणे यतिसोवाणपडिरूवए य सालभंजियाओ य बालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता' ॥ • अभिसेगसभापवेस-पदं ४७४. जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभिसेयसभं पुरत्थि - अग्गेहि वरेहिं य गंधेहि मल्लेहिं य अच्चेइ २ ता मणिपेढियं सीहासणे च सेसं तं चेव, पुरथिमिल्ला नंदा पुक्खरिणी । ( जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता तोरणे य तिसोवाणं सालिभंजियाओ य बालरूवए य तहेव ) कोष्ठकवर्त्ती पाठः सर्वासुप्र तिषु वर्तते, किन्तु अस्य सूत्रस्य वृत्तौ (पृष्ठ २६७) तथा जीवाजीवाभिगमस्य वृत्तौ ( पत्र २५८ ) चापि नासौ व्याख्यातोस्ति । उपपातसभाया अनन्तरमसौ पाठोsविकलरूपेण समायातः । संभवत: लिपिदोषेण सोत्रापि पुनर्लिखितः । १. राय० सू० ३३१ । २. राय ० सू० २६४ । ३. राय० सू० २६३ । ४. राय० सू० ३३१ । ५. राय० सू० ३१२ । Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ रायपसेणइयं मिल्लेणं दारेण अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता मणिपेढियं च सीहासणं च लोमहत्थ एणं पमज्जइ, पमज्जित्ता' ॥ ४७५. जेणेव अभिसेयभंडे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामु सित्ता अभिसेयभंडं लोमहत्थ एणं पमज्जइ, पमज्जित्ता' ॥ ४७६. जेणेव अभिसेयसभाए वहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' ॥ ४७७. जेणेव अभिसेयसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता४७८-४६५. ( जहा २६४-३१२ सुत्ताणि तहेव यव्वाणि ) || ४ε६. अभिसेयसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ४७-५१३. ( जहा ३१३-३३० सुत्ताणि तहेव यव्वाणि ) ॥ ५१४. जेणेव अभिसेयसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता * ॥ ५१५. जेणेव अभिसेयसभाए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता५१६-५३३. (जहा ३३२-३५० सुत्ताणि तहेव यव्वाणि ) || • अलंकार सभापवेस-पदं ५३४. जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अलंकारियसभ पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता मणिपेढियं च सीहासणं च लोमहत्थ एणं पमज्जइ, पमज्जित्ता' ॥ ५३५. जेणेव अलंकारियभंडे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता अलंकारियभंडं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता' ॥ ५३६. जेणेव अलंकारियसभाए बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ५३७. जेणेव अलंकारियसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता५३८-५५५. ( जहा २६४-३१२ सुत्ताणि तहेव णेयव्वाणि ) || ५५६. अलंकारियसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ५५७-५७३. ( जहा ३१३- ३३० सुत्ताणि तहेव यव्वाणि ) || ५७४. जेणेव अलंकारियसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' ॥ ५७५. जेणेव अलंकारियसभाए पुरत्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता५७६-५६३ - ( जहा ३३२-३५० सुत्ताणि तहेव यव्वाणि ) || १,२. राय० सू० २६४ । ३. राय० सू० २६३ । ४. राय० सू० ३३१ । ५, ६. राय० सू० २६४ । ७. राय० सू० २६३ । ८. राय० सू० ३३१ । Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो १५६ ० ववसायसभापवेस-पदं ५६४. जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ववसायसभं पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव पोत्थयरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता पोत्थयरयणं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता अग्गेहिं वरेहि य गंधेहि मल्लेहि य अच्चेइ, अच्चेत्ता पुप्फारुहणं'। ५६५. जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता मणिपेढियं च सीहासणं च लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता॥ ५६६. जेणेव ववसायसभाए बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' । ५९७. जेणेव ववसायसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता५६८-६१५. (जहा २६४-३१२ सुत्ताणि तहेव णेयव्वाणि) ॥ ६१६. ववसायसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ६१७-६३३. (जहा ३१३-३३० सुत्ताणि तहेव णेयव्व।णि) । ६३४. जेणेव ववसायसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ६३५. जेणेव ववसायसभाए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ६३६-६५३. (जहा ३३२-३५० सुत्ताणि तहेव णेयव्वाणि) ॥ ० सूरियामविमाणे अच्चणिया-पदं ६५४. 'जेणेव बलिपीढे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बलिविसज्जणं करेइ, करेत्ता आभिओगिए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सूरियाभे विमाणे सिंघाडएसु तिएसु चउक्केसु चच्चरेसु चउम्मुहेसु महापहपहेसु पागारेसु' अट्टालएसु चरियासु दारेसु गोपुरेसु तोरणेसु आरामेसु उज्जाणेसु 'काणणेसु वणेसु वणसंडेसु वणराईस" अच्चणियं करेह, करेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह ।। ६५५. तए णं ते आभिओगिया देवा सरियाभेणं देवेणं एवं वत्ता समाणा 'हदतटचित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं देवो! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति’, पडिसुणेत्ता सूरियाभे विमाणे सिंघाडएसु तिएसु चउक्कएसु चच्चरेसु १,२. राय० सू० २६४ । विसज्जणं करेइ' इति पाठः ६५६ सूत्रे 'तए णं ३. राय० सू० २६३। से सूरियाभे देवे' इति पाठान्तरं व्याख्यात४. राय० सू० ३३१। मस्ति । ५. वृत्ती (पृष्ठ २६७) अस्य पाठस्य स्थाने भिन्नः ६. पागारएसु (क, ख, ग, घ, च, छ) । पाठो व्याख्यातोस्ति-बलिपीठे समागत्य तस्य ७. वणेसु वणराईसु काणणेसु वणसंडेसु (क, ख, बहुमध्यदेशभागवत् अर्च निकां करोति, कृत्वा ग, घ, च, छ)। च आभियोगिकदेवान शब्दापयति । 'बलि- ८. सं० पा०-समाणा जाव पडिसुणेत्ता। Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० रायपसेणइयं चउम्मुहेसु महापहपहेसु पागारेसु अट्टालएस् चरियासु दारेसु गोपुरेसु तोरणेस आरामेस उज्जासु काणणेसु वणेसु वणसंडेसु वणराईसु अच्चणियं करेंति, करेत्ता जेणेव सूरियाभे देवे' 'तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट जएणं विजएणं वद्धाति, वद्धावेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।।। ० नंदापुक्खरिणी-गमण-पदं . ६५६. तए' णं से सूरियाभे देवे जेणेव गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवा गच्छइ, उवागच्छित्ता नंदं पुक्खरिणि पुरत्थि मिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता हत्थपाए पक्खालेइ, पक्खालेत्ता णंदाओ पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरेइ, पच्चुत्तरेता जेणेव सभा सुधम्मा तेणेव पहारेत्थ गमणाए । ० सुहम्मसभा-निसीदण-पदं ६५७. तए णं से सूरियाभे देवे चरहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अण्णे हि य' वहूहिं सूरियाभविमाणवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहि य देवीहि य सद्धि संपरिवुडे सव्विड्ढीए' 'सव्वजुतीए सव्ववलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारेणं सव्वतुडियसद्दसण्णिनाएणं महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडिय-जमगसमग-पडुप्पवाइयरवेणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुइंग-दंदुहिनिग्घोस नाइयरवेणं जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सभं सुहम्मं पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे ।। ६५८. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरथिमिल्लेणं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ चउसु भद्दासणसाहस्सीसु निसीयंति ॥ ६५६. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पुरथिमेणं चत्तारि अग्गम हिसीओ चउसु भद्दासणेसु निसीयंति ।। ६६०. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स दाहिणपुरत्थिमेणं अभितरियाए परिसाए अट्ठ देवसाहस्सीओ अट्ठसु भद्दासणसाहस्सीसु निसीयंति ॥ ६६१. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स दाहिणेणं मज्झिमाए परिसाए दस देवसाह१. सं० पा०-देवे जाव पच्चप्पिणंति । ५. सं० पा०–सव्विड्ढीए जाव नाइयरवेणं । २. वृत्तौ (पृष्ठ २६८) भिन्नः पाठो व्याख्या- ६.४१ सूत्रे उत्तरेणं पाठोस्ति तदनुसारेणात्राप्यसौ तोस्ति-ततः सूर्याभदेवो बलिपीठे बलिवि- युज्यते । जीवाजीवाभिगमे (३।५५८) सर्जनं करोति, कृत्वा चोत्तरपूर्वा नन्दापुष्क- प्यस्मिन्नेव प्रकरणे चासौ विद्यते । रिणीमनुप्रदक्षिणीकुर्वन् पूर्वतोरणेनानुप्रविशति ७. ४२ सूत्रे 'चत्तारि भद्दासणसाहस्सीओ' इति अनुप्रविश्य च हस्तौ पादौ प्रक्षालयति । पाठोस्ति । अत्र 'चउसु भद्दासणेसु निसीयंति' द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य ३।५५६ सूत्रम् । तत्र संभवतः सपरिवारवर्णने साहस्सीओ इति ३. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। पाठः कृतः। ४, वेमाणिय (क, ख, ग, घ, च, छ)। Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरियाभो स्सीओ दसहिं भद्दासणसाहस्सीहिं निसीयंति ॥ ६६२. तए ण तस्स सूरियाभस्स देवस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीतो बारसहिं भद्दासणसाहस्सीहिं निसीयंति ॥ ६६३. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पच्चत्थिमेणं सत्त अणियाहिवइणो सत्तहिं भद्दासणेहिं णिसीयंति ॥ ६६४. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चउद्दिसि सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ सोलसहिं भद्दासणसाहस्सीहिं णिसीयंति, तं जहा-पुरथिमिल्लेणं चत्तारि साहस्सीओ, दाहिणणं चत्तारि साहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं चत्तारि साहस्सीओ, उत्तरेणं चत्तारि साहस्सीओ, ते णं आयरक्खा सण्णद्ध-बद्ध-वम्मियकवया उप्पीलियसरासणपट्टिया पिणद्धगेविज्जा आविद्ध'-विमल-वरचिंधपट्टा गहिया उहपहरणा ति-णयाणि ति-संधीणि वयरामयकोडीणि धणइं पगिज्झ परियाइय-कंडकलावा णीलपाणिणो पीतपाणिणो रत्तपाणिणो चावपाणिणो चारुपाणिणो चम्मपाणिणो दंडपाणिणो खग्गपाणिणो पासपाणिणो नील-पीय-रत्त चाव-चारु-चम्म-दंड-खग्ग-पासधरा' आयरक्खा रक्खोवगा गुत्ता गुत्तपालिया जुत्ता जुत्तपालिया पत्तेयं-पत्तेयं समयओ विणयओ 'किंकरभूया इव" चिट्ठति ॥ ० सरियाभ-वण्णग-पद। ६६५. सूरियाभस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ ६६६. सुरियाभस्स णं भंते ! देवस्स सामाणियपरिसोववण्णगाणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। एमहिड्ढीए एमहज्जुईए एमहब्बले एमहायसे एमहासोक्खे एमहाणुभागे सूरियाभे देवे । 'अहो णं भंते ! सरियाभे देवे महिड्ढीए' 'महज्जुईए महब्बले महायसे महासोक्खे महाणभागे ॥ ६६७. सूरियाभेणं भंते ! देवेणं सा दिव्वा देविड्ढिी सा दिव्वा देवज्जूई से दिवे देवाणुभागे-किण्णा लद्धे ? किण्णा पत्ते ? किण्णा अभिसमण्णागए ? पुव्वभवे के आसी ? किंणामए वा ? को वा गोत्तेणं ? कयरंसि वा गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रायहाणीए वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आगरंसि वा आसमंसि वा संबाहंसि वा सण्णिवेसंसि वा? किं वा दच्चा ? किं वा भोच्चा? किंवा किच्चा? किं वा समायरित्ता ? कस्स वा तहारूवस्स समणस्स वा 'माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म जण्णं सूरियाभेणं देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी' 'सा दिव्वा देवज्जुई से दिव्वे देवाणुभागे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए? १. बद्धआविद्ध (च, छ) । विहरति'। द्रष्टव्यं जीवाजीवाभिगमस्य २. पासवरधरा (क, ख, ग, घ, च)। ३१५६३ सूत्रम् । ३. भूयाइ (च); भूयाई (छ) । ५. अम्हाणं (छ)। ४. अतोग्रे 'छ' प्रतौ 'एएहिं चउहि सामाणिय- ६. सं० पा०-महिड्ढीए जाव महाणभागे। साहस्सीहिं जाव दिव्वाई'; वृत्तौ (पृष्ठ २७१) ७. किण्हा (च)। च-तेहिं चउहिं सामाणियसाहस्सीहि, इत्यादि ८. x (क, ख, ग, घ)। सुगम, यावत् 'दिव्वाई भोगभोगाइं भुंजमाणे ६. सं० पा०-देविड्ढी जाव देवाणुभागे। Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं has- अद्ध-पदं ६६८. गोयमाति ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी - एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे केयइ' - अद्धे नाम जणवए होत्था - रिद्ध' - त्थिमियसमिद्धे पासादीए 'दरिसणिज्जे अभिरू पडिरूवे ॥ सेयविया-पदं ६६ε. तत्थ णं केइय*- अद्धे जणवए सेयविया णामं नगरी होत्था -- रिद्ध-त्थिमियसमिद्धा जाव' पडिरूवा ॥ भिगवण-पदं ६७०. तीसे णं सेयवियाए नगरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे, एत्थ णं भिगवणे णामं उज्जाणे होत्था —रम्मे नंदणवणप्पगासे सव्वोउय - पुप्फ' - फलसमिद्धे सुभसुरभिसीयलाए छाया सव्वओ चेव समणुबद्धे पासादीए " 'दरिसणिज्जे अभिरूवे' पडिरूवे ॥ एसि - पदं ६७१. तत्थ णं सेवियाए नगरीए पएसी णामं राया होत्था - महयाहिमवंत-महंतमलय-मंदर-महिंदसारे अच्चंत विसुद्ध - दोहरायकुल- वंससुप्पसूए निरंतरं रायलक्खण-विराइयंगमंगे बहुजण बहुमाणइए सव्वगुणसमिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धाहिसित्ते माउपिउसुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मणुस्सिदे जणवयपिया जणवयपाले जणवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे नरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्घे पुरिसासीविसे पुरिसपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न- विउल - भवण-सयणासण जाण-वाहणा इण्णे बहुधणबहुजायरूवरयए आओगपओगसंपत्ते विच्छड्डिय-पउरभत्तपाणे बहुदासी दास- गो-महिसगवेगपभू पडिपुण्ण-जंत- कोस- कोट्ठागाराउधागारे बलवं दुब्बलपच्चामित्ते - ओहयकंटयं निह कंटयं मलियकंटयं उद्धियकंटयं अकंटयं ओहयसत्तुं नियसत्तुं मलियसत्तुं उद्धियसत्तुं १. केकइ (छ) । २. रिद्धि (क, ख, ग, घ, च, छ) । ३. सं० पा० - पासादीए जाव पडिरूवे । ४. केयगइ (छ) । १६२ ५. ओ० सू० १ । ६. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. सं० पा० – पासादीए जाव पडिरूवे । ८. सं० पा० - महयाहिमवंत जाव विहरइ । Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं निज्जियसत्तं पराइयसत्तुं ववगयदुभिक्खं मारिभयविप्पमुक्कं खेमं सिवं सुभिक्खं पसंतडिंबडमरं रज्जं पसासेमाणे विहरइ । अधम्मिए अधम्मिठे अधम्मक्खाई अधम्माणुए अधम्मपलोई अधम्मपलज्जणे अधम्मसील समुयाचारे अधम्मेण चेव वित्तिं कप्पेमाणे हण-छिद-भिंदपवत्तए' 'लोहियपाणी पावे चंडे रुद्दे खुद्दे साहस्सीए उक्कंचण-वंचण-माया-नियडि-कडकवड-साइसंपओगबहुले निस्सीले निव्वए निग्गुणे निम्मेरे निप्पच्चक्खाणपोसहोववासे, बहूणं दुप्पय-चउप्पय-मिय-पसु-पक्खि-सरिसिवाणं धायाए वहाए उच्छायणयाए अधम्मकेऊ समुट्ठिए, गुरूणं णो अब्भुठेइ णो विणयं पउंजइ, 'समण-माहणाणं नो अब्भुठेइ नो विणयं पउंजई", सयस्स वि य णं जणवयस्स णो सम्मं करभरवित्ति पवत्तेइ ।। सूरियकंता-पदं ६७२. तस्स णं पएसिस्स रणो सूरियकता नाम देवी होत्था-सुकुमालपाणिपाया •अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरा लक्खणवंजणगुणोववेया माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदरंगी ससिसोमाकारकंतपियदसणा सुरूवा करयलपरिमियपसत्थतिवलीवलियमज्झा कुंडलुल्लिहियगंडलेहा कोमुइरयणियरविमलपडिपुण्णसोमवयणा सिंगारागार चारुवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-विहिय-विलास-सललिय-संलाव-निउणजुत्तोवयारकुसला पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा', पएसिणा रण्णा सद्धि अणुरत्ता अविरत्ता इट्टे सह•फरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणी विहरइ॥ सूरियकंत-पदं ६७३. तस्स णं पएसिस्स रण्णो जेठे पुत्ते सूरियकताए देवीए अत्तए सूरियकते नामं कुमारे होत्था-सुकुमालपाणिपाए" •अहीणपडिपुण्णपंचिदियसरीरे लक्खणवंजणगुणोववेए माणुम्माणपमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदसणे सुरूवे' पडिरूवे ॥ १. 'पज्जणे (क, ख, ग); "पज्जवमाणे (घ); चिदादर्शेषु लिपिदोषेण वर्णविपर्ययो जातस्तेन 'पजणणे (च, छ, व); वृत्तौ 'अधम्मपजणणे' 'अधम्मपजणणे' इति पाठः संवत्तः । इति पाठो व्याख्यातोस्ति- 'अधर्म प्रकर्षेण २. भिंदा० (क, ख, ग, घ, च, छ)। जनयति-उत्पादयति लोकानामपीत्यधर्म- ३. चंडे रुद्दे खुद्दे लोहियपाणी (क,ख,ग,घ,च,छ) । प्रजननः । वृत्तिकारेण यादृशः पाठो लब्ध- ४. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। स्तादशो व्याख्यातः। किन्तु अन्यागमानां ५. संपओगे (क, ख, ग, च)।। संदर्भेसो पाठो विचार्यते तदा 'अधम्मपलज्जणे' ६. उच्छृणयाउ (क, ख, ग, च, छ) । इति पाठः संगतिमर्हति । सूत्रकृतांगे (२।२। ७. समट्ठिओ (क, ख, ग, घ)। ५७) 'अधम्मपलज्जणा' इति पाठोस्ति । ८. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । औपपातिके (स० १६१) 'धम्मपलज्जणा' ६. सं०पा०-सुकुमालपाणिपाया धारिणी वण्णओ। इति पाठोस्ति । अत्रापि 'अधम्मपलज्जणे' पाठ १०. सं० पा०-सद्द जाव विहरइ । आसीत । पाठसंशोधने प्रयुक्तादर्शत्रयेभ्योस्य ११. सं० पा०-सुकूमालपाणिपाए जाव पडिरूवे । पुष्टिर्जायते । तत्र 'पज्जणे' इति पाठो लभ्यते। १२. सुकुमालपाणिपाए जाव सुन्दरे (वृ)। अत्र लकारो लिपिदोषेण त्यक्तोस्ति । केषु Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ रायपसेणइयं ६७४. से णं सुरियकते कुमारे जुवराया वि होत्था। पएसिस्स रण्णो रज्ज च रट्टं च बलं च वाहणं च 'कोसं च" कोद्वारं च पुरं च अंतेउरं च' सयमेव पच्चुवेक्खमाणेपच्चुवेक्खमाणे विहरइ॥ चित्त-सारहि-पदं ६७५. तस्स णं पएसिस्स रण्णो जेठे भाउय-वयंसए चित्ते णाम सारही होत्था - अड्ढे 'दित्ते वित्ते विच्छिण्ण-विउल-भवण-सयणासण-जाण-वाहणाइण्णे° बहुजणस्स अपरिभूए साम-दंड-भेय-उवप्पयाण-अत्थसत्थ-ईहामइविसारए, उप्पत्तियाए वेणतियाए कम्मयाए पारिणामियाए- चउव्विहाए बुद्धीए उववेए, पएसिस्स रण्णो बहुसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य" 'रहस्सेसु य गुज्झेसु य सावत्थीरहस्सेसु य निच्छएसु य' ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे" मेढी पमाणं आहारे आलंबणं चक्खू, मेढिभूए पमाणभूए आहारभूए आलंबणभूए चक्खुभूए, सव्वट्ठाण -सव्वभूमियासु लद्धपच्चए' विदिण्णविचारे रज्जधराचिंतए आवि होत्था । कुणाला-पदं ६७६. तेणं कालेणं तेणं समएणं कुणाला नामं जणवए होत्था-रिद्ध-स्थिमियसमिद्धे" 'पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ सावत्थी-पदं ६७७. तत्थ णं कुणालाए जणवए सावत्थी नामं नयरी होत्था-रिद्ध-स्थिमियसमिद्धा जाव पडिरूवा॥ कोठ्य-पदं ६८. तसे णं सावत्थीए नयरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए कोढुए नामं चेइए होत्था-पोराणे" जाव" पासादीए । जियसत्तु-पदं ६७६. तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पएसिस्स रण्णो अंतेवासी जियसत्तू नाम राया होत्था-महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ॥ पाहुड-उवणयण-पदं ६८०. तए णं से पएसी राया अण्णया कयाइ महत्थं महग्यं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं सज्जावेइ, सज्जावेत्ता चित्तं सारहिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छ णं १. ४ (क, ख, ग, घ, च)। ६. लद्धओवलद्धपच्चए (छ)। २. कोट्ठागारं (छ)। १०. कुणाल (क,ख,ग,घ,च)। ३. च जणवयं च (क, ख, ग, घ, च, छ) । ११. सं० पा०-- समिद्धे । ४. सं० पा०–अड्ढे जाव बहुजणस्स । १२. ओ० सू०१। ५. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। १३. अत्र 'चिराइए' स्थाने 'पोराणे' पाठः प्रतीयते । ६. गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य (वृ)। १४. ओ० सू० २-७ । ७. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। १५. राय० सू० ६७१। ८. सव्वट्ठा (क, ख, ग, घ, छ)। Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १६५ चित्ता ! तुमं सावत्थि नगरिं जियसत्तुस्स रण्णो इमं महत्थं' 'महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं उवणेहि', जाई तत्थ रायकज्जाणि य रायकिच्चाणि य रायणीईओ य रायववहारा' य ताई जियसत्तुणा सद्धि सयमेव पच्चुवेक्खमाणे विहराहि त्ति कटु विसज्जिए॥ ६८१. तए णं से चित्ते सारही पएसिणा रण्णा एवं वृत्ते समाणे हट्ट 'तुटु-चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामी ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ°, पडिसुणेत्ता तं महत्थं 'महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं° पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता पएसिस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्ख मित्ता सेयवियं नगरि मज्झमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तं महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं° पाहुडं ठवेइ, ठवेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो! देवाणप्पिया ! सच्छत्तं 'सज्झयं सघंटे सपडागं सतोरणवरं सनंदिघोसं सखिखिणि-हेमजालपरिखित्तं हेमवय-चित्त-विचित्त-तिणिस-कणगणिज्जुत्तदारुयायं सुसंपिणद्धारकमंडलधुरागं कालायससूकयणमिजतकम्म आइण्णवरतुरगसूसंपउत्तं कुसलणरच्छेयसारहिसूसंपरिग्गहियं सरसयबत्तीसतोणपरिमंडियं सकंकडावयंसगं सचाव-सर-पहरण-आवरण-भरियजोहजुज्झसज्ज° चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह', 'उवट्ठवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ६८२. तए णं ते कोडंबियपुरिसा तहेव पडिसुणित्ता खिप्पामेव सच्छत्तं जाव जुद्धसज्ज चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेंति, उवट्ठवेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ ६८३. तए णं से चित्ते सारही कोडुबियपुरिसाणं अंतिए एयम→ सोच्चा निसम्म हट्टतुट-चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण° हियए हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगलपायच्छित्ते सण्णद्ध-बद्ध-वम्मियकवए उप्पीलिय-सरासणपट्टिए पिणद्धगेविज्जविमल -वरचिंधपट्टे गहियाउहपहरणे तं महत्थं 'महग्धं महरिहं विउलं रायारिह पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंट आसरहं दुरुहेति, दुरुहेत्ता बहुहिं पुरिसेहि सण्णद्ध २- बद्ध-वम्मियकवए उप्पीलियसरासणपट्टिए पिणद्धगेविज्जविमल-वरचिंधपट्टे गहियाउहपहरणेहिं सद्धि संपरिवुडे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरेज्जमाणेणं-धरेज्जमाणेणं महया भड-चडगर-रहपहकरविदपरिक्खित्ते साओ गिहाओ णिग्गच्छइ, सेयवियं नगरि मज्झमज्झेणं णिग्गच्छइ, सुहेहि १. सं० पा०--महत्थं जाव पाहुडं । २. अवणेहि (क,ख,ग,घ,च,छ)। ३. ववहारा (क,ख,ग,घ,च,छ) । ४. सं० पा०-हट्ठ जाव पडिसुणेत्ता । ५. सं० पा०-महत्थं जाव पाहुडं । ६. सं० पा० ---महत्थं जाव पाहुडं । ७. सं० पा०-सच्छत्तं जाव चाउग्घंट। ८. सं० पा०-उवट्टवेह जाव पच्चप्पिणह । ६. सं० पा०-एयमझें जाव हियए । १०. सनद्धगेविज्जबद्धआबद्धविमल (क, ख, ग, घ, च, छ)। ११. सं० पा०-महत्थं जाव पाहुडं । १२. सं० पा०--सण्णद्ध जाव गहियाउहपहरणेहिं । १३. पंडुपरि० (क, ख, ग, च, छ) । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ रायसेइयं वासेहि पायरासेहिं नाइविकिट्ठेहि अंतरा वासेहि वसमाणे वसमाणे केयइ- अद्धस्स' जणवयस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव कुणालाजणवए जेणेव सावत्थी नयरी तेणेव उवागच्छइ, सावत्थीए नयरीए मज्झमज्झेणं अणुपविसइ, जेणेव जियसत्तुस्स रण्णो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, तुरए निगिण्हइ, रहं ठवेति, रहाओ पच्चो रुहइ, तं महत्थं' 'महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं गिण्हइ, जेणेव अभितरिया उवट्ठाण - साला जेणेव जियसत्तू राया तेणेव उवागच्छइ, जियसत्तु रायं करयलपरिग्गहियं' 'दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं उवणेइ || ६८४. तए णं से जियसत्तू राया चित्तस्स सारहिस्स तं महत्थं 'महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं पडिच्छइ', चित्तं सारहि सक्कारेइ सम्माणेइ पडिविसज्जेइ, रायमग्गमोगाढं च से आवासं दलयइ | चित्तस्स आवास-पदं ६८५. तसे चित्ते सारही विसज्जिते समाणे जियसत्तुस्स रण्णो अंतियाओ पक्खिम, जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला जेणेव 'चाउग्घंटे आस रहे" तेणेव उवागच्छइ, चाउघंटं आसरहं दुरुहइ, सार्वात्थ नगर मज्झमज्झेणं जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छइ, तुरए निगिण्हइ, रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, पहाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल-पायच्छत्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिते अप्पमहग्घाभरणालं किए जिमियत्तत्तरागए वि य णं समाणे पुव्वावरण्हकालसमयंसि गंधव्वेहि य णाडगेहि य उवनच्चिज्जमाणे उवगाइज्जमाणे उवलालिज्जमाणे इट्ठे सद्द-फरिस - रस- रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सर कामभोए पच्चणुभवमाणे विहरइ || केस - आगमण-पदं ६८६. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमार-समणे जातिसंपण्णे कुलसंपण्णे वलसंपण्णे रूवसंपण्णे विणयसंपण्णे नाणसंपण्णे दंसण संपण्णे चरित्तसंपण्णे लज्जासंपणे लाघवसंपणे ओयंसी तेयंसी बच्चंसी' जसंसी" जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोहे जियणि जितिदिए जियपरीसहे जीवियासमरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे" गुणप्पहाणे करणप्पहाणे चरणप्पहाणे निगहप्पहाणे निच्छयप्पहाणे" अज्जवप्पहाणे महा लाघव पहाणे खंतिप्पहाणे गुत्तिप्पहाणे " मुत्तिप्पहाणे विज्जप्पहाणे मंतप्पहाणे बंभप्पहाणे १. अद्धाए (क, ख, ग, घ, च, छ) । २. सं० पा० - महत्थं जाव पाहुडं । ३. सं० पा० - करयलपरिग्गहियं जाव कट्टु | ४. सं० पा० - महत्थं जाव पाहुडं । ५. सं० पा० - महत्थं जाव पाहुडं । ६. पिच्छइ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. X ( क, ख, ग, घ, च, छ) । ८. चाउघंटं आसरहं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. वच्चसि सोहग्गंसि (छ) । १०. जस्संसि बासि (क, ख, ग, घ, च, छ ) 1 ११. वयप्पहाणे ( क, ख, ग, घ, च, छ) । १२. x ( क, ख, ग, घ, च, छ) । १३. x (क, ख, ग, घ, च) । Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परसि-कहाणगं १६७ वे पहाणे नय पहाणे नियमप्पहाणे सच्चप्पहाणे सोयप्पहाणे नाणप्पहाणे दंसणप्पहाणे चरित पहाणे ओराले 'घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविपुलतेयले से 'चउदस पुब्वी चउणाणोवगए पंचहि अणगारसहिं सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दृइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव सावत्थी नयरी जेणेव कोट्ठए चेइए तेणेव उवागच्छइ, सावत्थीनयरीए वहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ || चित्तस्स जिण्णासा-पदं ६८७. तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडग-तिय- चउक्क चच्चर- चउम्मुह महापहप हेसु महा जणसद्दे इ वा जणवूहे' इ वा 'जणवोले इ वा" जणकलकले इ वा 'जणउम्मी इ वा " सणवाए इवा' 'बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खर एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ - एवं खलु देवाणुप्पिया ! पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमार - समणे जातिसंपणे ' पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दृइज्जमाणे इहमा गए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए नगरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापड़िरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पा भावेमाणे विहरइ । तं महत्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-नमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! केसि कुमार - समणं वंदामो णमंसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो । एयं णे पेच्चभवे इहभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ ति कट्टु बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा भोगपुत्ता एवं दुपडोयारेणं - राइण्णा खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई लेच्छईपुत्ता, अण्णे य बहवे राईसरतलवर - माडंबिय - कोडुंबिय इब्भ-सेट्ठि- सेणावइ-सत्थवाहप्पभितयो अप्पेगइया वंदणवत्तियं अप्पेगइया पूयणवत्तियं अप्पेगइया सक्कारवत्तियं अप्पेगइया सम्माणवत्तियं अप्पेगइया दंसणवत्तिय अप्पेगइया कोऊहलवत्तियं अप्पेगइया अस्सुयाई सुणेस्सामो सुयाई निस्संकियाई करिस्सामो अप्पेगइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो, अप्पेगइया गिहिधम्मं पडिवज्जिस्सामो, अप्पेगइया जीयमेयंति कट्टु व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगल-पायच्छित्ता सिरसा कंठेमाल कडा आविद्धमणिसुवण्णा कप्पियहारद्धहार-तिसर- पालंब१. x क, ख, ग, घ, च ) । २. x (क, ख, ग, घ, च, छ ) । ३. x (घ) 1 ४. सं० पा० ओराले चउदसपुव्वी । ५. जनसमूहे (छ) । ६. x ( क, ख, ग, घ ) । ७. X ( क, ख, ग, घ ) । ८. सं० पा० जणसण्णिवाए इ वा जाव परिसा पज्जुवासइ । ६. राय० सू० ६८६ । १०. अत्र औपपातिके ५२ सूत्रे 'पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं' इति पाठो विद्यते किन्तु अर्थसमीक्षयास्माभिरत्र 'गिहिधम्मं' इत्येव पाठः स्वीकृतः । अर्थ - समीक्षार्थं द्रष्टव्यं ६६५ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ रायपसेणइय पलं माण-क डिसुत्त-सुकयसोहाभरणा पवरवत्थपरिहिया चंदणोलित्तगायसरीरा अप्पेगइया हयगय। अप्पेगइया गयगया अप्पेगइया रहगया अप्पेगइया सिवियागया अप्पेगइया संमाणियागया अप्पेगइया पायविहारचारेणं पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता महया उक्किट्ठसीहणाय- बोल - कलकल वेणं पक्खुभियमहासमुद्दवभूयं पिव करेमाणा सावत्थीए णयरीए मज्झमज्झेणं णिग्गच्छंति, णिग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता केसि - कुमार-समणस्स अदूरसामंते जाणवाहणाई ठवेंति, ठवेत्ता जाणवाहणे हितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता केसिं कुमार-समणं तिक्खुतो आयाहिण -पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणणं पंजलिउडा पज्जुवासंति° ॥ ६८८. तए णं तस्स सारहिस्स तं महाजणसद्दं च जणकलकलं च सुणेत्ता य पासेत्ता य shared अज्झथिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - किं णं अज्ज' सावत्थीए यरीए इंदमहे इ वा खंदमहे इ वा रुद्दमहे इ वा मउंदमहे इ वा 'सिवम हे इ वा वेसमणमहे इ वा " नागमहे इ वा 'जक्खमहे इ वा भूयमहे इ वा " थूभमहे इ वा चेइयमहे इ रुक्म इ वा गिरिमहे इ वा दरिमहे इ वा अगडमहे इ वा 'नईमहे इ वा " सरमहे इ वा सागरमहे इ वा ? जं णं इमे बहवे उग्गा उग्गपुत्ता' भोगा" राइण्णा इक्खागा णाया कोरव्वा' • खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई मल्लइपुत्ता लेच्छई लेच्छइपुत्ता' इब्भा इब्भपुत्ता, अण्णेय बहवे राईसर - तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठि- सेणावइ-सत्थवाहप्पभितयो हाया कलिकम्मा कय कोउय-मंगल-पायच्छित्ता सिरसा कंठेमालकडा आविद्धमणिसुवण्णा कप्पियहार - अद्धहार-तिसर- पालंब - पलंबमाण-कडिसु त्तय कयसोहाहरणा चंदणोलित्तगायसरीरा पुरिसवग्गुरापरिखित्ता महया उक्किट्ठ-सीहणाय- बोल- कलकलरवेणं' "समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा अंबरतलं पिव फोडेमाणा' एगदिसाए एगाभिमुहा अप्पेगतिया हयगया अप्पेगतिया गयगया" अप्पेगतिया रहगया अप्पेगतिया सिवियागया अप्पेगतिया संदमाणियागया अतिया पायविहारचारेण मया महया वंदावंदएहि निग्गच्छति । एवं संपेइ, संपेत्ता १. सं० पा० - अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था । २. अज्ज जाव (क,च) । ३. x (क, ख, ग, घ,च) | ४. भूयमहे इ वा जक्खमहे इ वा च, छ) । क, ख, ग, घ, ५. X (च) । ६. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. भोगादिभिः सर्वैः सह पुत्तरूपस्य विकल्पा बोद्धव्याः । ८. सं० पा० कोरव्वा जाव इब्भा । ६. सं० पा० – कलकल रवेणं एगदिसाए जहा उववाइए जाव अप्पेगतिया । रायपसेणइयवृत्तौ समग्र : पाठो व्याख्यातोस्ति । तत्र औपपातिकस्य समर्पणसूचना नास्ति । आदर्शेषु सा किमर्थं कृतेति न ज्ञायते । औपपातिकस्य वृत्त्यनुसारिपाठे 'अंबरतलपिव' इत्यादि नास्ति, वाचनान्तरे तत् समुपलभ्यते । द्रष्टव्यं - औपपातिकस्य ५२ सूत्रस्य वाचनान्तरम् । १०. सं० पा० - अप्पेगतिया गयगया जाव पायवि हारचारेणं । Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं कंचुइ-पुरिसं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-'कि " देवाणुप्पिया ! अज्ज सावत्थीए नगरीए इंदमहेइ वा जाव सागरमहेइ वा ? 'जं णं" इमे बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा [जाव ?] णिग्गच्छंति ।। कंचुइपुरिसस्स निवेदण-पदं ६८६. तए णं से कंचुइ-पुरिसे केसिस्स कुमारसमणस्स आगमण-गहिय-विणिच्छए चित्तं सारहिं करयलपरिग्गहियं' 'दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट जएणं विजएणं वद्धावेइ°, वद्धावेत्ता एवं वयासी--णो खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज सावत्थीए णयरीए इंदमहे इ वा जाव' सागरमहे इ वा । जं णं इमे बहवे उग्गा उग्गपुत्ता जाव' वंदावंदएहिं निग्गच्छंति । एवं खलु भो! देवाणु प्पिया ! पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमार-समणे जातिसंपण्णे जाव' गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए" 'इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए णगरीए बहिया कोट्टए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तेणं अज्ज सावत्थीए नयरीए बहवे उग्गा जाव इब्भा इब्भपुत्ता अप्पेगतिया वंदणवत्तियाए 'अप्पेगइया पूयणवत्तियाए अप्पेगइया सक्कारवत्तियाए अप्पेगइया सम्माणवत्तियाए अप्पेगइया सणवत्तियाए अप्पेगइया कोऊहलवत्तियाए अप्पेगइया अस्सुयाइं सुणेस्सामो सुयाइं निस्संकियाइं करिस्सामो, अप्पेगइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो, अप्पेगइया गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामो, अप्पेगइया जीयमेयंति कटु व्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता सिरसा कंठेमाल कडा आविद्धमणि-सुवण्णा कप्पियहारद्धहार-तिसरपवर-पालंव-पलंबमाण-कडिसुत्त-सुकय-सोहाभरणा पवरवत्थ-परिहिया चंदणोलित्तगायसरीरा अप्पेगइया हयगया अप्पेगइया गयगया अप्पेगइया रहगया अप्पेगइया सिवियागया अप्पेगइया संदमाणियागया अप्पेगइया पायविहारचारेणं महया-महया वंदावंदएहिं णिग्गच्छति ।। चित्तस्स केसि-समीवे गमण-पदं ६९०. तए णं से चित्ते सारही कंचुइ-पुरिसस्स अंतिए एयमह्र सोच्चा निसम्म हट्टतुटु - चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिस-वस-विसप्पमाण-हियए कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! चाउग्घंट" आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह", उवट्टवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ६६१. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव पडिसुणित्ता खिप्पामेव सच्छत्तं जाव जुद्धसज्ज १. किण्हं (क,घ,च,छ)। ६. राय० सू० ६८६ । २. जाव (क, ख, ग, घ, च,छ); अत्र भोगा इत्य- ७. सं० पा०-इहमागए जाव विहरइ। स्यानन्तरं जाव शब्दो युज्यते, किन्तु लिपि- ८. सं० पा०-वंदणवत्तियाए जाव महया। दोषात 'जं णं' इत्यस्य स्थाने लिखितः ९. द्रष्टव्यं ६८७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । प्रतीयते । १०. सं० पा०-हट्टतुट्ठ जाव हियए। ३. सं० पा०-करयलपरिग्गहियं जाव वद्धा- ११. चाउघंट (क, ख, ग, घ, च, छ)। द्रष्टव्यं वेत्ता । ६८१ सूत्रम् । ४,५. राय० सू०६८८ । १२. सं० पा०-उववेह जाव सच्छत्तं उवति । Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं चाउग्धंट आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेंति, उवट्ठवेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ ६६२. तए णं से चित्ते सारही हाए कयवलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाई पवरपरिहिते अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ', दुरुहित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं' छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भड-चडगर'-वंदपरिखित्ते सावत्थीणगरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता केसि-कुमार-समणस्स अदूरसामंते तुरए णिगिण्हइ, रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता केसि कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता णच्चासण्णे णातिदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणएणं पज्जुवासइ॥ धम्मदेसणा-पदं ६६३. तए णं से केसी कुमार-समणे चित्तस्स सारहिस्स तीसे महतिमहालियाए मदच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्म कहेइ, तं जहा-सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहातो वेरमणं ॥ ६६४. तए णं सा महतिमहालिया महच्चपरिसा केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म जामेव दिसि पाउब्भूया तामेव दिसि पडिगया। चित्तस्स गिहिधम्म-पडिवज्जण-पदं । ६६५. तए णं से चित्ते सारही केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ट तुटु-चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उट्टाए उठेइ, उठेत्ता केसि कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । अब्भुठेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! 'तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! जं णं तुब्भे वदह' त्ति कटु वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा जाव इब्भा इब्भपुत्ता चिच्चा हिरण्णं", एवं-धणं धन्नं बलं वाहणं १. रूहइ (क, ख, ग, घ, च)। निग्गंध' इति पाठः समायातः । भगवत: २. कोरेंट' (क, ख, ग, घ, च, छ); द्रष्टव्यं पार्श्वस्य शासने 'श्रमण' पदस्य 'अर्हत' पदस्य ६८३ सूत्रस्य पाठः ।। वा प्रयोगः समुपलभ्यते । ३. चडगरेणं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. एवमेयं भंते २ अवितहमेयं भंते सच्चेणं एस ४. सं० पा०-हट जाव हियए। ___अछे जण्णं तुब्भे वयह (क,ख,ग, घ,च,छ) । ५. निग्गंथाणं (क, ख, ग, घ, च, छ) । अस्य ७. औपपातिके २३ सूत्रे अतोने 'चिच्चा सुवण्णं' पाठस्य औपपातिकानुसारित्वमस्ति, तेन पाठो लभ्यते ।। Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं कोसं कोटागारं पुरं अंतेउरं, चिच्चा विउलं धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिलप्पवाल-संतसारसावएज्ज, विच्छड्डित्ता विगोवइत्ता, दाणं दाइयाणं' परिभाइत्ता, मुंडा भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वयंति, णो खलु अहं तहा संचाएमि चिच्चा हिरणं', •एवं-धणं धन्नं वलं वाहणं कोसं कोट्ठागारं पुरं अंतेउरं, चिच्चा विउलं धण-कणग-रयणमणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-संतसारसावएज्ज, विच्छड्डित्ता विगोवइत्ता, दाणं दाइयाणं परिभाइत्त'. मंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं° पव्वइत्तए, अहं णं देवाण प्पियाणं अंतिए 'चाउज्जामियं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ।। ६६६. तए णं से चित्ते सारही केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए 'चाउज्जामियं गिहिधम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरति ।। ६६७. तए णं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए, चाउरघंट आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए । समणोवासय-वण्णग-पदं ६९८. तए णं से चित्ते सारही समणोवासए जाए'-अहिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे आसव-संवर-निज्जर-किरियाहिगरणबंधप्पमोक्खकुसले असहिज्जे देवासुर-णागसुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किण्णर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जे, निग्गंथे पावयणे णिस्संकिए णिक्कंखिए णिव्वितिगिच्छे लद्धढे गहियढे अभिगयट्ठ पुच्छियठे विणिच्छियढे अद्विमिंजपेमाणुरागरत्ते अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अट्ठे परमठे सेसे अणठे 'ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउरघरप्पवेसे चाउद्दसट्ठमुट्ठिपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेमाणे", १. दाइयं (क, ख, ग, घ, च) । इति वाक्ये किमपि क्रियापदं न स्यात् तथा २. सं० पा०-हिरण्णं तं चेव जाव पव्वइत्तए। च 'उवासगदसाओ' (११२३) सूत्रे एतत्तुल्य३. पंचाणुव्व इयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं वाक्ये 'पडिवज्जिस्सामि' पाठो विद्यते । तेनागिधिम्म (क, ख, ग, घ, च, छ); ६६३ वापि स एव पाठो युज्यते । सूत्रे केशिस्वामिना चित्तसारथये चातुर्यामिको ५. करेसी (क, ख, ग, घ, च, छ) । धर्मः कथितः, तदानीं चित्तसारथिना द्वादश- ६. द्रष्टव्यं पूर्वसूत्रस्य पादटिप्पणम् । विधो गहिधर्मः कथं स्वीकृत: ? प्रस्तुतपाठः ७. जाव (क, ख, ग, घ, च)। अशुद्ध प्रतिऔपपातिकसूत्रेण पूरितः। तत्र 'पंचाणुव्वइयं भाति । सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म' इति ८. असहिज्ज (ख, ग, घ, च)। पाठः आसीत्, स एवात्र अनुकृतः, किन्तु अर्थ- ६. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। समीक्षयात्र 'चाउज्जामियं गिहिधम्म' इति १०. अयमठे (क, ख, ग, घ, च, छ) । पाठो युज्यते । ११. चाउद्दसट्ठमुद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं ४. पडिवज्जित्तए (क, ख, ग, घ, च, छ)। एतत् सम्म अणुपालेमाणे ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे पाठस्य स्वीकारे 'अहं णं देवाणप्पियाणं अंतिए' चियत्तंतेउरपरघरप्पवेसे (क,ख,ग,घ,च,छ) । Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ रायपसेणइयं समणे णिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारेणं वत्थपडिग्गह-कंवल-पायपुंछणणं ओसह-भेसज्जेण य पडिलाभेमाणे-पडिलाभेमाणे, 'वहहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेमाणे जाइं तत्थ रायकज्जाणि य' 'रायकिच्चाणि य रायणीईओ य° रायववहाराणि य ताइं जियसत्तणा रण्णा सद्धि सयमेव पच्चुवेक्खमाणे-पच्चुवेक्खमाणे विहरइ । जियसत्तुणा पाहुडपेसण-पदं ६६६. तए णं से जियसत्तुराया अण्णया कयाइ महत्थं 'महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं° पाहुडं सज्जेइ, सज्जेत्ता चित्तं सारहिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छाहि णं तुमं चित्ता ! सेयवियं नगरि, पएसिस्स रण्णो इमं महत्थं 'महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं° पाहुडं उवणेहि, मम पाउग्गं च णं जहाभणियं अवितहमसंदिद्धं वयणं विण्णवेहि त्ति कटु विसज्जिए॥ चित्तस्स निवेयण-पदं ७००. तए णं से चित्ते सारही जियसत्तुणा रण्णा विसज्जिए समाणे तं महत्थं •महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं° पाहुडं 'गिण्हइ, गिण्हित्ता जियसत्तुस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सावत्थीणयरीए मज्झमझेणं निग्गच्छइ, जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छइ, तं महत्थं 'महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं° पाहुडं ठवेइ, हाएं' 'कयवलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिते अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सकोरटमल्लदामेण छत्तण धीरज्जमाणण° महया पायविहारचारण महया पूरिसवग्गरापरिक्खित्ते रायमग्गमोगाढाओ आवासाओ निग्गच्छइ, सावत्थीणगरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छति, जेणेव कोट्ठए चेइए जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छति, केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्म सोच्चा" 'निसम्म हट्टतुट्ठ-चित्त माणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उठेइ, उठेत्ता केसि कुमार-समणं तिक्खत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी एवं खलु १. अहापरिग्गहेहिं तवोकम्मेहिं (व); बहुर्हि 'जाव' शब्दः अनावश्यक: प्रतिभाति । ६८१ सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववा- सूत्रेण तुलनायां कृतायां 'जाव' शब्दस्य स्थाने सेहिं (वृपा)। 'गिण्हित्ता' पाठो युज्यते । २. सं० पा०-रायकज्जाणि य जाव रायववहा- ८. सं० पा०–महत्थं जाव पाहुडं । राणि। ६. सं० पा०-हाए जाव सरीरे सकोरेंट महया । ३. सं० पा०—महत्थं जाव पाहुडं । १०. पायचारविहारेणं (क, ख, ग, घ, छ); ४. नगरं (च, छ)। प्रस्तुतागमस्य ६८८ सूत्रे तथा औपपातिकस्य ५. सं० पा०-महत्थं जाव पाहुडं । ५२ सूत्रे तथा 'च' प्रतौ पायविहारचारेणं' ६. सं० पा० -- महत्थं जाव पाहुडं । पाठोस्ति, तेन स एव मूले स्वीकृतः । ७. गिण्हइ जाव (क, ख, ग, घ, च, छ); अत्र ११. सं० पा०-सोच्चा जाव हट्ठ उट्ठाए जाव एवं। Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सि-कहाणगं १७३ अहं भंते! जियसत्तुणा रण्णा पएसिस्स रण्णो इमं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रिहं पाहु उवणेहि त्ति कट्टु विसज्जिए । तं गच्छामि णं अहं भंते ! सेयवियं नगरं । पासादीया णं भंते ! सेयविया नगरी । दरिसणिज्जा' णं भंते ! सेयविया नगरी । अभिरूवा णं भंते ! सेयविया नगरी । पडिरूवा णं भंते ! सेयविया नगरी । समोसरह णं भंते! तुभे सेयवियं नगरं ॥ ७०. तसे केस कुमार-समणे चित्तेणं सारहिणा एवं वृत्ते समाणे चित्तस्स सारहिस्स एयमट्ठे णो आढाइ णो परिजाणाइ तुसिणीए संचिदुइ || ७०२. तए णं चित्ते सारही केसि कुमार-समणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासीएवं खलु अहं भंते! जियसत्तुणा रण्णा पएसिस्स रण्णो इमं महत्थं महग्घं महरिहं विलं रायारिहं पाहुडं उवणेहि त्ति कट्टु विसज्जिए । तं गच्छामि णं अहं भंते ! सेयवियं नगर । पासादीया णं भंते ! सेयविया णगरी । दरिसणिज्जा णं भंते ! सेयविया णगरी । अभिरूवा णं भंते ! सेयविया नगरी । पडिरूवा णं भंते ! सेयविया नगरी' । समोसरह णं भंते! तुभे सेयवियं नगर || केसिस पडिवयण-पदं ७०३. तणं केसी कुमार-समणे चित्तेणं सारहिण दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्ते समाणे चित्तं सारहिं एवं वयासी - चित्ता ! से जहाणामए वणसंडे सिया - किण्हे किण्होभासे' "नीले नीलोभासे हरिए हरिओभा से सीए सीओ भासे गिद्धे गिद्ध भासे तिब्वे तिब्वोभासे किण्हे किच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीअच्छाए णिद्धे णिद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घणकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए जाव' पडिरूवे । से णूणं चित्ता ! सेवणसंडे बहूणं दुपय- चउप्पय-मिय-पसु पक्खी सिरीसिवाणं अभिगमणिज्जे ? हंता अभिगमणिज्जे । तंसि च णं चित्ता ! वणसंडंसि बहवे भिलूंगा नाम पावसउणा परिवसंति । जेणं तेसि बहूणं पय-उप्पय-मिय-पसु पक्खी- सिरीसिवाणं ठियाणं चेव मंससोणियं आहारेति । से चित्ता ! सेवणसंडे तेसि णं बहूणं दुपय' - चउप्पय मिय- पसु पक्खी' सिरीसिवाणं अभिगमणिज्जे ? णो ति, कम्हा णं ? भंते ! सोवसग्गे, एवमेव चित्ता ! तुब्भं पि सेयवियाए णयरीए पएसी नाम राया परिवसइ - अहम्मिए जाव णो सम्मं करभरवित्ति पवत्तेइ । तं कहं णं अहं चित्ता ! सेयवियाए नगरीए समोसरिस्सामि ? पुणो निवेयण - अब्भुवगमण-पदं ७०४. तए णं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं एवं वयासी - किं णं भंते ! तुब्भं पसिणा रण्णा कायव्वं ? अस्थि णं भंते ! सेयवियाए नगरीए अण्णे बहवे ईसर - तलवर " १. x (क, ख, ग, घ, च, छ ) । २. सं० पा०- - महत्थं जाव पाहुडं । ३. एवं दरिसणिज्जा ( क, ख, ग, घ, छ) 1 ४. सं० पा० - महत्थं जाव विसज्जिए । समोसरह । ५. सं० पा० - किण्होभासे जाव पडिरूवे । चेव ६. ओ० सू० ५-७ । ७. पावसमणा ( क ) ; पासवणा ( च, छ ) । ८. सं० पा०-दुपय जाव सिरीसिवाणं । ६. राय० सू० ६७१ । १०. सं० पा० - ईसर तलवर जाव सत्थवाह' । Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ रायपसेणइयं • माडंबिय-कोडुंबिय इब्भ-सेट्ठि- सेणावइ' सत्थवाहपभितयो, जे णं देवाणुप्पियं वंदिस्संति नमसिस्संति' 'सक्कारिस्संति सम्माणिस्संति कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं° पज्जुवासिस्संति, विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभिस्संति, पाडिहारिएण पीढ-फलग - सेज्जासंथारेण उवणिमं तिस्संति' ॥ ७०५. तणं से केसी कुमार-समणे चित्तं सारहि एवं वयासी - अवि याई चित्ता ! समोसरिस्सामो' || उज्जाणपाल - निद्देसण-पदं ७०६. तए णं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं वंदइ नमसइ, केसिस्स कुमारसमणस्स अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, जेणेव सावत्थी नगरी जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुंबिय पुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी— खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंट आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह | जहा सेयवियाए नगरीए निग्गच्छइ, तहेव जाव अंतरा वासेहिं वसमाणे वसमाणे कुणाला' - जणवयस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव केकय - अद्धे जणवए जेणेव सेयविया नगरी जेणेव मियवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उज्जाणपालए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीजाणं देवाणुप्पिया ! पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमार-समणे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागच्छिज्जा तया णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! केसि कुमार-समणं वंदिज्जाह नमसिज्जाह, वंदित्ता नमंसित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं अणुजाणेज्जाह, पाडिहारिएणं पीढ-फलग'- सेज्जा - संथारेण उवणिमंतिज्जाह, एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चपिणेज्जाह ॥ ७०७. तए णं ते उज्जाणपालगा चित्तेणं सारहिणा एवं वृत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ' - चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस - विसप्पमाण हियया करयलपरिग्गहियं " • दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं सामी ! हत्ति आणा विणणं वयणं पडिसुर्णेति । पाहुड उवणयण-पदं ७०८. तए णं चित्ते सारही जेणेव सेयविया णगरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेयवियं नगर मज्झं मज्झेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव पएसिस्स रण्णो गिहे जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला तेणेव उवागच्छइ, तुरए णिगिण्हइ, रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, तं महत्थं" "महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, जेणेव पएसी राया तेणेव उवागच्छइ, पएसिं रायं करयल " परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु १. सं० पा० – नमंसिस्संति जाव पज्जुवासिस्संति । ७. अणुजात्ता (क, ख, ग, घ, च, छ) । २. निमेते हिति (वृ) । ८. सं० पा० - पीढफलग जाव उवणिमंतिज्जाह । ६. सं० पा० - हट्ठतुट्ठ जाव हियया । १०. सं० पा० - करयलपरिग्गहियं जाव एवं | ११. सं० पा० - महत्थं जाव गेण्हइ । १२. सं० पा० - करयल जाव वढावेत्ता | ३. जाणिस्सामो (वृ) ; समोसरिस्सामो (वृपा ) । ४. रा ० सू० ६८२, ६८३ । ५. कुणाल (क, ख, ग, घ, च, छ ) । केा उ. रा.प.च. उ ( Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७५ पएसि-कहाणगं जएणं विजएणं वद्धावेइ°, वद्धावेत्ता तं महत्थं महाधं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं° उवणेई॥ ७०६. तए णं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स तं महत्थं' 'महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं पडिच्छइ, चित्तं सारहिं सक्कारेइ, सम्माणेइ, पडिविसज्जेइ॥ ७१०. तए णं से चित्ते सारही पएसिणा रण्णा विसज्जिए समाणे हट्ठ' 'तुटुचित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए पएसिस्स रण्णो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, जेणेव चाउग्धंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्घंटे आसरहं दुरुहइ, सेयवियं नगरि मज्झमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, तुरए णिगिण्हइ, रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, ण्हाए" 'कयवलिकम्मे° उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहि मुइंगमत्थएहिं बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहिं वरतरुणी-संपउत्तेहिं 'उवणच्चिज्जमाणे उवगाइज्जमाणे" उवलालिज्जमाणे इठे सद्द-फरिस - रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणे° विहरइ ।। केसिस्स सेयविया-आगमण-पदं ७११. तए णं से केसी कुमार-समणे अण्णया कयाइ पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जासंथारगं पच्चप्पिणइ, सावत्थीओ नगरीओ कोडगाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पंचहिं अणगारसएहिं 'सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं' विहरमाणे जेणेव केयइ-अद्धे जणवए जेणेव सेयविया नगरी जेणेव मियवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति ।। ७१२. तए णं सेयवियाए नगरीए सिंघाडग- तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु महया जणसद्दे इ वा जणवूहे इ वा जणबोले इ वा जणकलकले इ वा जणउम्मी इ वा जणसण्णिवाए इ वा जाव परिसा णिग्गच्छइ ।। उज्जाणपालगाणं चित्तस्स निवेदण-पदं ७१३. तए णं ते उज्जाणपालगा इमीसे कहाए लट्ठा समाणा हट्ठतु?" चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण हियया जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छंति, केसि कुमार-समणं वंदंति नमसंति, अहापडिरूवं ओग्गहं अणुजाणंति, पाडिहारिएणं •पीढ-फलग-सेज्जा संथारएणं उवनिमंतंति, णामं गोयं पुच्छंति ओधारेंति", १. सं० पा०-महत्थं जाव उवणेइ । ८. सं० पा०-अणगारसएहि जाव विहरमाणे । २. उवणमेइ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. सं० पा०-सिंघाडग महया जणसद्देइ वा ३. सं० पा०–महत्थं जाव पडिच्छइ। परिसा। ४. सं० पा०-हट्ट जाव हियए। १०. राय० सू० ६८७। ५. सं० पा०-हाए जाव उप्पि । ११. सं० पा०-हट्टतुटु जाव हियया। ६. उवणच्चिज्जमाणे २ उवगेयमाणे २ (क, ख, १२. सं० पा०—पाडिहारिएणं जाव संथारएणं । __ग, घ, च)। १३. आधारेति (क, ख, ग, घ, च, छ) । ७. सं० पा०-फरिस जाव विहरइ । Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ रायपसेणइयं एगतं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता अण्णमण्णं एवं वयासी-जस्स णं देवाणु प्पिया ! चित्ते सारही सणं कंखइ सणं पत्थेइ दसणं पीहेइ दंसणं अभिलसइ, जस्स णं णामगोयस्स वि सवणयाए हट्टतुटु'- चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण हियए भवति, से णं एस केसी कुमार-समणे पुन्वाणुपुद्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सेयवियाए णगरीए बहिया मियवणे उज्जाणे अहापडिरूवं' •ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अपाणं भावेमाणे° विहरइ तं' गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! चित्तस्स सारहिस्स एयमढं पियं निवेएमो पियं से भवउ, अण्णमण्णस्स अंतिए एयमट्ठ पडिसुणेति जेणेव सेयविया णगरी जेणेव चित्तस्स सारहिस्स गिहे जेणेव चित्ते सारही तेणेव उवागच्छंति, चित्तं सारहि करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी-जस्स णं देवाणुप्पिया ! दंसणं कंखंति" 'दसणं पत्थेति दंसणं पीहेंति दसणं अभिलसंति, जस्स णं णामगोयस्स वि सवणयाए हट्ट 'तुट्ठ-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया भवह, से णं अयं पासावच्चिज्जे केसी नामं कुमार-समणे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे 'गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सेयवियाए णगरीए बहिया मियवणे उज्जाणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे° विहरइ॥ चित्तस्स केसि-पज्जुवासणा-पदं ७१४. तए णं से चित्ते सारही तेसि उज्जाणपालगाणं अंतिए एयमह्र सोच्चा णिसम्म हट्टतु?"- चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए विगसियवरकमलणयणे पयलिय-वरकडग-तुडिय-केऊर-मउड-कुंडल-हार-विरायंतरइयवच्छे पालंबपलंबमाण-घोलंत-भूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं सारही आसणाओ अब्भुट्ठति, पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पाउयाओ ओमुयइ, एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, अंजलि-मउलियग्गहत्थे" केसि-कुमार-समणाभिमुहे सत्तट्ठ पयाइं अणुगच्छइ, करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी--'नमोत्थु णं अरहंताणं जाव सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमोत्थु णं केसिस्स कुमार-समणस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स । वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासइ" मे भगवं तत्थगए इहगयं ति कट्ट वंदइ नमसइ. ते उज्जाणपालए विउलेणं वत्थगंधमल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, विउलं १. पेच्छइ (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. सं० पा०-चरमाणे समोसढे जाव विहरइ । २. सं० पा०-हट्ठतुट्ठ जाव हियए। १०. सं० पा०-हट्टतुट्ठ जाव आसणाओ। ३. सं० पा०-अहापडिरूवं जाव विहरइ । ११. मउलियहत्थे (क, ख, ग, घ, च)। ४. ता (क, घ, च, छ); तो (ख, ग)। १२. राय० सू०८। ५. गेहे (क, छ)। १३. x (क)। ६. सं० पा०-करयल जाव वद्धावेंति । १४. पासउ (क, ख, ग, घ, च, छ); अष्टमे सूत्रे ७. सं० पा०-कंखंति जाव अभिलसंति । वृत्तिमनुसृत्य 'पासइ' पाठः स्वीकृतः तथैव ८. सं० पा०-हट्ट जाव भवह । अत्रापि । Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १७७ जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ, कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया' ! चाउग्घंटे आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह', 'उवद्ववेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ७१५. तए णं ते कोडुबियपुरिसा' 'तहेव पडिसुणित्ता खिप्पामेव सच्छत्तं सज्झयं जाव' उवद्ववेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ ७१६. तए णं से चित्ते सारही कोडंबियपुरिसाणं अंतिए एयमढं सोच्चा निसम्म हतुटु'- चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण हियए हाए कयबलिकम्मे •कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवरपरिहिते अप्पमहग्घाभरणालं कियसरीरे जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भडचडगर-वंदपरिखित्ते सेयवियाणगरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव मियवणे उज्जाणे जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता केसिकुमार-समणस्स अदरसामंते तुरए णिगिण्हइ, रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता जेणव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता केसि कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता णच्चासण्णे णातिदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणएणं पज्जुवासइ॥ चाउज्जाम-धम्मदेसणा-पदं ७१७. तए णं से केसी कुमार-समणे चित्तस्स सारहिस्स तीसे महतिमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं कहेइ, तं जहा-सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं । तए णं सा महतिमहालिया महच्चपरिसा केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया ॥ चित्तस्स निवेदण-पदं ७१८. तए णं से चित्ते सारही केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतु?:- चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उदाए उठेइ, उठेत्ता केसि कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु भंते ! अम्हं पएसी राया अधम्मिए जाव' सयस्स वि जणवयस्स नो सम्मं करभरवित्ति पवत्तेइ, तं जइ णं १. द्रष्टव्यं ६८१ सूत्रम्। चडगरेणं तं चेव जाव पज्जुवासइ । धम्मकहाए २. सं० पा०-उवट्ठवेह जाव पच्चप्पिणह । जाव तए थे। ३. सं० पा०-कोडुंबियपुरिसा जाव खिप्पामेव। ७. आरुहित्ता (क); रुहित्ता (ख, ग, घ, च) ४. राय० सू० ६८२। ८. सं० पा०-हट्ठतु? तेहव एवं । ५. सं० पा०-हट्टतुट जाव हियए। ६. राय० सू० ६७१। ६. सं० पा०–कयबलिकम्मे जाव सरीरे जेणेव १०. करभरपवृत्ति (क); 'पवित्ति (ख, ग, घ, चाउग्घंटे जाव दुरुहित्ता सकोरेंट महया भड- च, छ)। Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं देवाणुप्पिया ! पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खेज्जा । बहुगुणतरं खलु होज्जा पएसिस्स रण्णो, तेसि च बहूणं दुपय- चउप्पय-मिय- पसु पक्खी - सिरीसवाणं, तेसिं च बहूणं समण-माहणभिक्खुयाणं, तं जइ णं देवाणुप्पिया ! पए सिस्स रण्णो धम्ममाइक्खेज्जा बहुगुणतरं होज्जा सयस्स वि य णं जणवयस्स || १७८ केसिस्स पडिवयण-पदं ७१६. तए णं केसी कुमार - समणे चित्तं साराह एवं वयासी - एवं खलु चउहि ठाणेहि चित्ता ! जीवे' केवलिपण्णत्तं धम्मं नो लभेज्ज सवणयाए, तं जहा - आरामगयं वा उज्जाणगयं वा समणं वा माहणं वा णो अभिगच्छइ णो वंदइ णो णमंसइ णो सक्कारेइ णो सम्माणेइ णो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, नो अट्ठाई ऊ पसिणा कारणाई वागरणाई पुच्छइ । एएण वि ठाणेणं चित्ता ! जीवे' केवलि - पण्णत्तं धम्मं नो लभइ सवणयाए । उवस्सयगयं समणं वा माहणं वा णो अभिगच्छइ णो वंदइ णो णमंसइ णो सक्कारेइ णो सम्माणेइ णो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, नो अट्ठाई हेऊई पसिणाई कारणाई वागरणाई पुच्छइ । एएण वि ठाणेणं चित्ता ! जीवे केवलिपण्णत्तं धम्मं नो लभइ सवणयाए । गोयरग्गगयं * समणं वा माहणं वा णो अभिगच्छइ णो वंदइ णो णमंसइ णो सक्कारेइ णो सम्माणेइ णो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं° पज्जुवासेइ णो विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाइ, नो अट्ठाई' हेऊई पसिणाई कारणाई वागरणाइं° पुच्छइ । एएणवि ठाणे चित्ता ! जीवे केवलिपण्णत्तं धम्मं नो लभइ सवणयाए । जत्थ वि य णं समणेण वा माहणेण वा सद्धि अभिसमागच्छइ तत्थ 'वि य" णं हत्थेण वा वत्थेण वा छत्तेण वा अप्पाणं आवरित्ता चिट्ठइ, नो अट्ठाई' 'हेऊई पसिणाई कारणाई वागरणाई° पुच्छइ । एएण वि ठाणेणं चित्ता ! जीवे केवलिपण्णत्तं धम्मं नो लभइ सवणयाए । एएहिं च णं चित्ता ! चउहि ठाणेहि जीवे केवलिपण्णत्तं धम्मं लभइ सवणयाए, तं जहाआरामगयं वा उज्जाणगयं वा समणं वा माहणं वा अभिगच्छइ वंदइ नमसइ" सक्कारेइ सम्माणेइ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं° पज्जुवासेइ, अट्ठाई" हेऊई पसिणाई कारणाइं १. जीवा (क, छ) । २. जीवा (छ) । ३. सं० पा० - समणं वा तं चैव जाव एएन । ४. वृत्तिकृता 'प्रातिहारेण पीठफलकादिना नामन्त्रयतीत्यादि तृतीयम्, गोचरगतं न अशनादिना प्रतिलाभयति - इत्यादि चतुर्थम्' कारणं स्वीकृतं तथा 'यत्रापि श्रमणः साधुः माहनः -- परमगीतार्थः श्रावकोऽभ्यागच्छति तत्रापि हस्तेन वस्त्राञ्चलेन छत्रेण वाऽऽत्मानमावृत्य न तिष्ठति इदं प्रथमं कारणम्', एवं मूलपाठलब्ध धर्माऽश्रवणस्य चतुर्थं कारणं धर्मश्रवणस्य प्रथमकारणत्वेन निर्दिष्टम् । ५. सं० पा० - माहणं वा जाव पज्जुवासेइ । ६, ६. सं० पा० - अट्ठाई जाव पुच्छइ । ७. x (क, च, छ) । ८. X ( क, च, छ) । १०. सं० पा०—–नमंसइ जाव पज्जुवासेइ । ११. सं० पा०-- -- अट्ठाई जाव पुच्छइ । Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १७६ वागरणाइं° पुच्छइ। एएण वि' 'ठाणेणं चित्ता ! जीवे केवलिपण्णत्तं धम्म° लभइ सवणयाए। उवस्सयगयं' 'समणं वा माहणं वा अभिगच्छइ वंदइ णमंसइ सक्कारेइ सम्माणेइ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, अट्ठाइं हेऊई पसिणाइं कारणाई वागरणाइं पुच्छइ। एएण वि ठाणेणं चित्ता ! जीवे केवलिपण्णत्तं धम्म लभइ सवणयाए ।। गोयरग्गगयं समणं वा' 'माहणं वा अभिगच्छइ वंदइ णमंसइ सक्कारेइ सम्माणेइ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, विउलेणं 'असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेइ, अट्ठाई 'हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं° पुच्छइ । एएण वि ठाणेणं चित्ता ! जीवे केवलिपण्णत्तं धम्म लभइ सवणयाए। जत्थ वि य णं समणेण वा माहणेण वा सद्धि अभिसमागच्छइ तत्थ वि य णं णो हत्थेण वा' 'वत्थेण वा छत्तेण वा अप्पाणं आवरेत्ताणं चिट्ठइ । एएण वि ठाणेणं चित्ता ! जीवे केवलिपण्णत्तं धम्म लभइ सवणयाए। तुझं च णं चित्ता ! पएसी राया-आरामगयं वा 'उज्जाणगयं वा समणं वा माहणं वा णो अभिगच्छइ णो वंदइ णो णमंसइ णो सक्कारेइ णो सम्माणेइ णो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, नो अट्ठाइं हेऊई पसिणाइं कारणाइं वागरणाई पुच्छइ। तं कहं णं चित्ता ! पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खिस्सामो ? उवस्सयगयं समणं वा माहणं वा णो अभिगच्छइ णो वंदइ णो णमंसइ णो सक्कारेइ णो सम्माणेइ णो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, णो अट्ठाई हेऊई पसिणाइं कारणाई वागरणाई पुच्छइ । तं कहं णं चित्ता ! पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खिस्सामो ? गोयरग्गगयं समणं वा माहणं वा णो अभिगच्छइ णो वंदइ णो णमंसइ णो सक्कारे णो सममणेइ णो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, णो विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेइ, णो अट्ठाई हेऊई पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छइ। तं कहं णं चित्ता ! पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खिस्सामो ? जत्थ वि य णं समणेण वा माहणेण वा सद्धि अभिसमागच्छइ तत्थ वि य णं हत्थेण वा वत्थेण वा छत्तेण वा अप्पाणं आवरेत्ता चिट्ठइ । तं कहं णं चित्ता ! पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खिस्सामो? || ७२०. तए णं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं एवं वयासी-एवं खलु भंते ! अण्णया कयाइ कंबोएहिं चत्तारि आसा उवायणं उवणीया, ते मए पएसिस्स रण्णो अण्णया चेव उवणेया । तं एएणं खलु भंते ! कारणेणं अहं पएसिं रायं देवाणुप्पियाणं १. सं० पा०-एएण वि जाव लभइ । २. सं० पा०-उवस्सयगयं । ३. सं० पा०–समणं वा जाव पज्जुवासेइ । ४. सं० पा०- विउलेणं जाव पडिलाभेइ । ५. सं० पा०-अट्ठाई जाव पुच्छइ । ६. सं० पा०-हत्थेण वा जाव आवरेत्ताणं । ७. सं० पा०-आरामगयं वा तं चेव सव्वं भाणि यव्वं आइल्लएणं गमएणं जाव अप्पाणं । ८. उवणयणं (क); उवयणं (ख, ग, घ, च, छ) ६. विणेया (क, ख, ग, घ, च) Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० रायपसेणइयं अंतिए हव्वमाणेस्सामि । तं मा णं देवाणुप्पिया ! तुब्भे पएसिस्स रण्णो धम्इमाइक्खमाणा गिलाएज्जाह । अगिलाए णं भंते ! तुब्भे पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खेज्जाह । छंदेणं भंते ! तुब्भे पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खेज्जाह ॥ ७२१. तए णं से केसी कुमार-समणे चित्तं सारहिं एवं वयासी-अवि याइं चित्ता! जाणिस्सामो॥ ७२२. तए णं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं वंदइ नमसइ, जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्घटं आसरहं दुरुहइ, जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए॥ चित्त-पएसि-पदं ७२३. तए णं से चित्ते सारही कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे' पभाए कयनियमावस्सए सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते साओ गिहाओ णिग्गच्छइ, जेणेव पएसिस्स रण्णो गिहे जेणेव पएसी राया तेणेव उवागच्छइ, पएसिं रायं करयल'परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं° कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं कंवोएहिं चत्तारि आसा उवायणं' उवणीया, ते य मए देवाणु प्पियाणं अण्णया चेव विणइया । तं एह णं सामी ! ते आसे चिट्ठ पासह ॥ ७२४. तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी-गच्छाहि णं तुम चित्ता ! तेहिं चेव चाहिं आसेहिं चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेहि', 'एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ ७२५. तए णं से चित्ते सारही पएसिणा रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुटु'- चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उवट्ठवेइ, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ ॥ ७२६. तए णं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स अंतिए एयमढं सोच्चा णिसम्म हत-चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए हाए कय-बलिकम्मे कयकोउय-मंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिते अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ निग्गच्छइ, जेणामेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, सेयवियाए नगरीए मज्झमज्झेणं णिग्गच्छइ । ७२७. तए णं से चित्ते सारही तं रहं गाई जोयणाई उब्भामेइ । ७२८. तए णं से पएसी राया उण्हेण य तण्हाए य रहवाएण य" परिकिलते समाणे चित्तं सारहिं एवं वयासी--चित्ता ! परिकिलंते मे सरीरे, परावत्तेहि रहं ।। __७२६. तए णं से चित्ते सारही रहं परावत्तेइ, जेणेव मियवणे उज्जाणे तेणेव उवाग१. पंडरे (क); पंडर (ख, ग, घ, च)। ५. सं० पा०-हट्टतुट्ट जाव हियए । २. सं० पा०-करयल जाव कटटु । ६. सं० पा०-हट्ठतुट्ठ जाव अप्पमहग्घाभरणा३. उवणयं (क, ख, ग, घ, च)। लंकियसरीरे । ४. सं० पा०-उवट्ठवेहि जाव पच्चप्पिणाहि। ७. ४ (क, छ) । Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १८१ च्छइ, पएसिं रायं एवं वयासी-एस णं" सामी ! मियवणे उज्जाणे, एत्थ णं आसाणं समं किलाम सम्म अवणेमो' । ७३०. तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी-एवं होउ चित्ता ! ७३१. तए णं से चित्ते सारही जेणेव केसिस्स कुमार-समणस्स अदूरसामंते तेणेव उवागच्छइ, तुरए णिगिण्हेइ, रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, तुरए मोएति, पएसिं रायं एवं वयासी-एह णं सामी ! आसाणं समं किलाम सम्म अवणेमो' । ७३२. तए णं से पएसी राया रहाओ पच्चोरुहइ, चित्तेण सारहिणा सद्धिं आसाणं समं किलामं सम्मं अवणेमाणे जत्थ [तत्थ ?] 'केसि कुमार-समणं महइमहालियाए महच्चपरिसाए मज्झगए महया-महया सद्देणं धम्ममाइक्खमाणं पासइ, पासित्ता इमेयास्वे अज्झथिए 'चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्था-जड्डा खलु भो ! जड्डे पज्जुवासंति । मुंडा खलु भो ! मुंडं पज्जुवासंति । मूढा खलु भो ! मूढं पज्जुवासंति । अपंडिया खलु भो! अपंडियं पज्जुवासंति। निविण्णाणा खलु भो! निविण्णाणं पज्जुवासंति। से केस णं एस पुरिसे जड्डे मुंडे मूढे अपंडिए निविण्णाणे, सिरीए हिरीए उवगए, उत्तप्पसरीरे? एस णं पुरिसे किमाहारमाहारेइ ? 'किं परिणामेइ ?" किं खाइ ? किं पियइ ? किं दलयइ ? किं पयच्छइ ? जेणं" एमहालियाए मणुस्सपरिसाए महया-महया सद्देणं बूया" । [साए वि णं उज्जाणभूमीए नो संचाएमि सम्म पकामं पवियरित्तए ? ] " एवं संपेहेइ, संपेहित्ता चित्तं सारहिं एवं वयासी-चित्ता ! जड्डा खलु भो ! जडे पज्जुवासंति" । 'मुंडा खलु भो ! मुंडं पज्जुवासंति। मूढा खलु भो ! मूढं पज्जुवासंति । अपंडिया खलु भो ! अपंडियं पज्जुवासंति । निविण्णाणा खलु भो! निविण्णाणं पज्जुवासंति । से केस णं एस पुरिसे जड्डे मुंडे मूढे अपंडिए निविण्णाणे, सिरीए हिरीए उवगए, उत्तप्पसरीरे ? एस णं पुरिसे किमाहारमाहारेइ ? किं परिणामेइ ? किं खाइ ? किं पियइ ? किं दलयइ ? किं पयच्छइ ? जेणं एमहालियाए मणुस्सपरिसाए महया-महया सद्देणं बूया। साए वि णं उज्जाणभूमीए नो संचाएमि सम्म पकामं पवियरित्तए॥ ७३३. तए णं से चित्ते सारही पएसिं रायं एवं वयासी-एस णं सामी ! १. सरणं (क, च)। _ 'जंणं एस' इति लभ्यते। २-३. पवीणामो (क, ख, ग, घ, च, छ)। १२. थूभियाए (क, च); बूयाइ (छ) । ४. पवीणेमाणे (क, ख, ग, घ, च, छ) । १३. ७२७ सूत्रे केशिस्वामिना प्रदेशिराजकृतः ५. अत्रादर्शषु 'जत्थ' पाठो लभ्यते, किन्तु अर्थ संकल्प एव स्मारितः । तत्र 'साए वि णं विचारणया 'तत्थ' पाठो युज्यते । उज्जाणभूमीए नो संचाएमि सम्म पकामं ६. केसी कुमार-समणे (क, ख, ग, घ, च, छ)। पवियरित्तए' इति पाठो विद्यते, तदास्मिन ७. सं० पा०-अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था । प्रदेशिराजकृतसंकल्पसूत्रे स पाठांशः कथं न ८. ववगए (क, ख, ग, घ, च)। स्यात् ? इति पौर्वापार्थविचारणया 'साए ६.x (क, ख, ग, घ, च)। वि. इति' पाठांशोत्र युज्यते । १०. दलइ (च)। ११. जण्णं (क, ख, ग, घ, च, छ); मुद्रितवृत्तौ १४. सं० पा०-पज्जुवासंति जाव बूया । Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइथं पासवच्चिज्जे केसी नाम कुमार-समणे जातिसंपण्णे जाव' चउणाणोवगए 'अहोऽवहिए जीवि ॥ ७३४. तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी - 'अहोऽवहियं णं" वयासि चित्ता ! अण्णजीवियं णं वयासि चित्ता ! हंता सामी ! अहोऽवहियं णं वयामि, अण्णजीवियं णं वयामि ॥ १८२ ७३५. अभिगमणिज्जेणं चित्ता ! एस पुरिसे ? हंता सामी ! अभिगमणिज्जे । अभिगच्छामो णं चित्ता ! अम्हे एवं पुरिसं ? हंता सामी ! अभिगच्छामो ॥ पएस - केसि - पदं ७३६. तए णं से पएसी राया चित्तेण सारहिणा सद्धि जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छइ, केसिस्स कुमार-समणस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी- तुब्भेणं भंते ! अहोऽवहिया अण्णजीविया ? ७३७. तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी - पएसी ! से जहाणामए अंकवाणिया इ वा संखवाणिया इ वा सुंकं भंसेउकामा णो सम्मं पंथं पुच्छति । एवामेव पसी ! तुमं विविणयं भंसेउकामो नो सम्मं पुच्छसि । से णूणं तव पएसी ! ममं पासिता अयमेयारूवे अज्झत्थिए ' 'चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - जड्डा खलु भो ! जडुं पज्जुवासंति" । "मुंडा खलु भो ! मुंडं पज्जुवासंति । मूढा खलु भो ! मूढं पज्जुवासंति | अपंडिया खलु भो ! अपंडियं पज्जुवासंति । निव्विण्णाणा खलु भो ! निव्विण्णाणं पज्जुवासंति से केस णं एस पुरिसे जड्डे मुंडे मूढे अपंडिए निव्विण्णाणे, सिरीए हिरीए उवगए, उत्तप्पसरीरे ? एस णं पुरिसे किमाहारमाहारेइ ? कि परिणामेइ ? कि खाइ ? कि पियइ ? कि दलयइ ? कि पयच्छइ ? जे णं एमहालियाए मणुस्सपरिसाए महया - मया सद्देणं बूया । साए वि णं उज्जाणभूमीए नो संचामि सम्मं कामं परि । सेणू पएसी ! अत्थे समत्थे ? हंता ! अस्थि || ७३८. तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी - से केस णं भंते ! तुझं नाणे वा दंसणे वा, जेणं' तुब्भं मम एयारूवं अज्झत्थियं चितियं पत्थियं मणोगयं° संकप्पं समुप्पण्णं जाणह पासह ? ७३६. तए णं केसी कुमार- समणे पएसिं रायं एवं वयासी - एवं खलु पएसी ! अम्हं समणाणं निग्गंथाणं पंचविहे णाणे पण्णत्ते, तं जहा - आभिणिबोहियणाणे सुययाणे ओहिणाणे मणपज्जवणाणे केवलणाणे || ७४०. से कि तं आभिणिवोहियणाणे ? आभिणिवोहियणाणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - उग्गहो ईहा अवाए धारणा || १. राय० सू० ६८६ । २. अहोहिए अण्णं जीवे (क, ख, ग ) ; अहोहिए अण्णजीवी ३. अहोहि अण्णं (क, ख, ग, घ ) । ४. अहोहि (क, ख, ग, घ ) । ५. भंजेउ' (क, ख, ग, घ, च, छ ) । ६. सं० पा० - अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था । ७. सं० पा० - पज्जुवासंति जाव पवियरित्तए । ८. जंणं (घ) । ६. सं० पा० अज्झत्थियं जाव संकप्पं । Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सि-कहाण १८३ ७४१. से किं तं उग्गहे ? उग्गहे दुविहे पण्णत्ते, जहा नंदीए जाव' से तं धारणा । तं आभिणिबोहियाणे || ७४२. से किं तं सुयणाणं ? सुयणाणं दुविहं पण्णत्तं तं जहा - अंगपविट्ठ च अंगबाहिरगं च सव्वं भाणियव्वं जाव' दिट्टिवाओ ।। ७४३. से किं तं ओहिणाणं ? ओहिणाणं दुविहं पण्णत्तं तं जहा - भवपच्चइयं च, खओवसमियं च जहा नंदीए ॥ ७४४. " से किं तं मणपज्जवणाणे ? मणपज्जवणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहाउज्जुमईयविउलमई य' ॥ ७४५. " से किं तं केवलणाणं ? केवलणाणं दुविहं पण्णत्तं तं जहा - भवत्थकेवलगाणं च सिद्ध केवलणाणं च । ७४६. तत्थ णं जेसे आभिणिबोहियणाणे, से णं ममं अस्थि । तत्थ णं जेसे सुयणाणे, सेविय ममं अस्थि । तत्थ णं जेसे ओहिणाणे, से वि य ममं अस्थि । तत्थ णं जेसे मणपज्जवणाणे, सेवि य ममं अस्थि । तत्थ णं जेसे केवलणाणे, से णं ममं नत्थि, से णं अरहंताणं भगवंताणं । इच्चेएणं पएसी ! अहं तव चउव्विहेणं छाउमत्थि एणं णाणेणं इमेयारूवं अज्झत्थियं' चितियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं समुप्पण्णं जाणामि पासामि || ७४७. तणं से एसी राया केसि कुमार - समणं एवं वयासी - अह णं भंते ! इहं उवविसामि ? पएसी ! साए उज्जाणभूमीए तुमं सि चेव जाणए । जीव- सरीर अण्णत्त-पदं ७४८. तए णं से पएसी राया चित्तेणं सारहिणा सद्धि केसिस्स कुमार-समणस्स अदूरसामंते उवविसइ, केसि कुमार-समणं एवं वयासी - तुब्भं णं भंते ! समणाणं णिग्गंथाणं एस" सण्णा एस पइण्णा" एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे 'एस पमाणे एस समोसरणे, जहा - अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो तं जीवो तं सरीरं ? ॥ ११२ ७४६. तए णं केसी कुमार-समणे पएस रायं एवं वयासी - पएसी ! अम्हं समणाणं णिग्गंथाणं एस सण्णा" एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संक एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा - अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो 'तं जीवो" तं सरीरं ॥ १. नंदी सू० ४०-४६ । २. नंदी सू० ७३-१२६ । ३. सं० पा०-- ओहिणाणं भवपच्चइयं खओवस मियं । ४. नंदी सू० ७-२२ । ५. सं० पा० - मणपज्जवणाणे । ६. नंदी सू० २३-२५ । ७. सं० पा० तहेव केवलणाणं सव्वं भाणियव्वं । ८. नंदी सू० २७-३३ । ६. सं० पा० – अज्झत्थियं जाव समुप्पण्णं । १०. एसा (छ) । ११. पण्णा (क, ख, ग, घ, च, छ) । १२. x ( क, ख, ग, घ, च) । १३. सं० पा० - एस सण्णा जाव एस समोसरणे । १४. तज्जीवो (क, ख, ग, घ, च) । Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ रायपसेणइयं तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७५०. तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-जति णं भंते ! तुम्भं समणाणं णिग्गंथाणं एस सण्णा' 'एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस' समोसरणे, जहा -- अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो 'तं जीवो" तं सरीरं- एवं खलु ममं अज्जए होत्था, इहेव सेयवियाए णगरीए अधम्मिए जाव' सयस्स वि य णं जणवयस्स नो सम्मं करभरवित्ति पवत्तेति से णं तब्भं वत्तव्वयाए सुबहं पावकम्म कलिकलूसं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णय रेसु नरएस णेरइयत्ताए उववण्णे । तस्स णं अज्जगस्स अहं णत्तुए होत्था-इठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए रयणकरंडगसमाणे जीविउस्सविए हिययणंदिजणणे उंबरपुप्फ पिव दुल्लभे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? तं जति णं से अज्जए ममं आगंतुं वएज्जा-एवं खलु नत्तुया ! अहं तव अज्जए होत्था, इहेव सेयवियाए नयरीए अधम्मिए जाव नो सम्मं करभरवित्ति पवत्तेमि । तए णं अहं सुबहुं पावकम्मं कलिकलुसं समज्जिणित्ता [कालमासे कालं किच्चा अण्णय रेसु ?] नरएसु [णेरइयत्ताए ?] उववण्णे तं मा णं नत्तुया ! तुम पि भवाहि अधम्मिए जाव नो सम्म करभरवित्ति पवत्तेहि । मा णं तुमं पि एवं चेव सुबहुं पावकम्मं 'कलिकलुसं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णय रेसु नरएसु णेरइयत्ताए° उववज्जिहिसि । तं जइ णं से अज्जए ममं आगंतुं वएज्जा तो णं अहं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा' जहा अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो तं जीवो तं सरीरं। जम्हा णं से अज्जए ममं आगंतुं नो एवं वयासी, तम्हा सुपइट्ठिया मम पइण्णा' समणाउसो ! जहा तज्जीवो तं सरीरं ।। जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७५१. तए णं से केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी-अत्थि णं पएसी ! तव सूरियकता णामं देवी ? हंता अस्थि । जइ णं तुम पएसी तं सूरियकंतं देविं हायं कयबलिकम्म कयकोउयमंगलपायच्छित्तं सव्वालंकारभूसियं केणइ पुरिसेणं ण्हाएणं 'कयबलिकम्मेणं कयकोउयमंगलपायच्छित्तेणं सव्वालंकारभूसिएणं सद्धि इठे सद्द-फरिस-रस-रूवगंधे पंच विहे माणुस्सते कामभोगे पच्चणुब्भवमाणि पासिज्जासि, तस्स णं तुमं पएसी ! पुरिसस्स क डडं निव्वत्तेज्जासि ? अहं णं भंते ! तं पुरिसं हत्थच्छिण्णगं वा पायच्छिण्णगं वा सूलाइगं वा सूलभिण्णगं वा एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवएज्जा। ___'अह णं"पएसी से पुरिसे तुम एवं वदेज्जा—मा ताव मे सामी! मुहुत्तागं" हत्थच्छि१. सं० पा०--एस सण्णा जाव समोसरणे । ६. पन्ना (क, ख, ग, घ, च)। २. तज्जीवो (क, ख, ग, घ, च) । ७. विभूसियं (छ)। ३. राय० सू० ६७१। ८. सं० पा०-हाएणं जाव सव्वालंकारभूसिएणं । ४. सं० पा०-पावकम्मं जाव उववज्जिहिसि । ६. अहण्णं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. रोवएज्जा (क, ख, ग, घ, च, छ)। १०. मुहत्तगं (छ)। Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १८५ ण्णगं वा' 'पायछिण्णगं वा सूलाइगं वा सूलभिण्णगं वा एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवेहि जाव ताव अहं मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परिजणं एवं वयामि-एवं खलु देवाणुप्पिया ! पावाइं कम्माइं समायरेत्ता इमेयारूवं आवई पाविज्जामि, तं मा णं देवाणप्पिया ! तुब्भे वि केइ पावाइं कम्माइं समायरह', मा णं से वि एवं चेव आवई पाविज्जिहिह', जहा णं अहं । तस्स णं तुमं पएसी ! पुरिसस्स खणमवि एयमट्ठ पडिसुणेज्जासि ? णो तिणठे समठे। कम्हा णं ? जम्हा णं भंते ! अवराही णं से पुरिसे। एवामेव पएसी! तव वि अज्जए होत्था इहेव सेयवियाए णयरीए अधम्मिए जाव णो सम्म करभरवित्ति पवत्तेइ । से णं अम्हं वत्तव्वयाए सुबहुं पावकम्मं कलिकलुसं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णय रेसु नरएसु णेरइयत्ताए° उववण्णे । तस्स णं अज्जगस्स तुम णत्तए होत्था-इठे कंते •पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए वहुमए अणुमए रयणकरंडगसमाणे जीविउस्सविए हिययणंदिजणणे उंबरपुप्फ पिव दुल्लभे सवणयाए, किमंग पूण पासणयाए ! से णं इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ [हव्वमागच्छित्तए?]। चउहिं च णं ठाणेहिं पएसी! अहुणोववण्णए नरएस नेरइए इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ [हव्वमागच्छित्तए ?] । अहुणोववण्णए नरएसु नेरइए से णं तत्थ महब्भूयं वेयणं वेदेमाणे इच्छेज्जा माणुस्सं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएइ [हव्वमागच्छित्तए ?] । अहुणोववण्णए नरएसु नेरइए नरयपालेहिं भुज्जो-भुज्जो समहिद्विज्जमाणे इच्छइ माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ [हव्वमागच्छित्तए ?] । अहणोववण्णए नरएसु नेरइए निरयवेयणिज्जसि कम्मंसि अक्खीणंसि अवेइयंसि अणिज्जिण्णंसि इच्छइ माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ [हव्वमागच्छि त्तए ?] - अहुणोववण्णए नरएसु नेरइए निरयाउयंसि कम्मंसि अक्खीणंसि अवेइयंसि अणिज्जिण्णंसि इच्छइ माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ [हव्वमागच्छित्तए ?] । इच्चेएहि चउहि ठाणेहि पएसी अहुणोववण्णे नरएसु नेरइए इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ [हव्वमागच्छित्तए ?] | तं सद्दहाहि णं पएसी ! जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तं जीवो तं सरीरं ॥ तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७५२. तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-अत्थि णं भंते ! एस पण्णओ उवमा, इमेण पुण कारणेणं नो उवागच्छइएवं खलु भंते ! मम अज्जिया होत्था, इहेव सेयवियाए नगरीए धम्मिया" 'धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्माणया धम्मपलोई धम्मपलज्जणी धम्मसीलसमुयाचारा धम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणी समणोवासिया १. सं० पा०-हत्थच्छिण्णगं वा जाव जीवियाओ। ५. सं० पा०-सुबहं जाव उववण्णे । २. समायरउ (क, ख, ग, घ)। ६. सं० पा०-कते जाव पासणयाए। ३. पाविज्जिहिइ (घ, च)। ७. सं० पा०-धम्मिया जाव वित्ति । ४. राय० सू० ६७१ । ८. माणा (घ)। Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ रायपसेणइयं अभिगयजीवा' 'जीवा उवलद्धपुण्णपावा आसव-संवर-निज्जर-किरियाहिगरण-बंधप्पमोक्खकुसला असहिज्जा देवासुर - णाग - सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किण्णर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्वमहोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जा, निग्गंथे पावयणे णिस्संकिया णिक्कंखिया णिन्वितिगिच्छा लट्ठा गहियट्ठा अभिगयट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियदा अद्विमिंजपेमाणुरागरत्ता अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अट्ठे परमठे सेसे अणठे ऊसियफलिहा अवंगुयदुवारा चियत्तंतेउरघरप्पवेसा चाउद्दसट्टमुद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेमाणी, समणे णिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणणं ओसह-भेसज्जण य पडिलाभेमाणी-पडिलाभेमाणी, बहूहि सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं° अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। सा णं तुझं वत्तव्वयाए सुबहुं पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णय रेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णा। तीसे णं अज्जियाए अहं नत्तए होत्था-इठे कंते' 'पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए रयणकरंडगसमाणे जीविउस्सविए हिययणं दिजणणे उंबरपुप्फ पिव दुल्लभे सवणयाए, किमंग पूण° पासणयाए, त जइण सा अज्जिया मम आगत एवं वएज्जा-एवं खल नत्तया! अहं तव अज्जिया होत्था, इहेव सेयवियाए नयरीए धम्मिया' 'धम्मि धम्मक्खाई धम्माणुया धम्मपलोई धम्मपलज्जणी धम्मसीलसमुयाचारा धम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणी समणोवासिया जाव अप्पाणं भावेमाणी विहरामि। तए णं अहं सुबहु पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता' 'कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णा, तं तुमं पि णत्तुया ! भवाहि धम्मिए धम्मिठे धम्मक्खाई धम्माणुए धम्मपलोई धम्मपलज्जणे धम्मसीलसमुयाचारे धम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणे समणोवासए जाव अप्पाणं भावेमाणे विहराहि । तए णं तुम पि एयं चेव सुबहु पुण्णोवचयं" 'समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए° उववज्जिहिसि। तं जइ णं अज्जिया मम आगंतुं एवं वएज्जा तो णं अहं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो तज्जीवो तं सरीरं । जम्हा सा अज्जिया ममं आगंतु णो एवं वयासी, तम्हा सुपइट्ठिया मे पइण्णा' जहातज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं । जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७५३. तए णं केसी कुमार-समणे पए सिं रायं एवं वयासी-जति णं तुम पएसी ! ण्हायं कयवलिकम्म कयकोउयमंगलपायच्छित्तं उल्लापडगं भिंगार-कडच्छयहत्थगयं देवकुलमणुपविसमाणं केइ पुरिसे वच्चघरंसि ठिच्चा एवं वदेज्जा-एह ताव सामी ! इह १. सं० पा०-अभिगयजीवा सव्वो वण्णओ जाव ५. सं० पा०-समज्जिणित्ता जाव देवलोएस । अप्पाणं। ६. सं० पा०-धम्मिए जाव विहराहि । २. सं० पा०-कते जाव पासणयाए। ७. सं० पा०--पुण्णोवचयं जाव उववज्जिहिसि । ३. सं० पा०-धम्मिया जाव वित्ति । ८. पण्णा (क, ख, ग, घ, च, छ) । ४. सुहं (क, ख, ग, घ, च, छ) । Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १८७ मुहत्तागं' आसयह वा चिट्ठह वा निसीयह वा तुयट्टह वा। तस्स णं तुमं पएसी ! पुरिसस्स खणमवि एयमट्ठ पडिसुणिज्जासि ? णो तिणठे समठे। कम्हा णं ? जम्हाणं भंते ! असुई असुइ-सामंतो । एवामेव पएसी ! तव वि अज्जिया होत्था, इहेव सेयवियाए णयरीए धम्मिया जाव' अप्पाणं भावेमाणी विहरति । सा णं अम्हं वत्तव्वयाए सुबहुं' 'पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णा। तीसे णं अज्जियाए तुम णत्तुए होत्था-इठे •कते पिए मणुणे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए रयणकरंडगसमाणे जीविउस्सविए हिययणंदिजणणे उंबरपुप्फ पिव दुल्लभे सवणयाए', किमंग पुण पासणयाए ? सा णं इच्छइ माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। चउहि ठाणेहिं पएसी ! अहुणोववण्णए देवे देवलोएसु इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तएअहुणोववण्णे देवे देवलोएसु दिव्वेहिं कामभोगेहिं मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे, से णं माणुसे भोगे नो आढाति नो परिजाणाति । से णं इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए। अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु दिव्वेहिं कामभोगेहिं मुच्छिए" 'गिद्धे गढिए° अज्झोववण्णे, तस्स णं माणुस्से पेम्मे वोच्छिण्णए भवति, दिव्वे पेम्मे संकते भवति । से णं इच्छेज्जा माणसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए । अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु दिव्वेहि कामभोगेहिं मुच्छिए' •गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे, तस्स णं एवं भवइ--इयाणि गच्छं मुहुत्ते गच्छं जाव इह अप्पाउया णरा कालधम्मुणा संजुत्ता भवंति, से णं इच्छेज्जा माणुस्सं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु दिव्वेहिं 'कामभोगेहिं मुच्छिए गिद्धे गढिए° अज्झोववण्णे, तस्स माणुस्सए उराले दुग्गंधे पडिकूले पडिलोमे भवइ, उड्ढं पि य णं चत्तारि पंचजोअणसए असुभे माणुस्सए गंधे अभिसमागच्छति । से णं इच्छेज्जा माणुस्सं लोग हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए । इच्चेएहिं चउहिं ठाणेहि पएसी ! अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। तं सद्दहाहि णं तुम पएसी ! जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं.। तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७५४. तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-अत्थि णं भंते ! एस १. मुहुत्तगं (क, छ) । २. राय० सू० ७५२ । ३. सं० पा०-सुबहुं जाव उववण्णा । ४. सं० पा०-इठे किमंग । ५. सं० पा०-मुच्छिए जाव अज्झोववण्णे । ६. सं० पा०-मुच्छिए जाव अज्झोववण्णे । ७. सं० पा०—दिब्वेहिं जाव अज्झोववण्णे । ८. हवइ (व)। Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ रायपसेणइयं पण्णओ उवमा, इमेणं पुण' कारणेणं णो उवागच्छतिएवं खलु भंते! अहंअण्णया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अणेगगणणायक-दंडणायगराईसर-तलवर- माडंबिय-कोडुबिय- इब्भ-सेट्टि - सेणावइ- सत्थवाह-मंति- महामंति-गणगदोवारिय-अमच्च-चेड-पीढमद्द-नगर-निगम-दूय-संधिवालेहिं सद्धि संपरिवडे विहरामि। तए णं मम गगरगुत्तिया ससक्खं 'सहोढं सलोइं” सगेवेज्ज अवउडगबंधणबद्धं चोरं उवणेति । तए णं अहं तं पुरिसं जीवंतं चेव अओकुंभीए पक्खिवावेमि, अओमएणं पिहाणएणं पिहावेमि, अएण य तउएण य कायावेमि, आयपच्चइएहिं पुरिसेहिं रक्खावेमि।। तए णं अहं अण्णया कयाइं जेणामेव सा अओकुंभी तेणामेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता तं अओकभि उग्गलच्छावेमि', उग्गलच्छावित्ता तं पुरिसं सयमेव पासामि, णो चेव णं तीसे अओकुंभीए केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जओ णं से जीवे अंतोहितो बहिया णिग्गए । जइ णं भंते ! तीसे अओकुंभीए होज्ज केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जओ णं से जीवे अंतोहितो बहिया णिग्गए, तो णं अहं सहहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा- अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं। जम्हा णं भंते ! तीसे अओकुंभीए णत्थि केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा, राई वा, जओ णं से जीवे अंतोहितो बहिया निग्गए, तम्हा सुपतिट्ठिया मे पइण्णा जहातज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं ॥ जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७५५. तए णं केसी कुमार-समणे पएसिं रायं एवं वयासी पएसी ! से जहाणामए कडागारसाला सिया-दुहओ लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा णिवाया णिवायगंभीरा । अह णं केइ परिसे भेरि च दंडं च गहाय कूडागारसालाए अंतो-अंतो अणुप्पविसति, अणुप्प विसित्ता तीसे कडागारसालाए सव्वतो समंता घण-निचिय-निरंतर-णिच्छिड्डाइं दुवारवयणाई पिहेइ। तीसे कडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए ठिच्चा तं भेरि दंडएणं महया-महया सद्देणं तालेज्जा। से णणं पएसी ! से सद्दे णं अंतोहितो वहिया णिग्गच्छइ ? हंता णिग्गच्छइ। अत्थि णं पएसी ! तीसे कूडागारसालाए केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जओ णं से सद्दे अंतोहितो वहिया णिग्गए ? नो 'तिणठे समलैं१२ । एवामेव पएसी! जीवे वि अप्पडिहयगई पुढवि भिच्चा सिलं भिच्चा पव्वयं भिच्चा अंतोहितो बहिया णिग्गच्छइ, तं सद्दहाहि णं तुमं पएसी ! अण्णो जीवो" •अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं ॥ १. पुण मे (क, ख, ग, च, छ) । ८. सं० पा०—छिड्डे इ वा जाव निग्गए। २. ४ (क, च)। ६. पन्ना (क, ख, ग, घ, च, छ)। ३. ईसर (क, ख, ग, घ, च, छ) । १०. दुवारणयणाई (ख, ग)। ४. सहोढं (क, ख, ग, घ, छ); सहोट (च)। ११. सं० पा०---छिड्डे इ वा जाव राई। ५. उल्लंछावेमि (घ)। १२. इणमठे (क)। ६. अयोकभीए (क, ख, ग); अयकुंभीए (घ)। १३. सं० पा०-जीवो तं चेव । ७. सं० पा०-छिडडे इ वा जाव राई। Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एसि-कहाणगं तज्जीव- तच्छरीर-पदं ७५६. तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-अत्थि णं भंते ! एस पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं णो उवागच्छइ - एवं खलु भंते ! अहं अण्णया कयाइ बाहिरियाए उवद्वाणसाला ए' अणे गगणणायक - दंडणायग राईसर - तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठि- सेणावइ-सत्थवाह-मंति- महामंति-गणग-दोवारिय-अमच्च - चेड- पीढमद्दनगर-निगम दूय-संधिवालेहि सद्धि संपरिवुडे विहरामि । तए णं ममं जगरगुत्तिया ससक्खं' •सहोढं सलोद्दं सगेवेज्जं अवउडगबंधणबद्धं चोरं° उवणेंति । तए णं अहं तं पुरिसं जीवियाओ ववरोवेमि, ववरोवेत्ता अओकुंभीए पक्खिवावेमि, अओमएणं पिहाणएणं पिहावेमि', 'अएण य तउएण य कायावेमि, आय' पच्चइएहि पुरिसेहि रक्खावेमि । तणं अहं अण्णा कयाइ जेणेव सा कुंभी तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता तं अओकुंभि उग्गलच्छावेमि, तं अओकुंभि किमिकुभि पिव पासामि, णो चेव णं तीसे अओकुंभीए केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जतो णं ते जीवा बहिया हितो अणुपविट्ठा । तणं ती ओकुंभीए होज्ज केइ छिड्डे इ वा "विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, तो णं ते जीवा बहियाहितो अणुपविट्ठा, तो णं अहं सहेज्जा' 'पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा -- अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं । म्हाणं ती तो ओकुंभीए नत्थि केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जीवा बहियाहितो' अणुपविट्ठा, तम्हा सुपतिट्ठिआ मे पइण्णा जहा - तज्जीवो, 'तं सरीरं", "नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं ॥ जीव- सरीर - अण्णत्त-पदं १८६ ७५७. तए णं केसी कुमार समणे पएस रायं एवं वयासी - अत्थि णं तुमे पएसी ! काय अए तवे वा धमावियपुब्वे वा ? हंता अत्थि । से णूणं पएसी ! अए धंते समाणे सव्वे अगणिपरिणए भवति ? 'हंता भवति", अत्थि णं पएसी! तस्स अयस्स केइ छिड्डे इ वा" •विवरे इ वा अंतरे वा राई वा 'जेणं से जोई बहियाहितो अंतो अणुपविट्ठे ? नो तिट्ठे समट्ठे । एवामेव पएसी ! जीवो वि अप्पडियगई पुढवि भिच्चा सिलं भिच्चा पव्वयं भिच्चा बहियाहिंतो अंतो अणुपविसइ । तं सद्दहाहि णं तुमं पएसी" ! जहाअणो जीव अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं ॥ तज्जीव- तच्छरीर-पदं ७५८. तणं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी - अत्थि णं भंते! एस १. सं० पा० - उवद्वाणसालाए जाव विहरामि । २. सं० पा० - ससक्खं जाव उवणेति । ३. सं० पा०-- पिहावेमि जाव पच्चइएहि । ४. सं० पा०- - छिड्डे इ वा जाव राई । ५. सं० पा० - छिड्डे इ वा जाव अणुपविट्टा | ६. सं० पा० - सद्दहेज्जा जहा अण्णो जीवो तं चेव । ७. सं० पा०- - छिड्डे इ वा जाव अणुपविट्ठा । ८. तस्सरीरं (क, ग, घ, च, छ) । सं० पा०सरीरं तं चेव । ६. x (क, ख, ग, घ, त्र, छ) । १०. सं० पा० - छिड्डे इ वा जेणं । ११. सं० पा० - पएसी ! तहेव । Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० रायपसेणइयं पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ-भंते ! से जहाणामए–केइ पुरिसे तरुणे' 'बलवं जुगवं जुवाणे अप्पायंके थिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय-पिट्ठतरोरुपरिणए घणणिचिय-वट्ट-वलियखंधे चम्मेटुग-दुघण-मुट्ठिय-समाहय-निचियगत्ते उरस्सबलसमण्णागए तलजमलजुयलबाहू लंघण-पवण-जइण-पमहणसमत्थे छेए दक्खे पत्तठे कुसले मेधावी णिउण° सिप्पोवगए पभू पंचकंडगं निसिरित्तए ? हंता पभू । जति णं भंते ! सच्चेव पुरिसे बाले •अदक्खे अपत्तठे अकुसले अमेहावी मंदविण्णाणे पभू होज्जा पंचकंडगं निसिरित्तए, तो णं अहं सद्दहेज्जा •पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं । जम्हा णं भंते ! सच्चेव पुरिसे जाव मंदविण्णाणे णो 'पभू पंचकंडयं" निसिरित्तए, तम्हा सुपइट्ठिया मे पइण्णा जहा-तज्जीवो 'तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं ॥ जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७५६. तए णं केसी कुमार-समणे पएसिं रायं एवं वयासी–से जहाणामए-केइ पुरिसे तरुणे 'बलवं जुग जुवाणे अप्पायंके थिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय-पिढ्तरोरुपरिणए घण-णि चिय-वट्ट-वलियखंधे चम्मेद्वग-दुघण-मुट्ठिय-समाहय-निचियगत्ते उरस्सबलसमण्णागए तल-जमल-जुयलबाहू लंधण-पवण-जइण-पमद्दणसमत्थे छए दक्खे पत्तठे कुसले मेधावी णिउण सिप्पोवगए णवएणं धणुणा नवियाए जीवाए नवएणं उसुणा 'पभू पंचकंडगं" निसिरित्तए ? हंता पभू । सो चेव णं पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए कोरिल्लएणं धणुणा कोरिल्लयाए जीवाए कोरिल्लएणं उसुणा पभू पंचकंडगं निसिरित्तए ? णो तिणठे समठे । कम्हा णं भंते ! तस्स पुरिसस्स अपज्जत्ताई उवगरणाइं हवंति । एवामेव पएसी ! सो चेव पुरिसे बाले •अदक्खे अपत्तठे अकुसले अमेहावी° मंदविण्णाणे अपज्जत्तोवगरणे णो पभू पंचकंडयं निसिरित्तए, तं सद्दहाहि णं तुम पएसी ! जहा-अण्णो जीवो" •अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं । तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७६०. तए णं पएसी राया केसिं कुमार-समणं एवं वयासी-अत्थि णं भंते ! एस पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ-भंते ! से जहाणामए-केइ पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगते पभू एगं महं अयभारगं वा तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए ? हंता पभू । सो चेव णं भंते ! पुरिसे जुण्णे जराजज्जरियदेहे सिढिलवलियावणद्धगत्ते दंडपरिग्गहियग्गहत्थे पविरलपरिसडियदंतसेढी आउरे किसिए पिवासिए दुब्बले १. सं० पा०-तरुणे जाव सिप्पोवगए। ५. पभू यं च कंडगं (क, च)। २. से चेव (क)। ६. सं० पा०-तज्जीवो तं चेव । ३. सं० पा०-बाले जाव मंदविण्णाणे; अस्य ७. सं० पा०-तरुणे जाव सिप्पोवगए। पाठस्य पूति: 'छए दक्खे पत्तठे कुसले मेहावी' ८. पडिचियाए (क, ख, ग, घ, च, छ)। अनेन पाठेन कृता। ६. पभू णं च कंडगं (क)। ४. सं० पा०-सद्दहेज्जा जहा अण्णो जीवो तं १०.सं० पा०-बाले जाव मंदविण्णाणे। चेव । ११. सं० पा०-जीवो तं चेव । Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १९१ परिकिलते नो पभू एगं महं अयभारगं वा' 'त उयभारगं वा सीसगभारगं० वा परिवहित्तए। जति णं भंते ! सच्चेव पुरिसे जुण्णे जराजज्जरियदेहे' 'सिढिलवलियावणद्धगत्ते दंडपरिग्गहियग्गहत्थे पविरलपरिसडियदंतसेढी आउरे किसिए पिवा सिए दुब्बले परिकिलंते पभू एगं महं अयभारगं वा' 'तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए, तो णं अहं सद्दहेज्जा' •पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो तज्जीवो तं सरीरं । जम्हा णं भंते ! सच्चेव पुरिसे जुण्णे 'जराजज्जरियदेहे सिढिलवलियावणद्धगत्ते दंडपरिग्गहियग्गहत्थे पविरलपरिसडियदंतेसेढी आउरे किसिए पिवासिए दुब्बले° परिकिलंते नो पभू एगं महं अयभारगं वा 'तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए, तम्हा सुपतिट्ठिता मे पइण्णा • जहा-तज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं° । जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७६१. तए णं केसी कुमार-समणे पएसिं रायं एवं वयासी–से जहाणामए–केइ पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए णवियाए विहंगियाए णवएहिं सिक्कएहिं णवएहिं पच्छियापिडएहिं पहू एगं महं अयभारगं वा" 'तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए ? हंता पभू । पएसी! से चेव णं पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए जुण्णियाए दुब्बलियाए घुणक्खइयाए विहंगियाए", जुण्णएहिं दुब्बलएहिं घुणक्खइएहिं सिढिल-तयापिणद्धएहिं सिक्कएहिं, जुण्णएहिं दुब्बलएहिं घुणक्खइएहिं पच्छियापिडएहि पभू एगं महं अयभारगं वा 'तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए ? णो तिणठे समठे। कम्हा णं ? भंते ! तस्स पुरिसस्स जुण्णाइं उवगरणाइं भवंति। एवामेव पएसी ! से चेव पूरिसे जुण्णे" 'जराजज्जरियदेहे सिढिलवलियावणद्धगत्ते दंडपरिग्गहियग्गहत्थे पविरलपरिसडियदंतसेढी आउरे किसिए पिवासिए दुब्बले परि० किलंते जुण्णोवगरणे नो पभू एगं महं अयभारगं वा" 'तज्यभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए, तं सद्दहाहि णं तुम पएसी ! जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं । तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७६२. तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-अत्थि णं भंते" ! 'एस १. सं० पा०–अयभारगं वा जाव परिवहित्तए। एहिं (छ) । २. सं० पा०-जराजज्जरियदेहे जाव परिकिलंते। १०. सं० पा०-अयभारगं वा जाव परिवहित्तए। ३. सं० पा०-अयभारगं वा जाव परिवहित्तए। ११. वाहंगियाए (क, ख, ग, घ, च, छ)। ४. सं० पा०-सद्दहेज्जा तहेव। १२. पच्छिपिंडएहिं (क, ख); पत्थियापिडएहि ५. सं० पा०-जुण्णे जाव किलंते । (ग, घ); पच्छिपिडएहिं (च); पच्छपिंड६. सं ० पा० -अयभारगं वा जाव परिवहित्तए। एहिं (छ)। ७. सं० पा०-पइण्णा तहेव । १३. सं० पा०.---अयभारगं वा जाव परिवहित्तए । ८. के वि (घ, च)। १४. सं०पा०-जुण्णे जाव किलंते । ६. पच्छियापिंडएहि (क); पत्थियपिडएहिं (ख, १५. सं० पा०-अयभारगं वा जाव परिवहित्तए। ग, घ); पट्रियापिंडएहिं (च); पत्थयपिंड- १६. सं० पा०.-भंते जाव नो। Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ रायपसेणइयं पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ--एवं खलु भंते'! 'अहं अण्णया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अणेग-गणणायक-दंडणायग-राईसर-तलवर-माडंबियकोडंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-मंति-महामंति-गणग-दोवारिय-अमच्च- चेड-पीढमद्दनगर-निगम-दूय-संधिवालेहि सद्धि संपरिवडे विहरामि । तए णं मम णगरगुत्तिया चोरं उवणेति। तए णं अहं तं पुरिसं जीवंतगं' चेव तुलेमि, तुलेत्ता छविच्छेयं अकुव्वमाणे जीवियाओ ववरोवेमि, मयं तुलेमि णो चेव णं तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्स, मुयस्स वा तुलियस्स केइ अण्णत्ते' वा नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गरुयत्ते वा लहुयत्ते वा। जति णं भंते ! तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्स, मुयस्स वा तुलियस्स केइ अण्णत्ते वा नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गरुयत्ते वा° लहुयत्ते वा, तो णं अहं सद्दहेज्जा' •पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं। जम्हा णं भंते ! तस्स परिसस्स जीवंतस्स वा तलियस्स, मयस्स वा तलियस्स नत्थि केड अण्णत्ते वा नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गरुयत्ते वा° लहुयत्ते वा, तम्हा सुपतिढ़िया मे पइण्णा जहा-तज्जीवो' तं सरीरं णो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं ।। जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७६३. तए णं केसी कुमार-समणे परसि रायं एवं वयासी-अत्थि णं पएसी! तुमे कयाइ वत्थी 'धंतपुटवे वा धमावियपुटवे" वा ? हंता अत्थि। अत्थि णं पएसी ! तस्स वत्थिस्स पुण्णस्स वा तुलियस्स, अपुण्णस्स वा तुलियस्स केइ अण्णत्ते वा 'नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गरुयत्ते वा लहुयत्ते वा ? णो तिणठे समठे। एवामेव पएसी ! जीवस्स अगरुलघुयत्तं पडुच्च जीवंतस्स वा तुलियस्स, मुयस्स वा तुलियस्स नत्थि केइ अण्णत्ते वा 'नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गरुयत्ते वा लहयत्ते वा, तं सद्दहाहि णं तुम पएसी" ! 'जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं ॥ तज्जीव-तच्छरीर-पदं ७६४. तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-अत्थि णं भंते ! एसर पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ–एवं खलु भंते ! अहं अण्णया" 'कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अणेग-गणणायक-दंडणायग-राईसर-तलवर-माडंबिय१. सं० पा.-भंते जाव विहरामि । ८. वातपुण्णे (क, ख, ग, घ, च, छ)। २. जीवतगं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. सं० पा०-अण्णत्ते वा जाव लहुयत्ते । ३. आणत्ते (क, ख, ग, च, छ) । १०. सं० पा०-अण्णत्ते वा जाव लहयत्ते। ४. सं० पा०-अण्णत्ते वा जाव लहुयत्ते । ११. सं० पा०—पएसी तं चेव । ५. सं० पाल-सद्दहेज्जा तं चेव। १२. सं० पा०-एस जाव नो। ६. सं० पा०-अण्णत्ते वा""लहुयत्ते। १३. सं० पा०-अण्णया जाव चोरं। ७. सं० पा०-तज्जीवो तं चेव । Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एसि-कहाणगं १९३ atar - इor - सेट्ठि- सेणावइ - सत्यवाह - मंति- महामंति- गणग दोवारिय- अमच्च- चेडपीढमद्द-नगर-निगम- दूय- संधिवालेहिं सद्धि संपरिवुडे विहरामि । तए णं ममं णगरगुत्तिया ससक्खं सहोढं सलोद्दं सगेवेज्जं अवउडगबंधणबद्धं चोरं उवणेंति । तए णं अहं तं पुरिसं सव्वतो समंता समभिलोएमि, नो चेव णं तत्थ जीवं पासामि । तणं अहं तं पुरिसं दुहा फालियं करेमि, करेत्ता सव्वतो समंता समभिलोएम, नो चेवणं तत्थ जीव पासामि । एवं तिहा चउहा संखेज्जहा फालियं करोमि, करेत्ता सव्वतो समता समभिलोएम, णो चेव णं तत्थ जीवं पासामि । इणं भंते! अहं 'तंसि पुरिसंसि', दुहा वा तिहा वा चहा वा संखेज्जहा वा फालियंमि जीवं पासंतो, तो णं अहं सद्दहेज्जा' पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा - अण्णो जीवो अण्ण सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं । जम्हाणं भंते! अहं तंसि दुहा वा तिहा वा चउहा वा संखेज्जहा वा फालियंमि जीवन पासामि, तम्हा सुपतिट्ठिया मे पइण्णा जहा - तज्जीवो तं सरीरं, "नो अण्णो जीव अण्णं सरीरं ॥ मूढ-कट्ठहारय-पदं ७६५, तए णं केसी कुमार-समणे पएस रायं एवं वयासी -- मूढतराए णं तुमं पएसी ! ताओ तुच्छतराओ । के णं भंते ! तुच्छतराए ? पएसी ! से जहाणामए - केइ पुरिसा वणत्थी वणोवजीवी वणगवेसणयाए जोइंच जोईभायणं च गहाय कट्ठाणं अडवि अणुपविट्ठा । तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसं अणुपत्ता समाणा एगं पुरिसं एवं वयासी - अम्हे णं देवाणुप्पिया ! कट्ठाणं अडवि पविसामो एत्तो णं तुमं जोइभायणाओ जोई गहाय अम्हं असणं साहेज्जासि । अह तं जोभा जोई विज्झवेज्जा, तो' णं तुमं कट्ठाओ जोई गहाय अम्हं असणं साहेज्जासित कट्टु कट्ठा अवि अणुपविट्ठा । - तणं से पुरिसे तओ मुहुत्तंतरस्स तेसि पुरिसाणं असणं साहेमि त्ति कट्टु जेणेव जोतिभायणे तेणेव उवागच्छइ, जोइभायणे जोई विज्झायमेव पासति । तणं से पुरिसे जेणेव से कट्ठे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं कट्ठे सव्वओ समंता समभिलोएति, नो चेव णं तत्थ जोइं पासति । तणं से पुरिसे परियरं बंधइ, फरसुं गेव्हइ, तं कट्ठे दुहा फालियं करेइ, सव्वतो समंता समभिलोएइ, णो चेव णं तत्थ जोइं पासइ । एवं 'तिहा चउहा' संखेज्जहा वा १. पालियं (च, छ) । २. सं० पा०—करेमि णो । ३. तंपुरिसं (क, च, छ) । ४. पासं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. सं० पा० सद्दहेज्जा तं चेव । ६. सं० पा० - सरीरं तं चैव । ७. अकामिया (क, ख, ग, घ ) ; अकामयाए (च, छ) ; सं० पा० – अगामियाए जाव किंचि । ८. एत्तो (क); पुत्ता ( च, छ) । ६. सं० पा० एवं जाव संखेज्जहा । Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ रायपसेणइयं फालियं करेइ, सव्वतो समंता समभिलोएइ, नो चेव णं तत्थ जोइं पासइ। तए णं से पुरिसे तंसि कळंसि दुहाफालिए वा' •तिहाफालिए वा चउहाफालिए वा° संखेज्जहाफालिए वा जोइं अपासमाणे संते तंते परिस्संते निविण्णे समाणे परसुं एगते एडेइ, परियरं मुयइ, मुइत्ता एवं वयासी–अहो ! मए तेसिं पुरिसाणं असणे नो साहिए त्ति कटु ओहयमणसंकप्पे चिंतासोगसागरसंपविठे' करयलपल्लत्थमुहे' अट्टज्झाणोवगए भूमिगयदिट्टिए झियाइ। तए णं ते पुरिसा कट्ठाई छिदंति, जेणेव से पुरिसे तेणेव उवागच्छंति, तं पुरिसं ओहयमणसंकप्पं 'चिंतासोगसागरसंपविट्ठ करयलपल्लत्थमुहं अट्टज्झाणोवगयं भूमिगयदिद्वियं झियायमाणं पासंति, पासित्ता एवं वयासी-किं णं तुमं देवाणु प्पिया ! ओहयमणसंकप्पे' चिंतासोगसागरसंपविढे करयलपल्लत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए भूमिगयदिहिए' झियायसि ? तए णं से पूरिसे एवं वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! कट्ठाणं अडवि अणुपविसमाणा' मम एवं वयासी--अम्हे णं देवाणुप्पिया ! कट्ठाणं अडवि •पविसामो, एत्तो णं तुम जोइभायणाओ जोइं गहाय अम्हं असणं साहेज्जासि। अह तं जोइभायणे जोई विज्झवेज्जा, तो णं सुमं कट्टाओ जोइं गहाय अम्हं असणं साहेज्जासि त्ति कटु कट्टाणं अडवि अणु-पविट्ठा। तए णं अहं तओ मुहुत्तंतरस्स तुब्भं असणं साहेमि त्ति कटु जेणेव जोइभायणे तेणेव उवागच्छामि जाव झियामि।। तए णं तेसिं पुरिसाणं एगे पुरिसे छेए दक्खे पत्तठे 'कुसले महामई विणीए विण्णाणपत्ते उवएसलद्धे ते पुरिसे एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! ण्हाया कयबलिकम्मा' 'कयकोउयमंगलपायच्छित्ता हव्वमागच्छेह जा णं अहं असणं साहेमित्ति कटु परियरं बंधइ, परसुं गिण्हइ, सरं करेइ, सरेण अरणि महेइ, जोइं पाडेइ, जोई संधुक्खेइ, तेसिं पुरिसाणं असणं साहेइ। तए णं ते पुरिसा पहाया कयबलिकम्मा" 'कयकोउयमंगल°-पायच्छित्ता जेणेव से पुरिसे तेणेव उवागच्छंति। तए णं से पुरिसे तेसिं पुरिसाणं सुहासणवरगयाणं तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवणेइ । तए णं ते पुरिसा तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा वीसाएमाणा" •परिभुजेमाणा परिभाएमाणा एवं च णं° विहरंति । जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं १. सं० पा०-दुहाफालिए वा णाव संखेज्जहा। २. सागरं पविठे (घ)। ३. पल्हत्थमुहे (क)। ४. सं० पा०_मणसकप्पं जाव झियायमाणं । ५. सं० पा०-मणसंकप्पे जाव झियायसि । ६. अणुपविट्ठा समाणा (घ)। ७. सं० पा०-अडवि जाव पविट्ठा। ८. सं० पा०-पतठे जाव उवएसलद्धे । ६. सं०पा०—कयबलिकम्मा जाव हव्वमागच्छेह । १०. सं० पा०-कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता। ११. सं० पा०-वीसाएमाणा जाव विहरंति । Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १९५ समाणा आयंता चोक्खा परमसुईभूया तं पुरिसं एवं वयासी--अहो ! णं तुम देवाणुप्पिया ! जड्डे मूढे अपंडिए णिव्विण्णाणे अणुवएसलद्धे जे णं तुम इच्छसि कळंसि दुहा फालियंसि वा तिहा फालियंसि वा चउहा फालियंसि वा संखेज्जहा फालियंसि वा जोतिं पासित्तए। से एएणठेणं पएसी ! एवं वुच्चइ मूढतराए णं तुमं पएसी ! ताओ तुच्छत राओ॥ अक्कोसं पइ पएसिस्स वितक्कणा-पदं ७६६. तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-जुत्तए णं भंते ! तुब्भं इय छयाणं दक्खाणं पत्तद्वाणं कुसलाणं महामईणं विणीयाणं विण्णाणपत्ताणं उवएसलद्धाणं अहं इमीसे' महालियाए महच्चपरिसाए मज्झे उच्चावएहिं आओसेहिं आओसित्तए, उच्चावयाहिं उद्धंसणाहिं उद्धंसित्तए, उच्चावयाहिं निब्भंछणाहिं निब्भंछित्तए, उच्चावयाहिं निच्छोडणाहिं निच्छोडित्तए ?॥ केसिस्स समाधाण-पदं ७६७. तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी-जाणासि णं तुम पएसी ! कति परिसाओ पण्णत्ताओ? भंते ! जाणामि चत्तारि परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहाखत्तियपरिसा, गाहावइपरिसा, माहणपरिसा, इसिपरिसा। जाणासि णं तुम पएसी! एयासिं चउण्हं परिसाणं कस्स का दंड-णीई पण्णता ? हंता! जाणामि-जे णं खत्तियपरिसाए अवरज्झइ, से णं हत्थच्छिण्णए वा पायच्छिण्णए वा सीसच्छिण्णए वा सूलाइए वा एगाहच्चे कूडाहच्चे जीवियाओ ववरोविज्जइ। जे णं गाहावइपरिसाए अवरज्झइ, से णं तणेण वा वेढेण वा पलालेण वा वेढित्ता अगणिकाएणं झामिज्जइ। जे णं माहणपरिसाए अवरज्झइ, से णं अणिट्ठाहिं अकंताहिं 'अप्पियाहिं अमणुण्णाहि° अमणामाहि वग्गूहि उवालभित्ता कुंडियालंछणए वा सूणगलंछणए वा कीरइ, निव्विसए वा आणविज्जइ। जे णं इसिपरिसाए अवरज्झइ, से णं णाइअणिवाहि' •णाइअकंताहिं णाइअप्पियाहिं णाइअमणुण्णाहि° णाइअमणामाहिं वग्गूहि उवालब्भइ। एवं च ताव पएसी ! तुम जाणासि तहावि णं तुम ममं वामं वामेणं दंडं दंडेणं पडिकलं पडिकूलेणं पडिलोमं पडिलोमेणं विवच्चासं विवच्चासेणं वट्टसि ।। पएसिस्स पडिकूल-वट्टण-हेउ-पदं ७६८. तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिएहि पढमिल्लएणं चेव वागरणेणं संलद्धे, तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए' 'चितिए पत्थिए मणोगए° संकप्पे समुपज्जित्था जहा-जहा णं एयस्स पुरिसस्स वामं वामेणं" १. सं० पा० दुहाफालियंसि वा जोति । ७. सं० पा.-णाइअणिट्राहि जाव णाइअमणा२. पट्ठाणं (क, ख, ग, घ, च, छ)। माहिं। ३. इमाए (क); इमीसेए (ख, ग, घ, च, छ)। ८. संलत्ते (क्वचित)। ४. वेटेण (क); वेढेण (ख,ग); X (घ)। ६. सं० पा०-अज्झथिए जाव संकप्पे । ५. झाविज्जइ (घ)। १०. सं० पा०-वामेणं जाव विवच्चासं । ६. सं० पा०-अकंताहिं जाव अमणामाहि । Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ रायपसेणाइयं 'दंडं दंडेणं पडिकूलं पडिकूलेणं पडिलोमं पडिलोमेणं विवच्चासं विवच्चासेणं वट्रिस्सामि, तहा-तहा णं अहं नाणं च नाणोवलंभं च, दंसणं च दंसणोवलंभं च, जीवं च जीवोवलंभं च उवलभिस्सामि । तं एएणं कारणणं अहं देवाणुप्पियाणं वामं वामेणं' दंडं दंडेणं पडिकूलं पडिकूलेणं पडिलोमं पडिलोमेणं विवच्चासं विवच्चासेणं वट्टिए । ववहारग-पदं ७६६. तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी-जाणासि णं तुम पएसी ! कइ ववहारगा पण्णत्ता? हंता जाणामि, चत्तारि ववहारगा पण्णत्ता-देइ नामेगे णो सण्णवेइ । सण्णवेइ नामेगे नो देइ । एगे देइ वि सण्णवेइ वि । एगे णो देइ णो सण्णवेइ । जाणासि णं तुमं पएसी! एएसि चउण्हं पुरिसाणं के ववहारी ? के अव्ववहारी ? हंता जाणामि-तत्थ णं जेसे पुरिसे देइ णो सण्णवेइ, से णं पुरिसे ववहारी। तत्थ णं जेसे पुरिसे णो देइ सण्णवेइ, से णं पुरिसे ववहारी। तत्थ णं जेसे पुरिसे देइ वि सण्णवेइ वि, से पुरिसे ववहारी। तत्थ णं जेसे पुरिसे णो देइ णो सण्णवेइ, से णं अववहारी। 'एवामेव तुमं पि ववहारी, णो चेव णं तुम पएसी ! अववहारी ॥ जीवोवदंसणळं-निवेदण-पदं __७७०. तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-तुब्भे णं भंते ! 'इय छेया" दक्खा पत्तट्ठा कुसला महामई विणीया विण्णाणपत्ता° उवएसलद्धा, समत्था णं भंते ! ममं करयलंसि वा आमलयं जीवं सरीराओ अभिणिवट्टित्ताणं उवदंसित्तए ? ॥ केसिस्स समाधाण-पदं ७७१. तेणं कालेणं तेणं समएणं पएसिस्स रण्णो अदूरसामंते वाउयाए संवृत्ते । तणवणस्सइकाए एयइ वेयइ चलइ फंदइ घट्टई उदीरइ, तं तं भावं परिणमइ। तए णं केसी कुमार-समणे पएसि रायं एवं वयासी-पाससि णं तुमं पएसी राया ! एयं तणवणस्सइकायं एयंतं वेयंतं चलंतं फंदंतं घट्टतं उदीरतं तं तं भावं परिणमंतं ? हंता पासामि । जाणासि णं तुमं पएसी ! एयं तणवणस्सइकायं किं देवो चालेइ ? असुरो वा चालेइ ? णागो वा चालेइ ? किण्णरो वा चालेइ? किंपरिसो वा चालेइ ? महोरगो वा चालेइ ? गंधव्वो वा चालेइ ? हंता जाणामि-णो देवो चालेई', 'णो असुरो चालेइ, णो णागो चालेइ, णो किण्णरो चालेइ, णो किंपुरिसो चालेइ, णो महोरगो चालेइ° णो गंधव्वो चालेइ, वाउयाए चालेइ। पास सि णं तुमं पएसी ! एयस्स वाउकायस्स सरूविस्स सकम्मस्स सरागस्स समोहस्स सवेयस्स सलेसस्स ससरीरस्स रूवं? णो तिणठे समझें। १.सं० पा०- वामेणं जाव विवच्चासं। ५. व्वा (क)। २. एवामेव णो चेव णं तुमं पएसी अववहारी ६. संजुत्ते (क, ख, ग, घ, च, छ)। __ववहारी (क, ख, ग, घ, च)। ७. x (क, ख, ग, घ, च, छ) ।। ३. अइछेया (क)। ८. सं० पा०-एयंतं जाव तं तं । ४. सं० पा०-दक्खा जाव उवएसलद्धा। ६. सं० पा०-चालेइ जाव णो गंधवो। Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १९७ जइ णं तुम पएसी! एयस्स वाउकायस्स सरूविस्स' 'सकम्मरस सरागस्स समोहस्स सवेयस्स सलेसस्स° ससरीरस्स रूवं न पाससि, तं कहं णं पएसी ! तव करयलंसि वा आमलगं जीवं [सरीराओ अभिणिवट्टिताणं?] उवदंसिस्सामि ? एवं खलु पएसी ! दसट्ठाणाई छउमत्थे मणुस्से सव्वभावेणं न जाणइ न पासइ, तं जहाधम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सइं, गंध, वायं, अयं जिणे भविस्सइ वा णो भविस्सइ, अयं सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्सइ वा नो वा करिस्सइ । एताणि चेव उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली सव्वभावेणं जाणइ पासइ, तं जहा-धम्मत्थिकायं', 'अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरवद्धं, परमाणुपोग्गलं, सई, गंध, वायं, अयं जिणे भविस्सइ वा णो भविस्सइ, अयं सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्सइ वा णो वा करिस्सइ, तं सद्दहाहि णं तुम पएसी! जहा-अण्णो जीवो' •अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं° । हत्थि-कुंथ-जीव समाणत्त-पदं ७७२. तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-से गुणं भंते ! हत्थिस्स कुथुस्स य समे चेव जीवे ? हंता पएसी! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे । से णणं भंते ! हत्थीओ कथ अप्पकम्मतराए चेव अप्पकिरियतराए चेव 'अप्पासवतराए चेव" "अप्पाहारतराए चेव अप्पनीहारतराए चेव अप्पुस्सासतराए चेव अप्पनीसासतराए चेव अप्पिड्ढितराए चेव अप्पमहतराए चेव अप्पज्जुइतराए चेव° ? कुंथुओ हत्थी महाकम्मतराए चेव महाकिरिय तराए चेव महासवतराए चेव महाहारतराए चेव महानीहारत राए चेव महाउस्सासतराए चेव महानीसासतराए चेव महिड्ढितराए चेव महामहतराए चेव महज्जुइतराए चेव ?°। हंता पएसी! हत्थीओ कुंथू अप्पकम्मतराए चेव कंथूओ वा हत्थी महाकम्मतराए चेव', 'हत्थीओ कुंथू अप्पकिरियतराए चेव कुंथूओ वा हत्थी महाकिरियतराए चेव, हत्थीओ कुंथू अप्पासवतराए चेव कुंथूओ वा हत्थी महासवतराए चेव, एवं आहार-नीहार-उस्सासनीसास-इड्ढि-महज्जुइएहिं हत्थीओ कुंथू अप्पतराए चेव कुंथूओ वा हत्थी महातराए चेव । कम्हा णं भंते ! हथिस्स य कंथुस्स य समे चेव जीवे ? पएसी ! से जहाणामए कूडागारसाला सिया-'दुहओ लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा णिवाया णिवाय° गंभीरा । अह णं केइ पुरिसे जोइं व दीवं व गहाय तं कूडागारसालं अंतो-अंतो अणुपविसइ, तीसे कूडागारसालाए सव्वतो समंता घण-निचिय-निरंतर-णिच्छिड्डाई दुवार-वयणाई पिहेति, तीसे कूडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए तं पईवं पलीवेज्जा। तए णं से पईवे तं कडागारसालं अंतो-अंतो ओभासेइ उज्जोवेड तावेति पभासेइ, णो चेव णं बाहिं। १.सं० पा०-सरूविस्स जाव ससरीरस्स। इड्ढि महज्जुइ अप्पतराए चेव । २. सं० पा०-धम्मत्थिकायं जाव णो। ६. सं० पा०-महाकिरिय जाव हंता। ३. सं० पा०-जीवो तं चेव । ७. सं० पा०--महाकम्मतराए चेव तं चेव । ४. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । ८. सं० पा०—सिया जाव गंभीरा । ५. सं० पा०-एवं आहार नीहार उस्सास नीसास Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ रायपसेणइयं अह णं से पुरिसे तं पईवं इड्डरएणं पिहेज्जा, तए णं से पईवे तं इडुरयं अंतो-अंतो ओभासेइ उज्जोवेइ तावेति पभासेइ, णो चेव णं इड्डुरगस्स बाहिं, जो चेव णं कूडागारसालं, णो चेव णं कूडागारसालाए वाहिं । एवं--गोकिलिंजेणं' 'पच्छियापिडएणं गंडमाणियाए'२ 'आढएणं अद्धाढएणं पत्थएणं अद्धपत्थएणं कुलवेणं अद्धकुलवेणं चाउब्भाइयाए अट्ठभाइयाए सोलसियाए बत्तीसियाए चउसट्टियाए" अहं णं से पुरिसे तं पईवं दीवचंपएणं पिहेज्जा । तए णं से पदीवे दीवचंपगस्स अंतो-अंतो ओभासेति उज्जोवेइ तावेति पभासेइ, नो चेव णं दीवचंपगस्स बाहिं, नो चेव णं चउसट्ठियाए बाहिं णो चेव णं कूडागारसालं, णो चेव णं कूडागारसालाए बाहिं । एवामेव पएसी ! जीवे वि जं जारिसयं पुव्वकम्मनिबद्धं बोंदि णिव्वत्तेइ तं असंखेज्जेहिं जीवपदेसेहिं सचित्तीकरेइ-खुड्डियं वा महालियं वा। तं सदहाहि णं तुमं पएसी ! जहा--अण्णो जीवो 'अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं° ॥ कुल-परपरागयादाट-अच्छडण-पद ७७३. तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-एवं खलु भंते ! मम अज्जगस्स एस सण्णा' 'एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस° समोसरणे, जहा-तज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं। तयाणंतरं च णं ममं पिउणो वि एस सण्णा' 'एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा-तज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं ।। तयाणंतरं मम वि एस सण्णा" 'एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा-तज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं । तं नो खलु अहं बहुपुरिसपरंपरागयं कुलपिस्सियं दिष्टुिं छड्डेस्सामि ।। अयहारग-दिळंत-पदं ७७४. तए णं केसी कुमार-समणे पएसिरायं एवं वयासी-मा णं तुमं पएसी ! पच्छाणुताविए भवेज्जासि, जहा व से पुरिसे अयहारए । के णं भंते ! से अयहारए ? पएसी ! से जहाणामए-केइ पुरिसा अत्थत्थी अत्थगवेसी अत्थलुद्धगा अत्थकंखिया अत्थपिवासिया अत्थगवेसणयाए विउल पणियभंडमायाए सुबहुं भत्तपाण-पत्थयणं गहाय एगं महं अगामियं छिण्णावायं दीहमद्धं अडविं अणुपविट्ठा । तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए" 'छिण्णावायाए दीहमद्धाए° अडवीए कंचि देसं १. ४ (क, ख, ग, घ, च, छ)। ५. सं० पा०-एस सण्णा जाव समोसरणे । २. गंडमाणियाए पच्छिपिंडएणं (क,च); गंडमा- ६.सं० पा०–एस सण्णा । णियाए पडिपिडएणं (ख,ग); गंडमाणियाए ७.सं० पा०-एस सण्णा जाव समोसरणे । पिच्छिपिडिएणं (छ)। ८. छंड्डिस्सामि (च)। ३. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. अकामियं (क, ख, ग, घ, च, छ) । ४. सं० पा०-~-जीवो तं चेव । १०. सं० पा०-अगामियाए जाव अडवीए। Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं १६६ अणुप्पत्ता समाणा एगमहं अयागरं पासंति-अएणं सव्वतो समंता आइण्णं विच्छिण्णं' सच्छड उवच्छडं फुडं अवगाढं गाढं पासंति, पासित्ता हट्टतुट्ठ चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण-हियया अण्णमण्णं सहावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! अयभंडे इठे कते 'पिए मणुणे मणामे, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं अयभारयं बंधित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमझें पडिसुणेति, अयभारं बंधंति, बंधित्ता अहाणपुवीए संपत्थिया। तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए 'छिण्णावायाए दीहमद्धाए° अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ता समाणा एगं महं तउआगरं पासंति--तउएणं आइण्णं" •विच्छिण्णं सच्छडं उवच्छडं फुडं अवगाढं गाढं पासंति, पासित्ता हट्टतुट्ठ-चित्तमाणं दिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया अण्णमण्णं सद्दावेंति , सद्दावेत्ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! तउयभंडे 'इठे कंते पिए मणुण्णे मणामे। अप्पेणं चेव तउएणं सुबह अए लब्भति, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अयभारयं छड्डेत्ता तउयभारयं बंधित्तए त्ति कट्ट अण्णमण्णस्स अंतिए एयमढं पडिसुणेति, अयभारं छड्डेंति तउयभारं बंधंति। तत्थ णं एगे पुरिसे णो संचाएइ अयभारं छड्डेत्तए, तउयभारं बंधित्तए। तए णं ते पुरिसा तं पुरिसं एवं वयासी-एस णं देवाणु प्पिया ! तउयभंडे 'इठे कंते पिए मणुण्णे मणामे । अप्पेणं चेव तउएणं° सुबहुं अए लब्भति। तं छड्डेहि णं देवाणुप्पिया ! अयभारगं, तउयभारगं बंधाहि। तए णं से पुरिसे एवं वयासी- दूराहडे मे देवाणुप्पिया ! अए, चिराहडे मे देवाणुप्पिया ! अए, अइगाढबंधणबद्धे मे देवाणुप्पिया ! अए, असिलिट्ठबंधणबद्धे मे देवाणु प्पिया ! अए, धणियबंधणवद्धे मे देवाणुप्पिया ! अए-- णो संचाएमि अयभारगं छड्डेत्ता तउयभारगं बंधित्तए। तए णं ते पुरिसा तं पुरिसं जाहे णो संचाएंति बहूहिं आघवणाहि य पण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए" वा तया अहाणुपुव्वीए संपत्थिया। •तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ता समाणा एगं महं तंबागरं पासंति-......"तया अहाणुपुव्वीए संपत्थिया। तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ता समाणा एगं महं रुप्पागरं पासंति--......"तया अहाणुपूवीए संपत्थिया। तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ता १. विणिच्छिण्ण (क,च); विणिकिण्णं (घ); विण्णिच्छिण्णं (छ)। २. सच्छड्डं (क,ख,ग); सघडं (घ); संत्थडं (च); सच्छण्णं (छ)। ३. उवत्थडं (च,छ)। ४. सं० पा०-हतु? जाव हियया । ५. सं० पा०-कते जाव मणामे । ६. सं० पा०-अगामियाए जाव अडवाए। ७. सं० पा०–आइण्णं तं चेव जाव सदावेत्ता। ८. सं० पा०–तउयभंडे जाव मणामे । ६. सं० पा०-तउयभंडे जाव सुबहुं । १०. विण्णवित्तए (क,ख,ग,घ,छ)। ११. सं० पा०-एवं तंबागरं रुप्पागरं सुवण्णागरं रयणागरं वइरागरं। Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० रायपसेणइयं समाणा एगं महं सुवण्णागरं पासंति "" तया अहाणुपुवीए संपत्थिया। तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ता समाणा एगं महं रयणागरं पासंति......" तया अहाणुपुव्वीए संपत्थिया। तए णं ते पुरिसा तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ता समाणा एग महं वइरागरं पासंति-वइरेणं आइण्णं विच्छिण्णं सच्छड उवच्छडं फुडं अवगा गाढं पासंति, पासित्ता हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! वइरभंडे इठे कंते पिए भणुण्णे मणामे । अप्पेणं चेव बइरेणं सुवहुं रयणे लब्भति, तं सेयं खलू देवाणप्पिया ! रयणभारयं छड्डे त्ता वइरभारयं बंधित्तए त्ति कट्ट अण्णमण्णस्स अंतिए एयमठे पडिसुणेति, रयणभारं छड्डेति वइरभारं बंधति ।। तए णं से पुरिसे णो संचाएइ अयभारं छड्डेत्तए, वइरभारं बंधित्तए। तए णं ते पुरिसा तं पुरिसं एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! वइरभंडे इठे कंते पिए मणुण्णे मणामे। अप्पेणं चेव वइरेणं सुबहुं अए लब्भति । तं छड्डेहि णं देवाणुप्पिया ! अयभारगं, वइरभारगं बंधाहि। तए णं से पुरिसे एवं वयासी-दूराहडे मे देवाणुप्पिया ! अए, चिराहडे मे देवाणुप्पिया ! आए, अइगाढबंधणबद्धे मे देवाणप्पिया ! आए, असिलिट्रबंधणबद्ध मे देवाणप्पिया! अए. धणियबंधणबद्धे मे देवाणुप्पिया ! अए-णो संचाएमि अयभारगं छड्डेत्ता वइरभारयं बंधित्तए। तए णं ते पुरिसा तं पुरिसं जाहे णो संचाएंति बहूहिं आघवणाहि य पण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा तया अहाणुपुव्वीए संपत्थिया । तए णं ते पुरिसा जेणेव सया जणवया जेणेव साइं-साइं नगराइं तेणेव उवागच्छंति, वइरवेयणं करेंति, सुबहुं दासी-दास-गो-महिस-गवेलगं गिण्हंति, अट्टतलमूसिय'-पासायवडेंसगे करावेंति, हाया कयबलिकम्मा उप्पि पासायवरगया फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहि वरतरुणीसंप उत्तेहिं उवणच्चिज्जमाणा उवगिज्जमाणा उवलालिज्जमाणा इठे सद्द-फरिस - रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणा' विहरंति। तए णं से पुरिसे अयभारए जेणेव सए नगरे तेणेव उवागच्छइ, अयभारगं गहाय वेयणं करेति । तसि अयपुग्गलं सि निद्वियंसि झीणपरिव्वए' ते पुरिसे उप्पि पासायवरगए 'फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहि वरतरुणीसंपउत्तेहिं उवणच्चिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे इ8 सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए १. "मूलिय (क,ख,ग,च,छ) । ६. सं० पा०---पासायवरगए जाव विहरमाणे; २. सं० पा०-~फरिस जाव विहरंति । अत्र 'पच्चणुभवमाणे पासति' इत्यनेनैवार्थ ३. पूर्व 'अयहारए' इति पाठो दृश्यते । संगतिर्जायते । पच्चणुभवमाणे विहरमाणे' ४. अयवेयणं (क, ख, ग, च, छ) । द्विरुक्तमिवाभाति, किन्तु सर्वेषु आदर्शेषु इत्थमेव ५. परिसाए (क)। पाठो लभ्यते। Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं २०१ पच्चणभवमाणे विहरमाणे पासति, पासित्ता एवं वयासी-अहो णं अहं अधण्णे अपुण्णे अकयत्थे अकयलक्खणे हिरिसिरिवज्जिए' हीणपुण्ण-चाउद्दसे दुरंतपंतलक्खणे । जति णं अहं मित्ताण वा णाईण वा नियगाण वा सुणतओ तो णं अहं पि एवं चेव उप्पि पासायवरगए' 'फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहिं वरतरुणीसंपउत्तेहिं उवणच्चिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे इठे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणे विहरतो। से तेणठेणं पएसी ! एवं वुच्चइ-मा णं तुमं पएसी ! पच्छाणुताविए भवेज्जासि, जहा व से पुरिसे अयभारए॥ पएसिस्स गिहिधम्म-पडिवज्जण पदं ७७५. एत्थ णं से पएसी राया संबुद्धे केसि कुमार-समणं वंदइ' 'नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी~णो खलु भंते ! अहं पच्छाणुताविए भविस्सामि, जहा व से पूरिसे अयभारए, तं इच्छामि णं देवाणुप्पियाणं अंतिए केवलिपण्णत्तं धम्म निसामित्तए । अहासूह देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि । धम्मकहा जहा चित्तस्स गिहिधम्म पडिवज्जइ, जेणेव सेयविया नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥ आयरिय-विणयपडिवत्ति-पदं ७७६. तए णं केसी कुमार-समणे पएर्सि रायं एवं वयासी-जाणासि णं तुमं पएसी! कइ आयरिया पण्णत्ता ? हंता जाणामि, तओ आयरिआ पण्णत्ता, तंजहा-कलायरिए, सिप्पायरिए, धम्मायरिए। जाणासि णं तुमं पएसी ! तेसिं तिण्हं आयरियाणं कस्स का विणयपडिवत्ती पउंजियव्वा ? हंता जाणामि-कलायरियस्स सिप्पायरियस्स उवलेवणं संमज्जणं वा करेज्जा, पुप्फाणि वा आणवेज्जा, मज्जावेज्जा, मंडावेज्जा', भोयावेज्जा वा, विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलएज्जा, पुत्ताणुपुत्तियं वित्ति कप्पेज्जा। जत्थेव धम्मायरियं पासिज्जा तत्थेव वंदेज्जा णमंसेज्जा सक्कारेज्जा सम्माणेज्जा, कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्जा, फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेज्जा, पाडिहारिएणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं उवणिमंतेज्जा। एवं च ताव तमं पएसी! एवं जाणासि तहावि णं तुम मम वामं वामेणं 'दंडं दंडेणं पडिकलं पडिकूलेणं पडिलोमं पडिलोमेणं विवच्चासं विवच्चासेणं वट्टित्ता ममं एयमट्ठ अक्खामित्ता जेणेव सेयविया नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए । पएसिस्स अत्त-निवेदण-पदं ___७७७. तए णं से पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-एवं खलु भंते ! मम एयारूवे अज्झथिए 'चितिए पत्थिए मणोगए संकप्प° समुप्पज्जित्था--एवं खलु अहं १. परिवज्जिए (क, ख, ग, च, छ)। ५. उलेवणं (क, च, छ)। २. सं० पा०-पासायवरगए जाव विहरतो । ६. मुंडावेज्जा (क, छ)। ३. सं० पा०-वंदइ जाव एवं । ७. सं० पा०-वामेणं जाव वट्टित्ता। ४. राय० सू० ६६३ । ८. सं० पा०-अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था। Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायपसेणइयं देवाप्पियाणं वामं वामेणं' दंडं दंडेणं पडिकूलं पडिकूलेणं पडिलोमं पडिलोमेणं विवच्चासं विवच्चासेणं° वट्टिए, तं सेयं खलु मे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमलकोमलुम्मिलियम्म अहापंडुरे पभाए रत्तासोगपगास- किं सुय-सुयमुह- गुंजद्धरागसरिसे कमलागर - लिणिसंडबोहए उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अंतेउरपरियालसद्धि संपरिवुडस्स' देवाणुप्पिए वंदित्ता नमंसित्ता एतमट्ठे भुज्जो - भुज्जो सम्मं farer खामित्त त्ति कट्टु जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए ॥ एसिस्स खामणा - पदं २०२ ७७८. तणं से पएसी राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए' 'फुल्लुप्पल-कमलकोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए रत्तासोगपगास - किंसुय- सुयमुह-गुंजद्ध रागसरिसे कमलागर - णलिणिसंडवोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे° तेयसा जलते हट्टतुट्ठ • चित्तमादिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्पमाण° हियए जहेव कूणिए तहेव' निग्गच्छइ - अंतेउर - परियालसद्ध संपरिवुडे, पंचविहेणं अभिगमेण ' ' अभिगच्छइ, [ तंजहा - सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए, अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरणयाए, एगसाडियं उत्तरासंगकरणेणं, चक्खुप्फासे अंजलि पग्गहेणं, मणसो एगत्तीभावकरणेणं ] । केसि कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता' वंदइ नमंसइ, एयमट्ठ भुज्जो - भुज्जो सम्मं विणएणं खामेइ || चाउज्जामधम्म- कहण-पदं ७७. तणं केसी कुमार-समणे पएसिस्स रण्णो सूरियकंतप्पमुहाणं देवीणं तीसे य महतिमहा लियाए महच्च परिसाए' 'चाउज्जामं° धम्मं परिकहे ' ॥ रमणिज्ज-अरमणिज्ज-पदं ७८०. तए" णं से पएसी राया धम्मं सोच्चा निसम्म उठाए उट्ठेति केसि कुमार १. सं० पा० – वामेणं जाव वट्टित्ता । २. परिवुडस्स (क, ख, ग, च) । ३. सं० पा० - रयणीए जाव तेयसा । ४. सं० पा०-- हट्ठ जाव हियए । ५. ओ० सू० ६३-७० । १०. केशिस्वामिना प्रदेशिराजस्य चातुर्यामः धर्मः कथितः । ( द्रष्टव्यं सू० ७७६ ) प्रदेशिराजेन च देशरूपेण चातुर्यामः धर्मः स्वीकृतः । ( द्रष्टव्यं सू० ७९६ ) किन्तु अत्र तत्स्वीकारस्य नास्ति कश्चिदुल्लेखः । ७६६ सूत्रे 'पुव्यि पिणं मए के सिस्स कुमार-समणस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए' इत्यादि उल्लिखितमस्ति किन्तु इह नास्ति तस्योल्लेख:, तेनेति प्रतीयतेसौ पाठः संक्षिप्तपद्धत्या त्रुटितो जातः । प्रकरणानुसारेणात्र इत्थं पाठो युज्यते - तए णं सा महतिमहालिया महच्चपरिसा केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया । ६. सं० पा० - अभिगमेणं जाव वंदइ । ७. कोष्ठकवर्तिपाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । ८. सं० पा० - महच्चपरिसाए जाव धम्मं । ६. राय० सू० ६६३ । तणं से एसी राया केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिए पीइम परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता केसि कुमार-समणं Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं २०३ समणं वंदइ नमसइ, जेणेव सेयविया नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए । ७८१. तए णं केसी कुमार-समणे पएसिं राय एवं वयासी-मा णं तुमं पएसी ! पुवि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा' अरमणिज्जे भविज्जासि, जहा-से वणसंडेइ वा, गट्टसालाइ वा, इक्खुवाडेइ वा, खलवाडेइ वा ॥ ७८२. कहं णं भंते ! 'वणसंडे पुवि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भवति ? पएसी ! - जया णं वणसंडे पत्तिए पुप्फिए फलिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे चिट्ठइ, तया णं वणसंडे रमणिज्जे भवति। जया णं वणसंडे नो पत्तिए नो पुप्फिए नो फलिए नो हरियगरेरिज्जमाणे णो सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे चिट्ठइ तया णं जुण्णे झडे' परिसडिय-पंडुपत्ते सुक्करुक्खे इव मिलायमाणे चिट्ठइ, तया णं वणसंडे णो रमणिज्जे भवति ॥ ७८३. [कहं णं भंते ! णटसाला पूवि रमणिज्जा भवित्ता पच्छा अरमणिज्जा भवति ? पएसी! ?] जया णं णसाला गिज्जइ वाइज्जइ नच्चिज्जइ अभिणिज्जइ हसिज्जइ रमिज्जइ, तया णं णटटसाला रमणिज्जा भवइ । जया णं णटटसाला णो गिज्जइ" •णो वाइज्जइ णो नच्चिज्जइ णो अभिणिज्जइ णो हसिज्जइ° णो रमिज्जइ, तया णं णसाला अरमणिज्जा भवइ॥ तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सहहामि णं भंते! निम्गंथं पावयणं । पत्तियामि णं भंते ! निग्गथं पावयणं । रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । अब्भठेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! निग्गंथं पावयणं । तहमेयं भंते ! निग्गंथं पावयणं । अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते ! जंणं तुब्भे वदह त्ति कट्ट वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीजहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा जाव-सू० ६८८ इभा इब्भपुत्ता चिच्चा हिरण्णं, एवं-धणं धन्नं बलं वाहणं कोसं कोटागारं पुरं अंतेउरं, चिच्चा विउलं धण-कणग-रयणमणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-संतसार-सावएज्ज, विच्छडित्ता विगोवइत्ता, दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता, मंडा भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वयंति, णो खल अहं तहा संचाएमि चिच्चा हिरणं, एवं-धणं धन्नं बलं वाहणं कोसं कोट्रागारं पूरं अंतेउरं, चिच्चा विउलं धण-कणग-रयणमणि - मोत्तिय - संख-सिल-प्पवाल-संतसार-सावएज्जं, विच्छत्तिा विगोवइत्ता, दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता, मंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्व इत्तए, अहं णं देवाणप्पियाणं अंतिए चाउज्जामियं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामि । तए णं से पएसी राया केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए चाउज्जामियं गिहिधम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरति । तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं वंदइ नमसइ, जेणेव सेयविया नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। १. पच्छा मा (क, ख, ग, घ, च, छ) । ५.७८३, ७८४, ७८५ : कोष्ठकतिपाठः पूर्व२. सं० पा०-भंते ! वणसंडे। ___ सूत्रक्रमेण पूरितोस्ति । ३. डोडे (क, ख, ग, घ); झाडे (च, छ) । ६. वइगिज्जइ (च, छ)। ४. वणे (क, च, छ) । ७. सं० पा०-गिज्जइ जाव णो रमिज्जइ । Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ रायपसेणइयं ७८४. [कहं णं भंते ! इक्खुवाडे पुवि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भवति ? पएसी! ?] जया णं इक्खुवाडे छिज्जइ भिज्जइ लुज्जइ खज्जइ पिज्जइ दिज्जइ, तया णं इक्खुवाडे रमणिज्जे भवइ । जया णं इक्खुवाडे णो छिज्जइ' •णो भिज्जइ णो लुज्जइ णो खज्जइ णो पिज्जइ णो दिज्जइ°, तया णं इक्खुवाडे अरमणिज्जे भवइ । ७८५. [कहं णं भंते ! खलवाडे पुबि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भवति ? पएसी ! ?] जया णं खलवाडे उच्छुब्भइ उडुइज्जइ मलइज्जइ पुणिज्जइ खज्जइ पिज्जइ दिज्जइ, तया णं खलवाडे रमणिज्जे भवति । जया णं खलवाडे णो उच्छुब्भइ' •णो उडुइज्जइ णो मलइज्जइ नो पुणिज्जइ नो खज्जइ णो पिज्जइ णो दिज्जइ, तया णं खलवाडे° अरमणिज्जे भवति । ७८६. से तेणठेणं पएसी! एवं वच्चइ-मा णं तुम पएसी ! पूवि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भविज्जासि, जहा-से वणसंडेइ वा •णट्टसालाइ वा, इक्खुवाडेइ वा खलवाडेइ वा। ७८७. तए णं पएसी केसि कुमार-समणं एवं वयासी–णो खलु भंते ! अहं पुट्वि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भविस्सामि, जहा-से वणसंडेइ वा 'णट्टसालाइ वा, इक्खुवाडेइ वा खलवाडेइ वा,-अहं णं सेयबियापामोक्खाई सत्तगामसहस्साई चत्तारि भागे करिस्सामि-एगं भागं बलवाहणस्स दलइस्सामि, एगं भागं कोट्ठागारे छुभिस्सामि, एगं भागं अंतेउरस्स दलइस्सामि, एगेणं भागेणं महतिमहालियं कूडागारसालं करिस्सामि । तत्थ णं बहूहिं पुरिसेहिं दिण्णभइ-भत्त-वेयणेहिं विउलं असणं पाणं साइमं खाइम उवक्खडावेत्ता वहूणं समण-माहण-भिक्खुयाणं पंथिय-पहियाणं परिभाएमाणे, बहुहिं सीलव्वय-गुणव्वय-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोवबासेहिं 'अप्पाणं भावेमाणे विहरिस्सामि त्ति कटु जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए॥ पएसिणा रज्जस्स चउभाग-करण-पदं ७८८. तए णं से पएसी राया कल्लं' पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमलकोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए रत्तासोग-पगास-किंसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागर-णलिणिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिस्मि दिणयरे° तेयसा जलंते सेयवियापामोक्खाई सत्तगामसहस्साइं चत्तारिभाए करेइ-एगं भाग बलवाहणस्स दलयइ", १. सं० पा०--छिज्जइ जाव तथा णं । पाठः इत्थं लभ्यते-पोसहोववासेहिं अहापरि२. उड (क, घ, च)। ग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे ३. सं० पा०-उच्छुब्भइ जाव अरमणिज्जे । विहरइ।' सूत्रकृताङ्गे (२।२।५२) पि इत्थ४. सं० पा०-वणसंडे इ वा । मेव--'पोसहोववासेहि अहापरिग्गहिएहि ५. सं० पा०---वणसंडे इ वा जाव खलवाडे । तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणा विहरंति ।' ६. समक्खाइं (च, छ)। ६. दिसं (क)। ७. पंथियाणं (क)। १०. सं० पा०-कल्लं जाव तेयसा । ८. सं० पा०- पोसहोववासस्स जाव ११. सं० पा०-दलयइ जाव कूडागारसालं । विहरिस्सामि; औपपातिके (सू० १२०) अयं Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं २०५ 'एगं भागं कोट्ठागारे छुभइ, एगं भागं अंतेउरस्स दलयइ, एगेणं भागेणं महतिमहालियं कूडागारसालं करेइ। तत्थ णं बहूहिं पुरिसेहि दिण्णभइ-भत्त-वेयणेहिं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं° उवक्खडावेत्ता बहूणं समण- माहण-भिक्खयाणं पंथिय-पहियाणं परिभाएमाणे विहरइ॥ पएसिस्स समणोवासयत्त-पदं ७८६. तए णं से पएसी राया समणोवासए अभिगयजीवाजीवे' 'उवलद्धपुण्णपावे आसव-संवर-निज्जर-किरियाहिगरण-बंधप्पमोक्ख-कुसले असहिज्जे देवासुर-णाग-सवण्णजक्ख-रक्खस-किण्ण र-किंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कम णिज्जे, निग्गंथे पावयणे णिस्संकिए णिक्कंखिए णिव्वितिगिच्छे लद्धढे गहियठे अभिगयढे पुच्छियठे विणिच्छियढे अद्विमिंजपेमाणुरागरत्ते अयमाउसो निग्गंथे पावयणे अट्ठे परमठे सेसे अणठे, ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउरघरप्पवेसे चाउद्दसट्टमुद्दिट्टपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेमाणे, समणे णिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल-पायपंछणेणं ओसह-भेसज्जेण य पडिलाभेमाणे-पडिलाभेमाणे बहहिं सीलव्वयगुण-वेरमण-पच्चवखाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ पएसिस्स रज्जोवरइ-पदं ७६०. जप्पभिई च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिई च णं रज्जं च रट्ठ च बलं च वाहणं च कोसं च कोडागारं च पुरं च अंतेउरं च जणवयं च अणाढायमाणे यावि विहरति । सूरियकताए सूरियकतेण मंतणा-पदं ७६१. तए णं तीसे सूरियकताए देवीए इमेयारूवे अज्झथिए 'चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था- जप्प भिइं च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिज्ञ च णं रज्जं च रठं च वलं च बाहणं च कोडागारं च पुरं च अंतेउरं च ममं जणवयं च अणाढायमाणे विहरइ, तं सेयं खलु मे पएसि रायं केणवि सत्थप्पओगेण वा अग्गिप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा उद्दवेत्ता सूरियकंतं कुमारं रज्जे ठवित्ता सयमेव रज्जसिरिं 'कारेमाणीए पालेमाणीए'" विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता सूरियकंतं कुमारं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-जप्पभियं च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिइं च णं रज्जं च 'रठं च वलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च पुरं च° अंतेउरं च मम जणवयं च माणस्सए य कामभोगे अणाढायमाणे विहरइ, त सेयं खलू तव पूत्ता ! पएसिं रायं केणइ सत्थप्पओगेण वा' 'अग्गिप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा विसप्पओगेण १. सं० पा०-पुरिसेहिं जाव उवक्खडावेत्ता। ६. उवद्दवेत्ता (छ)। २. सं० पा०-समण जाव परिभाएमाणे । ७. कारेमाणी पालेमाणी (छ) । ३. सं० पा०-अभिगयजीवाजीवे."विहरइ । ८. सं० पा०-रज्जं च जाव अंतेउरं । ४. सं० पा० --अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था । ९. सं० पा०-सत्थप्पओगेण वा जाव उहवेत्ता। ५. रट्ठे जाव अंतेउरं। Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ वा उद्दवेत्ता सयमेव रज्जसिरि 'कारेमाणस्स पालेमाणस्स" विहरित्तए । ७६२. तए णं सूरियकंते कुमारे सूरियकंताए देवीए एवं वृत्ते समाणे सूरियकंताए देवीए एमट्ठ णो आढाइ णो परियाणाइ तुसिणीए संचिट्ठइ || सूरियकंताए विसप्पओग-पदं ७६३. तए णं तीसे सूरियकंताए देवीए इमेयारूवे अज्झथिए' चितिए पत्थिए मो कप्पे सज्जित्था - माणं सूरियकंते कुमारे पएसिस्स रण्णो इमं रहस्सभेयं करिसइति कट्टु पएसिस्स रण्णो छिद्दाणि य मम्माणि य रहस्साणि य विवराणि य अंतराणि य पडिजागरमाणी- पडिजागरमाणी विहरइ || ७६४. तणं सूरियकंता देवी अण्णया कयाइ पएसिस्स रण्णो अंतरं जाणइ, जाणित्ता असणं" "पाणं खाइमं° साइमं 'सव्व वत्थ-गंध-मल्लालंकारं " विसप्पजोगं पउंजइ । पएसिस्स रणो ण्हायरस' 'कयबलिकम्मस्स कयकोउय - मंगल' पायच्छित्तस्स सुहासणवरगयस्स तं विससंत्तं असणं पाणं खाइमं साइमं सव्व वत्थ-गंध-मल्लालंकारं निसिरेइ ॥ एसिस्स समाहि-मरण-पदं ७६५. तणं तस्स एसिस्स रण्णो तं विससंजुत्तं असणं आहारेमाणस्स सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया - उज्जला विपुला पगाढा कक्कसा कडुया 'फरुसा निठुरा" चंडा" तिव्वा दुक्खा दुग्गा दुरहियासा, पित्तजरपरिगयसरीरे 'दाववकंतिए यावि" विहरइ ॥ ७६६. तए णं से पएसी राया सूरियकंताए देवीए अप्पदुस्समाणे जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, पोसहसालं पविसइ ", उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, दब्भसंथारगं संथरेइ, दब्भसंथारगं दुरुहइ, पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसणे करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - नमोत्थु णं अरहंताणं जाव" सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं केसिस्स कुमार समणस्स मम 'धम्मोवदेसगस्स धम्मायरियस्स" वंदामि भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासइ मे भगवं तत्थगए इहगयं ति कट्टु वंदइ नमसइ । पुव्वि पिणं मए केसिस्स कुमार - समणस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए " पच्चक्खाए १. कारेमाणे पालेमाणे (क, छ) । २. सं० पा० - अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था । ३. वम्माणि (च ) । ४. विहुराणि ( क, ख, ग, घ, च, छ) । ५. सं० पा० असणं जाव साइमं । सव्वालंकारं ( क ) ; ६. वत्थं गंधं (च, छ) । ७. सं० पा० ८. सं० पा० ६. x ( क, ख, ग, च, छ) । १०. वंता (क, च, छ ) । ११. दाहवक्कतिया वि (क, ख, ग, घ, च, छ, वृ) । रायसेणइयं सव्वत्थ ण्हायस्स जाव पायच्छित्तस्स । असणं जाव अलंकारं । १२. पमज्जइ (च ) | १३. राय सु० ८ । १४. धम्मोवएसद्वाणस्स (क, ख, ग, घ, छ); x (च) । १५. सं० पा० - पच्चक्खाए जाव परिग्गहे; ७७६ सूत्रानुसारेण केशिस्वामिना प्रदेशिराजाय चातुर्यामको धर्मः कथितः । ७८० सूत्रस्य पादटिप्पणगत पाठानुसारेण प्रदेशिराजेन केशिस्वामनोन्तिके चातुर्यामिको गृहिधर्मः स्वीकृतः । प्रस्तुतसूत्रे पूर्वोक्तपाठानां संदर्भे एवासौ पाठः पूरितः तेनात्र चातुर्यामिकगहिधर्मस्यैव पाठो युज्यते । Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं २०७ 'थूलए मुसावाए पच्चक्खाए, थूलए अदिण्णादाणे पच्चक्खाए, थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए, तं इयाणि पि णं तस्सेव भगवतो अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि' 'सव्वं मुसावायं पच्चक्खामि सव्वं अदिण्णादाणं पच्चक्खामि सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि सव्वं-कोहं', •माणं, मायं, लोह, पेज्जं, दोसं, कलह, अब्भक्खाणं, पेसुण्णं, परपरिवायं, अरइरइं, मायामोसं°, मिच्छादसणसल्लं, अकरणिज्ज जोयं पच्चक्खामि । सव्वं असणं पाणं खाइम साइमं चउव्विहं पि आहारं जावज्जीवाए पच्चक्खामि । जं पि य मे सरीरं इ8 °कतं पियं मणुण्णं मणामं पेज्ज वेसासियं संमयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं मा णं सीयं मा णं उण्हं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं वाला मा णं चोरा मा णं दंसा मा णं मसगा मा णं वाइय-पित्तिय-सिभिय-सण्णिवाइय विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु त्ति एयं पि य णं चरिमेहिं ऊसासनिस्सासेहिं वोसिरामि त्ति कट टु आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सूरियाभे विमाणे उववायसभाए' 'देवसयणिज्जसि देवदूसंतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए सूरियाभदेवत्ताए° उववण्णे ॥ सूरियाम-देव-पदं ७६७. तए णं से सूरियाभे देवे अहुणोववण्णए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति, [तंजहा-आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणपाणपज्जत्तीए भास-मणपज्जत्तीए] । तं एवं खलु गोयमा ! सूरियाभेणं देवेणं सा दिव्वा देविडढी दिव्वा देवजुती दिव्वे देवाणभावे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए। ७६८. सूरियाभस्स णं भंते ! देवस्स केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता । दढपइण्णग-पदं ७६६. से णं सूरियाभे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे जाणि इमाणि कुलाणि भवंति–अड्ढाइं दित्ताइं विउलाई वित्थिण्ण-विपुल-भवण-सयणासण-जाण-वाहणाई बहुधण-बहुजातरूव-रययाइं 'आओगपओग-संपउत्ताई" विच्छड्डियपउरभत्तपाणाइं बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूयाई बहुजणस्स अपरिभूयाइं तत्थ अण्णयरेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चाइस्सइ । ८००. तए णं तंसि दारगंसि गब्भगयंसि चेव समाणंसि अम्मापिऊणं धम्मे दढा पइण्णा भविस्सइ ।। ८०१. तए णं तस्स दारयस्स नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं १. सं० पा० --पच्चक्खामि जाव परिग्गहं। ६. कोष्ठकवर्ती पाठो व्याख्यांश: प्रतीयते । २. सं० पा०-कोहं जाव मिच्छादसणसल्लं । ७. ४ (क,ख,ग,घ,च,छ)। ३. सं० पा०–इट्ठ जाव फुसंतु।। ८. प्रस्तुतागमे औपपातिकसूत्रे च दृढप्रतिज्ञस्य । ४. इह प्रथमा बहुवचनलोपो दृश्यते । प्रकरणं प्रायः समानमस्ति, केवलं पाठरचनायाः ५. सं० पा०-उववायसभाए जाव उववण्णे । किञ्चित्-किञ्चिद् भेदो दृश्यते । Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ रायपसेणइयं वितिक्कंताणं' सुकुमालपाणिपायं अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरं लक्खण-वंजण-गुणोववेयं माणुम्माणपमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदरंगं ससि-सोमाकारं' कंतं पियदसणं सुरूवं दारयं पयाहिइ॥ ८०२. तए णं तस्स दार गस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठितिवडियं करेस्संति ततिय दिवसे चंदसूरदसणगं करेस्संति छठे दिवसे जागरियं जागरिस्संति, एक्कारसमे दिवसे वीइक्कंते संपत्ते बारसमे दिवसे णिव्वत्ते असुइजायकम्मकरणे चोक्खे संमज्जिओवलित्ते विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेस्संति, मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधिपरिजणं आमंतेत्ता तओ पच्छा बहाया कयबलिकम्मा 'कयकोउयमंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिता अप्पमहग्घाभरणा लंकिया भोयणमंडवंसि सहासणवरगया तेणं मित्त-णाइ'-'णियग-सयण-संबंधि-परिजणेण सद्धि विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा वीसाएमाणा परिभुजेमाणा परिभाएमाणा एवं 'च णं" विहरिस्संति । जिभियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभूया तं मित्तणाइ-णि यग-सयण-संबंधि-परिजणं विउलेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेस्संति सम्माणिस्संति, तस्सेव मित्त- णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स पुरतो एवं वइस्संति --जम्हा णं देवाणुप्पिया ! इमंसि दारगंसि गब्भगयंसि चेव समाणंसि धम्मे दढा पइण्णा जाया, 'तं होउ णं अम्हं एयस्स दारयस्स दढपइण्णे णामे णं ॥ ८०३. तए णं तस्स अम्मापियरो अणुपुव्वेणं ठितिवडियं च चंदसूरदरिसणं च जागरियं च नामधिज्जकरणं च 'पजेमणगं च पचंकमणगं च कण्णवेहणं च संवच्छरपडिलेहणगं च 'चूलोवणयं च अण्णाणि य बहूणि गब्भाहाणजम्मणाइयाइं महया इड्ढी-सक्कार-समुदएणं करिस्संति ।। ८०४. तए णं दढपतिण्णे दारगे पंचधाईपरिविखत्ते-[खीरधाईए 'मज्जणधाईए मंडणधाईए अंधाईए कीलावणधाईए'"], अण्णाहिं बहूहिं खुज्जाहिं चिलाइयाहिं १. अत्र 'सा' इति कर्तृपदं अध्याहार्यम् । द्रष्टव्यं करेहिति दढपइण्णत्ति (ओ० सू० १४४) । ठाणं ६।६२ सूत्रम् । ११. पुरगामणं च पंथगामणं च पज्जेमामणगं च २. सोम्मा (क, ख, ग)। पिंडवद्धावणगं च पज्जमाणगं च (क); परं३. धम्मजागरियं (क)। गामणं च पंचगामणं च पजेगामणगं च पिंड४. बारसाहे (क, च)। वद्धावणगं च पज्जमाणगं च (ख, ग, च); ५. सं० पा०-कयबलिकम्मा जाव लंकिया। पगामणं च पचंकमणं च पजेपमाणगं च पिंड६. सं० पा०-णाइ जाव परिजणेण । वद्धावणगं च पज्जमाणगं च (छ) । ७. चेव णं (क, ख, ग, च, छ) । १२. चोलावणं च उवणयं च (क, ख, ग, घ); ८. सं० पा०–णाइ जाव परिजणं । चोलविणं च (च)। ६. सं० पा०-मित्त जाव परिजणस्स। १३. मंडणधाईए मज्जणधाईए कीलावणधाईए १०.तं होउ णं अम्हं दारए दढपइण्णे णामेणं । तए अंकधाईए (व) । कोष्ठकवर्ती पाठो व्याख्यांश: णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्जं प्रतीयते। Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं २०६ वामणियाहि वडभियाहिं बब्बरियाहिं बउसियाहिं' जोणियाहि पल्हवियाहि ईसिणियाहिं थारुइणियाहिं' लासियाहिं लउसियाहिं दमिलाहिं सिंहलीहिं पुलिंदीहिं आरबीहिं पक्कणीहिं बहलीहिं मुरंडीहिं सबरीहिं पारसीहिं णाणादेसीहिं विदेस-परिमंडियाहिं 'इंगिय-चिंतियपत्थिय-वियाणयाहिं सदेश-णवत्थ-गहिय-वेसाहि" निउणकुसलाहिं विणीयाहिं, चेडियाचक्कवाल-वरतरुणिवंद-परियाल-संपरिवुडे वरिसधर-कंचुइमहयरवंदपरिक्खित्ते हत्थाओ हत्थं साहरिज्जमाणे-साहरिज्जमाणे उवणचिज्जमाणे-उवणचिज्जमाणे 'अंकाओ अंक" परिभुज्जमाणे-परिभुज्जमाणे 'उवगाइज्जमाणे-उवगाइज्जमाणे"० उवलालिज्जमाणेउवलालिज्जमाणे "उवगूहिज्जमाणे-उवगूहिज्जमाणेअवतासिज्जमाणे-अवतासिज्जमाणे 'परिवंदिज्जमाणे-परिवंदिज्जमाणे परिचुबिज्जमाणे-परिचुंबिज्जमाणे रम्मेसु मणिकोट्टिमतलेसु परंगमाणे परंगमाणे" गिरिकंदरमल्लीणे विव" चंपगवरपायवे णिव्वाघायंसि सुहंसुहेणं परिवढिस्सइ॥ ___ ८०५. तए णं तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो सातिरेगअट्ठवासजायगं जाणित्ता सोभणं सि तिहिकरण-णक्खत्त-मुहत्तंसि ण्हायं कयवलिकम्मं कयकोउयमंगल-पायच्छित्तं सव्वालंकारविभसियं करेत्ता महया इडढीसक्कारसमदएणं कलायरियस्स उवणेहिति ॥ ८०६. तए णं से कलायरिए तं दढपइण्णं दारगं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावत्तरि कलाओ सुत्तओ अत्थओ य गंथओ य 'करणओ य'५ 'सिवखावेहिइ सेहावेहिइ'", तं जहा-१. लेहं २. गणियं ३. रूवं ४. नट्टं ५. गीयं ६. वाइयं ७. सरगयं ८. पुक्ख रगयं ६. समतालं १०. जूयं ११. जणवायं० १२. पासगं १३. अट्ठावयं १४. पोरेकव्वं १५. दगमट्टियं १६. अन्नविहिं १७. पाणविहिं १८. वत्थविहिं १६. विलेवणविहिं २०. सयणविहिं २१. अज्ज" २२. पहेलियं २३. मागहियं" २४. गाहं २५. गीइयं २६. सिलोगं २७. हिरण्णजुत्ति २८. सुवण्णजुति २६. आभरणविहिं ३०. तरुणीपडिकम्मं ३१. इत्थिलक्खणं ३२. पुरिसलक्खणं ३३. हयलक्खणं ३४. १. बक्क' (क); चउ (ख, ग, च); पउसियाहिं ११. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । (ओ० सू० ७०)। १२. X (क, ख, ग, घ, च, छ)। २. पण्ण° (ख, ग, घ, च)। १३. औपपातिक १४४ सूत्रस्य वाचनान्तरे३. बारुणियाहिं (क, च, छ); दारुणिणियाहिं परंगिज्जमाणे' इति पाठो दृश्यते । (ख, ग, घ)। १४. इव (क)। ४. x (क, ख, ग, घ, च, छ)। १५. X (क, ख, ग, घ, च)। ५. मरुंडीहि (ओ० सू० ७०) । १६. सिक्खावेहि य सेहावेहि य (क); सेहावेहि य ६. x (क, ख, ग, घ, च, छ) । सिक्खावेहि य (वृ)। ७. सदेसनेवच्छगहियवेसाहिं इंगियचितियपत्थिय- १७. जणव (जनमा वियाणियाहिं (क, ख, ग, घ, च, छ) । १८. अज्जे (क, ख, ग, च)। ८. वरिसवर (क, ख, ग, घ, च, छ)। १६. मागहियं णिहाइयं (घ, च, छ) । ९. अंगेण अंगं (क, ख, ग, घ, च, छ) । २०. गीयं (च, छ) । १०. परिगीयमानः (व)। Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० रायपसेणइयं गयलक्खणं ३५. गोणलक्खणं ३६. कुक्कुडलक्खणं ३७. छत्तलक्खणं ३८. चक्कलक्खणं' ३४. दंडलक्खणं ४०. असिलक्खणं ४१. मणिलक्खणं ४२. कागणिलक्खणं' ४३. वत्थविज्जं ४४. णगरमाणं ४५. खंधावारमाणं ४६. चारं ४७. पडिचारं ४८. वहं ४६. पडिवहं ५०. चक्कवहं ५१. गरुलवूहं ५२. सगडवहं ५३. जुद्धं ५४. निजुद्ध ५५. जुद्धजुद्ध' ५६. अटिजुद्धं ५७. मुट्ठिजुद्धं ५८. बाहुजुद्धं ५६. लयाजुद्धं ६०. ईसत्थं ६१. छरुप्पवायं ६२. धणुवेयं ६३. हिरण्णपागं ६४. सुवण्णपागं ६५. सुत्तखेड्ड ६६. वट्टखेड्ड ६७. णालियाखेड्ड ६८. पत्तच्छेज्जं ६६. कडगच्छेज्जं ७०. सज्जीवं ७१. निज्जीवं ७२. सउणरुयं इति ॥ ८०७. तए णं से कलायरिए तं दढपइण्णं दारगं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावत्तरि कलाओ सुत्तओ य अत्थओ य गंथओ य करणओ य सिक्खावेत्ता सेहावेत्ता अम्मापिऊणं उवणेहिइ॥ ८०८. तए णं तस्स दढपइण्णस्स दारगस्स अम्मापियरो तं कलायरियं विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारिस्संति सम्माणिस्संति, विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दल इस्संति, दल इत्ता पडिविसज्जेहिंति ॥ ८०६. तए णं से दढपइण्णे दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणयमित्ते जोव्वणगमणुपत्ते वावत्तरिकलापंडिए णवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारए गीयरई गंधव्वणट्रकूसले सिंगारागारचारुरूवे संगय-गय-हसिय-भणिय-चिट्रिय-विलासणिउण-जुत्तोवयारकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी यावि भविस्सइ॥ ८१०. तए णं तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं •विण्णयपरिणयमित्तं जोव्वणगमणुपत्तं बावत्तरिकलापंडियं णवंगसुत्तपडिबोहियं अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारयं गीयरइं गंधव्वणकुसलं सिंगारागारचारुरूवं संगय-गय-हसियभणिय-चिट्ठिय-विलास-णिउण-जुत्तोवयारकुसलं हयजोहि गयजोहिं रहजोहिं बाहुजोहिं बाहुप्पमद्दि अलंभोगसमत्थं साहसियं वियालचारिं च वियाणित्ता विउलेहि अण्णभोगेहि य पाणभोगेहि य लेणभोगेहि य वत्थभोगेहि य सयणभोगेहि य उवनिमंतेहिंति ॥ ८११. तए णं दढपइण्णे दारए तेहिं विउलेहिं अण्णभोगेहि पाणभोगेहि लेणभोगेहिं वत्थभोगेहिं° सयणभोगेहिं णो सज्जिहिति णो गिज्झिहिति णो मुज्झिहिति णो अज्झोववज्जिहिति । से जहाणामए पउमुप्पलेइ वा पउमेइ वा" 'कुमुएइ वा नलिणेइ वा सुभगेइ वा सुगंधिएइ वा पोंडरीएइ वा महापोंडरीएइ वा सयपत्तेइ वा सहस्सपत्तेइ वा १. x (क, ख, ग)। ८. सं० पा०-उम्मुक्कबालभावं जाव वियाल२. कागिणि° (क)। __ चारि। ३. जुद्धाइजुद्धं (क, ख, ग)। ९. सं० पा०–अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहिं । ४. पागं मणिपागं धाउपागं (क,ख,ग,घ,च,छ)। १०. "उप्पलेइ' ओ० सू० १५०; अत्रापि 'उप्पलेइ' ५. खेडं (क, ख, ग, च, छ) । इति पाठो युक्तोस्ति । ६. "विहदेसप्प (क, घ)। ११. सं० पा०--पउमेइ वा जाव सयसहस्सपत्तेइ ७. भिंगारा (क)। वा। Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-कहाणगं २११ पंके जाते जले संवुड्ढे णोवलिप्पइ पंकरएणं नोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव दढपइण्णे वि दारए कामेहिं जाए भोगेहिं संवड्ढिए णोवलिप्पिहिति' 'कामरएणं णोवलिप्पिहिति भोगरएणं णोवलिप्पिहिति° मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं ॥ ८१२. से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहिं बुज्झिहिति, मुंडे' भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सति ॥ ८१३. से णं अणगारे भविस्सइ-इरियासमिए' 'भासासमिए एसणासमिए आयाणभंड-मत्त-णिक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिट्ठावणियासमिए मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी अममे अकिंचणे निरुवलेवे कंसपाईव मुक्कतोए, संखो इव निरंगणे, जीवो विव अप्पडिहयगइ, जच्चकणगं पिव जायस्वे, आदरिसफलगा इव पागडभावे, कुम्मो इव गुत्तिदिए, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवे, गगण मिव निरालंबणे, अणिलो इव निरालए, चंदो इव सोमलेसे, सूरो इव दित्ततेए, सागरो इव गंभीरे, विहग इव सव्वओ विप्पमुक्के, मंदरो इव अप्पकंपे, सारयसलिलं ब सुद्धहियए, खग्गविसाणं व एगजाए, भारुडपक्खी व अप्पमत्ते, कुंजरो इव सोंडीरे, वसभो इव जायत्थामे, सीहो इव दुद्धरिसे, वसुंधरा इव सव्वफासविसहे', सुहुयहुयासणे इव तेयसा जलते ॥ ८१४. तस्स णं भगवतो अणु नरेणं णाणेणं अणुत्तरेणं दंसणेणं अणुत्तरेणं चरित्तेणं अणुत्तरेणं आलएणं अणुत्तरेणं विहारेणं अणुत्तरेणं अज्जवेणं अणुत्तरेणं मद्दवेणं अणुत्तरेणं लाघवेणं अणुत्तराए खंतीए अणुत्तराए गुत्तीए अणुत्तराए मुत्तीए अणुत्तरेणं सव्वसंजमसुचरियतवफल'-णिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावमाणस्स अणंते अणुत्तरे कसिणे पडिपुण्णे णिरावरणे णिव्वाघाए केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जिहिति ॥ ८१५. तए णं से भगवं अरहा जिणे केवली भविस्सइ, सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स परियायं जाणिहिति, तं जहा-आगति गति ठिति चवणं 'उववायं तक्कं कडं मणोमाणसियं खइयं भुत्तं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्म, अरहा अरहस्सभागी तं कालं तं मणवयकायजोगे वट्रमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ ।। ८१६. तए णं दढपइण्णे केवली एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे बहूइं वासाइं केवलिपरियागं पाउणिहिति, पाउणित्ता अप्पणो आउसेसं आभोएत्ता, बहूई भत्ताई पच्चक्खाइस्सइ, बहइं भताई अणसणाए छेइस्सइ, जस्सट्राए कीरइ णग्गभावे मंडभावे केसलोए बंभचेरवासे अण्हाणगं अदंतमणगं अच्छत्तगं अणुवाहणगं भूमिसेज्जाओ फलहसेज्जाओ परघरपवेसो लद्धावलद्धाइं माणावमाणाइं परेसिं हीलणाओ निंदणाओ खिसणाओ तज्जणाओ ताडणाओ गरहणाओ उच्चावया विरूवरूवा बावीसं परीसहोवसग्गा गामकंटगा अहियासिज्जंति, तमळं आराहेहिइ, आराहित्ता चरिमेहिं उस्सास-निस्सासेहिं सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिनिव्वाहिति सव्वदुक्खाणमंतं करेहिति ॥ १. सं० पा०-णोवलिप्पिहिति मित्तणाइ । सच्चसंजमतवसुचरियसोवचियफल (प० ८१)। २. केवलं मुंडे (क, च, छ) । ५. उववायं तत्थं (घ); उववातत्थं (च); ३. सं० पा०-इरियासमिए जाव सुहुयहुयासणे। उववायतत्थं (छ)। ४. °सुचरियतवसुचरियपाल (क,ख,ग,घ,च,छ); ६. औपपातिके (सू० १५४) 'परेहि' पाठो लभ्यते । Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ रायपसेणइयं ८१७. सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति ।। णमो जिणाणं जियभयाणं । णमो सुयदेवयाए भगवतीए । णमो पण्णत्तीए भगवईए । णमो भगवओ अरहओ पासस्स । पस्से सुपस्से पस्सवणी णमो॥ प्रन्य-परिमाण अक्षर-परिमाण : ६३८६४ अनुष्टुप्-श्लोक-परिमाण : २६३४, अक्षर ६ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती उक्खेव पदं १. इह' खलु जिणमयं जिणाणुमयं जिणाणुलोम' जिणप्पणीतं जिणपरूवियं जिणक्खायं जिणाणचिण्णं जिणपण्णत्तं जिणदेसियं जिणपसत्थं अणुवीइ तं सद्दहमाणा तं पत्तियमाणा तं रोएमाणा' थेरा भगवंतो जीवाजीवाभिगमं णामज्झयणं पण्णवइंसु ॥ २. से किं तं जीवाजीवाभिगमे ? जीवाजीवाभिगमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-जीवाभिगमे य अजीवाभिगमे य ॥ अजीवाभिगम-पदं ३. से किं तं अजीवाभिगमे ? अजीवाभिगमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-रूविअजीवाभिगमे य अरूविअजीवाभिगमे य॥ ४. से किं तं अरूविअजीवाभिगमे ? अरूविअजीवाभिगमे दसविहे पण्णत्ते, तं जहाधम्मत्थिकाए "धम्मत्थिकायस्स देसे धम्मत्थिकायस्स पदेसा, अधम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकायस्स देसे अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, आगासत्थिकाए आगासत्थिकायस्स देसे आगासत्थिकायस्स पदेसा, अद्धासमए । सेत्तं' अरूविअजीवाभिगमे ॥ ५. से किं तं रूविअजीवाभिगमे ? रूविअजीवाभिगमे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहाखंधा खंधदेसा खंधप्पएसा परमाणुपोग्गला । ते समासओ पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा१. नमो उसभादियाणं चउवीसाए तित्थगराणं २. x (ख); जिणाणुलोमं जिणदिहियं (ता)। (क, ख, ग); नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं ३. जिणखायं (ख); जिणखातं जिणाणुभासियं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए (ता)। सव्वसाहूणं नमो उसभादियाणं चउवीसाए ४. अणुवीतियं (क, ख); अणुपुटवीए (ग, ट)। तित्थगराणं (ट); हारिभद्रीयवृत्ती मलयगिरि- ५. रोतमाणा (ता)। वृत्तौ च पाठान्तरे लिखितं सूत्रं नास्ति विवृ- ६. णाम अज्झयणं (ता)। तम्, ताडपत्रीयप्रतावपि एतत् नास्ति लिखितम्, ७. पण्णविसु (ख)। अतः प्रतीयते इदमस्ति अर्वाचीनम् । स्तबक- ८. सं० पा०-एवं जहा पण्णवणाए जाव सेत्तं । प्रतौ नमस्कारसूत्रमपि लिखितं दृश्यते । एतत् ६. सेतं (क, ख, ग, ता)। अर्वाचीनतरं संभाव्यते। २१५ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे वण्णपरिणया गंधपरिणया रसपरिणया फासपरिणया संठाणपरिणया । 'जे वण्णपरिणता ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - कालवण्णपरिणता नीलवण्णपरिणता लोहियवण्णपरिणता हालवण परिणता सुक्किलवण्णपरिणता । २१६ जे गंध परिणता ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सुब्भिगंधपरिणता य दुब्भिगंधपरिणता य । जे रसपरिणता ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - तित्तरसपरिणता कडुयरसपरिणता कसायरसपरिणता अंबिल रसपरिणता महुररसपरिणता । सरिता विहा पण्णत्ता, तं जहा - कक्खडफासपरिणता मउयफासपरिणता गरुयफासपरिणता लहुयफासपरिणता सीयफासपरिणता उसिणफासपरिणता निद्धफासपरिणता लक्खफासपरिणता । जेठाणपरिणता ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा -- परिमंडलसंठाणपरिणता वट्टसंठाणपरिणता तं संठाणपरिणता चउरंससंठाणपरिणता आयतसंठाणपरिणता " । एवं ते जहा पण्णवणाए । सेत्तं रूविअजीवाभिगमे । सेत्तं अजीवाभिगमे ॥ जीवाभिगम-पदं ६. से किं तं जीवाभिगमे ? जीवाभिगमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - संसारसमावण्णजीवाभिगमे' य असंसारसमावण्णजीवाभिगमे य ॥ ७. से किं तं असंसारसमावण्णजीवाभिगमे ? असंसारसमावण्णजीवाभिगमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - अणंतरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे य परंपरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे य ॥ ८. से किं तं अतरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे ? अणंतरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे पण्णरसविहे पण्णत्ते, तं जहा - तित्थसिद्धा' अतित्थसिद्धा तित्थगरसिद्धा अतित्थगर सिद्धा सबुद्धसिद्धा पत्तेयबुद्धसिद्धा बुद्धवोहियसिद्धा इत्थीलिंग सिद्धा पुरिसलिंगसिद्धा नपुंसकलिंग सिद्धा सलिंगसिद्धा अण्णलिंग सिद्धा गिहिलिंगसिद्धा एगसिद्धा' अणेगसिद्धा । सेत्तं अणंतरसिद्धा ॥ ६. से किं तं परंपरसिद्धा संसारस मावण्णजीवाभिगमे ? परंपरसिद्धा संसारसमावण्णजीवाभिगमे अगविहे पण्णत्ते, तं जहा - अपढमसमय सिद्धा - दुसमयसिद्धा जाव अनंतसमयसिद्धा । से त्तं परंपरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे । सेत्तं असंसारसमावण्णजीवाभिगमे ॥ १०. से किं तं संसारसमावण्णजीवाभिगमे ? संसारसमावण्णएसु णं जीवेसु इमाओ व पडिवत्तीओ एवमाहिज्जंति, तं जहा - १. एगे एवमाहंसु - दुविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता । २. एगे एवमाहंसु - तिविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता । ३. एगे एवमाहंसु - चउव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता । १. एतावान् पाठ: आदर्शेषु नास्ति, किन्तु प्रज्ञापनात : (१४) पूरितोस्ति । २. पण्ण० ११४-६ ३. समावण्णगजीवाभिगमे ( क, ख, ग, ट) सर्वत्र । ४. सं० पा० - तित्थसिद्धा जाव अणेगसिद्धा । Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती ४. एगे एवमाहंसु-पंचविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता। ५. “एगे एवमाहंसु-छव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्त।। ६. एगे एवमाहंसु-सत्तविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता । ७. एगे एवमाहंसु-अट्टविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता । ८. एगे एवमाहंसु-नवविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता। ६. एगे एवमाहंसु-दसविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ।। ११. तत्थ णं जेते' एवमाहंसु 'दुविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता' ते एवमाहंसु तं जहा-तसा चेव थावरा चेव ।। १२. से किं तं थावरा ? थावरा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया आउकाइया वणस्सइकाइया ॥ पुढविकाइय-पदं १३. से किं तं पुढविकाइया ? पुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सुहुमपुढविकाइया य बायरपुढविकाइया य ।। ____१४. से किं तं सुहुमपुढविकाइया ? सुहुमपुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहापज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। संगहणीगाहा सरीरोगाहण-संघयण'-संठाणकसाय तह य हुँति सण्णाओं। लेसिदिय-समुग्धाओ, सण्णी वेए य पज्जत्ती ॥१॥ दिट्ठी दंसणनाणे, जोगुवओगे तहा किमाहारे। उववाय-ठिई समुग्घाय-चवण-गइरागई चेव ॥२॥ १५. तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए तेयए कम्मए । १६. तेसि णं भंते ! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलासंखेज्जइभाग', उक्कोसेणवि अंगुलासंखेज्जइभागं ।। १७ तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरा किं संघयणा पण्णत्ता ? गोयमा ! छेवट्टसंघयणा पण्णत्ता ।। १८. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरा किं संठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! मसूरचंदसंठिया पण्णत्ता ।। १६. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति कसाया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा–कोहकसाए माणकसाए मायाकसाए लोहकसाए । १. सं० पा.-एएणं अभिलावेणं जाव दसविहा। ६. अंगुलस्स असं° (ट, ता) उभयत्रापि । २. जे (ग)। ७. छेवट्ठ (क, ख, ग, ट); सेवट्ट (ता)। ३. संघतण (ता)। ८. मसूरगचंद' (ट); मसुराचंदा (ता)। ४. सण्णातो (क)। ६. कोहकसाते (क)। ५. जोगुवतोगे (क)। १०. मायकसाए (ग)। Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ जीवाजीवाभिगमे २०. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सण्णाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चित्तारि सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आहारसण्णा' भयसण्णा मेहुणसण्णा परिग्गहसण्णा ॥ २१. तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ लेसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! तिण्णि' लेस्साओ पण्णत्ताओ तं जहा-कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा ।। २२. तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ इंदियाइं पण्णत्ताइं ? गोयमा ! एगे फासिदिए पण्णत्ते ॥ २३. तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ समुग्घाया पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ समुग्घाया पण्णत्ता, तं जहा-वेयणासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए । २४. ते णं भंते ! जीवा किं सण्णी असण्णी ? गोयमा ! नो सण्णी, असण्णी ।। २५. ते णं भंते ! जीवा कि इथिवेया पुरिसवेया णपसगवेया ? गोयमा ! णो इत्थिवेया णो पुरिसवेया, णपुंसगवेया॥ २६. तेसिणं भंते ! जीवाणं कइ पज्जत्तीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि पज्जत्तीओ पण्णत्ताओ, त जहा-आहारपज्जत्ती सरीरपज्जत्ती इंदियपज्जत्ती आणपाणपज्जत्ती ॥ २७. तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ अपज्जत्तीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! चत्तारि अपज्जत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आहारअपज्जत्ती जाव आणापाणुअपज्जत्ती॥ २८. ते णं भंते ! जीवा किं सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी ? गोयमा ! णो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्टी, नो सम्मामिच्छादिट्ठी ॥ २९. ते णं भंते ! जीवा किं चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी ओहिदसणी केवलदंसणी ? गोयमा ! नो चक्खुदंसणी, अचक्खुदंसणी, नो ओहिदसणी नो केवलदसणी॥ ३०. ते णं भंते ! जीवा किं नाणी अण्णाणी ? गोयमा ! नो नाणी, अण्णाणी, नियमा दूअण्णाणी, तं जहा-मइअण्णाणी सुयअण्णाणी य॥ ३१. ते णं भंते ! जीवा किं मणजोगी वइजोगी" कायजोगी ? गोयमा ! नो मणजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी। ३२. ते णं भंते ! जीवा कि सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता ? गोयमा ! सागारोवउत्तावि अणागारोवउत्तावि ।। ३३. ते णं भंते ! जीवा किमाहारमाहारेंति ? गोयमा ! दव्वओ अणंतपएसियाई दव्वाइं, खेत्तओ असंखेज्जपएसोगाढाई, कालओ अण्णयरसमयट्ठिइयाई, भावओ वण्णमंताई १. सं० पा०-आहारसण्णा जाव परिग्गहसण्णा। पज्जत्तीओ ४ पढमाओ। अपज्जत्तीओ वि २. तओ (क, ख)। एताए चउक्को। ३. किण्ह (ग, ट)। ७. आणपाण (ट)। ४. फासिदिते (क)। ८. सम्ममिच्छा (ग); सम्मामिच्छ (ट)। ५. ततो (ग)। ६. सुति (ता)। ६. २६, २७ सूत्रद्वयस्थाने 'ता' संकेतितादर्श १०. वय (ट)। इत्थं संक्षिप्तपाठोस्ति–तेसि णं भंते कति Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती २१९ गंधमंताई रसमंताई फासमंताई॥ ३४. जाई भावओ वण्णमंताई आहारेति ताई कि एगवण्णाइं आहारेंति ? दुवण्णाई आहारेंति ? तिवण्णाइं आहारति ? चउवण्णाइं आहारेति ? पंचवण्णाई आहारेति ? गोयमा ! ठाणमग्गणं पडुच्च एगवण्णाइंपि दुवण्णाइंपि तिवण्णाइंपि चउवण्णाइंपि पंचवण्णाइंपि आहारेति, विहाणमग्गणं पडुच्च कालाइंपि आहारेंति जाव सुक्किलाइंपि आहारेति ॥ ३५. जाई वण्णओ कालाई आहारेति ताई किं एगगुणकालाई आहारति जाव अणंतगुणकालाई आहारेति ? गोयमा ! एगगुणकालाइंपि आहारेंति जाव अणंतगुणकालाइंपि आहारेति । 'एवं जाव सुक्किलाई । ३६. जाई भावओ गंधमंताई आहारेति ताई कि एगगंधाइं आहारेंति ? दुगंधाई आहारेंति ? गोयमा ! ठाणमग्गणं पडुच्च एगगंधाइंपि आहारति दुगंधाइंपि आहारेंति, विहाणमग्गणं पडुच्च सुब्भिगंधाइंपि आहारेंति दुब्भिगंधाइंपि आहारेति ॥ ३७. जाई गंधओ सुब्भिगंधाइं आहारेति ताई कि एगगुणसुब्भिगंधाई आहारति जाव अणंतगुणसुन्भिगंधाइं आहारेंति ? गोयमा ! एगगुणसुब्भिगंधाइंपि आहारेंति जाव अणंतगुणसुब्भिगंधाइंपि आहारेति । एवं दुब्भिगंधाइंपि ॥ ३८. रसा जहा वण्णा ॥ ३६. जाइं भावओ फासमंताई आहारेति ताई कि एगफासाइं आहारेंति जाव अट्ठफासाइं आहारेंति ? गोयमा ! ठाणमग्गणं पडुच्च नो एगफासाइं आहारेति नो दुफासाई आहारेंति नो तिफासाइं आहरेंति, चउफासाइं आहारेंति पंचफासाइंपि जाव अट्ठफासाइंपि आहारेंति, विहाणमग्गणं पडुच्च कक्खडाइंपि आहारेंति जाव लुक्खाइपि आहारेति ।। ४०. जाइं फासओ कक्खडाइं आहारेति ताई कि एगगुणकक्खडाइं आहारेति जाव अणंतगुणकक्खडाइं आहारेंति ? गोयमा ! एगगुणकक्खडाइंपि आहारेति जाव अणंतगुणकक्खडाइंपि आहारेति । एवं जाव लुक्खा णेयव्वा ।। ४१. ताई भंते ! किं पुट्ठाई आहारेंति ? अपुट्ठाई आहारेंति ? गोयमा ! पुट्ठाई आहारेंति नो अपुट्ठाइं आहारेति ॥ ४२. ताई भंते ! किं ओगाढाइं आहारेंति ? अणोगाढाई आहारेंति ? गोयमा ! ओगाढाइं आहारेंति, नो अणोगाढाई आहारेति ॥ ४३. ताई भंते ! किमणंतरोगाढाइं आहारेंति ? परंपरोगाढाइं आहारेंति ? गोयमा ! अणंतरोगाढाइं आहारेंति, नो परंपरोगाढाइं आहारेति। ४४. ताई भंते ! किं अणूई आहारेंति ? बायराइं आहारेंति ? गोयमा ! अणूइंपि आहारेंति, बायराइंपि आहारेति ॥ १. कालाई पि (क, ख, ग, ट); कालवण्णाई दर्श एवं पाठ संक्षेपोस्ति-एवं गंधरसेसु वि। (पण्ण० २८७)। ४. 'ता' आदर्श अत्र पाठसंक्षेप:-विधाणमग्गणं २. एवं पंच वि वण्णा (ता)। कक्खडाइं सव्वाइं जाव अणंतगुणलुक्खाई। ३.३६,३७,३८ सूत्रत्रयस्य स्थाने 'ता' संकेतिता Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ४५. ताई भंते! किं उड्ढ आहारेंति ? अहे आहारेंति ? तिरियं आहारेंति ? गोयमा ! उड्ढपि आहारेंति, अहेवि आहारेंति, तिरियंपि आहारेंति ।। २२० ४६. ताई भंते ! कि आदि आहारेंति ? मज्झे आहारेंति ? पज्जवसाणे आहारेंति ? गोमा ! आदिपि आहारेंति, मज्झेवि आहारेंति, पज्जवसाणेवि आहारेंति । ४७. ताइं भंते! कि सविसए आहारेंति ? अविसए आहारेंति ? गोयमा ! सविसए आहारेंति, नो अविसए आहारेंति ।। ४८. ताई भंते! किं आणुपुव्वि आहारेंति ? अणाणुपुव्वि आहारेंति ? गोयमा ! आपुव्वि आहात, नो अणाणुपुव्वि आहारेति ॥ ४६. ताइं भंते ! कि तिदिसि आहारेंति ? चउदिसि आहारेंति ? पंचदिसि आहाति ? छद्दिस आहारेंति ? गोयमा ! निव्वाघाएणं छद्दिसं, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसि सिय चउदिसि सिय पंचदिसि ॥ ५०. ओसण्णकारणं' पडुच्च वण्णओ कालाई नीलाई जाव सुक्किलाई, गंधओ सुभगंधाई' दुब्भिगंधाई, रसओ 'तित्त जाव महुराई", फासओ कक्खड -मउय जाव निद्धलुखाई, सिपोराणे वण्णगुणे जाव फासगुणे विप्परिणामइत्ता परिपीलइत्ता परिसाडइत्ता परिविद्धंसत्ता अण्णे अपुव्वे वण्णगुणे गंधगुणे रसगुणे' फासगुणे उप्पाइत्ता' आयसरीरखेत्तोगाढे" पोगले सवप्पणयाए आहारमाहारेंति ॥ ५१. ते णं भंते! जीवा कओहितो उववज्जंति ? - किं नेरइएहितो उववज्जंति तिरिक्ख - मणुस्स- देवेहितो उववज्जंति ? गोयमा ! नो नेरइए हिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिहितो उववज्जंति, मणुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणियपज्जत्तापज्जत्ते हितो असंखेज्जवासाउयवज्जेहिंतो उववज्जंति, मणुस्सेहिंतो अकम्मभूमग-असंखेज्जवासाउयवज्जेहिंतो उववज्जंति, वक्कंतीउववाओ' भाणियव्वो ।। ५२. सिणं भंते! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं', उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं ॥ ५३. ते णं भंते! जीवा मारणंतियसमुग्धाएणं किं समोहया मरंति ? असमोहया मरंति ? गोयमा ! समोहयावि" मरंति, असमोहयावि मरति ॥ ५४. ते " णं भंते ! जीवा अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छति ? कहि उववज्जंति ? - किं नेरइएसु उववज्जंति ? तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति ? मणुस्सेसु उववज्जंति ? देवेसु उववज्जंति ? गोयमा ! नो नेरइएसु उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, १. उत्सन्न (क, ख ) । २. सुरभि (गट ) । ३. जाव तित्त महुराई ( ख, ग, ट) । ४ विपरिणामतित्ता ( क ) । ५. जाव (क, ख, ग, ट) । ६. ओघाता ( क ) । ७. आतसरी रतोगाढे (क, ख, ग, ट) । ८. पण ६।८२-८४ । ६. मुहुत्ते (ट) । १०. सम्मोहतावि ( क ) 1 ११. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'ता' आदर्श एवं पाठसंक्षेपोस्ति - तेणं भंते अनंतरं उब्ब गो जहा उववातो । Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती २२१ मणुस्सेसु उववज्जंति, णो देवेसु उववज्जति ।। ५५. जइ तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति किं एगिदिएस उववज्जति जाव पंचिदिएस उववज्जति ? गोयमा ! एगिदिएसु उववज्जति जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, असंखेज्जवासाउयवज्जेसु पज्जत्तापज्जत्तएसु उववज्जंति, मणुस्सेसु अकम्मभूमग-अंतरदीवगअसंखेज्जवासाउयवज्जेसु पज्जत्तापज्जत्तएस उववज्जति ॥ ५६. ते णं भंते ! जीवा कतिगतिया कतिआगतिया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता समणाउसो! से तं सुहुमपुढविकाइया ।। ५७. से किं तं बायरपुढविकाइया ? बायरपुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहासण्हबायरपुढविक्काइया य खरबायरपुढविक्काइया य॥ ५८. से किं तं सण्हबायरपुढविक्काइया? सण्हबायरपुढविक्काइया सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा-कण्हमत्तिया', भेओ' जहा पण्णवणाए जाव-ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । 'तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता । तत्थ णं जेते पज्जत्तगा, एतेसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसतसहस्साई। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति--जत्थ एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा । से तं खरबादरपुढविकाइया"॥ ५६. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए तेयए कम्मए, तं चेव सव्वं, णवरं- चत्तारि लेसाओ, अवसेसं जहा" सुहुमपुढविक्काइयाणं, आहारो' णियमा छद्दिसिं। उववाओ तिरिक्खजोणिय-मणुस्सदेवेहितो, देवेहिं जाव सोहम्मेसाणेहितो। ठिई जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं॥ ६०. ते णं भंते ! जीवा मारणंतियसमुग्घाएणं किं समोहया मरंति ? असमोहया मरंति ? गोयमा ! समोहयावि मरंति. असमोहयावि मरंति॥ ६१. ते णं भंते ! जीवा अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति ? कहिं उववज्जति ?-कि नेरइएसु उववज्जति ? पुच्छा। गोयमा नो नेरइएसु उववज्जति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति मणुस्सेसु उववज्जति, नो देवेसु उववज्जति 'तं चेव" जाव' असंखेज्जवासाउयवज्जेहिंतो उववज्जति ॥ ६२. ते णं भंते ! जीवा कतिगतिया कतिआगतिया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुगतिया तिआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता समणाउसो! से तं बायरपुढविक्काइया । से तं १. मट्टिया (क,ग,ट)। स्था वा सूरकते य ज्जाव तत्थ णिमा। २. भेतोसि (क,ख); ततो से (ग); भेउ से ४. जी० १६१६-२१ । (ट)। ५. जी. १२२२-५० । ३. असो चिन्हावितः पाठः प्रज्ञापना (१।२०) ६. आहारो जाव (क,ख,ग,ट)। सूत्राधारेण स्वीकृतोस्ति । प्रस्तुतसूत्रस्य मलय- ७. तधेव (क) तहेव (ख)। गिरीयवत्ती असो व्याख्यातोस्ति, 'ता' आदर्श ८. जी० ११५५ । अस्य संक्षेपो लभ्यते-खर बा फा पुढवी य Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ पुढविकाइया || आउकाइय-पदं ६३. से कि त आउक्काइया ? आउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- सुहुमआउक्काइया' य बायरआउक्काइया य । सुहुमआउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्ता य अपज्जत्ता य ॥ ६४. तेसि' णं भंते ! जीवाणं कइ सरीरया पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरया पण्णत्ता, तं जहा - ओरालिए तेयए कम्मए । जहेव सुहुमपुढविक्काइयाणं, णवरं - थिबुगसंठिया पण्णत्ता, सेसं तं चेव जाव' दुगइया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता । त्तं सुहुमआउक्काइया ॥ ६५. से किं तं बायरआउक्काइया ? बायरआउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - ओसा हिमे महिया करए हरतणुए सुद्धोदए सीतोदए उसिणोदए खारोदए खट्टोदए अंविलोदए लवणोदए वरुणोदए खीरोदए घओदए' खोतोदए रसोदए' जे यावणे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्ता य अपज्जत्ता य, तं चैव सव्वं, वरं - थिबुगसंठिया, चत्तारि लेसाओ, आहरो नियमा छद्दिसिं, उववाओ तिरिक्खजोणियमस्स-देवेहितो, ठिती जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्तवाससहस्साई, सेसं तं चैव जहा वायरपुढविकाइया जाव दुगतिया तिआगतिआ, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता समणाउसो ! सेत्तं बायरआउक्काइया । सेत्तं आउक्काइया ॥ वणस्स इकाइय-पदं ६६. से' किं तं वणस्सइकाइया ? वणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहासुहुमवणस्सइकाइयाय बायरवणस्सइकाइया य ॥ ६७. से किं तं सुहुमवणस्सइकाइया ? सुहुमवणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा — पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य तहेव, णवरं - अणित्थंथसंठिया, दुगतिया दुआगतिया, अपरित्ता अनंता, अवसेसं जहा पुढविक्काइयाणं । से तं सुहुमवणस्सइकाइया || ६८. से कि तं बायरवणस्सइकाइया ? बायरवणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पत्तेयसरी रबायरवणस्सइकाइया य साहारणसरीरबाय रवणस्सइकाइयाय ।। ६६. से" कि तं पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया ? पत्तेयसरी रबायरवणस्स इकाइया १. सुहम' (क ) । २. एतस्य सूत्रस्य स्थाने 'ता' आदर्श एवं पाठोस्ति - जहा सुहुमपुढवी तहा सव्वं णवरं थिबुगसंठितासरीरा । ३. जी० १।१६-५६ ४. एतस्य सूत्रस्य स्थाने 'ता' आदर्श एवं पाठोस्ति बादरआउक्काइया णं सत्तवाससहस्सा सेसं पुढविसरिसं । ५. सं० पा०- - हमे जाव जे । जीवाजीवाभिगमे ६. x ( मवृ ) । ७. जी० ११५६ - ६१ । ८. ६६,६७ सूत्रयोः स्थाने 'ता' आदर्श एवं पाठोस्ति - सुहुमवणस्सति णाणत्तं णाणासंठिता परित्ता अनंता । C. अनियतसंस्थानसंस्थितानि ( मवृ ) । १०. ६६-७२ सूत्रचतुष्टयस्य स्थाने 'ता' आदर्श एतावान् पाठोस्ति पत्तेय दुवालस जाव तिलसंकुलिया बहुएहि तिलेहि सेत्तं पत्तेयसरीरबाद Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती २२३ दुवालसविहा पण्णत्ता, तं जहा १. रुक्ख। २. गुच्छा ३. गुम्मा ४. लता य ५. वल्ली य ६. पव्वगा चेव । ७. तण ८. वलय ६. हरिय १०. ओसहि ११. जलरुह १२. कुहणा य बोधव्वा ॥१॥ ७०. से कि तं रुक्खा ? रुक्खा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–एगट्ठिया य बहुबीया य ।। ७१. से किं तं एगट्ठिया? एगट्टिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा निबंब जंबु कोसंब, साल अंकोल्ल पीलु सेलू य । जाव' पुण्णाग णागरुक्खे, सीवण्णि तहा असोगे य॥ जे यावण्णे तहप्पगारा । एतेसि णं मूलावि असंखेज्जजीविया, एवं कंदा खंधा तया साला पवाला । पत्ता पत्तेयजीवा । पुप्फाई अणेगजीवाइं । फला एगट्ठिया । सेत्तं एगट्ठिया । ७२. से किं तं बहुबीया ? बहुबीया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-अत्थिय-तेंदुयउंबर-कविठे आमलग-फणस-दाडिम-णग्गोह-काउंबरीय-तिलय-लउय-लोद्धे धवे। जे यावण्णे तहप्पगारा। एतेसिणं मलावि असंखेज्जजीविया जाव' फला बहबीयगा। सेत्तं बहबीयगा। सेत्तं रुक्खा। एवं जहा पण्णवणाए तहा भाणियव्वं, जाव' जे यावण्णे तहप्पगारा । सेत्तं कुहणा। नाणाविहसंठाणा, रुक्खाणं एगजीविया पत्ता । खंधोवि एगजीवो, ताल-सरल-नालिएरीणं ।।१।। 'जह सगलसरिसवाणं, सिलेसमिस्साण वट्टिया वट्टी। पत्तेयसरीराणं, तह होति सरीरसंघाया ॥२॥ जह वा तिलपप्पडिया, बहुएहिं तिलेहि संहिता संती। पत्तेयसरीराणं तह होंति सरीरसंघाया" ॥३॥ सेत्तं पत्तेयसरीरवायरवणस्सइकाइया । ७३. से किं तं साहारणसरीरबायरवणस्सइकाइया ? साहारणसरीरबायरवणस्सइकाइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-आलुए", मूलए, सिंगबेरे, हिरिलि, सिरिलि, सिस्सिरिलि, किट्ठिया, छिरिया, छीरविरालिया, कण्हकंदे, वज्जकंदे, सूरणकंदे, खेलूडे', भद्दमोत्था', पिंडहलिद्दा, लोही", णीहू थीहू"अस्सक ण्णी, सीहकण्णी सीउंढी, मुसंढी। जे रवण । मलयगिरिवृत्तौ च ७०-७२ सूत्रत्रयस्य ६. किट्टिका (मव)। स्थाने 'एवं भेदो भाणियव्वो जहा पण्णवणाए ७. छिरविरालिया (क); छिरिविरालिया जह वा तिलसंकुलिया' इति पाठो व्याख्या (ख); छिरियविरालिया (ग,ट); छीरतोस्ति । विराली (ता)। १. पण्ण° ११३५। ८. खल्लूडो (क); खल्लूडे (ट); खेल्लड २. जी. ११७१। (ता)। ३. पण्ण ११३७-४७॥ ६. किमिरासि भद्द (क,ख,ग,ट)। ४. जह सगलसरिसवाणं पत्तेयसरीराणं गाहा २। १०. लोहीरी (क,ग); लोहरी (ट)। ___ जह वा तिलसक्कुलिया गाहा ३ (क,ख,ग)। ११. थिभु (क); थीहू धुहा (ता)। ५. तुलना--भग० ७१६६; उत्त० ३६।६७-६६ । Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ जीवाजीवाभिगमे यावण्णे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पप्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य'। 'तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता । तत्थ णं जेते पज्जत्तगा तेसिं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाइं, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसयसहस्साइं। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमति-जत्थ एगो तत्थ सिय संखेज्जा, सिय असंखेज्जा, सिय अणंता॥ ७४. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-'ओरालिए तेयए कम्मए", तहेव जहा बायरपुढविकाइयाणं, णवरंसरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्ज इभाग, उक्कोसेणं सातिरेग जोयणसहस्सं, सरीरंगा अणित्थंथसंठिया, ठिती जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दसवाससहस्साइं जाव दुगइया तिआगइया, अपरित्ता' अणंता पण्णत्ता। सेत्तं बायरवणस्सइकाइया। ‘सेत्तं वणस्सइकाइया"। सेत्तं थावरा ।। ७५. से किं तं तसा ? तसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहां-तेउक्काइया वाउक्काइया ओराला तसा ।। तेउकाइय-पदं ७६. से किं तं तेउक्काइया? तेउवकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सुहुमतेउक्काइया य वायरतेउक्काइया य॥ ७७. से किं तं सुहमतेउवकाइया ? सुहुमतेउवकाइया जहा सुहुमपुढविवकाइया, नवरं - सरीरगा सूइकलावसंठिया, एगगइया दुआगइया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता, सेसं तं चेव । सेत्तं सुहुमतेउक्काइया ॥ ७८. से कि तं बादरतेउक्काइया? बादरतेउवकाइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा -इंगाले 'जाला मुम्मुरे अच्ची अलाए सुद्धागणी उक्का विज्जू असणी णिग्याए संघरिस१. अतोग्रे 'ता' प्रती एवं पाठसंक्षेपो विद्यते-- ७. सूयि (क,ता)। णाणत्तं णाणासंठिता ठिति दससहस्सा ओगाहणा सातिरेगं जोयणसहस्सं अपरित्ता ६. प्रस्तुतालापके 'ता' प्रती पाठसंक्षेपो विद्यतेअणंता जाव सेत्तं थावरा। बादरतेउभेदो णाणत्तं ठिति तिण्णि राति२. प्रयुक्तादर्शेषु चिन्हाङ्कितपाठस्य संकेतो नास्ति। स्ति। दियाओ। मलयगिरीयवृत्ती 'जाव सिय संखेज्जा' इति । १०. सं० पा०-प्रयुक्तादर्शेषु पाठसंक्षेपः एवमस्तिसंक्षिप्तपाठमादत्य 'जाव' पदस्य पूतिनिदिष्टा इंगाले जाले (जाला-ख) मुम्मुरे जाव सूरकंतस्ति । मणिनिस्सिए, जे यावन्ने तप्पगारा ते समासओ ३. ओरालिते तेयते कम्मते (क)। दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्ज४. परित्ता (ग,ट)। तगा य। मलयगिरीयवृत्तौ पाठसंक्षेपस्य ५. ४ (क,ख,ग)। पद्धतिभिन्नास्ति-इंगाले जाव तत्थ नियमा। ६. तसा पाणा (क ख,ग,ट); हारिभद्रीय-मलय अस्य आधारेणैव प्रज्ञापनामनुसृत्य पाठः पूरिगिरीयवृत्त्योरपि पाणा' इति पदं व्याख्यातं तोस्ति । नास्ति। Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती २२५ समुट्टिए सूरकं तमणिणिस्सिए । जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता । तत्थ णं जेते पज्जत्तगा, एएसि णं दण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाई जोणिप्पमुहसयसहस्साइं । पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति—- जत्थ एगो तत्थ यिमा असंखेज्जा ॥ ७६. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरंगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा - ओरालिए तेयए कम्मए । सेस' तं चेव । सरीरगा सूइकलावसंठिया । तिणि लेस्सा | ठिती जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिणि राइंदियाइं । तिरियमणुसेहिंतो उववाओ | सेसं तं चेव जाव एगगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता । सेत्तं बादर उक्काइया । सेत्तं तेउक्काइया ॥ वाउकाइय-पदं ८०. से' किं तं वाउक्काइया ? वाउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा - सुहुमवावकाइयाय वायरवा उक्काइया य । सुहुमवाउक्काइया जहा तेउवकाइया, णवरंसरीरगा पडागसंठिया । एगगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखिज्जा । सेत्तं सुहुमवाउक्काइया ॥ ८१. से कि तं बादरवाउक्काइया ? बादरवाउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा --पाईणवाते पडीणवाते" दाहिणवाए उदीणवाए उड्ढवाए अहोवाए तिरियवाए विदिसीवाए वाउ भामे वाउकलिया वायमंडलिया उक्कलियावाए मंडलियावाए गुंजावाए झंझावाए संवट्टगवाए घणवाए तणुवाए सुद्धवाए। जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता । तत्थ णं जेते पज्जत्तगा, एतेसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाई जोणिप्पमुहसय सहस्साइं । पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति - जत्थ एगो तत्थ नियमा असंखेज्जा | ८२. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा ओरालिए वेउब्विए तेयए कम्मए । सरीरगा पडागसंठिया । चत्तारि समुग्धाया—वेयणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतियसमुग्धाए वेउव्वियसमुग्धाए । आहारो णिव्वाघाणं छद्दिसि, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसि सिय चउदिसि सिय पंचदिसि । १. जी० १।७७ । २. प्रस्तुतालापकेषु 'ता' प्रतौ पाठसंक्षेपो विद्यते— सुहुमवाउ जहा सुहुमतेउ णाणत्तं पडागसं आहारो णिव्वाघातेणं ६ वाघा सिय ३-६ । बादरवाउभेदो णाणत्तं एवं चेव द्विती सह उ णिव्वाघातेणं ६ वाघातं य ३-६ ना सरीरगा ४ समुग्धाता वि४ । ३. जी० १।७७ । ४. पातीणवाते ( क ) 1 ५. अतो आदर्शेषु पाठसंक्षेपोस्ति । मलयगिरिणा 'बादरवारकाइया वि एवं चेव नवरं भेदो जहा पण्णवणार' इति पाठानुसारिव्याख्या कृतास्ति तथा पूर्णपाठोपि तत्र उल्लिखितः । अस्माभिः समूले स्वीकृत: । ६. अतोनन्तरं १।१६,१७ सूत्रयोः सूचकं 'सेसं तं चेव' इति पाठो युज्यते । Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ जीवाजीवाभिगमे उववाओ देवमणुयनेरइएसु' णत्थि। ठिती जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि वाससहस्साई । सेसं तं चेव एगगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता समणाउसो! सेत्तं बायरवाउक्काइया । सेत्तं वाउक्काइया ।। ८३. से किं तं ओराला तसा' ? ओराला तसा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहाबेइंदिया तेइंदिया चरिंदिया पंचेंदिया । बेडंदिय-पदं ८४. से किं तं बेइंदिया ? बेइंदिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा---पुलाकिमिया जाव' समुद्दलिक्खा, जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-- पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य॥ ८५. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा । तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए तेयए कम्मए । ८६. तेसि णं भंते ! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं अंगुलासंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं बारसजोयणाई, छेवट्टसंघयणा', हुंडसंठिया, चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णाओ, तिण्णि लेसाओ, दो इंदिया, तओ समुग्घाया-वेयणा कसाया मारणंतिया, नोसण्णी असण्णी, णपुंसगवेयगा, पंच पज्जत्तीओ, पंच अपज्जत्तीओ, सम्मद्दिट्ठीवि मिच्छादिट्ठीवि, नो सम्मामिच्छादिट्टी, णो चक्खुदंसणी, अचक्खुदंसणी, णो ओहिदसणी, णो केवलदसणी॥ ८७. ते णं भंते! जीवा कि णाणी ? अण्णाणी ? गोयमा! णाणीवि अण्णाणीवि। जे णाणी ते नियमा दुण्णाणी, तं जहा--आभिणिबोहियणाणी य सुयणाणी य । जे अण्णाणी ते नियमा दुअण्णाणी-मइअण्णाणी य सुयअण्णाणी य। नो मणजोगी, वइजोगी कायजोगी। सागारोव उत्तावि अणागारोवउत्तावि । आहारो नियमा छद्दिसि । उववाओ 'तिरियमणुस्सेसु नेरइयदेवअसंखेज्जवासाउयवज्जेसु"। ठिती जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस १. ५१ सूत्रे ‘जीवा कओहिंतो उववज्जति ?' ६. 'ता' प्रतौ भिन्ना पाठरचना दृश्यते-कसा ४ इति आगमनात्मक उपपातः सूचितोस्ति । ५४ सण्णा ४ लेस्सा ३ इंदि २ समुद्घाता ३ असण्णि सूत्रे 'जीवा अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति ?' णपुंसवेदा पज्जत्ति ना ट्ठीती वास १२ सम्मइति उद्वर्तनानन्तरं जायमान उपपातः सूचितः । हिदी वि मिच्छा णो सम्मामि णाणीवि अण्णाणी पूर्वसंकेते पंचमी विभक्तिः तथा द्वितीयसंकेते वि दो वे णियमा णो मण वइजोगी विकायसप्तमीविभक्तिः संगतास्ति । अत्र पूर्वसंकेतः जोगी वि सागारो अणागा किमाहारमाहारेति नास्ति उल्लिखितः केवलं द्वितीय एव । जहा बादरपुढवीणं उववातो णिरयदेवअसंखेतत्रापि व्यतिक्रमोस्ति । अयं पाठः स्थितिपाठस्य ज्जाउअवज्जो दुआगतिया दुगतिया परित्ता पश्चाद् उपयुक्तोस्ति । . असंखे । २. तसा पाणा (क, ख, ग, ट)। ७. इदं आगमनात्मकोपपातसूत्रमस्ति, तेनात्र ३. पण्ण० २४६ । पञ्चमी विभक्तियुज्यते । अत्र लिपिप्रमादात् . ४. ओगाहणा (क, ख, ग)। अथवा संक्षिप्तीकरणप्रमादात् विभक्तेविपर्ययो ५. सेवट्ट (क); सेवट्टसंघतणि (ख, ग, ट, ता)। जातः । वृत्ती व्याख्यातः पाठः समीचीनोस्ति Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती २२७ संवच्छराणि । समोहयावि मरंति असमोहयावि मरंति। कहिं गच्छति ? नेरइयदेवअसंखेज्जवासाउयवज्जेसु गच्छंति । दुगइया दुआगइया, परित्ता असंखेज्जा । सेत्तं बेइंदिया । तेइंदिय-पदं ____८८. से' किं तं तेइंदिया ? तेइंदिया अणेगविहा पण्णत्ता', तं जहा-ओवइया' रोहिणिया जाव हत्थिसोंडा, जे यावण्णे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा –पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । तहेव जहा बेइंदियाणं, णवरं सरीरोगाहणा उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाइं, तिण्णि इंदिया, ठिती जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एगणपण्णराईदियाइं, सेसं तहेव दुगइया दुआगइया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता । से तं तेइंदिया । चरिदिय-पदं ___ ८६. से' किं तं चरिदिया ? चरिदिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-अंधिया पोत्तिया जाव गोमयकीडा, जे यावण्णे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा --पज्जत्तगा य अपज्जगा य॥ ६०. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरगा पण्णत्ता तं चेव णवरं--सरीरोगाहणा उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई, इंदियाइं चत्तारि, चक्खदंसणी अचक्खुदंसणी', ठिई उक्कोसेणं छम्मासा। सेसं जहा तेइंदियाणं जाव असंखेज्जा पण्णत्ता। से तं चरिदिया । ___६१. से किं तं पंचेंदिया ? पंचेदिया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-णेरइया तिरिक्खजोणिया मणुस्सा देवा ॥ नेरइय-पदं १२. से किं तं नेरइया ? नेरइया सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा-रयणप्पभापूढविनेरइया जाव" अहेसत्तमपुढविनेरइया" । ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा या॥ ६३. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरगा 'उपपातो देवनारकासङ्ख्यातवर्षायुष्कवर्जेभ्य: ३. उवइया (क, ट); वेयविया (ख); उव्वशेषतिर्यग्मनुष्येभ्यः' । प्राकृतव्याकरण १११३६ विया (ग)। 'पञ्चम्यास्तृतीया च' इति पञ्चमीस्थाने ४. पण्ण० ११५० ।। सप्तमी विभक्तिरपि जायते। यदि एवं स्वी- ५. प्रस्तुतालापकस्य 'ता' प्रती पाठसंक्षेपो विद्यते क्रियतेः ? तदा नास्ति लिपिप्रमादः, किन्तु -चरिदिया वि एवं चेव जाव नव जाती सूत्रकारेणापि केषुचिच्च सप्तम्याः प्रयोगः कुल ते चेव ओगाहणा ४ ठिति मासा ६ । कृतः। ६. पुत्तिया (ख, ग, ट)। १. प्रस्तुतालापकस्य 'ता' प्रती पाठसंक्षेपो विद्यते- ७. पण्ण० ११५१ । तेंदिया वि एवं चेव णाणत्तं गाउता ३ ८. °णीवि (क, ग)। अउणपण्ण रातिदिया द्विती इंदिया ३ । ६. णीवि (क, ग)। २. मलयगिरिवत्ती अतोने 'भेदो जहा पण्णवणाए' १०. पण्ण० ११५३ । इति पाठो व्याख्यातोस्ति । ११. तमतमपुढवी (ग); तमतमापुढवी (ट)। Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ पण्णत्ता, तं जहा - वेउव्विए तेयए कम्मए ॥ ६४. सिणं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा सरीरोगाहणा पण्णत्ता, तं जहा - भवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्विया य । तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहणणेणं 'अंगुलस्स असंखेज्जइभागं", उक्कोसेणं पंचधणुसयाई । तत्थ जासा उत्तरवेव्विया सा जहणणेणं 'अंगुलस्स संखेज्जइभागं” उक्कोसेणं धणुसहस्सं ॥ ६५. तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरा किसंघयणी पण्णत्ता ? गोयमा ! छण्हं संघयगाणं' असंघयणी - वट्टी णेव छिरा णेव ण्हारू व संघयणमत्थि । जे पोग्गला अणिट्ठा अकंता अप्पिया असुभा अमणुण्णा अमणामा ते तेसि संघात त्ताए ' परिणमति ॥ ६६. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरा किंसंठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - भवध रणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते इंडसंठिया । तत्थ णं जेते उत्तरवे उव्विया तेवि हुंडसंठिया पण्णत्ता । चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णाओ, तिणि लेसाओ, पंचइंदिया, चत्तारि समुग्धाया आइल्ला, सण्णीवि, असण्णीवि, नपुंसगवेया", 'छप्पज्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ', ' तिविहा दिट्ठी, तिणि दंसणा णाणीवि अण्णाणीवि, जे ाणी ते नियमातिणाणी, तं जहा - आभिणिवोहियणाणी सुयणाणी ओहिनाणी । जे अण्णाणी ते अत्थेगइया दुअण्णाणी अत्थेगइया तिअण्णाणी, जे य दुअण्णाणी ते नियमा म अण्णाणी सुयअण्णाणी य, जे तिअण्णाणी ते नियमा मइअण्णाणी य सुयअण्णाणी य विभंगणाणी य, तिविहे जोगे, दुविहे उवओगे, छद्दिस आहारो, ओसण्णकारणं' पडुच्च वण्णओ कालाई जाव" सव्वप्पणयाए आहारमाहारेंति, उववाओ तिरियमणुस्सेसु", ठिती जहणेणं दसवास सहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई, दुविहा मरंति, उब्वट्टणा भाणियव्वा जओ आगया, णवरि संमुच्छिमेसु " पडिसेहो, दुगइया दुआगइया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता समणाउसो ! से तं नेरइया || तिरिक्खजोणिय-पदं ६७. से किं तं पंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? पंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - संमुच्छिम पंचेंदियतिरिक्खजोणिया य गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य ॥ ६८. से किं तं समुच्छिम पंचेंदियतिरिक्खजोगिया ? संमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - जलयरा थलयरा खहयरा ॥ १. अंगुलअसंखेज्जइभागं (क, ख, ट, ता, वृ); अंगुलअसंखेज्जोभागो (ग) । २. अंगुलअसंखेज्जइभागं ( मवृ ) | ३. संघतणाणं ( ग ) । ४. असंघतणी ( ख, ग, ता) । ५. संघतणत्ताए (ता) । ६. पंचेंदिया ( ख, ग, ट ) । ७. वेदका (क, ख, ग ) ; वेदगा ( ट ) | 5. पर्याप्तिद्वारे पञ्चपर्याप्तयः पञ्चापर्याप्तयः जीवाजीवाभिगमे (मवृ) । 8. ओसन्नं कारणं (ग, ट) । १०. पण्ण० २८।२० । ११. अत्र पञ्चमी स्थाने सप्तमी । वृत्तिः - उपपातो यथा व्युत्क्रान्तिपदे प्रज्ञापनायां तथा वक्तव्यः, पर्याप्त पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्मनुष्येभ्योऽसङ्ख्यातवर्षायुष्कवर्जेभ्यो वक्तव्यः । १२. संमुच्छितेसु ( ग ) । Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती २२६ ६६. से' किं तं जलयरा ? जलयरा पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-मच्छगा कच्छभा मगरा गाहा सुंसुमारा॥ १००. से किं तं मच्छा ? एवं जहा पण्णवणाए जाव' जे यावण्णे तहप्पगारा', ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य ॥ १०१. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए तेयए कम्मए । सरीरोगाहणा जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं, छेवट्टसंघयणी', हुंडसंठिया, चत्तारि कसाया, सण्णाओवि, लेसाओ तिण्णि, इंदिया पंच, समग्घाया तिण्णि, णो सण्णी असण्णी, णसगवेया, पज्जत्तीओ अपज्जत्तीओ य पंच, दो दिट्ठीओ, दो दंसणा, दो नाणा, दो अण्णाणा, दुविहे जोगे, दुविहे उवओगे, आहारो छद्दिसिं, उववाओ तिरियमणुस्सेहितो, नो देवेहितो नो नेरइएहितो, तिरिएहितो असंखेज्जवासाउयवज्जेहितो, 'अकम्मभूमगअंतरदीवगअसंखेज्जवासाउयवज्जेसु मणुस्सेसु,' ठिती जहण्णेणं अंतोमु हुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी। मारणंतियसमुग्घाएणं दुविहावि मरंति, अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं ? नेरइएसुवि तिरिक्खजोणिएसुवि मणुस्सेसुवि देवेसुवि, नेरइएसु रयणप्पहाए, सेसेसु पडिसेहो । तिरिएसु सव्वेसु उववज्जति संखेज्जवासाउएसुवि असंखेज्जवासाउएसुवि च उप्पएसु पक्खीसुवि । मणुस्सेसु सव्वेसु कम्मभूमिएसु, नो अकम्मभूमिएसु, अंतरदीवएसुवि संखेज्जवासाउएसुवि असंखेज्जवासाउएसुवि पज्जत्तएसुवि अपज्जत्तएसूवि । देवेसु जाव वाणमंतरा, चउगइया दुआगइया', परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता। से तं जलयरसमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया । १०२. से कि तं थलयरसमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? थलयरसमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-चउप्पयथलयरसंमच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया परिसप्पसंमुच्छिमपंचेदियतिरिक्खजोणिया॥ १०३. से किं तं चउप्पयथलयरसमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? चउप्पयथलयरसंमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-एगखुरा दुखुरा 'गंडी१. प्रस्तुतालापकस्य 'ता' प्रतौ पाठसंक्षेपो विद्यते- जल । से किं तं जज भेदो जाव सुंसुमारा एगागारा २. पण्ण० ११५६-६०। पण्णत्ता ते समासतो तं पज्ज अपज्ज तेसि णं ३. तहप्पकारा (क, ख, ग, ट)। भंते कति सरीरा ३ ओगाहा आहारे य जधा ४. सेवट्ट (क, ख, ग)। बेइंदियाणं उववातो जधा पुढ णवरं देवा ण ५. अत्र आदर्शेष मिश्रितः पाठो वर्तते-पूर्वः पाठः उववज्जति ठिती पुवकोडी समोहता वि मर पञ्चम्यन्तः उत्तरवर्ती च सप्तम्यन्तः वृत्ती एवं जस कहिं गच्छं कि णेरइओ चतुसुवि जति व्याख्यातोस्ति-उपपातो यथा व्युत्क्रान्तिपदे णेरइ कि रयण यातो रयणप्प णो सक्कर जाव तथा वक्तव्यः, तिर्यग्मनुष्येभ्योऽसङ्ख्यातवर्षाणो अधेसत्तमा पुढवीणेरइएसु उवव तिरिक्ख- युष्कवर्जेभ्यो वाच्यः, द्रष्टव्यं जीवा० श८७ मणुय देवेसु मणुस्सेसु अंतरदीवेसु उव देवेसु सूत्रस्य पादटिप्पणम् । जाव वाणसंतोसुउव णो जोति णो वेमा दुआग- ६. दुयागतिया (ग)। तिया चतुगतिया परित्ता असंखे समणाउसो सेतं ७. संमूच्छिमजलचर (मवृ) । Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० जीवाजीवाभिगमे पया सणप्फया" जाव' जे यावण्णे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । 'तओ सरीरगा, ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं', ठिती जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं चउरासीइवास सहरसाई, सेसं जहा जलयराणं जाव चउगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता" । सेत्तं चउप्पयथलयरसंमुच्छिम पंचेंदियतिरिक्खजोणिया || १०४. से किं तं थलयरपरिसप्पसंमुच्छिमा ? थलयरपरिसप्प संमुच्छिमा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - उरपरिसप्पसंमुच्छिमा' भुयपरिसप्प समुच्छिमा ॥ १०५. से किं तं उरपरिसप्प संमुच्छिमा ? उरपरिसप्प संमुच्छिमा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - अही अयगरा आसालिया महोरगा ॥ १०६. से किं तं अही ? अही दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - दव्वीकरा य मउलिणो य ॥ १०७. से किं तं दव्वीकरा ? दव्वीकरा अणेगविहा पण्णत्ता, तंजहा - आसीविसा जावसेत्तं दव्वीकरा ॥ १०८. से किं तं मउलिणो ? मउलिणो अणेगविहा पण्णत्ता, तंजहा - दिव्वा गोणसा जाव से तं मउलिणो । सेत्तं अही ॥ १०६. से किं तं अयगरा ? अयगरा एगागारा पण्णत्ता । से तं अयगरा ॥ ११०. . से किं तं आसालिया ? आसालिया जहा पण्णवणाए । से तं आसालिया ॥ १११. से किं तं महोरगा ? महोरगा जहा ' पण्णवणाए । से तं महोरगा । जे यावणे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य, तं चेव, वरि - सरीरोगाहणा जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उवकोसेणं जोयणपुहत्तं । ठिती जहणणं अंतमुत्तं, उक्कोसेणं तेवण्णं वाससहस्साई, सेसं जहा जलयराणं जाव चउगतिया आगतिया, परित्ता असंखेज्जा | से तं उरपरिसप्पा" ॥ ११२. से किं तं भुयपरिसप्प संमुच्छिमथलय रा" ? भुयपरिसप्पसंमुच्छिमथलयरा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - गोहा " पउला जाव" जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं । ठिती" उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साई, सेसं जहा जलयराणं जाव" चउगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता । से तं भुयपरिसप्प - १. गंडीपता सण पता ( ग ) । २. पण्ण० १।६३-६६ । ३. पुहुत्तं (क, ट ); 'पहुतं ( ग ) । ४. तेसि णं भंते कति सरीराओ जहा जलचर संमुच्छिमा तहेव णाणत्तं ओगाहा गाउतवुधत्तं द्विती चउरासीति वाससह ( ता ) | ५. उरग° (ग, ट) । ६. पण्ण० १।७० । ७. पण्ण० १।७१ । ८. पण० १।७३ । ६. पण्ण० १।७४ । १०. उरग° (ख, ग, ट) । ११. भुयग (ग, ट ) । १२. गाहा ( ग ) । १३. पण्ण० १।७५ । १४. स्थितिर्जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तम् (मवृ) । १५. जी० १।१०१ । Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती संमुच्छिमा । सेतं थलयरा ॥ ११३. से किं तं खयरा ? खहयरा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा ' - चम्पक्खी लोमपक्खी समुग्गपक्खी विततपक्खी ॥ ११४. से किं तं चम्पक्खी ? चम्मपक्खी अणेगविहा पण्णत्ता, जाव' जे यावणे तपगारा । से तं चम्मपक्खी ॥ ११५. से किं तं लोमपक्खी ? लोमपक्खी अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा -- ढंका जाव जे यावणे तपगारा । से तं लोमपक्खी || ११६. से किं तं समुग्गपक्खी ? समुग्गपक्खी एगागारा पण्णत्ता जहा पण्णवणाए । एवं विततपक्खी जाव' जे यावण्णे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहापज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य, णाणत्तं सरीरोगाहणा' जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं । ठिती उक्कोसेणं बावर्त्तारि वाससहस्साई, सेसं जहा जलयराणं जाव' चउगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता । से तं खहयरसंमुच्छिम तिरिक्खजोया । सेतं समुच्छिमपंचेंदियतिरिक्ख जोणिया || ११७. से किं तं गब्भवक्कतियपंचें दियतिरिक्खजोणिया ? गब्भवक्कतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा- जलयरा थलयरा खहयरा ॥ ११८. से किं तं जलयरा ? जलयरा पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा --मच्छा कच्छभा मगरा गाहा सुंसुमारा । सव्वेसि भेदो भाणियव्वो तहेव जहा पण्णवणाए जाव' जे यावणे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य ॥ १. अतोग्रे 'ते समासओ' इति पर्यन्तः पाठः मलयगिरिणा 'भेदो जहा पण्णवणाए' इति संक्षिप्तरूपेण स्वीकृत्य व्याख्यातः । ११६. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा - ओरालिए वेउव्विए तेयए कम्मए । सरीरोगाहणा जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं, छव्विहसंघयणी पण्णत्ता, तं जहा - वइरोसभनारायसंघयणी उसभनारायसंघयणी नारायसंघयणी अद्धनारायसंघयणी कीलियासंघयणी छेवट्टसंघयणी । छविहसंठिया" पण्णत्ता, तं जहा -- समचउरंससंठिया णग्गोहपरिमंडले साति खुज्जे वामणे हुंडे, 'चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णाओ, छ लेस्साओ", पंच इंदिया, २. पण्ण० १।७७ । ३. पण्ण० १।७८ । ४. पण्ण० १७६ 1 २३१ ५. पण्ण० १५० । ६. तथा चात्र क्वचित्पुस्तकान्तरेऽवगाहनास्थित्योर्यथाक्रमं सङ्ग्रहणिगाथे— तं जहा - वग्गुली जय सहस्सगाउयपुहुत्त तत्तो य जोयणपुहत्तं । दोपि धत्तं संमुच्छिम वियगपक्खीणं ॥ १॥ संमुच्छ पुव्वकोडी चउरासीई भवे सहस्साइं । तेवण्णा बायाला बावत्तरिमेव पक्खीणं ||२|| ७. ठिती जहणेणं अंतोमुहुत्तं ( ट ) । ८. जी० १११०१ । ६. पण्ण० ११५६-६० । १०. सेवट्ट (क, ग, ट) | ११. कि संठिता (ता) । १२. कसा ४, सण्णा ४, लेस्सा ६ ( क, ख, ग, ट, ता) । Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ जीवाजीवाभिगमे पंच समुग्घाया आइल्ला, सण्णी नो असण्णी, तिविहवेया', छपज्जत्तीओ छअपज्जत्तीओ, दिट्ठी तिविहावि, तिण्णि दंसणा, णाणीवि अण्णाणीवि-जे णाणी ते अत्थेगइया दुण्णाणी अत्थेगइया तिण्णाणी', जे दुण्णाणी ते नियमा आभिणिबोहियणाणी य सुयणाणी य, जे तिण्णाणी ते नियमा आभिणिवोहियणाणी सुयणाणी ओहिणाणी य, एवं अण्णाणीवि, जोगे तिविहे, उवओगे दुविहे, 'आहारो छद्दिसिं", 'उववाओ नेरइएहिं जाव' अहेसत्तमा, तिरिक्खजोणिएसु सव्वेसु असंखेज्जवासाउयवज्जेसु, मणुस्सेसु अकम्मभूमग-अंतरदीवगअसंखेज्जवासाउयवज्जेसु, देवेसु जाव सहस्सारो', ठिती जहण्णणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी, दुविहावि मरंति, अणंतरं उव्वट्टित्ता ‘नेरइएसु जाव अहेसत्तमा, तिरिक्खजोणिएसु, मणुस्सेसु सव्वेसु, देवेसु जाव सहस्सारो'", च उगतिया चउआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता । से तं जलयरा ॥ १२०. से किं तं थलयरा ? थलयरा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-च उप्पया य परिसप्पा य ॥ १२१.से कि तं चउप्पया? चउप्पया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा---एगखरा सो चेव भेदो जाव जे यावण्णे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जतगा य अपज्जत्तगा य । चत्तारि सरीरा, ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्ज इभागं, उक्कोसेणं छ गाउयाइं, ठिती जहण्णणं अंतोम हुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं, णवरं-उव्वट्टित्ता नेरइएस चउत्थपुढवि ताव गच्छंति, सेसं जहा जलयराणं जाव चउगतिया चउआगतिया, परित्ता असंखिज्जा पण्णत्ता । से तं चउप्पया ॥ १२२. से किं तं परिसप्पा ? परिसप्पा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-उरपरिसप्पा य भयपरिसप्पा य॥ १२३. से किं तं उरपरिसप्पा ? उरपरिसप्पा तहेव आसालियवज्जो भेदो भाणियव्वो। सरीरा चत्तारि । ओगाहणा जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्ज इभाग, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । ठिती जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी, उव्वट्टित्ता नेरइएसु जाव पंचम पुढविं ताव गच्छंति, तिरिक्खमणुस्सेसु सव्वेसु, देवेसु जाव सहस्सारो, सेसं जहा जलयराणं जाव च उगतिया चउआगतिया, परिता असंखेज्जा । से तं उरपरिसप्पा ॥ १. तिविहा वेता वि (क); तिविह वेता (ख); ८. जी० १।१०३; स्थल चरगर्भव्युत्क्रान्तिकानां तिविधा वेदादि (ट); त्रिविधवेदापि (म)। भेदोपदर्शक सूत्रं यथा समूच्छिमस्थलचराणां २. तिणाणि (क, ख)। (मवृ)। ३. आधारो जधा बेदियाणं (ता)। ६. जी०१।१०५-१०६, १११, नवरमत्रासालिका ४. अत्र केष चित्पदेषु पञ्चमी केषचिच्च पञ्च- न वक्तव्या, सा हि संमूच्छिमैव न गर्भव्यूतम्यर्थे सप्तमी। क्रान्तिका, तथा महोरगसूत्रे 'जोयणसयंपि ५. द्रष्टव्यं प्रज्ञापनाया: ६८८ सूत्रम् । जोयणसयपुहुत्तियावि जोयण सहस्सं पि' इत्येत६. उववा असंखेज्जवासाउयवज्जो जाव सहस्सारो दधिकं वक्तव्यं, शरीरादिद्वारकदम्बक सूत्रं तु चतुसुवि गतीसु (ता)। सर्वत्रापि गर्भव्युत्क्रान्तिकजलचराणामिव, ७. जाव सहस्सारा ताव गच्छंति (ता)। नवरमवगाहनास्थित्युद्वर्तनासु नानात्वम् (मवृ)। Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती २३३ १२४. से किं तं भुयपरिसप्पा ? भुयपरिसप्पा भेदो तहेव, चत्तारि सरीरा, ओगाहणा जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं । ठिती जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी, सेसेसु ठाणेसु जहा उरपरिसप्पा, णवरं-दोच्चं पुढविं गच्छति । से तं भुयपरिसप्पा । से तं थलयरा ॥ १२५. से किं तं खहयरा ? खहयरा चउब्विहा पण्णत्ता, तं जहा-चम्मपक्खी तहेव' भेदो, ओगाहणाजहण्णेणं अंगुलम्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं, ठिती जहणणं अंतोम हत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागो, सेसं जहा जलयराणं, णवरं--- तच्चं पूढवि गच्छंति जाव से तं खयरगब्भवक्कतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया। से तं तिरिक्खजोणिया ।। मणुस्स-पदं १२६. से किं तं मणुस्सा ? मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-समुच्छिममणुस्सा य गब्भवक्कंतियमणुस्सा य॥ १२७. कहि णं भंते ! संमुच्छिममणुस्सा संमुच्छंति ? गोयमा ! अंतो मणुस्सखेत्ते जाव' अंतोमुहुत्ताउया चेव कालं करेति ॥ १२८. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिण्णि सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए तेयए कम्मए । 'संघयण-संठाण-कसाय-सण्णा-लेसा जहा" बेइंदियाणं, इंदिया पंच, समुग्घाया तिण्णि, असण्णी, णपुंसगा, अपज्जत्तीओ पंच, दिदिदंसण-अण्णाण-जोग-उवओगा जहा पुढविकाइयाणं, आधारो जहा बेइंदियाणं, उववातो नेरइय-देव-तेउ-वाउ-असंखाउवज्जो, अंतोमुहुत्तं ठिती, समोहतावि असमोहतावि मरंति, कहिं गच्छंति ? णेरइय-देव-असंखेज्जाउवज्जेसु, दुआगतिया दुगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता समणाउसो' ! से तं समुच्छिममणुस्सा ।। १. जी० ११११३-११६ । पण्णवणाए तहा निरवसेसं भाणियव्वं जाव २. क्वचित्पुस्तकान्तरेऽवगाहनास्थित्योर्यथाक्रम छउमत्था य केवली य' इति पाठो विद्यते। संग्रहणिगाथे ६. पण्ण० १९८४ । जोयणसहस्स छग्गाउयाइ तत्तो य जोयणसहस्सं। ७. जी० ११८७ । गाउयपुहत्त भुयगे धणुयपुहत्तं च पक्खीसु ॥१॥ ८. जी० १०२८-३२। गभमि पुवकोडी तिण्णि य पलिओवमाइं . जी० ११८८। परमाउ। १०. असौ स्वीकृतपाठः 'ता' संकेतितादर्शस्य मलयउरभुयग पुवकोडी पलिय असंखेज्जभागो गिरीयवृत्तेश्चाधारण गहीतोस्ति । तयोः य ।।२।। क्वचित् साधारणो भेदोपि दृश्यते३. नवरं जाव (क, ख, ग, ट); मलयगिरीय- ता:-कति सरि ३ जधा पुढविका संघतण वत्तौ यावत् इति पदं व्याख्यातं नास्ति। संठाण कसा सण्णा लेसा जधा बेंदियाणं इंदिया ४. जी० ११११६। पंच समुग्धा ३ असणि णपंस भवे पज्जत्तीओ ४ ५. अतोने क, ख, ग, ट' आदर्शषु 'भेदो जहा दिदि अण्णाण जोग अयोगा जता पुढविका Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ जीवाजीवाभिगमे १२६. से किं तं गब्भवक्कंतियमणुस्सा ? गब्भवक्कंतियमणुस्सा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा। ‘एवं मणुस्सभेदो भाणियव्वो जहा पण्णवणाए जाव' छउमत्था य केवली य" । ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य ।। १३०. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए जाव' कम्मए । सरीरोगाहणा जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। छच्चेव संघयणी, छच्चेव संठिया" ॥ १३१. ते णं भंते ! जीवा किं कोहक साई जाव लोभकसाई ? अकसाई ? गोयमा ! सव्वेवि । आधारो जधा बेंदियाणं उववातो वि णेर देव यते संक्षिप्तपाठस्य वाचना स्वीकृतवाचनातो तेउ वाउ असंखेज्जा उवज्जो अंतोमुहत्तं ठिति भिन्नास्ति। संक्षिप्त वाचनायां प्रज्ञापनायाः समोहता वि असमोमरन्ति कहिं ग णेर देवा समर्पणमस्ति, तत्र च संहननसंस्थानादिद्वाराणि असंखेज्जाउवज्जेस दुआगतिया दुगतिया परि नैव विद्यन्ते । असं सेत्तं संमू। १. पण्ण ० ११८४-१२७ । मलयगिरीयवृत्तिः--तेसि णं भंते ! शरीराणि । २. जाव अघक्खातो छउमत्था य केवली य (ता)। त्रीणि औदारिकतैजसकार्मणानि, अवगाहना ३. पण्ण० १२।१। जघन्यत: उत्कर्षतश्चाङ्गुलासंख्येयभागप्रमाणा, ४. छव्विहसंघयणा छव्विहसंठिता (ख); छविहसंहननसंस्थानकषायलेश्याद्वाराणि यथा संघयणा छस्संढाणा (ट); एवं गब्भ पंचेंदियद्वीन्द्रियाणां, इन्द्रियद्वारे पञ्चेन्द्रियाणि, सज्ञि- तिरियगमओ संघयणं संठाणं छव्विधं (ता)। द्वारवेदद्वारे अपि द्वीन्द्रियवत्, पर्याप्तिद्वारे ५. अतः ‘उववज्जति' पर्यन्तं 'ता' प्रतौ पाठभेदः उपर्याप्तयः पञ्च, दृष्टिदर्शनज्ञानयोगोपयोग एवमस्ति-कोहकसाई ४ कसायी जाव द्वाराणि (यथा) पृथिवीकायिकानां, आहारो अकसायीवि किं आहारसण्णोवयुत्ता ४ यथा द्वीन्द्रियाणां, उपपातो नेरयिकदेवतेजोवा- णोसण्णो वयुत्ता जाव णोसण्णोवयुत्तावि कि य्वसङ्ख्यातवर्षायुष्कवर्जेभ्यः, स्थितिजघन्यत कण्हलेस्सा ७ जाव अलेसावि कि सोतिदियोवउत्कर्षतोऽप्यन्तमहतप्रमाणा, नवरं जघन्यपदा- युत्ता ५ णोइंदियोवयुत्ता जाव णोइंदियोवयुदुत्कृष्टमधिकं वेदितव्यम्, मारणान्तिकसमुद्- तावि सत्त समुद्घाता सण्णीवि असण्णीवि घातेन समवहता अपि म्रियन्ते असमवहताश्च, णोसण्णी णोअसण्णीवि किं इत्थी वेदा ३ जाव अनन्तरमुढत्य नैरयिकदेवासङ्ख्येयवर्षायुष्क- अवेदगावि पज्जत्ती ५ अपज्जत्तीओ ५ दिट्री ३ वर्जेषु शेषेषु स्थानेषत्पद्यन्ते, अत एव गत्यागति- नाणीवि अण्णा णाणा ५ अण्णाणा ३ भयणाए द्वारे यागतिका द्विगतिकास्तिर्यग्मनुष्यगत्यपे- कि मणजोगि ३ अजोगि ४ उवयोग २ आधारो क्षया, 'परीत्ता' प्रत्येकशरीरिणोऽसङ्ख्येयाः, जहा बदियाणं उववातो अधेसत्तम तेउ वाउ प्रज्ञप्ताः हे श्रमण ! हे आयुष्मन् ! उपसंहार- असंखाउवज्जेहिं ठिती ३ पलि समोहा अस माह-'सेत्तं समुच्छिममणुस्सा'। मरंति तेणं भंते अणंतरं उव्व कहि ग निरंतरं शेषेषु आदर्शेष संक्षिप्तः पाठो विद्यते, स च जाव सब्वठसिद्ध उववज्जति । १२५ सूत्रस्य पादटिप्पणे निर्दिष्टोस्ति । प्रती Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती २३५ १३२. ते णं भंते ! जीवा किं आहारसण्णोवउत्ता जाव नोसण्णोवउत्ता ? गोयमा ! सव्वेवि॥ १३३. ते णं भंते ! जीवा किं कण्हलेसा जाव अलेसा ? गोयमा ! सव्वेवि। सोइंदियोवउत्ता जाव नोइंदियोवउत्तावि, सत्त समुग्धाया, तं जहा-वेयणासमुग्घाए जाव' केवलिसमुग्धाए। सण्णीवि' नोसण्णी-नोअसण्णीवि, इत्थिवेयावि जाव अवेयावि, 'पंच पज्जत्ती पंच अपज्जत्ती" तिविहावि दिट्टी, चत्तारि दंसणा, णाणीवि अण्णाणीवि-जेणाणी ते अत्थेगतिया दुणाणी अत्थेगतिया तिणाणी अत्यंगतिया चउणाणी अत्थेगतिया एगणाणी जे दुण्णाणी ते नियमा आभिणिबोहियणाणी सूयणाणी य, जे तिण्णाणी ते आभिणिवोहियणाणी सुयणाणी ओहिणाणी य, अहवा आभिणिबोहियणाणी सुयनाणी मणपज्जवणाणी य, जे चउणाणी ते णियमा आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी ओहिणाणी मणपज्जवणाणी य, जे एगणाणी ते नियमा केवलनाणी, एवं अण्णाणीवि दुअण्णाणी तिअण्णाणी । मणजोगीवि वइकायजोगीवि अजोगीवि । दुविहे उवओगे। आहारो छद्दिसिं 'उववाओ अहेसत्तम-तेउवाउ-असंखेज्जवासाउयवज्जेहि । ठिती जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं । दुविहावि मरंति । उव्वट्टित्ता नेरइयाइसु जाव अणुत्तरोववाइएसु, अत्थेगतिया सिझंति 'बुज्झति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति ॥ १३४. ते णं भंते ! जीवा कतिगतिया कतिआगतिया पण्णत्ता? गोयमा ! पंचगतिया चउआगतिया, परित्ता संखेज्जा पण्णत्ता । सेत्तं मणुस्सा ।। देव-पदं १३५. से किं तं देवा ? देवा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-भवणवासी वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया। ‘एवं भेदो भाणियव्वो जहा पण्णवणाए"। ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । तेसि णं तओ सरीरगा-वेउव्विए तेयए कम्मए । ओगाहणा दुविहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ। तत्थ णं जासा १. सव्वेति (क) सर्वत्र । वज्जेहिं मणस्सेहि अकम्मभूमग-अंतरदीवग२. पण्ण० ३६।१। असंखेज्जवासाउयवज्जेहिं देवेहिं सव्वेहिं । ३. सण्णी असण्णीवि (क) । ६. सं० पा०-सिझंति जाव अंतं । ४. पंच पज्जत्ती (क); पंच पज्जत्तापज्जत्तीओ ७. पण्ण० १११३०-१३७ । (ख, ग); पर्याप्तिद्वारे पञ्च पर्याप्तयः पञ्चा- ८. चिन्हाङ्कितपाठः वृत्त्याधारेण स्वीकृतः । पर्याप्तयः भाषामनःपर्याप्त्योरेकत्वेन विवक्षणात आदर्शेषु पाठसंक्षेपः भिन्नप्रकारेण वर्तते-से (मवृ)। कि तं भवणवासी २ दसविहा पण्णत्ता तं जहा ५. स्वीकृतपाठस्याधारभूमिरस्ति 'ता' प्रतिः मलय- असुरा जाव थणिया सेत्तं भवणवासी। से कि गिरीयावृत्तिश्च । शेषेषु आदर्शेषु विस्तृतः पाठो तं वाणमंतरा २ देवभेदो भाणियव्वो (सव्वो वर्तते-उववातो नेरइएहिं अधेसत्तमवज्जेहिं भाणियव्वो-ग, ट) जाव (क, ख, ग, ट); तिरिक्खजोणिएहिं तेउवाउअसंखेज्जवासाउअ- भेदो जाव सव्वट्ठत्ति (ता)। Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ जीवाजीवाभिगमे उत्तरवे उव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं, सरीरगा' छहं संघयणाणं असंघयणी - णेवट्ठी णेव छिरा णेव हारू' । जे पोग्गला इट्ठा कंता 'पिया सुभा मण्णा मणामा" ते तेसि सरीरसंघायत्ताए परिणमति ॥ १३६. किंसंठिया ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - भवधारणिज्जा य उत्तरउव्विया य । तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते णं समचउरंससंठिया पण्णत्ता । तत्थ णं जेते उत्तरवेउब्विया ते णं नाणासंठाणसंठिया पण्णत्ता । चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णा, छ लेस्साओ, पंच इंदिया, पंच समुग्धाया, सण्णीवि असण्णीवि, इत्थिवेदावि पुरिसवेदावि नो नपुंगवेया, 'पज्जत्तीओ अपज्जत्तीओ" पंच, दिट्ठी तिण्णि, तिष्णि दंसणा णाणीवि अण्णाणीव - जे नाणी ते नियमा तिण्णाणी, अण्णाणी भयणाए, दुविहे उवओगे, तिविहे जोगे, आहारो' णियमा छद्दिसि ओसण्णकारणं पडुच्च वण्णओ हालिहसुक्किलाई जाव" आहारमाहारें ति, उववाओ तिरियमणुस्सेसु, ठिती जहण्णेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाइं, दुविहावि मरांति, 'उव्वट्टित्ता नो नेरइएसु गच्छंति, तिरियमणुस्से सु जहासंभवं', नो देवेसु गच्छंति, ' दुगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता । से तं देवा । से तं पंचेंदिया । सेत्तं ओराला तसा " ॥ १३७. थावरस्स" णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उवकोसेणं बावीसं वाससहस्साइं ठिती पण्णत्ता ॥ १३८. तसस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता ॥ १. एतत् पदं 'तेसि णं भंते जीवाणं सरीरा किसंघयणी पण्णत्ता' एतस्य पाठस्य सूचकमस्ति । 'ता' प्रतौ अस्य पदस्य स्थाने एवं पाठोस्ति ''किसघयणी' । २. पहारू नेव संघयणमत्थि (क, ख, ग, ट) । ३. ‘क, ख, ग, ट' आदर्शेषु अस्य पदचतुष्टयस्य स्थाने 'जाव' इति पदं दृश्यते । ४. X ( क, ख, ट ) । ५. पज्जत्तापज्जत्तीओ (क, ख, ग ) ; पज्जत्ती अपज्जत्तीओ ( ट ) ; पज्जत्तीओ ५ अपज्ज (ar) I ६. अतः 'ता' प्रतौ भिन्नः पाठो दृश्यते - आहारो जहा नेरइयाणं ठिती वि । तेणं भंते जीवा मारणंतिय स समोअसमोह दोवि अनंतदव्वा तेउ वाउ विगलंदिय संमुच्छिम वज्जेहिं णेरइय वज्जे देववज्जे सेसेवि असंखाउवज्जे पज्जत्तएसु उव तेणं भंते जीवा कति दुआगतीया दुगतीया परि असं पसत्थे ओस्सण्णकारणं वण्णत्तो हालिद्द सुकिला गं सुब्भि रसतो अब महुराई फास मउय लहुय णिहाणि जाव आहारमाहाति उववातो जहा णेरतियाणं ठिती वि पण्णत्ता समणाउसो सेत्तं देवा सेत्तं तसा । ७. पण्ण० २८।२६ | ८. पञ्चमी स्थाने सप्तमी विभक्तिः । ६. अनन्तरमुद्धृत्य पृथिव्यम्बुवनस्पतिकायिकगर्भव्युत्क्रान्तिक सङ्ख्यात वर्षायुष्क तिर्यक् पञ्चेन्द्रियमनुष्येषु गच्छन्ति न शेषजीवस्थानेषु (मवृ) | १०. तसा पाणा (क, ख, ग, ट ) । ११. 'ता' प्रतौ १३७, १३८ सूत्रे नैव विद्येते । 'क, ख, ग, ट' आदर्शेषु अतः १४१ सूत्रपर्यन्तं त्रससूत्रं पूर्वं विद्यते, तदनन्तरं च स्थावरसूत्रमस्ति । Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती २३७ १३६. थावरे' णं भंते ! थावरेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं-अणंताओ उस्सप्पिणीओ ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अणंता लोया असंखेज्जा पुग्गलपरियट्टा, ते णं पुग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जइभागो॥ १४०. तसे णं भंते ! तसेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं-असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओ ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा ॥ १४१. थावरस्स णं भंते ! केवइकालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहा तससंचिट्ठणाए । १४२. तसस्स णं भंते ! केवइकालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। १४३. एएसि णं भंते ! तसाणं थावराण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा तसा, थावरा अणंतगुणा। से तं दुविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ।। १. अत: १४१ सूत्रपर्यन्तं 'ता' प्रती वाचनाभेदो विद्यते-थावरेणं भंते थावरे ति कालतो केवच्चिरं होति गो जह अंतोमु उक्को वणस्सति कालो तसस्स संचिट्ठणा पुढविकालो थावरस्संतरं पुढविकालो तसस्संतरं वणस्सतिकालो। Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती १. तत्थ जेते एवमाहंसु 'तिविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता' ते एवमाहंसु, 'तं जहा"-इत्थी पुरिसा णपुंसगा। २. से किं तं इत्थीओ? इत्थीओ तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--तिरिक्खजोणित्थीओ मणस्सित्थीओ' देवित्थीओ।। ३. से किं तं तिरिक्खजोणित्थीओ ? तिरिक्खजोणित्थीओ तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-जलयरीओ थलयरीओ खहयरीओ'। ४. से किं तं जलयरीओ ? जलयरीओ पंचविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--मच्छीओ जाव सुंसुमारीओ। से तं जलयरीओ। ५. से किं तं थलयरीओ ? थलयरीओ दुविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-चउप्पईओ य परिसप्पीओ य॥ ६. से किं तं चउप्पईओ ? चउप्पईओ चउव्विहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-एगखुरीओ जाव" सणप्फईओ। से तं चउप्पयथलयरतिरिक्खजोणित्थीओ। ७. से किं तं परिसप्पीओ ? परिसप्पीओ दुविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा---उरपरिसप्पीओ य भुयपरिसप्पीओ य ॥ ८. से कि तं उरपरिसप्पीओ ? उरपरिसप्पीओ तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहाअहीओ अयगरीओ महोरगीओ य । सेत्तं उरपरिसप्पीओ। ६. से किं तं भुयपरिसप्पीओ ? भुयपरिसप्पीओ अणेगविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -गोहीओ णउलीओ सेधाओ सल्लीओ सरडीओ सरंधीओ 'साराओ खाराओ" पवलाइ१. X (क, ख)। ८. सरिवीओ (क); सरंवीओ (ख); सरंथीओ २. माणु' (क, ख)। (ग); प्रज्ञापनायां (१७६) भुजपरिस३. अतोने तिर्यग्योनिस्त्रियः सम्बन्धी आलापकः लापके 'सरंडा' इति पदमस्ति । प्रश्नव्याकरणे ___ 'ता' प्रती वृत्तौ च नास्ति । च 'सरंब' इति पदमस्ति, तस्य पाठान्तरे ४. जी० १९८ । 'सरंग' इति दृश्यते । ५. जी० १११०२। ६. सावाओ खराओ (क, ख); सावाओ ६. उरगपरि' (क, ग, ट)। खाराओ (ग); भावाओ वासाओ खाराओ ७. भुयगपरि (क, ग, ट)। (ट)। २३८ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चातिविहपडिवत्ती याओ' चउप्पाइयाओ' मूसियाओ मुगुंसियाओ' घरोलियाओं जाहियाओ' छीरबिरालियाओ' । सेत्तं भुयपरिसप्पीओ | १०. किं तं खहयरीओ ? खहयरीओ चउव्विहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - चम्मपीओ जाव विततपक्खीओ । सेत्तं खहयरीओ । सेत्तं तिरिक्खजोणित्थीओ ॥ ११. . से किं तं मणुस्सित्थियाओ ? मणुस्सित्थियाओ तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं कम्मभूमियाओ कम्मभूमियाओ अंतरदीवियाओ' || जहा १२. . से कि तं अंतरदीवियाओ ? अंतरदीवियाओ अट्ठावीसइविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - एगूरुइयाओ आभासियाओ जाव' सुद्धदंताओ । सेत्तं अंतरदीवियाओ || १३. से किं तं अकम्मभूमियाओ ? अकम्मभूमियाओ तीसतिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - पंचसु हेमवएस पंचसु एरण्णवएसु पंचसु हरिवासेसु पंचसु रम्मगवासेसु पंचसु देवकुरासु पंचसु उत्तरकुरासु । सेत्तं अकम्मभूमियाओ || १४. से किं तं कम्मभूमियाओ ? कम्मभूमियाओ पण्णरसविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - पंचसु भरहेसु पंचसु एरवएस पंचसु महा विदेहेसु । सेत्तं कम्मभूमगमणुस्सित्थीओ सेत्तं मस्सित्थओ | १५. से किं तं देवित्थियाओ ? देवित्थियाओ चउव्विहाओ पण्णत्ताओ, तं जहाभवणवासिदेवित्थियाओ वाणमंतरदेवित्थियाओ जोइसियदेवित्थियाओ वेमाणियदेवित्थियाओ" ।। १६. से किं तं भवणवासिदेवित्थियाओ ? भवणवासिदेवित्थियाओ दसविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - असुरकुमारभवणवासिदेवित्थियाओ जाव" थणियकुमारभवणवासिदेवित्थियाओ । से तं भवणवासिदेवित्थयाओ ॥ १७. से किं तं वाणमंतरदेवित्थियाओ ? वाणमंतरदेवित्थियाओ अट्ठविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -पिसायवाणमंत रदेवित्थियाओ जाव" गंधव्ववाणमंतरदेवित्थयाओ । से तं वाणमंतर देवित्थियाओ ॥ १८. से किं तं जोइसियदेवित्थियाओ ? जोइसियदेवित्थियाओ पंचविहाओ पण्णताओ, तं जहा - चंदविमाणजोइसियदेवित्थियाओ सूर-गह- नवखत्त-ताराविमाणजोइसिय१. पवणाइयाओ ( ग ) ; पवण्णाईयाओ (ट) । २. वाउप्पइय ( पण्हा ० ११८ ); प्रश्नव्याकरणवृत्ती ' वातोत्पत्तिका' इति व्याख्यातमस्ति । ३. मुगुसियाओ ( क, ख ) ; मुंगुसियाओ ( ग ); मुगसियाओ ( ट ) ; मंगुस ( पण ० १ / ७६ ) | ४. घेरोलियाओ (ट) । २३६ ५. गोहियाओ जोहियाओ (क); गोहियाओ जाहियाओ ( ख, ग, ट ) । ११. पण्ण० १।१३१ । ६. थिरावलियाओ ( क ); थिरीविरालियाओ १२. पण्ण० २२४५ । ( ख ) ; छिरविरालियाओ (ग, ट ); छीरल ( पहा० १1८) | ७. जी० १।११३ - ११६ । ८. अतो मनुष्यस्त्रीसम्बन्धी आलापक: 'ता' प्रती वृत्तौ च नास्ति । ६. पण्ण० ११८६ | १०. अतोग्रे देवस्त्रीसम्बन्धी आलापकः 'ता' प्रतौ वृत्तौ च नास्ति । Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० जीवाजीवाभिगमे देवित्थियाओ। सेत्तं जोइसियदेवित्थियाओ। १६. से किं तं वेमाणियदेवित्थियाओ? वेमाणियदेवित्थियाओ दुविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- सोहम्मकप्पवेमाणियदेवित्थियाओ ईसाणकप्पवेमाणियदेवित्थियाओ। सेत्तं वेमाणियदेवित्थियाओ। २०. इत्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! एगेणं आदेसेणंजहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, रक्कोसेणं पणपन्न पलिओवमाइं । एक्केणं आदेसेणं-जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं नव पलिओवमाइं । एगेणं आदेसेणं-जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाइं। एगेणं आदेसेणं-जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पन्नासं पलिओवमाइं ॥ २१. तिरिक्खजोणित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई ॥ २२. जलयरतिरिक्खजोणित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी ॥ २३. च उप्पयथलयरतिरिक्खजोणित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहा तिरिवखजोणित्थीओ ।। २४. उरपरिसप्पथलयरतिरिक्खजोणित्थीणं' भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं' पुव्वकोडी। एवं भुयपरिसप्पतिरिक्खजोणित्थीओ। २५. एवं खहयरतिरिक्खित्थीणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागो॥ २६. मणुस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! खेत्तं पडच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं' तिण्णि पलिओवमाई। धम्मचरणं पडुच्च जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी॥ २७. कम्मभूमयमणुस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं । धम्मचरणं पडुच्च जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी । २८. भरहेरवयकम्मभूमगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी । २६. पुव्वविदेहअवरविदेहकम्मभूमगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी ॥ ३०. अकम्मभूमगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! १. उरग० (क, ख, ग, घ)। २. उक्कस्सं (क, ख)। ४. उक्कस्सेणं (क, ख) प्रायः सर्वत्र । ३. भुयगपरिसप्पि० (क, ग, ट); भुयपरिसप्पि Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती २४१ जम्मणं पडुच्च जहण्णणं देसूणं पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्ज इभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी॥ ३१. हेमवएरण्णवए जम्मणं पडुच्च जहण्णणं देसूणं पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणगं, उक्कोसेणं पलिओवमं । संहरणं पडुच्च जहण्णणं अंतोमु हत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी॥ ३२. हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं देसूणाई दो पलिओवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणयाई, उक्कोसेणं दो पलिओवमाइं । संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी॥ ३३. देवकुरुउत्तरकुरुअकम्मभूमगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं देसूणाई तिण्णि पलिओवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणयाइं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी॥ ३४. अंतरदीवगअकम्मभूमगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं देसूणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणयं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं। संहरणं पड़च्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी॥ ३५. देवित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं पणपन्न पलिओवमाइं॥ ३६. भवणवासिदेवित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं अद्धपंचमाइं पलिओवमाइं॥ ३७. एवं असुरकुमारभवणवासिदेवित्थियाए, नागकुमारभवणवासिदेवित्थियाए जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं देसूणाई पलिओवमाइं । एवं सेसाणवि जाव थणियकुमारीणं॥ ३८. वाणमंतरीणं जहण्णेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं ॥ ३६. 'जोइसियदेवित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवम', उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं ॥ ४०. चंदविमाणजोइसियदेवित्थीणं जहण्णणं चउभागपलिओवम, उक्कोसेणं 'तं चेव ॥ - १. "कुमाराणं (क)। २. उक्कस् (क)। ३. जोतिसीणं (क)। ४. पलिओबमभट्ठभागं (ग, ट); मलयगिरि- वृत्तावपि 'अष्टभागपल्योपम' इति व्याख्यात मस्ति । ५. "देवित्थियाए (क, ख, ग, ट) चन्द्रविमान वासिज्योतिष्कस्त्रीणाम् (म)। ६. जी० २।३६ । Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ जीवाजीवाभिगमे ४१. सूरिविमाणजोइसियदेवित्थीणं' जहण्णणं चउभागपलिओवम, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पंचहिं वाससएहिमब्भहियं ।। ४२. गहविमाणजोइसियदेवित्थीणं जहण्णेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं॥ ___४३. णक्खत्तविमाणजोइसियदेवित्थीणं जहण्णेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं चउभागपलिओवमं सातिरेगं ।। ___ ४४. ताराविमाणजोइसियदेवित्थीणं' जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगं अट्ठभागपलिओवमं ॥ ४५. वेमाणियदेवित्थीणं' जहण्णेणं पलिओवम, उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओवमाई ।। ४६. सोहम्मकप्पवेमाणियदेवित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवम, उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाइं॥ ४७. ईसाणदेवित्थीणं जहण्णेणं सातिरेगं पलिओवम, उक्कोसेणं णव पलिओवमाई ।। ४८. इत्थी णं भंते! इत्थित्ति कालओ केवच्चिर' होइ ? गोयमा ! एक्केणादेसेण -जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दसुत्तरं पलिओवमसयं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियं । एक्केणादेसेण-जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अट्ठारस पलिओवमाइं पुव्वकोडीपुहत्त मभडियाई । एक्केणादेसेण-जहणणं एक्कं समय, उक्कोसेणं चउदस पलिओवमाड पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाइं । एक्केणादेसेण-जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमसयं पुवकोडीपुहत्तमब्भ हियं । एक्केणादेसेण-जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमपुहत्तं पुव्वकोडीपुहत्तमब्भहियं ॥ ४६. तिरिक्खजोणित्थी णं भंते ! तिरिक्खजोणित्थित्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडीपुहत्तमब्भहियाइं ॥ ५०. जलयरीए जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडीपुहत्तं ॥ ५१. 'चउप्पयथलयरीए जहा ओहियाए॥ ५२. उरपरिसप्पि-भुयपरिसप्पित्थीणं जहा जलयरीणं ॥ ५३. खहयरीए' जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पुवकोडिपुहत्तमब्भहियं ॥ ५४. मणुस्सित्थी णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा ! खेत्तं पडुच्च १. देवित्थियाए (क, ख, ग, ट); सूर्यविमान- ५. पुहुत्त (क, ग)। वासिज्योतिष्कदेवीनाम् (म)। ६. चउप्पदथलयरतिरिक्खी जधा ओहिता तिरिक्खी २. देवित्थियाए (क, ख, ग, ट); ताराविमान- (क, ख, ग, ट)। ज्योतिष्कदेवीनाम् (मवृ)। ७. उरगपरिसप्पि (क, ख, ग, ट)। ३. देवित्थियाए (क, ख, ग, ट); वैमानिक- ८. भुयग° (क, ख, ग, ट)। देवस्त्रीणाम् (म)। ६. खहरि (क); खहयरि (ख, ग, ट)। ४. किच्चिरं (ग)। Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चातिविहपडिवत्ती २४३ जहणणं अंतमुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई पुव्वकोडीपुहत्तमब्भहियाई । धम्म - चरणं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी | ५५. एवं कम्मभूमियावि भरहेरवयावि', णवरं - खेत्तं पडुच्च जहणेणं अंतोमुहुत्तं, कोसेणं तिणि पओिवमाई देसूणपुव्वको डिमन्भहियाई' | धम्मचरणं पडुच्च जहणणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी | ५६. पुव्वविदेह-अवरविदेहित्थीणं खेत्तं पडुच्च जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडीपुहत्तं । धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी ॥ ५७. अकम्मभूमिकमणुस्सित्थी' णं भंते! अकम्मभूमिक मणुस्सित्थित्ति कालओ hafai होइ ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहणेणं देणं पलिओवमं पलिओ मस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणं, उक्कोसेणं तिष्णि पलिओवमाई । संहरणं पडुच्च जहणणं अंतमुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई देसूणाए पुव्वकोडीए अमहियाई || ५८. हेमवरण्णव अकम्मभूमिकमणुस्सित्थी णं भंते ! हेमवएरण्णवए अकम्मभूमि सिथिति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहणेणं देसूणं पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं पलिओवमं । संहरणं * पडुच्च जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमं देसूणाए पुव्वकोडीए अब्भहियं ॥ ५६. हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सित्थी णं भंते ! हरिवासरम्मगवासअम्मभूमिगमणुस्सित्थिति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहणेणं सूणाई दो पलिओमाई' पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगाई, उक्कोसेणं दो पलिओवमाइं । संहरणं' पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दो पलिओवमाई देसूणपुव्वभिहिया || ६०. उत्तरकुरुदेव कुरुअकम्मभूमिगमणुस्सित्थी' णं भंते ! उत्तरकुरुदेवकुरुअकम्मभूमिगमणुस्सित्थित्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं देसूणाई तिष्णि पलिओवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगाई, उक्कोसेणं तिणि पलिओवमाइं । संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई देसूणाए पुव्वकोडी अब्भहियाई' ।। ६१. अंतरदीवाकम्मभूमिगमणुस्सित्थी' णं भंते ! अंतरदीवाकम्मभूमिगमणुस्सित्थित्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहणेणं देणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं । संहरणं पडुच्च जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं देसूणाए पुव्वकोडीए अब्भहियं ॥ १. भरतेर° (ग, ट) । २. 'कोडीअब्भहियाई (क, ख, ट) । ३. अकम्मभूमक° (ग); अकम्मभूमिग° ( ट ) । ४. साहरणं ( क, ख, ग ) । ५. पलितोवमाइं (क, ख, ग, ट) । ६. साहरणं (क, ख, ग ) । ७. देवकुरूणं (ग, ट ) | ८. अब्भधियाइं ( ग ) । ६. 'भूमग' (क ) ; भूमक' ( ख, ग, ट ) । Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ जीवाजीवाभिगमे ६२. देवित्थी णं भंते ! देवित्थित्ति कालओ, 'जच्चेव संचिटणा"॥ ६३. इत्थीणं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणतं कालं-वणस्सइकालो॥ ६४. एवं सव्वासिं तिरिक्खित्थीणं ॥ ६५. मणुस्सित्थीए खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। धम्मचरणं पडुच्च जहण्णणं ‘एवकं समयं,२ उक्कोसेणं अणंतं कालं-जाव अवड्ढपोग्गलपरियट देसूणं । एवं जाव' पुव्यविदेह-अवरविदेहियाओ॥ ६६. अकम्मभूमिगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। एवं जाव' अंतरदीवियाओ॥ ६७. देवित्थियाणं सव्वासि जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। ६८. एयासि णं भंते ! तिरिक्खजोणित्थियाणं मणुस्सित्थियाणं 'देवित्थियाण य" कतरा कतराहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवाओ' मणुस्सित्थियाओ, तिरिक्खजोणित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, देवित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ॥ ६६. एयासि णं भंते ! तिरिक्खजोणित्थियाणं-जलयरीणं थलयरीणं खहयरीण य कतरा कतराहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवाओ खहयरतिरिक्खिजोणित्थियाओ, थलयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ, जलयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ॥ ७०. एयासि णं भंते ! मणुस्सित्थीणं--कम्मभूमियाणं अकम्मभूमियाणं अंतरदीवियाण य कतरा कतराहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवाओ अंतरदीवगअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ, ३. देवकुरुउत्तरकुरुअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ, ५. हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ ७. हेमवएरण्णवयअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ, ६. भरहेरवयकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ, ११. पुव्वविदेहअवरविदेहकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ॥ ७१. एयासि णं भंते ! देवित्थियाणं-भवणवासिणीणं वाणमंतरीणं जोइसिणीणं" वेमाणिणीणं य कतरा कतराहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवाओ वेमाणियदेवित्थियाओ, २. भवणवासिदेवित्थियाओ असंखेज्ज१. 'सेव संचिट्ठणा भाणियव्वा' तदेवावस्थानं ४. जी० २।५८-६०।। __ वक्तव्यम् (मवृ)। ५. देवित्थियाणं (क, ख, ग, ट)। २. समयं (क); समओ (ख, ट)। ६. सव्वत्थोवा (क, ग)। ३. जी० २१५५ । ७. जोइसियाणं (क, ख)। Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती २४५ गुणाओ, ३. वाणमंतरदेवित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, ४. जोइसियदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ। ७२. एयासि णं भंते ! तिरिक्खजोणित्थियाणं-जलयरीणं थलयरीणं खहयरीणं, मणस्सित्थियाणं-कम्मभूमियाणं अकम्मभूमियाणं अंतरदीवियागं, देवित्थियाणं-भवणवासिणीणं वाणमंतरीणं जोइसिणीणं वेमाणिणीण य कतरा कतराहिंतो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! १. सव्वत्थोवाओ अंतरदीवगअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ, ३. देवकुरुउत्तरकुरुअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ' संखेज्जगुणाओ, ५. हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ ७. हेमवएरण्णवयअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ, ६. भरहेरवयकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ, ११. पुव्वविदेहअवरविदेहकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ, १२. वेमाणियदेवित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, १३. भवणवासिदेवित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, १४. खहयरतिरिक्खजोणित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, १५. थलयरतिरिक्खिजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ, १६. जलयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ, १७. वाणमंतरदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ, १८. जोइसियदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ। ७३. इत्थिवेदस्स णं भंते ! कम्मस्स केवतियं कालं बंधठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णण सागरोवमस्स दिवड्ढो सत्तभागो' पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणो, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ। पण्णरस वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती कम्मणिसेओ। ७४. इत्थिवेदे णं भंते ! किंपगारे पण्णत्ते ? गोयमा ! फुफुअग्गिसमाणे' पण्णत्ते । सेत्तं इत्थियाओ॥ ७५. से किं तं पुरिसा ? पुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-तिरिक्खजोणियपुरिसा मणुस्सपुरिसा देवपुरिसा॥ ७६. से कि तं तिरिक्खजोणियपुरिसा ? तिरिक्खजोणियपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-जलयरा थलयरा खहयरा । इत्थिभेदो भाणियव्वो जाव' खहयरा । सेत्तं खहयरा । सेत्तं तिरिक्खजोणियपुरिसा ॥ ७७. से किं तं मणुस्सपुरिसा ? मणुस्सपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा । सेत्तं मणुस्सपुरिसा ॥ ७८. से किं तं देवपुरिसा? देवपुरिसा चउन्विहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थीभेदो भाणियव्वो १. X (क, ख, ग) सर्वत्र । ५. अस्मिन् सूत्रे पूर्वसूत्रवत् इत्थिभेदो भाणियव्वो' २. भाओ (क, ख, ग, ट)। इति सूचना नास्ति कृता तथापि मनुष्यवर्णन३. फुफ (क); पुंफ (ग); फुम्फकाग्निसमान; , कृते द्रष्टव्यानि जी० २११२-१४ सूत्राणि । फुम्फुकशब्दो देशीत्वात्कारीषवचन: (मवृ)। ६. जी० २। १६-१६ । ४. जी० २।४-१०। Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ जीवाजीवाभिगमे 'जाव सव्वट्ठसिद्धा" ॥ ७६. पुरिसस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं॥ ८०. तिरिक्खजोणियपुरिसाणं मणुस्सपुरिसाणं जा चेव इत्थीणं ठिती सा चेव भाणियव्वा ॥ ८१. देवपुरिसाणवि जाव सव्वट्ठसिद्धाणं ति ताव ठिती जहा पण्णवणाए तहा भाणियव्वा ॥ ८२. पुरिसे णं भंते ! पुरिसेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं ।। * ८३. तिरिक्खजोणियपुरिसे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाई। एवं तहेव' संचिटणा जहा इत्थीणं जाव' खयरतिरिक्खजोणियपुरिसस्स संचिटणा॥ ८४. मणुस्सपुरिसाणं भंते ! कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुत्वकोडिपुहत्तमब्भहियाई। धम्मचरणं पडच्च जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी ॥ ८५. एवं सव्वत्थ जाव' पुव्वविदेह-अवरविदेह-कम्मभूमगमणुस्सपुरिसाणं । अकम्मभूमगमणुस्सपुरिसाणं जहा अकम्मभूमिकमणुस्सित्थीणं" जाव अंतरदीवगाणं । जच्चेव ठिती सच्चेव संचिट्ठणा जाव' सव्वट्ठसिद्धगाणं ॥ ८६. पुरिसस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ ८७. तिरिक्खजोणियपुरिसाणं जहण्णेणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। एवं जाव खहयरतिरिक्खजोणियपुरिसाणं ॥ ८. मणस्सपुरिसाणं" भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं १. मलयगिरिवृत्तौ ‘जाव अणुत्तरोववाइया' इति ५. जी० २। ५०-५३ । पाठ उङ्कितोस्ति तथा यावत्पदेनात्र सनत्कु- ६. जी०२। ५५.५६ । मारादारभ्य कल्पोपपन्नदेवानां कल्पातीत- ७. भूमक' (क,ग); भूमग" (ट)। देवानां च ग्रहणं जायते। ८. जी० २। ५७-६१ । २. जी०२।२१-३४ । ६. जी० २।०१। ३. पण्ण० ४ । मलयगिरिणा कस्याश्चिद् विस्तृत- १०. अस्य सूत्रस्य स्थाने वृत्तौ निम्नलिखितं सूत्रं वाचनाया आधारेण व्याख्या कृता उपलब्धसूत्र व्याख्यातमस्ति-जं तिरिक्खजोणित्थीणमंतरं च पाठान्तररूपेण उल्लिखितम्-क्वचिदेवं तं तिरिक्खजोणियपुरिसाणं (मव)। सूत्रपाठ :-'देवपुरिसाण ठिई जहा पण्णवणाए ११. अस्य सूत्रस्य स्थाने वृत्तो निम्नलिखितं सूत्रं ठिइपए तहा भाणियव्वा'। व्याख्यातमस्ति-जं मणुस्सइत्थीणमन्तरं तं ४. तं चेव (ग)। मणुस्सपुरिसाणं (मवृ)। Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चातिविहडिवत्ती २४७ समयं, उक्कोसेणं 'अणतं कालं ' - अनंताओ उस्सप्पिणीओ जाव अवड्ढपोग्गल परियट्ट सूणं ॥ ८. कम्मभूमकाणं जाव' विदेहो जाव' धम्मचरणे एक्को समओ, सेसं जहित्थीणं जाव' अंतरदीवकाणं ॥ ६०. देवपुरिसाणं जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्को सेणं वणस्सतिकालो || ६१. भवणवासिदेवपुरिसाणं ताव जाव सहस्सारो जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्स तिकालो || ६२. आणतदेवपुरिसाणं भंते! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं वासपुहत्तं", उक्कोसेणं वणस्सतिकालो । एवं जाव गेवेज्जदेवपुरिसस्सवि ॥ ६३. अणुत्तरोववातियदेवपुरिसस्स जहण्णेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई सागरोवमाई साइरेगाई || ४. अप्पाबहुयाणि, जहेवित्थीणं जाव' - - ६५. एतेसि णं भंते! देवपुरिसाणं- भवणवासीणं वाणमंतराणं जोतिसियाणं मणियाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! • सव्वत्थोवा वेमाणियदेवपुरिसा २. भवणवइदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३. वाणमंतर - देवपुरिसा असंखेज्जगुणा ४. जोतिसियदेवपुरिसा संखेज्जगुणा ॥ १. ६६. एतेसि णं भंते ! तिरिक्खजोणियपुरिसाणं - जलयराणं थलयराणं खहयराणं, मणुस्सपुरिसाणं - कम्मभूमगाणं" अकम्मभूमगाणं' अंतरदीवगाणं, देवपुरिसाणं- भवणवासी वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं सोधम्माणं जाव सव्वट्टसिद्धगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा अंतरदीवगअकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा ३. देवकुरुउत्तरकुरुअ कम्मभूमगमणुस्सपुरिसा दोवि' संखेज्जगुणा ५. हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा दोवि संखेज्जगुणा ७ हेमवत हेरण्णवतवासअकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा दोवि संखेज्जगुणा है. भरहेरवतवासकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा १. वनस्पतिकाल : (मवृ) | २. जी० २ । ५५, ५६ । ३. जी० २ । ८८ । ४. जी० २ । ६६ । ५. धत्तं ( क ); 'पुहुत्तं (ग, ट) । ६. अस्मिन् यावत्पदे स्त्रीणामल्पबहुत्वानां समाहारः कृतोस्ति । तत्कृते द्रष्टव्यानि इमानि सूत्राणि - जी० २ । ६८-७० । 'ता' प्रतौ एतेषां पञ्चानामपि अल्पबहुत्वानां पाठे भिन्ना वाचना दृश्यते - एतेसि णं भंते तिरिक्खजोणियपुरिसाणं देव कतरेक सव्वत्थोवा मणस्स पूतिरी असं देवपुरि संखे । पुच्छा सव्वत्थोवा खह थल संखे जति संखे । म पु जधा मणुवीणं एतेसि णं भंते देव पु भवण जाव वैमाणि कत सव्वत्योवा अणुत्तरोववातिया देव पुरिसा उवरिमं गे संखे मज्झिम गे सं हेट्ठिम गे अच्चुए कप्पे देवपु सं जावणते सं सहस्सारो असं महासु असं लंत असं बंभलोए असं माहिदे असं खहचर पंचि असं थल सं जल सं वाण सं जोति संखे । मलयगिरिवृत्तावपि पूर्णः पाठो व्याख्यातोस्ति । ७. भूमका ( क, ख ) 1 ८. अम्मभूमा ( ख, ग ) । ६. सर्वत्र — तुल्या इति गम्यम् । Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ जीवाजीवाभिगमे दोवि संखेज्जगुणा ११. पुव्वविदेह - अवरविदेहकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा दोवि संखेज्जगुणा १२. अणुत्तरोववातिय देवपुरिसा असंखेज्जगुणा १३. उवरिमगेविज्जदेवपुरिसा संखेज्जगुणा १४. मज्झिमगेविज्ज देवपुरिसा संखेज्जगुणा १५. हेट्ठिमगेविज्जदेवपुरिसा संखेज्जगुणा १६. अच्चुयकप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा जाव आणतकप्पे देवपुरिसा संखेज्ज - गुणा २० सहस्सारे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा २४. महासुक्के कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा जाव माहिंदे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा २५. सणकुमारकप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा । २६. ईसाणकप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा २७ सोधम्मे कप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा । २८. भवणवासिदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा २६. खहयरतिरिक्खजोणियपुरिसा असंखेज्जगुणा ३०. थलयर तिरिक्खजोणियपुरिसा संखेज्जगुणा ३१. जलयरति रिक्खजोणियपुरिसा संखेज्जगुणा ३२. वाणमंतर देवपुरिसा संखेज्जगुणा ३३. जोतिसियदेवपुरिसा संखेज्जगुणा ।। ७. पुरिसवेदस्स णं भंते ! कम्मस्स केवतियं कालं बंधट्टिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं अट्ट संवच्छ राणि, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ, दसवाससयाई अबाहा बहूणिया कम्मती कम्मणिसेओ । ६८. पुरिसवेदे णं भंते! किपकारे पण्णत्ते ? गोयमा ! 'दवग्गिजालसमाणे' पण्णत्ते" । सेत्तं पुरिसा ॥ ६६. से किं तं नपुंसंगा' ? नपुंसगा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - नेरइयनपुंसगा तिरिक्खजोणियनपुंसगा मणुस्सजोणियनपुंसगा || १००. से किं तं नेरइयनपुंसगा ? नेरइयनपुंसगा सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहारयणप्पभापुढविनेरइयनपुंसगा सक्करप्पभापुढविने रइयनपुंसगा जाव अधेसत्तमपुढ विने रइयनपुंगा ॥ १०१. से किं तं तिरिक्खजोणियनपुंसगा ? तिरिक्खजोणिय नपुंसगा पंचविधा पण्णत्ता, तं जहा - एगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा बेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा तेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा चउरिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा पंचिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा ॥ १०२. से किं तं एगिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा ? एगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा पंचविधा पण्णत्ता, तं जहा - पुढविकाइया आउक्काइया तेउक्काइया वाउक्काइया वणस्सतिकाइया । से तं एगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा || १०३. से किं तं बेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा ? बेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा अगविधा पण्णत्ता' । से तं बेइंदियतिरिक्खजोणिया । एवं तेइंदियावि, चउरिदियावि ॥ १. वणदवग्गि (क, ख, ग, ट) । २. दवग्गिजालसमाणोयं ( ता ) । ३. णपुंसगा (क, ख, ता) । ४. अणेगविधा ( क ग ) । ५. प्रयुक्तपालादर्शेषु द्वीन्द्रियादीनां भेदा न सन्ति साक्षात् लिखिताः । मलयगिरिवृत्तौ प्रज्ञप्ता इति पदानन्तरं तद्यथा - पुलाकिमिया इत्यादि पूर्ववत्तावद्वक्तव्यं यावच्चतुरिन्द्रियभेदपरिसमाप्ति:' इति व्याख्यातमस्ति, अनेन प्रतीयते वृत्तिकारस्य सम्मुखे कश्चिद् विस्तृतपाठादर्श : आसीत् । Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती २४९ १०४. से किं तं पंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा? पंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा तिविधा पण्णत्ता, तं जहा-जलयरा थलयरा खहयरा॥ १०५. से किं तं जलयरा ? जलयरा सो चेव 'इत्थिभेदो आसालियसहितो" भाणियव्वो। से तं पंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा ॥ १०६. से किं तं मणुस्सनपुंसगा? मणुस्सनपुंसगा तिविधा पण्णत्ता, तं जहा--- कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा। भेदो॥ १०७. नपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं॥ १०८. नेरइयनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं 'सव्वेसिं ठिती भाणियन्वा जाव अधेसत्तमापुढविनेरइया"। १०६. तिरिक्खजोणियनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी॥ ११०. एगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं॥ १११. पुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वावीसं वाससहस्साई। सव्वेसिं एगिदियनपंसगाणं ठिती भाणियव्वा ॥ ११२. 'बेइंदियतेइंदियचउरिदियनपंसगाणं ठिती भाणितव्वा । ११३. पंचिंदियतिरिक्खिजोणियनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एवं जलयरतिरिक्खजोणियनपुंसगचउप्पदथलयर-उरगपरिसप्पभुयगपरिसप्प-खहयरतिरिक्खजोणियनपुंसगस्स सव्वेसि जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी॥ १. पुव्वुत्तभेदो आसालियवज्जितो (ग); मलयगि- बावीसा तमतमा वावीस तेत्तीस । मलयगिरिणा रिवत्तौ खिचराश्च' अतोने एते च प्राग्वत्स- 'विशेषचिन्तायां' इति उल्लेखपूर्वकं विस्तृतप्रभेदा वक्तव्याः' इत्येव व्याख्यातमस्ति । 'ता' वाचना व्याख्यातास्ति। प्रती पाठसंक्षेपो विद्यते। ४. जी० १। ६५, ७४, ७६, ८२। 'ता' प्रती २. अतोने क, ख, ग' आदर्शेष एते वर्णा : विस्तृतवाचना दृश्यते-पुढिवि एवं विधा आउ लिखिता दृश्यन्ते ल त ला घ ह्रा। 'ट' प्रती णपंस ग्रा तेउ ३ रातिदिया वाउ ३ वास सह 'जाव भाणियव्वो' इति पाठोस्ति । 'ता' प्रतौ वण दस वास सह । मलयगिरिवृत्तावपि विस्तृतपाठसंक्षेपो विद्यते। मलयगिरिणा एतेपि प्राग्व- वाचना व्याख्यातास्ति । त्सप्रभेदा वक्तव्याः' इति व्याख्यातम् । ५. 'ता' प्रतौ एवं पाठो विद्यते-बेदि वार वासा ३. 'ता' प्रत्तौ विस्तृतवाचना दृश्यते- रतणाए तेंदि अउणपण्णं राति चतु छम्मास । मलयजहं दस वा उक्को सागरं सक्कर ३ वालु गिरिणापि इत्थमेव व्याख्यातम् ।। ३ ग्रा पंक ग्रा द धूम द दना तमाए सत्तदस Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० जीवाजीवाभिगमे ११४. मणुस्सनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी । धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी॥ ११५. कम्मभूमगभरहेरवय-पुव्वविदेह-अवरविदेहमणुस्सनपुंसगस्सवि तहेव ।। ११६. अकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च 'जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं"। साहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी। एवं जाव अंतरदीवगाणं ॥ ११७. नपुंसए णं भंते ! नपुंसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं वणस्सइकालो॥ ११८. जेरइयनपुंसए' णं भंते ! हेरइयनपुंसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। एवं पुढवीए ठिती भाणियव्वा ।। ११६. तिरिक्खजोणियनपुंसए णं भंते ! तिरिक्खजोणियनपुंसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। १२०. एवं एगिदियनपुंसगस्स वणस्सतिकाइयस्सवि एवमेव। सेसाणं जहण्णणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं-असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालतो, खेत्तओ असंखेज्जा लोया ॥ १२१. बेइंदियतेइंदियचउरिदियनपुंसगाण य जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्ज कालं ॥ १२२. 'पंचिदियतिरिक्खजोणियनपुंसए णं भंते ! पंचिदियतिरिक्खजोणियनपुंसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडिपुहत्तं । एवं जलयरतिरिक्खचउप्पदथलचरउरपरिसप्पभुयपरिसप्पमहोरगाणवि ॥ १२३. मणुस्सनपुंसगस्स णं भंते ! मणुस्सनसएत्ति कालतो केवच्चिर होइ ? खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडिपुहत्तं । धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी। एवं कम्मभूमगभरहेरवयपुव्वविदेहअवरविदेहेसुवि भाणियव्वं ॥ १२४. अकम्मभूमगमणुस्सनपुंसए णं भंते ! अकम्मभूमगमणुस्सनसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं मुहत्तपुहत्तं। साहरणं पडुच्च जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी। एवं सव्वेसिं जाव १. जहणणवि उक्को अंतो मु (ता)। एगिदिणसए पुढवि आउ वा जणय पूढवि२. तरुकालो (क, ख, ग, ट)। कालो वणस्सतीणं वण कालो पिगलाणं संखेज्ज३. 'ता' प्रतौ अस्य सूत्रस्य स्थाने पाठसंक्षेप कालं। एवमस्ति-णेरइयाणं जधा ठिती। ६. एवं जाव खहचर (ता)। ४. पण्ण० ४१४-२२। ७. x (क, ख, ग, ट)। ५. 'ता' प्रतौ द्वीन्द्रियादिपर्यन्तं एवं पाठोस्ति Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती २५१ अंतरदीवगाणं ॥ १२५. नपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं । १२६. णेरइयनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ? जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो॥ १२७. रयणप्पभापुढवीनेरइयनपुंसगस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो, एवं सव्वेसि जाव' अधेसत्तमा । १२८. तिरिक्खजोणियनपुंसगस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं । १२६. एगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगस्स जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाई॥ १३०. पुढविआउतेउवाऊणं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो॥ १३१. 'वणस्सतिकाइयाणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज कालं जाव असंखेज्जा लोया"। बेइंदियादीणं जाव खहयराणं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ १३२. मणस्सनपुंसगस्स खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो । धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवडढपोग्गलपरियट्टदेसूणं । एवं कम्मभूमकस्सवि भरतेरवतस्स पुव्वविदेहअवरविदेहकस्सवि ॥ १३३. अकम्मभूमकमणुस्सनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। संहरणं पड़च्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो । एवं जाव अंतरदीवगत्ति ॥ १३४. एतेसि णं भंते ! णेरइयनपुंसगाणं तिरिक्खजोणियनपुंसगाणं मणुस्सनसगाण य कतरे कतरेहितो' 'अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा मणुस्सनपुंसगा २. नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ३. तिरिक्खजोणियनपुंसगा अणंतगुणा॥ १३५. एतेसि णं भंते ! नेरइयनपुंसगाणं-रयणप्पहापुढविणेरइयनपुंसगाणं जाव अहेसत्तमपुढविणेरइयनपुंसगाण य कतरे कतरेहितो 'अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा अहेसत्तमपुढविनेरइयनपुंसगा ६. छट्टपुढविणेरइनपुंसगा असंखेज्जगुणा जाव दोच्चपुढविणेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ७. इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ॥ १३६. एतेसि णं भंते ! तिरिक्खजोणियनपुंसगाणं-एगिदियतिरिक्खजोणिय१. तरुकालो (क, ख, ग, ट)। ५. सं० पा०-कतरेहितो जाव विसेसाहिया। २. जी० २।११६ । ६. x (ग, ट, ता)। ३. वणस्सतीणं पुढविकालो (ता) ७. सं० पा०-कतरेहितो जाव विसेसाहिया । ४. सेसाणं बेइंदियादीणं (क, ख, ग, ट)। Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ जीवाजीवाभिगमे नपुंसगाणं पुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं जाव वणस्सतिकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं, बेइंदियतेइंदियचउरिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं-जलयराणं थलयराणं खहयराण य कतरे कतरेहितो' अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा खहयरतिरिक्खजोणियनपुंसगा २. थलयरतिरिक्खजोणियनपुंसगा संखेज्जगुणा ३. जलयरतिरिक्खजोणियनपुंसगा संखेज्जगुणा ४. चतुरिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया ५. तेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया ६. बेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया ७. तेउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा असंखेज्जगुणा ८. पुढविक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपंसगा विसेसाहिया ६. 'आऊ विसेसाहिया १०. वाऊ विसेसाहिया" ११. वणस्सतिकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा अणंतगुणा ॥ १३७. एतेसि णं भंते ! मणुस्सनपुंसगाणं-कम्मभूमिनपुंसगाणं अकम्मभूमिनपुंसगाणं अंतरदीवगनपुंसगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा अंतरदीवगअकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगा ११. देवकुरु उत्तरकुरुअकम्मभूमगा दोवि संखंज्जगूणा एवं जाव पुव्वविदेहअवरविदेहकम्मभमगा दोवि संखज्जगणा॥ १३८. एतेसि णं भंते ! रइयनपंसगाणं--रयणप्पभापूढविनेरइयनपंसगाणं जाव अधेसत्तमापुढविणेरइयनपुंसगाणं, तिरिक्खजोणियनपुंसगाणं-एगिदियतिरिक्खजोणियाणं पुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं जाव वणस्सतिकाइयएगि दियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं बेइंदियतेइंदियचतुरिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं-जलयराणं थलयराणं खयराणं, मणुस्सनपुंसगाणं-कम्मभूमिगाणं अकम्मभमिगाणं अंतरदीवगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा अधेसत्तमपुढविणेरइयनपुंसगा ६. छट्ठपुढविनेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा जाव दोच्चपुढविनेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ७. अंतरदीवगमणुस्सनपुंसगा असंखेज्जगुणा १७. देवकुरुउत्तरकुरुअकम्मभूमिगमणुस्सनपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा जाव पुव्वविदेहअवरविदेहकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा १८. रयणप्पभापुढविणेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा १६. खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा असंखेज्जगुणा २०. थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा संखेज्जगुणा २१. जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा संखेज्जगुणा २२. चतुरिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया २३. तेइंदिय तिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया २४. बेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया २५. तेउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा असंखेज्जगुणा २६. पुढविकाइयएगिदियतिरिक्खिजोणियनपुंसगा विसेसाहिया २७. आउक्काइयतिरिक्खिजोणियनपुंसगा विसेसाहिया २८. वाउकाइयतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया २६. वणस्सइकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनसगा अणंतगुणा ॥ १३६. नपुंसगवेदस्स णं भंते ! कम्मस्स केवतियं कालं बंधठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दोण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागेण ऊणगा, १. सं० पा०-कतरेहितो जाव विसेसाहिया। २. एवं आउवाउ (क, ख, ग, ट)। Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती २५३ उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, 'दोण्णि य वाससहस्साइं" अबाधा, अबाहूणिया कम्मठिती कम्मणिसेगो॥ १४०. नपुंसगवेदे णं भंते ! किंपगारे पण्णत्ते ? गोयमा ! महाणगरदाहसमाणे पण्णत्ते समणाउसो ! से तं नपुंसगा ।। १४१. एतासिणं भंते ! इत्थीणं पुरिसाणं नपुंसगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बया वा तुल्ला वा विसेसा हिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा पुरिसा २. इत्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. नपुंसगा अणंतगुणा ॥ १४२. एतासि णं भंते ! तिरिक्खजोणिइत्थीणं तिरिक्खजोणियपुरिसाणं तिरिक्खजोणियनपुंसगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा तिरिक्खजोणियपुरिसा २. तिरिक्खजोणिइत्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. तिरिक्खजोणियनपुंसगा अणंतगुणा ॥ १४३. एतासि णं भंते ! मणुस्सित्थीणं मणुस्सपुरिसाणं मणुस्सनपुंसगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा मणुस्सपुरिसा २. मणुस्सित्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. मणुस्सनपुंसगा असंखेज्जगुणा ।। १४४. एतासि णं भंते ! देवित्थीणं देवपुरिसाणं णेरइयनपुंसगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसांहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा णेरइयनपुंसगा २. देवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३. देवित्थीओ संखेज्जगुणाओ॥ १४५. एतासि णं भंते ! तिरिक्खजोणित्थीणं तिरिक्खजोणियपुरिसाणं तिरिक्खजोणियनपुंसगाणं, मणुस्सित्थीणं मणुस्सपुरिसाणं मणुस्सनपुंसगाणं, देवित्थीणं देवपुरिसाणं णेरइयनपुंसगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिय वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा मणुस्सपुरिसा २. मणुस्सित्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. मणुस्सनपुंसगा असंखेज्जगुणा ४. णेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ५. तिरिक्खजोणियपुरिसा असंखेज्जगुणा ६ तिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ७. देवपुरिसा संखेज्जगुणा' ८. देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ६. तिरिक्खजोणियनपुंसगा अणंतगुणा ॥ ..... १४६. एतासि णं भंते ! तिरिक्खजोणित्थीणं-जलयरीणं थलयरीणं खहयरीणं, तिरिक्खजोणियपूरिसाणं-जलयराणं थलयराणं खहयराणं, तिरिक्खजोणियनपंसगाणंएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं पुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं जाव वणस्सतिकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं बेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं तेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं चउरिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं-जलयराणं थलय राणं खहयराणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा खयरतिरिक्खजोणियपुरिसा २. खहयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ३. थलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियपुरिसा संखेज्जगुणा ४. थलयरपंचिदियतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ५. जलयरतिरिक्ख१. वीस य वास सया (ता)। सर्वत्र । २. एतेसि (क, ख, ग, ट); एगासि (ता) ३. असंखेज्जगुणा (क, ख, ८) Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ जीवाजीवाभिगमे जोणियपुरिसा संखेज्जगुणा ६. जलयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ७. खहयरपंचिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा असंखेज्जगुणा ८. थलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा संखेज्जगुणा १. जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा संखेज्जगुणा १०. चउरिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया ११. तेइंदियनपुंसगा विसेसाहिया १२. बेइंदियनपुंसगा विसेसाहिया १३. तेउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा असंखेज्जगुणा १४. पुढविकाइयनपुंसगा विसेसाहिया १५. आउक्काइयनपुंसगा विसेसाहिया १६. वाउक्काइयनपुंसगा विसेसाहिया १७. वणस्सतिकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा अणंतगुणा ॥ १४७. एतासि णं भंते ! मणुस्सित्थीणं-कम्मभूमियाणं अकम्मभूमियाणं अंतरदीवियाणं, मणस्सपुरिसाणं-कम्मभूमगाणं अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं, मणुस्सनपुंसगाणंकम्मभूमगाणं' अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! २. अंतरदीवगा मणुस्सित्थियाओ मणुस्सपुरिसा य एते णं दोण्णि वि तुल्ला सव्वत्थोवा ६. देवकुरुउत्तरकुरुअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ मणुस्सपुरिसा एते णं दोण्णिवि तुल्ला संखेज्जगुणा १०. हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ मणुस्सपुरिसा य एते णं दोण्णिवि तुल्ला संखेज्जगुणा १४. हेमवतहेरण्णवतअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ मणुस्सपुरिसा य दोण्णिवि तुल्ला संखेज्जगुणा १६. भरहेरवतकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा दोवि संखेज्जगुणा १८. भरहेरवतकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि संखेज्जगुणाओ। २०. पुव्वविदेहअवरविदेहकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा दोवि संखेज्जगुणा २२. पुन्वविदेहअवरविदेहकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि संखेज्जगुणाओ २३. अंतरदीवगमणुस्सनपुंसगा असंखेज्जगुणा २५. देवकुरुउत्तरकुरुअकम्मभूमगमणस्सनपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा २७. 'हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा २६. हेमवतहेरण्णवतअकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा ३१. भरहेरवतकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा" ३३. पुव्वविदेहअवरविदेहकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा ॥ १४८. एतासि णं भंते ! देवित्थीण-भवणवासिणीणं वाणमंतरीणं जोइसिणीणं वेमाणिणीणं, देवपुरिसाणं-भवणवासीणं जाव वेमाणियाणं, सोधम्मकाणं जाव गेवेज्जकाणं अणुत्तरोववातियाणं, णेरइयनपुंसगाणं-रयणप्पभापुढविणेरइयनपुंसगाणं जाव अहेसत्तमपुढविनेरइयनपुंसगाणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा अणुत्तरोववातियदेवपुरिसा ८. उवरिमगेवेज्जदेवपुरिसा संखेज्जगुणा 'तहेव जाव आणते" कप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा, ६. अहेसत्तमाए पुढवीए णेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा १०. छट्ठीए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ११. सहस्सारे कप्पे देवपूरिसा असंखेज्जगुणा १२. महासुक्के कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा १३. पंचमाए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा १४. तए कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा १५. चउत्थीए पढवीए नेरइया असंखेज्जगणा १६. बंभलोए कप्प देवपूरिसा असंखेज्जगणा १७. तच्चाए १. कम्मभूमिकाणं (क); कम्मभूमाणं (ग)। २. एवं तहेव जाव (क, ख, ग, ट)। ३. मज्झिम गे सं हेट्ठिम गे अच्चते क दे पुरि सं जाव आणते (ता)। Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चातिविहपडिवत्ती २५५ पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा १८. माहिदे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा १६. सकुमारे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा २०. दोच्चाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा २१. ईसाणे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा २२. ईसाणे कप्पे देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ २३. सोधमे कप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा २४. सोधम्मे कप्पे देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ २५. भवणवासिदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा २६. भवणवासिदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ २७. इमीसे रयणप्पभापुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा २८ वाणमंतरदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा २६. वाणमंतरदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ३०. जोतिसियदेवपुरिसा संखेज्जगुणा ३१. जोतिसियदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ || १४६. एतासि णं भंते! तिरिक्खजोणित्थीणं - जलयरीणं थलयरीणं खहयरीणं, तिरिक्खजोणियपुरिसाणं - जलयराणं थलयराणं खहयराणं, तिरिक्खजोणियपुरिसाणंजलयराणं थलयराणं खहयराणं, तिरिक्खजिोणयनपुंसगाणं एगिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं – पुढविक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियन पुंसगाणं आउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोगियनपुंसगाणं जाव वणस्सतिकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं बेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं तेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं चउरिदियतिरिखखजोणियनपुंसगाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं - जलयराणं थलयराणं खहयराणं, मणुस्सित्थीणं - कम्म भूमियाणं अम्मभूमियाणं अंतरदीवियाणं, मणुस्सपुरिसाणं - कम्मभूमगाणं अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं, मणुस्सनपुंसगाणं - कम्मभूमगाणं अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं, देवित्थीर्ण — भवणवासिणीणं वाणमंतरीणं जोतिसिणीणं वेमाणिणीणं, देवपुरिसाणं - भवणवासीणं वाणमंतराणं जोतिसियाणं वेमाणियाणं, सोधम्मकाणं जाव गेवेज्जकाणं अणुत्तरोववातियाणं, नेरइयनपुंसगाणं - रयणप्पभापुढविने रइयनपुंसगाणं जाव अहेसत्तमपुढविणे रइयनपुंसगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! २. अंतरदीवगअम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ मणुस्सपुरिसा य एते णं दोवि तुल्ला सव्वत्थोवा, ६. देवकुरुउत्तरकुरुअकम्मभूमगमणुस्सित्थीओ पुरिसा य, एते णं दोवि तुल्ला संखेज्जगुणा । एवं १०. हरिवासरम्मगवास अकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ। एवं १४. हेमवतहेरण्णवय १६. भरहेरवयकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा' दोवि संखेज्जगुणा १८. भरहेरवतकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ दोवि संखेज्जगुणाओ २०. पुब्वविदेह अवरविदेह कम्मभूमगमणुस्स पुरिसा दोवि संखेज्जगुणा २२. पुव्वविदेहअवरविदेहकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि संखेज्जगुणाओ २३. अणुत्तरोववातियदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३०. उवरिमगेवेज्जा देवपुरिसा संखेज्जगुणा जाव आणते कप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा ३१- अधेसत्तमाए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ३२. छट्ठी पुढवीए ने रइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ३३. सहस्सारे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३४. महासुक्के कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३५. पंचमाए पुढबीए ने रइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ३६. लंतए कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३७. चउत्थीए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ३८. बंभलोए कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३६ तच्चाए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ४०. माहिदे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा ४१. सणकुमारे १. 'हेरवयवासकम्म' (क, ग, ट) । Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ जीवाजीवाभिगमे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्ज्गुणा' ४२. दोच्चाए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ४३ अंतरदीवगअकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगा असंखेज्जगुणा ५३. देवकुरुउत्तरकुरुअकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा । एवं जाव' विदेहत्ति ५४. ईसाणे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा ५५. ईसाणे कप्पे देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ५६. सोधम्मे कप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा ५७. सोहम्मे कप्पे देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ५८. भवणवासिदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा ५६. भवणवासिदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ६०. इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ६१. खहयरतिरिक्खजोणियपुरिसा संखेज्जगुणा ६२. खहयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ६३. थलयरतिरिक्खजोणियपुरिसा संखेज्जगणा ६४. थलयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ६५. जलयरतिरिक्खजोणियपुरिसा संखेज्जगुणा ६६. जलयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ६७. वाणमंतरदेवपुरिसा संखेज्जगुणा ६८. वाणमंतरदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ६६. जोतिसियदेवपुरिसा संखेज्जगुणा ७०. जोतिसियदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ७१. खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा' असंखेज्जगणा ७२. थलयरनपंसगा संखेज्जगुणा ७३. जलयरनपुंसगा संखेज्जगणा ७४. चतुरिंदियनपुंसगा विसेसाहिया ७५. तेइंदियनपुंसगा विसेसाहिया ७६. बेइंदियनपुंसगा विसेसाहिया ७७. ते उक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा असंखेज्जगुणा ७८. पुढविक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया ७६. आउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया ८०. वाउक्काइयएगि दियतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया ८१. वणस्सतिकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा अणंतगुणा॥ १५०. इत्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती. पण्णत्ता ? गोयमा ! एगेणं आएसेणं जहा पुवि भणियं । एवं पुरिसस्सवि नपुंसगस्सवि। संचिट्ठणा पुणरवि तिण्हंपि जहा पूवि भणिया। अंतरंपि तिण्हपि जहा पुदिव भणियं तहा नेयव्वं ।। १५१. तिरिक्खजोणित्थियाओ तिरिक्खजोणियपुरिसेहितो तिगुणाओ तिरूवाहियाओ, मणुस्सित्थियाओ मणुस्सपुरिसेहितो सत्तावीसतिगुणाओ सत्तावीसतिरूवाहियाओ, देवित्थियाओ देवपुरिसेहितो बत्तीसइगुणाओ बत्तीसइरूवाहियाओ। सेत्तं तिविधा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ।। संगहणी गाहा तिविहेसु होइ भेओ, ठिई य संचिट्ठणंतरप्पबहुँ वेदाण य बंधठिती, वेओ तह किंपगारो उ" ॥१॥ १. संखेज्जगुणा (क, ख, ग, ता)। २. देवकुरूत्तरकुर्वकर्मभूमकहरिवर्षरम्यकवर्षा- कर्मभूमकहैमवतहै रण्यवताकर्मभूमकभरतरवतकर्मभूमकपूर्वविदेहापरविदेहकर्मभूमकमनुष्यनपुंसका यथोत्तरं संखेयगुणाः (मव)। ३. नपंसा (ग)। __४. वणप्फइ (क, ख, ग)। ५. जी० २।२०-४७; ७६-८१, १०७-११६ । ६. जी० २।४८-६२; ८२-८५; ११७-१२२ । ७. जी० २।६३-६७; ८६-६३; १२४-१३३ । ८. तहप्पबहुँ (क)। ६. किंपगारे य (ट, ता)। Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती १. तत्थ जेते एवमाहंसु 'चउविधा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता' ते एवमाहंसू. तं जहानेरइया तिरिक्खजोणिया मणुस्सा देवा ॥ २. से किं तं नेरइया ? नेरइया सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा-पढमापढविनेरइया' दोच्चापुढविनेरइया तच्चापुढविनेरइया चउत्थापुढवीनेरइया पंचमापुढवीनेरइया हट्टापुढविनेरइया सत्तमापुढवीनेरइया।। ३. पढमा णं भंते ! पुढवी किनामा किंगोत्ता पण्णत्ता ? गोयमा ! घम्मा णामेणं, रयणप्पभा गोत्तेणं ॥ ४. दोच्चा णं भंते ! पुढवी किनामा किंगोत्ता पण्णत्ता ? गोयमा ! वंसा णामेणं, सक्करप्पभा गोत्तेणं । एवं एतेणं अभिलावेणं सव्वासिं पुच्छा, णामाणि इमाणि सेला तच्चा अंजणा चउत्थी रिट्ठा पंचमी मघा छट्ठी माघवती सत्तमा जाव' तमतमा गोत्तेणं पण्णत्ता ॥ ५. इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी केवतिया बाहल्लेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! इमा गं रयणप्पभापुढवी असिउत्तरं जोयणसयसहस्सं बाहल्लेणं पण्णत्ता । एवं एतेणं अभिलावेणं इमा गाहा अणुगंतव्वा आसीतं बत्तीसं, अट्ठावीसं तहेव' वीसं च । __ अट्ठारस सोलसगं, अठ्ठत्तरमेव हिट्ठिमिया ॥१॥ ६. इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी कतिविधा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविधा पण्णत्ता, तं जहा-खरकंडे पंकबहुले कंडे आववहुले कंडे ।। १. पढमपु (क, ख, ट)। घम्मा वंसा सेला अंजण रिट्रा भधाय माघ२. पण्ण० ११५३ । वती। ३. 'ता' प्रतौ अस्यालापकस्य पाठ एवमस्ति- सत्तण्हं पुढवीणं एए नामा उ नायव्वा ॥१॥ एवं घम्मा वंसा सेला अंजणरिट्टा मघा य रयणा सक्कर वालुय पंका धूमा तमा तममाघवती। सत्तण्डं पुढवीणं एते णामा मुणे तमा य । तव्वा जाव सत्तमा माघवती णामेणं तमतमा ___ सत्तण्डं पुढवीणं एए गोत्ता मुणेषव्या ॥२॥ गोत्तेणं पण्णत्ता। मलयगिरिवृत्ती पाठान्तरस्य । ४. जोतण (क)। उल्लेखोस्ति–अत्र केषुचित्पुस्तकेषु संग्रहणि ५. च होति (ता, मवृ) । गाथे ६. अवबहुले (क); आदबहुले (ता)। २५७ Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ७. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए खरकंडे कतिविधे पण्णत्ते ? गोयमा ! सोलसविधे पण्णत्ते, तं जहा - १. रयणे २. वइरे ३. वेरु लिए ४. लोहितक्खे ५. मसारगल्ले ६. हंसगब्भे ७. पुलए ८. सोयंधिए ६. जोतिरसे १०. अंजणे ११. अंजणपुलए १२. रयते १३. जातरूवे १४. अंके १५. फलिहे १६. रिट्ठे कंडे ।। २५८ ८. इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए रयणकंडे कतिविधे पण्णत्ते ? गोयमा ! गागारे पत्ते । एवं जाव रिट्ठे ।। ६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए पंकबहुले कंडे कतिविधे पण्णत्ते ? गोयमा ! गागारे पण्णत्ते || १०. एवं आवबहुले कंडे कतिविधे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते ॥ ११. सक्करप्पभाणं भंते! पुढवी कतिविधा पण्णत्ता ? गोयमा ! एगागारा पण्णत्ता । एवं जाव असत्तमा । १२. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए केवतिया निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता ? गोमा ! तीसं णिरयावाससय सहस्सा' पण्णत्ता । एवं एतेणं अभिलावेणं सव्वासि पुच्छा, इमा गाहा अगुगंतव्वा - तीसा य पणवीसा, पण्णरस दसेव तिण्णि य हवंति । पंचूणसय सहस्सं, पंचेव अणुत्तरा परगा ॥१॥ जाव असत्तमाए पंच अणुत्तरा महतिमहालया महाणरगा पण्णत्ता, तं महाकाले रोरुए महारोरुए अपतिट्ठाणे | १३. अत्थि णं भंते ! इमी से रयणप्पभाए पुढवीए अहे घणोदधीति वा घणवातेति वा तणुवाति वा ओवासंतरेति वा ? हंता अत्थि । एवं जाव अहेसत्तमाए ॥ १४. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए खरकंडे केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! सोलसजोयणसहस्साइं बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १५. इमी से णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रयणकंडे केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एक्कं जोयणसहस्सं बाहल्लेणं पण्णत्ते । एवं जाव रिट्ठे || १६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए पंकबहुले कंडे केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! चउरासीतिजोयणसहस्साइं बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १७. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए आवबहुले कंडे केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! असीतिजोयणसहस्साइं बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १८. इमी से णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदही केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? १. रतणकंडे (क, ग ); रयणकंडे (ख, ट ) ; रणाम कंडे (ता) । २. अतोग्रे 'ता' प्रती भिन्नः पाठोस्ति तीसा य पण्णवीसा पण्णवीसा पण्णरस दसेव जहा - काले सतसहस्साइं । तिण्णेगं पंचूर्ण पंचेव अणत्तरा णरता ॥ जावसत्तमाए णं भंते केवति णिरयावाससतस गो पंचदिसि पंच अणुत्तरा महमहालया महाणिरया पं तं काले महाकाले रोरुए महारोरुए अप्पतिट्ठाणे णाम पंचमे । ३. आउबहुले (ख, ट, ता ) । Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती २५६ गोयमा ! वीसं जोयणसहस्साइं बाहल्लेणं पण्णत्ते ।। १६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणवाते केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं बाहल्लेणं पण्णत्ते। ‘एवं तणुवातेवि ओवासंतरेवि"॥ २०. सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए घणोदही केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! वीसं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते ।। २१. सक्करप्पभाए पुढवीए घणवाते केवतिए वाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं वाहल्लेणं पण्णत्ते । एवं तणुवातेवि, ओवासंतरेवि। जहा सक्करप्पभाए पुढवीए एवं जाव अधेसत्तमाए॥ २२. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसतसहस्सबाहल्लाए खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणीए अस्थि दव्वाइं वण्णतो काल-नील-लोहित-हालिद्द-सुक्किलाई, गंधतो सुरभिगंधाई दुब्भिगंधाइं, रसतो तित्त-कडुय-कसाय-अंबिल-महुराई, फासतो कक्खड-मउय-गरुय-लहु-सीत-उसिण-णिद्ध-लुक्खाइं, संठाणतो परिमंडल-बट्ट-तंस-चउरंसआययसंठाणपरिणयाइं अण्णमण्णवद्धाई अण्णमण्णपुढाई अण्णमण्णओगाढाइं अण्णमण्णसिणेहपडिबद्धाइं अण्णमण्णघडत्ताए चिट्ठति ? हंता अत्थि ॥ २३. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए खरकंडस्स सोलसजोयणसहस्सवाहल्लस्स खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणस्स अत्थि दव्वाइं जाव' ? हंता अत्थि ॥ २४. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रयणनामगस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणस्स तं चेव जाव ? हंता अत्थि । एवं जाव रिटुस्स ॥ २५. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए पंकबहुलस्स कंडस्स चउरासीतिजोयणसहस्सबाहल्लस्स खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणस्स तं चेव । एवं आवबहुलस्सवि असीतिजोयण सहस्सबाहल्लस्स ॥ २६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिस्स वीसं जोयणसहस्सबाहल्लस्स खेत्तच्छेएण तहेव । एवं घणवातस्स असंखेज्जजोयणसहस्सबाहल्लस्स तहेव । 'तणुवातस्स ओवासंतरस्सवि तं चेव"। २७. सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए बत्तीसुत्तरजोयणसतसहस्सवाहल्लाए खेतच्छेएण छिज्जमाणीए अस्थि दव्वाइं वण्णतो जाव अण्णमण्णघडत्ताए चिट्ठति ? हंता अत्थि। एवं घणोदहिस्स वीसजोयणसहस्सवाहल्लस्स, घणवातस्स असंखज्जजोयणसहस्सबाहल्लस्स, एवं जाव ओवासंतरस्स । जहा सक्करप्पभाए एवं जाव अहेसत्तमाए। २८. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी किंसंठिता पण्णत्ता ? गोयमा ! झल्लरि१. तणुवाते एवं चेव इमीसे र ओवासंतरे के एवं रतणादीणं जाव रिठेत्ति । बाहल्ले असंखेज्जाइंजोयण सह बाह पं (ता)। ४. 'ता' प्रतौ अत्र पाठभेदो विद्यते-तणवातोवा२. वण्णतो काल जाव परिणयाई (क, ख, ग, संतराणं असंखजोयण सह बाहल्लेणं जस्स जं ट)। पमाणं तस्स तं भाणितव्वं । ३. 'ता' प्रतौ अस्य सूत्रस्य पाठसंक्षेप एवमस्ति Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० संठिता पण्णत्ता ॥ २६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए खरकंडे किंसंठिते पण्णत्ते ? गोयमा ! झल्लरिसंठिते पण्णत्ते ॥ ३०. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रयणकंडे किंसंठिते पण्णत्ते ? गोयमा ! झल्लरिसंठिए पण्णत्ते । एवं जाव रिट्ठे । एवं पंकबहुलेवि । एवं आवबहुलेवि, दधीवि, घणवावि, तणुवाएवि, ओवासंतरेवि - सव्वे झल्ल रिसंठिता पण्णत्ता ॥ ३१. सक्करपभा णं भंते ! पुढवी किंसंठिता पण्णत्ता ? गोयमा ! झल्लरिसंठिता जीवाजीवाभिगमे पण्णत्ता ॥ ३२. सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए घणोदधी किंसंठिते पण्णत्ते ? गोयमा ! झल्लरिसंठिते पण्णत्ते । एवं जाव ओवासंतरे । जहा सक्करप्पभाए वत्तव्वया एवं जाव असत्तमावि ॥ ३३. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ केवतियं अबाधाए लोयंते पण्णत्ते ? गोयमा ! दुवालसहिं जोयणेहिं अबाधाए' लोयंते पण्णत्ते । एवं दाहिणिल्लातो पच्चत्थिमिल्लातो उत्तरिल्लातो ॥ ३४. सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए पुरथिमिल्लातो चरिमंतातो केवतियं अबाधाए लोयंते पणते ? गोयमा ! तिभागणेहि तेरसहि जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पण्णत्ते । एवं चउद्दिसिपि ॥ ३५. वालुयप्पभाए णं भंते ! पुढवीए पुरथिमिल्लातो पुच्छा । गोयमा ! सतिभागेहिं तेरसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पण्णत्ते । एवं चउद्दिसिपि ॥ ३६. एवं सव्वासि चउसुवि दिसासु पुच्छितव्वं - पंकप्पभाए चोद्दसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पण्णत्ते । पंचमाए' तिभागूणेहिं पण्णरसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पण्णत्ते । छट्ठीए सतिभागेहि पण्णरसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पण्णत्ते । सत्तमीए सोलसह जोयणेहि अबाधाए लोयंते पण्णत्ते । एवं जाव उत्तरिल्लातो । ३७. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते कतिविधे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - घणोदधिवलए घणवातवलए तणुवातवलए । ३८. इमी से णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए दाहिणिल्ले चरिमंते कतिविधे पण्णत्ते ? गोमा ! तिविधे पण्णत्ते, तं जहा - घणोदधिवलए घणवायवलए तणुवायवलए। एवं जाव उत्तरिल्ले । एवं सव्वासि जाव अधेसत्तमाए उत्तरिल्ले || ३६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिवलए केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! छ जोयणाणि बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १. आबाधाए (क, ख, ट ) । २. 'ता' प्रती अस्य सूत्रस्य स्थाने एवं पठोस्तिचतुत्थीए चोद्दसहि आबाधाए पंचमाए तिभागूणेहि पण्णरसहिं जो कछट्टीए सतिभागे हिं पण्णरसहिं जो ष्क सत्तमीए सोलस चतुद्दिसि । ३. धूमप्पभाए (क, ट) । ४. 'ता' प्रतो अस्य सूत्रस्य स्थाने एवं पाठोस्तिएवं चतुद्दिसि । एवं सेसाण वि पुढ । Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ४०. सक्करप्पभाए' पुढवीए घणोदधिवलए केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! सतिभागाइं छजोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ ४१. वालुयप्पभाए पुच्छा । गोयमा ! तिभागूणाई सत्त जोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ते । एवं एतेणं अभिलावेणं-पंकप्पभाए सत्त जोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ते। धूमप्पभाए सतिभागाई सत्त जोयणाई। तमप्पभाए तिभागूणाई अट्ठ जोयणाई। तमतमप्पभाए अट्ठ जोयणाई॥ ४२. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणवायवलए केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अद्धपंचमाइं जोयणाई बाहल्लेणं ॥ ४३. सक्करप्पभाए पुच्छा। गोयमा ! कोसूणाई पंच जोयणाई बाहल्लेणं । एवं एतेणं अभिलावेणं--वालुयप्पभाए पंच जोयणाई बाहल्लेणं'। पंकप्पभाए सक्कोसाइं पंच जोयणाइं बाहल्लेणं । धूमप्पभाए अद्धछट्ठाइं जोयणाई बाहल्लेणं । तमप्पभाए कोसूणाई छ जोयणाई बाहल्लेणं । अहेसत्तमाए छ जोयणाई बाहल्लेणं ।। ४४. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तणुवायवलए केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! छक्कोसेणं बाहल्लेणं पण्णत्ते । एवं एतेणं अभिलावेणं-सक्करप्पभाए सतिभागे छक्कोसे बाहल्लेणं' । वालुयप्पभाए तिभागूणे सत्त कोसं बाहल्लेणं । पंकप्पभाए पुढवीए सत्त कोसं बाहल्लेणं । धूमप्पभाए सतिभागे सत्त कोसे बाहल्लेणं । तमप्पभाए तिभागूणे अट्ठ कोसे बाहल्लेणं । अधेसत्तमाए पुढवीए अट्ठ कोसे बाहल्लेणं ।। ४५. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिवलयस्स छज्जोयणबाहल्लस्स खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणस्स अत्थि दव्वाइं वण्णतो काल-नील-लोहित-हालिद्द-सुक्किलाई जाव? हंता अत्थि ॥ ४६. सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए घणोदधिवलयस्स सतिभागछजोयणबाहल्लस्स खेत्तच्छेदेणं छिज्जमाणस्स जाव ? हंता अत्थि । एवं जाव अधेसत्तमाए जं जस्स बाहल्लं ।। ४७. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पूढवीए घणवातवलयस्स अद्धपंचमजोयणबाहल्लस्स खेत्तच्छेदेणं छिज्जमाणस्स जाव? हंता अस्थि । एवं जाव अहेसत्तमाए जं जस बाहल्लं । एवं तणुवायवलयस्सवि जाव अधेसत्तमाए जं जस्स बाहल्लं ।। ४८. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिवलए किसंठिते पण्णत्ते ? गोयमा ! वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते पण्णत्ते, 'जे णं इमं५ रयणप्पभं पुढवि सव्वतो संपरिक्खिवित्ताणं चिट्ठति ।। ४६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणवातवलए किंसंठिते पण्णत्ते ? गोयमा ! वट्टे वलयागार संठाणसंठिते पण्णत्ते, जे णं इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए १. 'ता' प्रती सूत्रद्वयस्य स्थाने पाठसंक्षेपोस्ति- ३. क्वचिद् 'बाहल्लेणं पण्णते' इति विद्यते (क, दोच्चए सतिभागाई छ तच्चाए तिभागूणाणि ख, ग, ट )। सत्त चउत्थीए सत्त पंचमाए सतिभागाइं ४. जी० ३।२२ । सतजोयणाई छट्ठी तिभागूणाई अट्ठ सत्तमाए ५. जे णिमं (ता)। अट्ट जो। ६. सं० पा०-वलयागारे तहेव जाव जे। २. बाहल्लेणं पण्णत्ताई (क, ग) सर्वत्र । Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ जीवाजीवाभिगमे घणोदधिवलयं सव्वतो समंता संपरिक्खिवित्ताणं चिट्ठइ। एवं जाव अहेसत्तमाए घणवातवलए । ५०. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तणुवातवलए किसंठिते पण्णत्ते ? गोयमा ! वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए पण्णत्ते, जे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवातवलयं सव्वतो समंता संपरिविखवित्ताणं चिट्ठइ। एवं जाव अधेसत्तमाए तणुवातवलए। ५१. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी केवतियं आयाम-विक्खंभेणं ? 'केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ता" ? गोयमा ! असंबेज्जाइं जोयणसहस्साई आयाम-विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं पण्णत्ते । एवं जाव अधेसत्तमा ।। ५२. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी अंते य मज्झे य सव्वत्थ समा बाहल्लेणं पण्णत्ता ? हंता गोयमा ! इमा णं रयणप्पभा पुढवी अंते य मज्झे य सम्वत्थ समा बाहल्लेणं । एवं जाव अधेसत्तमा ।। ५३. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए सव्वजीवा उववण्णपुव्वा ? सव्वजीवा उववण्णा ? गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए सव्वजीवा उववण्णपुव्वा, नो चेव णं सव्वजीवा उववण्णा । ‘एवं जाव अहेसत्तमाए । ५४. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी सव्वजीवेहि विजढपुव्वा ? सव्वजीवेहि विजढा ? गोयमा ! इमा णं रयणप्पभा पुढवी सव्वजीवेहिं विजढपुव्वा, नो चेव णं सव्वजीवविजढा। एवं जाव अधेसत्तमा ॥ ५५. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए सव्वपोग्गला पविठ्ठपुव्वा ? सव्वपोग्गला पविट्ठा ? गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए सव्वपोग्गला पविट्ठपुव्वा, नो चेव णं सव्वपोग्गला पविट्ठा । एवं जाव अधेसत्तमाए । ५६. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी सव्वपोग्गलेहिं विजढपुव्वा ? सव्वपोग्गला विजढा ? गोयमा ! इमा णं रयणप्पभा पुढवी सव्वपोग्गलेहिं विजढपुव्वा, नो चेव णं सव्वपोग्गलेहिं विजढा । एवं जाव अधेसत्तमा । ५७. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी किं सासता ? असासता ? गोयमा ! सिय सासता, सिय असासता ॥ ५८. से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ-सिय सासता सिय असासता ? गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासता, वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहि फासपज्जवेहिं असासता। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-'सिय सासता", सिय असासता। एवं जाव अधेसत्तमा ॥ ५६. इमा णं भंते। रयणप्पभा पुढवी कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! न कयाइ' १. जाव (क, ख, ग, ट)। ४. अवःसप्तम्यां पृथिव्याम् [मवृ] । २. ४ (क,ख, ग, ट) । ५. सासया (ग, ट, ता)। ३. एवं जाव अहेसत्तमाए पुढवीए (ग, ट); ६. तं चेव जाव (क, ख, ग, ट) । जावतमा (सा); “अवःसप्तम्या: (भवृ)। ७. कदायि (क,ख, ता) । Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चन्विहपडिवत्ती २६३ ण आसि, ण कयाइ' णत्थि, ण कयाई ण भविस्सति । भुवि च भवइ य भविस्सति य धुवा णियया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिता णिच्चा । एवं जाव अधेसत्तमा॥ ६०. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए ‘रयणस्स कंडस्स उवरिल्लातो चरिमताओ" हेढिल्ले चरिमंते, एस णं केवतियं अबाधाए' अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! एक्कं जोयणसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ६१. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए ‘रयणस्स कंडस्स" उवरिल्लातो चरिमंताओ वइरस्स कंडस्स उवरिल्ले चरिमंते, एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! एक्कं जोयणसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ।। ६२. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए ‘रयणस्स कंडस्स" उवरिल्लाओ चरिमंताओ वइरस्स कंडस्स हेटिल्ले चरिमंते, एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! दो जोयणसहस्साइं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते । ‘एवं कंडे-कंडे दो दो आलावगा जाव' रिट्ठस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते सोलस जोयणसहस्साई अबाधाए अंतरे पण्णत्ते॥ ६३. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए ‘रयणस्स कंडस्स" उवरिल्लाओ चरिमंताओ पंकबहुलस्स कंडस्स उवरिल्ले चरिमंते, एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! सोलस जोयणसहस्साइं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते । हेट्ठिल्लेर चरिमंते एक्कं १,२. कतायि (क, ख)। (क, ख, ग, ट)। ३. अतोने क, ख, ग, ट' आदर्शेषु सूत्रद्वयं उप- ६. आबाधाए (क, ता) प्रायः सर्वत्र । लभ्यते-इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए ७.४ (क, ख, ग,ट); रयणामयस्स कंडस्स उवरिल्लातो चरिमंतातो हेट्ठिल्ले चरिमंते एस (ता)। णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णते? गोयमा! ८. x (क, ख, ग, ट)। असिउत्तरं जोयणसतसहस्सं अबाधाए अंतरे ६.जी० ३१७ । पण्णत्ते । इमीसे णं भंते ! रयण पू उवरिल्लातो १०. एवं जाव रिटुस्स उवरिल्ले पण्णरस जोयणचरिमंतातो खरस्स कंडस्स हेटिल्ले चरिमंते सहस्साई हेट्रिल्ले चरिमंते सोलस जोयणएस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णते ? सहस्साइं (क, ख, ग, ट)। गोयमा ! सोलस जोयणसहस्साइं अबाधाए ११. ४ (क, ख, ग, ट)। अंतरे पण्णत्ते । 'ता' प्रतौ नेतद् विद्यते, १२. अत: सूत्रस्य पूर्तिपर्यन्तं मलयगिरिवृत्ती मलयगिरिवृत्तावपि नास्ति व्याख्यातम् । त्रयाणां सूत्राणां पूर्णपाठस्य संकेतो व्याख्या च वत्तिकृता पाठभेदसूचनापि नास्ति कृता । विद्यते, तदनुसारेण पाठसंरचना इत्थं भवति स्यादस्य अर्वाचीनत्वं अथवा वृत्तिकृता नैष -इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए वाचनाभेदः समुपलब्धः । एतत् सूत्रद्वयं रयणकंडस्स उवरिल्लातो चरिमंताओ पंक नावश्यक प्रतीयते, अस्य विषयः ६२,६३ बहुलस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं सूत्रयोः प्रतिपादितोस्ति । तत् सूत्रद्वयस्वीकारे अबाधाए केवतियं अंतरे पण्णते ? गोयमा ! पौनरुक्त्यमेव भवेत् । एक जोयणसयसहस्सं । इमीसे णं भंते ! ४. रयणामयस्स (ता)। रयणप्पभाए पुढवीए रयणकंडस्स उवरिल्लातो ५. उवरिल्लातो चरिमंताओ रयणस्स कंडस्स चरिमंताओ आवबहुलस्स कंडस्स उवरिल्ले Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ जीवाजीवाभिगमे जोयणसयसहस्सं। आवबहुलस्स उवरिल्ले एक्कं जोयणसयसहस्सं, हेदिल्ले चरिमंते असी उत्तरं जोयणसयसहस्सं । 'घणोदहिस्स उवरिल्ले असिउत्तरजोयणसयसहस्सं, हेदिल्ले” चरिमंते दो जोयणसयसहस्साई॥ ६४. इमीसे" णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणवातस्स उवरिल्ले चरिमंते दो जोधणसयसहस्साइं, हेडिल्ले चरिमंते असंखेज्जाइं जोयणसयसहस्साइं । ६५. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तणुवातस्स उवरिल्ले चरिमंते असंखेज्जाई जोपणसयसहस्साइं अबाधाए अंतरे, हेढिल्लेवि असंखेज्जाइं जोयणसयसहस्साइं । एवं ओवासंतरेवि ।। ६६. दोच्चाए' णं भंते ! पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंताओ हेडिल्ले चरिमंते, एस णं केवतियं अवाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! बत्तीसुत्तरं जोयणसयसहस्सं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ६७. दोच्चाए" घणोदधिस्सुवरिल्ले चरिमंते एवं चेव, हेट्ठिल्ले चरिमंते बावण्णुत्तरं जोयसतसहस्सं । घणतणुवातोवासंतराणं जहा रयणाए । ६८. लच्चाए उवरिल्लाओ चरिमंताओ हेट्ठिल्ले चरिमंते अट्ठावीसुत्तरं जोयणसतसहरसं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते। घणोदधिस्स उवरिल्ले चरिमंते एवं चेव, हेदिल्ले चरिमन, एस णं अबाधाए केवतियं अंतरे स्वीकृता । संक्षिप्तवाचना एवमस्तिपणते? गोयमा ! एक जोयणसयसहस्सं । सक्करप्प पु उवरि घणोदधिस्स हेट्रिल्ले इगते ण भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रयण- चरिमंते बावण्णुत्तरं जोयणसयसहस्सं अबाकंडस्स उवरिल्लातो चरिमंताओ आवबहुलस्स धाए । घणवातस्स असंखेज्जाई जोयणसयसहहेट्रिल्ले चरिमंते, एस णं केवतियं अबाधाए स्साइं पण्णता। एवं जाव उवासंतरस्सवि अंतरे पण्णते ? गोयमा ! असीउत्तरं जोयण- जावधेसत्तमाए, णवरं जीसे जं बाहल्लं तेण सयसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते। घणोदधी संबंधेतब्वो बुद्धीए। सक्करप्पभाए १. सहस्सं आबाधाए अं (ता)। अणुसारेणं घणोदहिसहिताणं इमं पमाणं । २. अ.सी उत्तरे (ता)। तच्चाए णं भंते ! अडयालीसूत्तरं जोयणसतस३. सहस्सं आबाधाए अंतरे पं (ता)। हस्सं । पंकप्पभाए पुढवीए चत्तालीसुत्तरं ४. घगोदधिस्सुवरिमे एवं चेव हेट्ठिमे (ता)। जोयणसतसहस्सं । धूमप्पभाए पु अद्रुतीसुत्तरं ५. 'ता' प्रतौ अस्य अग्रिमसूत्रस्य च स्थाने एवं जोयणसतसहस्सं। तमाए पुढवीए छत्तीसुत्तर पाठोस्ति-घणवातस्सुवरिमं एवं चेव हेटिल्ले जोयणसतसहस्सं । अधेसत्तमाए पुडवीए अट्ठाअसंखेज्जाई जोयणस तणवातोवासंतराणं वीसुत्तरं जोयणसतसहस्सं जाव अधेसत्तमाए हेट्रिम उवरिम असंखेज्जाइं जो। णं (अधेसत्तमाए एस णं-ट) भंते ! पुढवीए ६. सक्करप्पभाए (क, ख, ग, ट)। उवरिल्लातो चरिमंतातो उवासंतरस्स हेट्रिल्ले ७.६७-७२ सूत्राणां स्थाने क, ख, ग, ट' आदर्शष चरिमंते केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णते ? संक्षिप्तपाठोस्ति, अर्थबोधोटलतापि विद्यते । गोयमा ! असंखेज्जाई जोयणसयसहस्साई ' पवितवाचनास्ति, अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ॥ अंगाधरमतागि वियतन मूल संव Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्हिडिवत्ती अडयालीसुत्तरं जोयणसतसहस्सं । सेसं जधा रयणाए ॥ ६६. चउत्थीए हेट्ठिल्लातो उवरिल्ले वीसुत्तरं जोयणसतसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते । घणोदधिस्स उवरिल्ले एवं चेव, हेट्ठिल्ले चत्तालीसुत्तरं जोयणसतसहस्सं । से जहा रयणा || ७०. पंचमाए उवरिल्लातो हेट्ठिल्ले अट्ठारसुत्तरं जोयणसतसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते । घणोदधिस्सुवरिल्ले एवं चेव, हेट्ठिमे अट्टतीसुत्तरं जोयणसतसहस्सं । सेसं जधा रयणाए || ७१. छट्टीए उवरिमातो हेट्टिमं सोलसुत्तरं जोयणसतसहस्सं अबाधाएं अंतरे पण्णत्ते । दधि उवरिमं एवं चेव, हेट्ठिल्ले छत्तीसुत्तरं जोयणसतसहस्सं । सेसं जहा रयणाए । ७२. सत्तमा हेट्ठिल्लातो उवरिल्ले अट्ठत्तरं जोयणसतसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते । घणोदधिस्स उवरिमं एवं चेव, हेट्ठिमं अट्ठावीसुत्तरं जोयणसतसहस्सं । सेसं जहा २६५ रयणाए || ७३. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी दोच्चं पुढवि पणिहाय बाहल्लेणं किं तुल्ला ? विसेसाहिया ? संखेज्जगुणा ? वित्थारेण किं तुल्ला ? विसेसहीणा ? संखेज्जगुणहीणा ? गोमा ! इमाणं रयणप्पभा पुढवी दोच्चं पुढवि पणिहाय बाहल्लेणं नो तुल्ला, विसेसाहिया, नो संखेज्जगुणा | वित्थारेण नो तुल्ला, विसेसहीणा, नो संखेज्जगुणहीणा ॥ ७४. दोच्चाणं भंते ! पुढवी तच्चं पुढव पणिहाय बाहल्लेणं किं तुल्ला ? एवं चेव भाणितव्वं । एवं तच्चा चउत्थी पंचमी छट्ठी ॥ ७५. छट्ठी णं भंते ! पुढवी सत्तमं पुढव पणिहाय बाहल्लेणं किं तुल्ला ? विसेसा - हिया ? संखेज्जगुणा ? एवं चैव भाणियव्वं । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ॥ नेरइयउद्देसओ बीभो ७६. कइ णं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - रयणप्पभा जाव असत्तमा ॥ ७७. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयस हस्सबाहल्लाए उर्वार hari गाहिता केवइयं वज्जित्ता मज्झे केवतिए केवतिया निरयावासस्यसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसय सहस्सबाहल्लाए वर एवं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठावि एगं जोयणसहस्सं वज्जित्ता मज्झे अडहत्तरे' जोयणसयसहस्से, एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए ने रइयाणं तीसं निरयावाससयसहस्साई भवतित्तिमखाया । ते णं णरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा जाव असुभा णरएसु वेयणा, एवं एए अभिलावेण उवजुंजिऊण भाणियव्वं ठाणप्पयाणुसारेणं । जत्थ जं बाहल्लं जत्थ जत्तिया वा नरयावाससयसहस्सा जाव अहेसत्तमाए पुढवीए । अहसत्तमाए मज्झिमं केवतिए कति अणुत्तरा महइमहालया महाणिरया पण्णत्ता एवं पुच्छितव्वं वागरेयव्वंपि तहेव । छट्ठी१. वित्थरेणं ( ता ) ।। २. अडसत्तरी ( ग ) ; अट्ठत्तरे (ता) । ३. णरयावासं सतसहस्सा (ता) | ४. पण्ण० २।२१-२७ । ५. उववज्जिऊण ( ख, ग ) । (क, ट ) ; उवउंजिऊण Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ जीवाजीवाभिगमे सत्तमासु काऊअगणिवण्णाभा भाणियव्वा ॥ ७८. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरका' किंसंठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--आवलियपविट्ठा य आवलियबाहिरा य । तत्थ णं जेते आवलियपविट्ठा ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–वट्टा तंसा चउरसा। तत्थ णं जेते आवलियबाहिरा ते णाणासंठाणसंठिया पण्णत्ता, तं जहा-अयकोढसंठिता' पिट्ठपयणगसंठिता' कंडसंठिता लोहीसंठिता कडाहसंठिता थालीसंठिता पिहडगसंठिता किण्हसंठिता उडवसंठिता" मुरवसंठिता मुयंगसंठिता नंदिमुयंगसंठिता आलिंगकसंठिता सुघोससंठिता दद्दरयसंठिता पणवसंठिता पडहसंठिता भेरिसंठिता झल्लरीसंठिता कुत्तुंबकसंठिता नालिसंठिता। एवं जाव तमाए॥ ७६. अहेसत्तमाएणं भंते ! पुढवीए णरका किंसंठिता पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--बट्टे य तंसा य । ८०. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरका केवतियं पाहल्लेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! तिण्णि जोयणसहस्साइं, बाहल्लेणं पण्णत्ता, तं जहा–'हेट्ठा घणा सहस्सं", मज्झे झुसिरा सहस्सं, उप्पि संकुइया सहस्सं । एवं जाव अहेसत्तमाए। ८१. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरका केवतियं आयामविक्खंभेणं ? केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संखेज्जवित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य । तत्थ णं जेते संखेज्जवित्थडा ते णं संखेज्जाई जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, संखेज्जाइं, जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ता । तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ता । एवं जाव तमाए॥ ८२. अहेसत्तमाए" णं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! दुविहा पण्णता, तं जहा-संखेज्ज१. नरगा (ट, ता)। पडहग झल्लरि भेरीकुत्तुंबग नाडि संठाणा ॥ २. कोट्ठग (ता)। (मवृ)। ३. पिट्ठयपणग० (ग); पिट्ठपणय० (ट); ४. किण्णपुडसं० (क, ग); किमियडसं० (ख); अतोग्रे 'ता' प्रती संग्रहणीगाथे स्तः । मलय- किमिपुडसं० (ट)। गिरिवृत्तावपि ते उद्धृते विद्यते । गाथा- ५. 'ख, ग, ट' आदर्शेषु केषाञ्चित् पदानां अयकोट पिटुपयणग कंदू लोही कहाड संठाणा। व्यत्ययो दृश्यते ।। थाली पिहडग किण्ह उडमय मुरवे मुतिंगे य ॥ ६. पंचमी छट्ठी (ता)। नंदिमुतिगे आलिगु सुघोसे दद्दरे य पणो य । ७. 'ता' प्रतौ अत्र पाठसंक्षेप:-तमतमाए दुविहा पडहा भेरी झलरि धत्तुवा णालि संठाणा ॥ पंतं वट्टे य तंसा य । (ता)। ८. पाहलेणं (ता)। अयकोटपिट्ठपयणग कंडूलोही कडाह संठाणा। ६. हेटिल्ले चरिमंते घणं सहस्सं (क, ख); थाली पिहडग किण्ह (ग) उडए मुरवे मुयंगे हेटुल्लि घणो सहस्सं (ट)। य॥ १०. तमतमाए (ता)। नंदिमुइंगे आलिंग सुघोसे दद्दरे य पणवे य । Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती २६७ वित्थडे य असंखेज्जवित्थडा य । तत्थ णं जेसे संखेज्जवित्थडे से णं एक्कं जोयणसयसहस्स' आयामविक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साइं दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि कोसे य अट्ठावीसं च धणुसतं तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलयं च किंचिविसेसाधिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते । तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई आयामविक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ता ।। ८३. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नरया केरिसया वण्णेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा' भीमा उत्तासणया परमकिण्हा वण्णणं पण्णत्ता । एवं जाव अधेसत्तमाए। ८४. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरका केरिसया गंधणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामए अहिमडेति वा गोमडेति वा सणमडेति' वा 'मज्जारमडेति वा मणुस्समडेति वा महिसमडेति वा मूसगमडेति वा आसमडेति वा हत्थिमडेति वा सीहमडेति वा वग्घमडेति वा विगमडेति वा दीवियमडेति वा मयकुहिय-विण-कुणिमवावण्णदुरभिगंधे 'असुइविलीणविगय"-बीभच्छदरिसणिज्जे किमिजालाउलसंसते॥२ भवेयारूवे सिया ? णो इणठे समठे । गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए णरगा एत्तो अणि?तरका चेव अकंततरका चेव" •अप्पियतरका चेव अमणुण्णतरका चेव अमणामतरका चेव गंधणं पण्णत्ता । एवं जाव अधेसत्तमाए पुढवीए॥ ८५. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरया केरिसया फासेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहानामए असिपत्तेइ वा खुरपत्तेइ वा कलंबचीरियापत्तेइ वा सत्तग्गेइ वा कुंतग्गेइ वा तोमरग्गेति वा नारायग्गेति वा सूलग्गेति वा लउलग्गेति वा भिडिमालग्गेति वा सूचिकलावेति वा 'विच्छुयकंटएति वा कवियच्छति वा५ इंगालेति वा जालेति वा मुम्मुरेति वा अच्चिति वा अलाएति वा सुद्धागणीइ व भवे एयारूवे सिया ? णो तिणठे समठे। गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए णरगा एत्तो अणि?तरका चेव जाव अमणामतरका चेव फासे णं पण्णत्ता । एवं जाव अधेसत्तमाए पूढवीए॥ ८६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नरका केमहालया पण्णत्ता ? गोयमा ! १. अतोग्रे 'ता' प्रतौ जंबुद्दीवपमाणे' इति पाठो- १०. दुन्भिगंधे (क, ख, ग)। स्ति । ११. असुय (क, ग); असुईविगत (ता)। २. जोयण मयसहस्साइं (क, ग, ट); जोयणाई १२. किमियजालाउलसंसंत्ते असुइविलीणविगयवी(ता)। भच्छदरिसणिज्जे (क, ख, ग, ट)। ३. जाव (क, ग, ट); जोयणाई (ता)। १३. सं० पा०.-अकंततरगा चेव जाव अमणामत४. कालावभासा (क, ग, ट)। रगा। ५. हरिसणा (ता)। १४. सत्तिअग्गेति (ता)। ६. साण (ता)। १५. कवियच्छति वा विच्छयकंटेति वा (क,ग,ट); ७. महिसम मज्जारम (ता)। कवियच्छति वा विच्चुयकंटेति वा (ख); ८. विगडमडेति (क, ख, ट) । विच्चुयडक्केति वा (ता), वृश्चिकदंशः ६. चिरविण? (क, ख, ग, ट)। (मवृ)। Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ जीवाजीवाभिगमे अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वन्भंतरए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापूवसंठाणसंठिते' वट्टे रथचक्कवालसंठाणसंठिते वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिते वट्टे पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिते एक्कं जोयणसतसहस्सं आयामविक्खंभेणं जाव' किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। देवे णं महिड्ढीए 'महज्जुतीए महाबले महायसे महेसक्खे° महाणुभागे जाव इणामेव-इणामेवत्तिक? इमं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्छरानिवाएहिं तिसत्तक्खुत्तो अणुपरियट्टिताणं हव्वमागच्छेज्जा। से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरिताए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धयाए' जइणाए' छेयाए' दिव्वाए देवगतीए वीतिवयमाणे-वीतिवयमाणे जहण्णणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासेणं वीतिवएज्जा-अत्थेगतिए वीतिवएज्जा अत्यंगतिए नो वीतिवएज्जा, एमहालता णं गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए णरगा पण्णत्ता । एवं जाव अधेसत्तमाए, णवरं-अधेसत्तमाए अत्थेगतियं नरगं वीतिवएज्जा, 'अत्थेगइए नरगे" नो वीतिवएज्जा ।। ८७. इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरगा किमया पण्णत्ता ? गोयमा ! सव्ववइरामया पण्णत्ता । तत्थ णं नरएसु बहवे जीवा य पोग्गला य अवक्कमंति विउक्कमंति चयंति उववज्जति । सासता णं ते णरगा दव्वट्ठयाए, वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं फासपज्जवेहिं असासया । एवं जाव अहेसत्तमाए"॥ ८८. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया कतोहितो उववज्जति-कि असण्णीहितो उववज्जति ? सरीसिवेहितो उववज्जति ? पक्खीहितो उववज्जति ? चउप्पएहिंतो उववज्जति ? उरगेहितो उववज्जति ? इत्थियाहिंतो उववज्जति ? मच्छमणुएहितो उववज्जति ? गोयमा ! असण्णीहिंतो उववज्जति जाव मच्छमणुएहितोवि उववज्जति । 'एवं एतेणं अभिलावणं इमा गाथा घोसेयव्वा"--- असण्णी खलु पढम, दोच्चं च सरीसिवा ततिय पक्खी। सीहा जंति चउत्थि, उरगा पुण पंचमि जंति ॥१॥ छट्रिं च इत्थियाओ, मच्छा मणुया य सत्तमि जंति । 'एसो खलु उववातो, नेरइयाणं तु नातव्वो" ॥२॥ १. जंबु जाव किंचविसेसपरिक्खेणं (ता)। ७. x (क, ख, ग, ट); 'छकया' निपुणया, २. तेल्लापूत (क, ख, ग)। वातोद्भूतस्य दिगन्तव्यापिनो रजस इव या ३. ठाणं ११२४८ । गति सा उद्धृता तया, अन्ये त्वाहुः-उद्धतया ४. सं० पा० --महिड्ढीए जाव महाणुभागे । अस्य दातिशयेनेति (मवृ)। प्रतिर्मलयगिरिवृत्तेः पाठमाश्रित्य कृतास्ति । तत्र ८. अत्थेगइयं नरगं (क, ग)। 'महेसक्खे' इति पदस्य 'महासोक्खे, महासक्खे' . किंमता (क); किम्मया (ता)। इति पाठान्तरद्वयं विद्यते। १०. अहेसत्तमा (क, ट, मवृ)। ५. x (म)। ११. सेसासु इमाए गाधाए णातव्वा (ता); सेसासु ६. अन्ये तु जितया विपक्षजेतृत्वेनेति व्याचक्षते । इमाए गाहाए अणगंतव्वा (मव।। (मवृ)। १२. ४ (क, ख, ग, ट, मव)। Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती २६९ 'जाव अधेसत्तमाए" पुढवीए नेरइया णो असण्णीहितो उववज्जंति जाव णो इत्थियाहिंतो उववज्जंति, मच्छमणुस्सेहितो उववज्जति ।। ८६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रइया एक्कसमएणं केवतिया उववज्जति ? गोयमा ! जहण्णणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखिज्जा वा उववज्जति । एवं जाव अधेसत्तमाए । ६०. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रइया समए-समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा केवतिकालेणं' अवहिता सिता ? गोयमा ! ते णं असंखेज्जा समए-समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिता सिता जाव अधेसत्तमा॥ ६१. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा सरीरोगाहणा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं सत्त धणुइं तिण्णि य रयणीओ छच्च अंगुलाई। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं पण्णरस धणूई अड्ढाइज्जाओ रयणीओ। दोच्चाए भवधारणिज्जे जहण्णओ अंगुलासंखेज्जभागं, उक्कोसेणं पण्णरस धणूई अड्ढाइज्जातो रयणीओ, उत्तरवेउव्विया जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जभागं, उक्कोसेणं एक्कतीसं धणूई एक्का रयणी । तच्चाए भवधारणिज्जे एक्कतीसं धणूई एक्का रयणी, उत्तरवेउव्विया बावट्टि धणूइं दोण्णि रयणीओ। चउत्थीए भवधारणिज्जे बावट्ठि धणूई दोण्णि य रयणीओ, उत्तरवेउब्विया पणवीसं धणुसयं । पंचमीए भवधारणिज्जे पणवीसं धणुसयं, उत्तरवेउव्विया अड्ढाइज्जाई धणुसयाई। छट्ठाए भवधारणिज्जा अड्ढाइज्जाइं धणुसयाई, उत्तरवेउव्विया पंचधणुसयाइं। सत्तमाए भवधारणिज्जा पंचधणुसयाई, उत्तरवेउन्विए धणुसहस्सं ॥ ६२. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रइयाणं सरीरया किंसंघयणी पण्णत्ता ? गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी-णेवट्ठी व छिरा णवि ण्हारू। जे पोग्गला अणिट्ठा 'अकंता अप्पिया असुहा अमणुण्णा अमणामा, ते तेसि सरीरसंघायत्ताए परिणमंति । एवं जाव अधेसत्तमाए। ६३. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरा किंसंठिता पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते इंडसंठिया पण्णत्ता, तत्थ णं जेते उत्तरवेउव्विया तेवि हुंडसंठिता पण्णत्ता। १. संक्षेपार्थ सङग्रहगाथया सूचितोसो विषयः। अन्यथा सप्त आलापका अत्र भवन्ति । मलय- गिरिवृत्ती द्वयोरालापकयोनिर्देशोपि लभ्यते। तेनैव कारणेन 'जाव अधेसत्तमाए' इत्यादि पाठात्र दृश्यते । नत्वत्र द्विरुक्तेः कल्पना कार्या। २. केवतिया केवतिकालेणं। (ता) ३. 'ता' प्रती अतः पाठसंक्षेपोस्ति, यथा- उत्तरवे दुगुणं एवं दुगुणा दुगुणं जावधेस भवधा पंच धणुसया उत्तरवे धणुसहस्सं । ४. छट्ठीए (ख, ग, ट)। ५. हारू णेव संघयणमत्थि (क, ख, ग, ट)। ६. सं० पा०-अणिट्ठा जाव अमणामा। Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० जीवाजीवाभिगमे एवं जाव अहेसत्तमाए । ६४. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं सरीरगा केरिसगावण्णणं पण्णत्ता ? गोयमा ! काला कालोभासा जाव' परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता। एवं जाव अहेसत्तमाए॥ ५. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरया केरिसया गंधणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहानामए अहिमडेइ वा तं चेव जाव' अहेसत्तमाए । ६६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरया केरिसया फासेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! फुडितच्छविविच्छविया खरफरुस-झाम-झुसिरा फासेणं पण्णत्ता। एवं जाव अधेसत्तमाए। ६७. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं केरिसया पोग्गला ऊसासत्ताए परिणमंति? गोयमा ! जे पोग्गला अणिट्ठा जाव अमणामा, ते तेसिं ऊसासत्ताए परिणमंति । एवं जाव अहेसत्तमाए। 'एवं आहारस्सवि सत्तसुवि" ।। १८. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं कति लेसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! एक्का काउलेसा पण्णत्ता । एवं सक्करप्पभा एवि ।। . वालुयप्पभाए पुच्छा । दो लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- नीललेसा काउलेसा य । 'ते बहुतरगा जे काउलेसा, ते थोवतरगा जे णीललेस्सा ॥ १००. पंकप्पभाए पुच्छा। एक्का नीललेसा पण्णत्ता॥ १०१. धूमप्पभाए पुच्छा । गोयमा ! दो लेस्साओ पण्णत्ताओ, तं जहा-किण्हलेस्सा य नीललेस्सा य । ते बहुतरका जे नीललेस्सा, ते थोवतरका जे किण्हलेसा ॥ १०२. तमाए पुच्छा । गोयमा ! एक्का किण्हलेस्सा । अधेसत्तमाए एक्का परमकिण्हलेस्सा ॥ १०३. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया कि सम्म दिट्ठी ? मिच्छदिट्ठी ? सम्मामिच्छदिट्ठी ? गोयमा ! सम्मदिट्ठी वि मिच्छदिट्ठीवि सम्मामिच्छदिट्ठीवि । एवं जाव अहेसत्तमाए॥ १०४. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइया कि नाणी ? अण्णाणी ? गोयमा ! णाणीवि अण्णाणीवि । जे णाणी ते णियमा तिण्णाणी, तं जहा-आभिणिबोधिय१. केरिसता (क, ख, ग)। सूचनापि कृता-इह पुस्तकेषु बहुधाऽन्यथा । २. जी० ३१८४। पाठो दृश्यते, अत एव वाचनाभेदोपि समग्रो ३. जी० ३१८४। दर्शयितुं न शक्यते, केवलं बहुषु पुस्तकेषु ४. फुडिग° (ता); स्फटित° (मव) । योऽविसंवादी पाठस्तत्प्रतिपत्त्यर्थं सुगमान्यप्य५. सत्तण्हवि (क, ग, ट); गेरइयाणं केरिसया ... क्षराणि संस्कारमात्रेण विवियन्तेऽन्यथा सर्वमेतपोग्गला आहारत्ताए परिणमंति गो जे पो दुत्तानार्थं सूत्रमिति । अणिट्ठा फ्रा ते तेसिं आधा एरि जाव धे स ६. तत्थ णं जे काउलेस्सा ते बहुतरका जे णील(ता) । मलयगिरिवृत्तावपि 'ता' प्रत्यनुसारी- लेस्सा ते थोवतरका (ग, ट)। पाठो व्याख्यातोस्ति । वृत्तिकृता ततोने पाठभेद Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्या चउबिहपडिवत्ती २७१ णाणी सुयणाणी अवधिणाणी। 'जे अण्णाणी ते अत्थेगतिया दुअण्णाणी अत्थेगइया तिअण्णाणी, जे दुअण्णाणी ते णियमा मतिअण्णाणी य सुयअण्णाणी य, जे तिअण्णाणी ते नियमा मतिअण्णाणी सुयअण्णाणी विभंगणाणीवि। सेसा णं णाणीवि अण्णाणीवि तिण्णि जाव अधेसत्तमाए"॥ १०५. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए कि मणजोगी? वइजोगी ? कायजोगी ? तिण्णिवि । एवं जाव अहेसत्तमाए ॥ १०६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया कि सागरोवउत्ता? अणागारोवउत्ता ? गोयमा ! सागारोवउत्तावि अणागारोवउत्तावि । एवं जाव अहेसत्तमाए पुढवीए । १०७. इमीसे' णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया ओहिणा केवतियं खेत्तं जाणंति-पासंति ? गोयमा ! जहण्णेणं अद्धट्ठगाउयाई, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं। सक्करप्पभाए जहण्णेणं तिण्णि गाउयाइं, उक्कोसेणं अट्ठाई। एवं अद्धद्धगाउयं परिहायति जाव अधेसत्तमाए जहण्णेणं अद्धगाउयं, उक्कोसेणं गाउयं ॥ १०८. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं कति समुग्धाता पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि समुग्धाता पण्णत्ता, तं जहा-वेदणासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए वेउव्वियसमुग्घाए । एवं जाव अहेसत्तमाए ॥ १०६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं खुहप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति ? गोयमा ! एगमेगस्स णं रयणप्पभापुढविनेरइयस्स असब्भावपट्ठवणाए सव्वोदधी वा सव्वपोग्गले वा आसगंसि पक्खिवैज्जा णो चेव णं से रयणप्पभाए पुढवीए नेरइए तित्ते वा सिता वितण्हे वा सिता, एरिसया णं गोयमा ! रयणप्पभाए नेरइया खुधप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरति । एवं जाव अधेसत्तमाए ॥ ११०. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया किं एकत्तं पभू विउ व्वित्तए ? पुहत्तंपि पभू विउव्वित्तए ? गोयमा ! एगत्तंपि पभू विउवित्तए। एगत्तं विउव्वेमाणा एग महं मोग्गररूवं वा मुसुंढिरूवं वा, एवं मोग्गर-मुसुंढि-करवत-असि-सत्ती-हल-गता-मुसल-चक्का । णाराय-कुंत-तोमर-सूल-लउड-भिंडमाला य। जाव भिडमालरूवं वा पहत्तं विउज्वेमाणा मोग्गररूवाणि वा जाव भिडमालरूवाणि वा ताई संखेज्जाइं णो असंखेज्जाइं संबद्धाइं नो असंबद्धाइं सरिसाइं नो असरिसाइं विउव्वंति, विउव्वित्ता अण्णमण्णस्स कायं अभिहणमाणा'-अभिहणमाणा वेयणं उदीरेंति-- उज्जलं १. जे अण्णाणि ते अत्थे २,३ भयणाए । सेसासु मुसुंढिकरवत्त' इत्यादीनि पदानि सन्ति । मलयणाणा अण्णाण तिण्णि ३ णियमा (ता)। गिरिणा संग्रहणिगाथायाः पाठान्तररूपेण मलयगिरिवृत्तौ शर्करप्रभायाः आलापको उल्लेख: कृतोस्ति-अत्र संग्रहणिगाथा व्याख्यातोस्ति । स च वाचनान्तरगतः प्रतीयते । क्वचित्पुस्तकेषु२. एतत् सूत्रं वृत्तो नास्ति व्याख्यातम् । मुग्गरमुसुंढिकरकयअसिसत्ति हलं गयामुसल३. अद्धगाउयाई (क, ख, ग, ट)। . चक्का । ४. पुहत्तं पि (ग, ट)। नारायकृततोमरसूललउडभिडिमाला य ॥ ५. अतोने 'ग' प्रतौ मलयगिरिवृत्तौ च 'एवं ६. अभिभवमाणा (ट)। Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ जीवाजीवाभिगमे विउलं पगाढं कक्कसं कडुयं फरुसं निठुरं चंडं तिव्वं दुक्खं दुग्गं दुरहियासं । एवं जाव धूमप्पभाए पुढवीए॥ १११. छट्ठसत्तमासु णं पुढवीसु नेरइया बहू' महंताई लोहियकुंथुरूवाइं वइरामयतुंडाई गोमयकीडसमाणाई विउव्वंति, विउव्वित्ता अण्णमण्णस्स कायं समतुरंगेमाणा-समतुरंगेमाणा खायमाणा-खायमाणा सयपोरागकिमिया विव 'चालेमाणा-चालेमाणा" अंतो-अंतो अणुप्पविसमाणा-अणुप्पविसमाणा वेदणं उदीरेंति-उज्जलं जाव दुरहियासं॥ ११२. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया कि सीतवेदणं वेदेति ? उसिणवेदणं वेदेति ? सीओसिणवेदणं वेदेति ? गोयमा ! णो सीयं वेदणं वेदेति, उसिणं वेदणं वेदेति, नो सीतोसिणं वेदणं वेदेति । एवं जाव वालुयप्पभाए ।। ११३. पंकप्पभाए पुच्छा । गोयमा ! सीयंपि वेदणं वेदेति, उसिणंपि वेदणं वेदेति, नो सीओसिणवेदणं वेदेति। ते बहतरगा जे उसिणं वेदणं वेदेति, ते थोवतरगा जे सीतं वेदणं वेदेति ॥ ११४. धूमप्पभाए पुच्छा । गोयमा ! सीतंपि वेदणं वेदेति, उसिणंपि वेदणं वेदेति, णो सीओसिणवेदणं वेदेति । ते बहुतरगा जे सीतवेदणं वेदेति, ते थोवतरका जे उसिणवेदणं वेदेति ॥ ११५. तमाए पुच्छा । गोयमा ! सीयं वेदणं वेदेति, नो उसिणं वेदणं वेदेति, नो सीतोसिणं वेदणं वेदेति । एवं अहेसत्तमाए, णवरं-परमसीयं ॥ ११६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइया केरिसयं णिरयभवं पच्चणुभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! ते णं तत्थ णिच्चं भीता 'णिच्चं छुहिया ‘णिच्चं तत्था णिच्चं तसिता णिच्चं उव्विग्गा णिच्चं उपप्पुआ णिच्चं परममसुभमउलमणुबद्धं निरयभवं पच्चणुभवमाणा विहरंति । एवं जाव अधेसत्तमाए ॥ ११७. अहेसत्तमाए णं पुढवीए पंच अणुत्तरा महतिमहालया महाणरगा पण्णत्ता, तं जहा-काले महाकाले रोरुए महारोरुए अप्पतिट्ठाणे। तत्थ इमे पंच महापुरिसा अणुत्तरेहिं दंडसमादाणेहिं कालमासे कालं किच्चा अप्पतिट्ठाणे णरए णेरइयत्ताए उववण्णा, तं जहा-रामे जमदग्गिपुत्ते 'दाढाऊलेच्छतिपुत्ते", वसू उवरिचरे, 'सुभूमे कोरव्वे", बंभदत्ते चुलणिसुते"। ते णं तत्थ वेदणं वेदेति-उज्जलं विउलं जाव" १. पभू (क, ख); पहू (ट)। स्तबके 'दाढादाल छातीसुत अपर नाम दत्त२. वइरामइतुं (ग)। लक्ष्मीनो पुत्र' इति विद्यते वृत्तिस्तबकयो३. दालेमाणा २ (क, ख, ग)। राधारेण 'दाढादाले छातीसुते' तथा स्तबक४. वेदणं अप्पयरा उण्हजोणिया (क) । निर्दिष्ट-विकल्पानुसारेण 'दत्ते लच्छीपुत्ते' इति ५. मलयगिरिवृत्ती एतत्पदद्वयं व्याख्यातं नास्ति। पाठो निष्पद्यते । ६. ४ (क)। १०.४(ता)। ७. महानेरइयत्ताए (ता)। ११. अतोग्रे 'क, ख, ट' प्रतिष एष अतिरिक्तः ८. जमदग्गिसुते सुभोम्मे कोरव्या (ता); जम- पाठो वर्तते-ते णं तत्थ नेरइया जाया काला दग्गिसुते (मव)। कालोभासा जाव परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता। ९. दढाऊ लच्छइपुत्ते (क); मलयगिरिवृत्ती १२. जी० ३।११०। 'दाढादालः छातीसुतः' इति विवृतमस्ति । Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती २७३ दुरहियासं॥ ११८. उसिणवेदणिज्जेसु' णं भंते ! णरएसु णेरइया केरिसयं उसिणवेदणं पच्चणुब्भवमाणा विहरति ? गोयमा ! से जहाणामए-कम्मारदारए सिता-तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे' अप्पायंके थिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय-पास-पिठेतरोरुपरिणए' घणनिचियवलियवदृखंधे चम्मेढग-दुघण-मुट्ठिय-समाहयनिचियगायगत्ते उरस्सबलसमण्णागए तलजमलजुयलवाहू लंधण-पवण-जवण-पमद्दणसमत्थे छेए दक्खे पट्टे कुसले मेहावी निउणसिप्पोवगए एगं महं अयपिंडं उदगवारगसमाणं गहाय तं ताविय-ताविय कोट्टियकोट्टिय जाव एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेणं अद्धमासं साहणेज्जा, से णं तं सीतं सीतीभूतं अओमएणं संडासएणं गहाय असब्भावपट्ठवणाएं उसिणवेदणिज्जेसु णरएसु पक्खिवेज्जा, से णं तं उम्मिसियणिमिसियंतरेणं पुणरवि पच्चुद्धरिस्सामित्तिकट्ट पविरायमेव पासेज्जा पविलीणमेव पासेज्जा पविद्धत्थमेव पासेज्जा णो चेव णं संचाएति अविरायं वा अविलीणं वा अविद्धत्थं वा पुणरवि पच्चुद्धरित्तए। से जहा वा मत्तमातंगे दुपाए कुंजरे सट्ठिहायणे पढमसरयकालसमयंसि वा चरमनिदाघकालसमयंसि वा उण्हाभिहए तण्हाभिहए दवग्गिजालाभिहए आउरे झूसिए" पिवासिए नुब्बले किलंते एक्कं महं पुक्खरिणिं पासेज्जा-चाउक्कोणं समतीरं अणुपुव्वसुजायवप्पगंभीर-सीतलजलं संछण्णपत्तभिसमुणालं" बहुउप्पल"-कुमुद-णलिण-सुभग-सोगंधिय-पुंडरीय१. उसुणवेदणिज्जेसु (ता)। ५. वारसमाणं (क, ख, ग, ट); दगवारा २. ४ (क, ख, ग, ट)। सामाणं (ता)। ३. पिठंतरोरुसंघाटापरिणए (क, ख, ग, घ)। ६. कोट्ठिय उभिदिय-उभिदिय चुण्णिय-चुण्णिय अतोग्रे 'ता' प्रती अन्येषु आदर्शषु च पाठस्य (क, ख, ग, ट)। क्रमभेदः क्वचित्-क्वचित् शब्दभेदोपि विद्यते- ७. साहण्णेज्जा (क)। तलजमलजुयलबाहुघणणिचितवलितपवट्टगालि- ८. संदसएणं (ग) । खंधे चमेट्ठदुहणमुट्ठियसमाहयणिचितयंतगणे ६. असब्भावणाप (क); असम्भावणय (ख)। उरस्सबलसमण्णागते लंघणपवणजइणवाया- १०. दये (ग); दुपए (ट); दुवाए (ता)। मणसमत्थे छेए दक्खे कुमले मेहावी णिउणे ११. झुज्झिए (ख, ट, ता); झिज्जिए (मवृपा)। णि उणसिप्पोवगते (ता); लंघणपवणजइण- १२. संछण्णपउमपत्त' (क, ख, ग, ट, ता); वायामणसमत्थे (°पमद्दणसमत्थे-ग) तल- सर्वेष्वपि आदर्शषु 'पउम' इति पदं विद्यते, जमलजुयल (जुयलबाहु-ग) फलिहणिभ- किन्तु मलयगिरिवृत्तौ नास्ति व्याख्यतमिदम् । बाहू घणणिचितवलियवट्टखंधे (°वट्टपालिखंधे नायाधम्मकहाओ (१३।१७) तथा रायपसेणइय -क, ख; वट्टवालिखंधे-ग) चम्मेलृग- (सू० १७४) सूत्रेपि नैतत्पदं उपलभ्यते । दुहणमुट्ठियमाहयणिचितगत्तगत्ते (°कयगत्ते- १३. 'ता' प्रती अयं पाठः किञ्चिद् भेदेन दृश्यतेक, ख, ट) छेए दक्खे पट्टे कुसले मेहावी बहुउप्पलपउमकुमुदणलिणसुभगसोगंधिय अरणिउणे (णिउणे मेहावी-क, ख, ग, ट) विदकोवणतसतपत्तसहस्सपत्तयप्फुसिकेसरोवणिउणसिप्पोवगए। चितं। ४. पत्तठे (अणु० ४१६; राय० सू० १२) । Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ जीवाजीवाभिगमे सयपत्त-सहस्सपत्त-केसर-फुल्लोवचियं छप्पयपरिभुज्जमाणकमलं' अच्छविमलसलिलपुण्णं' परिहत्थभमंतमच्छकच्छभं' अणेगसउणगणमिहुणय-विरचिय-सदुन्नइयमहुरसरनाइयं तं पासइ, पासित्ता तं ओगाहइ, ओगाहित्ता से णं तत्थ उण्हपि पविणेज्जा तण्हंपि पविणेज्जा खहपि पविणेज्जा जरंपि पविणेज्जा दाहंपि पविणेज्जा'णिदाएज्ज वा पयलाएज्ज वा सति वा रति वा धिति वा मतिं वा उवलभेज्जा, सीए सीयभूए 'संकसमाणे-संकसमाणे" सायासोक्खबहुले यावि विहरेज्जा, एवामेव गोयमा ! असब्भावपट्ठवणाए उसिणवेदणिज्जेहितो णरएहितो रइए उव्वट्टिए समाणे जाइं इमाइं मणुस्सलोयंसि' भवंति, तं जहागोलियालिंछाणि वा सोंडियालिंछाणि वा भंडियालिंछाणि वा तिलागणीति वा तुसागणीति वा भुसागणीति वा णलागणीति वा अयागराणि वा तंबागराणि वा तउयागराणि वा सीसागराणि वा रुप्पागराणि वा सुवण्णागराणि वा' 'इट्टावाएति वा कुंभारावाएति वा कवेल्लुयावाएति वा लोहारंबरिसेति वा जंतवाडचुल्लीति वा-तत्ताइ समजोतिभूयाई" फुल्लकिंसुयसमाणाई 'उक्कासहस्साई विणिम्मुयमाणाइं जालासहस्साई पमुच्चमाणाई'५ इंगालसहस्साइं पविक्खिरमाणाई" अंतो-अंतो हुहुयमाणाई चिट्ठति ताई पासइ, पासित्ता १. x (ता)। ११. वा हिरण्णागराणि वा (क, ख, ग, ट); 'ता' २. अच्छविमलसलीलपच्छपुण्णं (क, ख); अच्छ- प्रति मुक्त्वा सर्वेषु आदर्शेषु एष पाठो विद्यते; - विमलपच्छसलीलपुण्णं (ता)। मलयगिरिवृत्तौ च व्याख्यातोप्यस्ति, किन्तु ३. परिभमंतमच्छ (ता)। नावश्यकोयं प्रतिभाति । ठाणं (८।१०) ४. विरइय (क, ग, ट)। रायपसेणइय (सू० ७७४) सूत्रेपि 'हिरण्णा५. 'ता' प्रतौ सदुन्नइयमहरसरनाइयं' इति पाठो गर' मिति पदं नैव दृश्यते । नास्ति । रायपसेणइय (सू० १७४) सूत्रेपि १२. कुंभागराणि वा भुसागणि वा इट्टायागणि वा एष पाठो नैव दृश्यते। कवेल्लुयागणि वा (क, ग, ट); कुंभाराणि वा ६. ४ (ता)। इट्टायागणि वा कवेल्लुयागणि वा (ख) । ७. संकासायमीणे २ (ता)। ठाणं (८।१०) सूत्रे 'कुंभारावाएति वा ८. एवमेव (ट, ता)। कवेल्लुआवाएति वा इट्टावाएति वा' इति ६. x (ता)। स्वीकृतपाठसंवादी पाठो लभ्यते । १०. अतः पुरोवर्ती पाठः 'ता' प्रति मलयगिरि- १३. समज्जोति' (क, ग)। विवरणं च मुक्त्वा अन्येषु आदर्शेषु भिन्नक्रमो १४. फुलकेसुसमाणाई (ता); किंसुकफुल्लसमाणाई वर्तते, यथा-अयागराणि वा तउयागराणि (ठाणं ८।१०)। वा सीसागराणि वा रुप्पागराणि वा हिरण्णा- १५. उक्कासहस्साई पमंचमाणाइं जालासहस्साई गराणि वा सुवण्णागराणि वा कुभागराणि वा विणिमयमाणाई (ता. मव) । ससागणी वा इट्टायागणी वा कवेलुयागणी वा १६. पविक्खरमाणाइं (क, ख, ग, ट)। लोहारंबरेसि वा जंतूवाउचुल्ली वा हंडिय- १७. जुहुयमाणाई (क, ग); हुहूआयमाणाई लिच्छाणि वा सोंडियलिच्छाणि णलागणीति (ता); क्वचित 'अंतो अंतो सुहुयहुयासणा' वा तिलागणीति वा तुसागणीति वा । ठाणं (८।१०) सूत्रेपि क्रमभेदो दृश्यते। इति पाठः । Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती २७५ ताई ओगाहइ, ओगाहित्ता से णं तत्थ उण्हंपि पविणेज्जा तण्हंपि पविणेज्जा खुहंपि पविणेज्जा जरंपि पविणेज्जा दाहंपि पविणेज्जा णिहाएज्ज वा पयलाएज्ज वा सति वा रति वा धिई वा मति' वा उवलभेज्जा, सीए सीयभूए संकसमाणे-संकसमाणे सायासोक्खबहुले यावि विहरेज्जा, भवेयारूवे सिया? णो इणठे समढे, गोयमा ! उसिणवेदणिज्जेसु णरएसु नेरइया एत्तो अणिट्टतरियं चेव उसिणवेदणं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ ११६. सीयवेदणिज्जेसु णं भंते ! णरएसु णेरइया केरिसयं सीयवेदणं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति ? गोयमा ! से जहाणामए कम्मारदारए सिया तरुणे जुगवं बलवं जाव' णिउणसिप्पोवगते एगं महं अयपिंडं दगवारसमाणं गहाय ताविय-ताविय कोट्टिय-कोट्टिय जाव एगाह' वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेणं मासं साहणेज्जा, से णं तं उसिणं उसिणभूतं अयोमएणं संडासएणं गहाय असब्भावपट्ठवणाए सीयवेदणिज्जेसु णरएसु पक्खिवेज्जा, से तं उम्मिसियनिमिसियंतरेण पुणरवि पच्चुद्धरिस्सामीति कटु पविरायमेव पासेज्जा पविलीणमेव पासेज्जा पविद्धत्थमेव पासेज्जा णो चेव णं संचाएज्जा पुणरवि पच्चुद्धरित्तए। से जहाणामए मत्तमायंगे दुपाए कुंजरे सट्ठिहायणे पढमसरयकालसमयंसि वा चरमनिदाघकालसमयंसि वा उण्हाभिहए तण्हाभिहए दवग्गिजालाभिहए आउरे झुसिए पिवासिए दुब्बले किलंते एक्कं महं पुक्खरिणि पासेज्जा-चाउक्कोणं समतीरं अणुपुव्वसुजायवप्पगंभीर-सीतलजलं संछणपत्तभिसमुणालं बहुउप्पल-कुमुद-णलिण-सुभग-सोगंधिय-पुंडरीयमहापुंडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्त-केसर-फुल्लोवचियं छप्पयपरिभुज्जमाणकमलं अच्छविमलसलिलपुण्णं परिहत्थभमंतमच्छकच्छभं अणेगसउणगणमिहुणय-विचरिय-सदुन्नइयमहरसरनाइयं तं पासइ, पासित्त तं ओगाहइ, ओगाहित्ता से णं तत्थ उण्हंपि पविणेज्जा तण्हंपि पविणेज्जा खुहंपि पविणेज्जा जरंपि पविणेज्जा दाहंपि पविणेज्जा णिदाएज्ज वा पयलाएज्ज वा सति वा रतिं वा धिति वा मतिं वा उवलभेज्जा, सीए सीयभूए संकसमाणे-संकसमाणे? सायासोक्खबहुले यावि विहरेज्जा, एवामेव गोयमा ! असब्भावपट्ठवणाए सीतवेदणेहितो णरएहितो नेरइए उव्वट्टिए समाणे जाई इमाइं इहं माणुस्सलोए हवंति, तं जहा'हिमाणि वा हिमपुंजाणि वा हिमपडला णि वा हिमकूडाणि वा सीयाणि वा सीयपुंजाणि वा सीयपडलाणि वा सीयकूडाणि वा तुसाराणि वा तुसारपुंजाणि वा तुसारपडलाणि वा तुसारकूडाणि वा" ताई पासति, पासित्ता ताई ओगाहति, ओगाहित्ता से णं तत्थ सीतंपि १. ऊहं (क, ख, ट)। माणुस्सलोए' इति पाठो लभ्यते । २. जी. ३।११८ । ८. हिमपुंजाणि वा हिमपडलाणि वा हिमपडल३. एकाहं (ख, ग, ट)। पुंजाणि वा तुसाराणि वा तुसारपुंजाणि वा ४. हणेज्जा (क, ट, ता); संहणेज्जा (ख, ग)। हिमकुंडाणि हिमकुंडपुंजाणि सीयाणि वा ४ ५. सं० पा०-तं चेव णं जाव णो। (क, ख, ग, ट); हिमाणि वा हिमपुंजाणि ६. सं० पा०-तहेव जाव सायासोक्खबहले । वा हिमकुंडाणि वा हिमपडलाणि वा सीताणि वा सी ४ तुसाराणि वा तुसार ४ (ता); ७. x (ता; पूर्वस्मिन् सूत्रे ‘इहं' इति पदं । स्वीकृतपाठः मलयगिरिवृत्त्यनुसारी विद्यते, नास्ति 'मणुस्सलोयंसि' इति पदमस्ति । अत्र किन्तु तुषारसम्बन्धी पाठस्तत्र नास्ति 'ता' प्रति मुक्त्वा सर्वेषु आदर्शेष 'इहं व्याख्यात: स च 'ता' प्रत्यनुसारी वर्तते । Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ जीवाजीवाभिगमे पविणेज्जा तण्हंपि पविणेज्जा खहंपि पविणेज्जा जरंपि पविणेज्जा दाहंपि पविणेज्जा निदाएज्ज वा पयलाएज्ज वा' 'सतिं वा रतिं वा धिति वा मति वा उवलभेज्जा', उसिणे उसिणभूए संकसमाणे-संकसमाणे सायासोक्खबहुले यावि विहरेज्जा, गोयमा ! सीयवेयणिज्जेसु नरएसु नेरइया एत्तो अणि?तरियं चेव सीतवेदणं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ १२०. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणवि' उक्कोसेणवि ठिती भाणितव्वा जाव अधेसत्तमाए । १२१. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइया अणंतरं उव्वट्टिय' कहिंगच्छंति ? कहिं उववज्जति ? -कि नेरइएसु उववज्जति ? किं तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति एवं उव्वट्टणा भाणितव्वा जहा वक्कंतीए तहा इहवि जाव अहेसत्तमाए । १२२. इमीसे' णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं पुढविफासं पच्चणुभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! अणिठं जाव' अमणामं । एवं जाव अहेसत्तमाए । १२३. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं आउफासं पच्चणुभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! अणिठं जाव अमणामं । एवं जाव अहेसत्तमाए एवं जाव वणप्फतिफासं अधेसत्तमाए पुढवीए॥ १२४. इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी दोच्चं पुढवि पणिहाय सव्वमहंतियाबाहल्लेणं सव्वक्खुड्डिया" सव्वंतेसु ? हंता गोयमा ! इमा णं रयणप्पभापुढवी दोच्चं पुढवि पणिहाय सव्वमहंतिया बाहल्लेणं° सव्वक्खुड्डिया सव्वंतेसु ॥ १२५. दोच्चा णं भंते ! पुढवी तच्चं पुढवि पणिहाय सव्वमहंतिया बाहल्लेणं पुच्छा। हंता गोयमा ! दोच्चा णं पुढवी' 'तच्चं पुढवि पणिहाय सव्वमहंतिया बाहल्लेणं' सव्वक्खुड्डिया सव्वंतेसु । एवं एएणं अभिलावेणं जाव छट्ठिया पुढवी अहेसत्तमं पुढवि पणिहाय सव्वक्खुड्डिया सव्वंतेसु ॥ १२६. इमीसेणं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेसु जे पुढविक्काइया १.सं० पा०-पयलाएज्ज वा जाव उसिणे। ५. 'ता' प्रती अतः पूर्व १२६ सूत्रं विद्यते । २. 'ता' प्रती विस्तृतः पाठोस्ति । मलयगिरि- पाठरचनायामपि भेदोस्ति-इमीसे णं भंते ! वत्तावपि तथैव व्याख्यातोस्ति। 'ता' प्रतिगतः रयणप्प णेरगपरिसामंतेसु जे बादरपुढविक्काइया पाठः-जहं दस वा उक्को साग । दोच्चाए ज जाव वणस्सकाइया। तेसि णं भंते ! जीवा ए उ ३। तच्चा ज ३७ । चउ उ १०७ । महाकम्मतरा च्चेव महासवतरा चेव महाबेदणपंच उ १७ ज १०। छट्ठी उ २२ ज १७ । तराच्चेव । हंता गोयमा! इमीसे णं जाव सत्त ३३ । क्वचिद् जहा पण्णवणाए ठिइपदे महावेदणतरा च्चेव जाव अहेसत्तमाए। (मवृपा)। ६. जी० ३।१२। ३. 'ता' प्रतो किञ्चिदधिक: पाठोस्ति-उव्व कि ७. सव्वखुडिया (ट)। णेर ४ गोयमा ! णो र तिरि मण णो दे ८. सं० पा०-पणिहाय जाव सव्वक्खुड्डिया। एगिदिय विगिलिय असंखाउवज्ज । ६. सं० पा०-पुढवी जाव सव्वक्खुड्डिया। ४. पण्ण० ६।६६,१०० । १०. मलयगिरिणा प्रस्तुतसूत्रं १२७ सूत्रानन्तरं Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहपडिवत्ती २७७ जाव वणप्फतिकाइया, ते णं भंते ! जीवा महाकम्मतरा चेव महाकिरियतरा चेव महाआसवतरा चेव महावेयणतरा चेव ? हंता गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेसु 'जे पुढविक्काइया जाव वणप्फतिकाइया ते णं जीवा महाकम्मतरा चेव महाकिरियतरा चेव महाआसवतरा चेव महावेदणतरा चेव। एवं जाव अधेसत्तमा ॥ १२७. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए नरयावाससयसहस्सेसु इक्कमिक्कंसि निरयावासंसि सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता पुढवीकाइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए नेरइयत्ताए उववन्नपुव्वा ? हंता गोयमा ! असति अदुवा अणंतखुत्तो। एवं जाव अहसत्तमाए पुढवीए, णवरं--'जत्थ जत्तिया णरगा। संगहणीगाहा पुढवीं ओगाहित्ता, नरगा संठाणमेव बाहल्लं । विक्खंभपरिक्खेवे, वण्णो गंधो य फासो य॥१॥ तेसि महालयत्तं, उवमा देवेण होइ कायव्वा। जीवा य पोग्गला वक्कमति तह सासया निरया ।।२।। उववायपरीमाणं, अवहारुच्चत्तमेव संघयणं । संठाणवण्णगंधे, फासे ऊसासमाहारे ॥३॥ लेसा दिट्ठी नाणे, जोगुवओगे तहा समुग्घाए। तत्तो य खुप्पिवासा, विउव्वणा वेयणा य भए ॥४॥ उववाओ पुरिसाणं, ओवम्मं वेयणाए दुविहाए। ठिइ उव्वट्टण पुढवी, उववाओ सव्वजीवाणं ॥५॥ नेरइयउद्देसओ तइओ १२८. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं पोग्गलपरिणाम पच्चभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! अणिटठं जाव' अमणाम। एवं जाव अडेसत्तमा 'एवं-वेदणापरिणामं लेस्सपरिणामं णामपरिणामं गोत्तपरिणामं अरतिपरिणाम भयपरिणामं सोगपरिणामं खुहापरिणामं पिवासापरिणामं वाहिपरिणाम उस्सासपरिणाम अणतावपरिणामं कोवपरिणामं माणपरिणामं मायापरिणामं लोहपरिणाम आहारसण्णापरिणामं भयसण्णापरिणाम मेहुणसण्णापरिणामं परिग्गहसण्णापरिणाम" । संगहणीगाहा पोग्गलपरिणामे वेयणा य लेसा य नाम गोए य। अरई भए य सोगे, खुहा पिवासा य वाही य॥१॥ पाठान्तररूपेण उल्लिखितं-क्वचिदिदमपि चरणद्वयम् । सत्रं दश्यते---इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए १. सं० पा०--तं चेव जाव महावेदणतरा। पुढवीए निरयपरिसामंतेसु। उद्देशकान्ते २. जहिं जत्तिया णिरयावासा (ता)। सङ्ग्रहगाथास्वपि अस्य सूत्रस्य संकेतो नैवास्ति ३. जी० ३।६२ । कृतः। द्रष्टव्यं पञ्चम्या: गाथायाः अन्त्यं ४. एवं नेयव्वं (क, ख, ग, ट)। Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ १२६. सेतं नेरइया || १. अणुभावे (क, ट) । २. मतिवगंती (ता) । ३. होंति तिरियमणुसु ( ता ) । ४. होति (ता) । ५. 'ता' प्रति मलयगिरिविवरणं च मुक्त्वा अन्येषु आदर्शषु द्वयोर्गाथयोर्व्यत्ययः तद्गतचरणयोश्च व्यत्ययो दृश्यते- उसासे अणुतावे', कोहे माणे य मायलोभे य । चत्तारि य सण्णाओ, नेरइयाणं तु परिणाम ||२|| एत्थ किर अतिवयंती', नरवसभा केसवा जलचरा य । रायाणो मंडलिया, जे य महारंभकोडुंबी ॥१॥ भिन्नमुहुत्त नरसु, “तिरियमणुएसु होंति" चत्तारि । देवेसु अद्धमासो, उक्कोस विउव्वणा भणिया ॥२॥ 'जे पोग्गला अणिट्ठा, नियमा सो तेसि होई आहारो । संठाणं तु अणिट्ठ, नियमा हुंडं तु नायव्वं ॥ ३ ॥ असुभ विव्वणा खलु, नेरइयाणं तु होइ सव्वेसि । वे उव्वियं सरीरं, असंघयण हुंडा ॥४॥ अस्साओ उववण्णो, अस्साओ चेव चयइ' निरयभवं । सव्व ढव जीवो, सव्वेसु ठिइविसेसेसुं ।।५। उववारण व सायं, नेरइओ देवकम्मुणा वावि । अज्झवसाणनिमित्तं, अहवा 'नेरइयाणुप्पाओ", Stati दुक्खेण भियाणं, अच्छिनिमीलियमेत्तं नत्थि सुहं दुक्खमेव अणुबद्धं । नरए इयाणं, अहोनिसं पच्चमाणानं ॥ ८ ॥ तेया कम्मसरीरा सुहुमसरीरा य जे अपज्जत्ता । जीवेण मुक्कमेत्ता, वच्चंति सहस्ससो भेयं ॥६॥ एत्थ य भिन्नमुहुत्तो, पोग्गल असुहा य होइ अस्साओ । उववाओ उप्पाओ, अच्छि सरीरा उ बोद्धव्वा ॥ १० ॥ वेयणसयसंपगाढाणं ॥ ७ ॥ सुभाविवा खलु, नेरइयाणं तु होइ सव्वेसि । संठाणं पिय तेसि नियमा हुंडं तु नायव्वं । जे पोग्ला अणिट्ठा नियमा सो तेसि होइ आहारो । वेव्वितं सरीरं असंघयण हुंड संठाणं । ६. वचइ (क, ख, ग ) ; जहति ( ट ) । जीवाजीवाभिगमे कम्माणुभावेणं ।।६।। पंचजोयणसया इं" । ७. 'ता' प्रति मलयगिरिविवरणं च मुक्त्वा अन्येषु आदर्शेषु 'तेयाकम्मसरीरा' एषा गाथा अतः पूर्वं विद्यते । ८. रइयाणुप्पाओ गाउय उक्कोस पंच जोयणसयाई (मवृपा) ६. तेता' (क ) । १०. अतोग्रे ‘क, ख, ग, ट' संकेतितादर्शेषु एका अतिरिक्ता गाथा लभ्यते अतिसीतं अतिउन्हं, अतितिण्हा अतिखूहा अतिभयं वा । निरए नेरइयाणं, दुक्खसयाई अविस्सामं ॥ मलयगिरिवृत्तौ नास्ति व्याख्याता । Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती तिरिक्खजोणिय उद्देसओ पढमो तं जहा - १३०. से किं तं तिरिक्खजोणिया ? तिरिक्खजोणिया पंचविधा पण्णत्ता, एगिदियतिरिक्खजोगिया बेइंदियतिरिक्खजोणिया तेइंदियतिरिक्खजोणिया चउरिदियतिरिक्खजोणिया पंचिदियतिरिक्खजोणिया य ॥ १३१. से किं तं एगिदियतिरिक्खजोणिया ? एगिदियतिरिक्खजोणिया पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा -- पुढिवकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया जाव वणस्सइकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया || २७६ १३२. .से किं तं पुढविक्काइयएगि दियतिरिक्खजोगिया ? पुढविकाइयएगिदियतिरिक्खया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- सुहुमपुढ विकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया बादरपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया य ॥ १३३, से किं तं सुमपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया ? सुहुमपुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- पज्जत्तसुहुमपुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोया अपज्जत्तमढविकाइयए गिदियतिरिक्खजोणिया । से तं सुहमा || १३४. से कि तं बादरपुढ विकाइयएगि दियतिरिक्खजोणिया ? बादरपुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तबादरपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया अपज्जत्तबादरपुढविका इयएगिंदियतिरिक्खजोणिया । से तं बादरपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया । से तं पुढविकाइयएगिंदिया || १३५. से किं तं उक्काइएगिदियतिरिक्खजोणिया ? आउक्काइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, एवं जहेव पुढविकाइयाणं तहेव आउकायभेदो। एवं जाव वणस्सतिकाइया । से तं वणस्सइकायएगिदियतिरिक्खजोणिया || १३६. से किं तं बेइंदियतिरिक्खजोणिया ? बेइंदियतिरिक्खजोणिया दुविधा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगबेइंदियतिरिकखजोणिया अपज्जत्तगबेइं दियतिरिक्खजोणिया । से तं इंदयतिरिक्खजोणिया । एवं जाव चरिदिया || १३७. से किं तं पंचेंदियतिरिक्खजोगिया ? पंचेंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया || १३८. से किं तं जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - संमुच्छिमजलयर पंचेंदियतिरिक्खजोणिया य गन्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य ।। १३६. से किं तं संमुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? संमुच्छिमजलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगसंमुच्छिमजलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणिया अपज्जत्तगसंमुच्छिमजलयरपंचेंदियति रिक्खजोणिया । से तं संमुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया || १४०. से किं तं गब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? गब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविधा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगगब्भवक्कंतियजलयर Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० जीवाजीवाभिगमे पंचेंदियतिरिक्खजोणिया अपज्जत्तगगब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया। से तं गब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया । से तं जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ॥ १४१. से किं तं थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? थलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिया दुविधा पण्णत्ता, तं जहा-चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ॥ १४२. से किं तं चउप्पदथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-समुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया गब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचें दियतिरिक्खजोणिया य, जहेव जलयराणं तहेव चउक्कतो भेदो। सेत्तं चउप्पदथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ॥ १४३. से किं तं परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया' भयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया' ॥ - १४४. से किं तं उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-जहेव जलयराणं तहेव चउक्कतो भेदो। एवं भयपरिसप्पाणवि भाणितव्वं । से तं भयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया । से तं थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया॥ १४५. से किं तं खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–संमुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया गब्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य॥ १४६. से किं तं समुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? संमुच्छिमखयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--पज्जत्तगसंमुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया अपज्जत्तगसंमुच्छिमखयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य। एवं गब्भवक्कंतियावि जाव पज्जत्तगगब्भवक्कंतियावि अपज्जत्तगगब्भवक्कंतियावि ॥ १४७. खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं' भंते ! कतिविधे जोणिसंगहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे जोणिसंगहे पण्णत्ते, तं जहा-अंडया पोयया संमुच्छिमा। १४८. अंडया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी पुरिसा णपुंसगा॥ १४६. पोतया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी पुरिसा णपुंसगा। तत्थ णं जेते संमच्छिमा ते सव्वे णपुंसगा॥ १५०. तेसि' णं भंते ! जीवाणं कति लेसाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छल्लेसाओ १. १४०-१४५ एतेषां सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतौ २. उरग (ग)। मलयगिरिविवरणे च संक्षिप्तपाठो विद्यते-- ३. भुयग' (ग)। एवं चतुपदा उरयं भुय प पक्खीवि (ता); ४. पक्खीणं (ता); पक्षिणां भदन्त ! (मव)। एवं चतुष्पदा उर:परिसर्पा भुजपरिसर्पाः ५. एएसि (ट); एतेषां (मवृ)। पक्षिणश्च प्रत्येकं चतुष्प्रकारा वक्तव्याः (मवृ)। Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती पण्णत्ताओ, तं जहा - कण्हलेसा' जाव सुक्कलेसा || १५१. ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्ठी ? मिच्छदिट्ठी ? सम्मामिच्छदिट्ठी ? गोमा ! सम्मदिट्ठीविमिच्छदिट्ठीवि सम्मामिच्छदिट्ठीवि ॥ १५२. ते णं भंते ! जीवा किं णाणी ? अण्णाणी ? गोयमा ! ' णाणीवि अण्णाणीवि” – तिणि णाणाइं तिष्णि अण्णाणाइं भयणाए ' ॥ १५३. ते णं भंते! जीवा किं मणजोगी ? वइजोगी ? कायजोगी ? गोयमा ! तिविधावि ॥ १५४. ते णं भंते ! जीवा किं सागारोवउत्ता ? अणागारोवउत्ता ? गोयमा ! सागारोवउत्तावि अणागारोवउत्तावि ॥ १५५. ते णं भंते! जीवा कओ उववज्जंति ? - किं नेरइएहिंतो उववज्जंति ? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ? पुच्छा । गोयमा ! असंखेज्जवासाउयअकम्मभूमगअंतरदीवगवज्जेहिंतो उववज्जति ॥ १५६. तेसि णं भंते ! जीवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागं ॥ १५७. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति समुग्धाता पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच समुग्धाता पण्णत्ता, तं जहा - वेदणासमुग्धाए जाव तेयासमुग्धाए ॥ १५८. ते णं भंते ! जीवा मारणंतियस मुग्धाएणं किं समोहता मरंति ? असमोहता मरंति ? गोयमा ! समोहतावि मरंति असमोहतावि मरंति ॥ १५६. ते णं भंते ! जीवा अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छति ? कहिं उववज्जंति ? - किं नेरइएस उववज्जंति ? तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति ? पुच्छा । गोयमा ! एवं उव्वट्टणा भाणियव्वा जहा ' वक्कंतीए तहेव ॥ १६०. सिणं भंते ! जीवाणं कति जातीकुल कोडिजोणीपमुहसय सहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! बारस जातीकुल कोडीजोणीपमुहसयसहस्सा ॥ संग्रहणी गाहा २८१ जणीसंहले सादिट्ठी नाणे य जोग उवओगे । उववायठिईसमुग्धाय चयणं जातीकुलविधी उ ॥१॥ १. 'ता' प्रती अतः १५८ सूत्रपर्यन्तं संक्षिप्तपाठोस्ति कण्हादि ६ दिठीओ ३ णाणा भयणाए अण्णाणा ३ भयणाए जोगो ३ उवयोगो २ ते णं भंते! कतो उवव जधा दुविधा सु । जहं अंतो मु । उक्कोसं पलित असंखेजति ताउ धणु समुग्धाता ५ । ते णं भंते ! मारणंतिय किं समो असं दोसु वि मरंति । ते णं भंते ! अणंतर चयं च जहा दुविधेसु । २. दुविहावि (मवृ) | ३. भतणाते (ख) । अतोग्रे 'क, ख' प्रत्योः अतिरिक्तः पाठोस्ति - दुविहेसु गब्भवक्कंतिताणं । 'ग' प्रतौ च स एवमस्ति - दुविधा संमुच्छिम गब्भवक्कंतिताणं । ४. पण्ण० ३६।१ । ५. पण ० ६।१०५-१०६ । ६. 'ता' प्रति मुक्त्वा अन्येषु आदर्शेषु एषा सङ्ग्रहणी गाथा नोपलभ्यते । मलयगिरिवृत्तौ असो व्याख्यातास्ति । Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ जीवाजीवाभिगमे १६१. भयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! कतिविधे जोणीसंगहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे जोणीसंगहे पण्णत्ते, तं जहा-अंडया' पोयया संमुच्छिमा। एवं जहा खयराणं तहेव, णाणत्तं-जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं पुत्वकोडी, उव्वट्टित्ता दोच्चं पुढवि गच्छंति, णव जातीकुलकोडीजोणीपमुहसतसहस्सा भवंतीति मक्खायं, सेसं तहेव ॥ १६२. उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! पुच्छा। जहेव भुयपरिसप्पाणं तहेव, णवरं--ठिती जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी, उव्वट्टिता जाव पंचमि पुढवि गच्छंति, दस जातीकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा ॥ १६३. चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! दुविधे जोणीसंगहे पण्णत्ते, तं जहा-पोयया' य संमुच्छिमा य॥ १६४. पोयया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी पुरिसा णपुंसगा। तत्थ णं जेते संमच्छिमा ते सव्वे णपुंसगा। १६५. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति लेस्साओ पण्णत्ताओ? सेसं जहा पक्खीणं, णाणत्तं-ठिती जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णिपलिओवमाइं। उव्वट्टित्ता चउत्थि पुढवि गच्छंति, दस जातीकुलकोडी॥ १६६. जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा'। जहा भुयपरिसप्पाणं, णवरंउव्वट्टित्ता जाव अधेसत्तमि पुढविं, अद्धतेरस जातीकुलकोडीजोणीपमुह 'सयसहस्सा पण्णत्ता ॥ १६७. चउरिदियाणं भंते ! कति जातीकुलकोडीजोणीपमुहसतसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! नव जातीकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा समक्खाया । १६८. तेइंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! अट्ठ जातीकुल कोडीजोणीपमुहसयसहस्सा १. अंडगा (ग); अंडका (ट)। वक्तव्य: स्यादिति। २. पोयगा (क, ट)। ४. जराउया (क, ख, ग, ट)। ३. जराउया (क, ख, ग, ट); ठाणं (३।३६,३६, ५. 'ता' प्रतौ अत्र भिन्ना वाचना दश्यते४२,४५) सूत्रेषु क्रमशः मत्स्यानां पक्षिणां जलचराणां जोणी सं तिविहे अद्धतेरसजाती उरःपरिसर्पाणां भुजपरिसणां च अण्डज- कू जो जतो उववज्जति सो ततो उववज्जति पोतज-सम्मूच्छिमरूपेण विविधत्वं प्रज्ञापित- उप्पि जाव सहस्सारो णरएसु पक्खी तच्चातो मस्ति, एवं चतुष्पदथलचराणां त्रिविधत्वं चतुप्पद चउत्थि उरगा पंचमीतो मच्छा सत्तनास्ति तत्र प्रज्ञापितम् । अत्र विवक्षा भेद एव मीतो। मलयगिरिवृत्तावपि ऊध्वं यावत् कारणम् । मलयगिरिणापि एतस्यैव सूचना सहस्रारः इति लभ्यते । कृतास्ति-इह येऽण्डजव्यतिरिक्ता गर्भव्युत्क्रा- ६. सं० पा०-जातीकुलकोडीजोणीपमुह जाव न्तास्ते सर्वे जरायुजा अजरायुजा वा पोतजा पणत्ता। इति विवक्षितमतोत्र द्विविधो यथोक्तस्वरूपी ७. जोणीपमुहसयसहस्सा जाव (क, ग, ट); योनिसङ्ग्रह उक्तः, अन्यथा गवादीनां जरायुज- जोणीपमुह जाव (ख)। त्वात् तृतीयोपि जरायुलक्षणो योनिसङ्ग्रहो ८. सं० पा०-जातीकुल जाव समक्खाया। Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती २८३ समक्खाया। १६६. बेइंदियाणं भंते ! कइ जातीकुलकोडीजोणीपमुहसतसहस्सा पुच्छा । गोयमा! सत्त जातीकुलकोडीजोणीपमुहसतसहस्सा समक्खाया। १७०. कइ णं भंते ! 'गंधंगा? कइ णं भंते ! गंधंगसया" पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्त गंधंगा सत्त गंधंगसया पण्णत्ता॥ १७१. कइ णं भंते ! पुप्फजातीकुलकोडोजोणीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! सोलस पुप्फजातीकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता, तं जहा-चत्तारि 'जलजा णं चत्तारि थलजाणं" चत्तारि 'महारुक्खाणं चत्तारि महागुम्मियाणं"। १७२. कति णं भंते ! वल्लीओ? कति वल्लिसता पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि वल्लीओ चत्तारि वल्लीसता पण्णत्ता ।। १७३, कति णं भंते ! लताओ? कति लतासता पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठ लताओ अट्ठ लतासता पण्णत्ता॥ १७४. कति णं भंते ! हरियकाया ? कति हरियकायसया पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ हरियकाया तओ हरियकायसया पण्णत्ता । फलसहस्सं च बॅटबद्धाणं फलसहस्सं च णालबद्धाणं । ते सव्वे हरितकायमेव समोयरंति। ते एवं समणुगम्ममाणा-समणुगम्ममाणा समणुगाहिज्जमाणा-समणुगाहिज्जमाणा समणुपे हिज्जमाणा-समणुपेहिज्जमाणा समणुचितिज्जमाणा-समणुचितिज्जमाणा एएसु चेव दोसु काएसु समोयरंति, तं जहा-तसकाए चेव थावरकाए चेव । एवमेव सपुव्वावरेणं आजीवदिळेंतेणं चउरासीति जातीकुलकोडीजोणीपमुहसतसहस्सा भवंतीति मक्खाया । १७५. अत्थि णं भंते ! विमाणाइं 'अच्चीणि अच्चियावत्ताई अच्चिप्पभाई अच्चिकताई अच्चिवण्णाई अच्चिलेस्साइं अच्चिज्झयाई अच्चिसिंगाइं अच्चिसिट्ठाई अच्चिकूडाई अच्चुत्तरवडिसगाई" ? हंता अत्थि ॥ १७६. ते णं भंते ! विमाणा केमहालता पण्णत्ता ? गोयमा ! जावतिए णं सूरिए उदेति जावइएणं च सूरिए अत्थमेति एवतियाइं तिण्णोवासंतराइं अत्थेगतियस्स देवस्स १. गंधगा पण्णत्ता कइणं भंते गंधगसया (क, ख, महावृक्षाणां (मवृ)। ग, ट); गंधा गंधंगसता (ता); क्वचिद् ४. तेवि (मव)। गन्धा इति पाठस्तत्र पदैकदेशे पदसमुदायो- ५,६,७. एवं समणु (क, ख, ग, ट)। पचाराद् गन्धा इति गन्धाङ्गानीति द्रष्टव्यम् ८. आजीवियदि० (क, ट); आजीविदि० (ग); (मवृ)। आजीविवदि० (ता)। २. जलयराणं चत्तारि थलयराणं (क, ट); ६. अच्चिकिट्रीणि (ता)। लिपिकाराणां प्रमादेन 'जलयाणं थलयाणं' १०. सोत्थीणि सोत्थियावत्ताई सोत्थियपभाई इति पदयोः स्थाने 'जलयराणं थलयराणं' इति सोत्थियकताई सोत्थियवण्णाई सोत्थियलेस्साई पाठविपर्ययोः जातः इति सम्भाव्यते । सोथिसिंगाइं (सिंगाराई-ग, ट); सोत्थि३. महारुक्खियाणं' (क, ख, ग); गुम्मियाणं कूडाइं (कूडाइं-क, ख) सोथिसिट्ठाई (ट); महागुल्मिकादीनां जात्यादीनां, चत्वारि सोत्थुत्तरवडिसगाइं (क, ख, ग, ट); 'ता' Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ जीवाजीवाभिगमे एगे विक्कमे सिता । सेणं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए " चवलाए चंडाए सिघाए उद्धयाए जइणाए छेयाए दिव्वाए देवगतीए वीतीवयमाणे - वीतीवयमाणे जहणेणं' एकाहं वा याहं वा, उक्कणं छम्मासे वीतीवएज्जा -- अत्थे गतियं' विमाणं वीतीवएज्जा अत्थेगतिय* विमाणं नो वीतीवएज्जा, एमहालता णं गोयमा ! ते विमाणा पण्णत्ता समणाउसो' ! ॥ १७७. अत्थि णं भंते ! विमाणाई 'सोत्थीणि सोत्थियावत्ताइं सोत्थियपभाई सोत्थियकताई सोत्थियवण्णाई सोत्थियलेसाइं सोत्थियज्झयाइं सोत्थिसिगाई सोत्थिकूडाई सत्सट्टा सोत्युत्तरखडिसगाई " ? हंता अत्थि ।। १७८. ते णं भंते ! विमाणा केमहालता पण्णत्ता ? गोयमा ! "जावतिए णं सूरिए उदेति जावइएणं च सूरिए अत्थमेति एवतियाई पंच ओवासंतराई अत्थेगतियस्स देवस्स गे विक्कमे सिता । " से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिघाए उद्धयाए इणाए छेयाए दिव्वाए देवगतीए वीतीवयमाणे - वीतीवयमाणे जहण्णेणं एकाहं वा दुयाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासे वीतीवएज्जा - अत्थेगतियं विमानं वीतीवएज्जा अत्थेगतियं विमाणं नोवती एज्जा, एमहालता णं गोयमा ! ते विमाणा पण्णत्ता समणाउसो' ! | १७६. अत्थि णं भंते ! विमाणाई कामाई कामावत्ताई' कामप्पभाई कामकंताई कामवण्णाई कामलेस्साई कामज्झयाई कामसिंगाई कामकूडाई कामसिट्ठाई कामुत्तरafsसयाई ? हंता अत्थि ।। ● १८०. ते णं भंते ! विमाणा केमहालया पण्णत्ता ? गोयमा ! " जावतिए णं सूरिए उदेति जावइएणं च सूरिए अत्थमेति एवतियाई सत्त ओवासंतराई अत्थे तिस्स देवस् एगे विक्कमे सिता । से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्धाए उद्धयाए जाए छेयाए दिव्वाए देवगतीए वीतीवयमाणे - वीतीवयमाणे जहण्णेणं एकाहं वा दुयाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासे वीतीवएज्जा - अत्थेगतियं विमानं वीतीवएज्जा अत्थेगतियं विमाणं नो वीतीवज्जा, एमहालता णं गोयमा ! ते विमाणा पण्णत्ता समणाउसो' ! ॥ ११. अत्थि णं भंते ! विमाणाई विजयाई वैजयंताई जयंताई अपराजिताइं ? अथ ॥ प्रतौ वृत्तिद्वये च अचिरादीनां विमानानां त्रीणि अवकाशान्तराणि तथा स्वस्तिकादीनां पंच अवकाशान्तराणि लभ्यन्ते, अन्येषु प्रयुक्तादर्शेषु स्वस्तिकादीनां त्रीणि तथा अचिरादीनां पंच अवकाशान्तराणि लभ्यन्ते । प्राचीनतमां हारिभद्रीयवृत्तिमाश्रित्य तदनुसारी पाठ एव स्वीकृत: । १. सं० पा० – तुरियाए जाव दिव्वाए । २. जाव (क, ख, ग, ट ) । ३. अत्थेगतिते ( ग ) । ४. अत्येगतिया ( ग ) । ५. X ( क, ख, ग, ट ) । ६. अच्चीणि अच्चियावत्ताइं तहेव जाव अच्चुत्तखडसगाई (क, ख, ग, ट) । ७. सं० पा०-- एवं जहा अच्चीणि णवरं एवतियाई पंच ओवासंत राई । ८. सं० पा०-- सेसं तं चेव । ६. सं० पा० कामावत्ताइं जाव कामुत्तरवडिसयाई । १०. सं० पा० - जहा अच्चीणि ओवासंतराई विक्कमे सेसं तहेव णवरं सत्त Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सच्चा चउविहपडिवत्ती २८५ १८२. ते णं भंते ! विमाणा केमहालता पण्णत्ता ? गोयमा ! जावतिए णं सूरिए उदेति जावइए णं च सूरिए अत्थमेति एवइयाइं नव ओवासंत राई 'अत्थेगतियस्स देवस्स एगे विक्कमे सिता । से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्याए उद्ध्याए जइणाए छेयाए दिव्वाए देवगतीए वीतीवयमाणे-बीतीवयमाणे जहण्णेणं एकाहं वा दुयाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासे वीतीवएज्जा, नो चेव णं ते विमाणे वीईवएज्जा, एमहालयाणं विमाणा पण्णत्ता समणाउसो ! ।। तिरिक्खजोणिय उद्देसओ बीओ १८३. कतिविहा णं भंते ! संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! छविहा 'संसारसमावण्णगा जीवा' पण्णत्ता, तं जहा--पुढविकाइया जाव तसकाइया । १८४. से किं तं पुढविकाइया ? पुढविकाइया ‘पण्णवणाए पदं निरवसेसं' जाव सव्वट्ठसिद्धा देवा" । १८५. कतिविधा णं भंते ! पुढवी पण्णत्ता ? गोयमा ! छव्विहा पुढवी पण्णत्ता, तं जहा–सण्हपुढवी सुद्धपुढवी वालुयापुढवी मणोसिलापुढवी सक्करापुढवी खरपुढवी ।। १८६. सण्डपढवीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एगं वाससहस्सं ।।। १८७. सुद्धपुढवीपुच्छा' । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस वाससहस्साई॥ १.सं० पा०–सेसं तं चेव । दिया पंचिदिया। से किं तं बेइंदिया अणेग२. x (मवृ)। विहा पन्नत्ता। एवं जहेव पन्नवणाए तहेव ३. निरवयवं (ता)। निरवसेसं भाणियव्वं ति जाव सव्वद्रसिद्धगा ४. दुविहा पन्नत्ता तं सुहुम पुढविकाइया बायर- देवा। से तं अणुत्तरोववाइया। से तं देवा । पूढविकाइया। से किं तं सुहमपुढविकाइया से तं पंचिदिया। से तं तसकाइया (क, ख, दुविहा पन्नत्ता तं पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा ग, ट); इत्यादि प्रज्ञापनागतं प्रथमं प्रज्ञापनाय। से तं सुहमपुढविक्काइया । से कि पदं निरवशेषं वक्तव्यं यावदन्तिमं से तं देवा' तं बादरपुढविक्काइया २ दुविहा पन्नत्ता इति पदम् (मव)। तं जहा पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य ५. १८७-१६१ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रती एका एवं जहा पण्णवणाए । सण्हा सत्तविहा सङ्ग्रहणीगाथा लभ्यतेपन्नत्ता। खरा अणेगविहा पन्नत्ता जाव सण्हा य सुद्ध वालुय, मणोसिला सक्करा य असंखिज्जा। से तं बादरपुढविक्काइया । से तं खरपुढवी। पुढविक्काइया। एवं चेव जइ पण्णवणाए तहेव एक्कं वारस चोद्दस सोलस अट्रारस बावीसा ।। निरवसेसं भाणियव्वं जाव वणप्फइकाइया। मलयगिरिवृत्तावपि 'ता' प्रत्यनुसारि विवरणं एवं जत्थेको तत्थ सिय संखिज्जा सिय असंखि दृश्यते-एवमनेनाभिलापेन शेषाणामपि ज्जा सित अणंता। से तं बादरवणस्स इकाइया । पृथिवीनामनया गाथया उत्कृष्टमनुगन्तव्यं, से तं वणप्फइकाइया। से कि तं तसकाइया तामेव गाथामाह। चविहा पन्नत्ता तं बेइंदिया तेइंदिया चरि Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ जीवाजीवाभिगमे १८८. वालुयापुढवीपुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं चोदस वाससहस्साई॥ १८६. मणोसिलापुढवीपुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सोलस वाससहस्साइं॥ १६०. सक्करापुढवीपुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अट्ठारस वाससहस्साई ।। १९१. खरपुढवीपुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई ।। १९२. नेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! 'जहण्णेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं । ठितीपदं सव्वं भाणियव्वं जाव' सव्वट्ठ सिद्धदेवत्ति" ॥ १६३. जीवे णं भंते ! जीवेत्ति कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! सव्वद्ध। १६४. पुढविकाइए णं भंते ! पुढविकाइएत्ति कालतो केवच्चिरं होति ? गोयमा ! सव्वद्धं । एवं जाव तसकाइए। १६५. पड़प्पन्नपुढविकाइया णं भंते ! केवतिकालस्स पिल्लेवा सिता ? गोयमा ! जहण्णपदे असंखेज्जाहिं उस्स प्पिणिओसप्पिणीहिं, उक्कोसपदेवि असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं-जहण्णपदातो उक्कोसपए असंखेज्जगुणा। एवं जाव पडुप्पन्नवाउक्काइया ॥ १६६. पड़प्पन्नवणप्फइकाइया णं भंते ! केवतिकालस्स निल्लेवा सिता ? गोयमा ! पडुप्पन्नवणप्फइकाइया जहण्णपदे अपदा उक्कोसपदेवि अपदा-पडप्पन्नवणप्फतिकाइयाणं णत्थि निल्लेवणा ॥ १६७. पडुप्पन्नतसकाइया णं भंते ! 'केवतिकालस्स निल्लेवा सिया ? गोयमा ! पडुप्पन्नतसकाइया" जहण्णपदे सागरोवमसतपुहत्तस्स', उक्कोसपदेवि सागरोवमसतपूहत्तस्स-जहण्णपदा उक्कोसपदे विसेसाहिया ।। १. पण्ण० ४। २. चतुन्वीसा दंडएणं जाव सव्वलृति (ता, मव)। ३. सव्वद्धा (क, ता)। अतोग्रे 'ता' प्रतो भिन्नवाचनागतः पाठोस्ति-कायट्ठिती जहा नोट मेटिं पदेहि -जीवगतिदियकाए जाव सहम बादरा । सव्वं अपरिसेसे तं उवरिल्लं णत्थि । मलयगिरिवृत्ती द्वे सङ्ग्रहगाथे अत्र उपलभ्येतेगइ इंदिए य काए जोगे वेए कसाय लेसा य । सम्मत्तनाणदंसणसंजयउवओगआहारे ॥१॥ भासगपरित्तपज्जत्तसुहम सण्णी भवइत्थि चरि मे य । एएसि तु पयाणं कायठिई होइ नायव्वा ॥२॥ ४. उक्कोसपदे (क, ख, ग, ट)। ५. पूच्छा (क, ख, ग, ट)। ६. सयस्स पुहत्तस्स (क, ट); सागरोवमसहस्स पुहत्तस्स (ख); सतसहस्सपुधत्तस्स (ता)। ७. जघण्णपदात Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती २८७ अविसुद्धलेस्स-पदं १६८. अविसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे असमोहतेणं' अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणइ-पासइ ? गोयमा ! नो इणठे समझें ॥ १६६. अविसुद्धलेस्से' णं भंते ! अणगारे असमोहतेणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणइ-पासइ ? गोयमा ! नो इणठे समठे ।। २००. अविसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? गोयमा ! नो इणठे समझें ।। २०१. अविसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतेणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? गोयमा ! नो तिणठे समठे ।। २०२. अविसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतासमोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? गोयमा ! नो तिणठे समझें ॥ २०३. अविसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतासमोहतेणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? गोयमा ! नो तिणठे समठे ।। विसुद्धलेस्स-पदं २०४. विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे असमोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? हंता जाणति-पासति ॥ २०५. "विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे असमोहतेणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? हंता जाणति-पासति ॥ २०६. विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? हंता जाणति-पासति ।। २०७. विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतेणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? हंता जाणति-पासति ।। २०८. विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतासमोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? हंता जाणति-पासति ॥ २०६. विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतासमोहतेणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? हंता जाणति-पासति ॥ १. असमोहएणं (क, ट)। णो तिण ६ विसुद्धले समोह विसुद्धलेसं देवं देवि २. ४ (ख, ट, ता)। अण जाणति पासति । हंता जाणति पासति । ३. 'ता' प्रती अतः भिन्ना वाचना दृश्यते- एवं विसुद्धलेसा असमोहतेणं दोवि जाणति असमोहते णं भंते ! अणगारे असमोहतेणं पासति । समोहतेणं दोवि जाणति । समोहअप्पाणणं विसुद्धलेस । समोहतेणं अविसुद्धलेस तासमोहतेणं दोवि जाणति पासति । एवं ३ अविसुद्धलेस समोह विसुद्धलेस्सा । समोहतेणं जाणति छण्ण जाणति एवं बारस आलावगा। विसडलेसं दे ४ णो तिण। अविसुद्धलेसे णं ४. सं० पा०-जहा अविसुद्धलेस्सेणं छ आलावगा भंते ! समोहतासमोहतेणं अविसुद्धलेसं दे णो एवं विसुद्धलेस्सेण विछ आलावगा भाणितव्वा इ ५ अविसु समोहतासमोहतेणं विसुद्धलेसं जाव विसुद्धलेस्से। Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे २१०. अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति एवं भासेंति एवं पण्णवेंति एवं परूवेंति - एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ' पकरेति, तं जहा - सम्मत्तकिरियं च मिच्छत्तकिरियं च । २८८ जं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेति, तं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेति । जं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेति, तं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेति । सम्मत्तकिरियापकरणताए मिच्छत्तकिरियं पकरेति । मिच्छत्तकिरियापक रणताए सम्मत्तकिरियं पकरेति । एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेति, तं जहा - सम्मत्तकिरियं च मिच्छत्तकिरियं च ॥ २११. से हमे भंते ! एवं ? गोयमा ! जण्णं ते अण्णउत्थिया एवमाइक्खति एवं भासेति एवं पण्णवेंति एवं परूवेंति - एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेति तहेव जाव सम्मत्तकिरियं च मिच्छत्तकिरियं च । जेते एवमाहंसु, तं णं मिच्छा । अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमिएवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एवं किरियं पकरेति तं जहा - सम्मत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा । जं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेति णो तं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेति । जं समयं मिच्छत्त करियं पकरेति, नो तं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेति । सम्मत्तकिरियापक रणयाए नो मिच्छत्तकिरियं पकरेति । मिच्छत्त किरियापक रणयाए णो सम्मत्त किरियं पकरेति । एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एवं किरियं पकरेति तं जहा -- सम्मत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा ॥ मस्साधिगारो २१२. से कि तं मणुस्सा ? मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - संमुच्छिममणुस्सा य भवतियमणुस्सा य ॥ २१३. से किं तं संमुच्छिममणुस्सा ? संमुच्छिममणुस्सा एगागारा पण्णत्ता ॥ २१४. कहि णं भंते ! संमुच्छिममणुस्सा संमुच्छंति ? गोयमा ! अंतोमणुस्सखेत्ते जहा पण्णवणाए जाव' अंतोमुहुत्तद्धारया चेव कालं पकरेंति । सेत्तं संमुच्छिममणुस्सा ॥ २१५. से किं तं गभवक्कंतियमणुस्सा ? गब्भवक्कंतियमणुस्सा तिविधा पण्णत्ता, तं जहा - कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा ॥ २१६. से किं तं अंतरदीवगा ? अंतरदीवगा अट्ठावीसतिविधा पण्णत्ता, तं जहा १. कित्तियाओ (ता) । २. कहमेतं ( ख ) ; कधमेतं ( ता ) । ३. तं चैव सव्वं उच्चारेयव्वं (ता) । ४. अस्यां तृतीयप्रतिपत्ती तिर्यग्योन्यधिकारे द्वितीयदेशकः समाप्तः ( मवृ ) | ५. पण्ण० १।८४ । द्रष्टव्यं अस्यैव सूत्रस्य प्रथम प्रतिपत्तेः १२७ सूत्रम् । ६. अट्ठावीसविहा ( क ट ) | Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्विहपडिवत्ती rator' आभासिता वेसाणिया गंगूलिया' हयकण्णा' गयकण्णा गोकण्णा सक्कुलिकण्णा आसमुहा में ढहा अयोमुहा गोमुहा आसमुहा हत्थिमुहा सीहमुहा वग्घमुहा आसकण्णा सीहकण्णा अण्णा कण्णपाउरणा उक्कामुहा मेहमुहा विज्जुमुहा विज्जुदंता घणदंता लट्ठदंता गूढदंता सुद्धता ॥ २१७. कहिणं भंते! दाहिणिल्लाणं एगोरुयमणुस्साणं एगोरुयदीवे णामं दीवे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्ल हिमवंतस्स वासधरपव्वयस्स 'उत्तरपुरत्थि मिल्लाओ चरिमंताओ" लवणसमुदं तिण्णि जोयणसयाई ओगहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं एगोरुयमणुस्साणं एगोरुयदीवे णामं दीवे पण्णत्ते - तिणि जोयणसयाई आयामविक्खंभेणं णव एगूणपणे जोयणसए किंचि विसेसेण परिक्खेवेणं । सेणं एगाए पउमवरवेदियाए एगेणं च वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । 'वण्णतो पउमवरवेइया-वणसंडाणं जाव तत्थ णं बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति" संयंति चिट्ठेति णिसीयंति तुयट्टंति रमंति ललंति कीलंति मोहंति पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाण विहरति ॥ २१८. एगोरुयदीवस्स णं भंते ! केरिसए आगार भावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! १. गुरूया ( ट ) | २. गंगोली (क, ख, ग, ट ) ; गंगोलिया ( ठाणं ४।३२१) । ३. हयकण्णगाव (क, ख, ग, ट); ह्व इति चतुः संख्यासूचको वर्णोस्ति । अग्रिमपदेष्वपि एष दृश्यते । २८६ ४. आतंस (ट) ; आस (ता) | ५. एगूरु (क, ख, ता); एकूरुय (ट) । ६. पुरथिमिल्लातो चरिमंतातो उत्तरपुरत्थिमे णं (ता) । ७. य अउणावणे (ता) | ८. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'ता' प्रति मलयगिरिवृत्ति च मुक्त्वा अन्येषु आदर्शेषु विस्तृतः पाठोस्ति साणं परमवरवे दिया अद्ध ( केषुचिद् आदर्शेषु 'अट्ठ' इति पदं लिखितमस्ति तदशुद्धम् ) जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पंच धणुसयाई विक्खंभेण एगोरुयदीवं समंता परिवखेवेणं पण्णत्ता । तीसे णं पउमवरवेदियाए अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा- वइरामया णिम्मा एवं वेतियावण्णओ जहा रायसेनइए तहा भाणियव्वो । सा णं पउभवरवेतिया एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ता । से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई चक्कवालविक्खंभेणं वेतियासमेणं परिवखेवेणं पण्णत्ते, से णं वणसंडे किण्हे किण्होभासे, एवं जहा रायपसेणइयवणसंडवण्णओ तहेव निरवसेसं भाणियव्वं तणा य वण्णगंध फासो सद्दो तणाणं वावीओ उप्पायपव्वया पुढविसिलापट्टगा य भाणितव्वा जाव तत्थ णं बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति जाव विहरति । रायपसेणइयसूत्रे एतत् प्रकरणं १८६ - २०१ सूत्रेषु लभ्यते । मलयगिरिणा अस्यैव सूत्रस्य प्रकरणदर्शनार्थं सूचितम् — तत्र पद्मवरवेदिकावर्णको वनपण्डवर्ण कश्च वक्ष्यमाणजम्बूद्वीपजगत्युपरिपद्मव रवेदिका वनषण्डवर्णकवद् भावनीयः । स च तृतीयप्रतिपत्तौ देवाधिकारे प्रथमोद्देशके वर्तते । सं०पा० – आसयंति जाव विहरति । Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० जीवाजीवाभिगमे बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते । से जहाणामए-आलिंगपुक्खरेति वा', उत्तरकुरुगमो १. अतोग्रे वाचनाद्वयं लभ्यते ताडपत्रीयादर्श वृत्तिद्वये च एकोरुकवक्तव्यता अत्र संक्षिप्तास्ति उत्तर कुरुवक्तव्यताय (प्रतिपत्ति ३३५७८-६३१) समर्पितास्ति । शेषादर्शेषु अत्र पूर्णः पाठोस्ति उत्तरकूरुप्रकरणे च संक्षिप्तः। तद्वक्तव्यता एकोरुकवक्तव्यतायै समर्पितास्ति । 'ता' प्रतेर्वत्तिद्वयस्याधारण पूर्ववतिसूत्रवत् संक्षिप्तवाचनात्र स्वीकृतास्ति । विस्तृतवाचनायां प्रस्तुतसूत्रे पाठसमर्पणमेवमस्ति-- एवं सयणिज्जे भाणितव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं बहवे एगोरुयदीवया मणुस्सा य मणस्सीओ य आसयंति जाव विहरति । एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहिं २ बहवे उद्दालका मोद्दालका कोद्दालका कतमाला णट्रमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणा उसो ! कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंतो कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहि य पुप्फेहि य अच्छण्ण-पडिच्छण्णा सिरीए अतीव-अतीव सोभेमाणा उवसोभेमाणा चिठ्ठति । एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थ रुक्खा बहवे हेरुयालवणा भेरुयालवणा मेरुयालवणा सेरुयालवणा सालवणा सरलवणा सत्तपण्णवणा पूयफलिवणा खज्जूरिवणा णालिएरिवणा कुसविकुस वि जाव चिट्ठति । एगोरुयदीवे णं तत्थ बहवे तिलया लवया नग्गोहा जाव रायरुक्खा णंदिरुक्खा कुसविकुसवि जाव चिट्ठति । एगोरुयदीवे णं तत्थ बहओ पउमलयाओ नागलयाओ जाव सामलयाओ निच्चं कुसुमियाओ एवं लयावण्णओ जहा उववाइए जाव पडिरूवाओ। एगोरुयदीवे णं तत्थ बहवे सेरियागुम्मा जाव महाजातिगुम्मा । ते णं गुम्मा दसद्धवण्णं कुसुमं कुसुमेंति जेणं वायविहुयग्गसाला एगोरुयदीवस्स बहुसमरमणिज्जभूमिभागं मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेंति । एगोरुयदीवे णं तत्थ बहूओ वणराईओ पण्णत्ताओ। ताओ णं वणराईओ किण्हाओ किण्होभासाओ जाव रम्माओ महामेहणिगुरुंबभूताओ जाव महंती गंधद्धणि मुयंताओ पासादीयाओ। एगोरुयदीवे तत्थ बहवे मत्तंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से चंदप्पभ-मणिसिलाग-वरसीधु-पवरवारुणि-सुजातफल-पत्त-पुप्फ-चोय-णिज्जाससार-बहुदव्व जत्तीसंभार-कालसंधियआसवा महमेरग-रिट्राभ-दुद्धजाति-पसन्न-तेल्लग-सताउखजू रमुद्दियासार-कविसायण-सुपक्क खोय रसवरसुरा-वण्ण - रसगंधफरिसजुत्त-बलवीरियपरिणामा मज्जविधी य बहुप्पगारा तहेव ते मत्तंगयावि दुमगणा अणेगबहविविहवीससापरिणयाए मज्जविहीए उववेया फलेहिं पुण्णा विव विसट्टति कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला जाव चिठ्ठति । एगोरुयदीवे तत्थ बहवे भिगंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! जहा से वारगघडकरगकलसकक्करिपयंचाणिउल्लंकवद्धणिसुपइट्ठकविट्ठपारीचसगभिंगारकरोडिसरंगपरगपत्ता घोसगाणल्लग ववलियअवपदकगवालकाविचित्तवट्टकमणिवट्टकसिप्पिरवोरपिणया कंचणमणि रयणभत्तिविचित्ता भाजणविही बहप्पगारा तहेव ते भिगंगयावि दुमगणा अणेगबहविविहवीससापरिणताए भाजणविहीए उववेया फलेहिं पुण्णावि विसति कुसविकुस जाव चिट्ठति । एगुरुयदीवे णं तत्थ ५ बहवे तुडियंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से आलिंगपणवपडहदद्दरकरडिडिडिमभंभातहोरंभकणियखरमुहिमुयंगसंखियपरिल्लयपव्वगापरिवायणिवंसवेणुवीणा सुघोसगविपंचिमहतिकच्छविरिकिसतकतलतालकंसालतालकसंपउत्ता आतोज्जविधी य णिउणगंधव्व Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती २६१ समयकुसलेहि फंदिया तिढाणकरणसुद्धा तहेव ते तुडियंगयावि दुमगणा अणेगबहुविविधवीससापरिणयाए ततधणझुसिराए चउविहाए आतोज्जविहीए उववेया फलेहि पुण्णा विव विसटेंति कुसविकुस जाव चिट्ठति । एगुरुयदीवे णं तत्थ बहवे दीवसिहा णाम दुमगणा पण्णता समणाउसो! जहा से संझाविरागसमए नवणिहिपतिणेवदीवियाचक्कवालविंदे पभयवट्टिपलित्तणेहि वणिउज्जालियतिमिरमद्दए कणगणिगर कुसुमियपारिजायघणप्पगासे कंचणमणि रयणविमलमहरिहतवणिज्जुज्जलविचित्तदंडाहिं दीवियाहिं सहसापज्जालिऊस वियणिद्धतेयदिप्पंतविमलगहगणसमप्पहाहिं विति मिरक रसूरपसरिउज्जोवचिल्लियाहिं जालाओज्जलपहसियाभिरामाहिं सोभमाणे तहेव ते दीवसिहावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए उज्जोयविहीए उववेया फलेहि कुसविकुस जाव चिट्ठति । एगुरुयदीवे णं तत्थ ५ बहवे जोइसिया णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से अचिरुग्गयसरयसूरमंडलपडंत उक्कासहस्सदिप्पंतविज्जुज्जलहयवहनिद्धमजालियनिदंतधोयतत्ततवणिज्जकिसूयासोगजवासुयणकुसुमविम उलियपुंजमणिरयणकिरणजच्चहिंगुलुयनियररूवाइरेगरूवा तहेव ते जोतिसियावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए उज्जोयविहीए उववेया सुहलेस्सा मंदलेस्सा मंदातवलेस्सा कडा इव ठाणठिया अन्नमन्नसमोगाढाहिं लेस्साहिं साए पभाए सपदेसे सव्वओ समंता ओभासंति उज्जोवेंति पभासेंति कुसविकूसवि जाव चिट्ठति । एगुरुयदीवे णं तत्थ ५ बहवे चित्तंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से पेच्छाघरे विचित्ते रम्मे वरकुसुमदाममालुज्जललेसा भासंतमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिए विरल्लियविचित्तमल्लसिरिसमुदयप्पगब्भे गंथिमवेढिमपूरिमसंघाइमेणं मल्लेणं छेयासिप्पियविभागरइएण सव्वतो चेव समणुबद्धे पविरललंबंतविप्पइठेहिं पंचवण्णेहिं कुसुमदामेहि सोभमाणे वणमालकतग्गए चेव दिप्पमाणे तहेव ते चित्तंगयावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए मल्लविहीए उववेया कुसविकुसवि जाव चिट्ठति । एगोरुयदीवे तत्थ ५ बहवे चित्तरसा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! जहा से सुगंधवरकलमसालितंदुलविसिटुणिरुवहतदुद्धरद्धे सारयघयगुडखंडमहुमेलिए अतिरसे परमण्णे होज्ज उत्तमवण्णगंधमते रण्णो जहा वा वि चक्कवट्टिस्स होज्ज णि उणे हिं सूयपुरिसे हिं सज्जिए चउरकप्पसेयसित्ते इव ओदणे कलमसालिणिव्वत्तिए विपक्के सबप्फमिउविसयसगलसित्थे अणेगसालणगसंजुत्ते अहवा पडिपूण्णदव्वक्खडे सुसक्कए वण्णगंधरसफरिसजुत्तबलविरियपरिणामे इंदियबलवद्धणे खप्पिवासमहणे पहाणगूलकढियखंडमच्छडिघओवणीएव्व मोयगे सहसमियगब्भे हवेज्ज परम इटुगसंजुत्ते तहेव ते चित्तरसावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए भोजणविहीए उववेया कुसविकूसवि जाव चिट्ठति । एगोरुयदीवे तत्थ ५ बहवे मणियंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से हारहारवेट्टणगमउडकुंडलवासुत्तगहेमजालमणिजालकणगजालगसुत्तगउच्चितियक डगखुड्डियएगावालिकंठसुत्तमगरगउरत्थगेबेज्जसेणिसृत्तगचूलामणिकणगतिलगफुल्लगसिद्धत्थियकण्णवालिस सिसूरउसभचक्कगतलभंगयतुडियहत्थमालगवलक्खदीणारमालिया चंदसूरमालिया हरिसयकेयूरवलयपालंबअंगुलेज्जगकंचीमेहलाकलावपयरकपायजालघंटियखिखिणिरयणोरुजालच्छुडियवरणेउरचलणमालिया कणगणिगरमालिया कंचणमणिरयणभत्तिचित्तव्व भूसणविधी बहुप्पगारा तहेव ते मणियंगावि दुमगणा अणेगबहुविविहन Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૯૨ जीवाजीवाभिगमे वीससापरिणताए भूसणविहीए उववेया कुसविकुस जाव चिट्ठति ।। एगोरुयदीवे तत्थ ५ बहवे गेहागारा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से पागारट्टालगचरियदारगोपुरपासायाकासतलमंडवएगसालगविसालगतिसालगचउसालगगभघरमोहणघरवलभिघरचित्तसालगमालियभत्तिघरवट्टतंसचउरंसणंदियावत्तसंठियायतपंडुरतलमुंडमालहम्मियं अहव णं धवलहरअद्धमागहविब्भमसेलद्धसेलसंठियकूडागारेड्ढसुविहिकोट्ठगअणेगघरसरणलेणआवणविडंगजालवंदणिजजूहअपवरककवोतालिचंदसालियरूवविभत्तिकलिता भवणविही बहुविकप्पा तहेव ते गेहागारावि दुमगणा अणेगबहुविविधवीससापरिणयाए सुहारहाणा सुहोत्ताराए सुहनिक्खमणप्पवेसाए दद्दरसोपाणपंतिकलिताए पइरिक्काए सुहविहाराए मणाणुकूलाए भवणविहीए उववेया कुसविकुसावे जाव चिट्ठति । एगोरुयदीवे तत्थ ५ बहवे अणिगणा णामं दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! जहा से आइणगखोमतणयकंबलदुगुल्लकोसेज्जकालमिगपट्टचीणंसुयवतत्तावरणातवारवाणगपच्छन्नाभरणचित्तसहिणगकल्लाणगभिंगमेहलकज्जलबहुवण्णरत्तपीतसुक्किलमक्खयमितलोमहप्फरल्लगअवस्तरा सिंधुउसभदामिलवंगकलिंगनलिणतंतुमयभत्तिचित्ता वत्थविही बहुप्पकारा हवेज्ज वरपट्टणुग्गता वण्णरागकलिता तहेव ते अणिगणावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणताए उववेया कुसविकुस जाव चिठ्ठति । एगोरुयदीवे णं भंते ! दीवे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ते णं मणया अणुवमतरसोमचारुरूवा भोगुत्तमा भोगलक्खणधरा भोगसस्सिरीया सुजायसव्वंगसुंदरंगा सुपइट्टियकुम्मचारचलणा रत्तुप्पलपत्तमउयसुकुमालकोमलतला नगणगरमगरचवककहरंक लक्खणंकियचलणा अणुपुव्वसुहायंगुलिया उण्णयतणुतंबणिद्ध णक्खा संठियसुसलिट्ठगूढगुप्फा एणीकुरुविंदावत्तवट्टाणपुव्वजंघा सामुग्गणिमग्गगूढजाणू गतससणसुजातसण्णिभोरू वरवारणमत्ततुल्लविक्कमविलासित गति सुजातवरतुरगगुज्झदेसा आइण्णहतोव्व णिरुवलेवा पमुइयवरतुरगसीहअइरेगवट्टियकडी सोहयसोणिदमूसलदप्पणणिगरितवरकणगच्छरुसरिसवरवइरवलितमज्भा उज्जुयसमसंहितसुजातजच्चतणकसिणणि आदेज्जलडहसकमालमउयरमणिज्जरोमराईगंगावत्तयपयाहिणावत्ततरंगभंगुररविकिरणतरुणबोधियआकोसायंतपउमगंभीरविगडणाभा झसविहगसुजातपीणकुच्छी झसोदरा सुइकरणा पम्हवियडणाभा सण्णयपासा संगतपासा सुंदरपासा सुजातपासा मितमाइयपीणरइयपासा अकरुंड्यकणगरुयगनिम्मलसुजातनिरुवयदेहधारी पसत्थबत्तीसलक्खणधरा कणगसिलातलुज्जलपसत्थसमतलउवचियविच्छिण्णपिहलवच्छा सिरिवच्छंकियवच्छा पुरवरफलिहवट्टियभुया भुयगीसरविपुलभोगआयाणफलिहउच्छूढदीहबाहू जुगसन्निभपीणरतियपीवरपउट्ठसंठियउववियघणथिरसुबद्धसुसलिट्ठपव्वसंधी रत्ततलोवइतमउयमंसलपसत्थलक्खणसुजायअच्छिद्दजालपाणी पीवरवट्टियसुजायकोमलवरंगुलीया तंबतलिणसुतिरुइरणिद्धणक्खा चंदपाणिलेहा सूरपाणिलेहा संखपाणिलेहा चक्कपाणिलेहा दिसासोवत्थियपाणिलेहा चंदसूरसंखचक्कदिसासोवत्थियपाणिलेहा अणेगवरलक्खणुत्तमपसत्थसुविरइयपाणिलेहा वरमहिसवराहसीहसद्द लउसभणागवरविउलउन्नतमइंदखंधा चउरंगुलसुप्पमाणकंबुसरिसगीवा अवट्ठितसुविभत्तसजातचित्तमंसू मंसलसंठियपसत्थसदूलविपुलहणुया ओतवितसिलप्पवालबिबफलसन्निभाहरोट्ठा पंडरससिसगलविमलनिम्मलसंखदधिधणगोखीरफेणदगरयमुणालियाधवलदंतसेढी अखंडदंता अफुडियदंता अविरलदंता सुसिणिद्धदंता सुजातदंता एगदंतसे ढिव्व अणेगदंता हुतवहनिद्धतधोततत्ततवणिज्जरत्ततलतालुजीहा गरुलायतउज्जुतुंगणासा अवदालियपोंडरीकणयणा कोकासितधवलपत्तलच्छा Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती २६३ आणमियचावरुइलकिण्हपूराइयसंठियसंगतआयतसुजाततणुकसिणनिद्धभुमया अल्लीणप्पमाणजुत्तसवणा सुसवणा पीणमंसलकवोलदेसभागा अचिरुग्गयबालचंदसंठियपसत्थविच्छिन्नसमणिडाला उडुवतिपडिपुण्णसोमवदणा छत्तागारुत्तमंगदेसा घणणिचियसुबद्धलक्खणुण्ण यकूडागारणिपिडियसिरा हतवहनिद्धतधोततत्ततवणिज्जकेसंतकेराभूमी सामलिपोंडघणणिचियछोडियामिउविसयपसत्थसहमलक्खणसगंधसंदरभयमोयगभिंगणीलकज्जलपहट्टभमरगणिणिद्धणि कुरुंबनिचियकचियपयाहिणावत्तमुद्धसिरया लक्खणवंजणगुणोववेया सुजायसुविभत्तसंगतंगा पासाइया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। ते णं मण्या ओहस्सरा हंसस्सरा कोंचस्सरा नंदिघोसा सीहस्सरा सीघोसा मंजुस्सर। मंजुघोसा मस्सरा सस्सरणिग्घोसा छायाउज्जोतियंगमंगा वज्जरिसभनारायसंघयणा समचउरंससंठाणसंठिया सिण द्धछवी णिरायंका उत्तमपसत्थअइसेसनिरुवमतण जल्लमलकलंकसेयरयदोसवज्जियसरीरा निरुवमलेवा अणुलोमवाउवेगा कंकग्गहणी कवोतपरिणामा सउणीपोसपिट्ठत रोरुपरिणता विग्गहियउन्नयकुच्छी पउमुप्पलसरिसगंधणिस्साससरभिवयणा अट्टधणसयऊसिया तेसिं मणयाणं चउसट्री पिट्रिकरडगा पण्णत्ता समणाउसो ! ते णं मण्या पगतिभद्दगा पगतिविणीया पगतिउवसंता पगतिपयणकोहमाणमायालोभा मिउमद्दवसंपण्णा अलीणा भगा विणीया अप्पिच्छा असंनिहिसंचिया अचंडा विडिमंतरपरिवसणा जहिच्छियकामगामिणो य ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! तेसि णं भंते ! मणुयाणं केवतिकालस्स आहारट्टे समुप्पज्जति ? गोयमा ! चउत्थभत्तस्स आहारठे समुप्पज्जति । एगोरुयमणईणं भंते ! केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ताओ णं मणईओ सुजायसव्वंगसंदरीओ पहाणमहिलागुणेहि जुत्ता अच्चंतविसप्पमाणपउमसूमालकुम्मसंठितविसिट्रचलणा उज्जुमउयपीवरनिरंतरपुठ्ठसुसाहतचलणंगुलीओ अच्चुण्णयरतियतलिणितंबस तिणिद्धणखा रोमरहियवट्टलट्ठसंठियअजहण्णपसत्थलक्खणअकोप्पजंघजुतला सुणिम्मियसुगूढजाणुमंसलसबद्धसंधी कलिक्खंभातिरेगसंठियणिव्वणसूमालमउयकोमलअविरलसंहतसुजातवट्टपीवरणिरंतरोरू अट्ठावयवीचि (दीवि-क) पट्टसंठियपसत्थविच्छिन्नपिहुलसोणी वदणायामप्पमाणदुगुणितविसालमंसलसुबद्धजहणवरधारणीओ वज्जविराइयपसत्थलक्खणनिरोदरा तिवलिवलियतणुणमियमज्झिआओ उज्जुयसमसंहितजच्चतणुकसिणणिद्धआदेज्जलडहसुविभत्तसुजातसोभंतरुइलरमणिज्जरोम राई गंगावत्तयपयाहिणावत्ततरंगभंगुररविकिरणतरुणबोधियआकोसाइंतपउमगंभीरविगडणाभी अणुब्भडपसत्थ पीणकुच्छी सण्णयपासा सगयपासा सुजायपासा मियमाईयपीण रइयपासा अकरुंडयकणगरुयगनिम्मलसुजायणिरुवहयगातलट्ठी कंचणकलसायमाणसमसंहियसुजातलठ्ठचूचुयआमेलगजमलजुगलवट्टिय - अच्चण्णय रतियसंठियपयोधराओ भुजंगअणुपुव्वतणुयगोपुच्छवट्टसमसहियणमियआइज्जललियवाहा तंबणहा मंसलग्गहत्था पीवरकोमलवरंगुलीओ णिद्धपाणिलेहा रविससिसंखचक्कसोत्थियविभत्तसुविरतियपाणिलेहा पीणुण्णयकक्खवक्खवत्थिप्पदेसा पडिपुण्णगलकवोला चउरंगुलसुप्पमाणकंबुवरसरिसगीवा मंसलसंठियपसत्थहणुगा दालिमपुप्फप्पगासपीवरपलबकुचियव गधरा सुंदरोत्तरोट्ठा दधिदगरयचंदकुंदवासंतिम उलअच्छिद्दविमलदसणा रत्तुप्पलपत्तमउयसूमालतालुजीहा कणयरमउलअकुडिलअब्भुग्गयउज्जुतुंगणासा सारयणवकमलकुमुदकुवलयविमउलदलणिगरसरसलक्खणअंकियकंतणयणा पत्तलधवलायततंबलोयणाओ आणामितचावरुइलकिण्हब्भराइसंठियसंगतआययसुजाय Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ जीवाजीवाभिगमे तणुकसिणणिद्धभुमगा अल्लीणपमाणजुत्तसवणा सुसवणा पीणमट्ठरमणिज्जगंडलेहा चउरंसपसत्थसमणिडाला कोमुतिरयणिकरविमलपडिपुण्णसोम्मवयणा छत्तुन्नयउत्तिमंगा कुडिलसुसिणिद्धदीहसिरया छत्तज्झयजूवथूभदामिणिकमंडलुकलसवाविसोत्थियपडागजवमच्छकुम्मरहवरमगरसुकथालअंकूसअट्ठावयवीईसुपइठक मऊरसिरियाभिसेयतोरणमेइणि उदधिवरभवणगिरिवरआयंसल लियगय - उसभसीहचमरउत्तमपसत्यबत्तीसलक्खणधरीओ हंससरिसगईओ कोइलमहरगिरसूस राओ कंताओ सव्वस्स अणुमयाओ ववगयवलिपलियवंगदुवण्णवाहीदोभग्गसोगमुक्का उच्चत्तेण य नराणथोवूणमुसियाओ सब्भावसिंगारचारुवेसा संगतहसियभणियचेट्ठियविलाससंलावणिउणजुत्तोवयारकुसला सुंदरथणजहणवयणकरचरणणयणलावण्णवण्णरूवजोवणविलासकलिया नंदणवण विवरचारिणीउव्व अच्छराओ अच्छेरगपेच्छणिज्जा पासाइतातो दरिसणिज्जातो अभिरूवाओ पडिरूवाओ। तासि णं भंते ! मणईणं केवतिकालस्स आहारठे समुप्पज्जति! गोयमा ! चउत्थभत्तस्स आहारठे समुप्पज्जति । ते णं भंते ! मणुया किमाहारमाहारेंति ? गोयमा ! पुढविपुप्फफलाहारा ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो! तीसे णं भंते ! पुढवीए केरिसए अस्साए पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहाणामए गुलेति वा खंडेति वा सक्कराति वा मच्छंडियाति वा भिसकंदेतिवा पप्पडमांततेति वा पुप्फउत्तराइ वा पउमुत्तराइ वा अकोसिताति वा विजताति वा महाविजयाइ वा पायसोवमाइ वा उवमाइ वा अणोवमाइ वा चउरक्के गोखीरे चउठाणपरिणए गुडखंडमच्छंडिउवणीए मंदग्गिकढिए वण्णेणं उववेए जाव फासेणं, भवेतारूवे सिता ? नो इणट्टे समझें। तीसे णं पुढवीए एत्तो इट्टयराए चेव जाव मणामतराए चेव आसाए णं पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! पुप्फफलाणं केरिसए अस्साए पण्णत्ते? गोयमा ! से जहानामए रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स कल्लाणे पवरभोयणे सतसहस्सनिप्फन्ने वण्णेणं उववेए गंधेणं उववेए रसेणं उववेए फारोणं उववेए अस्सायणिज्जे वीसायणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे वींहणिज्जे मयणिज्जे सविदियगातपल्हायणिज्जे भवेतारूवे सिता? णो तिणटठे समटठे । तेसि णं पुप्फफलाणं एत्तो इतराए चेव जाव अस्साए णं पण्णत्ते । ते णं भंते ! मणुया तमाहारेत्ता कहि वसहि उति ? गोयमा ! रुक्खगेहालता णं ते मणयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ते णं भंते ! रुक्खा किंसंठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! कूडागारसंठिता पेच्छाघरसंठिता छत्तागारसंठिता झयसंठिया थूभसंठिया तोरणसंठिया गोपुरवेतियपालगसंठिया अट्टालगसंठिया पासायसंठिया हम्मितलसंठिया गवक्खसंठिया वालग्गपोतियसंठिया अण्णे तत्थ बहवे वरभवणसयणासणविसिटूसंठाणसंठिया सुभसीतलच्छाया णं ते दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अत्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे दीवे गेहाति गेहाययणाति वा ? णो तिणठे समठे! रुक्खगेहालया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अत्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे २ गामाति वा णगराति वा जाव सन्निवेसाति वा? णो तिणठे समठे । जहच्छियकामगामिणो णं ते मणय गणा पण्णत्ता समणाउसो ! अस्थि णं भंते ! एगूरुयदीवे असीति वा मसीइ वा विवणीइ वा पणीइ वा वाणिज्जाइ वा ? नो तिणठे सगळे । ववगयअसिमसिकिसिविवणिवणिज्जा णं ते मणयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती २६५ अस्थि णं भंते ! एगरुयदीवे हिरण्णेति वा सुवण्णेति वा कंसेति वा दूसेति वा मणीति वा मुत्तिएति वा विपुलधणकणगरतणमणिमोत्तियसंखसिलप्पवालसंतसारसावएज्जे वा? हंता अत्थि । णो चेव णं तेसिं मणुयाणं तिब्वे ममत्तिभावे समुप्पज्जति । अत्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे रायाति वा जुवरायाति वा ईसरेति वा तलवरेइ वा मांडबिएति वा कोडबिएति वा इन्भेति वा सेट्ठीति वा सेणावतीति वा सत्थवाहेति वा? णो तिणठे समटठे। ववगयइडिढसक्कारा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अत्थि णं भंते ! एगूरुयदीवे २ दासाइ वा पेसाइ वा सिस्साइ वा भयगाइ वा भाइल्लगाइ वा कम्मगराइ वा भोगपुरिसाइ वा ? नो इणठे समठे । ववगयआभिओगिया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अत्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे दीवे माताति वा पियाति वा भायाति वा भइणीति वा भज्जाति वा पत्ताति वा धयाइ वा सूण्हाति वा ? हंता अस्थि । नो चेव णं तेसि णं मणयाणं तिव्वे पेज्जबंधणे समुप्पज्जति, पयणपेज्जबंधणा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अस्थि णं भंते । एगोरुयदीवे अरीति वा वेरियाति वा घायगाति वा वहगाति वा पडिणीइ वा पच्चमित्ताति बा ? णो इणढे समठे । ववयगयवेराणुबंधा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अत्थि णं भंते । एगोरुयदीवे मित्ताति वा वतंसाति वा घडिताति वा सहीति वा सुहियाति वा महाभागाति वा संगतियाति वा? नो तिणठे समझें। ववगतपेम्मा ते मण्यगणा पण्णत्ता समणउसो ! अत्थि णं भंते एगोरुयदीवे आवाहाति वा विवाहाति वा जन्नाति वा सद्धाति वा थालियाकाति वा चोलोवणतणाति वा सीमंतोवणतणाइ वा पितिपिंडनिवेयणाइ वा? णो इणठू सम। ववगयआवाहविवाहजन्नसद्धथालिपागचोलोवणतणसीमंतोवणतणपितिपिंडनिवेदणा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो। अत्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे २ इंदमहाइ वा रुद्दमहाइ वा खंदमहाइ वा सिवमहाइ वा वेसमणमहाइ वा मुगुंदमहाइ वा नागमहाइ वा जक्खमहाइ वा भूतमहाइ वा कूवमहाइ वा तलागणदिमहाइ वा दहमहाइ वा पव्वयमहाइ वा चेइयमहाइ वा रुक्खंसियणमहाइ वा थूभमहाइ वा ? णो इणठे समझें । ववगयमहामहिमा णं ते मणयगणा पण्णत्ता समणाउसो! अत्थि णं भंते एगोरुयदीवे दीवे नडपिच्छाइ वा णट्टपेच्छाइ वा मल्लपेच्छाइ वा मुट्ठियपेच्छाइ वा विडंबगपेच्छाइ वा कहगपेच्छाइ वा पवगपेच्छाइ वा अक्खाइगपेच्छाइ वा लासगपच्छाइ वा लंखपे० मंखपे० तूणइल्लपे० तुंववीणपेच्छाइ वा मागहपेच्छाइ वा कावपे० जल्लपि० कहयापेच्छाइ वा ? णो इणठे समलै । ववगयकोउहल्ला णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो! अत्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे सगडाइ वा रहाइ वा जाणाइ वा जुग्गाइ वा गिल्लीइ वा पिल्लीइ वा थिल्लीइ वा पवहणाइ वा सीयाइवा संदमाणियाइ वा ? णो तिणठे समठे । पादचारविहारिणो णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अत्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे आसाइ वा हत्थीइ वा उट्टाइ वा गोणाइ वा महिसाइ वा खराइ वा अवीइ वा एलगाइ वा ? हंता अस्थि । नो चेव णं तेसि मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति । अस्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे गोवीइ वा महिसीइ वा उट्टीइ वा अयाइ वा एलगाइ वा? हंता Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ जीवाजीवाभिगमे अत्थि । नो चेव णं तेसि मणयाणं परिभोगत्ताए हन्वामागच्छंति । अस्थि णं भंते एगुरुयदीवे दीवे सीहाइ वा वग्याइ वा दीवियाइ वा अच्छाइ वा परस्सराइ वा सियालाइ वा विडालाइ वा सुणगाइ वा कोलसुणगाइ वा कोकंतियाइ वा ससगाइ वा चित्तलाइ वा चिल्ललगाइ वा ? हंता अस्थि । नो चेव णं ते अण्णमण्णस्स तेसि वा मणुयाणं किंचि आवाहं वा पवाहं वा उप्पायति छविच्छेयं वा करेंति ! पगइभद्दगा ण ते सावयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अत्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे दीवे सालीइ वा वीहीइ वा गोहुमाइ वा उक्खूइ वा जवाइ वा तिलाइ वा? हंता अत्थि । नो चेव णं तेसिं मणयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति । अत्थि णं भंते एगोरुयदीवे दीवे गत्ताइ वा दरीइ वा पाइ वा घंसीइ वा भिगूइ वा उवाएइ वा विसमेइ वा विजलेइ वा धूलीइ वा रेणूइ वा पंकेइ वा चलणीइ वा ? णो इणठे समठे। एगूरुयदीवे णं दीवे बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते समणाउसो ! अत्थि णं भंते ! एगूरुयदीवे दीवे खाणूइ वा कंटएइ वा हीरएइ वा सक्कराइ वा तणपत्तकयवराइ वा असुई वा पूईआति वा दुब्भिगंधाइ वा अचोक्खाइ रा ? णो इणठे समठे । ववगयखाणुकंटकहीरसक्क रतणकयवरअसुइपूइयदुब्भिगंधमचोक्खवज्जिए णं एगोरूयदीवे पण्णत्ते समणाउसो ! अत्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे दीवे दंसाइ वा मसगाइ वा पिसुगाइ वा जूवाइ वा लिक्खाइ वा ढिकुणाइ वा ? णो तिणठे समलै । ववगयदंसमसगपिसुतजूतलिक्खढिंकुणपरिवज्जिए णं एगुरुयदीवे पण्णत्ते समणाउसो ! अत्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे अहीइ वा अयगराइ वा महोरगाइ वा ? हंता अस्थि । नो चेव णं ते अन्नमन्नस्स तेसि वा मणयाणं किंचि आवाहं वा पवाहं वा छविच्छेयं वा पकरेंति । पगइभगा णं ते वालगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अस्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे गहदंडाइ वा गहमुसलाइ वा गहगज्जियाइ वा गहजुद्धाइ वा गहसंघाडगाइ वा गहअवसव्वाइ वा अब्भाइ वा अब्भरुक्खाइ वा संझाइ वा गंधव्वनगराइ वा गज्जियाइ वा विज्जुयाइ वा उक्कापायाइ वा दिसादाहाइ वा निग्घाताइ वा पंसुविट्ठीति वा जूवागाइ वा जक्खालित्ताइ वा धमियाइ वा महियाइ वा रउग्घायाइ वा चंदोवरागाइ वा सूरोवरागाइ वा चंदपरिवेसाइ वा सूरपरिवेसाइ वा पडिचंदाइ वा पडिसूराइ वा इंदधणूइ वा उदगमच्छाइ वा अमोहाइ वा कविहसियाइ वा पाईणवायाइ वा पहीणवायाइ वा जाव सुद्धवायाइ वा गामदाहाइ वा नगरदाहाइ वा जाव सण्णिवेसदाहाइ वा पाणक्खयजणक्खयकुलक्खयधणक्खयवसणभूतमणारियाइ वा? णो इणछे समठे। अस्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे दीवे डिबाइ वा डमराइ वा कलहाइ वा बोलाइ वा खाराइ वा वेराइ वा विरुद्ध रज्जाइ वा ? णो इणठे समठे। ववगयडिंबडमरकलहबोलखारवेरविरुद्धरज्जविवज्जिया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अस्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे दीवे महाजुद्धाइ वा महासंगामाइ वा महासत्थपडणाइ वा महापुरिसपहाणाइ वा महारुधिरपडणाइ वा नागवाणाइ वा खेणवाणाइ वा तामसवाणाइ वा दुब्भूइयाइ वा कूलरोगाइ वा गाम रोगाइ वा णगररोगाइ वा मंडल रोगाइ वा सीसवेयणाइ वा अच्छिवेयणाइ वा कण्णवेयणाइ वा नक्खवेयणाइ वा णक्कवेयणाइ वा दंतवेयणाइ वा कासाइ वा सासाइ वा सोसाइ वा जराइ वा दाहाइ वा कच्छूइ वा कुटाइ वा दगोवराइ वा अरिसाइ वा अजीरगाइ वा भगंदलाइ Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहडिवत्ती २९७ तव्वो जाव मणुस्साणं अणुसज्जणा, णाणतं-अदृधणुसयऊसित्ता, चोउट्टि पिट्टिकरंडगा, एगूणासीति रातिदियाइं अणुपालेंति, ठिती जहण्णणं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागं ॥ २१६. कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं आभासियमणुस्साणं आभासियदीवे णाम दीवे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणणं चुल्ल हिमवंतस्स वासधरपव्वयस्स 'पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ दाहिणपुरथिमिल्लेणं" लवणसमुहं तिण्णि जोयणसयाई ओगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं आभासियमणुस्साणं आभासियदीवे णामं दीवे पण्णत्ते । सेसं जहा एगूरुयाणं' । वा इंदग्गहाइ वा खंदग्गहाइ वा कुमारग्गहाइ वा णागग्गहाइ वा जक्खग्गहाइ वा भूयग्गहाइ वा उव्वेवग्गहाइ वा धणुग्गहाइ वा एगाहियाइ वा बेयाहियाइ वा तेयाहियाइ वा चाउत्थगाहियाइ वा हिययसूलाइ वा मत्थगसूलाइ वा पाससूलाइ वा कुच्छिसूलाइ वा जोणिसूलाइ वा गाममारीइ वा जाव सन्निवेसमारीइ वा पाणक्खय जाव वसणभूतमणायरिय वा? णो इणठे समठे। ववगयरोगायंका णं ते मणयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अस्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे दीवे अइवासाइ वा मंदवासाइ वा सुवुट्ठीय वा मंदवुट्ठीय वा उदवाहाइ वा पवाहाइ वा दगुब्भेयाइ वा दगुप्पीलाइ वा गामवाहाइ वा जाव सन्निवेसवाहाइ वा पाणक्खय जाव वसणभूतमणारियाइ वा ? णो इणठे समठे ! ववगयदगोवद्दवा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अत्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे अयागराइ वा तंबागराइ वा सीसागराइ वा सुवण्णागराइ वा रयणागराइ वा वइरागराइ वा वसुहाराइ वा हिरण्णवासाइ वा सुवण्णवासाइ वा रयणवासाइ वा वइरवासाइ वा आभरणवासाइ वा पत्तवासाइ वा पुप्फवासाइ वा फलवासाइ वा बीयवासाइ वा गंधवासाइ वा मल्लवासाइ वा वण्णवासाइ वा चुण्णवासाइ वा खीरवट्ठीति वा रयणवुट्ठीति वा सुवण्णवट्ठीति वा तहेव जाव चुण्णवुट्ठीति वा सुकालाइ वा दुक्कालाइ वा सुभिक्खाइ वा दुभिक्खाइ वा अप्पग्घाइ वा महग्धाइ वा कयाइ वा विक्कयाइ वा अण्णिहीइ वा संचयाइ वा निधीइ वा निहाणाइ वा चिरपोराणाइ वा पहीणसामियाइ वा पहीणसेउयाइ वा पहीणगोत्तागराइं जाइं इमाइं गामागरण गरखेडकब्बडमडंबदोणमूहपट्टणासमसंवाहसन्निवेसेसु सिंघाडगतिगचउक्कचच्चरचउम्मुहमहापहपहेस णगरणिद्धमणसुसाणगिरिकंदरसंतिसेलोवट्ठाणभवणगिहेसु सन्निक्खित्ताई चिट्ठति ? णो इणठे समठे। एगुरुयदीवेणं भंते ! दीवे मणयाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं असंखेज्जतिभागेणं ऊणगं उक्कोसेण पलिओवमस्स असखेज्जतिभागं । ते णं भंते ! मणुया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छंति कहिं उववज्जति ? गोयमा ! ते णं मणुया छम्मासावसेसाउया मिहुणयाइं पसवंति अउणासीइं राइंदियाई मिहुणाई सारक्खंति संगोवंति य, सारक्खित्ता २ उस्ससित्ता निस्ससित्ता कासित्ता छीतित्ता अक्किदा अव्वहिया अपरियाविया सुहसुहेणं कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, देवलोगपरिग्गहिया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! १. दाहिणपूरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ (क, ख, ग, ट)। २. 'याणं निरवसेसं सव्वं (क, ख, ग, ट)। Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे २२०. कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं गंगोलियमणुस्साणं 'गंगोलियदीवे णामं दीवे पण्णत्ते" ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चुल्लहिमवंतस्स वासधरपव्वयस्स ' पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ दाहिणपच्चत्थिमिल्लेणं" लवणसमुद्दं तिण्णि जय साई ओगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं गंगोलियमणुस्साणं गंगोलियदीवे णामं दीवे पण्णत्ते । सेसं जहा एगूरुयाणं । 1 २६८ २२१. कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं वेसाणियमणुस्साणं वेसाणिय दीवे णामं दीवे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चुल्ल हिमवंतस्स वासधरपव्वयस्स 'पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरपच्चत्थिमिल्लेणं" लवणसमुद्दं तिणि जोयसाई ओगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं वेसाणियमणुस्साणं वेसाणियदीवे णामं दीवे पण्णत्तं । सेसं जहा एगूरुयाणं ॥ २२२. कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं हयकण्णमनुस्साणं हयकण्णदीवे णामं दीवे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगुरुयदीवस्स 'पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरपुरथिमिल्ले " लवणसमुद्दं चत्तारि जोयणसयाई ओगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं हयकण्णमणुस्साणं कण्णदीवे णामं दीवे पण्णत्ते - चत्तारि जोयणसयाई आयाम - विक्खंभेणं बारस 'पण्णट्ट जोयणसया" किचिविसेसाहिया परिक्खेवेणं, सेसं जहा एगूरुयाणं ॥ २२३. कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं गयकण्णमणुस्साणं गयकण्णदीवे णामं दीवे पण्णत्ते गोयमा ! आभासयदीवस्स 'पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ दाहिणपुरत्थि - मिल्लेणं" लवणसमुद्दं चत्तारि जोयणसयाई ओगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं गयकण्णमाणं कण्णदीवे णामं दीवे पण्णत्ते । सेसं जहा हयकण्णाणं ॥ २२४. एवं गोकणाण वि - 'गंगूलिय दीवस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ दाहिणपच्चत्थिमेणं" लवणसमुद्दं चत्तारि जोयणसयाई ओगाहिता, एत्थ णं गोकण्णमणुस्साणं गोकणदीवे णामं दीवे पण्णत्ते । सेसं जहा हयकण्णाणं ॥ २२५. सक्कुलिकण्णाणं - ' वेसाणियदीवस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरपच्चत्थिमेणं'"" लवणसमुद्दं चत्तारि जोयणसयाई ओगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं सक्कुलिकण मणुस्साणं सक्कुलिकण्णदीवे णामं दीवे पण्णत्ते । सेसं जहा हयकण्णाणं ॥ १. 'क, ख, ग, ट' आदर्शेषु 'वेसाणिय' सूत्रानन्तरं 'णंगोलिय' सूत्रं विद्यते । ७. किंचिविसेसूणा (क, ख, ग, ट) । ८. से णं एगाए पउमवरवेइयाए अवसेसं ( क, ख, ग, ट) । ६. दाहिणपुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ ( क, ख, ग, ट) । १०. वेसाणियदीवस्स २. पुच्छा (क, ख, ग, ट ) । अग्रिमसूत्रेष्वपि । ३, ५. उत्तरपुरथिमिल्लाओ चरिताओ (क, ख, ग, ट) । ४. दाहिणपच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ (क, ख, ग, ट ) 1 चरिमंताओ (क, ख, ग, ट) । ६. जोयणसया पन्नट्ठा (क, ख, ग ); पेंसट्ठी ११. गंगोलियदीवस्स उत्तरपच्चत्थिमिल्लाओ जोयणसया ( ट ) | चरिमंताओ (क, ख, ग, ट) । दाहिणपच्चत्थिमिल्लाओ Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती २६६ २२६. एवं एएणं अभिलावेणं आदंसमुहादीणं लवणसमुद्दं पंच जोयणसयाई ओगाहित्ता, पंच जोयणसयाई आयाम - विक्खंभेणं । आसमुहादीणं छ जोयणसयाई । आसकण्णादी सत्त जोयसाई । उक्कामुहादीणं अट्ठ जोयणसयाई । घणदंताणं नव जोयणसयाई । संग्रहणीगाहा - पढमंमि' तिणि उ सया, सेसाण सतुत्तरा नव ओगाहण विक्खंभं दीवाणं परिरयं १. 'क, ख, ग, ट' आदर्शेषु अतो भिन्ना वाचना लभ्यते--आयंसमुहाणं पुच्छा हयकण्णदीवस्स उत्तरपुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ पंच जोयणसयाई ओगाहित्ता एत्थ णं दाहिणिल्लाणं आयंसमुहमस्सा आयंसमुहदीवे नामं दीवे पण्णत्ते पंच जोयणसयाई आयाम विक्खभेणं । आसमुहाईणं छ सया । आसकरणाईणं सत्त । उक्कामुहाईणं अट्ट । घणदंताईणं जाव नव जोयणसयाई । २. अत्र तिस्त्रो वाचना लभ्यते । तत्र वृत्तिगता वाचना मूले स्वीकृता । द्वितीया ताडपत्रीयादर्शवाचना, सा चैवम् उ जाव । वोच्छं ॥ १ ॥ एगूरुयपरिक्खेवो, नव चेव सताई अउणापण्णाई | बारस पण्णट्ठाई, हयकण्णाणं परिक्खेओ ॥ १॥ पण सेक्कसीया, आदसमुहाण परिरयो होति । अट्ठारस्स सत्तणया आसमुहाणं परिक्खेवो ॥२॥ वावीसं तेराइ, परिरयो होति आसकण्णाणं । पणुवीस अउणतीसा, उक्कामुहाणं परिक्खेवो || ३ || दो च्चेव सहस्साइं अट्ठेव सता हवंति पणताला । घणदं तदीवस्तु, विसेसाधिओ परिक्खेओ ॥४॥ असया चोवट्टा, संखातीता य पलियभागा तु । उच्चत्तं पिट्टकरंडगा या आउं च सव्वेसि ॥५॥ पढमंमि तिणि तु सता, सेसाण च उत्तरं णव उ जाव । ओगाहण विक्खंभ, दीवाणं परिरयं वोच्छं ॥६॥ पढमचउक्कस परिरयो, वि ततचउक्कस्स परिरयो अहितो । सोहि तिहिं जोयण सतेहिं एमेव सेसाणं ॥ ७॥ तृतीया शेषादर्शनाचना विद्यते गुरु परिक्खेवो, नव चेव सयाई अउणपन्नाई । वारस पन्नट्ठाई, हयकण्णाणं परिवखेवो ॥ १ ॥ आर्य समुहाई पन्नरसेकासीए जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं । एवं एतेणं कमेणं उव्वज्जिय २ यव्वा । चत्तारि २ एगप्पमाणा णाणत्तं ओगाहे विक्खंभे परिक्खेवे । पढम वितिय ततिय चउक्काणं ओग्गहो विक्खंभो परिक्खेवो य भणिओ चउत्थे चउक्के छ जोयणसयाई आयाम विक्खंभेणं अट्ठार सत्ताणउए जोयणसए परिक्खेवेणं । पंचमचउक्के सत्त जोयणसयाई आयाम विक्खंभेणं वावीसं तेरसुत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं । छट्टचउक्के अट्ठ जोयणसयाई आयामविक्खभेणं पणवीसं अगुणत्तीसे जोयणसते परिक्खेवेणं । सत्तमचउक्के णव जोयणसयाई आयाम Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० कण्णा पढमचक्कपरिया, विइयच उक्कस्स परिरओ अहिओ । सोहि तिहि उ जोयणएहिं एमेव सेसाण || २ || एगोरुय परिक्खेवो, नव चेव सयाइ अउणपण्णाई । वारस पट्ठाई, परिक्खेवो ||३|| पण्णरसेवकासीया, आयंसमुहाणं परिरओ होइ । अट्ठारस सत्तणउया, आसमुहा परिक्खेवो ॥४॥ बावीसं तेराई, परिक्खेवो होइ आसकण्णाणं । पणुवीस अउणतीसा, कामु परिरओ होइ ||५|| दो चेव सहस्साइं अट्ठेव सया हवंति पणयाला । घणदंती वाणं, विसेसमहिओ परिक्खेव ||६|| २२७. कहिं णं भंते ! उत्तरिल्लाणं एगुरुयमणुस्साणं एगूरुयदीवे णामं दीवे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं सिहरिस्स वासधरपव्वयस्स पुरत्थि - मिल्लाओ चरिमंताओ 'लवणसमुदं तिण्णि जोयणसयाई ओगाहित्ता, एत्थ णं उत्तरिल्लाणं गूरुयमणुस्साणं एगूरुयदीवे णामं दीवे पण्णत्ते । तहेव' उत्तरेण विभासा भातिव्वा । तं अंतरदीवगा ॥ २२८. से' किं तं अकम्मभूमगमणुस्सा ? अकम्मभूमगमणुस्सा तीसविधा पण्णत्ता, तं जहा - पंचहि हेमवहिं पंचहि हिरण्णव एहि पंचहि हरिवासेहि पंचहि रम्मगवासेहि पंचहि देवकुरूहि पंचहि उत्तरकुरूहि । सेत्तं अकम्मभूमगा ॥ २२६. से किं तं कम्मभूमगा ? कम्मभूमगा पण्णरसविधा पण्णत्ता, तं जहा पंह भरहि पंचहि एरवएहिं पंचहि महा विदेहेहि । ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहाआरिया' मिलेच्छा । एवं जहा पण्णवणापदे जाव' सेत्तं आरिया । सेत्तं गब्भवक्कंतिया । सेत्तं मणुस्सा ॥ विक्खभेणं दो जोयणसहस्साइं अठपण्णत्ताले जोयणसए परिक्खेवेणं । जस्स य जो विक्खंभो ओगाहो तस्स तत्तिओ चेव । पढम पीयाण परिरतो ऊणो सेसाण अहिओ || १ || सेसा जहा एगुरुयदीवस्स जाव सुद्धदंतदीवे । देवलोगपरिग्गहा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो । १. जी० ३।२१८-२२६ । २. एवं जहा दाहिणिल्लाणं तहा उत्तरिल्लाणं भाणितव्वं णवरं सिहरिस्स वासहरपव्वयस्स विदिसासु एवं जाव सुद्धदंतदीवेत्ति जावसेत्तं अंतरदीवगा (क, ख, ग, ट ) ; तहेव सिहरि जीवाजीवाभिगमे पव्वतसमं यव्वा उत्तरेणं विभासा भाणितव्वा (ar) I ३. २२८, २२६ सूत्रयोः स्थाने ताडपत्रीयादर्शे भिन्ना वाचना दृश्यते-से किं तं अकम्मभू २ तीसतिविधा पं । कम्म भू पण्णरसविधा ते समासतो दुविधा आरिंगा मिल जहा पण्णवणाए पदो जाव अहक्खातचरिय सेत्तं मस्सं । ४. सं० पा० एवं जहा पण्णवणापदे जाव पंचहि | ५ आयरिया (क, ट ) । ६. पण्ण० ११८८- १२६ । Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्विहपडिवत्ती देवाधिकारो २३० से' किं तं देवा ? देवा चउव्विहा पण्णत्ता, जोइसिया वेमाणिया || २३१. से किं तं भवणवासी ? भवणवासी दसविहा पण्णत्ता । 'जहा पण्णवणापदे देवाणं भेदो तहा भाणियव्वो जाव सव्वट्टसिद्धगा" ॥ २३२. कहि णं भंते ! भवणवासिदेवाणं भवणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! भवणवासी देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए, एवं जहा पण्णवणाए जाव' भवणा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिवा, एत्थ णं भवणवासीणं देवाणं सत्त भवणकोडीओ बावर्त्तारं भवणावाससयसहस्सा भवंतित्तिमक्खाता । तत्थ णं बहवे भवणवासी देवा परिवसंति-असुरा नाग सुवण्णा य जहा पणवणाए जाव' विहरति ॥ ३०१ २३३. कहि णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं भवणा पण्णत्ता ? पुच्छा । एवं जहा पण्णवणाठाणपदे जाव' विहरति ॥ २३४. कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं असुरकुमारदेवाणं भवणा पुच्छा । एवं जहा ठाणपदे जाव चमरे, एत्थ असुर कुमारिंदे असुरकुमारराया परिवसति जाव' विहरति ॥ २३५. चमरस्स णं भंते ! असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो कति परिसाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - समिता चंडा जाया । अब्भितरिया समिता, मज्झमिया" चंडा, बाहिरिया जाया || १. २३०, २३१ सूत्रयोः स्थाने ताडपत्रीयादर्श एवं पाठभेदोस्ति-से किं तं देवा चतुव्विधा तं भवण क जधा पण्णवणा पदे देवभेदो जाव सव्वट्टसिद्धो । २. तं जहा असुरकुमार जहा पण्णवणापदे देवाणं भेदो तहा भाणितव्वो जाव अणुत्तराववाइया पंचविधा पण्णत्ता, तं जहा विजयवेजयंत जाव सवसिद्धगा । सेत्तं अणुत्तरोववाइया (क, ख, ग, ट) । तं जहा - भवणवासी वाणमंतरा २३६. चमरस्स णं भंते! असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो अब्भितरियाए परिसाए कति 'देवसाहस्सीओ पण्णत्तओ ? मज्झिमियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पण्णताओ ? बाहिरिया परिसाए कति देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! चमरस्स णं असुर्रिदस्स असुरकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए चउवीसं देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मज्झमिया परिसाए अट्ठावीसं देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ बाहिरियाए परिसाए बत्तीसं देव साहसीओ पण्णत्ताओ || ३. पण्ण० २।३० । ४. भवंति भवणवण्णतो जहा ठाणपदे जाव (ar) 1 ५. पण्ण० २।३० । ६. पण्ण० २।३१ । ७. तत्थ (क, ख, ग, ट ) ; यत्थ (ता) | ८. पण्ण० २।३२ । ६. महताहतण दिव्वाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरति । उववात समुग्धात संठाणा य भाणितव्वा (ता) । १०. असुररण्णो (क, ख, ट, ता) । ११. मझे (क, ख, ग ) । १२. देवसहस्सा पण्णत्ता (ता) । Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ जीवाजीवाभिगमे २३७. चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ? मज्झिमियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ? बाहिरियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ? गोयमा ! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए अट्ठा' देविसया पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए तिण्णि देविसया पण्णत्ता, बाहिरियाए अड्ढाइज्जा' देविसया पण्णत्ता॥ २३८. चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? मज्झिमियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? अभितरियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? मज्झिमियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? वाहिरियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए देवाणं अड्ढाइज्जाइं पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवाणं दो पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवाणं दिवढं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता, अभितरियाए परिसाए देवीणं दिवड्ढं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवीणं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवीणं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता॥ २३६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति--चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-समिया चंडा जाया। अभितरिया समिया मज्झिमिया चंडा बाहिरिया जाया ? गोयमा ! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो अभितरपरिसा देवा वाहिता हव्वमागच्छंति, णो अव्वा हिता। मज्झिमपरिसा देवा वाहिता हव्वमागच्छंति, अव्वाहितावि । बाहिरपरिसा देवा अव्वाहिता हव्वमागच्छंति । अदुत्तरं च णं गोयमा ! चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया अण्णयरेसु उच्चावएसु कज्ज-कोडंबेसु समुप्पन्नेसु अभितरियाए परिसाए सद्धि सम्मुइ-संपुच्छणाबहुले विहरइ, मज्झिमियाए परिसाए सद्धि पयं पवंचेमाणे-पवंचेमाणे विहरति, बाहिरियाए परिसाए सद्धि पयं पचंडेमाणे-पचंडेमाणे विहरति । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-चमरस्स णं असुरिंदस्स १. अड्ढाइज्जा (त्रि, मव)। २. अदधदा (त्रि, मव)। मलयगिरिवत्ती 'अर्ध ततीयानि त्रीणि अर्धचतर्थानि' अनेन क्रमेण व्याख्यातमस्ति । हस्तलिखितवृत्तेः त्रिपाठयां प्रतावपिवृत्त्यनुसारी पाठः उपलब्धः । किन्तु मलयगिरिवृत्ती द्वये सङ्गहणीगाथे उद्धृते स्तः, तत्रापि स्वीकृतपाठस्य संवादित्वं लभ्यते- चउवीसा अट्ठवीसा बत्तीसससस्स देवचम रस्स। अट्ठातिण्णि तहा अड्ढाइज्जा य देविसया॥१॥ प्रस्तुताधिकारस्य २४२ सुत्रेपि 'अद्धपंचमा चत्तारि अद्भुट्टा' एष क्रमो विद्यते, अनेनापि स्वीकृतपाठस्य पुष्टिर्जायते । भगवती (वृत्ति पत्र २०२) वृत्ती असुरेन्द्रस्य देवीशतानि स्वीकृतपाठक्रमेण उपलभ्यते-तथा देवीशतानि क्रमेणाध्युष्टानि त्रीणि साढे च द्वे इति । ३. इह भूयान् वाचनाभेद इति यथाऽवस्थितसूत्रे पाठनिणयार्थे सुगममपि सूत्रमक्षरसंस्कारमात्रेण विवियते (मव)। ४. सद्धं (ता)। Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ३०३ असुरकुमाररण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ-समिया चंडा जाया । अब्भितरिया समिया, मज्झिमिया चंडा, बाहिरिया जाया ।। २४०. कहि णं भंते ! उत्तरिल्लाणं असुरकुमाराणं भवणा पण्णत्ता ? जहा ठाण जा बली, एत्थ वइरोयणिदे वइरोयणराया परिवसति जाव' विहरति ॥ २४१. बलिस णं भंते ! वइरोयणिदस्स वइरोयणरण्णो कति परिसाओ पण्णताओ ? गोयमा ! तिण्णि परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-समिया चंडा जाया । अब्भितरिया समिया, मज्झमिया चंडा, बाहिरिया जाया ।। २४२. बलिस्स णं भंते ! वइरोयणिदस्स वइरोयणरण्णो अभितरियाए परिसाए कति देव सहस्सा पण्णत्ता ? मज्झिमियाए परिसाए कति देवसहस्सा पण्णत्ता जाव बाहिरियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ? गोयमा ! बलिस्स णं वइरोयणिदस्स वइरोयणरण्णो अभितरियाए परिसाए वीसं देवसहस्सा पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए चउवीसं देवसहस्सा पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए अट्ठावीसं देवसहस्सा पण्णत्ता, अब्भितरियाए परिसाए अद्धपंचमा देविसया पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि देविसया पण्णत्ता, बाहिरिया परिसाए अद्धट्ठा देविसया पण्णत्ता | २४३. वलिस् ठितीए पुच्छा जाव बाहिरियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! बलिस्स णं वइरोर्याणिदस्स वइरोयणरण्णो अभितरियाए परिसाए देवाण अद्भुट्ठ पलिओवमा ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए तिण्णि पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवाणं अड्ढाइज्जाई पलिओ माई ठिती पण्णत्ता, अब्भितरियाए परिसाए देवीणं अड्ढाइज्जाई पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवीणं दो पलिओ माई ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवीणं दिवड्ढं पलिओ मं ठिती पण्णत्ता । सेसं जहा चमरस्स असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो ॥ २४४. कहि णं भंते! नागकुमाराणं देवाणं भवणा पण्णत्ता ? जहा ठाणपदे जाव दाहिणिल्लावि पुच्छियव्वा जाव धरणे, इत्थ नागकुमारिदे नागकुमारराया परिवसति जाव' विहरति ॥ २४५. धरणस्स णं भंते! नागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो कति परिसाओ पण्णताओ ? गोयमा ! तिष्णि परिसाओ, ताओ चैव जहा चमरस्स || २४६. धरणस्स णं भंते ! नागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए कति देवसहस्सा पण्णत्ता जाव बाहिरियाए परिसाए कति देवीसया पण्णत्ता ? गोयमा ! धरणस्स णं नागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो अब्भतरियाए परिसाए सट्ठि देव सहस्साई, मज्झिमया परिसाए सर्त्तारं देवसहस्साई, बाहिरिया ए असीतिदेवसहस्साई, अभितरियाए परिसाए पण्णत्तरं देविसतं पण्णत्तं, मज्झिभियाए परिसाए पण्णासं देविसतं पण्णत्तं, बाहिरिया परिसाए पणवीसं देविसतं पण्णत्तं ॥ २४७. धरणस्स णं नागकुमारिदस्स नागकुमार रण्णो अब्भितरियाए परिसाए देवाणं वतियं कालं ठिती पण्णत्ता? मज्झिमियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? १. पण्ण० २।३३ । २. पष्ण० २१३४, ३५ । Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ जीवाजीवाभिगमे बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? अभितरियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? मज्झिमियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? बाहिरियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! धरणस्स णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए देवाणं सातिरेगं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवाणं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवाणं देसूणं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, अभितरियाए परिसाए देवीणं देसूणं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवीणं सातिरेगं चउब्भागपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, वाहिरियाए परिसाए देवीणं चउभागपलिओवमं ठिती पण्णत्ता । अट्ठो जहा चमरस्स ॥ २४८. कहि णं भंते ! उत्तरिल्लाणं नागकुमाराणं भवणा पण्णत्ता ? जहा ठाणपदे जाव' विहरति । २४६ भूयाणंदस्स णं भंते ! नागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ? मज्झिमियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ? वाहिरियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ? अभितरियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ? मज्झिमियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ? बाहिरियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ? गोयमा ! भूयाणंदस्स णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए पन्नासं देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मज्झिमियाए परिसाए सट्ठि देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, बाहिरियाए परिसाए सत्तरि देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, अभितरियाए परिसाए 'दो पणवीसं देविसया" पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए दो देवीसया पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए पण्णत्तरं देविसयं पण्णत्तं ॥ २५०. भूयाणंदस्स णं भंते ! नागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता जाव वाहिरियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! भूताणंदस्स णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए देवाणं देसूणं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवाणं साइरेगं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवाणं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता. अभितरियाए परिसाए देवीणं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवीणं देसणं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, वाहिरियाए परिसाए देवीणं साइरेगं चउब्भागपलिओवमं ठिती पण्णत्ता। अत्थो जहा चमरस्स। अवसेसाणं वेण्देवादीणं महाघोसपज्जवसाणाणं ठाणपदवत्तव्वया णिरवयवा' भाणियव्वा, परिसाओ जहा धरण-भताणंदाणंदाहिणिल्लाणं जहा' धरणस्स उत्तरिल्लाणं जहाँ भूताणंदस्स । परिमाणंपि ठितीवि।। २५१. कहि णं भंते ! वाणमंतराणं देवाणं 'भोमेज्जा णगरा" पण्णत्ता ? जहा ठाण१. पण्ण० २।३६ । ५. जी० ३।२४६,२४७ । २. पणुवीसा दो देविसता (ता)। ६. जी० ३।२४८,२४६ । ३. ४ (मवृ)। ७. भवणा (क, ख, ग, ट, त्रि) । ४, पण्ण० २।३७-४० । Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती पदे जाव' विहरति ॥ २५२. कहि णं भंते! पिसायाणं देवाणं भोमेज्जा णगरा पण्णत्ता ? जहा ठाणपदे जाव विहरंति, कालमहाकाला य तत्थ दुवे पिसायकुमाररायाणो परिवसंति जाव' विहरति ॥ २५३. कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं पिसायकुमाराणं जाव विहरंति, काले य एत्थ पिसायकुमारिंदे पिसायकुमारराया परिवसति महिड्ढि जाव' विहरति ।। २५४. कालस्स णं भंते ! पिसायकुमारिदस्स पिसायकुमाररण्णो कति परिसाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! तिण्णि परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-ईसा तुडिया दढरहा । अभितरिया ईसा, मज्झिमिया तुडिया, बाहिरिया दढरहा || २५५. कालस्स णं भंते ! पिसायकुमारिदस्स पिसायकुमाररण्णो अब्भितरपरिसाए कति देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ जाव बाहिरियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ? गोमा ! कालस्स णं पिसायकुमारिदस्स पिसायकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए अट्ट देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मज्झिमियाए परिसाए दस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, बाहिरिया परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, अब्भितरियाए परिसाए एवं देविसतं पण्णत्तं, ' एवं तिसुवि" ॥ २५६. कालस्स णं भंते! पिसायकुमाररिदस्स पिसायकुमाररण्णो अब्भितरियाए परिसाए देवाणं वतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? मज्झिमियाए परिसाए देवाणं केवतिय कालं ठिती पण्णत्ता ? बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता जाव बाहिरिया परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! कालस्स णं पिसायकुमारिदस्स पिसायकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए देवाणं अपओिवमं ठती पणत्ता, मज्झमिया परिसाए देवाणं देणं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवाणं सातिरेगं चउब्भागपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, अब्भंतरियाए परिसाए देवीणं सातिरेगं चउब्भागपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवीणं चउब्भागपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवीणं देसूणं चउब्भागपलिओ मं ठिती पण्णत्ता, 'अट्ठो जो चेव चमरस्स । एवं उत्तरिल्लस्सवि, एवं णिरंतरं जाव' गीयजसस्स ॥ २५७. कहि णं भंते! जोतिसियाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! जोतिसिया देवा परिवसंति ? गोयमा ! उप्पिं दीवसमुद्दाणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तणउए जोयणसते उड्ढं उप्पतित्ता दसुत्तरजोयणसय १. पण्ण० २।४१ । २. पण ० २।४२ । ३. पण्ण० २।४३ । ३०५ ४. कुमार रायस्स (ट) । ५. मज्भिमिया परिसाए एवं देविसतं पण्णत्तं बाहिरियाए परिसाए एवं देविसतं पण्णत्तं (क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. पण्ण. २/४५। ७. एवं सोलसहवि वंरिदाणं (ता) | Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ वाल्ले', एत्थ णं जोतिसियाणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा जोतिसियविमाणावाससतसहस्सा भवतीतिमक्खायं । ते णं विमाणा अद्धकविटुकसंठाणसंठिया एवं जहा ठाणपदे जाव चंदिम-सूरिया य, एत्थ णं जोतिसिंदा जोतिसरायाणो परिवसंति महिड्डिया जाव' विहति ॥ २५८. चंदसणं भंते! जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति परिसाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! तिणि परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा तुंबा तुडिया पव्वा । अभितरिया तुंबा, मज्झिमया तुडिया, बाहिरिया पव्वा । सेसं जहा कालस्स परिमाणं, ठितीवि । अट्ठो जहा चमरस्स । एवं सूरस्स वि ॥ दीवसमुद्दवत्तग्वयाधिकारो २५६. कहि णं भंते ! दीवसमुद्दा ? केवइया णं भंते ! दीवसमुद्दा ? केमहालया णं ते ! दीवसमुद्दा ? किंसंठिया णं भंते! दीवसमुद्दा ? किमाकारभावपडोयारा णं भंते ! दीवसमुद्दा पण्णत्ता ? गोयमा ! जंबुद्दीवाइया दीवा लवणादीया समुद्दा संठाणओ एक विधिविधाणा वित्थरतो' अणेगविधिविधाणा दुगुणाद्गुणे पडुप्पाएमाणा - पडुप्पारमाणा पवित्थरमाणा - पवित्थरमाणा ओभासमाणवीचीया बहुउप्पल-पउम कुमुद-गलिण- सुभग-सोगंधिय'पोंडरीय महापोंडरीय"- सतपत्त - सहस्सपत्त-पप्फुल्ल केसरोवचिता पत्तेयं-पत्तेयं परमवरवेइयापरिक्खित्ता पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता सयंभुरमणपज्जवसाणा अस्सि तिरियलोए असंखेज्जा दीवसमुद्दा पण्णत्ता समणाउसो ! ।। २६०. तत्थ णं अयं जंबुद्दीवे णामं दीये सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतर सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापूयसंठाणसंठिते, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिते, वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिते, वट्टे पडण्णचंदसंठाणसंठिते, एक्कं जोयणसयसहस्सं आयाम - विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसय सहस्साई सोलस य सहस्साई दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसते तिणि य कोसे अट्ठावीसं च धणुरायं तेरस अंगुलाई अर्द्धगुलकं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते । १. दसुत्तरे जोयणसए बाहल्लेणं ( क ); दसुत्तरसए णं भंते! जोइसिंदस्स जोइसरण्णो कइजोयणबाहल्लेणं (ग); दसुत्तरं जोयणसयं परिसाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! तिण्णि बाहल्लेणं (ट) ; दसुत्तरसए जोयणसए (त्रि ) । परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - तुंबा तुडिया २. पण० २२४८ | पेच्चा, अभितरिया तुंबा, मज्झिमिया तुडिया, बाहिरिया पेच्चा । सेसं जहा कालस्स, अट्ठो जह चमरस्स | चंदस्सपि एवं चेव । मलयगिरिवृत्तौ आदर्शलब्ध एव पाठः उद्धृतोस्ति । ४. वित्थारओ (क, ख, ग, ट, त्रि) । ५. अरविंद कोवणत (ता) । ६. अस्सि तिरियलोए असंखेज्जा दीवसमुद्दा सयंभुरमणपज्जवसाणा (क, ख, ग, ट, त्रि) । ७. अतिरिए (क, ख, त्रि); अब्भितरए ( ग ) ; अब्भंतरए (ट) । ३. 'ता' प्रती पूर्व चन्द्रमसः पर्वन्निरूपकं सूत्रमस्ति, तदनन्तरं च सूर्यस्य, यथा - चंदस्स णं भंते ! पुच्छा गो ततो पं तं तुंबा तुडिता पव्वा, अभितरिया तुंबा, एवं एताओ वि णेतव्वाओ सेसं तहेव देविप्रमाणं ठिती य जधा बंतरिदाणं । एवं सूरस्स वि । एष एव क्रमः अस्माभिरादृत: । स्थानाङ्गे ३।१५५,१५७ सूत्रयोरयमेव क्रमो दृश्यते ! 'ता' प्रतेः पाठभेदो निर्दिष्ट एव शेषादर्थेषु प्रस्तुतक्रमस्य व्यत्ययोस्ति-- सूरस्स जीवाजीवाभिगमे Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ३०७ से णं एक्काए जगतीए सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते ।। २६१. सा णं जगती अट्ठ जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, मूले वारस जोयणाइं विवखंभेणं, मज्झे अटु जोयणाई विक्खंभेणं, उप्पिं चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं, मूले विच्छिण्णा' मज्झे संखित्ता उप्पि तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिता सव्ववइरामई अच्छा सहा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरिया' सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा । २६२. साणं जगती एक्केणं जालकडएणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता । से णं जालकडए अद्धजोयणं उड्ढ उच्चत्तेणं, पंचधणुसयाई विक्खंभेणं, सव्वरयणामए अच्छे सण्हे जाव पडिरूवे ।। २६३. तीसे णं जगतीए उप्पि बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महई एगा पउमवरवेदिया पण्णत्ता, सा णं पउमवरवेदिया अद्धजोयणं उड्ढे उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई विक्खंभेणं', जगतीसमिया परिक्खवेणं 'सव्वरयणामई अच्छा जाव पडिरूवा" ॥ २६४. तीसे णं पउमवरवेइयाए अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-वइरामया नेमा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पामया" फलगा 'लोहितक्खमईओ सूईओ वइरामया संधी' नाणामणिमया कलेवरा" नाणामणिमया" कलेवरसंघाडा णाणामणिमया रूवा नाणामणिमया रूवसंघाडा अंकामया पक्खा पक्खबाहाओ जोतिरसामया वंसा वंसकवेल्लुया रययामईओ पट्टियाओ जातरूवमईओ ओहाडणीओ वइरामईओ उवरिपुंछणीओ सव्वसेयरययामए छादणे ।। २६५. सा णं पउभवरवेइया एगमेगेणं हेमजालेणं 'एगमेगेणं गवक्खजालेणं एगमेगेणं खिखिणिजालेणं एगमेगेणं घंटाजालेणं एगमेगेणं मुत्ताजालेणं एगमेगेणं मणिजालेणं एगमेगेणं कणगजालेणं एगमेगेणं रयणजालेणं एगमेगेणं पउमजालेणं'४ सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। ते णं जाला" तवणिज्जलंबूसगा" सुवण्णपयरगमंडिया" णाणामणिरयणविविहहारद्ध१. उप्पं (ता)। १२. कडेवरा (क, ख,); कणे (ता)। २. वित्थिण्णा (ता)। १३. x (क, ख, ग, ट, ता, त्रि)। ३. सस्सिरीया (क, ग); मस्सिरिया (ट, ता)। १४. एगमेगेणं खिखिणिजालेणं एवं घंटाजालेणं ४. जी. ३।२६१॥ जाव मणिजालेणं एगमेगेणं पउमवरजालेणं, ५. पयुमवरवेइया (ता) । सव्वरयणामएणं (क, ख, ग, ट, त्रि); ६. विक्खंभेणं सव्व रयणामई (क ख,ग,ट,त्रि)। एगमेगेणं गवक्खजालेणं एएणं अभिलावणं ७. x (क, ख, ग, ट, त्रि)। खिखिणि जा घंटा जा रयत जा जातरूव जा ८. इमे एतारूवे (ता)। मणि जा मुत्ता जा रतण जा सव्वरयण जा ६. जेम्मा (क, ख, ग, ट, ता) । एगमेगेणं पयुमवरजालेणं (ता)। १५. परिक्खित्ता (म)। १०. रुप्पमया (क, ख, ग, ट, त्रि)। १६. दामा (मवृपा)। ११. वइरामया संधी लोहितक्खमइओ सूईआ (क, १७. लंबसा (ता)। ख, ग, ट, त्रि)। १८. "पतरामंडिया (ता)। Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ जीवाजीवाभिगमे हारउवसोभितसमुदया ईसिं अण्णमण्णमसंपत्ता पुव्वावरदाहिणुत्तरागतेहिं वाएहिं मंदायंमंदायं एज्जमाणा-एज्जमाणा पलंबमाणा'-पलबमाणा पझंझमाणा-पझंझमाणा तेणं ओरालेणं मणुण्णणं मणोहरेणं" कण्णमणणेव्युतिकरेणं सद्देणं सव्वतो समंता आपूरेमाणाआपूरेमाणा सिरीए अतीव' उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ २६६. तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे हयसंघाडा गयसंघाडा नरसंघाडा किण्णरसंघाडा किंपुरिससंघाडा महोरगसंघाडा गंधव्वसंघाडा उसभसंघाड़ा' सव्वरयणामया 'अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा" ।। __२६७. तीसे' णं पउमवरवेइयाए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे हयपंतीओ तहेव जाव पडिरूवाओ । एवं हयवीहीओ जाव पडिरूवाओ। एवं हयमिहुणाई जाव पडिरूवाइं॥ २६८. तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ-तत्थ देसे तहिं-तहिं बहवे पउमलयाओ नागलयाओ, एवं असोग-चंपग-चूय-वण-वासंतिय-अतिमुत्तग-कुंद-सामलयाओ णिच्चं" कुसुमियाओ णिच्चं माइयाओ" णिच्चं लवइयाओ णिच्चं थवइयाओ णिच्चं गुलइयाओ" णिच्चं गोच्छियाओ णिच्चं जमलियाओ णिच्च जुवलियाओ णिच्चं विणमियाओ णिच्चं पणमियाओ णिच्चं सुविभत्त-पिडि"-मंजरि-वडेंसगधरीओ णिच्चं कुसुमिय-माइयलवइय-थवइय-गुलइय-गोच्छिय- जमलिय- जुवलिय- विणमिय - पणमिय - सुविभत्त-पिडि मंजरि-वडेंसगधरीओ सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ"॥ १. अतोने क, ख, ट' आदर्शेषु एवं पाठभेदोस्ति ११. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु पाठसंक्षेप एव -एतिया वेतिया कंपिता खोभिया चालिया मस्ति-निच्चं कुसुमियाओ जाव सुविभत्तफंदिया घट्टिया उदीरिया एतेसिं उरालेणं । पिडिमंजरिवडिसगधरीओ। २. एईज्जमाणा (ता)। १२. मउलियाओ (मवृ)। ३. कंपिज्जमाणा २ लंबमाणा (ग, त्रि)। १३. 'गुम्मियाओ' इति गुल्मिताः (मवृ)। ४. झंझमाणा २ सद्दायमाणा २ (ग); पयंपमाणा १४. पेंडि (ता); मलयगिरिणा 'पडि' इति पदं २ पवित्थरमाणा (ता); पझंझमाणा २ व्याख्यातम्-प्रतिविशिष्टो मञ्जरीरूपो सद्दायमाणा २ (त्रि)। योवतंसकस्तद्धराः। रायपसेणइयवृत्तावपि ५. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि)। (पृ. १५) एतदेव व्याख्यातमस्ति । औपपा६. अतीव २ (ता)। तिकवृत्तौ (पृ. १४) अभयदेवसूरिणा पिण्ड्यो ७. वसह (त्रि)। लुम्ब्यः इति व्याख्यातम् । ८. अच्छा जाव पडिरूवा (ता, मव)। १५. मउलिय (मवृ)। 8. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'ता' प्रतो मलयगिरिवृत्तौ १६. पडि (मव)। च पाठसंक्षेपोस्ति-एवं पंतीओ वि विधीओ वि १७. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेष एक मिधुणा वि। अतिरिक्तं सूत्रं विद्यते-तीसे णं पउमवरवेइ१०. ४ (म); उत्तरकुरुप्रकरणे (पत्र २६४) याए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे अक्खय मलयगिरिणा चूत' इति पदं स्वीकृतमस्ति । सोत्थिया पण्णत्ता सव्वरयणामया अच्छा। Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ३०६ २६६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-पउमवरवेइया-पउमवरवेइया ? गोयमा ! पउमवरवेइयाए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वेदियासु वेदियाबाहासु' वेदियाडतरेसु खंभेसु खंभवाहासु खंभसीसेसु खंभपुंडतरेसु सूईसु सुईमुहेसु सूईफलएसु सूईपुडंतरेसु पक्खेसु पक्खबाहासु पक्खपेरंतेसु बहूइं उप्पलाइं पउमाइं जाव सहस्सपत्ताई सव्वरयणामयाई अच्छाई सण्हाइं लण्हाइं घट्ठाई मट्ठाइं णीरयाई णिम्मलाई निप्पकाई निक्कंकडच्छायाई सप्पभाई समिरीयाई सउज्जोयाइं पासादीयाई दरिसणिज्जाइं अभिरूवाइं पडिरूवाई महता वासिक्कच्छत्तसमाणाई' पण्णत्ताई समणाउसो ! से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-पउमवरवेदिया-पउमवरवेदिया। २७०. पउमवरवेइया णं भंते ! किं सासया ? असासया ? गोयमा ! सिय सासया, सिय असासया॥ २७१. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-सिय सासया ? सिय असासया ? गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासया, वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं फासपज्जवेहिं असासया। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-सिय सासया, सिय असासया ॥ २७२ पउमवरवेइया णं भंते ! कालओ केवच्चिर होति ? गोयमा ! ण कयावि णासि ण कयावि णत्थि ण कयावि न भविस्सति । भुविं च भवति य भविस्सति य धुवा नियया सासया अक्खया अव्वया अवट्टिया णिच्चा पउमवरवेदिया ॥ २७३. तीसे णं जगतीए उप्पि 'पउमवरवेइयाए बाहिं," एत्थ णं महेगे वणसंडे पण्णत्ते-देसूणाई दो जोयणाइं चक्कवालविक्खंभेणं, जगतीसमए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे नीले नोलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे णिद्धे णिद्धोभासे तिब्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए णिद्धे णिद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घणकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए । रायपसेणइय १६६ सूत्रानन्तरमपि एतद् ५. बाहिं पउमवरवेइयाए (क, ख, ग, ट, त्रि) । नास्ति । ६. एगं महं (क, ख, ग, ट, त्रि)। १. 'बाहासू वेदियासीसफलएसु (क, ख, ग, ट, ७. अतः परवर्ती २७६ सूत्रपर्यन्तः पाठः 'ता' प्रति त्रि); तथा रायपसेणइय (१९७) सूत्रे 'वेइय- मलयगिरिवत्ति च उपजीव्य स्वीकृतः। शेषेषु फलएसु' इति पाठोस्ति । प्रयुक्तादर्शषु 'जाव' पदसमर्पितः संक्षिप्त२. एतत्पदं मलयगिरिवृत्तौ व्याख्यातं नास्ति । पाठोस्ति, सोपि च नैव सङ्गतो दृश्यते । स रायपसेणइय (१९७) सूत्रे अतः परं 'पक्खपु. चैवम्-जाव अणेगसगडरहजाणजुग्गपरिमोयणे डंतरेसु' इत्यपि पाठो विद्यते । सुरम्मे पासातीए सण्हे लण्हे घट्टे मढें नीरए ३. °च्छत्तसमयाई (क, ख, ग, त्रि); "छत्तसामा- निप्पं के निम्मले निक्कंकडच्छाए सप्पभे समिणाइं (ट, ता)। रीए सउज्जोए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे ४. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु अतिरिक्तः पडिरूवे । पाठो लभ्यते-अत्तरं च गोयमा! पउमवरवेइ- ८. घणकडितडच्छाए (क, ख, ग, ट, त्रि): याए सासते नामधेज्जे पण्णत्ते । जंन कयावि मलयगिरिवृत्तौ 'घणकडितडच्छाए' इति पाठो णासि जाव निच्चे। व्याख्यातोस्ति। 'घणकडियकडच्छाए' इति Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० जीवाजीवाभिगमे २७४. ते' णं पायवा मूलमंतो' कंदमंतो खंधमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फर्मतो फलमंतो वीयमंतो अणुपुव्व-सुजाय-रुइल-वट्टभावपरिणया एक्कखंधी' अणेगसाह-प्पसाह-विडिमा अणेगनरवाम-सुप्पसारिय-अगेज्झ-घण-विउल-बद्ध [वट्ट ? ]' खंधा अच्छिद्दपत्ता अविरलपत्ता अवाईणपत्ता अणईइपत्ता निद्धय-जरढ-पंडुपत्ता णवहरिय-भिसंत-पत्तभारंधयार - गंभीरदरिसणिज्जा उवविणिग्गय-णव-तरुण-पत्त-पल्लवकोमल उज्जलचलंतकिसलय-सूमालपवाल-सोहियवरंकुरग्गसिहरा णिच्चं कुसुमिया णिच्चं माइया णिच्चं लवइया णिच्चं थवइया णिच्चं गुलइया णिचं गोच्छिया णिच्च जमलिया णिच्चं जुवलिया णिच्चं विणगिया णिच्चं पणमिया णिच्चं सुविभत्त-पिडि-मंजरि-वडेंसगधरा णिच्चं कुसुमिय-माइय-लवइय-थवइय-गुलइय-गोच्छिय-जमलिय-जुवलिय- विण मिय-पणमियसुविभत्त-पिंडि-मंजरि-वडेंसगधरा॥ २७५. सुय-बरहिण-मयणसाल-कोइल-कोरक-भिंगारग-कोंडलग- जीवंजीवग-नंदीमूहकविल-पिंगलक्ख-कारंडक'-चक्क वाय-कलहंस-सारस-अणेगसउणगणमिहुणविरइयसढुण्णइयमहरसरणाइया सुरम्मा संपिडियदरियभमरमहुयरिपहकर-परिलितमत्तछप्पयकुसूमासवलोलमहरगुमगुमंत-गुजंतदेसभागा अभितरपुप्फफला वाहिरपत्तच्छण्णा' पत्तेहि य पृप्फेहि य ओच्छन्न-पलिच्छन्ना 'निरोया अकंटया साउफला"" निद्धफला णाणाविहगुच्छ-गुम्म-मंडवगसोहिया विचित्तसुहकेउबहुला वावी-पुक्खरिणी-दीहियासु य सुनिवेसियरम्मजालघरगा। २७६. पिंडिम-णीहारिमं सुगंधिं सुह-सुरभिमणहरं च महया गंधद्धणि मुयंता सुहसेउकेउबहुला 'अणेगसगड-रह-जाण-जुग्ग-सीया-संदमाणियपडिमोयणा सुरम्मा पासापाठान्तररूपेणास्ति व्याख्यातः--इह शरीरस्य ४. मलयांगरिवृत्ती 'वृत्तस्कन्धा:' तथा रायपसेणमध्यभागे कटिस्ततोन्यस्यापि मध्यभागः कटिरिव इयवृत्तावपि (पृ० १३) 'वत्तस्कन्धाः ' इत्येव कटिरित्युच्यते, कटिस्तटमिव कटितटं घना व्याख्यातमस्ति किन्तु औपपातिकवत्तौ 'बद्धः अन्यान्य शाखानुप्रवेशतो निविडा कटितटे स्कन्धः' इति विवृतमस्ति । 'ता' प्रतावपि मध्यभागे छाया यस्य स घनकटितटच्छायः, मध्य- तथैव पाठोस्ति । द्रष्टव्यं औपपातिकस्य भागे निबिडतरच्छाय इत्यर्थः, क्वचित्पाठः पञ्चमसूत्रस्य पादटिप्पणम् । 'घनव डियकडच्छाए' इति, तत्रायमर्थः-कट: ५ अतः पूर्वं 'ता' प्रतौ अयं पाठोस्ति ते णं सजातोस्येति कटितः कटान्तरेणोपरि आवत साला पाईणपडिणआयता उदीणदाहिणइत्यर्थः कटितश्चासौकटश्च कटितकट: घना- वित्थिण्णा उण्णतणतं विप्पहाइयतोलंबपलंबलंनिबिडा कटितकटस्येवाधोभूमौ छाया यस्य स बसाहप्पसाहविडिमा। घनकटितकटच्छायः । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः शांति- ६.४ (ता)। चन्द्रीयवत्तौ (पत्र २८) हीरविजयवृत्तौ (पत्र ७. कोरंग (ता)। १२) चापि उक्तपाठद्वयमपि व्याख्यातं दश्यते। ८. 'कारण्ड: कारण्डव:' एतौ द्वावपि समानार्थको १. द्रष्टव्यं औपपातिकस्य पञ्चमसूत्रस्य पाद- स्तः । टिप्पणम् । ९. पत्तोच्छण्णा (ता)। २. मूलवंतो (ता)। १०. साउफला अकंडगा (ता) । ३. एग खंधी अणेगसाला (ता)। ११. अणेगरह (म)। Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्विहपडिवत्ती दीया दरिस णिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ २७७. तस्स णं वणसंडस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते से जहानामए - लिंगपुक्रेति वा मुइंगपुक्खरेति वा सरतलेति वा करतलेति वा 'चंदमंडलेति वा सूरमंडलेति वा आयंसमंडलेति वा " उरब्भचम्मेति वा उसभचम्मेति वा वराहचम्मेति वा सीहम्मेति वा वग्घचम्मेति वा विगचम्मेति वा दीवियचम्मेति वा अणेगसंकुकीलगसहस्सवितते आवड- पच्चावड-सेढी -पसेढी'-सोत्थिय-सोवत्थिय-पूसमाण- वद्धमाणग-मच्छंडक'मकरंडक - जारमार" फुल्लावलि - पउमपत्त- सागरतरंग - वासंतिलय पउमलयभत्तिचित्तेहि सच्छाएहिं समिरीएहि सउज्जोएहिं नाणाविहपंचवण्णेहि 'मणीहि य तणेहि य" उवसोहिए, तं जहा -- किण्हेहिं जाव सुविकलेहिं ॥ २७८. तत्थ णं जेते कण्हामणी य तणा य, तेसि णं इमेतारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहानामए - जीमूतेति वा अंजणेति वा खंजणेति वा 'कज्जलेति वा मसीति वा मसीगुलियाति' वागवलेति वा गवलगुलियाति वा भमरेति वा भमरावलियाति वा भमरपतंगयसारेति वा जंबूफलेति वा अद्दारिट्ठेति वा परपुट्ठेति वा गएति वा गलभेति वा कण्हसप्पेइ वा कण्हकेसरेइ वा आगासथिग्गलेति वा कण्हासोएति वा किण्हणवीरे वा कहबंधुजीवेति वा',' भवे एयारूवे सिया ? गोयमा ! णो तिणट्ठे समट्ठे, 'ते णं कण्हा मणीय तणा य" इत्तो इट्ठतराए चेव कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव वण्णेणं पण्णत्ता ॥ २७६. तत्थ " णं जेते णीलगा मणी य तणा य, तेसि णं इमेतारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहानामए - भिगेति वा भिगपत्तेति वा चासेति वा चासपिच्छेति वा सुएति वा सुयपिच्छेति वा गीलीति वा पीलीभेदेति वा गीलीगुलियाति वा सामाएति वा उच्चतएति वा वणराईइ वा हलधरवसणेइ वा मोरग्गीवाति वा पारेवयगीवाति वा अयसिकुसुमेति वा वाणकुसुमेति वा" अंजण सिगाकुसुमेति वा णीलुप्पलेति वा णीलासोएति वा नीलकणवीरेति वा बंधुजीवेति वा भवे एयारूवे सिया ? णो इणट्ठे समट्ठे, 'ते णं णीलगा मणीय तणा य" एत्तो इट्टतराए चेव कंततराए चेव" पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए १. आयं मंडलेति वा चंदमंडलेति वा सूरमंडलेति वा (क, ख, ग, ट, त्रि ) । २. पडिसेढि (ता) । ३. मारंडा जारा मारा (ता) | ४. तणे च मणीहिय ( क, ख, ग, ट, ता, त्रि) । ५. गुलियाति (क, ख, ग, ट, त्रि); क्वचिद् "मसी इति ममी गुलिया इति वे' ति न दृश्यते ( मवृ ) 1 ६. पत्तय (त्रि ) । ७. कणियारेति (क, ख ) । ८. जधा कण्हलेस्साए जाव (ता) । ३११ ६. तेसि णं कण्हाणं तणाणं मणीण य ( क, ख, गट, त्रि) । १०. पण्णत्ता समणाउसो ( ता ) । ११. २७६,२८०,२८२ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतौ भिन्ना वाचना विद्यते - णीला जहा णीललेस्साए, लोहिता जधा तेउलेस्साए, सुक्किला जहा सुक्कलेस्साए, २८१ सूत्रं लिखितं नास्ति । १२. अत ऊद्ध क्वचित् - इंदनीलेइ वा महानीलड़ वा मरगतेइ वा' (मवृ) | १३. तेसि णं णीलगाणं तणाणं मणीण य (क, ख, ग, टत्रि ) । १४. सं० पा० चेव जाव वण्णेणं । Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ जीवाजीवाभिगमे चेव वण्णणं पण्णत्ता॥ २८०. तत्थ णं जेते लोहितगा मणी य तणा य, तेसि णं इमेतारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए--ससकरुहिरेति वा उरभरुहिरेति वा 'वराहरुहिरेति वा मणुस्सरुहिरेति वा" महिसरुहिरेति वा वालिंदगोवएति वा बालदिवागरेति वा संझब्भरागेति वा गंजद्धरागेति वा 'जासुयणकुसुमेति वा पालियायकुसुमेति वा, जातिहिंगुलुएति वा सिलप्पवालेति वा पवालंकुरेति वा लोहितक्खमणीति वा लक्खारसएति वा किमिरागरत्तकंबलेइ' वा चीणपिटरासीइ वा रत्तप्पलेति वा रत्तासोगेति वा रत्तकणवीरेति वा रत्तबंधजीवेति वा, भवे एयारूवे सिया ? नो तिणठे समढे, 'ते णं लोहितगा मणी य तणा य" एत्तो इतराए चेव' कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णगतराए चेव मणामतराए चेव वण्णेणं पण्णत्ता ॥ २८१. तत्थ णं जेते हालिद्दगा मणी य तणा य, तेसि णं इमेतारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए-चंपए वा चंपगच्छलीइ वा चंपक भेदेइ वा हलिद्दाति वा हलिहाभेदेति वा वा हलिद्दागुलियति वा हरियालेति वा हरियालभेदेति वा हरियालगुलियाति वा चिउरेति वा चिउरंगरागेति वा 'वरकणगेति वा" वरकणगनिघसेति वा वरपुरिसवसणेति वा 'अल्लइकुसुमेति वा चंपाकुसुमेइ वा कुहंडियाकुसुमेति वा 'कोरंटकदामेइ वा" तडवडाकुसुमेति" वा घोसाडियाकुसुमेति वा सुवण्णजूहियाकुसुमेति वा सुहिरण्णयाकुसुमेइ वा वीयगकुसुमेति" वा पीयासोएति वा पीयकणवीरेति वा पीयबंधुजीवेति वा, भवे एयारूवे सिया ? नो इणठे समठे, ते णं हालिद्दा मणी य तणा य एत्तो इट्टतराए चेवर कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव वण्णेणं पण्णत्ता॥ २८२. तत्थ णं जेते सुक्किलगा मणी य तणा य, तेसि णं इमेतारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहानामए-अंकेति वा संखेति वा चंदेति वा कुमुदेति" वा दगरएति" वा 'दहिघणेति वा खीरेति वा खीरपूरेति वा" हंसावलीति वा कोंचावलीति वा हारावलीति वा बलायावलीति वा चंदावलीति वा सारइयबलाहएति वा धंतधोयरुप्पपट्टेइ वा सालिपिट्टरासीति वा कुंदपुप्फरासीति वा कुमुयरासीति वा सुक्कछिवाडीति वा पेहुणमिजाति वा भिसेति १. णररुहिरेति वा वराहरुहिरेति वा (क, ख, ग, सेल्लइकुसुमेइ वा (त्रि)। ट, त्रि)। ___६. x (क, ख, ग, ट, त्रि) । २. चिन्हाङ्कितः पाठः 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु १०. तडउडा" (क, ख, ग, ट, त्रि)। ___चीणपिठरासीइ वा' इति पाठानन्तरं विद्यते । ११. कोरंटवरमल्लदामेति वा बीयग' (क, ख, ग, ३. किमिरागेइ वा रत्तकंबलेइ (क,ख, ग, ट,त्रि)। ट, त्रि)। ४. तेसिणं लोहितगाणं तणाण य मणीण य १२. सं० पा०-चेव जाव वण्णणं । (क, ख, ग, ट, त्रि)। १३. कुंदेति (क, ख, ग, ट)। ५. सं० पा०-चेव जाव वण्णेणं । १४. उदक-दयरय (राय० सू० २६); दगे इ वा ६. x (मवृ)। दगरए इ (पण्ण० १७११२८)। ७. वा सुवण्णसिप्पिएति वा (क, ख, ग, ट, त्रि)। १५. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि)। ८. ४ (क, ख, ट); सल्लइकुसुमेइ वा (ग); Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ३१३ वा मिणालियाति वा गयदंतेति वा लवंगदलेति वा पोंडरीयदलेति वा 'सिंदुवारवरमल्लदामेति वा सेतासोएति वा सेयकणवीरेति वा सेयबंधुजीवेति वा, भवे एयारूवे सिया ? णो तिणठे समठे, 'ते णं सुक्किला मणी य तणा य एत्तो इट्टतराए चेव' कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव वण्णणं पण्णत्ता॥ २८३. तेसि णं भंते ! मणीण य तणाय य केरिसए गंधे पण्णत्ते ? से जहाणामएकोटपुडाण वा 'पत्तपुडाण वा चोयपुडाण वा" तगरपुडाण वा एलापुडाण वा' 'चंपापुडाण वा दमणापुडाण वा कुंकुमपुडाण वा चंदणपुडाण वा उसीरपुडाण वा मरुयापुडाण वा जातिपुडाण वा जहियापुडाण वा मल्लियापुडाण वा हाणमल्लियापुडाण वा केतकिपडाण वा पाडलिपुडाण वा णोमालियापुडाण वा' वासपुडाण वा कपूरपुडाण वा" अणुवायंसि उब्भिज्जमाणाण वा णिब्भिज्जमाणाण वा कोटेज्जमाणाण वा रुचिज्जमाणाण वा उक्किरिज्जमाणाण वा विक्खरिज्जमाणाण' वा 'परिभुज्जमाणाण वा. भंडाओ वा भंडं साहरिज्जमाणाणं ओराला मणुण्णा मणहरा" घाणमणणिव्वुतिकरा सव्वतो समंता गंधा अभिणिस्सवंति, भवे एयारूवे सिया ? णो तिणठे समठे, 'ते णं मणी य तणा य१२ एत्तो इट्ठतराए चेव" कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ता ॥ २८४. तेसि णं भंते ! मणीण य तणाण य केरिसए फासे पण्णत्ते ? से जहाणामएआईणेति वा रूएति वा बूरेति वा णवणीतेति वा हंसगब्भतूलीति" वा सिरीसकुसूमणिचएति वा बालकुमुदपत्तरासीति५ वा, भवे एतारूवे सिया ? णो तिणठे समठे, ते णं १. x (मवृ)। (ता)। २. तेसि णं सूक्किलाण तणाणं मणीण य (क, ख, ८. अयं पेषणार्थेदेशीधातू विद्यते । रायपसेणय ग, ट, त्रि)। सूत्रे (३०) भंजिज्जमाणाण' इति पाठो ३. सं० पा०-चेव जाव वण्णेणं । लभ्यते, किन्तु 'श्लक्ष्णखण्डीक्रियमाणानाम' ४. X (मवृ)। इति विवतमस्ति उभयत्रापि एकेनैव वत्ति५. वा चोयगपुडाण वा (मवृ) । कारेण मलयगिरिणा, एतेन सम्भाव्यते वृत्ति६. वा अगुरुपुडाण वा लवंगपुडाण वा (राय सू० कारस्य सम्मुखे रायपसेणइयसूत्रेपि 'रुचिज्ज माणाण' इति पाठ: आसीत् । ७. हिरिमेर (किरिमेर-ग,त्रि) पृडाण वा चंदण- ६. विकिरिज्ज (त्रि)। पुडाण वा कुंकुमपुडाण वा उसीरपुडाण वा १०. परिभुज्जमाणाण वा परियाभाइज्जमाणाण वा चंपयपुडाण वा मरुयगपुडाण वा दमणगपुडाण ठाणातो वा ठाणं संकामिज्जमाणाण वा (ता); वा जातिपुडाण वा जूहियापुडाण वा मल्लिया- परिभाइज्जमाणाण (मवपा)। पुडाण वा णोमल्लियपुडाण वा वासंतिपुडाण ११. X (क, ख, ग, ट, त्रि)। वा केयइपुडाण वा कप्पूरपुडाण वा पाडलि- १२. तेसि णं तणाणं मणीण य (क, ख, ग, ट,त्रि) । पूडाण वा (क, ख, ग, ट, त्रि); जातिपुडाण १३. सं० पा०-चेव जाव वण्णणं । वा जूहियापुडाण वा मल्लियापुडाण वा १४. हंसगन्भेति (ता)। मलियापु वासंतिपु दमणापु मरुतापुडाण वा १५. बालकुसुमपत्तरासीति (ट, मवृपा)। Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ मणीय तणो यतो इतराए चेव' कंततराए चेव पियतराए चेव मणुष्णतराए चेव मणामतराए चेव' फासेणं पण्णत्ता ।। २८५. तेसि णं भंते! 'मणीण य तणाण य" पुव्वावरदाहिणुत्तरागतेहि वाएहिं मंदाय - मंदाय एइयाणं वेइयाणं कंपियाणं चालियाणं 'फंदियाणं घट्टियाणं" खोभियाणं' उदीरयाणं केरिसए सद्दे पण्णत्ते ? से जहाणामए - सिवियाए वा संदमाणीयाए वा रहवरस्स वा सछत्तस्स सज्झयस्स सघंटयस्स सपडागस्स सतोरणवरस्स सणंदिघोसस्स सखिखिणिहेमजाल पेरं परिखित्तस्स हेमवय - चित्तविचित्त-तेणिस कणगनिज्जुत्तदारुयागस्स सुपिणद्धारकमंडलधुरागस्स' कालायससुकयणे मिजंतकम्मस्स आइण्णवरतुरगसुसंप उत्तस्स कुसल रछेयसार हिसुसंपरिगहितस्स सरसतबत्तीसतोणमंडितस्स" सकंकडवडेंसगस्स सचावसरपहरणावरणहरिय- जोहजुद्धसज्जस्स रायंगणंसि वा अंतेपुरंसि" वा रम्मंसि वा मणिकोट्टितलंस अभिक्खणं- अभिक्खणं अभिघट्टिज्जमाणस्स " ओराला मणुण्णा मणहरा कणमणणिव्वृतिकरा सव्वतो समता सद्दा अभिणिस्संवति", भवे एताख्वे सिया ? णो ति ट्ठे समट्ठे से हाणामए - वेयालियाए वीणाए उत्तरमंदामुच्छिताए अंके सुपइट्टियाए 'कुसल रणारिसुसंपग्गहिताए चंदणसारनिम्मियकोणपरिघट्टियाए" पच्चूसकालसमय सि मंद-मंद एइयाए वेश्याए कंपियाए चालियाए फंदियाए घट्टियाए खोभियाए उदीरियाए ओराला मणुष्णा मणहरा कण्णमणणिव्वुतिकरा सव्वतो समता सद्दा अभिणिस्सवंति, भवे एयारूवे सिया ? णो तिणट्ठे समट्ठे से जहाणामए - किण्णराण वा किंपुरिसाण वा महोरगाण वा गंधव्वाण वा भहसालवणगयाण वा नंदणवणगयाण वा सोमणसवणगयाण वा पंडगवणगाण वा महाहिमवंत" - मलय-मंदरगिरि-गुहसमण्णागयाण वा एगतो" सहि१. सं० पा० - चेव जाव फासेणं । १०. बत्तीसतोरणमंडितस्स (क, त्रि); 'बत्तीसतो२. तणाणं ( क, ख, ग, ट, त्रि); मलयगिरिणात्र रणपरिमंडितस्स (ता); अत्र तो ' स्थाने केवलं 'तृणानां' इति उल्लिखितम्, उपसंहार'तोरण' इति पदं लिपिदोषेण जातमस्ति । वाक्यस्य व्याख्यायां 'मणीनां तृणानां च शब्दः ' ११. रातेपुरंसि (ता) । इत्युल्लिखितमस्ति तत्रापि ' मणीनां' इति युज्यते । १२. 'माणस्स वा नियट्टिज्जमाणस्स वा परूढवरतुरंगस्स चंडवे गाइस्स (क, ख, ग, ट त्रि ) । १३. अभिणिस्समंति (ar); अभिनिस्सरन्ति ३. कंपियाणं खोभियाण (क, ख, ग, ट, त्रि ) ; x (ता) । (मवृ) । ४. घट्टिताणं फंडिताणं ( ता) | ५. x (क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. x ( ख, ग, ता ) 1 ७. x (क, ख, ग, ट, त्रि ) । ८. सुविसुद्ध चक्क मंडलधूरागस्स (क, ख, ट ) ; x (ता) । ६. कालायसमुतमिवंत कम्मस्स सुसंविद्धचक्क- १७. एगतओ ( ता ) । मंडलधुरातस्स (ता) । १४. चंदणसारकोणपरिघट्टियाए कुसल रणारि संपग्गहियाए ( क, ख, ग, ट, त्रि) । १५. पदो सपच्चूसकालसमयंसि (क, ख, ग, ट, त्रि); पुव्वरत्ताव रत्तकालसमयंसि (मवृपा, राय० सू० १७३) । १६. हिमवंत क, ख, ग, ट, त्रि) । जीवाजीवाभिगमे Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहपडिवत्ती ३१५ ताणं 'संमुहागयाणं समुपविट्ठाणं' संनिविट्ठाणं" पमुदियपक्कीलियाणं गीयरति-गंधव्वहरिसियमणाणं गज्ज पज्जं कत्थं गेयं पयवद्धं पायबद्धं 'उक्खित्तायं पवत्तायं मंदायं रोचियावसाणं सत्तसरसमण्णागयं अट्ठरससुसंपउत्तं 'एक्कारसालंकारं छद्दोसविप्पमुक्क अट्ठगुणोववेयं गुंजावंककुहरोवगूढं" रत्तं तिट्ठाणकरणसुद्धं सकुहरगुंजंतवंस-तंती-तल-ताललय-गहसूसंपउत्तं मधुरं समं सललियं मणोहरं मउयरिभियपयसंचारं सुरति सुणति वरचारुरूवं दिव्वं नर्से सज्ज गेयं पगीयाणं', भवे एयारूवे सिया ? गोयमा ! एवंभूए सिया।। २८६. तस्स णं वणसंडस्स तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहुईओखुड्डा-खुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजा लियाओ सरसीओ सरपंतियाओ 'सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ' अच्छाओ सहाओ रययामयकलाओ" समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ 'सुवण्ण-सुब्भ-रययवालुयाओ वेरुलियमणिफालियपडल-पच्चोयडाओ सुहोयारसउत्ताराओ णाणामणि तित्थ-सुबद्धाओ चाउकोणाओ आण पव्वसजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछण्णपत्तभिस-मुणालाओ वहुउप्पल-कुमुद-णलिण-सुभग-सोगंधिय-पोंडरीय-सयपत्तसहस्सपत्त-फुल्ल केसरोवचियाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ १. सण्णिसण्णाणं (ट)। रययामयाओ सूओगार-सूउत्ताराओ णाणामणि२. समवगताणं सण्णिसणाणं सण्णिवेताणं (ता)। रयणतित्थवद्धाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण३. उक्खित्तपवत्तयं (क, ट); उक्खित्तायंपयुत्तायं सीतब्भरियरमणियालुयाओ वेरुलियमणि रतण पसत्तायं (ता); उक्खित्तायं पायत्तायं (राय० फलिहपडलपच्चोअद्धाओ चातुक्कोणाओ समतीसू० १७३)। राओ अणुपुव्वसुयातवप्पगंभीरसीतलजल४. छद्दोसविप्पमुक्कं एक्कारसगुणालंकारं (क, ख, संच्छण्णपयुमपत्तभिसमुणालातो पउमकुमुदणग, ट, त्रि) । लिणसुभगसोगंधियअरविंदकोवणत सयपत्तसहस्स५. 'ता' प्रती मलयगिरिविवरणे च एष पाठो पत्तफूल्लकेसरोवचिताओ अच्छविमलसलिलनैव दृश्यते । शेषादशेषु विद्यते, रायपसेणइय पुण्णाओ परिहत्थभमंतमच्छच्छप्पदअणेगस उणगवृत्तौ (पृ० १३१) व्याख्यातोस्ति । गुंजा+ णमिधुणविचरियमद्दुण्ण इयतमधुरणादिता अप्पेअवंक --गुंजावंक । गतियाओ आसवोदगाओ अप्पे खारोदगाओ ६. सुरभि (क, ग) लिपिदोषेण तकारस्थाने अप्पे घतोदगाओ अप्पे खोतोदगातो य अमत रसभकारो जातः इति प्रतीयते । ममरसोदगाओ अप्पे पगतीए उदगरसेणं पं ७. संगीताणं (ता)। पत्तेयं २ पयुमवरवेइयाए परि पत्तेयं २ ८. हंता (ख, ता)। वणसंडपरि पासादिक । ६. बहवे (क, ख, ग, ट, त्रि); बहुवीओ (ता)। १२. क, ख, ग, ट, त्रि' एतेषु आदर्शेषु एष पाठः १०. सरसरपंतीओ बिलपंतीओ (क, ख, ग, ट, अग्रे 'चाउकोणाओं इति पाठानन्तरं विद्यते । त्रि)। १३. वेरुलियमणिफालियपडलपच्चोयडाओ सूवण्ण११. 'ता' प्रतौ अतो भिन्ना वाचना लभ्यते- सुब्भरययमणिवालुयाओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे परिहत्थभमंतमच्छकच्छभ-अणेगसउण मिहुणपविचरिय-सदुष्णइयमहुरसरणाइयाओ' पत्तेयंपत्तेयं पउमवरवे दिया परिक्खित्ताओ पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ अप्पेगतियाओ आसवोदाओ अप्पेगतियाओ वारुणोदाओ अप्पेगतियाओ खीरोदाओ अप्पेगतियाओ धओदाओ अप्पेगतियाओ खोदोदाओ अप्पेगतियाओ अमयरससमरसोदाओ अप्पेगतियाओ 'पगतीए उदगरसेणं पण्णत्ताओ" पासाइयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ || ३१६ २८७. तासि णं खड्डा - खुड्डियाणं वावीणं जाव विलपतियाणं 'पत्तेयं पत्तेयं चउद्दिसि चत्तारि" तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता । तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - वइरामया नेमा' रिट्ठामया पतिद्वाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पामया फलगा' लोहितक्खमईओ सूईओ वइरामया संधी णाणामणिमया अवलवणा अवलंबणवाहाओ पासाइयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ || २८८. सिणं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरतो पत्तेयं - पत्तेयं 'तोरणे पण्णत्ते" । तेणं तोरणा नाणामणिमया णाणामणिमएसु खंभेसु उवणिविट्ठसण्णिविट्ठा विविहमुत्ततरोवचिया' विविहतारारूवोवचिया, ईहामिय उसभ तुरग णर-मगर- विहग वालग किण्ण र रुरु- सरभचमर- कुंजर- वणलय- पउमलयभत्तिचित्ता खंभुग्गयवइरवेदियापरिगताभिरामा विज्जाहरजमलजुयल जंतजुताविव अच्चिसहस्समालणीया रूवगसहस्सक लिया भिसमाणा भिब्भिसमाणा चक्खुल्लोयण लेसा सुहफासा सस्सिरीयरूवा' पासाइया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ २८६. तेसि णं तोरणाणं उप्पि अट्ठट्ठ मंगलगा पण्णत्ता, तं जहा- सोत्थियसिरिवच्छ दियावत्त-वृद्ध माणग-भद्दासण- कलस-मच्छ - दप्पणा सव्वरयणामया अच्छा जाव" पडिरूवा ॥ २६०. तेसि णं तोरणाणं उप्पि बहवे किण्हचामरज्झया नीलचामरज्झया लोहियचामरज्झया हालिद्दचामरज्झया सुक्किलचामरन्झया अच्छा सण्हा रुप्पपट्टा वइरदंडा जलयालगंधीया सुरूवा पासाइया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ २६१. तेसि णं तोरणाणं उप्पि बहवे छत्ताइछत्ता पडागाइपडागा घंटाजुयला चामरजुयला उप्पलहत्थगा 'पउम - णलिण - सुभग- सोगंधिय-पोंडरीय महापोंडरीय - सतपत्त - सहस्स १. मलयगिरिणा प्रस्तुतप्रकरणे 'सदुण्णइयमहुरसरणाइयाओ' इति पाठो नैव व्याख्यातः 'ता' प्रतौ एष पाठो विद्यते । वृत्तिकृता ३।११८ सूत्रे [वृत्ति पत्र १२३ ] एष व्याख्यातः; ३।८५७ सूत्रे [वृत्ति पत्र ३५०] चैष उद्धृतः । २. अमृतरसेन स्वाभाविकेन प्रज्ञप्ता: ( मवृ ) | ३. तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं जाव बहवे (क, ख, ग, ट, त्रि); रायपसेणइयसूत्रे ( १७५ ) पि स्वीकृतपाठस्य संवादी पाठो विद्यते । ४. तिसोमाण (ता, राय० सू० १७५) । ५. णेम्मा (क, ख, ता ) ; णिम्मा ( ग ट ) । ६. फलहा (ता) | ७. तोरणा पण्णत्ता (क, ख, ग, ट त्रि ) । ८. विविहमुत्तंत रोविया (मवृ); विविहमुत्ततर वोवचिया (राय० सू० २० ) । ६. अतोग्रे रायपसेणइय सूत्रे ( २० ) इति पाठोस्ति -- घंटावलिचलियमहुरमणहरसरा ।' १०. उप्पि बहवे (क, ख, ग, ट, त्रि); उवरि (ता) । ११. जी० ३।२६१ । Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती पत्तहत्थगा" सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ २६२. तासि णं खुड्डाखुड्डियाणं वावीणं जाव बिलपंतियाणं तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे उपायपव्वया णियइपव्वया जगतीपव्वयगा दारुपव्वयगा दगमंडवगा दगमंचका दगमालगा दगपासायगा ऊसडा खुड्डा' खडहडगा' 'अंदोलगा पक्खंदोलगा" सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा || २६३. तेसु णं उप्पायपव्वतेसु जात्र पक्खंदोलएसु बहूई हंसासणाई कोंचासणाई गरूलासणाई उण्णयासणाई पणयासणाई दीहासणाई भद्दासणाई पक्खासणाई मगरासणाई सीहासणाई पउमासणाई दिसासोवत्थियासणारं सव्वरयणामयाई अच्छाई जाव पडिरुवाई | २९४. तत्स णं वणसंडस्स तत्थ तत्थ देसे तर्हि तहि बहवे आलिघरगा मालिघरगा कर्यालिघरगा लयाघरगा अच्छणघरगा पेच्छणघरगा मज्जणघरगा पसाह्णघरगा गब्भघरगा मोहणघरगा' 'सालघरगा जालघरगा कुसुमघरगा चित्तघरगा गंधव्वघरगा" आयंसघरगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ २६५. तेसु णं आलिघरएसु जाव आयंसघरएसु बहूई हंसासणाई जाव दिसासोवत्थि - यासणाई सव्व रयणामयाई अच्छाई जाव पडिरुवाई | २९६. तस्स णं वणसंडस्स तत्थ तत्थ देसे तर्हि तहि बहवे जाईमंडवगा" जूहियामंडवगा" मल्लिया मंडवगा णोमालियामंडवगा वासंतीमंडवगा दधिवासुयमंडवगा " सूरिल्लिMisar तंबोली मंडवगा मुद्दियामंडवगा णागलयामंडवगा अतिमुत्तमंडवगा अप्फोतामंडवगा मालुयामंडवगा सामलयामंडवगा" सव्वरयणामया" अच्छा जाव पडिरूवा ॥ २६७. तेसु णं जातीमंडवसु जाव सामलयामंडवएसु बहवे पुढविसिलापट्टगा " पण्णत्ता, तं जहा - अप्पेगतिया " हंसासणसंठिता जाव अप्पेगतिया दिसासोवत्थियासण१. जाव सयसहस्सवत्तहत्थगा ( क, ख, ग, ट, १०. जातिमंडवा (ता) । महकुमुदहण लिणसुभगसोगंधिगह ११. जूधिया मंडवा (ता) । पोंडरी यह सयपत्तह सहस्स पत्त हसत सहस्य पत्त त्रि) ; १२. दधिवासुया (क, ख, ग ) । १३. x (ता, मवृ ) ; ३।८५७ सूत्रे एष पाठ: 'ता' प्रत्तौ च विद्यते । १४. णिच्चं कुसुमिया णिच्च (क, ख, ग, ट, त्रि) 1 १५. पुढविसिल्लापट्टा (ता) । १६. x (क, ख, ग, ट, त्रि) । १७. क, ख, ग, ट, त्रि' संकेतितादर्शेषु पूर्ण: पाठोस्ति । तत्र 'उसभासण संठिया' इत्यपि दृश्यते । मलयगिरिणा २९३ सूत्रे एष पाठो नैव व्याख्यातः प्रस्तुतसूत्रस्य विवरणे स उद्धृतः । रायपसेणइय सूत्रे (१५१) नास्ति स्वीकृतः । ३१७ - हत्थगा (ता) | २. णीयपव्वया (ता); निययपव्वया (मवृपा) । ३. उसरदगा (क, ख ) ; ओसरया (ता) | ४. खुल्ला ( ग ) ; x (ता); खुडुसुड्डगा (राय० सू० १८० ) । ५. खडखडगा (ट, मवृ); खरखडया (ता ); X ( राय सू० १८० ) । ६. अंडोला पक्खंडोला (ता) । ७. उस भासणाई, सीहा (क, ख, ग, ट, त्रि) । ८. मोहघरगा ( क ) | ६. x (ता) । Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ जीवाजीवाभिगमे संठिता । 'अण्णे' च बहवे पुढविसिलापट्टगा" वरसयणासण विसिद्धसंठाणसंठिया' पण्णत्ता समणाउसो ! आईणग- रूय- बूर णवणीत तूलफासा' सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिवा ! तत्थ णं बहवे वाणमंतरा देवा देवीओ य आसयंति संयंति चिट्ठेति णिसीयंति तुयद्वृति रमंति जलंति कीलति मोहंति, पुरा पोराणाण सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं पच्चणुब्भवमाणा विहति ॥ २६८. तीसे णं जगतीए उपि 'पउमवरवेदियाए अंती" एत्थ णं 'महं एगे" वणसंडे पण्णत्ते-देसूणाई दो जोयणाई विक्खंभेणं जगतीसमए' परिवखेवेणं", किण्हे किण्होभासे 'arisarओ तणस विहूणो णेयव्वो । तत्थ णं वहवे वाणमंतरा देवा देवीओ य आसयति संयंति चिट्ठेति णिसीयंति तुयट्टति रमंति ललति कीडंति मोहंति, पुरा पोराणाणं सुचिणाणं सुपरकंताणं सुभाणं कडाणं " कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं पच्चणुब्भवमाणाविहरति ॥ १९२ विजय दाराधिकारो २६. जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स कति दारा" पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा - विजये वेजयंते जयंते अपराजिते || ३००. कहि णं भंते! जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजये नामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं पणयालीसं जोयणसहरसाई अबाधाए जंबुद्दीवे दीवे पुरच्छिमपेरते लवणसमुद्दपुरच्छिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सीताए महानदीए उपि, एत्थ जंबुद्दीवर दीवस्स विजये णामं दारे पण्णत्ते - अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि जोया विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेए वरकणगथूभियागे ईहामिय-उसभ-तुरगनर-मगर- विहग वालग - किण्णर- रुरु- सरभ चमर-कुंजर वणलय- पउमलयभत्तिचित्ते खंभुग्ग १८५ सूत्रस्य विवरणे स उद्धृतोस्ति, किन्तु सङ्ग्रहाथातो ज्ञायते 'उसभासणाई' इति पाठः नास्ति प्रस्तुतोत्र । सा च एवमस्ति - हंसे कोंच गरुडे उष्णय पणए य दीह भद्देय । क्खे मरे परमे सीह दिसासोत्थिवारसमे ॥ १ ॥ ( जी० वृत्ति पत्र २०० राय० वृत्ति पृ० १६६) । १. 'ता' प्रतौ अत: 'समणाउसो' पर्यन्तं एवं पाठोस्ति - अप्पे विसिदूवरसयणसंठाणसंठिया | २. तत्थ बहवे (क, ख, ग, ट, त्रि) । ३. मांसल सुघुटु विसिठाणसंठिया ( मवृपा) । ४. तुलफासा मउया (क, ख, ग, घ, ट, त्रि); तूलफासा रत्तंसुगसंवुता सुरमा (ता) ५. तुयति हति (ता) । ६. किडुंति अभिमंति (ता) । ७. तो परमवरवेइयाए ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ८. एगे महं (क, ख, ग, ट, त्रि ) । ६. वेइयासमए (क, ख, ग, ट, त्रि); २७३ सूत्रानुसारेण अत्रापि 'जगतीसमए' इति 'ता' प्रतिगतः पाठः स्वीकृत: ' वेइयासमए' इत्यपि पाठे नार्थभेदोस्ति, उभयत्रापि परिक्षेपस्य साम्यमस्ति जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तावपि ( १ | १४) अयमेव पाठो लभ्यते । १०. अतो 'ता' प्रती पाठसंक्षेपोस्ति तं चैव णिरवयवं तणसद्दवज्जो जाव वंतरा विहति । ११. कंताणं ( क, ख, ग, ट ); कंताणं कडाणं (त्रि) । १२. वृत्तिकृता उद्धृतः पाठः एवमस्ति - वणसंडतो सद्दवज्जो जाव विहरति । १३. दुवारा (ता) । Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती तवइरवेदियापरिगताभिरामे विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ते इव अच्चीसहस्समालिणीए रूवगसहरसकलिए भिसमाणे भिब्भिसमाणे चक्खुल्लोयणलेसे सुहफासे सस्सिरीयस्वे । ‘वण्णो दारस्स तस्सिमो होइ" तं जहा-वइरामया नेमा रिटामया पतिढाणा वेरुलियामया खंभा जायरूवोवचिय-पवरपंचवण्णमणिरयण-कोट्टिमतले हंसगब्भमए एलुए गोमेज्जमए इंदखीले लोहितक्खमईओ दारचेडाओ' जोतिरसामए उत्तरंगे वेरुलियामया कवाडा लोहितक्खमईओ सूईओ वइरामया संधी णाणामणिमया समुग्गगा 'वइरामया अग्गला" अग्गलपासाया वइरामई आवत्तणपेढिया अंकुत्तरपासए णिरंतरितघणकवाडे भित्तीसु चेव भित्तिगुलिया छप्पण्णा तिणि होति गोमाणसिया तत्तिया णाणामणिरयणवालरूवगलीलट्ठियसालभंजिया वइरामए कूडे रययामए उस्सेहे सव्वतवणिज्जमए उल्लोए णाणामणिरयणजालपंजर - मणिवंसग लोहितक्खपडिवंसगरयतभोमे अंकामया पक्खा पक्खवाहाओ जोतिरसामया वसा वंसकवेल्लुयाओ य रययामईओ पट्टियाओ जायरूवमईओ ओहाऽडणीओ वइरामईओ उवरिपुंछणीओ सव्वसेतरययामए छादणे अंकमयकणगड-तवणिज्जभियाए सेते 'संखतलविमलणिम्मलदधिघण-गोखीर-फेण-रययणिगरप्पगासे तिलगरयण द्धचंदचित्त गाणामणिमयदामाल किए अंतो वहिं च सण्हे तवणिज्जवालुयापत्थडे सुहफासे' सस्सिरीयरूवे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ।। ३०१. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ' णिसीहियाए दो-दो वंदणकलसपरिवाडीओ एण्णत्ताओ। ते णं वंदणकलसा वरकमलपइट्टाणा सुरभिवरवारिपडिपुण्णा चंदणकयचच्चागा आविद्धकंठेगुणा पउमुप्पलपिहाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा महता-महता महिंदकुंभसमाणा पण्णत्ता समणाउसो॥ ३०२. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीहिआए दो दो णागदंतपरिवाडीओ। ते णं णागदंतगा मुत्ताजालंतरुसियहेमजाल-गवक्खजाल-खि खिणीघंटाजालपरिविखत्ता अब्भागता अणिणिसिट्टा तिरियं सुसंपग्गहिता" अहेपण्णगद्धरूवा पण्णगद्धसंठाणसंठिता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा महता-महता गयदंतसमाणा पण्णत्ता समणाउसो! तेसू णं णागदंतएसु बहवे 'किण्हसुत्तवद्धा वग्घारितमल्लदामकलावा" जाव" सुक्किल१. वण्णाओ दारस्स रीयरूवे (क); वण्णओ ६. तविणज्जरुइलबालुगापत्थडे (क, ख, ग, ट, ता, दारस्स (ख, ग, ट, त्रि); वण्णो दारस्स तस्स त्रि) । होति (ता)। ७. सुहप्फासे (क)। २. दारवेडाओ (ग); दारवेढाओ (ट); द्वारपिण्डौ ८. पासं (ता)। (मव); द्वार पिण्ड्यो (ज० वृत्ति पत्र ४८)। ६. दुधाओ (ता)। ३. वइरामईयो अग्गलाओ (क, ख, त्रि); वइरा- १०. आवद्ध (क, ग)। मई अग्गला (ग)। ११. सुसंपरिगृहीताः (मवृ)। ४. अंकुत्तरपासके (ट); अंकुत्तरपासगा (ता); १२. सव्वरयणामया (क, ख, ग, ट, त्रि)। अंकुत्तरपासगे (त्रि)। १३. किण्हसुत्तबद्धवग्धारिया (क, ख, ग, ट, ता ५. संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरयय - त्रि)। नियरप्पगासद्धचंदचित्ते (ता, मवृपा)। १४. राय० सू० १३२। Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० जीवाजीवाभिगमे सुत्तबद्धा वग्घारियमल्लदामकलावा । ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा' सुवण्णपतरगमंडिता' णाणामणि रयण-विविधहारद्धहारउवसोभितसमुदया जाव' सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति। तेसि णं णागदंतगाणं उरि अण्णाओ दो दो णागदंतपरिवाडीओ पण्णत्ताओ। ते णं णागदंतगा मुत्ताजालंतरुसिय 'हेमजाल-गवक्खजाल-खिखिणीघंटाजालपरिक्खित्ता अब्भुग्गता अभिणिसिट्ठा तिरियं सुसंपग्गहित्ता अहेपण्णगद्धरूवा पण्णगद्धसंठाणसंठिता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा महता-महता गयदंतसमाणा पण्णत्ता समणाउसो! तेसु णं णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कया पण्णत्ता। तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वेरुलियामईओ धूवघडीओ पण्णत्ताओ । ताओ णं धूवघडीओ कालागरु-पवरकुंदुरुक्कतुरुक्क-धूवमघमघेतगंधुद्धयाभिरामाओ सुगंधवरगंधगंधियाओ गंधवट्टिभूयाओ ओरालेणं मणण्णणं मणहरेणं घाणमणविव्वइकरेणं गंधेणं 'ते पएसे" सव्वतो समंता आपरेमाणीओ आपूरेमाणीओ 'सिरीए अतीव-अतीव” उवसोभेमाणीओ-उवसोभेमाणीओ चिट्ठति ।। ३०३. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीधियाए दो दो सालभंजियापरिवाडीओ पण्णत्ताओ। ताओ णं सालभंजियाओ लीलट्ठिताओ सुपइट्ठियाओ सुअलंकिताओ णाणाविहरागवसणाओ णाणामल्लपिणद्धाओ मुट्ठीगेज्झसुमज्झाओ आमेलगजमलजुयलवट्टियअब्भुण्णयपीणरचियसंठियपओहराओ रत्तावंगाओ असियकेसीओ मिदुविसयपसत्थलक्खण-संवेल्लितग्गसिरयाओ ईसिं असोगवरपादवसमुट्ठिताओ वामहत्थगहितग्गसालाओ ईसि अद्धच्छिकडक्खचेट्ठिएहिं लूसेमाणीओ विव, चक्खुल्लोयणलेसेहि अण्णमण्णं खिज्जमाणीओ इव, पुढविपरिणामाओ सासयभावमुवगताओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमनिडालाओ चंदाहियसोमदंसणाओ उक्का विव उज्जोएमाणीओ विज्जुघणमिरिय-" सूरदिप्पंततेय-अहिययरसंनिकासाओ सिंगारागारचारुवेसाओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ १. "लंबूसा (ता)। सुमज्झा आमेलगजमलजुयलवट्टियअब्भुण्णय२. पतरमंडिता (ता)। पीणरइयसंठियपओहराओ। रायपसेणइयवृत्ती ३. जी० ३।२६५। (पृ० १६५) एष एव स्वीकृतपाठसंवादी क्रमो ४. उप्पि (ता)। लभ्यते । ५. सं० पा०—मत्ताजालंतरुसिया तहेव जाव ६. मलयगिरिणा प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्ती 'अहूतिर्यग्व___ समणाउसो !। लितं' इति व्याख्यातमस्ति । रायपसेणइय ६. तपएसे (क, ख, ग, ट); तप्पएसे (त्रि)। वृत्तौ (पृ० १६६) 'अर्ध-तिर्यग्वलितं' इति ७. अतीव अतीव सिरीए (क, ख, ग, ट, त्रि)। लिखितं लभ्यते । व्याख्यानुसारेण तत्रापि 'अहूं' ८. नाणागारवसणाओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। इति पदं युज्यते । एतद् देशीभाषापदं अतोने मलयगिरिवृत्ती केचित् पाठा: भिन्न- विद्यते, 'आडो' इति भाषायाम । क्रमेण व्याख्याताः सन्ति--रत्तावंगाओ असिय- १०. पिज्जमाणीओ (ग); खिज्जेमाणीओ (ता); केसीओ मिदुविसयपसत्थलक्खणसंवेल्लितग्ग- विज्जमाणीओ (क्व)। सिरयाओ णाणामल्लपिणद्धाओ मुट्ठीगेज्झ- ११. मरीचि (क, ख, ग, ट); "मिरीयि (ता)। Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ३२१ अभिरुवाओ पडिरूवाओ 'तेयसा अतीव - अतीव उवसोभेमाणीओ - उवसोभेमाणीओ चिट्ठति ॥ ३०४. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहतो णिसीहियाए दो-दो जालकडगा पण्णत्ता । ते णं जालकडगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३०५. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीधियाए दो-दो घंटाओ' पण्णत्ताओ। तासि णं घंटाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-जंबूणयामईओ घंटाओ वइरामईओ लालाओ णाणामणिमया घंटापासा तवणिज्जमईओ संकलाओ रययामईओ रज्जओ। ताओ णं घंटाओ ओहस्सराओ मेहस्सराओ हंसस्सराओ कोंचस्सराओ 'सीहस्सराओ दुंदुहिस्सराओ णंदिस्सराओ णंदिघोसाओ" मंजुस्सराओ मंजुघोसाओ सुस्सराओ सुस्सरघोसाओ ओरालेणं मणुण्णणं मणहरेणं कण्णमणनिव्वुइकरेण सद्देण ते पदेसे सव्वतो समंता आपूरेमाणीओ-आपूरेमाणीओ सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणीओ - उवसोभेमाणीओ चिट्ठति ॥ ३०६. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीधियाए दो-दो वणमालाओ' पण्णत्ताओ। ताओ णं वणमालाओ णाणादुम-लय-किसलय-पल्लवसमाउलाओ छप्पयपरिभुज्जमाण-सोभंतसस्सिरीयाओ 'पासाईयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ" || ३०७. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासि दुहओ णिसीहियाए दो-दो पगंठगा' पण्णत्ता। ते णं पगंठगा चत्तारि जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, दो जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्ववइरामया" अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि णं पगंठगाणं 'उरि पत्तेयं-पत्तेयं पासायवडेंसगा पण्णत्ता । ते णं पासायवडेंसगा चत्तारि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसित-पहसिताविव विविहमणिरयणभत्तिचित्ता वाउद्धयविजयवेजयंती १. (ता, मवृ); प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ 'पासाईयाओ ७. वणमालापरिवाडीओ (क, ख, ग, ट, त्रि, इत्यादि विशेषणचतुष्टयं प्राग्वत्' इत्येव लभ्यते । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तावपि (पत्र ५२) ८. छप्पयपरिभुज्जमाणकमल (क, ख, ग, ट, त्रि); 'प्रासादीया इत्यादिपदचतुष्टयं प्राग्वत् । राय- 'कमल' इति पदं वृत्तौ नास्ति व्याख्यातम् । पसेणइय सूत्रस्य वृत्तौ (पृ० १६६) 'अभिरू- रायपसेणइय (१३६) सूत्रपि नैतत्पदं वाओ चिट्ठति इति प्राग्वत्' ।। लभ्यते। २. घंटापरिवाडीओ (क, ख, ग, ट, त्रि, राय० ६. पासाइयाओ ४ ते पदेसे ओराले जाव गंधेणं सू० १३५) आपूरेमाणीओ २ जाव चिट्ठति (क, ख, ग, ३. जंबूणतामईओ (क, ख, ग, ता); जंबूणद- ट, त्रि); णिच्चं कुसुमिआओ जाव वडेंसगमईओ (त्रि)। धरीओ सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडि४. घंटापासगा (क, ख, ग, ट, त्रि)। रूवाओ (ता)। ५. णंदिस्सराओ णंदिघोसाओ सीहस्सराओ सीह- १०. पाठा (ता) सर्वत्र । घोसाओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। ११. सव्वरयणामया (ता)। ६. सुस्सरणिग्घोसाओ (क, ख, ग, ट, ता, त्रि)। Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे पागच्छत्तातिछत्तकलिया तुंगा गगणतलमणु लिहंत सिहरा' जालंतररयण' पंजरुम्मिलितव्व fear भियागा वियसियसयवत्त- पोंडरीय-तिलक रयणद्धचंदचित्ता' अंतो वाहिं च सण्हा तवणिज्जवालुयापत्थडा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासादीया दरिसणिज्जा अभिवा परूिवा ॥ ३२२ ३०८. तेसि णं पासायवडेंसगाणं उल्लोया पउमलयाभत्तिचित्ता जाव' सामलयाभत्तिचित्ता सव्वतवणिज्जमया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३०६. तेसि णं पासायवडेंसगाणं पत्तेयं पत्तेयं अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए-आलिंगपुक्खरेति वा जाव' मणीहि उवसोभिए । मणीण वण्णो गंधो फासो य नेयव्वो । ३१०. 'तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं - पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ । ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयाम - विक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं, सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ ॥ ३११. तासि णं मणिपेढियाणं उर्वारं पत्तेयं - पत्तेयं सीहासणे पण्णत्ते" । तेसि णं सीहासणाणं अयमेयारूवे" वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - 'रययामया सीहा सोवण्णिया पादा तवणिज्जमया चक्कला" णाणामणिमयाइं पायसीसगाई" जंबूणयमयाई गत्ताइं वइरामया संधी नाणामणिमए वेच्चे । ते णं सीहासणा ईहामिय-उसभ तुरग गर-मगर - विहगवालग किन्नर - रुरु- सरभ- चमर- कुंजर वणलय' - पउमलयभत्तिचित्ता ससारसारोवचिय विविह २४ १. गगणतलमभिलंघमाणसिहरा ( क, ख, ग, ट, त्रि); गगणतलमणुलं घमाणसिहरा (ता.) । २. सूत्रे चात्र विभक्तिलोपः प्राकृतत्वात् (मवृ) । ३. अतो आदर्शेषु णाणामणिमया दामालंकिया' इति पाठो लभ्यते । वृत्तौ नास्ति व्याख्यातोसी । रायसेइयवृत्तावपि ( पृ० १७० ) नास्ति व्याख्यातः । मुद्रित वृत्त्योरसी केनापि प्रक्षिप्तः । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेर्वृत्तित्रयेसी व्याख्यातो दृश्यते । ४. तवणिज्जरुइलवालुयापत्थडगा (क, ख, ट, त्रि); तवणिज्जमयवालुयापत्थडगा ( ग ) ; तवणिज्जरुइलवालुयापत्थडा (ता) । ५. जी० ३।२६६ । मलयगिरिवृत्तौ ' अतिमुत्तगलयभत्तिचित्ता कुंदलयभत्तिचित्ता सामलयभत्तिचित्ता' एतावान् पाठो नैव दृश्यते । (ता) । ६. एतत् सूत्रं 'क, ख, ग, ट' आदर्शषु नैव १३. विच्चे (क, ख, त्रि); बच्चे ( ग ) । दृश्यते । ७. जी० ३।२७७-२८४ । ८. अट्ठ ( क ) ; एतद् अशुद्ध प्रतिभाति । ९. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने मलयगिरिवृत्तो 'तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं सीहासणे पण्णत्ते' एष पाठो व्याख्यातास्ति । जम्बूद्वीपवृत्तावपि (पत्र ५५) एवमेव व्याख्यातोस्ति । किन्तु रायपणियवृत्ती ( पृ० ८ ) । मणिपीठिका सूत्रा - नन्तरं सिंहासनसूत्रं विद्यते । १०. इमेतारूवे (ता)। ११. तवणिज्जमया चक्कला 'चक्कवाला - ग, ट, त्रि) रयतामया सीहा सोवणिया पादा (क, ख, ग, ट, त्रि); 'चक्कवाला (ता) । १२. पायपीढगाई ( क, ख, ग, ट, त्रि); पायपीढा १४. सं० पा०- चित्ता । ० -- ईहामियउसभ जाव पउमलयभत्ति Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ३२३ मणिरयणपायपीढा अत्थरग'- मिउमसूरग'- नवतयकुसंत - लिच्च' - [ लिंब ? ] केसर - पच्चुत्थताभिरामा 'आईणग- रूय- बूर - णवनीत- तुलफासा सुविरचितरयत्ताणा ओयवियखोमदुगुल्लपट्टपडिच्छयणा रत्तंसुयसंवुया सुरम्मा" पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ ३१२. तेसि णं सीहासणाणं उप्पि पत्तेयं पत्तेयं विजयसे पण्णत्ते । ते णं विजय सा सेया संखंक'- कुंद - दगरय - अमतमहियफेणपुंजसन्निकासा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३१३. तेसि णं विजयसाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं - पत्तेयं वइरामया अंकुसा पण्णत्ता । सुणं वइरामए अंकुसेसु पत्तेयं-पत्तेयं कुंभिक्का मुत्तादामा पण्णत्ता । तेणं कुंभिक्का मुत्तादामा अण्णेहिं चउहि 'कुंभिक्केहि मुत्तादामेहिं तदद्धुच्चप्पमाणमेत्तेहि" सव्वतो समता संपरिक्खित्ता । ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा सुवण्णपयरगमंडिया जाव' सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा - उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ ३१४. तेसि' णं पासायवडेंसगाणं उप्पि बहवे अट्ठट्ठमंगलगा पण्णत्ता सोत्थिय तधेव जाव" छत्ताइछत्ता ॥ ३१५. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासि दुहओ णिसीहियाए दो दो तोरणा पण्णत्ता । 'वण्णओ जाव" सहस्सपत्तहत्थगा ॥ १. अच्छरग (क, ख, ग, त्रि) । २. मलयमसूर (ता) | ३. लिक्ख (ता); रायपसेणइयसूत्रे ( सू० ३७ ) अस्य पदस्य द्वौ पाठभेदो लभ्येते— 'लिक्ख (क); लिव्व ( ख, ग, घ, च, छ); ज्ञाताधर्मकथायां (१|१|१८) अस्य पदस्य 'लिव्व' इति पाठभेदो विद्यते । जीवाजीवाभिगमे ( ३।३११) मूलपाठे 'लिच्च' इति पदं विद्यते पाठान्तरे च 'लिक्ख' इति पदमस्ति । एतैः पाठभेदेर्ज्ञायते 'लिव्व' इति पाठस्य 'लिच्च इति रूपे परिवर्तनं जातम् । वृत्तिकारैर्यथायथा पाठो लब्धस्तथा तथा नायाधम्मक हाओ ( वृत्ति पत्र १७ ) लिम्बो बालोरभ्रस्योर्णायुक्ता कृत्तिः । जीवाजीवाभिगमे ( वृत्ति पत्र २१० ) लिच्चानि नमनशीलानि च केशराणि । रायपसेणइयवृत्ती ( पृ० EC ) लिम्बानि कोमलानि नमनशीलानि च केशराणि मध्ये यस्य मसूरकस्य तत् नवत्वकुशान्त लिम्बकेशरम् । रायपसेणइयवृत्ती कोमलानि, जीवाजीवाभिगमस्य वृत्ती नमन व्याख्यातः- शीलानि इति व्याख्यातमस्ति अनेन अर्थसादृश्यं प्रतीयते । 'लिच्च' इति पदं लिपिकाराणां प्रसादत एव जातमस्ति । ४. सीहकेसर (क, ख, ग, ट, त्रि); क्वचित् सिंहकेशरेति (मवृ) । ५. ओवियखोमदुगुल्ल पट्टपरिच्छयणा ( दुगुल्लपच्छियणा - त्रि) सुविरचितरयत्ताणा रत्तंसुयसंवुया सुरम्मा आईणगरूयबू रणवणीत तूलफासा मया (क, ख, ग, ट, त्रि); आईणगरूयवरतूलफासा रत्तंसुयसंवुता सुरम्मा (ता) | ६. संख (ग, ट, त्रि, मवृ ) | ७. तदद्धुच्चप्पमाणमेत्तेहि अद्धकुंभिक्केहिं मुत्तादाह (क, ख, ग, ट, त्रि) । ' तदद्धुच्चत्तपमाणमेत्तेहि (ता, राय० सू० ४० ) । ८. जी० ३।२६५ । ६. 'ता' मलयगिरिवृत्तौ च एतत्सूत्रं नैव लभ्यते । १०. जी० ३।२८६ - २६१ । ११. जी० ३।२८८- २६१ । १२. ते णं तोरणा णाणामणिमया तहेव जाव अट्ठट्ठमंगलगा झ्या छत्तातिछत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि) । Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ३१६. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो सालभंजियाओ पण्णत्ताओ । वण्णओ' ।। ३१७. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो नागदंतगा पण्णत्ता । 'णागदंतावण्णओ' उवरिमणागदंता णत्थि " ॥ ३२४ ३१८. सि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो 'हयसंघाडा दो-दो गयसंघाडा एवं परकिष्णर - किंपुरिस - महोरग-गंधव्व-उसभसंघाडा" सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिवा' एवं पंतीओ वीहीओ मिहुणगा । दो-दो पउमलयाओ जाव' पडिरूवाओ || ३१६. तेसि' णं तोरणाणं पुरतो दो- दो दिसासोवत्थिया' पण्णत्ता सव्वरयणामया" अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३२०. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो वंदणकलसा पण्णत्ता । वण्णओ" ॥ ३२१. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो भिंगारगा पण्णत्ता वरकमलपइट्ठाणा जाव" महता महता मत्तगयमहामुहागितिसमाणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ३२२. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो आयंसगा" पण्णत्ता । तेसि णं आयंसगाणं अयमेरूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - तवणिज्जमया पयंठगा" वेरुलियमया छरुहा" वइरामया वरंगा " णाणामणिमया वलक्खा अंकमया मंडला अणोग्घसियनिम्मलाए छायाए समणुबद्धा" चंदमंडलपडिणिकासा महता महता अद्धकायसमाणा " पण्णत्ता समणाउसो ! | १. जी० ३।३०३ । जहेव णं हेट्ठा तहेव (क, ख, गट, त्रि) । २. जी० ३।३०२ । ३. ते णं णागदंतगा मुत्ताजालंतरुसिया तहेव । तेसु णं णागदंतसु बहवे किण्हे सुत्तवट्टवग्घारितमल्लदामकलावा जाव चिट्ठति (क, ख, ग, ट, त्रि) स्वीकृतपाठो मलयगिरिवृत्तौ व्याख्यातोस्ति । 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एष नैव लभ्यते । प्रस्तुत प्रतिपत्तेः ३०२ सूत्रस्य 'उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठति' इति पर्यवसानः पाठोत्र ग्रहणीय: 'तेसि णं णागदंतगाणं उवर' इत्यादिआलापको नात्र विवक्षितोस्ति । ४. संघाडा जाव उसभसंघाडा पण्णत्ता (क, ख, गट, त्रि) । ५. अतः परं रायपसेणइयसूत्रे संक्षिप्तपाठस्य स्थाने चत्वारि सूत्राणि ( १४२ - १४५) कृतानि सन्ति । ६. जी० ३।२६७ ॥ ७. जी० ३।२६८ । ८. एतत्सूत्रं 'क, ख' प्रत्यो मलयगिरिवृत्ती च नैव लभ्यते । ६. अक्खसोत्थया (ग, ट, त्रि) । १०. सव्वजंबूणयामया (ता) । ११. ते णं चंदणकलसा वरकमलपट्टाणा तहेव सव्वरयणामया जाव पडिरूवा समणाउसो ! ( क, ख, ग, ट, त्रि) । १२. जाव सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा (क, ख, ग, ट, त्रि) । १३. आतंसगा ( क, ख, ग ); आदंसगा (ता, त्रि ) । १४. पाअंठगा (ता) । १५. आवरुहा ( ग ) ; थरुहा (ता ) थेरुहा (त्रि ) ; वृत्ती व्याख्यानात् पूर्वं उद्धृते पाठे 'थंभया' इति पदं दृश्यते । रायपसेणइयवृत्ती ( पृ० १७३ ) 'वेरुलियमया छरुहा' इति व्याख्यातमेव नास्ति । १६. वारंगा (क, ख, ग ) ; वारंगा (ट, ता); वारसगा (त्रि ) । १७. सव्वतो चेव समणुबद्धा (क, ख, ग, ट, त्रि) । १८. सामाणा (ता) । Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ३२५ ३२३. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो 'वइरणाभा थाला पण्णत्ता"। तेणं थाला अच्छ-तिच्छडिय-सालितंदुल-नहसंदट्ठ-पडिपुण्णा' इव' चिट्ठति सव्वजंबूणदमया अच्छा जाव पडिरूवा महता-महता रहचक्कसमाणा पण्णत्ता समणाउसो !॥ ३२४. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो पातीओ' पण्णत्ताओ। ताओ णं पातीओ अच्छोदय-पडिहत्थाओ णाणाविहस्स' फलहरितगस्स बहुपडिपुण्णाओ विव चिट्ठति सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ महया-महया गोकलिंजगचक्कसमाणाओ' पण्णत्ताओ समणाउसो !॥ __३२५. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो सुपतिट्ठगा पण्णत्ता। ते णं सुपतिलगा 'सुसव्वोसहिपडिपुण्णा णाणाविहस्स य पसाधणभंडस्स बहुपडिपुण्णा इव चिट्ठति" सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३२६. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो मणोगुलियाओ" पण्णत्ताओ। 'ताओ णं मणोगुलियाओ सव्ववेरुलियामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ" । तासु णं मणोगुलिया बहवे सुवण्णरुप्पामया फलगा पण्णत्ता। तेसु णं सुवण्णरुप्पामएसु फलएसु बहवे वइरामया णागदंतगा पण्णत्ता। तेसु णं वइरामएसु णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कया" पण्णत्ता। तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वायकरगा पण्णत्ता । 'ते णं वायकरगा" किण्हसत्तसिक्कग-गवच्छिया, णील सुत्तसिक्कग-गवच्छिया लोहियसुत्तसिक्कग-गवच्छिया, हालिहसूत्तसिक्कग-गवच्छिया सुक्किलसुत्तसिक्कग-गवच्छिया सव्ववेरुलियामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ___३२७. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो-दो चित्ता रयणकरंडगा पण्णत्ता, से जहाणामएरणो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चित्ते रयणकरंडए वेरुलियमणि-फालियपडल-पच्चोयडे साए पभाए ते पदेसे सव्वतो समंता ओभासइ उज्जोवेइ तावेइ पभासेइ, एवामेव तेवि चित्ता रयणकरंडगा" साए पभाए ते पदेसे सव्वतो समंता ओभासेंति उज्जोवेति तावेंति पभासेंति" ॥ ३२८. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो हयकंठा गयकंठा नरकंठा किण्णरकंठा १. वइरणाभे थाले पण्णत्ते (त्रि)। ६. णाणाविहपसाहणगभंडविरचिया सव्वोसधि२. बहुपडिपुण्णा (क, ख, ग, ट) । पडिपुण्णा (क, ख, ग, ट, त्रि)। ३. विव (क, ट)। १०. मणगुलियाओ (ता)। ४. जंबूणतमया (क); जंबूणतामया (ग, ८, ११. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि)। ____ता)। १२. सिक्का (ता)। ५. वाधीओ (ता)। १३. ४ (ता)। ६. नाणाविधपंचवण्णस्स (क, ख, ग, ट, ता, १४. रयणकरंडगा पण्णत्ता वेरुलियपडलपच्चोयडा त्रि) । (क, ख, ग, ट, त्रि); रतणकरंडा वेरुलिय ७. गोलिंगचक्क (क, ख, ता); गोकलिंगचक्क' जाव (ता)। (ट)। १५. पभासेंति सिरीए अतीव अतीव उवसोभेमाणा २ ८. पइट्ठा (ता)। चिट्ठति (ता)। Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ जीवाजीवाभिगमे किंपुरिसकंठा महोरगकंठा गंधव्वकंठा उसभकंठा पण्णत्ता सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा॥ ३२६. 'तेसि णं तोरणाणं पुरतो" दो-दो पुप्फचंगेरीओ, एवं मल्ल-'चुण्ण-गंधवत्थाभरणचंगेरीओ सिद्धत्थचंगेरीओ लोमहत्थचंगेरीओ सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ॥ ३३०. तेसि' णं तोरणाणं पुरतो दो-दो पुप्फपडलाइं जाव लोमहत्थपडलाइं सव्वरयणामयाइं अच्छाई जाव पडिरूवाई। ३३१. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो सीहासणाइं पण्णत्ताई। 'तेसि णं सीहासणाणं वण्णओ जाव दामा॥ ३३२. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो रुप्पच्छदा' छत्ता पण्णत्ता। ते णं छत्ता वेरुलियविमलदंडा जंबूणयकण्णिका वइरसंधी मुत्ताजालपरिगता अट्ठसहस्सवरकंचणसलागा दद्दरमलयसुगंधी सव्वोउअसुरभिसीयलच्छाया मंगलभत्तिचित्ता चंदागारोवमा॥ ३३३. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो चामराओ पण्णत्ताओ। ताओ णं चामराओ 'चंदप्पभ-वइर-वेरुलियनानामणिरयणखचियचित्तदंडाओ" 'सुहुमरयतदीहवालाओ संखंककुंद-दगरय - अमयमहियफेणपुंजसण्णिकासाओ" सव्वरयणामयाओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ॥ ३३४. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो तेल्लसमुग्गा कोट्ठसमुग्गा पत्तसमुग्गा चोयसमुग्गा तगरसमुग्गा एलासमुग्गा हरियालसमुग्गा हिंगुलयसमुग्गा" मणोसिलासमुग्गा अंजणसमुग्गा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३३५. विजये णं दारे अट्ठसतं चक्कज्झयाणं, एवं मिगज्झयाणं गरुडज्झयाणं ऋच्छज्झयाणं छत्तज्झयाणं पिच्छज्झयाणं सउणिज्झयाणं सीहज्झयाणं उसभज्झयाणं, अट्ठसतं सेयाणं १. तेसु णं हयकंठएसु जाव उसभकंठएसु (क, ख, ८. चंदागारोवमा वट्टा (क, ग, ट, त्रि); चंदा___ ग, ट, त्रि)। गारोवमा छत्ता (ख, ता); चन्द्रमण्डलवद्वत्ता२. गंध चुण्ण (क, ख, ग, ट, त्रि); वण्ण चुण्ण नीति भाव: (मवृ)। ___ गंध (ता)। ९. नाणामणिकणगरयणविमलमहरिहतवणिज्जूज्ज३. 'ता' प्रती प्रस्तुतसूत्रस्य स्थाने पाठसंक्षेपोस्ति लविचित्तदंडाओ चिल्लिआओ (क, ख, ग, ट, –एवं पडलगा वि दो दो। वृत्तावपि एवमेव त्रि); चंदप्पभवइरवेरुलियणाणामणिरयणव्याख्यातं दृश्यते । ओवितचित्तदंडाओ (ता)। ४. जी० ३११-३१३ । १०. संखंककुंददगरयअमयमहियफेणपुंजसण्णिकासाओ ५. तेसि णं सीहासणाणं अयमेयारूवे वण्णावासे सुहुमरयतदीहवालाओ (क, ख, ग, ट, त्रि) । पण्णत्ते तदेव जाव पासादीया ४ (क, ख, ग, ११. हिंगूल्य (ता)। ट, त्रि); वण्णओ निरवयवो (ता)। १२. विग (ता); मुद्रित वृत्तौ (पत्र २१५) 'मग६. रुप्पच्छया (ग, ट, त्रि); रुप्पमया (राय० गरुडरुरुकच्छत्र' इति पाठो दृश्यते, किन्तु हस्त__ सू० १५६)। लिखितवृत्त्यादर्श 'रुरुक' स्थाने 'ऋच्छ' इति७, वेरुलियभिसंतविमलदंडा (क, ख, ग, ट, त्रि)। पदं प्राप्तमस्ति । रायपसेणइयसूत्रस्य (द्रष्टव्यं Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ३२७ चउविसाणाणं णागवरकेऊणं । एवामेव सपुव्वावरेणं विजयदारे असीयं' केउसहस्सं भवतित्ति मक्खायं ।। ३३६. विजये णं दारे णव भोमा' पण्णत्ता । तेसि णं भोमाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता जाव' मणीणं फासो॥ __ ३३७. तेसि णं भोमाणं उप्पि उल्लोया पउमलयाभत्तिचित्ता जाव' सामलया भत्तिचित्ता सव्वतवणिज्जमया अच्छा जाव पडिरूवा ।। ३३८. तेसि णं भोमाणं बहुमज्झदेसभाए जेसे पंचमे भोमे', तस्स णं भोमस्स बहुमज्झदेसभाए', एत्थ णं महं एगे सीहासणे पण्णत्ते । सीहासणवण्णओ विजयद्से अंकूसे जावदामा चिट्ठति ॥ ३३६. तस्स णं सीहासणस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरथिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स चउण्हं सामाणियसहस्साणं चत्तारि भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ३४०. तस्स णं सीहासणस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स चउण्हं अग्ममहिसीणं सपरिवाराणं चत्तारि भद्दासणा पण्णत्ता। ३४१. तस्स णं सीहासणस्स दाहिणपुरथिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स अभितरियाए परिसाए अट्ठण्हं देवसाहस्सीणं अट्ठ भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ३४२. तस्स णं सीहासणस्स दाहिणेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स मज्झिमियाए परिसाए दसण्हं देवसाहस्सीणं दस भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ॥ ३४३. तस्स णं सीहासणस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स बाहिरियाए परिसाए बारसण्हं देवसाहस्सीणं बारस भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ।। ३४४. तस्स णं सीहासणस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स सत्तण्हं अणियाहिवतीणं सत्त भद्दासणा पण्णत्ता ।। ३४५. तस्स णं सीहासणस्स 'पुरत्थिमेणं दाहिणणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं, एत्थ णं"" विजयस्स देवस्स सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीणं सोलस भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। 'तं जहा-पुरत्थिमेणं चत्तारि साहस्सीओ, एवं चउसुवि जाव उत्तरेणं चत्तारि १६२ सूत्रस्य पादटिप्पणम्) हस्तलिखितवृत्ता- एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता जोयणं वपि 'ऋच्छ' इति पदं दृश्यते । जम्बूद्वीप- आयाम-विक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्वप्रज्ञप्तिवृत्तौ (पत्र ६०) 'विग इति पदं मणीमयी अच्छा जाव पडिरूवा। तीसे णं व्याख्यातमस्ति। मणिपेढियाए उप्पि महं एगे सीहासणे प १. आसीयं (क, ख, ग, ता)। वण्णओ विजयदूसे अंकुसे कुंभिक्केसु जाव २. भोम्मा (ता) सर्वत्र । सिरीए अतीव २। ३. जी० ३।२७५-२८४ । ७. जी० ३।३११। ४. जी० ३।२६८। ८. विजयदूसे जाव (क, ख, ग, ट, त्रि)। ५. भोम्मे (क, ख, ग, ट, ता, त्रि) । ६. जी० ३।३११-३१३ । ६. अतोने 'ता' प्रतौ भिन्ना वाचना दृश्यते- १०. सव्वतो समंता (ता, मव) । Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ जीवाजीवाभिगमे साहस्सीओ" । 'अवसेसेसु भोमेसु पत्तेयं-पत्तेयं सीहासणे पण्णत्ते॥ ३४६. विजयस्स णं दारस्स उवरिमागारे' सोलसविहेहिं रतणेहिं उवसोभिते,' तं जहा–रयणेहिं वइरेहिं वेरुलिएहिं जाव' रिठेहिं ।। ३४७. विजयस्स णं दारस्स उप्पि' अट्ठमंगलगा पण्णत्ता, तं जहा--सोत्थियसिरिवच्छ जाव दप्पणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ।। ३४८. विजयस्सणं दारस्स उप्पि बहवे कण्हचामरज्झया जाव" सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा॥ ३४६. विजयस्स" णं दारस्स उप्पि बहवे छत्तातिछत्ता तहेव ॥ ३५०. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चति-विजए णं दारे विजए णं दारे ? गोयमा ! विजए णं दारे विजए णाम देवे 'महिड्ढीए महज्जुतीए" 'महाबले महायसे महेसक्खे महाणभावे" पलिओवमद्वितीए परिवसति। से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चउण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाहिवईणं सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, विजयस्स णं दारस्स विजयाए रायहाणीए अण्णेसि च बहूणं 'विजयाए रायहाणीए वत्थव्वगाणं" देवाणं देवीण य आहेवच्चं" •पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयायनट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं० दिव्वाइं भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति--विजए दारे-विजए दारे । १. ४ (ता, मवृ)। वृत्ती (पत्र ६२) एतस्मिन् विषये एवं २. भद्दासणा पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि); टीकितम्-'विजयस्स णं दारस्स उप्पि बहवे अवसेसेसु णं भोम्मेसु बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं २ किण्हचामरझया जाव सव्वरयणामया अच्छा सीहासणे पं वण्णओ णवरं परिवारो णत्थि जाव पडिरूवा। विजयस्स णं दारस्स उप्पि (ता); अवशेषेषु प्रत्येक-प्रत्येक सिंहासनम- बहवे छत्ताइछत्ता तहेव' 'विजयस्स णं दारस्स परिवारं सामानिकादिदेवयोग्यभद्रासनरूपपरि- उप्पि बहवे किण्हचामरज्झया' इत्यादि सूत्रवाररहितं प्रज्ञप्तम् (मवृ)। पाठः जीवाभिगमसूत्रबहादशेष दष्टत्वाल्लि३. उवरिमागार (क, ग, त्रि); उत्तिमा (ख, खितोस्ति, स च पूर्ववद् व्याख्येयः, वृत्तौ तु ___ट, ता)। केनापि हेतुना व्याख्यातो नास्तीति । ४. उवसोभिता (क, ख, ग, ट, त्रि)। १०. जी० ३।२६० । ५. जी० ३७॥ १२. जी० ३।२६१। ६. उप्पि बहवे (क, ख, ग, ट, त्रि); उवरि १३. सं० पा०-महज्जुतीए जाव महाणुभावे । १४. महासोक्खे (मवृपा)। ७. अतोग्रे 'ता' प्रतौ भिन्ना वाचनास्ति-जाव १५. x (म)। सतसहस्सपत्तहत्थगा। १६. परिवसति महिड्ढीए फा हारविरायतवच्छे जाव ८. जी० ३।२८६। दसदिसाओ उज्जोवे (ता)। ६,११. ३४८, ३४६ सूत्रे मलयगिरिणा नैव १७. वाणमंतराणं (ता)। व्याख्याते । शांतिचन्द्रसुरिणा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति- १८. सं० पा०—आहेवच्चं जाव दिव्वाई। Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चविपडिवत्ती ३२६ अदुत्तरं च णं गोयमा ! विजयस्स णं दारस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते - जंण कयाइ fears for ण कयाइ ण भविस्सइ,' भुवि च भवति य भविस्सति य धुवे fore सास अक्ख' अवट्ठिए णिच्चे " || विजयाए रायहाणीए अधिकारो ३५१. कहि णं भंते! विजयस्स देवस्स विजया णाम रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! विजयस्स णं दारस्स पुरत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीतिवतित्ता अण्णंमि जंबुद्दीवे दीवे वारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं विजयस्स देवस्स विजया णाम रायहाणी पण्णत्ता - वारस जोयणसहस्साइं आयाम - विक्खंभेणं, सत्ततीसं जोयणसहस्साइं नव य अडयाले जोयणसए किचिविसेसाहिया परिक्खेवेणं पण्णत्ता ॥ ३५२. सा णं एगेणं पागारेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता । से णं पागारे सत्तसीसं जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले अद्धतेरस जोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे ‘सक्कोसाइं छ” जोयणाइं विक्खंभेणं, उप्पि तिणि सद्धकोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं, मूले विच्छिण्णे मज्झे संखित्ते उप्पि तणुए बाहि वट्टे अंतो चउरंसे गोपुच्छसंठाणसंठिते सव्वकणगामए अच्छे जाव पडिरूवे ॥ ३५३. से णं पागारे णाणाविहपंचवण्णेहिं कविसीसएहि उवसोभिए, तं जहा - किन्हे - हि जाव सुक्किलेहिं । तेणं कविसीसका अद्धकोसं आयामेणं, पंचधणुसताई विक्खभेणं, सोणमद्धको उड्ढ उच्चत्तेणं, सव्वमणिमया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३५४. विजयाए णं रायहाणीए एगमेगाए बाहाए पणुवीसं पणुवीसं दारसतं भवतीति मक्खायं । ते णं दारा बावट्ठ जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढ उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं', तावतियं चेव पवेसेणं, सेता वरकणगथूभियागा 'वण्णओ जाव' वणमालाओ || ३५५. तेसि णं दाराणं उभओ पासि दुहओ णिसीहियाए दो-दो पगंठगा पण्णत्ता । ते णं पगंठगा एक्कतीसं जोयणाई कोसं च आयाम - विक्खंभेणं, पन्नरस जोयणाई अड्ढाइज्जेय कोसे बाहल्लेणं पण्णत्ता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा । तेसि णं पगंठगाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं पासायवडेंसगा पण्णत्ता । ते णं पासायवडेंसगा एक्कतीसं जोयणाई १. सं० पा० भविस्सइ जाव अवट्ठिए । २. चिह्नाङ्कितः पाठः 'ता' प्रती मलयगिरिवृत्तो च नैव लभ्यते । शान्तिचन्द्रसूरिणा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तौ ( पत्र ६३ ) एतस्य सूत्रस्य विषये एवं टिप्पणीकृतास्ति - एतत् सूत्रं वृत्तावदृष्टव्याख्यानमपि जीवाभिगमसूत्रबह्वादशेष दृष्टत्वाल्लिखितमस्तीति । ३. छ सकोसाई (क, ख, ट, ता) । ४. देणं अद्ध' (क, ख, ट, ठा) । ५. आयामविक्खंभेणं ( क, ख, ट, ता ) । ६. जी० ३।३००-३०६ ॥ ७. ईहामिय तहेव जहा विजए दारे जाव तवणिज्ज वालुगपत्थडा सुहफासा सस्सिरीया सरूवा पासादीया ४ तेसि णं दाराणं उभयो पासिं दुहओ णिसीहियाए दो-दो चंदणकलसपरिवाडीओ पण्णत्ताओ तहेव भाणियव्वं जाव वणमालाओ (क, ख, ग, ट, त्रि) । Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे कोसं च उड्ढं उच्चत्तेणं, पन्नरस जोयणाई अड्ढाइज्जे य कसे आयाम-विक्खंभेणं,' अब्भुग्गयमूसित-पहसिया विव वण्णओ उल्लोगा सीहासणाइं जाव' मुत्तादामा सेसं इमाए गाहाए अणुगंतव्वं, तं जहा तोरण मंगलया सालभंजिया णागदंतएसु दामाई। संघाडं पंति वीधी मिधुण लता सोत्थिया चेव ॥१॥ वंदणकलसा भिंगारगा य आदंसगा य थाला। पातीओ य सुपतिट्ठा मणोगुलिया वातकरगा य ॥२॥ चित्ता रयणकरंडा हयगय णरकंठका य। चंगेरी पडला सीहासण छत्त चामरा उवरि भोमा य ॥३॥ एवामेव सपुव्वावरेणं विजयाए रायहाणीए एगमेगे दारे असीतं-असीतं केउसहस्सं भवतीति मक्खायं ॥ ३५६. 'तेसि णं दाराणं पुरओ" सत्तरस-सत्तरस भोमा पण्णत्ता। तेसि णं भोमाणं 'भूमिभागा उल्लोया य भाणियव्वा" 'तेसि णं भोमाणं बहुमज्झदेसभाए जेते नवमनवमा भोमा, तेसि णं भोमाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं सीहासणा पण्णत्ता । सीहासणवण्णओ जाव' दामा जहा हेट्ठा । एत्थ णं अवसेसेसु भोमेसु पत्तेयं-पत्तेयं सीहासणा पण्णत्ता ॥ ३५७. तेसि णं दाराणं उवरिमागारा सोलसविधेहिं रयणेहिं उवसोभिया तं चेव जाव' छत्ताइछत्ता । एवामेव पुव्वावरेण विजयाए रायहाणीए पंच दारसता भवंतीति मक्खाया“ ॥ ३५८. विजयाए णं रायहाणीए चउद्दिसिं पंच-पंच जोयणसताइं अवाहाए, एत्थ णं चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा-'असोगवणे सत्तिवण्णवणे चंपगवणे चूतवणे"। 'पव्वेण असोगवणं, दाहिणतो होइ सत्तिवण्णवणं । अवरेणं चंपगवणं, चूयवणं उत्तरे पासे ॥१॥ १. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' संकेतितादर्शेषु पाठ- ७. जी० ३।३४६-३४६ । संक्षेपस्य भिन्ना पद्धतिरस्ति, सा चैवं विद्यते- ८. चिन्हांकितपाठस्थाने 'ता' प्रती एवं पाठोस्ति सेसं तं चेव जाव समुग्गया णवरं बहुवयणं -तेसि णं भोम्माणं अंतो बहुसमर तेसिणं भाणितव्वं । विजयाए णं रायहाणीए एगमेगे भोमाणं बहुमज्झदेसभाए। जेते णवमा-णवमा दारे असयं सेयाणं चउविसाणाणं णागवर- भोम्मा तेएसिणं भोम्मा। बहुमज्झ पत्तेयं २ केऊणं। मणिपेढिया सीहासरिठेहिं । तेसि णं दाराणं २. जी० ३।३०७-३३५ । उप्पि अट्ठमंगलगा सतसहस्सपत्तहत्थगा। ३. विजयाए णं रायहाणीए एगमेगे दारे (क, ख, ६. पुरत्थिमेणं दाहि पच्च उत्त (ता)। ग, ट, ता, त्रि)। १०. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु गाथायाः स्थाने ४. जी. ३१३३६-३३७। उल्लोया य पउमलया- एष पाठो लभ्यते-पूरस्थिमेणं असोगवणे __ भत्तिचित्ता (क, ख, ग, ट, ता, त्रि)। दाहिणेणं सत्तवण्णवणे पच्चत्थिमेणं चंपगवणे ५. जी० ३।३३८-३४५ । उत्तरेणं चूतवणे । प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ पुव्वेण ६. भद्दासणा (क, ख, ग, ट, त्रि)। असोगवणं इत्यादिरूपा गाथा पाठसिद्धा।' Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ते णं वणसंडा साइरेगाई दुवालस जोयणसहस्साइं आयामेणं, पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ता--पत्तेयं-पत्तेयं पागारपरिक्खित्ता किण्हा' किण्होभासा वणसंडवण्णओ भाणियन्वो जाव' बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति सयंति चिळंति णिसीदंति तुयटॅति रमंति ललंति कीलंति मोहंति पुरापोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कम्माणं कडाणं कल्लाणाणं कल्लाणं फल वित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ ३५६. तेसि णं वणसंडाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं पासायवडेंसगा पण्णत्ता। ते णं पासायवडेंसगा बावढि जोयणाइं अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च आयाम-विक्खंभेणं, अब्भुग्गतमूसिय-पहसिया विव 'तहेव जाव" अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता, उल्लोया पउमलयाभत्तिचित्ता भाणियव्वा । तेसि णं पासायवडेंसगाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं सीहासणा पण्णत्ता वण्णावासो सपरिवारा। तेसि णं पासायवडेंसगाणं उप्पि बहवे अमंगलगा झया छत्तातिछत्ता। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्ढीया जाव पलिओवमट्टितीया परिवसंति, तं जहा-असोए सत्तिवण्णे चंपए चूते। ते णं तत्थ 'साणं-साणं वणसंडाणं, साणं-साणं पासायवडेंसयाणं, साणं-साणं सामाणियाणं, साणं-साणं अग्गमहिसीणं, साणं-साणं परिसाणं, साणं-साणं आयरक्खदेवाणं आहेवच्चं जाव' विहरति । ३६०. विजयाए णं रायहाणीए अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव पंचवण्णेहिं मणीहिं उवसोभिए तणसद्दविहूणे जाव देवा य देवीओ य आसयंति जाव' विहरंति। ३६१. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं एगे महं उवगारियालयणे पण्णत्ते-बारस जोयणसयाइं आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसहस्साई सत्त य पंचाणउते जोयणसते किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, सव्वजंबूणयामए अच्छे जाव पडिरूवे ॥ ३६२. से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते। पउमवरवेइयाए वण्णओ, वणसंडवण्णओ जाव विहरति । से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाइं चक्कवालविक्खंभेणं उवगारियालयणसमे परिक्खेवेणं । ३६३. तस्स णं उवगारियालयणस्स चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता। इत्येव लभ्यते । ताडपत्रादर्शपि एषा गाथा ४. जी० ३।३५० । उपलब्धास्ति । रायपसेणइयवृत्ती (पृ० १८३) ५. सत्तवण्णे (क, ख, त्रि)। एषा गाथा संग्रहणीगाथात्वेन निर्दिष्टास्ति। ६. बहुवचनं प्राकृतत्वात्, प्राकृते हि वचनव्यत्ययो प्रस्तुतागमादर्शेषु यः पाठोत्र पाठान्तररूपेण भवतीति (मवृ)। उङ्कितोस्ति, स तत्र मूलपाठे विद्यते। ७. जी० ३१३५०। १. अतोने 'ता' प्रतौ च पाठसंक्षेपोस्ति-किण्हा २ ८. जी० ३।२७७-२८४,२८६-२६७ । जाव आसयंति। ६. ओवारिय° (क, ख, ग, ट, त्रि); उवकारिय २. जी० ३।२७५-२६७ । (ता)। ३. वण्णओ (ता) । जी० ३।३०७-३०६ । १०. जी. ३।२६३-२६७ । Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ जीवाजीवाभिगमे वण्णओ' तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरतो पत्तेयं-पत्तेयं तोरणा पण्णत्ता। वण्णओ॥ ३६४. तस्स णं उवगारियालयणस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव 'मणीणं फासो" । तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे मूलपासायव.सए पण्णत्ते । से णं [मूल ?] पासायवडेंसए 'बावट्टि जोयणाइं अद्धजोयणं च उड्ढे उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च आयाम-विक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसियप्पहसिते तहेव । तस्स णं [मूल ?] पासायव.सगस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव' मणिफासे उल्लोए॥ ३६५. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागे, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता। सा च ‘एगं जोयणमायामविक्खंभेणं, अद्धजोयणं" बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ।। ३६३. तीसे णं मणिपेढियाए उवरि महं एगे सीहासणे पण्णत्ते । एवं सीहासणवण्णओ सपरिवारो॥ ३६७. तस्स" णं पासायवडेंसगस्स उप्पि बहवे अट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता॥ ३६८. से णं [मूल ?] पासायवडेंसए अण्णेहिं चउहिं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायवडेंसएहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते । ते णं पासायवडेंसगा एक्कतीसं जोयणाई कोसं च उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धसोलसजोयणाई अद्धकोसं च आयाम-विक्खंभेणं, अब्भग्गतमूसियपहसिया विव तहेव" । तेसि णं पासायव.सयाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा उल्लोया । तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं सीहासणं पण्णत्तं, वण्णओ" । तेसिं परिवारभूता भद्दासणा पण्णत्ता। तेसि णं अट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता ॥ ३६६. ते णं पासायव.सका अण्णेहिं चउहिं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायव.सएहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। ते णं पासायवडेंसका 'अद्धसोलसजोयणाइं अद्धकोसं च" उड्ढं उच्चत्तेणं, देसूणाई अट्ठ जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसियपहसिया विव १. जी० ३।२८७। (ता)। २. छत्तातिछत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि); जी०३। ७. दो जोयणाई आयाम विक्खंभेणं जोयणं (क, २८८-२६१ । ३. मणीहिं उवसोभिते मणिवण्णओ गंधरसफासो ८. सव्वतो समंता मणिमयी (ता) । (क, ख, ग, ट, त्रि); जी० ३।२७७-२८४। ६. जी० ३१३३८-३४५ । ४. अत्र 'मूल' पदं लिपिदोषेण प्रमादेण वा त्रुटितं १०. एतत् सूत्रं 'ता, प्रतौ च नोपलभ्यते । प्रतीयते। प्रासादावतंसकात् पूर्व सर्वत्रापि ११. जी० ३३०७-३०६ । मूलप्रासादावतंसकः इति पाठ उपयुक्तोस्ति। १२. जी० ३।३११-३१३। सिंहासनवर्णनं च प्रागवत् राजप्रश्नीयसूत्रे (२०४,२०५) पि 'मूलपासाय- केवलमत्रापि सिंहासनमपरिवारं वक्तव्यम् वडेंसगे' इति पाठो लभ्यते । (मव)। ५. जी० ३।३०७,३०८ । १३. पण्णरसजोयणणि अड्ढातिज्जे य कोसे (ता)। ६. अद्धतेवदि जोयणाणि अद्धविक्खंभेणं जावुल्लोआ ___ ख, ट)। Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गगनगमग तच्चा चउव्विहपडिवत्ती तहेव'। तेसि णं पासायवडेंसगाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा उल्लोया। तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं पउमासणा पण्णत्ता। तेसि णं पासायवडेंसगाणं अट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता ॥ ३७०. ते णं पासायवडेंसगा अण्णेहिं चउहि तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायव.सएहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। ते णं पासायव.सका देसूणाई अट्ट जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, देसूणाई चत्तारि जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं अब्भुग्गतमूसियपहसिया विव भूमिभागा उल्लोया भद्दासणाइं उरि मंगलगा झया छत्तातिछत्ता॥ ३७१. ते णं पासायवडेंसगा अण्णेहि चउहिं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायवडेंसएहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। ते णं पासायवडेंसगा देसूणाई चत्तारि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, देसूणाई दो जोयणाइं आयाम-विक्खंभेण अब्भुग्गयमूसियपहसिया विव भूमिभागा उल्लोया पउमासणाई उरि मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता ॥ ३७२. तस्स णं मूलपासायवडेंसगस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स सभा सुधम्मा पण्णत्ता--अद्धत्तेरसजोयणाइं आयामेणं, छ सक्कोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं, णव जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसतसंनिविट्ठा अब्भग्गयसुकयवइरवेदियातोरणवररइयसालभंजिया-ससिलिट'-विसिट-लट-संठिय-पसत्थवेरुलियविमलखंभा णाणामणिकणगरयणखइय-उज्जलबहुसमसुविभत्तभूमिभागा' 'ईहामिय-उसभ-तुरग-णर-मगर-विहगवालग-किण्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलयभत्तिचित्ता खंभुग्गयवइरवेइयापरिगयाभिरामा विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ताविव अच्चिसहस्समालणीया रूवगसहस्सकलिया भिसमाणा' भिब्भिसमाणा' चक्खलोयणलेसा सहफासा सस्सिरीयरूवा"कंचणमणिरयणथूभियागा नाणाविहपंचवण्णघंटापडागपरिमंडितग्गसिहरा धवला मिरीइकवचं विणिम्मयंती लाउल्लोइयमहिया गोसीससरसरत्तचंदणदद्दरदिन्नपंचंगुलितला उवचियवंदणकलसा वंदणघडसुकयतोरण-पडिदुवारदेसभागा आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावा पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिता कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्कधूवमघमघेतगंधुद्धयाभिरामा सुगंधवरगंधगंधिया गंधवट्टिभूया अच्छरगणसंघसंविकिण्णा दिव्वतुडियसद्दसंपणाइया' अच्छा जाव पडिरूवा ॥ १. जी० ३३०७-३०६ । रमणीयश्च भूमिभागो यस्यां सा (मवृ)। २. आदर्शेषु एतत् सूत्रनै व लभ्यते । वृत्तिकारेणापि ५. थंभुग्गय (क, ग)। अस्य उल्लेखः कृतोस्ति- तदेवं चतस्रः ६. 'माणी (ग, त्रि)। प्रासादावतंसकपरिपाट्यो भवन्ति, क्वचित्तिस्र ७. माणी (ग, त्रि)। एव दश्यन्ते न चतुर्थी । वृत्तौ एतद् व्याख्यात- ८. ईहामिगउसभउरग जाव सस्सिरीयरूवा (ता)। मस्ति । ६. दिव्वतुडियमधुरसहसंणिणाइया सुरम्मा सव्व३. रायपसेणइय (सू० ३२) सूत्रे 'सुसिलिट्ठ" ___रयणामई (क, ख, ट); दिव्वतुडियमधुरसद्दइति वाक्यं स्वतन्त्रमस्ति। संपणाइया सुरम्मा सव्वरयणामई (ग, त्रि); ४. सुविभत्तचित्तरमणिज्जकुट्टिमतला (क, ख, दिव्वउडियसद्द संणिणाइया सव्वरयणामई (ता)। ग, ट, त्रि); सुविभक्तो निचितो-निविडो Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ जीवाजीवाभिगमे __ ३७३. तीसे णं सोहम्माए सभाए तिदिसि तओ दारा पण्णत्ता, तं जहा-पुरत्थिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं । ते णं दारा पत्तेयं-पत्तेयं दो-दो जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, एगं जोयणं विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं सेया वरकणगथूभियागा 'दारवण्णओ जाव' वणमालाओ२ ॥ ३७४. तेसि' णं दाराणं पुरओ ‘पत्तेयं-पत्तेयं मुहमंडवे पण्णत्ते" ते णं मुहमंडवा अद्धतेरसजोयणाई आयामेणं, 'छजोयणाई सक्कोसाइं" विक्खंभेणं, साइरेगाइं दो जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसंनिविट्ठा जाव' उल्लोया भूमिभागवण्णओ। ३७५. तेसि णं मुहमंडवाणं उवरि पत्तेयं-पत्तेयं अट्ठमंगलगा ‘झया छत्ताइछत्ता" ३७६. तेसि णं मुहमंडवाणं पुरओ ‘पत्तेयं-पत्तेयं पेच्छाघरमंडवे पण्णत्ते" ते णं पेच्छाघरमंडवा अद्धतेरसजोयणाई आयामेणं', 'छ जोयणाई सक्कोसाइं विक्खंभेणं, साइरेगाइं° दो जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं जाव"मणीणं फासो॥ ३७७. तेसि णं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं 'वइरामए अक्खाडगे पण्णत्ते"। तेसि णं वइरामयाणं अक्खाडगाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता। ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणमेगं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ॥ ___ ३७८. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं 'सीहासणे पण्णत्ते"। सीहासणवण्णओ सपरिवारो"। ३७९. तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं उप्पि अट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता॥ ३८०. तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ 'पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता। ताओ णं मणिपेढियाओ दो-दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ १. जी. ३।३००-३०६ । प्रतो पूर्ववर्तिसूत्रे 'जाव सतसहस्सपत्तहत्थगा' २. जाव वणमालादारवण्णओ (क, ख, ग, ट, इति पाठसमाहारोस्ति । त्रि)। ८. तिदिसिं तओ पेच्छाघरमंडवा पण्णत्ता (क, ख, ३. अतः पूर्वं आदर्शेषु एक अतिरिक्तसूत्रं दृश्यते- ट)। तेसिणं दाराणं उप्पि बहवे अट्टमंगला झया .सं० पा०-आयामेणं जाव दो। छत्ताइछत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि); तेसि णं १०. जी० ३।३७०-३७४,३०८,२७७-२८४ । दाराणं उप्पि अट्ठमंगला जाव सतसहस्सपत्त- ११. वइरामया अक्खाडगा पण्णत्ता (क, ख, ट); हत्था सव्वरयणामया अच्छा जाव पडि वइरामया अक्खवाडगा पण्णत्ता (ग, त्रि)। (ता)। १२. सीहासणा पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४. तिदिसिं तओ मुहमंडवा पण्णत्ता (क, ख, ग, १३. जी० ३।३०६-३१३, ३३६-३४५। ट, त्रि)। १४. जाव दामा अपरिवारा (क, ख, ट); जाव ५. छ सकोसाइं जोयणाइं (ता)। दामा सपरिवारो (ग, त्रि); जाव दामा ६. जी० ३।३७२,३७३, ३०८, २७७-२८४ । (ता)। ७. पण्णत्ता सोत्थिय जाव मच्छ (ग,त्रि); पण्णत्ता १५. तिदिसि तओ मणिपेढियाओं पण्णत्ताओ (क, तं जहा सोत्थिय जाव मच्छ (मव); ता' ख, ग, ट, त्रि)। . . . Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३५ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती अच्छाओ जाव पडिरूवाओ॥ ३८१. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं 'चेइयथभे पण्णत्ते"। ते णं चेइयथभा 'दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, सातिरेगाइं दो जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं', सेया संखंक-कुंद-दगरय-अमयमहियफेणपुंजसण्णिकासा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ।। ३८२. तेसि णं चेइयथूभाणं उप्पि अट्ठमंगलगा बहुकिण्हचामरझया छत्तातिछत्ता ॥ ३८३. तेसि णं चेतियथभाणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। ३८४. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं चत्तारि जिणपडिमाओ जिणुस्सेहपमाणमेत्ताओ' पलियंकणिसण्णाओ थूभाभिमुहीओ चिट्ठति,' तं जहा-उसभा वद्धमाणा चंदाणणा वारिसेण ॥ ३८५. तेसि णं चेइयथूभाणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं मणिपेढियाओ दो-दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लणं सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। ३८६. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं चेइयरुक्खे पण्णत्ते, ते णं चेइयरुक्खा अट्ठजोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धजोयणं उव्वेहेणं, दो जोयणाई खंधी, अद्धजोयणं विक्खंभेणं, छजोयणाई विडिमा, बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणाई आयाम-विक्खंभेणं", साइरेगाइं अट्ठजोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ता॥ ३८७. तेसि णं चेइयरुक्खाणं अयमेतारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा–'वइरामयमूलरययसुपतिट्टितविडिमा" रिट्ठामयकंद-वेरुलियरुइल-खंधा सुजातवरजातरूवपढमगविसालसाला नाणामणिरयणविविधसाहप्पसाह - वेरुलियपत्त- तवणिज्जपत्तवेंटा जंबूणयरत्तमउय १. चेइयथूभा पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, ता, त्रि, प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तो 'सापि चाई योजनं मव)। विष्कम्भेण' इति व्याख्यातम्, किन्तु एतत् २. साइरेगाइं दो जोयणाई उडढं उच्चत्तेणं दो सम्यग् न प्रतीयते । रायपसेणइय (सू० २२७ जोयणाई आयामविक्खंभेणं (ता, मव)। वृत्ति पृ० २१६) 'अष्टौ योजनानि विष्कम्भेण' ३. "झया पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि)। इति व्याख्यातमस्ति तथा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति४. मणिपीढियाणं (त्रि)। वृत्तावपि (पत्र ३३२) 'अष्टो योजनानि ५. मेत्तीओ (ता)। आयामविष्कम्भाभ्यां' इति व्याख्यातं दृश्यते, ६. संपलियंक' (ता)। अतः 'अट्ट जोयणाई' इति पाठः एव समी७. सन्निविट्ठाओ चिळंति (क, ग, त्रि); चीनोस्ति। सन्निखित्ताओ चिट्ठति (ख, ट, राय० सू० १०. विक्खंभेणं (ता, मवृ)। २२५)। ११. वइरामयमूला रययसुपतिट्ठिता विडिमा (क, ८. पुरओ तिदिसिं (क, ख, ग, ट, त्रि)। ख, ग, ट, त्रि)। ६. अद्धजोयणाई (क, ग, ट, त्रि) । मलयगिरिणा १२. रिट्ठामयविउलकंद (क, ख, ग, ट, ता, त्रि)। Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमै सकमालपवालपल्लववरंकुरधरा' विचित्तमणि रयणसुरभिकुसुमफलभरणमियसाला सच्छाया सप्पभा सस्सिरीया' सउज्जोया अधियं णयणमणणिव्वुतिकरा अमयरससमरसफला पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा॥ ३८८. ते णं चेइयरुक्खा अण्णेहिं बहूहिं तिलय-लवय-छत्तोवग-सिरीस-सत्तिवण्णदहिवण्ण-लोद्ध-धव-चंदण-[अज्जुण ? ] '-नीव-कुडय-कर्यब-पणस-ताल-तमाल-पियाल-पियंगुपारावय-रायरुक्ख-नंदिरुखेहि सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता॥ ३८६. ते णं तिलया जाव नंदिरुक्खा 'कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला मूलमंतो" कंदमंतो जाव' सुरम्मा ॥ ३६०. ते णं तिलया जाव नंदिरुक्खा अण्णाहिं बहूहि पउमलयाहिं जाव सामलयाहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। ताओ णं पउमलयाओ जाव सामलयाओ निच्चं कुसुमियाओ जाव पडिरूवाओ। ३६१. तेसि णं चेइयरुक्खाणं उप्पि अट्ठमंगलगा 'झया छत्तातिछत्ता" ॥ ३६२. तेसि णं चेइयरुक्खाणं पुरओ ‘पत्तेयं-पत्तेयं'' मणिपढिया पण्णत्ता । ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ॥ ३६३. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं महिंदज्झए पण्णत्ते। ते णं महिंदज्झया अट्ठमाइं जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उव्वेहेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, वइरामय-वट्टलट्ठसंठिय-सुसिलिट्ठपरिघट्ठमट्ठसुपतिट्ठिता विसिट्ठा अणेगवर-पंचवण्णकुडभीसहस्स-परिमंडियाभिरामा वा उद्धयविजयवेजयंतीपडाग-छत्तातिछत्तकलिया तंगा गगणतलमणलिहंतसिहरा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। ३६४. तेसि णं महिंदज्झयाणं उप्पि अट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता। ३६५. तेसि णं महिंदज्झयाणं पुरओ ‘पत्तेयं-पत्तेयं णंदा पुक्खरिणी पण्णत्ता । ताओ णं पुक्खरिणीओ अद्धतेरसजोयणाई आयामेणं 'छ जोयणाई सक्कोसाइं" विक्खंभेणं, दस१. जंबूणयरत्तमउयसुकुमालवालपल्लवसोभंतवरं - ५. मूलवंतो (क, ख, ग, ट, त्रि)। कुरग्गसिहरा (क,ख,ग,ट,त्रि); जंबूणय रत्तम- ६. जी०३।२७४-२७६ । उयसुकुमालकोमलपवालपल्लववरंकुरधरा (ता); ७. जी० ३।२६८ । क्वचित्पाठः 'जंबूणयरत्तमउयसुकुमालकोमल- ८. जी० ३।२६८ । पल्लवंकरग्गसिहरा' (म)। ६. उप्पि बहवे (क, ख, ग, ट, त्रि)। २. समिरीया (ख)। १०. जाव हत्थगा (ता); जाव सहस्सपत्तहत्थगा ३. ५८३ सूत्रे 'अज्जुणा' इति पदं दृश्यते । औप- सव्वरयणामया जाव पडिरूवा (मव) । पातिकेपि (सूत्र ६) 'चंदणेहि अज्जुणेहि' इति ११. तिदिसिं तओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। पाठो लभ्यते। १२. गगणतलमभिलंघमाणसिहरा (क, ख, ग, ट, ४. 'ता' प्रतो 'बहहिं तिलएहि लवएहिं' इत्यादीनि ता, त्रि)। सर्वाणि वृक्षवाचकानि पदानि तृतीया बहुवच- १३. तिदिसि तओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। नान्तानि दृश्यन्ते । १४. छ सकोसाइं जोयणाई (ता)। Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ३३७ जोयणाइं उव्वेहेणं, अच्छाओ सण्हाओ पुक्खरिणीवण्णओ, पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ताओ पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ वण्णओ' ॥ __ ३६६. तासि णं णंदाणं पुक्खरिणीणं तिदिसिं तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता। तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं 'वण्णओ, तोरणा भाणियव्वा जाव' छत्तातिच्छत्ता" ॥ ३६७. सभाए णं सुहम्माए छ मणोगुलियासाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तं जहापुरथिमेणं दो साहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं दो साहस्सीओ, दाहिणणं एगा साहस्सी, उत्तरेणं एगा साहस्सी । तासु णं मणोगुलियासु बहवे सुवण्णरुप्पामया फलगा पण्णत्ता। तेसु णं सुवण्णरुप्पामएसु फलगेसु बहवे वइरामया णागदंतगा पण्णत्ता । तेसु णं वइरामएसु नागदंतएसु बहवे किण्हसुत्तवद्धा वग्घारितमल्लदामकलावा जाव सुक्किलसुत्तबद्धा वग्घारितमल्लदामकलावा । ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा जाव' चिट्ठति ॥ ३६८. सभाए णं सुहम्माए छ गोमाणसीसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पुरथिमेणं दो साहस्सीओ, एवं पच्चत्थिमेण वि, दाहिणणं सहस्सं एवं उत्तरेण वि । तासु णं गोमाणसीसु वहवे सुवण्णरुप्पामया फलगा पण्णत्ता' । 'तेसु णं सुवण्णरुप्पामएसु फलगेसु बहवे वइरामया नागदंतगा पण्णत्ता । तेसु णं वइरामएसु नागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कया पण्णत्ता । तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वेरुलियामईओ धूवघडियाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं धूवघडियाओ कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूवमघमघेतगंधुद्धयाभिरामाओ जाव' घाणमणणिव्वुइकरेणं गंधेणं ते पएसे सव्वतो समंता आपूरेमाणीओ-आपूरेमाणीओ सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणीओ-उवसोभेमाणीओ चिठ्ठति ॥ ३९६. सभाए' णं सुधम्माए अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव" मणीणं फासो उल्लोए पउमलयाभत्तिचित्ते जाव" सव्वतवणिज्जमए अच्छे जाव पडिरूवे ॥ ४००. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं 'महं एगा'१२ मणिपेढिया पण्णत्ता। सा णं मणिपेढिया दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा॥ १. जी० ३।२८६ । वण्णओ जाव पडिरूवाओ ६. 'ता' प्रतौ एतस्य सूत्रस्य स्थाने सूत्रद्वयं (क, ख, ग, ट, त्रि)। लभ्यते-सभाए णं सुहम्माए उल्लोया य २. जी० ३।२८७-२६० । पउमलताभत्तिचित्ता जाव सामल सव्वतवणि३. पुरतो पत्तेयं-पत्तेयं तोरणे पं वण्णओ (ता)। ज्जमए जाव पडि। सभाए णं सु अंतो बहु४. गुलिकासहस्राणि (मवृ); मुद्रितवृत्ती ‘मनो' समरमणिज्जे भूमिभागे जाव मणि। मलयगिरिइति कोष्ठके मुद्रितमस्ति, किन्तु हस्तलिखित- वृत्तावपि सूत्रद्वयसंकेतो दृश्यते-'सभाए णं वृत्तिषु 'गुलिका' इत्येव पदमस्ति । सुहम्माए' इत्यादि उल्लोकवर्णनं 'सभाए णं ५. जी० ३।३०२। सुहम्माए' इत्यादि भूमिभागवर्णनं च प्राग्वत । ६. गोमाणसिया साहस्सीओ (ता, राय० सू० १०. जी. ३.२७७-२८४ । २३६)। ११. जी. ३१३०८। ७. सं० पा०—पण्णत्ता जाव तेसु । १२. एगा महं (क, ख, ग, ट, त्रि)। ८. जी० ३।३०२। Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ४०१. तीसे गं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं 'महं एगे" माणवए नाम चेइयखंभे पण्णत्ते - अट्टमाई जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उव्वेहेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, 'छकोडीए छल से " छविग्गहिते वइरामयवट्टलट्ठसंठिय-सुसिलिट्ठपरिघट्टमट्ठसुपतिट्ठिते एवं जहा महिंदज्झयस्स वण्णओ जाव' पडिरूवे || ३३८ ४०२. तस्स णं माणवकस्स चेतियखंभस्स उवरि छक्कोसे ओगाहित्ता, हेट्ठावि छक्को वज्जेत्ता, मज्झे अद्धपंचमेसु जोयणेसु एत्थ णं बहवे सुवण्णरुप्पमया फलगा पण्णत्ता । तेसु णं सुवण्णरुपमएसु फलएसु बहवे वइरामया णागदंता पण्णत्ता । तेसु णं वइराम सु नागदंत बहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता । तेसु णं रययामयसिक्कसु बहवे वइरामया गोलवट्टसमुग्गका पण्णत्ता । तेसु णं वइरामएस गोलवट्टसमुग्गएसु बहुयाओं जिण-सकहाओ संनिक्खित्ताओ चिट्ठति, जाओ णं विजयस्स देवस्स अण्णेसि च बहूणं वाणमंतराणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ वंदणिज्जाओ पूर्याणिज्जाओ माणणिज्जाओ सक्कारणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेतियं पज्जुवासणिज्जाओ ।। ४०३. माणवगस्स णं चेतियखंभस्स उवरि अट्ठट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता ॥ ४०४. तस्स णं माणवकस्स चेतियखंभस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं 'महं एगा " मणिपेढिया पण्णत्ता । सा णं मणिपेढिया 'जोयणं आयाम - विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं" सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ४०५. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं 'महं एगे सीहासणे पण्णत्ते सपरिवारे " ॥ ४०६. तस्स णं माणवगस्स चेतियखंभस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता - जोयणं आयाम - विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ४०७. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं महं एगे देवसयणिज्जे पण्णत्ते । तस्स णं देवसयणिज्जस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - नाणामणिमया पडिपादा, सोवणिया पादा, नाणामणिमया पायसीसा, जंबूणयमयाई गत्ताई, वइरामया संधी, णाणामणिमए वेच्चे', रययामई तूली, लोहियक्खमया बिब्बोयणा, तवणिज्जमई गंडोवहा - णिया । से णं देवसयणिज्जे सालिंगणवट्टिए" उभओ बिब्बोयणे दुहओ उण्णए मज्भे य १. x (क, ख, ग, ट, त्रि, राय० सू० २३९ ) । २. छअंसे छकोडीए (ता) । ३. जी० ३।३६३, ३६४ । ४. बहवे (क, ख, ग, ट, त्रि) । ५. ताओ (ता, राय० सू० २४० ) । ६. एगा महं ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ७. दो जोयणाई आयामविवखंभेणं जोयणं बाह(क, ख, ग, ट, त्रि ) ; अस्या एव प्रतिपत्तेः ३६२ सूत्रे तथा ४०६ सूत्रेपि 'जोयणं, अद्धजोयणं' इति संवादिपाठो लभ्यते । स्वीकृतपाठस्याधारोस्ति 'ता' प्रतिर्वृत्तिश्च । ८. एवं मद्दं सीहासणपण्णत्ते सीहासणवण्णओ (क, ख, ग, ट, त्रि); जी० ३१३३८-३४५ । ६. विच्चे (क, ख, ग ) ; तिच्चे (ट); चिच्चे (त्रि) । १०. क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु 'सालिंगणवट्टिए' इति पदं 'मज् णयगंभीरे' इति वाक्यानन्तरमस्ति । Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ३३६ गंभीरे गंगापुलिणवालुया-उद्धालसालिसए 'ओयवियखोमदुगुल्लपट्ट' पडिच्छयणे' आइणगरूत-बूर-णवणीयतूल फासे सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुयसंवुते सुरम्मे" पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ ४०८. तस्स णं देवसयणिज्जस्स उत्तरपुरथिमेणं, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता-जोयणमेगं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं वाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ।। ४०६. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि ‘एत्थ णं 'खुड्डए महिंदज्झए" पण्णत्ते। ‘पमाणं वण्णओ" जो महिंदज्झयस्स"। - ४१०. तस्स णं खडुमहिंदज्झयस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स महं एगे चोप्पालं" नाम पहरणकोसे पण्णत्ते-'सव्ववइरामए अच्छे जाव पडिरूवे"। तत्थ णं विजयस्स देवस्स बहवे फलिहरयणपामोक्खा पहरणरयणा संनिक्खित्ता चिट्ठति-उज्जला सुणिसिया, सुतिक्खधारा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ ४११. तीसे णं सभाए सुहम्माए उप्पि बहवे अट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता। ४१२. सभाए णं सुधम्माए उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं 'महं एगे सिद्धायतणे पण्णत्ते-अद्धतेरस जोयणाई 'आयामेणं, छ जोयणाइं सकोसाइं विक्खंभेणं, नव जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं जाव गोमाणसिया वत्तव्वया जा चेव सहाए सुहम्माए वत्तव्वया सा चेव निरवसेसा भाणियव्वा तहेव दारा मुहमंडवा पेच्छाधरमंडवा झया थूभा चेइयरुक्खा महिंदज्झया णंदाओ पुक्खरिणीओ 'सुधम्मासरिसप्पमाणं मणगुलिया दामा गोमाणसी धूवघडियाओ" तहेव भूमिभागे उल्लोए य जाव मणिफासो' । ४१३. तस्स णं सिद्धायतणस्स बहमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेडिया पण्णत्ता-दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं वाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव १. ओतवित° (ता)। (क, ख, ग, ट, त्रि)। २. पडिच्छायणे (ख) । ६. खुड्डागमहिंद" (ता)। ३. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु चिन्हाङ्कित- १०. चुपाले (क, ख, ट); चुप्पालए (ग, त्रि); पाठस्य क्रम भेदो दृश्यते -सुविरइयरयत्ताणे चोप्पालए (ता)। ओयवियखोमदुगुल्लपट्ट-पडिच्छयणे रत्तंसुय- ११. ४ (क, ख, ग, ट, ता, त्रि)। संवते सुरम्मे आइणग-रूत-बूर-णवणीय-तूल- १२. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु प्रायः सर्वत्र ‘एगे फासे। महं' इति पाठो लिखितोस्ति । ४. महई (त्रि)। १३. जी० ३।३७२-३६६ । ५. एग महं (क, ख, ग, ट, त्रि)। १४. तओ य सुधम्माए जहा पमाणं मणगुलियाणं ६. खुड्डागमहिंदझए (ता)। (त्रि)। ७. जी० ३।३६३,३६४ । १५. धूमघडियाओ (क, ख)। ८. अद्धमाइं जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं अद्धकोसं १६. तं चेव सभाए सुधम्माए वत्तव्वता सच्चेव उव्वेहेणं अद्धकोसं विक्खीणं वेरुलियामयवद्र- णिरवयवा पमाणादीया जाव गोमाणसियाओ लट्रसंठिते तहेव जाव मंगला झया छत्तातिछत्ता (ता)। Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० जीवाजीवाभिगमे पडिरूवा ॥ ४१४. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं महं एगे देवच्छंदए पण्णत्ते-दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, साइरेगाइं दो जोयणाई उड्ढ़ उच्चत्तेणं, सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे॥ ४१५. तत्थ णं देवच्छंदए अटुसतं जिणपडिमाणं जिणुस्सेहप्पमाणमेत्ताणं संणिखित्तं चिट्ठइ । तासि णं जिणपडिमाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-तवणिज्जमया हत्थतल-पायतला,' अंकामयाइं णक्खाइं अंतोलोहियक्खपरिसेयाई, 'कणगामया पादा, कणगामया गोप्फा,२ कणगामईओ जंघाओ, कणगामया जाण, कणगामया ऊरू, कणगामईओ गायलट्ठीओ, तवणिज्जमईओ णाभीओ, रिट्ठामईओ रोमराईओ, तवणिज्जमया चूचुया', तवणिज्जमया सिरिवच्छा 'कणगमईओ बाहाओ, कणगमईओ पासाओ, कणगमईओ गीवाओ, रिट्ठामए मंसू” सिलप्पवालमया ओट्ठा, फालियामया' दंता तवणिज्जमईओ जीहाओ, तवणिज्जमया तालुया, कणगमईओ णासियाओ', अंतोलोहितक्खपरिसेयाओ, अंकामयाणि अच्छीणि अंतोलोहितक्खपरिसेयाई रिट्ठामईओ ताराओ रिट्ठामयाइं अच्छिपत्ताई, रिट्टामईओ भमुहाओ, कणगामया कवोला, कणगामया सवणा, कणगामयणिडालपट्टियाओ, वइरामईओ सीसघडीओ तवणिज्जमईओ केसंतकेसभूमीओ" रिट्ठामया उवरिमुद्धजा ॥ ४१६. तासि णं जिणपडिमाणं पिट्ठओ पत्तेयं-पत्तेयं छत्तधारपडिमाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं छत्तधारपडिमाओ हिमरययकुंदेंदुप्पगासाइं" सकोरेंटमल्लदामधवलाई आतपत्ताई" सलील धारेमाणीओ"-धारेमाणीओ चिट्ठति ।। ४१७. तासि णं जिणपडिमाणं उभओ पासि 'दो-दो'५ चामरधारपडिमाओ १. ४ (क, ख, ग)। व्याख्यातः । २. चिन्हितः पाठः प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ राय- २. तारगाओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। पसेणइयसूत्रस्य वृत्तावपि (पृ० २३०) व्या- ६. सवणा अंतोलोहियक्खपरि (ता)। ख्यातो नास्ति। १०. "णिडालवट्टा (क, ख, ग, ट); "णिडाला वट्टा ३. चुच्चुया (क, ग, त्रि); चुचुया (ख,ट)। (त्रि)। ४. चिन्हितः पाठः प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ रायपसे- ११. केसंतभूमीओ (ता)। णइयसूत्रे (सू० २५४) तवृत्तावपि नास्ति १२. हिमरययकुंदेंदुसप्पकासाइं (क, ख, ग, ट, व्याख्यातः। त्रि); हिमरयतकुमुदकुंदेंदुसण्णिकासाई (ता)। ५. फलिहामया (क, ख, ग, त्रि)। १३. मायावत्ताई (क)। ६. णासाओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। १४. ओहारेमाणीओ २ (क, ख, ग, ट, त्रि)। ७. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' प्रतिषु 'पुलगमईओ १५. पत्तेयं-पत्तेयं (क, ख, ग, ट, त्रि); प्रस्तुतवृत्ती दिदीओ' इति पाठोस्ति । 'ता' प्रतौ रिटामईओ रायपसेणइयवृत्तौ (पृ० २३२) च द्वे द्वे' इति ताराओ' इति पाठानन्तरं 'पुलगमईओ' इति व्याख्यातमस्ति । ताडपत्रीयादर्श दो दो' पदं लभ्यते । प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ रायपसेणइय- इति पाठः उपलब्धोस्ति, तेनैष पाठः मुले सूत्रे (सू० २५४) तद्वृत्तावपि नास्ति स्वीकृतः । Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउठिवहपडिवत्ती ३४१ पण्णत्ताओ । ताओ णं चामरधारपडिमाओ 'चंदप्पह-वइर-वेरुलिय-नाणामणिरयणखचितचित्तदंडाओ" सुहुमरयतदीहवालाओ संखंक-कुंद-दगरय-अमतमथितफेणपुंजसण्णिकासाओ धवलाओ चामराओ 'गहाय सलील वीजेमाणीओ" चिट्ठति ।। ४१८. तासि णं जिणपडिमाणं पुरओ दो-दो नागपडिमाओ, दो-दो जक्खपडिमाओ, दो-दो भूतपडिमाओ, दो-दो कुंडधारपडिमाओं संनिक्खित्ताओ चिट्ठति-सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। ४१६ तत्थ' णं देवच्छंदए जिणपडिमाणं पुरओ अट्ठसतं घंटाणं अट्ठसतं वंदणकलसाणं अट्ठसतं भिंगारगाणं एवं आयंसगाणं थालाणं पातीणं सुपतिट्ठकाणं मणगुलियाणं वातकरगाणं चित्ताणं रयणकरंडगाणं हयकंठगाणं गयकंठगाणं नरकंठगाणं किण्णरकंठगाणं किंपुरिसकंठगाणं महोरगकंठगाणं गंधव्वकंठगाणं उसभकंठगाणं, पुप्फचंगेरीणं एवं मल्ल-चुण्ण-गंध-वत्थाभरणचंगेरीणं सिद्धत्थचंगेरीणं लोमहत्थचंगेरीणं पुप्फपडलगाणं जाव लोमहत्थपडलगाणं सीहासणाणं छत्ताणं चामराणं, तेल्लसमुग्गाणं कोट्टस मुग्गाणं पत्तसमुग्गाणं चोयसमुग्गाणं तगरसमुग्गाणं एलासमुग्गाणं हरियालसमुग्गाणं हिंगुलयसमुग्गाणं मणोसिलासमुग्गाणं अंजणसमुग्गाणं, अट्ठसयं झयाणं, अट्ठसयं धूवकडुच्छ्याणं संनिक्खित्तं चिट्ठति ॥ ४२०. तस्स णं सिद्धायतणस्स उप्पि बहवे अट्ठट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता ॥ १. चंदप्पभवइरवेरुलियणाणामणिकणगरयण दर्शष तासि णं जिणपडिमाणं पुरतो असतं' विमलमहरिहतवणिज्ज्ज्ज लविचित्तदंडाओ एवं पाठो लभ्यते। चिल्लियाओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। ६. अतोग्रे 'ता' प्रतौ संग्रहणीगाथाद्वयं लभ्यते२. एष पाठः क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु 'संखक- चंदणकलसा भिंगारा, चेव होंति थालाओ। __ कुंद' इति पाठानन्तरं विद्यते। पातीओ सुपतिढा, मणगुलिया वातकरगा य ॥१॥ ३. सलीलं ओहारेमाणीओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। चित्ता रयणकरंडा, हयगयणरकंठका य चंगेरी॥ वत्तौ चामराणि गहीत्वा सलील वीजयन्त्यः' पडला सीहासण छत्त, चामरा समुग्गग झया य ॥२॥ इति व्याख्यातमस्ति । 'ता' प्रतावपि वृत्ति- वत्तावपि एतद् गाथाद्वयं उल्लिखितमस्ति, अत्र संवादी पाठोस्ति । ततः स एव मूले स्वीकृतः । सङ्ग्रहणी गाथा४. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु एतावान् चंदणकलसा भिंगारगा य, आयंसगा य थाला य । अतिरिक्तः पाठो लभ्यते-'विणओणयाओ पाईओ सुपइट्टा, मणगुलिया वायकरगा य ॥शा पायवडियाओ पंजलीउडाओ' । एतत् पाठान्तरं चित्ता रयणकरंडा, हयगयणरकंठगा य चंगेरी। 'ता' प्रती नास्ति उपलब्धम । वृत्तौ राय- पडला सीहासण छत्त चामरा समुग्गय झया य ॥२॥ पसेणइय (सू० २५७) सूत्रे तद् वृत्तावपि- ७. सं० पा०-हयकंठगाणं जाव उसभकंठगाणं नास्ति। पुप्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थगचंगेरीणं पूफ्फ५. 'ता' प्रतौ तत्थ णं देवच्छंदए असतं' इति पडलगाणं अट्ठसयं तेल्लसमुग्गाणं जाव धूवकडुपाठोस्ति, वृत्तौ च 'तस्मिन् देवच्छन्दके जिन च्छयाणं। प्रतिमानां पुरतोऽष्टशतं' इति व्याख्यातमस्ति । ८. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु अतिरिक्तः वृत्तिव्याख्यानुसारी पाठ एव स्वीकृतः । शेषा- पाठी लभ्यते-उत्तिमागारा सोलसविहेहिं Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ४२१. तस्स णं सिद्धायतणस्स णं उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगा उववायसभा पण्णत्ता 'जहा सुधम्भा तहेव जाव गोमाणसीओ उववायसभाए वि दारा मुहमंडवा उल्लोए भूमिभागे तहेव जाव' मणिफासो" 11 ४२२ तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स वहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता - जोयणं आयाम - विक्खंभेणं, अद्धजोयणं वाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३४२ ४२३. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं महं एगे देवसयणिज्जे पण्णत्ते । तस्स देवसय णिज्जरस वण्णओ || ४२४. उववायसभाए णं उप्पि अट्ठट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता' ॥ ४२५. तीसे णं उववायसभाए उत्तरपुरत्थि मेणं, एत्थ णं महं एगे हरए पत्ते । से णं हरए 'अद्धतेरसजोयणाई आयामेणं, छ जोयणाई सक्कोसाई विवखंभेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं, अच्छे सहे वण्णओ जहेव णंदाणं पुक्खरिणीण जाव' तोरणवण्णओ" ।। ४२६. तस्स णं हरयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगा अभिसेयसभा पण्णत्ता जहा सभा धम्मा तं चैव निरवसेसं जाव गोमाणसीओ भूमिभाए उल्लोए तहेव || ४२७. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढया पण्णत्ता - जोयणं आयाम - विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिवा || ४२८. तीसे गं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं महं एगे सीहासणे पण्णत्ते सीहासणवण्णओ' अपरिवारों ॥ ४२६. तत्थ णं विजयस्स देवस्स सुबहु अभिसेकभंडे" संनिक्खित्ते चिट्ठति ।। ४३०. अभिसेयसभाए उप्पि 'अट्टमंगलगा झया छत्तातिछत्ता " ॥ ४३१. तीसे णं अभिसेयसभाए उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगा अलंकारियसभा रयणेहि उवसोभिया तं जहा रयणेहिं जाव रिट्ठेहि । १. जी० ३।३७२-३६६ । २. पमाण जहा (ता) । ३. जी० ३।४०७ । सधम्मसभाए जाव वण्णगा ४. छत्तातिछत्ता जाव उत्तिमागारा ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ५. जी० ३।३६५, ३६६ । ६. आयाम विक्खंभेणं उब्वेधो वण्णओ जहा णंदाए पुक्खरणीए से गाए पयुमवणसंड वणओ जाव सति । तस्स णं हरतस्स तिदिसि ततो तिसोमा तेसि णं तिसो पुरतो पत्तेयं तोरण वण्णओ (ता) । ७. जी० ३।३७२-३६६ । ८. जी० ३।३११-३१३ । ६. परिवारो (क, ग ) ; सपरिवारं ( ता ) ; सपरिवारो ( त्रि); वृत्तिकृता 'अपरिवारो' इति पाठ एव व्याख्या तोस्ति - सिंहासनवर्णक: प्राग्वत्, नवरमत्र परिवारभूतानि भद्रासनानि न वक्तव्यानि । १०. अभिसेक्के भंडे (ख, ग, ता, त्रि) । ११. अट्ठट्ठमंगलए जाव उत्तिमागारा सोलसविधेहि (क, ख, ग, ट, त्रि); अट्ठट्टमं जाव हत्या (ता) | Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्विहपडिवत्ती पण्णत्ता, अभिसेयसभा वत्तव्वया 'जाव' सीहासणं" अपरिवारं ॥ ४३२ तत्थ णं विजयस्स देवस्स सुबह अलंकारिए भंडे संनिक्खित्ते चिट्ठति ॥ ४३३. अलंकारियसभाए उप्पि अट्ठट्ठमंगलगा झया छत्ताइछत्ता ॥ ४३४. तीसे णं अलंकारियसभाए उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगा ववसायसभा पण्णत्ता, अभिसेयसभा वत्तव्वया जाव सीहासणं अपरिवार* ॥ ४३५. तत्थ णं विजयस्स देवस्स महं एगे पोत्थयरयणे संनिक्खित्ते चिट्ठति । तस्स णं पोत्थयरयणस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - रिट्ठमईओ कंबियाओ' तवणिज्जए' दोरे 'णाणामणिमए गंठी अंकमयाई पत्ताई" वेरुलियमए लिप्पासणे' तवणिज्जमई संकला रिट्ठामए छादणे' रिट्ठामई मसी, वइरामई लेहणी 'रिट्ठामयाई अक्खराई " धम्मिए लेक्खे" ॥ ४३६. ववसायसभाए णं उप्पि अट्ठट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता ॥ ४३७. तीसे” णं ववसायसभाए उत्तरपुरत्थिमेणं महं एगे बलिपीढे पण्णत्ते-दो जोयणाई आयाम विक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं, सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे || ४३८. तस्स णं बलिपीढस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगा णंदापुक्खरिणी पण्णत्ता, जं चेव माणं" हरयस्स, तं चैव सव्वं ॥ विजयदेवाधिगारो ४३९. तेणं कालेणं तेणं समएणं विजए देवे विजयाए रायहाणीए उववातसभाए देवणिज्जंसि देवदूतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए " विजयदेवत्ताए उaaणे ॥ १. जी० ३।४२६-४२८ । २. भाणियव्वा जाव गोमाणसीओ मणिपेढियाओ जहा अभिसेसभाए उप्पि सीहासणं ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ३. सपरिवारे (ता) । ४. सपरिवारं ( क ); सपरिवारो (ता) । ५. कंबियाओ रयतामयाई पत्तकाई रिट्ठामयाई अक्खराई (क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. रजतमय: ( वृ ) | ७. णाणामणिमए गंठी (क, ख, ग, ट, त्रि); अंकमयाई पत्तगाई णाणामणिमए गंठी (ar) i ८. लिवास (ख, ता ) । ६. छंदणे (क, ग, ट, ता ) । १०. x ( क, ख, ग ट त्रि ) । ११. सत्थे (क, ख, ग, टत्रि ) 1 ३४३ १२. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु ४३७, ४३८ सूत्रयोः क्रमभेद: पाठभेदश्च वर्तते - तीसे णं ववसायसभाए णं उत्तरपुरत्थिमेणं एत्थ णं एगा महं नंदा पुक्खरिणी पण्णत्ता । जं चेव पमाणं हरयस्स तं चैव सव्वं । तीसे णं नंदाए पुक्खरिणीए उत्तरपुरत्थि मेणं, एत्थ णं एगे महा बलिपेढे पण्णत्ते दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं सव्वरयतामए अच्छे जाव पडिरूवे । 'ता' प्रतो अनयोर्द्वयोः सूत्रयोः स्थाने एकमेव सूत्रमस्ति - तीसे णं ववसायसभाए उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं वलिपेढे णामं पेढे पं दो जोयणाई आयामवि जोयणं बा सव्वरतणामए अच्छे पडि । १३. जी० ३।४२५ । १४. बोंदी (क, ख, ग, ट, त्रि) । Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ४४०. तए णं से विज देवे अहुणोववण्णमेत्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति [ तं जहा - आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए 'आणापाणुपज्जत्तीए भासमणपज्जत्ती " ] ॥ ४४१. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्ति भावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - 'कि मे पुव्वि करणिज्जं ? किं मे पच्छा करणिज्जं ? किं मे पुव्वि सेयं ? किं मे पच्छा सेयं " ? किं मे 'पुव्विपि पच्छावि" हिताए सुहाए खमाए णिस्सेयसाए' आणुगामियत्ताए भविस्सति ॥ ४४२. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स सामाणियपरिसोववण्णगा देवा विजयस्स देवस्स इमं एतारूवं अज्झत्थियं चितियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं समुप्पण्णं समभिजाणित्ता जेणेव विजए देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता विजयं देवं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पि - याणं विजयाए रायहाणीए सिद्धायतणंसि अट्ठसतं जिणपडिमाणं जिणुस्सेहपमाणमेत्ताणं संनिक्खित्तं चिट्ठति, सभाए सुधम्माए माणवए चेतियखंभे वइरामएस गोलवट्टसमुग्गएसु बहूओं' जिण-सकहाओ सन्निक्खित्ताओ चिट्ठति, जाओ णं देवाणुप्पियाणं अण्णेसि च बहूणं विजयरायहाणिवत्थव्वाणं' देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ वंदणिज्जाओ पूयणिज्जाओ माणणिज्जाओ सक्कारणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेतियं पज्जुवास णिज्जाओ । एतण्णं देवाप्पिया पुव्वि करणिज्जं, एतण्णं देवाणुप्पियाणं पच्छा करणिज्जं, एतण्णं देवाणुप्पि - या पुव्विसेयं, एतणं देवाणुप्पियाणं पच्छा सेयं, एतण्णं देवाणुप्पियाणं पुव्विपि पच्छावि • हिताए सुहाए खमाए णिस्सेयसाए' आणुगामियत्ताए भविस्सति" ।। ४४३. तए णं से विजए देवे तेसि सामाणियपरिसोववण्णगाणं देवाणं अंतिए एयमट्ठ सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ" - " चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए देवसयणिज्जाओ अब्भुट्ठेइ अब्भुट्ठेत्ता देवद्वसं" परिहेइ, परिहेत्ता देवसय णिज्जाओ पच्चीरुहइ, पच्चोरुहित्ता उववायसभाओ पुरत्थिमेणं दारेणं' णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव १. आणापाणपज्जत्तीए भासामणपज्जत्तीए (क, ख, ग, ट, त्रि) । कोष्ठकान्तरवर्ती पाठ: व्याख्यांशः प्रतीयते । २. किं मे पुव्वि सेयं किं मे पच्छा सेयं किं मे पुव्वि करणिज्जं कि मे पच्छा करणिज्जं (क, ख, ग, ट, त्रि) । ३. पुव्वि वा पच्छा वा ( क, ख, ग, ट, ता, त्रि) । ४. खेमाए (त्रि) । ३४४ ५. जिस्से साए (क, ख, ग, त, ता); णिस्सेसया (त्रि ) । ६. भविस्सतीति कट्टु एवं संपेहेति ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ७. जाणित्ता (क, ख, ग, ट, त्रि); अतोग्रे 'ता' प्रतौ अतिरिक्तः पाठो दृश्यते हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिता नंदिता पीतिमणा परमसोमणसिता हरिसवसविसप्पमाणहितया । ८. बहुवीओ (ता) । ६. x (ता) । १०. सं० पा० - पच्छावि जाव आणुगामियत्ताए । ११. भविस्सतीति कट्टु महया महया जयजय सद्दं परंजंति (क, ख, ग, ट, त्रि) । १२. सं० पा० - हट्ठतुट्ठ जाव हियए । १३. दिव्वं देवदूतजुयलं ( क, ख, ग, ट, त्रि) । १४. पुरथिमिल्लेणं (ता) । Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ३४५ हरए तेणेव उवागच्छति, हरयं अणुपदाहिणं करेमाणे-करेमाणे पुरथिमेणं तोरणेणं अणप्पविसति, अणुप्पविसित्ता पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता हरयं ओगाहति, ओगाहित्ता' जलमज्जणं करेति, करेत्ता जलकिडं करेति, करेत्ता आयते चोखे परमसूइभूते हरयाओ पच्चुत्तरति, पच्चुत्तरित्ता जेणामेव अभिसेयसभा तेणामेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अभिसेयसभं पदाहिणं करेमाणे पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव सोहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासणवरगते पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे ॥ ४४४. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स सामाणियपरिसोववण्णगा देवा आभिओगिए देवे सद्दावेंति सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! विजयस्स देवस्स महत्थं महग्धं महरिहं विपुलं इंदाभिसेयं उवट्ठवेह ।। - ४४५. तए णं ते आभिओगिया देवा सामाणियपरिसोववण्णेहिं देवेहिं एवं वत्ता समाणा हद्वती'- चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण हियया करतलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं देवा ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहणंति', समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंडं णिसिरंति, तं जहा-रयणाणं जाव' रिढाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाउंति, परिसाडित्ता अहासुहमे पोग्गले परियायंति, परियाइत्ता दोच्चंपि वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता अदृसहस्सं सोवणियाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सं रुप्पामयाणं" कलसाणं, अट्ठसहस्सं मणिमयाणं, अट्ठसहस्सं सुवण्णरुप्पामयाणं, अट्ठसहस्सं सुवण्णमणिमयाणं, अट्ठसहस्सं रुप्पामणिमयाणं, अट्ठसहस्सं सुवण्णरुप्पामणिमयाणं, अट्ठसहस्सं भोमेज्जाणं, अट्ठसहस्सं भिंगाराणं, एवंआयंसगाणं थालाणं पातीणं सुपतिट्ठकाणं मणगुलियाणं वातकरगाणं, चित्ताणं रयणकरंडगाणं, पुप्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थगचंगेरीणं, पुप्फपडलगाणं जाव लोमहत्थगपडलगाणं, सीहासणाणं छत्ताणं चामराणं', तेल्लसमुग्गाणं जाव अंजणसमुग्गाणं झयाणं, असहस्स धूवकडुच्छ्याणं विउव्वंति, विउव्वित्ता 'ते साभाविए य विउव्विए य कलसे य जाव धवकडुच्छुए य गेण्हंति, गेण्हित्ता विजयातो रायहाणीतो पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता" ताए उक्किट्ठाए' 'तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्याए उद्धृयाए जइणाए छेयाए' दिव्वाए देवगतीए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झंमज्झेणं वीईवयमाणा-वीईवयमाणा जेणेव खीरोदे समुद्दे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता खीरोदगं गिण्हंति, गिण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाइं जाव' सहस्सपत्ताइं ताइं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पुक्खरोदे समुद्दे तेणेव उवा १. ओगाहित्ता जलावगाहणं करेति २ ता (क,ख, ___ ग,ट,त्रि)। २. सं० पा०-हतुट्ट जाव हियया । ३. समोहणंति (क,ख,ग,ट,त्रि)। ४. जी० ३७।४। ५. रुप्पमयाणं (क,ख,ग,ट,त्रि) सर्वत्र । ६. चामराणं अवपडगाणं बट्टकाणं तवसिप्पाणं खोरगाणं पीणगाणं (क,ख,गट,त्रि ) । ७. गेण्हंति (ता); चिन्हाङ्कितः पाठो वृतौ व्याख्यातो नास्ति। ८. सं० पा०-उक्किदाए जाव दिव्वाए। ९. जी. ३१२८६। Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ जीवाजीवाभिगमे गच्छंति, उवागच्छित्ता पुक्खरोदगं गेहंति, गेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई जाव सह सपत्ताई ताई गति, गिहित्ता जेणेव समयखेत्ते जेणेव भरहेरवयाई वासाई जेणेव मागधवरदामपभासाई तित्थाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तित्थोदगं गिण्हंति, गिण्हित्ता तित्थमट्टियं गेहंति, गेण्हित्ता जेणेव गंगा-सिंधु-रत्ता-'रत्तवतीओ महानदीओ" तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सरितोदगं गेहंति, गेण्हित्ता उभयतडमट्टियं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव चुल्लहिमवंत - सिहरिवासधरपव्वता तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता 'सव्वतुवरे सव्वपुष्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले" सव्वोसहिसिद्धत्थए य गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पउमद्दह - पुंडरीया' तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दहोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताई ताई गेव्हंति, गेण्हित्ता जेणेव हेमवय- हेरण्णवयाई वासाई जेणेव रोहियरोहितंस - सुवण्णकूल- रुप्पकूलाओ महानदीओ तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं हंति, गेव्हित्ता उभयतडमट्टियं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव 'सद्दावाति-वियडावाति"वेतढपव्वता तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतुवरे जाव सव्वोस हिसिद्धत्थए य हंति हित्ता जेणेव महाहिमवंत - रुप्पि - वासधरपव्वता तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता " सव्वतुवरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए य गेहंति, गेव्हित्ता' जेणेव महापउमद्दह -महापुंडरीयद्दहा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दहोदगं गेहंति, गेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई " " जाव सहसपत्ताई ताई गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव 'हरिवास - रम्मगवासाइं"" जेणेव हरि"हरिकंत- नरकंत - नारिकंताओ महानदीओ" तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं हंति, हित्ता उभयतडमट्टियं गेव्हंति, गेण्हित्ता जेणेव 'गंधावाति मालवंतपरियागा"वट्टवेयड्ढपव्वया तेणेव उवागच्छंति, उवागिच्छत्ता ""सव्वतुवरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए य गेहंति, गेण्हित्ता जेणेव णिसह - नीलवंत - वासहरपव्वता तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतुवरे" "जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए य गेव्हंति, गेव्हित्ता जेणेव तिगिच्छिदह"- केसरिदहा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दहोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई " " जाव १. रत्तवत्ती सलिला ( क, ख, ग, ट, त्रि) । २. सलिलोदक ( राय० सू० २७६ ) । ३. उभओतड' (क, ख, ग, ट, त्रि); उभयं तड° (ता) । ४. सव्वतूयरे ( राय०सू० २७६ ); 'तुवर:, तूवर : ' ' इति शब्दद्वयमपि दृश्यते । ५. 'क,ख,ग,ट, त्रि' आदर्शषु चिन्हाङ्कितपाठस्य पुरतः प्रत्येकपदस्याग्रे यकारो विद्यते, यथा 'सव्वतूवरे य' इत्यादि । ६. दहा दहा (ता) | ७. एरण° (क,ख,ग,ट, त्रि ) । ८. सद्दावइमालवंतपरियागा ( क, ख, ग, ट, त्रि); स्वीकृतपाठः वृत्त्यनुसारी वर्तते । द्रष्टव्यं ठाणं ४३०७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ६. सं० पा० सव्वपुप्फे तं चैव । १०. सं० पा० - उप्पलाई तं चेव । ११. हरिवासरमावासाई (क, ख ) ; हरिवासे रम्मावासेति (ग,त्रि) । १२. X ( क,ख,ग,ट, त्रि) । १३. सलिलाओ ( क, ख, ग, ट, त्रि) । १४. विडावतिगंधावति ( क, ख, ग, ट, त्रि) । १५. सं० पा० – सव्वपुप्फे तं चैव । १६. सं० पा० -- सव्वतुवरे य तहेव । १७. तिििछदह ( क ) । १८. सं० पा० - उप्पलाई तं चैव । Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउग्विहपडिवत्ती ३४७ सहस्सपत्ताई ताई हंति, गेण्हित्ता जेणेव पुव्वविदेहावरविदेहवासाइं जेणेव सीया- सीओयाओ महाणईओ "तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेव्हंति, गेण्हित्ता उभयतडमट्टियं गेहंति, गेण्हित्ता जेणेव सव्वचक्कवट्टिविजया जेणेव सव्वमागहवरदामपभासाई तित्थाई' "तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तित्थोदगं गिण्हंति, गिव्हित्ता तित्यमट्टिय हंति, गेण्हित्ता जेणेव सव्ववक्खारपव्वता तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतुवरे जाव सव्वोसहि सिद्धत्थए य गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव सव्वंतरणदीओ तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता' 'उभयतडमट्टियं गेण्हिंति, गेव्हित्ता जेणेव मंदरे पव्वते जेणेव भहसालवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतुवरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थ य गिति, गिव्हित्ता जेणेव णंदणवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतुवरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए य सरसं च गोसीसचंदणं गिण्हंति, गिव्हित्ता जेणेव सोमणसवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता सव्वतुवरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए य सरसं च गोसीसचंदणं दिव्वं च सुमगदामं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव पंडगवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतुवरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए य सरसं च गोसीसचंदणं दिव्वं च सुमणदामं दद्दरमलयसुगंधिए गंधे गेव्हंति, गेण्हित्ता एगतो मिलंति', मिलित्ता जंबुद्दीवस्स पुरत्थि - मिल्लेणं दारेणं णिग्गच्छंति, णिग्गच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए' तुरियाए चलाए चंडाए सिग्घाए उद्धुयाए जइणाए छेयाए दिव्वाए देवगतीए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झंमज्झेणं वीईवयमाणा-वीईवयमाणा जेणेव विजया रायहाणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छत्ता विजयं रायहाणि अणुप्पयाहिणं करेमाणा - करेमाणा जेणेव अभिसेयसभा जेणेव विज देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करतलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता विजयस्स देवस्स तं महत्थं महग्घं महरिहं विपुलं अभिसेयं उट्ठति ॥ ४४६. तए णं तं विजयं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ चत्तारि अग्गमहिसीओ सपरिवाराओ, तिणि परिसाओ सत्त अणिया सत्त अणियाहिवई सोलस आयरक्खदेवसाहसीओ अण्णे य बहवे विजयरायधाणिवत्थव्वगा वाणमंतरा देवाय देवीओ य तेहि साभाविएहिं उत्तरवेउव्विएहि य वरकमलपतिट्ठाणेहि सुरभिवरवारिपडिपुण्णेहि चंदण - कयचच्चाएहिं' आविद्धकंठगुणेहिं पउमुप्पल विधाणेह सुकुमालकरतलपरिग्गहिएहि अट्ठसहस्सेणं' । सोवण्णियाणं कलसाणं रूप्पामयाणं मणिमयाणं जाव अट्टसहस्सेणं भोमेज्जाणं कलसाणं सव्वोदएहिं सव्वमट्टियाहि सव्वतुवरेहि सव्वपुप्फेहिं सव्वगंधेहि सव्वमल्लेह सव्वोसहिसिद्धत्थएहि य सव्विड्डीए सव्वजुतीए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं १. सं० पा० - जहा ईओ । २. सं० पा०- - तित्थाई तहेव जहेव । ३. सं० पा०-- गेव्हित्ता तं चैव । ४. मेलंति (क, ख ) 1 ५. सं० पा० – उक्किट्ठाए जाव दिव्वाए । ६ 'चच्चातेहिं (क, ख, ग, त्रि) । ७. करतलसुकुमालकोमलपरिग्गहिएहिं ( क, ख, ग, ट, त्रि ) । ८. असते ( क,ख,ग,ट) । Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ जीवाजीवाभिगमे सव्वविभूतीए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं' सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारेणं' सव्वदिव्वतुडियसहसण्णिणाएणं' महया इडढीए महया जूतीए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतूरियजमगसमगपडुप्पवादितरवेणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडक्क-मुरव-मुइंगदुहि-णिग्घोसनादितरवेणं" महया-महया इंदाभिसेगेणं अभिसिंचंति ॥ ४४७. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स महया-महया इंदाभिसेगंसि वट्टमाणंसि अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि णच्चोदगं णातिमट्टियं पविरलफुसियं रयरेणुविणासणं दिव्वं सुरभि गंधोदगवासं वासंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि णिहतरयं णट्टरयं भटूरयं पसंतरयं उवसंतरयं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि सब्भितरवाहिरियं आसियसम्मज्जितोवलित्तं सित्तसुइसम्मट्ठ-रत्यंतरावणवीहियं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि मंचातिमंचकलितं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि णाणाविहरागोसियझय-पडागतिपडागमंडितं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि लाउल्लोइयमहियं गोसीस-सरसरत्तचंदण-दद्दरदिण्णपंचंगुलितलं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि उवचियवंदणकलसं वंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि आसत्तोसत्तविपूलवट्टवग्घारितमल्लदामकलावं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलितं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि कालागरु-पवरकंदुरुक्क-तरुक्क-धवडज्झंत-मघमघेतगंधद्धयाभिराम सुगंधवरगंधगधियं गंधवट्टिभूयं करेंति, 'अप्पेगइया देवा हिरण्णवासं वासंति, अप्पेगइया देवा सुवण्णवासं वासंति, अप्पेगइया देवा एवं-रयणवासं पुप्फवासं मल्लवासं गंधवासं चण्णवासं वत्थवासं आभरणवासं', अप्पेगइया देवा हिरणविधि भाएंति, ‘एवं-सुवण्णविधि रयणविधि" पुप्फविधि मल्लविधि गंधविधि चुण्णविधि वत्थविधि आभरण विधि", अप्पे१. सव्वसंभमेणं सव्वोरोहेणं सव्वणाडएहिं (क, ख, हाणि (क, ख, ग, ट, त्रि); महियं करेंति ग, ट, त्रि); x (ता)। अप्पे (ता)। २. अलंकार विभूसाए (क, ख, ग, ट, त्रि)। ६. वत्तौ एष आलापकः 'करेंति' इत्यन्तिमपदेन ३. सव्वदिव्वतुडियणिणाएणं (क, ख, ग, ट, त्रि); व्याख्यातः तथा अग्रिमालापकः 'अप्पेगतिया सव्वतुडियसद्द (ता)। देवा वंदण' इति पृथग व्याख्यातः । ४. "तुडियजमग (क, ख, ट, त्रि), 'तूर्य' शब्दस्य १०. रयणवासं वइरवासं (क, ख, ग, ट, त्रि)। तरं, तरियं' इति प्रयोगद्वयं लभ्यते रकारस्य ११. अप्येकका देवा हिरण्यवर्ष वर्षन्ति, अप्येककाः डकारो भवतीति 'तुडिय' मपि लभ्यते । प्रायः सुवर्णवर्षमप्येकका आभरणवर्षं पुष्पवर्षमप्येकका बहुषु स्थानेषु 'तुडिय' मिति पाठो लभ्यते, माल्यवर्षमप्येककाश्चूर्णवर्ष वस्त्रवर्ष वर्षन्ति वृत्तौ च त्रुटितमिति। अत्र ताडपत्रीयादर्श (म)। तरिय' इति पदं प्राप्तं तेनात्र तत् स्वीकृतम्। १२. रयणविधि वइरविधि (क, ख, ग, ट, त्रि) । ५. णिग्धोससंनिनादितरवेणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। द्रष्टव्यं रायपसेणइय २८१ सूत्रस्य पाद६. आसित (क, ख, ग, ट, त्रि); आसीत (ता)। टिप्पणम् । ७. णाणाविहरागरंजियऊसियझयविजयवेजयंती (क, ख, ग, ट, त्रि)। १३. एवं सुवर्णरत्नाभरणपुष्पमाल्यगन्धचूर्णवस्त्र८. महियं करेंति अप्पेगतिया देवा विजयं राय- विधिभाजनमपि भावनीयम् (मव)। Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउठिवहपडिवत्ती ३४६ गतिया' देवा दुतं णट्टविधि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा विलंबितं णट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा दुतविलंबितं णाम णट्टविधि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा अंचियं णट्टविधि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा रिभितं णट्टविधि उवदंसेंति, अप्पैगतिया देवा अंचितरिभितं णट्टविधि उवदंसें ति, अप्पेगतिया देवा आरभडं णट्टविधि उवदंसें ति, अप्पेगतिया देवा भसोलं णविधि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा आरभडभसोलं णविधि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा 'उप्पायनिवायपसत्तं संकुचिय-पसारियं रियारियं भंत-संभंतं णाम णट्टविधिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा चउव्विधं वाइयं वादेंति, तं जहा-ततं विततं घणं झुसिरं, अप्पेगतिया देवा चउव्विधं गेयं गायंति, तं जहा-'उक्खित्तं पवत्तं मंदायं रोइयावसाणं, अप्पेगतिया देवा च उविध अभिणयं अभिणयंति, तं जहा-दिलैंतियं 'पाडिसुयं सामन्नतोविणिवातिय लोगमज्झावसाणियं, अप्पेगतिया देवा पीणंति, अप्पेगतिया देवा तंडवेंति, अप्पेगतिया देवा लासेंति, अप्पेगतिया देवा बुक्कारेंति, अप्पेगतिया देवा पीणंति तंडवेंति लासेंति बुक्कारेंति, अप्पेगतिया देवा अप्फोडेंति', अप्पेगतिया देवा वग्गंति, अप्पेगतिया देवा तिवति छिदंति, अप्पेगतिया देवा अप्फोडेंति वग्गंति तिवंति छिदंति, अप्पेगतिया देवा हयहेसियं करेंति, अप्पेगतिया देवा हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, अप्पेगतिया देवा रहघणघणाइयं करेंति अप्पेगतिया देवा हयहेसियं करेंति, हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, रहघणघणाइयं करेंति, ‘अप्पेगतिया देवा उच्छले ति , अप्पगतिया देवा पोच्छलेंति अप्पेगतिया देवा उक्किटुिं करेंति, अप्पेगतिया देवा उच्छलेंति पोच्छलेंति उक्किट्ठि करेंति", अप्पेगतिया देवा सीहनादं नदंति, अप्पेगतिया देवा पाददद्दरयं करेंति, अप्पेगतिया देवा भूमिचवेडं दलयंति", 'अप्पेगतिया देवा सीहनादं पाददारयं भमिचवेडं दलयंति १२ अप्पेगतिया देवा हक्कारेंति, अप्पैगतिया देवा थुक्कारेंति, अप्पेगतिया देवा थक्कारेंति", 'अप्पेगतिया देवा नामाइं साहेति' 'अप्पेगतिया देवा हक्कारेंति थुक्कारेंति थक्कारेंति नामाइं साहेति", १. द्वात्रिंशतो नाट्यविधीनां मध्ये कांश्चन नाट्य- दृश्यते । विधीनुपन्यस्यति (मवृ)। ८. उच्छोलेति (क,ख,ग,ट,त्रि) अग्रेपि एवमेव । २. उप्पनणिवतपयत्तं संकुचितपसारियरेयारयितं . पच्छोलेंति (क, ख, ग, ट, त्रि) अग्रेपि एवमेव । भंगसंभंग (ता)। १०. चिन्हाङ्कितः पाठः वृत्तो नास्ति व्याख्यातः । ३. क, ख, ग, ट, आदर्शषु वाद्य-गेयसम्बन्धिनो ११. अतोने 'अप्पेगतिया देवा महता महता सद्देणं आलापको द्रुतनाट्यविधेः पूर्व विद्यते । राय- रति' इति पाठो वृत्ती व्याख्यातोस्ति । पसेणइय (सू० २८१) सूत्रेपि एवमेव विद्यते। १२. अप्येकका देवाश्चत्वार्यपि सिंहनादादीनि ४. पेज्ज (ता)। ___ कुर्वन्ति (मवृ)। ५. उक्खित्तयं पवत्तयं (क, ख, ग, ट, त्रि)। १३. थक्कारेंति अप्पेगतिया देवा पुक्कारेंति (क,ख, ६. पाउंतियं सामंतोवणिवातियं (क,ख,ग,ट,त्रि)। ग,ट,त्रि)। ७. प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ भिन्नवाचनायाः पाठो १४. X (मयू)। व्याख्यातोस्ति । द्रष्टव्यं वृत्ति पत्र २४७,२४८। १५. अप्येककास्त्रीण्यप्येतानि कुर्वन्ति (मवृ)। रायपसेणयसूत्रे (२८१) पि पदानां व्यत्ययो Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे अप्पेगतिया देवा ओवयंति', अप्पेगतिया देवा उपयंति, अप्पेगतिया देवा परिवयंति, अप्पेगतिया देवा ओवयंति उप्पयंति परिवयंति, अप्पेगतिया देवा जलंति, अप्पेगतिया देवा तवंति, अप्पेगतिया देवा पतवंति अप्पेगतिया देवा जलंति तवंति पतवंति अप्पेगइया देवा गज्जंति, अप्पेगइया देवा विज्जुयायंति अप्पेगइया देवा वासं वासंति, अप्पेगइया देवा गज्जति विज्जुयायंति वासं वासंति, 'अप्पेगतिया देवा देवसन्निवार्य करेंति", अप्पेगतिया देवा देवक्कलि करेंति अप्पेगइया देवा देवकहकहं करेंति, अप्पेगतिया देवा देवदुदुहगं करेंति, 'अप्पेगतिया देवा देवसन्निवायं देवउक्कलियं देवकहकहं देवदुदुहगं करेंति", 'अप्पेगतिया देवा देवज्जोयं करेंति अप्पेगतिया देवा विज्जुयारं करेंति", अप्पेगतिया देवा लक्खेवं कति अप्पेगतिया देवा देवज्जोयं विज्जुयारं चेलुवखेवं करेंति, अप्पेगतिया देवा उप्पलहत्थगता जाव सहस्रपत्तहत्थगता' बंदणकलसहत्थगता जाव धूवकडुच्छुयहत्थगता - चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया' हरिसवसविसप्पमाणहियया विजयाए रायहाणीए सव्वतो समंता आधावंति परिधावति ॥ ४४८ तए णं तं विजयं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ चत्तारि अग्गमहिसीओ सपरिवाराओ जाव' सोलसआय रक्खदेवसाहस्सीओ, अण्णे य बहवे विजयरायहाणी - वत्थव्वा वाणमंतरा देवा य देवीओ य तेहिं वरकमलपतिट्ठाणेहिं जाव अट्ठसहस्सेणं' सोवण्णियाणं कलसाणं तं चेव जाव अट्ठसहस्सेणं भोमेज्जाणं कलसाणं सव्वोदगेहि सव्वमट्टियाहि सव्वतुरेहिं सव्वपुप्फेहि जाव सव्वोसहिसिद्धत्थएहिं सव्विड्ढीए जाव निग्घोसना इयरवेणं महया - महया इंदाभिसेएणं अभिसिंचंति अभिसिंचित्ता पत्तेयं-पत्तेयं करतलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासि - जय जय नंदा ! जय-जय भद्दा ! जय जय नंदा भद्दं ते, अजिजिणाहि, जियं पालयाहि, अजितं जिणाहि सत्तुपक्खं, जितं पालया हि मित्तक्खं, जियमज्झे साहि तं देव ! निरुवसग्गं, इंदो इव देवाणं, चंदो इव ताराणं चमरो इव असुराणं, धरणो इव नागाणं, भरहो इव मणुयाणं, बहूणि पलिओवमाइं बहूणि सागरो ३५० माण बहूणि पओिवम - सागरोवमाणि चउन्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहसीणं विजयस्स देवस्स विजयाएं रायहाणीए, अण्णेसि च बहूणं विजयरायहाणि - वत्थव्वाणं वाणमंतराणं देवाणं देवीण य आहेवच्चं जाव" आणा - ईसर - सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहराहित्ति कट्टु महता - महता सद्देणं जय-जय सद्दं परंजंति ॥ ४४६. तए णं से विजए देवे महया - महया इंदाभिसेएणं अभिसित्ते समाणे सीहासणाओ अब्भुट्ठे, अब्भुट्ठेत्ता अभिसेयसभाओ पुरत्थिमेणं दारेणं पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अलंकारियसभ १. उप्पयंति (क, ख, ग, ट, त्रि) । २. णिवयंति (क, ख, ग, ट, त्रि) । ३. X (मवृ) । ४. अप्येककास्त्रीण्यप्येतानि कुर्वन्ति (मवु ) । ५. X (मवृ) । ६. सहस्सपत्तघंटा हत्थगता ( क, ख, ग, ट, त्रि ) । ७. सं० पा० - हट्ठतुट्ठा जाव हरिसवसविसप्प माहियया । ८. जी० ३।४४६ । 8. अट्ठसतेणं (क, ख, ग, ट, त्रि) । १०. जी० ३।३५० । Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ३५१ अणुप्पयाहिणीकरेमाणे-अणुप्पयाहिणीकरेमाणे पुरत्थिमेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासणवरगते पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे॥ ४५०. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स 'आभिओगिया देवा आलंकारियं भंडं उवणेति ॥ ४५१. तए णं से विजए देवे तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए दिव्वाए सुरभीए गंधकासाईए गाताई लहेति, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गाताई अणुलिपति, अणुलिपित्ता' नासाणीसासवायवोझं चक्खुहरं वण्णफरिमजुत्तं हयलालापेलवातिरेगं धवलं कणगखचियंतकम्म आगासफलिहसमप्पभं' अहतं दिव्वं देवदूसजुयलं णियंसेइ, णियंसेत्ता हारं पिणिद्धेइ, पिणिवेत्ता अद्धहारं पिणिद्धेइ, पिणिवेत्ता एकावलि' पिणिद्धेति, पिणिवेत्ता एवं एतेणं अभिलावेणं मुत्तावलि कणगावलि रयणावलि कडगाइं तुडियाइं अंगयाइं केयूराइं दसमुद्दियाणंतक' कुंडलाइं चूडामणि चित्तरयणसंकर्ड' मउडं पिणिद्धेइ, पिणिवेत्ता 'गंथिमवेढिम-पूरिम-संघाइमेणं चउविहेणं मल्लेणं कप्परुक्खयं पिव अप्पाणं अलंकियविभूसितं करेति, करेत्ता दद्दरमलयसुगंधगंधिएहिं गंधेहिं गाताई भुकंडेति, भुकुंडेत्ता दिव्वं च सुमणदामं पिणिद्धेति ॥ ४५२. तए णं से विजए देवे केसालंकारेणं वत्थालंकारेणं मल्लालंकारेणं आभरणालंकारेणं चउव्विहेणं अलंकारेणं अलंकिते विभूसिए समाणे पडिपुण्णालंकारे सीहासणाओ अब्भुट्टेइ, अब्भुठेत्ता" अलंकारियसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता ववसायसभं १. सामाणियपरिसोववण्णगा देवा आभिओगिए देवे सूरिणा अस्य व्याख्या एवं कृतास्ति-भुकुं सद्दावेंति २ एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणु- डंति-उद्धृलयन्ति (हस्तलिखितवृत्तिपत्र प्पिया! विजयस्स देवस्स आलंकारियं भंडं ३०२)। प्रस्तुतसूत्रादर्शषु लिपिदोषेणास्य उवणेह तेणेव ते आलंकारियं भंडं जाव पदस्य अन्यथात्वं जातमिति सम्भाव्यते । उवट्ठवेंति (क, ख, ग, ट, त्रि)। भगवतीवृत्तौ (पत्र ४७७) वाचनान्तरपाठस्य २. अणुलिपित्ता तयणंतरं च ण (क,ख,ग,ट,त्रि)। विवरणे "भुकुंडेंति त्ति उद्धृलयन्ति' इति ३. वायगेझं (क, ख); 'वाववझं (ट, त्रि)। लभ्यते । ४. सरिसप्पभं (क, ख, ट, त्रि)। ६. दिव्वं सुमणदाम पिणिधेति २ दद्दरमलयसुगंध५. एवं एकावलि (क, ख, ग, ट, त्रि)। गंधिए य गंधे पिणिधेइ २ गंथिमवेढिमपुरिम६. दसमुद्दियाणंतकं कडिसुत्तकं वेअच्छिसुत्तगं घातिमेणं चतुव्विघेणं म० (ता) अस्या अग्रिम मुरवि कंठमुरवि पालंबं (क, ख, ग, ट, त्रि); पत्रं नोपलभ्यते। दिव्वं सुमणदामं पिणिधेइ । दसमुद्दियाणंताई कडिसुत्तं (ता)। तए णं से विजए देवे गंथिमवेढिमपूरिमसंघाइ७. चित्तं रतणसंकुडुक्कडं (ता)। मेणं चउविहेणं मल्लेणं कप्परुक्खगं पिव ८. सुकुडेति (क, ख); सुकडेति (ग, ट); अप्पाणं अलंकियविभूसियं करेइ, करेत्ता पडिसुक्किडेति (त्रि); एतत्पदं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ते: पुण्णालंकारे सीहासणाओ अब्भुठेइ (मवृ) । (३१२१०) सूत्रस्याधारेण स्वीकृतः, हीरविजय | Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे दाहिणीमा - अणुप्पदा हिणीकरेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासणवरगते पुरत्थाभिमु सणसणे || ३५२ ४५३. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स आभिओगिया देवा पोत्थयरयणं उवणेंति ॥ ४५४. तए णं से विज देवे पोत्थयरयणं गेहति, गेण्हित्ता पोत्थयरयणं मुयति, मुत्ता पोत्यरयणं विहाडेति, विहाडेत्ता पोत्थयरयणं वाएति, वात्ता धम्मियं ववसायं 'ववसइ, ववसइत्ता" पोत्थयरयणं पडिणिक्खिवेइ, पडिणिक्खिवेत्ता सीहासणाओ अब्भुट्ठेति, अब्भुट्ठेत्ता ववसायसभाओ पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव दारिणी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता णंद पुक्खरिणि अणुप्पयाहिणीक रेमाणेअप्पयाहिणीक रेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता पुरथिमिल्लेणं तिसोपाणपडिरूवएणं पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता हत्थं पादं पक्खालेति, पक्खालेत्ता एगं महं सेतं रययामयं विमलसलिलपुण्णं मत्तगयमहामुहाकितिसमाणं भिगारं गिण्हति, गिव्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई पउमाई जाव' सहस्सपत्ताइं ताइं गिण्हति गिण्हित्ता गंदातो पुक्खरिणीतो पच्चत्तरेइ, पच्चुत्तरेत्ता जेणेव सिद्धायतणे तेणेव पहारेत्थ गमणाए । ४५५. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ जाव' अण्णे बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य अप्पेगइया उप्पलहत्थगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया विजयं देवं पिट्टतो-पितो अणुगच्छति ॥ ४५६. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स बहवे आभिओगिया देवा देवीओ य वंदणकलसहत्थगता जाव धूवकडुच्छुयहत्थगता विजयं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो अणुगच्छति ॥ ४५७. तए णं से विजए देवे चह सामाणियसाहस्सीहि जाव अण्णेहि य बहूहि वाणमंतहिं देवेहिय देवीहि यसद्धि संपरिवडे सव्विड्ढीए सव्वजुतीए जाव णिग्घोसणाइयवेणं जेणेव सिद्धायतणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सिद्धायतणं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे - अणुप्पयाहिणी करेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता 'आलोए जिrefsमाणं पणामं करेति, करेत्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवच्छंदए जेणेव जिणपडिमाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता जिणपडिमाओ पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए व्हावेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गाताई अणुलिप, अणुलिपित्ता जिणपडिमाणं अहयाई देवदूसजुयलाई" णियंसेइ, पियसेत्ता अग्गेहि वरेहि 'गंधेहि मल्लेहि य" अच्चेति, अच्चेत्ता पुप्फारुहणं मल्लारुहणं १. पहिति परिहित्ता ( क, ख, ग, ट, त्रि) । २. जी० ३।२८६ । ३. जी० ३।४४६ । ४. जेणेव देवच्छंदए तेणेव उवागच्छति २ ता आलोए जिणपरिमाणं पणामं करेति २ ता लोमहत्थगं गेहति २ त्ता जिणपडिमाओ लोमहत्थ एणं पमज्जति २ त्ता सुरभिणा गंधोदएणं 1 व्हाणेति २त्ता दिव्वाए सुरभिगंधकासाइए गाताई लूहेति २ ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गाताई अणुलिपति २ ता जिणपडिमाणं अहयाई सेताई दिव्वाई देवसजुयलाई (क, ख, ग, ट त्रि ) । ५. पुप्फेहि गंधेहि मल्लेहि चुण्ेहि (ता) । Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउबिहपडिवत्ती ३५३ वण्णारहणं चुणारुहणं गंधारहणं आभरणारुहणं करेति, करेत्ता' जिणपडिमाणं पुरतो अच्छेहिं सहेहिं रययामएहिं अच्छरसा-तंदुलेहि अट्ठमंगलए आलिहति', आलिहित्ता 'कयग्गाहग्ग हितकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दसवण्णणं कुसुमेणं" पुप्फजोवयारकलितं करेति, करेत्ता चंदप्पभवइरवेरुलियविमलदंडं कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागरु-पवरकंदुरुक्क-तुरुक्क-धूवगंधुत्तमाणुविद्धं धूमवट्टि विणिम्मुयंतं वेरुलियामयं कडुच्छूयं पग्गहित्त पयतो धूवं दाऊण जिणवराणं 'सत्तट्ठ पदाणि ओसरति, ओसरित्ता दसंगुलिं अंजलिं करिय मत्थयम्मि य पयतो अट्टसयविसुद्धगंथजुत्तेहिं 'अत्थजुत्तेहिं अपुणरुत्तेहि महावित्तेहि संथुणइ, संथुणित्ता" वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि णिवाडेइ' तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणियलं सि णमेइ, णमेत्ता ईसिं पच्चुण्णमति, पच्चुण्णमित्ता कडयतुडियथंभियाओ भुयाओ साहरति", साहरित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए 'अंजलिं कटु एवं वयासी- णमोत्थु णं अरहंताणं 'भगवंताणं आदिगराणं तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं पुरिसोत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं लोगणाहाणं लोगहिआणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं बोहिदयाणं धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मणायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं अप्पडिहयवरणाणदंसणधराणं विअट्टच्छउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाणं बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं सिवं अयलं अरुअं अणंतं अक्खयं अव्वाबाहं अपुणरावित्ति सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्ताणं वंदति णमंसति, वंदित्ता णमंसित्ता__४५८. जेणेव सिद्धायणस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता दिव्वाए" दगधाराए" अब्भुक्खति, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितलं५ दलयति, १. करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारितमल्लदाम- ९. णीहट्ट (क, ख, ग, ता)। कलावं करेति करेत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि)। १०. णिवाएति (ता)। २. अच्छरस-तन्दुलाः, पूर्वपदस्य दीर्घान्तता ११. पडिसाहरति (क, ख, ग, ट, त्रि)। प्राकृतत्वात् (मवृ)। १२. भगवंताणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्ताणं ३. आलिहति तं जहा सोत्थियसिरिवच्छ जाव तिकट्ट (क, ख, ग, ट, त्रि)। एवं प्रणिपति दप्पण अट्ठमंगलए आलिहति (क, ख, ग, ट, दण्डकं पठित्वा 'वंदइ नमसइ' इति (मव) । त्रि)। १३. रायपसेणइयसुत्ते (सू० २६३) 'उवागच्छित्ता' ४. विप्पमुक्केहि दसवण्णेहि कुसुमेहिं सव्वतो इति पदानन्तरं 'लोमहत्थगं परामुसइ, परामु___ समंता (ता)। सित्ता सिद्धायतणस्स बहुमज्झदेसभागं लोम५. मुक्कपुप्फ (क, ख, ग, ट, त्रि) । हत्थेणं पमज्जति, पमज्जित्ता' इति पाठोस्ति । ६. पयत्तेणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। प्रस्तुतसूत्रस्यादर्शषु एष नोपलभ्यते, वृत्तावपि ७. महावित्तेहिं अपुणरुत्तेहिं अत्थजुत्तेहिं (ता)। नास्ति व्याख्यातः। ८. अट्ठसविसुद्धगंथजुत्तेहिं महावित्तेहिं अत्थ- १४. उदग° (क, ख, ग, ट, त्रि)। जुत्तेहिं अपूणरुत्तेहिं संथुणइ २ त्ता सत्तटू पयाइं १५. पंचंगुलितलेणं मंडलं आलिहति आलिहित्ता ओसरति ओसरित्ता (क, ख, ग, ट, त्रि)। चच्चए (क, ख, ग, ट Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ जीवाजीवाभिगमे दलइत्ता कयग्गाहग्गहियकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं' करेति, करेत्ता धूवं दलयति, दलइत्ता ४५६. जेणेव सिद्धायतणस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थयं गेण्हइ, गेण्हित्ता दारचेडीओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खति, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयति, दल इत्ता पुप्फारुहणं जाव' आभरणारुहणं करेति, करेत्ता आसत्तोसत्तविपुलवट्टवग्घारितमल्लदामकलावं करेति, करेत्ता कयग्गाहग्गहित करतलपब्भट्टविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फ° पुंजोवयारकलितं करेति, करेत्ता धूवं दलयति, दलइत्ता ४६०. जेणेव 'दाहिणिल्ले दारे मुहमंडवे जेणेव दाहिणिल्लस्स" मुहमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामसइ, परामसित्ता बहुमज्झदेसभागं लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुखेति, अब्भक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितलं मंडलगं आलिहति, आलिहित्ता कयग्गाहग्गहियकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलितं करेति, करेत्ता धूवं दलयति, दलइत्ता* ४६१. जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स पच्चथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता दारचेडीओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमजित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खति, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणणं चच्चए दलयति, दलइत्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गाहग्गहितकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेति, करेत्ता धूवं दलयति, दलइत्ता ४६२. जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स उत्तरिल्ला खंभपंती तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता खंभे य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खति, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयति, दलइत्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गाहग्गहियकरतलपन्भट्ठविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयति दल इत्ता ४६३. जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तं चेव सव्वं भाणियव्वं १. मुक्कपुप्फ (क, ख, ग, ट, त्रि)। ६. पंचंगुलितलेणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। २. दारविग्गओ (क, ख, ट) सर्वत्र । ७. सं० पा०-कयग्गाह जाव धूवं । ३. जी० ३।४५५ । ८. सं० पा०-गोसीसचंदणेणं जाव चच्चए ४. सं० पा०-कयग्गाहग्गहित जाव पंजोवयार- दलयति आसत्तोसत्तकयग्गाह धूवं । कलितं । ६. उत्तरिल्लाणं (ग, ट)। ५. x (क, ख, ग, ट, त्रि)। Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउठिवहपडिवत्ती ३५५ जाव' दारस्स अच्चणिया ॥ ४६४. जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति तं चेव ॥ ४६५. जेणेव दाहिणिल्ले पेच्छाघरमंडवे जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स बहुमज्झदेसभागे जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता अक्खाडगं च मणिपेढियं च सीहासणं च लोमहत्थगेणं पमज्जति, पज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खति, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयति, दलइत्ता पुप्फारुहणं' 'जाव आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गाहग्गहितकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दसद्धवणेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता° धूवं दलयइ, दलइत्ता__४६६. जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पच्चत्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, दारच्चणिया ॥ ४६७. जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स उत्तरिल्ला खंभपंती तहेव ॥ ४६८. जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति तहेव ॥ - ४६९. जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ तहेव ॥ ४७०. जेणेव दाहिणिल्ले चेइयथूभे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता चेइयथूभं च मणिपेढियं च लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भक्खह, अब्भक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्ल दामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गाहग्गहितकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयति, दलइत्ता ४७१. जेणेव पच्चत्थिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पच्चत्थिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जिणपडिमाए आलोए पणामं करेइ, करेत्ता 'जाव' नमसित्ता॥ ४७२. जेणेव" उत्तरिल्ला मणिपेढिया जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छति, १. जी० ३।४६१ । १०. लोमहत्थगं गेण्हति २ त्ता तं चेव सव्वं जं २. जी० ३।४६१। जिणपडिमाणं जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं ३. सं० पा०-पुप्फारुहणं जाव धूवं । संपत्ताणं वंदति णमंसति (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४,६,७. जी० ३।४६१ । ११.४७२-४७४ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' ५. जी० ३।४६२ । आदर्शेषु एवं पाठसंक्षेपोस्ति-एवं उत्तरिल्लाए ८. चैत्यस्तम्भः (मवृ)। वि एवं पुरथिमिल्लाए वि एवं दाहिणिल्लाए ६. जी० ३१४५७ । वि। Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ उवागच्छित्ता जाव नमसित्ता ॥ ४७३. जेणेव पुरत्थिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पुरत्थिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जाव नमंसित्ता ॥ ४७४. जेणेव दाहिणिल्ला मणिपेढिया जेणेव दाहिणिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जाव नमंसित्ता ॥ ४७५. जेणेव दाहिणिल्ले चेइयरुक्खे, दारविही' ॥ ४७६. जेणेव दाहिणिल्ले महिंदझए, दारविहीं ॥ ४७७. जेणेव दाहिणिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता 'तोरणे य तिसोवाणपडिरूवए य" सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खड, अब्भुविखत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयति, दलइत्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गाहग्गाहियकरतलपब्भट्टविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयति, दलइत्ता ४७८. सिद्धायतणं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव १,२. जी० ३।४६१ । ३. वेतियाओय तिसोमाणपडिरूवए य तोरणे य (क, ख, ग, ट, त्रि) । ४. ४७८-५१५ एतेषां सूत्राणां स्थाने आदर्शेषु वृत्तौ च पाठसंक्षेपो लभ्यते - सिद्धायतणं अणुप्पयाहिणं करेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला णंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति २ त्ता तहेव महिंदज्भया चेतियारुक्खे चेतिभे पच्चत्थिमिल्ला मणिपेढिया जिणपडिमा उत्तरिल्ला पुरत्थिमिल्ला दक्खिणिल्ला पेच्छाघरमंडवस्सवि तहेव जहा दक्खिणिल्लस्स पच्चत्थिमिल्ले दारे जाव दक्खिणिल्ला णं खंभपंती मुहमंडवस्सवि तिष्हं दाराणं अच्चणिया भणिऊणं दक्खिणिल्ला णं खंभपंती उत्तरे दारे पुरच्छि मे दारे सेसं तेणेव कमेण जाव पुरत्थिमिल्ला णंदापुक्खरिणी जेणेव सभा सुधम्मा तेणेव पहारेत्थ गमणाए (क, ख, ग, ट, त्रि); सिद्धायतणं अणुप्पदाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला णंदापुक्खरणी तेणेव उवाग २ वेइयासु य तोरणेसु य तिसोमाणअच्चणियं करेति जच्चेव णिग्गच्छमाणस्स दाहिणदहादीनं पज्जवसाणा सच्चेव समाणस्सवि णंदापुक्खरआदीया उत्तरिल्लादारावसाणा जातव्वा तं पुक्खरणी महिंदभया चेतिया चेतियथूभो पच्चत्थि पडिमा उत्तर पुर दाहिणापडिमा पेच्छाघरमं मुहमं उत्तरे दारे दारविधी जाव धूवं दहति २ जेणेव पुरत्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति एस वि दारादि जाव पुक्खरणावसाणा णातव्वा तं पुरिमे दारे मुह पे थू दाहिणा पडिमा पच्च उत्तर पुरथिमि जिण रुक्खो महिंदा पुक्खरणी (ता); सिद्धायतनमनुप्रदक्षिणीकृत्य यत्रैवोत्तरा नन्दापुष्करिणीस तत्रोपा गच्छति, उपागत्य पूर्ववत्सर्वं करोति, कृत्वा चौत्तराहे माहेन्द्रध्वजे तदनन्तरमोत्तराहे चैत्यवृक्षे तत औत्तराहे चैत्यस्तूपे ततः पश्चिमोत्तरपूर्वदक्षिणजिनप्रतिमासु पूर्ववत्सर्वा वक्तव्या. तदनन्तरमोत्तराहे प्रेक्षागृहमण्डपे समागच्छति, तत्र दाक्षिणात्ये प्रेक्षागृहमण्डपे पूर्ववत्सर्वं वक्तव्यं, तत उत्तरद्वारेण विनिर्गत्योत्तराहे मुखमण्डपे समागच्छति, तत्रापि दाक्षिणात्यमण्डपवत्सर्वं कृत्वोत्तरद्वारेण विनिर्गत्य सिद्धायतनस्य पूर्वद्वारे समागच्छति, तत्राचनिकां पूर्ववत्कृत्वा पूर्वस्य मुखमण्डपस्य दक्षिणोत्तरपूर्वद्वारेषु जीवाजीवाभिगमे Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ३५७ उवागच्छति, उवागच्छित्ता तं चेव'। ४७६. जेणेव उत्तरिल्ले महिंदज्झए । ४८०. जेणेव उत्तरिल्ले चेइयरुक्खे'। ४८१. जेणेव उत्तरिल्ले चेइयथूभे । ४८२. जेणेव पच्चत्थिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पच्चत्थिमिल्ला जिणपडिमा ॥ ४८३. जेणेव उत्तरिल्ला मणिपेढिया जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमा'। ४८४. जेणेव पुरथिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा । ४८५. जेणेव दाहिणिल्ला मणिपेढिया जेणेव दाहिणिल्ला जिणपडिमा । ४८६. जेणेव उत्तरिल्ले पेच्छाघरमंडवे जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तहेव जहाँ दक्खिणिल्लस्स ॥ ४८७. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पच्चथिमिल्ले दारे ॥ ४८८. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे" ॥ ४८६. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे" ।। ४६०. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स दाहिणिल्ला खंभपंती । ४६१. जेणेव उत्तरिल्ले दारे मुहमंडवे जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता" ॥ ४६२. जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स पच्चथिमिल्ले दारे। ४६३. जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे॥ ४६४. जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे" ।। ४६५. जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिणिल्ला खंभपती" ।। ४६६. जेणेव सिद्धायतणस्स उत्तरिल्ले दारे" । ४६७. जेणेव सिद्धायतणस्स परथिमिल्ले दारे ।। ४६८. जेणेव पुरथिमिल्ले दारे मुहमंडवे जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता" ।। क्रमेणोक्तरूपां पूजां विधाय पर्वद्वारेण विनिर्गत्य पूर्वप्रेक्षामण्डपे समागत्य पर्ववदर्च निकां करोति ततः पूर्वप्रकारेणैव क्रमेण चैत्यस्तपजिनप्रतिमाचत्यवृक्षमाहेन्द्रध्वजनन्दापुष्करिणीनाम् (मव)। विषयावबोधस्य सौविध्यार्थं एष संक्षिप्तः पाठः पृथक्-पृथक् सूत्ररूपेण समायोजितोस्ति । १. जी० ३।४७७ । १३. जी० ३।४६२ । २. जी० ३४७६ । १४. जी० ३।४६० । ३. जी० ३।४७५। १५,१६,१७. जी० ३।४६१ । ४. जी. ३१४७०। १८. जी० ३।४६२। ५,६,७,८. जी. ३।४७१ । १६,२०. जी० ३४५६ । ९. जी० ३।४६५। २१. जी० ३।४६०। १०,११,१२. जी. ३३४६१ । Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ जीवाजीवाभिगमे ४६६. जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे॥ ५००. जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स पच्चत्थिमिल्ला खंभपती' ।। ५०१. जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे॥ ५०२. जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे॥ ५०३. जेणेव पुरथिमिल्ले पेच्छाघरमंडवे जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स वहुमज्झदेसभाए जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे ॥ ५०४. जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे ।। ५०५. जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पच्चत्थिमिल्ला खंभपती॥ ५०६. जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे ॥ ५०७. जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे॥ ५०८. जेणेव परथिमिल्ले चेइयथभे॥ ५०६. जेणेव दाहिणिल्ला भणिपेढिया जेणेव दाहिणिल्ला जिणपडिमा"॥ ५१०. जेणेव पच्चत्थिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पच्चत्थिमिल्ला जिणपडिमा" ॥ ५११. जेणेव उत्तरिल्ला मणिपेढिया जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमा । ५१२. जेणेव पुरथिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा" ॥ ५१३. जेणेव पुरथिमिल्ले चेइयरुवखे" ॥ ५१४. जेणेव पुरथिमिल्ले महिंदज्झए । ५१५. जेणेव पुरथिमिल्ला गंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जाव" धवं दलयइ, दलइत्ता __५१६. जेणेव" सभा सुहम्मा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सभं सुहम्मं पुरत्थि: १. जी० ३।४६१ । दृश्यते । शेषप्रयुक्तादर्शषु पाठभेदबाहुल्यमस्ति २. जी० ३।४६२ । तच्चैवम्-तते णं तस्स विजयस्स चत्तारि ३,४. जी० ३।४६।। सामाणियसाहस्सीओ एयप्पभिति जाव सब्वि५. जी० ३।४६५। ड्ढीए जाव णाइयरवेण जेणेव सभा सुहम्मा ६. जी० ३।४६१। तेणेव उवागच्छति २ त्ता। तए णं सभं सुधम्म ७. जी० ३।४६२। अणुप्पयाहिणीकरेमाणे २ पुरथिमिल्लेणं ८,६. जी० ३।४६१ । दारेणं अणुपविसति २ आलोए जिणसकहाणं १०. जी० ३।४७० । पणामं करेति २ जेणेव मणिपेढिया तेणेव ११-१४. जी० ३।४७१। उवागच्छति २ त्ता जेणेव माणवयचेतियखंभे १५. जी० ३।४७५ । जेणेव वइरामया गोलवट्टसमुग्गका तेणेव उवा१६. जी० ३।४७६ । गच्छति २ लोमहत्थयं गेण्हति २ वइरामए १७. जी० ३।४७७ । गोलवट्टसमुग्गए लोमहत्थएण पमज्जइ २ वइ१८. प्रस्तुतसूत्रस्य पाठ: 'ता' प्रतिमनुसृत्य स्वीकृतो- रामए गोलवट्टसमुग्गए विहाडेति २ त्ता जिणस स्ति । वत्तावपि प्रायः एवमेव व्याख्यातोस्ति । कहाओ लोमहत्थएणं पमज्जति २ त्ता सुरभिणा रायपसेणइयवृत्तावपि प्रायोस्य संवादित्वं गंधोदएणं तिसत्तखुत्तो जिणसकहाओ पक्खा Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ३५६ मिल्लेणं दारेणं अणुप्पविसति, अणुप्पविसित्ता जेणेव' मणिपढिया तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता आलोए जिणसकहाणं पणामं करेति, करेत्ता जेणेव माणवर चेतियखंभे जेणेव वइरामया गोलवट्टसमुग्गका तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता वइरामए गोलवट्टसमुग्गए गेण्हइ, गेण्हित्ता विहाडेइ, विहाडेत्ता 'जिणसकहाओ गेण्हइ, गेण्हित्ता लोमहत्थगं परामसइ, परामु सित्ता जिणसकहाओ" लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भक्खइ, अब्भक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिपति, अणुलिपित्ता 'अग्गेहिं वरेहि गंधेहि मल्लेहि य अच्चेइ, अच्चेत्ता" धूवं दहति, दहित्ता वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु पक्खिवइ, पक्खि वित्ता 'वइरामए गोलवदृसमुग्गए पडिपिधेइ, पडिपिधेत्ता" वइरामए गोलवट्टसमग्गए पडिणिक्खिवइ, पडिणिक्खिवित्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता 'लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता" माणवकं चेतियखंभं लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खइ, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता 'पुप्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गाहग्ग हितकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेता धूवं दलयइ, दलइत्ता ५१७. जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव तहेव दारच्चणिया । लेति २ सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिपइ २ सभाए सुधम्माए बहुमज्झदेसभाए तं चेव । त्ता अग्गेहिं वरेहि गंधेहिं मल्लेहि य अच्चिणति जेणेव सीहासणे तेणेव तहेव दारच्चणिता। २ ता धूवं दलयति २त्ता वइरामएस गोल- जेणेव देवसयणिज्जे तं चेव जेणेव खड्डागे वट्टसमुग्गएसु पडिणिक्खिवति २ ता पुप्फारुहणं महिंदज्झए तं चेव जेणेव पहरणकोसे चोप्पाले जाव आभरणारुहणं करेइ २ ता माणवक तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता पत्तेयं २ चेतियखंभं लोमहत्थएणं पमज्जति २ दिव्वाए पहरणाई लोमहत्थएणं पमज्जति, पमज्जित्ता उदगधाराए अब्भुक्खेइ २ त्ता सरसेणं गोसीस- सरसेणं गोसीसचंदणेणं तहेव सव्वं । चंदणेणं चच्चए दलयति २ पुप्फारुहणं जाव वृत्तिव्याख्या एवमस्ति-सिंहासनप्रदेशे समाआसत्तोसत्त कयग्गाह धूवं दलयति । गत्य सिंहासनस्य लोमहस्तकेन प्रमार्जनादिरूपां १. जे णं सा (ता)। पूर्ववदर्च निकां करोति, कृत्वा यत्र मणिपीठिका २. X (मव) । यत्र च देवशयनीयं तत्रोपागत्य मणिपीठिकाया ३. अच्चिणति २ (ता)। देवशयनीयस्य च प्राग्वदर्चनिकां करोति तत ४. ४ (मवृ)। उक्तप्रकारेणैव क्षुल्लकेन्द्रध्वजपूजां करोति ५.४ (मवृ)। कृत्वा च यत्र चोप्पालको नाम प्रहरणकोशस्तत्र ६. पुष्पाद्यारोपणं धूपदानं च करोति (मव)। समागत्य लोमहस्तेन परिघरत्नप्रमुखाणिप्रहरण७. ५१७-५२१ सूत्राणां पाठः वृत्तिमनुसृत्य स्वी- रत्नानि प्रमार्जयति, प्रमार्योदकधारयाऽभ्युक्षणं कृतोस्ति । “क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु सुधर्म- चन्दनचर्चा पुष्पाद्या रोपणं धूपदानं करोति, सभाया बहुमध्यदेशभागसूत्रस्य पश्चात् कृत्वा सभायाः सुधर्माया बहमध्यदेशभागेचंनिकां सिंहासन-देवशयनीय - क्षुल्लकमहेन्द्रध्वज - पूर्ववत्करोति, कृत्वा । प्रहरणकोशसूत्राणि विद्यन्ते, यथा-जेणेव रायपसेणइयवत्तावपि अस्याः संवादित्वं Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० जीवाजीवाभिगमे ५१८. जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवसयणिज्जे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता ॥ ५१६. जेणेव मणिपेढिया जेणेव खुड्डागमहिंदज्झए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता ५२०. जेणेव पहरणकोसे चोप्पाले तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता फलिहरयणपामोक्खाइं पहरणरयणाई लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खइ, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयति, दलइत्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेति, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावं करेति, करेत्ता कयग्गाहग्गहियकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दसवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेति, करेत्ता धूवं दलयति, दलइत्ता ५२१. जेणेव सभाए सुहम्माए बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता ५२२. जेणेव सभाए सुहम्माए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्तादृश्यते । प्रस्तुतागमे बहूषु स्थानेषु वृत्ति- ८. जी० ३।४६५ । व्याख्यायां ताडपत्रीयप्रती अर्वाचीनादर्शभ्यः १,२. जी० ३।४६५ । महान् वाचनाभेदो दृश्यते । ३. जी० ३।४५८ । ४. ५२२-५५३ सूत्राणां संक्षिप्तपाठस्य स्वतन्त्रसूत्रविन्यासो मूलपाठे कृतोस्ति । अनेन विषयावबोधस्य जटिलता निराकृताभूत । संक्षिप्तपाठ एवमस्ति-सेसंपि दक्खिणदारं आदिकाउं तहेव णेयव्वं जाव पुरथिमिल्ला गंदापुक्खरिणी। सव्वाणं सभाणं जहा सुधम्माए सभाए तहा अच्चणिया उववायसभाए णवरि देवसयणिज्जस्स अच्चणिया। सेसासु सीहासणाण अच्चणिया । हरयस्स जहा णदाए पुक्खरिणीए अच्चणिया। ववसायसभाए पोत्थयरयणं लोम दिव्वाए उदगधाराए सरसेणं गोसीसचंदणेणं अलिपति अग्गेहिं वरेहि गंधेहि य मल्लेहि य अच्चिणति २ त्ता लोमहत्थएणं पमज्जति जाव धूवं दलयति सेसं तं चेव णंदाए जहा हरयस्स तहा। एतेषां सूत्राणां वृत्तिव्याख्यानमित्थं वर्तते-सभाया: सुधर्माया दक्षिणद्वारे समागत्याचनिका पूर्ववत्करोति, ततो दक्षिणद्वारे विनिर्गच्छति, इत ऊद्धर्वं यथैव सिद्धायतनान्निष्कामतो दक्षिणद्वारादिका दक्षिणनन्दापूष्करिणी पर्यवसाना पुनरपि प्रविशत उत्तरनन्दापूष्करिणीप्रभतिका उत्तरान्ता ततो द्वितीयं वारं निष्क्रामत: पूर्वद्वारादिका पूर्वनन्दापूष्करिणीपर्यवसानाचनिका वक्तव्या तथैव सुधर्माया: सभाया अप्यन्यनातिरिक्ता द्रष्टव्या तत: पूर्वनन्दापुष्करिण्या अर्चनिकां कृत्वोपपातसभां पूर्वद्वारेण प्रविशति, प्रविश्य च मणिपीठिकाया देवशयनीयस्य तदनन्तरं बहुमध्यदेशभागे प्राग्वदनिका विदधाति, ततो दक्षिणद्वारेण समागत्य तस्यानिकां कुरुते, अत ऊर्ध्वमत्रापि सिद्धायतनवद्दक्षिणद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणीपर्यवसानाऽर्चनिका वक्तव्या तत: पूर्वनन्दापुष्करिणीतोऽपक्रम्य ह्रदे समागत्य पूर्ववत्तोरणार्च निकां करोति, कृत्वा पूर्वद्वारेणाभिषेकसभायां प्रविशति, प्रविश्य मणिपीठिकायाः सिंहासनस्याभिषेकभाण्डस्य बहुमध्यदेशभागस्य च पूर्ववदर्च निकां क्रमेण करोति, तदनन्तरमत्रापि सिद्धायतनवद्दक्षिणद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणीपर्यवसानाऽर्चनिका वक्तव्या, तत: पूर्वनन्दापुष्करिणीत: पूर्वद्वारेणालंकारसभां पूर्वद्वारार्च निका पुरस्सरं प्रविशति, प्रविश्य मणिपीठिकाया सिंहासनस्य अलंकारभाण्डस्य बहुमध्यदेशभागस्य च क्रमेण पूर्ववदर्च निकां करोति, ततोत्रापि सिद्धायतनवदक्षिणद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणीपर्यवसाना अर्चनिका वाच्याः ततः पूर्वनन्दापुष्करिणीत: पूर्वद्वारेण Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ५२३. सभं सुहम्मं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता' ५२४. जेणेव सभाए सुहम्माए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता'५२५. जेणेव सभाए सुहम्माए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ५२६. जेणेव उववायसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता उववायसभं पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं अणप्पविसति, अणुप्पविसित्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवसयणिज्जे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता ५२७. जेणेव उववायसभाए बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता५२८. जेणेव उववायसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता' ५२६. उववायसभं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ५३०. जेणेव उववायसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता५३१. जेणेव उववायसभाए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ५३२. जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तोरणे य तिसोवाणपडिरूवए य सालभंजियाओ य बालरूवए य लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता" ५३३. जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अभिसेयसभं पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं अणुप्पविसति, अणुप्पविसित्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता"-- ५३४. जेणेव सुबहू अभिसेयभंडे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता५३५. जेणेव अभिसेयसभाए बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता"५३६. जेणेव अभिसेयसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता - ५३७. अभिसेयसभं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदापुक्खरिणी तेणेव व्यवसायसभां प्रविशति, प्रविश्य पुस्तक रत्नं लोमहस्तकेन प्रमृज्योदकधारयाऽभ्युक्ष्य चन्दनेन चर्चयित्वा वरगन्धमाल्यरचयित्वा पुष्पाद्यारोपणं धूपदानं च करोति, तदनन्तरं मणिपीठिकाया: सिंहासनस्य बहुमध्यदेशभागस्य च क्रमेणार्च निकां करोति, तदनन्तरमत्रापि सिद्धायतनवद्दक्षिणद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणी पर्यवसानाऽर्चनिका वक्तव्या । ताडपत्रीयादर्श किञ्चित् पाठ उपलब्धोस्ति, किञ्चित् पाठः ततपत्रानुपलब्धौ अनुपलब्धोस्ति । उपलब्धपाठः प्रायो वृत्तिसंवादी वर्तते । ५. जी० ३४५६-४७७ । ७. जी० ३।४७८-४९५ । १. जी० ३।४७८-४६५। ८. जी० ३।४६६ । २. जी० ३।४६६ । ६. जी० ३।४६७-५१५। ३. जी० ३।४६७-५१५। १०. जी० ३१४७७ । ४. जी० ३।४६५ । ११,१२. जी० ३।४६५। ५. जी० ३।४५८ । १३. जी० ३४५८ । ६. जी० ३४५६-४७७ । १४. जी० ३४५६-४७७ । Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ जीवाजीवाभिगमे उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' ५३८. जेणेव अभिसेयसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता'-- ५३६. जेणेव अभिसेयसभाए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता' -- ५४०. जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अलंकारियसभं पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुप्पविसति, अणुप्पविसित्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता॥ ५४१. जेणेव सुबहू अलंकारियभंडे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता' - ५४२. जेणेव अलंकारियसभाए बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता५४३. जेणेव अलकारियसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता ५४४. अलंकारियसभं अणुप्पयाहिणीकरमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति, उवागछित्ता ५४५. जेणेव अलंकारियसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छिता ५४६. जेणेव अलंकारियसभाए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता - ५४७. जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता ववसायसभं पुरत्थिमिल्लेणं दारेण अणुप्पविसति अणुप्पविसित्ता जेणेव पोत्थयरयणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता पोत्थयरयणं लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खति, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयति, दलइत्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं मल्लेहि य अच्चेइ, अच्चेत्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारुहणं॥ ५४८. जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता५४६. जेणेव ववसायसभाए बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता"५५०. जेणव ववसायसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता" ५५१. ववसायसभं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता५ ॥ ५५२. जेणेव ववसायसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता"५५३. जेणेव ववसायसभाए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता" १. जी० ३१४७८-४६५ । २. जी० ३।४६६ । ३. जी० ३।४६७-५१५ । ४,५. जी० ३।४६५ । ६. जी० ३।४५८ । ७. जी० ३४५६-४७७। ८. जी० ३।४७८-४६५ । ६. जी० ३।४६६ । १०. जी० ३।४६७-५१५ । ११,१२. जी० ३।४६५ । १३. जी० ३।४५८ । १४. जी० ३।४५६-४७७ । १५. जी० ३।४७८-४६५ । १६. जी० ३।४६६ । १७. जी० ३।४६७-५१५ । Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ३६३ ५५४. 'जेणेव बलिपीढे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता बलिपीढस्स बहुमज्झदेसभागं दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खति, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितलं दलयति, दलइत्ता कयग्गाहग्गहियकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेति, करेत्ता धूवं दलयति, दलइत्ता आभिओगिए देवे" सद्दावेति, सहावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भी देवाणु प्पिया ! विजयाए रायहाणीए 'सिंघाडगेसु तिएसु चउक्केसु चच्चरेसु चउम्मुहेसु महापहपहेसु' पागारेसु अट्टालएसु चरियासु दारेसु गोपुरेसु तोरणेसु' आरामेसु उज्जाणेसु काणणेसु वणेसु वणसंडेसु वणराईसु अच्चणियं करेह, करेत्ता ममेयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह॥ ५५५. तते णं ते आभिओगिया देवा विजएणं देवेणं एवं वुत्ता समाणा" हतुटू•चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया करतलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं देवो! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता विजयाए रायहाणीए सिंघाडगेसु जाव वणराईसु अच्चणियं करेति, करेत्ता जेणेव विजए देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता' विजयं देवं करतलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ ५५६. 'तए णं से विजए देवे बलिपीढे वलिविसज्जणं करेति, करेत्ता जेणेव उत्तरपुरथिमिल्ला णंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता 'उत्तरपुरथिमिल्लं नंदं पुक्खरिणिं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे'° पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं अणुप्पविसति, अणप्पविसित्ता पुरथिमिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं पच्चोरुभति, पच्चोरुभित्ता हत्थपायं पक्खालेति, पक्खालेत्ता" णंदाओ पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरति, पच्चुत्तरित्ता 'जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव १. जेणेव बलिपीढं तेणेव उवागच्छति २त्ता आभि- वणराई सिंघाडग तिय जाव पथेस अच्चणियं ओगे देवे (क, ख, ग, ट, त्रि); जेणेव बलि- करेध २ तमाणत्तियं पच्च (ता)। पेढे दारविधी जाव धूवं डहति बलिविसज्जणं ६. आभिओग्गा (ता)। करेति २ आभियोग्गे देवे (ता); ततः पूर्व- ७. समाणा जाव (क, ख, ग, ट, त्रि): अत्र 'जाव' नन्दापुष्करिणीतो बलिपीठे समागत्य तस्य बह- पदस्य विपर्यासो जातः अथवा 'हट्टतुटा' इति मध्यदेशभागे पूर्ववदर्च निकां करोति, कृत्वा पदस्य अनपेक्षितो लेखो जातः । चोत्तरपूर्वस्यां नन्दापुष्करिण्यां समागत्य तस्या- ८. सं० पा०-हट्टतुट्ठा करतल जाव कटट एवं स्तोरणेषु पूर्ववदर्चनिकां कृत्वाभियोगिकान् देवो त्ति जाव पडिसुणेत्ता। देवान् (म)। ६. सं० पा०--उवागच्छित्ता जाव कट्ट । २. 'क, ख, ग, त्रि' आदर्गेषु 'सिंघाडगेसु य' एवं १०. णंद पु (ता)। प्रतिपदानन्तरं यकारो विद्यते ।। ११. तए णं से विजए देवे तेसि णं आभिओगियाणं ३. महापहपहेसु य पासाएसु य (क,ख,ग,ट,त्रि)। देवाणं अंतिए एयम सोच्चा णिसम्म हट्टतुटु४. तोरणेसु य वावीसु य पुक्खरिणीसु य जाव चित्तमाणंदिय जाव यहियए जेणेव गंदापुक्खविलपंतिगासु य (क, ख, ग, ट, त्रि)। रिणी तेणेव उवागच्छति २ ता पुरथिमिल्लेणं ५. पागारेसु अट्टालएसु तरियासु दारेसु गोपुरेसु तोरणेणं जाव हत्थपायं पक्खालेति २ ता आयंते आरामेसु उज्जाणेसु काणणेसु वणेसु वणसंडेसु चोक्खे परमसुइभूए (क, ख, ग, ट, त्रि)। Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ पहारेत्थ गमणाए" ।। ५५७. तणं से विजए देवे चउहिँ सामाणियसाहस्सीहिं' 'चउहि अग्गमहिसीहि सपरिवाराहि, तिहिं परिसाहि सत्तहि अणियाहि सत्तहिं अणियाहिवईहिं सोलसेहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहि° अण्णेहि य बहूहिं विजयरायहाणीवत्थव्वेहिं वाणमंत रेहिं देवे हिं देवीहि यसद्धि संपरिवडे सव्विड्ढीए जाव' दुंदुहिनिग्घोसणाइयरवेणं 'विजयाए रायहाणीए मज्झंमज्झेणं" जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सभं सुहम्मं पुरत्थि - मिल्लेणं दारेण अणुप्पविसति, अणुप्पविसित्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासणवरगते पुरत्याभिमुहे सणसणे ॥ ५५८. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरत्थि मेणं पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वणत्थेसु भद्दासणेसु णिसीयंति ॥ ५५६. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स चत्तारि अग्गमहिसीओ पुरत्थिमेणं पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वत्थेसु भद्दाससु णिसीयंति ॥ ५६०. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स दाहिणपुरत्थिमेणं अभितरियाए परिसाए अट्ठ देवसाहस्सीओ पत्तेयं - पत्तेयं पुव्वणत्थेसु भद्दासणेसु णिसीयंति । एवं दक्खिणं मज्झमिया परिसाए दस देवसाहस्सीओ जाव णिसीदंति । दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पत्तेयं - पत्तेयं जाव णिसीदंति || ५६१. तणं तस्स विजयस्स देवस्स पच्चत्थिमेणं सत्त अणियाहिवती पत्तेयं - पत्तेयं जाव णिसीयंति || ५६२. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पुरत्थिमेणं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ पत्तेयं - पत्तेयं पुव्वणत्थेसु भद्दासणेसु णिसीदंति, तं जहापुरत्थिमेणं चत्तारि साहस्सीओ, दाहिणेणं चत्तारि साहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं चत्तारि साहस्सीओ, उत्तरेणं चत्तारि साहस्सीओ । ते णं आयरक्खा सन्नद्ध-बद्ध-वम्मियकवया उप्पीलिय सरासणपट्टिया पिणद्धगेवेज्ज' - विमलवरचिंधपट्टा गहिया उहपहरणा, ति-णयाई ति-संधीणि वइरामयकोडीणि धणूइं अभिगिज्झ परियाइयकंडकलावा णीलपाणिणो पीयपाणिणो रत्तपाणिणो चावपाणिणो चारुपाणिणो चम्मपाणिणो 'दंडपाणिणो खग्गपाणिणो " पासपाणिणो णील-पीय रत्त-चाव - चारु चम्म-दंड-खग्ग- पासधरा आयरक्खा रक्खोवगा गुत्ता गुत्तपालिता जुत्ता जुत्तपालिता पत्तेयं - पत्तेयं समयतो विणयतो किंकरभूता विव चिट्ठति ।। ५६३. तए' णं से विजए देवे चउन्हं सामाणियसाहस्सीणं चउन्हं अग्ग महिसणं १. x (ता, मवृ) । २. सं० पा० - सामाणियसाहस्सीहिं जाव अण्णेहि । ३. जी० ३।४४६ । ४. x (क, ख, ग, ट, त्रि) । ५. सं० पा० - पत्तेयं जाव णिसीयंति । जीवाजीवाभिगमे ६. सं० पा० - साहस्सीओ जाव उत्तरेणं । ७. पिणद्धगेवेज्जबद्ध आविद्ध ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ८. खग्गपाणिणो दंडपाणिणो (क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. 'तए णं से विजए' इत्यादि सुप्रतीतं यावद्विजयदेववक्तव्यतापरिसमाप्ति:, इति वृत्तिगतसंकेताधारैण तथा रायपसेणइयसूत्रस्य वृत्तेः ( पृ० २७१) आधारेण एतत् सूत्रं स्वीकृतम् । अस्य पूर्तिः जी० ३।३५० । Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा बउविहपडिवत्ती ३६५ सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाहिवईणं सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं विजयस्स णं दारस्स विजयाए रायहाणीए, अण्णेसिं च बहूणं विजयाए रायहाणीए वत्थव्वगाणं' देवाणं देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहयनट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडियघण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ॥ ५६४. विजयस्स णं भंते ! देवस्स केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! एगं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता ॥ ५६५. विजयस्स णं भंते ! देवस्स सामाणियाणं देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! एगं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता। एमहिड्ढीए एमहज्जुतीए एमहब्बले एमहायसे एमहासोक्खे एमहाणुभागे विजए देवे विजए देवे ॥ वेजयंतादि-अधिगारो ५६६. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवस्स दीवस्स वेजयंते णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दक्खिणेणं पणयालीसं जोयणसहस्साई अबाधाए जंबुद्दीवे दीवे दाहिणपेरते लवणसमुद्ददाहिणद्धस्स उत्तरेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स वेजयंते णामं दारे पण्णत्ते --अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, सच्चेव सव्वा वत्तव्वता जाव' दारे॥ ५६७. कहि णं भंते ! रायहाणी दाहिणे णं जाव वेजयंते देवे वेजयंते देवे ॥ ५६८. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवस्स दीवस्स जयंते णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साइं जंबुद्दीवे दीवे पच्चत्थिमपेरंते लवणसमुद्दपच्चत्थिमद्धस्स पुरत्थिमेणं सीओदाए महाणदीए उप्पि, एत्थ णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स जयंते णामं दारे पण्णत्ते । तं चेव से पमाणं जयंते देवे पच्चत्थिमेणं से रायहाणी जाव एम हिड्ढीए ।। ५६६. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवस्स दीवस्स अपराइए णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंदरस्स उत्तरेणं पणयालीसं जोयणसहस्साइं अबाहाए जंबुद्दीवे दीवे उत्तरपेरते लवणसमुदस्स उत्तरद्धस्स दाहिणेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे अपराइए णामं दारे पण्णत्ते तं चेव पमाणं । रायहाणी उत्तरेणं जाव अपराइए देवे। चउण्हवि अण्णंमि जंबुद्दीवे ॥ ५७०. जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स दारस्स य दारस्स य एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! अउणासीति जोयणसहस्साइं बावण्णं च जोयणाई देसूणं च अद्धजोयणं दारस्स य दारस्स य अबाधाए अंतरे पण्णत्ते॥ __ जंबुद्दीवाधिगारो ५७१. जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स पएसा लवणं समुदं पुट्ठा ? हंता पुट्ठा ॥ ५७२. ते णं भंते ! किं जंबुद्दीवे दीवे ? 'लवणे समुद्दे ? गोयमा ! ते जंबुद्दीवे दीवे, १. अतः परं 'वाणमंतराणं' इति पदं अध्याहार्यम्। ४. जी० ४१३५१-५६५ । २. जी० ३।२६६-३५० । ५. लवणसमुद्दे (क, ख, ग, ट, त्रि)। ३. णिच्चे (क, ख, ग, ट, त्रि)। Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ न खलु ते लवणे समुद्दे ॥ ५७३. लवणस्स णं भंते ! समुद्दस्स पदेसा जंबुद्दीवं दीवं पुट्ठा ? हंता पुट्ठा ॥ ५७४. ते णं भंते ! किं लवणे समुद्दे जंबुद्दीवे दीवे ? गोयमा ! लवणे णं ते समुद्दे, न खलु ते जंबुद्दी दीवे ॥ ५७५. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे जीवा उद्दाइत्ता - उद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चा - यंति' ? गोयमा ! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायंति ॥ ५७६. लवणे णं भंते ! समुद्दे जीवा उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता जंबुद्दीवे दीवे पच्चायंति ? गोयमा ! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायति ॥ ५७७. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चति - जंबुद्दीवे दीवे' ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेण णीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा णाम कुरा पण्णत्ता - पाईणपडिणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिता एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठय बायाले जोयणसते दोण्णिय एक्कोणवीसतिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं । तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडिणायता दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरस्थि - मिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं वक्खारपव्वतं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, तेवण्णं जोयणसहस्साइं आयामेणं, तीसे धणुपठ्ठे दाहिणेणं सट्ठि सहस्साइं चत्तारि य अट्ठारसुत्तरे जोयणसते दुवालस य एकूणवीसतिभाए जोयणस्स परिक्खेवणं पण्णत्ता ॥ जीवाजीवाभिगमे ५७८. उत्तरकुराए णं भंते ! कुराए केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोमा ! से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' तणाणं मणीण य वण्णो गंधो फासो सोय भाणितव्व ॥ ५७६. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ तत्थ देसे तर्हि तहि बहुईओ खुड्डा खुड्डीयाओ १. पच्चायांति (ट) । २. अस्य निगमनं ७०२ सूत्रे वर्तते । ३. जी० ३।२७७-२८५ । 'जाव' इति पदादग्रे 'क, ख, ग, ट, त्रि' सकेतितादर्शेषु उत्तरकुरु वक्तव्यताया: संक्षिप्तः पाठोस्ति, विशदवर्णनार्थं च एकोरुकद्वीपवक्तव्यतायै समर्पितोस्ति, यथाएवं एक्कोरुयदी ववत्तव्वया जाव देवलोक - परिग्गहा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! णवरि इमं णाणत्तं - छधणुसहस्समूसिता दोछप्पन्ना पिट्ठकरंडसता अट्टमभत्तस्स आहारट्ठ समुप्पज्जति तिष्णि पलिओ माई देसूणाई पलिओवमस्सासंखेज्जाइभागेण ऊणगाई जहणेणं तिण्णि पलिओवमाई उक्कोसेणं एकूणपण इंदियाई अणुपालणा, सेसं जहा एगरूयाणं । उत्तरकुराए णं कुराए छव्विहा मणुस्सा अणुसज्जति, तं जहा -- म्हगंधा मियगंधा अममा सहा तेयाली से सणिच्चारी । द्रष्टव्यं ३।२१८ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । अर्वा - चीनादर्शेषु उत्तरकुरुवक्तव्यता संक्षिप्तास्ति, एको रुकवक्तव्यता च विस्तृतास्ति । ताडपत्रीयादर्श, हारिभद्रीयवृत्तौ मलयगिरिवृत्तौ च एकोरुकवक्तव्यता संक्षिप्तास्ति, उत्तरकुरुवक्तव्यता च विस्तृतास्ति । अस्माभिः प्राचीनादर्शस्य वृत्त्योश्चाधारेण उत्तरकुरुवक्तव्यताया विस्तृत - पाठः समादृतः । Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ३६७ वावीओ जाव' विलपतियाओ, तिसोवाणपडिरूवगा, तोरणा, पव्वयगा, पव्वयगेसु आसणाई, घरगा, घरएसु आसणाई, मंडवगा, मंडवसु पुढविसिलापट्टगा । तत्थ णं बहवे उत्तरकुरा मा मसीओ य आसयंति सयंति चिट्ठेति णिसीयंति तुयद्वंति रमंति ललति कीलति मोहति पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फल वित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणा विहरंति' ॥ ५८०. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ - तत्थ देसे तर्हि तहिं बहने सेरियागुम्मा' • णोमालियागुम्मा कोरंटयगुम्मा बंधुजीवगगुम्मा मणोज्जगुम्मा बीयगुम्मा बाम करगुम्मा कुज्जायगुम्मा सिंदुवारगुम्मा जातिगुम्मा मोग्गरगुम्मा जूहियागुम्मा मल्लिया - गुम्मा वासंतियागुम्मा बत्थुल गुम्मा कत्थुलगुम्मा सेवालगुम्मा अगत्थिगुम्मा मगदंतियागुम्मा चंपकगुम्मा जातिगुम्मा णवणीइयागुम्मा कुंदगुम्मा' महाजाइगुम्मा । ते णं गुम्मा दसद्धवणं कुसुमं कुसुमंत जेण कुराए बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे वायविहुयग्गसालेहि मुक्कपुप्फपुंजोवयाकलिए सिरीए अव उवसोभेमाणे चिट्ठइ ॥ ५८१. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ तत्थ देसे तर्हि तहि बहवे रुक्खा ख्यालवणा भेरुयालवणा मेरुयालवणा सालवणा सरलवणा सत्तदण्णवणा पूयफलिवणा खज्जूरिवणा लिए रिवणा कुस - विकुस - विसुद्ध रुवखमूला मूलमंतो कंदमंतो जाव' अणेगसगड-रह- जाणजुग्ग - गिल्लि - थिल्लि - सीय-संदमाणियपडिमोयणा सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पहिरुवा, पत्तेहि य पुष्फेहि य' अच्छण्ण-पडिच्छण्णा सिरीए अतीव - अतीव उवसोभेमाणाउवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ ५८२. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ तत्थ देसे तर्हि तहि बहवे उद्दालका कोद्दालका मोद्दालका कतमाला णट्टमाला वट्टमाला दंतमाला सिंगमाला संखमाला से माला णाम दुमगणा पण्णत्ता समाणाउसो ! कुस विकुस - विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥ ५८३. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ तत्थ देसे तर्हि तहि बहवे तिलया लउया छत्तोवा सिरसा सत्तिवण्णा लोद्धा धवा चंदणा अज्जुणा णीवा कुडया कदंबा फणसा साला तमाला पियाला पियंगू पारेवया रायरुक्खा मंदिरुक्खा कुस - विकुस - विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥ ५८४. उत्तरकुराए गं कुराए तत्थ - तत्थ देसे तह-तह बहूओ पउमलयाओ णागलयाओ १. जी० ३।२८६ । २. अस्मिन् सूत्रे समाविष्टानामनेकसूत्राणां पूर्ति - स्थलावबोधार्थं द्रष्टव्यं जी० ३।२८६-२६७ । ३. सं० पा०-- सेरिया गुम्मा जाव महाजाइगुम्मा | वृत्तौ अन्तिमं पदं 'महाकुन्दगुल्मा:' इति विद्यते, वृत्तिकृता तिस्रः गाथा: उद्धृताः सन्ति, तत्रापि अन्तिमं पदं महाकुंदे' इति विद्यते, किन्तु जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ती ( २1१० ); भगवत्यां ( २२|५ ) ; प्रज्ञापनायां (१1३८) च अन्तिमं पदं महा जातिगुल्माः इति विद्यते । ४. सेरुतालवणाई हेरुतालवणाई (जंबू ० २।६) । ५. जी० ३।२७४-२७६ । ६. य फलेहि य (जंबू० २८ ) | ७. ३८८ सूत्रे 'पियाल' इति पदं दृश्यते । अत्र वृत्तावपि 'प्रियाला' इति विद्यते, किन्तु ताडपत्रीयादर्श' पियया' इति पदमस्ति । औपपातिके ( सूत्र ) पि पियए हिं' इति पदं लभ्यते । Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमै असोगलयाओ चंपगलयाओ चूयलयाओ वणलयाओ वासंतिकलयाओ अइमुत्तकलयाओ कुंदलयाओ सामलयाओ निच्चं कुसुमियाओ जाव' वडिसयधराओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ॥ __५८५. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहिं-तहिं बहूओ वणराईओ पण्णत्ताओ। ताओ णं वणराईओ किण्हाओ किण्होभासाओ जाव अणेगसगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लिथिल्लि-सीय-संदमाणियपडिमोयणाओ सुरम्माओ पासाईयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ॥ ५८६. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तर्हि-तहिं वहवे मत्तंगया णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से चंदप्पभ-मणिसिलाग-वरसीधु-वरवारूणि-सुजातपत्त-पुप्फफल-चोय-णिज्जाससार-बहुदव्वजुत्तसंभार-कालसंधियासवा महु-मेरग-रिट्ठाभ'-दुद्धजातिपसन्न-तेल्लग-सताउ- खज्जूरमुद्दियासार- काविसायण- सुपक्कखोयरसवरसुरा- वण्णरसगंधफरिसजत्त-बलवीरियपरिणामा मज्जविही बहप्पगारा तहव ते मत्तंगयावि दमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए मज्जविहीए उववेया फलेहिं पुण्णा वीसंदंति कुस विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥१॥ ५८७. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे भिंगंगया णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से करग-घडग-कलस-कक्करि-पायंचणि-उदंक-वद्धणिसुपइट्टग-विद्वर-पारी-चसग-भिंगार-करोडि-सरग-परग-पत्ती- थाल- मल्लग- चवलिय'- दगवारक-विचित्तवट्टक-मणिवट्टक-सुत्तिचारुपिणया कंचण-मणि-रयणभत्तिचित्ता भाजणविधी बहुप्पगारा तहेव ते भिगंगयावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणताए भाजणविधीए उववेयाकुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥२॥ ५८८. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे तुडियंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! जहा से आलिंग-मुइंग-पणव-पडह-दद्दरग-करडि-डिडिम-भंभाहोरंभ-कणिय-खरमहि-मगुंद-संखिय-पिरली-वच्चग- परिवाइणि- वंस- वेणु- सुघोस- विपंचि महति-कच्छभि-रगसिगा तल-ताल-कंसताल-सुसंपउत्ता आतोज्जविधी [बहुप्पगारा?] णिउण-गंधव्वसमयकुसलेहि फंदिया तिढाणसुद्धा तहेव ते तुडियंगयावि दुमगणा अणेगबहविविधवीससापरिणयाए तत-वितत-घण-झुसिराए चउव्विहाए आतोज्जविहीए उववेया कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥३॥ ५८६. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहिं-तहिं बहवे दीवसिहा णाम दुमगणा १. जी० ३।२६८ । ६. उववेया फलेहिं पुण्णाविव विसझंति (जंबू० २. जी० ३।२७५,२७६ । वृत्ति पत्र १०२)। ३. 'रिटरत्नवर्णाभा' रिष्ठा या शास्त्रान्तरे जम्बू- ७. मलयगिरिणा पूर्ववतिसूत्रद्वये 'मज्जविही फलकालिकेति प्रसिद्धा (मव) ३८६० सूत्रे भाजणविहीं' इति पदद्वयं न व्याख्यातम्, प्रस्तुत'जंबूफलकालिया' इति विशेषणं दृश्यते । सूत्रे 'बहुप्पगारा' इति पदं न व्याख्यातम्, किंतु ४. विसटेंति (मवृपा)। रचनाक्रमेण 'आतोज्जविही' बहुप्पगारा इति ५. चवलिअ अवमद (जम्बू० वृत्ति पत्र १००)। पाठः सङ्गतो भवति । Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से संझाविरागसमए नवणिहिपतिणो दीविया-चक्कवालविंदे पभूयवट्टिपलितणेहे धणिउज्जालिए तिमिरमद्दए कणगणिगरण'-कुसुमितपारिजातकवणप्पगासे कंचनमणि रयण-विमल महरिहविचित्तदंडाहि दीवियाहिं सहसापज्जालि उस्सप्पियणिद्ध. तेय-दिप्पंतविमल गहगणसमप्पहाहिं वितिमिरकरसूर-पसरिउज्जोय-चिल्लियाहिं जालुज्जलपहसियाभिरामाहिं सोभेमाणा तहेव ते दीवसिहावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए उज्जोयविधीए उववेया कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥४॥ ____ ५६०. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ- देसे तहिं-तहिं वहवे जोतिसिया णाम दुमगणा पण्णत्ता समणा उसो ! जहा से अचिरुग्गयसरयसूरमंडल-पडतउक्कासहस्स-दिप्पंतविज्जुउज्जलहुयवहनिद्धमजलिय - निद्धंतधोयतत्ततवणिज्ज - किंसुयासोयजासुयणकुसुमविमउलिय पुंज-मणिरयणकिरण-जच्चहिंगुलुयणिगररूवाइरेगरूवा तहेव ते जोतिसियावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए उज्जोयविहीए उववेया कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥५॥ ५६१. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे चित्तंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से पेच्छाधरे विचित्ते रम्मे वरकुसुमदाममालुज्जले भासंतमुक्कपुप्फपंजोवयारकलिए विरल्लियविचित्तमल्ल-सिरिसमदयप्पगब्भे गंथिमवेढिमपूरिमसंघा मेणं मल्लेणं छेयसिप्पिय-विभागरइएण सव्वतो चेव समणबद्धे पविरल-लंबंत-विप्पइटठेहि पंचवण्णेहिं कुसुमदामेहि सोभमाणे वणमालकतग्गए चेव दिप्पमाणे तहेव ते चित्तंगयावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए मल्लविहीए उववेया कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥६॥ ५६२. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे चित्तरसा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से सुगंधवरकल मसालितंदुल-विसिट्टणिरुवहतदुद्धरद्धे सारयघयगुड-खंड-महुमेलिए अतिरसे परमणे होज्ज उत्तमवण्णगंधमंते, रणो जहा वा चक्कवट्टिस्स होज्ज णिउणेहिं सूयपुरिसेहि सज्जिए च उरकप्पसेयसित्ते इव ओदणे कलमसालिणिव्वत्तिए विपक्के सबप्फ-मिउ-विसय-सगल सित्थे अणेगसालणगसंजुत्ते अहवा पडिपुण्णदव्वुवक्खडे सुसक्कए वण्णगंधरसफरिसजुत्त-बलविरियपरिणामे इंदियवलपुट्टिवद्धणे खुप्पिवासमहणे पहाणगुलकढियखंडमच्छंडिघओवणीएव्व मोयगे सहसमियगब्भे पण्णत्ते' तहेव ते चित्तरसा१. कनकनिकर:-सुवर्णराशिः (जंबू० वृत्ति पत्र ४. उववेया सुहलेस्सा मंदलेस्सा मंदातवलेस्सा १०२)। कूडा इव ठाणठिया अन्नमन्नसमोगाढाहिं २. महरिहतवणिजजुज्जलविचित्त -तपनीयं लेस्साहिं साए पभाए सपदेसे सव्वओ समंता सुवर्णविशेषस्तेनोज्ज्वला-दीप्ताः (जम्बू० ओभासंति उज्जोवंति पभाति । वृत्ति पत्र १०२)। एतत् पाठान्तरं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ती (पत्र ३. निर्धमज्वलितोज्वलहतवह' इति संस्कृतरूपस्य १०३) व्याख्यातमस्ति, एकोरुकप्रकरणे च प्राकृते व्यत्ययास्ति, मलयांगरिणा लिखित- प्रस्तुतसूत्रादर्शेष्वपि लभ्यते। मिदम्-सूत्रे च पदोपन्यासव्यत्ययः प्राकृत- ५. हवेज्ज परमेट्ठगसंजुत्ते (जंबू० वृत्ति पत्र १०४)। त्वात् । Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० जीवाजीवाभिगमे वि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए भोजणविहीए उववेया कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ।।७॥ ५६३. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे मणियंगा नाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से हारहार-वेढणग-मउड-कुंडल-वामुत्तगहेमजाल-मणिजालकणगजालग-सुत्तग-ओवियकडग'-खुड्डियएगावलि-कंठसुत्त-मगरिग-उरत्थगेवेज्ज-सोणिसुत्तगचूलामणि-कणगतिलग-फुल्लग-सिद्धत्थय-कण्णवालि-ससि - सूर-उसभ -चक्कग - तलभंगयतुडिय-हत्थ-मालग-हरिसय-केयूर-वलय-पालव - अंगुलेज्जग- वलक्ख-दीणारमालिया'-कंचीमेहला-कलाव- पयरग- पारिहेर ग-पायजाल'- घंटिया-खिखिणि- रयणोरुजाल - वरणेउर - चलणमालिया-कणगणिगलमालिया-कंचणमणिरयणभत्तिचित्ता भूसणविधी बहुप्पगारा, तहेव ते मणियंगावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणताए भूसणविहीए उववेया कुसविकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥८॥ ___५६४. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे गेहागारा नाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से पागारट्टालग-चरिय-दार-गोपुर-पासायाकासतल-मंडवएगसालग-बिसालग-तिसालग-चउसालग- गब्भघर- मोहणघर- वलभिघर- चित्तसालमालय - भत्तिघर-वट्टतंसचउरंसणंदियावत्तसंठिया पंडुरतल मुंडमालहम्मियं अहव णं धवलहरअद्धमागहविब्भम-सेलद्धसेलसुट्ठिय-कूडागारड्ढ'- सुविहिकोढग-अणेगघर-सरण-लेण-आवणा विडंग-जालवंद-णिज्जूह-अपवरक-चंदसालियरूवविभत्तिकलिता भवणविही बहुविकप्पा तहेव ते गेहागारावि दुमगणा अणेगवहुविविधवीससापरिणयाए सुहारुहण-सुहोत्ताराए सुहनिक्खमणप्पवेसाए दद्दरसोपाणपंतिकलिताए पइरिक्क-सुहविहाराए मणोणुकूलाए भवणविहीए उववेया कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥६॥ ५६५. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे अणिगणा णामं दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से आइणग-खोम-तणुय-कंबल-दुगुल्ल-कोसेज्ज-कालमिगपट्ट१. उन्वितिय' (क, ख); उब्विइय' (ग); जायते, अर्थदृष्ट्यापि सुसङ्गतोयं प्रतिभाति । उच्चितिय' (ट); उर्वीकटकं (हस्त० ७. सर्वत्र स्त्रीत्वनिर्देशः प्राकृतत्वात् (म)। वृत्ति )। ८. आदर्शेषु एकोरुकप्रकरणे 'मणोणुकूलाए' इति २. दीनारमालिका चन्द्रमालिका सर्यमालिका पाठो लभ्यते । मलयगिरिवत्तेरुपलब्धादशेष (जंबू० वृत्तिपत्र १०६)। एष पाठो व्याख्यातो नैव प्राप्यते, किन्तु जम्बू३. पादोज्ज्वलं (मवृ)। द्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तौ (पत्र १०७) प्रस्तुतसूत्राला४. जाल खुड्डिअ (जंबू० वृत्ति पत्र १०६)। पकानां वृत्तिरुद्धतास्ति, तत्र एष पाठो व्याख्या५. सेल अद्धसेलसंठिय (जंबू० वृत्तिपत्र १०६)। तोस्ति, तेनात्र चायं मूले स्वीकृतः । ६. आदर्शषु 'कूडागार?' इति पदं लभ्यते, हस्तलि- ६. मलयगिरिवृत्तेरुपलब्धादर्शेषु एतत् पदं व्याख्यातं खितवत्तिद्वये मुद्रितवृत्तौ चापि तथैव तदस्ति, नैव लभ्यते । जम्बद्वीपप्रज्ञप्तिवत्तौ (१०७) किन्तु जम्बूद्धीपप्रज्ञप्तिवृत्तौ (पत्र १०७)कूटा- प्रस्तुतसूत्रसंवादिपाठव्याख्यायां एतत् व्याख्याकारेण-शिखराकृत्याढ्यानि इति व्याख्यात- तमस्ति-तनु:-शरीरं सुखस्पर्शतया लातिमस्ति, तेन कूडागारड्ढ' इति पाठस्य अवबोधो अणुगृह्णाति तनुलं-तनुसुखादि कम्बलः प्रतीतः Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ३७१ अंसुय-चीणंसुय-पट्टा आभरणचित्त-सहिणग'-कल्लाणग-भिगिणील-कज्जलबहुवण्ण- रत्त-पीतसुक्किल-सक्कय-मिगलोमहेमप्प-रल्लग-अवरुत्तर-सिंध-उसभ-दामिल-वंग-कलिंग- नलिणतंतुमयभत्तिचित्ता वत्थविही बहुप्पकारा हवेज्ज वरपट्टणुग्गता वण्णरागकलिता तहेव ते अणिगणावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणताए वत्थविधीए उववेया कुस-विकुसविसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥१०॥ ५६६. उत्तरकुराए णं भंते ! कुराए मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ते णं मणुया अतीव सोमचारुरूवा भोगुत्तमगयलक्खणा भोगसस्सिरीया सुजायसव्वंगसुंदरंगा सुपतिट्ठिय-कुम्मचारुचलणा रत्तुप्पलपत्त-मउयसुकुमालकोमलतला नग-नगरमगर-सागर-चक्कंकहरंक-लक्खणंकियचलणा अणुपुव्वसुसाहतंगुलीया उण्णय-तणु-तंबणिद्धणखा' संठिय-सुसिलिट्ठ-गूढगुप्फा एणी-कुरुविंद-वत्त-वट्टाणुपुव्वजंघा समुग्ग-णिमग्गगूढजाणू गयससण-सुजात-सण्णिभोरू वरवारणमत्त-तुल्लविक्कम-विलासितगती पमुइयवरतुरग-सीहवरवट्टियकडी 'वरतुरग-सुजातगुज्झदेसा" आइण्णहयव्व णिरुवलेवा साहयसोणंद-मसल-दप्पण-णिगरितवरकणगच्छरुसरिस-वरवइरवलितमज्झा 'उज्जय-समसंहित-सूजात-जच्चतण-कसिण-णिद्ध-आदेज्ज-लडह-सुकुमाल-मउय-रमणिज्जरोमराई गंगावत्तय-पयाहिणावत्त-तरंगभंगुर-रविकिरणतरुणबोधिय- आकोसायंतपउम- गंभीरवियडणाभा 'तणुअकम्बल' इति पाठे तु तन्तुकः-सूक्ष्मोर्णा- धिकपदमपि दृश्यते तत्तु वृत्तावव्याख्यातं स्वयं कम्बलः। पर्यालोच्यमानमपि च नार्थप्रदमिति न लिखितं. १. अतः परं मलयगिरिवत्ती गंभीर नेहल गयाल' तेन तत् सम्प्रदायादवगन्तव्यं, तमन्तरेण सम्यक एतानि त्रीणि पदानि व्याख्यातानि दृश्यन्ते- पाठशुद्धरपि कर्तुमशक्यत्वादिति । गम्भीराणि-निपुणशिल्पिनिष्पादिततयाऽलब्ध- २. चक्क+अंकहर--अंक=चक्कंकहरंक । स्वरूपमध्यानि 'नेहल' त्ति स्नेहलानि-स्निग्धानि ३. °णक्खा (जंबू० वृत्तिपत्र ११०; पण्ह० ४७) । 'गयालानि' उद्वेल्यमानानि परिधीयमानानि ४. प्रश्नव्याकरणस्य (४७) मूलपाठे 'णिसग्ग' वा गर्जयन्ति । अस्य विवरणस्य अनन्तरमेव इति पदम्, तस्य पाठान्तरे णिमग्ग' इति पदवृत्तिकृता लिखितं-शेषं सम्प्रदायादवसातव्यं, मस्ति । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तौ (पत्र ११०) तमन्तरेण सम्यक् पाठशुद्धेरपि कर्तुमशक्यत्वात् णिसग्ग' पदस्य पाठान्त रत्वेन उल्लेखोस्ति । जम्बूद्वीपवृत्तिकृता शान्ति चन्द्रसूरिणा 'सहिणग' ५. श्वशन:-शुण्डादण्डः । इति पदानन्तरं प्राप्तस्य पाठस्य व्याख्या कृता- ६. सुजातशब्दस्य विशेषणस्यापि सतः परनिपातः स्ति । तदर्शनेन ज्ञायते 'भिंगि णील कज्जल' प्राकृतत्वात् (मवृ)। एतेषां पदानामेव विपर्यस्त पाठः 'गंभीर नेहल ७. मत्तशब्दस्य विशेष्यात्परनिपातः प्राकृतत्वात गयाल' इति जातः प्रमादः लिपिदोषेण, मलय- (मव)। गिरिणा तथाविध एव आदर्शः उपलब्धः । ८. क्वचित्पुनरेवं पाठः पमुइयवरतुरगसीहाइरेगजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ती जीवाभिगमवृत्तेरविवृतः वट्टियकडी' (मवृ); प्रश्नव्याकरणस्य (४७) पाठो विवृतोस्ति । अस्य पाठस्य विषये शान्ति- मूले अयमेव पाठः स्वीकृतः । तत्र नास्ति पाठाचन्द्रसूरिणा स्वयं टिप्पणी कृता-अत्र चाधिकारे न्तरं किञ्चित्।। जीवाभिगमसूत्रादर्श क्वचित्-क्वचित् किञ्चिद- ६. पसत्थवरतुरगगुज्झदेसा (मवपा) । Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ३७२ झस - विहग-सुजातपीकुच्छी झसोदरा सुइकरणा" सण्णयपासा' संगतपासा सुंदरपासा सुजातपासा मितमाइय-पीणरइयपासा अकरंड्यकणगरुयगनिम्मल सुजाय - निरुवह देहधारी कणगसिलातलुज्जल-पसत्थ-समतल उवचिय-विच्छिण्ण-पिहुलवच्छा सिरिवच्छं कियवच्छा 'जुगसन्निभपीणरतियपीवरपउट्ठ-संठियसुसिलिट्टवि सिघण थिर सुबद्धसंधी" पुरवर फलिहभुया भुयगीसर विपुल भोग- आयाणफलिहउच्छूढ दीहवाहू 'रत्ततलोवइत-मउयमंसल - सुजाय - अच्छिद्दजालपाणी" पीवरकोमलवरंगुलीया' आतंव तलिण सुचि-रुइरणिद्धक्खा चंदपाणिलेहा सूरपाणिलेहा संखपाणिलेहा चक्कपाणिलेहा दिसासोवत्थियपाणिलेहा 'चंद-सूर-संख-चक्क- दिसासोवत्थिय - पाणिलेहा " अणेगवरलक्खणुत्तम-पसत्थ- सुविरइयपाणिलेहा" "वरमहिस-वराह-सीह सद्दूल-उसभ-णागवर-पडिपुन्नविउलखंधा चउरंगुल सुप्पमाणकंबुवरसरिसगोवा मंसलसंठिय-पसत्थ-सद्दूलविपुलहणुया अवट्ठित-सुविभत्त-चित्तमंसू विलिप्वाल विवफल-सन्निभाहरोट्ठा पंडुरससिसगल - विमलनिम्मल संख-गोखीरफेणकुंद- दगरयमुणालिया-धवलदंतसेढी अखंडदंता अप्फुडियदंता सुजातदंता अविरलदंता एगदंत सेदिव्व अगदंता हुतवहनिद्धंतधोततत्ततवणिज्ज-रत्ततलतालुजीहा गरुलायतउज्जुतुंगणासा कोकासित-धवलपत्तलच्छा विष्फालियपुंडरीयनयणा' ' आणा मियचावरुइल १. मलयगिरिवृत्तौ चिन्हाङ्कितपाठो व्यत्ययेन लभ्यते - झसविह्गसुजातपीणकुच्छी झसोदरा सुइकरणा गंगावत्तयपया हिणावत्तत रंगभंगुररविकिरणतरुणबोधियआको सायं तपउम गंभीरवियडणाभा उज्जुयसमसहितसुजातजच्चतणुक सिणि आज्जल डहसुकुमालमउयरमणिज्जरोमराई । प्रस्तुतसूत्रस्यैव योगलिकस्त्रीवर्णने स्वीकृतपाठक्रमो दृश्यते, प्रश्नव्याकरणेपि (४।७) स्वीकृत पाठ संवादिक्रमो विद्यते, एकोरुकप्रकरणे प्रस्तुतसूत्रादर्शष्वपि एष एव क्रमस्ति । २. अतः पूर्वं आदर्शेषु वियडणाभा' इति पाठोस्ति मलयगिरिणा तस्य पाठान्तररूपेण उल्लेख: कृत : --- क्वचिद् 'पम्हवियडनाभा' । प्रश्नव्याकरणे (४७) गंगावत्तयं' ० इति पाठस्य वृत्तिकृता बाहुल्येन अपाठः सूचित:, तेन तत्र स पाठान्तररूपेण स्वीकृतः अत्र च प्रस्तुतसूत्रवृत्तिकृता पम्हवियडनाभा' इति पाठ: पाठान्तरत्वेन सूचितः । एतौ द्वावपि पाठी नाभिवर्णनपरी विद्येते, तयोरेक एव पाठः स्वीकार्योस्ति, स च वृत्तिमनुसृत्य अत्र 'गंगावत्तय' ० इति पाठ एव स्वीकृतः । ३. जुगसन्निभपीण रइयपउट्ठसंठियो वचियघणथिर - सुबद्धसुनिगूढपव्वसंधी (मवृपा ) । ४. मलयगिरिणा असौ पाठः पूर्ववतिपाठेन सह समस्तीकृत:, तेन पूर्ववतिपाठः भुजविशेषणं जातः । अभयदेवसूरिणा प्रश्नव्याकरण (४/७ ) वृत्ती 'जुगसन्निभ०' इति पाठ: स्वतंत्ररूपेण व्याख्यातः । स एव क्रमोस्माभिरनुसृतः । ५. रत्ततलोवइयमंसल सुजायपसत्थलक्खणअच्छिद्दजालपाणी (मवृपा) । ६. पीवरवट्टिय सुजायको मलवरंगुलीया (मवृपा) । ७. रविससिसंखवर चक्क सोत्थिय विभत्तसुविरइयपाणिरेहा (मवृपा) । ८. सुचिरइय० (मवृ) ; सम्भाव्यते वृत्तिकृता ' सूचि - रइय' इति पाठो लब्धः तेन तथा व्याख्यातः - शुचयः - पवित्रा रचिताः स्वकर्मणा । किन्तु अर्थमीमांसा 'सुविरइय' इति पाठ एवं सङ्गतोस्ति । वृत्तिकृता रविससि ' ० इति पाठान्तरे सुविरचिता- सुष्ठुकृता इति व्याख्यातम् । ६. अवदालियपोंडरीयनयणा ( मवृपा ) । Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहपडिवत्ती ३७३ तणु-कसिण-निद्धभुया" अल्लीण-प्पमाणजुत्त-सवणा सुसवणा पीण-मंसल-कवोल-देसभागा निव्वण-सम-लट्ठ-मट्ठ-चंदद्धसमनिडाला उडुवतिपडिपुण्णसोमवदणा घणणिचियसुवद्धलक्खगुण्णयकडागारणिभ-पिडियसिरा छत्तागारुत्तमंगदेसा दाडिमपुप्फपगास-तवणिज्जसरिसनिम्मल-सुजाय-केसंतकेसभुमी सामलिबोंडघणणिचियछोडिय-मिउविसयपसत्थसुहमलक्खणसुगंधसुंदर- भुयमोयगभिगि - णील- कज्जल- पहभमरगणणिद्ध- णिकरंबनिचिय- कंचियपयाहिणावत्त-मुद्धसिरया लक्खणवंजणगुणोववेया सुजायसुविभत्तसुरूवगा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूबा ॥ ___ ५६७. उत्तरकुराए णं भंते ! कुराए मणुईणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ताओ णं मणुईओ सुजायसव्वंगसुंदरीओ पहाणमहेलागुणजुत्ताओ' 'अइकंत-विसप्पमाण-पउमसूमाल-कुम्मसंठित- विसिट्ठचलणा" उज्जु-मउय - पीवर-पुट्ठ-साहयंगुलीओ उण्णय-रतिय-तलिणतंव-सुइ-णिद्धणखा रोमरहिय-वट्ट-लट्ठसंठिय-अजहण्णपसत्थलक्खणजंघजयला 'सणिम्मिय-सूगृढजाण मंसलसुबद्धसंधी" कयलीखंभातिरेगसंठिय-णिव्वण-सुकमालमउय-कोमल-अविरल-सम-संहत-सुजात-वट्ट-पीवर-णिरंतरोरू अट्ठावयवीचिपट्टसंठियपसत्थ-विच्छिण्ण-पिहलसोणी वदणायामप्पमाणदुगुणितविसाल-मसलसुबद्धजहणवरधारणीओ 'वज्जविराइय-पसत्थलक्खणनिरोदरा तिवलिवलिय-तणुणमियमज्झिआओ" उज्जुय-सम१. क्वचित्पाठ:--'आणामियचारुरुचिलकिण्हन्भ- ६. अइविमल (मवृ) अर्थसमीक्षया 'अविरल' इति राईसंठियसंगयआययसुजायभुमया'। क्वचित्- पदमेव सुसङ्गतमस्ति । पुनरेवं पाठः --'आणामियचावरुइलकिण्हब्भरा- ७. मलयगिरिणा 'पट्टसंठिय' इति पाठो व्याख्यातः इतणुकसिणनिद्धभुमया' (मवृ)। --पट्टवत्-शिलापट्टकादिवत् संस्थिता पट्ट२. महिला (जंबु० २।१४) । संस्थिता। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः हीरविजयवृत्ती ३. कतविसयमिउसूकूमालकुम्मसंठियविसिट्रचलणा (हस्तलिखित पत्र १०२) 'पटुः इति पाठो (मवृ); अइकंतविसप्पमाणमउयसूमालकुम्म- व्याख्यातोस्ति---अष्टापदस्य द्यूतविशेषस्य संठियविसिट्ठचलणा (जंबु० २।१४)। वीचय इव वीचयस्तरङ्गाकारा रेखास्तत्प्रधान४. "लक्खणअकोप्पजंघजुयला (जंबु० २।१४) । पृष्ठमिव पृष्ठं फलकं अष्टापदवीचिफलक ५ चिन्हाङ्कितः पाठः प्रश्नव्याकरणं (४८) तत्संस्थिता। प्रश्नव्याकरण (४८) वृत्तौ अनुसत्य स्वीकृतः । एकोरुकप्रकरणे आदर्शेष्वपि 'अट्ठावयवीचिपट्ठसंठिय' इति पाठो व्याख्याएष एव पाठो लभ्यते। तत्र प्रश्नव्याकरणे तोस्ति-आष्टापदस्य द्यूतविशेषस्य वीचय इव विद्यमानमपि पसत्थ' इति पदं नास्ति । वीचयस्तरंगाकारा रेखास्तत्प्रधानं पृष्ठमिव सम्भाव्यते मलयगिरिणा---'सुनिम्मियसुगूढ- पृष्ठं फलकं अष्टापदवीचिपृष्ठं तत्संस्थिता जाणुमंडलसुबद्धा' इत्येव पाठो लब्धः, तेन तथा तत्संस्थाना। एकोरुकप्रकरणे प्रस्तुतसूत्रादर्शेषु व्याख्यातः । किन्तु अर्थसमीक्षया नासौ संगच्छते । 'अट्ठावयवीचिपट्टसंठिय' इति पाठो लभ्यते । 'मंडल' शब्दस्यापि नास्ति काचित् सार्थकता। अत्र स एव आदृतः । 'मंसलसुबद्धसंधी' इत्यस्य परिवर्तितोल्लेखः ८. तिवलिविणीय (मव)। 'मंडलसुबद्धा' इति प्रतीयते। द्रष्टव्यं जंबुद्दीव- ६. मलयगिरिणा चिन्हाङ्कितः पाठः समासपूर्वक पण्णत्ती २।१४। व्याख्यातः । शान्तिचन्द्रसूरिणा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ते Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ जीवाजीवाभिगमे संहित-जच्चतणु-कसिण-णिद्ध-आदेज्ज-लडह-सुविभत्त-सुजात-सोभंत - रुइल - रमणिज्जरोमराई गंगावत्तय-पयाहिणावत्त-तरंगभंगुर - रविकिरणतरुणबोधिय-आकोसायंतपउम-गंभीरवियडणाभा अणुब्भड-पसत्थ-पीणकुच्छी सण्णयपासा संगयपासा सुंदरपासा सुजायपासा मितमाइयपीणरइयपासा अकरंडुय-कणगरुयगनिम्मल-सुजाय-णिरुवहयगातलट्ठी कंचणकलससुप्पमाण-सम-संहित-सुजात-लट्ठचूचुयआमेलग-जमलजुगल-वट्टिय- अब्भुण्णयरतियसंठियपयोधराओ भुजंगअणुपुव्वतणुय'-गोपुच्छवट्टसम-संहिय-णमिय-आएज्ज-ललियवाहा तंबणहा मंसलग्गहत्था पीवरकोमलवरंगुलीआ णिद्धपाणिलेहा रवि-ससि-संख-चक्क-सोत्थिय-विभत्तसुविरइयपाणिलेहा पीणुण्णयकक्ख-वक्ख-वत्थिप्पदेसा पडिपुण्णगलकवोला चउरंगुलसुप्पमाणकंबुवरसरिसगीवा मंसल-संठिय-पसत्थहणुया दाडिमपुप्फप्पगास-पीवरपवराधरा सुंदरोतरोटा दधिदगरयचंदकुंदवासंतिमउलधवल-अच्छिद्दविमलदसणा रत्तुप्पलरत्त-मउयसूमालतालुजीहा कणइरमउल-अब्भुग्गय-उज्जुतुंगणासा सारयणवकमलकुमुदकुवलयविमुक्कदलणिगरसरिस-लक्खणअंकियणयणा पत्तल-चवलायंत'-तंबलोयणाओ आणामितचावरुइलकिण्हब्भराइसंठिय-संगत-आयय-सुजात-तणु-कसिण-णिद्धभमुया अल्लीण-पमाणजुत्त-सवणा पीण-मट्ठ-रमणिज्जगंडलेहा चउरंस-पसत्थ-समणिडाला कोमुइरयणिकर-विमलपडिपुण्णसोमवयणा छत्तुन्नयउत्तिमंगा कुडिल-सुसिणिद्ध-दीहसिरया छत्त-ज्झय-जूव-थूभ-दामिणिकमंडलु - कलस-वावि - सोत्थिय - पडाग-जव-मच्छ - कुम्म-रहवर-मगर-सुक'-थाल-अंकुसअट्रावय-सुपइट्ठक-मऊर'-सिरिदामाभिसेय-तोरण-मेइणि-उदधि-वरभवण -गिरि-वरआयंसललियगय-उसभ-सीह-चामर-उत्तमपसत्थबत्तीसलक्खणधरीओ हंससरिसगतीओ कोइलमहुरगिरासुस्सराओं कंताओ सव्वस्स अणुमयाओ ववगतवलिपलिया वंग-दुव्वण्ण-वाही-दोभग्गसोगमुक्काओ 'उच्चत्तेण य नराण थोवूणमूसियाओ" सभावसिंगारचारुवेसा" संगय-गय वृत्तौ (पत्र ११४) अस्यैव अनुसरणं कृतम्। (पण्हा० वृत्ति)। प्रश्नव्याकरण (४।८) वृत्तौ 'निरोदरा' इत्यन्तः ७. सिरियाभिसेय (पण्हा० ४।८); श्रियोभिषेको पाठः स्वतंत्ररूपेण व्याख्यातः । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ते- लक्ष्म्या अभिषेक: (जंबू० वृत्तिपत्र ११६) । हीरविजयवृत्तौ पुण्यसागरवृत्तौ च प्रश्नव्याकरण- ८. पवरभवण (पण्हा० ४।८) । वृत्तितुल्या व्याख्यातास्ति । ६. कोयलमहुयरिगिराओ (पण्हा० ४८); एष १. अणुपुव्वतणुय (मवृ)। पाठः स्वाभाविकः प्रतिभाति । स्वीकृतपाठः २. अतोने जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तौ (पत्र ११५) केनापि कारणेन परिवर्तित इवाभाति । प्रश्न__ 'अकुडिल' इति पदं व्याख्यातमस्ति । व्याकरणानुसारेण यदि पाठः परिकल्प्यते तदा ३. पत्तलधवल (जम्बू० वृत्तिपत्र ११५) । 'कोइलमहुयरिसुस्सराओ' इति पाठो निष्पद्यते । ४. मगरज्झय (जम्बू० वृत्तिपत्र ११६; पण्हा० १०. चिन्हाङ्कितपाठः मलयगिरिवृत्तौ नास्ति ४८)। व्याख्यातः । प्रश्नव्याकरणे (४८) जम्बूद्वीप५. अंक (पण्हा० ४८); अङ्कः-चन्द्रबिम्बा प्रज्ञप्तिवृत्तौ (पत्र ११६) तथा एकोरुकप्रकरणे न्तर्वर्तीश्यामावयवः, क्वचिदङ्कस्थाने शुक इति सर्वादशेषु एष उपलभ्यते । दृश्यते (जंबू० वृत्तिपत्र ११६) । ११. सिंगारागारचारुवेसा (पण्हा० ४।८); बहुषु ६. अमर (पण्हा० ४।८); मयूरः अमरो वा आगमेषु एष एव पाठः उपलभ्यते । आगमेष एण Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ३७५ हसिय-भणिय-चेद्रिय-विलास-संलाव-णिउणजुत्तोवयारकुसला सुंदरथण-जहण-वयण-करचरण-णयण-लावण्ण-वण्ण-रूव'-जोव्वण-विलासकलिया नंदणवणचारिणीओव्व' अच्छराओ' अच्छेरगपेच्छणिज्जा पासाईयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ॥ ५६८. ते णं मणुया ओहस्सरा हंसस्सरा कोंचस्सरा नंदिस्सरा नंदिघोसा सीहस्सरा सीहघोसा' मंजुस्सरा मंजुघोसा सुस्सरा सुस्सरणिग्घोसा पउमुप्पलगंधसरिसनीसाससुरभिवयणा छवी णिरातंक-उत्तमपसत्थअइसेस-निरुवमतणू जल्ल-मल-कलंक-सेय-रय-दोसवज्जियसरीर-निरुवलेवा छायाउज्जोइयंगमंगा अणुलोमवाउवेगा कंकग्गहणी कवोतपरिणामा सउणिपोस-पिट्ठतरोरुपरिणता विग्गहिय-उन्नयकुच्छी वज्जरिसभनारायसंघयणा समचउरंससंठाणसंठिया छधणुसहस्समूसिया। तेसिं मणयाणं दोछप्पन्नपिट्रिकरंडगसता पण्णत्ता समणाउसो ! ते णं मणुया पगतिभद्दगा पगति उवसंता पगतिपयणकोहमाणमायालोभा मिउमद्दवसंपण्णा अल्लीणा भद्दगा विणीया अप्पिच्छा असंनिहिसंचया अचंडा विडिमंतरपरिवसणा जहिच्छियकामगामिणो य ते मणु यगणा पण्णत्ता समणाउसो !॥ ५६६. तेसि णं भंते ! मणुयाणं केवतिकालस्स आहारट्टे समुप्पज्जति ? गोयमा ! अट्ठमभत्तस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति ॥ ६००. ते णं भंते ! मणुया किमाहारमाहारेंति ? गोयमा ! पुढवीपुप्फफलाहारा ते मण्यगणा पण्णत्ता समणाउसो !॥ ६०१. तीसे णं भंते ! पुढवीए केरिसए आसाए पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहाणामए गुलेति वा 'खंडेति वा” सक्कराति वा 'मच्छंडियाति वा" पप्पडमोयएति वा भिसकंदेति" वा पुप्फुत्तराइ वा पउमुत्तराइ वा विजयाति वा महाविजयाति वा उवमाति वा अणोवमाति वा चाउरक्के वा गोक्खीरे खंडगुलमच्छंडिउवणीए" पयत्तमंदग्गिकढिए वण्णेणं उववेते गंधेणं उववेते रसेणं उववेते फासेणं उववेते भवेयारूवे सिया ? नो तिणठे समठे, तीसे णं पुढवीए एत्तो इट्टतराए चेव कंततराए चेव पियतराए चेव ‘मणुण्णतराए चेव"मणामतराए चेव आसाए णं पण्णत्ते ।। १. एतत्पदं मलगगिरिवृत्तौ नास्ति व्याख्यातम् । ७. वृत्ती क्वचित् मनुजगणाः क्वचित् मनुजाः २. नंदनवणविवरचारिणीओव्व (पण्हा० ४१८)। इति प्रकारद्वयेन व्याख्यातमस्ति । ३. अच्छराओ उत्तरकुरुमानुसच्छराओ (पण्हा० ८. x (मव) । ४१८)। ६. x (ता)। ४. अतोने वृत्तौ चतुर्णा पदानां एष व्याख्या- १०. भिसकंडएति (ता)। क्रमोस्ति–एवं सिंहस्वरा दुन्दुभिस्वरा नन्दि- ११. उववेते (ता)। स्वराः, नन्द्या इव घोषः-अनुनादो येषां ते १२. वृत्तो ‘पयत्त' इति पदं व्याख्यातं नास्ति । नन्दीघोषाः । ३१६८६ सूत्रे 'प्रयत्नेन मन्दाग्निना क्वथितम्' ५. सीहणिग्घोसा (ता)। इति व्याख्यातमस्ति (वृत्ति पत्र ३५३) । ६. अणिहिसंचया (ता)। १३. वृत्तौ नास्ति व्याख्यातः । Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ जीवाजीवाभिगमे ६०२. तेसि णं भंते ! पुप्फफलाणं केरिसए आसाए' पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहाणामए रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स कल्लाणे भोयणे सतसहस्सनिप्फन्ने वण्णणं उववेते गंधेणं उववेते रसेणं उववेते फासेणं उववेते आसादणिज्जे वीसादणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे विहणिज्जे सव्विदियगातपल्हायणिज्जे, भवेयारूवे सिया? णो तिणठे समठे, तेसि णं पुप्फफलाणं एत्तो इट्टतराए चेव जाव मणामतराए चेव आसाए णं पण्णत्त । ६०३. ते णं भंते ! मणुया तमाहारमाहारित्ता कहि वसहि उर्वति? गोयमा ! रुक्खगेहालया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ६०४. ते णं भंते ! रुक्खा कि संठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! अप्पेगा कूडागारसंठिया अप्पेगा पेच्छाघरसंठिया अप्पेगा छत्तसंठिया अप्पेगा झयसंठिया अप्पेगा थूभसंठिया अप्पेगा तोरणसंठिया अप्पेगा गोपुरसंठिया अप्पेगा वेइयसंठिया अप्पेगा चोप्पालसंठिया अप्पेगा अट्टालगसंठिया अप्पेगा वीहिसंठिया अप्पेगा पासायसंठिया अप्पेगा हम्मियतलसंठिया अप्पेगा गवक्खसंठिया अप्पेगा वालग्गपोतियसंठिया अप्पेगा वलभीसंठिया अप्पेगा वरभवणविसिट्ठसंठाणसंठिया सुहसीयलच्छाया ण ते दुमगणा पणत्ता समणाउसो !॥ - ६०५. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए गेहाणि वा गेहाययणाणि वा ? णो तिणढे समठे, रुवखगेहालया ण ते मणुयगणा पण्णता समणाउसो ! ।। ६०६. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए गामाति वा गराति वा जाव सन्निवेसाति वा ? णो तिणठे समठे, जहिच्छिय कामगापिणो णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो !।। ६०७. अत्थि णं भंते ! उतरकुराए कुराए असीति वा मसीति वा किसीति वा 'विवणीति वा" पणीति वा वाणिज्जाति वा ? नो तिणठे समठे, ववगयअसिमसिकिसिविवणिपणिवाणिज्जा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समकाउसो !। ६०८. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुरए हिरण्णेति वा सुवण्णति वा कंसेति वा दूसेति १. अस्सादे (ता)। इत्यस्य स्थाने जनच्छिअकामगामिणो' इति २. एकोरुकप्रकरण आदर्शषु जहिच्छियकाम- पाठ.. गामिणो' इति पाठोस्ति । वृत्तिकृता मलय- ३. ४ (मवृ); जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तः पुण्यसागरवृत्ती गिरिणात्र 'जं नेच्छियकामगामिणो' इति एष पाठी व्याख्यातोस्ति-'विवणित्ति' विपपाठो व्याख्यातोस्ति-यद-यस्मान्नेच्छित- णिरिति हापजीविनः । कामगामिनः-न इच्छितं-इच्छाविषयीकृतं ४. प्रस्तुतप्रकरणे 'सुवर्ण कांस्य दृष्य' पदत्रयस्य नेच्छितं, नायं नत्र किन्तु नशब्द इत्यत्राना- प्रयोगः कथं संभवेत ? उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण देशाभावो यथा 'नके द्वेषस्य पर्याया' इत्यत्र, एप प्रश्नः समुपढोकितः तस्य समाधानमपि नेच्छितं-इच्छाया अविषयीकृतं काम- कृतम् ----घटितं सुवर्णं तथा ताम्रपुसंयोगजं स्वेच्छया गच्छन्तीत्येवंशीला नेच्छितकाम- कांस्यं तथा तन्तुसन्तानसम्भवं दुष्यं तत्र कथं गामिनः । शान्तिचन्द्रसूरिणा जम्बूद्रीपप्रज्ञप्ति- सम्भवेयुः ?, शिल्पिप्रयोगजन्यत्वात् तेषां, न च वत्तौ (पत्र १२२) अस्य पाठस्य समर्थनं तान्यत्रातीतोत्सर्पिणीसत्कनिधानगतानि संभवकृतम्-जीवाभिगमे तु 'जहेच्छिअकामगामिणो' तीति वाच्यं, सादिसपर्यवसितप्रयोगबन्धस्या Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ३७७ वा मणिमोत्तियसंख सिलप्पवालसंतसा रसावएज्जेति वा ? हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं माणं तिव्वे ममत्तभावे समुपज्जति ॥ ६०६. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए रायाति वा जुवरायाति वा ईसरेति वा तलवरेइ वा कोडुबिएति वा माडंविएति वा इन्भेति वा सेट्ठीति वा सेणावतीति वा सत्थवाहेति वा ? णो तिट्ठे समट्ठे, ववगयइड्ढिसक्कारा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! | ६१०. अस्थि भंते ! उत्तरकुराए कुराए दासेति वा पेसेति वा सिस्सेति वा भयगेति वा भाइलगेति वा कम्मारएति वा ? नो तिणट्ठे समट्ठे, ववगतआभिओगिया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ६११. अस्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए माताति वा पियाति वा भायाति वा भइणीति वा भज्जाति वा पुत्ताति वा धूयाति वा सुण्हाति वा ? हंता अत्थि, नो चेवणं तेसि णं मणुयाणं तिब्वे पेज्जबंधणे समुप्पज्जति, पयणुपेज्जबंधणा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! | ६१२. अस्थि भंते ! उत्तरकुराए कुराए अरीति वा वेरीति' वा घातकेति वा वहकेति वा परिणीति वा पच्चामित्तेति वा ? णो तिणट्ठे समट्ठे, ववगतवेराणुबंधा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ६१३. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए मित्तेति वा वयंसेति वा सहीति वा सुहित वा संगतिति वा ? णो तिणट्ठे समट्ठे, ववगतनेहाणुरागा ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ।। ६१४. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए आवाहाति वा वीवाहाति वा जन्नाति वा सद्धाति वा थालिपाकाति वा पितिपिंड निवेदणाति' वा 'चूलोवणयणाति वा सीमंतोवणयणाति वा " ? णो तिणट्ठे समट्ठे, ववगतआवाहवीवाहजन्नसद्धथालिपाग पितिपिंड निवेदणचूलोवणयणसीमंतोवणयणा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ६१५. अत्थि' णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए इंदमहाति वा खंदमहाति वा रुद्दमहाति हावा समणमहाति वा णागमहाति वा 'जक्खमहाति वा भूतमहाति वा मुकुंद सङ्ख्ये काल स्थितेरसम्भवात्, एगोरुगोत्तरकुरुसूत्रयोरेतदालापकस्याकथनप्रसङ्गात्, उच्यतेसंहरणप्रवृत्तक्रीडाप्रवृत्तदेवप्रयोगात् तानि सम्भवन्तीति सम्भाव्यत ( वृत्ति पत्र १२२ ) । प्रस्तुतप्रश्नस्य एतत् समाधानं स्वाभाविकं भवति-वर्णके कानिचित्पदानि प्रवाहपातीन्यपि भवन्ति । १. वेरिएति (जंबु० २।२८ ) । २. वयंसाइ वा णायएइ वा घाडिएइ वा (जंबु० २०२९) । ३. सदाति (ता) । ४. मितपिंडणिवेतणाति (मवृ) | ५. x (जंबु० २/३० ) ; क्वचित् 'सीमंतुण्ण। वृत्तौ एतस्य पाठस्यानुसारिणी व्याख्या वर्तते सीमन्तोन्नयनानीति वा, सीमन्तोन्नयनं —गर्भस्थापनम् । ६. वृत्तौ एतत्सूत्रं प्रेक्षासूत्रानन्तरं व्याख्यातमस्ति । ७. भद्द० (ता) । Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८ जीवाजीवाभिगमे महाति वा " कूवमहाति वा तलागमहाति वा णदिमहाति वा दहमहाति वा पव्वयमहाति वा 'रुक्खमहाति वा चेइयमहाति वा थूभमहाति वा " ? णो तिणट्ठे समट्ठे, ववगतमहामहिमा ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ६१६. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए णडपेच्छाति वा णट्टपेच्छाति वा जल्लपेच्छाति वा मल्लपेच्छाति वा मुट्ठियपेच्छाति वा वेलंबगपेच्छाति वा कहगपेच्छाति वा पवगपेच्छाति वा लासगपेच्छाति वा अक्खाइगपेच्छाति वा लंखपेच्छाति वा मंखपेच्छाति वालपेच्छाति वा 'तुंबवीणपेच्छाति वा कावपेच्छाति वा " मागहपेच्छाति वा ? णो तिणट्ठे समट्ठे, ववगतको हल्ला* णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ।। ६१७. अस्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए सगडाति वा रहाति वा जाणाति वा जुग्गाति वा गिल्लीति वा थिल्लीति वा सीयाति वा संदमाणियाति वा ? णो तिणट्ठे समट्ठे, पादचारविहारिणो णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ६१८. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए आसाति वा हत्थीति वा उट्टाति वा गोणाति वा महिसाति वा खराति वा घोडाति वा अजाति वा एलाति वा ? हंता अस्थि, नो चेवणं सि मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति ॥ ६१९. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए गावीति वा महिसीति वा उट्टीति वा अयाति वा एलिगति वा ? हंता अत्थि, नो चेव णं तेसि मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति ॥ ६२०. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए सीहाति वा वग्घाति वा विगाति वा दीविगति वा अच्छाति वा परस्सराति वा सियालाति वा विडालाति' वा सुणगाति वा Categoगात वा को तियाति वा ससगाति वा 'चित्तलाति वा " चिल्ललगाति वा ? हंता अत्थि, नो चेवणं ते अण्णमण्णस्स तेसि वा मणुयाणं किंचि आबाहं वा वाबाहं वा छविच्छेद वा करेंति, पगतिभद्दगा' णं ते सावयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ६२१. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए सालीति वा वीहीति वा गोधूमाति वा जवाति वा तिलाति' वा उक्बूति वा ? हंता अत्थि, नो चेव णं तेसि मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति ॥ ६२२. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए खाणूति वा 'कंटएति वा हीरएति वा सक्कराति वा तणकयवराति वा पत्तकयवराति वा असुईति वा पूइयाति वा दुब्भिगंधाति वा अचोक्खाति वा ? णो तिणट्ठे समट्ठे, 'ववगयखाणु-कंटक - हीर-सक्कर-तणकयवरपत्तकयवर-असुई - पूइय- दुब्भिगंधमचोक्खपरिवज्जिया " णं उत्तरकुरा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ १. भूतक्ख (ता) । २. रुक्खावेतियथूभचेतियमहाति वा (ता) । ३. तुंववीणिसूत (ता) । ४. व्यपगत कौतुकाः (मवृ) | ५. पादविहारचारिण: ( मवृ ) | ६. विरालाति (ता) । ७. × (मवृ) । ८. पगतिभद्दा (ता) | ६. जवजवाति ( ता ) । १०. कंडएति वा तणकयवरेति वा पत्तकयरेति वा (ar) I ११. ववगतखाणुकंडकतणकयवरपत्तकयवरा णं (ता) । Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्विहपडिवत्ती ३७६ ६२३. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए गड्डाति वा दरीति वा घसीति' वा भिगूति वा विसमेति वा धूलीति वा पंकेति वा चलणीति वा ? णो तिणट्ठे समट्ठे, उत्तरकुराए णं कुराए बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते समणाउसो ! ॥ ६२४. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए दंसाति' वा मसगाति वा 'ढिकुणाति वा " 'जूवाति वा लिक्खाति वा" ? णो तिणट्ठे समट्ठे, ववगतोवद्दवा णं उत्तरकुरा पण्णत्ता समणाउसो ! | ६२५. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए अहीति वा अंयगराति वा 'महोरगाति वा" ? हंता अत्थि, नो चेव णं ते अण्णमण्णस्स तेसि वा मणुयाणं किंचि आबाहं वा वाबाहं वा छविच्छेयं वा करेंति, पगइभद्गा णं ते वालगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ६२६. अत्थि' णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए गहदंडाति वा गहमुसलाति वा गहगज्जिताति वा गहजुद्धाति वा गहसंघाडगाति वा गहअवसव्वाति वा अब्भाति वा अब्भरुक्खाति वा संज्ञाति वा गंधव्वनगराति वा गज्जिताति वा विज्जुताति वा उक्कापाताति वा दिसाहाति वाणिघातात वा पंसुविट्ठीति वा जूवगाति वा जक्खालित्ताति वा धूमियाति वा महियाति वा रउग्घाताति वा चंदोवरागाति वा सूरोवरागाति वा चंदपरिवेसाति वा सूरपरिवेसाति वा पडिचंदाति वा पडिसूराति वा इंदधणूति वा उदगमच्छाति वा कविहसियाति वा अमोहाति वा पाईणवायाति वा पडीणवायाति वा जाव सुद्धवातात वा गादाहाति वा नगरदाहाति वा जाव' सण्णिवेसदाहाति वा पाणक्खय-भूतवखय- कुलक्खयाति वा ? णो तिणट्ठे समट्ठे ॥ ६२७. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए डिंबाति वा डमराति वा कलहाति वा वोलाति" वा खाराति वा वेराति वा महाजुद्धाति वा महासंगामाति वा 'महासन्नाहाति वा " महापुरिसनिपडणाति वा महासत्यनिपडणाति वा ववगडव- डमर कलह-बोल- खार-वेरा ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! || ६२८. अस्थि भंते! उत्तरकुराए कुराए दुब्भूयाति" वा कुलरोगाति वा गामरोगाति वा नगररोगाति वा मंडलरोगाति वा 'पंडुरोगाति वा पोट्टरोगाति वा " "सिरोवेदणाति वा अच्छिवेदणाति वा कण्णवेदणाति वा नखवेदणाति वा दंतवेदणाति वा " 'कासाति १. घंसाति (क, ख, ग, ट त्रि ) । २. डसाइ (ता) । ३. ढिकुणाति वा पिसुगाति वा (ता) क्वचित् 'पिशुगा इति वा' इति पाट (मवू ) । - केषाञ्चिदनर्थहेतुतया केषाञ्चित्स्वरूपतश्च तत्र तेषामसम्भवात् । ४. X (ता) । १०. पोल ( ता ) । ५. X (ता) । ११. x (ता) । ६. 'ता' प्रतौ एतत्सूत्रं नोपलभ्यते । जम्बूद्वीप - १२. वा महारुहिरणिपडणाति वा (ता) 1 प्रज्ञप्तावपि नैतत्सूत्रमुपलब्धमस्ति । १३. दुब्भगगाति ( ता ) । १४. मलयगिरिणा नैते पदे व्याख्याते । १५. सीसवेयणादि वा कण्णवे दन्त णख (ता) । ७. जी० ११८१ । ८. ठाणं २।६६० । ६. पूर्ववर्तिसूत्रेषु यथा कारणं प्रतिपादितमस्ति तथा नास्ति । वृत्तौ अस्ति कारणं प्रदर्शितम् Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० जीवाजीवाभिगमे वा सासाति वा सोसाति वा जराति वा दाहाति वा कच्छृति वा खसराति वा कुट्टाति वा अरिसाति वा अजीरगाति वा भगंदलाति वा इंदग्गहाति वा खंदग्गहाति वा कुमारग्गहाति वा णागग्गहाति वा जक्खग्गहाति वा भूतग्गहाति वा धणुग्गहाति वा उव्वेगाति वा एगाहियाति वा बेयाहियाति वा तेयाहियाति वा चाउत्थगाहियाति वा हिययसूलाति वा मत्थगसूलाति वा पाससूलाति वा कुच्छिसूलाति वा जोणिसूलाति वा" गाममारीति वा जाव सन्निवेसमारीति वा पाणक्खयाति वा जणक्खयाति वा धणक्खयाति वा कुलक्खयाति वा वसणभूतमणारियाति वा ? णो तिणठे समठे, ववगतरोगातका णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो!॥ ६२६. तेसि णं भंते मणुया णं केवतिकालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं देसूणाई तिण्णि पलिओवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागेणं ऊणगाणि, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं॥ ६३०. ते णं भंते ! मणुया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छंति ? कहिं उववज्जति? गोयमा ! ते णं मणुया छम्मासावसेसाउया जुयलगं पसवंति, पसवित्ता एगूणपणं' राइंदियाइं अणुपालेंति, अणुपालेत्ता' कासित्ता छीइत्ता जंभाइत्ता अक्किट्ठा अव्वहित्ता अपरिया या कालमासे कालं किच्चा देवलोएसु उववज्जति । देवलोगपरिग्गहिया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो !॥ ६३१. उत्तरकुराए णं भंते ! कुराए कतिविधा मणुया अणुसज्जति ? गोयमा ! छव्विहा मणुया अणुसज्जति तं जहा-पउमगंधा मियगंधा अममा तेतली सहा सणिचरा'। गाधाओ भाणितव्वाओ एवं उसु जीवा धणुपट्टे, भूमी गुम्मा य हेरु उद्दाला। तिलग लया वणराई, रुक्खा मणुया य आहारो ॥१॥ गेहा गामा य असी, हिरण्ण राया य दास माया य । अरि वेरिए य मित्ते, विवाह मह णट्ट सगडा य ॥२॥ आसा गाओ सीहा, साली खाणू य गड्डदंसाही । गहजुद्धरोगट्ठिई, उव्वट्टणा य अणुसज्जणा चेव ॥३॥ ६३२. कहि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए जमगा नाम दुवे पव्वता पण्णत्ता ? गोयमा ! नीलवंतस्स वासधरपव्वयस्स 'दाहिणिल्लाओ चरिमंताओ" अट्ठचोत्तीसे जोयण१. खंदग्गहाति वा कुमारग्गहाति वा जक्ख भूत ४. पम्हगंधा (भ० ६।१३५, जंबू० २।४६)। आगमधणुग्गहाति वा दम्वेवाति वा एगाहियाति वा साहित्ये प्रायः पद्मशब्दस्य 'पम्ह' इति रूपं बेयाहि चाउत्थगा कासाति वा सासाति वा लभ्यते, किन्तु वस्तुतः ‘पउम, पम्म, पोम्म' सोस जरा दाहा कच्छू कोढा डउ अरा अरिसा इति रूपाणि संगच्छन्ते । अत्र ताडपत्रीयप्रती भगंदलहितासूलाति वा मत्या जोणि पास 'पउम' इति रूपं उल्लेखनीयमस्ति । कुच्छिसू (ता)। ५. साणिचारि (ता)। २. एकुणुपण्णं (ता)। ६. गद्ददंसा य अहि (ता)। ३. तओ पच्छा ओससित्ता वा नीससित्ता वा(ता)। ७. दाहिणणं (क ,ख, ग, त्रि) । Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सच्चा चउव्विहपडिवत्ती सते चत्तारिय सत्तभागे जोयणस्स अबाधाए सीताए महानदीए 'पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं" उभओ कूले, एत्थ णं उत्तरकुराए जमगा णाम दुवे पव्वता पण्णत्ता - एगमेगं जोयणसहस् उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाई जोयणसताणि उव्वेहेणं, मूले एगमेगं जोयणसहस्सं 'आयामविक्खंभेणं” मज्झे अद्धट्टमाई जोयणसताई 'आयाम - विक्खंभेणं", उवरि पंचजोयणसयाई 'आयाम - विक्खंभेणं”, मूले तिण्णि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्ठ जोयणसतं किचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ता, मज्झे दो जोयणसहस्साइं तिण्णि य बावत्तरे जोयणसते किचिविसेसाहिए' परिक्खेवेणं पण्णत्ता, उवरि ' एगं जोयणसहस्सं पंच य" एक्कासीते जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ता, मूले विच्छिण्णा, मज्झे संखित्ता, उप्पि तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिता' सव्वकणगामया अच्छा जाव' पडिरूवा पत्तेयं - पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ता पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता, वण्णओ" ।। ६३३. तेसि णं जमगपव्वयाणं उप्पि बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता, वण्णओ जाव" आसति ॥ ६३४. तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं - पत्तेयं पासायवडेंसगा पण्णत्ता । ते णं पासायवडेंसगा वाट्ठ जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, एकत्ती संजोयणाई कोसं च विक्खंभेणं, अब्भुग्गतमूसित - पहसिता वण्णओ 'उल्लोए भूमीभागो, मणिपेढिया दो जोयणाई आयाम विक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं, सीहासणं विजय से अंकुसा दामाणं च मुणेतव्वे विधी जाव" - ६३५. तेसि णं सीहासणाणं अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं जमगाणं देवाणं पत्तयं पत्तेयं चउन्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तारि भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, परिवारो वत्तव्वो" ॥ ६३६. तेसि णं पासायवडेंसगाणं उपि अट्ठट्ठमंगलगा जाव" सहस्सपत्तहत्थगा "" ॥ १. x (क, ख, ग, ट, त्रि) । २. विक्खंभेणं (ता); विष्कम्भत: (मवृ) ; जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्त (पत्र ३१९ ) ' आयाम - विष्कम्भ' इति पदद्वयमपि व्याख्यातमस्ति - मूले योजनसहस्रमायामविष्कम्भाभ्यां वृत्ताकारत्वात् । ३. विक्खंभेणं (ता, मवृ ) | ४. विक्खंभेणं (ता, मवृ ) | ५. किंचिविसेसूणे ( ट ता ) । ६. पन्नरसं (क,ख,ग,ट, त्रि) । ७. वित्थिण्णा (ग, ता ) | ८. जबगसंठाणसंठिया ( ख ) : जाव चंगेरिसं० (ट); जमतसं ' (ता); जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ती ( पत्र ३१९ ) एतत् पाठान्तरमेव व्याख्यातमस्ति - यमको – यमलजातौ भ्रातरौ तयोर्यत् ३८१ संस्थानं तेन संस्थितो, परस्परं सदृशसंस्थानावित्यर्थः अथवा यमका नाम शकुनिविशेषास्तत्संस्थानसंस्थितो, संस्थानं चानयोर्मूलत: प्रारभ्य संक्षिप्त - संक्षिप्त प्रमाणत्वेन गोपुच्छस्व बोध्यम् । ६. जी० ३।२६१ । १०. वण्णओ दोपहषि । जी० ३।२६३-२६७ । ११. जी० ३।२७७-२६७ । १२. जी० ३।३०७-३१३ । १३. जी० ३।३४०-३४५ । १४. जी० ३।२८६ - २६१ । १५. भूमीभागा उल्लोगा दो जोयणाई मणिपेढियाओ वरसीहासणा सपरिवारा जाव जमगा चिट्ठति (क, ख, गट, त्रि), सतसहस्स' ( ता ) । Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८२ जीवाजीवाभिगमे ६३७. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-जमगा पव्वता? जमगा पव्वता ? गोयमा ! जमगपव्वतेसु'णं खुड्डा-खुड्डियासु जाव' विलपंतियासु बहूई उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई जमगप्पभाई जमगागाराइं जमगवण्णाई जमगवण्णाभाई, जमगा य एत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्टितीया परिवसंति । ते णं तत्थ पत्तेयं-पत्तेयं चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव' सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं जमगपव्वताणं जमगाण य रायहाणीणं, अण्णेसि च बहूणं वाणमंतराणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं 'पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणा' पालेमाणा विहरंति। से तेणठेणं गोयमा ! एवं-वुच्चति जमगा पव्वता जमगा पव्वता। चणं गोयमा ! जाव णिच्चा"। ६३८. कहि णं भंते ! जमगाणं देवाणं जमगाओ नाम रायहाणीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! जमगपव्वयाणं उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीइवइत्ता अण्णंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं जमगाणं देवाणं जमगाओ णाम रायहाणीओ पण्णत्ताओ-'वारस जोयणसहस्साइं जहा विजयस्स जावर एमहिड्ढिया जमगा देवा जमगा देवा ॥ ६३६. कहि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए नीलवंतईहे" णामं दहे पण्णत्ते ? गोयमा ! जमगपव्वयाणं 'दाहिणिल्लाओ चरिमंताओ५ अट्ठचोत्तीसे जोयणसते चत्तारि सत्तभागा जोयणस्स अवाहाए सीताए महाणईए बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए नीलवंतदहे नामं दहे पण्णत्ते-उत्तरदक्खिणायते पाईणपडीणविच्छिण्णे एगं जोयणसहस्सं आयामेणं, पंच जोयणसताइं विक्खंभेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं, अच्छे सण्हे रययामयकूले जाव' अणेगसउणगणमिथुणपविचरिय-सद्दुण्णइयमहुरसरणाइयए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे, उभओ पासिं दोहि य पउमवरवेइयाहिं वणसंडेहि सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ" ॥ ६४०. नीलवंतद्दहस्स णं दहस्स तत्थ-तत्थ 'देसे तहि-तहिं बहवे तिसोमाणपडिरूवगा पण्णत्ता, वण्णओ" ॥ १. जमगेसु णं पव्वतेसु तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं १०. सं० पा०—आहेवच्चं जाव पालेमाणा । बहुईओ खुड्डा खुड्डियाओ वावीओ जाव ११. x (ता, मवृ)। बिलपंतियाओ तासु णं (क,ख,ग,ट,त्रि)।। १२. जी० ३।३५५-५६५ । २. जी० ३।२८६ । १३. विजयरायहाणिसरिसियाओ एम्महिडढीया ३. बहुगाई (ता)। जमगा जाव विहरंति (ता)। ४. जी० ३।२८६ । १४. णेलमंतबहे (ता)। ५. x (ता)। १५. दाहिणणं (क,ख,ग,ट,त्रि)। ६. ४ (क,ख,ग,ट,त्रि)। १६. जी० ३।२८६ । ७. x (क,ख,ग,ट,त्रि)। १७. जी० ३।२६५-२६७। ८. जी० ३।३५० । १८. जी० ३।२८७ । ६. जी० ३।३५० । Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ३८३ ६४१. तेसि णं तिसोमाणपडिवगाणं पुरतो पत्तेयं-पत्तेयं तोरणे पण्णत्ते, वण्णओ" ॥ ६४२. तस्स णं नीलवंतद्दहस्स' बहुमज्झदेस भाए, एत्थ णं 'महंएगे" पउमे पण्णत्तेजो आयाम - विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं, दस जोयणाई उब्वेहेणं, दो कोसे ऊसिते जलंतातो, सातिरेगाई दसजोयणाइं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ॥ ६४३. तस्स णं पउमस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - वइरामए मूले रिट्ठामए कंदे वेरुलियामए नाले वेरुलियामया बाहिरपत्ता जंबूणयमया अभितरपत्ता तवणिज्जमया केसरा कणगमई कण्णिया नाणामणिमया पुक्खरत्थिभुया' | ६४४. साणं कण्णिया अद्धजोयणं आयाम विक्खंभेणं', कोसं वाहल्लेणं, 'सव्वष्पणा कणगमई" अच्छा जाव' पडिरूवा ॥ ६४५. ती णं कण्णियाए उवर बहुसमरमणिज्जे 'भूमिभागे जाव' मणीणं वण्णो गंधो फासो" ॥ ६४६. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ गं महं एगे भवणे पण्णत्ते - कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूणं कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसतसंनिविट्ठं वण्णओ जाव" दिव्वतुडियस संपणाइए अच्छे जाव पडिवे । ६४७. तस्स णं भवणस्स तिदिसि ततो दारा पण्णत्ता, तं जहा - पुरत्थिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं । ते णं दारा पंचधणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाई धणुसताई विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगथूभियागा दारवण्णओ जाव" वणमालाओ ॥ ६४८. तस्स" णं भवणस्स उल्लोओ अंतो बहुसमरमणिज्जो भूमिभागो जाव" मणीणं वो गंधो फासो ॥ ६४९. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं मणिपेढिया पण्णत्ता - पंचधणुसयाई आयाम - विक्खंभेणं, अड्ढाइज्जाई धणुसताई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ॥ १. जाव बहवे तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता aurओ भाणियव्वो जाव तोरणत्ति (क, ख, ग, ट, त्रि); जी० ३।२८८-२११ । २. लवंत (ता) । ३. एगे महं (क, ख, ग, ट, त्रि); महेगे (ता) | ४. विक्खंभेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं (क, ख, ग, ट, त्रि) । ५. पुक्खलत्रिया ( क ); पुक्खलत्थिभया (ख, ट); पुक्खरुत्थिरता (ग, त्रि); पुक्खलत्थिभा (ता) । ६. विक्खंभेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं (क, ख,ग,ट, त्रि) । ७. सव्वकणगामई (क,ख,ग,ट,ता) । ८. जी० ३।२६१ । ६. जी० ३।२७७-२८४ । १०. देसभा पण्णत्ते जाव मणीहि ( क,ख,ग,ट, त्रि) । ११. जी० ३।३७२ । १२. जी० ३१३०० ३०६ । १३. 'क, ख, गट, त्रि' आदर्शेषु अस्य सूत्रस्य स्थाने एवं वाचनाभेदो दृश्यते - तस्स णं भवणस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते से जहानामए - आलिंगपुक्खरेति वा जाव मणीणं वण्णओ । १४. जी० ३।२७७-२८५ । Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ६५०. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि', एत्थ णं महं एगे देवसयणिज्जे पण्णत्ते, सयणिज्जवण्णओ।। ६५१. तस्स' णं भवणस्स उप्पि अट्ठमंगलगा जाव' सहस्सपत्तहत्थगा ।। ६५२. से णं पउमे अण्णेणं अट्ठसतेणं तदछुच्चत्तप्पमाणमेत्ताणं पउमाणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते ॥ ६५३. ते ण पउमा अद्ध जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, कोसं वाहल्लेणं, दस जोयणाई उब्वेहेणं, कोसं ऊसिया जलंताओ, साइरेगाइं दस जोयणाइं सव्वग्गेणं पण्णत्ताई।। ६५४. तेसि णं पउमाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा---वइरामया मूला जाव" कणगामईओ कण्णियाओ णाणामणिमया पूक्ख रत्थिभगा। ६५५. ताओ णं कण्णियाओ कोसं आयाम-विक्खंभेणं', अद्धकोसं बाहल्लेणं, सव्वकणगामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। ६५६. तासि णं कण्णियाणं उप्पि बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा जाव मणीणं वण्णो गंधो फासो । ६५७. तस्स णं पउमस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरत्थिमेणं 'नीलवंतस्स नागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो" चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तारि पउमसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। 'एतेणं सव्वो परिवारो पउमाणं भाणितव्वो"॥ ६५८. से णं पउमे अण्णेहि तिहिं पउमपरिक्खेवेहि सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते, तं जहा-अभितरेणं" मज्झिमेणं बाहिरएणं । अब्भितरए पउमपरिक्खेवे बत्तीसं पउमसयसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। मज्झिमए पउमपरिक्खेवे चत्तालीसं पउमसयसाहरसीओ पण्णत्ताओ। बाहिरए पउमपरिक्खेवे अडयालीसं पउमसयसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। एवमेव सपुवावरेणं एगा पउमकोडी वीसं च पउमसतसहस्सा भवंतीति मक्खायं । ६५६. से" केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-णीलवंतद्दहे ? णीलवंतद्दहे ? गोयमा ! १. उरि (क,ख,ग,ट,त्रि)। १०. पउमवरपरिक्खेवेहि (ग,त्रि) । २. देवसयणिज्जस्स वण्णओ (क,ख,ग,ट,त्रि); ११. अब्भंतरए णं (ता)। जी० ३।४०७ । १२. अभिंतरए णं (क,ख,ग,ट)। ३. क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शेषु एतत् सूत्रं नैव दृश्यते। १३. एवामेव (क,ख,त्रि)। ४. जी० ३२८६-२६१ । १४. मक्खाया (क,ख,ग,ट,त्रि) । ५. जी० ३१६४३ । १५. ६५६, ६६० सूत्रयोः स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' ६. विक्खंभेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं (क, आदर्शेषु संक्षिप्तपाठो विद्यते, यथा-से केणख.ग,ट,त्रि)। ठेणं भंते ! एवं वुच्चति णीलवंत हे दहे ? ७. जी० ३।२७७-२८४। गोयमा ! णीलवंतद्दहे णं तत्थ तत्थ जाई ८. नीलवंतद्दहस्स कुमारस्स (क,ख,ग,ट,त्रि)। उप्पलाई जाव सतसहस्सपत्ताई णीलवंतप्पभाई ९. एवं सव्वो परिवारो नवरि पउमाणं भाणितब्वो णीलवंतहहकुमारे य सो चेव गमो जाव (क,ख,ग,ट,त्रि); एवं पउमेहिं परिवारो णीलवंत(हे २। जावातरक्खाणं (ता); जी० ३।३४०-३४५। वृत्तौ प्रथमसूत्रे 'महद्धिकः इत्यादि यमकदेव Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्विहपडिवत्ती तणं तत्थ तत्थ देसे तर्हि तहि बहूई' उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताइं नीलवंतप्पभाई नीलवंतागाराई नीलवंतवण्णाई नीलवंतवण्णाभाई नीलवंते एत्थ नागकुमारिंदे नागकुमारया महिड्दिए जाव' पलिओवमट्टितीए परिवसति । से णं तत्थ चउन्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं नीलवंतद्दहस्स नीलवंताए य रायहाणीए अण्णेसि च बहूणं वाणमंतराणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं जाव विहरति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वच्चति - णीलवंत, नीलवंत हे || ६६० कहि णं भंते ! णीलवंतस्स नागकुमाररिदस्स नागकुमाररण्णो नीलवंता नाम राहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! नीलवंतद्दहस्सुत्तरेणं अण्णंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं जहा' विजयस्स || ६६१. नीलवंतद्दहस्स णं पुरत्थिम- पच्चत्थिमेणं दस-दस जोयणाई अबाधाए, एत्थ गं दस-दस कंचणगपव्वता पण्णत्ता । ते णं कंचणगपव्वता एगमेगं जोयणसतं उड्ढ उच्चत्तेणं पणवीसं पणवीसं जोयणाई उव्वेहेणं, मूले एगमेगं जोयणसतं विक्खंभेणं, मज्झे पण्णत्तरि जोयणाई विक्खंभेणं", उवरि पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, मुले तिष्णि सोलसुत्तरे' जोयणसते किचिविसेसाहिए" परिक्खेवेणं, मज्झे दोन्नि सत्ततीसे जोयणसते किचिविसेने' परिक्खेवेणं, उवरि एगं अट्ठावण्णं जोयणसतं किंचिविसेसूणे' परिक्खेवेणं, मूले वित्थिण्णा मज्झे संखित्ता उपि तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिता सव्वकंचणमया अच्छा जाव पडिरूवा पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ता पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता, वण्णओ" ॥ ६६२. तेसि णं कंचणगपव्वताणं उप्पि बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता 'जाव" आसयति ॥ ६६३. तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं - पत्तेयं पासायवडेंस पण्णत्ते - 'सड्ढबावट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं, मणिपेढिया दोजोयणिया सीहासणा सपरिवारा"" ।। ६६४. 'से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चति – कंचणगपव्वता ? कंचणगपव्वता ? गोयमा ! कंचणगेसु णं पव्वतेसु तत्थ - तत्थ देसे तहि तर्हि वावी उप्पलाई जाव कंचणगवण्णाभाई कंचणगा य एत्थ देवा महिड्डीया जाव" विहरति । से तेणट्ठेणं ५ ॥ वन्निरवशेषं वक्तव्यं यावद् विहरति' इति संक्षेपः सूचितोस्ति । १. जाव (क, ख, ट ) ; जाई (ग, त्रि) । २. जी० ३।३५० । ३. जी० ३।३५१-५६५ । ४. पणूवी ( क, ख, ता) | ५. आयाम विक्खंभेणं (क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. सोल (क,ग) : सोले (ख, ट, त्रि) । ७. किंचिविसेसूणे (ता) | ८. किंचिविसे साहिए (क, ख, ग, ट, त्रि) । ३८५ ९. किचिविसेसाहिए (क, ख, ग, ट, त्रि) । १०. जी० ३।२६३ - २६७ । ११. जी० ३।२७७-२९७ । १२. ससद्दं जाव विहरति (ता) : यावत्तृणानां मणीनां च शब्दवर्णन मिति (मवृ) । १३. जहा जमिगासु तहा जाव अट्ठो (ता) : जी० ३।६३४-६३६ । १४. जी० ३।६३७ । १५. कंचनप्पभाई कंचगा यत्थ दो देवा महिड्ढीया जाव पनि परिवसंति । ते णं तत्थ पत्तेयं २ Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८६ जीवाजीवाभिगमे ६६५. 'रायहाणीओ वि तहेव' उत्तरेणं विजयरायहाणिसरिसियाओ अण्णंमि जंबुद्दीवे"॥ ६६६. कहिणं भंते ! उत्तरकुराए कुराए उत्तरकुरुद्दहे नामं दहे पण्णत्ते ? गोयमा ! नीलवंतहहस्स 'दाहिणिल्लाओ चरिमंतओ" अट्टचोत्तीसे जोयणसते, ‘एवं सो चेव गमो णेतव्वो जो णीलवंतदहस्स, सव्वेसि सरिसको दहसरिनामा य देवा, सव्वेसि पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं कंचणगपव्वता दस-दस एकप्पमाणा उत्तरेणं रायहाणीओ अण्णंमि जंबुद्दीवे॥ ६६७. 'कहि णं भंते । चंदद्दहे एरावणदहे मालवंतद्दहे, एवं एक्केक्को णेयव्वो" ।। चउण्डं सामाणिदेवसाहस्सीणं कंचणगप, कंचणियरायहाणीण य अण्णेसिं च बहणं वाणमंत राणं दे २ से तेणठेणं (ता)। १. जी० ३।३५१-५६३ । २. उत्तरेणं कंचणगाणं कंचणियाओ रायहाणीओ अण्णमि जंबुद्दीवे तहेव सव्वं भाणितव्वं (क,ख, ग, ट, त्रि); काञ्चनिकाश्च राजधान्यो यमिकाराजधानीवद् वक्तव्याः (मव) । ३. दाहिणणं (क,ख,ग,ट,त्रि)। ४. जी० ३१६३६-६६५ । ५. चत्तारि य सत्तभाए जोयणस्स अबाहाए सीयाए महा बहमझ जहा लवंतद्दहस्स तहेव सव्वं जाव अट्ठो। उत्तरकुरुद्दहस्स णं तत्थ जाव सतसहस्सपत्ताई उत्तरकुरुद्दहप्पभाई उत्तरकुरु तत्थ दो देवा महिड्ढीया जाव पलितो । से णं तत्थ चउण्डं सामाणि उत्तरकुरुद्दहस्स उत्तरकुराए य रायहाणीए जाव विहरति से तेणटठेणं जाव रायहाणी उत्तरेणं । उत्तरकुरुद्दहस्स णं पूरस्थिमपच्चत्थिमेणं दस २ जोयणाई दस २ कंचणयप जहेवितरे तहेव जावड्ढो रायहाणीओ य (ता); वृत्तावपि अस्य संवादी पाठो व्याख्यातोस्ति । ६. कहिणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे चंदद्दहे णामं दहे पण्णत्ते ? उत्तरकुरुद्दहस्स दाहि चरिमं अटूचोत्तीसे जावेत्थ णं चंद(हे णामं दहे पं जहेव णेलवंतद्दहस्स तहेव सव्वं (ता) अतोने पाठः त्रुटितोस्ति । 'कहिणं भंते !' इत्यादि प्रश्नसूत्रं सुगम, भगवानाह-गौतम ! उत्तरकुरुह्रदस्य दाक्षिणात्याच्चरमान्तादगि दक्षिणस्यां दिशि अप्टी चतुस्त्रिशानि योजनशतानि चतुरश्च सप्तभागान योजनस्याबाधया कृत्वेति शेषः शीताया महानद्या बहुमध्यदेशभागे 'अत्र' अस्मिन्नवकाशे उत्तरकुरुषु कुरुषु चन्द्र ह्रदो नाम ह्रदः प्रज्ञप्तः अस्यापि नीलवहदस्येवायामविष्कम्भोद्वेधपद्मवरवेदिकावनषण्डत्रिसोपानप्रतिरूपकतोरणमूलभूतमहापद्माष्टशतपद्मपरिवारपद्मशेषपद्मपरिक्षेपत्रयवक्तव्यता वक्तव्या, नामान्वर्थसूत्रमपि तथैव, नवरं यस्मादुत्पलादीनि 'चन्द्रहदप्रभाणि' चन्द्रहदाकाराणि चन्द्रवर्णानि चन्द्रनामा च देवस्तत्र परिवसति तस्माच्चन्द्रहृदाभोत्पलादियोगाच्चन्द्रदेवस्वामिकत्वाच्च चन्द्र हद इति, चन्द्राराजधानीवक्तव्यता काञ्चनपर्वतवक्तव्यता च राजधानीपर्यवसाना प्राग्वत् । साम्प्रतमैरावतह्रदवक्तव्यतामाह'कहि णं भंते' इत्यादिप्रश्नसूत्रं पाठसिद्ध, निर्वचनमाह-गौतम ! चन्द्रहदस्यदाक्षिणात्याच्चरमान्तादर्वाग् दक्षिणस्यां दिशि अष्टौ चतुस्त्रिशानि योजनशतानि चतुरश्च सप्तभागान् योजनस्याबाधया कृत्वेतिशेष: शीताया महानद्या बहुमध्यदेशभागे 'अत्र' एतस्मिन्नवकाशे ऐरावतह्रदो नामह्रदः प्रज्ञप्तः, अस्यापि नीलवन्नाम्नो हृदस्येवायामविष्कम्भादिवक्तव्यता परिक्षेपपर्यवसाना वक्तव्या, अन्वर्थसूत्र Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहपडिवत्ती ३९७ ६६८. कहि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए जंबू-सुदंसणाए जंबूपेढे नाम पेढे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरथिमेणं नीलवंतस्स वासधरपव्वतस्स दाहिणणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमादणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरथिमेणं सोताए महाणदीए पुरथिमिल्ले कूले, एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए जंबूपेढे नाम पेढे पण्णत्तेपंचजोयणसताइं आयाम-विक्खंभेणं, पण्णरस एवकासीते जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, बहुमज्झदेसभाए बारस जोयणाई वाहल्लेणं, तदाणंतरं च णं माताए-माताए पदेसपरिहाणीए' परिहायमाणे-परिहायमाणे सव्वेसु चरमंतेसु दो कोसे बाहल्लेणं, सव्वजंबूणयामए अच्छे जाव पडिरूवे । से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खत्ते, वण्णओ दोण्हवि ॥ ६६६. तस्स णं जंबूपेढस्स चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता । तं चेव जाव तोरणा जाव' छत्तातिछत्ता। ६७०. तस्स णं जंबूपेढस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेति वा जाव' मणीणं फासो ॥ ६७१. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता-अट्ठ जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई वाहल्लेणं, मणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ६७२. तीसे णं मणिपेढियाए उवरि, एत्थ णं महं जंबू सुदंसणा पण्णत्ता-अदुजोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धजोयणं उव्वेहेणं, दो जोयणाइं खंधे, अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, छ जोयणाई विडिमा, बहुमझदेसभाए अट्ठ जोयणाई विक्खं भेणं, सातिरेगाइं अट्ठ जोयणाई मपि तथैव, नवरं यस्मादुत्पलादीनि ऐरावतह्रदप्रभाणि, ऐरावतो नाम हस्ती तद्वर्णानि च ऐरावतश्च नामा तत्र देवः परिवसति तेन ऐरावत हद इति, ऐरावताराजधानी विजयराजधानीवत काञ्चनकपर्वतवक्तव्यतापर्यवसाना तथैव । अधुना माल्यवन्नामह्रदवक्तव्यतामाह'कहि णं भंते' इत्यादि सुगमं, भगवानाहगौतम ! ऐरावतह्रदस्य दाक्षिणात्याच्चरमान्तादर्वाग दक्षिणस्यां दिशि अष्टौ चतुस्त्रिशानि योजनशतानि चतुरश्च सप्तभागान् योजनस्य अबाधया कृत्वेति शेषः शीताया महानद्या बहमध्यदेशभागे 'अत्र' एतस्मिन्नवकाशे उत्तर- कुरुषु कुरुषु माल्यवन्नामा ह्रदः प्रज्ञप्तः, सच नीलवहदवदायामविष्कम्भादिना तावद्वक्तव्यो यावत्पद्मवक्तव्यतापरिसमाप्तिः, नामान्वर्थ सुत्रमपि तथैव यस्मादुत्पलादीनि 'माल्यवद्हदप्रभाणि' माल्यवद्दाकाराणि, माल्यवन्नामा वक्षस्कारपर्वतस्तद्वर्णानि-तद्वर्णाभानि माल्यवन्नामा च तत्र देवः परिवसति तेन माल्यवहद इति, माल्यवतीराजधानी विजयाराजधानीवद्वक्तव्या काञ्चनकपर्वतवत्त व्यतावसाना प्राग्वत् (मव)। १. वृत्तो एतत्पदं व्याख्यातं नास्ति । २. बाहल्लेणं पण्णते (क,ख,ग,ट,त्रि)। ३. जी० ३१२८७-२६१।। ४. छत्ता (ख); चत्तारि छत्ता (त्रि)। ५. जी० ३।२७७-२८४, २८६-२६७; यावच्च बहवो वानमन्तरा देवा देव्यश्चासते शेरते यावद् विहरन्ति (मवृ) । Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८५ जीवाजीवाभिगमे सव्वग्गेणं पण्णत्ता, वइरायमूल'-रययसुपतिट्ठियविडिमा', रिट्ठामयकंद'-वेरुलियरुइरखंधा सुजायवरजायरूवपढमगविसालसाला नाणामणिरयणाविविहसाहप्पसाह-वेरुलियपत्ततवणिज्जपत्तवेंटा जंबूणयरत्तमउयसुकुमालपवालपल्लवंकुरधरा' विचित्तमणिरयणसुरहिकुसुमफलभर'-नमियसाला' सच्छाया सप्पभा सस्सिरीया सउज्जोया अहियं मणोनिव्वुइकरी पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा॥ ६७३. जंबूए णं सुदंसणाए चउद्दिसिं चत्तारि साला पण्णत्ता, तं जहा-पुरथिमेणं दक्खिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं । तत्थ णं जेसे पुरथिमिल्ले साले, एत्थ णं महं एगे भवणे पण्णत्ते-एगं कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं देसूणं कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसतसंनिविळं, वण्णओ जाव भवणस्स दारं तं चेव, पमाणं पंचधणुसताई उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाई विक्खंभेणं जाव' वणमालाओ भूमिभागा उल्लोया मणिपेढिया पंचधणुसतिया देवसयणिज्जं भाणियव्वं ।। तत्थ णं जेसे दाहिणिल्ले साले, एत्थ णं महं एगे पासायव.सए पण्णत्ते-कोसं च उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं आयाम-विक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसियपहसिया, अंतो बहुसमरमणिज्जे भमिभागे, उल्लोया। तस्स णं बहसमरमणिज्जस्स भमिभागस्स बहमज्झदेसभाए सीहासणं सपविारं भाणियव्वं"। तत्थ णं जेसे पच्चत्थिमिल्ले साले, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए, पण्णत्ते, तं चेव पमाणं सीहासणं सपरिवार भाणियव्वं । तत्थ णं जेसे उत्तरिल्ले साले, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए पण्णत्ते, तं चेव पमाणं सीहासणं सपरिवारं ॥ ६७४. तत्थ णं जेसे 'उवरिल्ले विडिमग्गसाले"", एत्थ णं महं एगे सिद्धायतणे पण्णत्ते १. वइरामया मूला (क,ख,ग,ट,त्रि)। मूला वइरमया से कंदो खंधो य रिवेरुलिओ। २. अतोने 'ख' प्रती ‘एवं चेतियरुक्खवण्णओ जाव सोवण्णियसाहप्पसाह तह जायरूवा य ॥१॥ पडिरूवा' इति संक्षिप्त: पाठोस्ति, 'क,ग,ट,त्रि' विडिमा रययवेरुलियपत्ततवणिज्जपत्तविटा य । आदर्शेषु एवं चेतियरुवखवण्णओ जाव सव्वो' पल्लव अग्गपवाला जंबूणयरायया तीसे ॥२॥ इति पाठो लिखितोस्ति, विस्तृतवर्णनपरः रयणमयापुप्फफला। पाठोपि, अतो ज्ञायते तेषु संक्षिप्तवाचनायाः ८. मणोनिव्वइकरा (ग, ट); चैत्यवृक्षवर्णने सम्मिश्रणं जातम् । (३।३८४) 'णयणमणणिव्वुतिकरा अमयरस३. रिट्ठमयविउलकंदा (क,ख,ग,ट,त्रि)। समरसफला' इति पाठो दृश्यते । ४. अपरे सौवणिक्यो मूलशाखाः प्रशाखाः रजत- ६. जी० ३।६४६-६५१ । मय्य इत्यूचुः (मवृ)। १०. जी० ३।३०७-३०६ । ५. क्वचित्पाठ:--'जंबूणयरत्तमउयसूकुमालकोमल- ११. जी० ३।३१०-३१३,३३६-३४४,३१४ । पल्लवंकुरग्गसिहरा' अन्ये तु 'जम्बूनदमया १२. उवरिमविडिमग्गसाले (क, ख); उवरिमे अग्रप्रवाला अङ्कुरापरपर्याया राजता' इत्याहुः विडिमे (ग, त्रि); वृत्तौ 'जम्ब्वाः सुदर्शनाया (म)। उपरिविडिमाया बहमध्यदेसभागे सिद्धायतनम' ६. 'कुसुमाफलभार (क, ख, ग, ट)। इतिव्याख्यातमस्ति । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ती ७. वत्ती अस्य व्याख्यानानन्तरं सपादं संग्रहगाथा- (पत्र ३३३) प्रस्तुतागमपाठस्यार्थः उद्धद्वयं लिखितमस्ति, तद्यथा तोस्ति–'उपरितनविडिमाशालायामित्यध्याहार्य Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ३८६ कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूणं कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसतसंनिविठे, वण्णओ' तिदिसि तओ दारा पंचधणुसता अड्ढाइज्जधणुसयविक्खंभा, 'मणिपेढिया पंचधणुसतिया"। ६७५. 'तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं महं एगे देवच्छंदए पण्णत्ते, पंचधणुसयाई आयामविक्खं भेणं साइरेगाइं पंचधणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे॥ ६७६. तत्थ ण देवच्छंदए अट्ठसयं जिणपडिमाणं जिणुस्सेधप्पमाणाणं, एवं सव्वा सिद्धायतणवत्तव्वया भाणियव्वा जाव' धूवकडुच्छया ॥ ६७७. तस्स' णं सिद्धायतणस्स उवरिं अट्ठट्ठमंगलया जाव सहस्सपत्तहत्थगा ।। ६७८. जंबू णं सुदंसणा मूले बारसहिं पउमवरवेइयाहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता', वण्णओ" ।। ६७६. जंबू णं सुदंसणा अण्णणं अट्ठसतेणं जंबूणं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता । ताओ णं जंबूओ चत्तारि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, कोसं उब्वेहेणं, जोयणं खंधो', कोसं विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणाई विडिमा, बहुमज्झदेसभाए चत्तारि जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, सातिरेगाइं चत्तारि जोयणाई सम्बग्गेणं, वइरामयमूल-रययसुपइट्ठियविडिमा, रुक्खवण्णओ ॥ ६८०. जंबूए णं सुंदसणाए अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थःणं अणाढियस्स देवस्स चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तारि जंबूसाहस्सीओ पण्णत्ताओ"। एवं जंबू परिवारो जीवाभिगमे तथा दर्शनात्'। अनेनापि स्वीकृतपाठस्य पुष्टिर्जायते । १. जी० ३१४१२, ४१३।। २. पंचधणुसयाई आयामवि अड्ढाइज्जा बाह (ता)। ३. देवच्छंदओ पंचधणुसतविक्खंभो सातिरेगपंच- धणं स उच्चत्ते (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४. जी० ३१४१४-४१६ । ५. एतत् सूत्रं 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शष नैव लभ्यते, तेषु पूर्वसूत्रवति 'धूवकडुच्छ्या ' इति पदानन्तरं 'उत्तिमागारा सोलसविधेहिं रयणेहि उवेए तहेव चेव (ग, त्रि)' इति पाठो विद्यते, ४२० सूत्रेपि असौ पाठान्तरत्वेन निर्दिष्टोस्ति, वृत्तावपि नास्ति व्याख्यातः । ६. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेष अतिरिक्तः पाठो दृश्यते-ताओणं पउमवरवेइयाओ अद्ध जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंचधणुसताई विखं भेणं। ७. जी० ३।२६३-२७२ । ८. खंधी (ता)। ६. सो चेव चेतिय रुक्खण्णओ (क, ख, ग, ट, त्रि); जी० ३।३८७ । १०. अतोने क, ख, ग,ट, त्रि' आदर्शेष एवं विस्ततः पाठो विद्यते-जंबूए सुदंसणाए पुरथिमेणं एत्थ णं अणाढियस्स देवस्स चउण्हं अग्गमहिसीणं जंबुओ पण्णत्ताओ। एवं परिवारो सव्वो णायवो जंबूए जाव आयरक्खाणं । वृत्तौ पूर्णः पाठो व्याख्यातोस्ति --पूर्वस्यां चतसृणामग्रमहिषीणां योग्यानि चतस्रो, महाजम्ब्वा दक्षिणपूर्वस्यामभ्यन्तरपर्षदोऽष्टानां देवसहस्राणां योग्यान्यष्टौ जम्बूसहस्राणि, दक्षिणस्यां मध्यमपर्षदो दशानां देवसहस्राणां योग्यानि दश Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० जीवाजीवाभिगमे जाव' आयरक्खाणं ॥ ६८१. जंबू णं सुदंसणा तिहिं सइएहि वणसंडेहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता, तं जहा-'अब्भंतरएणं मज्झिमेणं बाहिरेणं" ६८२ जंबूए णं सुदंसणाए पुरित्थिमेणं पढम वणसंडं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता, एत्थ णं महं एगे भवणे पण्णत्ते पुरथिमभवणसरिसे भाणियव्वे जाव' सयणिज्जं । एवं दाहिणणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं ॥ ६८३. जंबूए णं सुदंसणाए उत्तर-पुरथिमेणं पढमं वणसंडं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता, एत्थ णं महं चत्तारि णंदापुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पउमा पउमप्पभा चेव, कुमुदा कुमुदप्पभा। ताओ ण णंदाओ पुक्खरिणीओ कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, पंचधणुसयाइं उव्वेहेण 'वण्णओ' पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेइया परिक्खित्ताओ पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ वण्णओ। ६८४. तासि णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता, वण्णओ जाव तोरणा"॥ ६८५. तासि णं णंदापुक्खरिणीणं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए पण्णत्ते-कोसप्पमाणे अद्धकोसं विक्खंभो सो चेव वण्णओ जाव सीहासणं सपरिवारं ।। ६८६. एवं" दक्षिण-पुरत्थिमेण वि पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता चत्तारि गंदा जम्बूसहस्राणि, दक्षिणापरस्यां बाह्यपर्षदो ७. जी० ३।२८६ । द्वादण देवसहस्राणां योग्यानि द्वादश जम्बू- ८. जी० ३।२८७-२६१ । सहस्राणि, अपरस्यां सप्तानामनीकाधिपतीनां ६. अच्छाओ सण्हाओ लण्हाओ घट्ठाओ मट्ठाओ योग्यानि सप्त महाजम्ब्वः, ततः सर्वासु दिक्षु णिप्पंकाओ णीरयाओ जाव पडिरूवाओ वण्णओ पोडशानामारक्षदेवसहस्राणां योग्यानि षोडश भाणियव्वो जाव तोरणत्ति (क, ख, ग, ट, जम्बूसहस्राणि प्रज्ञप्तानि । त्रि)। १. जं० ४।१५१। १०. ६८६-६८८ एतेषां त्रयाणां सूत्राणां स्थाने २. जोयणसइएहिं (क, ख, ग, ट, त्रि); ताडपत्रीयादर्श भिन्न: पाठोस्ति-जंबूए णं सु x (ता); शतिकैः-योजनशतप्रमाणैः (मवृ, दाहिणपुरत्थिमेणं पढमं वणसंडं पण्णासं जोयजंबू० वृत्ति पत्र ३३४) । णाई ओगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि गंदा पु पं ३. पढमेणं दोच्चेणं तच्चेणं (क ख, ग, ट, त्रि)। तं उप्पलगुम्मा णलिणा उप्पला उप्पलाइय । ४. पुरथिमिल्ले भवण (क, ख, ग, ट, त्रि)। उत्तरपुरिमाणं सरिसिलीओ पासायवडेंसा सीहा ५. जी० ३।६७३। सपरिवारो एवं दाहिणपच्चत्थि भिंगा भिगि६. ताडपत्रीयादर्श वृत्तौ च अत: किञ्चिद् विस्तत: णिभा च्चेव अंजणा कज्जलपभाच्चेव । सोच्चेव पाठो दश्यते-----उरि अट्रमंगलया जंबूए णं विही जाव सीहासणा सपरिवारा। उत्तरपुर पढमवणसंडदाहिणणं ओगाहित्ता एस्थ णं भवणे पढम वण पण्णासं जोयणाई ओ ४ णंदाओ तहेव जाव सयणिज्जे पच्चरिथमेणं वि उत्तरेण सिरिकता सिरिचदा सिरिणिलया चेव सिरिवि जंबूए णं सुदंसणाए भवणा तारिसा चेव महिता तहेव जाव सपरि। वृत्तौ एतानि तेसुवि देवसयणिज्जा। सूत्राणि एवं व्याख्यातानि सन्ति–तासां Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ३६१ पुवखरिणीओ उप्पलगुम्मा नलिणा, उप्पला उप्पलुज्जला। तं चेव पमाणं तहेव पासायवडेंसगो तप्पमाणो॥ ६८७. एवं दक्खिण-पच्चत्थिमेणवि पण्णासं जोयणाइं, नवरं भिंगा भिंगणिभा चेव, अंजणा कज्जलप्पभा। सेसं तं चेव । ६८८. जंबूए णं सुदंसणाए उत्तर-पच्चत्थिमेणं पढमं वणसंडं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि णंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-'सिरिकता सिरिचंदा, सिरिणिलया चेव सिरिमहिया" तं चेव पमाणं तहेव पासायवडेंसओ॥ ६८६. जंबूए णं सदसणाए पुरथिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं उत्तर-पुरथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स दाहिणेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पण्णत्ते-अट्ठ जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं 'दो जोयणाई उव्वेहेणं", मूले अट्ट जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे छ' जोयणाइं विक्खंभेणं, उरिं चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं, मूले सातिरेगाइं पणुवीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं मज्झे सातिरेगाइं अट्ठारस जोयणाई परिक्खेवेणं, उवरि सातिरेगाइं बारस जोयणाई परिक्खेवेणं, मूले विच्छिण्णे मज्झे संखित्ते उप्पि तणुए गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वजंबूणयामए अच्छे जाव' पडिरूवे । से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेण सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते, पुष्करिणीनां बहुमध्यदेशभागेऽत्र महानेकः ३. क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु चिन्हाङ्कितः पाठः प्रासादावतंसक: प्रज्ञप्तः, स च जम्बूवृक्षदक्षिण- नैव लभ्यते, वृत्तावपि नास्ति व्याख्यातः । पश्चिमशाखाभाविप्रासादवत प्रमाणादिना केवलं ताडपत्रीयादर्श एवासी विद्यते । जम्बूवक्तव्यो यावत् 'सहस्सपत्तहत्थगा' इति पदं द्वीपप्रज्ञप्त्यामेष (४११५६) पाठः उपसर्वत्रापि च सिंहासनमनादृतदेवस्य सपरि- लब्धोस्ति तद्वत्तौ (पत्र ३३५) व्याख्यातोपि वारम् । एवं दक्षिणपूर्वस्यां दक्षिणापरस्या- वर्तते। मुत्तरापरस्यां च प्रत्येकं वक्तव्यं, नवरं नन्दा- ४, ५, ७, ८. बारस अट्ट सत्ततीसं पणुवीसं (क, पूष्करिणीनामनानात्वं, तच्चेदं-दक्षिणपूर्वस्यां ख, ग, ट, त्रि); जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तावपि पूर्वादिक्रमेण उत्पलगुल्मा नलिना उत्पला (पत्र ३३५) स्वीकृतानि पदानि व्याख्यातानि उत्पलोज्ज्वला, दक्षिणपूर्वस्यां भृङ्गा भृङ्ग सन्ति, पाठान्तरगतानि पदानि मतान्तरत्वेन निभा अञ्जना कज्जलप्रभा, अपरोत्तरस्यां परिशितानि सन्ति-जिनभद्रगणिक्षमाश्रमश्रीकान्ता श्रीचन्द्रा श्रीनिलया श्रीमहिता, णैस्तु 'अठ्ठसहकडसरिसा सव्वे जंबूणयामया उक्तञ्च भणिया' इत्यस्यां गाथायामृषभकूटसमत्वेन पउमा पउमप्पभा चेव, कुमुयाकुमुयप्पभा। भणितत्वात् द्वादश योजनानि अष्टी मध्ये उप्पलगूम्मा नलिणा, उप्पला उप्पलुज्जला ॥१॥ चेत्यूचे, तत्त्वं तु बहुश्रुतगम्यम्। भिंगा भिंगनिभा चेव, अंजणा कज्जलप्पभा। ६. आयामविक्खंभेण (क, ख, ग, ट, त्रि); वृत्तसिरिकता सिरिचंदा, सिरिनिलया चेव सिरि- त्वेन य एव आयाम: स एव विष्कम्भ इति महिया ॥२॥ (जम्बू० वृत्ति पत्र ३३५)। १. सिरिकता सिरिमहिया, सिरिचंदा चेव तह ६. उरि (ता)। य सिरिणिलया (क, ख, ग, ट, त्रि)। १०. जी० ३।२६१ । २. पुरथिमेणं (त्रि)। Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ जीवाजीवाभिगमे दोण्हवि वण्णओ'॥ ६६०. तस्स णं कूडस्स उवरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव' मणीणं तणाय य सद्दो॥ ६६१. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए ‘एगं सिद्धायतणंकोसप्पमाणं सव्वा सिद्धायतणवत्तव्वया" ॥ ६९२. जंवूए णं सुदंसणाए पुरथिमिल्लस्स' भवणस्स दाहिणेणं, दाहिण-पुरत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पण्णत्ते, 'तं चेव पमाणं सिद्धायतणं च ॥ ६६३. जंबूए णं सुदंसणाए दाहिणिल्लस्स भवणस्स पुरत्थिमेणं, दाहिण-पुरत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पण्णत्ते, तं चेव पमाणं सिद्धायतणं च ॥ ६६४. जंबूए णं सुदंसणाए दाहिणिल्लस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं', दाहिण-पच्चत्थि मिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पण्णत्ते, तं चेव पमाणं सिद्धायतणं च ॥ ६६५. जंबूए णं सुदंसणाए पच्चथिमिल्लस्स भवणस्स दाहिणेणं, दाहिण-पच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पण्णत्ते, तं चेव पमाणं सिद्धायतणं च ॥ ६६६. जंबूए णं सुदंसणाए पच्चत्थिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं, उत्तर-पच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स दाहिणेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पण्णत्ते, तं चेव पमाणं सिद्धायतणं च ॥ ६६७. जंबूए णं सुदंसणाए उत्तरिल्लस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं, उत्तर-पच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पण्णत्ते, तं चेव पमाणं सिद्धायतणं च ॥ ६६८. जंबुए णं सुदंसणाए उत्तरिल्लस्स भवणस्स पुरथिमेणं, उत्तर-पुरथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पण्णत्ते, 'तं चेव पमाणं तहेव सिद्धायतणं" ।। १. जी० ३।२६३-२६७ । २. जी० ३।२७७-२८५ । ३. सिद्धायतणे जम्बुसिद्धायणसरिसे जाव धूव___ कडुच्छुए (ता, मवृ); जी० ३१६७४-६७७ । ४. पुरथिमस्स (क, ख, ग, त्रि) । ५. जेच्चेव उत्तरपुरथिमिल्लकूडसिद्धायतण__वत्तव्वता सव्वे विहिं पि (ता)। ६. परतो (ख, ग, त्रि, मवृ)। ७. तधेव जाव सिद्धायणे जाव कडुच्छुए जाव अट्ठट्ठमं (ता)। अतोने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु सूत्रद्वयमुपलभ्यते जंबू णं सुदंसणा अण्णेहिं बहूहि तिलएहि लउएहिं जाव रायरुक्खेहिं हिंगुरुक्षेहिं जाव सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता । जंबुए णं सुदंसणाए उरि बहवे अट्ठट्ठमगलगा पण्णत्ता, तं जहा-सोत्थियसिरिवच्छ किण्हा चामरज्झया जाव छत्तातिच्छत्ता । ताडपत्रीयादर्श एक सूत्रमुपलभ्यतेजंबूए णं सुदंसणाए उरि अमंगलगा जाव Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ६६६. जंबूए णं सुदंसणाए दुवालस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहासुदंसणा अमोहा य, सुप्पबुद्ध जसोधरा । विदेहजंबू सोमणसा, णियया णिच्चमंडिया ॥ १ ॥ सुभद्दाय विसाला य, सुजाया सुमणा वि य । सुदंसणाए जंबूए नामधेज्जा दुवालस' ॥२॥ सेकेणट्ठेणं भंते ! एवं वच्चइ - जंबू सुदंसणा ? गोयमा ! जंबूए णं सुदंसire 'जंबूदीवाहिवती अगाढिते णामं" "देवे महिड्ढीए जाव पलिओवमट्ठितीए परिवसति । से णं तत्थ चउन्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं जंबूदीवस्स* जंबूए सुदंसणा अणाढियाते य रायधाणीए जाव' विहरति 'सेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वच्चति - जंबू सुदंसणा " ।। ७०१. कहि णं भंते ! अणाढियस्स देवस्स 'अणाढिया णामं रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जे । एवं जहा विजयस्स देवस्स जाव' समत्ता वत्तव्वया रायधाणीए, एमहिड्ढीए " || ७०२. अदुत्तरं च णं गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे 'उत्तरकुराए कुराए" तत्थ - तत्थ से तहि तर्हि बहवे जंबूरुक्खा जंबूवणा जंबूसंडा" णिच्चं कुसुमिया जाव" वडेंसगधरा" । से णट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - जंबुद्दीवे दीवे । ७००. 'अदुत्तरं च णं गोयमा ! जंबुद्दीवस्स सासते णामधेज्जे पण्णत्ते - जण्ण कयावि णासि जाव" णिच्चे"" ।। जंबुद्दीवे चंदसूरादि-अधिगारो ७०३. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे कति चंदा पभासिसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति सयसहस्सपत्तहत्थगा । प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्ती नैतत् सूत्रद्वयमपि व्याख्यातमस्ति । जम्बूवृक्षः अन्यैः जम्बूवृक्षैः परिवृतोस्ति तेन नैष पाठोऽपेक्षितोस्ति । जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तौ 'अट्टमंगलगा' इति सूत्रं जम्ब्वा द्वादश नामानन्तरं व्याख्यातमस्ति । १. ताडपत्रीयादर्श वृत्तौ च नाम्नां भेदः क्रमभेदश्च दृश्यते--- सुदंसणा अमोहाय सुप्पबुद्धा जसोधरा । भद्दा य सुभद्दा य सुयाता सुमणा तिय ॥ १॥ विदेहा बंधु सोमणसा णितिया णिच्चमंडिया | सुदंसणाए जंबूए, एते णामा दुवालसा ||२|| (ता) । णं अमंगलगा' इति पाठो विद्यते । ३. अणाढिए णाम जंबूदीवाहिपदि ( ता ) । ४. x (ता) । ५. जी० ३।३५० । ६. x ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ७. जी० ३।३५१-५६५ । १९३ सुदर्शना अमोघा सुप्रबुद्धा यशोधरा सुभद्रा विशाला सुजाता सुमनाः विदेहजम्बू सोमनस्या नियता नित्यमण्डिता ( मवृ ) । २. अतः परं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ती ( ४ । १५८) 'जंबूए १४ x (ता, मवृ ) । ८. जंबुद्दीवाहिपतिस्स अणाढिया णाम रायहाणी पं जंबूएस उत्तरेणं तिरियमसंखे जहा विजया (FTT) I ६. X ( क, ख, ग, ट, त्रि) | १०. जम्बूवणसंडा (क, ख, ग, ट, त्रि) । ११. जी० ३।२७४ । १२. सिरीए अतीव उवसोभेमाणा २ चिट्ठेति (क, ख, ग, त्रि) । १३. जी० ३।३५० । Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ जीवाजीवाभिगमे वा ? कति सूरिया विसु' वा तवंति वा तविस्संति वा ? कति नक्खत्ता जोयं जोइंसु वा वा जोइति वा ? कति महग्गहा चारं चरिंसु वा चरंति' वा चरिस्संति वा ? कति' तारागणको डाकोडीओ सोभिसु वा सोभंति वा सोभिस्संतिवा ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे दो चंदा पभासिसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा, दो सूरिया तविसु वा तवंति वातविस्संति वा, छप्पन्नं नक्खत्ता जोगं जोइंसु वा जोयंति वा जोएस्संति वा, छावत्तरं गहसतं चारं चरिसु वा चरंति वा चरिस्संति वा एवं सतसहस्सं, तेत्तीसं खलु भवे सहस्साइं " । वय या पन्नासा तारागण कोडकोडीणं ॥ १ ॥ सोभ वासोति वा सोभिस्संति वा ॥ लवणसमुद्दाधिगारो ७०४. जंबुद्दीवं' दीवं लवणे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति ॥ ७०५. लवणे णं भंते ! समुद्दे किं समचक्कवालसंठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? गोयमा ! समचक्कवालसंठिते' नो विसमचक्कवाल संठिते ॥ ७०६. लवणे णं भंते ! समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं, केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणे णं समुद्दे दो जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, 'पन्न रस जोयणसयसहस्साइं एगासीइस हस्साइं सयमेगोणचत्तालीसे" "किचिविसेसूणं परिक्खेवेणं"" । से णं एक्काए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते चिट्ठइ, दोहवि वण्णओ । सा णं पउमववेइया अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं पंच धणुसयविक्खंभेणं लवणसमुद्दसमिया परिक्खेवेणं सेसं तहेव" । से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई जाव" विहरs || ७०७. लवणस्स णं भंते ! समुद्दस्स कति दारा पण्णत्ता ? 'गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा - विजए वेजयंते जयंते अपराजिते "" ॥ ७०८. कहि णं भंते । लवणसमुद्दस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणसमुहस्स पुरत्थिमपेरते धायइसंडदीवपुरत्थिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सीओदाए" महानदीए C. समचक्कवालयं (ता) । १०. विसमचक्कवालयं ( ता ) । ११. छ सयसहस्साइं सयं च चत्तालं ( ता ) । १२. किंचिविसेसाहिए लवणोदधिणो परिक्खेवेणं (ख, ग, ट, त्रि) । ६. च सहस्साई (ता) । १३. जी० ३।२६३-२७२ । ७. ̊कोडिकोडीणं (क, ख, ग ); 'कोडाकोडीणं १४. जी० ३।२७३-२६८ । १५. जंबुद्दीवविजयसरिसे (ता) | १६. सीताए । १. वसु (ता) | २. चरिति (क, ख, ट, त्रि) । ३. केवतियाओ (ख, ग, ट, त्रि) । ४. सोभंसु (क, ता); सोहंसु (त्रि ) । ५. एगं च (क, ख, ग, ट, त्रि) । (ट) । ८. जंबुद्दीवं णाम (क, ख, ग, ट, त्रि) । चक्कवाल Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती उप्पि, एत्थ णं ल वणस्स समुदस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते, जंबुद्दीव विजयसरिसे जाव' अट्ठमंगलगा'। ७०६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-विजए दारे, विजए दारे ? जो अट्ठो' जंबुद्दीवगस्स ॥ ७१०. कहि णं भंते ! लवणगस्स विजयस्स देवस्स विजया णाम रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! विजयस्स दारस्स पुरत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे अण्णंमि लवणसमुद्दे वारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं विजयस्स देवस्स विजया णाम रायहाणी पण्णत्ता, जंबुद्दीवगसरिसा वत्तव्वया ।। ७११. 'कहि णं भंते ! लवणसम इस्स वेजयंते नाम दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणसमुद्दे दाहिणपेरंते धातइसंडदीवस्स दाहिणद्धस्स उत्तरेणं, एत्थ णं वेजयंते णामं दारे पण्णत्ते, सेसं तं चेव सव्वं ॥ ७१२. एवं जयंते वि तस्स वि रायहाणी पच्चत्थिमेणं ।। ७१३. कहि णं भंते ! लवणसमुदस्स अपराजिते तहेव रायहाणी वि उत्तरेणं अपराजितस्स दारस्स अण्णंमि लवणे जहा विजयरायहाणि-गमो उड्ढं उच्चत्तं तहा ॥ ७१४. लवणस्स णं भंते ! समुदस्स दारस्स य दारस्स य एस णं केवतियं अबाधाए" अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! 'तिण्णि जोयणसतसहस्साइं पंचाणउई सहस्साइं दोण्णि य असीते १. जी०३1३००-३४६ । २. वृत्तौ अत्र किञ्चिद् विस्तृतः पाठो व्याख्यानोस्ति-अष्टौ योजनान्युर्ध्वमुच्चस्त्वेन । एवं जम्बूद्वीपगतविजयद्वारसदशमेतदपि वक्तव्यं यावद्बहून्यष्टावष्टौ मङ्गलकानि यावद्वहवः सहस्रपत्रहस्तकाः । ग, ट, त्रि' आदर्शष अत: प्रारभ्य ७१० सूत्रपर्यन्तं भिन्ना वाचना विद्यते, यथा-अट्ट जोयणाई उडढं उच्चत्तेणं चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं एवं तं चेव सव्वं जहा जंबुद्दीवस्स विजयसरिसेवि रायहाणी पुरत्थिमेणं अण्णंमि लवणसमुद्दे । ३. जी० ३ । ३५० । ४. जी० ३ । ३५१-५६५।। ५. एवं वेजतंतं पि अप्पणिज्जेणं गमेणं लवणस्स दाहिणेण रायहाणी (क, ख, ता)। ६. ७१२,७१३ सूत्रयोः स्थाने 'ग, ट, त्रि' आद शेष पाठभेदो लभ्यते-एवं जयंतेवि, णवरिसियाए महाणदीए उप्पि भाणियव्वे । एवं अप- राजितेवि, णवरं-दिसीभागो भाणियब्वो। वृत्तौ एते द्वेपि सूत्रे किञ्चिद् विस्तृते विद्यते-कहि णं भंते! इत्यादि, क्व भदन्त ! लवणसमुद्रस्य जयन्तं द्वारं प्रज्ञप्तं ? भगवानाह-गौतम ! लवणसमुद्रस्य पश्चिमपर्यन्ते धातकीखण्डपश्चिमाद्धस्य पूर्वत: शीताया महानद्या उपरि लवणस्य समुद्रस्य जयन्तं नाम द्वारं प्रज्ञप्तं, तद्वक्तव्यतापि विजयद्वारवद वक्तव्या, नवरं राजधानी जयन्तद्वारस्य पश्चिमभागे वक्तव्या। अपराजितद्वारप्रतिपादनार्थमाह-कहिणं भंते ! इत्यादि क्व भदन्त! लवणस्य समुद्रस्यापराजितं नाम द्वारं प्रज्ञप्तं? भगवानाह-गौतम ! लवणसमुद्रस्योत्तरपर्यन्ते धातकीखण्डद्वीपोत्तरार्द्धस्य दक्षिणतोत्र लवणस्य समुद्रस्यापराजितं नाम द्वारं प्रज्ञप्तं । एतद्वक्तव्यताऽपि विजयद्वारवनिरवशेषा वक्तव्या, नवरं राजधानी अपराजितद्वारस्योत्तरतोऽवसातव्या। ७. आवाधाए (ख, ग, ट, ता)। Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ जीवाजीवाभिगमे जोयणसते कोसं च दारस्स य दारस्स य अबाहाए अंतरे पण्णत्त"। ७१५. लवणस्स णं भंते ! समुदस्स पएसा धायइसंडं दीवं पुट्ठा ? हंता पुट्ठा ।। __७१६. ते णं भंते ! कि लवणे समुद्दे ? धायइसंडे दीवे ? गोयमा ! ते लवणे समुद्दे, नो खलु ते धायइसंडे दीवे ॥ ७१७. धायइसंडस्स णं भंते ! दीवस्स पदेसा लवणं समुदं पट्ठा ? हंता पुढा ॥ ७१८. ते णं भंते ! किं धायइसंडे दीवे ? लवणे समुद्दे ? गोयमा ! धायइसंडे णं ते दीवे, नो खलु ते लवणे समुद्दे । ७१६. लवणे णं भंते समुद्दे जीवा उद्दाइत्ता'- उद्दाइत्ता धायइसंडे दीवे पच्चायंति ? गोयमा ! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायति ॥ ७२०. धायइसंडे णं भंते ! जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति ? गोयमा ! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायंति° ।। ७२१. से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ-लवणे समुद्दे ? लवणे समुद्दे ? गोयमा ! 'लवणस्स णं समदृस्स" उदगे आविले" रहले लोणे लिंदे' खारए कडए अपज्जे बहणं चउप्पय-मिय-पसु-पक्खि-सिरीसवाणं, नण्णत्थ तज्जोणियाणं सत्ताणं, सुटिए" एत्थ" लवणाहिवई देवे महिड्ढीए महज्जुतीए महाबले महायसे महेसक्खे महाणभावे पलिओवमट्टिईए । से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव लवणसमुदस्स सुट्ठियाए रायहाणीए अण्णेसिं जाव विहरइ । से एएणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-लवणे णं समुद्दे, लवणे णं समुद्दे। अदुत्तरं च णं गोयमा ! लवणे समुद्दे सासए जाव णिच्चे। - ७२२. लवणे णं भंते ! समुद्दे कति चंदा पभासिंसु वा पभासें ति वा पभासिस्संति वा ? एवं पंचण्हवि" पुच्छा । गोयमा ! लवणे णं समुद्दे चत्तारि चंदा पभासिसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, चत्तारि सूरिया तविसु वा तवंति वा तविस्संति वा, बारसुत्तरं नक्खत्तसयं जोगं जोइंसु वा जोयंति वा जोएस्संति वा, तिण्णि बावणा महग्गहसया चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा, दुण्णि सयसहस्सा सत्तट्टि च सहस्सा नव य सया तारागणकोडकोडीणं" सोभं सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा ॥ १. तिण्णेव सतसहस्सा, पंचाणउति भवे सहस्साई। ५. आइले (ता)। दो जोयणसत असिता, कोसं दारंतरे लवणे ॥१॥ ६. रइले काले (ग, त्रि) । जाव अबाधाए अंतरे पण्णत्ते (क, ख, ग, ट, ७. लंदरे (ग); लोहे (ता)। त्रि,)। ८. अप्पेज्जे (क, ख, ग, ट, त्रि) । २. सं० पा०-लवणस्स णं पएसा धायइसंडं दीवं ६. दुपयचउप्पय (क, ख, ग, ट, त्रि);X (ता)। पुट्टा तहेव जहा जंबूदीवे धायइसंडेवि सोच्चेव १०. सुत्थिए (क, ख); सोत्थिए (ग, त्रि)। गमो। ११. जत्थ (ता)। ३. सं० पा०-उद्दाइत्ता सो चेव विही, एवं धाय- १२. जी० ३ । ३५० । इसंडेवि। १३. जी. ३ । ७०३ । ४. लवणे णं समुद्दे (क, ख, ग, ट, त्रि)। १४. °कोडिकोडीणं (ख, ग, ट, त्रि) । Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तया चउव्हिडिवत्ती ७२३. कम्हा णं भंते ! लवणे समुद्दे चाउद्दसमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु' अतिरेगं-अतिरेगं वड्ढति वा हायति वा ? गोयमा ! 'जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स चउद्दिसि बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ लवणसमुद्द" पंचाणउति-पंचाणउति जोयणसहस्साई ओगाहिता, एत्थ णं चत्तारि 'महइमहालया महालिंजरसंठाणसंठिया" महापायाला पण्णत्ता, तं जहा वलयामुहे केयुए ' सरे । तेणं महापाताला एगमेगं जोयणसयसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, 'मज्झे एगपदेसियाए सेढीए एगमेगं जोयणसतसहस्सं विक्खंभेणं, उवरि' मुहमूले दस जोयणसहस्साइं विक्खभेणं" ।। ७२४. सिणं महापायालाणं कुड्डा सव्वत्थ समा दसजोयणसतबाहल्ला' सव्ववइरामया' अच्छा जाव" पडिरूवा । तत्थ णं बहवे जीवा पोग्गला य अवक्कमंति" विउक्कमंति चयंति उववज्जंति" सासया णं ते कुड्डा दव्वट्टयाए, वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहि फासपज्जवेहि असासया । तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्ढीया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा - काले महाकाले वेलंबे पभंजणे ॥ ७२५. तेसि णं महापायालाणं 'पत्तेयं-पत्तेयं" तओ तिभागा पण्णत्ता, तं जहाहेट्ठिल्ले तिभागे मज्झिल्ले" तिभागे उवरिल्ले तिभागे । ते णं तिभागा तेत्तीस जोयणसहस्साइं तिण्णि य 'तेत्तीसे जोयणसते" जोयणतिभागं च बाहल्लेणं पण्णत्ता । तत्थ णं जेसे हैट्ठिल्ले तिभागे, एत्थ णं वाउकाए संचिट्ठति । तत्थ णं जेसे मज्झिल्ले तिभागे, एत्थ णं वाउकाए आउकाय संचिट्ठति । तत्थ णं जेसे उवरिल्ले तिभागे, एत्थ णं आउकाए संचिट्ठति ॥ ७२६. अदुत्तरं च णं गोयमा ! लवणसमुद्दे तत्थ तत्थ देसे तर्हि तहि बहवे खुड्डालि १. पुण्णमासिणीसु (क, ख, ग, त्रि) । २. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स चउद्दिसि लवणं समुद्दे (ता, मवृ ) | ३. महालिंजरसं ठाणसं ठिया महइमहालया (क, ख, गट, त्रि); महारंजरसंठाणसंठिया (मवृपा) । ४. केतू (क, ख, ग, ट); केयूए: ( त्रि); केयूप (मवृ) । ५. जूवे (क, ख, ग, ट, त्रि); यूपः (मवृ) । ६. उप्पि (ता) । ७. X ( क, ख ) । ८. बाहल्ला पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि) । ९. सव्वरयणामया ( ग ) । १०. जी० ३।२६१ । ११. वक्कमंत (ख, ट, ता) | १२. उवचयंति (ग, त्रि); उपचीयन्ते (मवृ) ; भगवत्यामपि ( २।११३) 'उववज्जंति' इति ३६७ व्याख्या पदं दृश्यते । अभयदेवसूरिणा तद्वत्तावपि 'वक्कमंति' इत्यादिपदचतुष्टयस्य सम्यग् कृतास्ति — 'वक्कमंति' उत्पद्यन्ते 'विउक्कमंति' विनश्यन्ति एतदेव व्यत्ययेनाह -- च्यवन्ते चेति उत्पद्यन्ते चेति (वृत्ति पत्र १४२ ) । मलयगिरिणा प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्ती उक्त पदचतुष्टयस्य या व्याख्या कृता सा सम्यग् न प्रतिभाति – 'अपक्रामन्ति' गच्छन्ति 'व्युत्क्रामन्ति' उत्पद्यन्ते जीवा इति सामर्थ्याद् गम्यम्, जीवानामेवोत्पत्तिधर्मकतया प्रसिद्धत्वात् 'चीयन्ते' चयमुपगच्छन्ति 'उपचीयन्ते' उपचयमायान्ति । व्युत्क्रामन्ति' इति पदस्य उत्पद्यन्ते इत्यर्थो न सङ्गच्छते । १३. x (क, ख, ग, ट, त्रि) । १४. मज्झमिल्ले ( ट ) ; मज्झिले ( ता ) । १५. सते तेत्तीसे (ता) । Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ जीवाजीवाभिगमे जरसंठाणसंठिया खुड्डापायाला' पण्णत्ता। ते णं खुड्डापाताला एगमेगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले एगमेगं जोयणसतं विक्खंभेणं, मज्झे एगपदेसियाए सेढीए एगमेगं जोयणसहरसं विक्खंभेणं, उप्पि मुहमूले एगमेगं जोयणसतं विक्खंभेणं ।। ७२७. तेसि णं खुड्डापायालाणं कुड्डा सव्वत्थ समा दसजोयणवाहल्ला' सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा । तत्थ णं बहवे जीवा पोग्गला य' •अवक्कमति विउक्कमति चयंति उववज्जति । सासया णं ते कुड्डा दव्वट्ठयाए, वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहि फासपज्जवेहि असासया, पत्तेयं-पत्तेयं अद्धपलिओवम द्वितीयाहिं देवताहिं परिग्गहिया ।। ७२८. तेसि णं खुड्डापातालाणं 'पत्तेयं-पत्तेयं” तओ तिभागा पण्णत्ता, तं जहा-- हेढिल्ले तिभागे मज्झिल्ले तिभागे उवरिल्ले तिभागे। ते णं तिभागा तिण्णि तेत्तीसे जोयणसते-जोयणसते जोयणतिभागं च बाहल्लेणं पण्णत्ता। तत्थ णं जेसे हेदिल्ले तिभागे, एत्थ णं वाउकाए संचिट्ठति, मज्झिल्ले तिभागे वाउआए आउयाए य संचिट्ठति, उवरिल्ले आउकाए संचिट्ठति । एवामेव सपुव्वावरेणं लवणसमुद्दे सत्त पायालसहस्सा अट्ठ य चुलसीता पातालसता भवंतीति मक्खाया। ७२६. तेसि णं 'खड्डापातालाणं महापातालाण य" हेट्टिममज्झिमिल्लेसु तिभागेसु वहवे ओराला वाया संसेयंति संमुच्छंति ‘एयंति वेयंति' चलंति 'घटुंति खुब्भंति फंदति उदीरेंति' तं तं भावं परिणमंति । जया णं तेसिं खुड्डापातालाणं महापातालाण य हेट्ठिल्लमज्झिल्लेसु तिभागेसु वहवे ओराला वाया जाव तं तं भावं परिणमंति, तया णं से उदए उण्णामिज्जई। जया णं तेसिं खुड्डापायालाणं महापायालाण य हेदिल्लमज्झिल्लेसु तिभागेसु नो बहवे ओराला जाव तं तं भावं न परिणमंति, तया णं से उदए नो उण्णामिज्जइ। अंतरावि य णं ते वाया उदीरेंति, अंतरावि य णं से उदगे उण्णामिज्जइ। अंतरावि य णं ते वाया नो उदीरेंति, अंतरावि य णं से उदगे णो उण्णामिज्जइ। एवं खलु गोयमा ! लवणे समुद्दे चाउद्दसट्टमुद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु अइरेग-अइरेगं वड्ढति वा हायति वा ॥ __ ७३०. लवणे णं भंते ! समुद्दे तीसाए मुहुत्ताणं कतिखुत्तो अतिरेगं-अतिरेगं वड्ढति वा हायति वा ? गोयमा ! लवणे णं समुद्दे तीसाए मुहुत्ताणं दुक्खुत्तो अतिरेगं-अतिरेगं वडढति वा हायति वा ॥ ७३१. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-लवणे णं समुद्दे तीसाए मुहत्ताणं दुक्खत्तो अइरेग-अइरेगं वड्ढइ वा हायइ वा ? गोयमा ! उद्धमंतेसु पायालेसु वड्ढइ आपूरतेसु पायालेसु हायइ । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-लवणे णं समुद्दे तीसाए मुहुत्ताणं दुक्खुत्तो अइरेग-अइरेगं वड्ढइ वा हायइ वा ।। १. पायालकलसा (क, ख, ग, त्रि, मवृ)। ट, त्रि)। २. दसजोयणाई बाहल्लेण पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, ६. कालिका (ता)। त्रि); दश दश योजनानि बाहल्यतः (मव)। ७. ४ (म)। ३. सं० पा०-पोग्गला य जाव असासयावि। ८. कंपति खुब्भंति घटॅति फंदति (क, ख, ग, ट, ४. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि)। त्रि)। ५. महापातालाणं खुड्डुगपातालाण य (क, ख, ग, ६. उण्णाहिज्जति (क, ख, ग, ता) सर्वत्र । Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ७३२. लवणसिहा णं भंते ! केवतियं चक्कवाल विक्खंभेणं' केवतियं अइरेगं-अइरेगं वड्ढति वा हायति वा ? गोयमा ! लवणसिहा' णं 'सव्वत्थ समा" दस जोयणसहस्साई चक्क वाल विक्खंभेणं, देसूणं अद्धजोयणं अतिरेगं-अति रेगं वड्ढति वा हायति वा ॥ ७३३. लवणस्स णं भंते ! समुद्दस्स 'कति णागसाहस्सोओ " अब्भितरियं वेलं धरंति' ? कति नागसाहसीओ वाहिरियं वेलं धरंति ? कति नागसाहस्सीओ अग्गोदयं धरंति ? गोयमा ! लवणसमुद्दस्स बायालीसं नागसाहम्सीओ अभितरियं वेलं धरति, बावतर साहसीओ बाहिरियं वेलं धरंति, सट्ठि नागसाहस्सीओ अग्गोदयं धरंति । एवमेव ' सपुव्वावरेणं एगा' णागसतसाहस्सी चोवतरि च नागसहस्सा भवतीति मक्खाया ॥ ७३४. कति णं भंते ! वेलंधरणागरायाणो" पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि वेलंधरणागरायाणो पण्णत्ता, तं जहा - गोथूभे" सिवए संखे मणोसिलए" ।। ७३५. एतेसि णं भंते ! चउन्हं वेलंधरणागरायाणं कति आवासपव्वता पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि आवासपव्वता पण्णत्ता, तं जहा - गोथूभे दओभासे " संखे दगसीमे ॥ ७३६. कहि णं भंते ! गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स" गोथूभे णामं आवासपव्वते पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दं बायालीसं जोयणसहस्सा ओगाहित्ता एत्थ णं गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स" गोथूभे णामं आवासपव्वते पण्णत्ते । सत्तर एक्कवीसाइं जोयणसताइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि ती से जोयणसते कोसं च उब्वेधेणं, मूले दसबावीसे जोयणसते आयाम - विक्खंभेणं", मज्झे सत्त तेवी से जोयणसते आयाम-विवखंभेणं उवरि चत्तारि चउवीसे जोयणसए आयाम - विक्खंभेणं, मूले तिण्णि जोयणसहस्साइं दोणि य बत्तीसुत्तरे" जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, मज्झे दो सहस्सा दोणिय छलसीते" जोयणसते किचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, उवरि एवं जोयणसहस्सं तिण्णि य ईयाले जोयणसते किचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, मूले वित्थिपणे मज्झे संखित्ते उप्पि तणुए गोपुच्छसंठाण संठिए सव्वकणगा मए अच्छे जाव पडिरूवे । से णं गाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते, दोपहवि वण्णओ" || ७३७. गोथूभस्स” णं आवासपव्वतस्स उवर बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते १. विक्खंभेणं (ता) सर्वत्र । २. लवणसिहाए (क, ग ) । ३. x (क, ख, ग, ट, त्रि) । ४. केवतिया नागसहस्सा (ता) सर्वत्र । ५. धरेंति (ता) सर्वत्र । ६. बादलीसं (ता) ७. एवामेव (ता) । ८. लवणसमुद्दे एगा (ता) । ६. बावरि (क, ख, ग, ट) अशुद्धमस्ति । १०. वेलंधरा णागराया (क, ख, ग, ट, त्रि); वेणंधर° (ता) । ११. गोथुब्भे (ता) | १२. मणोसिलाए ( ठाणं ४ | ३३० ) । १३. उदयभासे (क, ख, ट ) ; दगभासे (ग, त्रि) । १४. भुर्यादिस्स भुयगरण्णो ( ता ) सर्वत्र । १५. भुर्यादिस्स भुयगरण्णो (ता, मवृ) । १६. विक्खंभे (ता, मवृ ) | १७. बत्ती (ता) । ३६६ १८. चुलसीते ( ट ) । १९. जी० ३।२६३-२६७ । २०. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'ता' प्रतो भिन्नपाठो लभ्यते - भूमिभागो ससद्दो जावासयंति । Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे जाव' आसयति । तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं एगे महं पासायवडेंस बावट्ठ जोयणद्धं च उड्ढं उच्चत्तेणं तं चैव पमाणं अद्ध आयामविक्खंभेणं वण्णओ जाव' सीहासणं सपरिवारं ॥ ७३८. से केणट्ठेणं भंते ! एवं बुच्चइ - गोथूभे आवासपव्वए ? गोथूभे आवासपव्वए ? गोयमा ! गोथूभे णं आवासपव्वते 'खुड्डा खुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहूई उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताई गोथूभप्पभाई गोथूभागाराई गोथूभवण्णाई गोथूभवण्णाभाई", गोथूभे य एत्थ देवे' महिड्ढीए जाव पलिओवमट्टितीए परिवसति । से णं तत्थ उन्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव गोथूभस्स आवासपव्वतस्स गोथूभाए रायहाणीए ' जाव विहरति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वच्चति - गोथूभे आवासपव्वते, गोथूभे आवासपव्वते 'जाव णिच्चे " ॥ ७३६. रायहाणिपुच्छा । गोयमा ! गोथूभस्स आवासपव्वतस्स पुरत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीतिवइत्ता अण्णंमि लवणसमुद्दे 'बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता जहा ' विजया ॥ ४०० ७४०. कहि णं भंते! सिवगस्स वेलंधरणागरायस्स" दओभासणामे आवासपव्वते पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दक्खिणेणं" लवणसमुदं बायालीसं जोयणसहस्सा ओगाहित्ता, एत्थ णं सिवगस्स वेलंधरणागरायस्स दओभासे णामं आवासपव्वते पण्णसे । 'जहा गोथूभो जाव" सीहासणं सपरिवार"" । ७४१. से केणट्ठणं भंते ! एव वुच्चइ - दअभासे आवासपव्वते ? ओभा आवासपव्वते " ? गोयमा ! दओभासे णं आवासपव्वते लवणसमुद्दे अट्ठजोयणिए खेत्ते 'दगं सव्वतो समंता"" ओभासेति उज्जोवेति तावेति पभासेति । 'सिवए एत्थ देवे महिड्ढी उबर बहुसमरमणिज्जो बहुमज्झदेसभाए पासायवडेंसओ विजय मूलपासायसरिसो जाव सीहासणं सपरिवारं । १. जी० ३।२७७-२९७ । २. जी० ३।३०७-३१३, ३३६-३४९ । ३. तत्थ २ देसे तर्हि २ बहुओ खुड्डाखुड्डियाओ जाव गोथूभवण्णाई बहूई उप्पलाई तहेव जाव (क, ख, ग, ट, त्रि); बहुवीओ खुड्डाखुड्डीओ जाव बिल तासु णं खड्डा जाव बिल बहुगाई उप्पलाई जाव पत्ताई गोथूभप्पभाई ३ ( ता ) । ४. तत्थ (क, ख, ग, ट, त्रि) । ५. भूयंति भुयगराया (ता, मवृ) । ६. रायहाणीए अण्णेसि च व गोथुभरायहाणि वत्यव्वाणा वाणमन्त (ता) । ७. जी० ३।३५० । ८. x (ता) । ६. जी० ३।३५१-५६५ । १०. तं चैव पमाणं तहेव सव्वं (क, ख, ग, ट, fa) I ११. भु २ (ता) । १२. दाहिणेणं ( ता ) । १३. जी० ३।७३६,७३७ । १४. तं चैव पमाणं जं गोथुभस्स णवरि सव्वअंकामए अच्छे जाव पडिरूवे जाव (क, ख, ग, ट, त्रि ) । १५. अट्ठो भाणियव्वो (क, ख, ग, ट, त्रि); अट्ठो पुच्छा (ता) । १६ सव्वतो समंता दगं ( ता ) । १७. तवति (क, ख, ग, त्रि) । Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ४०१ जाव रायहाणी से दक्खिणेणं सिविगा दओभासस्स सेसं तं चेव ॥ ७४२. कहि णं भंते ! संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे णाम आवासपन्वते पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं वायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे णामं आवासपव्वते ‘पण्णत्ते । गोथूभगमो जाव' सीहासणं सपरिवारं"। ७४३. 'से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-संखे आवासपव्वते ? संखे आवासपव्वते ? गोयमा ! संखे आवासपव्वते"५ 'खड्डा-खुडियासु जाव बिलपंतियासु बहूई उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताइं संखप्पभाई संखागाराइं" संखवण्णाइं संखवण्णाभाई संखे य एत्थ देवे महिड्ढीए जाव विहरति । से तेणठेणं ॥ ७४४. 'रायहाणी संखपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं विजयारायहाणी गमो" ।। - ७४५. कहि णं भंते ! मणोसिलकस्स" वेलंधरणागरायस्स दगसीमे" णामं आवासपव्वते पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं लवणसमुई बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं मणोसिलगस्स वेलंधरणागरायस्स दगसीमे णामं आवासपव्वते पण्णत्ते । 'गोथूभगमेणं जाव सीहासणं सपरिवारं॥ ७४६. से" केणठे भंते ! एवं वुच्चइ–दगसीमे आवासपव्वते ? दगसीमे आवासपव्वते ? गोयमा ! दगसीमेणं आवासपव्वते सीतासीतोदाणं महाणदीणं सोता तत्थ गता ततो पडिहता पडिणियत्तंति, मणोसिलए य एत्थ देवे महिड्ढीए जाव" विहरति, से तेणठेणं ॥ १. जी० ३।७३८, ७३६ । संखस्स आवासपब्वयस्स संखा नाम रायहाणी २. सिवए यत्थ भुयगि दे जाव पलिओवमट्ठिईए त चेव पमाणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। परिवसति से णं तत्थ चउण्हं सा दओभासस्स १०. मणोसिलतस्स (ता)। य आवास पं सिवियाए रा अण्णेसिं च ब ११. उदगसीमए (क, ख, ग, त्रि)। रायहाणि सिविया दओभासस्स दाहिणेणं १२. जी० ३१७३६,७३७ । अण्णंमि लवणे तहेवा (ता, मव)। १३. तं चेव पमाणं णवरि सव्व फलिहामए अच्छे ३. जी० ३१७३६, ७३७ ।। जाव (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४. तं चेव पमाणं नवरं सव्वरयणामए अच्छे से १४. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आद णं एगाए पउमवरवदियाए एगेण य वणसंडेणं शेष एवं पाठभेदोस्ति-अद्रो गोयमा ! दगजाव (क, ख, ग, ट, त्रि)। सीमंते णं आवासपव्वते सीतासीतोदगाणं ५. अट्ठो (क, ख, ग, ट, ता, त्रि)। महाणदीणं तत्थ गंता सोए पडिहम्मति । से ६. संखाभाइ (मवृ)। तेणठेणं जाव णिच्चे मणोसिलए एत्थ देवे ७. बहूओ खुड्डाखुड्डियाओ जाव बहूइं उप्पलाई। महिड्ढीए जाव से णं तत्थ चउण्हं सामाणिय __संखाभाई (क, ख, ग, ट, त्रि)। जाव विहरति । ८. जी० ३।३५० । १५. जी० ३।३५० । ६. जी. ३१३५०-५६५ । रायहाणीए पच्चत्थिमेणं Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०२ जीवाजीवाभिगमे ७४७. मणोसिला' रायहाणी? दगसीमस्स आवासपव्वयस्स उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीतिवतित्ता अण्णंमि लवणे तहेव'। संगहणीगाहा कणगंकरययफालियमया य वेलंधराणमावासा। ___अणुवेलंधरराईण पव्वया होंति रयणमया ॥१॥ ७४८. कइ णं भंते ! अणुवेलंधरनागरायाणों पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि अणुवेलंधरणागरायाणो पण्णत्ता, तं जहा-कक्कोडए कद्दमए केलासे अरुणप्पभे ॥ ७४८. एतेसि णं भंते ! चउण्हं अणुवेलंधरणागराईणं' कति आवासपव्वया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि आवासपव्वया पण्णत्ता, तं जहा कक्कोडए विज्जुप्पभे केलासे अरुणप्पभे॥ ७५०. कहि णं भंते ! कक्कोडगस्स अणुवेलंधरणागरायस्स कक्कोडए णाम आवासपव्वते पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरथिमेणं लवणसमुदं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं कक्कोडगयस्स नागरायस्स कक्कोडए णाम आवासपव्वते पण्णत्ते-सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसताइं तं चेव पमाणं जं गोथूभस्स, णवरि-सव्वरयणामए अच्छे जाव निरवसेसं जाव" सीहासणं सपरिवारं। अटो" से बहूई उप्पलाइं कक्कोडप्पभाई, सेसं तं चेव, णवरि-कक्कोडगपव्वयस्स उत्तरपुरथिमेणं एवं तं चेव सव्वं ॥ ७५१. कद्दमस्सवि सो चेव गमओ अपरिसेसिओ, णवरि-दाहिणपुरत्थिमेणं आवासो विज्जुप्पभा रायहाणी दाहिणपुरत्थिमेणं ।। ७५२. केलासेवि एवं चेव, णवरि-दाहिणपच्चत्थिमेणं केलासावि रायहाणी ताए चेव दिसाए॥ १. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आद- ७. केतिलासे (ख); कइलासे (ग, ट, त्रि)। शेष एवं पाठभेदोस्ति—कहि णं भंते ! मणो- ८. बातालीसं (ता)। सिलगस्स बेलंधरणागरायस्स मणोसिला णाम ६. अतः परं ७५१ सूत्रपर्यन्त 'ता' प्रतौ एतावानेव रायहाणी? गोयमा ! दगसीमस्स आवास- पाठो लभ्यते-गोथूभगमो रायहाणि कक्कोडपव्वयस्स उत्तरेणं तिरि अण्णंमि लवणे एत्थ णं गस्स उत्तरपुरत्थि अण्णं लवणस तधेव एवं मणोसिलया णाम रायहाणी पण्णत्ता तं चेव सव्वे विदिसासु अट्ठो णं अप्पणिज्जगवण्णाई पमाणं जाव मणोसिलाए देवे । रायहाणीओ अप्प पुणो विदिसासु । २. जी० ३।३४६-५६३ । १०. जी० ३।७३६,७३७ । ३. फालिहमया (क, ख, ग, ट, त्रि)। ११. इदं पदं से केणठेणं भंते' इति सुत्रस्य सूचक४. अणुवेलंधररायाणो (ग, मवृ); अणुवेलंधर- मस्ति । ____णातरायाणो (ता)। १२. जी० ३७३८,७३६ । ५. रायाणं (ग)। १३. जी० ३१७३६-७३९ । ६. कद्दमए (क, ख, ग, ट, त्रि); विज्जुजिब्भे १४. कइलासे (क, ख, ग, ट, त्रि)। (ता); स्थानाङ्गे (४१३३१) विज्जुप्पभे' १५. जी० ३७३६-७३६ । इति पाठो विद्यते। Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ४०३ ७५३. अरुणप्पभेवि' उत्तरपच्चत्थिमेणं रायहाणीवि ताए चेव दिसाए। चत्तारि वि एगप्पमाणा सव्वरयणामया य ।। ७५४. कहि णं भंते ! सुट्ठियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे णाम दीवे पण्णत्ते ? गोयमा ! 'जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं लवणसमुद्दे" बारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं सुट्टियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे णाम दीवे पण्णत्ते-बारसजोयणसहस्साइं आयाम विक्खंभेणं, सत्ततीसं जोयणसहस्साइं नव य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसूणे' परिक्खेवेणं, जंबूदीवंतेणं अद्धेकूणणउति जोयणाई चत्तालीसं च पंचाणउतिभागे जोयणस्स ऊसिए जलंताओ लवणसमुदं तेणं दो कोसे ऊसिते जलंताओ। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं वणसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते वण्णओ दोण्हवि ॥ ७५५. गोयमदीवस्स णं दीवस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहानामए-आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' आसयंति ॥ ७५६. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागे, एत्थ णं सूट्रियस्स लवणाहिवइस्स महं एगे अइक्कीलावासे नाम भोमेज्जविहारे पण्णत्ते-बावष्टुिं जोयणाई अद्धजोयणं च उडढं उच्चत्तेणं एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं अणेगखंभसतसन्निविठे, 'भवणवण्णओ भाणियव्वो॥ ७५७. अइक्कीलावासस्स णं भोमेज्जविहारस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव" मणीणं फासो॥ ७५८. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता। सा णं मणिपेढिया जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं" बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ७५६. तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं, एत्थ णं देवसयणिज्जे पण्णत्ते, वण्णओ" । उप्पि५ अट्ठमंगलगा॥ ७६०. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-'गोयमदीवे ? गोयमदीवे ? गोयमा ! १. जी. ३७३६-७३६ । पडिरूवे उल्लोगो (ता)। २. जंबुद्दीवस्स २ पच्चत्थिमिल्लातो वेइयंतातो ११. जी० ३।२७७-२८४ । लवणसमुई पच्चत्थिमेणं (ता)। १२,१३. दो जोयणाई, जोयणं (क,ख,ग,ट,त्रि); ३. विसेसोणे (क); विसेसाहिए (ख, ग, ट, प्रस्तुतप्रतिपत्तौ ४०६ सूत्रेपि मणिपीठिका त्रि)। वर्णने 'जोयणं आयामविक्खंभेणं, अद्धजोयणं ४. अद्धकोण° (ग)। बाहल्लेणं' इति पाठो दृश्यते । ५. पंचणउति (क, ख, ग, ट, त्रि)। १४. जी. ३४०७ । ६. तहेव (क, ख, ग, ट, त्रि)। १५. 'तस्य भौमेयविहारस्य उपरि' इत्यर्थः । ७. जी० ३।२६३-२६७ । १६. गोतमद्वीपो नाम द्वीपः (मव); अतः परं ८. उपरि (म)। 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु पाठ भेदो ६. जी० ३।२७७-२६७ । विद्यते-तत्थ २ देसे तहिं २ बहूइं उप्पलाई १०. जी० ३।६४६-६४७; वण्णओ अच्छे जाव जाव गोयमप्पभाई से एएणठेणं गोयमा जाव Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४ जीवाजीवाभिगमे गोयमदीवस्स णं दीवस्स सासते णामधेज्जे पण्णत्ते ण कयावि णासि ण कयावि णत्थि ण कयावि ण भविस्सति, भुवि च भवति य भविस्सति य धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे। सुटिए य एत्थ देवे महिड्ढीए जाव पलिओवमट्टितीए परिवसति । से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव गोयमदीवस्स सुट्ठियाए' रायहाणीए अण्णेसि च बहूणं वाणमंतराणं देवाणं देवीण य आहेवच्चं जाव' विहरति । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-गोयमदीवे, गोयमदीवे ॥ ७६१. कहि णं भंते ! सुट्टियस्स लवणाहिवइस्स सुट्टिया णामं रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! गोयमदीवस्स पच्चत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे जाव अण्णंमि लवणसमुद्दे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एवं तहेव सव्वं णेयव्वं जावसुत्थिए देवे ॥ ७६२. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! 'जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं लवणसमुदं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता–'वारस जोयणसहस्साई आयाम-विक्खं भेणं, सेसं तं चेव जहा गोतमदीवस्स परिक्खेवो"। जंबुद्दीवंतेणं अद्धकोणणउइं जोयणाइं चत्तालीसं पंचाणउति भागे जोयणस्स ऊसिया जलंताओ, लवणसमझतेणं दो कोसे ऊसिता जलंताओ। पउमवरवेइया, पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ते. दोण्डवि वण्णओ। 'भमिभागा तस्स बहमज्झदेसभागे पासादवडेंसगा विजयमलपासादसरिसया जाव' सीहासणा सपरिवारा॥ ७६३. 'से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-चंददीवा ? चंददीवा ?" गोयमा ! 'बहसु खुड्डाखुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहूइं उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताइं चंदप्पभाई चंदागाराई णिच्चे। विजयसरिसा। वतिकृता मलयगिरिणापि अस्य पाठान्तरस्य ४. जी० ३।३५१-५६५ । उल्लेखः कृतः-पुस्तकान्तरेषु पुनरेवं पाठ:- ५. जंबुद्दीवस्स दीवस्स (ता)। 'गोयमदीवे णं दीवे तत्थ तहि तहिं बहुई उप्प- ६. जी० ३७५४ ।। लाइं जाव सहस्सपत्ताई गोयमप्पभाई गोयम- ७. क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु चिन्हाङ्कितः पाठः वन्नाइंगोयमवण्णाभाई' इति, एवं प्राग्वद भाव- 'जलंताओ' इति पदानन्तरं विद्यते । नीयः । पूर्ववर्तिसूत्रेषु पर्वतानां अन्वर्थनामानि ८. जी० ३।२६३-२६७ । निर्दिष्टानि सन्ति, तेषामनुसरणत एव अन्वर्थ- ह.जी०३।२७७-२६७,३६४-३६७ । नामवाचकः पाठो लभ्यते वाचनान्तरे, अर्वाची- १०. बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा जोइसिया देवा नादर्शेष एष एव उपलब्धोस्ति । किन्तु ताड- आसयंति । तेसि णं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पत्रीयादर्श मलयगिरिवृत्तौ च अन्वर्थनाम- पासायवडेंसगा बावढि जोयणाई बहुमज्झवाचकः पाठो नास्ति सम्मतः । मणिपेढियाओ दो जोयणाई जाव सीहासणा १. अणाढियाए (ता)। सपरिवारा भाणियब्वा तहेव (क, ख, ग, ट, २. जी० ३।३५० । त्रि)। ३. 'ता' प्रतो अस्य सूत्रस्य स्थाने पाठसंक्षेपोस्ति- ११. अट्टो (क, ख, ग, ट, त्रि)। गोयमदीवस्स पच्चत्थिमेणं अण्णम्मि लवणे Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०५ तच्चा चउग्विहपडिवत्ती चंदवण्णाई चंदवण्णाभाई, चंदा य एत्थ देवा" महिड्ढीया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । तेण तत्थ पत्तेयं - पत्तेयं चउन्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव चंददीवाणं चंदाण य यहाणी असच बहूणं जोतिसियाणं देवाणं देवीण य आहेवच्चं जाव' विहरति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! चंदद्दीवा जाव णिच्चा | ७६४. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंदाओ नाम रायहाणीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! चंददीवाणं पुरत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता 'अण्णंमि जंबुद्दीवे वे बरस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, तं चेव पमाणं जाव' एमहिड्ढीया चंदा देवा चंदा देवा" ॥ ७६५. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवगाणं सुराणं सूरदीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? गोमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं लवणसमुदं वारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, तं चैव उच्चत्तं आयाम विक्खंभेणं परिक्खेवो वेदिया वणसंडा भूमिभागा जाव आसयंति, पासायवडेंसगाणं तं चेव पमाणं, मणिपेढिया सीहासणा सपरिवारा, अट्ठो उप्पलाई सूरप्पभाई सूरा एत्थ देवा जाव रायहाणीओ सकाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं coin जंबूद्दवे दीवे सेसं तं चेव जाव" सूरा देवा ॥ ७६६. कहिं णं भंते ! अभितरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? १. चंदद्दीवेसु णं २ तत्थ ३ खुड्डा खुड्डियासु बहुयाई उप्पलाई चंदप्पभाई ३ चंद एत्थ जोतिसिदा जोतिसियरायाणी (ता) । 'ओगाहित्ता' इति पदानन्तरं 'विजया राजधानी सदृश्य वक्तव्ये' इति सूचितमस्ति । ६. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'ता' प्रतौ च संक्षिप्तपाठो दृश्यते - कहि णं भंते ! जंबुद्दीवगाणं सुराणं सुरदी २ गो जंबु पच्चत्थि जाव णाणत्तं सुरप्पभाई ३ रायहाणीओ वि पच्चत्थिमेणं । ७. जी० ३।७६२-७६४ । २. जी० ३।३५० । ३. जी० ३।३५० । ४. जी० ३५१-५६५ । मलयगिरिवृत्तो ५. विजय सरिसियाओ (ता); ८. ७६६-७७५ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतौ संक्षिप्तपाठोस्ति कहि णं भंते ! अब्भितरलावणगाणं चंदद्दीवादीवा पं गो जंबुद्दीवस २ पुर लवणं बारस जो एत्थ अब्भितरला जेच्चैव जंबुद्दीवाणं चंदाणं गमो सोच्देव नाणत्तं रायहाणीओ तेसि सताणं दीवाणं पुरत्थि अण्णम्मि लवणे बारस जो विजय रायहाणिसरिसाओ । कहि णं भंते ! अब्भित रलावणगाणं सुराणं सूरद्दी ते चेव णवरं जंबुद्दीवस पच्चत्थि मेणं रायहाणीओवि पच्चत्थिमेणं अण्णंमि लवणे विजयसरिसीओ। कहिणं भंते ! बाहिरलावणगाणं चंदाणं चंदद्दी गो लवणसमुद्दस्स पुरथिमिल्लातो वेइयंतागो लवणसमु पच्चत्थिमेणं बारसजोयणसहस्स ओगा एत्थ णं बाहिरिलाणं चंदाणं चंदद्दीवा णामं दीवा पं जंबुद्दीवचंद वत्तव्वता वरं धातइसंडं दीवंतेणं अद्धेकूणण लवणंतेणं दो कोसे ऊसिते रायहाणी सताणं पुर लवणे चैव । कहि णं भंते ! बाहिरला सुराणं सूरद्दीवा णामं दीवा पं जधेव चंदाणं तधेव णवरं पच्चत्थिमेणं । कहि णं भंते ! धात संडाणं चंदाणं चंदद्दीवा णामं दीवा पं गो धातइसंडपुर वेइयंतातो कालोयणं समुद्द बारस जो ओगा एत्थ णं धातइसंडाणं चंदाण चंद्दद्दीवा णामं दीवा पं जंबुद्दीवगचंदसरिसा नवरं सव्वतो समंता दो कोसे ऊसिता जलंगातो रायहाणीओ सयाणं दी पुरत्थि अण्णम्मि धातइ । एवं सुराणवि पच्चत्थिमेणं धातइसंदा तो कालोदं समुद्दं बारसजो ओगाहित्ता सव्वतो समंता दो कोसे Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६ जीवाजीवाभिगमे गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुदं बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं अभितरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता, जहा जंबुद्दीवगा चंदा तहा भाणियव्वा, णवरि-रायहाणीओ अण्णंमि लवणे, सेसं तं चेव ॥ ७६७. एवं अभितरलावणगाणं सूराणवि लवणसमुहं बारस जोयणसहस्साई तहेव सव्वं जाव' रायहाणीओ॥ ७६८. कहि णं भंते ! बाहिरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा णाम दीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! लवणस्स समुद्दस्स पुरथिमिल्लाओ वेदियंताओ लवणसमुदं पच्चत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं बाहिरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता-बारस जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, धायइसंडदीवंतेणं अद्धकोणणवति जोयणाइं चत्तालीसं च पंचणउतिभागे जोयणस्स ऊसिता जलंताओ, लवणसमुदंतेणं दो कोसे ऊसिता पउमवरवेइया वणसंडा बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा मणिपेढिया सीहासणा सपरिवारा, सो चेव अट्टो' रायहाणीओ सगाणं' दीवाणं पुरथिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमूहे वीईवइत्ता अण्णं मि लवणसमझे तहेव सव्वं ॥ ७६६. कहिं णं भंते ! बाहिरलावणगाणं सूरा णं सूरदीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! लवणसमुदृपच्चत्थिमिल्लाओ वेदियंताओ लवणसमुदं पुरत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साइं धायतिसंडदीवंतेणं अद्धेकूणणउति जोयणाई चत्तालीसं च पंचनउतिभागे जोयणस्स, लवणसमझतेणं दो कोसे ऊसिया, सेसं तहेव जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे लवणे चेव बारस जोयणा तहेव सव्वं भाणियव्वं॥ ७७०. कहि णं भंते ! धायइसंडदीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! धायइसंडस्स दीवस्स पुरथिमिल्लाओ वेदियंताओ कालोयं णं समुह बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं धायइसंडदीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता, सव्वतो समंता दो कोसा ऊसिता जलंताओ, बारस जोयणसहस्साई तहेव विक्खंभ परिक्खेवो, भूमिभागो पासायवसिया मणिपेढिया सीहासणा सपरिवारा अट्ठो तहेव, ऊसिते जलंतातो तं चेव सव्वं रायहाणीओ सूरदीवाणं पच्चत्थिमेणं अण्णंमि धातइसंडे जाव महिढिया सुरा। कालोयणं चंदाणं कालोयणं समुद्दस्स पुरथिमिल्लातो वेइयंताओ कालोयणं समूह पच्चत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहेत्ता एत्थ णं कालोयणगाणं तं चेव जहा धातइसंडगाणं रायहाणीओ सयाणं दीवाणं पुरथिमेणं तिरियमसंखेज्जे अण्णमि कालोयणे जाव महिडढीया चंदा देवा। सुरावि एवं चेव नवरं कालोयणस्स पच्चत्थिमिल्लातो वेइयंताओ कालोयणं समुदं पुरत्थिमेणं बारसजोयणसह ओगा रायहाणीओ सूरद्दीवाणं पच्चत्थिमेणं अण्णंमि कालोयणे । एवं जहा धायइसंडाणं तहा दीवेसु जहा कालेयणकाण तहा समुद्देसु दीविच्चकाणं दीवेसु रायहाणीओ सामुद्दकाणं समुद्देसु जाव सुरद्दीवा समुद्दाणं । १. जी० ३७६५। ३. साणं (क, ख)। २. एतत् पदं 'से केणठेणं भंते !' इति सूत्रस्य ४. जी० ३७६२-७६४ । सूचकमस्ति । ५. जी० ३१७६५। Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहडिवत्ती ४०७ रायहाणीओ सकाणं दीवाणं पुरथिमेणं अण्णंमि धायइसंडे दीवे, सेसं तं' चेव ॥ ७७१. एवं सूरदीवावि, नवरं-धायइसंडस्स दीवस्स पच्चस्थिमिल्लातो वेदियंताओ कालोयं णं समुदं बारस जोयणसहस्साइं तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ सूराणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं अण्णं मि धायइसंडे दीवे सव्वं तहेव' ।। ७७२. कहि णं भंते ! कालोयगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! कालोयसमुद्दस्स पुरथिमिल्लाओ वेदियंताओ कालोयण्णं समुदं पच्चत्थिमेण बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं कालोयगचंदाणं चंददीवा णाम दीवा पण्णत्ता सव्वतो समंता दो कोसा ऊसिता जलंताओ, सेसं तहेव जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं अण्णमि कालोयसमहे बारस जोयणसहस्साइं तं चेव सव्वं जाव चंदा देवा, चंदा देवा। ७७३. एवं सूराणवि, णवरं-कालोयस्स पच्चथिमिल्लातो वेदियंतातो कालोयसमुद्दपुरत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, तहेव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं अण्णंमि कालोयसमुद्दे तहेव सव्वं ।।। ७७४. एवं पुक्खरवरगाणं चंदाणं पुक्खरवरस्स दीवस्स पुरित्थिमिल्लाओ वेदियंताओ १. जी० ३७६२-७६४ । ४. कालोयणसमुद्दे (क, ख, ग, ट,); कालोयग२. जी० ३१७६५। समुद्दे (त्रि)। ३. जी. ३७६२-७६४ । ५. जी० ३७६५। ६. अतः ७७५ सूत्रस्य 'सरिणामएणु' इति पाठपर्यन्तं वृत्तौ स्पप्टं व्याख्यातमस्ति, यथा--एवं पुष्करवरद्वीपगतानां चन्द्राणां पुष्करवरद्वीपस्य पूर्वस्माद्वेदिकान्तात्पुष्क रोदसमुद्रं द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्य द्वीपा वक्तव्याः राजधान्यः स्वकीयानां द्वीपानां पश्चिमदिशि तिर्यगसलय यान् द्वीपसमुद्रान् व्यतिव्रज्यान्यस्मिन् पुष्करवरद्वीपे द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्य, पुष्क रवरद्वीपगतसूर्याणां द्वीपाः पुष्करवर द्वीपस्य पश्चिमान्ताद्वेदिकान्तात्पुष्क रवरसमुद्रं द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्य प्रतिपत्तव्या:, राजघान्यः पुनः स्वकीयानां द्वीपानां पश्चिम दिशि तिर्यगसङ्घय यान् द्वीपसमुद्रान् व्यतिव्रज्यान्यस्मिन् पुण्करवरद्वीपे द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्य, पुष्करवरसमुद्रगतचन्द्रसत्कचन्द्रद्वीपा: पुष्करवरसमुद्रस्य पूर्वस्माद्वेदिकान्तात्पश्चिमदिशि द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्य प्रतिपत्तव्याः, राजधान्यः स्वकीयानां द्वीपानां पूर्वदिशि तिर्यगसङ्घय यान् द्वीपसमुद्रान् व्यतिव्रज्यान्यस्मिन् पुष्करवरसमुद्रे द्वादश योजनसहस्रेभ्यः परतः, पुष्करवरसमुद्रगतसूर्यसत्कसूर्यद्वीपा: पुष्करवरसमुद्रस्य पश्चिमान्ताद्वेदिकान्तावतो द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्य, राजधान्यः पुन: स्वकीयानां द्वीपानां पश्चिमदिशि तिर्यगसङ्ख्येयान् द्वीपसमुद्रान् व्यतिव्रज्यान्यस्मिन् पुष्करोदसमुद्रे द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्य प्रतिपत्तव्याः । एवं शेषद्वीपगतानामपि चन्द्राणां चन्द्रद्वीपगतात्पूर्वस्माद्वेदिकान्तादनन्तरे समुद्रे द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्य वक्तव्याः, सूर्याणां सूर्यद्वीपाः स्वस्वद्वीपगतात्पश्चिमान्ताद्वेदिकान्तादनन्तरे समुद्रे, राजधान्यश्चन्द्राणामात्मीयचन्द्रद्वीपेभ्यः पूर्वदिशि अन्यस्मिन् सदृशनामके २ द्वीपे सूर्याणामप्यात्मीयसूर्यद्वीपेभ्यः पश्चिमदिशि तस्मिन्नेव सदृशनामकेऽन्यस्मिन् द्वीपे, द्वादश योजनसहस्रेभ्यः परतः, शेषसमुद्रगतानां तु चन्द्राणां चन्द्रद्वीपाः स्वस्वसमुद्रस्य पूर्वस्माद्वेदिकान्तात्पश्चिमदिशि द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्य, सूर्याणां तु स्वस्वसमुद्रस्य पश्चिमान्ताद्वेदिकान्तात्पूर्वदिशि द्वादशः योजनसहस्राण्यवगाह्य, चन्द्राणां राजधान्यः स्वस्वद्वीपानां पूर्वदिशि अन्यस्मिन् सदृशनामके समुद्रे, सूर्याणां राजधान्यः Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८ जीवाजीवाभिगमे पुक्खरसमुदं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता चंददीवा, अण्णं मि पुक्खरवरे दीवे रायहाणीओ तहेव'। ७७५. एवं सूराणवि दीवा पुक्खरवरदीवस्स पच्चत्थिमिल्लाओ वेदियंताओ पुक्खरोद समुदं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ दीविल्लगाणं दीवे, समुद्दगाणं समुद्दे चेव, एगाणं अभिंतरपासे एगाणं बाहिरपासे रायहाणीओ दीविल्लगाणं दीवेसु समुद्दगाणं समुद्देसु सरिणामएसु इमे णामा अणुगंतव्वासंगहणीगाहा जंबुद्दीवे' लवणे, धायइ-कालोद-पुक्खरे वरुणे । खीर-धय खोय'-णंदी. अरुणवरे कंडले रुयगे ॥१॥ आभरण-वत्थ-गंधे, उप्पल-तिलए य पुढवि-णिहि-रयणे । वासहर-दह-नईओ, विजया बक्खार-कप्पिदा ॥२॥ कुरु-मंदर-मावासा, कूडा णक्खत्त-चंद-सूरा य । एवं भाणियव्वं ॥ ७७६. कहि णं भंते ! देवद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! देवदीवस्स पुरथिमिल्लाओ वेइयंताओ देवोदं समुदं वारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं देवदीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता, सच्चेव वत्तव्वया जाव' अट्ठो। रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं देवदीवं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं देवदीवगाणं चंदाणं चंदाओ णामं रायहाणीओ पण्णत्ताओ॥ ७७७. कहि णं भंते ! देवद्दीवगाणं सूराणं सूरदीवा णामं दीवा पण्णत्ता गोयमा ! देवदीवस्स पच्चत्थिमिल्लाओ वेइयंताओ देवोदं समुदं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं देवदीवगाणं सूराणं सूरदीवा णाम दीवा पण्णत्ता, तधेव, रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं देवदीवं असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं ॥ __७७८. कहि णं भंते ! देवसमुद्दगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? स्वस्वद्वीपानां पश्चिमदिशि केवलमग्रेतनशेषद्वीपसमुद्रगतानां चन्द्रसूर्याणां राजधान्योऽन्यस्मिन् सदशनामके द्वीपे समुद्रे वाऽग्रतने वा पश्चात्तने वा प्रतिपत्तव्या नागेतन एवान्यथाऽनवस्थाप्रसक्तः। गाथाश्च तत्र नैव व्याख्याताः सन्ति, केवलं एतच्च देवद्वीपादक सूर्यवराभासं यावद्' इति सङ्केतो विहितः । १. जी० ३७६२-७६४ । जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरथिमेणं २. अनुयोगद्वारे (१८५) गाथाचतुष्कं दृश्यते । देवद्दीवं समुदं असंखेज्जाई जोयणसहस्साई ३. इक्व रो य (ख, ग, त्रि) । ओगाहित्ता एत्थ णं देवदीवगाणं चंदाणं वंदाओ ४. कुर (क, ख, ग, ट, त्रि); पुर (ख)। णामं रायहाणीओ सेसं तं चेव देवदीवचंदा देवा । ५. अतः ७७७ सूत्रपर्यन्तं 'क, ख, ग, ट, त्रि' एवं सुराणवि णवरं पच्चथिमिल्लाओ वेदियंताओ आदर्शेषु विद्यमानः पाठः पूर्वक्रमानुसारी नास्ति पच्चत्थिमेणं च भाणितव्वा तंमि चेव समुद्दे । पूर्तिस्थलावलोकनेन एतत् स्पष्टं ज्ञातुं शक्यम्, ६. जी० ३१७७०, ७६२-७६४ । तेन आदर्शवतिपाठोत्रपाठान्तररूपेण स्वीकृत:- ७. जी० ३१७७६ । देवोदं समुदं बारस जोयणसहस्साई ओगा- ८.७७८%,७७६ सूत्रयोः स्थाने 'ता' प्रती एवं पाठहित्ता तेणेव कमेण पुरथिमिल्लाओ वेइयंताओ भेदोस्ति–कहि णं भंते ! देवसमुदाणं चंदाणं Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्विहपडिवत्ती गोमा ! देवोदगस्स समुहगस्स पुरथिमिल्लाओ वेदियंताओ देवोदगं समुदं पच्चत्थिमेणं वारस जोयणसहस्साइं तेणेव कमेणं जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं देवोदगं समुद्दे असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं देवोदगाणं चंदाणं चंदाओ णामं राहाणीओ पण्णत्ताओ, तं चैव सव्वं ॥ ७७६. एवं सूराणवि, वरि- देवोदगस्स पच्चत्थिमिल्लाओ वेइयंताओ देवोदगसमुद्द पुरत्थमेणं बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता रायहाणीओ सगाणं सगाणं दीवाणं पुरत्थि - मेणं देवोदगं समुदं असंखेज्जाई जोयणसहस्साई || ७८०. एवं' नाग-जक्ख-भूत सयंभूरमणगाणवि एवं चेव दीविच्चगाणं दीवेसु रायहाओ सामुद्दगाणं समुद्देसु ॥ ७८१. अत्थि णं भंते ! लवणसमुद्दे वेलंधराति वा णागराया 'अग्घाति वा खन्नाति "सिंहाति वा विजातीति' वा हासवुड्ढीति वा ? हंता अत्थि ।। ७८२. जहा णं भंते ! लवणसमुद्दे अस्थि वेलंधराति वा णागराया अग्घाति वा खन्नाति वा सिंहाति वा विजातीति वा हासवुड्ढीति वा तहा णं बाहिरएसुवि समुद्देसु अतिथ वेलंधराइ वा णागराया अग्घाति वा खन्नाति वा सीहाति वा विजातीति वा हासवुड्ढीति वा ? णो तिणट्ठे समट्ठे || ७८३. लवणे णं भंते ! समुद्दे किं' ऊसितोदगे ? पत्थडोदगे ? खुभियजले ? अखुचंदद्दीवा नामं दीवा देवसमुद्दं पच्चत्थिमेणं बारस जोयणसह ओगा एत्थ णं जावट्ठोराधाणीओ चंददीवाणं पच्चत्थिमेणं देवसमुद्द असं | एवं विवज्जासं सूराणं एवं णातिव्वाणाति । १. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु अस्य सूत्रस्य स्थाने विस्तृतः पाठोस्ति, स च स्वयम्भूरमण समुद्रस्य पृथक् पाठव्यवस्थानात् सञ्जातः । मलयगिरिणापि अत्र पाठभेदानां उल्लेखः कृतः इह बहुधा सूत्रेषु पाठभेदाः परमेतावानेव सर्वत्राप्यर्थो नार्थभेदान्तरमित्येतद्वयाख्यानुसारेण सर्वेsप्यनुगन्तव्या न मोग्धव्यमिति । आदर्शवतिपाठभेद: एवमस्ति एवं जागे जक्खे भूतेवि चउन्हं दीवसमुद्दाणं । कहि णं भंते ! सयंभूरमणदीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? सयंभु रमणस्स दीवस्स पुरथिमि - ल्लातो वेतियंतातो सयंभुरमणोदगं समुदं बारस सहस्सा तहेव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं सयंभु रमणोदगं समुदं पुरत्थिमेणं असंखेज्जाई जोयण तं चेव, एवं सुराणवि, ૪૦૨ सयंभूरमणस्स पच्चत्थिमिल्लातो वेदियंताओ राहाणीओ सकाणं सकाणं दीवाणं पच्चत्थि - मिल्लाणं सयंभुरणोदं समुद्दे असंखेज्जा' सेसं तं चेव । कहि णं भंते ! सयंभूरमणसमुद्दकाणं चंदा, सयंभुरमणस्स समुहस्स पुरथिमिल्लाओ वेतियंतातो सयंभुरमणं समुद्दं पच्चत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, सेसं तं चैव । एवं सूराणवि, सयंभुरमणस्स पच्चत्थिमिल्लाओ सयंभुरमणीदं समुद्द पुरत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरत्थमेणं स्यंभु रमणं समुदं असंखेज्जाई जोयणसहस्सा ओगाहित्ता, एत्थ णं सयंभुरमण जाव सूदेवा । २. आहार वा (ता) । ३. विज्जातीति ( क, ख, ग, ट, त्रि); विजयाति (ता) । ४. हस्स° ( क ट ता ); हास ( ग ) ; ह्रस्ववृद्धी जलस्येति गम्यते ( मवृ ) | ५. 'क, ट, त्रि' आदर्शेषु प्रश्नचतुष्टयेपि 'कि’ पदस्य प्रयोगो दृश्यते । Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे भियजले ? गोयमा ! लवणे णं समुद्दे ऊसितोदगे, नो पत्थडोदगे; खुभियजले, नो अक्खुभियजले ॥ ७८४. जहा णं भंते ! लवणे समुद्दे ऊसितोदगे, नो पत्थडोदगे; खुभियजले, नो अक्खुभियजले तहा णं बाहिरगा समुद्दा किं ऊसितोदगा ? पत्थडोदगा? खभियजला ? अक्खुभियजला ? गोयमा ! बाहिरगा समुद्दा नो ऊसितोदगा, पत्थडोदगा; नो खुभियजला अक्खुभियजला; पुण्णा पुण्णप्पमाणा 'वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा" समभरघडत्ताए चिठ्ठति ॥ ७८५. अत्थि णं भंते ! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहका संसेयंति ? संमच्छंति ? वासं वासंति ? हंता अस्थि ।। ७८६. जहा णं भंते ! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहका संसेयंति, संमुच्छंति, वासं वासंति, तहा णं बाहिरएसुवि समुद्देसु बहवे ओराला बलाहका संसेयंति ? संमुच्छंति ? वासं वासंति ? णो तिणठे समठे॥ ७८७. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-बाहिरगा णं समुद्दा पुण्णा पुण्णप्पमाणा बोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठति ? गोयमा ! बाहिरएसु णं समुद्देसू बहवे उदगजोणिया जीवा पोग्गला य उदगत्ताए वक्कमंति विउक्कमति चयंति उववज्जति', से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-बाहिरगा णं समुद्दा पुण्णा पुण्णप्पमाणा जाव समभरघडत्ताए चिट्ठति ।। ७८८. लवणे णं भंते ! समुद्दे केवतियं उव्वेह-परिवुड्ढीए' पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणस्स णं समद्दस्स उभओ पासिं पंचाणउति-पदेसे गंता पदेसं उव्वेह-परिवड्ढीए पण्णत्ते, पंचाणउति -बालग्गाइं गंता वालग्गं उव्वेह-परिवुड्ढीए पण्णत्ते, पंचाणउति-लिक्खाओ गंता लिक्खं उव्वेह-परिवुड्ढीए पण्णत्ते, 'जूया-जव'"-जवमझे अंगुल-विहत्थि-रयणी-कुच्छी-धणगाउय-जोयण-जोयणसत-जोयणसहस्साइं गंता जोयणसहस्सं उव्वेह-परिवुड्ढीए पण्णत्ते ॥ ७८६. लवणे णं भंते ! समुद्दे केवतियं उस्सेह-परिवुड्ढीए पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणस्स णं समुदस्स उभओपासिं पंचाणउति-पदेसे गंता सोलसपएसे उस्सेह-परिवुड्ढीए पण्णत्ते । ‘पंचाणउति-वालग्गाई गंता सोलस-वालग्गाइं उस्सेह-परिवुड्ढीए पण्णत्ते । एवं जाव पंचाणउति-जोयणसहस्साई गंता सोलस-जोयणसहस्साइं उस्सेध-परिवुड्ढीए पण्णत्ते॥ १. वोसट्टमाणा वोलट्टामाणा (ता, मवृ); भगवत्यां (१।३१३, ३।१४८, ६।१५६) 'वोलट्टमाण वोसट्टमाण' अयमेव पदक्रमो दश्यते । २. केणं खाइयणं अट्ठे णं (ता)। ३. उवचयंति (ग, त्रि); उपचीयन्ते-उपचय- मायान्ति (म) । द्रष्टव्यं जी० ३७२४ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ४. उवेध (ता) सर्वत्र । ५. परिवड्ढीए (क, ख, ग, ता, त्रि)। ६. पासं (ता)। ७. पंचाणउति २ (ग, ट, ता, त्रि)। ८. जवाओ (क, ग, त्रि); जाआ (ता); x (मवृ)। ६. पीतत्थी (ख, ता)। १०. लवणस्स णं समुदस्स एएणेव कमेणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ४११ ७६०. लवणस्स णं भंते ! समुदस्स केमहालए गोतित्थे पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणस्स णं समुदस्स उभओपासिं पंचाणउति जोयणसहस्साइं गोतित्थे पण्णत्ते ॥ ७६१. लवणस्स णं भंते ! समुदस्स केमहालए गोतित्थविरहिते खेत्ते पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणस्स णं समुदस्स दस जोयणसहस्साई गोतित्थविरहिते खेत्ते पण्णत्ते ।। ७६२. लवणस्स णं भंते ! समुदस्स केमहालए उदगमाले पण्णत्ते ? गोयमा ! दस जोयणसहस्साई उदगमाले पण्णत्ते॥ ७९३. लवणे णं भंते ! समद्दे सिंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! गोतित्थसंठिते नावासंठिते' सिप्पिसंपुडसंठिते अस्सखंधसंठिते' वल भिसंठिते वट्टे वलयागारसंठिते पण्णत्ते॥ ७६४. लवणे णं भंते ! समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं ? केवतियं परिक्खेवेणं ? केवतियं उव्वेहेणं ? केवतियं उस्सेहेणं ? केवतियं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणे णं समुद्दे दो जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं, पण्णरस जोयणसतसहस्साइं एकासीति च सहस्साइं सतं च एगुणयालं' किंचिविसेसूणं परिक्खेवेणं, एग जोयणसहस्सं उव्वेधेणं, सोलस जोयणसहस्साई उस्सेहेणं, सत्तरस जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ते । ७६५. जइ णं भंते ! लवणसमुद्दे दो जोयणसतसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं, पण्णरस जोयणसतसहस्साई एकासीतिं च सहस्साइं सतं च एगुणयालं किंचिविसेसूणं परिक्खेवेणं, एग जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, सोलस जोयणसहस्साइं उस्सेधेणं, सत्तरस जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ते, कम्हा णं भंते ! लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति ? नो उप्पीलेति ? नो चेव णं एक्कोदगं करेति ? गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे भरहेरवएसु वासेसु अरहंता चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा चारणा विज्जाधरा समणा समणीओ सावया सावियाओ मणया पगतिभद्दया पगतिविणीया पगतिउवसंता पगति-पयणुकोहमाणमायालोभा मिउमद्दवसंपन्ना अल्लीणा भद्दगा विणीता, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति । चुल्लहिमवंत-सिहरिसु वासहरपव्वतेसु देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति । १. णावासंठाणसंठिए (ग, त्रि)। २. आसखंध ° (क,ख, ग, ट, त्रि)। ३. इऊयालं (क); ऊयालं (ख, ता); इगुयालं (ग)। ४. जम्हा (ता)। ५. x (ता, मव)। ६.४ (म)। ७. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु भिन्ना वाचना विद्यते । तस्यां गङ्गासिन्ध्वादि नदीनां द्रहाणां मन्दरपर्वतस्य च यथास्थानं पाठभेदा विद्यन्ते । ते च यथास्थानं दर्शयिष्यामः । अत्र यथा-गंगासिंधुरत्तारत्तवईसु सलिलासु देवया महिड्ढीयाओ जाव पलिओवमट्रितीओ परिवसंति, तासि णं लवणसमुद्दे जाव नो चेव णं एगोदगं करेति । ८. जी० ३।३४२ । Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१२ जीवाजीवाभिगमे 'हेमवत-हेरण्णवतेसु" वासेसु मणुया पगतिभद्दगा जाव विणीता, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति'। सद्दावति-वियडावतिसु वट्टवेयड्ढपव्वतेसु देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति। महाहिमवंत-रुप्पिसु वासहरपव्वतेसु देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति । हरिवास-रम्मयवासेसु मणया पगतिभद्दगा जाब विणीता, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति। गंधावति-मालवंतपरियाएसु वट्टवेयड्ढपव्वतेसु देवा महिड्ढीया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति। णिसढ-नीलवंतेसु वासघरपव्वतेसु देवा महिड्ढीया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति। पुव्व विदेहावरविदेहेसु वासेसु अरहंता चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा चारणा विज्जाहरा समणा समणीओ सावया सावियाओ मणुया पगतिभद्दगा जाव विणीता, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति । देवकुरु-उत्तरकुरुसु मणुया पगतिभद्दगा जाव विणीता, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंत्रुदीवं दीवं नो ओवोलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति । जंबूए य सुदंसणाए अणाढिए णामं देवे जंबुद्दीवाहिवती महिड्ढीए जाव पलिओवमद्वितीए परिवसति, तस्स पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एकोदगं करेति। अदुत्तरं च णं गोयमा ! लोगट्टिती लोगाणुभावे जणं लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णमेगोदगं करेति ॥ १. हेमवएरण्णवएसु (क, ख, ट); हेमवतेरण्ण- महिड्ढीयाओ तासि पणिहाए। वतेसु (ग. त्रि); हेमवतएरण (ता)। ४. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एवं पाठ२. अतोग्रे 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एवं पाठ- भेदोस्ति-सीयासीओदगासु सलिलासु देवता भेदोस्ति-रोहियारोहितंससुवण्णकूलरुप्पकूला- महिड्ढीया। सु सलिलासु देवयाओ महिड्ढीयाओ तासि ५. अतोग्रे 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एवं पाठपणिहाए। भेदोस्ति--मंदरे पन्वते देवता महिडढीया । ३. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु एवं पाठ- ६. तृतीयप्रतिपत्तावेष मन्दरोद्वेशकः समाप्तः भेदोस्ति-सव्वाओ दहदेवयाओ भाणियव्वा (मवृ)। पउमद्दतिगिच्छिकेसरिदहावसाणेसु देवा Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहपडिवत्ती ४१३ धायइसंडदीवाधिगारो ७६६. लवणसमुदं धायइसंडे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं' चिट्ठति ॥ ७६७. धायइसंडे णं भंते ! दीवे किं समचकावालसंठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? गोयमा ! समचक्कवालसंठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते ।। ७६८. धायइसंडे णं भंते! दीवे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं ? केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! चत्तारि जोयणसतसहस्साई चक्कवाला विक्खंभेण, इगयालीसं जोयणसतसहस्साइं दसजोयणसहस्साई' णव य एगठे जोयणसते किंचि विसेसूणे परिक्खेवेणं पण्णत्ते । से णं एगाए पउमवरवेदियाए एगेणं वगसंडेणं सब्बतो समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ॥ ७६६. धायइसंडस्स णं भंते ! दीवस्स कति दारा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा-विजए वेजयंते जयंते अपराजिए ।। ८००. कहि णं भते ! धायइसंडस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! धायइसंडदीवपुरथिमपेरंते कालोयसमुहपुरथिमदरस' पच्चत्थिमेणं सीयाए महाणदीए उप्पि, एत्थ णं धायइसंडदीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते । तं चेव पमाणं, रायहाणीओ अण्णं मि धायइसंडे दीवे। सा वत्तव्वया भाणियव्वा ।। गए। १. संपरिखिवित्ताणं (ट, ता)। २. एयालीसं (क, ख, ट); एगयालीसं (ग); इंतालीसं (ता)। ३. दस य सहस्साई (ता, मवृ)। ४. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदशेष 'दीवसमिया परिक्खेवेणं' इति पाठोपि विद्यते । वत्ती नैष व्याख्यातोस्ति । ताडपत्रीयादर्शपि नास्ति । असौ स्वतः प्राप्तार्थो विद्यते। जी० २६३-२६७ । ५. कालोयणसमुद्द (क, ख, ट, ता)। ६. अतः परं ताडपत्रीयादशैं भिन्नः पाठोस्ति'जंबुद्दीवविजयसरिसे णवरं रायहाणी तिरियमसं अण्णम्मि धात इसंडे दीवे', अतश्च ८०७ सूत्रपर्यन्त पाठः त्रुटितोस्ति । मलयगिरिवृत्ती किञ्चित् पाठभेदेन सह चत्त्वार्यपि सूत्राणि पूर्णरूपेण व्याख्यातानि सन्ति- तच्च जम्बूद्वीपविजयद्वारवदविशेषेण वेदितव्यं, नवरमत्र राजधानी अन्यस्मिन् धातकीषण्डे द्वीपे वक्तव्या । 'कहि णं भंते !' इत्यादि प्रश्नसूत्रं सुगम, भगवानाह-गौतम ! धातकीषण्डद्वीपदक्षिणपर्यन्ते कालोदसमुद्रदक्षिणार्द्धस्योत्तरतोऽत्र धातकीषण्डस्य द्वीपस्य--वैजयन्तं नाम द्वारं प्रज्ञप्तं, तदपि जम्बूद्वीपवैजयन्तद्वारवदविशेषण वक्तव्यं, नवरमत्रापि राजधानी अन्यस्मिन् धातकीषण्डद्वीपे ।। 'कहि णं भंते !' इत्यादि प्रश्नसूत्रं गतार्थं, भगवानाह.. गौतम ! धातकीषण्डद्वीपपश्चिमपर्यन्ते कालोदसमुद्रपश्चिमाद्धंस्य पूर्वत: शीतोदाया महानद्या उपर्यत्र धातकीषण्डस्स दीपस्य जयन्तं नाम द्वारं प्रज्ञप्तं, तदपि जम्बूद्वीपजयन्तद्वारवद्वक्तव्यं, नवरं राजधानी अन्यस्मिन् धातकीपण्डे द्वीपे ॥ 'कहि णं भंते !' इत्यादि, प्रश्नसूत्रं सुगम भगवानाहगौतम ! धातकीपण्डद्वीपोत्तरार्द्ध पर्यन्ते कालोदसमुद्रोत्तरार्द्धस्य [मुद्रितवृत्तौ-- 'दक्षिणार्द्धस्य' इतिमुद्रितमस्ति दक्षिणतोऽत्र धातकीपण्डस्य द्वीपस्यापराजित नाम द्वारं प्रज्ञप्तं, तदपि जम्बूद्वीपगतापराजितद्वारवद्वक्तव्यं, नवरं राजधानी अन्यस्मिन् धातकीषण्डे द्वीपे ।। Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१४ जीवाजीवाभिगमे ८०१. एवं चत्तारिवि दारा भाणियव्वा'। ८०२. धायइसंडस्स णं भंते ! दीवस्स दारस्स य दारस्स य एस णं केवइयं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! दस जोयणसयसहस्साइं सत्तावीसं च जोयणसहस्साई सत्तपणतीसे जोयणसए तिणि य कोसे दारस्स य दारस्स य अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ८०३. धायइसंडस्स णं भंते ! दीवस्स पदेसा कालोयं समुदं पुट्टा ? हंता पुट्ठा ॥ ८०४. ते णं भंते ! किं धायइसंडे दीवे ? कालोए समुद्दे ? गोयमा ! ते धायइसंडे, नो खलु ते कालोए समुद्दे ॥ ८०५. एवं कालोयस्सवि॥ ८०६. धायइसंडे दीवे जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता कालोए समुद्दे पच्चायंति ? गोयमा ! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायति ॥ ८०७. एवं कालोएवि अत्थेगतिया पच्चायति अत्थेगतिया णो पच्चायति ॥ ८०८. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-धायइसंडे दीवे ? धायइसंडे दीवे ? गोयमा ! धायइसंडे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं पएसे बहवे धायइरुक्खा 'धायइवणा धायइसंडा" णिच्चं कुसुमिया जाव' वडेंसगधरा' । धायइ-महाधायइरुक्खेसु यत्थ सुदंसणपियदसणा दुवे देवा महिड्ढिया जाव' पलिओवमद्वितीया परिवसंति। से एएणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति--धायइसंडे दीवे । अदुत्तरं च णं गोयमा ! जाव' णिच्चे। ८०६. धायइसंडे णं भंते ! दीवे कति चंदा पभासिसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा ? कति सूरिया तविसु वा तवंति वा तविस्संति वा ? कइ महग्गहा चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा ? कइ णक्खत्ता जोगं जोइंसु वा जोयंति वा जोइस्संति वा ? कइ तारागणकोडाकोडीओ सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा ? गोयमा ! बारस चंदा पभासिस वा पभासति वा पभासिस्संति वा एवं चउवीसं ससिरविणो, णक्खत्तसता य तिण्णि छत्तीसा । एगं च गहसहस्सं, छप्पन्नं धायईसंडे ॥१॥ 'अद्वैव सयसहस्सा, तिण्णि सहस्साइं सत्त य सयाई" । धायइसंडे दीवे, तारागणकोडकोडीण" ॥२॥ सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा ॥ १. जी० ३।२६२-५६६ । ८. मलयगिरिवृत्तौ एते गाथे किञ्चित् पाठभेदेन २. जी० ३१५७३, ५७४ । उद्धते स्त:३. धातइसंडा धातइवणा (ता); बहवो धातकी- बारस चंदा सूरा नक्खत्तसया य तिन्नि छत्तीसा । वनषण्डा बहूनि धातकीवनानि (म) । जम्बू- एगं च गहसहस्सं छप्पन्नं धायईसंडे ॥१॥ द्वीपप्रकरणे (३७०२) वनानन्तरं षण्डस्य अद्वैव सयसहस्सा तिन्नि सहस्सा य सत्त य सया उ। प्रतिपादनमस्ति । धायइसंडे दीवे तारागणकोडिकोडीओ ॥२॥ ४. जी० ३।२७४। ६. अट्ठ सतसहस्सा तिणि य सहस्सा सत्त य सया ५. उवसोभेमाणा २ चिट्ठति (क, ख, ग, ट,त्रि)। (ता)। ६. जी० ३।३५० । १०. कोडिकोडीणं (क, ग); कोडाकोडीणं (ट)। ७. जी०३।३४८ । Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती कालोदसमुद्दाधिगारो ८१०. धायइसंडं णं दीवं कालोदे णामं समुद्दे बटे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ॥ ८११. कालोदे णं भंते ! समुद्दे कि समचक्कवालसंठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? गोयमा ! समचक्कवालसंठिते, णो विसमचक्कवालसंठिते ॥ ८१२. कालोदे णं भंते ! समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं ? केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ठ जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं, एकाणउति जोयणसयसहस्साइं सत्तरि च सहस्साई छच्च पंचुत्तरे जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते । से णं एगाए पउमवरवेदियाए, एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते दोण्हवि वण्णओ॥ __ ८१३. कालोयस्स णं भंते ! समुद्दस्स कति दारा पण्णत्ता ? गोयमा ! वत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा-विजए वेजयंते जयंते अपराजिए ।। ८१४. कहि णं भंते ! कालोदस्स समुदस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते? गोयमा ! कालोदसमुद्दपुरथिमपेरंते' पुक्खरवरदीवपुरथिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सीतोदाए महाणदीए उप्पि, एत्थ णं कालोदस्स समुद्दस्स विजए णाम दारे पण्णत्ते । 'जंबुद्दीवगविजयसरिसा णवरं-रायहाणीओ पुरथिमेणं तिरियमसंखेज्जाई जोयणसहस्साई ओगाहित्ता अण्णंमि कालोदे समुद्दे जहाँ लवणे तहा चत्तारि रायहाणीओ समुद्दनामेसु ॥ ८१५. कालोयस्स णं भंते ! समुदस्स दारस्स य दारस्स य एस णं केवतियं आवाहाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! 'बावीसं सयसहस्सा बाणउतिं च सहस्सा छच्च छयाले जोयणसते १. जी. ३।२६३-२६७ ।। २. कालोदे समुद्दे पुर° (त्रि)। ३. जी० ३।३००-५६३ । ४. जी० ३७११-७१३ । ५. चिन्हाङ्कितः पाठः ताडपत्रीयादर्शाधारण स्वीकृतः। जी०३८००,८०१ सूत्रयोः स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु संक्षिप्तः पाठः । वृत्तौ च तत्र चत्वारि सूत्राणि व्याख्यातानि सन्ति । अत्रापि वृत्तिकृता चत्वार्येव सूत्राणि व्याख्यातानि आदर्शष्वपि चतुर्णा सूत्राणां पाठोस्ति, किन्तु प्राक्तनं क्रममनुसत्य संक्षिप्तपाठ एव स्वीकृतः । 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदशेषु एवं पाठोस्ति-अद्वैव जोयणाई तं चेव पमाणं जाव रायहाणीओ। कहि णं भंते ! कालोयस्स समुहस्स वेजयंते णामं दारे पण्णत्ते? गोयमा ! कालोयसमुहस्स दक्षिणपेरंते पुक्खरवरदीवस्स दक्खिणद्धस्स उत्तरेणं, एत्थ णं कालोयसमुदस्स वेजयंते नामं दारे पण्णत्ते । कहि णं भंते ! कालोयसमुदस्स जयंते नाम दारे पण्णत्ते ? गोया! कालोयसमुद्दस्स पच्चत्थिमपेरंते पुक्खरवरदीवस्स पच्चत्थिमद्धस्स पुरत्थिमेणं सीताए महाणदीए उप्पि, एत्थ णं जयंते नाम दारे पण्णत्ते । कहिणं भंते ! अपराजिए नामं दारे पण्णत्ते? गोयमा! कालोयसमुद्दस्स उत्तरद्धपेरंते पुक्खरवरदीवोतरद्धस्स दाहिणओ, एत्थ ण कालोयसमुद्दस्स अपराजिए णामं दारे पण्णत्ते सेसं तं चेव । ६. केवतियं २ (त्रि)। Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ जीवाजीवाभिगमे तिण्णि य कोसा" दारस्स य दारस्स य आबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ८१६. कालोदस्स णं भंते ! समुदस्स पएसा पुक्खरवरदीवं पुट्ठा ? तहेव ।। ८१७. एवं पुक्खरवरदीवस्सवि' ८१८. कालोदे णं भंते ! समुद्दे जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तहेव भाणियव्वं । ८१६ से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति---कालोए समुद्दे ? कालोए समुद्दे ? गोयमा ! कालोयस्स णं समुदस्स उदके आसले मासले पेसले 'कालए मासरासिवण्णाभे पगतीए उदगरसे पण्णत्ते । काल-महाकाला य दो देवा महिड्ढीया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । से तेणढेणं गोयमा ! जाव' णिच्चे ॥ ८२०. कालोए णं भंते ! समुद्दे कति चंदा पभासिंसु वा पुच्छा। गोयमा ! कालोए णं समुद्दे बायालीसं चंदा पभासिंसु वा 'पभासें ति वा पभासिस्संति वा, बायालीसं सूरिया तविसु वा तवंति वा तविस्संति वा, एगं णक्खत्तसहस्सं छावत्तरं णक्खत्तसतं जोगं जोइंसु वा जोयंति वा जोइस्संति वा, तिणि महग्गहा सहस्सा छच्च सता छण्णउया चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा, अट्ठावीसं सयसहस्सा बारस य सहस्सा नव य सया पन्नासा तारागणकोडकोडीणं सोभं सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा ।। पुक्खरवरदीवाधिगारो ८२१. कालोयं णं समुदं पुक्खरवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति ॥ ८२२. 'पुक्खरवरे णं दीवे किं समचक्कवालसंठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? गोयमा" ! समचक्कवालसंठिते", नो विसमचक्कवालसंठिते ।। १. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु चिन्हाङ्कित- वृत्तिरचनादुत्तरकाले प्रक्षेपो जातः। ताश्च पाठस्य स्थाने एका गाथा उपलभ्यते- एवं विद्यन्तेबावीससयसहस्सा बाणउति खलु भवे सहस्साई । वायालीसं चंदा, बायालीसं च दिणयरा दित्ता । छच्च सया छायाला दारंतर तिण्णि कोसा य ॥१॥ कालोदधिम्मि एते चरंति संबद्धलेसागा ॥१॥ २. जी० ३१७१५, ७१६ । णक्खत्ताण सहस्सं एगं छावत्तरं च सतमण्णं । ३. जी० ३७१७,७१८ । छच्च सता छण्णउया महागहा तिण्णि य ४. जी० ३१७१६, ७२० । सहस्सा ॥२॥ ५. आयले (ता)। अद्रावीसं कालोदहिम्मि बारस य सयसहस्साई। ६. धोकारालए मसिरासिवण्णाभे (ता)। नव य सया पन्नासा तारागणकोडिकोडीणं ॥३॥ ७. उदगरसे णं (क, ख, ग, ट, त्रि) । मूलपाठे 'अट्ठावीसं सयसहस्सा' 'बारस य ८. दुवे (क, ख, ग, ट, त्रि)। सहस्सा' इत्युपलभ्यते, किन्तु प्रस्तुतगाथाया ६. जी० ३।३५० । 'बारस य सयसहस्साई' मूलपाठपद्धत्या नास्ति १०. क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु गाथात्रयमुप- समीचीनं अथवा छन्दोदृष्ट्या एवं संक्षेपीकरणं लभ्यते । वत्तिकृता एता गाथा 'अन्यत्राप्युक्तम्' स्यात् । इत्यूल्लेखपूर्वकं वृत्तौ उद्धृता सन्ति। अनेन ११. तहेव जाव (क, ख, ग, ट, त्रि)। सम्भाव्यते एतासां गाथानां अर्वाचीनादर्शषु १२. संठाणसंठिते (क, ख, ग, ट, त्रि) अग्रेपि । Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहपडिवत्ती ४१७ ८२३. पुक्खरवरे णं भंते ! दीवे केवतियं चक्कवाल विक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! सोलस जोयणसतसहस्साई चक्कवाल विक्खं भेणं, एगा जोयणकोडी वाणउति ‘च सयसहस्साइं अउणाणउतिं च सहस्सा अट्ट य सया च उणउया परिक्खेवेणं पण्णत्ते" । से णं एगाए पउमवरवेदियाए एगेण य वणसंडेण सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ॥ ८२४. पुक्खरवरस्स णं भंते ! दीवस्स कति दारा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा -विजए वेजयंते जयंते अपराजिते ।। ८२५. कहिणं भंते ! पुक्खरवरस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! पुक्खरवरदीवपुरथिमपेरंते पुक्खरोदसमुद्दपुरथिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं पुक्खरवरदीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते', तं चेव सव्वं ।। ८२६. एवं चत्तारिवि दारा'। ८२७. पुक्खरवरस्स णं भंते ! दीवस्स दारस्स य दारस्स य एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! 'अडतालीसं जोयणसयसहस्साई बावीसं च सहस्साइं चत्तारि य अकुणत्तरे जोयणसते दारस्स य दारस्स य अबाहाए अंतरे पण्णत्ते" ॥ ८२८. पदेसा दोण्हवि पुट्ठा, जीवा दोसुवि भाणियव्वा'। १. खलु अउणोणउति भवे सहस्साति अट्ठ सया लभ्यते, किन्तु मलयगिरिवृत्तौ 'जम्बूद्वीपचउणया परिरओ पुक्खरवरस्स (क, ख, ग); विजयद्वारवदविशेषेण वक्तव्यम्' इति सूचितखलु सयसहस्सा अउणाणउइं भवे सहस्साई मस्ति तेन नैष पाठः सङ्गच्छते। ताडपत्रीयाअट्ठ सया च उणउया य परिरए पुक्खरवरस्स दर्शलब्धपाठेनापि नास्य सङ्गतिविद्यते । (ट); खलु भवे सहस्साइं अट्ठ सया चउणउया 'सीतासीतोदानदी ने उपरि ते द्वार जाणवा य परिरओ पुक्खरवरस्स (त्रि)। पूर्व परे' इति स्तबकेनापि नास्य सङ्गतिरस्ति । २. जी० ३।२६५-२६७।। तेनासौ पाठान्तरे स्वीकृतः। ३. 'ता' प्रतौ ८२५,८२६ सूत्रयोः स्थाने संक्षिप्त: ७. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' पाठो विद्यते-जहा धातइसंडस्स सोच्चेव आदर्शषु एका गाथा विद्यतेगमो रायहाणीओ पुक्खरवरेसु । एवं दारेसु अउयाल सयसहस्सा बावीसं खलु भवे सहस्साई। चउसुवि। __ अगुणत्तरा य चउरो दारंतर पुक्खरवरस्स ४. अतः परं मलयगिरिवृत्तौ एवं व्याख्यातमस्ति सहस्साई ॥१॥ - तत्र जम्बूद्वीपविजयद्वारवदविशेषेण वक्तव्यं, ८. अस्य सूत्रस्य स्थाने ता' प्रतौ एवं पाठनवरं राजधानी अन्यस्मिन् पुष्करवरद्वीपे भेदोस्ति-पदेसा पुट्टा आलावगा। जीवा वक्तव्या। एवं वैजयन्तादिसूत्राण्यपि भावनी- उद्दाइता दो आलावगा। मलयगिरिवृत्ती यानि, सर्वत्र राजधानी अन्य स्मिन् पुष्करवर- सूत्राणां सङ्केतः कृतोस्ति-पुक्खरवरदीवस्स द्वीपे। णं भंते ! दीवस्स पएसा पुक्खरवरसमुदं ५. जी० ३।३००-५६६ । पुट्ठा इत्यादि सूत्रचतुष्टयं प्राग्वत् । ६. अतः परं क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु 'सीया- ६. जी. ३१५७१-५७६ । सीओदा णत्थि भाणितव्वा' इति पाठो Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१८ जीवाजीवाभिगमे ८२६. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चति-पुक्खरवरदीवे-पुक्खरवरदीवे ? गोयमा ! पुक्खरवरे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं पदेसे बहवे पउमरुक्खा पउमवणा पउमसंडा णिच्चं कुसुमिया जाव' वडेंसगधरा पउम-महापउमरुक्खेसु एत्थ णं पउम-पुंडरीया णामं दो देवा महिड्डिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । से तेणठेणं' गोयमा ! एवं वुच्चतिपुक्खरवरदीवे जाव' निच्चे॥ ८३०. पूक्खरवरे णं भंते ! दीवे केवइया चंदा पभासिंसु वा एवं पुच्छा। 'गोयमा ! पुक्खरवरेणं दीवे चोयालं चंदसयं पभासिंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, चोयालं चेव सूरियाण सतं तर्विसु वा तवंति वा तविस्संति वा, चत्तारि बत्तीसा नक्खत्तसहस्सा जोगं जोइंसु वा जोयंति वा जोइस्संति वा बारस महग्गहसहस्सा छच्च सता बावत्तरा चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा छण्णउति सयसहस्सा चत्तालीसं सहस्सा चत्तारि सया तारागणकोडकोडीण सोभं सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा । ८३१. पुक्खरवरदीवस्स णं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं माणुसुत्तरे नाम पव्वते पण्णत्ते -वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते, जे णं पुक्खरवरं दीवं दुहा विभयमाणे-विभयमाणे चिट्ठति, तं जहा-अभितरपुक्खरद्धं च बाहिरपुक्खरद्धं च ।।। ८३२. अभितरपुक्खरद्धे णं भंते ! केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं ? केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ट जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं, ‘एक्का जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साई दोण्णि य एऊणपण्णा जोयणसते किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते"। ८३३. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-अभितरपुक्खरद्धे ? अभितरपुक्खरद्धे ? गोयमा ! अभितरपुक्खरद्धेणं माणुसुत्तरेणं पव्वतेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते। से एएणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-अभितरपुक्खरद्धे । अदुत्तरं च णं जाव णिच्चे॥ १. जी० ३।२७४ । कोडीणं ॥३॥ २. चिट्ठति (क, ख, ग, ट, त्रि)। मलयगिरिणा 'उक्तं चैवरूपं परिमाणमन्य३. एएणट्टेणं (ग, त्रि, मवृ)। त्रापि' इत्युल्लेखपूर्वकं स्ववृत्तौ तदेव गाथात्रय४. जी० ३।३५० । मुद्धृतम्, तत्र तृतीयगाथायाः तृतीयचरणं ५. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' समीचीनमस्ति, यथा-चत्तारि च सयाई। __ आदर्शषु गाथात्रयं विद्यते आदर्शेषु अस्मिन् चरणे अक्षराधिक्यं वर्तते । चोयालं चंदसयं चउयालं चेव सूरियाण सयं । ६. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' पूक्खरवरदीवंमि चरंति एते पभासेंता॥१॥ आदर्शेष एका गाथा विद्यतेचत्तारि सहस्साई बत्तीसं चेव होति णक्खत्ता। कोडी बायालीसा तीसं दोण्णि य सया अगुणवण्णा। छच्च सया बावत्तर महग्गया बारस सहस्सा ॥२॥ पुक्खरअद्धपरिरओ एवं से मणुस्सखेत्तस्स ॥१॥ छण्णउइ सयसहस्सा चत्तालीसं भवे सहस्साई। चत्तारि सया पुक्खरवरे उ तारागणकोड़ Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ४१६ ८३४. अभितरपुक्खरद्धे णं भंते ! केवतिया चंदा पभासिसु वा पुच्छा' । गोयमा ! 'अभितरपुक्खरद्धे णं दीवे बावत्तरि चंदा पभासिंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, बावतरि सूरिया तविसु वा तवंति वा तविस्संति वा, दो सोलणक्खत्तसहस्सा जोगं जोइंसु वा जोयंति वा जोइस्संति वा, छम्महग्गहसहस्सा तिण्णि य सया छत्तीसा चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा, अडतालीसं सयसहस्सा बावीसं च सहस्सा दोण्णि य सया तारागणकोडकोडीणं सोभं सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा ॥ मणस्सखेत्ताधिगारो ८३५. मणस्सखेत्ते' णं भंते ! केवतियं आयाम-विक्खंभेणं ? केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! पणयालीसं जोयणसयसहस्साई आयाम-विक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी' 'वायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोण्णि य एऊणपण्णा जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिवखेवेणं पण्णत्ते । ८३६. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चति-मणुस्सखेत्ते ? मणुस्सखेत्ते ? गोयमा ! मणुस्सखेत्ते णं तिविधा मणुस्सा परिवसंति, तं जहा-कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-मणुस्सखेत्ते, मणुस्सखेत्ते। अदूत्तर च ण गोयमा ! मणस्सखंत्तस्स सासए णामधज्जे जाव' णिच्चे। ८३७. मणुस्सखेत्ते णं भंते ! कति चंदा पभासिसु वा पुच्छा"। 'मणुस्सखेत्ते बत्तीसं चंदसयं पभासिसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, बत्तीसं सूरिया सयं तर्विसु वा तवंति वा तविस्संति वा, तिण्णि णक्खत्तसहस्सा छच्च सता छण्णउया जोगं जोइंस वा जोयंति वा जोइस्संति वा, एक्कारस सहस्सा छच्च सया सोला महग्गहा चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा, अट्ठासीतं सयसहस्सा चत्तालीसं च सहस्सा सत्त य सता तारागणकोडकोडीणं सोभं सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा"। १. सा चेव पुच्छा जाव तारागणकोडकोडीओ ५. सं० पाo-जोयणकोडी जाव अभितर(क, ख, ग, ट, त्रि)। पुक्खरद्धपरिरओ से भाणियव्वो जाव अउण२. चिह्नाङ्कितपाठस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' पण्णे (क, ख, ग, ट, त्रि); जोयणकोडी __ आदर्शषु गाथात्रयं विद्यते जाव अब्भंतरपुक्खरद्धस्स (ता)। बावतरं च चंदा बावत्तरिमेव दिणकरा दित्ता। ६. जी० ३।३५० । पुक्खरवरदीवड्ढे चरति एते पभासेंता ॥१॥ ७. कइ सूरा तवइंसु वा ३ (क, ख, ग, ट, त्रि)। तिन्नि सया छत्तीसा छच्च सहस्सा महग्गहाणं तु। ८. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' णक्खत्ताणं तु भवे सोलाइ दुवे सहस्साई ॥२॥ आदर्शषु गाथात्रयं विद्यतेअडयालसयसहस्सा बावीसं खलु भवे सहस्साई। बत्तीसं चंदसयं बत्तीसं चेव सरियाण सयं । दो य सय पुक्खरद्धे तारागण कोडिकोडीणं ॥३॥ सयलं मणस्सलोयं चरेंति एते पभासेंता ॥१॥ मलयगिरिणा 'उक्तं चैवंरूपं परिमाणमन्यत्रापि' एक्कारस य सहस्सा छप्पि य सोला महग्गहाणं तु। इत्युल्लेखपूर्वकं तदेव गाथात्रयमुद्धतम् । छच्च सया छण्ण उया णक्खत्ता तिण्णि य सहस्सा ।। ३. समयखेत्ते (क, ख, ग, ट, त्रि) । अडसीइ सयसहस्सा चत्तालीस सहस्स मणुयलोगंमि । ४. चकवाल (ता) अग्रेपि । सत्त य सता अणूणा तारागणकोडकोडीणं ॥३॥ Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० जीवाजीवाभिगमे जोइसमंडलाधिगारो ८३८. एसो तारापिंडो, सव्वसमासेण मणयलोगंमि । बहिया पुण ताराओ, जिणेहिं भणिया असंखेज्जा ॥१॥ एवइयं तारग्गं, जं भणियं माणुसंमि लोगंमि । चारं कलंबुयापुप्फसंठियं जोइसं चरइ ॥२॥ रविससिगहनक्खत्ता, एवइया आहिया मणुयलोए। जेसिं नामागोत्तं, न पागया पण्णवेहिति ॥३॥ छावट्टि पिडगाइं, चंदाइच्चाणं मणुयलोगंमि । दो चंदा दो सूरा, होंति एक्केक्कए पिडए ॥४॥ छावट्टि पिडगाई, नक्खत्ताणं तु मणुयलोगंमि । छप्पन्नं नक्खत्ता, होंति एक्केक्कए पिडए ॥५॥ छावट्टि पिडगाई, महग्गहाणं तु मणुयलोगंमि । छावत्तरं गहसयं, होइ य एक्केक्कए पिडए ॥६।। चत्तारि य' पंतीओ, चंदाइच्चाण मणयलोगंमि । छावट्ठी-छावट्ठी य होंति य एक्के क्किया पंती ॥७॥ छप्पन्नं पंतीओ, नक्खत्ताणं तु मणुयलोगंमि । छावट्ठी-छावट्ठी य, होति य एक्केक्किया पंती ॥८॥ छावत्तरं गहाणं, पंतिसयं होइ मणुयलोगंमि । छावट्ठी-छावट्ठी य, होंति एक्के क्किया पंती ।।६।। ते मेरुमणचरंता, पयाहिणावत्तमंडला सव्वे।। अणवट्ठितेहिं जोगेहिं, चंदा सूरा गहगणा य॥१०॥ नक्खत्ततारगाणं, अवट्ठिया मंडला मुणेयव्वा । तेवि य पयाहिणावत्तमेव मेरुं अणुचरंति ॥११॥ रयणियरदिणयराणं, उड्ढे व अहे व संकमो नत्थि। मंडलसंकमणं पुण, 'सब्भंतरबाहिरं तिरिए" ॥१२॥ रयणियरदिणयराणं, नक्खत्ताणं महग्गहाणं च। चारविसेसेण भवे, सुहदुक्ख विही मणुस्साणं ॥१३॥ तेसि पविसंताणं, तावक्खेत्तं तु वड्ढए नियमा। तेणेव कमेण पुणो, परिहायइ निक्खमंताणं ॥१४॥ मलयगिरिणा 'उक्त चैवरूपं परिमाणमन्यत्रापि' त्रि); मेरुमणुरिती (ट, ता)। इत्युल्लेखपूर्वकं तदेव गाथात्रयमुद्धृतम् । तत्र ३. अणुपरिति (क, ख, ग, ट, ता, त्रि)। ततीया गाथा किञ्चिद् भिन्नपाठा वर्तते- ४. य (क, ख, ग, ट, ता, त्रि) अग्रेपि । अट्ठासीयं लक्खा चत्तालीसं च तह सहस्साई । ५. अभित रबाहिरं तिरिए (क, ख, ग, ट, त्रि); सत्त सया य अणूणा तारागणकोडकोडीणं ॥१॥ १. तु (ता)। ___ अभंतरबाहिरितिरियं (ता)। २. मेरुमणुपरिता (क, ख); मेरुपरियडंता (ग, ६. मणूसाणं (ता)। Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउठिवहपडिवत्ती ४२१ तेसिं कलंबुयापुप्फसंठिया होइ तावखेत्तपहा'। अंतो य संकुया' बाहिं वित्थडा चंदसूराणं ॥१५।। 'केणं वड्ढति" चंदो ? परिहाणी केण होइ चंदस्स ? कालो वा जोण्हो वा, केणणुभावेण चंदस्स ? ॥१६॥ किण्हं राहुविमाणं, निच्चं चंदेण होइ अविरहियं । चउरंगुलमप्पत्तं, हेट्ठा चंदस्स तं चरइ ।।१७।। वावट्ठि-बावर्द्वि, दिवसे-दिवसे उ सुक्कपक्खस्स । जं परिवड्ढइ चंदो, खवेइ तं चेव कालेणं ॥१८।। पन्नरसइभागेण य, चंदं पन्नरसमेव 'तं वरइ"। पन्नरसइभागेण य, 'पुणोवि तं चेवतिक्कमइ ॥१६।। एवं वड्ढइ चंदो, परिहाणी एव' होइ चंदस्स । कालो वा जोण्हा वा, तेणणुभावेण चंदस्स ॥२०॥ अंतो मणुस्सखेत्ते, हवंति चारोवगा य उववण्णा। पंचविहा जोइसिया, 'चंदा सूरा" गहगणा य ॥२१॥ तेण परं जे सेसा, चंदाइच्चगहतारनक्खत्ता। नत्थि गई नवि चारो, अवट्ठिया ते मुणेयव्वा ॥२२।। दो चंदा इह दीवे, चत्तारि य सागरे लवणतोए। धायइसंडे दीवे, बारस चंदा य सूरा य ॥२३॥ 'दो दो जंबुद्दीवे, ससिसूरा दुगुणिया, भवे लवणे । लावणिगा" य तिगुणिया, ससिसूरा धायईसंडे ॥२४॥ धायइसंडप्पभिति, उद्दिवा तिगुणिया भवे चंदा । आइल्लचंदसहिया, अणंतराणंतरे खेत्ते ॥२५॥ रिक्खग्गहतारग्गं, दीवसमुद्देसु इच्छसी नाउं । तस्स ससीहिं गुणियं", रिक्खग्गहतारयग्गं तु ॥२६॥ चंदातो सूरस्स य, सूरा चंदस्स अंतरं होइ। पन्नास सहस्साइं, जोयणाणं अणूणाई ॥२७।। सूरस्स य सूरस्स य, ससिणो ससिणो य अंतरं होइ। बहियाओ माणुसनगस्स जोयणाणं सयसहस्सं ॥२८॥ १. तावखेत्तमुहा (ता)। ७. चंदसुरा (क, ता)। २. संकुता (क, ख, ता); संकडा (ग, त्रि); ८. एगे जंबुद्दीवे दुगुणा लवणे चउगुणा होंति लावसंकुटा (ट)। णगा (क,ख,ग,ट,त्रि); एते जंबुद्दीवे दुगुणा ३. केण पवड्ढेति (क, ख)। लवणे चउगुणा होति लावणगा (ता)। एवं ४. आवरति (क, ख, ग, त्रि)। जंबुद्दीवे दुगुणा लवणे चउग्गुणा होति. (मवृपा) ५. तेणेव कमेण वक्कमइ (क, ख, ग, ट, त्रि)। ६. जदिच्छसे (क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. तेव (ता)। १०. उवणीतं (ता)। Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२ सूरतरिया चंदा, चंदंतरिया य दिणयरा दित्ता । चित्तंतरलेसागा, सुहा 'मंदलेसा य" ॥२६॥ अट्ठासीइं च गहा, अट्ठावीसं च होंति नक्खत्ता । एगससीपरिवारो, एत्तो ताराण वोच्छामि ||३०|| छावट्टिसहस्सा, नव चैव सयाई पंचसयराई । एससी परिवारो, तारागणकोडकोडीणं ॥ ३१ ॥ ओ' माणुसनस्, 'चंदसूराणवट्टिया जोगा" । चंदा अभिइजुत्ता, सूरा पुण होंति पूसेहिं ॥ ३२ ॥ माणुसुत्तरपव्वताधिगारो ८३६. माणुसुत्तरे णं भंते ! पव्वते केवतियं उड्ढं उच्चत्तेणं ? केवतियं उब्वेहेणं ? केवतियं मूले विक्खंभेणं ? केवतियं मज्झे विक्खंभेणं ? केवतियं उवरि विक्खभेणं ? haतियं अंतो गिरिपरिरएणं ? केवतियं बाहि गिरिपरिरएणं ? केवतियं मज्झे गिरिपरिरएणं ? केवतियं उवरि गिरिपरिरएणं ? गोयमा ! माणुसुत्तरे णं पव्वते सत्तरस एक्कवीसाई जोयणसयाई" उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि तीसे जोयणसए कोसं च उब्वेहेणं, मूले दसबावीसे जोयणसते विवखंभेणं, मज्झे सत्ततेवी से जोयणसते विक्खंभेणं, उवरि चत्तारिचवीसे जोयणसते विक्खंभेणं, 'एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोण्णि य अउणापण्णे जोयणसते किंचिविसे साहिए अंतोगिरिपरिरएणं, एगा जोयकोडी वायालीसं च सतसहस्साइं छत्तीसं च सहस्साइं सत्त चोइसोत्तरे जोयणसते बाहि गिरिपरिरणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सतसहस्साइं चोत्तीसं च सहस्सा 'अट्ठ य तेवीसुत्तरे” जोयणसते मज्झे गिरिपरिरएणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सय सहस्साई बत्तीसं च सहस्साइं नव य बत्तीसे जोयणसते उवरि गिरिपरिरएणं, मूले विच्छिण्णे" मज्झे उपत तो सण्हे मज्झे उदग्गे वाहि दरिसणिज्जे ईसि " सण्णिसण्णे सीहणिसाई अवड्ढजव'"-रासिसंठाणसंठिते सव्वजंबूणयामए अच्छे सण्हे जाव" पडिरूवे । उभओपासिं" १. मंदले सागा (क, ख, ग, त्रि) । २. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु सूर्यप्रज्ञप्ती (१६।२२) च एषा गाथा २६ गाथाया अनन्तरं विद्यते । . ३. अवट्टिया तेया (मवृपा ) | ४. अभीइजुत्ता (त्रि ) । ५. सिहरे (क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. उप्पि (ता) । ७. सत्तरसेक्कवीसजोयणसते ( ता ) । ८. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु चिन्हाङ्कितपाठे एवं पाठभेदो दृश्यते--अंतो गिरिपरिरएणं एगा जोयणकोडी बयालीस च सयसहस्साई जीवाजीवाभिगमे तीसं च सहस्साई दोणि य अउणापणे जोयणसते किंचिविसे साहिए परिक्खेवेणं । अग्रे स्थानत्रयेपि 'बाहि गिरिपरिरएणं. मज्झे गिरिपरिरएणं, उवरि गिरिपरिरएणं' इति पाठा आदी विद्यन्ते, स्थानत्रयेपि प्रतिपाद्यस्यान्ते पूर्ववत् 'परिक्खेवेणं' इति पाठोस्ति । ६. अवसे (क, ख, ग, ट, त्रि) । १०. वित्थणे (क, ग, ता ) । ११. इसि (ट, ता) । १२. अवद्धजव (क, ग, ट ) । १३. जी० ३।२६१ । १४. उभओपासं ( ता ) । Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ४२३ दोहिं पउमवरवेदियाहिं दोहि य वणसंडेहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते, वण्णओ' दोण्हवि ॥ ८४०. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-माणुसुत्तरे पव्वते ? माणुसुत्तरे पव्वते ? गोयमा ! माणुसुत्तरस्स णं पव्वतस्स अंतो मणुस्सा" उप्पि सुवण्णा, बाहिं देवा। अदुत्तरं च णं गोयमा ! माणुसुत्तरं पव्वतं मणुस्सा ण कयाइ वीतिवइंसु वा वीतिवयंति वा वीतिवइस्संति वा णण्णत्थ चारणेण वा विज्जाहरेण वा देवकम्मुणा वा। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-माणुसुत्तरे पव्वते, माणुसुत्तरे पव्वते । अदुत्तरं च णं जाव" णिच्चे । ८४१, जावं च णं माणुसुत्तरे पव्वते तावं च णं अस्सिं लोए त्ति पवुच्चति । जावं च णं वासाति वा वासधरपव्वताति वा तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति । जावं च णं गेहाइ वा गेहाव (य? ) णाति' वा तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति। जावं च णं गामाति वा जाव" सन्निवेसाति" वा तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति । जावं च णं अरहंता चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा" चारणा विज्जाहरा समणा समणीओ सावया सावियाओ मणुया पगतिभद्दगा" पगतिविणीया पगतिउवसंता पगति-पयणुकोहमाणमायालोभा मिउमद्दवसंपन्ना अल्लीणा भद्दगा विणीता तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति" । १. जी० ३।२६३-२६८। १२. अरहंताति वा (ता)। २. मणुया (क, ख, ग, ट, त्रि)। १३. वासुदेवा पडिवासुदेवा (ग)। ३. कदायी (ता)। १४. सं० पा०-पगतिभद्दगा जाव विणीता। ४. चारणेहिं (क, ख, ग, ट, त्रि) अन्यत्र चारणेन १५. अतः परं 'चंदोवरागाति' आलापकात्पूर्व क्रमपञ्चम्यर्थे तृतीया प्राकृतत्वात् 'चारणात्' द्वयं विद्यते, ताडपत्रीयादर्शस्य वृत्तेश्च एकः (मवृ)। क्रमोस्ति, द्वितीयश्च अर्वाचीनादर्शानाम् । ५. विज्जाहरणेहिं (क, ख, ग, ट, त्रि)। अस्माभिर्वृत्त्यनुसारिक्रमो मूले स्वीकृतः, अर्वा६. वावि (क, ख, ग, ट, त्रि)। चीनादर्शानां क्रमभेद: पाठभेदश्च एवं विद्यते७. जी ३।३५०। जावं च णं समयाति वा आवलियाति वा ८. वासधराति (क, ख, ग, ट, त्रि)। आणापाणूति वा थोवाइ वा लवाइ वा मुहत्ताइ ६. प्रस्तुतसूत्रस्य ३१६०५ सूत्रे 'गेहाययणाणि' वा दिवसाति वा अहोरत्ताति वा पक्खाति वा इति पाठो लभ्यते । वृत्तावपि एष एव व्याख्या- मासाति वा उति वा अयणाति वा संवच्छतोस्ति । अत्रापि वृत्तिकृता स्वीकृतपाठ एव राति वा जुगाति वा वाससताति वा वाससहव्याख्यातः-गृहायतनानीति वा तत्र गृहाणि स्साति वा वाससयसहस्साति वा पुव्वंगाति वा प्रतीतानि गृहायतनानीति-गृहेष्वागमनानि । पुव्वाति वा तुडियंगाति वा, एवं पुव्वे तुडिए गेहावणाति (क, ख, ग, ट); गेहावतणाति अडडे अववे हुहुए उप्पले पउमे णलिणे अत्थ(ता)। भगवत्यां (६।७६) 'गेहावणा' इति णिउरे अउते णउते पउते चूलिया सीसपहेलिया पाठः स्वीकृतोस्ति। जाव य सीसपहेलियंगेति वा सीसपहेलियाति १०. ठाणं २।३६०। वा पलिओवमेति वा सागरोवमेति वा ओसप्पि११. रायहाणीति (क, ख, ग, ट, त्रि)। णीति वा उस्सप्पिणीति वा तावं च णं अस्सि Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२४ जीवाजीषाभिगमे जावं च णं बहवे ओराला बलाहका' संसेयंति संमुच्छंति वासं वासंति तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति । जावं च णं 'बादरे विज्जुकारे बादरे थणियसद्दे'२ तावं च णं अस्सि लोएत्ति पच्चति । जावं च णं बायरे अगणिकाए तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवच्चति । जावं च णं आगराति वा 'नदीओइ वा णिहीति वा" तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति जावं च ण समयाति वा आवलियाति वा आणापाणति वा थोवाइवा लवाइ वा महत्ताइ वा दिवसाति वा अहोरत्ताति वा पक्खाति वा मासाति वा उदूति वा अयणाति वा संवच्छराति वा जुगाति वा वाससताति वा वाससहस्साति वा वाससयसहस्साति वा पुव्वंगाति वा पुव्वाति वा तुडियंगाति वा, एवं पुव्वे तुडिए अडडे अववे हुहुए उप्पले पउमे णलिणे अत्थणिउरे अउते 'णउते पउते चूलिया सीसपहेलिया जाव य सीसपहेलियंगेति वा सीसपहेलिपच्चति । जावं च णं बादरे विज्जुकारे बादरे ताङ्ग, चतुरशीतिः प्रयुताङ्गशतसहस्राणि एकं थणियस तावं च णं अस्सि जावं च णं बहवे प्रयुतं, चतुरशीतिः प्रयुतशतसहस्राणि एक नयुओराला बलाहका संसेयंति संमुच्छंति वासं ताङ्ग, चतुरशीतिर्न युतशतसहस्राणि किं चूलिवासंति तावं च णं अस्सि लोएत्ति जावं च णं काङ्गम्। किन्तु एतद् वाचनान्तरं प्रतीयते । बायरे ते उकाए तावं च णं अस्सि लोए जावं अनुयोगद्वारसूत्रस्य चूणिकारेण वत्तिकाराभ्यां च णं आगराति वा नदीओइ वा णिहीति वा हरिभद्र-मलधारिहेमचन्द्रसुरिभ्यां च पूर्व तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति । जावं च 'नयूतं' ततश्च 'प्रयुतं' निदिष्टमस्ति-ण उतंगे णं अगडाति वा णदीति वा तावं च णं अस्सि सुण्णसतं पंचहियं ततो चतु अट्ठ सत्त सुण्णं लोए । सत्त सुण्णं सत्त सुण्णं दो अट्ठ पण नव पण दो १. वलाहता (ता)। ति चउ ति नव सत्त ति नव सत्त ति नव २. वातरे विज्जुतारे वातरे थणितसद्दे (ता); दो ति दो नव नव ति ति सुण्ण दो पण चउ बादरे थणियसद्दे बादरे विज्जुकारे (म)। नव छ नव पण छ पण दो य ठवेज्जा २१. ३. णंदीति वा णिधयोति वा (ता)। णउते सुण्णसतं दसाहियं ततो छ पण अट्ठ पण ४. अत्र ताडपत्रीयादर्श गाथा चतुष्टयं लभ्यते- चतु णव ति णव अट्ठ चतु सुन्नं अट्ठ ति ति समयावलि आणापाण, थोवा य खणा लवा मुहत्ता य। अट्ठ चतु छ अट्ठ सत्त छ अट्ठ सत्त छ छ पण अहोरत्त पक्खमासा, उदू य अयणा य बोद्धन्वा ।।१।। पण ति पण पण अट्ठ सुण्णं सत्त नव ति ति संवच्छरा जुवा खलु, वाससया खलु भवे सहस्सा य। चतु एक्को छ चतु अट्ट पण एक्को दोण्णि य तत्तो य सतसहस्सा, पुव्वंगा चेव बोद्धब्वा ॥२॥ ठवेज्जा २२. पउतंगे पण्ण र सुत्तरं सुण्णसतं ततो पुव्वे तुडिए अडडे, अववे हय उप्पले पउमे । चतु सुण्ण णव एक्को पण चउ एक्को णव सुण्णं णलिणे अत्थणिपूरे, अउते पउते य णउते य ॥२॥ एक्को एक्को छ णव ति सुण्णं छ चतु छ सुण्ण चुलिय सीसपहेल्लिय, पलितोवम सागरोवमे च्चेव । सुण्ण णव सुण्ण सुण्ण एक्को छ सत्त अट्ठ णव ओसप्पिणि उस्सप्पिणि, परियट्टद्धा य तव्वा ॥४॥ चतु अट्ट एक्को पण पण ति पण चतु सुण्ण जाव सव्वद्धाति वा। छ सत्त सुण्ण एक्को त्ति एक्को अट्ट एगं च ५. पउते य णउते य (ता); पउते णउते (त्रि); ठवेज्जा २३ पउते वीसूत्तरं सुण्णसतं ततो छ मलयगिरिणापि प्रयुतानन्तरं नयुतं व्याख्या- ति णव णव पण णव एक्को ति ति सत्त दो तम् ----चतुरणीतिरयुतशतसहस्राणि एकं प्रयु- ति सत्त छ दो चतु पण छ पण सत्त चतु दो Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउठिवहपडिवत्ती ४२५ याति वा पलिओवमेति वा सागरोवमेति वा ओसप्पिणीति वा उस्सप्पिणीति वा तावं च णं अस्सि लोएत्ति पच्चति । जावं च णं चंदोवरागाति वा सूरोवरागाति वा चंदपरिएसाति वा सूरपरिएसाति वा पडिचंदाति वा पडिसूराति वा इंदधणूइ वा उदगमच्छेइ वा 'अमोहाइ वा" कपिहसिताणि वा तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति । जावं च णं चंदिमसूरियगहगणणक्खत्ततारारूवाणं अभिगमण-निग्गमण-बुड्ढि-णिवुड्ढि-अणवट्टियसंठाणसंठिती आघविज्जति तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति ॥ चंदादीणं उववन्नाधिगारो ८४२. अंतो णं भंते ! 'माणुसुत्तरस्स पव्वतस्स" जे चंदिमसूरियगहगणणक्खत्ततारारूवा ते णं भंते ! देवा कि उड्ढोववण्णगा? कप्पोववण्णगा? विमाणोववण्णगा? चारोववण्णगा? चारद्वितीया ? गतिरतिया ? गतिसमावण्णगा? गोयमा ! ते णं देवा णो उड्ढोववण्णगा, णो कप्पोववण्णगा, विमाणोववण्णगा, चारोववण्णगा, णो चारद्वितीया, गतिरतिया गतिसमावण्णगा, उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयणसाहस्सितेहिं तावखेत्तेहिं, साहस्सियाहिं 'बाहिरियाहिं वेउव्वियाहि परिसाहिं महयाहयनट्ट-गीत-वादिततंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडप्पवादितरवेणं 'दिव्वाइं भोगभोगाइं भुजमाणा' महया उक्किट्ठसीहणायवोलकलकलरवेणं 'पक्खुभितमहासमुद्दरवभूतं पिव करेमाणा" अच्छं पव्वयरायं पदाहिणावत्तमंडलचारं' मेरुं अणुपरियडंति ।। ८४३. 'तेसि णं भंते ! देवाणं जाहे'' इंदे चवति" से कहमिदाणि पकरेंति ? गोयमा ! ताहे" चत्तारि पंच वा" सामाणिया देवा तं ठाणं" उवसंपज्जित्ताणं विहरंति णव पण णव अट्ठ ति पण पण ति अट्ठ णव तद्वत्संस्थिताः कलम्बुयापुष्पसंस्थिताः (वृत्ति सुण्णं अट्ठ सत्त अट्ठ ति सुण्णं एक्को सुण्णं ति पत्र ३३६) । दो पण एक्क च ठवेज्जा २४ (चूणि पृष्ठ ५. वेउब्वियाहिं बाहिराहिं (जं ७।५५) । ३६, ४०)। हारिभद्रीयवृत्ति (पृष्ठ ५५, ६. X (क, ख, ग, ट, त्रि)। ५६)। मलधारिहेमचन्द्रवृत्ति (पत्र ६१) ७. उक्किट्ठसीहणायबोलकलकलसद्देणं (क, ख, ग, एतस्मिन् विषये अनुयोगद्वारसूत्रमधिकृतमस्ति, ट, त्रि); उक्किट्ठिसीहणायबोलकलरवेणं (ता)। तेन तन्मतमेव स्वीकृतम् ॥ ८. विपूलाइ भोगमोगाई भुंजमाणा (क, ख, ग, १. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि, मव) । ट, त्रि); 'पक्खुभित' एतत्पदं वृत्ती व्याख्यातं २. मणुस्सखेत्तस्स (क, ख, ग, ट, त्रि)। नास्ति । ३. 'ता' प्रतौ उववण्णगा' स्थाने सर्वत्रापि “उव- ६. "मंडलयारं (क, ख, ग, ट, त्रि)। वण्णा' इति पाठो विद्यते । मलयगिरिवत्तावपि १०. जया णं भंते तेसि देवाणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। एवमेव । ११. चयति (क, ख, ट, ता, त्रि)। ४. उड्ढमुहकलंबुयपुप्फ (क,ख,ग,ट,त्रि); वृत्तौ १२. जाव (क, ख, ट, मव)। नालिकापूष्पसंस्थानसंस्थितैः' इति व्याख्यात- १३. x (क, ख, ग, ट, ता, त्रि)। मस्ति, नात्र पाठभेदः आशंकनीयः। ३१८३८ १४. देवाः समुदितीभूय (म) । सूत्रस्य पञ्चदश्या गाथाया व्याख्यायां अस्य १५. इंदट्ठाणं (ता)। स्पष्टता दृश्यते--कलम्बुयापुष्पं–नालिकापुष्प Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२६ जीवाजीवाभिगमे 'जाव एत्थ अण्णे" इंदे उववण्णे भवति । ८४४. इंदट्ठाणे णं भंते ! केवतियं कालं विरहिते उववातेणं ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा ॥ ८४५. बहिया' णं भंते ! 'माणुसुत्तरस्स पव्वतस्स" जे चंदिमसूरियगहणवखत्ततारारूवा ते णं भंते ! देवा किं उड्ढोववण्णगा? कप्पोववण्णगा? विमाणोववण्णगा? चारोववण्णगा? चारद्वितीया ? गतिरतिया ? गतिसमावण्णगा ? गोयमा ! ते णं देवा णो उड्ढोववण्णगा', णो कप्पोववण्णगा. विमाणोववण्णगा, णो चारोववण्णगा, चारद्वितीया, णो गतिरतिया, णो गतिसमावण्णगा, पक्किट्टगसंठाणसंठितेहिं जोयणसतसाहस्सिएहिं तावक्खेत्तेहिं साहस्सियाहि य बाहिराहिं परिसाहि महताहतनट्ट-गीत-वादित- तंती-तलताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवादितरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा महया उक्किट्ठसीहणायवोलकलकलरवेणं पक्खुभितमहासमुद्दरवभूतं पिव करेमाणा' सुहलेस्सा मंदलेस्सा मंदायवलेस्सा चित्तंतरलेसा 'अण्णमण्णसमोगाढाहिं लेसाहिं कूडा इव ठाणद्विता" ते पदेसे सव्वतो समंता ओभासेंति उज्जोवेति तवेंति पभासेंति ।। ८४६. 'तेसि णं भंते ! देवाणं जाहे इंदे चवति से कहमिदाणि पकरेंति ? गोयमा ! ताहे चत्तारि पंच वा सामाणिया देवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति जाव तत्थ अण्णे इंदे उववण्णे भवति । ८४७. इंदट्ठाणे णं भंते ! केवतियं कालं विरहओ उववातेणं ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा ।। १. जावत्थण्णे (क, ख, ता)। मेययोर्वैषम्यं संपद्येत अतो वक्रेति विशेषणं, २. बाहिरया (क, ख); बाहिया (ग); बाहि- वक्रता चान्तः संकीर्णा बहिश्च विस्तीर्णेत्येवं रिया (ट, त्रि)। रूपेणावसातव्या न पुनर्यथा कथंचिदपीति, यत्तु ३. मणुस्सखेत्तस्स (क, ख, ग, ट, त्रि)। सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे 'पक्किट्टसंठाणे' ति पाठः ४. उड्ढोववण्णा तिरियोववण्णा (ता)। श्रीमलयगिरिणा गम्यान्तरमकृत्वैव व्याख्यातसूत्र५. पक्किट्ठग (क, ख, ट, त्रि); 'इष्टा' शब्दे पक्वपदस्य प्रयोजनं सम्यग् न विद्यः ।। ष्टस्यानुष्ट्रेष्टा, संदष्टे (हेमशब्दानुशासन । ६. वे उब्वियाहि परिसाहिं (क, ख, ग, ट, त्रि)। ८।२।३४) सूत्र वजितत्वात् 'ष्टस्य ठो' न ७. सं० पा०-महताहनट्टगीयवादितरवेणं दिव्वाई जातः । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेीरविजयवृत्तौ वंकि भोगभोगाइं भुंजमाणा । आदर्शेषु अत्र संक्षिप्तदृग' इति पाठो व्याख्यातोस्ति तथा सूर्यप्रज्ञप्ते पाठोस्ति, विस्तृत: पाठो वृत्त्याधारेण स्वीवृत्तौ (पत्र २८२) मलयगिरिणा 'पक्किट्ट' पदं कृतः । व्याख्यातं तस्य समालोचनापि कृतास्ति-वक्रा ८. सुहलेस्सा सीयलेस्सा (क, ख, ग, ट, त्रि)। विषमा या इष्टका लोकप्रतीता तत्संस्थानेन ६. कूडा इव ठाणद्विता अण्णोण्णसमोगाढाहि संस्थितानि अयं भावः इष्टका हि चतुरस्रापि लेसाहिं (क, ख, ग, ट, त्रि)। विष्कम्भापेक्षया दैर्येण प्रायः पादाधिका भवति। १०. जया णं भंते ! तेसिं देवाणं (क, ख, ग, ट, सा च संस्थानतः समैव स्यात् प्रकाश्यक्षेत्र तु त्रि)। वलयाकारेणं संस्थितं सद्विभक्तमतउपमोप- ११. जाव (क, ख, ग, ट, त्रि)। Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ४२७ पुक्खरोवसमुहाधिगारो ___८४८. पुक्खरवरणं दीवं पुक्खरोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति ।। ___ ८४६. पुक्खरोदे णं भंते ! समुद्दे कि समचक्कवालसंठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? गोयमा ! समचक्कवालसंठिते, णो विसमचक्कवालसंठिते ॥ ८५०. पुक्खरोदे णं भंते ! समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं ? केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई चक्कवालविखंभेणं, संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ते । 'से णं एगाए पउमवरवेदियाए, एगेणं, वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ" ॥ ८५१. पुक्खरोदस्स णं समुदस्स कति दारा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, 'तहेव सव्वं पुक्खरोदसमुद्दपुरथिमपेरते वरुणवरदीवपुरथिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं पुक्ख रोदस्स विजए नाम दारे पण्णत्ते । एवं सेसाणवि" ॥ ८५२. दारंतरंमि संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।। ८५३. पदेसा जीवा य तहेव। ८५४. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चति-पुक्खरोदे समुद्दे ? पुक्खरोदे समुद्दे ? गोयमा ! पुक्खरोदस्स णं समुदस्स उदगे अच्छे पत्थे' जच्चे तणुए फलिहवण्णाभे पगतीए उदगरसे पण्णत्ते । सिरिधर-सिरिप्पभा यत्थ दो देवा" महिड्ढीया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । से एतेणठेणं जाव णिच्चे। ८५५. पुक्खरोदे णं भंते ! समुद्दे कति* चंदा पभासिंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा? संखेज्जा चंदा पभासेंसु वा जाव" संखेज्जा तारागणकोडकीडीओ५ सोभं सो सु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा ।। वरुणवरदीवाधिगारो ८५६. 'पुक्खरोदण्णं समुदं 'वरुणवरे णामं दीवे"" वट्टे 'जधेव पुक्खरोदसमुद्दस्स १. सं पा०-वलयागारसंठाणसंठिते जाव संपरि- ९. पच्छे (ख, ट) । क्खिताणं। १०. उदगरसे णं (क, ख, ग, ट, ता त्रि)। २. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एतत् सूत्रं नोल्लि- ११. देवा जाव (ग, त्रि)। खितमस्ति । १२. जी० ३।३५० । ३. जोयणसहस्साई (ता) अग्रेपि एवमेव । १३. केवतिया (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४. ४ (क,ख,ग,ट,त्रि); जी० ३।२६५-२६७। १४. जी० ३१७२२ । ५. जी० ३१७०७, ७०८। १५. कोडीकोडीओ (क); "कोडाकोडीओ (ख, ६. जी० ३७०८-७१३ । ग, ट, त्रि)। ७. विजयादितधेवसव्वं रायहाणीओवि सरिणामएसु १६. पुक्खरोदे णं समुद्दे (त्रि)। समुद्देसु (ता); मलयगिरिवृत्तौ चत्वार्यपि १७. वारुणिवरे णामं दीवेणं संपरि (क); वारुणिसूत्राणि पूर्णरूपेण व्याख्यातानि सन्ति । वरे (ख); वरुणवरेणं दीवेणं संपरि (ग, त्रि)। ८. जी० ३।७१५-७२० । Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ :?? तधा सव्वं 11 ८५७. 'सेकेणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चइ - वरुणवरे दीवे ? वरुणवरे दीवे ? गोयमा !” वरुणवरे णं दीवे तत्थ तत्थ देसे तहि तर्हि वहुईओ' खुड्डा - खुड्डियाओ जाव विलपतियाओ अच्छाओ जाव' सद्दुण्णइयमहरसरनाइयाओ वारुणिव रोदगपडिहत्थाओं' पत्तेयं-पत्तेयं पउमवर वेइयापरिविखत्ताओ पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ वण्णओ पासादीयाओ दरिस णिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ । 'तिसोमाण - तोरणा । तासु णं खड्डा खुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहवे उप्पातपव्वया जाव पक्खंदोलगा सव्वालियामया अच्छा जाव पडिवा | तेसु णं उप्पायपव्वएसु जाव पक्खंदोलएसु बहूई हंसासणाई जाव दिसासोवत्थियासणारं सव्वफालियामयाई अच्छाई जाव पडिख्वाइं । वरुणवरे णं दीवे तत्थ तत्थ से तर्हि तहि बहवे आलिघरगा जाव कुसुमघरगा सव्वफालियामया अच्छा जाव परुिवा । तेसु णं आलिघर एसु जाव कुसुमघरएसु बहूई हंसासणाई जाव दिसासोवत्थियासणाई सव्वफालियामयाइं अच्छाई जाव पडिरूवाई । वरुणवरे णं दीवे तत्थ तत्थ देसे तहि तहि बहवे जातिमंडवगा जाव सामलतामंडवगा सव्वफालियामया अच्छा जाव पडवा | तेसु णं जातिमंडवएसु जाव सामलतामंडवसु बहवे पुढविसिलापट्टगा पण्णत्ता, तं जहा - अप्पेगतिया हंसासणसंठिता जाव अप्पेगतिया वरसयण विसिट्ठसंठाणसंठिता सव्वफालियामया अच्छा जाव पडिरूवा । तत्थ णं बहवे वाणमंतरा देवा जाव' विहरति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वृच्छति - वरुणवरे दीवे, वरुणवरे दीवे । वरुण - वरुणप्पभा यथ दो देवा महिड्डिया जाव' पलिओवमद्वितीया परिवसंति" ॥ ८५८. जोतिसं संखेज्जं " ॥ १. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु किञ्चिद् विस्तृतः पाठोस्ति --- वलयागारे जाव चिट्ठति, तहेव समचक्कवालसंठिते केवतियं चक्कवाल विक्खंभेणं ? केवइयं परिक्लेवेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! संखिज्जाई जोयणसय सहरसाई चक्कवाल विक्खंभेणं संखेज्जाई जोयणसतसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ते, पउमवरवे दिया वणसंडवण्णओ । दारंतरं पदेसा जीवा तहेव सव्वं । जी० ३१८४८८५३ । २. अट्टो (ता) । ३. बहुओ (क, ख, ग, ट, त्रि ) । ४. जी० ३।२८६ । ५. जी० ३।२८६ । ६. वारुणोदग° (क,ख,ट,ता) । ७. जी० ३।२६५-२६७ । ८. जी० ३।२८७-२६७ । जीवाजीवाभिगमे ६. जी० ३।३५० । १०. चिन्हाङ्कितपाठस्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु सङ्क्षिप्तपाठोस्ति — तासु ण खुड्डा-खुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहवे उप्पायपव्वता जाव asesगा सव्वफलियामया अच्छा तहेव वरुणवरुणप्पभा य एत्थ दो देवा महिड्ढीया परिवरांति । से तेणट्ठेणं जाव णिच्चे । 'ता' प्रतेः पाठो मूले स्वीकृतः । वृत्तौ विस्तृतः पाठो लिखितोस्ति, सूचितं वृत्तिकृता -- एतत्सर्वं प्राग्वद् व्याख्येयं नवरं पुस्तकेष्वन्यथान्यथा पाठ इति यथावस्थितपाठप्रतिपत्त्यर्थं सूत्रमपि लिखितमस्ति । ११. सव्वं संखेज्जगेणं जाव तारागणकोडिकोडीओ (क, ख, ग ) ; सव्वं संखेज्जगुणं जाव तारागणकोडाकोडीओ (ट); संखिज्जकेण नायव्वं (त्रि ) ; जी० ३२८५५ । Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्हिपडिवत्ती वरुणोदसमुद्दाधिगारो ८५६. वरुणवरण्णं दीवं वरुणोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागार' संठाणसंठिते सव्वतो समता संपरिक्खित्ताणं' चिट्ठति । 'पुक्खरोदवत्तव्वता जाव जीवोववातो" ॥ ८६०. 'से केणट्ठेणं भंते ! एवं वच्चइ - वरुणोदे समुद्दे ? वरुणोदे समुद्दे" ? गोयमा ! वरुणोदस्स* णं समुद्दस्स उदए से जहानामए - - चंदप्पभाइ वा मणिसिलागाई वा वरसीति वा वरवारुणीइ वा पत्तासवेइ वा पुप्फासवेइ वा 'फलासवेइ वा चोयासवेइ वा " धूति वा मेति वा जातिप्पसन्नाइ वा खज्जूरसारेइ वा मुद्दियासारेइ वा कापिसायणेइ वाक्कखोयरसे' वा' अट्ठपिट्टणिट्टिताइ वा 'जंबूफल कालियाइ वा वरपसण्णाइ वा " उक्कोसमदपत्ता आसला मासला पेसला ईसि ओट्ठावलंबिणी ईसि तंवच्छिकरणी ईसि वोच्छेदकडुई वण्णेणं उववेता गंधेणं उववेता रसेणं उववेता फासेणं उबवेता आसादणिज्जा वीसादणिज्जा दीवणिज्जा दप्पणिज्जा" मयणिज्जा विहणिज्जा सव्विदियगातपल्हायणिज्जा, भवेतारूवे सिया ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे । वरुणोदस्स णं समुद्दस्स उदए १. सं० पा० - वलयागार जाव चिट्टति । २. समचक्क विसमचक्कवि तहेव सव्वं भाणियव्वं विक्खंभपरिवखेदों संखिज्जाई जोयणसहस्साई दारंतरं च पउमवर वणसंडे पएसा जीवा (क, ख, ग, ट, त्रि); यथैव पुष्करोदसमुद्रस्य वक्तव्यता तथैवास्यापि यावज्जीवोपपातसूत्र. द्वयम् (मवृ); जी० ३१८४६-८५३ । ३. अट्ठो (क, ख, ग, ता, त्रि) । ४. वारुणोदस्स (क, ग, ट, ता, त्रि) । ५. मणिस लागाई (ता) । ६. चोयासवेइ वा फलासवेइ वा (क, ख, ग, ट, त्रि) । ७. वा अरिट्ठेति वा (ता) । ८. सुपिक्कखोतरसेति (ता) | क; ६. अतः परं 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु भिन्ना वाचना दृश्यते - पभूतसंभारसंचित्ता पोसमाससतभिसयजोतविता (जोगवट्टता - जोnagविया - ट ) निरुहतविसिदिन्नकालोवयारा सुधावा ( सुधाता - ग, त्रि) उक्कोसग अट्ठपट्टा मुरवइंतवर कि मंदिण्णकद्दमा कापसन्ना अच्छा वरवारुणी अतिरसा जंबू फलपुटुवन्ना सुजाता ईसिउट्ठावलंविणी ४२६ अहिमधुरपेज्जा ईसीसिरत्तणेता (ईसीरतणेत्ता - क) कोमलकवोलकरणी जाव आसादिता विसंती अणिहुयसंलाव करणहरिसपीतिजणी संतत (संत सतत - क) बिब्बोहावविब्भमविलासवेल्लहलगमणकरणी विरणमधियसत्तजणणीय होति संगाम देसकाले कयरणरसमद ( कयरणसमर -क; काय रणरसमर - ट ) पसरकरणी कढियाणविज्जुयतिहिययाण मउयकरणीय होति उववेसिता समाणी गति खलावेति य सयलंमिवि सुभावप्पालिया समरभग्गवणो सह्यारसुरभिरसदीविया सुगंधा आसायणिज्जा विस्सायणिज्जा पीणणिज्जा दप्पणिज्जा मय णिज्जा सव्विदियगात पल्हायणिज्जा आसला मासला पेसला वण्णेणं उववेया गंधैणं उववेया रसेणं उववेया फारोणं उववेया, भवे एयारूवे सिया ? गोयमा ! नो इणट्ठे समट्ठे, वारुणोदस्स णं समुद्दस्स उदए एतो इट्ठतरे जाव उदए अस्साए णं पण्णत्तं । तत्थ णं वारुणिवारुणकंता देवा महिड्ढीया जाव परिवसंति से एएणट्ठेणं जाव णिच्चे । I १०. वरपसन्ना जंबूफलकालिया (ता) । ११. x (मवू ) | Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० जीवाजीवाभिगमे एत्तो इठ्ठतराए चेव जाव' मणामतराए चेव आसादे णं पण्णत्ते। वारुणि-वारुणिकता यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति। से तेणठेणं गोयमा ! एवं बुच्चति-वरुणोदे समुद्दे, वरुणोदे समुद्दे ।। ८६१. 'जोतिसं संखेज्ज॥ खीरवरदीवाधिगारो ८६२. वरुणोदण्णं' समुदं खीरवरे णामं दीवे वट्टे 'वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति । तधेव' जाव ८६३. 'से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-खीरवरे दीवे ? खीरवरे दीवे ? गोयमा ! खीरवरे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहिं-तहिं बहुईओ खुड्डा-खुड्डियाओ जाव बिलपंतियाओ अच्छाओ जाव सदगुण्णइयमहरसरनाइयाओ खीरोदगपडिहत्थाओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरुवाओ पडिरूवाओ 'पव्वतगा, पव्वतएसु आसणा, घरहा, घरएसु आसणा, मंडवा, मंडवएसु पुढविसिलापट्टगा सव्व रयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। पंडरग-पुप्फदंता यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । से तेणठेणं ॥ ८६४. जोतिसं संखेज्जं ॥ खीरवरसमुद्दाधिगारो ८६५. खीरवरणं दीवं खीरोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति । तधेव जाव ८६६. से" केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चति-खीरोदे समुद्दे ? खीरोदे समुद्दे ? गोयमा! १. जी० ३।६०१। २८६-२६७ । २. सव्वं जोइससंखिज्जकेण नायव्वं (क, ख, ग, ८. जोतिसं सव्वं (क,ख,ग,ट,त्रि); जी० ३१८५५। ट, त्रि); जी० ३।८५५ । ६. सं० पा०-बट्टे जाव चिट्ठति । ३. वारुणोदं णं (क,ख,ग,ट,ता); वारुणवरणं १०. समचक्कवालसंठिते नो विसमचक्कवालसंठिते (त्रि)। संखेज्जाई जोयणस विक्खंभपरिक्खेवो तहेव ४. सं० पा०-बट्टे जाव चिट्ठति । सव्वं (क,ख,ग,ट,त्रि); जी० ३।८४६-८५३ । ५. सव्वं संखेज्जगं विक्खंभे य परिक्खेवो य (क, ११. एतस्य सूत्रस्य स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शष __ ख,ग,ट,त्रि); जी० ३८४६-८५३ । एव पाठभदोस्ति एवं पाठभेदोस्ति-अट्रो, गोयमा ! खीरोयस्स ६. अट्ठो । बहुओ खुड्डा वावीओ जाव सरसरपंति- णं समुद्दस्स उदगं से जहाणामए-सुउसुहीमारुयाओ खीरोदयपडिहत्थाओ पासातीयाओ ४ पण्णअज्जुणतण (तरुण-क) सरसपत्तकोमल(क,ख,ग,ट,त्रि); अट्ठो वावीओ खीरोदग- अत्थिग्गत्तणग्गपोंडगवरुच्छुचारिणीणं लवंगपतपडहत्थाओ रयतामईओ (ता)। पुप्फपल्लवकक्कोलगसफलरुक्खबहुगुच्छगुम्मकलि ७. तासु णं खुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहवे तमलट्ठिमधुपयुरपिप्पलीफलितवल्लिवरविवरचा उप्पायपव्वयगा सव्वरयणामया जाव पडिरूवा रिणीणं अप्पोदगपीतसइरससमभूमिभागणिभयपंडरग-पुप्फदंता (पुष्करदंता–क,ग,त्रि) एत्थ सूहोसियाणं सुपोसितसूहात रोगपरिवज्जिताणं दो देवा महिडढीया जाव परिवति । से तेणठेणं णिरुवहतसरीराणं (सरीरिणं-ग, त्रि) जाव णिच्चे (क,ख,ग,ट,त्रि); जी० ३।८५७, कालप्पसविणीणं बितियततियसम (साम Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ४३१ खीरोदस्स णं समुदस्स उदए से जहानामए-रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चाउरक्के गोक्खीरे खंडगुलमच्छंडियोवणीते पयत्तमंदग्गिसुक ढिए वण्णणं उववेते गंधेणं उववेते रसेणं उववेते फासेणं उववेते आसादणिज्जे वीसादणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिहणिज्जे सव्विदयगातपल्हायणिज्जे, भवेतारूवे सिया ? गोयमा ! णो इणठे समझें, खीरोदस्स णं समुद्दस्स उदए एत्तो इट्ठतराए चेव जाव मणामतराए चेव आसादे णं पण्णत्ते । विमल-विमलप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । से तेणठेणं ॥ ८६७. 'जोतिसं संखेज्ज२॥ घयवरदीवाधिगारो ८६८. खीरोदण्णं समुदं घयवरे णाम दीवे वट्टे वलया गारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं' चिट्रति जाव' ८६६. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चति-घयवरे दीवे ? घयवरे दीवे ? गोयमा ! घयवरे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहुईओ खुड्डा-खुड्डियाओ जाव विहरंति, णवरंघयोदगपडिहत्थाओ पव्वतादी सव्वकणगमया, कणग-कणगप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवति । से तेणढेणं ।। ८७०. जोतिसं संखेज ॥ घयोदसमुद्दाधिगारो ८७१. घयवरणं दीवं धयोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता जाव ग,त्रि) प्पभूताणं अंजणवरगवलवलयजलधरज- च्चंजणरिट्रभमरपभूयसमप्पभाणं कंडदोहणाणं वद्धत्थीपत्थुताणं रूढाणं मधुमासकाले संगहिते होज्ज चातुरक्केव होज्ज तासिं खीरं मधुर- रसविवगच्छबहुदव्वसंपउत्ते पयत्तमंदग्गिसुकढिते आउत्तखंडगुडमच्छंडितोववेते रणो चाउरंतचक्कवट्टिस्स। उवढविते आसायणिज्जे विस्सायणिज्जे पीणणिज्जे जाव सविदियगातपल्हातणिज्जे जाव वण्णेणं उवचिते जाव फासेणं, भवे एयारूवे सिया? णो इणठे समठे, खीरोदस्स णं से उदए एत्तो इट्ठयराए चेव जाव आसाएणं पण्णत्ते। विमलविमलप्पभा एत्थ दो देवा महिड्ढीया जाव परिवति, से तेणठेणं । १.सं० पा०-आसादणिज्जे जाव इट्टतराए चेव आसादे। २. संखेज्ज चंदा जाव तारा (क,ख,ग,ट,त्रि); जी० ३१८५५ । ३. सं० पा०-वलयागारसंठाणसंठिते चिट्ठति । ४. अत: ८६६, ८७० सूत्रयोः स्थाने 'क,ख,ग,ट, वि' आदर्शषु एवं पाठभेदोस्ति-समचक्कवाल नो विसम संखेज्जविसमपरि पदेसा जाव अट्रो, गोयमा! घयवरे णं दीवे तत्थ-तत्थ बहवे खड्डा-खडीओ वावीओ जाव घयोदगपडिहत्थाओ उप्पायपव्वयगा जाव खडहडगा सव्वकंचणमया अच्छा जाव पडिरूवा, कणयकणयप्पभा एत्थ दो देवा महिड्ढीया चंदा संखेज्जा । ६. जी० ३।८५७; २८६-२६७ । ७. जी० ३१८५५ । ८. सं० पा०–वट्टे जाव चिट्ठति । Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३२ जीवाजीवाभिगमे संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति' जाव'___८७२. से केणठेणं भंते ! एवं वच्चति-घयोदे समुद्दे ? घयोदे समुद्दे ? गोयमा ! घयोदस्स णं समुद्दस्स उदए से जहानामए–सारइयस्स गोघयवरस्स मंडे सुकढिते उद्दा' [ण ?] सज्जवीसंदिते विस्संते 'सल्लइ-कण्णियारपुप्फवण्णाभे" वण्णणं उववेते गंधेणं उववेते रसेणं उववेते फासेणं उववेते, आसादणिज्जे वीसादणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिहणिज्जे सव्विदियगात पल्हायणिज्जे, भवेतारूवे सिया ? गोयमा ! णो इणटठे समटठे, घयोदस्स णं समूहस्स उदए एत्तो इतराए चेव जाव मणामतराए चेव आसादे णं पण्णत्ते ! कंत-सुकंता यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । से तेणठेणं ॥ ८७३. चंदादी तधेव ॥ खोदवरदीवाधिगारो ८७४. घयोदण्णं समुदं खोदवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव' ८७५. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति–खोदवरे दीवे ? खोदवरे दीवे ? गोयमा ! खोदवरे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहुईओ खुड्डा-खुड्डियाओ वावीओ जाव विहरंति, १. अतः ८७२, ८७३ सूत्रयोः स्थाने 'क,ख,ग,ट, ४. अल्लगकणियारपुप्फवण्णे (ता)। त्रि' आदर्शषु एवं पाठभेदोस्ति-समचक्क तहेव ५. सं० पा०-आसादणिज्जे जाव पल्हायणिज्जे । दारपदेसा जीवा य अट्ठो गोयमा ! घयोदस्स ६. जी० ३१६०० । णं समुदस्स उदए से जहा जवग्ग फुल्लस- ७. जी० ३।८५५ । ल्लइविमुकुलकण्णियारसरसवसुविबुद्धकोरेंटदा - ८. इमानि ८७४-८७६ सूत्राणि वृत्याधारण मपिडिततरस्स निद्धगुणतेयदीवियनिरुवयवि- स्वीकृतानि । 'ता' प्रतेः पाठसंक्षेप एवमस्तिसिट्ठसुंदरतरस्स सुजायदहिमहियतद्दिवसगहियन- घतोदण्णं समुदं खोतवरे णामं दीवे जावट्ठो वणीयपडवणावियसुक्कड्ढियद्दाव (उदार-ट) खोतोदगपडहत्थाओ वावीओ जाव सयंति सज्जवीसंदियस्स अहियं पीवरसुरहिगंधमणहर- णवरं-पव्वतगादी सव्ववेरुलियामया अच्छा महरपरिणामदरिसणिज्जस्स पत्थनिम्मलसुहोव जाव पडि सुप्पभमहप्पभा यत्थ दो चंदादी भोगस्स सरयकालंमि होज्ज गोधतवरस्स संखेज्जा । क,ख,ग,ट,त्रि' प्रतीनां पाठसंक्षेप:मंडए, भवे एतारूवे सिया ?, णो तिणठे घतोदण्णं समुहूं खोदवरे णामं दीवे वटे वलसमठे, गोयमा ! घतोदस्स णं समुद्दस्स। यागारे जाव चिट्ठति तहेव जाव अट्ठो, खोत वरे एत्तो इट्टतरे जाव अस्साएणं पण्णत्ते कंतसुकता णं दीवे तत्थ-२ देसे-२ तहि-२ खुडावावीओ एत्थ दो देवा महिडढीया जाव परिवति सेसं जाव खोदोदगपडिहत्थाओ उप्पातपव्वतता तं चेव तारागणकोडीकोडीओ। सव्ववेरुलियामया जाव पडिरूवा, सुप्पभ२. जी. ३८४६-८५३ । महप्पभा य दो देवा महिढीया जाव ३. उद्दाव (क,ख,ग,ट,त्रि); उद्दा (ता); अद्वार:- परिवसंति, से एतेणं सव्वं जोतिसं तं चेव जाव स्थानान्तरेष्वद्याप्यसङ्क्रामितः (मवृ); देशीनाम- तारा। मालायां उद्दाणं-चुल्ली। एष अर्थः सङ्गतोस्ति। ९. जी. ३८४६-८५३ । Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तचा परम्विहपडिवत्ती ४३३ णवरं-खोदोदगपडिहत्थाओ पव्वतगादी सव्ववेरुलियामया। सुप्पभ-महप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । से तेणठेणं' ॥ ८७६. चंदादी संखेज्जा॥ खोदोदसमुद्दाधिगारो ८७७. खोदवरण' दीवं खोदोदे णामं समुद्दे वडे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिति जाव'____८७८. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चति–खोदोदे समुद्दे ? खोदोदे समुद्दे ? गोयमा ! खोदोदस्स णं समुदस्स उदए से जहानामए-उच्छृणं जच्चाणं वरपुंडगाणं हरिताभाणं भेरुंडुच्छण" वा कालपोराणं हरितालपिंजराणं अवणीतमूलाणं. 'तिभागणिव्वादितवाडाणं गंठिपरिसोधिताणं" खोदरसे होज्ज वत्थपरिपूते चाउज्जातगसुवासिते अधियपत्थे लहुए वण्णेणं उबवेते गंधेणं उववेते रसेणं उववेते फासेणं उववेते आसादणिज्जे वीसादणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिहणिज्जे सविदियागातपल्हायणिज्जे, भवेतारूवे सिया ? गोयमा ! णो इणढे समठे, खोदोदस्स णं समुदस्स उदए एत्तो इद्रुतराए चेव जाव मणामतराए चेव आसादे णं पण्णत्ते। पुण्ण-पुण्णप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव १. जी. ३८५७; २८६-२६७ । होज्जा वत्थपरिपूए चाउज्जातगसुवासिते २. जी. ३१८५५ । अहियपत्थे लहुके वण्णोववेते तहेव, भवे एया३. एतेषां ८७७-८७६ त्रयाणां सूत्राणां स्थाने रूवे सिया ? णो तिणठे समठे, खोयरसस्स 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शेषु इत्यं वाचना भेदो णं समुद्दस्स उदए एत्तो इट्टतराए चेव जाव दृश्यते-खोयवरणं दीवं खोदोदे नाम आसाएणं पण्णत्ते । पुण्णभद्दमाणिभद्दा य इत्थ समुद्दे वट्टे वलया जाव संखेज्जाई दुवे देवा जाव परिवसंति, सेसं तहेव, जोइसं जोयणसत परिक्खेवेणं जाव अठे, गोयमा ! संखेज्जं चंदा । वृत्तिकृतापि पाठभेदस्य सूचना खोदोदस्स णं समुदस्स उदए जहा से कृतास्ति-इह प्रविरलपुस्तकेऽन्यथापि पाठो आसलमासलपसत्थे वीसंतनिद्धसुकुमालभूमिभागे दृश्यते सोप्येतदनुसारेण व्याख्येयो, बहुषु तु सुच्छिन्ने सुकटुलढविसिट्रनिरुवहयाजीयवाविते पुस्तकेषु न दृष्ट इति न लिखितः (वृत्ति पत्र सुकासज (ग-क,ट) पयत्तनिउणपरिकम्म- ३५३)। अणपालियसबुद्धिबुद्धाणं सुजाताणं लवणतणदो- ४. सं० पा०-वटे जाव चिति । सवज्जियाणं णयायपरिवट्टियाणं निम्मातसुंद- ५. जी० ३८४६-८५३ । राणं रसेणं परिणयमउपीणपोरभंगुरसुजायमधुर- ६. हरितानाम् (मव) । रसप्प्फविरइयाणं उवद्दवविवज्जियाणं सीय- ७. भेरण्डेसूणां (मव) । परिफासियाणं अभिणवभग्गाणं (अभिणवभि- ८. अमणीत' (ता)। ग्गाणं-क; अभिणवतग्गाण----ग, त्रि) ६. त्रिभागनिर्वाटितवाटानाम् (म)। अमलियाणं तिभायणिच्छोडियवाडगाणं अवणी- १०. गंधिपरिसोधिताणं तिभागणिवादितवाडाणं तमूलाणं गठिपरिसोहिताणं कुसलणरकप्पियाणं (ता)। उच्छृणं (उच्छूढाणं-ट) जाव पोंडयाणं ११. सं० पा०-उववेते जाव सव्विदियगातपल्हायबलवगणरजत्तजंतपरिगालितमेताणं खोयरसे णिज्जे। वायरस Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३४ जीवाजीवाभिगमे पलिओवमद्वितीया परिवसंति । से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चति--खोदोदे समुद्दे, खोदोदे समुद्दे ॥ ८७६. चंदादीण जधा पुक्खरोदस्स'॥ * गंदिस्सरवरदीवाधिगारो ८८०. खोदोदण्णं समुदं णंदिस्सरवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति । 'पुव्वक्कमेणं जाव' जीवोववातो"॥ ८८१. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चति–णंदिस्सरवरे दीवे ? णंदिस्सरवरे दीवे ? गोयमा ? णंदिस्सरवरे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहुईओ खुड्डा-खुड्डियाओ वावीओ जाव' विहरंति, णवरं-खोदोदगपडिहत्थाओ पव्वतगादी पुव्वभणिता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा॥ ८८२. अदुत्तरं च णं गोयमा ! णंदिस्सरवरे दीवे चउद्दिसि चक्कवालविक्खंभेणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि अंजणगपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-पुरथिमेणं दाहिणणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं" । ते णं अंजणगपव्वता चतुरासीति जोयणसहस्साइं उड्ढे उच्चत्तेणं, एगं" जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले साइरेगाइं दसजोयणसहस्साई विक्खंभेणं', धरणियले दसजोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, तदाणंतरं मायाए-मायाए"परिहायमाणा-परिहायमाणा उरि एग" जोयणसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, मूले एक्कतीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसते किंचिविसेसाहिए५ परिक्खेवेणं, धरणियले एक्कतीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसते देसूणे" परिक्खेवेणं, उवरि" तिण्णि जोयणसहस्साइं एक च बावट्टं जोयणसतं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं", मूले विच्छिण्णा मज्झे संखित्ता उप्पि तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिता सव्वंजणमया" अच्छा जाव पडिरूवा, पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेदियापरिक्खित्ता, पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता, वण्णओ" ॥ १. जी. १८५५ । ८. x (क,ख,ग,ट,त्रि)। २. जी. ३१८४६-५५३ । ६. x (ता)। ३. तहेव जाव परिक्खेवो । पउमवर वणसंडपरि दारा १०. ततोणंतरं (क,ख,ग) एत्तोणंतरं (त्रि) । दारंतरप्पदेसे जीवा तहेव (क,ख,ग,ट,त्रि)। ११. मायाए पदेसपरिहाणीए (क,ख,ग,ट,त्रि) । ४. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' १२. उप्पि (ता) । एगमेगं (क,ख,ग,ट,त्रि) । आदर्शेष एवं पाठभेदोस्ति-से केणठेणं भंते ! १३. एककं (मवृ)। गोयमा! देसे-२ बहओ खडा वावीओ जाव १४. x (ता)। बिलपंतियाओ खोदोदगपडिहत्थाओ उप्पाय- १५. किंचिविसेसाहियायं (ता)। पव्वगा सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा। १६. किंचिविसेसूणा (ता)। ५. जी० ३८५७। १७. सिहरितले (क,ग,त्रि); सिहरतले (ट); ६. णंदिस्सरवरदीवचक्कवालविक्खंभबहुमझदेस- उप्पि (ता)। भागे एत्थ णं चउद्दिसिं चत्तारि अंजणयपव्वता १८. परिक्खेवेणं प (ग)। पण्णत्ता (क,ख,ग,ट,त्रि)। १६. सव्वंजणामया (क,ग,ता,त्रि)। ७. एगमेगं (क,ख,ग,ट,त्रि)। २०. जी. ३।२६३-२६७ । Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ४३५ ८८३. तेसि णं अंजणगपव्वयाणं उरि पत्तेयं-पत्तेयं बहुसमरमणिज्जो भूमिभागो 'पण्णत्तो, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेति वा जाव' विहरंति" ॥ ८८४. तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं सिद्धायतणे पण्णत्ते। ते णं सिद्धायतणा एगमेगं जोयणसतं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, बावत्तरि जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, अणेगखंभसतसंनिविट्ठा, वण्णओ ॥ ८८५. तेसि णं सिद्धायतणाणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि दारा पण्णता, 'तं जहा–पुरत्थिमेणं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं । पुरत्थिमेणं देवदारे, दाहिणेणं असुरद्दारे, पच्चत्थिमेणं णागद्दारे, उत्तरेणं सुवण्णद्दार' । तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्ढीया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा-देवे असुरे णागे सुवण्णे"। ते णं दारा सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं सेता वरकणगथूभियागा, वण्णओ॥ ८८६. तेसि णं दाराणं उभयतो पासिं दुहतो णिसीधियाए सोलस-सोलस वंदणकलसा पण्णत्ता, एवं तव्वं जावसोलस वणमालाओ॥ ८८७. तेसिणं दाराणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं मुहमंडवे पण्णत्ते। ते णं मुहमंडवा एगं जोयणसतं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, सोइरेगाइं सोलस जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसंनिविट्ठा, वण्णओ" ॥ ८८८. तेसि णं मुहमंडवाणं पत्तेयं-पत्तेयं तिदिसिं तओ दारा पण्णत्ता। तेणं दारा सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं जाव वणमालाओ उल्लोगो १. उप्पि (ता)। णाई उड्ढं उच्चत्तेणं वण्णओ। २. जी० ३।२७७-२६७। तेसि णं मुहमंडवाणं चउद्दिसिं चत्तारि दारा ३. ससई जावासयंति (ता)। पण्णत्ता, ते णं दारा सोलस जोयणाई उड्ढे ४. एगं (ता)। उच्चत्तेणं अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं तावतियं ५. जी० ३।३७२ । चेव पवेसेणं सेसं तं चेव जाव वणमालाओ। ६. देवदारे असुरदारे णागदारे सुवण्णद्दारे (क,ख, एवं पेच्छाघरमंडवावि, तं चेव पमाणं जं मुह___ ग, ट, त्रि)। मंडवाणं, दारावि तहेव णवरि बहुमझदेसे ७.x (ता)। पेच्छाघरमंडवाणं अक्खाडगा मणिपेढियाओ ८. क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शषु, ८८६ सूत्रपर्यन्तं अजोयणप्पमाणाओ सीहासणा अपरिवारा ‘वण्णओ जाव वणमाला' इत्येव पाठो विद्यते । जाव दामा थूभाई चउद्दिसिं तहेव णवरि जाव वणमालाओ (ता); जी० ३।३०० । सोलसजोयणप्पमाणा सातिरेगाइं सोलस जोय६. जी० ३।३०१-३०६ । णाई उच्चा सेसं तहेव जाव जिणपडिमाओ। १०.८८७-८६८ सूत्राणां स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' चेइयरुक्खा तहेव चउद्दिसि तं चेव पमाणं जहा आदर्शेष एवं पाठभेदोस्ति-तेसि णं दाराणं विजयाए रायहाणीए णवरि मणिपेढियाए चउहिसिं चत्तारि मुहमंडवा पण्णत्ता, ते णं सोलसजोयणप्पमाणाओ। मुहमंडवा एगमेगं जोयणसतं आयामेण पण्णासं ११. जी० ३।३७२ । जोयणाई विक्खंभेणं साइरेगाइं सोलस जोय- १२. जी० ३।३७३-३७५ । Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६ भूमिभागो उप्पि अट्ठट्ठमंगलगा ॥ ८८. सिणं मुहमंडवाणं पुरओ पत्तेयं पत्तेयं पेच्छाघरमंडवे पण्णत्ते । मुहमंडवप्पमाणतो वत्तव्वता जाव' भूमिभागो || ८०. सिणं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं अक्खाड पण्णत्ते || ८१. सिणं वइरामयाणं अक्खाडगाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता । ताओ णं मणिपेढियाओ अट्ठ जोयणाई आयाम - विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ || ८२. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि सीहासणा विजयद्वसा अंकुसा दामा, उप्पि अमंगला ॥ ८६३. तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरतो पत्तेयं पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता । ताओ णं मणिपेढियाओ सोलस जोयणाई आयाम - विक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ ॥ जीवाजीवाभिगमे ८४. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं चेतियथूभे पण्णत्ते । ते णं चेतियथूभा सोलस जोयणाई आयाम - विक्खंभेणं, साइरेगाई सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, संखंक-कुंद-दगरय-अमयमहियफेणपुंजस ण्णिकासा अच्छा जाव पडिरूवा । उप्पि अमंगलगा जाव सहस्सपत्तहत्थगा ॥ ८५. सिणं चेतियथूभाणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसि चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णताओ । ताओ णं मणिपेढियाओ अट्ठ जोयणाई आयाम - विक्खंभेणं चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ ॥ ८६. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं चत्तारि जिणपडिमाओ जिणस्सेधप्पमाणमेत्तीओ सव्वरयणामईओ संपलियंकनिसण्णाओ थूभाभिमुहीओ चिट्ठति, तं जहा - उसभा वद्धमाणा चंदाणणा वारिसेणा ॥ ८७. सिणं चेतियथूभाणं पुरतो पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ । ताओ णं मणिपेढियाओ सोलस जोयणाई आयाम - विक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ ॥ ८८. तासि णं मणिपेढिया णं उप्पि पत्तेयं - पत्तेयं चेतियरुक्खे पण्णत्ते । ते णं चेतियरुक्खा अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, पमाणं वण्णावासों' य जहा विजयस्स जाव अट्ठमंगलगा ॥ १. जी० ३८८७,८८८ । २. जी० ३।३७८, ६७६ । ३. वण्णामासो ( ता ); 'तेसिणमयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते' इत्यादि चैत्यवृक्षवर्णनं विजयराज - धानीगतचैत्यवृक्षवद् भावनीयं यावल्लतावर्णन मिति । 'तेसि ण' मित्यादि, तेषां चैत्यवृक्षाणामुपरि अष्टावष्टी मङ्गलकानि बहवः कृष्णचामरध्वजा इत्यादि तावद् यावत् सहस्रपत्र हस्तकाः सर्वरत्नमया अच्छा यावत्प्रतिरूपाः (मवृ) । ४. जी० ३।३८६-३८६ Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ४३७ ८६६. तेसिणं चेतियरुक्खाणं पुरतो पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता। ताओ गं मणिपेढियाओ अट्ठ जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ॥ ६००. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं महिंदज्झए पण्णत्ते । ते णं महिंदज्झया सट्ठि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, जोयणं उव्वेधेणं, जोयणं विक्खंभेणं, वइरामय जाव' अट्ठट्ठमंगलगा ॥ ०१. तेसि णं महिंदज्झयाणं पुरतो पत्तेयं-पत्तेयं णंदा पुक्खरणी पण्णत्ता। ताओ णं गंदाओ पुक्खरणीओ एगमेगं जोयणसतं आयामेणं, पण्णासं जोयणाइं विक्खंभेणं, दस जोयणाई उव्वेधणं अच्छाओ' जाव तोरणा ॥ ६०२. तेसु' णं सिद्धायतणेसु पत्तेयं-पत्तेयं अडतालीसं मणोगुलियासाहस्सीओ' १.८६६-६०१ सूत्राणां स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' पुष्करिणीनां नामान्यपि स्वीकृतपाठाद् भिन्नानि आदर्शेषु एवं पाठभेदोस्ति–तेसि णं चेइय- पाठान्तरसदशानि दृश्यते। असौ च वाचनारुक्खाणं चउद्दिसिं चत्तारि मणिपेढियाओ भेदोवगन्तव्यः । अट्ठजोयणविक्खंभाओ चउजोयणबाहल्लाओ ६. मलयगिरिणा 'गुलिका, मनोगुलिका' इति सूत्रमहिंदज्झया चउसट्रिजोयणच्चा जोयणोववेधा द्वयं व्याख्यातम--'तेस् ण' मित्यादि. तेष जोयणविक्खंभा सेसं तं चेव । एवं चउद्दिसि सिद्धायतनेषु प्रत्येक-प्रत्येकमष्टचत्वारिंशत चत्तारि णंदापूक्खरिणीओ, णवरि खोयरस- गुलिकासहस्राणि गुलिका:-पीठिका अभिपडिपुण्णाओ जोयणसतं आयामेणं पन्नासं जोय- धीयन्ते, ताश्च मनोगुलिकापेक्षया प्रमाणत: णाई विक्खंभेणं दस जोयणाई उव्वेधणं सेसं तं क्षुल्लास्तासां सहस्राणि गुलिकासहस्राणि चेव । प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-पूर्वस्यां दिसि षोडश २. जी० ३।३६३,३६४ । सहस्राणि पश्चिमायां षोडशसहस्राणि दक्षिण३. मलयगिरिवृत्तौ अत्र एतत् सूचितमस्ति- स्यामष्टौ सहस्राणि उत्तरस्यामष्टी 'अच्छाओ सण्हाओ रययमयकूलाओ' इत्यादि सहस्राणि । 'तासु णं गुलियासु बहवे सुवण्णपूष्करिणीवर्णनं जगत्युपरिपुष्करिणीवद् वक्तव्यं रुप्पामया फलगा पन्नत्ता' इत्यादि विजयदेवनवरं 'खोदरसपडिपुण्णाओ' इति वक्तव्यम् । राजधानीगतसुधम्मसिभायामिव वक्तव्यं यावहा४. जी० ३।३६५,३६६ । मवर्णनम् ॥ ५. अत्र वृत्तिकृता पाठान्तरस्य सूचना कृतास्ति- 'तेसु ण' मित्यादि, तेषु सिद्धायतनेषु प्रत्येक इदमन्यदधिकं पुस्तकान्तरे दृश्यते-'तासि णं प्रत्येकमष्टचत्वारिंशत् मनोगुलिका सहस्राणि पुक्खरिणीणं चउद्दिसिं चत्तारि वणसंडा प्रज्ञप्तानि, गुलिकापेक्षया प्रमाणतो महतीतराः, पण्णत्ता, तं जहा ---पुरच्छिमेणं दाहिणणं पच्च- तद्यथा-पूर्वस्यां दिशि षोडश सहस्राणि, त्थिमेणं उत्तरेणं पश्चिमायां षोडशसहस्राणि, दक्षिणस्यामष्टी 'पूवेण असोगवणं दाहिणतो होइ सत्तपण्णवणं । सहस्राणि, उत्तरस्यामष्टौ सहस्राणि, एतास्वपि अवरेण चंपगवणं चूयवणं उत्तरे पासे ॥१॥ फलकनागदन्तकमाल्यदामवर्णनं प्राग्वत । वृत्तिकृता सूचितौ पाठभेदी (जी० ३।६१०) अस्यामेव प्रतिपत्तौ ३६५ सूत्रे वृत्तिकृता केवलं स्थानाङ्गेपि (४।३३६-३४३) उपलभ्येते तथा 'गुलिका' सूत्रमेव व्याख्यातमस्ति । ६०२-६०६ Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३८ जीवाजीवाभिगमै पण्णत्ताओ, तं जहा-पुरत्थिमेणं सोलस्स साहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं सोलस साहस्सीओ, दाहिणेणं अट्ठ साहस्सीओ, उत्तरेणं अट्ठ साहस्सीओ। तासु णं मणोगुलियासु' वहवे सुवण्णरुप्पमया फलगा जहा विजयारायहाणीओ॥ ६०३. तेसु णं सिद्धायतणेसु पत्तेयं-पत्तेयं अडतालीसं गोमाणसियासाहस्सीओ' पण्णत्ताओ तधेव', णवरं-धूवघडियाओ॥ ___१०४. तेसि णं सिद्धायतणाणं उल्लोया पउमलयाभत्तिचित्ता जाव' सव्वतवणिज्जमया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ६०५. तेसि णं सिद्धायतणाणं अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे सद्दवज्ज। ६०६. तेसि णं बहसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं वहमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णताओ। ताओ णं मणिपेढियाओ सोलस जोयणाइं आयाम-विक्खंभेणं, अट्र जोयणाई वाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ॥ ६०७. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं देवच्छंदए पण्णत्ते। ते णं देवच्छंदगा सोलस जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, सातिरेगाइं सोलस जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा।। ६०८. तेसु णं देवच्छंदएसु पत्तेयं-पत्तेयं अट्ठसयं जिणपडिमाणं तधेव जाव अट्ठसतं धूवकडुच्छुगाणं ॥ १०६. तेसि णं सिद्धायतणाणं उप्पि अट्ठमंगलगा। ६१०. तत्थ" णं जेसे पुरथिमिल्ले अंजणगपव्वते, तस्स णं चतुद्दिसि चत्तारि णंदाओ सूत्राणां स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शेषु एवं पाठभेदोस्ति-मणोगुलियाणं गोमाणसीण य अडयालीसं-२ सहस्साइं पुरत्थिमेणवि सोलस पच्चत्थिमेणवि सोलस दाहिणेणवि अट्ठ उत्तरेणवि अट्ठ साहस्सीओ तहेव सेसं उल्लोया भूमिभागा जाव बहमज्झदेसभागे मणिपेढिया सोलस जोयणा आयाम-विक्खंभेणं अटू जोयणाइं बाहल्लेणं। ७. मणगुलिया (ता)। १. मणुगुलियासु (ता)। २. जी० ३।३६७। ३. मणुगुलिया (ता)। ४. जी० ३।३६८ । ५. जी० ३।३०८। ६. जी० ३।२७५-२८४।। ७. ६०७-६०६ सूत्राणां स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शेषु एवं पाठ भेदोस्ति-तासि णं मणि पीढियाणं उप्पि देवच्छंदगा सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं सातिरेगाइं सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं सव्वरयणा अट्ठसय जिणपडिमाणं सव्वो सो चेव गमो जहेव वेमा णियसिद्धायतणस्स । ८. जी० ३४१५.४१६ । . जी० ३।२८६-२६१ । १०.६१०-६१३ सूत्राणां स्थाने 'क, ख,ग,ट,त्रि' आदर्शषु एवं पाठभेदोस्ति–तत्थ णं जेसे पुरच्छिमिल्ले अंजणपन्वते तस्स णं चउहिसि चत्तारि णंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–णंदुत्तरा य गंदा आणंदा णंदिवद्धणा। ताओ गंदापूक्खरिणीओ एगमेगं जोयणसतसहस्सं आयामविक्खंभेणं दस जोयणाइं उन्वेहेणं अच्छाओ सण्हाओ पत्तेयंपत्तेयं पउमवरवेदिया पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता तत्थ तत्थ जाव सोवाण (सोमाण Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहपडिवत्ती ४३६ साहह. पुक्खरणीओ पण्णत्ताओ-णंदिसेणा अमोहा य गोथूभा' य सुदंसणा। ताओ णं पुक्खरणीओ एगं जोयणसतसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, परिरओ य दस जोयणाइं उब्वेधेणं, अच्छाओ, वण्णओ' 'णवरं-वट्टाओ समतीराओ खोदोदगपडिपुण्णाओ" पत्तेयं-पत्तेयं वेइय-वणसंडपरिक्खित्ताओ', वण्णओ'। ६११. तासि णं पुक्खरणीणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं दधिमुहे पव्वते पण्णत्ते। ते णं दधिमुहा पव्वता चउढि जोयणसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेधेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठाणसंठिता दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, एक्कतीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं, सव्वफालियामया अच्छा जाव पडिरूवा, पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेदियापरिक्खित्ता, पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता, वण्णओ। १२. तेसि णं दधिमुहाणं पव्वताणं उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे" पण्णत्ते ।। १३. तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभागे पत्तेयं-पत्तेयं सिद्धायतणे पण्णत्ते । सच्चेव अंजणगसिद्धायतणवत्तव्वता जाव" अट्ठमंगलगा। ६१४. तत्थ णं जेसे दाहिणिल्ले अंजणगपव्वते, तस्स णं चउद्दिसिं चत्तारि गंदाओ -क) पडिरूवगा तोरणा । तासि णं पुक्खरि- प्रतौ 'वेइयवणसंड वण्णओ' इति पाठान्तरं जीणं बहमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं दहिमूह- 'वाओ समतीराओ एस विसेसो' इति पाठो पव्वए पण्णत्ते, ते णं दहिमुहपव्वया चउस ट्ठि लभ्यते । जोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं, एगं जोयण- ५. अतः परं वृत्तिकृता पाठान्तरं सूचितम्सहस्सं उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठाण- अत्रापीदमन्यदधिकं पुस्तकान्तरे दृश्यतेसंठिता दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, एक्क- 'तासि णं पुक्खरणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसि तीसं जोयणसहस्साइं छच्च तेवीसे जोयणसए चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा-पुरच्छिपरिक्खेवेणं पण्णता-सव्वरयणामया अच्छा मेणं दाहिणणं अवरेणं उत्तरेणं, पुवेणं असोगजाव पडिरूवा पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेइया वणं जाव चूयवणं उत्तरे पासे एवं शेषाञ्जनवणसंडधण्णओ वहसम जाव आसयंति पर्वतसम्बन्धिनीनामपि नन्दापुष्करिणीनां सयंति। सिद्धायतणं तं चेव पमाणं अंजण वाच्यम् । पव्वएस सच्चेव वत्तव्वया णिरवसेसं भाणियव्वं ६. जी० ३।२६५-२६७ । जाव उप्पि अट्ठट्ठमंगलगा। ७. एगसट्ठि (ता)। १. गोत्थुभा (ता)। ८. सव्वरयणामया (ठाणं ४।३४०)। २. त्रीणि योजनशतसहस्राणि षोडश सहस्राणि ६. जी० ३।२६३-२६६ । द्वे शते सप्तविंशत्यधिके त्रीणि गव्यूतानि १०. जी० ३।२७७-२६७; तस्य सशब्दवर्णनं तावद् अष्टाविंशं धनुःशतं त्रयोदशाङ्गुलानि अर्धा- वक्तव्यं यावद् बहवो 'देवा देवीओ य आसयंति गुलं च किञ्चिद् विशेषाधिकं परिक्षेपेण सयंति जाव विहरंति' (मवृ)। प्रज्ञप्ताः (म)। ११. जी० ३।८८४-६०६ । ३. जी० ३।२८६ । १२. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शेषु ४. चिन्हाडितपाठो वृत्त्याधारेण स्वीकृतः 'ता' एवं पाठभेदोस्ति-तत्थ णं जेसे दक्खिणिल्ले Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४० पुक्खरणीओ पण्णत्ताओ - णंदुत्तरा य णंदा, आणंदा गंदिवद्वणा । 'सेसं तहेव " ॥ ε१५. तत्थ णं' जेसे पच्चत्थिमिल्ले अंजणगपव्वते, तस्स णं चउद्दिसि चत्तारि णंदाओ पुक्खरणीओ पण्णत्ताओ - भद्दा ' य विसाला य कुमुदा पुंडरिंगिणी । 'सेसं तहेव" ॥ ε१६. तत्थ' णं जेसे उत्तरिल्ले अंजणगपव्वते, तस्स णं चउद्दिसि चत्तारि णंदाओ पुक्खरणीओ पण्णत्ताओ - विजया वेजयंती, जयंती अपराजिया । 'सेसं तहेव" ॥ ε१७. तत्थ' णं बहवे भवणवति वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणिया देवा तिहिं चाउमासिएहि पज्जोसवणाए य अट्ठविहाओ य महिमाओ करेंति । अण्णेसु य' बहूसु जिणजम्मणनिक्खमण णाणु पादपरिणेव्वाणमादिएसु देवकज्जेसु य देवसमितीसु य 'देवसमवासु य देवसमुदसु य" समुवागता" समाणा पमुदितपक्कीलिता अट्ठाहियारूवाओ" महामहिमाओ कमाणा सुसुणं विहरंति ॥ ६१८. अदुत्तरं " च णं गोयमा ! णंदिस्सरवरे दीवे चक्कवाल विक्खंभेणं बहुमज्झदेस अंजणपव्वते तस्स णं चउद्दिसि चत्तारि दाओ पुक्खरणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- भद्दा य विसाला य, कुमुया पुंडरिंगिणी तं चैव पमाणं तहेव दधिमुहा पव्वया तं चेव पमाणं जाव सिद्धायतणा । १. जेच्चेव पुरिमं जेणेव वि दधिमुहा सिद्धायतणवही सा इवि (ता); जी० ३।६१०-९१३ | २. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एवं पाठभेदोस्ति तत्थ णं जेसे पच्चत्थिमिल्ले अंजणपव्वए तस्स णं चउदिसि चत्तारि णंदापुक्खरणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा दिसेणा अमोहा य, गोत्थूभा य सुदंसणा । तं चेव सव्वं भाणियत्वं जाव सिद्धायतणा । ३. चंदा (ता) | ४. सच्चेव पुक्खरणीयमाणाइ विही जाव दधिमुहाणं (ता); जी० ३।६१०-९१३ । ५. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एवं पाठभेदोस्ति तत्थ णं जेसे उत्तरिल्ले अंजणपव्वते तस्त णं चउद्दिसि चत्तारि णंदापुक्खरणीओ तं जहा - विजया वेजयंती जयंती अपराजिया | सेसं तहेब जाव सिद्धायतणा सव्वा चेइयवण्णणा गातव्वा । ६. सच्चेव विही (ता); जी० ३।६१०-६१३ । जीवाजीवाभिगमे ७. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि, आदर्शेषु एवं पाठभेदोस्ति — तत्थ णं बहवे भवणवइवाणमंत रजोतिसियवेमाणिया देवा चाउमासियपाडिवसु संवच्छरिएसु वा अण्णेसु बहूसु जि जम्मणणिक्खमणणाणुप्पत्तिपरिणिव्वाणमादिसु य देवकज्जेसु य देवसमुदएसु य देवसमवाय देवपओयणेसु य एगंत सहिता समुवागता समाजा पमुदितपक्कीलिया अट्ठाहितारुवाओ महामहिमाओ करेमाणा पालेमाणा सुहंसुहेणं विहरति । ८. या (ता) अग्रे सर्वत्रापि । ६. देवसमुदसु य देवसमवासु य (ता) । १०. आगता ( मवृ ) | ११. अट्ठाहियाओ य (ता) । १२. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु रतिकरपर्वतालापको नैव विद्यते । मलयगिरिणापि सूचितमिदम् - रतिकरपर्वतचतुष्टयवक्तव्यता चित् पुस्तकेषु सर्वथा न दृश्यते । ताडपत्रीयादर्शे मलयगिरिवृत्तौ च रतिकर पर्वतालापक उपलब्धोस्ति । स्थानाङ्गेपि ( ४ | ३४४-३४८ ) नन्दीश्वरवरद्वीपवर्णने एष आलापक उपलभ्यते । दिगम्बर साहित्येपि एष उपलभ्यते (जैनेन्द्रसिद्धान्त कोश, भाग ३, पृष्ठ ५०३ ) । Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहपडिवत्ती ४४१ भाए चउसु विदिसासु चत्तारि रतिकरपव्वता' पण्णत्ता, तं जहा-उत्तरपुरथिमिल्ले रतिकरपव्वते, दाहिणपुरथिमिल्ले रतिकरपव्वते, दाहिणपच्चथिमिल्ले रतिकरपव्वते, उत्तरपच्चत्थिमिल्ले रतिकरपव्वते । ते णं रतिकरपव्वता 'दस जोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं, एग जोयणसहस्सं उव्वेहेणं", [दस जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दस गाउयसयाइं उव्वेहेणं ?] सव्वत्थ समा झल्लरिसंठाणसंठिया दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, एक्कत्तीसं जोयणसहस्साइं छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं, सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ६१६. तत्थ णं जेसे उत्तरपुरथिमिल्ले रतिकरपव्वते, तस्स णं चउद्दिसि ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवप्पमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा णंदुत्तरा णंदा उत्तरकुरा देवकुरा। कण्हाए कण्हराईए रामाए रामरक्खियाए। ६२०. तत्थ णं जेसे दाहिणपुरथिमिल्ले रतिकरपव्वते, तस्स णं चउद्दिसि सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवप्पमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा सुमणा सोमणसा अच्चिमाली मणोरमा । पउमाए सिवाए सचीए अंजूए । १. रतिकरगपव्वता (ता, ठाणं ४१३४४) सर्वत्र । एत्थ णं सक्कस्स दे ३ चउण्हं अग्गमहिसीणं २. ताडपत्रीयादर्श चिन्हाङ्कितपाठस्थाने केवलं चत्तारि रायहाणीओ पंतं चंदप्पभा सुरप्पभा 'पंच जोयणसयाइं उड़ढं उच्चत्तेणं' पाठोस्ति । सुंकप्पभा सुलसप्पभा। पयुमाए सिवाए सईए चिह्नाङ्कितः पाठो मलयगिरिवृत्त्यनुसारी अंजूए । तत्थ णं जेसे दाहिणपच्चथिमिल्ले वर्तते । एतौ द्वावपि पाठौ वाचनानन्तरगती रतिकरगपन्वते, तस्स णं चतु एत्थ णं सक्कस्स विद्यते अथवा केनापि कारणेन विपर्यस्त्ती देव चउण्हं अग्गमहि चत्तारि रायहाणीओ पं सञ्जातौ। कोष्ठकवतिपाठः स्थानाङ्गानुसारी तं णिम्मला पंवेवण्णा कलहंसा धतरदा। वर्तते, स एवात्र युक्तोस्ति । दशमे स्थानेपि अमलाए अच्छराए नवमियाए रोहिणीए । तत्थ अस्य संवादी पाठो दृश्यते--दस जोयणसह- णं जेसे उत्तरपच्च रति तस्स णं चउद्दिसि स्साई उड्ढं उच्चत्तेणं, दस गाउयसयाई उव्वे- एत्थ णं ईसाणस्स दे ३ चउण्हं अग्गम ४ रायहेणं (१०।४३)। दिगम्बरग्रन्थेष्वपि उच्च- हाणीओ पं तं अट्ठा सिद्धत्था य सव्वभूता ताया उद्वेधस्य च एतदेव प्रमाणं लभ्यते णिरामणी । कण्हाए कण्हराईए रामाए रामर(जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, भाग ३, पष्ट ५०३)। क्खिताए। तत्थ णं जेसे उत्तरपुर र तस्स णं ३. ६१६-६२२ सूत्राणां पाठो वृत्त्याधारेण चउद्दिसि एत्थ णं ईसा चउण्हं अग्गम चत्तारि स्वीकृतः । स्थानाङ्गेपि (४।३४५-३४८) अस्य रायहाणीओ पं तं वरदा वरदत्ता य गोत्थुभा संवादी पाठो लभ्यते । ताडपत्रीयादर्शेत्र भिन्ना य सुदंसणा । वसूए वसुमित्ताए वसुंधराए । वाचना दृश्यते-तत्थ णं जेसे दाहिणिल्ले ४. समणा (ठाणं ४।३४६) । पुरथिमिल्ले रतिकरगपवते, तस्स णं चउहिसि Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४२ जीवाजीवाभिगमे २१. तत्थ णं जेसे दाहिणपच्चथिमिल्ले रतिकरपव्वते, तस्स णं चउद्दिसि सक्कस्स देविंदस्स देवरणो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवप्पमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा भूता भूतवडेंसा गोथूभा सुदंसणा । अमलाए अच्छराए णवमियाए रोहिणीए॥ ६२२. तत्थ णं जेसे उत्तरपच्चत्थिमिल्ले रतिकरपव्वते, तस्स णं चउद्दिसिमीसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवप्पमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा रयणा रतणुच्चया सव्वरतणा रतणसंचया । वसूए वसुगुत्ताए' वसुमित्ताए वसुंधराए॥ ६२३. केलास-हरिवाहणा यत्थ दो देवा महिड्ढीया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । से तेणठेणं 'जाव' णिच्चे" ।। ६२४. जोतिसं संखेज। णंदिस्सरोदसमुद्दाधिगारो ६२५. णंदिस्सरवरण्णं दीवं णंदिस्सरोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं' चिट्ठइ। जच्चेव खोदोदसमुदस्स वत्तव्वता सच्चेव इहं पि अट्ठसाहिया। सुमण-सोमणसा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवति। ६२६. चंदादि संखेज्जा॥ अरुणादिदीवसमुद्दाधिगारो ६२७. णंदिस्सरोदण्णं समुदं अरुणे णामं दीवे वट्टे, खोदवरदीवं वत्तव्वता" अट्ठसहिता १. 'ता' प्रतौ एतत्पदमनुपलब्धमस्ति, मलयगिरि- दीवं गंदीसरोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागार वृत्तौ 'वसुप्राप्तायाः' इतिपदोल्लेखो मुद्रित- संठाणसंठिते जाव सव्वं तहेव अट्ठो जो खोदोदवृत्ती हस्तलिखितवृतित्रयेपि विद्यते, किन्तु गस्स जाव सुमणसोमणसभद्दा यत्थ दो देवा स्थानाङ्गभगवत्योः सन्दर्भ ज्ञायते एतत्पदं महिड्ढीया जाव परिवसंति सेसं तहेव जाव समीचीनं नास्ति । अत्र 'वसुगुत्ताए' इति पदं तारगं। युज्यते । द्रष्टव्यं ठाणं ४।३४८,८।२८; भ० ७. सं० पा०-वट्टे जाव चिट्ठति । १०६६)। वृत्तिकृता यादृशः पाठो लब्धस्ता- ८. जी० ३।८७७-८७६ । दृश एव उल्लिखितः। ६. णंदिस्सरवरोदं णं (ता); ६२७-६५४ सूत्राणां २. कइलास (क,ख,ग,ट,त्रि) । स्थाने अस्माभिः 'ता' प्रते वृत्तेश्चाधारेण पाठः ३. जी० ३।३५० । स्वीकृतः । अन्यादर्शगताः पाठाः पाठान्तररूपेण ४. णंदिस्सरवरे दीवे २ (ता)। गहीताः सन्ति, ते सूत्राङ्कानुसारेण यथास्थानं ५. जी० ३८५५ । परिलक्षितव्याः---णंदीसरोदं समुदं अरुणे णाम ६. ६२५,९२६ सूत्रयोः स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' गंदीसरोदं समूदं अरुणे णामं दीवे वट्टे वल आदर्शष एवं पाठभेदोस्ति-णंदिस्सरवरणं यागार जाव संपरिक्खित्ता णं चिति । अरुणे Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्विहपडिवत्ती सा इहं च, णवरं' – पव्वतगादी सव्ववइरामया । असोग-वीतसोगा यत्थ दो देवा || ε२८. अरुणण्णं' दीवं अरुणोदे णामं समुद्दे वट्टे, खोदोदसरिसो' गमो सुभद्द-सुमणभद्दा यथ दो देवा ॥ २६. अरुणोदणं समुद्दं अरुणवरे णामं दीवे वट्टे, सोच्चेव गमों, णवरं - अरुणवरभद्द-अरुणवरमहाभद्दा यत्थ दो देवा ॥ ε३०. अरुणवरणं' दीवं अरुणवरोदे णामं समुद्दे वट्टे जाव चिट्ठति । तधेव", णवरं - अरुणवर-अरुण महावरा यत्थ दो देवा ।। ३१. अरुणवरोदणं' समुदं अरुणवरोभासे णामं दीवे वट्टे जाव चिट्ठति । खोददीवगमों, णवरं - अरुणवरोभासभद्द- अरुणवरोभासमहाभद्दा यत्थ दो देवा || ३२. अरुणवरोभासण्णं" दीवं अरुणवरोभासे णामं समुद्दे वट्टे, सच्चेव खोदोदसमुद्दवत्तव्वता", णवरं - अरुणवरोभासवर - अरुणवरोभासमहावरा यत्थ दो देवा ।। ६३३. कुंडले" दीवे कुंडले समुद्दे", कुंडलवरे दीवे कुंडलवरे समुद्दे, कुंडलवरोभासे दीवे णं भंते ! दीवे किं समचक्कवालसंठिते विसमचक्कवालसंठिए ? गोयमा ! समचक्कवालसंठिते नो विसमचक्कवालसंठिते, केवतियं चक्कवालसंठिते ? संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं संखेज्जाई जोयणसयसहस्साइं परिक्खेवेणं पण्णत्ते, पउमवरवणसंडदारा दारंतराय तहेव संखेज्जाई जोयणसतसहस्साइं दारंतरं जाव अट्ठो, वावीओ खोतो दगडहत्थाओं उप्पातपव्वयका सव्ववइरामया अच्छा, असोग वीतसोगा य एत्थ दुवे देवा महिड्ढीया जाव परिवति से तेण० जाव संखेज्जं सव्वं । १०. जी० ३।८७४-८७६ । १. वृत्तौ 'नवरमत्र वाप्यादयः क्षीरो (क्षोदो) दक परिपूर्णा:' इति उल्लिखितमस्ति किन्तु एतत् पूर्व प्रतिपादितमेव । द्रष्टव्यं जी० ३१८७५ | २. अरुणणं दीवं अरुणोदे णामं समुद्दे तस्स वि तहेव परिक्खेवो अट्ठो खोतोदगे णवर सुभद्द सुमणभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया सेसं तहेव । ३. जी० ३।८७७-८७६ । ४. अरुणोदगं समुद्द अरुणवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाण° तहेव संखेज्जगं सव्वं जाव ४४३ अट्ठो खोयोदगपsिहत्थाओ उप्पायपव्वतया सव्ववइरामया अच्छा, अरुणवरभद्द अरुणवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया । ५. जी० ३१८७४-८७६ । ६. एवं अरुणवरोदेवि समुद्दे जाव देवा अरुणवरअरुणमहावरा य एत्थ दो देवा सेसं तहेव ।। ७. जी० ३।८७७-८७६ । ८. अरुणवरोदण्णं समुद्दं अरुणवरावभासे णामं दीवे वट्टे जाव देवा अरुणवरावभासभद्दारुणवराभास महाभद्दा यत्थ दो देवा महिड्ढीया । ६. जी० ३।८७४-८७६ । १०. एवं अरुणवरावभासे समुद्दे णवरि देवा अरुणवरावभासवरारुणवरावभासमहावरा एत्थ दो देवा महिढीया । ११. जी० ३१८७७-८७६ १२. कुंडले दीवे कुंडलभद्दकुंडलमहाभद्दा ( कुंडकुंडलभद्दा --- क) दो देवा महिड्ढीया । कुंडलो समुद्दे चक्खु सुभचक्खुकंता एत्थ दो देवा म० । कुंडलवरे दीवे कुंडलवरभद्दकुंडलवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया, कुंडलवरोदे समुद्दे कुंडलवर महाकुंडलवरा एत्थ दो देवा म० | कुंडलवरावभासे दीवे कुंडलवरावभासभद्दकुंडलवरावभासमहाभद्दा यत्थ दो देवा । Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे कुंडलवरोभासे समुद्दे, एताइं नामाई । देवा - कुंडले दीवे 'कुंडलभद्द - कुंडल महाभद्दा " यत्थ दो देवा । कुंडले समुद्दे चक्खुसुभचक्खुकंता यत्थ दो देवा । कुंडलवरे दीवे कुंडलवरभद्दकुंडलवरमहाभद्दा यत्थ दो देवा । कुंडलवरे समुद्दे कुंडलवर - कुंडलमहावरा यत्थ दो देवा । कुंडलवरोभासे दीवे कुंडलवरोभासभद्द - कुंडलवरोभासमहाभद्दा यत्थ दो देवा । कुंडलवरोभासे समुद्दे कुंडलवरोभासवर-कुंडलवरोभासमहावरा यत्थ दो देवा ।। ३४. एवं रुपए दीवे रुयए समुद्दे, रुयगवरे दीवे रुयगवरे समुद्दे, रुयगवरोभासे * दीवे रुयगवरोभासे समुद्दे, ताओ चैव वत्तव्वताओ", णवरं - रुयए दीवे सव्वट्ट-मणोरमा यत्थ दो देवा । रुपए समुद्दे सुमण-सोमणसा यत्थ दो देवा । रुयगवरे दीवे रुयगवरभद्दरुयगवरमहाभद्दा यत्थ दो देवा । रुयगवरे समुद्दे रुयगवर - रुयगवरमहावरा यत्थ दो देवा । रुयगवरोभासे दीवे रुयगव रोभासभद्द-रुयगवरोभासमहाभद्दा यत्थ दो देवा । रुगवरोभासे समुद्दे रुयगवरोभासवर-रुयगव रोभासमहावरा यत्थ दो देवा' ।। ९३५. हारे दीवे हारे समुद्दे, हारवरे दीवे हारवरे समुद्दे, हारवरोभासे दीवे हारवरो ४४४ कुंडलवरोभासोदे समुद्दे कुंडलवरोभासवरकुंडलवरोभासमहावरा एत्थ दो देवा म० जाव पलिओ मद्वितीया परिवसंति । १३. एवं कुण्डलो द्वीपः कुण्डलः समुद्रश्च त्रिप्रत्यवतारो वक्तव्यः (मवृ) । १. कुंडल - कुंडलभद्दा (ता) । २. कुंडलवरोभासं णं समुदं रुचगे णामं दीवे वट्टे वलया जाव चिट्ठति, किं समचक्क विसमचक्कवाल ? गोयमा ! समचक्कवाल नो विसमचक्कवाल संठिते, केवतियं चक्कवाल पण्णत्ते ? सव्वट्ट मणोरमा एत्थ दो देवा सेसं तहेव । गोदे नामं समुद्दे जहा खोतोदे समुद्दे संखेज्जाई जोयण सतसहस्साइं चक्कवाल संखेज्जाई जोयणसतसहस्साइं परिक्खेवेणं दारा दारंतरंपि संखेज्जाई जोतिसंपि सव्वं संखेज्जं भाणियव्वं, अट्टोवि जहेव खोदोदस्स नवरि सुमणसोमणसा एत्थ दो देवा महिढीया तव रुयगाओ आढत्तं असंखेज्जं विक्खंभा परिक्खेवो दारा दारंतरं च जोइस च सव्वं असंखेज्जं भाणियव्वं । रुयगोदण्णं समुदं रुयगवरं णं दीवे वट्टे रुयगवरभद्दरुयगव र महाभद्दा एत्थ दो देवा रुयगवरोदे रुयगवररुयगवरमहावरा एत्थ दो देवा महिड्ढीया । रुयगवरावभासे दीवे रुयगवरावभासभयगवराव भासमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया । गवरावभासे समुद्दे रुयगवरावभासवररुयगवरावभासमहावरा एत्थ । ३. रुयगवरो भासवरे (ता) । ४. रुयगवरोभासवरे (ता) । ५. जी० ३।८७४-८७६ । ६. अस्यानन्तरं वृत्तिकृता एका टिप्पणी कृतास्ति -- एतावता ग्रन्थेन यदन्यत्र पठ्यतेजंबुद्दीवे लवणे धायइ कालोय पुक्खरे वरुणे । खीरधयखोयनंदी अरुणवरे कुंडले रुयगे ||१|| इति तद्भावितम् । अत ऊद्ध वं तु यानि लोके शङ्खध्वजकलशश्रीवत्सादीनि शुभानि नामानि तन्नामानो द्वीपसमुद्राः प्रत्येतव्याः, सर्वेपि च त्रिप्रत्यवताराः, अपान्तराले च भुजगवरः कुशवरः कौञ्चवर इति । द्रष्टव्यं प्रस्तुतागमस्य ३ । ७७५ सूत्रं तथा अनुयोगद्वारस्य १८५ सूत्रम् । ७. ६३५-३७ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एवं पाठो विद्यते -- हारद्दीवे हारभद्द - हारमहाभद्दा एत्थ । हारसमुद्दे हारवरहारवरमहावरा एत्थ दो देवा महिड्ढीया । हारवरे दीवे हारवरभद्दहारवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया । हारवरोए समुद्दे हारवरहारवर Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउब्विहपडिवत्ती भासे समुद्दे, ताओ च्चेव वत्तव्वताओ, णवरं-हारे दीवे हारभद्द-हारमहाभद्दा यत्थ दो देवा। हारे समुद्दे हारवर-हारमहावरा यत्थ दो देवा। हारवरे दीवे हारवरभद्द-हारवरमहाभद्दा यत्थ दो देवा। हारवरे समुद्दे हारवर-हारवरमहावरा यत्थ दो देवा । हारवरोभासे दीवे हारवरोभासभद्द-हारवरोभासमहाभद्दा यत्थ दो देवा । हारवरोभासे समुद्दे हारवरोभासवरहारवरोभासमहावरा यत्थ दो देवा ॥ _____६३६. एवं सेसाभरणाणवि' तिपडोयारो भेदो भाणियन्वो जाव कणगरयणमुत्तावली॥ ६३७. एवं वत्थादीणं सव्वेसि तिपडोयारं। वत्थं--आयिणादि, गंधा-कोट्टादि, उप्पलादीणि वि तिपडोयारं, तिलगादीण वि रुक्खाणं, पुढवादीणं छत्तीसाए पदाणं तिपडोयारं, णिधीणं वि तिपडोयारं, चोद्दसण्हं रयणाणं तिपडोयारं चुल्ल हिमवंतादीणं वासधरपव्वताणं, पउमादीणं' सोलसण्हं दहाणं, गंगासिंधुआदीणं महाणदीणं अंतरणदीण य, कच्छादीण वि बत्तीसण्डं विजयाणं, मालवंतादीणं चउण्डं वक्खारपव्वयाणं, सोहम्मादीणं दुवालसण्हं कप्पाणं, सक्कादीणं दसण्हं इंदाणं, 'देवकुर-उत्तरकुराणं, मंदरस्स, आवासाणं", चुल्ल हिमवंतादीणं बारसण्हं कूडाणं, कत्तियादीणं अट्ठावीसण्हं णक्खत्ताणं, चंदसूराणं, सव्वेसि तिपडोयारं जाव सूरद्दीवे ॥ ६३८. 'सूरवरोभासण्णं समुदं देवे णामं दीवे वट्टे जाव चिट्ठति । तधेव णवरंमहावरा एत्थ । हारवराभासे दीवे हारवराव- आदर्शेषु एवं पाठो विद्यते-देवदीवे दीवे दो भासभद्दहारवरावभासमहाभद्दा एत्थ । हार- देवा महिड्ढीया देवभद्ददेवमहाभद्दा एत्थ वरावभासोए समुद्दे हारवरावभासवरहार- देवोदे समुद्दे देववरदेवमहावरा एत्थ जाव वरावभासमहावरा एत्थ । एवं सम्वेवि तिपडो- सयंभूरमणे दीवे सयंभूरमणभद्दसयंभूरमणमहायारा तव्वा जाव सूरवरोभासोए समुहे, भद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया । सयंभुरमणण्णं दीवेसु भद्दनामा वरनामा होति उदहीस, जाव दीवं सयंभुरमणोदे नामं समुद्दे वट्टे वलया पच्छिमभावं च खोतवरादीसु सयंभूरमणपज्ज- जाव असंखेज्जाई जोयणसतसहस्साई परिक्खेतेसु वावीओ खोओदगपडिहत्थाओ पव्वयका य _वेणं जाव अट्ठो, गोयमा ! सयंभुरमणोदए सव्ववइरामया। उदए अच्छे पत्थे जच्चे तणुए फलिहवण्णाभे १. °णाणिवि (ता)। पगतीए उदगरसेणं पण्णत्ते, सयंभुरमणवरसयं२. कणगणितजालग (ता)। भुरमणमहावरा इत्थ दो देवा महिड्ढीया. सेसं ३. पयुमादीणं (तः)। तहेव जाव असंखेज्जाओ तारागणकोडिकोडीओ ४. देवकुरउत्तरकुरमंदिरेसु णेरइयादीसु प्क आवा सोभेसु वा ३। सेसु (ता); वृत्तौ ‘णेरइयादीसु' इति पाठो ६. सूरणं दीवं (ता)। नास्ति व्याख्यातः । अनुयोगद्वारेऽपि ७. जी० ३१८४६-८५१; ६५२। मलयगिरिणा (१८५४) 'कुरु-मंदर आवासा' इति पाठो वत्ती देवे णं भंते ! दीवे' इति सूत्रमल्लिखितं विद्यते । अस्मिन्नपि णेरइय' पदस्य सङ्ग्रहो ततश्चैका टिप्पणी कृता-इदं तु सूत्रं बहुषु नास्ति, तेनास्माभिमले न स्वीकृतः ।। पुस्तकेषु न दृश्यते केषुचित् 'तहेवं' इत्यतिदेश ५. ६३८-६५२ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' इति लिखितम्। Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ३६. कहि णं भंते ! देवस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! देवदीवपुरत्थिमपेरते देवसमुद्दपुरत्थिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं देवस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते, पमाणं वण्णओ य भाणियव्वो जाव' विहरति ॥ ४४६ ४०. कहिणं भंते! विजयस्स देवस्स विजया णामं रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! विजयस्स दारस्स पच्चत्थिमेणं देवदीत्रं तिरियमसंखेज्जाई जोयणसयसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं विजयस्स देवस्स विजया णामं रायहाणी पण्णत्ता जाव एमहाणुभागे विजए देवे, विज देवे ॥ ε४१. एवं वेजयंत-जयंत- अपराइतादी, अट्टो || ६४२. जोतिसं सव्वं जहा ' रुयगदीवस्स णवरं - देवभद्द - देवमहाभद्दा यत्थ दो देवा ।। ९४३. देवण्णं दीवं देवोदे णामं समुद्दे वट्टे जाव चिट्ठति जाव - ४४. कहि णं भंते! देवोदस्स समुहस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! देवसमुद्दपुरत्थिमपेरते णागदीवपुरत्थिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं देवोदस्स समुदस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते जाव विहरति । रायहाणी विजयदारस्स पच्चत्थिमेणं देवसमुद्दं तिरियमसंखेज्जाइं जोयणसयसहस्साइं जाव एम्महिड्ढीए विजए देवें ॥ ४५. जहा देवदीवे तहा णागदीवे, जहा देवसमुद्दे तहा णागसमुद्दे || ९४६. एवं [ जाव' ? ] सयंभु रमणसमुद्दे णवरं - सयंभुरमणस्स उदए जहा पुक्खरोदस्स । सयंभु रमणे' पदेसा ण भण्णंति, जीवाणं उववातो ण भण्णति ॥ ε४७. देवे' णागे ं ‘जक्खे भूते" सयंभुरमणे एक्केक्के च्चेव भाणितव्वे तिपडोगारं ८. वृत्तिकृता 'देवद्वीपस्य द्वारसङ्ख्यासम्बन्धिसूत्र मपि व्याख्यातम् । १. जी० ३।३०८-३५० । २. जी० ३।३५१-५६५ । ३. द्रष्टव्यं जी० ३।६५२ । ४. जी० ३१८४६-८५१; ६५२ । ५. वृत्तौ विजयद्वारवक्तव्यतानन्तरं एवं व्याख्यातमस्ति — एवं वैजयन्तजयन्तापराजितद्वारवक्तव्यतापि भावनीया, नामान्वर्थचिन्तायामपि देववरदेव महावरौ देवी, शेषं तथैव यथा देवो द्वीपः । किन्तु ताडपत्रीयादर्शे अस्या व्याख्यायाः पाठो नैव दृश्यते । ६. नवरं - नागे द्वीपे नागभद्रनागमहाभद्री, यथा देवः समुद्रः तथा नाग: समुद्र:, नवरं - नागसमुद्रे नागवरनागमहावरौ (मवृ) । ७. वृत्तौ अतः पूर्व यक्ष-भूतसंज्ञकं द्वीपद्वयं समुद्र - द्वयं च व्याख्यातमस्ति एवं यक्षादयोपि द्वीप - समुद्रा वक्तव्याः नवरं - यक्षे द्वीपे यक्षभद्रयक्षमहाभद्रो देवी, यक्षे समुद्रे यक्षवरयक्षमहावरी, भूते द्वीपे भूतभद्रभूत महाभद्री, भूते समुद्रे भूतवरमहाभूतवरौ । ततश्च स्वयम्भूरमणस्य व्याख्यानं विद्यते - स्वयम्भूरमणे द्वीपे स्वयम्भूरमण भद्र स्वयम्भूरमणमहाभद्री स्वयम्भूरमणे समुद्रे स्वयम्भूवर स्वयंभूमहावरौ । ८. सतंभु (ता) | ६. मलयगिरिणा 'देवे नागे' इत्यादि तथा चाह इत्युल्लेखपूर्वकं उद्धृतं मूलटीका - चूर्णिव्याख्यानमपि समुद्धृतम् - तथा चाह 'देवे नागे जक्खे भूए य सयंभूरमणे अ एक्केके भाणियव्वो ।' मूलटीकाकारोप्याह - 'देवादयोन्त्या एकाकारा' । इति, चूर्णिकारोप्याह - 'देवे नागे जक्खे भूए य सयंभूरमणे एतेन्तिमाः पञ्च एकैकाः प्रतिपत्तव्याः । १०. जाते (ता) । ११. भूते जक्खे (ता) । Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती णत्थि ॥ ____६४८. णंदिस्सरादीणं सयंभुरमणपज्जवसाणाणं' अट्ठ[चिंताए?'] बावीओ खोतोदगपडिहत्थाओ उप्पातपव्वतगादी सव्ववइरामया ॥ ६४६. ‘णंदिस्सरादीणं भूतपज्जवसाणाणं समुद्दाणं अट्ठ [चिंताए ?] खोदसरिसं उदगं" सयंभुरमणसमुदस्स पुक्खरोदसरिसं ।। ६५०. अरुणादीया [दीव? ] समुद्दा तिपडोयारा जाव सूरा, सेसा पंच एगभेया-देवे दीवे देवे समुद्दे, नागे' दीवे नागे समुद्दे, जखे दीवे जखे समुद्दे, भूते दीवे भूते समुद्दे, सयंभुरमणे दीवे सयंभुरमणे समुद्दे ॥ ५१. देवे दीवे देवभद्द-देवमहाभद्दा देवा, देवे समुद्दे देववर-देवमहावरा देवा । एवं जाव' सयंभुरमणे समुद्दे सयंभुवर-सयंभुमहावरा देवा ॥ ६५२. रुयगादीणं दीवसमुद्दाणं विक्खंभ-परिक्खेव-दारंतरजोतिसं च असंखेज्ज। ___ दीवसमुद्दपरिमाणाधिगारो ६५३. केवतिया णं भंते ! जंबुद्दीवा दीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा जंबुद्दीवा दीवा पण्णत्ता। एवं जाव चंदसूरा असंखज्जा ।। ५४. केवतिया णं भंते ! देवा दीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! एगे देवदीवे पण्णत्ते। दस वि एगागारा पण्णत्ता ।। लवणादिसमुद्द-उदयरसाधिगारो ६५५. 'लवणस्स' णं भंते ! समुदस्स उदए" केरिसए आसादेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! खारे कडुए" जाव" णण्णत्थ तज्जोणियाणं सत्ताणं ।। १. सयंभुरमणं जाव अवसाणाणं (ता) । एगे देवे दीवे पण्णत्ते एगे देवोदे समुद्दे २. अन्वर्थचिन्तायाम् (मवृ) । पण्णत्ते, एवं जागे जक्खे भूते जाव एगे सयं३. अन्वर्थचिन्तायाम् (मवृ)। भूरमणे दीवे एगे सयंभूरमणसमुद्दे णामधेज्जेणं ४. खोदोदगादीणं सयंभुरमणावसाणाणं समुद्दाणं पण्णत्ते। अट्टि खोतोदसरिसं उदगं (ता)। ८. कति (मवृ)। ५. णाते (ता)। ६. ६५५-६६२ सूत्राणां स्थाने यथावकाशं 'क,ख, ६. द्रष्टव्यं ९४६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ग, ट, त्रि' गताः पाठभेदाः परिभावनीयाः, ७. ६५३,६५४ सूत्रयोः स्थाने 'क, ख, ग,ट, त्रि' यथा-लवणस्स णं भंते ! समुदस्स उदए आदर्शेष एवं पाठभेदोस्ति-केवइया णं भंते ! केरिसए अस्साएणं पण्णत्ते? गोयमा ! जंबुद्दीवा दीवा णामधेज्जेहिं पण्णता? लवणस्य उदए आइले रइले लिंदे लवणे कडए गोयमा ! असंखेज्जा जंबुद्दीवा २ नामधेज्जेहिं अपेज्जे बहणं दुपयचउप्पयमिगपसुपक्खिसरिसपण्णत्ता, केवतिया णं भंते ! लवणसमुद्दा २ वाणं, णण्णत्थ तज्जोणियाणं सत्ताणं । पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा लवणसमुद्दा १०. लवणे णं भते ! (ता)। नामधेज्जेहिं पण्णत्ता, एवं धायतिसंडावि, एवं ११. खडा (ता)। जाव असंखेज्जा सूरदीवा नामधेज्जेहि य । १२. जी० ३।७२१ । Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ६५६. कालोयस्स' णं पुच्छा । गोयमा ! आसले मासले जाव' पगतीए उदगरसे गं पण्णत्ते ॥ ૪૪. ६५७. पुक्खरोदस्स' णं पुच्छा । गोयमा ! पुक्खरोदस्स उदए अच्छे पत्थे जाव पगती उदगरसे णं पण्णत्ते ॥ ६५८. वरुणोदस्स' णं भंते ! समुद्दस्स केरिसए अस्सादे णं पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहानामए चंदप्पभाति वा जहा ' हेट्ठा ॥ ६५६. खीरोदस्स' णं पुच्छा । गोयमा ! से जहानामए रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चाउरक्के गोक्खीरे जाव' एतो इट्टतराए || ६६०. घयोदस्स' णं पुच्छा । गोयमा ! जहाणामते सारइयस्स गोघयवरस्स मंडे जाव" एत्तो मणामतराए चेव आसादे णं पण्णत्ते ॥ ६६१. खोतोदस्स" णं भंते ! समुद्दस्स उदए केरिसए आसाए णं पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहानामए उच्छूर्ण जाव" एत्तो इट्टतराए || १. कालोयस्स णं भंते ! समुद्दस्स उदए केरिसए अस्साएणं पण्णत्ते ? गोयमा ! पेसले आसले मासले कालए मासरासिवण्णाभे पगतीए उदगरसेणं पण्णत्ते । २. जी० ३।८१६ । ३. पुक्खरोदगस्स णं भंते! समुहस्स उदए केरिसए अस्साएणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अच्छे चेत फालिवणाभे पगतीए उदगरसेणं पण्णत्ते । ४. जी० ३।८५४ । ५. वरुणोदस्स णं भंते ! गोयमा ! से जहाणामए - पत्तासवेति वा चोयासवेति वा खज्जूरसारेति वा मुद्दियासारेति वा सुपक्कखोतरसेति वा मेति वा काविसायणेति वा चंदप्पभाति वा मणसिलाति (मणिसलागाति - क, ख, ट) वा वरसीधूति वा पवरवारुणीति वा अट्ठपिट्ठपरिणिट्टिताति वा जंबुफलका लिया वरपसण्णा उक्कोसमद्दप्पत्ता ईसिउट्ठावलंबिणी ईसितं त्रच्छिकरणी ईसिवोच्छेयकरणी आसला मासला पेसला वण्णेणं उववेता जाव णो तिणट्ठे समट्ठे, वारुणोदए इत्तो इट्टतरए चेव जाव अस्साए प० । ६. जी० ३।६६० । ७ खीरोदस्स णं भंते ! उदए रिसए अस्साएणं पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहाणामए - रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चाउरक्के गोखीरे पयत्तदग्गिक ढिते आउत्तखंडमच्छंडितोववेते वण्णेणं उववेते जाव फासेण उववेए, भवे एयारूवे सिया ? णो तिणट्ठे समट्ठे, गोयमा ! खीरोयस्स एतो इट्ठ जाव अस्साएणं पण्णत्ते । ८. जी० ३।८६६ ॥ ६. घतोदस्स णं से जहाणामए सारतिकस्स गोघयवरस्स मंडे सल्ल इकण्णिया रपुप्फवण्णाभे सुकढित उदारसज्भवीसंदिते वण्णेणं उववेते जाव फासेण य उववेए भवे एयारूवे सिया ? णो तिट्ठे समट्ठे, इत्तो इट्ठयरो | १०. जी० ३।८७२ । ११. खोदोदस्स से जहाणामए उच्छूण जच्चपुंडकाण हरियाल पडराणं भेरुंडुच्छूण वा कालपोराणं तिभागनिव्वाडियवाडगाणं बलवगणरजंत परिगालियमित्ताणं जे य रसे होज्जा वत्थपरिपूए चाज्जातगसुवासिते अहियपत्थे लहुए वण्णेणं उववेए जाव भवेयारूवे सिया ? नो तिणट्ठे समट्ठे एत्तो इट्ठयरा । १२. जी० ३।८७८ । Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ४४६ ६६२. जहा' खोतो तहा सेसा वि । सयंभुरमणस्स जहा पुक्खरोदस्स ॥ । ६६३. कति णं भंते ! समुद्दा पत्तेयरसा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि समुद्दा पत्तेयरसा पण्णत्ता, तं जहा-लवणे वरुणोदे खीरोदे घयोदे ॥ ६६४. कति णं भंते ! समुद्दा पगतीए उदगरसा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ समुद्दा पगतीए उदगरसा पण्णत्ता, तं जहा-कालोए' पुक्खरोदे सयंभुरमणे । अवसेसा समुद्दा उस्सण्णं खोतरसा पण्णत्ता'। ___समुद्देसु जीवाधिगारो ६६५. कति णं भंते ! समुद्दा बहुमच्छकच्छभाइण्णा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ समुद्दा बहुमच्छकच्छभाइण्णा पण्णत्ता, तं जहा-लवणे कालोए' सयंभरमणे । अवसेसा समुद्दा अप्पमच्छकच्छभाइण्णा । ‘णो च्चेव णं णिम्मच्छकच्छभा" पण्णत्ता समणाउसों ! ।। KEE. लवणे णं भंते ! सम्झे कति मच्छजातिकुलकोडिजोणीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्त मच्छजातिकुलकोडीजोणीपमुहसतसहस्सा पण्णत्ता ।। ६६७. कालोए णं नव॥ ६६८. सयंभुरमणे पुच्छा अद्धतेरस मच्छजातिकुलकोडीजोणीपमुहसतसहस्सा पण्णत्ता॥ ६६६. लवणे णं भंते! समुद्दे मच्छाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं पंच जोयणसयाइं॥ ६७०. कालोए णं सत्त जोयणसताई ॥ ६७१. सयंभूरमणे जोयणसहस्सं ॥ दीवसमुद्दाणं नामधेज्जादि अधिगारो ६७२. केवतिया णं भंते ! दीवसमुद्दा नामधेज्जेहिं पण्णत्ता ? गोयमा ! जावतिया लोगे सुभा णामा सुभा वण्णा सुभा गंधा सुभा रसा सुभा फासा एवतिया दीवसमुद्दा नामधेज्जेहिं पण्णत्ता॥ ९७३. केवतिया णं भंते ! दीवसमुद्दा उद्धारेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जावतिया अड्ढाइज्जाणं उद्धारसागरोवमाणं उद्धारसमया एवतिया दीवसमुद्दा उद्धारेणं" पण्णत्ता ॥ ७४. दीवसमुद्दा णं भंते ! किं पुढविपरिणामा आउपरिणामा जीवपरिणामा पोग्गलपरिणामा ? गोयमा ! पुढविपरिणामावि आउपरिणामावि जीवपरिणामावि पोग्गल१. एवं सेसगाणवि समुद्दाणं भेदो जाव ६. अवसेसा णं (ता) । सयंभुरमणस्स, णवरि अच्छे जच्चे पत्थे जहा ७. x (क,ख,ग,ट,त्रि) ; कच्छभाइण्णा (ता)। पुक्खरोदस्स । ८. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि)। २. कालोयणे (ता)। ६. जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जति उक्कोसेणं दस ३. पण्णत्ता समणाउसो (क, ख, ग, ट, त्रि)। जोयणसताई (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४. एतत् सूत्रं 'ता' प्रतौ ९७१ सूत्रस्य अनन्तरं १०. उद्धारसमएणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। विद्यते। ११. उद्धारसमएणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। ५. कावोयणे (ता)। Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५० जीवाजीवाभिगमे परिणामावि ॥ ___६७५. दीवसमुद्देसु णं भंते ! सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता' उववण्णपुव्वा ? हंता गोयमा ! असइं अदुवा अणंतखुत्तो।। इंदियविसयाधिगारो ६७६. कतिविहे णं भंते ! इंदिय विसए पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे इंदियविसए पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा-सोतिदियविसए जाव फासिदियविसए॥ ६७७. सोतिदियविसए णं भंते ! पोग्गलपरिणामे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--सुब्भिसद्दपरिणामे य दुब्भिसहपरिणामे य ॥ ६७८. चक्खि दियपुच्छा' । गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुरूवपरिणामे य दुरूवपरिणामे य॥ ___६७६. घाणिदयपुच्छा। गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुब्भिगंधपरिणामे य दुब्भिगंधपरिणामे य॥ ९८०. रसपरिणामे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुरसपरिणामे य दुरसपरिणामे य॥ ६८१. फासपरिणामे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--सुफासपरिणामे य दुफासपरिणामे य । ६८२. से नूणं भंते ! 'उच्चावएसु सद्दपरिणामेसु" उच्चावएसु रूवपरिणामेसु एवं गंधपरिणामेसु रसपरिणामेसु फासपरिणामेसु परिणममाणा पोग्गला परिणमंतीति वत्तव्वं सिया ? हंता गोयमा ! 'उच्चावएसु सद्दपरिणामेसु" परिणममाणा पोग्गला परिणमंतित्ति वत्तव्वं सिया ॥ ६८३. से णूणं भंते ! सुब्भिसद्दा पोग्गला दुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति दुन्भिसद्दा पोग्गला सुब्भिसद्दत्ताए परिणमति ? हंता गोयमा ! सुब्भिसद्दा पोग्गला दुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति, दुब्भिसद्दा पोग्गला सुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति॥ ९८४. सेणूणं भंते ! सुरूवा पोग्गला दूरूवत्ताए परिणमंति ? दुरूवा पोग्गला सुरूवत्ताए परिणमंति ? हंता गोयमा ! ॥ ___६८५. एवं सुब्भिगंधा पोग्गला दुब्भिगंधत्ताए परिणमंति? दुब्भिगंधा पोग्गला सुब्भिगंधत्ताए परिणमंति ? हंता गोयमा ! ॥ ६८६. एवं सुरसा दूरसत्ताए ? हंता गोयमा !॥ ६८७ एवं सुफासा दुफासत्ताए ? हंता गोयमा !॥ १. सव्वसत्ता पुढविकाइयत्ताए जाव तसकाइयत्ताए ३. उच्चावएहि सद्दपरिणामेहि (ता)। (क, ख, ग, ट, त्रि ) । ४. उच्चावहिं सद्दपरिणामेहि (ता)। २. ९७८-६८१ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, ५. ६८४-६८७ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतो त्रि' आदर्शेषु एवं पाठभेदोस्ति ---एवं चक्खिदि- संक्षिप्तपाठोस्ति- एवं रूवगंधरसफासेसु यविसयादिएहिवि सुरूवपरिणामे य दुरूपरिणामे अप्पणो अभिलावेणं दो-दो आलावगा। य। एवं सुरभिगंधपरिणामे य दुरभिगंध- वृत्तावपि इत्थमेव व्याख्यातमस्ति-एवं परिणामे य, एवं सुरसपरिणामे य दूरसरिणामे रूपरसगन्धस्पर्शष्वप्यात्मीयात्मीयाभिलापेन द्वौ य । एवं सुफासपरिणामे य दुफासपरिणामे य । द्वावालापको वक्तव्यौ । Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५१ तच्चा चउठिवहपडिवत्ती देवगति-पदं ____६८८. देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव' महाणुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव' अणुपरियट्टित्ताणं गिण्हित्तए ? हंता पभू ॥ ६८६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति--देवे णं महिड्ढीए जाव 'महाणुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अणुपरियट्टित्ताणं” गिण्हित्तए ? गोयमा ! पोग्गले णं खित्ते समाणे पुव्बामेव सिग्धगती भक्त्तिा तओ पच्छा मंदगती भवति, देवे णं 'पुव्वं पि पच्छावि' सीहे सीहगती चेव तुरिए तुरियगती चेव । से तेणठेणं गोयमा ! एवं बुच्चति- 'देवे णं महिड्ढीए जाव महाणुभागे पुवामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव” अणुपरियट्टित्ताणं गेण्हित्तए ॥ देवविगुव्वणा-पदं ___६६०. देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता बालं' अच्छेत्ता अभेत्ता पभू गढित्तए ? णो इणठे समठे ॥ ___६६१. देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता बालं" छेत्ता भेत्ता पभू गढित्तए ? णो इणठे समठे ।। ___६९२. देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता वालं अच्छेत्ता अभेत्ता पभू गढित्तए ? णो इणठे समठे ॥ ६६३. देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता वालं छेत्ता भेत्ता पभू गढित्तए ? हंता पभू । तं चेव णं गठि छउमत्थे मणूसे५ ण जाणति ण पासति, एसुहमं च णं गढेज्जा ।। ६६४. देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे वाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता वालं अच्छेत्ता अभेत्ता पभू दीहीकरित्तए वा ह्रस्सीकरित्तए" वा ? णो इणठे समठे । ६६५. ."देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता १. जी० ३।३५० । १३. पुवामेव बाल (क, ख, ग, ट, त्रि) । २. खक्तिा (त्रि)। १४. संधि (ख, ता, त्रि)। ३. तामेव (ता)। १५. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४.४ (क, ख, ग, ट, त्रि)। १६. एवं सुहुमं (क, ख, ग): सुहुमं (ता); वृत्ती ५. णं महिड्ढीए जाव महाणुमागे (क, ख, ग, ट, "एवं खलु' इति व्याख्यातमस्ति, किन्तु त्रि)। 'एमहिड्ढीया' इति पाठवत् 'एसुहम' इति ६, पुचि वा पच्छा वा (ता)। पाठो युज्यते। ७. जाव एवं (क, ख, ग, ट, त्रि) । १७. हासी (क)। ८. बाहिरिए (क, ख)। १८. सं पा०... एवं चत्तारिवि गमा, पढमबिइयभंगेसु ६. पुव्वामेव बालं (क,ख, ग, ट, त्रि) । अपरियाइत्ता एगंतरियगा अच्छेत्ता अभेत्ता, १०. गहित्तए (ग,त्रि) सर्वत्र । सेसं तहेव (क, ख, ग, ट, त्रि); तेच्चेव ११. पुवामेव बालं (क, ख, ग, ट, त्रि) । आलावता ह्व जाव हंता पभु (ता)। १२. पुवामेव बालं (क, ख, ग, ट, त्रि)। Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५२ जीवाजीवाभिगमे बालं छेत्ता भत्ता पभू दीहीकरित्तए वा हस्सीकरित्तए वा ? णो इणठे समठे । ६६६. देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणभागे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता वालं अच्छेत्ता अभेत्ता पभू दीहीकरित्तए वा ह्रस्सीकरित्तए वा ? णो इणठे समझें । ६६७. देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता बालं छेत्ता भेत्ता पभू दीहीकरित्तए वा ह्रस्सीकरित्तए वा ? हंता पभू। तं चेव णं गंठि' छउमत्थे मणूसे ण जाणति ण पासति, एसुहुमं च णं दीहीकरेज्ज वा ह्रस्सीकरेज्ज वा ॥ __जोइस-उद्देसओ ___६६८. अत्थि णं भंते ! चंदिम-सूरियाणं हेट्ठिपि' तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? समंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? उप्पिपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? हंता अत्थि ॥ ६६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-अत्थि णं 'चंदिम-सूरियाणं जाव उप्पिपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि" ? गोयमा ! जहा जहा णं तेसिं देवाणं तव-नियम-'बंभचेराई उस्सियाई" भवंति तहा तहा णं तेसि देवाणं एवं पण्णायति अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-अत्थि णं चंदिम-सूरियाणं जाव उप्पिपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ॥ १०००. एगमेगस्स णं भंते ! चंदिम-सूरियस्स केवतिया णक्खत्ता परिवारो पण्णत्तो ? केवतिया महग्गहा परिवारो पण्णत्तो? केवतिया तारागणकोडिकोडीओ" परिवारो पण्णत्तो' ? गोयमा ! एगमेगस्स णं चंदिम-सूरियस्स 'अट्ठावीसं णक्खत्ता परिवारो पण्णत्तो, अट्ठासीति महग्गहा परिवारो पण्णत्तो'', गाहा–छावट्ठि सहस्साई, णव य सताइं पंच सयराइं। __एगससीपरिवारो, तारागणकोडकोडीणं ।।१।। १००१. जंबूदीवेणं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवतियं अबाहाए जोतिसं चार चरति ? गोयमा ! एक्कारस एक्कवीसे जोयणसते अबाहाए जोतिसं चारं चरति ।। १००२. लोगंताओ भंते ! केवतियं अबाहाए जोतिसे पण्णत्ते' ? गोयमा ! एक्कारस १. संधि (क,ख) ; 'तं च णं सिद्धि' मिति, तां हस्वीकरणसिद्धि दीर्धीकरणसिद्धि वा (मवृ)। २. हट्ठिपिं (ग, ट, ता) ; हिट्ठपि (त्रि)। ३. उच्चारणा (ता)। ४.बंभचेरवासाई उक्कडाइं उस्सियाई (क, ग,) ट, त्रि); बंभचेरवासाई उस्सियाइं (ख); बंभचेराणुसिताणि (ता)। ५. °कोडिकोडिसया (ता)। ६. वृत्तिकृता वाचनाभेदस्य सूचना कृतास्ति- इह भूयान् पुस्तकेषु वाचनाभेदो गलितानि च सूत्राणि बहुषु पुस्तकेषु ततो यथावस्थितवाचना भेदप्रतिपत्यर्थ गलितसूत्रोद्धरणार्थं चैवं सुगमान- यपि विवियन्ते । ७. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु एका गाथा विद्यतेअट्टासीतिं च गहा अट्ठावीसं च होइ नक्खत्ता । एगससीपरिवारो एत्तो ताराण वोच्छामि ॥१॥ ८. अतः परं क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु भिन्ना वाचना दृश्यते-पुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ केवतिय अबाधाए जोतिसं चारं चरंति ? गोयमा! एकारसहिं एक्कवीसेहिं जोयणसएहिं अबाधाए जोतिसं चारं चरति, एवं दक्खिणिललाओ पच्चत्थि मिल्लाओ उत्तरिल्लाओ एक्कारसहिं एककवीसेहिं जोयण जाव चारं चरति । ६. चारं वच्चति (ता)। Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ४५३ एक्कारे जोयणसते अबाहाए जोतिसे पण्णत्ते ।। १००३. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए वहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ केवतियं अबाहाए हेढिल्ले तारारूवे चारं चरति ? केवतियं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति ? केवतिए अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति ? केवतियं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति ? 'गोयमा ! सत्त णउते जोयणसते अवाहाए" हेडिल्ले तारारूवे चारं चरति, 'अट्ठ जोयणसताई" अवाहाए सूरविमाणे चारं चरति, 'अट्ठ असीते जोयणसते अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति, नव जोयणसयाई अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति ॥ १००४. हेविल्लाओ" णं भंते ! तारारूवाओ केवतियं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति ? केवइयं अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति ? केवतियं अवाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति ? गोयमा ! दसहिं जोयणेहिं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति, णउतीए जोयणेहिं अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति, दसुत्तरे जोयणसते अबाहाए उवरिल्ले" तारारूवे चारं चरति ॥ १००५. सूरविमाणाओ णं भंते ! केवतियं अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति ? केवतियं अवाहाए उवरिल्ले" तारारूवे चारं चरति ? गोयमा ! असीए" जोयणेहिं अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति, जोयणसए अवाहाए उवरिल्ले" तारारूवे चारं चरति ॥ १००६. चंदविमाणाओ णं भंते ! केवतियं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चार चरति ? गोयमा" ! वीसाए जोयणेहिं अवाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति एवामेव" सपुव्वावरेणं दसुत्तरजोयणसतबाहल्ले तिरियमसंखेज्जे जोतिसविसए 'जोतिसे चारं चरति ॥ १००७. जंबूदीवे णं भंते ! दीवे कयरे णक्खत्ते सव्वभितरिल्ल चारं चरति ? कयरे नक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं" चारं चरति ? कयरे नक्खत्ते सव्वउवरिल्लं चारं चरति ? १. चारं (ता) एतद्वयमपि अशुद्धं प्रतिभाति । १०. सव्वोपरिल्ले (क, ख, ग, ट, त्रि) । २. सव्वहेट्ठिल्ले (क, ख, ग, ट, त्रि)। ११. सव्वउवरिल्ले (क, ख, ग, ट, त्रि)। ३. सव्वउवरिल्ले (क, ख, ग, ट, त्रि)। १२. गोयमा सूरविमाणाओ णं (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४. गोयमा इमीसे णं रयणप्पभाए पुदवीए १३. असीतीए (ता)। बहुसमरणि सत्तहिं णउएहिं जोयणसतेहिं १४. एगंमि जोयणसते (ता)। अबाहाए जोतिस (क, ख, ग, ट, त्रि)। १५. सव्वोवरिल्ले (क, ख, ग, ट, त्रि)। ५. अहिं जोयणसतेहिं (क, ख, ग, ट, त्रि)। १६. गोयमा ! चंदविमाणाओ णं (क,ख,ग,ट,त्रि)। ६. अट्टहि असीएहिं जोयणसतेहिं (क, ख, ग, ट, १७. वृत्ती अतः सूत्रपर्यवसानं पाठो नैव व्याख्यातः । १८. दसुत्तरसत जोयणबाहल्ले (क, ख, ग, ट, त्रि)। ७. सव्वहेट्ठिमिल्लाओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। १६. पण्णत्ते (क, ख, ग, ट, त्रि)। ८. सव्व उवरिल्ले (क, ख, ग, ट, त्रि)। २०. सव्वब्भंतरयं (ता)। ६. गोयमा! सव्वहेट्ठिलाओ णं (क, ख, ग, ट, २१. सव्वबाहिरियं (ता)। त्रि)। २२. सब्बुप्परियं (ता)। त्रि)। Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ जीवाजीवाभिगमे कयरे नक्खत्ते सव्वहेछिल्लं' चारं चरति ? गोयमा' ! अभिइनक्खत्ते' सवभितरिल्लं चारं चरति, मूले णक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं चार चरति, साती णक्खत्ते सव्वोवरिल्लं' चारं चरति, भरणीणक्खत्ते सव्वहेढिल्लं चारं चरति ।। १००८. चंदविमाणे णं भंते ! किंसंठिते पण्णत्ते ? गोयमा ! अद्धकविद्वगसंठाणसंठिते सव्वफालियामए अब्भुग्गतमूसितपहसिते वण्णओ। १००६ . 'एवं सूरविमाणेवि नक्खत्तविमाणेवि गहविमाणेवि ताराविमाणेवि ॥ १०१०. चंदविमाणे णं भंते ! केवतियं आयाम-विक्खंभेणं ? केवतियं परिक्खेवेणं ? केवतियं वाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! छप्पन्ने एगसट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिवखेवेणं, अट्ठावीसं एगस ट्ठिभागे जोयणस्स वाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १०११. 'सूर विमाणस्सवि सच्चेव" पुच्छा। गोयमा ! अडयालीसं एगसद्रिभागे" जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, चउवीसं एगसट्ठिभागेर जोयणस्स बाहल्लेणं पण्णत्ते । १०१२. 'एवं गहविमाणे वि"२ अद्धजोयणं आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, कोसं वाहल्लेणं पण्णत्ते । १०१३. ‘णक्खत्तविमाणे ण कोसं आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, अद्धकोसं वाहल्लेणं पण्णत्ते । १०१४. 'ताराविमाणे णं'५ अद्धकोसं आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, पंचधणुसयाई वाहल्लेणं पण्णते ।। १०१५. चंदविमाणं" णं भंते ! कति देवसहस्सा परिवहति ? गोयमा ! सोलस देव१. सव्वहेट्ठिमयं (ता)। ८,६. एगट्ठिभाए (ता)। २. गोयमा जंबूदीवे णं दीवे (क, ख, ग, ट, त्रि)। १०. सूरविमाणे (ता)। ३. अभीइ° (ग, त्रि)। ११,१२. एगट्ठिभाए (ता)। ४. सवभंतरं (ता)। १३. गहवि केवतियं आ पुच्छा गो (ता); वृत्ती ५. सव्वुप्परिल्लं (क, ख, ट)। अतः त्रीण्यपि सूत्राणि पूर्णानि व्याख्यातानि ६. जी० ३।३०७। ७. एवं पंचवि जाव ताराविमाणे (ता); अतोने १४. णक्खत्तंपि पुच्छा गो (ता)। 'क,ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु 'सव्व अद्धकविट्ठसं- १५. तारापि पुच्छा गो (ता)। ठाणसठिता' एतावान् अतिरिक्तः पाठो विद्यते। १६. चंदविमाणे (ता); क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु भिन्नः पाठः उपलभ्यते-चंदविमाणे णं भंते ! कति देवसाहस्सीओ परिवहति? गोयमा! चंदविमाणरस ण पुरच्छिमेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं (सप्पभाणं-क,ग,ट) संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउ?वट्टपीवरसुसिलिटुविसिट्ठतिक्खदाढाविडंबितमुहाणं रत्तुप्पलपत्तम उयसुमालतालुजीहाणं मधुगुलियपिंगलक्खाणं पसत्थसत्थवेरुलियभिसंतकक्कडनहाणं विसालपीवरोरुपडिपुण्णविउलखंधाणं मिउविसयपसत्थसुहमलक्खणविच्छिण्णकेसरसडो वसोभिताणं चंकमितललियपुलितधवलगवितगतीणं उस्सियसुणिम्मिय सुजायअपराडियांगलाणं वह रामयणक्खाणं वइरामयदंताणं वयरामयदाढाणं (वयरामय सन्ति। Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ४५५ दाढाणं तवणिज्जखुराणं--त्रि) तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाण तवणिज्जजोत्तगसुजोतिताणं कामगमाणं पीतिगमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं मणोहराणं अमीयगतीणं अमियबलवीरियपूरिसकारपरक्कमाणं महता अप्फोडियसीहनाइयबोलकलयलरवेणं (गंभीरगुलगुलाइयरवेणं-ख; यहेसियकिलकिलाइयरवेणं---त्रि) महरेण मणहरेण य पूरेंता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ सीहरूवधारीणं देवाणं पुरच्छिमिल्ल बाहं परिवहति । चंदविमाणस्स णं दक्खिणेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरययणियरप्पभासाणं वइरामयकुंभजुयलसुट्टितपीवरवरवइरसोंडवियदित्तसुरत्तपउमप्पकासाणं अब्भुण्णयमुहाणं (गुणाणं-त्रि) तवणिज्जविसालचंचलचलंतचवलकण्णविमलुज्जलाणं मधुवण्ण भिसंतणिद्धपिंगलपत्तलतिवण्णमणिरयणलोयणाणं अब्भग्गतमउलमल्लियाणं धवलसरिससंठितणिवणदढमसिण [कसिण --जं०७।१७७] फालियामयसुजायदंतमुसलोवसोभिताणं कंचणकोसीपविट्ठदंतग्गविमलमणिरयणरुइरपेरंतचित्तरूवगविरायिताणं तवणिज्जविसालतिलगपमुहपरिमंडिताणं णाणामणिरयणगुलियगेवेज्जबद्धगलयवरभुसणाणं वेरुलियविचित्तदंडणिम्मलवइरामयतिवखलअंकुसकुंभजुयलंत रोडियाणं तवणिज्जसुबद्धकच्छदप्पियबलुद्धराणं जंबूणयविमलघणमंडल व इरामयलालाल लियतालणाणामणि रयणघंटपासगरयतामयरज्जूबद्धलंबितघंटाजुयलमहुरस रमणहराणं अल्लीणपमाणजुत्तवट्टियसुजातलक्खणपसत्थरमणिज्जवालगत्तपरिछणाणं ओयवियपडिपुण्णकुम्मचलणलहुविक्कमाणं अंकामयणवखाणं तवणिज्जतालुयाण तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जजोत्तगसुजोतियाणं कामकमाणं पीतिकमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं मणोहराणं अमियगतीणं अमियबलवीरियपुरिसकारपरवकमाण महया गंभीर गुलगुलाइयरवेणं महरेण मणहरेणं पूरेता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ गयरूवधारीणं देवाण दक्खिणिल्लं बाहं परिवहति । __चंदविमाणस्स णं पच्चत्थिमेणं सेताणं सुभगाणं सुप्पभाणं चंकमियललियपुलितचलचवलककुदसालीणं सण्णयपासाणं संगयपासाणं सुजायपासाणं मियमाइतपीणरइतपासाणं झसविहगसुजातकुच्छीण पसत्यणिद्धमधुगुलितभिसंतपिंगलक्खाणं विसालपीवरोरुपडिपुण्णविपुलखंधाण वट्टपडिपुण्णविपुलकवोलकलिताणं ईसिं आणय (आयय--त्रि) वसणोवढाणं घणणिचितसुबद्धलक्खणण्णतचंकमितललितपुलियचक्कवालचवलगवितगतीणं पीवरोरुवट्टिय (वट्टियपीवर--- क,ख,ट; पीवरवट्टिय-ग) सुसंठितकडीणं ओलंबपलंबलक्खणपसत्थरमणिज्जवालगंडाण समखु रवालधाणाणं समलिहिततिवखग्ग (तिक्खग्गगुप्प.-ट) सिंगाणं तणुसुहमसुजातणिद्धलोमच्छविधराणं उवचितमंसलविसालपडिपण्णखंधपमुहपुंडराणं वेरुलियभिसंत कडक्खसुणिरिक्खणाणं जुत्तप्पमाणप्पधाणलक्खणपसत्थरमणिज्जगग्गरगलसोभिताणं घग्घरगसुबद्धकण्ठपरिमंडियाणं नाणामणिकणगरयणघण्टवेयच्छगसुकयरतियमालियाणं वरघंटागलगलियसोभंतसस्सिरीयाणं पउमुप्पलसगलसुरभिमालाविभूसिताणं वइरखुराणं विविधखुराणं फालियामयदंताणं तवणिज्जजीहाण तवणिज्जतालुयाणं तणिज्जजोत्तगसुजोत्तियाणं कामकमाणं पीतिकमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं मणोहराणं अमितगतीणं अमियबलवीरियपुरिसयारपरक्कमाणं महया गंभीरगज्जियरवेणं मधुरेणं मणहरेण य पूरता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ वसभरूवधारीणं देवाणं पच्चस्थिमिल्लं बाहं परिवहति । चंदविमाणस्स णं उत्तरेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं जच्चाणंत रमल्लिहायणाणं हरिमेलामउलमल्लियच्छाणं धणिचितसुबद्धलक्खणण्णताचंकमियललियपुलियचलचवलचंचलगतीणं लंघणवग्गणधावण Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ जीवाजीवाभिगमे सहस्सा परिवहंति, तं जहा-पुरथिमेणं दाहिणणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं । पुरथिमेणं सीहरूवधारीणं देवाणं चत्तारि देवसहस्सा परिवहंति, दाहिणेणं' गयरूवधारीणं देवाणं चत्तारि देवसहस्सा परिवहंति, पच्चत्थिमेणं वसभरूवधारीणं देवाणं चत्तारि देवसहस्सा परिवहंति, उत्तरेणं आसरूवधारीणं देवाणं चत्तारि देवसहस्सा परिवहति ॥ १०१६. सूरस्सवि' एमेव ॥ १०१७. गहविमाणे णं भंते ! कति देवसहस्सा परिवहंति ? गोयमा ! अट्ठ देवसहस्सा, रूवा चंदे तधेव, णवरं-दो दो ॥ १०१८. णक्खत्तविमाणं णं चत्तारि सहस्सा, दिसाए एक्केक्काए सहस्सा ॥ १०१६. ताराविमाणं णं दो सहस्सा पुरथिमेणं पंच सया, दिसाए-दिसाए पंच-पंच सता ॥ १०२०. एतेसि णं भंते ! चंदिमसूरियगहगणणक्खत्ततारारूवाणं कयरे कयरेहितो धारणतिवइजइणसिविखतगईणं सण्णतपासाणं संगतपासाणं सुजायपासाणं मितमायितपीणरइयपासाणं झसविहगसुजातकुच्छीणं पीणपीवरवट्टितसुसंठित कडीणं ओलंबपलबलक्खणपसत्थरमणिज्जवालगंडाणं तणसहमसूजायणिद्धलोमच्छविधराणं मिउविसयपसत्थसूहमलक्खणविकिणकेसरवालिधराणं (पालि धराणं-क, ख, ट; बालधराणं-त्रि) ललियसविलासगतिलाडवर भूसणाणं मुहमंडगोचलचम रथासगपरिमंडियकडीणं तवणिज्जखुराणं तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्जजोत्तगसुजोतियाणं कामगमाणं पीतिगमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं मणोहराणं अमितगतीणं अमियबलवीरियपुरिसयारपरक्कमाणं महया हयहेसियकिलकिलाइयरवेणं महरेणं मणहरेण य पूरेता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ यरूवधारीणं देवाणं उत्तरिल्लं बाहं परिवहति । मलयगिरिणा अस्य पाठस्य सूचना कृतास्ति तथा अस्यावलोकनाय जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीकाया नामोल्लेखः कृतः--क्वचित्सिहादीनां वर्णनं दृश्यते तद्बहुष पुस्तकेषु न दृष्टमित्युपेक्षितं, अवश्यं चेत्तद्वयाख्यानेन प्रयोजनं तर्हि जम्बुद्वीपप्रज्ञप्तिटीका परिभावनीया, तत्र सविस्तरं तद्वयाख्यानस्य कृतत्वात् । किन्तु आदर्शषु उपलब्धः पाठः जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिपाठात् बहुषु स्थानेषु भिन्नोस्ति, उपलब्धा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीकापि आचार्यमलयगिरे रुत्तरकालीनास्ति, तेनैव भेदोसौ दश्यते । १. दाधिणेणं (ता)। २. देवसधस्सा (ता)। ३. १०१६-१०१६ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु भिन्न: पठोस्ति--एवं सूरविमाणस्सवि पूच्छा, गोयमा ! सोलस देवसाहस्सीओ परिवहंति पुव्वकमेणं । एवं गहविमाणस्सवि पुच्छा, गोयमा ! अट्र देवसाहस्सीओ परिवहंति, तं जहा-सीहरूवधारीणं दो देवाणं साहस्सीओ पुरत्थिमिल्लं बाहं परिवहंति, गयरूवधारीणं दो देवाणं साहस्सीओ दक्खिणिल्लं, दो देवाणं साहस्सीओ उसभरूवधारीणं पच्चत्थिमं, दो देवसाहस्सीओ तुरगरूवधारीणं उत्तरिल्लं बाहं परिवहति । एवं णक्खत्तविमाणस्सवि पुच्छा, गोयमा ! चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति, तं जहा-सीहरूवधारीणं देवाणं एग्गा देवसाहस्सी पुरथिमिल्लं बाहं, एव चउद्दिसिपि । एवं तारगाणवि, णवरि दो देवसाहस्सीओ परिवहंति, तं जहा सीहरूवधारीणं देवाण पंचदेवसता पुरथिमिल्लं बाहं परिवहंति एवं चउद्दिसिपि । Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५७ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती 'अप्पगती वा ? सिग्घगती वा" ? गोयमा ! चंदेहितो सूरा सिग्धगती, सूरेहिंतो गहा सिग्घगती, गर्हितो णक्खत्ता सिग्घगती, णक्खत्तेहिंतो 'तारा सिग्घगती, " सव्वप्पगती चंदा, सव्वसिग्घगती तारारूवा ॥ १०२१. एतेसि णं भंते ! चंदिम जाव तारारूवाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पिढिया वा ? महिड्डिया वा ? गोयमा ! तारारूवेहितो णक्खत्ता महिड्ढीया, णक्खत्तेहितो गहा महिड्डीया, गहितो सूरा महिड्ढीया, सुरेहितो चंदा महिड्ढीया, सव्वप्पिड्ढिया ' तारारूवा, सव्वमहिड्ढीया चंदा || १०२२. जंबूदीवे णं भंते! दीवे तारारूवस्स य तारारूवस्स य एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे अंतरे पण्णत्ते, तं जहा - ' बाघाइमे य निव्वाघाइमे य" । तत्थ णं जेसे णिव्वाघातिमे से जहणेणं पंचधणुसयाई, उक्कोसेणं दो गाउयाई 'तारारूवस्स य तारारूवस्स य अबाहाए अंतरे पण्णत्ते" । तत्थ णं जेसे वाघातिमे से जहणणं दोणिय छावट्ठे जोयणसए, उक्कोसेणं बारस जोयणसहस्साइं दोण्णि य बायाले' जोयणसए तारारूवस्स य तारारूवस्स य अवाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ १०२३. चंदस्स णं भंते! जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति अग्गमहिसीओ पण्णताओ ? गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - चंदप्पभा दोसिणाभा अचिमाली पभंकरा । तत्थ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि चत्तारि देविसहस्सा परिवारो पण्णत्तो । पभू णं ततो एगमेगा देवी अण्णाई चत्तारि चत्तारि देविसहस्साई परिवारं विउत्ति । एवमेव सपुव्वावरेणं सोलस देविसहरसा पण्णत्ता । से तं तुडियं ॥ १०२४. पभूणं भंते ! चंदे जोतिसिदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासणंसि तुडिएण सद्धि दिव्वाई भोग भोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ? णो तिट्ठे समट्ठे | १०२५. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वच्चति - तो पभू चंदे जोतिसिदे जोतिसराया चंदवडेंस विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासांसि तुडिएणं सद्धि दिव्वाइं भोग भोगाई भुंजमाणे विहरितए ? गोयमा ! चंदस्स जोतिसिदस्स जोतिसरण्णो चंदवडेंस विमाणे " सभाए सुधम्माए माणवरांसि चेतियखंभंसि" वइरामएस गोलवट्टसमुग्गएसु बहुयाओ जिणसहाओ सणिखित्ताओ चिट्ठति, जाओ" णं चंदस्स जोतिसिदस्स जोतिसरण्णो अण्णेसिं १. सिग्धगती वा मंदगती वा ( क, ख, ग, ट त्रि ) । २. ताराओ सिग्घतरियाओ ( ता ) । ३. तारा (ता) । ४. ताराहितो (ता) । ५. सव्वtपढिया (क, ख, ग, त्रि) । ६. क्वचित्सर्वत्र 'वाघाइए निव्वाघाइए' इति पाठस्तत्र व्याघातो — यथोक्तरूपोऽस्यास्तीति व्याघातिकम्, 'अतोऽनेकस्वरा' दिति मत्वर्थीय इकप्रत्ययः, व्याघातिकान्निर्गतं निर्व्याघाति कमिति (मवृ) । ७. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु पूर्वं व्याघातिमस्य ततश्च निर्व्याघातिमस्य पाठो विद्यते । ८. X (ता) । ६. वाताले (ता) । १०. सीहासणंसि सीहासणव रगते ( ता ) । ११. विमाणे चंदाए रायहाणीए ( जं० ७११८३) । १२. खंभे (ता) । १३. ताओ (ता) | Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५८ जीवाजीवाभिगमे च बहणं जोतिसियाणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ जाव' पज्जुवासणिज्जाओ, 'तासिं पणिहाए नो पभू चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासणंसि जाव भुजमाणे विहरित्तए । से एएणठेणं' गोयमा ! एवं वुच्चति-नो पभू चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदं सि सीहासणंसि तुडिएण सद्धि दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए। 'पभू णं गोयमा" ! चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासणं सि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव' सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अण्णेहिं बहूहिं जोतिसिएहिं देवेहि देवीहि य सद्धि संपुरिवडे महयाहय-णट्ट-गीय-वाइय-तंतीतल-ताल-तुडिय-धण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए, 'केवलं परियारणिड्ढीए'नो चेव णं मेहणवत्तियं ।। १०२६. सूरस्स णं भंते ! जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति अग्गमहिसोओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-सूरप्पभा आयवाभा अच्चिमाली पभंकरा। ‘एवं अवसेसं जहा चंदस्स, णवरि-सूरवडेंसए विमाणे सूरंसि सीहासणंसि। तहेव सव्वेसिं गहाईणं चत्तारि अग्गमहिसीओ, तं जहा-विजया वेजयंती जयंती अपराजिया, तेसि पि तहेव ॥ १०२७. चंदविमाणे णं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं चउब्भागपलिओवम, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ॥ १०२८. देवीणं जहण्णेणं चउभागपलिओवम, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं ॥ १०२६. सूरविमाणे देवाणं जहण्णेणं चउब्भागपलिओवम, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससहस्समब्भहियं ।। १०३०. देवीणं जहण्णणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पंचहिं वाससतेहिमब्भहियं ॥ १०३१. गहविमाणे देवाणं जहण्णणं चउब्भागपलिओवम, उक्कोसेणं पलिओवमं ॥ १०३२. देवीणं जहण्णणं, चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं ॥ १०३३. णक्खत्तविमाणे देवाणं जहण्णणं चउब्भागपलिओवम, उक्कोसेणं अद्ध१. जी० ३१४०२। पाठो लभ्यते - केवलं परियारिड्ढीए । २. ताओ पणिधाओ (ता)। ७. आतावा (ता) दोसिणाभा (ठाणं ४।१७६) । ३. तेणठेणं (ता)। ८. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'ता' प्रतौ वृतौ च ४. अदुत्तरं च णं गोयमा पभु (क,ख,ग,ट,त्रि) । भिन्ना वाचना दृश्यते-जहा चंदे तधेव जाव ५. जी० ३।३५० । णो मेहुणवत्तियं सूरवडेंसए विमाणे सूरे ६. वृत्तौ एष पाठो व्याख्यातो नास्ति । 'क, ख, सीहासणे एस विसेसो। ग, ट, त्रि' आदर्शेषु 'केवलं परियारतुडिएण ६. अतः १०३६ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, सद्धिं भोगभोगाई बुद्धीए' इति पाठो विद्यते । त्रि' आदर्शेष संक्षिप्ता वाचना विद्यते-एवं भगवत्यां (१०।६६) स्वीकृतपाठस्य संवादी जहा ठितीपए तहा भाणियव्वा जाव ताराणं । Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती पलिओवमं ॥ १०३४. देवीणं जहण्णेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगं चउब्भागपलिओवमं ॥ १०३५. ताराविमाणे देवाणं जहण्णणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं चउब्भागपलिओवमं ॥ १०३६. देवीणं जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगं अट्ठभागपलिओवमं ।। १०३७. एतेसि णं भंते ! चंदिमसूरियगहणक्खत्ततारारूवाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! चंदिमसूरिया एते णं दोण्णिवि तुल्ला सव्वत्थोवा, णक्खत्ता संखेज्जगुणा, गहा संखेज्जगुणा, ताराओ संखेज्जगुणाओ॥ वेमाणियउद्देसओ पढमो १०३८. कहि णं भंते ! वेमाणियाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता ! कहि णं भंते ! वेमाणिया देवा परिवसंति' ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिमसूरियगहणक्खत्ततारारूवाणं वहूई जोयणाई बहूइंजोयणसताइं बहई जोयणसहस्साइं बहुइं जोयणसयसहस्साइं वहूइं जोयणकोडीओ बहूई जोयणकोडाकोडीओ उडढं दुरं उप्पइत्ता' सोहम्मीसाण'- सणंकुमार-माहिंद-बंभलोय-लंतग-महासुक्क-सहस्सारआणय-पाणय-आरण-अच्चुत-गेवेज्ज -अणुत्तरेसु य, एत्थ णं वेमाणियाणं चतुरासीति विमाणावाससतसहस्सा सत्ताणउतिं च सहस्सा तेवीसं च विमाणा भवंतीति मक्खाया। ते णं विमाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। एत्थ' णं बहवे वेमाणिया देवा परिवसंति। सोधम्मीसाण जाव अणुत्तरा य देवा मिग-महिस-वराह-सिंह-छगल-दद्दुर-जाव' आयरक्खदेवसाहस्सीणं विहरंति॥ १०३६. कहि णं भंते ! सोधम्मगाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! सोधम्मगा देवा परिवसंति ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे यणप्पभाए जाव एत्थ णं सोधम्मे णामं कप्पे पण्णत्ते--पाईणपडिणायते उदीणदाहिणवित्थिपणे जाव एत्थ णं सोधम्माणं देवाणं बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता । ते णं विमाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि णं विमाणाणं बहुमज्झदेसभाए पंच वडेंसगा पण्णत्ता। तत्थ णं बहवे सोधम्मगा देवा परिवसंति जाव विहरंति । सक्के यत्थ १. अतः १०३६ सूत्रपर्यन्तं 'क, ख, ग, ट, त्रि' ४. जी. ३।२६१ । आदर्शषु संक्षिप्ता वाचना विद्यते---जहा ५. तत्थ (ता)। ठाणपदे तहा सव्वं भाणियव्वं णवरं परिसाओ ६. पण्ण० २।४६ । भाणितव्वाओ जाव सक्के, अन्नेसि च बहणं ७. अत्र अग्रेपि च कतिचित स्थानेष पाठसंक्षेपो सोधम्मकप्पवासीणं देवाण य देवीण य जाव विद्यते, स च वृत्ती अथवा प्रज्ञापनायाः विहरंति । द्वितीयपदे द्रष्टव्यः । २. वीतिवतित्ता (ता)। ८. विधरंति (ता)। ३. सं. पा०-सोहम्मीसाण जाव अणुतरेसु । Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६० देविंदे देवराया मघवं पागसासणे जाव' विहरति ॥ १०४०. सक्क्स्स णं भंते ! देविंदस्स देवरणो कति परिसाओ पण्णत्ताओ ? गोमा ! ओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - समिता चंडा जाता, अभितरिया समिया, मज्झमिया चंडा, बाहिरिया जाता ॥ १०४१. सक्कस्स' णं भंते! देविंदस्स देवरण्णो अब्भितरियाए परिसाए कति देव १. पण्ण० २।५० । २. १०४१-१०५५ सुत्राणां स्थाने 'ता' प्रतौ किञ्चिद् भेदेन पाठरचनास्ति - सक्कस्स णं भं अब्भंतरपरि कति देवसहस्सा पं मज्झिमप कति देव बाहिरप कति देवसहस्सा पं अभितरपरिसाए कति देविया पं मज्झिम कति देवि बाहिरपरिसाए कति देविसया पं ? गो सक्क्स्स णं दे ३ अभितरपरिसाए बारस देव सहस्सा पं मज्भि चोद्द बाहिरप सोलस देवसहस्सा, अभितरपरिसा सत्त देविसता मज्झिमप छ देविसता बाहिरप पंच देविसया । सक्कस्स णं भं ३ अब्भंतरपरि देवाणं केवतिकालं ठिती पं मज्झिमप दे केवतिका ठिती पं बाहि देवा के ठिती अब्भंतरपरिसाए देवीणं केवतिकालं ठिति पं मज्झिमप के बाहिरपरिसाए देवीणं केवतिकालं ठिती पं ? गो ! सक्कस्स णं ३ अब्भंतर देवाणं पंच पलितोवमाई ठिती पं मज्भि ४ बाहिरप ३ पलि, अब्भंतरपरिसाए देवीणं तिष्णि पलितोवमाइं ठिती मज्झिमप दो पलितो बाहिरप देवीणं एगं पलितोवमं ठिती पं । से केणट्ठणं भं एवं व सक्कस्स देवि ३ तओ परिसाओ पं तं समिया चंडा जाव अब्भंतरिया समिया जव बाहिरिया जाता ? गोयमा ! सक्के णं दे ३ अब्भंतरप बाहित्ता हव्व तहेव जहा चमरस्स, अदुत्तरं अ णं गोतमा बाहिरपरिसाए सद्धि पयं पयंदेमाणे २ विहरति । से तेणट्ठे णं ? गोयमा एवं वु सक्क्स्स णं दे ३ जाव बाहिरिया जाता । कहि णं भंते ईसा गाणं देवाणं विमाणा पं ? कहिं णं भं ईसाणगा देवा परिवसंति जाव ईसाणे देविहरति । ईसाणस्स णं भं कति परिसाओ पं जधेव सक्कस्स णवरं पमाणं टिती णाणत्तं अन्मं - तरपरिसाए दस देव सहस्सा मज्झि वारस दे सह वाहिरपरि चोट्स दे सह अब्भंतरपरि णव देविसता मज्झिमप अट्ठ वा सत्त सता, अब्भत रंपरिसाए देवाणं सत पलितावमाई ठिती पं मज्झिम छवाहि पंच, अन्तरप देवीणं पंच मज्भि चत्तारि वा तिष्णि पलि । अट्ठे जहा सक्कस्स । कहि णं भंते ! सणकुमारा देवाणं विमा जाव सणकुमारस्स कति परिसाओ ? गो ! तओ परिसा तं समिया चंडा जाता, तधेव णवरं पमाणं ठिती अब्भंतरपरि अट्ठ देवसहस्सा मज्झिम दस सह वाहि वारस सह, अब्भंतरपरिसाए देवा अद्धपंचमाई सागरोवमाई पंच य पलितोवमठिती पं परि अद्धपंचमाई सागरो ४ पलि बहिरपरि अद्धपंचमाई सागरो तिष्णि य पलि । अट्ठो जहा सक्के णवरं देवीओ णत्थि । जीवाजी वाभिगमे कहि णं भंते! माहिंदाणं देवाणं विमाणा जाव माहिंदस्स अब्भंतरपरिसाए छ देवसहस्सा मझिम अट्ट सह बाहि दस स । ठितीए अब्भंतरपरि अद्धपंच सागरोवमाई सत्त य पलि मज्झिम अद्धपंच सागरो छच्च पलि वाहि अद्ध पंच सागरो पंच य पलितोवमाई ठिती पं । अट्ठो जहा सक्कस्स । बंभल गाणवि सोच्चेव ठाणपदं गमो जाव बंभे विहरति । तस्स अन्तरपरिसाए चत्तारि देवसहस्सा मज्झिमप छ देवसह बाहिरप अट्ठ देवसहस्सा । ठिती Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ४६१ साहस्सीओ पण्णत्ताओ? मज्झिमियाए परिसाए तहेव' बाहिरियाए पुच्छा। गोयमा ! सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अभितरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मज्झिमियाए परिसाए चोद्दस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, बाहिरियाए परिसाए सोलस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तहा अभितरियाए परिसाए सत्त देवीसयाणि, मज्झिमियाए छच्च देवीसयाणि, बाहिरियाए पंच देवीसयाणि पण्णत्ताइं॥ १०४२. सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरणो अभितरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? एवं मज्झिमियाए बाहिरियाएवि ? गोयमा ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो अभितरियाए परिसाए पंच पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवाणं तिण्णि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, देवीणं ठिती--अभितरियाए परिसाए देवीणं तिण्णि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए दुण्णि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए एगं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता । अट्ठो सो चेव जहा' भवणवासीणं ।। १०४३. कहि णं भंते ! ईसाणगाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता ? तहेव सव्वं जाव ईसाणे एत्थ देविदे देवराया जाव' विहरति ।। अब्भंतपरिसाए अद्धणवमाइं सागरो पंच य पलिओवमाई मज्झिमपरिसाए अद्धणवमाइं सागरो चत्तारि पलि वाहिरप अद्धणवमाइं सागरो तिण्णि य पलि । कहि णं भंते ! लंत जाव अभंतरप दो देवसहस्सा मज्झिमप चत्तारि देवसह बाहिरपरि छ देवसह । अब्भंतरप देवाणं बारस सागरो सत्त य पलि मज्झिमपरि बारस साग छच्च पलि बाहिरपरि बारस साग पंच य पलि। कहि णं भंते ! महासुक्के ठाणपदगमेणं जाव सपरिवारो विहरति । अब्भंतरपरिसाए एगा देवसाहस्सी मज्झिमपरि दो देवसाह बाहिरपरिसाए चत्तारि देवसाहस्सीओ, अभंतरपरिसाए अद्धसोलससागरोवमाइं पंच य प मज्भिमपरि अद्धसोलससाग चत्तारि य पलि बाहिरपरि अद्धसोलससा तिण्णि य पलि। कहि णं भंते ! सहस्सारे विमाण पं जाव अब्भतरपरि पंच देवसया मज्झिम एगं देवसाहस्सं बाहिर दो देवसह, अभंतरपरि अट्ठारससागरोवम सत्त य पलि मज्झिमप अद्धट्ठारससाग च्छच्चपलि बाहि अद्धद्वारससा पंच य पलि । अट्ठो । कहि णं भंते ! आणत-पाणता णाम दुवे कप्पा पं? गो ! जाव पाणतस्स अब्भंतरपरि अड्ढाइज्जा देवसता मज्झिमपरि पंच देवसता वाहिर एग देवसहस्सं, अभंतरप एकणवीसं सागर पंच य प मज्झिम एकणवीसं सा चत्तारि य पलि बाहिरप एकूणवीसं सा तिण्णि य प । अट्ठो य ।। ___ कहि णं भंते ! आरुणच्चुता जावच्चुते सपरिवारे विहरति । अब्भंतरपरि देवाणं पणुबीस सयं मज्झिम अड्ढाइज्जा सता बाहिरप पंचसया, अभंतर परि एक्कवीसं सागरो सत्त य पलि मज्झि एक्कवीसं सा च्छच्च प बाहिर प एक्कवीसं सा पंच य प ठिती ।। ___ मलयगिरि वृत्ती विस्तृतपाठो व्याख्यातोस्ति । एवं वाचना त्रयं जायते । १. जी० ३१२३६,२३७ । ३. पण्ण० २।५१ । २. जी० ३२३६। Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ जीवाजीवाभिगमे १०४४. ईसाणस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरणो कति परिसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-समिता चंडा जाता, तहेव सव्व, णवरअभितरियाए परिसाए दस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मज्झिमियाए परिसाए वारस देवसाहस्सीओ, बाहिरियाए चोद्दस देवसाहस्सीओ। देवीणं पुच्छा । अभितरियाए णव देवीसता पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए अट्ठ देवीसता पण्णत्ता, वाहिरियाए परिसाए सत्त देविसता पण्णत्ता, देवाणं ठिती पुच्छा। अभितरियाए परिसाए देवाणं सत्त पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए छ पलिओवमाइं, वाहिरियाए पंच पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता। देवीणं पुच्छा। अभितरियाए पंच' पलिओवमाइं, मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए तिणि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता । अट्ठो तहेव भाणियव्वो॥ १०४५. सणंकुमाराणं पुच्छा। तहेव' ठाणपदगमेणं जाव १०४६. सणंकुमारस्स तओ परिसाओ समिताई तहेव, णवरि-अभितरियाए परिसाए अट्ठ देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मज्झिमियाए परिसाए दस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, बाहिरियाए परिसाए वारस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। अभितरियाए परिसाए देवाण ठिती-अद्धपंचमाईसागरोवमाइ पच पलिओवमाई ठिती पण्णता, मज्झिमियाए पंचमाई सागरोवमाई चत्तारि पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए अद्धपंचमाई सागरोवमाइं तिण्णि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता । अट्ठो सो चेव ॥ १०४७. एवं माहिंदस्सवि तहेव' तओ परिसाओ, णवरि-अभितरियाए परिसाए छद्देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मज्झिमियाए परिसाए अट्ठ देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, वाहिरियाए दस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ठिती देवाणं-अभितरियाए परिसाए अद्धपंचमाइं सागरोवमाई सत्त य पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए अद्धपंचमाइं सावरोवमाइं छच्च पलिओवमाई, बाहिरियाए परिसाए अद्धपंचमाइं सागरोवमाइं पंच य पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता॥ १०४८. तहेव सव्वेसि इंदाण ठाणपयगमेणं विमाणा णेतव्वा । ततो पच्छा परिसाओ पत्तेयं-पत्तेयं वुच्चति १०४६. बंभस्सवि तओ परिसाओ पण्णत्ताओ-अभितरियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ, मज्झिमियाए छ देवसाहस्सीओ, वाहिरियाए अट्ट देवसाहस्सीओ। देवाणं ठितीअभितरियाए परिसाए अद्धणवमाइं सागरोवमाइं पंच य पलिओवमाइं मज्झिमियाए परिसाए अद्धनवमाइं सागरोवमाइं चत्तारि य पलिओवमाइं, बाहिरियाए अद्धनवमाई सागरोवमाइं तिण्णि य पलिओवमाइं । अट्ठो सो चेव ।। १०५०. लंतगस्सवि जाव तओ परिसाओ जाव अभितरियाए परिसाए दो देवसाहस्सीओ, मज्झिमियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, बाहिरियाए छद्देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ठिती भाणियव्वा-अभितरियाए परिसाए बारस सागरोवमाइं सत्त १. साइरेगाई पंच (त्रि)। ३. पण्ण० २१५३ । २. पण्ण० २।५२। ४. पण्ण० २।५४-५६ । Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए बारस सागरोवमाइं छच्च पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए बारस सागरोवमाइं पंच पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता॥ १०५१. महासुक्कस्सवि जाव तओ परिसाओ जाव अभितरियाए एगं देवसहस्सं, मज्झिमियाए दो देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, वाहिरियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ। अभितरियाए परिसाए अद्धसोलस सागरोवमाइं पंच पलिओवमाइं, मज्झिमियाए अद्धसोलस सागरोवमाइं चत्तारि पलिओवमाइं, बाहिरियाए अद्धसोलस सागरोवमाइं तिण्णि पलिओवमाइं । अट्ठो सो चेव ॥ १०५२. सहस्सारे पुच्छा जाव अभितरियाए परिसाए पंच देवसया, मज्झिमियाए परिसाए एगा देवसाहस्सी, बाहिरियाए दो देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ठिती-अभितरियाए अट्ठारस सागरोवमाइं सत्त पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, एवं मज्झिमियाए अद्धट्ठारस छप्पलिओवमाइं बाहिरियाए अद्धट्ठारस सागरोवमाइं पंच पलिओवमाइं। अट्ठो सो चेव ॥ १०५३. आणयपाणयस्सवि पुच्छा जाव तओ परिसाओ, णवरि-अभितरियाए अड्ढाइज्जा देवसया, मज्झिमियाए पंच देवसया, बाहिरियाए एगा देवसाहस्सी। ठितीअभितरियाए एगूणवीसं सागरोवमाइं पंच य पलिओवमाइं, एवं मज्झिमियाए एगोणवीसं सागरोवमाइं चत्तारि य पलिओवमाइं, बाहिरियाए परिसाए एगूणवीसं सागरोवमाइं तिण्णि य पलिओवमाइं ठिती। अट्ठो सो चेव ।। १०५४. कहिं णं भंते ! आरणअच्चुयाणं देवाणं तहेव अच्चुए सपरिवारे जाव विहरति । १०५५. अच्चुयस्स णं देविंदस्स तओ परिसाओ पण्णत्ताओ। अभितरपरिसाए देवाणं पणवीसं सयं, मज्झिमपरिसाए अड्ढाइज्जा सया, वाहिरपरिसाए पंचसया, अभितरियाए एक्कवीसं सागरोवमाइं सत्त य पलिओवमाइं, मज्झिमियाए एक्कवीसं सागरोवमाइं छप्पलिओवमाइं, वाहिरपरिसाए एकवीसं सागरोवमाइं पंच य पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता ॥ १०५६. कहि णं भंते ! हेद्विमगेवेज्जगाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! हेट्टिमगेवेज्जगा देवा परिवसंति ? जहेव' ठाणपए तहेव । एवं मज्झिमगेवेज्जा उवरिमगेवेज्जगा अणुत्तरा य जाव' अहमिदा नाम ते देवा पण्णत्ता समणाउसो !॥ वेमाणियउद्देसओ बीओ १०५७. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु विमाणपुढवी किंपइट्ठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! घणोदहिपइट्ठिया पण्णत्ता ॥ १०५८. सणंकुमार-माहिदेसु कप्पेसु विमाणपुढवी किंपइट्ठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! घणवायपइट्ठिया पण्णत्ता । १. पण्ण० २०६०। २. पण्ण०२।६१-६३ । Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे १०५. बंभलोए णं भंते! कप्पे विमाणपुढवी' णं पुच्छा । घणवायपइट्ठिया पण्णत्ता ॥ ૪૬૪ १०६०. लंतए' तदुभयपट्टिया पण्णत्ता ॥ १०६१. महासुक्क सहस्सा रेसुवि तदुभयपइट्टिया ॥ १०६२. आणय जाव अच्चुएसु णं भंते! कप्पेसु पुच्छा । ओवासंत रपइट्ठिया पण्णत्ता ॥ ओवा संतरपट्टिया १०६३. गेवेज्जविमाणपुढवीणं भंते! पुच्छा । गोयमा ! पण्णत्ता ॥ १०६४. अणुत्तरोववाइयपुच्छा । ओवासंतरपइट्टिया पण्णत्ता ॥ १०६५. सोहम्मीसाणकप्पेसु विमाणपुढवी केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्तावीस जोयणसयाई वाहल्लेणं पण्णत्ता ॥ १०६६. एवं पुच्छा - सणकुमार - माहिदेसु छव्वीसं जोयणसयाई । बंभ-लंत सु पंचवीसं। महासुक्क सहस्सारेसु चउवीसं । आणय- पाणयारणाच्चुएसु तेवीसं सयाई । वेज्ज विमाणढवी बावीसं । अणुत्तरविमाणपुढवी एक्कवीसं जोयणसयाई बाहुल्लेणं ॥ १०६७. सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु विमाणा केवइयं उड्ढं उच्चत्तेणं ? गोयमा ! पंचजोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं ॥ १०६८. सणकुमार-माहिंदेसु छ जोयणसयाई । बंभ - लंत सु सत्त । महासुक्क - सहस्सारेसु अट्ठ । आणय- पाणयारणाच्चुएसु नव ॥ १०६९. गेवेज्जविमाणाणं भंते ! केवइयं उड्ढं उच्चत्तेणं ? गोयमा ! दस जोयणसयाई ॥ १०७०. अणुत्तरविमाणाणं एक्कारस जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं ॥ १०७१. सोहम्मीसाणेणं भंते ! कप्पेसु विमाणा किंसंठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - आवलियापविट्ठा य आवलियावाहिरा य । तत्थ णं जेते आवलियाविट्ठा ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - वट्टा तंसा चउरंसा । तत्थ णं जेते आवलियाबाहिरा ते णं णाणासंठाणसंठिया पण्णत्ता । एवं जाव गेवेज्जविमाणा || १०७२. अणुत्तरविमाणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - वट्टे य तंसा य ।। १०७३. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा केवतियं आयाम - विक्खंभेणं ! केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - संखेज्ज वित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य । ‘तत्थ णं जेते संखेज्ज वित्थडा ते णं संखेज्जाई जोयणसहस्साई आयाम - विक्खभेणं, संखेज्जाई जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं । तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयाम - विक्खंभेणं, असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं परिक्खे - वेणं । एवं जाव गेवेज्जविमाणा ॥ ९. पुढवी (ग, ट, ता, त्रि) । २. लंत णं भंते गो (क, ख, ग, ट, त्रि) । ३. जोयणाई (ar) | Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्वि पडिवत्ती ४६५ १०४. अणुत्तरविमाणा पुच्छा । गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा " - संखेज्ज - वित्थडे य असंखेज्ज वित्थडा य । तत्थ णं जेसे संखेज्जवित्थडे से 'एगं जोयणसयसहस्सं " जंबुद्दीवपमाणे 'जाव' अद्धंगुलगं च । तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाई जोयणसहस्सा आयाम - विक्खंभेणं, असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं परिवखेवेणं पण्णत्ता ॥ १०७५. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! विमाणा कतिवण्णा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचवण्णा पण्णत्ता, तं जहा - किण्हा नीला लोहिया हालिद्दा सुकिला ॥ १०७६. सणकुमार-माहिदेसु चउवण्णा - नीला जाव सुक्किला, बंभलोग- लंत सु तिवण्णा - लोहिया हालिद्दा सुक्किला, महासुक्क सहस्सारेसु दुवण्णा - हालिद्दा य सुविकला य, 'आणय-पाणतारणच्चएसु सुक्किला, गेवेज्जविमाणा सुविकला, अणत्तरोववातियविमाणा परमसु विकला" वण्णेणं पण्णत्ता ॥ १०७७. सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु विमाणा केरिसया पभाए पण्णत्ता ? गोयमा ! णिच्चालोया णिच्चज्जोया सयंपभाए" पण्णत्ता जाव अणुत्तरविमाणा' || १०७८. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा केरिसया गंधेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहानामए- कोट्ठपुडाण वा जाव' एत्तो" इट्ठतरा चेव जाव अणुत्तरविमाणा ॥ १०७६. सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कम्पेसु विमाणा केरिसया फासेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहानामए - आईणेति वा 'जाव" एतो इट्ठतरा चेव"" जाव अणुत्तरविमाणा ॥ १०८०. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा केमहालया पण्णत्ता ? गोयमा ! ravi जंबुद्दीवे दीवे 'जहा णिरयुद्दे से जाव" छम्मासेणं वीतिवएज्जा - अस्थेगतिए वीतिएज्जा अत्थे गतिए नो वीतिवएज्जा एमहालया " णं गोयमा ! एवं जाव अणुत्तरविमाणा"" ।। १०८१. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा किंमया" पण्णत्ता ? गोयमा ! १. जहा परगा तहा जाव अणुत्तरोववातिया (क, ख, ग, ट, त्रि) । २. x (क, ख, ग, ट, त्रि) । ३. जी० ३।५२ । ४. x (क, ख, ग, ट, त्रि) । ५. जोयण साईं (क, ख, ग, ट, त्रि); सं० पा० – जोयणसहस्साइं जाव परिक्खेवेणं । ६. आणतादि जाव अणुत्तरा ताव सुक्किला (ता) आनतप्राणतारणाच्युतकल्पेषु एकवर्णानि शुक्लवर्णस्यैकस्य भावात् ग्रैवेयक विमानानि अनुत्तरविमानानि च परम शुक्लानि ( मवृ ) । ७. सयंपभपभाए (ता); स्वयं प्रभाणि (मवृ) । ८. अणुत्तरोववातियविमाणा णिच्चालोया णिच्चज्जोता सयंपभाए पण्णत्ता ( क, ख, ग, ट, त्रि ) । ६. जी० ३।२८३ । १०. गंधेणं पण्णत्ता एवं जाव एत्तो ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ११. जी० ३।२८४ । १२. रूतेति वा सव्वो फासो भाणियव्वो ( क, ख, ग, ट, त्रि) । १३. जी० ३।८६ । १४. एम्महलया (ता) । १५. सव्वदीवसमुद्दाणं सो चेव गमो जाव छम्मासे वीइवएज्जा जाव अत्थेगतिया विमाणावासा नो वीईव एज्जा जाव अणुत्तरोववातियविमाणा अत्येगतियं विमाणं वीईवएज्जा अत्थेगतिया बीईएज्जा (क, ख, ग, ट, त्रि) । १६. किमया (ता) । Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे सव्वरयणामया 'अच्छा जाव पडिरूवा" । तत्थ णं बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति विउक्कमति चयंति उववज्जति'। सासया णं ते विमाणा दव्वट्ठयाए, 'वण्णपज्जवेहि गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं फासपज्जवेहि य असासया । एवं जाव अणुत्तरविमाणा" । १०८२. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा कओहितो उववज्जति ? उववातो' जहा वक्कंतीए जाव अणुत्तरविमाणा ।। १०८३. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जति । एवं जाव सहस्सारे ॥ १०८४. 'आणतादी गेवेज्जा अणुत्तरा य जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति ॥ १०८५. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेस देवा समए-समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा केवतिएणं कालेणं अवहिया सिया? गोयमा ! ते णं असंखेज्जा समए-समए अवहीरमाणाअवहीरमाणा असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया सिया जाव सहस्सारो॥ १०८६. आणतादिसुचउसु कप्पेसु देवा पुच्छा । गोयमा ! ते णं असंखेज्जा समएसमए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागमेत्तेणं कालेणं अवहीरंति, णो चेव णं अवहिया सिया । एवं जाव अणुत्तरविमाणा॥ १०८७. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं 'जासा भवधारणिज्जा सा" जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागो, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ । तत्थ णं 'जासा उत्तरवेउव्विया सा'" जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जतिभागो उक्कोसेणं जोयणसतसहस्सं ॥ १. पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि)। एवं पाठोस्ति-आणतादिगेसु चउसुवि २. उवचयंति (क,ख,ग,ट,त्रि); उपचीयन्ते (म)। गेविज्जेसु य समए जाव केवतिकालेणं अवहिता ___ द्रष्टव्यं जी० ३।७२४ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । सिया? गो ते णं असंखेज्जा समये २ अवहीरमाणा ३. जाव फासपज्जवेहि असासता जाव अणुत्तरो- २ असंखेज्जमेत्तपलियस्स सुहमस्स असंखेज्जेणं ववातिया विमाणा (क, ख, ग, ट, त्रि) । कालेणं अवहीरंति नो चेव णं अवहिया सिया। ४, उववातो णेयव्वो (क, ख, ग, ट, त्रि) । अणुत्तरोववाइयाणं पुच्छा। ते णं असंखेज्जा ५. पण्ण० ६।१०५-१०८ । समये समये अवहीरमाणा पलिओवम६. वक्कंतीए तिरियमणुएसु पंचेंदिएसु समुच्छिम- असंखेज्जतिभागमेत्ते अवहीरंति नो चेव णं वज्जिएसु, उववाओ वक्कंतीगमेणं (क, ख, अवहिया सिया। ग, ट, ता, त्रि)। ६. दुविहा सरीरा (क, ख, ग, ट, त्रि)। ७. सेसा संखेज्जा (ता)। १०. जेसे भवधारणिज्जे से (क, ख, ग, ट, त्रि) । ८. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शेषु ११. जेसे उत्तरवेउव्विए से (क, ख, ग, ट, त्रि)। Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहपडिवत्ती ४६७ १०८८. सणंकुमार'-माहिंदेसु भवधारणिज्जा उत्तरवेउव्विया। भवधारणिज्जा छरयणीओ, उत्तरवेउव्विया तधेव । बंभ-लंतएसु पंच रयणीओ, महासुक्क-सहस्सारेसु चत्तारि रयणीओ, आणतपाणतारणच्चएसु तिग्णि रयणीओ, उत्तरवेउव्विया तधेव जोयणसतसहस्सं सव्वेसि ॥ १०८६. गेवेज्जादेवाणं भंते ! केमहालिया' सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! गेवेज्जादेवाणं एगे भवधारणिज्जे सरीरए पण्णत्ते-से जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागे, उक्कोसेणं दो रयणीओ। अणुत्तरदेवाणं एगा रयणी॥ १०६०. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं सरीरगा किसंघयणी पण्णत्ता ? गोयमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी'-नेवट्ठि नेव छिरा नेव पहारू । जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया सुभा मणुण्णा मणामा ते तेसिं सरीरसंघातत्ताए परिणमंति । एवं जाव अणुत्तरोववातिया ॥ १०६१. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं सरीरगा किंसंठिता पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा सरीरा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते समचउरससंठाणसंठिता पण्णत्ता । तत्थ णं जेते उत्तरवेउव्विया ते णाणासंठाणसंठिता पण्णत्ता जाव अच्चुओ॥ १०६२. गेवेज्जादेवाणं भंते ! सरीरा किंसंठिता पण्णत्ता ? गोयमा ! एगे भवधारणिज्जे सरीरए समचउरंससंठाणसंठिते । एवं अणुत्तराणवि ।। १०६३. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया वण्णेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! कणगत्तयरत्ताभा वण्णेणं पण्णत्ता ॥ १०६४. सणंकुमार-माहिंदेसु णं पउमपम्हगोरा वण्णणं पण्णत्ता। ‘एवं बंभेवि" ॥ १०६५. लंतएणं भंते ! गोयमा ! सुक्किला वण्णेणं पण्णत्ता । एवं जाव गेवेज्जा ॥ १०६६. अणुत्तरोववातिया परमसुक्किला वण्णेणं पण्णत्ता ॥ १०६७. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया गंधेणं पण्णत्ता ? 'जहा विमाणाणं गंधो जाव अणुत्तरोववाइयाणं ।। १. १०८८,१०८६ सूत्रयोः स्थाने 'क, ख, ग, ट, ६. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क,ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु त्रि, आदर्शेष एवं पाठोस्ति-एवं एक्केक्का एवं पाठोस्ति-अवेउव्विया गेविज्जणत्तरा, ओसारेत्ताणं जाव अणुत्तरा णं एक्का रयणी भवधारणिज्जा समचउरंससंठाणसंठिता, उत्तरगेविज्जणुत्तराणं एगे भवधारणिज्जे सरीरे वेउव्विया णत्थि। उत्तरवेउव्विया नत्थि । ७. बंभलोगे णं भंते ! गोयमा ! अल्लमधुगव२. केम्महालिया (ता)। ण्णाभा वण्णेणं पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि)। ३. असंघतणी (ता)। ८.१०६५,१०६६ सूत्रयोः स्थाने 'ता प्रतौ एवं ४. हारू णेव संघयणमत्थि (क, ख, ग, ट, त्रि)। पाठोस्ति-सेसा सुक्किला वण्णेणं पं ५. 'ता, प्रतौ 'जेसे' इत्यादि एकवचनान्तः पाठो जावणुत्तरा। दृश्यते, वृत्तावपि स च एकवचनान्तो व्याख्या- १. जी०३।१०७८ । तोस्ति । १०. गोयमा ! से जहाणामए कोटपुडाण वा तदेव Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ जीवाजीवाभिगमे १०६८. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेस देवाणं सरीरगा केरिसया फासेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! थिरमउणिद्धसुकुमालफासेणं' पण्णत्ता । एवं जाव अणु त्तरोववातियाणं । १०६६. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं केरिसया पोग्गला उस्सासत्ताए परिणमंति ? गोयमा ! जे पोग्गला इट्टा कंता पिया सुभा मणुण्णा मणामा ते तेसिं उस्सासत्ताए परिणमंति जाव अणुत्तरोववातियाणं । ११००. एवं आहारत्ताए वि॥ ११०१. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं कति लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! एगा तेउलेस्सा पण्णत्ता । ११०२. सणंकुमार-माहिदेसु एगा पम्हलेस्सा । एवं बंभलोए वि' । ११०३. 'लंतए एगा सुक्कलेस्सा जाव गेवेज्जा ताव सुक्कलेस्सा ॥ ११०४. अणुत्तरे एगा परमसुक्कलेस्सा" ॥ ११०५. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा किं सम्मपिट्ठी ? मिच्छादिट्ठी ? सम्मामिच्छादिट्ठी ? गोयमा ! 'सम्मदिट्ठीवि मिच्छादिट्ठीवि सम्मामिच्छादिट्ठीवि । एवं जाव गेवेज्जा ॥ ११०६. अणुत्तरोववातिया सम्मट्टिी, णो मिच्छादिट्ठी णो सम्मामिच्छादिट्ठी ॥ ११०७. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा किं णाणी ? अण्णाणी ? ‘णाणीवि अण्णाणीवि" 'जे णाणी ते णियमा तिण्णाणी, तं जहा-आभिणिवोधियणाणी सुयणाणी अवधिणाणी । जे अण्णाणी ते णियमा तिअण्णाणी, तं जहा-मतिअण्णाणी सुयअण्णाणी, विभंगणाणी य" । एवं जाव गेवेज्जा॥ ११०८. अणुत्तरोववातिया णाणी, णो अण्णाणी 'नियमा तिण्णाणी" । ११०६. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा किं मणजोगी ? वइजोगी ? कायजोगी ? गोयमा ! मणजोगीवि वइजोगीवि कायजोगीवि जाव अणत्तरा ।।। १११०. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा किं सागारोवउत्ता? अणागारोवउत्ता ? गोयमा ! दुविहावि जाव अणुत्तरा ।। सव्वं जाव मणामतरता चेव गंधेणं पण्णत्ता ७. गोयमा दोवि (क,ख,ग,ट,त्रि) । जाव अणुत्तरोववातिया (क, ख, ग, ट, त्रि)। ८. तिण्णि णाणा तिण्णि अण्णाणा नियमा (क,ख, १. "सुकुमालच्छविफासेणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। ग,ट,त्रि); जे णाणी तिण्णि णाणा तिण्णि २. वि जाव अणुत्तरोववातिया (क, ख, ग, ट, अण्णाणा नियमा (ता); चिह्नाङ्कितः पाठो त्रि)। वत्त्याधारेण स्वीकृतः, द्रष्टव्यं ३।१०४ सूत्रम । ३. वि पम्हा (क, ख, ग, ट, त्रि)। ९. तिणि णाणा नियमा (क,ख,ग,ट,त्रि); नियमा ४. सेसेसु एक्का सुक्कलेस्सा अणुत्तरोववातियाणं तिण्णाणी तं आभिणिबो ३ (ता)। एक्का परमसुविकला (क, ख, ग, ट, त्रि)। १०.११०८,११०६ सूत्रयोः स्थाने क,ख,ग,ट,त्रि' ५. सम्मामिच्छदिट्ठी (क,ख,ग,त्रि) । आदर्शेषु पाठसंक्षेपोस्ति-तिविधे जोगे दुविहे ६. तिण्णिवि जाव अंतिमगेवेज्जा (क, ख, ग, ट, उवओगे सव्वेसि जाव अणुत्तरा। त्रि)। Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ४६६ ११११. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा ओहिणा केवतियं खेत्तं जाणंति पासंति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं अधे जाव 'इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते, उड्ढं जाव सगाई' विमाणाइं, तिरियं जाव असंखेज्जा दीवसमुद्दा एवं सक्कीसाणा पढम, दोच्चं च सणकुमारमाहिंदा । तच्चं च बंभ लंतग सुक्कसहस्सारग चउत्थी ॥१॥ आणयपाणयकप्पे, देवा पासंति पंचमि पुढवीं। तं चेव आरणच्चुय, ओहीनाणेण पासंति ।।२।। छट्ठीं हेट्ठिममज्झिमगेवेज्जा, सत्तमि च उवरिल्ला। संभिण्णलोगनालिं पासंति अणुत्तरा देवा ।।३।। १११२. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं कति समुग्धाता पण्णता ? 'गोयमा ! पंच समुग्धाता पण्णत्ता, तं जहा"--वेदणासमुग्घाते कसायसमुग्घाते मारणंतियसमुग्घाते वेउव्वियसमुग्घाते तेजससमुग्धाते । एवं जाव अच्चुया ॥ १११३. गेवेज्जणुत्तराणं पुच्छा । गोयमा ! पंच-वेदणासमुग्घाते कसायसमुग्घाते मारणंतियसमुग्घाते विउव्वियसमुग्घाते तेजससमुग्घाते । णो चेव णं वेउव्वियसमुग्घातेण वा तेयासमुग्घातेण वा समोहणिसु वा समोहणंति वा समोहणिस्संति वा ।। १११४. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा केरिसयं खुह-पिवासं पच्चणुभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! 'तेसि णं देवाणं णत्थि खुह-पिवासा। एवं" जाव अणुत्तरोववातिया ॥ १११५. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा किं* एगत्तं पभू विउवित्तए ? पुहत्तं' पभू विउवित्तए ? 'गोयमा ! एगत्तंपि पभू विउवित्तए, पुहत्तंपि पभू विउव्वित्तए" एगत्तं विउव्वेमाणा एगिदियरूवं वा जाव पंचेंदियरूवं वा विउव्वंति, पुहत्तं विउव्वेमाणा एगि१. अवही (ग)। अनुत्तरोपपातिकसूत्रं पृथगस्ति-एवमनुत्तरो२. रयणप्पभा पुढवी (क,ख,ग,ट,त्रि) । पपातिकानामपि वक्तव्यम् । आदर्शेषु प्रस्तुतसूत्रं ३. साई (क,ख,ग,ट,त्रि)। द्विरूपं लभ्यते-गेविज्जणुत्तरा णं आदिल्ला ४. 'ता' प्रतौ गाथात्रयस्य स्थाने संक्षिप्तपाठो- तिण्णि समुग्धाता पण्णत्ता (क, ट); स्ति-सव्वेवि जाव संभिण्णलोगणालिं पासंति गविज्जाणं आदिल्ला तिण्णिसमुग्धाता पण्णत्ता अणुत्तरा देवा । वृत्तिकृता प्रज्ञापनाया आधा- (ख,ग,त्रि); एषु 'अनुत्तरदेवानां सूत्रं लिखितं रेण विस्तृतपाठः उल्लिखितः, 'उक्तं च' नास्ति । इत्युल्लेखपूर्वकं गाथा त्रयमुद्धतम् । 'ता' प्रतौ ७. णत्थि खुहपिवासं पच्चणुभवमाणा विहरति । ततीयगाथाया अन्तिमचरणद्वयमुल्लिखितमस्ति, (क,ख,ग,ट,त्रि); नास्त्येतद् यत्ते क्षुप्पिपासं तेन ज्ञायते गाथात्रयं ताडपत्रीयादर्शस्य पाठ- प्रत्यनुभवन्तो विहरंति (मवृ)। परम्परायां सम्मतमस्ति । ८. x (ग, त्रि, मव)। ५. पंच आदिल्ला (ता) । ६. पहुत्तं (क, ख, ग, ट); पुहुत्तं (त्रि)। ६. वृत्ती अवेयकसूत्रं स्वीकृतपाठवद् विद्यते, केवलं १०. हंता पभू गोयमा (त्रि)। Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० जीवाजीवाभिगमे दियरूवाणि वा जाव पंचेंदियरूवाणि वा 'ताई संखेज्जाइं पि असंखेज्जाइंपि सरिसाइंपि असरिसाइं पि संबद्धाइं पि असंबद्धाइं पि रूवाइं" विउव्वंति, विउव्वित्ता 'ततो पच्छा" जहिच्छिताई कज्जाइं करेंति । एवं जाव अच्चओ।।। १११६. गेवेज्जादेवा' किं एगत्तं पभू विउवित्तए ? पुहत्तं पभू विउव्वित्तए ? गोयमा ! एगत्तं पि पभू विउव्वित्तए, पुहत्तं पि पभू विउवित्तए, णो चेव णं संपत्तीए विउव्विसु वा विउव्वंति वा विउव्विस्संति वा । एवं अणुत्तरोववातिया ॥ १११७. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा केरिसयं सातासोक्खं पच्चणुभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! मणुण्णे सद्दे मणुण्णे रूवे मणुण्णे गंधे मणुण्णे रसे मणुण्णे फासे पच्चणुभवमाणा विहरंति जाव गेवेज्जा॥ १११८. अणुत्तरोववातिया पुच्छा । गोयमा ! अणुत्तरा सदा अणुत्तरा रूवा अणुत्तरा गंधा अणुत्तरा रसा अणुत्तरा फासा पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ १११६. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा केरिसगा इड्ढीए पण्णत्ता ? गोयमा ! महिड्ढीया महज्जुइया महाबला महायसा महेसक्खा महाणु भागा' जाव' अच्चुओ॥ ११२०. गेवेज्जा देवा पूच्छा । गोयमा ! 'सव्वे समिड्ढीया समज्जुइया समबला समयसा समाणुभागा समसोक्खा अणिदा अप्पेसा अपुरोहिया अहमिदा" णामं ते देवगणा पण्णत्ता समणाउसो ! एवं अणुत्तरावि ॥ ११२१. सोहम्मीसाणेसुणं भंते ! कप्पेसु देवा केरिसया विभूसाए पण्णत्ता ? गोयमा ! १. संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा संवद्धाणि वा ६. इड्ढीए पण्णत्ता जाव (क, ख, ग, ट, त्रि) । सरिसाणि वा असरिसाणि वा (ता)। ७. चिन्हाङ्कितः पाठः १०५४ सूत्रस्य वृत्ते राधारेण २. अप्पणो (क, ख, ग, ट, त्रि)। स्वीकृत.। मलयगिरिणा प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ ३. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' नैष पाठो व्याख्यातः ताडपत्रीयादर्श अर्वा आदर्शेषु एवं पाठभेदोस्ति-गेवेज्जणुत्तरोववा- चीनादर्शेषु च 'सव्वे महिड्ढीया जाव अहमिदा' तिया देवा किं एगत्तं पभू विउवित्तए पुवत्तं एवं पाठोस्ति, किन्तु प्रज्ञापनायाः स्थानपदावपभू विउवित्तए ? गोयमा ! एगत्तंपि लोकनेन (२०६०) प्रस्तुतसूत्रस्य १०५४ पूहत्तंपि, नो चेव णं संपत्तीए विउव्विसु वा सूत्रस्य' वृत्तेरवलोकनेन (वृत्ति पत्र ३६३) विउव्वंति वा विउविस्संति वा । च स्वीकृतपाठस्यैव सङ्गतिविभाव्यते । ४. १११७, १११८ सूत्रयोः स्थाने क, ख, ग, ट, ८.११२१-११२३ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु वाचना भेदोस्ति--सोहम्मीसाण- त्रि' आदर्शेषु वाचना भेदोस्ति-सोहम्मीसाणा देवा केरिसयं सायासोक्खं पच्चणुब्भवमाणा देवा केरिसया विभूसाए पण्णत्ता ? गोयमा ! विहरंति ? गोयमा ! मणुण्णा सद्दा जाव दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-वेउव्वियसरीरा य मणुण्णा फासा जाव गेविज्जा। अणुत्तरोववा- अवेउव्वियसरीरा य, तत्थ णं जेते वेउव्वियइया अणुत्तरा सदा जाव फासा। सरीरा ते हारविराइयवच्छा जाव दस दिसाओ ५. अतः परं ११२० सूत्रपर्यन्तं वृत्तौ एतावदेव उज्जोवेमाणा पभासेमाणा जाव पडिरूवा, तत्थ व्याख्यातमस्ति-एवं तावद् वक्तव्यं यावद- णं जेते अवेउव्वियसरीरा ते णं आभरणवसणनुत्तरोपपातिका देवाः। रहिता पगतित्था विभूसाए पण्णत्ता। सोह Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते णं आभरणवसणरहिता पगतित्था विभूसाए पण्णत्ता। तत्थ णं जेते उत्तरवेउव्विया ते णं हारविराइयवच्छा जाव' दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा विभूसाए पण्णत्ता ॥ ११२२. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवीओ केरिसियाओ विभूसाए पण्णत्ताओ? गोयमा ! दुविधाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-भवधारणिज्जाओ य उत्तरवेउव्वियाओ य । तत्थ णं जाओ भवधारणिज्जाओ ताओ णं आभरणवसणरहिताओ पगतित्थाओ विभूसाए पण्णत्ताओ। तत्थ णं जाओ उत्तरवेउव्वियाओ ताओ णं अच्छराओ सुवण्णसद्दालाओ सवण्णसहालाई वत्थाई पवर परिहिताओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ चंदाहियसोमदंसणओ उक्का विव उज्जोवेमाणीओ विज्जुघणमरीइसूरदिप्पंततेयअहिययरसण्णिकासाओ सिंगारागारचारुवेसाओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ। 'सेसेसु देवा, देवीओ णत्थि" जाव अच्चुतो।। ११२३. गेवेज्जादेवा केरिसया विभूसाए पण्णत्ता ? गोयमा ! गेवेज्जादेवाणं एगे भवधारणिज्जे सरीरए आभरणवसणरहिते पगतित्थे विभूसाए पण्णत्ते । एवं अणुत्तरावि ॥ ११२४. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा केरिसए कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! इठे सद्दे इ8 रूवे इ8 गंधे इठे रसे इठे फासे पच्चणुभवमाणा विहरंति । एवं जाव गेवेज्जा॥ ११२५. अणुत्तरोववातियाणं अणुत्तरा सद्दा जाव अणुत्तरा फासा ।। ११२६. ठिती सव्वेसिं भाणियव्वा देवीणवि॥ म्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवीओ केरिसि- रावि । याओ विभूसाए पण्णत्ताओ ? गोयमा ! दुवि- १. पण्ण० २।४६ । धाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-वेउन्वियसरीराओ २. °सद्दालगाओ (ता)। य अवेउव्वियसरीराओ य, तत्थ णं जाओ ३. °सद्दालगाइं (ता)। वे उब्वियसरीराओ ताओ सवण्णसहालाओ ४. ४ (ता)। सुवण्णसद्दालाई वत्थाई पवर परिहिताओ ५. ४ (ता)। चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणि- ६. (ता)। डालाओ सिंगारागारचारुवेसाओ संगय जाव ७. 'ता' प्रतो ईशानस्य पृथग् निर्देशोस्ति, अन्योपि पासातीयाओ जाव पडिरूवा, तत्थ णं जाओ पाठभेदो विद्यते-सोहं २ देवा केरिसए कामअवेउब्वियसरीराओ ताओ णं आभारणवसण- भोगे पच्चणुभवमाणा वि ? गो इठे सद्दे ५ रहियाओ पगतित्थाओ विभूसाए पण्णत्ताओ, पच्चणु । एवं देवीओ। एवीसाणेपि २। सेसेसु देवा, देवीओ णत्थि जाव अच्चुओ, सणंकूमारादि जहा सोहम्मा जाव अणुत्तरागेवेज्जगदेवा केरिसया विभूसाए० ? गोयमा! देवा । आभरणवसणरहिया, एवं देवी पत्थि भाणि- ८. 'ता' प्रती विस्तृतपाठो विद्यते—सोहम्मादेवाणं यव्वं, पगतित्था विभूसाए पण्णत्ता, एवं अणुत्त- भंते ! केवतिकालं ठिती पं? गो जहं पलि Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ ११२७. अणंतरं' चयं चइत्ता जे जहिं गच्छति तं भाणियव्वं ॥ ११२८. 'सोहम्मे णं भंते ! कप्पे बत्तीसाए विमाणावाससतसहस्सेसु एगमेगंसि विमाणावासंसि " सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता पुढवीक्काइयत्ताए' देवत्ताए देवित्ताए आसणरायणखंभभंडमत्तोवकरणत्ताए उववण्णपुव्वा ? हंता गोयमा ! असई अदुवा अतत् । एवमीसाणेवि ॥ ११२६. सणकुमारे पुच्छा। हंता गोयमा ! असई अदुवा अणतखुत्तो, णो चेव णं देवि - ता जाव गेवेज्जा | ११३०. पंचसु णं भंते ! महतिमहालएसु अणुत्तरविमाणेसु सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता पुढवीक्काइयत्ताए देवत्ताए देवित्ताए आसणसयणखंभभंडमत्तोवकरणत्ता उववण्णपुव्वा ? हंता गोयमा ! असई अदुवा अणतखुत्तो, णो चेव णं देवत्ताए वा देवित्ताए ॥ ११३१. रइयाणं भंते! केवतिकालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई ॥ ११३२. तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिष्णि पलि - उक्को दो सागरोवमाणि । देवीणं जहं पलि उक्को सत्त पलि । ईसाणे देवाणं जहं सातिरे पलि उक्को साइरेगाई दो सागरोवमाणि । देवी जहं सातिरे पनि उक्को णव पलितो । सकुमा जहं दो सागरो उक्को ७ । माहिदे सातिरे ७ । बंभे ७, १० । लंतए १०, १४ । महा १४, १७ । एवं एक्केक्कं जाव अणुत्तराणं जहं ३१ उक्को ३३ । वृत्तावपि विस्तृतव्याख्या विद्यते । पूर्णपाठार्थं द्रष्टव्यं प्रज्ञापनायाश्चतुर्थं पदम् ४।२१३ - २६६ सूत्राणि । ६. देवीत्ता एवि (क, ग ); देवाण य ( ट ) ; देवत्तावि (त्रि ) । १. 'ता' प्रती किञ्चिद् विस्तृतः पाठोस्तिसोधमा सोहंमा देवहितो अणंतरे चयं चयित्ता कहिं गच्छति २ ? पुढ आउ वणस्सति पंचिदिए सु खाउ । एवीसाणा । सणकुमारा एवं चेव णवरं एगिदिएसु ण उववज्जंति । एवं जाव सहस्सारो । आणतादिसु मणुस्सेसु उववज्जेति जाव अणुत्तरा । वृत्तावपि किञ्चिद् व्याख्यातमस्ति । पूर्णपाठार्थं द्रष्टव्यं प्रज्ञापनायाः षष्ठं पदम्, ६।१२३-१२५ सूत्राणि । जीवाजीवाभिगमे २. सोहम्मीसाणेसु णं भंते कप्पेसु (क, ख, ग, ट, त्रि) । ३. पुढविकाइयत्ताए जाव वणस्सतिकाइयत्ताए (क, ख, ग, ट, त्रि); असो पाठः समीचीनो नास्ति, मलयगिरिणापि असो पाठ: समीक्षितः - पृथ्वीकायतया देवतया देवीतया, इह च बहुषु पुस्तकेष्वेतावदेव सूत्रं दृश्यते, क्वचित्पुनरेतदपि - 'आउका इयत्ताए तेउक्काइयत्ताए' इत्यादि तन्न सम्यगवगच्छामस्तेजस्कायस्य तत्रासम्भवात् । ४. अतः ११३० सूत्रपर्यन्तं 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु भिन्ना वाचना दृश्यते - सेसेसु कप्पे एवं चेव, णवरि नो चेव णं देवित्ताए जाव वेज्जा, अणुत्तरोववातिएसुवि एवं णो चेव णं देवत्ता देवित्ताए । सेत्तं देवा । ५. सं० पा० - सव्वपाणा जाव देवत्ताए देवित्ताए आसण जाव हंता । ६. केवतियं कालं (क, ख, ग, ट, त्रि) । ७. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदशेषु एवं पाठभेदोस्ति — एवं सव्वेसि पुच्छा, तिरिक्खजोणियाणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्को - Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहडिवत्ती ४७३ ओवमाइं । एवं मणुस्सा। देवा जहा णेरइया ।। ११३३. णेरइए' णं भंते ! णेरइयत्ताए कालतो केवच्चिरं होति ? जहा कायद्विती देवाणवि एवं चेव ॥ ११३४. तिरक्खिजोणिए णं भंते ! तिरिक्खजोणियत्ताए कालतो केवच्चिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालं ॥ ११३५. मणुस्से णं भंते ! मणुस्सेत्ति कालतो केवच्चिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाई॥ ११३६. णेरइयस्स' णं भंते ! केवतिकालं अंतरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सतिकालं ।। ११३७. तिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! केवतिकालं अंतरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं । मणुय-देवाणं वणस्सतिकालं ॥ ११३८. एतेसि णं भंते ! णेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं मणस्साणं देवाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा मणुस्सा, णेरइया असंखेज्जगुणा, देवा असंखेज्जगुणा, तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा । सेत्तं चउव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा ॥ सेणं तिण्णि पलिओवमाई, एवं मणस्साण वि देवाणं जहा णेरइयाणं। १. ११३३,११३४ सूत्रयोः स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एवं पाठभेदोस्ति-देवणेरइयाणं जा चेव ठिती सच्चेव संचिट्ठणा। तिरिक्खजोणियस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। २.११३६,११३७ सूत्रयोः स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेष एवं पाठभेदोस्ति-णेरइयमणुस्सदेवाणं अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। तिरिक्खजोणियस्स अंतरं जहणेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तसाइरेगं। Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थी पंचविहपडिवत्ती १. तत्थ णं'जेते एवमाहंसु-'पंचविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता' ते एवमाहंसु, तं जहा--एगिदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया पंचिदिया। २. से किं तं एगिदिया ? एगिदिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-'पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य" । 'एवं जाव पंचिदिया दुविहा--पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य" । ३. एगिदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं॥ ४. बेइंदिया जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बारस संवच्छराणि। एवं तेइंदियस्स एगूणपण्णं राइंदियाणं, चउरिदियस्स छम्मासा, पंचिदियस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं॥ ५. एगिदियअपज्जत्तगस्सणं केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं । एव पंचण्हवि'॥ ६. एगिदियपज्जत्तगस्स' णं जाव पंचिंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावीस वाससहस्साइं अंतोमुत्तूणाई। ‘एवं उक्कोसियावि ठिती अंतोमुहत्तूणा सव्वेसि पज्जत्ताणं कायव्वा ॥ ७. एगिदिए णं भंते ! एगिदिएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमु हुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। ८. बेइंदियस्स णं भंते ! बेइंदिएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्ज कालं जाव चरिदिए संखज्ज कालं ।। * १. पंचेंदिए णं भंते ! पंचिदिएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं ॥ १०. एगिदियअपज्जत्तए णं भंते ! कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं जाव पंचिंदियअपज्जत्तए ।। ११. एगिदियपज्जत्तए णं भंते ! कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतो१. ४ (क, ख, ग, त्रि)। ५. सव्वेसि अपज्जत्ताणं जाव पंचिंदियाणं (क, ख, २. पज्जत्ता य अपज्जत्ता य (ता)। ___ग, ट, त्रि)। ३. ४ (ता)। ६. पज्जत्तेगिदियाणं (क, ख, ग, ट, त्रि) । ४. अपज्जत्तएगिदियस्स (क, ख, ग, ट, त्रि)। ७. एवं सव्वेसि अंतोमुहुत्तूणगा सयाठिति (ता) । ४७४ Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थी पंचविहपडिवत्ती मुहत्तं, उक्कोसेणं संखिज्जाइं वाससहस्साई। १२. 'एवं बेइंदिएवि, णवरि-संखेज्जाइं वासाइं । १३. तेइंदिए णं भंते ! संखेज्जा राइंदिया । १४. चउरिदिए णं संखेज्जा मासा ॥ १५. पंचिदिए सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेग" ॥ १६. एगेंदियस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाई॥ " १७. बेइंदियस्स णं 'केवतियं कालं अंतरं" होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। १८. एवं तेइंदियस्स चउरिदियस्स पंचेंदियस्स 'अपज्जत्तगाणं एवं चेव। पज्जत्तगाणवि एवं चेव ॥ १६. एएसि णं भंते ! एगिदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं पंचिदियाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया, एगिदिया अणंतगुणा ॥ २०. एवं अपज्जत्तगाणं-सव्वत्थोवा पंचेंदिया अपज्जत्तगा, चरिदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसा हिया, एगिदिया अपज्जत्तगा अणंतगुणा । २१. सव्वत्थोवा चतुरिंदिया पज्जत्तगा, पंचेंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, एगिदिया पज्जत्तगा अणंतगुणा ॥ २२. एतेसि णं भंते ! एगिदियाणं पज्जत्ताअपज्जत्तगाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा एगिदिया अपज्जत्तगा, एगि१. एवं जा ठिती सा संखेज्जगुणा जाव चतुरिं- पज्जत्तगा विसेसाहिया' इति पाठो विद्यते । दिया। पंचि पज्जत्तएति कालतो के गो जह वत्तौ नास्ति व्याख्यातोसौ। अपर्याप्तसत्रे आदअंतोमु उक्को सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं शेष्वपि नास्ति 'सइंदियाणं' इति पाठो नास्ति। (ता)। प्रारंभे तेनोपसंहारेपि नास्ति अपेक्षितोसौ । २. अंतरं कालओ केवच्चिरं (क,ख, ग, ट, त्रि)। एवं 'सइंदिय' सूत्रमपि वृत्तौ नास्ति व्याख्यातम्, ३. जहाहिगणं पंचण्डं अंतरं एवं अपज्जत्ताणवि पंचविधप्रतिपत्तो नापेक्षितमपि । 'क, ख, ग, पंचण्हं अंतरं एवं पज्जत्ताणं पंचण्हं अंतरं ट, त्रि' आदर्शेषु तदेवं विद्यते-एतेसि णं (ता)। भंते ! सइंदियाणं पज्जत्तगा अपज्जत्तगाणं ४. 'ता' प्रतौ १६-२५ सूत्राणां स्थाने संक्षिप्त- कयरे ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सइंदिय वाचना दृश्यते-अप्पा बहगा पंच जहा बहु- अपज्जगा, सइंदिया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा । वत्तव्वताए। अतोने ‘एवं एगेंदियावि' इति संक्षिप्त५. अतः परं क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु 'सइंदिय- पाठोस्ति। Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७६ दिया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा || २३. एतेसि णं भंते ! बेइंदियाणं पज्जत्ताअपज्जत्तगाणं अप्पाबहुं ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बेइंदिया पज्जत्तगा, अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा || २४. एवं इंदिय - चउरिदिय पंचिदिया वि ॥ २५. एतेसि णं भंते ! एगिंदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं पंचिदियाण य पज्जत्तगाण य अपज्जत्तगाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा चउरिदिया पज्जत्तगा, पंचिदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, इंदिया पत्ता विसेसाहिया, तेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, पंचिदिया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, चउरिदिया अपज्जत्ता विसेसाहिया, तेइंदिया अपज्जत्ता विसेसाहिया, इंदिया अज्जत्ता विसेसाहिया, एगिंदिया अपज्जत्ता अनंतगुणा', एगिंदिया पज्जत्ता संखेज्जगुणा' । सेत्तं पंचविधा संसारसमावण्णगा जीवा ॥ १. अनंतगुणा सइंदिया अपज्जत्ता विसेसाहिया (क, ख, ग, ट, त्रि) । जीवाजीवाभिगमे २. संखेज्जगुणा सइंदियपज्जत्ता विसेसाहिया सईदिया विसेसाहिया (क, ख, ग, ट, त्रि) । Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी छव्विहपडिवत्ती १. तत्थ णं जेते एवमाहंसु 'छव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा' ते एवमाहंसु, तं जहापुढविकाइया आउक्काइया तेउक्काइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया तसकाइया ॥ २. से' किं तं पुढविकाइया ? पुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सुहुमपुढविकाइया बादरपुढविकाइया य॥ ३. सुहुमपुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एवं बादरपुढविकाइयावि । ‘एवं जाव वणस्सतिकाइया" ।।। ४. से किं तं तसकाइया ? तसकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य॥ ५. पुढविकाइयस्सणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं॥ ६. 'आउकाइयस्स सत्त वाससहस्साइं, तेउकाइयस्स तिण्णि राइंदियाई, वाउकाइयस्स तिण्णि वाससहस्साई, वणस्सतिकाइयस्स दस वाससहस्साइं, तसकाइयस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं" ॥ ७. 'अपज्जत्तगाणं' सव्वेसि जहण्णणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं । पज्जत्तगाणं सव्वेसि उक्कोसिया ठिती अंतोमुहुत्तूणा" ॥ ८. पुढविकाइए णं भंते ! पुढविकाइयत्ति कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! १. पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिविषयाणि त्रीणि ....... पर्याप्तविषया षट्सूत्री पाठसिद्धा त्रीणि, त्रसकायविषयमेकमिति सर्वसङ्ख्यया (मवृ)। षोडश सूत्राणि पाठसिद्धानि (मवृ)। ६. अपज्जत्ता अंतोमु पज्जत्ताणं ठिती अंतोमुहु२. एवं चउक्कएणं भेएणं आउतेउवाउवणस्सति- तूणा (ता)। काइयाणं चतु णेयव्वा (क, ख, ग, ट, त्रि)। ७. ८-१० सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रती एवं वाचना ३. स्थितिविषयं सूत्रषटकं सुप्रतीतम् (म)। भेदोस्ति-पुढविक्काइए णं भंते ! पुढवि ४. एवं सव्वेसि ठिती यव्वा, तसकाइयस्स जह- पुढवीणं संचिट्ठणा पुढविकालं जाव वाऊणं । न्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोबमाई वणस्सतीणं वणकालो । तसकातियाणं संचिटणा (क, ख, ग, ट, त्रि)। दो सागरोवमसहस्सा संखेज्जवासमब्भहिया । ५. अपर्याप्तविषयाण्यपि षट सूत्राणि पाठसिद्धानि ४७७ Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे जहणणं अंतोमुहुत्तं, उवकोसेणं असंखेज्जं कालं ' - असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिओकालओ, खेत्तओ' असंखेज्जा लोया । एवं' आउ-तेउ वाउक्काइयाणं ॥ ६. वणस्सइकाइयाणं अनंतं कालं ' - अणंताओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा - असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, ते णं पोग्गल परियट्टा आवलियाए असंखेज्जतिभागे || ४७८ १०. तसकाइए णं भंते ! तसकाइयत्ति कालतो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतमुत्तं, उक्कोसे दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाई || ११. 'अपज्जत्तगाणं छहवि जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं " ॥ १२. पुढविक्काइयपज्जत्तए' णं भंते! पुढविक्काइयपज्जत्तएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साइं । एवं आऊवि ॥ १३. ते उक्काइयपज्जत्तए णं भंते ! तेउक्काइयपज्जत्तएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई राइंदियाई ॥ १४. वाउक्काइयपज्जत्तए णं भंते ! वाउक्काइयपज्जत्तएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साइं ॥ १५. वणस्सइकाइयपज्जत्तए णं भंते ! वणस्स इकाइयपज्जत्तएति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साइं || १६. तसकाइयपज्जत्तए णं भंते ! तसकाइयपज्जत्तएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं ॥ १७. अंतरं पुच्छा । गोयमा ! पुढवीणं वणस्सतिकालो जाव वाऊणं । वणस्सतीणं पुढविकालो । तसस्स वणस्सतिकालो । एवं अपज्जत्ताणं एवं पज्जत्ताणं अंतरं ॥ १. सं० पा० - कालं जाव असंखेज्जा । २. एवं जाव (क, ख, ग, ट, त्रि) । ३. सं० पा० – कालं जाव आवलियाए । ४. अपज्जत्ताणं संचिट्ठणा अंतोमुहुत्तं ( ता ) । ५. १२-१६ एतानि पञ्च सूत्राणि मलयगिरिवृत्तिमनुसृत्य प्रज्ञापनायाः काय स्थितिपदात् ( १८/३६-४४) गृहीतानि सन्ति । 'ता' प्रती या वाचनास्ति सा अर्वाचीनादर्शेषु नोपलभ्यते । ताः - पज्जत्ताणं संचिट्ठणा जा जस्सुक्कोसा संखेज्जगुणा जाव वणस्सतीणं संखेज्जाई वाससहस्साइं । तसाणं पज्जत्ताणं संचिट्ठा सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं । क, ख, ग, ट, त्रिः - पज्जत्तगाणं – वाससहस्सा संखा । पुढविदगाणिलतरूण पज्जत्ता । तेऊ राईदिसंखा तससागरसतपुहत्तमन्भहियं ( पुहुत्ताई - ग ) । पज्जत्तगाणं सव्वेसि एवं । २. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदशेषु एवं पाठभेदोस्ति – पुढविकाइयस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होति ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो | एवं आउ-तेउ वाउकाइयाणं वणस्स - इकालो, तसकाइयाणवि वणस्सइकाइयस्स पुढविकाइयकालो । एवं अपज्जत्तगाणवि वणस्सइकालो, वणस्सईणं पुढविकालो । पज्जत्तगाणवि एवं चेव वणस्सइकालो, पज्जत्तवणस्सईणं पुढविकालो । वृत्तौ पृथ्वीका यिक सूत्रस्य व्याख्याया अनन्तरं एवं व्याख्यातमस्ति — एवमप्तेजोवायुत्रससूत्राण्यपि भावनीयानि । वनस्पतिसूत्रे उत्कर्ष तो संख्येयं कालम् 'असं खेज्जाओ उस्सप्पिणी ओसप्पिणीओ कालतो Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी छविहपडिवत्ती ४७६ १८. अप्पाबहुयं'-सव्वत्थोवा' तसकाइया, तेउक्काइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउक्काइया विसेसाहिया, वणस्सतिकाइया अणंतगुणा। एवं अपज्जत्तगावि' पज्जत्तगावि ॥ १६. एतेसि' णं भंते ! पुढविकाइयाणं पज्जत्तगाण अपज्जत्तगाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा 'बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पुढविकाइया अपज्जत्तगा, पुढविकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा। सव्वत्थोवा आउक्काइया अपज्जत्तगा, पज्जत्तगा संखेज्जगुणा जाव वणस्सतिकाइयावि। सव्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा, तसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ।। २०. एएसि" णं भंते ! पुढविकाइयाणं जाव तसकाइयाणं पज्जत्तग-अपज्जत्तगाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा, तसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, तेउक्काइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया आउक्काइया वाउक्काइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, तेउक्काइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, पुढवि-आउ-वाउपज्जत्तगा विसेसाहिया, वणस्सतिकाइया अपज्जत्तगा अणंतगुणा", वणस्सतिकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा" ॥ २१. सुहुमस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं । ‘एवं जाव सुहुमणिओयस्स", एवं" अपज्जत्तगाणवि, पज्जत्तगाणवि जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं ।। २२, सुहमे" णं भंते ! सुहुमेत्ति कालतो केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतो खेत्ततो असंखेज्जा लोगा' इति वक्तव्यम् (वृत्ति (क, ख, ग, ट)। पत्र ४१२) तथा अपर्याप्तकानां पर्याप्तकानां ११. संखेज्जगुणा सकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया च अन्तरकालो नैव व्याख्यातोस्ति । (क, ख, ग, ट)। १. १८-२० सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रती संक्षिप्ता १२. एवं सव्वं जाव सुहुमणिओगे सुहमवणस्सति (ता)। वाचनास्ति-अप्पाबहुगा पंच । १३. अंतः सूत्रपर्यन्तं 'ता' प्रती एवं पाठभेदोस्ति२. प्रथममल्पबहुत्वम् । सुहमअपज्जत्तस्स णं भं केव ट्ठि ? गो! जहं ३. द्वितीयमल्पबहुत्वम् । अंतोमु उक्को अंतो। एवं सव्वे ७ । एवं पज्ज४. तृतीयमल्पबहुत्वम् । त्तावि मुहुत्तं ७ । वृत्तो एतावतः पाठस्य स्थाने ५. चतुर्थमल्पबहुत्वम् । चतुर्दश सूत्राणां सङ्केतोस्ति-एवं सप्तसूत्री ६. सं० पा०--अप्पा वा एवं जाव विसेसाहिया। अपर्याप्तविषया सप्तसूत्री पर्याप्तविषया ७. पञ्चममल्पबहुत्वम् । वक्तव्या, सर्वत्रापि जघन्यत उत्कर्षतश्चान्त८. पृथिव्यपवायवोऽपर्याप्तका: क्रमेण विशेषाधिकाः र्मुहूर्तम् (वृत्ति पत्र ४१४) । प्रभूतप्रभूततरप्रभूततममसंख्येयलोकाकाशप्रदेश- १४. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'ता' प्रती एवं पाठराशिमानत्वात् (म)। भेदोस्ति–सुहमे णं भंते ! सुहुमेति कालतो ९. ततः पृथिव्यप्वायवः पर्याप्ता: क्रमेण विशेषा- केवचिरं होति ? पुढविकालो, एवं सव्वे ७ । धिकाः (मवृ)। सुहमअप जहं अंतोमू उक्को अंतो एवं सब्वे ७॥ १०. अणंतगुणा सकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया एवं पज्जत्तापि मुहत्तं ७ । Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८० जीवाजीवाभिगमे मुहत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जकालं जाव' असंखेज्जा लोया। सव्वेसिं पुढविकालो जाव सुहुमणिओयस्स पुढविकालो। अपज्जत्तगाणं' सव्वेसिं जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं । एवं पज्जत्तगाणवि सव्वेसिं जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं ॥ - २३. सुहुमस्स णं भंते ! 'केवतियं कालं अंतरं" होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं-असंखेज्जाओ उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागो। २४. 'सुहुमपुढविकाइयस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होति ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव' आवलियाए असंखेज्जतिभागे । एवं जाव वाऊ। सुहुमवणस्सति-सुहुमनिओगस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं जहा ओहियस्स अंतरं । एवं अपज्जत्ता-पज्जत्तगाणवि अंतरं ॥ २५. अप्पाबहुगं-सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया, सुहुमपुढविकाइया विसेसाहिया, सुहुमआउ-वाऊ विसेसाहिया, सुहमणिओया असंखेज्जगुणा, सुहुमवणस्सतिकाइया अणंतगुणा, सुहमा विसेसाहिया । एवं अपज्जत्तगाणं', पज्जत्तगाणवि एवं चेव ॥ २६. एतेसि णं भंते ! सुहुमाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? सव्वत्थोवा सुहुमा अपज्जत्तगा, सुहुमा पज्जत्ता संखेज्जगुणा" । एवं जाव सुहुमणिगोया ॥ - २७. एएसि णं भंते ! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं जाव सुहमणिओयाण य पज्जत्तापज्जत्ताण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया अपज्जत्तगा, सुहुमपुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहमआउकाइया अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमवाउकाइया अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमतेउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सुहुमपुढवि-आउ-वाउपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहमणिओया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सुहुमवणस्सतिकाइया अपज्जत्तगा अणंतगुणा, सुहुमा अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सुहुमा पज्जत्ता विसेसाहिया ॥ १. जी० ५८। ६. सुहुमे पुढविअंतरं वणस्सतिकालो (ता)। २. वृत्तो ‘एवं' सूत्रसङ्केतो विद्यते-एवं सूक्ष्मा- ७. यथा चेयमौधिकी सप्तसूत्री उक्ता तथाऽपर्याप्तपर्याप्तपथिव्यादिविषयापि षटसुत्री वक्तव्या। विषया सप्तसूत्री पर्याप्त विषया च सप्तसत्री एवं पर्याप्तविषयापि सप्तसूत्री। वक्तव्या नानात्वाभावात् (मवृ)। ३. अंतरं केवच्चिरं (ता)। ८. एवं अप्पाबहुगं (क, ख, ग, ट, त्रि); २५४. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आद- २७ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतौ संक्षिप्ता ”षु एवं पाठभेदोस्ति-सुहमवणस्सति काइयस्स वाचनास्ति अप्पाबहुगाणि पंच। सहमणिओयस्सवि जाव असंखेज्जइभागो। ६. अपज्जत्तगाणं सुहमा अपज्जत्ता विसेसाहिया पूढविकाइयादीणं वणस्सतिकालो। एवं अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाणवि । १०. असंखेज्जगुणा (त्रि) इति अशुद्धम् । ५. जी० ५९। Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी छविहपडिवत्ती ४८१ २८. बायरस्स'णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। बादरपुढविकाइयस्स बावीसं वाससहस्साइं, बादरआउकाइयस्स सत्त वाससहस्साइं, बादरतेउक्काइयस्स तिण्णि राइंदियाई. बादरवाउका इयस्स तिण्णि वाससहस्साई, बादरवणस्सतिकाइयस्स दसवाससहस्साई, पत्तेयबादरवणस्सतिकाइयस्स दस वाससहस्साइं, णिओदस्स बादरणिओदस्स य अंतोमुहत्तं जहण्णुक्कस्स, बादरतसकाइयस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं, अपज्जत्ताणं सव्वेसिं अंतोमुहत्तं, पज्जत्ताणं उक्कोसा अंतोमुहुत्तूणा । णिओदस्स बादरणिओदस्स य पज्जत्ताणं अंतोमुहुत्तं जहण्णेणवि उक्कोसेणवि ॥ २६. बायरे णं भंते ! बायरेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं-असंखेज्जाओ उस्सप्पिणी-ओस प्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागो' । बादरपुढविसंचिट्ठणा जहण्णेणं अंतोमुहु त्तं, उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ जाव बादरवाऊ। बादरवणस्सतिकाइयस्स जहा ओहिओ। बादरपत्तेयवणस्सतिकाइयस्स जहा बादरपुढवी। णिोते जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं-अणंताओ उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अड्ढाइज्जा पोग्गलपरियट्टा । बादरणिओते जहा वादरपुढवी। बादरतसकाइयस्स दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमब्भहियाई। अपज्जत्ताणं सव्वेसिं अंतोमुहत्तं । बादरपज्जत्ताणं संचिटणा जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सा तिरेगं । बादरपुढविकाइयस्स संखेज्जाइं वाससहस्साई, एवं आऊ, तेउकाइयस्स संखेज्जाइं राइंदियाई, वाउकाइयस्स संखेज्जाई वाससहस्साइं, एवं बादरवणस्सतिपज्जत्तए, पत्तेगवादरवणस्सतिकाइयस्सवि, बादरणिओदपज्जत्तए जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं, णिओदपज्जत्तए वि अंतोमुहत्तं, बादरतसकाइयपज्जत्तए सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं ।। १. वृत्तिकृता अस्मिन्नालापके त्रिंशत् सूत्राणि वाचना दृश्यते-बायरपुढविकाइयआउतेउव्याख्यातानि। वाउपत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइयस्स बायर२. अतः परं 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एवं निओयस्स एतेसि जहण्णेणं अंतोमु उक्कोसेणं वाचना भेदो विद्यते-ठिई पण्णत्ता, एवं बाय- सत्तरि सागरोबमकोडाकोडीओ। रतसकाइयस्सवि, बायरपुढवीकाइयरस बावीस संखातीयाओ समाओ, अंगुलभागे तहा असंखेज्जा। वाससहस्साइं, बायरआउस्स सत्तवाससहस्सं, ओहे य बायरतरु-अणुबंधो सेसओ वोच्छं ॥१॥ बायरतेउस्स तिण्णि राइंदिया, बायरवाउस्स उस्सप्पिणि-ओसप्पिणी, अडढाइय पोग्गलाण तिण्णि वाससहस्साई, बायरवण दस वाससह __ परियट्टा। स्साइं, एवं पत्तेयसरीरबादरस्सवि, णिओयस्स बेउदधिसहस्सा, खलु साधिया होंति तसकाए ॥२॥ जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमु, एवं बायर- अंतोमुत्तकालो होइ अपज्जत्तगाण सव्वेसि । णिओयस्सवि। अपज्जत्तगाणं सव्वेसि अंतो- पज्जत्तबाय रस्स य, बायरतसकाइयस्सावि ॥३॥ महत्तं, पज्जत्तगाणं उक्कोसिया ठिई अंतोमुह- एतेसिं ठिई सागरोवमसतपुहत्तं साइरेगं तूणा कायव्वा सव्वेसिं। तेउस्स संख राइंदिया, दुविहणिओए मुहुत्तमद्धं तु । ३. अतः परं क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु भिन्ना सेसाणं संखेज्जा, वाससहस्सा य सन्वेसि ॥४॥ Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ जीवाजीवाभिगमे ३०. बादरस्स' णं भंते ! केवतियं कालं अंतर होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो। बादरपुढविकाइयस्स वणस्सतिकालो जाव बादरवाउकाइयस्स, वादरवणस्सतिकाइयस्स पुढविकालो, पत्तेयबादरवणस्सइकाइयस्स वणस्सतिकालो, णिओदो बादरणिओदो य जहा बादरो ओहिओ, बादरतसकाइयस्स वणस्सतिकालो। अपज्जत्ताणं पज्जत्ताणं च एसेव विही॥ ३१. अप्पाबहुयाणि'-सव्वत्थोवा वायरतसकाइया, बायरतेउकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादरवणस्सतिकाइया असंखेज्जगुणा, बायरणिओया असंखेज्जगुणा, वायरपुढविकाइया असंखेज्जगुणा आउ-वाउकाइया असंखेज्जगुणा, बायरवणस्सतिकाइया अणंतगुणा, बायरा विसेसाहिया । एवं अपज्जत्तगाणवि । पज्जत्तगाणं सव्वत्थोवा बायरतेउक्काइया, बायरतसकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेगसरीरबायरा असंखेज्जगुणा, सेसा तहेव जाव वादरा विसेसाहिया ॥ ३२. एतेसि णं भंते ! बायराणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कय रेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? सव्वत्थोवा वायरा पज्जत्ता, बायरा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, एवं सव्वे जाव बायरतसकाइया ॥ ३३. एएसि णं भंते ! बायराणं बायरपुढविकाइयाणं जाव वायरतसकाइयाण य पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? सव्वत्थोवा बायरतेउक्काइया पज्जत्तगा, बादरतसकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायरतसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबायरवणस्सतिकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायरणिओया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पुढवि-आउ-वाउकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायरतेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरवायरवणस्सतिकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायरा णिओगा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, वायरपुढवि-आउ-वाउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायरवणस्सइकाइया पज्जत्तगा अणतगुणा, बायरपज्जत्तगा विसेसाहिया, बायरवणस्सतिकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायरा अपज्जत्तगा विसेसाहिया, बायरा विसेसाहिया ॥ ३४. एएसि णं भंते ! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं जाव सुहुमनिगोदाणं बायराणं बायरपुढविकाइयाणं जाव वायरतसकाइयाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा वायरतसकाइया, बायरतेउकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा, तहेव जाव बायरवाउकाइया असंखेज्जगुणा, सुहुमतेउक्काइया असंखेज्जगुणा, सुहुमपुढविकाइया विसेसाहिया, सुहुम१. अस्य सूत्रस्य स्थाने क, ख, ग, ट, त्रि' आद- ओहे य बाय रतरु, ओघनिओए बायरणिओए य । शेष वाचनाभेदो विद्यते---अंतरं बायरस्स कालमसखेज्ज अंतरं, सेसाण वणस्सतिकालो ॥१॥ बायरवणस्सतिस्स णिओयस्स बायरणिओयस्स २. ३१-३६ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रती संक्षिप्ता एतेसिं चउण्हवि पुढविकालो जाव असंखेज्जा वाचनास्ति-अप्पाबहताणि पंच मीसगाणि लोया, सेसाणं वणस्सतिकालो। एवं पज्जत्त- विभाणितब्वाणि पंच जहा बहवत्तव्वताए । गाणं अपज्जत्तगाणवि अंतरं। Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी छव्हिडिवत्ती आउकाइया सुहुमवाउकाइया विसेसाहिया, सुहमनिओया असंखेज्जगुणा, वायरवणस्सतिकाइया अनंतगुणा, बायरा विसेसाहिया, सुहुमवणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा, सुहुमा विसेसाहिया । एवं अपज्जत्तगावि पज्जत्तगावि, णवरि - सव्वत्थोवा बायर उक्काइया पज्जत्ता, बायरतसकाइया पज्जत्ता असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरी रबायरवणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा, सेसं तहेव जाव सुहुमा पज्जत्ता विसेसाहिया || ३५. एएसि णं भंते ! सुहुमाणं बादराण य पज्जत्ताणं अपज्जत्ताण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? ( गोयमा ! ? ) सव्वत्थोवा बायरा पज्जत्ता, बायरा अपज्जत्ता असंखेज्जगुणा, सव्वत्थोवा सुहुमा अपज्जत्ता, सुहुमपज्जत्ता संखेज्जगुणा, एवं सुमपुढविबायरपुढवि जाव सुहुमनिओया वायरनिओया, नवरं -- पत्तेयसरी रवायर - वणस्सतिकाइया सव्वत्थोवा पज्जत्ता, अपज्जत्ता असंखेज्जगुणा । एवं बादरतसकाइयावि ॥ ३६. सव्वेसि पज्जत्तअपज्जत्तगाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? सव्वत्थोवा वायर उक्काइया पज्जत्ता, बायरतसकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ते चैव अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया अपज्जतगा असंखेज्जगुणा, बायरणिओया पज्जत्ता असंखेज्जगुणा, बायरपुढविकाइया असंखेज्जगुणा, आउ-वाउकाइया पज्जत्ता असंखेज्जगुणा, बाय रतेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबाय रवणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा, वायरणिओया पज्जत्ता असंखेज्जगुणा, पुढ आउ वाउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा सुहुमते उकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमपुढवि आउ वाउकाइया अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमतेउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सुहुमपुढवि - आउ वाउकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमणिगोया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमणिगोया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, बायरवणस्सतिकाइया पज्जत्तगा अनंतगुणा, बायरा पज्जत्तगा विसेसाहिया, बायरवणस्सइकाइया अपज्जत्ता असंखेज्जगुणा, बायरा अपज्जत्ता विसेसाहिया, वायरा विसेसाहिया, सुहुमवणस्सतिकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमा अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्ता संखेज्जगुणा, सुहुमा पज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमा विसेसाहिया || ३७. कतिविधा' णं भंते ! णिओदा' पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा' पण्णत्ता, तं जहाणिओदा य णिओदजीवा य ॥ १. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु वृत्तौ च निगोदा निगोदजीवाश्च यथा सन्निधिलिखिता व्याख्याताश्चसन्ति । ताडपत्रीयादर्श निगोदानां पूर्णं प्रकरणं एकत्र विद्यते, तदनंतरं च निगोदजीवानां ततश्च निगोदानां निगोदजीवानामल्पबहुत्वम् । अस्माभिः ताडपत्रीयादर्शक्रमोतिप्राचीनत्वेन च व्यवस्थितत्वेन स्वीकृतः । अस्मिन् क्रमे समापतितानां सूत्राणां व्यवस्था निम्नाङ्कर्बोद्धव्या अर्वाचीनादर्शवृत्तिः अर्वाचीनादर्शवृत्तिः १-४ २०-२२ ता १-४ ५- १३ २. गिओता (ता) । ४८३ ८-१६ ता १४-१६ १७-१ ता अर्वाचीनादर्शवृत्तिः २०-२२ १७-१ ५-७ २३-२४ २३-२४ ३. दुविहा णिओदा (क, ख, ग, ट, त्रि) । Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८४ जीवाजीवाभिगमे ३८. णिओदा णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहासुहमणिओदा य बायरणिओदा य ।। ३६. सुहुमणिओदा णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-'पज्जत्ता य अपज्जत्ता य"। ४०. बादरणिओदावि दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्ता य अपज्जत्ता य॥ ४१. णिओदा णं भंते ! दव्वट्टयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अणंता ? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता॥ ४२. अपज्जत्ता' णं भंते ! णिओदा दव्वट्टयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अणंता? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता । ४३. पज्जत्ता णं भंते! णिओदा दव्वट्टयाए किं संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अणता ? गोयमा ! णो संखंज्जा, असंखज्जा, णो अणता ।। ४४. सुहमणिओदा णं भंते ! दव्वट्टयाए कि संखेज्जा? असंखेज्जा ? अणता ? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता ॥ ४५. अपज्जत्ता' णं भंते ! सुहुमणिओदा दव्वट्ठयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अणंता ? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता ।। ४६. पज्जत्ता णं भंते ! सुहमणिओदा दव्वयाए कि संखेज्जा? असंखेज्जा ? अणंता ? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता ।। ४७. वादरणिओदा णं भंते ! दव्वट्ठयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अणता ? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता॥ ४८. अपज्जत्ता णं भंते ! बादरणिओदा दव्वट्ठयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अणंता ? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता ॥ ४६. पज्जत्ता णं भंते ! बादरणिओदा दव्वट्ठयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अणंता ? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता॥ ५०. णिओदा णं भंते ! पदेसट्टयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अणंता ? गोयमा ! णो संखेज्जा. णो असंखज्जा, अणंता। एवं पज्जत्तगावि अपज्जत्तगावि ।। ५१. 'एवं सुहमाणवि तिण्णि आलावगा पदेसट्टयाए सव्वे य अणंता। एवं पदेसट्टताए बादराणवि तिण्णि आलावगा सव्वे य अणंता । एमेए दव्वपदेसेहिं अट्ठारस आलावगा"। ५२. एतेसि णं भंते ! णिओदाणं सुहुमाणं बादराणं पज्जत्ताणं अपज्जत्ताणं दव्वट्ठयाए १. पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य (क, ख, ग, ट, त्रि)। २. ४२,४३ सूत्रयोः स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु संक्षिप्तपाठोस्ति–एवं पज्जत्तगावि अपज्जत्तगावि। ३. ४५,४६ सूत्रयोः स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेष संक्षिप्तपाठोस्ति-एवं पज्जत्तगावि अपज्जत्तगावि । ४. ४७-४६ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु संक्षिप्तपाठोस्ति–एवं बायरावि पज्जत्तगावि अपज्जत्तगावि । ५. एव सुहमणिओयावि पज्जत्तगावि अपज्जत्तगावि । एवं बायरणिओयावि पज्जत्तयावि अपज्जत्तयावि सव्वे अणंता (क,ख,ग,ट,त्रि)। Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी छव्विहपडिवत्ती पदेसट्टयाए दव्वट्ट-पदेसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरणिओदा पज्जत्ता दव्वट्टयाए, बादरणिओदा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदा पज्जत्ता दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा । 'पदेसताए - सव्वत्थोवा बादरणिओदा पज्जत्ता पदेसट्टयाए, बादरणिओदा अपज्जत्ता पट्टया असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदा पज्जत्ता पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा" । दव्वट्ठ-पदेसट्टयाए— सव्वत्थोवा बादरणिओदा पज्जत्ता दव्वट्टयाए, 'बादरणिओदा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा", सुहुमणिओदा पज्जत्ता दव्वट्टयाए संखज्जगुणा सुहुमणिओदेहितो पज्जत्तएहितो दव्वट्टयाए वादरणिओदा पज्जत्ता पदेसट्टयाए अनंतगुणा, बादरणिओदा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, 'मणिओदा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा", सुहुमणिओदा पज्जत्ता पदेस - ता संखेज्जगुणा || ५३. णिओदजीवा णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सुहुमणिओदजीवा य बादरणिओदजीवा य ॥ ५४. 'सुहुमणिओदजीवा णं भंते ! पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्ता य अपज्जत्ता य ॥ ५५. 'बादरणिओदजीवा णं भंते ! पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्ता य अपज्जत्ता य ॥ कतिविहा कतिविहा पण्णत्ता ? १. एवं पदेसताएवि (क, ख, ग, ट, त्रि) । २. जाव (क, ख, ग, ट, त्रि) । ३. जाव (क, ख, ग, ट, त्रि ) । पण्णत्ता ? ४. . सुहुमणिगोदजीवा ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ५. बादरणिगोदजीवा (क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. एवं सुमणिओयजीवावि पज्जत्तगावि अपज्ज ५६. णिगोदजीवा णं भंते! दव्वट्टयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अनंता ? गोमा ! णो संखेज्जा, णो असंखेज्जा, अनंता । एवं अपज्जत्तावि अनंता, पज्जत्तावि अनंता ॥ ४८५ गोयमा " ! दुविहा गोयमा " ! ५७. ' एवं सुहुमावि पज्जत्ता अपज्जत्ता तिविधावि अणंता" ।। ५८. 'बादरणिओदजीवा णं भंते ! दव्वट्टयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अनंता ? गोयमा ! णो संखेज्जा, णो असंखेज्जा, अनंता । एवं अपज्जत्तावि, एवं पज्जत्तावि । एवेते णिओदजीवेदव्वट्टयाए णव आलावगा सव्वेवि अणंता" ' एवं पदेसट्टयाएवि णव आलावगा सव्वेवि अणंता । एवमेते णिओदजीवेसु सुहुम- बादरेसु दव्वट्टयाए पदेसट्टयाए अट्ठारस आलावगा अनंता " || दुविहा तगाव (क, ख, ग, ट, त्रि) । ७. बादरणिओयजीवावि पज्जत्तगावि अपज्जत्तगाव (क, ख, ग, ट, त्रि) । ८. एवं णिओदजीवा नवविहावि परसट्टयाए सब्वे अता (क, ख, ग, ट, त्रि) । Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमै ५६. एतेसि णं भंते! णिओदजीवाणं सुहुमाणं बादराणं पज्जत्ताणं अपज्जत्ताणं दव्या पट्टयाए दव्वट्ट- पदेसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरणिओदजीवा पज्जत्ता दव्वट्टयाए, बादरणिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा पज्जत्ता दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा । पदेसट्टयाए - सव्वत्थोवा बादरणिओदजीवा पज्जत्ता पदेसट्टयाए, बादरणिओदजीवा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुमणिओदजीवा पज्जत्ता पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा । दव्वट्ठ-पदेसट्टयाए - सव्वत्थोवा बादरणिओदजीवा पज्जत्ता दव्वट्टयाए, बादरणिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा पज्जत्ता दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवेहितो पज्जत्तेहितो दव्वट्टयाए बादरणिओदजीवा पज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, बादरणिओदजीवा' अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा पज्जत्ता पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा || ६०. एतेसि णं भंते! 'णिओदाणं णिओदजीवाणं सुहुमाणं बादराणं पज्जत्ताणं अपज्जत्ताणं" दव्वट्टयाए पदेसट्टयाए दव्वट्ट-पदेसट्टयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरणिओदा पज्जत्ता दव्वटुयाए, बादरणिओदा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुमणिओदा पज्जत्ता दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा, सुहुमणिओदेहितो' पज्जत्तहितो दव्वट्टयाए बादरणिओदजीवा पज्जत्ता दव्वट्टयाए अनंतगुणा, बादरणिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखंज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्ज - गु, हुमणओजीवा' पज्जत्ता दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा । पदेसट्टयाए - सव्वत्थोवा बादरणिओदजीवा पज्जत्ता पदेसट्टयाए, वादरणिओदजीवा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुमणिगोदजीवा पज्जत्ता पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा', सुहुमणिओदजीवेहितो पज्जत्तएहितोपदेयाए बादरणिओदा पज्जत्ता पदेसट्टयाए अनंतगुणा, बादरणिओदा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, 'सुहुमणिओदा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा", सुहुम ४८६ १. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदशेषु एवं पाठभेदोस्ति एवं णिओयजीवावि, वरि संकमए जाव सुहुमणि ओयजीवेहितो पज्जत्तएहितो दव्वट्टयाए बाय रणिओयजीवा पज्ज पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सेसं तहेव जाव सुहुमणिओयजीवा पज्जत्ता पएसट्टयाए संखेज्जगुणा । २. ° ओता जीवा (ता) अग्रेपि एवमेव । ३. णिगोदाणं सुहुमाणं बायराणं पज्जत्ताणं अपज्जत्ताणं निओयजीवाणं सुहुमाणं बायराणं पज्जत्ताणं अपज्जत्ताणं ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ४. सुमणिओतेहितो ( ता ) । ५. ओदा जीवा (ता) अग्रेपि एवमेव । ६. असंखेज्जगुणा (ता) | ७. सुमणिओगा जीवेहितो ( ता ) । ८. जाव (क, ख, ग, ट, त्रि ) । Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी छब्विहपडिवत्ती ४८७ णिओदा पज्जता पदेसट्ठयाए संखेज्जगुणा । दव्वट्ठ-पदेसट्ठयाए-सव्वत्थोवा बादरणिओदा पज्जत्ता दव्वट्ठयाए, बादरणिओदा अपज्जत्ता दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, 'सुहुमणिओदा अपज्जत्ता दव्वट्ठताए असंखेज्जगुणा", सुहुमणिओदा पज्जत्ता दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, सुहुमणिओदेहितो पज्जत्तएहितो दव्वट्ठयाए बादरणिओदजीवा पज्जत्ता दव्वट्ठयाए अणंतगुणा, 'बादरणिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, सुहमणिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा", सुहमणिओढजीवा पज्जत्ता दवट्टयाए संखेज्जगुणा, सुहमणिओदजीवेहितो' पज्जत्तएहितो दव्वट्ठयाए बादरणिओदजीवा पज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, 'वादरणिओदजीवा अपज्जत्ता पदेट्ठयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा पज्जत्ता पदेसट्ठयाए संखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवेहितो पज्जत्तएहितो पदेसट्टयाए बादरणिओदा पज्जत्ता पदेसट्ठयाए अणंतगुणा, बादरणिओदा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा", सुहुमणिओदा पज्जत्ता पदेसट्ठयाए संखेज्जगुणा। सेत्तं छव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा ॥ १. जाव (क,ख,ग,ट,त्रि)। २. सेसा तहेव जाव (क,ख,ग,ट,त्रि) । ३. सुहुमणिओतजीवेहितो (ता)। ४. सेसा तहेव जाव (क,ख,ग,ट,त्रि)। Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठी सत्तविहपडिवत्ती १. तत्थ णं जेते एवमाहंसु 'सत्तविहा संसारसमावण्णगा जीवा' ते एवमाहंसु, तं जहा–नेरइया तिरिवखा तिरिक्खजोणिणीओ मणुस्सा मणुस्सीओ देवा देवीओ। २. णेरइयस्स' ठितो जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। ३. तिरिक्खजोणियस्स जहण्णणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई॥ ४. एवं तिरिक्खजोणिणीएवि, मणुस्साणवि, मणुस्सीणवि ॥ ५. देवाणं ठिती तहा णेरइयाणं ॥ ६. देवीणं जहण्णेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं पणपण्णपलिओवमाणि ॥ ७. नेरइय-देव-देवीणं जच्चेव ठिती सच्चेव संचिट्ठणा ।। ८. तिरिक्खजोणिएणं भंते ! तिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ ६. तिरिक्खजोणिणीणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाइं । एवं मणुस्सस्स मणुस्सीएवि ॥ १०. णेरइयस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। एवं सव्वाणं तिरिक्खजोणियवज्जाणं॥ ११. तिरिक्खजोणियाणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं ।। १२. अप्पाबहुयं---सव्वत्थोवाओ मणुस्सीओ, मणुस्सा असंखेज्जगुणा, नेरइया असंखेज्जगुणा, तिरिक्खजोणिणीओ असंखेज्जगुणाओ, देवा असंखेज्जगुणा', देवीओ १. २-११ सूत्राणां स्थाने ताडपत्रीयादर्श संक्षिप्ता __कृता उभयत्रापि 'देवाः संख्येयगुणाः' इति वाचनास्ति--सत्तण्हवि ठिती, सत्तण्हवि व्याख्यातम् । सम्भाव्यते वृत्तिकृता आदर्शेषु संचिट्ठणा ओहियाणं अपज्ज पज्जत्ताणं, देवा संखेज्जगुणा' इति पाठो लब्धः, इदानीतिरिक्खजोणियस्स अंतरं जहं अंतोमु उक्को मपि केषुचिदादर्शषु एष पाठो लभ्यते, तं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं सेसाणं छण्हवि । पाठमनुसृत्य वृत्तिकृता 'देवाः संख्येयगुणा' इति २. आदर्शष नवमप्रतिपत्तावपि (६।२२०) 'देवा पाठस्य महादण्डकानुसारेण समर्थनं कृतम्असंखेज्जगुणा' इति पाठो लभ्यते, किन्तु वत्ति- ताभ्यो देवाः संख्येयगुणाः, वानमन्तरज्योतिष ४८८ Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठी सत्तविहपडिवत्ती ४८६ संखेज्जगुणाओ, तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा। सेत्तं सत्तविहा संसारसमावण्णगा जीवा ॥ काणामपि जलचरतिर्यग्योनिकीभ्यः संख्येयगुणतया महादण्डके पठितत्वात् (वृत्तिपत्र ४२८) महादण्डके जलचरस्त्रीभ्यः व्यन्तराणां देवानां संख्येय गुणत्वमस्ति (प्रज्ञापनावृत्तिपत्र १६५) । एतदपेक्षया वृत्तिकृतो मतं समीचीनं, किन्तु समग्रदेवापेक्षया नैतत समीचीनं भवति, प्रज्ञापनायास्तस्मिन्नेव पदे (३३३६) 'देवा असंखे ज्जगुणा' इति पाठोस्ति । वत्तिकृता इत्थमेव व्याख्यातमस्ति–ताभ्योपि देवा असंख्येयगुणाः, असंख्येयगुणप्रतरासंख्येयभागवर्त्यसंख्येयश्रेणिगतप्रदेशराशिमानत्वात् (प्रज्ञापनावृत्तिपत्र १२०) अनेन इदं स्पष्टं भवति यत्र समग्रदेवापेक्षः पाठस्तत्र 'असंखेज्जगुणा' इति पाठ एव युक्तः। Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमी अट्ठविहपडिवत्ती १. तत्थ जेते एवमाहंसु 'अट्टविहा संसारसमावण्णगा जीवा' ते एवमाहंसु-पढमसमयनेरइया अपढमसमयने रइया पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणुस्सा अपढमसमयमणुस्सा पढमसमयदेवा अपढमसमयदेवा ॥ २. पढमसमयनेरइयस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! 'एगं समयं ठिती पण्णत्ता"। ३. अपढमसमयनेरइयस्स जहण्णेणं दसवाससहस्साई समयूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाई॥ ४. 'एवं सव्वेसिं पढमसमयगाणं एग समयं ॥ ५. अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं जहण्णणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं समयूणाई ।। ६. 'मणुस्साणं जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं समयूणाई"। ७. देवाणं जहा णेरइयाण ॥ ८. णेरइय-देवाणं जच्चेव ठिती सच्चेव संचिटणावि" ।। ६. पढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते ! पढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होती ? गोयमा ! 'एक्कं समयं ।। १०. अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ ११. पढमसमयमणुस्साणं एक्कं समयं ।। १. पढमसमयनेरइयस्स जह एक्कं समयं उक्का ४. णेरइयाणं ठिती (क,ख,ग,ट,त्रि)। एक्कं समय (क,ख,ग,ट,त्रि)। ५. संचिट्ठणा दुविहाणवि (क,ख,ग,ट,त्रि)। २. पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स जह एक्कं समयं ६. जह एक्कं समयं उक्को एक्कं समयं (क,ख,ग, उक्को एक्कं समय (क,ख,ग,ट,त्रि)। ट,त्रि)। ३. एवं मणुस्साणवि जहा तिरिक्खजोणियाणं ७. जह उ एक्कं (क,ख,ग,ट,त्रि) । (क,ख,ग,ट,त्रि)। ४६० Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमी अट्टविहपडिवत्ती ४६१ १२. अपढमसमयमणुस्साणं जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाई' । १३. अंतरं-पढमसमयणेरइयस्स जहण्णेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो ।। १४. अपढमसमयणेरइयस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं', उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।। १५. पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स जहण्णेणं दो खुड्डागाइं भवग्गहणाइं समयूणाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ १६. अपढमसमयतिरिक्खजोणियस्स जहणणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं ।। १७. पढमसमयमणुस्सस्स जहण्णेणं दो खुड्डाई भवग्गहणाइं समयूणाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ १८. अपढमसमयमणुस्सस्स जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ १६. 'देवा जहा नेरइया"॥ २०. अप्पाबहुगं-एतेसि णं भंते ! पढमसमयणे रइयाणं जाव पढमसमयदेवाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयमणुस्सा, पढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, पढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा ॥ . २१. अपढमसमयणेरइयाणं जाव अपढमसमयदेवाणं एवं चेव अप्पाबहुं, णवरिअपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा ॥ २२. एतेसिं पढमसमयणेरइयाणं अपढमसमयणेरइयाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? सव्वत्थोवा पढमसमयणेरइया, अपढमसमयनेरइया असंखेज्जगुणा । ‘एवं सव्वे, णवरं--अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा" ॥ २३. 'पढमसमयणेरइयाणं जाव अपढमसमयदेवाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? सव्वत्थोवा पढमसमयमणुस्सा, अपढमसमयमणुस्सा असंखेज्जगुणा, पढमसमयणे रइया असंखेज्जगुणा, पढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा । सेत्तं अट्ठविहा संसारसमावण्णगा जीवा॥ १. अतः परं ताडपत्रीयादर्श वृत्तौ च 'देवा जहा रइया' इति पाठो लभ्यते, किन्तु 'णेरइयदेवाणं जच्चेव ठिती सच्चेव संचिटणावि' इति सत्रेण तार्थत्वात नापेक्षितोसोविया २. अप्रथमसमयनै रयिकसूत्रे पृथग् नोक्तः (मवृ)। ३. देवाणं जहा जेरइयाणं जह दसवाससहस्साई अंतोमुहत्तमब्भहियाई उक्को वणस्सइकालो, अपढमसमय जह अंतो उक्को वणस्सइकालो (क,ख,ग,ट,त्रि)। ४. एवं सब्वे (क,ख,ग,ट,त्रि); पुच्छा सव्वत्थो पढमसमयति अपतिरि अणं (ता) । ५. अढण्हवि पुच्छा (ता)। अनि ६. जीवा पणता (क,ख,ग,ट,त्रि)। Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमी नवविहपडिवत्ती १. तत्थ णं जेते एवमाहंसु ‘णवविधा संसारसमावण्णगा जीवा' ते एवमाहंसुपुढविक्काइया आउक्काइया तेउक्काइया वाउक्काइया वणस्सइकाइया बेइंदिया तेइंदिया चरिंदिया पंचेंदिया ॥ २. ठिती' सव्वेसिं भाणियव्वा ॥ ३. पुढविक्काइयाणं संचिट्ठणा पुढविकालो जाव वाउक्काइयाणं, वणस्सईणं वणस्सतिकालो, बेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया संखेज्जं कालं, पंचेंदियाणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं ॥ ४. अंतरं सव्वेसि अणंतं कालं, वणस्सतिकाइयाणं असंखेज्जं कालं ॥ ५. अप्पाबहुगं'-सव्वत्थोवा पंचिंदिया, चउरिदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया, तेउक्काइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउकाइया विसेसाहिया, वणस्सतिकाइया अणंतगुणा। सेत्तं णवविधा संसारसमावण्णगा जीवा।। १. २-४ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रती एवं पाठ भेदोस्ति-ठिती पुव्वभणिता णवण्णवि, संचिट्ठणा, पुढविआउतेउवाऊणं पुढविकालं, वणस्सतीणं वणस्सतिकालं बिदिग ३ संखेज्जं कालं पंचिदिए सागरोवमसहस्सं सातिरेगं । पुढविस्संतरं वणकालो जाव वाऊ, वणस्सति पुढविकालो, विदि ३,४,५ वणकालो अंतरं । ४६२ Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपडिवत्ती १. तत्थ णं जेते एवमाहंसु 'दसविधा संसारसमावण्णगा जीवा' ते एवमाहंसु, तं जहापढमसमयएगिदिया अपढमसमयएगिदिया पढमसमयबेइंदिया अपढमसमयबेइंदिया' पढमसमयतेइंदिया अपढमसमयतेइंदिया पढमसमयचउरिदिया अपढमसमयचरिदिया पढमसमयपंचिदिया अपढमसमयपंचिंदिया ॥ २. पढमसमयएगि दियस्स' णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! 'एगं समयं"। अपढमसमयएगिदियस्स जहण्णणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई समयणाई। एवं सब्वेसि पढमसमयिकाणं 'एगं समयं, अपढमसमयिकाणं जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं जा जस्स ठिती सा समयूणा जाव पंचिदियाणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाई॥ ३. संचिट्ठणा-पढमसमइयस्स 'एगं समयं। अपढमसमयिकाणं जहण्णेणं खड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं' एगिदियाणं वणस्सतिकालो, बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियाणं संखेज्जं कालं, पंचिंदियाणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं ॥ ४. पढमसमयएगिदियाणं केवतियं अंतरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं दो खुड्डागाई १. सं० पा०-अपढमसमयबेइंदिया जाव पढम- अपढएगिदियस्स अंतरं जहं खड्डा समयाधिगं समयपंचिंदिया। उक्को दो सागरोवमसहस्साइं। एवं पढम२. २-४ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रती एवं पाठभे- समयिगाणं सम्बेसि जहं दो ख समयणाई दोस्ति-पढमसमयिगाणं एग समयं ठिती, उक्को वणकालो अपढ जहं खुडा समयधिगं अपढम जहं खुड्डागं भ समयूणं उक्कोसाग उक्को वणकालो। सता ठिती समयूणा जाव पंचिदिया। पढम- ३. जहण्णणं एक्कं समयं उक्को एक्कं (क, ख, ग, समयिगाणं सव्वेसी एगं समयं संचिट्ठणा, ट, त्रि)। अपढमसमयेगेंदिया जहं खुड्डागं भ समयूर्ण ४. जहण्णेणं एक्को समओ उक्कोसेणं एक्को समओ उक्को वणकालो, बेइंदियातेइंदिय चउ जहं (क,ख,ग,ट,त्रि)। खड़ा समयणं उक्को संखेज्जं कालं पंचिदियो ५. जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं एक्कं समयं अपढमस जहं खड्डा समऊणं उक्को सागरोवम- (क,ख,ग,ट,त्रि)। सहस्सं सातिरेगं। पढमसमयएगिदियस्स अंतरं ६. उक्कोस्सेणं (ख)। जहं दो खुड्डाई समयूणाई उक्को वणकालो, ४६३ Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९४ जीवाजीवाभिगमे भवग्गहणाई समयूणाई, उवकोसेणं वणस्सतिकालो । अपढमसमयएगिदियाणं अंतरं जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाई। सेसाणं सव्वेसिं पढमसमयिकाणं अंतरं जहण्णणं दो खुड्डागाइं भवग्गहणाइं समयूणाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। अपढमसमयिकाणं सेसाणं जहण्णणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ ५. पढमसमइयाणं सव्वेसि सव्वत्थोवा पढमसमयपंचेंदिया, पढमसमयचरिंदिया विसेसाहिया, पढमसमयतेइंदिया विसेसाहिया, पढमसभयबेइंदिया विसेसाहिया, पढमसमयएगिदिया विसेसाहिया। एवं अपढमसमयिकावि, णवरि-अपढमसमयएगिदिया अणंतगुणा ॥ ६. दोण्हं अप्पबहुयं-सव्वत्थोवा पढमसमयएगिदिया, अपढमसमयएगिदिया अणंतगुणा, सेसाणं सव्वत्थोवा पढमसमयिगा अपढमसमयिगा असंखेज्जगुणा ॥ ७. एतेसि णं भंते ! पढमसमयएगिदियाणं अपढमसमयएगिदियाणं जाव अपढमसमयपंचिदियाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? सव्वत्थोवा पढमसमयपंचेंदिया, पढमसमयचउरिदिया विसेसाहिया, पढमसमयतेइंदिया विसेसाहिया, 'पढमसमयबेइंदिया विसेसाहिया', पढमसमयएगिदिया विसेसाहिया, अपढमसमयपंचेंदिया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयचउरिदिया विसेसाहिया जाव अपढमसमयएगिदिया अणंतगुणा । सेत्तं दसविहा संसारसमावण्णगा जीवा । सेत्तं संसारसमावण्णगजीवाभिगमे । ८. से किं तं सव्वजीवाभिगमे ? सव्वजीवेसु णं इमाओ णव पडिवत्तीओ एवमाहिज्जति । एगे एवमाहंसु-दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता जाव' दसविहा सव्वजीवा पण्णत्ता ।। ६. तत्थ णं जेते एवमाहंसु दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, ते एवमाहंसू, तं जहा-सिद्धा चेव असिद्धा चेव ॥ १०. सिद्धे णं भंते ! सिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! साइए अपज्जवसिए॥ ११. असिद्धे णं भंते ! असिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! असिद्धे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए॥ १२. सिद्धस्स णं भंते ! 'केवतिकालं अंतरं" होति ? गोयमा ! 'साइयस्स अपज्जवसियस्स" णत्थि अंतरं ।। १३. असिद्धस्स ‘णं भंते ! केवइयं अंतरं होइ ? गोयमा !' अणाइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, अणाइयस्स सपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ।। १४. एएसि णं भंते ! सिद्धाणं असिद्धाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सिद्धा, असिद्धा अणंतगुणा ॥ १. एवं हेट्ठामुहा जाव (क,ख,ग,ट,त्रि)। ४. अंतरं कालतो केवचिरं (ता)। २. एगे एव २,३,४,५,६,७,८,६ एगे एवमाहंसु ५. x (ता)। (ता)। ६. पुच्छा (ता)। .३. अणादीए (ता)। Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपडिवत्ती ४६५ १५. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता. तं जहा-सइंदिया चेव अणिदिया चेव ।। १६. 'सइंदिए णं भंते ! सइंदिएत्ति कालतो केवचिरं होइ ? गोयमा ! सइंदिए दुविहे पण्णत्ते-अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए, अणिदिए साइए वा । अपज्जवसिए । दोण्हवि अंतरं णत्थि' ॥ १७. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा अणिदिया, सइंदिया अणंतगुणा ॥ १८. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-सकाइया चेव अकाइया चेव ।। १६. सकाइयस्स' संचिट्ठणंतरं जहा असिद्धस्स, अकाइयस्स जहा सिद्धस्स ।। २०. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा अकाइया, सकाइया अणंतगुणा ।। २१. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-अजोगी य सजोगी य तधेव ।। २२. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-सवेदगा चेव अवेदगा चेव ।। २३. सवेदए णं भंते ! सवेदएत्ति कालतो केवचिरं होति ? गोयमा ! सवेदए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणादीए वा अपज्जवसिते, अणादीए वा सपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए । तत्थ णं जेसे साइए सपज्जवसिए से जहण्णणं अंतोमूहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालंअणंताओ उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अवड्ढं पोग्गलपरियट्टू देसूणं ।। २४. अवेदए णं भंते ! अवेदएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! अवेदए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-साइए वा अपज्जवसिते, साइए वा सपज्जवसिते। तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिते, से जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुत्तं ॥ २५. सवेदगस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होति ? गोयमा ! अणादियस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, अणादियस्स सपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, सादीयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ॥ २६. अवेदगस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! साइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव' अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं । .. २७. अप्पाबहुगं-सव्वत्थोवा अवेदगा, सवेदगा अणंतगुणा ॥ २८. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-सकसाई य अकसाई य । सकसाई जहा सवेदए, अकसाई जहा अवेदए । सव्वत्थोवा अकसाई, सकसाई अणंतगुणा ॥ २६. अहवा दुविहा सव्वजीवा-सलेसा य अलेसा य जहा असिद्धा सिद्धा । सव्वत्थोवा अलेसा, सलेसा अणंतगुणा ॥ १. सइंदियस्स संचिट्ठणा अंतरं च जहा असिद्धस्स, सइंदिया (सकसाइया-ग) एषु आदर्शेषु सकषाअणिदियस्स जहा सिद्धस्स (ता) । यिकसूत्रानन्तरं लेश्यासूत्रं पुनलिखितमस्ति । २. १६-२१ सूत्राणां स्थाने क,ख,ग,ट,त्रि' ३. जी० ६।२३ । आदर्शेषु भिन्ना वाचना विद्यते---एवं चेव। ४. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शषु एवं सजोगी चेव अजोगी चेव तहेव । एवं एवं पाठभेदोस्ति–एवं सकसाई चेव अकसाई सलेस्सा चेव अलेस्सा चेव। ससरीरा चेव चेव, जहा सवेयके तहेव भाणियव्वे । असरीरा चेव । संचिट्ठणं अंतरं अप्पाबहुयं जहा ५. सकसादी (ता)। Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९६ जीवाजीवाभिगमे ३०. 'अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा" णाणी चेव अण्णाणी चेव ।। ३१. णाणी णं भंते ! णाणीत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! णाणी दुविहे पण्णत्ते-सादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिते से जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिसागरोवमाइं सातिरेगाई। ३२. अण्णाणी तिविहे जहा' सवेदए"। ३३. 'णाणिस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होति ? गोयमा ! सादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, सादीयस्स सपज्जवसियस्स" जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवड्ढे पोग्गलपरियट्टू देसूणं ॥ ३४. अण्णाणिस्स 'अंतरं अणादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, अणादीयस्स सपज्जवसियस्स" णत्थि अंतरं, सादीयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावढि सागरोवमाइं साइरेगाई॥ ३५. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा णाणी, अण्णाणी अणंतगुणा ।। ३६. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता-सागारोवउत्ता य अणागारोवउत्ता य, संचिटुणा अंतरं जहण्णेणं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं ॥ ३७. अप्पाबहुं-सव्वत्थोवा अणागारोवउत्ता, सागारोवउत्ता संखेज्जगुणा ।। ३८. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-आहारगा चेव अणाहारगा चेव ।। ३९. आहारए णं भंते ! आहारएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! आहारए दुविहे पण्णत्ते,तं जहा-छउमत्थआहारए य केवलिआहारए य॥ ४०. छउमत्थआहारगस्स जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं दुसमयूणं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं -'असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ" कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं ॥ ४१. केवलिआहारए णं' •भंते ! केवलिआहारएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी॥ ४२. अणाहारए णं भंते ! अणाहारएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! अणाहारए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-छउमत्थअणाहारए य केवलिअणाहारए य ॥ ४३. छउमत्थअणाहारए णं" भंते ! छउमत्थअणाहारएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा! जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो समया ॥ ४४. केवलिअणाहारए णं भंते ! केवलिअणाहारएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! केवलिअणाहारए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सिद्धकेवलिअणाहारए य भवत्थकेवलि१. ४ (क,ख,ग,ट,त्रि)। ७ छउमत्थाहारए णं जाव केवचिरं होति ? २. जी० ६।२३। गोयमा ! (क,ख,ग,ट,त्रि)। ३. अण्णाणी जहा सवेदया (क,ख,ग,ट,त्रि)। ८. जाव (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४. णाणिस्स अंतरं (क,ख,ग,ट,त्रि)। ६. सं० पा०-णं जाव केवचिरं । ५. दोण्हवि आदिल्लाणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। १०. सं० पा०—णं जाव केवचिरं । ६. संचिट्ठणा दोण्हवि एवं अंतरंपि (ता)। Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहडिवत्ती ४९७ अणाहारए य॥ ४५. सिद्धकेवलिअणाहारए ‘णं भंते ! सिद्धकेवलिअणाहारएत्ति कालओ केवचिरं होति" ? गोयमा ! साइए अपज्जवसिए ।। ४६. भवत्थकेवलिअणाहारए ‘णं भंते ! भवत्थकेवलिअणाहारएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! भवत्थकेवलिअणाहारए दुविहे पण्णत्ते-सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए य अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए य ।। ४७. अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए' णं भंते ! अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं ॥ ४८. सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए णं भंते ! सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? अजहण्णमणक्कोसेणं तिण्णि समया ।। ४६. छउमत्थआहारगस्स केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो समया ॥ ५०. केवलिआहारगस्स अंतरं अजहण्णमणुक्कोसेणं तिण्णि समया ॥ ५१. छउमत्थअणाहारगस्स अंतरं जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणं दुसमयूणं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं जाव अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं ।' ५२. सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारगस्स णं भंते ! अंतरं केवतियं कालं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं ॥ ५३. अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारगस्स णत्थि अंतरं॥ ५४. सिद्धकेवलिअणाहारगस्स 'साइयस्स अपज्जवसियस्स' णत्थि अंतरं ॥ ५५. 'एएसि णं भंते ! आहारगाणं अणाहारगाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा" ! सव्वत्थोवा अणाहारगा, आहारगा असंखेज्ज गुणा॥ ५६. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-भासगा य अभासगा य । ५७. भासए णं भंते ! भासएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ॥ ५८. अभासए णं भंते ! अभासएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! अभासए दुविहे पण्णत्ते-साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे साइए १. वृत्तौ 'ता' प्रती च एतत्सूत्रं अयोगिभवस्थ- केवल्यनाहारकसूत्रानन्तरमस्ति । २. पुच्छा (ता)। ३. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु ४७,४८ एतस्य सूत्रद्वयस्य व्यत्ययो दृश्यते । ४. सजोगिभवत्थकेवलि पुच्छा (ता)। ५. क, ख, ग, ट, त्रि आदर्शषु अतः परं 'सिद्ध- केवलिअणाहारसूत्र' लिखितं दृश्यते । ६.x (ता)। ७. x (ता)। ८. सभासगा (ग,त्रि) सर्वत्र । ६. प्रज्ञापनायां (१८।१०५) अभाषकस्य त्रिवि धत्वं प्रतिपादितमस्ति-अभासए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणाईए वा अपज्जवसिए, अणाईए वा सपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए। Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ , जीवाजीवाभिगमे सपज्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो' । ५६. भासगस्स णं भंते ! केवतिकालं अंतरं होति ? जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो'॥ ६०. अभासगस्स' साइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ।। ६१. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा भासगा, अभासगा अणंतगुणा ॥ ६२. अहवा दुविहा सव्वजीवा ससरीरी य असरीरी य । 'ससरीरी जहा असिद्धा" असरीरी जहा सिद्धा । सव्वत्थोवा असरीरी, ससरीरी अणंतगुणा ।। ६३. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-चरिमा चेव अचरिमा चेव ॥ ६४. चरिमे णं भंते ! चरिमेत्ति कालतो केवचिरं होति ? गोयमा ! चरिमे अणादीए सपज्जवसिए॥ ६५. अचरिमे दुविहे पण्णत्ते-अणाइए वा अपज्जवसिए, साइए वा अपज्जवसिए। 'दोण्हंपि णत्थि अंतरं॥ ६६. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा अचरिमा, चरिमा अणंतगुणा। सेत्तं दुविहा सव्वजीवा॥ संगहणीगाहा सिद्धसइंदियकाए', जोए वेए कसायलेसा य । नाणुवओगाहारा, भाससरीरी य चरिमे य ॥१॥ ६७. तत्थ णं जेते एवमाहंसु तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहासम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी ॥ ६८. सम्मदिट्ठी णं भंते ! सम्मदिट्ठीत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सम्मदिट्ठी दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ जेसे १. अणंतं कालं अणंता उस्सप्पिणी ओसप्पिणीओ तोस्ति । अत्र लिपिदोषात् पुनलिखित: वणस्सतिकालो (क, ख, ग, ट, त्रि) । सम्भाव्यते। २. अणंतकालं वणस्सतिकालो (क,ख,ग,ट,त्रि)। ७. वृत्ती एषा गाथा पाठान्तररूपेण उद्धृतास्ति,३. अभासगस्स पुच्छा (क, ख, ग, ट, त्रि)। 'अत्र क्वचिद्विविधवक्तव्यता सङ्ग्रहणी गाथा'। ४. चिह्नाङ्कितः पाठः वत्त्याधारेण स्वीकृतः । अर्वाचीनादर्शष्वपि नास्ति । ५. चरिमस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं ८. अतः परं ७४ सूत्रपर्यन्तं 'ता' प्रती संक्षिप्तपाठः होति ? णत्थि अंतरं । अचरिमस्स पुच्छा। पाठभेदश्च विद्यते-जहा णाणिस्स, मिच्छद्दिअणादिगस्स अप णस्थि अंतरं, सादीगस्स अप द्विस्स संचिट्टणंतराइं जहा अण्णाणिस्स, सम्मापत्थि अंतरं (ता, मव)। मिच्छद्दिट्ठिस्स संचिट्ठणा जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, ६. अतः परं 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शेष साकारा- उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं, तस्सेव अंतरं जहणणेणं नाकारालापको लिखितोस्ति, स च ३५ अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवडढं सूत्रानन्तरं पूर्वमेवागतः, वृत्तावपि तत्रैव पोग्गलं परियटै देसूणं, अप्पाबहुयं भाणिव्याख्यातोस्ति, उक्तादर्शेषु तत्रापि लिखि- तव्वं । Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपडिवत्ती YEE साइए सपज्जवसिते, से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छाव४ि सागरोवमाइं सातिरेगाई। ६६. मिच्छादिट्ठी तिविहे पण्णत्ते-अणाइए वा अपज्जवसिते, अणाइए वा सपज्जवसिते, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ जेसे साइए सपज्जवसिए, से जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियटें देसूणं ।। ७०. सम्मामिच्छादिट्ठी जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ॥ ७१. सम्मदिट्ठिस्स अंतरं साइयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव' अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं। ७२. मिच्छादिद्विस्स अणादीयस्स अपज्जवसियस्स पत्थि अंतरं, अणादीयस्स सपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं छावटुिं सागरोवमाइं सातिरेगाइं॥ ___७३. सम्मामिच्छादिहिस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्टू देसूणं ॥ ७४. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा सम्मामिच्छादिट्ठी, सम्मदिट्ठी अणंतगुणा, मिच्छादिट्ठी अणंतगुणा॥ ७५. अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता-परित्ता अपरित्ता नोपरित्ता-नोअपरित्ता ॥ ७६. परित्ते णं भंते ! परित्तेत्ति कालतो केवचिरं होति ? परित्ते दुविहे पण्णत्तेकायपरित्ते य संसारपरित्ते य॥ ७७. कायपरित्ते णं भंते ! कायपरित्तेत्ति कालतो केवचिरं होति ? 'गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो'॥ . ७८. संसारपरित्ते ‘णं भंते ! संसारपरित्तेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा"। जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव' अवड्ढं पोग्गलपरियट देसूणं ॥ ____७६. अपरित्ते णं भंते ! अपरित्तेत्ति कालओ केवचिरं होति' ? अपरित्ते दुविहे पण्णत्ते-कायअपरित्ते य संसारअपरित्ते य ॥ ८०. कायअपरित्ते 'जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं" वणस्सतिकालों ॥ ८१. संसारापरित्ते दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणादीए वा अपज्जवसिते, अणादीए वा सपज्जवसिते॥ ८२. णोपरित्ते-णोअपरित्ते सादीए अपज्जवसिते ॥ ८३. 'कायपरित्तस्स जहण्णेणं अंतरं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो"। ८४. संसारपरित्तस्स णत्थि अंतरं॥ १. जी. ६।२३। ६. ४ (ता)। २. x (ता)। ७. x (ता)। ३. असंखेज्जं कालं जाव असंखेज्जा लोगा (क,ख, ८. अणंतं कालं वणस्सतिकालो (क, ख ग, ट, ___ग,ट,त्रि)। त्रि)। ४. x (ता)। ६. कायपरिते अंतरं वणस्सतिकालो (ता)। ५. जी० ६२३। Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०० जीवाजीवाभिगमे ८५. 'कायापरित्तस्स जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं" पुढविकालो ॥ ८६. संसारापरित्तस्स अणाइयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, अणाइयस्स सपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, णोपरित्त-नोअपरित्तस्सवि णत्थि अंतरं ।। ८७. अप्पाबहुयं-'सव्वत्थोवा परित्ता, णोपरित्ता-नोअप रित्ता अणंतगुणा, अपरित्ता अणंतगुणा ॥ ८८. अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा' अपज्जत्तगा नोपज्जत्तगनोअपज्जत्तगा। ८६. पज्जत्तगे णं भंते ! पज्जत्तगेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं साइरेगं ।। ६०. अपज्जत्तगे णं भंते ! अपज्जत्तगेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ॥ ६१. नोपज्जत्त-णोअपज्जत्तए साइए अपज्जवसिते ॥ ६२. पज्जत्तगस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं ॥ ६३. अपज्जत्तगस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं साइरेगं । ‘णोपज्जत्तग-णोअपज्जत्तगस्स' णत्थि अंतरं ।। ६४. अप्पाबहुयं-'सव्वत्थोवा नोपज्जत्तग-नोअपज्जत्तगा, अपज्जत्तगा अणंतगुणा, पज्जत्तगा संखेज्जगुणा" ॥ ६५. अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-सुहुमा बायरा नोसुहुमनोबायरा॥ ___६६. सुहुमे णं भंते ! सुहुमेत्ति कालओ केवचिरं होइ ? 'गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं", उक्कोसेणं पुढविकालो ॥ ७. बायरे णं भंते ! बायरेत्ति 'कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं- असंखेज्जाओ उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जइभागो॥ १८. नोसुहुम-नोबायरे साइए अपज्जवसिए॥ ६६. सुहुमस्स अंतरं बायरकालो । वायरस्स अंतरं सुहुमकालो।" 'नोसुहुम-नोबायरस्स" 'अंतरं णत्थि"॥ १. कायअपरित्ते (ता)। ८. x (ता)। २. असंखिज्ज कालं पुढविकालो (क, ख, ग, ट, ६. असंखिज्जं कालं पुढविकालो (क, ख, ग, ट, त्रि)। त्रि)। ३. x (ता)। १०. कालो जाव अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं (ता)। ४. पज्जत्ता (ता) प्रायः सर्वत्र । ११. वणस्सतिकालो (ता)। ५. अंतरं पुच्छा (ता)। १२. तइयस्स (क, ख, ग, ट, त्रि)। ६. तइयस्स (क, ख, ग, ट, त्रि)। १३. णत्यंतरं (ता)। ७. ४ (ता)। Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविपडिवत्तौ ५०१ १००. अप्पाबहुयं ——सव्वत्थोवा नोसुहुम-नोबायरा, बायरा अनंतगुणा, सुहुमा असंखेज्जगुणा' ।। १०१. अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - सण्णी असण्णी नोसण्णीअणी ॥ १०२. 'सण्णी णं भंते ! सण्णीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतमुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं” 11 १०३ 'असण्णी णं भंते ! असण्णीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो " | १०४. नोसण्णी - नोअसण्णी साइए अपज्जवसिते || १०५. 'सण्णिस्स अंतरं जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो | १०६. असण्णिस्स अंतरं जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं" 11 १०७. 'गोसण्णी - णो असण्णिस्स" णत्थि अंतरं ॥ १०८. 'अप्पाबहुयं -- सव्वत्थोवा सण्णी, नोसण्णी - नोअसण्णी अनंतगुणा, असण्णी अगुण ।। १०६. अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - भवसिद्धिया अभवसिद्धिया नोभवसिद्धिय-नोअभवसिद्धिया ॥ ११०. भवसिद्धिए अणादीए सपज्जवसिए, अभवसिद्धिए अणादीए अपज्जवसिए, भवसिद्धियोअभवसिद्धिए सादीए अपज्जवसिए || १११. भवसिद्धियस्स णत्थि अंतरं, 'अभवसिद्धियस्स णत्थि अंतरं, णोभवसिद्धियअभवसिद्धियस्स णत्थि अंतरं ॥ ११२. अप्पाबहुयं -- 'सव्वत्थोवा अतगुणा, भवसिद्धिया अनंतगुणा " । से तं तिविधा सव्वजीवा ।। अभवसिद्धिया, णोभवसिद्धिय-गोअभवसिद्धिया १. X (ता) । २. सणी जहा अपज्जत्तओ (ता) । ३. असण्णी वणकालो ( ता ) । ४. सणि अंतरं वणकालो असण्णि अंतरं सण्णिकालो (ता) । ५. ततियस्स (क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. X (ता) । ७. अर्वाचीनादर्शेषु एषोतिरिक्तः पाठोपि लिखितोस्ति भवसिद्धिए णं भंते ! भवसिद्धीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! भवसिद्धिए । ८. एवं अभवसिद्धियस्सवि ततियस्स णत्थि अंतरं (क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. x (ता); अतोनन्तरं 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु सस्थावरालापको लिखितोस्ति । 'ता' प्रतौ वृत्तौ च नास्ति व्याख्यातः, इति मूले न स्वीकृतः, स चैवम् अहवा तिविहा सव्व तं तसा थावरा नोतसा नोथावरा, तसे णं भंते ! कालओ ? जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं साइरेगाई, थावरस्स संचिट्ठणा वणस्सतिकालो, णोतसनोथावरा सातीए अपज्जवसिए । तसस्स अंतरं वणस्सतिकालो, थावरस्स तसकालो, गोतसणोथावरस्स णत्थि अंतरं । Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०२ जीवाजीवाभिगमे ११३. तत्थ णं जेते एवमाहंसु चउन्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तं जहामणजोगी वइजोगी कायजोगी अजोगी। ११४. मणजोगी णं भंते ! मणजोगित्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं । एवं वइजोगीवि । ११५. कायजोगी णं भंते ! कायजोगित्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। ११६. अजोगी साइए अपज्जवसिए । ११७. मणजोगिस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। एवं वइजोगिस्स वि ॥ ११८. कायजोगिस्स जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं ।। ११६. अयोगिस्स णत्थि अंतरं ।। १२०. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा मणजोगी, वइजोगी असंखेज्जगुणा,' अजोगी अणंतगुणा, कायजोगी अणंतगुणा ।। १२१. अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थिवेयगा' पुरिसवेयगा नपुंसगवेयगा अवेयगा ॥ १२२. इत्थिवेयए णं भंते ! इत्थिवेयएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! 'एगेण आएसेणं जहा कायद्वितीए" ॥ १२३. पुरिसवेदस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं ॥ १२४. नपुंसगवेदस्स जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ १२५. 'अवेयए दुविहे पण्णत्ते-साइए वा अपज्जवसिते, साइए वा सपज्जवसिए, [तत्य णं जेसे सादीए सपज्जवसिते? ] से जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं ॥ १२६. 'इत्थिवेदस्स अंतरं" जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो । १२७. पुरिसवेदस्स अंतरं जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो॥ १२८. 'नपुंसगवेदस्स अंतरं" जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं ॥ अप्पाबहु सव्वत्थोवा तसा, नोतसानोथावरा ३. जी० २।४८; पण्ण० १८७१ । अणंतगुणा, थावरा अणंतगुणा । ४. पलियसयं दसुत्तरं अट्रारस चोद्दस पलियपुहत्तं १. संखेज्जगुणा (क,ख,ग,ट,ता,त्रि); सर्वेष्वप्या- समयो जहण्णो (क, ख, ग, ट, त्रि)। दर्शषु 'संखेज्जगुणा' इति पाठो लभ्यते, किन्तु ५. अणंतं कालं वणस्सतिकालो (क, ख, ग, ट, नैष समीचीनोस्ति, वृत्तिकृता 'असंख्येयगुणा' त्रि)। इति व्याख्यातम्-तेभ्यो वाग्योगिनोऽसंख्येय- ६. कोष्ठकान्तरगतः पाठः अत्र त्रुटितो दृश्यते । गुणाः, द्वित्रिचतुरसज्ञिपञ्चेन्द्रियाणां वाग्योगि- द्रष्टव्यं ६।२४ सूत्रम् । त्वात् । प्रज्ञापनाया (३।६६) मपि असंखेज्ज- ७. अवेदए जहा अकसायी (ता)। गुणा' इति पाठो लभ्यते । ८. इस्थिवेदंतरं (ता)। २. 'वेदा (ता) सर्वत्र । ६. नपुंसगंतरं। Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपडिवत्ती ५०३ १२६. 'अवेदगो जहा' हेट्ठा" ॥ १३०. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा पुरिसवेदगा, इत्थिवेदगा संखेज्जगुणा, अवेदगा अणंतगुणा, नपुंसगवेदगा अणंतगुणा ॥ १३१. अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा- चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी ओहिदंसणी' केवलदसणी॥ १३२. चक्खुदंसणी णं भंते ! चक्खुदंसणीत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं । १३३. अचक्खुदंसणी दुविहे पण्णत्ते--अणादिए वा अपज्जवसिए, अणादिए वा सपज्जवसिए॥ १३४. ओहिदसणी जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो छावट्ठीओ सागरोवमाणं साइरेगाओ। १३५. केवलदसणी साइए अपज्जवसिए । १३६. चक्खुदंसणिस्स अंतरं जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। १३७. अचक्खुदंसणिस्स दुविधस्स णत्थि अंतरं ।। १३८. ओहिदसणिस्स जहण्णेणं 'एक्कं समयं', उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। १३६. केवलदंसणिस्स णत्थि अंतरं ॥ १४०. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा ओहिदसणी, चक्खुदंसणी असंखेज्जगुणा, केवलदसणी अणंतगुणा, अचक्खुदंसणी अणंतगुणा ।। १४१. अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-संजया असंजया संजयासंजया णोसंजया-णोअसंजया-णोसंजयासंजया ॥ १४२. 'संजए णं भंते ! संजएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी ॥ १४३. असंजया जहा अण्णाणी॥ १४४. संजतासंजते जहण्णेणं अत्तोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी ॥ १४५. णोसंजत-णोअसंजत-णोसंजतासंजते साइए अपज्जवसिए । १४६. 'संजयस्स संजयासंजयस्स दोण्हवि अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं १. जी० ६।२६ । २. अवेदकस्स अंतरं जहा अकसाइस्स (ता)। ३. अवधिदसणी (ग, त्रि); ओधिदंसणि (ता)। ४. ओहिदसणस्स (क, ख, ग); ओहिदंसणिस्स (ट, त्रि)। ५. अंतोमुहत्तं (क,ख,ग,ट,त्रि); अवधिदर्शनिनो जघन्येनैक समयमन्तरं प्रतिपातसमयानन्त- रसमय एव कस्यापि पुनस्तल्लाभभावात् क्व- चिदन्तर्मुहुर्त्तमिति पाठः स च सुगमः तावता व्यवधानेन पुनस्तल्लाभभावात्, न चायं निर्मूलः पाठो मूलटीकाकारेणापि मतान्तरेण समर्थितत्वात (मव) तयान्तराभिधानात् अवधिदर्शनी जघन्येनैकं समयं भवत्यवधिप्रतिपत्तिर्महन्तिरमेव मरणमिथ्यात्वगमनाभ्याम् (हावृ)। ६. संजतस्स संचिट्ठणा (ता)। ७. जी०६।३२ । Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०४ जीवाजीवाभिगमे अवढं पोग्गलपरियटं देसूणं । असंजयस्स आदि दुवे णत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसि - यस्स जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी । चउत्थगस्स णत्थि अंतरं" ॥ १४७. 'अप्पाबहुयं - सव्वत्थोवा" संजया, संजया संजया असंखेज्जगुणा, णोसंजयणोअसंजय णोसंजया संजया अनंतगुणा, असंजया अनंतगुणा । सेत्तं चउव्विहा सव्वजीवा ॥ १४८. तत्थ जेते एवमाहंसु पंचविधा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा --- कोहकसाई माणकसाई मायाकसाई लोभकसाई अक्साई ॥ १४६. कोहकसाई माणकसाई मायाकसाई णं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतमुतं ॥ १५०. 'लोभकसाइस्स जहण्णेणं एकं समयं उक्को सेणं अंतोमुहुत्तं ॥ १५१. 'अकसाई दुविहे जहा ' हेट्ठा " ॥ १५२. 'कोहकसाई माणकसाई मायाकसाई णं अंतरं जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतं ॥ १५३. लोहकसाइस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं " ॥ १५४. अकसाई तहेव जहा ' हेट्ठा ॥ १५५. अप्पाबहुयं -- ' सव्वत्थोवा अकसाई, माणकसाई अनंतगुणा, कोहकसाई विसेसाहिया, मायाकसाई विसेसाहिया, लोभकसाई विसेसाहिया " || १५६, अहवा पंचविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - णेरइया तिरिक्खजोणिया मस्सा देवा सिद्धा || १५७. 'चिट्टतराणि जह" हेट्ठा भणियाणि " ॥ १५८. अप्पाबहुयं - सव्वत्थोवा मणुस्सा, णेरइया असंखेज्जगुणा, देवा असंखेज्जगुणा, सिद्धा अनंतगुणा, तिरिया अनंतगुणा । सेत्तं पंचविहा सव्वजीवा ।। १५६. तत्थ" णं जेते एवमाहंसु छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा - १. संजयस्स अंतरं जह मु उ जावड्ढं पोग्गलपरिय देणं, असंजयंतरं जधेव अण्णाणिस्स, संजयास जधेव संजयस्स, णोसं णत्थि अंतरं (ar) 1 २. थोवा (ता) | ३. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु नैरयिकाद्यालापकः पूर्वमस्ति । क्रोध कषायीत्याद्यालापकस्तदनन्तरमस्ति । ४. कोधक ज एवं समयं उ मु । एवं माण माया लोभस्स अंतरं जहणणे एगं समयं उमु (ता) चिन्तनीयोसौ पाठभेदः । ५. जी० ६।२८ | ६. अकसायी जहा पुग्वभणिता दुविधेसु (ता) । ७. कोधंतरं ज एवं समयं उ मु । एवं माण माया लोभस्स अंतरं जधेव से दुविधेसु पुच्छा (ता ) चिन्तनीयोसौ पाठभेदः । ८. जी० ६।२८ । ६. अकसाइणो सव्वत्थोवा, माणकसाई तहा अणंतगुणा । को माया लोभे विसेसमहिया मुणेतव्वा ॥१॥ (क, ख, ग, ट, त्रि) । १०. जी० ६७, ८, १०,११; ६।१०; १२ । ११. सब्वेसि संचिट्टणा, सिद्धे सातिए अप सव्वेसि अंतरं, सिद्धस्स अंतरं णत्थि ( ता ) । १२. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एष ज्ञानालापको नोपलभ्यते । ता' प्रतौ एष आलापक: संक्षि Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपडिवत्ती आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी ओहिनाणी मणपज्जवणाणी केवलनाणी अण्णाणी ।। १६०. आभिणिबोहियणाणी णं भंते ! आभिणिबोहियणाणित्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावद्धि सागरोवमाइं साइरेगाई। एवं सुयणाणीवि ॥ १६१. ओहिणाणी णं भंते ! ओहिणाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छावद्धि सागारोवमाइं साइरेगाई॥ १६२. मणपज्जवणाणी णं भंते ! मणपज्जवणाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी ।।। १६३. केवलनाणी णं भंते ! केवलणाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए॥ १६४. अण्णाणिणो तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए । तत्थ साइए सपज्जवसिए जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं अवड्ढं पोग्गलपरियट्टू देसूणं ।। १६५. अंतरं-आभिणिबोहियणाणिस्स जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं । एवं सुयणाणिस्सवि ओहिणाणिस्सवि मणपज्जवणाणिस्सवि, केवलणाणिणो णत्थि अंतरं। अण्णाणिस्स साइय-सपज्जवसियस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं छावढेि सागरोवमाइं साइरेगाई॥ १६६. अप्पाबयं--सव्वत्थोवा मणपज्जवणाणी, ओहिणाणी असंखेज्जगणा, आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी सट्ठाणे दोवि तुल्ला विसेसाहिया, केवलणाणी अणंतगुणा, अण्णाणी अणंतगुणा ॥ १६७. अहवा छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-एगिदिया बेंदिया तेंदिया चउरिदिया पंचेंदिया अणि दिया । १६८. 'संचिट्ठणंतरं जहा' हेट्ठा ।। १६६. अप्पाबयं-सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेदिया विसेसाहिया, अणिदिया अणंतगुणा, एगिदिया अणंतगुणा" ।। १७०. अहवा छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालियसरीरी वेउव्वियसरीरी आहारगसरीरी तेयगसरीरी कम्मगसरीरी असरीरी ।। १७१. ओरालियसरीरी णं भंते ! ओरालियसरीरीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं दुसमऊणं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं जाव' अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं ॥ प्तोस्ति तथा अष्टविधप्रतिपत्तये समर्पितोस्ति- आभिणिबोहियणाणी ५ अण्णाणी, सव्वेसि संचिटणा सव्वेसिं अंतर अप्पाबहुं च भाणितव्वं जहा अट्ठविधेसु सव्वजीवेसु । १. जी० ४१७-६, १६-१८3१६ । २. सव्वेसिं संचिटणा सम्वेसि अंतरं अप्पाबहं च भाणितव्वं (ता)। ३. जी० १२३ । ४. ओरालियसरीरस्स संचिट्ठणा जहण्णेणं खुड्डागं भ दुसमयूणं उ बादरकालो (ता)। Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०६ जीवाजौवाभिगमे १७२. वेउव्वियसरीरी जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं ॥ १७३. आहारगसरीरी जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं । १७४. तेयगसरीरी कम्मगसरीरी य ‘पत्तेयं दुविहे", तं जहा-अणादीए वा अपज्जवसिए, अणादीए वा सपज्जवसिते ।। १७५. 'असरीरी साइए अपज्जवसिते" ॥ १७६. ओरालियसरीरस्स अंतरं जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तमब्भहियाई॥ १७७. वेउव्वियसरीरस्स अंतरं जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। १७८. आहारगसरीरस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव' अवड्ढं पोग्गलपरियट देसूणं ॥ १७९. 'तेयग-कम्मगाणं दोण्हवि अणाइय-अपज्जवसियाणं णत्थि अंतरं, अणाइयसपज्जवसियाणं णत्थि अंतरं ।। १८०. 'असरीरिस्स साइय-अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं॥ १८१ अप्पाबयं-सव्वत्थोवा आहारगसरीरी, वेउव्वियसरीरी असंखेज्जगणा, ओरालियसरीरी असंखेज्जगुणा, असरीरी अणंतगुणा, तेयाकम्मसरीरी दोवि तुल्ला अणंतगणा। सेत्तं छव्विहा सव्वजीवा ।। १८२. तत्थ णं जेते एवमाहंसु सत्तविधा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तं जहापुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया तसकाइया अकाइया॥ १८३. 'संचिट्ठणंतरा जहाँ हेट्ठा" ॥ १८४. 'अप्पाबहुयं--सव्वत्थोवा तसकाइया, तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउकाइया विसेसाहिया, अकाइया' अणंतगणा, वणस्सइकाइया अणंतगुणा ॥ १८५. अहवा सत्तविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा–कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा अलेस्सा ॥ १८६. कण्हलेसे णं भंते ! कण्हलेसति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तमब्भहियाइं"। १८७. णीललेस्से णं भंते ! णीललेस्सेत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणेणं १. दोवि दुविहा (ता)। ६. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि, मवृ)। २. ४ (ता)। ७. जी० ५।८-१७,६।१६। ३. अणंतं कालं वणस्सतिकालो (क, ख, ग, ट, ८. सव्वेसिं संचिट्ठणंतराई भाणितव्वाइं अकाइए त्रि)। सादीए अप णत्थि य से अंतरं (ता)। ४. जी० ६।२३ । ६. सिद्धा (क, ख, ग, ट, त्रि) । ५ तेयंकम्मसरीरस्स दुण्हवि त्यि अंतरं (क, ख, १०. अप्पाबहुगं भाणियव्वं (ता) । ग, ट, त्रि); द्विवानि नास्त्यन्त रम् (मवृ)। ११. मभतियाई (ता) सर्वत्र । Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपडिवत्ती ५०७ अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागमब्भहियाई ।। १८८. काउलेस्से णं भंते ! काउलेरसेत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिणि सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागमब्भहियाइं ॥ १८६. तेउलेस्से णं भंते ! तेउलेस्सेत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दोण्णि' सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमब्भहियाई॥ १६०. पम्हलेसे णं भंते ! पम्हलेसेत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई ॥ १६१. 'सुक्कलेसे णं भंते ! सुक्कलेसेत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तमब्भहियाई ।। १६२. अलेस्से णं भंते ! सादीए अपज्जवसिते॥ १६३. 'कण्हलेसस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई। एवं नीललेसस्सवि, काउलेसस्सवि"। १६४. 'ते उ-पम्ह-सुक्काणं अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो"। १६५. 'अलेसस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं"। १९६. अप्पाबहुयं-सञ्वत्थोवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा संखेज्जगुणा, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा, अलेस्सा अणंतगुणा, काउलेस्सा अणंतगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया । सेत्तं सत्तविहा सव्वजीवा ।। १६७. तत्थ णं जेते एवमाहंसु अट्टविहा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तं जहाँ१. दो (ता)। काद्यालापको विद्यते ततश्च ज्ञानाद्यालापकः । २. सुक्का जहा किण्हा (ता)। 'ता' प्रतौ च पाठोपि संक्षिप्तो वर्तते । वृत्ति३. कण्हणीलकाउतिण्हवि अंतरं जहा कण्हाए कृता एतादृशं संक्षिप्तपाठमेव लक्ष्यीकृत्य एषा संचिट्ठणा (ता)। टिप्पणी कृतास्ति-सूत्रपुस्तकेष्वतिसंक्षेप इति ४. तेउलेसस्स ण भंते ! अंतरं का? जह अंतो- विवृतम् । 'ता' प्रतिगतः पाठः एवं विद्यतेमुहत्तं उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। एवं पम्ह- आभिणिबोधियणाणी जाव केवलणाणी मतिलेसस्सवि, सुक्कलेसस्सवि (क, ख, ग, ट, अण्णाणी सुत विभंग। आभिणिबो सुतणात्रि)। णाणं संचिट्ठणा जहं अंतो उक्को छावद्विसागरो ५. अलेसे णत्यंतरं (ता)। सातिरेगाणि, ओहिणाणीवि एमेव णवरं जहं ६. एतेसि णं भंते ! जीवाणं कण्हलेसाणं नीलकाउ समयं, मणपज्जवणा जह एगं समयं उक्को तेउ पम्ह सुक्क अलेसाण य कतरे २ (क, ख, देसूणा पुवकोडी, केवलणाणी सादीए अपज्ज । ग, ट, त्रि)। मतिअण्णाणी सुतअण्णाणी जहा सवेदओ ७. असंखेज्जगुणा (ता) । विभंगणाणी जहं एगं समयं उक्को तेत्तीसं ८. अतः परं 'ता' प्रतौ अर्वाचीनादर्शेष च नैरयि- सागरोवमाई देसूणाए पुवकोडीए अब्भतिया। Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे आभिणिवोहियनाणी सुयणाणी ओहिणाणी मणपज्जवणाणी केवलणाणी मतिअण्णाणी सुयअण्णाणी विभंगणाणी॥ १९८. आभिणिबोहियणाणी णं भंते ! आभिणिवोहियणाणित्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिसागरोवमाइं सातिरेगाई। एवं सुयणाणीवि ॥ १६६. ओहिणाणी णं भंते ! ओहिणाणित्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छावद्विसागरोवमाइं सातिरेगाई॥ २००. मणपज्जवणाणी णं भंते ! मणपज्जवणाणित्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी॥ २०१. केवलणाणी णं भंते ! केवलणाणित्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिते ।। २०२. मतिअण्णाणी णं भंते ! मतिअण्णाणित्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! मइअण्णाणी तिविहे पण्णत्ते, तं जहा --अणादीए वा अपज्जवसिए, अणादीए वा सपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिते। तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिते, से जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं। सुयअण्णाणी एवं चेव । २०३. विभंगणाणी णं भंते ! विभंगणाणित्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई देसूणाए पूव्वकोडीए अब्भहियाई॥ २०४. आभिणिबोहियणाणिस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्ट देसूणं । एवं सुयणाणिस्सवि, ओहिणाणिस्सवि, मणपज्जवणाणिस्सवि ।। २०५. केवलणाणिस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीयस्स अपज्जवसियस्स पत्थि अंतरं ।। २०६. मइअण्णाणिस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! अणादीयस्स अपज्जवसियस्स पत्थि अंतरं, अणादीयस्स सपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, सादीयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाइं सातिरेगाई। एवं सुयअण्णाणिस्स वि ॥ २०७. विभंगणाणिस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। आभिणिबोहित जाव मणपज्ज अंतरं जहं अंतो मुहत्तं उक्कोसेणं अणंतका अवड्ढे दो देसू मति सुत अण्णाणाणं अंतरं अणादि अप णत्यंतरं, सादी सपज्ज जहं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं छावदि सागरोवमाइं साति, विभंगणाणिस्स वणकालो। पृच्छा गो अप्पाबहुयस्स थोवा मणप ओधिणा असं आभिणिबो सुयणाणी दोवि तुल्ला विसे विब्भ असं केवल अणं, मतिअ सुत स दोवि तुल्ला अणंतगुणा। सेतं एवमाहंसु अट्ठविहा। Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपडिवत्ती २०८. अप्पाबहुयं' —– सव्वत्थोवा जीवा मणपज्जवणाणी, ओहिणाणी असंखेज्जगुणा, आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी सट्टाणे' दोवि तुल्ला विसेसाहिया, विभंगणाणी असंखेज्जगुणा, केवलणाणी अनंतगुणा, मइअण्णाणी सुयअण्णाणी य सट्टाणे' दोवि तुल्ला अनंत गुणा ॥ २०६. अहवा अट्ठविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - णेरइया, तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ मणुस्सा मणुस्सीओ देवा देवीओ सिद्धा ॥ २१०. णेरइए णं भंते ! नेरइयत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणेणं दस वाससहस्साई, उक्को सेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ॥ २११. तिरिक्खजोगिए णं भंते! तिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो || २१२. तिरिक्खजोगिणी णं भंते ! तिरिक्खजोणिणीत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिष्णि पलिओ माई पुव्वकोडिपुहत्तमम्भहियाई । एवं मणूसे मणूसी ॥ ५०६ २१३. देवे जहा नेरइए || २१४. देवी णं भंते ! देवीत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणणेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओ माई || २१५. सिद्धे णं भंते ! सिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीए अपज्जसि ॥ २१६. णेरइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो || २१७. तिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं ॥ २१८. तिरिक्खजोगिणी णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो । एवं मणुस्सस्सवि मणुस्सीएवि, देवस्सवि देवीवि ॥ २१६. सिद्धस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ।। २२०. अप्पाबहुयं' - सव्वत्थोवा मणुस्सीओ, १. एएसि णं भंते! आभिणिबोहियणाणीणं सुयणाणि ओहि मण केवल मइअण्णाणि सुयअण्णाणि विब्भंगणाणीण य कतरे ? गोयमा ! (क, ख, ग, टत्रि ) । २. एए (क, ख, ग, ट, त्रि) । ३. x ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ४. अतः परं प्रस्तुतालापकपर्यन्तं 'ता' प्रतो मणुस्सा असंखेज्जगुणा, नेरइया संक्षिप्तपाठोस्ति – संसारसमावण्णेसु पुव्वुत्ता संचिणा अंतरं वा अप्पा बहुगं जहा वत्तव्वताए । ५. एतेसि णं भंते ! णेरइयाणं तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीणं मणूसाणं मणूसीणं देवाणं देवीणं सिद्धाणं य कतरे २ (क, ख, ग, ट, त्रि) । Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे असंखेज्जगुणा, तिरिक्खजोणिणीओ असंखेज्जगुणाओ, देवा असंखेज्जगुणा', देवीओ संखेज्जगुणाओ, सिद्धा अणंतगुणा, तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा । सेत्तं अट्ठविहा सव्वजीवा पण्णत्ता। २२१. तत्थ णं जेते एवमाहंसु णवविधा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा-- एगिदिया बेंदिया तेंदिया चउरिदिया णेरइया पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा देवा सिद्धा।। २२२. एगिदिए णं भंते ! एगिदियत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ २२३. बेंदिए णं भंते ! बेंदिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं । एवं तेइंदिएवि, चउरिदिएवि ॥ २२४. णे रइए णं भंते ! णेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। २२५. पंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुत्वकोडिपुहत्तमब्भहियाई । एवं मणूसेवि ॥ २२६. देवा जहा णेरइया । २२७. सिद्धे णं भंते ! सिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए ॥ २२८. एगिदियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाई॥ २२६. बेंदियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो'। एवं तेंदियस्सवि चउरिदियस्सवि णेरइयस्सवि पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्सवि मणूसस्सवि देवस्सवि सव्वेसिमेवं अंतरं भाणियव्वं ॥ २३०. सिद्धस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ।। २३१. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा मणुस्सा, णेरइया असंखेज्जगुणा, देवा असंखेज्जगणा, पंचेंदियतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा, चरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेंदिया विसेसाहिया, सिद्धा अणंतगुणा, एगिदिया अणंतगुणा ॥ __ २३२. अहवा णवविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा -पढमसमयणेरइया अपढम१. संखेज्जगुणा (मवृ)। द्रष्टव्यम्-६।१२ ३. वणप्फतिकालो (क, ख, ग)। सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ४. एतेसि णं भंते ! एगेंदियाणं बेइंदि तेइंदि २. अतः परं प्रस्तुतालापकपर्यन्तं 'ता' प्रती चरिदियाणं णेरइयाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणिसंक्षिप्तपाठोस्ति--णवण्हवि संचिट्ठणा अंतरं च याणं मणूसाणं देवाणं सिद्धाण य कयरे २ ? पुव्वुत्तं अप्पाबहुं थोवा मणस्सा णेर असं देवा गोयमा ! (क,ख,ग,ट,त्रि) । असं पंचिदियतिरिक्ख असं चतू वि ते विबे वि ५. अतः परं 'ता' प्रती प्रस्तुतालापकपर्यन्तं सिद्धा अणं एगिदिया अणं । संक्षिप्तपाठोस्ति-पढमसमयणेरइया जाव Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपडिवत्ती समयणेरइया पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणूसा अपढमसमयमणूसा पढमसमयदेवा अपढमसमयदेवा सिद्धा य ॥ २३३. पढमसमयणेरइया णं भंते ! पढमसमयणेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! एक्कं समयं ॥ २३४. अपढमसमयणेरइए णं भंते ! अपढमसमयणेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं समयूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाई॥ २३५. पढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते ! पढसममयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! एक्कं समयं ॥ २३६. अपढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते ! अपढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। २३७. पढमसमयमणूसे णं भंते ! पढमसमयमणूसेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! एक्कं समयं ॥ २३८. अपढमसमयमणूसे णं भंते ! अपढमसमयमणूसेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाई॥ २३६. देवे जहा जेरइए । २४०. सिद्धे णं भंते ! सिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिते॥ २४१. पढमसमयणेरइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ - २४२. अपढमसमयणेरइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ २४३. पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं दो खुड्डागाई भवग्गहणाई समयूणाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ २४४. अपढमसमयतिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपूहत्तं सातिरेगं ॥ २४५. पढमसमर जहा पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स ।। २४६. अपढमसमयमणूसस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। २४७. पढमसमयदेवस्स जहा पढमसमयणेरइयस्स ।। . पढमसमयदेवा अप २ सिद्धा य एतेसिं संचिट्टणंतरं च जहा हेट्ठा। अप्पाबहुं तधेव जाव अपढमसमयदेवा असंखे सिद्धा अणंतगुणा अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा। Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ २४८. अपढमसमयदेवस्स जहा अपढमसमयणेरइयस्स ।। २४६. सिद्धस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ॥ २५०. एएसि णं भंते ! पढमसमयणेरइयाणं पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं पढमसमयमणसाणं पढमसमयदेवाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयमणूसा, पढमसमयणेरड्या असंखेज्जगुणा, पढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा || २५१. एएसि णं भंते! अपढमसमयणेरइयाणं अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं अपढमसमयमणूसाणं अपढमसमयदेवाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वातुल्लावा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा अपढमसमयमणूसा, अपढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अनंतगुणा ॥ २५२. एएसि णं भंते ! पढमसमयणेरइयाणं अपढमसमयणेरइयाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयणेरइया, अपढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा || २५३. एएसि णं भंते ! पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं अपढमसमयतिरिक्खजोणियाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयतिरिक्खजोणिया, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अनंतगुणा || जीवाजीवाभिगमे २५४. मणुयदेवाणं अप्पाबहुयं जहा रइयाणं ॥ २५५. एएसि णं भंते ! पढमसमयणेरइयाणं पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं पढमसमयमणूसाणं पढमसमयदेवाणं अपढमसमयणेरइयाणं अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं अपढमसमयमणूसाणं अपढमसमयदेवाणं सिद्धाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयमणूसा, अपढमसमयमा असंखेज्जगुणा, पढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, पढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, सिद्धा अनंतगुणा, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अनंतगुणा । सेत्तं नवविहा सव्वजीवा ॥ २५६. तत्थ णं जेते एवमाहंसु दसविधा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु तं जहा - पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया बेंदिया तेंदिया चउरिदिया पंचेंदिया अणिदिया || २५७. पुढविकाइए' णं भंते ! पुढविकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणे अंतमुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं - असंखेज्जाओ उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोया । एवं आउ-तेउ वाउकाइए । २५८. वणस्सतिकाइए णं भंते! वणस्सतिकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं 'अणतं कालं " 11 २. वणस्सतिकालं (क, ख, ग, ट, त्रि) । १. २५७-२६५ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतौ संक्षिप्तपाठोस्ति - संचिट्ठणंत राई पुव्वुत्ताई । Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी सविहपडिवत्ती ५१३ २५६. बेंदिए णं भंते ! दिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। एवं तेइंदिएवि चउरिदिएवि॥ २६०. पंचेंदिए णं भंते ! पंचेंदिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं ॥ २६१. अणिदिए णं भंते ! अणि दिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए । ___ २६२. पुढविकाइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो । एवं आउकाइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स ॥ २६३. वणस्सइकाइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जा चेव पुढविकाइयस्स संचिट्ठणा ।। २६४. बेइंदिय-तेइंदिय-चरिंदिय-पंचेंदियाणं एतेसिं चउण्डंपि अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। २६५. अणिदियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ।। २६६. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेंदिया विसेसाहिया, तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउकाइया विसेसाहिया, अणिदिया अणंतगुणा, वणस्सतिकाइया अणंतगुणा॥ २६७. अहवा दसविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयणेरइया अपढमसमयणेरइया' पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणसा अपढमसमयमणसा पढमसमयदेवा अपढमसमयदेवा पढमसमयसिद्धा अपढमसमयसिद्धा॥ २६८. पढमसमयणेरइए णं भंते ! पढमसमयणेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! एक्कं समयं ॥ २६६. अपढमसमयणेरइए णं भंते ! अपढ मसमयणेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं समयूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई समयूणाई॥ २७०. पढ मसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते ! पढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! एक्कं समयं ॥ २७१. अपढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते ! अपढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं १. तेसि णं भंते ! पढविकाइयाणं आउ तेउ वाउ वण बेंदियाणं तेइंदियाणं चरि पंचेंदियाणं अणिदियाण य कतरे २ गोयमा ! (क,ख, ग, ट, त्रि)। २. अतः परं २८७ सूत्रपर्यन्तं 'ता' प्रती पाठभेदो विद्यते--जाव पढमसमयसिद्धा अपढमसमयसिद्धा । संचिटणंतरं पव्वत्तं पढमसमयसिद्ध एगं समयं, अपढमसमयसिद्धे सादीए अपज्जवसिए। दोण्हवि सिद्धस्स णत्यंतरं। Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे वणस्सइकालो॥ २७२. पढमसमयमणूसे णं भंते ! पढमसमयमणूसेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! एक्कं समयं ॥ २७३. अपढमसमयमणूसे णं भंते ! अपढमसमयमणूसेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाई॥ २७४. देवे जहा णेरइए ॥ २७५. पढमसमयसिद्धे णं भंते ! पढमसमयसिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! एक्कं समयं ॥ २७६. अपढमसमयसिद्धे णं भंते ! अपढमसमयसिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए । २७७. पढमसमयणेरइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं दस वाससहस्साइं अंतोमुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ २७८. अपढमसमयणेरइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ २७६. पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं दो खुड्डागभवग्गहणाई समयूणाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। २८०. अपढमसमयतिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं सातिरेगं ॥ २८१. पढमसमयमणूसस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं दो खुड्डागभवग्गहणाई समयूणाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ २८२. अपढमसमयमणूसस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं वणरसतिकालो ॥ २८३. देवस्स णं अंतरं जहा णेरइयस्स ॥ २८४. पढमसमयसिद्धस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! णत्थि अंतरं॥ २८५. अपढमसमयसिद्धस्स .णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ॥ २८६. 'एतेसि णं भंते ! पढमसमयणेरइयाणं पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं पढमसमयमणसाणं पढमसमयदेवाणं पढमसमयसिद्धाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा" पढमसमय सिद्धा, पढमसमयमणसा असंखेज्जगुणा, पढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, पढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा ॥ २८७. 'एतेसि णं भंते ! अपढमसमयणेरइयाणं जाव अपढमसमयसिद्धाण य कतरे १. थोवा (ता); अल्पबहुत्वान्यत्रापि चत्वारि, तत्र प्रथममिदं-सर्वस्तोकाः (मवृ) । Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपडिवत्ती कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा" अपढमसमयमणूसा, अपढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, अपढमसमयसिद्धा अणंतगुणा, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा ॥ २८८. 'एतेसि' णं भंते ! पढमसमयणेरइयाणं अपढमसमयणेरइयाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा” पढमसमयणेरइया, अपढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा॥ २८६. 'एतेसि णं भंते ! पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं अपढमसमयतिरिक्खजोणियाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा" पढमसमयतिरिक्खजोणिया, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा ॥ २६०. एतेसि णं भंते ! पढमसमयमणूसाणं अपढमसमयमणूसाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयमणूसा, अपढमसमयमणूसा असंखेज्जगुणा ॥ २६१. 'एतेसि णं भंते ! पढमसमयदेवाणं अपढमसमयदेवाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयदेवा, अपढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा ॥ २६२. एतेसि णं भंते ! पढमसमयसिद्धाणं अपढमसमयसिद्धाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमय सिद्धा, अपढमसमय सिद्धा अणंतगुणा ॥ २६३. एतेसि” णं भंते ! पढमसमयणेरइयाणं अप ढमसमयणेरइयाणं 'पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं पढमसमयमणूसाणं अपढमसमयमणूसाणं पढमसमयदेवाणं अपढमसमयदेवाणं पढमसमयसिद्धाणं" अपढमसमयसिद्धाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमय सिद्धा, पढमसमयमणूसा असंखेज्जगुणा, अपढमसमयमणूसा असंखेज्जगुणा, पढमसमयणेरइया असंखेज्जगुण, पढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, अपढमसमयसिद्धा अणंतगुणा, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा। सेत्तं दसविहा सव्वजीवा । सेत्तं सव्वजीवाभिगमे ।। ग्रंथ परिमाण कुल अक्षर १८२३७८ अनुष्टुपश्लोक ५७२७ अक्षर १४ १. थोवा (ता); द्वितीयमिदं-सर्वस्तोकाः (मव)। २. असंखेज्जगुणा (ता) अशुद्धं प्रतिभाति । ३. तृतीयं प्रत्येकभाविनैरयिकतिर्यङ्मनुष्यदेवानां पूर्ववत, सिद्धानामेवं सर्वस्तोका: (मव) । ४. वे पुडए सव्वत्थोवा (ता)। ५. थोवा (ता)। ६. जहा मणूसा तहा देवावि (क,ख,ग,ट,त्रि) । ७. समुदायगतं चतुर्थ मेवं सर्वस्तोकाः (मवृ) । ८. जाव (ता)। ६. सव्वजीवा पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि) । Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट - १ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और आधार - स्थल निर्देश ओवाइयं संक्षिप्त पाठ अगामिया जाव अडवीए अट्ठारस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता परलोगस्स आराहगा सेसं तं चैव अणते जाव केवलवरणाणदंसणे अण्णभोगेहि जाव सयणभोगेहि अपज्जवसिया जाव चिट्ठति अपsिविरया एवं जाव परिग्गहाओ अभिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहर, वरं ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंते उरघरदारपवेसी' एयं ण वुच्चई अयबंधणाणि वा जाव महद्वणमोल्लाई अवमाणए जाव से असंजए जाव एतत्ते आगमेसिभद्दा जाव पडरूवा आभिणिबोहियणाणी जाव केवलणाणी आयारधरा जाव विवागसुयधरा आवलियाए जाव अयणे इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी उदए जाव भी एक्कतीसं सागरोवमाई ठिई परलोगस्स अणा राहगा सेसं तं चैव एवं एवं अभिलावेणं तिरिक्खजोणिएसु एवं चैव पसत्थं भाणियव्वं १. क्वचित् - 'चियत्तघरं ते उरपवेसी' ति ( वृ ) । पूर्व-स्थल सूत्र ११७ १५७ १६५ १५० १८४ १६१ १२० १०६ १३७ ८५,८७ ७२ २४ ४५ २८ १५२ ११७ १६० ७३ ४० पूर्ति आधार स्थल सूत्र ११६ ८६ १५३ १४६ १८३ ११७ वृत्ति, पृष्ठ १८८ १०५ १११ ८४ वृत्ति, पृष्ठ १५३ नंदी सू० २ नंदी सू० ७६ वृत्ति, पृष्ठ ६८ २७ ११६ ८६ ७३ ४० Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२० ११७ ७६ ११८ ११८ ११८ ११६ एवं जाव सव्वं परिग्गहं ११७ एवं माण माया लोहा एवं सुपण्णत्ते सुभासिए सुविणीए सुभाविए ७६ एवमाइक्खइ जाव एवं ११८ एवमाइक्खामि जाव परूवेमि कंदमंते जाव पविमोयणे कंदमंतो एएसि वण्णओ भाणियन्वो जाव सिविय कंपिल्लपुरे जाव घरसए ११८ करयल जाव एवं करयल जाव कट्ट २१,११७ गामागर जाव सण्णिवेसेसु ६१ से १३,६५,६६ १५५,१५८ से १६१, १६३,१६८ घरसए जाव वसहि चंदण जाव गंधवट्टिभूयं ५५ जावज्जीवाए जाव परिग्गहे णवरं सव्वे मेहणे पच्चक्खाए जावज्जीवए। णमंसित्तए वा जाव पज्जुवासित्तए पहाए जाव अप्प० ण्हायाओ जाव पायच्छित्ताओ तं चेव पसत्थं यव्वं, एवं चेव वइविणओवि एएहि पएहि चेव णेयम्वो तं चेव सव्वं णवरं चउरासीइ वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता तं चेव सव्वं णवरं ठिई चउद्दसवाससहस्साई तित्थगरस्स जाव संपाविउकामस्स तिदंडए य जाव एगते ११७ तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई आराहगा चेव सेसं तं चेव १६७ तेरस सागरोवमाइं ठिई अणाराहगा सेसं तं चेव १५५ दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता परलोगस्स आराहगा सेसं तं चेव ११७ दस सागरोवमाइं टिई पण्णत्ता सेसं तं चेव ११४ देवेस.......... धम्मिया जाव कप्पेमाणा नग्गभावे जाव तमट्ठमाराहित्ता १६६ नग्गभावे जाव मंतं नडपेच्छा इ वा जाव मागहपेच्छा १०२ x m x 90 04 ० 0 0 9 0 १६३ १६१ १५४ १५४ Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'पंडियं जाव अलंभोगसमत्वं पगभट्याए जाव विणीययाए पडिविरया जाव सव्वाओ परिमाहवेरमणे जाव मिच्छादंसणसल्ल विवेगे परिव्वायए जाव वसहि पलिओयमं वासरापस हस्तमन्महिय ठिई सेसं तं चैव पावयणे जाव किमंग पीम जाव हियए बावीसं सागरोवमाई ठिई अणाराहगा सेसं तं चेव बावीसं सागरोवमाई ठिई आराहगा सेसं तं चेव" बावीस सागरोवमाई ठिई परलोगस्स अगाराहगा सेस तं चैव भासासमिया जाव इणमेव ***** मणुस्सेसु महिडिएस जाब महासोक्सु महिडिया जाव चिट्ठिया मूलभोयणे इ वा जाव बीयभोयणे लउया जाव मंदिरुवखा लोभाओ जाय मिच्छादंसणसल्लाओ लोभे अस्थि जाय मिच्छादंसण सल्ले वणं जाव जाणइ वहमाणए जाव णो बह्माणए जाव भो सगडं वा एवं तं चैव भाणियव्वं जाव णण्णत्थ एक्काए गंगामट्टियाए सगळं वा जाव संदमाणियं सच्चैव हेट्ठिल्ला वतब्बया जाव मिसीयद सिझ जाब मंत ५२१ सिभिहित जाव मंत सुकुमालपाणिपाए जाय ससिसोमाकारे सेसं तं चैव जाव चउसट्टिबाससहस्साई ठिई पण्णत्ता सेसं तं चैव वरं पलिओवमं वासस्यसहस्स मन्महिय ठिई हट्ट जाव हियए हट्ट जाव हियया १. तहेव (क, ख ) । १४६ ११६ १६३ ७१ ११८,११६ ६४ ८०.८१ ६२ १५८ १६२ १५६ ૬૪ ७३ ७२ ७२ १३५ १० १६३ ७१ १७० ११२,११३ १३८ १२३-१३३ १०० ५३,५४ १८१ १६६ १४३ ६२ ६५ २१,५३,५६,६३,८० २०,७८ १४८ ६१ ११७ ठाणं १।११४-१२५ ११५ ८६ ७६ २० ८६ दह ८६ भगवती २।१ ७३ ४७ ७२ वृत्ति ε ७१ ठाण १।१००-१०७ १६६ १११ १३७ १००-११० वृत्ति, पृष्ठ १७६ २०,२१ १७७ १५४ १५. E ८६ २० २० Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ हट्ठतुट्ठ जाव हिययाओ हयगय जाव सण्णाहियं हारविराइयवच्छा जाव पभासेमाणा 80 ० १३०; जी० २६४ ७५० ७७४ ७७४ ७७४ ५८ वृत्ति, पृष्ठ २२५ १५७ १४५ २३ रायपसेणइयं अंकामया. उवरिपुंछणीओ १६० अकंताहिं जाव अमणामाहिं ७६७ अगामियाए जाव अडवीए अगामियाए जाव किचि ७६५ अग्गमहिसीहिं जाव सोलसहि अच्चणिज्जाओ जाव पज्जुवासणिज्जाओ २४०,२७६ अच्छं जाव पडिरूवं ३२,३४,३६ अच्छाइं जाव पडिरूवाई अच्छाओ जाव पडिरूवाओ अच्छे जाव पडिरूवे अज्झथिए जाव संकप्पे ७६८ अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था ६८८,७३२,७३७,७७७,७६१,७६३ अज्झत्थियं जाव संकप्पं ७३८ अज्झत्थियं जाव समुप्पण्णं २७६,७४६ अट्ठजोयणाई........ अट्ठाई जाव पुच्छइ ७१६ अडवि जाव पविट्ठा अड्ढे जाव बहुजणस्स ६७५ अणगारसएहिं जाव विहरमाणे ७११ अणियाहिवइणो जाव अण्णेवि २८० अणेगखंभसयसण्णि विठं जाव जाणविमाणं अण्णत्ते वा जाव लहुयत्ते ७६२,७६३ अण्णत्ते वा "लहुयत्ते ७६२ अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहि ८११ अण्णया जाव चोरं ७६४ अतरिय जाव सव्वतो अप्पेगतिया गयगया जाव पायविहारचारेणं ६८८ अभवसिद्धिए जाव चरिमे अभिगमेणं जाव वंदइ २६१ २४४ ७१६ ७६५ ओ० १४ ६८६ ७६२ 0 0 ७५४ 0 ओ० ५२ ७७८ ओ०६६ १. वृत्तौ विशेषणानि किञ्चिद्न्यूनानि दृश्यन्ते । Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२३ ७८९ ६६८ ६६८ ७६० ७६०,७६१ ७६४ ७६४ ७६४ ७८७ ओ०८,१३ ३,४ ७१३ ७७४ ७११ ७७४ १३५ १३२ १२ ७१६ १८३ २६४ अभिगयजीवाजीवे. विहरइ अभिगयजीवा सव्वो वण्णओ जाव अप्पाणं अयभारगं वा जाव परिवहित्तए असणं जाव अलंकारं असणं जाव साइमं असोयवरपायवे पुढविसिलापट्टए वत्तव्वया उववाइयगमेणं नेया अहापडिरूवं जाव विहरइ आइण्णं तं चेव जाव सद्दावेत्ता आपूरेमाणाओ जाव चिट्ठति आपूरेमाणा जाव चिट्ठति आराम वा जाव पवं आरामगयं वा तं चेव सव्वं भाणियन्वं आइल्लएणं गमएणं जाव अप्पाणं आलिघरगेसु जाव आयंसघरगेसु आसत्तोसत्त... कयग्गहगहिय"धूवं आसत्तोसत्त जाव धूवं आसयंति जाव विहरंति इठं जाव फुसंतु इट्टतराए चेव जाव गंधेणं इट्टतराए चेव जाव फासेणं इट्ठतराए चेव जाव वण्णे इट्टतराए चेव जाव वण्णणं इछे... किमंग इरियासमिए जाव सुहुयहुयासणे इहमागए जाव विहरइ ईसर-तलवर जाव सत्थवाह' उक्किट्टाए जाव जेणेव उक्किट्ठाए जाव तिरियमसंखिज्जाणं उक्किट्टाए जाव वीईवयमाणा उच्चत्तणं वण्णओ उच्छुब्भइ जाव अरमणिज्जे उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई उप्पायपव्वएसु"पक्खंदोलएसु उम्मुक्कबालभावं जाव वियालचारि उवट्ठवेह जाव पच्चप्पिणह २६१ १८५ ७६६ ओ० ११७ २६ से २६ ७५३ ८१३ ओ० २७ ६८९ ६८७ २१० ७८५ २८८ १८१ २०६ ७८५ १६७ १८० ८१० ८०६ ६८२ ६८१,७१४ Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ ६६०,६६१ ७२४ ७५६ ७६६ ७१६ ६८१,६८२ ७२५ ७५४ जी० ३।३३६ ७१६ ३०५ २७६ २९४ ७१६ ७७१ ६९० २७६ ३०५ ७१६ ७७१ ७७२ ७६४ ७७४ उवट्ठवेह जाव सच्छत्तं उवट्ठवेंति उवटवेहि जाव पच्चप्पिणाहि उवट्ठाणसालाए जाव विहरामि उववायसभाए जाव उववण्णे उवस्सयगयं... उवागच्छइ तं चेव उवागच्छंति तहेव जेणेव उवागच्छित्ता""थूभं एएण वि जाव लभइ एयंतं जाव तं तं एयमठं जाव हियए एवं अभए सिंगारे उराले मणुण्णे एवं आहार-नीहार-उस्सास-नीसास-इडिढ-महज्जूइ अप्पतराए' चेव एवं जाव संखेज्जहा एवं तंबागरं रुप्पागरं सुवण्णागरं रयणागरं वइरागरं एवं पंतीओ वीही मिहुणाई एस जाव नो एस सण्णा जाव एस समोसरणे एस सण्णा जाव समोसरणे एस सण्णा जाव समोसरणे... एस सण्णा""तयाणंतरं ओराले... चउदसपुवी ओहिनाणं भवपच्चइयं खओवसमियं कंखंति जाव अभिलसंति कंते जाव पासणयाए कंते जाव मणामे कयग्गहगहिय जाव धूवं कयग्गहगहिय जाव पुंजोवयारकलियं कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता कयबलिकम्मा जाव लंकिया कयबलिकम्मा जाव हव्वमागच्छेइ कयवलिकम्मे जाव सरीरे जेणेव चाउग्घंटे जाव दुरुहिता सकोरेंट"महया भडचडगरेणं तं चेव ७७२ ७६५ ७७४ १४२-१४४ ७६४ ७४६ ७५०,७७३ ७७३ ७७३ १४१ ७५४ ७४८ ७४८ ७७३ ७७३ ओ० ८२; भ० १ नंदी ७ ७१३ ७५० ७६० ७४३ ७१३ ७५१,७५२ ७७४ २६५ २६३ ७६५ ८०२ ७६५ २६४ १२ ६६२ ६६२ ६४२ १. अंतराए (क,ख,ग,घ,च,छ) । Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२५ ६६२-६६४ ०. ७१३ ०० १२ ७६४ २१ जाव पज्जुवासइ । धम्मकहाए जाव तए णं ७१६,७१७ करयल जाव कट्ट ७२३ करयल जाव वद्धावेंति करयल जाव वढावेत्ता ७०८ करयलपरिग्गहियं जाव एवं ७०७ करयलपरिग्गहियं जाव कटु ६८३ करयलपरिग्गहियं जाव पच्चप्पिणति करयलपरिग्गहियं जाव पडिसुणेइ करयलपरिग्गहियं जाव वद्धावेत्ता ७२,६८६ करेमि..."णो ७६४ कलकलरवेणं... एगदिसाए जहा उववाइए जाव अप्पेगतिया ६८८ कलसाणं जाव अट्ठसहस्सेणं २८० कल्लं जाव तेयसा ७८८ कालागरुपवर जाव चिट्ठति २३६ किण्हचामरज्झए जाव सुक्किल्लचामरज्झए किण्होभासा"...... १७० किण्होभासे जाव पडिरूवे कुसुमियाओ सव्वरयणामईओ कोडुबियपुरिसा जाव खिप्पामेव कोरव्वा जाव इभा कोहं जाव मिच्छादसणसल्लं खुड्डागमहिंदज्झए तं चेव गिज्जइ जाव णो रमिज्जइ ७८३ गिण्हित्ता तहेव जेणेव २७९ गोसीसचंदणेणं..."पुप्फारुहणं आसत्तोसत्त..."धवं चरमाणे..."समोसढे जाव विहरइ ७१३ चवलाए जाव तिरियमसंखेज्जाणं जाव वीतिवयमाणा २७६ चालेइ जाव णो गंधवो ७७१ चित्तमाणदिए जाव परमसोमणस्सिए छिज्जइ जाव तया णं ७८४ छिडेइ वा जाव अणुपविट्ठा ७५६ छिड्डेइ वा जाव निग्गए ७५४ छिड्डेइ वा जाव राई ७५४ से ७५६ छिड्डेइ वा... जेणं जणसण्णिवाए इ वा जाव परिसा पज्जुवासइ ६८७ ७०३ १४५ वृत्ति, पृष्ठ २८६ २७६ ওওও १३२ वृत्ति, पृष्ठ ८० ओ०४ ओ०४ ओ०५ ६८२ वृत्ति, पृष्ठ २८५ ओ० ११७ ३५२ ७८३ ७६६ ३५४ २७६ २६४ ७१३ १० ७७१ ७८४ ७५६ ७५४ ७५७ ७५४ ओ० ५२ Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२६ ७६० २३५ १८४ wc ३०६-३०६ rowow४० 9 is ८०२ ओ०१२ ओ० १५० ७७४ ६६२ ७५१ जराजज्जरियदेहे जाव परिकिलंते ७६० जहा मणोगुलिया जाव णागदंतया जाइमंडवएसु जाव मालुयामंडवएसु १८५ जाणविमाणं जाव दाहिणिल्लेणं ४८ जाणह जाव उवदंसित्तए जिणपडिमा तं चेव ३१७-३२० जीवो तं चेव ७५५,७५६,७७१,७७२ जुण्णे जाव किलंते ७६०,७६१ जोयणाइं जाव अहाबायरे जोयणाई जाव दोच्चं २७६ णाइअणिवाहिं जाव णाइअमणामाहिं णाइ जाव परिजणं णाइ जाव परिजणेण णिच्चं कुसुमियाओ.... णोवलिप्पिहिति"मित्त हाए जाव उप्पि पहाए जाव सरीरे सकोरेंट महया ण्हाएणं जाव सव्वालंकारभूसिएणं ७५१ ण्हायस्स जाव पायच्छित्तस्स ७६४ तउयभंडे जाव मणामे ७७४ तउयभंडे जाव सुबहुं ७७४ तज्जीवो तं चेव ७५८,७६२ तत्थुप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई २७६ तरुणे जाव सिप्पावगए ७५८,७५६ तहेव केवलनाणं सव्वं भाणियव्वं ७४५ तिक्खुत्तो जाव वंदित्ता १२ तिट्ठाणकरणसुद्धं...पगीयाणं १७३ तेणेव तहेव जेणेव २७६ तेल्लसमुग्गाणं जाव अंजणसमुग्गाणं २५८,२७६ तोरणाण झया छत्ताइछत्ता य णेयव्वा १७६-१७६ दक्खा जाव उवएसलद्धा ७७० दप्पणा जाव पडिरूवा दलयइ जाव कडागारसालं ७८८ दाहिणिल्ले दारे तहेव अभिसेयसभासरिसं जाव पुरथिमिल्ला नंदा पुक्खरिणी जेणेव हरए तेणेव उवागच्छ २ ता तोरणे य तिसोवाणे य सालि ६९२ ७७४ ७७४ ७५२ १६७ १२ नंदी २६ २७६ २०-२३ वृत्ति, पृष्ठ १६ ওওও Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंजियाओ वालरूवए य तहेव, जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छ २ ता तहेब सीहासणे च मणिपेढियं च सेसं तहेव आपयणसरिसं जाव पुरत्थिमिल्ला नंदा पुक्खरिणी जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ २ त्ता जहा अभिसेयसभा तहेव सव्वं जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छइ २ ता तहेव लोमहत्ययं परामुसइ पोत्थयरयणे लोमहत्यएणं पमज्जइ २ ता दिव्वाए दगधाराए अग्गेहि वरेहिय गंधेहि मल्लेहि य अच्चेइ २ ता मणिपेढियं सीहासणेच सेसं तं चैव पुरथिमिल्ला नंदा पुक्खरिणी जेणेव हरए तेणेव उवागच्छ २ त्ता तोरणे य तिसोवाणं य सालिभंजियाओ य बालरूवए य तहेव । दाहिणिले दारे पण्यथिमिल्ला भती उत्तरिल्ले दारे तं चैव पुरथिमिल्ले दारे तं चेव दिव्वेहिं जाव अभोववणे दुपय जाव सिरीसिवाणं दुहाकालिए वा जाय संवेज्जहा दुहाफालिसिया जोति देवसयणिज्जे तं चेव देवा जाव अम्भणण्णायमेवं विडि जान दिव्वं देवी जाव देवाणुभागे देवे जाव पच्चपिणंति धम्मfत्वकार्य जाव णो धम्मिए जाव विहराहि धम्मिया जाव वित्ति नमंस जाव जुवासे नम॑सामि जाव पज्जुवासामि नमसिस्संति जाव पज्जुवाससिस्संति नागदंता तं चैव जाव गपदंतसमागा नानामणि जाव पीवरं निसिरति अहाबारे अहासुह मे दोच्चंपि वेव्वियसमुग्धाएणं जाव बहुसम पइण्णा तहेव ५.२७ ३५७-६५३ ३३४-३३७ ७५३ ७०३ ७६५ ७६५ ३५३ ११ ५६ ६६७ ६५५ ७७१ ७५२ ७५२ ७१६ ५८ ७०४ १३२ ७० ६५ ७६० २६४-३५० २१६-२६६ ७५३ ७०३ ७६५ ७६५ वृत्ति, पृष्ठ २३५ ११ ५६ ६६७ १२ ७७१ ७५२ ६७१ ७१६ ε € १३२ ६६ ७५३ Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ wwwc ओ०११ ओ०११ ओ० १५० ७५३ ७५७ WWW ६६३ २६६ ३०१ से ३०४ ७३७ ७३२ ७३२ ७३२ १६३-१९६ २३३ १४२-१४५ १७४ पउमलयाओ जाव सामलयाओ पउमलयापविभत्ति जाव समलयापविभत्ति पउमे इ वा जाव सयसहस्सपत्ते इ वा पएसी तं चेव पएसी ! तहेव पच्चक्खाए जाव परिग्गहे पच्चक्खामि जाव परिग्गह पच्चत्थिमिल्ले दारे तं चेव, उत्तरिल्ले दारे तं चेव, पुरथिमिल्ले दारे तं चेव, दाहिणे दारे तं चेव पज्जुवासंति जाव पवियरित्तए पज्जुवासंति जाव बूया पडिरूवा जाव पंतीतो वीहीतो मिहणाणि लयाओ पण्णताओ.... पतणतणायंति जाव जोयणपरिमंडलं पत्तं वा तहेव पत्तठे जाव उवएसलद्धे पाडिहारिएणं जाव संथारएणं पावकम्मं जाव उववज्जिहिसि पासाईयाओ.... पासाईयाओ जाव चिट्ठति पासादीए जाव पडिरूवे पासादीया जाव पडिरूवा पासायवरगए जाव विहरतो पासायवरगए जाव विहरमाणे पिहावेमि जाव पच्चइएहि पीढफलग जाव उवनिमंतिज्जाह पुण्णोवचयं जाव उववज्जिहिसि पुप्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थचंगेरीणं पुप्फपडलगाइं जाव लोमहत्थपडलगाई पुष्फपडलगाणं जाव लोमहत्थपडलगाणं पुप्फारुहण"आसत्तोसत्त जाव धूवं पुरिसेहिं जाव उवक्खडावेत्ता पेच्छाघरमंडवे एवं थभे जिणपडिमाओ चेयरुक्खा महिंदझया नंदापूक्खरिणी ७६५ ७५० ७११ ७५० २१ जी० ३।३०३ १३३ ६६८,६७० १६ ७७४ ३ ७७४ ७७४ ७७४ ७५४ ७०४ ७५२ ७५६ ७०६ ७५२ २५८,२७६ १५७ २५८,२७६ ३००,३०५,३५५ ७८८ १५६ १५६ १५६ २६४ ७८७ Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तं चैव जाव धूवं दलइ २ ता पोसहोववासस्स जाव विहरिस्सामि फरिस जाव विहरइ फरिस जाव विहरति बहूहिय जाव देवेहि बाले जाव मंदविष्णाणे भंते जाव नो भंते जाव विहरामि मंते ....बणसंडे भूमिभागा उस्लोया मंगलगा सज्झया जाव छत्तातिछत्ता मणपजवणाणे मणसंकष्पं जाव भियायमाणं मणसंकष्ये जाव भियायसि मणिपेडियं च.... दिव्वाए महन्वपरिसाए जाब धम्मं महत्थं जाव उवणेइ महत्वं जाब गेण्डर महत्थं जाव पडिच्छइ महत्थं जाव पाहु महत्थं जाव विसज्जिए । तं चैव जाव समोस रह महाहिमवंत जाव विहरद महाकम्मतराए चैव तं चैव महाकिरिय जाव हंता महावीरं जाव नमसित्ता महिदण्झए..... तं चैव महिडिया जाय पलिओचमद्वितीया महिडडीए जाव महाणुभागे माहणं वा जाव पज्जुवासेद मित्त जाव परिजणस्स मुच्छिए जाव अज्झोववणे ५२९ ३३८-३५० ७८७ ७१० ७७४ २१ ७५८,७५६ ७६२ ७६२ ७८२ २१६ १६६,१६७,१६८ ७४४ ७६५ ७६५ ३०५ ७७९ ७०८ ७०८ ७०६ ६८०, ६०१,६०३,६८४,६११, ७०० ७०२ ६७१ ७७२ ७७२ ७४ ३११ १८६ ६६६ ७१६ ८०२ ७५३ वृत्ति, पृष्ठ २६४ सू० ३००, २६६, २६७,२६६, २६, ३०५, ३०६, २०६, ३०६,३०६, ३१०, ३११, ३१२ ७८६ ६८५ ६८५ ७५८ ७५४ ७५४ ७८१ २१३ २१,२२,२३ नंदी २३ ७६५ ७६५ २६४ ६६३ ७०० ६८१ ६८४ ६८० ७०० ओ० १४ ७७२ ७७२ & ३०५ ओ० ४७ ६६६ ७१६ ८०२ ७५३ Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३० ७६० ७६० ७६१ ७६१ १२ ७७८ १६५ ७७७ १२ ६८० जी० ३।२६४ ६६८ १६० ७७५ ६८६ ७८६ ७८७ २११-२१४ १४८ १४७ ७७६,७७७ ७६८ १७५,१८० रज्जं च जाव अंतेउरं रहें जाव अंतेउरं रयणाणं जाव रिट्ठाणं रयणीए जाव तेयसा रयणेहिं जाव रिठेहि रायंगणं वा जाव सव्वतो रायकज्जाणि य जाव रायववहाराणि वइरामया सुवण्णरुप्पामया फलगा नाणामणिमया वंदइ जाव एवं वंदणवत्तियाए जाव मया वणसंडे इ वा.... वणसंडे इ वा जाव खलवाड़े वण्णओ सभाए सरिसो वरकमलपइट्ठाणा जाव महया वरकमलपइट्ठाणा तहेव वामेणं जाव वट्टित्ता वामेणं जाव विवच्चासं वावीणं जाव बिलपंतियाणं वासधरपव्वया तहेव जेणेव विउलेणं जाव पडिलाभेइ विविहतारारूवोवचिया जाव पडिरूवा वीसाएमाणा जाव विहरंति संखक....सव्वरयणामया संठिय जाव जोयणसहस्समूसिएणं सच्छत्तं जाव चाउग्घंट सण्णद्ध जाव गहियाउहपहरणेहि सत्थप्पओगेण वा जाव उद्दवेत्ता सद्द जाव विहरइ सद्दहेज्जा....जहा अण्णो जीवो तं चेव सद्दहेज्जा तं चेव सद्दहेज्जा तहेव समज्जिणित्ता जाव देवलोएसु समणं वा जाव पज्जुवासेइ समणं वा तं चेव जाव एएण समण जाव परिभाएमाणे समाणा जाव पडिसुणेत्ता समिद्धे... समुदया जाव सिरीए ओ० ५२; राय०६८८ ७८१ ७८१ २०६,२१०,२३७,२५१ १३१ १३१ ७६७ ७६७ १७४ २७६ ७१६ २७६ ७१६ २० ७६५ २२२ १६० ५२ ५६ ६८१ १७३ ६८३ ७६१ ६८३ ७६१ ओ० १५ ७५४ ६७२ ७५६,७५८ ७६२,७६४ ७५४ ७६० ७५४ ७५२ ७१६ ७१६ ७५२ ७१६ ७१६ ७८७ ७८८ ६५५ ६७६ १३२ ४० Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३१ ७५२ ७७१ २७६ २७६ २७६ २७६ ओ०६७ ७५४ ७१२ २८६ ६८७ ७५५ २१ २८३ वृत्ति, पृष्ठ २६६ ८०१ ओ०१५ ७५२ ७५१ ७५० २३१ सरीरं तं चेव ७५६,७६४ सरूविस्स जाव ससरीरस्स ७७१ सव्वंतरणईओ जेणेव सव्वतूयरे तहेव जेणेव २७६ सव्वतूयरेहिं जाव सम्वोसहिसिद्धत्थएहिं २८० सव्विड्ढीए जाव (णा) नाइयरवेणं १३,६५७ ससक्खं जाव उवणेति सामाणियसाहस्सीहिं जाव सोलसहि सिंघाडग""महया जणसद्देइ वा परिसा सिया जाव गंभीरा ७७२ सिरिवच्छ जाव दप्पणा ४६ सीहासणे जाव सण्णिसणे सीहासणे तं चेव ३५२ सुकुमालपाणिपाए जाव पडिरूवे ६७३ सुकुमालपाणिपाया धारिणी वण्णओ ६७२ सुबहुं जाव उववण्णा ७५३ सुबहुं जाव उववण्णे सुसिलिट्ठ जाव पडिस्वे २४७ सूरियाभविमाणवासिणो जाव देवीओ २८६ सोच्चा जाव हट्ट....उट्ठाए जाव एवं ७०० सोत्थियं जाव दप्पणं हंसासणाइं जाव दिसासोवत्थियासणाई १८३ हट्ठ जाव करयल जाव पडिसुणंति हट्ट जाव जेणेव ७२ हट्ठ जाव पडिसुणेत्ता ६८१ हट्ठ जाव भवह ७१३ हट्ठ जाव समणं ६० हट्ठ जाव हियए ४७,६६५,७१० हट्ट जाव हियया १२,२७६ हट्टतुटु जाव अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे ७२६ हट्टतुट्ठ जाव आसणाओ ७१४ हठ्ठतुट्ठ जाव सूरियाभ २६० हट्ठतुटु जाव हियए १३,१४,१७,१८,६२,२७७, ६६०,७१३,७१६,७२५,७७८ हट्टतुट्ठ जाव हियया १०,१६,२८१,७०७,७१३,७७४ हद्वतुट्ठ तहेव एवं ७१८ हत्थच्छिण्णगं वा जाव जीवियाओ हत्थेण वा जाव आवरेत्ताणं ७१६ ६६५ २६१ २१ ७४ १८१ १० ७१३ ov ६६५ ७५१ ७१६ Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३२ हयकंठाणं जाव उसभकंठाणं हयसंघाडा जाव उसभसंघाडा हिरण्णं तं चेव जाव पव्वइत्तए २५८ १९२ ६६५ १५५ १४१ ६६५ जीवाजीवाभिगमे अकंततरगा चेव जाव अमणामतरगा ३१८४ अणिट्ठा जाव अमणामा ३२६२ अपढमसमयबेइंदिया जाव पढमसमयपंचिदिया ६१ अप्पा वा एवं जाव विसेसाहिया ५।१९ आयामेणं जाव दो ३।३७६ आसयंति जाव विहरंति ३।२१७ आसादणिज्जे जाव इट्ठतराए चेव आसादे ३२८६६ आसादणिज्जे जाव पल्हायणिज्जे ३८७२ आहारसण्णा जाव परिग्गहसण्णा १०२० आहेवच्चं जाव दिव्वाई ३।३५० आहेवच्चं जाव पालेमाणा ३१६३६ इंगाले जाव तत्थ नियमा श७८ ईहामियउसभ जाव पउमलयभत्तिचित्ता ३३३११ उक्किट्ठाए जाव दिव्वाए ३।४४५ उद्दाइत्ता सो चेव विही एवं धायइसंडेवि ३१७१८,७२० उप्पलाइं तं चेव ३१४४५ उववेते जाव सविदियगातपल्हायणिज्जे ३१८७८ उवागच्छित्ता जाव कटु ३१५५५ एएणं अभिलावेणं जाव दसविहा १।१० एवं चत्तारिवि गमा, पढमबिइयभंगेसु अपरियाइत्ता एगंतरियगा अच्छेत्ता अभेत्ता, सेसं तहेव (क,ख, ग,ट,त्रि); ते च्चेव आलावता ह्व जाव हंता पभू ३१९६५-६६७ एवं जहा अच्चीणि णवरं एवतियाई पंच ओवासंतराई ३।१७८ एवं जहा पण्णवणाए जाव सेत्तं ११५ एवं जहा पण्णवणापदे जाव पंचहि ३१२२८ कतरेहितो जाव विसेसाहिया २११३४-१३६ कयग्गाहग्गहित जाव पुंजोवयारकलितं ३१४५८ कयग्गाह जाव धूवं ३१४६० कामावत्ताई जाव कामुत्तरवडिसयाई ३।१७६ कालं जाव असंखेज्जा ५।८ कालं जाव आवलियाए ५६ गेण्हित्ता तं चेव ३।४४५ ३१२७८ भ० १२२४ ४११,६१ ४११६ ६।३७२ ३।२६७ ३८६० ३३८६० पण्ण० ८.१ ओ०सू० ६८ ३॥३५० पण्ण० १२२६ ३।२८८ ३१८६ ३१५७५,५७६ ३१४४५ ३१८६० ३१४४५ १११० ३१९९१-९६३ ३११७६ पण्ण० १२३ पण्ण० ११८७ ४११६ ३।४५७ ३१४५८ ३।१७५ पण्ण० १८।२६ पण्ण० १८१३ ३१४४५ Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३३ ३।४५६ ३।२८३ ३।२७८ ३१२७८ ३।१७६ ३।१६६-२०२ ३।४४५ ३।१६० ३।१६७ ३१८३२ ३१८२ ६॥३६ ३।१२६ ३।११८ गोसीसचंदणेणं जाव चच्चए दलयति आसत्तोसत्त कयग्गाह धूवं ३।४६१ चेव जाव फासेणं ३२२८४ चेव जाव मणामतराए ३।२८३ चेव जाव वण्णणं ३।२७६-२८२ जहा अच्चीणि णवरं सत्त ओवसंत राई विक्कमे सेसं तहेव ३११८० जहा अविसुद्धलेस्सेणं छ आलावगा एवं विसुद्धलेस्सेणवि छ आलावगा भाणितव्वा जाव विसुद्धलेस्से ३।२०५-२०८ जहा णईओ ३२४४५ जातीकुलकोडीजोणीपमुह जाव पण्णत्ता ३११६६ जातीकुल जाव समक्खया ३।१६८ जोयणकोडी जाव अभंतरपुक्खरद्धस्स ३१८३५ जोयणसहस्साई जाव परिक्खेवेणं ३।१०७४ णं जाव केवचिरं ६।४१,४३ तं चेव जाव महावेदणतरा ३११२६ तं चेव णं जाव णो ३।११६ तहेव जाव सायासोक्खबहुले ३।११६ तित्थसिद्धा जाव अणेगसिद्धा ११८ तित्थाइं तहेव जहेव ३१४४५ तुरियाए जाव दिव्वाए ३।१७६ पगतिभद्दगा जाव विणीता ३१८४१ पच्छावि जाव आणुगामियत्ताए ३१४४२ पणिहाय जाव सव्वक्खुड्डिया ३३१२४ पण्णत्ता जाव तेसु ३।३६८ पत्तेयं जाव णिसीयंति ३१५६० पयलाएज्ज वा जाव उसिणे ३।११६ पुढवी जाव सव्वक्खुड्डिया ३।१२५ पुप्फारुहणं जाव धूवं ३।४६५ पोग्गला य जाव असासयावि ३।७२७ भविस्स इ जाव अवट्टिए ३१३५० महज्जुतीए जाव महाणभावे ३१३५० महताहतनगीयवादितरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा ३१८४५ महिड्डीए जाव महाणुभागे ३१८६ मुत्ताजालंतरुसिया तहेव जाव समणाउसो ३।३०२ लवणस्स णं पएसा धायइसंडं दीवं पुट्ठा तहेव जहा जंबूदीवे धाय इसंडेवि सो च्चेव गमो ३१७१५-७१८ वट्टे जाव चिट्ठति ३८६२,८६५,८७१, ८७७,६२५ पण्ण० १३१२ ३१४४५ ३१८६ ३१७६५ ३४४१ ३।१२४ ३१३६७ ३१५५८ ३।११८ ३११२४ ३३४५६ ३१७२४ ३१२७२ ३।८४२ वत्ति, पत्र १०६ ३१३०२ ३१५७१-५७४ ३१७०४ Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३४ वलयागार जाव चिट्ठति ३८५६ वलयागारसंठाणसंठिते जाव चिट्रति ३१८६८ वलयागारसंठाणसंठिते जाव संपरिविखत्ताणं ३१८४८ वलयागारे तहेव जाव जे ३१४७ सव्वतुवरे य तहेव ३१४४५ सवपाणा जाव देवत्ताए देवित्ताए आसण जाव हता ३।११३० सव्वपुप्फे तं चेव ३१४४५ सामाणियसाहस्सीहिं जाव अण्णेहि ३१५५७ सिझंति जाव अंतं १११३२ सेरियागुम्मा जाव महाजाइगुम्मा ३१५८० सेसं तं चेव ३३१७८,१८२ सोहम्मीसाण जाव अणुत्तरेसु ३३१०३८ हट्टतुट्ठ जाव हियए ३१४४३ हट्ठट्ट जाव हियया ३१४४५ हद्वतुट्ठा करतल जाव कटु एवं देवोत्ति जाव पडिसूणेत्ता ३१५५५ हट्ठतुट्ठा जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया ३१४४७ हयकंठगाणं जाव उसभकंठगाणं पुप्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थचंगेरीणं पुप्फपडलगाणं अट्ठसयं तेल्लसमुग्गाणं जाव धूवकडुच्छ्याणं ३१४१६ ३१७०४ ३१७०४ ३१७०४ ३१४६ ३।४४५ ३१११२८ ३१४४५ ३।४४६ ओ० सू०७२ जंबु० २।१० ३।१७६ पण्ण० २१४६ वृत्ति, पत्र २४३ ३१४४३ ३१४४१ ३।३२८-३३५ वृत्ति, पत्र २३४ पण्ण० १२३ हिमे जाव जे श६५ Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-२ तुलनात्मक राज-वर्णक ओवाइय सूत्र १४ जंबुद्दीवपण्णत्ती ३।२,३ अत्र राजवर्णकस्य प्रकारान्तरं चापि लभ्यते । देवी-वर्णक ओवाइय सूत्र १५ नायाधम्मकहाओ १।२।८ नमोत्थु-पूर्वावस्था-वर्णक ओवाइय सूत्र २१,५४ रायपसेण इयं सूत्र ८,७१४ नायाधम्मकहाओ २०१११ नमोत्थु-सूत्र ओवाइय सूत्र २१: रायपसेणइयं सूत्र ८: णमोत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं आइगराणं नमोत्थु णं अरहताणं भगवंताणं आदिगराणं तित्थगराणं सहसंबुद्धाणं पुरिसोत्तमाणं पुरिससी- तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं हाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीण पुरिसवरपंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयजीवदयाणं दीवो ताणं सरणं गई पइट्रा धम्मवर- गराणं अभयदयाणं चक्खदयाणं मग्गदयाणं जीवचाउरंतचक्कवट्ठीणं अप्पडियवरनाणदंसणधराणं दयाणं सरणदयाणं बोहिदयाणं धम्मदयाणं धम्मवियदृछउमाणं जिणाणं जावयाणं' तिण्णाणं देसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीण धम्मवरतारयाण मुत्ताणं मोयगाणं बुद्धाणं बोहयाणं चाउरंतचक्कवट्टीणं अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं सवण्णणं सव्वदरिसीणं सिवमयलमरुयमणंतमक्ख- वियदृछउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाणं यमव्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगइणामधेज्जं ठाणं बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सवण्णणं सव्वसंपत्ताणं। दरिसीणं सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं । १. २६२ सूत्रे नास्ति । २. १६ सूत्रे 'जाणए' पाठो विद्यते । ३. २६२ सूत्रे सिवं अयलं अरुसं अणंतं अक्खयं अव्वाबाहं अपुणरावित्ति । Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाओ १२: समणे भगवं महावीरे आइगरे""विभक्ति भेदेनैव समणेणं भगवया महावीरेणं आदिगरेणं तित्थगरेणं पाठो निर्दिष्टसूत्रांकेषु विद्यते सूत्र १६,२१,५४ सयंसंबुद्धणं पुरिसोत्तमेणं पुरिससीहेणं पुरिसवर पोंडरीएणं पुरिसवरगंधहत्थिणा लोगोत्तमेणं लोगनाहेणं लोगहिएणं लोगपईवेणं लोगपज्जोयगरेणं अभयदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं सरणदएणं जीवदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मनायगेणं धम्मसारहिणा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरणाणदंसणधरेणं वियदृच्छउमेणं जिणेणं जावएणं तिण्णेणं तारएणं बुद्धणं बोहएणं मुत्तेणं मोयगेणं सव्वण्णुणा सव्वदरिसिणा सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणवत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउकामेणं । भगवती ११७ समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपोंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी लोगुत्तमे लोगनाहे लोगपदीवे लोगपज्जोयगरे अभयदए चक्खुदए मग्गदए सरणदए धम्मदेसए धम्मसारही धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए बुद्धे बोहए मुत्ते मोयए सवण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहं सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपाविउकामे। -जंबुद्दीवपण्णत्ती ॥२१ -नायाधम्मकहाओ १३१७ -अणुत्तरोववाइयदसाओ ३७५ प्रभात-वर्णक ओवाइय सूत्र २२ : रायपसेणइयं सूत्र ७२३ : कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमल- कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास- कोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए कयनियमावकिसुय-सुयमुह-गुंजद्धराग-सरिसे कमलागरसंडबोहए स्सए सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते । उट्रियम्मि सरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते । रायपसेणइयं सूत्र ७७७ : कल्लं पाउप्पभाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलु Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३७ म्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए रत्तासोगपगासकिंसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागर-णलिणिसंडबोहए उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते। भगवती २।१६६ कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोयप्पकासे किंसुय - सुयमुह - गंजद्धरागसरिसे कमलागरसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते । नायाधम्मकहाओ १११।२४ (अतिरिक्त पाठ) अणुओगदारं, लोइयं दवावस्सयं सू० १६ अनगार-प्रव्रज्या ओवाइय सूत्र २३ : आयार-चूला १।२६ : चइत्ता हिरण्णं चिच्चा सवण्णं चिच्चा धणं एवं- चिच्चा हिरण्णं, चिच्चा सुवण्णं, चिच्चा बल, चिच्चा धण्णं बलं वाहणं कोसं कोडागारं रज्जं रट्ठ पुरं वाहणं चिच्चा धण-धण्ण-कणय-रयण-संत-सारअंतेउरं, चिच्चा विउलधण - कणग-रयण-मणि- सावदेज्ज, विच्छड्डेत्ता, विगोवित्ता, विस्साणित्ता, मोत्तिय-संख-सिलप्पवाल-रत्त-रयणमाइयं संत-सार- दायारेस णं दायं पज्जभाएत्ता सावतेज्ज, विच्छड्डइत्ता विगोवइत्ता, दाणं च दाइ- रायपसेणइयं सूत्र ६६५ : याणं परिभायइत्ता, मुंडा भवित्ता अगाराओ चिच्चा हिरण्णं, एवं–धणं धण्णं बलं वाहणं कोसं अणगारियं पव्वइया। कोदागारं पुरं अंतेउर, चिच्चा विउलं धण-कणगरयण-मणि - मोत्तिय - संख-सिल-प्पवाल-संतसारसावएज्जं, विच्छत्तिा विगोवइत्ता, दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता, मुंडा भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वयंति। सूत्र २४,३२,३४,३५,३६ सूत्र २५,२६ निर्ग्रन्थ-तप-वर्णक पण्हावागरणाई ६६ रायपसेणइयं सूत्र ६८६ भगवती २९५ नायाधम्मकहाओ १३१२४ भगवती २२५५ रायपसेणइयं सूत्र ८१३ निरयावलियाओ ३४ पण्हावागरणाई १०।११ सूत्र २७ सूत्र २७,२८,२६ Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २७, २८, २९, ३२, ३४-३६ सूत्र ३०-४४ सूत्र ३१ सूत्र ३२ सूत्र ३३ सूत्र ३६ सूत्र ३७ सूत्र ३८ सूत्र ३६ सूत्र ४० सूत्र ४१ सूत्र ४२ सूत्र ४३ सूत्र ४७-५१ बाह्यतप जंबुद्दीपण्णत्ती २१६८ से ७० पज्जोसवणाकप्पो सूत्र ७८,७९,८० द्रष्टव्यम् - अंगसुत्ताणि भाग - १ परिशिष्ट २ आलोच्यपाठ तथा वाचनान्तर सूयगड २।२०६४ से ६६ भगवती २५।५५७ से ६१८ उत्तरण्झयणाणि ३०, ७-३६ यावत्कथिक ऊनोदरिका कायक्लेश ठाणं २१२००,२०१ ५३८ प्रायश्चित्त विनय वैयावृत्य ध्यान ठाणं ६६५ प्रतिसंलीनता स्वाध्याय आभ्यन्तरतप देव-वर्णक भगवती ७२४ ववहारो, ६।१७ ठाणं ७ ४६ ठाणं ४ ११०, ११२ ठाणं ५१३५ ठाणं ६६६ ठाणं १०।३७ ठाणं ७।१३०-१३७ ठाणं १०।१७ ठाणं ५।२२० ठाणं ४ ६०-७२ पण्णवणा २।४०-६३ Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ परिषद्-गमन-वर्णक सूत्र ५२ रायपसेणइयं सूत्र ६८८,६८६ नगरी-सज्जा-वर्णक सूत्र ५५ जंबुद्दीवपण्णत्ती ३७ नित्यकर्म-वर्णक सूत्र ६३ नायाधम्मकहाओ ११११२४ जंबुद्दीवपण्णत्ती ३६ निगमन-वर्णक भगवती ।२०४ से २०६ सूत्र ६४-६६ जंबुद्दीवपण्णत्ती ३।१७७-१८६ सूत्र ६६ पज्जोसवणाकप्पो सूत्र ७५ पर्युपासना-वर्णक सूत्र २६,७० भगवती ६।३३, १४५,१४६ दासीनाम सूत्र ७० रायपसेणइयं सूत्र ८०४ जंबुद्दीवपण्णत्ती ३।११ नायाधम्मकहाओ १११८२ परिषद्-वर्णक सूत्र ७१: रायपसेणइयं सूत्र ६१: तीसे य महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणि- तीसे य महतिमहालिताए इसिपरिसाए मणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अणेगसयाए परिसाए जतिपरिसाए विदूपरिसाए देवपरिसाए अणेगसयवंदाए अणेगसयवंदपरियालाए ओहबले... । खत्तियपरिसाए इक्खागपरिसाए कोरव्व परिसाए अणेगसयाए अणेगवंदाए अणेगसयवंद परिवाराए महतिमहालियाए ओहबले.... । देवलोक और देव-वर्णक सूयगडो २।२ आयुबंध ठाणं ४।६२५,६२८ भगवती ८।४२५ से ४२८ धर्मश्रद्धा-प्रकटन सूत्र ७६ रायपसेणइयं सूत्र ६६५ भगवती २।५२,६।१६४ नायाधम्मकहाओ शश१०१ उवासगदसाओ ११५१ Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ८२ सूत्र ८८८ सूत्र ९४ सूत्र ६७ सूत्र ११५-१५४ सूत्र १४१-१५४ सूत्र १४६ १. लेहं २. गणियं ३. रूवं ४. गट्ट ५. गीयं ६. वाइयं ७. सरगयं ८. पुक्खरयं ६. समताल १०. जूयं ११ जणवायं रायसेन इयं सूत्र ८०६ लेहं गणियं रूवं नटं गीयं वाइयं सरगयं पुक्खरगयं समतालं जूयं जणवायं १२. पासगं पासगं १३. अट्ठावयं अट्ठावयं १४. पोरेकव्वं पोरेकव्वं १५. दगमट्टियं दगमट्टियं १. क्वचित् 'तालमान' मिति पाठ: । ५४० गौतम वर्णक भगवती १६ उवासगदसाओ ११६६ वाणमंतर उपपात भगवती ११४६ गंगाकलवासी - वानप्रस्थक- तापस भगवती १९५६ निरयावलियाओ ३।३ परिव्राजक-वर्णक दृढप्रतिज्ञ भगवती २।२४ | अम्मड परिव्राजक भगवती १४ । ११० से ११२ रायपसेणइयं सूत्र ७६६-८१६ ७२ कलाएं ghar समवाओ वृत्ति पत्र १३६, १३७७२/७ लेहं लेहं गणियं गणिय रूवं नट्टं गीयं रूवं नटं गीअं वाइयं सरगयं पोक्खर गयं समताल जूअं जणवायं पासयं अट्ठावयं पोरेकव्वं दगमट्टियं वाइयं सरगयं पुक्खर गयं समतालं जयं जणवाय पोरेकव्वं अट्ठावयं मट्टियं अन्नविहि णायाधम्मक हाओ १।१८५ लेहं गणिय रूवं नट्ट् गोयं वाइयं सरगयं पोक्खरगयं समतालं जूयं जणवायं पासयं अट्ठावयं पोरेकव्वं दमयं Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४१ १६. अण्णविहिं अन्नविहिं १७. पाणविहिं पाणविहि १८. वत्थविहिं वत्थविहिं १६. विलेवणविहि विलेवणविहि २०. सयणविहिं सयण विहि २१. अजं अज्ज २२. पहेलियं पहेलियं २३. मागहियं मागहियं २४. गाह गाहं २५. गीइयं गीइयं २६. सिलोयं सिलोगं २७. हिरण्णजुत्ति हिरण्णजुत्ति २८. सुवण्णजुत्ति सुवण्णजुत्ति २६. गंधजुत्ति आभरणविहिं ३०. चुण्णजुत्ति तरुणीपडिकम्म ३१. आभरणविहिं इथिलक्षणं ३२. तरुणीपडिकम्मं पुरिसलवखणं । ३३. इथिलक्खणं हयलक्खणं ३४. पुरिसलक्खणं गयलक्खणं ३५. हयलक्खणं गोणलक्खणं ३६. गयलक्खणं कुक्कुडलक्खणं ३७. गोणलक्खणं छत्तलक्खणं ३८. कुक्कुडलक्खणं चक्कलक्खणं ३९. छत्तलक्खणं दंडलक्खणं ४०. दंडलक्खणं असिलक्खणं ४१. असिलक्खणं मणिलक्खणं ४२. मणिलक्खणं कागणिलक्खणं ४३. काकणिलक्खणं वत्थुविज्ज ४४. वत्थविज्जं णगरमाणं ४५. खंधावारमाणं खंधावारमाणं ४६. नगरमाणं चार ४७. वूह पडिचारं ४८. पडिवूहं ४६. चारं पडिवूह ५०. पडिचारं चक्कवूहं ५१. चक्कवूह गरुलवूह ५२. गरुलवूहं सगडवूह ५३. सगडवूहं जुद्धं अन्नविहिं पाणविहिं पाणविहिं लेणविहिं वत्थविहिं सयणविहिं विलेवणविहिं अज्जं सयणविहिं पहेलियं अज्जं मागहियं पहेलियं गाहं मागहिरं सिलोगं गाहं गंधजुत्ति गीइ मधुसित्थं सिलोगं आभरणविहिं हिरण्णजुत्ति तरुणीपडिकम्म सुवण्णजुत्ति इत्थीलक्खणं चुण्णजुत्ति पुरिसलक्खणं आभरणविहिं हयलक्खणं तरुणीपरिकम्मं गयलक्खणं इथिलक्खणं गोणलक्खणं पुरिसलक्खणं कुक्कुडलक्खणं हयलक्खणं मिढयलक्खणं गयलक्खणं चक्कलक्खणं गोणलक्खणं छत्तलक्खणं कुक्कुडलक्खणं दंडलक्खणं छत्तलक्खणं असिलक्खणं दंडलक्खणं मणिलक्खणं असिलक्खणं काकणि लक्खणं मणिलक्खणं चम्मलक्खणं कागणिलक्खणं चंदचरियं वत्थुविज्ज सूरचरियं खंधावारमाणं राहुचरियं नगरमाणं गहचरियं चारं सोभाकर पडिचारं दोभाकरं विज्जागयं पडिवूह मंतगयं चक्कवूह रहस्सगयं गरुडवूह सभासं सगडवूह चारं पडिचारं अण्णविहिं पाणविहिं वत्थविहिं विलेवणविहिं सयणविहिं अज्जं पहेलियं मागहियं गाहं गीइयं सिलोयं हिरण्णजुत्ति सुवण्णजुत्ति चुण्णजुत्ति आभरणविहिं तरुणीपडिकम्म इत्थीलक्खणं पुरिसलक्खणं हयलक्खणं गयलक्खणं गोणलक्खणं कुक्कुडलक्खणं छत्तलक्खणं दंडलक्खणं असिलक्खणं मणिलक्खणं कागणिलक्खणं वत्थुविज्ज खंधारमाणं नगरमाणं वूह पडिवूह चारं पडिचारं चक्कवूहं गरुलवूह सगडवूह जुद्ध Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४. जुद्धं ५५. निजुद्ध ५६. जुद्धाइजुद्धं ५७. मुट्ठिजुद्ध ५८. बाहुजुद्धं ५६. लयाजुद्धं ६०. ईसत्थं ६१. छरुप्पवादं ६२. धणुवेदं ६३. हिरण्णपागं ६४. सुवण्णपा ६५. वट्टखेड्ड ६६. सुत्तखेड्ड ६७. जालियाखेड्ड ६८. पत्तच्छेज्जं ६९. कडगच्छेज्जं ७०. सज्जीवं ७१. निज्जीवं ७२. सउणरूयं निजुद्धं जुद्धजुद्धं अजुद्ध मुजु बाहुजुद्ध लयाजुद्ध ईसत्थं छरुप्पवायं धणुवेयं हिरण्णपा सुवणपागं सुत्तखेड्ड वट्टखेड्ड लियाखेड्ड पत्तच्छेज्जं कडगच्छेज्जं सज्जीवं निज्जीवं सउणरुयं ५४२ नियुद्ध जुद्धातियुद्ध दिट्ठजुद्ध मुट्ठिजुद्ध बाहुजुद्धं लयाजुद्धं इत्थं छरुप्पवायं ध हिरण्णपागं सुवण्णपागं सुत्तखेड्ड वत्थखेड्ड ना आखेड्ड पत्तच्छेज्जं कडच्छेज्जं सज्जीवं सूत्र १५४ जस्साए कीरइ नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए केसलोए बंमचेरवासे अच्छत्तगं अणो वाणगं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कटुसेज्जा परघरपवेसो लद्धावलद्ध परेहि हीलणाओ निंदणाओ खिसणाओ गरहणाओ तज्जणाओ तालणाओ परिभवणाओ पव्वहणाओ उच्चावया निज्जीवं सउणरुअं मुनित्व आराहणा वूह पडिवू हं खंधावारमाणं नगरमाणं वत्थमाणं खंधावारनिवेसं नगरनिवेस वत्थु निवे ईसत्थं छरुप्प यं refer हत्य सिक्ख धन्वेयं हिरण्णपागं सुवण्णपा मणिपागं नालियाखेड्ड खेड् पत्तच्छेज्जं कडगच्छेज्जं सज्जीवं निज्जीवं सउणरूयं राइपसेणइयं सूत्र ८१६ निजुद्धं जुद्धाइजुद्धं अट्टिजुद्ध मुट्ठिजुद्धं बाहुजुद्धं लयाजुद्ध सत्थं धातुपा बाहुजुद्धं दंडजुद्धं पत्तच्छेज्जं मुट्ठिजुद्धं अजुद्ध निजुद्धं जुद्धाति जुद्धं छरुप्पवाय धणुवेयं हिरण्णपाग सुवणपा वट्टखेड्ड सुत्तखेड्ड नालियाखेड्ड कडच्छेज्जं सज्जीवं निज्जीवं सउणरुतं जस्सट्टाए कीरइ णग्गभावे मुंडभावे केसलोए बंभचेरवासे अण्हाणगं अदंतवणगं अच्छत्तगं अणुवाहणगं भूमिसेज्जाओ फल हसेज्जाओ परघरपवेसो लद्भावलद्धाई माणावमाणाई परेहिं हीलणाओ निंदणाओ खिसणाओ तज्जणाओ ताडणाओ गरहणाओ उच्चावया विरूवरूवा बावीसं परीसहोवसग्गा Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४३ गामकंटगा बावीसं परिसहोवसग्गा अहिया- गामकंटगा अहियासिज्जति, तमठं आराहेहिइ. सिज्जति तमट्ठमाराहित्ता.... । आराहित्ता...। सूयगडो २।२।६७ जस्सट्ठाए कीरइ णग्गभावे मुंडभावे अण्हाणगे अदंतवणगे अछत्तए अणोवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कट्टसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्धं माणावमाणणाओ हीलणाओ निंदणाओ खिसणाओ गरहणाओ तज्जणाओ तालणाओ उच्चावया गामकंटगा बावीसं परीसहोवसग्गा अहियासिज्जति तमलैं आराहेंति, तमट्ठ आराहेत्ता...। ठाणं १६२ से जहानामए बज्जो! मए समणाणं णिग्गंथाणं नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए अच्छत्तए अणुवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कट्टसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्धवित्तीओ पण्णत्ताओ। भगवती ११४३३ जस्सट्ठाए कीरइ नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणयं अदंतवणयं अच्छत्तयं अणोवाहणयं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कट्रसेज्जा केसलोओ बंभचेरवासो परघरप्पवेसो लद्धावलद्धी उच्चावया गामकंटगा बावीसं परिसहोवसग्गा अहियासिज्जति तमझें आराहेइ, आराहित्ता...।। नायाधम्मकहाओ १।१६।३२४ निरयावलियाओ ॥१ सूत्र १५५ सूत्र १६१, १६२ सूत्र १६२ देवकिल्विषक-उपपात भगवती ६।२४० श्रावक-वर्णक सूयगडो २।२।७१,७२ रायपसेणइयं सूत्र ६६८ भगवती २०१४ अनगार-वर्णक सूयगडो २।२।६३,६४,६७ सूत्र १६३-१६६ Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १६६-१८४ सूत्र १७० सूत्र १६२-१६४ सूत्र ११२,१९३ सूत्र १९५ ५४४ केवली - समुद्घात पण्णवणा ३६।७६-६४ गंधसमुद्गक विकिरण भगवती ६।१७३ ईषत्प्राग्भारापृथ्वी पण्णवणा २।६४-६६ ठाणं ८१०९, ११० समवाओ १२।११ सिद्ध-वर्णक पण्णवणा २।६७ Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ परिशिष्ट-३ सद्दसूची प्रमाणविधि अव्यय, सर्वनाम, क्त्वा, तुम्, यप् प्रत्यय के रूप और धातुरूप के साक्ष्य स्थल का निर्देश प्रायः एक बार दिया गया है । • रूट ( / ) अंकित शब्द धातुएं हैं। उनके रूप डॅस ( - ) के बाद दिए गए हैं । • शब्द के बाद साक्ष्य स्थल का अंक सूत्र का है, तथा दो अंक प्रतिपत्ति व सूत्र का है, तीसरा अंक सूत्र के अन्तर्गत गाथा का है । जहां एक या दो संगहणी गाथाएं हैं वहां उसके प्रमाण उसी सूत्रांक में दे दिए गए हैं । ] अ • अ [च] रा ६७५ as [ अ ] रा० ११,५६,६२ अइ [अति] रा० ७६७ अइकंत [ अतिकान्त ] जी० ३।५६७ अइक्कं [ अतिक्रान्त] ओ० १६८,१६५ अक्कम [ अति + क्रम् ] - अइक्कमंति ओ० ६२ अइक्कीलावास [ अतिक्रीडावास ] जी० ३।७५६, ७५७ अगाढ [ अतिगाढ] रा० ७७४ अदूर [ अतिदूर] ओ० ४७,५२, ५३. रा० ६०७ अब [ अतिबल ] ओ० ७१. रा० ६१ अयि [ अतिमृत्तिक] रा० ६ अइमुत्तकलया [ अतिमुक्तकलता ] जी० ३।५८४ अइमुत्तयलया [ अतिमुक्तकलता ] ओ० ११. रा० १४५ अमुत्तलयापविभत्ति [ अतिमुक्तकलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ अरुग्गय [ अचिरोद्गत ] रा० ४५ अइरेग [ अतिरेक ] ओ० २३. जी० ३१५६०,७२६, ७३१,७३२ safe [affaट ] रा० ६८३ असे [ अतिशेष ] ओ० ५२,६६,७०. जी० ३।५६८ अईव [ अतीव ] रा० १३२. जी० ३।५८० अणतीस [ एकोनत्रिंशत् ] जी० ३ । २२६ । ५ अणपण [ एकोनपञ्चाशत् ] जी० ३।२२६ । ३ अणाणउति [ एकोननवति ] जी० ३।८२३ अउणापण्ण [ एकोनपञ्चाशत् ] ओ० १६२ अउणासीति [ एकोनाशीति ] जी० ३।५७० अत [ अयुत ] जी० ३८४१ ५४५ Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अउल-अंजणगिरि अंगुल [अगुल] ओ०१६,१७०,१६२,१६५।७. रा०५६,१८८,७६६. जी०१।१६,७४,८६,९४, १०१,१०३,१११,११२,११६,११६,१२१, १२३ से १२५,१३०,१३५; ३८२,६१,२६०, ४३६,५६६,५६७,७८८,८३८।१७,६६६, १०७४,१०८७,१०८६,११११, ५।२३,२६; ९।४०,५१,६७,१७१ अंगुलक [ अगुलक] जी० ३।२६० अंगुलग [अगुलक] जी० ३।१०७४ अंगुलय [अगुलक ] जी० ३।८२ अंगुलि ] अङ्गुलि] रा० २६२. जी० ३।४५७ अंगुलिज्जग [अगुलीयक] ओ० ६३ अंगुलितल [अगुलितल] ओ० २,५५. रा० ३२, २८१,२६३,२६५. जी० ३३७२,४४७,४५८, ४६०,५५४ अंगुलिय [अङ्गुलिक] ओ० १७० अंगुली [अगुली] ओ० १६ अंगुलीय [अगुलीक] ओ०६३. जी० ३।५९६, अउल [अतुल] ओ० १६५।१६. जी०३।११६ अओकुंभी [अयस्कुम्भी] रा० ७५४,७५६ अओम [अयोध्य] ओ० ५७ अओमय [अयोमय ] रा० ७५४,७५६. जी० ३।११६ अंक [अङ्क] ओ० ४८,५१. रा० १०,१२,१८, २६,३८,६५,१३०,१६०,१६५,१७३,२२२, २५६,२७६,८०४. जी० ३१७,२८२,२८५, ३००,३१२,३३३,३८१,४१७,५६६,८६४ अंक (मय) अङ्कमय ] जी० ३१७४७ अंकधाई [अङ्कधात्री] रा०८०४ अंकमय [अङ्कमय ] रा० १३०,२७०. जी० ३।३००,३२२,४३५ अंकवाणिय [अङ्कवणिज] रा० ७३७ ग्रंकहर [अङ्कधर] जी० ३।५६६ अंकामय [अङ्कमय ] रा० १३०,१४६,१६०,२५४. जी० ३।२६४,३००,४१५ अंकिय [अङ्कित] ओ० १६. जी० ३।५६६,५६७ अंकुर अकुर] ओ० ५,८,१८४. रा० २७, २२८. जी० ३।२७४,२८०,३८७,६७२ अंकुस [अङ्कुश] रा० ३६,४०. जी० ३।३१३, ३३८,५६७,६३४,८६२ अंकुसय [अकुशक] ओ० ११७ अंकोल्ल [अङ्कोठ] जी० ११७४ अंग [अङ्ग] ओ० १५,६३,१४३. रा० ८०६, ८१०. जी० ३१५६६ अंगण [अङ्गन] ओ० २८ अंगपविट्ठ [अङ्गप्रविष्ट] रा० ७४२ अंगबाहिरक [अङ्गबाह्यक] रा० ७४२ अंगमंग [अङ्गाङ्ग] ओ० १४. रा० ७०,६७१. जो०३१५६८ अंगय [अङ्गक ] ओ० ६३ अंगय [अङ्गद ] ओ० ४७,७२,१०८,१३१. रा० २८५. ३१४५१ अंगारक अङ्गारक] ओ० ५० ५६७ अंगुलेज्जग [अगुलोयक] जी० ३।५९३ अंच [कृष्]--अंचेइ ओ० २१. रा.८. ___ जी० ३।४५७ अंचितरिभित [अञ्चितरिभित] जी० ३।४४७ अंचित्ता [कृष्ट्वा] रा० २६२ अंचिय [अञ्चित] रा० १०५.११६,२८१. जी०३।४४७ अंचियरिभिय [अञ्चितरिभित] रा० १०७,२८१ अंचेत्ता [कृष्ट्वा ] ओ० २१. रा० ८. जी. ३१४५५ अंजण [अञ्जन] ओ० ४७. रा० १०,१२,१८,२५, ६५,१६१,१६५,२५८,२७६. जी० ३१७,२७८, ३३४,४१६,४४५ अंजणकेसिगा [अजनकेशिका] जो० ३।२७६ अंजणकेसिया (अजनकेशिका] रा० २६ अंजणग [अञ्जनक] ओ० १३. जी० ३१८८२, ८८३,६१०,६१३ से ६१६ अंजणगिरि [अनगिरि] ओ० ६३ Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंजणपुलय-अंतो अंजणपुलय अञ्जनपुलक] रा० १०,१२,१८,६५, १६५,२७६. जी० ३७ अंजणमय [अञ्जनमय ] जी० ३।८८२ अंजणा [ अञ्जना] जी० ३।४,६८७ अंजलि [अञ्जलि] ओ० २०,२१,५३,५४,५६, ६२,६६,११७. रा०८,१०,१२,१४,१८,४६, ७२,७४,११८,२७६,२७६,२८२,२६२,६५५, । ६८१,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४, ७२३,७६६. जी० ३।४४२,४४५,४४८,४५७, ५५५ अंजलिपग्गह ]अञ्जलि प्रग्रह] ओ० ६६,७०. रा० ७७८ अंजलिप्पग्गह अञ्जलि प्रग्रह] ओ०४० अंजू [अ ] जी० ३।६२० अंडग [अण्डक] ओ० ३३ अंडय [अण्डज] जी० ३।१४७,१४८,१६१ अंडबद्धग [अन्दुबद्धक] ओ० ६० ग्रंत [अन्त] ओ० ७२,७४।४,१५४,१६५,१६६, १७७,१८१. रा० ३७,७७१,८१६. जी० १४१३३; ३१५२,१२४,१२५,३११,६४२,६५३, ७२३,७५४,७६२,७६८ से ७७६ प्रतकम्म [अन्तकर्मन् ] रा० २८५. जी० ३।४५१ अंतगडबसाधर [अन्तकृतदशाधर ] ओ० ४५ अंतर [अन्तर] रा० १३२,२८१,७५४ से ७५७, ७६३,७६४. जी० १११४१,१४२; २।६३,६६, ८६,८८,६२,१२५,१२६,१३३,१५०,१५१; ३१६० से ६३,६५,६६,६८ से ७२,११८,११६, २८८,३०२,४४७,५७०,५९८,७१४,८०२,८१५, ८२७,८३८।२७,८५२,६५२,१०२२,११३६, ११३७; ४।१६,१७ ; ५॥१७,२३,२४,३०; ६।१०।७१३; ८।४; ६।४,१२,१३,१६,२५, २६,३३,३४,३६,४६ से ५४,५६,६०,६५,७१, ७२,८३,८४,८६,६२,६३,६६,१०५ से १०७, १११,११७,११६,१२६ से १२८,१३६,१३७, १३६,१४६,१५२,१५३,१६५,१७६,१७७, १७६,१८०,१६३ से १६५,२०४ से २०७, २१६ से २१६,२२८ से २३०, २४१ से २४४, २४६,२४६,२६२ से २६५,२७७ से २८५ अंतरणई [अन्तर्नदी] रा० २७६ अंतरणदी [अन्तर्नदी] जी० ३।४५५,९३७ अंतरदीव [अन्तर्वीप] जी० २।६१ अंतरदीवक [अन्तर्वीपज, क] जी० २।८६ अंतरदीवग [अन्तर्दोपज, क] जी० १५५,१०१, ११६,१२६; २।३४,७०,७२,७७,८५,६६, १०६,११६,१२४,१३३,१३७,१३८,१४७, १४६ ; ३।१५५,२१५,२१६,२२७,८३६ अंतरदीवय [अन्तर्वीपज, क] जी० १११०१ अंतरदीविया [अन्तर्वीपिका] जी० २।११,१३,६६, ७०,७२,१४७,१४६ अंतरा [अन्तरा] ओ० ५५. रा० २०,६८३,७०६. जी० ३।७२६ अंतराय [अन्तराय] ओ० ४४ अंतरित [अन्तरित] जी० ३।४३६ अंतरिय [अन्तरित ] रा० ७६६. जी० ३१८३८१२६ अंताहार [अन्त्याहार] ओ० ३५ अंतिय [अन्तिक] ओ० २१,४७ से ५१,५४,६३, ७८,८०,८१,११७,१२०,१२११५१. रा० १२, १३,१५ से १७,४७,६२,२७७,६६७,६८१, ६८३,६८५,६६०,६६४ से ६६६,७००,७०६, ७१०,७१३,७१४,७१६,७१८,७२०,७२६, ७७४,७७५,७६६,८१२. जी० ३।४४३ अंतेउर [अन्तःपुर ओ० २३,७०,१६२. रा० ६७४,६६५,६९८,७५२,७७७,७७८, ७८७ से ७६१ अंतेउरिया [अन्तःपुरिकी ] ओ० ६२ अंतेपुर [अन्तःपुर] जी० ३।२८५ अंतेवासि [अन्तेवासिन् ] ओ० २३ से २५,२७,८२, ११५. रा० ६७६ अंतो [अन्तर] ओ० ७०,६२ रा०२४,३३,६६, १३०,१३७,१८७,२५४,७५४,७५५,७५७, Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतोमुहुत्त-अकसाइ - ७७२. जी० १११२७; ३१७७,१११,११८,२१४, अंबरतल [अम्बरतल] ओ०५२. रा०६८८ २७७,२६८,३००,३०७,३०६,३३६,३५२, अंबसालवण [आम्रशालवन] रा०२,८ से १०, ३५६,३६०,३६४,३६८,३६६,३६६,४१५, १२,१३,१५,५६ ६४८,६७३,७५५,७५७,८३८॥१५,८३६,८४०, अंबिल [अम्ल जी० ११५:३।२२ ८४२,६०५ अंबिलोदय [अम्लोदक जी० २६५ अंतोमुहुत्त [अन्तर्मुहूर्त ] जी० ११५२,५६,६५,७४, अंबुभक्खि ]अम्बुभक्षिन् ] ओ० ६४ ७६,८२,८७,८८,१०१,१०३,१११,११६,१२१, अंसुय [अंशुक] जी० ३।५६५ १२३ से १२५,१२७,१२८,१३३,१३७ से अकंटय [अकण्टक ] ओ०६,१४. रा० ६७१. १४०,१४२; २।२० से २२,२४ से ३४,४६, जी० ३।२७५ ५०,५३ से ६१,६३,६५ से ६७,७६,८२ से अकंडुयय [अकण्ड्यक] ओ० ३६ ८४,८७,८८,६०,६१,१०७,१०६ से १११, अकंत [अकान्त ] रा० ७६७. जी० १६५,३९२ ११३,११४,११६,११६ से १३३, ३।१५६, अकंततरक [अकान्तत क] जी० ३८४ १६१,१६२,१६५,१८६ से १६१,२१४,११३२, अकक्कस [अकर्कश] ओ० ४० ११३४ से ११३७, ४१३ से ११,१६,१७; १५, अकडुय [अकटुक ओ० ४० ७,८,१० से १६,२१ से २४,२८ से ३० ; ६।३, अकण्ण [अकर्ण] जी० ३।२१६ ८ से ११;७।१३,१४ ; ६।२३ से २६,३१,३३, अकम्मभूमक [अकर्मभूमक] जी० २।१३३ ३४,३६,४१,४७,५२,५७ से ६०,६८ से ७३, अकम्मभूमग [अकर्मभूमक] जी० ११५१,५५, ७७,७८,८०,८३,८५,८६,६०,६२,६३,६६,६७, १०१,११६,१२६; २।३०,३२ से ३४,७७,८५, १०२,१०३,१०५,११४,११५,११७,११८, ६६,१०६,११६,१२४,१३७,१४७,१४६; १२३,१२५,१२६,१२८,१३२,१३६,१४४, ३।१५५,२१५,२२८,८३६ १४६,१५०,१५२,१५३,१६०,१६४,१६५, अकम्मभूमि [अकर्मभूमि] जी० २११३७ १७२,१७३,१७६ से १७८,१८६ से १६१, अकम्मभूमिक [अकर्मभूमिज, क] जी० २।५७,५८, १६३,१६४,१६८,२०२,२०४,२०७,२११, २१६ से २१८,२२२,२२३,२२५,२२८,२२६, अकम्मभूमिग [अकर्मभूमिज,°क] जी० २।५६ से २४१,२४२,२५७ से २६०,२६२,२६४,२७७, ६१,६६,७०,७२,१३८,१४७,१४६ २७८ अकम्मभूमिय [अकर्मभूमिज] जी० ११०१ अंतोमुहुत्तिय [अन्तर्मुहूर्तिक] ओ० १७३,१८२ अकम्मभूमिया [अकर्मभूमिजा] जी० २।११,१३, अंतोसल्लमयग [अन्तर्शल्यमृतक] ओ० ६० ७०,७२,१४७,१४६ अंदोलग [अन्दोलक] रा० १८०. जी० ३।२६२ अकयस्थ [अकृतार्थ] रा० ७७४ अंदोलय [अन्दोलक] रा० १८१ अकयलक्खण [अकृतलक्षण] रा० ७७४ अंधकार [अन्धकार] ओ० ४६ अकरंडुय [अक रण्डक] ओ० १६. जी० ३१५६६, अंधयार [अन्धकार ओ० ५,८,५७. जी० ३।२७४ अंधिया [अन्धिका ] जी० शह अकरण अकरण] ओ० ७८ से ८१ अंब [आम्र] जी० ११७१ अकरणिज्ज | अकरणीय ] ओ० ११७. रा० ७६६ अंबड [अम्बड] ओ० ६६ अकसाइ [अकषायिन्] जी० १११३१६२८, अंबपल्लवपविभत्ति [आम्रपल्लवप्रविभक्ति] रा० १०० १४८,१५१,१५४.१५५ ८५ Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाइय-अग्गलपासाय ५४६ अकाइय [अकायिक] जी० ६।१८ से २०,१८२, अक्खीण [अक्षीण] रा० ७५१ १८४ अक्खीणमहाणसिय [अक्षीणमहानसिक] ओ० २४ अकामछुहा [अकामक्षुध् ] ओ० ८६ अक्खुभियजल [अक्षुभितजल] जी० ३१७८३,७८४ अकामणिज्जरा [अकामनिर्जरा] ओ० ७३ अक्खेवणी [आक्षेपणी] ओ० ४५ अकामतण्हा [अकामतृष्णा] ओ० ८६ अखंड [अखण्ड] ओ० १६. जी० ३।५६६ अकामबंभचेरवास [अकामब्रह्मचर्यवास ] ओ० ८६ अखभियजल [अक्षभितजल] जी. ३१७८३ अकाल [अकाल] रा० १३,१५ से १७ अगड [अवट] ओ० १,६६ अकिंचण [अकिञ्चन] ओ० २७. रा० ८१३ अगडमह [अवटमह] रा० ६६८ अकित्तिकारग [अकीतिकारक] ओ० १५४ अगणि [अग्नि] रा० ७५७. जी० ३१७७ अकिया [अकृत्वा] ओ० १७२ अगणिकाय [अग्निकाय] रा० ७६७. अकिरिय [अक्रिय] ओ० ४० जी० ३८४१ अकुडिल [अकुटिल] ओ० ४६ अगस्थिगृम्म [अगस्तिगुल्म] जी० ३२५८० अकुणतर [एकोनसप्तति] जी० ३१८२७ अगरला [अगरला,अगरल्लि] ओ० ७१. रा० ६१ अकुव्वमाण [अकुर्वत्] रा० ७६२ अगरलघुयत्त [अगरुलघुकत्व] रा० ७६३ अकुसल [अकुशल] रा० ७५८,७५६ अगलुय [अगरुक] ओ० ११०,१३३ अकुसलमण [अकुशलमनस्] ओ० ३७ अगामिया [अग्रामिका] ओ० ११६,११७. अकुसलवय [अकुशलवचस्] ओ० ३७ रा० ७६५,७७४ अकोसायंत [अकोशायमान, विकसत्] ओ० १६ अगार [अगार] ओ० १५,२३,५२,७६,७८,१२०, अक्किट्ठ [अक्लिष्ट] जी० ३१६३० १५१. रा० ७०,१३३, ६७२, ६८७,६८६, अक्कोह [अक्रोध] ओ० १६८ ६६५, ८०६, ८१०, ८१२ अक्ख [अक्ष] ओ० १२२ अगारधम्म [अगारधर्म] ओ० ७५,७७ अक्खय [अक्षय] ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२००, अगारसामाइय [अगारसामायिक] ओ० ७७ २६२. जी० ३।५६,२७२,३५०,४५७,७६० अगिला [दे० अग्लानि] ओ० ७१. रा० ७२० अक्खर [अक्षर] ओ० ७१,१८२. रा० ६१,२७०. अगुरु [अगुरु] रा० ३० जी० ३।४३५ अगेश [अग्राह्य] ओ० ५ जी० ३।२७४ अक्खाइगपेच्छा [आख्यायकप्रेक्षा] जी० ३।६१६ अग्ग [अन] ओ० २३,६६. रा०६६,७०,१३३, अक्खाङग [अक्षवाटक] रा० ३५,६६,२१८,३००. २६१,३५१,५६४. जी० ३।३०३,४५७,५१६, जी० ३।३७७,४६५,८६१ ५४७,५८०,५६७,६७४ अक्खाडय [अक्षवाटक] रा० ३६,२१७,३००, अगमहिसी [अग्रमहिषी] रा० ७,४२,४७,५६,५८, ३२१,३३८. जी० ३।४६५,४८६,५०३,८६० २८०,६५६. जी० ३।३४०, ३५०, ३५६, अक्खात [आख्यात] जी० ३।२३२ ४४६,४४८,५५७,५५६,५६३,६१६ से २२, अक्खामित्ता [अक्षमयित्वा] रा० ७७६ १०२३,१०२६ अक्खाय [आख्यात] रा० १२४,१२६,१६३,१६६. अग्गय [अग्रक] जी० ३१५६१ जी० १११,३।७७,१६१,१७४,२५७,३३५, अग्गलपासाय [अर्गलाप्रासाद] रा० १३०. ३५४,३५५,३५७,६५८,७२८,७३३,१०३८ जी० ३।३०० Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५० अग्गला-अच्छ अग्गला [अर्गला] रा० १३०. जी० ३।३०० अग्गसिहर [अग्रशिखर] ओ० ५,८. रा० ३२. जी० ३।२७४,३७२ अग्गसो [अग्रशस् ] जी० ११५८,७३,७८,८१ अग्गहत्य [अग्रहस्त] ओ० ४७. रा० १२,७१४, ७५८ से ७६१. जी० ३।११८ अग्गि [अग्नि ] ओ०४८,१८४. रा० ७६१.. जी० ३१६०१, ८६६ अग्गेज्म [अग्राह्य] ओ०८ अग्गोदय [अग्रोदक] जी० ३१७३३ अचंड [अचण्ड] जी० ३१५६८ अचक्खुदंसणि [अचक्षदर्शनिन् ] जी० ११२६,८६, ६०; १३१,१३३,१३७,१४० अचरिम [अचरम] रा० ६२. जी० ६।६३,६५,६६ अचवल [अचपल] रा० १२ अचित्त [अचित्त ] ओ० २८,४६,६६,७०. रा०७७८ अचिर [अचिर] जी० ३।५६० अचोक्स [दे० अचोक्ष] रा० ६,१२. जी० ३।६२२ -अच्च [अ]-अच्चेइ ओ०२. रा० २६१. जी० ३१५१६- अच्चेति जी० ३२४५७ अच्चंत [अत्यन्त ] ओ० १४. रा० ६७१ अच्चणिज्ज [अर्चनीय] ओ० २. रा० २४०,२७६. ___ जी० ३।४०२,४४२,१०२५ अच्चणिया [अर्चनिका] रा०६५४,६५५. जी० ३।४६३,४६६,५१७,५५४,५५५ अच्चा [अर्चा] ओ० ७२ अच्चासण्ण [अत्यासन्न] ओ० ४७,५२,८३. रा० ६०,६८७,६६२,७१६ अच्चि [अचिस् ] ओ० ४७,७२. रा० १७,१८,२०, ३२,१२६. जी० ११७८,३८५,१७५,२८८, ३००,३७२ अच्चिकंत चिःकान्त ] जी० ३११७५ अच्चिकूड [अचि.कूट] जी० ३।१७५ अच्चिज्य [अचिर्ध्वज] जी० ३३१७५ अच्चिप्पभ [अचिःप्रभ] जी० ३।१७५. अच्चिमालि [अचिर्मालिन् रा० १२४ अच्चिमाली [अचिर्मालिनी] जी० ३।६२०,१०२३, १०२६ अच्चियावत्त [अचिरावर्त] जी० ३।१७५ अच्चिलेस्स [अचिर्लेश्य ] जी० ३।१७५ अच्चिवण्ण [अचिर्वर्ण] जी० ३३१७५ अच्चिसिंग [अचिः शृङ्ग) जी० ३।१७५ अच्चिसिट्ट [अर्चिः शिष्ट] जी० ३।१७५ अच्चुत [अच्युत] जी० ३।१०३८,११२२ अच्चुत्तरवडिसग [अचिरुत्तरावतंसक] जी० ३३१७५ अच्चुय [अच्युत] ओ० १५८,१५६,१६२,१६०, १६२. जी० २१९६३।१०५४,१०५५,१०६२, १०६६,१०७४,१०८८,१०६१,११११,१११२, १११५,१११६ अच्चुयवइ [अच्युतपति] ओ० ५१ अच्चेत्ता [अचित्वा] रा० २६१. जी० ३।४५७ अच्चोवग [अत्युदक] रा० ६,१२. जी० ३।४४७ अच्चोयग [अत्युदक] रा० २८१ अच्छ [अच्छ] ओ० १२,१६४. रा० २१ से २३. ३२,३४,३६,३८,१२४ से १२८,१३१,१३२, १३४,१३७,१४१,१४५ से १४८,१५० से १५३,१५५ से १५७,१६०,१६१,१७४,१८० से १८५,१८८,१६२,१६७,२०६,२११,२१८, २२१,२२२,२२४,२२६,२३०,२३३,२३८, २४२,२४४,२४६,२५३,२५६,२६१,२७३, २६१. जी० ३।११८,११६,२६१ से २६३, २६६,२६८,२६६,२८६,२८६ से २६७,३०१, ३०२,३०४,३०७,३०८,३१२,३१८,३१६, ३२३ से ३२६,३२८ से ३३०,३३२,३३४, ३३७,३४७,३४८,३५२,३५३,३५५,३६१, ३६५,३७२,३७७,३८०,३८१,३८३,३८५, ३६२,३६५,३६६,४००,४०४,४०६,४०८, ४१०,४१३,४१४,४१८,४२२,४२५,४२७, ४३७,४५७,६३२,६३६,६४४,६४६,६४६, ६५५,६६१,६६८,६७१,६७५,६८६,७२४, ७२७,७३६,७५०,७५८,८३६,८४२,८५४, Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अच्छ- अट्ठ ८५७,८६३,८८१,८२,८१,८६३ से ८६५, ८६७,८६,६०१,६०४,६०६, ६०७, ६१०, ११,१८, ६५७, १०३८, १०३६,१०८१ अच्छ ] आस् ] अच्छेज्ज ओ० १६५।१८ अच्छ [ ऋक्ष ] जी० ३।६२० घर [आसन गृहक] रा० १८२, १८३. जी० ३।२६४ अच्छण्ण [आच्छन्न ] जी० ३।५८१ अच्छत्त [अछत्रक ] ओ० १५४,१६५,१६६. रा० ८१६ अच्छरस [ अच्छरस ] रा० १६२. जी० ३।४५७ अच्छरा [ दे० ] ओ० १७० जी० ३८६ अच्छरा [ अप्सरस् ] रा० ३२,२०६,२११. जी० ३।३७२,५६७,६२१,११२२ अच्छि [ अक्षि ] ओ० १६. रा० २५४. जी० ३।१२६८, ३०३, ४१५,५६६ अच्छित [ अच्छिद्यमान ] रा० ७७ afrose [ अच्छिद्र ] ओ० ५,८,१६,२६. जी० ३।२७४,५६६, ५६७ अच्छित [ अक्षिपत्र ] रा० २५४. जी० ३।४१५ अच्छिदणा [ अक्षिवेदना ] जी० ३६२८ अच्छेत्ता [ अछित्वा ] जी० ३।६६० अच्छेयकर [ अछेदकर ] ओ० ४० अच्छेरग [ आश्चर्य ] जी० ३।५६७ अज [ अज] जी० ३।६१८ अजरा [अजरा ] ओ० १९५।१८ अजहण [ अजघन्य ] जी० ३।५६७ अजहणमणुक्कोस [अजघन्योत्कर्ष ] जी० ६४८, ५० अजिण [ अजिन ] ओ० २६ अजित [ अजित ] जी० ३।४४८ अजय [ अजित ] ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३।४४८ अजीर [अजीरक ] जी० ३।६२८ अजीव [ अजीव ] ओ० ७१,१२०,१३७,१३८, १६२. रा० ६६८, ७५२,७८६ ५५१ अवाभिगम [ अजीवाभिगम ] जी० १।२ से ५ अजगत् [ अयोगत्व ] ओ० १८२ अजोगि [ अयोगिन् ] जी० १।१३३ ; ६।२१, ४६, ४७,५३,११३,११६,१२० अज्ज [ अद्य ] रा ० ६८८,६८६ अज्ज [आर्य ] ओ० १४६ अज्जग [आर्यक ] रा० ७५०,७५१,७७३ अजय [ आर्यक] रा० ७५०, ७५१ अज्जव [ आर्जव ] ओ० २५,४३. रा० ६८६,८१४ अज्जा [ आर्या ] रा० ८०६ अज्जिया [ आर्यिका ] ओ० १६. रा० ७५२,७५३ अज्जु [ अर्जुन ] ओ० ६,१०. जी० ३।५८३ अज्जुणसुवण्णगमय [अर्जुन सुवर्णकमय ] ओ० १६४ अज्झत्थिय [ आध्यात्मिक ] रा० ६,२७५, २७६, ६८८, ७३२, ७३७, ७३८, ७४६, ७६८,७७७, ७६१,७१३. जी० ३।४४१, ४४२ अक्षयण [ अध्ययन ] जी० १।१ अज्झवसाण [ अध्यवसान ] ओ० ११६,१५६. जी० ३।१२६/६ अज्झोयरय [ अध्यवतरक ] ओ० १३४ अज्झोववज्ज [ अधि + उप + पद् ] - अज्झोववज्जिहिति ओ० १५० रा० ८११ अज्झोववण्ण [ अध्युपपन्न ] रा० ७५३ अ] [आ] ओ०७४ अट्ट (शाण ) [ आर्तध्यान ] ओ० ४३ अट्टमाण [ आर्तध्यान ] रा० ७६५ अट्टणसाला [अट्टशाला ] ओ० ६३ अट्टालग [ अट्टालक ] जी० ३।५६४,६०४ अट्टालय [ अट्टालक ] ओ० १. रा० ६५४,६५५. जी० ३।५५४ अट्टियचित्त [ अतितचित्त ] ओ०७४।५ अट्ठ ]अर्थ ] ओ० २०,२१,५२,५४,५७,५६,६१, ६३, ८ से ६५, १११ से ११४,११७ से १२०, १५४,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६५ से १६७,१६६,१७०, १७२, १७७, १८३, १८४, १८६ से १६१. रा० १३,१६,२५ से ३१,४५, Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ अट्ठ-अणईइ ४७,६४,१२३,१७३,१६७,१६६,२७७,६८३, अट्ठावय [अष्टापद] ओ० १४६. रा० ८०६. ६८७,६६०,६६८,७०१,७१३,७१४,७१६, जी० ३१५९७ ७१६,७२६,७५१ से ७५३,७५५,७५७,७५६, अट्ठावीस [अष्टाविंशति ] ओ० १७०. रा० १८८. ७६१,७६३,७६५,७७१,७७४,७७६ से ७७८, जी० ३।५ ७८६,७८६,७६२,८१६. जी० ३।५८,८४,८५, अट्ठावीसइविह [अष्टाविंशति विध] जी० २०१२ १९८ से २०३.२३६,२४७.२५६,२६६,२७१, अट्ठावीसतिविध [अष्टाविंशति विध] जी०।२१६ २७८ से २८५,३५०,४४३,५७७,५६६,६०१, अट्ठावीसतिविह [ अष्टाविंशतिविध] ओ० ५० ६०२,६०५ से ६०७,६०६,६१०,६१२ से अट्ठासीत [अष्टासीति] जी० ३।८३७ अट्रि [अस्थि ] ओ० १२०. रा०६९८,७५२, ६७४,७००,७०६,७२१,७३१,७३८,७४१, ७८६. जी० ११६५,१३५; ३।६२,१०६० ७४३,७४६,७५०,७६०,७६३,७६५,७६८, अद्विजद्ध [अस्थियुद्ध] रा० ८०६ ७७०,७७६,७८२,७८६,७८७,८०८,८१६, अट्टिसुह [अस्थिसुख ओ०६३ ८२६,८३३,८३६,८४०,८५४,८५७,८६०, अडड [अटट] जी० ३१८४१ ८६३,८६६,८६६,८७२,८७५,८७६,८८०,९२३, अडतालीस [अष्टचत्वारिंशत् ] जी० ३१८२७ ६२५,९२७,९४१,९४८,६४६,६८४ से ६६२, अडयाल [अष्टचत्वारिंशत् ] रा० १२६. ६६४ से ६६६,६६६,१०२४,१०२५,१०४२, जी० ३।३५१ १०४४,१०४६,१०४६,१०५१ से १०५३ अडयालीस [अष्टचत्वारिंशत् रा०२३५. जी० ३।६८ अट्ठ [अष्टन्] ओ० १२. रा० ८. जी ११३६ अट्ठअटुमिया [अष्टाष्टकिका] ओ० २४ अडयालीसप्रंसिय [अष्टचत्वारिंशदस्रिक] रा० २३६ अट्ठतीस [अष्टात्रिंशत् जी० ३।७० अडयालीसइकोडीय [अष्टचत्वारिंशत्कोटीक] रा०२३६ अट्ठपिट्ठणिहिता [अष्टपिष्टनिष्ठिता] जी० ३।८६० अडयालीसइविग्गहिय [अष्टचत्वारिंशद्विग्रहिक] अभाइया [अष्टभागिका] रा० ७७२ रा० २३६ अट्ठभाग [अष्टभाग] जी० २।३६,४४ अडवी [अटवी] ओ० ११६,११७. रा० ७४४,७६५ अट्ठम [अष्टम ] ओ० १७४,१७६ अट्ठमभत्त [अष्टमभक्त] ओ० ३२. जी० ३।५६६ अडहत्तर [अष्टसप्तति] जी० ३।७७ अड्ढ [आढ्य] ओ० १४,१४१. रा० ६७१,६७५, अट्ठमी [अष्टमी] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७६६. जी० ३।५६४ ___७५२,७८६. जी० ३।७२३,७२६ अड्न [अर्ध] जी० ३।६६२ अट्ठया [अर्थ] ओ० २०,१३७,१३८ अडबावट्टि [अर्धद्विषप्टि] जी० ३।६६३ अविह [अष्टविध] जी० ११५,१०; २०१७; ३६१७, ८।१,२३, ६।१६७,२०६,२२० अड्डाइज्ज [अर्धतृतीय ] रा० १२६. जी० ३।६१, अट्ठसिर [अष्टशिरस् ] ओ० १३ २३७,२३८,२४३,३५५,६३२,६४७,६४६, ६७३,६७४,६७३,१०५३,१०५५; ५२६ अदार[अष्टादशन् ] ओ०१६२ अवारस [अष्टादशन् ] ओ०१४८. जी० २०४८ अणइक्कमणिज्ज अनतिक्रमणीय ] ओ०१२०, अट्ठारसविह [अष्टादशविध रा० ८०६,८१० १६२. रा०६९८,७५२,७८६ अणइक्कमणिज्जवयण [अनतिक्रमणीयवचन] अट्ठावण्ण [अष्टपञ्चाशत् ] जी० ३।६६१ ओ०६१ १. ईति रहित। अणईइ [अनीति'] ओ० ५,८. जी० ३।२७४ Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनंत- अणाढिया अनंत [ अनन्त ] ओ० १६,२१,५४, १५३, १६५, १६६,१७२,१८२,१६५८. रा० ८,२९२,८१४, जी० ११६,६७,७३,७४, १३६, २१६३,६५,८८, १३२; ३।४५७; ५१६, २४, २६, ४१ से ५१,५६ से ५८ ८ १४ ६ २३, २६, ३३,६६,७१,७३,७८, १६४,१६५, १७८,२०२, २०४,२५८ अतक [ अनन्तक ] जी० ३।४५१ अणंतखुत्तो [ अनन्तकृत्वस् ] जी० ३११२७, ६७५, ११२८ से ११३० अनंत [ अनन्तक ] ओ० १०८,१३१. रा० २८५ अनंतगुण [ अनन्तगुण] ओ० १६५।१४. जी ० १ ३५,३७,४०, १४३; २११३४,१३६, १३८ १४१,१४२, १४५, १४६, १४६, ३।११३८ ४।१६ से २१,२५५१८,२०,२५, २७,३१,३३,३६,५२, ६०, ६११२; ७ २१ से २३ ८१५; ६५ से ७,१४,१७,२०,२७ से २६,३५,६१,६२,६६,७४,८७,६४, १००, १०८, ११२,१२०,१३०,१४०, १४७, १५५, १५८, १६६,१६६,१५१,१८४,१६६,२०८,२२०, २३१,२५१,२५३,२५५, २६६, २८७, २८६, २६२,२६३ अणतपसि [ अनन्तप्रदेशिक] जी० १।३३ अनंतर [ अनन्तर] ओ० ६४,१४१, १८२,१६२. रा० ५० से ५५,७०,२६२,७७३, ७६६. जी ० १ ४३,६१,११६; ३।१२१, १५६, ६६८, ८३८२५,८८२, ११२७ अणंतरसिद्ध [ अनन्तरसिद्ध ] जी० १।७, ८ अतवग्ग [ अनन्तवर्ग ] ओ० १६५ १५ अत्याहा [ अनन्तवृत्तिता (का) नुप्रेक्षा ] ओ० ४३ अनंतसंसारिय [ अनन्तसंसारिक ] रा० ६२ अणगार [ अनगार] ओ० २७,४५,८२,१५२, १६४,१६९. रा० ६८६,७११,८१३. जी० ३।१६८ से २०६ अणगारषम्म [ अनगारधर्म ] ओ० ७५,७६ ५५३ अणगारसामाइय [ अनगारसामायिक ] ओ० ७६ अनगारिया [ अनगारिता] ओ० २३,५२,७६,७८, १२०,१५१. रा० ६८७, ६८६, ६६५, ८१२ अणच्चासायणा [ अनत्याशातना ] ओ० ४० अणच्चासः यणाविणय [ अनत्याशातनाविनय ] ओ० ४० अट्ठ [ अनर्थ ] ओ० १२०,१६०. रा० ६६८, ७५२,७८६ अट्ठावंड [ अनर्थदण्ड ] ओ० १३६ अणण्यकर [अनास्नवकर ] ओ० ४० अणत्थवंड [ अनर्थदण्ड ] ओ० १०४,१२७ अणत्थदंडवेरमण [अनर्थदण्डविरमण ] ओ० ७७ अणवखमाण [अनवकांक्षत् ] ओ० ११७ अणवज्ज [ अनवद्य ] ओ० १३७,१३८ अवारिह [ अवस्थाप्यार्ह ] ओ० ३६ trafa [ अवस्थित ] जी० ३१८३८।१० tra [ अवस्थित ] जी० ३१८३८।३२,८४१ trafora [ अनपनिक ] ओ०४६ अणवयग्ग [ अनवद] ओ० ४६ अणवरय [ अनवरत ] ओ० ६८ अणसण [ अनशन ] ओ० ३१, ३२, ११७, १४०, १५४, १५७,१६२,१६५, १६६. रा० ८१६ अणह [ अनघ ] ओ० ६८ अाइ [ अनादि ] ओ० ४६ arita [ अनादिक] जी० ६।११,१३,१६,६५, ६६,८६,१६४, १७६ अणात [ अनायुक्त ] ओ० ४० teri [ अनागत ] ओ० १८३, १८४, १६५ अणगार [ अनाकार ] ओ० १६५।११. जी० १।३२,८७ ३ । १०६, १५४, १११०; ६।३६,३७ अणाढायमाण [ अनाद्रियमाण ] रा० ७६०,७६१ अणादित [ अनादृत] जी० ३।७०० अणय [ अनादृत] जी० ३।६८०,७००,७०१, ७६५ अणाढिया [ अनादृता ] जी० ३ ७००,७०१ Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५४ terror [नापूर्वी ] जी० ११४८ terfar [ अनादिक] जी० ६।२५, १३३ अणावी [ अनादिक] जी० ९।२३,३१,३४,६४, ७२,८१,११०,१७४,२०२,२०६ अारंभ [ अनारम्भ ] ओ० १६३ अार [ अन ] ओ० ७१. जी० ३।६२८ arrets | अनाजोचित ] ओ० ६५, ११५,१५६ अणाहारग [ अनाहारक ] जी० ६।३८, ५१ से ५५ अणाहारय [ अनाहारक ] जी० ६।४२ से ४८ afra [ अनिन्द्र ] जी० ३।११२० अणदिय | अनिन्द्रिय ] जी० ६ १५ से १७, १६७, १६६,२५६,२६१, २६५, २६६ अणिक्ति [ अनिक्षिप्त ] ओ० ११६ अणिगण [ अनग्न ] जी० ३१५६५ अणिच्च [ अनित्य ] ओ० ७४ अणिच्चाणुपेहा [ अनित्यानुप्रेक्षा ] ओ० ४३ अणिज्जिण्ण [अनिर्जीर्ण] रा० ७५१ अणिट्ठ [ अनिष्ट ] रा० ७६७. जी० १२६५; ३६२,६७, १२२,१२३, १२८, १२६ अतिरक [ अनिष्टतरक ] जी० ३१८४,८५ अणिgतरय [ अनिष्टतरक ] जी० ३।११८,११६ अट्ठ [ अनिष्ठुर ओ० ४० afra [ अनिष्ठीवक ] ओ० ३६ अणित्यंत्थ [ अनित्थंस्थ] ओ० १६५८, जी० ११६७,७४ afra [ अनीक ] रा० ७,४७,५६,५८,२८०. जी० ३।३५०, ४४६, ५५७, ५६३ aff [ अनिवृत्ति ] ओ० ४३ अणियाण [ अनिदान ] ओ० २५, १६४ अणियाविs [ अनीकाधिपति ] रा० ७,५६,५८, २८० जी० ३।३५०, ४४६, ५५७,५६३ अणियाविति [ अनीकाधिपति] रा० ४३. जी० ३।३४४,५६१ अणिल [ अनिल ] ओ० २७. रा० ८१३ अणिसि [ अनिसृष्ट ] ओ० १३४ aurya - अणुत्तरोवात्तिय अणितिदिय [ अनिभृतेन्द्रिय ] ओ० ४६ अणीय [ अनीक ] रा० ५६ afterfers [ अनीकाधिपति ] रा० ५३ अणु [ अणु ] जी० १/४४ ३६६८, ६६६ arita [ अनुगन्तव्य ] जी० ३।५,१२,३५५, ७७५ √ अणुगच्छ [ अनु + गम् ] अणुगच्छइ ओ० २१, रा० ८ -- अणुगच्छति जी० ३।४५५ अच्छा [ अनुगम्य ] ओ० २१. रा०८ safed [ अवति] रा० १४६ अणुचर [ अनु + चर् ] - अनुचरंति जी० ३८३८११ अणुचरंत [ अनुत्ररत् ] जी० ३१८३८ । १० Sagar [अनुचरित] ओ० १ अणुचिण [अनुचीर्ण] जी० १|१ / अणुजाण [ अनु + ज्ञा] - अणुजाणउ रा० ६८. - अणुजाणंति रा० ७१३. - अणुजाणेज्जाह रा० ७०६ अणुतra [ अनुताप ] जी० ३।१२८ अणुत [ अणुत्व ] जी० ३६६६ अणुत्तर [ अनुत्तर] ओ० ७२,७६ से ८१,१५३, १६५,१६६. रा० ८१४. जी० ३।१२,७७, ११७,१०३८,१०५६,१०८४,१०८६,१०१२, ११०४,११० से ११११,१११३,१११८, ११२०,११२३,११२५ अणुत्तरविमाण [ अनुत्तरविमान ] ओ० १६०. जी० ३।१०६६, १०७०, १०७२, १०७४, १०७७ से १०८२, १०८६, ११३० अणुवाइ [अनुत्तरोपपातिक ] जी० १४१२३; ३।१०६४,१०६७ अणुत्तरोववाइयदसाधर [अनुत्तरोपपातिकदशाधर ] ओ० ४५ अणुत्तरोववातिय | अनुत्तरोपपातिक ] जी० २२६३, ६६,१४८, १४९, ३१०७६, १०६०, १०६६, १०६८,१०६६, ११०६,११०८,१११४,१११६, १११८,११२५ Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुवणकर-अणुवीइ ५५५ अनुद्दवणकर [अनुद्दवणकर] ओ० ४० 4/अणुप्पविस [अनु+प्र+विश्] अणुप्पविसति अणुपत्त [अनुप्राप्त] ओ० ११६,११७. रा० ८०६, रा० ७५५. जी० ३।४४३ ८१० अणुप्पविसमाण [अनुप्रविशत् ] जी० ३।१११ अणुपदाहिण [अनुप्रदक्षिण] जी० ३१४४३ अणुप्पविसित्ता [अनुप्रविश्य ] रा० ७५५. अणुपयाहिणीकरेमाण [अनुप्रदक्षिणीकुर्वत्] जी० ३।४४३ रा० ४७,४८,२७७,२८३,२८६,३१३,३७६, अणुप्पविसित्ताणं [अनुप्रविश्य ] रा० १२३ ४३५,४६६,५५६,६१६ अणुप्पेह [अनु-!- प्र + ईक्ष् ] -अणुप्पेहंति अणुपरियट्टित्ता [अनुपरिवर्त्य] ओ० १७० ओ० ४५ अणुपरियट्टिताणं [अनुपरिवर्त्य ] जी० ३।८६ अणुप्पेहा [अनुप्रेक्षा] ओ० ४२,४३ अणुपरियड [अनु+परि + वृत्-अणुपरिय- अणुबद्ध [ अनुबद्ध] जी० ३।११६,१२६ ___ डंति जी० ३१८४२ अणुब्भड [अनुद्भट] जी० ३।५६७ अणुपविट्ठ [अनुप्रविष्ट] रा० ७५६,७५७,७६५, अणुभाव [अनुभाव] जी० ३।१२६।६,८३८११६ ७७४ अणुमय [अनुमत] ओ० ११७. रा० ७५० से अणुपविस [अनु+प्र+विश्]-अणुपविसइ ७५३,७६६. जी० १११३१५६७ ओ० ५६. रा० २७७.-अणुपविसति अणुयत्तेमाण [अनुवर्तमान] रा० १६ रा० २८३. जी० ३।४४३ अणुरत्त [अनुरक्त] ओ० १५. रा० ६७२ अणुपविसमाण [अनुप्रविशत् ] रा ० ७५३,७६५ ।। अणुराग [अनुराग] ओ० ६६,१२०,१६२. अणुपविसित्ता [अनुप्रविश्य ] ओ० ५६. रा० ६९८,७५२,७८६ रा० २७७. जी० ३.४४३ अणुलिप [अनु+लिम्प्]--अणुलिंपइ अणुपाल [अनु+पालय् ].-अणुपालेति ३२१८ रा० २६१. जी० ३।४५७. --अणुलिपति अणुपालेता [अनुपाल्य] ओ० १६२. जी० ३।६३० रा० २८५. जी० ३१४५१ अणुपालेमाण [अनुपालयत् | ओ० १२०. अणुलिपइत्ता [अनुलिप्य] रा० २६१ रा० ६९८,७५२,७८६ अणुलिपित्तए [अनुलेप्तुम्] ओ० ११०,१३३ अणुपुष्व [अनुपूर्व ] ओ० ५,८,१६,११६,११७, अणुलिपित्ता [अनुलिप्त] रा० २८५. १६८. रा० ८०३. जी० ३।११८,११६,२७४, ___ जी० ३।४५१ ५६६,५६७ अणुलित्त [अनुलिप्ज ] ओ० ४७,६३ अणुप्पण्ण [ अनुत्पन्न ] ओ० १६६ अणुलिहंत [अनुलिहत्] ओ० ६४. रा० ५०,५२, अणुप्पत्त [अनुप्राप्त रा० ७६५,७७४ ५६,१३७,२३१,२४७. जी० ३।३०७,३६३ अणुप्पदाहिणीकरेमाण [अनुप्रदक्षिणीकुर्वत् | अणुलेवण [अनुलेपन ] ओ० ४७,७२ जी० ३।४५२ अणुवएस [ अनुपदेश] रा० ७६५ अणुप्पयाहिण [अनुप्रदक्षिण] जी० ३१४४५ अणुवत्तेमाण [ अनुवर्तमान] रा० १६ अणुप्पयाहिणीकरेमाण [अनुप्रदक्षिणीकुर्वत् | अणुवाय [अनुवात] रा० ३०. जी० ३।२८३ जी० ३।४४६,४५४,४५७,४७८,५२३,५२६, अणुवाहणग [अनुपानत्क] रा०८१६ ५३७,५४४,५५१,५५६ अणुविद्ध [अनुविद्ध] रा० २९२. जी० ३।४५७ अणुप्पविट्ठ [अनुप्रविष्ट] रा० १२२,१२३ अणुवीइ [अनुवीचि] जी० १११ Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुवेलंधर-अति अणुवेलंधर [अनुवेलन्धर] जी० ३१७४७ से ७५० अणुव्वय [अणुव्रत ] ओ० ७७ अणुसज्ज [अनु-+ सङ्ग्] -अणुसज्जति ___ अणोवमा (दे) खाद्यविशेष अणुसज्जणा [अनुसज्जना] जी० ३।२१८,६३१ अणुसार [अनुसार जी० ३१७७ अणुहो [अनु+भू]--अणुहोंति ओ० १६५।२१ अणूण [अनून] जी० ३१८३८।२७ अणेग [अनेक ] ओ० १,५ से ८,१०,१६,४६,६३, ७१,१६५. रा० ७,१७,१८,२४,३२,५२,५६, ६१,६६,१७४,२०६,२११,२३१,२४७,७५४, ७५६,७६२,७६४. जी० ३।११८,११६,२५६, २७४ से २७७,२८६,३७२,३७४,३६३,५८१, ५८५ से ५६६,६३६,६४६,६७३,६७४,७५६, ८८४,८५८ अणेगजीव [अनेकजीव] जी० १७१ अणेगवासपरियाय [अनेकवर्षपर्याय ] ओ० २३ अणेगविध [अनेकविध] जी० २।१०३ ।। अणेगविह अनेकविध] ओ० ३२ से ३६. जी० १९,६५,७१ से ७३,७८,८१,८४,८८, ८६,१०७,१०८,११२,११४,११५, २६ अणेगसिद्ध [अनेकसिद्ध] जी० ११८ अणोगाढ [अन वगाढ] जी० ११४२ अणोग्यसिय [अनवघर्षित] जी० ३।३२२ अणोवम [अनुपम] ओ० १६५।१७,२२. अणोवमा [दे०] खाद्यविशेष जी० ३।६०१ अणोवाहणग [अनुपानत्क] ओ० १५४,१६५,१६६ अण्ण [अन्य] ओ० १७,२३,५२,७६ से ८१. रा० ४०,५६,५८,१३२,१८५.२०५ से २०८, २४०,२७६,२८०,२८२,२८६,२६१,६५७, ६८७,६८८,७०४,७४८ से ७६४,७७१ से ७७३,८०३,८०४. जी० ११५०,६५,७१ से ७३,७८,८१,८४,८८,१००,१०३,१११,११२, ११४ से ११६,११८,१२१, ३।२६७,३०२, ३१३,३५०,३५१,३६८ से ३७१,३८८,३६०, ४०२,४४२,४४६,४४८,४५५,४५७,५५७, ५६३,५६६,६३७,६३८,६५२,६५८ से ६६०, ६६५,६६६,६७६,७१०,७१३,७२१,७३६, ७४७,७६०,७६१,७६३ से ७६६,७६८,७७० से ७७४,८००,८१४,८४३,८४६,६१७,१०२५ अण्ण [अन्त] ओ० १४६,१५०. रा०८१०,८११ अण्णउत्थिय [अन्ययूथिक ] ओ० १३६. ___जी० ३१२१०,२११ अण्णगिलायय [अन्नग्लायक] ओ० ३४ अण्णजीविय [अन्य जीविक] रा० ७३३,७३४,७३६ अण्णत्त [अन्यत्व] रा० ७६२,७६३ अण्णत्य [अन्यत्र] ओ० ८६. जी० ३१७२१ अण्णमण्ण [अन्योन्य ] ओ० ५२,११७,११८. रा० १६,४०,१३२,१३३,६८७,७१३,७७४. जी० ३।२२,२७,११०,१११,२६५,३०३,६२०, ६२५,८४५ अण्णयर [अन्यतर] ओ० २८,७२,८६ से ६३, १०५,१०६,१२८,१२६,१८६. रा० ७५० से ७५३,७६६. जी० ११३३; ३१२३६ अण्णया [अन्यदा] ओ० ११६. रा०६८० अण्णलिंगसिद्ध [अन्यलिङ्गसिद्ध] जी०१८ अण्णविहि [अन्नविधि ] ओ० १४६ अण्णाण [अज्ञान] ओ० ४६. जी० १११०१,१२८% ३१५२ अण्णाणवोस [अज्ञानदोष ] ओ० ४३ अण्णाणि [अज्ञानिन्] जी० १३०,८७,६६,११६, १३३,१३६, ३।१०४,१५२,११०७,११०८% ६।३०,३२,३५,१४३,१५६,१६४ से १६६ अण्णाणिय [अज्ञानिक | जी०६।३४ अण्णायचरय [अज्ञातचरक] ओ० ३४ अण्णोण्ण [अन्योन्य] ओ० १६५९ अण्ह [आ+स्नु]-अण्हाइ ओ०८४ अण्हयकर (आस्नवकर] ओ० ४० अण्हाणग [अस्नानक ] ओ० ८६,६२. रा० ८१६ अण्हाणय [अस्नानक] औ० १५४,१६५,१६६ अति [अयि] रा० १२१,६६८ Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतिक्कम अद ५५७ अत्यत्यिय [अर्थाथिक] ओ०६८ अत्थमणत्यमणपविभत्ति [अस्तमनास्तमनप्रविभक्ति] रा० ८६ अत्थरग [आस्तरक] रा० ३७. जी० ३।३११ अस्थसत्थ [अर्थशास्त्र] रा० ६७५ अत्थि [अर्थिन् ] रा० ७७४ । अत्थि [अस्ति] ओ० ७१. जी० ३।२२ अत्थिभाव [अस्तिभाव] ओ० ७१ अत्थिय [अस्थिक ] जी० ११७२ अदंतमणग [दे० अदन्तधावनक] रा० ८१६ अवंतवणय [दे० अदन्तधावनक] ओ० १५४, अितिक्कम [अति + क्रम् ] ...अतिक्कमइ जी० ३,८३८।१६ अतित्थगरसिद्ध [अतीर्थकरसिद्ध] जी० ११८ अतित्यसिद्ध [अतीर्थसिद्ध ] जी० ११८ अतिदूर [अतिदूर रा० ६०,६६२,७१६ अतिमट्टिय [अतिमृत्तिक] रा० १२,२८१. ___जी० ३।४४७ अतिमुत्तग [लया] [अतिमुक्तकलता] जी० ३२६८ अतिमुत्तमंडवग [अतिमुक्तमण्डपक ] जी० ३।२६६ अतिमुत्तलयामंडवग [अतिमुक्तलतामण्डपक] रा० १८४ अतिमुत्तलयामंडवय [अतिमुक्तलतामण्ड क] रा० १८५ अतिरस [अतिरस] जी० ३१५६२ अतिरेग [अतिरेक] रा० २८५. जी० ३।४५१, ५६७,७२३,७३०,७३२ अतिवय [अति-व्रज्]-अतिवयंति जी० ३।१२६ अतिहिसंविभाग [अतिथिसंविभाग] ओ० ७७ अतीत [अतीत] ओ० १६८ अतीव [अतीव ] रा० ४०,१३५,२३६. जी० ३।२६५,३०२,३०३,३०५,३१३,३९८, ५८१,५६६ अतुरिय [अत्वरित] रा० १२ अतुल [अतुल ] ओ० १९५२२ अत्तगवेसणया [आर्तगवेषणता] ओ० ४० अत्तय [आत्मज] रा०६७३ अत्तुक्कोसिय [आत्मोत्कर्षिक ] ओ० १५६ अत्थ [अर्थ ] ओ० ३७. रा० १५,२६२,७३७, ७७४. जी० ३।२५०,४५७ अत्थ [अस्त] जी० ३।१७६,१७८,१८०,१८२ अत्थओ [अर्थतस् ] ओ० ४६. रा० ८०६,८०७ अत्यणिउर [अर्थनिकुर] जी० ६.८४१ अवक्ख [अदक्ष] रा० ७५८,७५६ अदत्तादाण [अदत्तादान] ओ० ७१,७६,७७ अदत्तावाणवेरमण [अदत्तादानविरमण] ओ० ७१ अविट्ठलाभिय ]अदृष्टलाभिक] ओ० ३४ अविण्ण [अदत्त] ओ० १११ से ११३,११७,१३७, १३८ अदिण्णादाण [अदत्तादान] ओ० ११७,१२१,१६१, १६३. रा० ६६३,७१७,७६६ अवुत्तरं [दे०] जी० ३।२३६ अदुवा [दे०] जी० ३३१२७ अदूरसामंत [अदुरसामन्त] ओ० ५२,६६,७०,८२. रा० १२३,६८७,६६२,७१६,७३१,७३६, ७४८,७७१ अद्द [आर्द्र ] ओ० ४७ अद्दारि? [आर्द्रारिष्ट] रा० २५. जी० ३१२७८ अद्ध [अर्ध [ ओ० १७०. रा० ४०,१२८,१४६, १८८,१८६,२०५ से २०८,२२७,२३१,२४७, ६६८,६६६,६८३,७०६,७११,७७२. जी० २।३८,३६,४१,४२,३८२,१०७,२३८, २४७,२५०,२५६,२६०,२६२,२६३,३००, ३१०,३१३,३५२ से ३५४,३५६,३६१ से ३६४,३६८ से ३७१,३७७,३८३,३८६,३६२, ३६३,४०१,४०४,४०६,४०८,४२२,४२७, ५६६,५६८ से ५७०,५६४,५९६,६३४,६४२, Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवकविठ्ठ-अपच्छिम ६४४,६४६,६५२,६५३,६५५,६७२ से ६७४, ६७६,६८३,६८५,७०६,७०८,७११,७२७, ७३२,७३७,७५६,७५८,८००,८१४,८२५, ८५१,६३६,६४४,१०१२ से १०१४,१०२८, १०३०.१०३२,१०३३,१०७४,११२४ अद्धकवि? [अर्धकपित्थ] जी० ३११००८ अद्धकविट्ठक [अर्धकपित्थक ] जी० ३।२५७ अद्धकाय अर्धकाय] जी० ३।३२२ अद्धचंद [अर्धचन्द्र] रा० १२४,१३०,१३७. ____ जी० ३।३००,३०७,५७७ अद्धच्छि [अर्धाक्षि रा०१३३. जी० ३।३०३ अद्धछ? [अर्धषष्ठ] जी० ३।४३ अट्ठम [अर्धाष्टम] ओ० १४३. रा० ८०१. जी० ३।३६३,४०१,६३२ अट्ठारस [अर्धाष्टादशन् ] जी० ३.१०५२ अक्षणवम [अर्धनवम] जी० ३।१०४६ अद्धतेरस [अर्धत्रयोदशन् ] ओ० ५४. रा० १२६, । १७०. जी० ३।१६६,३५२,३७२,३७४,३७६, ३६५,४१२,४२५,६६८ अबनवम [अर्धनवम] जी० ३।१०४६ अद्धनाराय [अर्धनाराच] जी० ११११६ अद्धपंचम [अर्धपञ्चम] जी० २।३६ ; ३।४२,४७, २४२,४०२,१०४६,१०४७ अद्धमागह [अर्धमागध] जी० ३५९४ अद्धमागहा अर्धमागधी ओ० ७१ रा०६१ अद्धमास [अर्धमास] जी० ३।११८, १२६ अद्धमासपरियाय [अर्धमासपर्याय ] ओ० २३ अद्धमासिय [अर्धमासिक] ओ० ३२ अद्धसेलसुट्ठिय [अर्धशैलसुस्थित] जी० ३१५६४ अद्धसोलस [अर्धषोडशन् ] जी० ३।३६८, ३६६, १०५१ अद्धाहार | अघहार] ओ० ५२,६३,१०८,१३१ रा० ४०,१३२,२८५,६८७, से ६८६. जी० ३।२६५,३०२,४५१,५६३ अद्धा [अद्धा, अध्वन् ] ओ० ११६,११७,१८२ से १८४,१६५।१४,१५,२२. रा० ७६५,७७४ अद्धाउय [अव्वायुष्क] जी० ३१२१४ अद्धाढय [अर्धाढक ] ओ० ११२,१३७ अद्धाण [अध्वन्] ओ० ६६,१२२ अद्धासमय [अध्वसमय ] जी० ११४ अछुट्ट [दे०] जी० ३।१०७,२३७,२४२,२४३ अद्धव [अत्रुव] ओ० २३ अद्धकूणण उति [अर्धंकोननवति ] जी० ३७५४ अद्धकोणणउइ [अर्धंकोननवति ] जी० ३७६२ अद्धकोणणवति [अर्धंकोननवति ] जी० ३७६८ अधण्ण [अधन्य] रा० ७७४ अधम्म [ अधर्म] रा० ६७१ अधम्मकेउ [अधर्म के तु] रा० ६७१ अधम्मक्खाइ [अधर्माख्याति ] रा० ६७१ अधम्मत्यिकाय [अधर्मास्तिकाय] रा० ७७१. जी०१४ अधम्मपलज्जण [अधर्मप्ररञ्जन] रा० ६७१ अधम्मपलोइ [अधर्मप्रलोकिन् | रा० ६७१ अधम्मसीलसमुयाचार [अधर्मशीलसमुदाचार] रा० ६७१ अधम्माणुय [अधर्मानुग] रा० ६७१ अधम्मिय [आधर्मिक रा० ६७१,७१८,७५०,७५१ अपम्मिट्ठ [अधर्मिष्ठ ] रा ६७१ अधर [अधर जी० ३।५९७ अधिय [अधिक] जी० ३।३८७,८७८ अधे [अधस् ] जी० ३।११११ अधेसत्तमा [अधःसप्तमी] जी० २।१००,१०८, १२७,१३८,१४६; ३२१,३८,४४,४६,४७, ५० से ५२,५४ से ५६,५८,५९,८३ से ८६,८८ से १०,६२,६६,१०२,१०४,१०७,१०६,११६, १२०,१२३,१२६ अर्धसत्तमी [अधःसप्तमी] जी० ३।१६६ अन्न अन्य रा०७ अन्नविहि [अन्नविधि] रा० ८०६ अपंडिय [अपण्डित ] रा० ७३२,७३७,७६५ अपच्छिम [अपश्चिम ओ० ७७ Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपज्जत्त अपुण्ण अपजत्त [ अपर्याप्त ] रा० ७५६. जी० ११५१,६३, ६५,१०१, ३ १२६ ६,१३३,१३४, ४/२५; ५।१७,२४,२६ से ३०,३३,३५,३६,३६४०, ४२,४५,४८,५०,५२, ५४ से ६० अपज्जत [ अपर्याप्त ] ओ० १०२. जी० १११४, ५८, ६७,७३,७८,८१,८४,८८,८६,६२,१००, २२७,२३०,२४६,२६१,२६५, २७६,२८५ अडकूलमाण [ अप्रतिकूलयत् ] ओ० ६६ अडिक्कत | अप्रतिक्रान्त ] को ६५, १५५, १५६ ausea [ अप्रतिबद्ध ] ओ० ७४ ४ अडिवर [ अप्रतिविरत ] ओ० १६१ अप [ प्रथम ] जी० ११६; ७ १, ३, ५, १०, १२, १४,१६,१८,२१ से २३, ६/१ से ७,२३२, २३४,२३६,२३८, २४२२४४, २४६२४८, २५१ से २५३२५५, २६७, २६६, २७१, २७३, २७६ २७८,२८०,२८२,२८५,२८७ से २६३ अपतट्ठाण [ अप्रतिष्ठान ] जी० ३।१२ अ] [ अप्राप्तार्थ ] रा० ७५८, ७५६ अपद [ अपद ] जी० ३ १६६ अपराइत [ अपराजित ] जी० ३।६४१ अपराइय [ अपराजित ] जी० ३।५६६ ५५ह अपराजित [ अपराजित ] जी० ३।१८१, २६६,७०७, ७१३,८२४ अपराजय [ अपराजित ] ओ० १६२. जी० ३।७६६, १०३,१११,११२,११६,११८, १२१, १२६,१३५; ३।१३६,१३६, १४०, १४६, ४१२, ५,१८,२०, २२,२३,२५; ५।३,४,७,११,१८ से २२, २५ से २७,३१ से ३४, ३६, ६०, ६३,६४ अपज्जत्तय [ अपर्याप्त ] जी० ११५५, १०१ ४ ॥१० अज्जत्ति [ अपर्याप्त ] जी० ११२७,८६,६६,१०१, अपरिभूय [ अपरिभूत] ओ० १४१. रा० ६७५, १३८ ७६६ ११६,१२८,१३३,१३६ अपज्जवसित [ अपर्यवसित ] जी० ६ २३, २४,६६, अपरिमिय [ अपरिमित ] ओ० ४६, ७१. रा० ६१ अपरियाता [ अपर्यादाय ] जी० ३।६६० अपरियाविय [ अपरितापित ] जी० ३।६३० अपरिवार [ अपरिवार ] रा० २०७, २६५, २६७, ८१,८२,६२,१०४, १२५, १७५, १६२,२०१,२४० अपज्जवसिय ] अपर्यवसित] ओ० १८३, १८४, १६५. जी० ६ १० से १३,१६,२५,२६,३१,३३,३४, ४५,५४,५८,६०,६५,६८,७१,७२, ८६, ६८, ११०,११६,१३३,१३५, १४५, १६३, १६४,१७४. १७६, १८०,१६५,२०२,२०५,२०६,२१५,२१६, ८१३ अपराजिया | अपराजिता ] जी० ३६१६, १०२६ अपरिग्गह [ अपरिग्रह ] ० १६३ अपरितावणकर [ अपरितापनकर ] ओ० ४० अपरित [ अपरीत ] जी० १२६७, ७४ ६७५, ७६, ८७ अपरिपूय [ अपरिपूत ] ओ० १११ से ११३,१३७, २६६. जी० ३ | ४२८, ४३१, ४३४ अपरिसेसिय [ अपरिशेषित ] जी० ३।७५१ अपलिक्खीण [ अपरिक्षीण ] ओ १७१ अपवरक [ अपवरक ] जी० ३।५६४ अपसत्य काय विजय [ अप्रशस्त कार्याविनय ] ओ० ४० अपत्थमणविणय [ अप्रशस्तमनोविनय ] ओ० ४० reason [ अशस्तवाक्विनय ] ओ० ४० अपस्समाण [ अपश्यत् ] ओ० ११७ अपासमाण [ अपश्यत् ] रा० ७६५ अपि [ अपि ] ओ० २३. रा० १६. जी० १।३४ अपुट्ठ [ अस्पृष्ट ] जी० ११४१ अपुलाभिय [ अपृष्टलाभिक ] ओ० ३४ अणवत्ता [ अपुनरावर्तक ] ओ० १६,२१,५४ अपुणवत्तय [ अपुनरावर्तक ] रा०८ अपुरावित्ति [ अनरावृत्ति, अपुनरावर्तिन् ] रा० २६२. जी० ३:४५७ अपुणरुत [ अपुनरुक्त ] रा० २६२, जी० ३०४५७ अपुण [अपूर्ण] रा० ७६३ अण्ण [ अपुण्य ] रा० ७७४ Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६. अपुरोहिय-अप्पुस्सुय अपुरोपुहय [अपुरोहित] जी० ३३११२० अप्पतराय [अल्पतरक] रा०७७२ अपुष्व [अपूर्व] जी० ११५० अप्पतिट्ठाण [अप्रतिष्ठान] जी० ३।११७ अपूह [अपोह] ओ० ११६,१५६ अप्पदुस्समाण [अप्रद्विषत् ] रा० ७६६ अपेज्ज [अपेय] जी० ३१७२१ अप्पनीसासतराय [अल्पनिःश्वास तरक] अप्प [अल्प ]ओ० २०,५३,६१ से ६३. रा० १२, रा० ७७२ ६८५,६६२,७००,७१६,७२६,७५३,७५८, अप्पनीहारतराय [अल्पनीहारतरक] रा० ७७२ ७५६,७७२,७७४,८०२. जी० १३१४३; २०६८ अप्पपरिग्गह [अल्पपरिग्रह ] ओ० ६१ से ६३, से ७२,७५,९६,१३४ से १३८,१४१ से १४६; १६१,१६३ ३१११८,६६५,१०३७,११३८; ४:१६,२२, अप्पबहु [अल्पबहु] जी० २।१५१ ; ४।२५ २५ ; ५॥१६,२०,२६,२७,३२ से ३६,५२, अप्पबहुय [अल्पबहुक] जो० ६६ ५६,६०, ७२०,२२,२३ ; ६७,१४,५५, अप्पमत्त [अप्रमत्त] ओ० २७ रा० ८१३ २५० से २५३,२५५ २८६ से २६३ अप्पमहतराय [अल्पमहत्तरक] रा ० ७७२ अप्प [आत्मन् ] ओ० २१ से २६,४५,५२,७१,८२, अप्पमाण [अल्पमान] ओ० ३३ अप्पमाय [अल्पमाय] ओ० ३३ ८६,६४,६८,१२०,१४०,१५४,१५५,१५७, अप्पलोह [अल्पलोभ] ओ० ३३ १६०.रा०८,९,२८५,६८६,६८७,६८६,६६८, अप्पसद्द [अल्पशब्द ] ओ० ३३ ७११,७१३,७१६,७५२,७५३,७८७,७८६, अप्पाण [आत्मन्] जी० ३।१६८ से २०६,४५१ ८१४,८१६,८१७. जी. ३१५६६,६४४ अप्पाबहु [अल्पबहु] जी० ४।२२;७।२१; ६।३७ अप्पकंप [अप्रकम्प] ओ० २७. रा० ८१३ अप्पाबहुग [अल्पबहुक] जी० श२५,७।२०; अप्पकम्मतराय [अल्पकर्मतरक] रा० ७७२ ८।५।६।२७ अप्पकिरियतराय [अल्पक्रियातरक] रा० ७७२ अप्पाबहुय [अल्पबहुक] जी० २।९४,११८,३१, अप्पकोह [अल्पक्रोध] ओ० ३३ ६।१२,६।१७,२०,३५,६१,६६,७४,८७,६४, अप्पगति [अल्पगति] जी० ३.११२० १००,१०८,११२,१२०,१३०,१४०,१४७, अप्पज्जइतराय [अल्पद्युतितरक] रा० ७७२ १५५,१५८,१६६,१६६,१८१,१८४,१६६, अप्पझंझ [अल्पझञ्झ] ओ० ३३ ।। २०८,२२०,२३१ २५४,२६६. अप्पडिकम्म [अप्रतिकर्मन्] ओ० ३२ अप्पारंभ [अल्पारम्भ ] ओ०६१ से १३,१६१,१६३ अप्पडिबद्ध [अप्रतिबद्ध] ओ० २६ अप्पासवतराय [अल्पाश्रवतरक] रा० ७७२ अप्पडिलेस | अप्रतिलेश्य ] ओ० २५ अप्पाहार[अल्पाहार] ओ० ३३ अप्पडिलोमया [अप्रतिलोमता] ओ० ४० अप्पाहारतराय [अल्पाहारतरक] रा० ७७२ अप्पडिवाइ [अप्रतिपातिन् ] ओ० ४३ अप्पिच्छ [अल्वेच्छ ] आ० ६१ से ६३ जी० ३१५६८ अप्पडिहय [अप्रतिहत] ओ० १६,२१,२७,५४,८४, अप्पिडितराय [अल्पधितरक] रा० ७७२ ८५,८७,८८.रा० ८,२६२,७५५,७५७,८१३. अप्पिड्डिय [अल्पधिक] जी० ३।१०२१ जी० ३।४५७ अप्पिय [अप्रिय] रा० ७६७ जी० ११६५; ३१६२ अप्पणया [आत्मन् ] जी० १.५०,६६ अप्पियतरक [अप्रियतरक] जी० ३८४ अप्पतर [अल्पतर ओ० ८६ अप्पुस्सासतराय [अल्पोच्छ्वासतरक] रा. ७७२ १. वृत्तौ-वूह [व्यूह] इति व्याख्यातमस्ति । अप्पुस्सय [अल्पौत्सुक्य ] ओ० १६४ Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्पेस- अ०भुट्ठ अप्पेस [ अप्रेष्य ] जी० ३ । ११२० अप्पय [ अल्पौत्सुक्य ] ओ० २५ ~ अप्फाल [ आ + स्फाल्] - अप्फालेइ ओ० ५६ अप्फालिज्माण [ आस्फाल्यमान ] रा० ७७ अप्फालेत्ता [ आस्फाल्य ] ओ० ५६ अफुडिय [ अस्फुटित ] ओ० १६ जी० ३। ५६६ / अप्फोड [ आ + स्फोटय् | - अप्फोडेंति रा० २८१ जी० ३।४४७ अप्फोतामंडवग [ दे० अप्फोयामण्डपक ] जी० ३२६६ अप्फोयामंडवग [ दे० अप्फोयामण्डपक ] जी० १८४ अफीयामंडar [ दे० अप्फोयामण्डपक] रा० १८५ अफरस [ अपरुष] ओ० ४० अफुसमा गइ [ अस्पृशद्गति ] ओ० १५२ safar [ अद्धि] ओ० १६० अबहिल्लेस [अबहिर्लेश्य ] ओ० २५, १६४ अबहुपसण्ण [ अबहुप्रसन्न ] ओ० १११ से ११३, १३७, १३८ अबाधा [अबाधा ] जी० २ १३६; ३।३३ से ३६, ६० से ६३, ६५, ६६, ६८, से ७२,३००, ५६६,५७०,६६२,६६१,७१४, ८२७, १०२२ RT [अबाधा ] ओ० १६२. रा० १७०. जी० २।७३, ६७, ३६६, ३५८, ५६६, ६३६, ७१४, ८०२, ८१५, ८२७, ८५२, १००१ से १००६, १०२२ बहूणिया [अबाधोनिका ] जी० २७३,६७, १३६ अब्भ [ अ ] ओ० १६. जी० ३।५६७, ६२६ अब्भंतर [ अभ्यन्तर ] ओ० १७० जी० ३८३८।१२ अन्तरय [ अभ्यन्तरक ] जी० ३१६६, २६०.६८१ अब्भक्खाण [ अभ्याख्यान ] ओ०७१, ११७, १६१, १६३. रा० ७६६ अभक्खाणविवेग [ अभ्याख्यानविवेक ] ओ० ७१ अब्भणुष्णाय [ अभ्यनुज्ञात] रा० ११, ५६ अन्भरुक्ख [ अभ्ररुक्ष ] जी० ३ ६२६ ५६१ अभवद्दय [ अभ्रवालक ] रा० १२, १२३ अभfor [ अभ्यधिक ] ओ० ६५,६४,६५. जी० २३६.४१, ४८,४६,५३ से ५५,५७ से ६१,६६,८३,८४,१२६; ३१०२७ से १०३०, ११३५ ४।१६; ५/१०,२६; ६/६ ७११२, १३; ६३४,१७२,१७६,१८६ से १९१,१६३, २०३,२१२,२२५,२२८,२३८,२४१,२७३,२७७ अभासवत्तिय [ अभ्यासवर्तित ] ओ० ४० अभंग [ अभ्यङ्ग ] ओ० ६३ अभिगण [ अभ्यङ्गन ] ओ० ६३ अभंग [ अभ्यञ्जित ] ओ० ६३ अभिंतर [ आभ्यन्तर] ओ० ६,३०,५५, ६० से ६२. रा० ४३. जी० ३।२३६,२५५,२७५,४४७, ६४३, ६५८,७६६,७६७,७७५,८३१ से ८३४, १०५५ अभिंतर [ आभ्यन्तरक ] ओ० ३०,३८,४४. जी० ३।६५८ अभिंतरिय [ अभ्यन्तरिक ] रा० ६६०,६८३. जी० ३।२३५ से २३६,२४१ से २४३, २४६, २४७, २४६, २५० २५४ से २५६, २५८, ३४१, ५६०,७३३,१०४० से १०४२,१०४४, १०४६, १०४७, १०४६, १०५३,१०५५ अभिंतरिल्ल [ आभ्यन्तरिक ] जी० ३|१००७ / अभुक्ख [ अभि + उक्ष् ] — अब्भुक्खइ जी० ३।४७० -- अब्भुक्खति जी० ३३४५८ - अब्भुक्खेइ रा० २६३ - - अब्भुक्खेति जी० ३।४६० rogant [ अभ्युक्ष्य ] जी० ३।४५८ अन्भुक्खेत्ता [ अभ्युक्ष्य ] रा० २६३. जी० ३।४६० अब्भुग्गत [ अभ्युद्गत ] जी० ३।३०२,३५६, ३६८, ३७०,६३४,१००८ अभुग्गय [ अभ्युद्गत ] ओ० ६७. रा० ३२,१३२, १३७,१८६,२०४ से २०६,२०८. जी० ३।३०७ ३५५, ३६४,३६९, ३७१, ३७२, ५९७,६७३ √ अब्भुट्ठ [ अभि + उत् + ष्ठा ] - अब्भुट्ठेइ Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठा अभिवंदया ओ० २१. रा० ८. जी० ३।४४३ - अब्भुट्ठेति अभिणिसिट्ठ [ अभिनिसृष्ट ] रा० १३२ जी० रा० २७७ जी० ३।४५४ अब्भुट्ठेमि. रा० ६६५ अभुट्ठाण [ अभ्युत्थान ] ओ० ४० अभुट्टिय [ अभ्युत्थित ] ओ० २६ अभुट्ठेत्ता [ अभ्युत्थाय ] ओ० २१. रा० ८. जी० ३।४४३ | अब्भुण्णय [ अभ्युन्नत] रा० १३३. जी० ३/३०३, ५६७ अब्भु [ अद्भुत ] रा० ७८ अभयवय | अभयदय] ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ अभवसिद्धिय [ अभवसिद्धिक] रा० ६२. जी० ६ १०६ से ११२ अभाग [ अभाषक ] जी० ६ ५६, ६०, ६१ Tera [ अभाषक ] जी० ६५८ अभि [ अभिजित् ] जी० ३।८३८।३२,१००७ अभिक्खणं [ अभीक्ष्णम् ] रा० १७३. जी० ३.२८५ अभिक्खलाभि [ अभिक्षाला भिक] ओ० ३४ अभिगच्छ [ अभि + गम् ] - अभिगच्छइ ओ० ६६. रा० ७१६ - अभिगच्छंति ओ० ७०. - अभिगच्छामो रा० ७३५ अभिगच्छणा [ अभिगमन ] ओ० ४० अभिगम [ अभिगम ] ओ० ६६, ७०. रा० ७७८ अभिगमण [ अभिगमन ] ओ० ५२. रा० ६, १२, ४७,६८७. जी० ३।८४१ ५६२ अभिगमणिज्ज | अभिगमनीय] रा० ७०३, ७३५ अभि [ अभिगत ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२,७८६ अभिगिज्झ [ अभिगृह्य ] जी० ३।५६२ अभिघट्टिज्जमाण [ अभिघट्यमान ] रा० १७३. जी० ३।२८५ भिवंत [ अभिनन्दत्] ओ०६८ अभिणं दिज्जमा | अभिनन्द्यमान ] ओ० ६६ -अभिणय [ अभिनय ] रा० ११७,२८१. जी० ३।४४७ अभिविट्टित्ताणं [ अभिनिर्यय ] रा० ७७० ३।३०२ अभिस्सिव [ अभि + निर् + स्रु ] - अभिणिस्स वंति, रा० १७३. जी० ३।२८३ ~ अभिणी [ अभि + नी ] - अभिणयंति रा० २८१. जी० ३।४४७ - अभिणिज्जइ रा० ७८३अभिति रा० ११७ अभि [ अभिष्टवत् ] ओ० ६८ अभिवमाण [ अभिष्यमान ] ओ० ६६ अभि | अभिद्रुत ] जी० ३।१२६६७ अभिनव [ अभि + निर् + स्रु ] - अभिनिस्सदंति रा० ३० अह ] अभमुख ] ओ० ४७, ५२,६६,७०,८३. रा० ६०, ६८७,६६२,७१४,७१६ अभिराम [ अभिराम ] ० २,५५,५७,६३. रा० ६,१२,१७,१८,२०,३२,३७,५२, ५६, १२६, १३२,२३१,२३६,२४७, २८६. जी० ३।२८८, ३००,३०२,३११,३७२,३६३, ३६८, ४४७, ५८६ अभिरू [ अभिरूप ] ओ० १,७,८,१० से १३,१५, ७२,१६४. रा० १,१६ से २३, ३२, ३४, ३६ से ३८, १२४,१३०,१३३, १३६, १३७, १४५, १५७, १७४,१७५,२२८,२३१, २३३, २४५,२४७, २४६, ६६८,६७०, ६७२,६७६,७००, ७०२. जी० ३।२३२,२६१,२६६,२६६,२७६,२५६ से २८८,२६०, ३३०, ३०३, ३०६, ३०७, ३११, ३८७, ३०३, ४०७,४१०,५८१,५८४,५८५, ५६६, ५६७, ६३६, ६७२,८५७,८६३, ११२१, ११२२ / अभिलस [ अभि + लष् ] – अभिलसइ रा० ७१३ ----अभिलसंति ओ० २०. रा० ७१३ अभिलाव [ अभिलाप ] जी० ३२४, ५,१२,४१,४३, ४४,७७,८८,१२५,२२६,४५१ अभिवंद | अभिवन्दितुम् ] ओ० ५५. रा० १३ अभिवंदा [ अभिवन्दितुम् ] ओ० ६२. Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिसमण्णा गय-अयभारग अभिसमण्णागय [ अभिसमन्वागत ] रा० ६३,६५, ६६७, ७६७ ~ अभिसमागच्छ [ अभि + सं + आ + गम् ] - अभिसमागच्छइ रा० ७१६. - अभिसमागच्छति रा० ७५३ / अभिसिंच [ अभि + सिच् ] - अभिसिचति रा० २८० जी० ३।४४६ अभिसिंचिता [ अभिषिच्य ] रा० २८२. जी० ३।४४८ अभित्ति [भिषिक्त ] रा० २८३. जी० ३२४४६ अभिसेक [ अभिषेक ] जी० ३४३६ अभिसेसभा [अभिषेकसभा ] रा० २६५,२६७ अभिसे [ अभिषेक ] ओ० ६८. रा० २६६,४७५. जी० ३।४४७,५३४, ५६७ अभिसेयसभा [ अभिषेकसभा ] रा० २७७,२७६, २८३,४७४, ४७६, ४७७,४६६,५१४,५१५. जी० ३४२६, ४३०, ४३१, ४३४,४४३, ४४५, ४४६,५५३, ५३५ से ५३६ अभि [ अभिहृत ] ओ० १३४ अभिहणमाण [ अभिघ्नत् ] जी० ३।११० अभि [ अभिहत ] जी० ३।११८,११६ अभूओवघाइय [अभूतोपघातिक ] ओ० ४० असा [ अभित्वा ] जी० ३।६६० मेकर [ अभेदकर ] ओ० ४० area [ अमात्य ] ओ० १८. रा० ७५४,७५६, ७६२,७६४ मछरिया [ अमरिकता ] ओ० ७३ अणाम [ दे० अमन 'आप' ] २० ७६७. जी० १६५; ३६२, १२२,१२३, १२८ अमणामतरक [ दे० अमन 'आप' तरक] जी० ३२८४,८५ अणुष्ण [ अमनोज्ञ ] ओ० ४३. रा० ७६७. जी० १६५; ३.३।६२ अमणुणतरक [ अमनोज्ञतरक] जी० ३१८४ अमत [ अमृत ] जी० ३.३१२,४१७ अमम [ अमम ] ओ० २७. रा० ८१३. जी० ३।६३१ ५६३ अमम्मण [ अमन्मन ] ओ० ७१. रा० ६१ अमय [ अमृत ] रा० ३८,१६०,२२२,२५६. जी० ३३३३,३८१,३८७,८६४ अमयरस [ अमृतरस ] रा० २२८. जी० ३ २८६ अमर [ अमर ] ओ० ४६, १६५२०. २०५१ अमरवs [ अमरपति ] ओ० ६४ अमलगंधिय [ अमलगन्धिक ] ओ० १२. रा० २२ trait [ अमलगन्धक ] जी० ३।२६० अमला [अमला ] जी० ३।६२१ अमाण [ अमान ] ओ० १६८ अमाय [अमाय ] ओ० १६८ अमिय [ अमृत ] ओ० १६५।१८ अमेावि [अमेधाविन् ] रा० ७५८, ७५६ अमोह [ अमोघ ] जी० ३।६२६,८४१ अमोह | [ अमोघा ] जी० ३१६६६,६१० अम्मड [ अम्बड ] ओ० ११५, ११७ से १४१ अम्माप [ अम्बापितृ] ओ० १४२, १४६ अम्मा [ अम्बापितृ] ओ० १४७, १४६. रा० ८००,८०७ अम्मास [ अम्बा पितृशुश्रूषक ] ओ० ६१ अम्मापियर [ अम्बापितृ] ओ० १४४, १४५. रा० ८०२,८०३,८०५,८०८,८१० अम्ह [ अस्मत् ] रा० ८. जी० ३४४१ अय [अयस् ] रा० ७५४,७५६,७५७,७७४ Start [ अय:कोष्ठ ] जी० ३।७८ अयगर [ अजगर ] जी० १ १०५, १०६ ३२६२५ अयगरी [अजगरी ] जी० २८ अयण [ अन ] ओ० २८. जी० ३८४१ अपाय [अयस्पात्र ] ओ० १०५,१२८ अर्यापिड [ अस्पिण्ड ] जी० ३।११८,११६ अपुग्गल [ अयस्पुद्गल ] रा० ७७४ अयबंधण [ अयोबन्धन ] ओ० १०६, १२६ tris [ अयोभाण्ड ] रा० ७७४ अयभार [ अयोभार] रा० ७७४ अयभारग [ अयोभारक ] रा० ७६०,७६१,७७४ Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६४ अयभारय-अलेस अयभारय [अयोभारक] रा० ७७४ अरुणवरभद्द [अरुणवरभद्र ] जी० ३।६२६ अयभारय | अयोहारक, अयोभारक] रा० ७७४,७७५ अरुणवरमहाभद्द [अरुणवरमहाभद्र ] जी० ३६२६ अयल [अचल] ओ०१६,२१,५४. रा०८,२६२. अरुणवरोव [अरुणवरोद] जी० ३।६३०,६३१ जी० ३।४५७ अरुणवरोभास [अरुणवरावभास] जी० ३।६३१, अयसकारग [अयश:कारक] ओ० १५५ ६३२ अयसि [अतसी] ओ० १३,४७. रा० २६. जी० अरुणवरोभासभद्द [अरुणवरावभासभद्र ] जी० ३१६३१ ३।२७६ अरुणवरोभासमहाभद्द [अरुणवरावभासमहाभद्र] अयहारय [अयोहारक, अयोभारक] रा० ७७४,७७५ जी० ३६३१ अया [अजा] जी० ३।६१६ __ अरुणवरोभासमहावर [अरुणवरावभासमहावर ] अयागर [अयआकर रा० ७७४. जी० ३.११८ ।। जी० ३१६३२ अयोगि [अयोगिन् जी० ६।११६ अरुणवरोभासवर [अरुणवरावभासवर] जी०३ ६३२ अयोमय [अयोमय ] जी० ३।११६ अरुणोद [अरुणोद] जी० ३।६२८,९२९ अयोमुह [अगमुख ] जी० ३।२१६ अरुय [अरुज ओ० १६२१,५४. रा०८,२६२. अरइ [अरति] ओ० ४६. जी० ३.१२८।१०. ___ जी० ३।४५७ अरइरइ [अरतिरति ] ओ० ७१,११७,१६१,१६३ अरूवि [अरूपिन्] जी० ११३,४ रा०७६६ अरकमंडल [अरकमण्डल] रा० १७३,६८१. जी० अलं [अलम् ] ओ० १४८ रा० ८०६ अलंकार [अलङ्कार] ओ० ६७,७०,६२,१४७, ३।२८५ १६१,१६३. रा० १३,५३,१७३,२८६,६५७, अरणि [अरणि] रा० ७६५ ७१४,७५१,७६४,८०२,८०५,८०८.जी. अरति [अरति ] जी० ३।१२८ ३.२८५,४४६,४५५ अरतिरतिविवेग [अरतिरतिविवेक ] ओ० ७१ अलंकारिय [अलङ्कारिक] रा० २६८,२८४,५३५. अरमणिज्ज [अरमणीय] रा० ७८१ से ७८७ जी० ३।४३२,५४१ अरसाहार [अरसाहार] ओ० ३५ अलंकारियसभा [अलङ्कारिकसभा] रा०२६७, अरह [अहं] रा० ७७१,८१५,८१७ २६६,२८३,२८६,५३४,५३६, ५३७,५५६, अरहंत [अर्हत्] ओ० २१,४०,५२,५४,७१,११७, ५७४,५७५. जी० ३।४३१,४३३,४३४,४४६ १३६. रा० ८,११,५६,२६२,७१४,७४६, ४५२,५४०,५४२ से ५४६ ७६६. जी० ३४५७,७६५,८४१ अलंकित [अलंकृत] जी० ४।४५२ अरि [अरि] जी० ३।६१२,६३१ अलंकिय अलङ्कत] ओ० २०,५३,६३ रा० अरिस [अर्शस्] जी० ३।६२८ १३०,२८५,२८६,६८५,६८६,६६२,७००, अरिह [अह] ओ० ७१,१४७. रा० ६१, ७१४, ७१६,७२६,८०२. जी० ३।३००,४५१ ७७६, ८०८ अलभमाण [अलभमान] ओ० ११७ अरण [अरुण] जी० ३।६२७,६२८,६५० अलाउपाय [अलाबुपात्र] ओ० १०५,१२८ अरुणप्पम [अरुणप्रभ] जी० ३.७४८,७४६,७५३ अलाय [अलात] जी० ११७८; ३८५ अरुणमहावर [अरुणमहावर] जी० ३।६३० अलियवयण [अलीकवचन] ओ० ७३ अरुणवर [अरुणवर] जी० ३१७७५,६२६,६३० अलेस [मलेश्य] जी० १।१३३; ६।२६,१६५ Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अलेस्स-अवसेस ५६५ अलेस्स [अलेश्य] जी० ६।१८५,१६२,१६६ अलोग [अलोक] ओ० १६०२ अलोय [अलोक] ओ० ७१ अलोह [अलोभ ] ओ० १६८ अल्लई [आर्द्रकी] जी० ३।२८१ अल्लकी [आर्द्रकी] रा० २८ अल्लीण [आलीन ] ओ० १६,६१ रा० ८०४. । जी० ३१५६६ से ५६८,७६५,८४१ अल्लीणया [आलीनता] ओ० ११६ अवउडग [दे० अवकोटक] रा० ७५४,७५६,७६४ अवंक [अवक्र] रा० ७६,१७३. जी० ३।२८५ अवंग [अपाङ्ग] रा० १३३. जी० ३।३०३ अवंगुयदुवार [दे० अपावृतद्वार] ओ० १६२. रा० ६६८,७५२,७८६ अवक्कम [अप-क्रम् -अवक्कमति रा० १०. जी० ३१८७-अवक्कमति रा०१८ अवक्कमित्ता [अपक्रम्य] रा०. १० जी० ३।४४५ अवक्खेवण [अवक्षेपण] ओ० १८० अवगय [अपगत] ओ० ६३ अवगाढ [अवगाढ] रा० ७७४ अवज्क्षाणायरिय [अपध्यानाचरित] ओ० १३६ ।। अवट्टित [अवस्थित] जी ० ३।५६५९६ अवट्रिय [अवस्थित] ओ० १६. रा० २०० जी० ३।२७३, ३५०, ७६०, ८३८।११ अवड [अपार्ध] जी० २०६५, ८८,१३२; ३१८३६; ६।२३,२६,३३,६६,७१,७३,७८, १४६, १६४, १६५, १७८, २०२, २०४ अवड्डोमोदरिय [अपाविमोदरिक, उपार्धा०] ओ०३३ अवणद्ध [अवनद्ध रा० ७६०, ७६१ ‘अवणी [अप+नी]-अवणेमो रा०७२६ अवणीत [अपनीत ] जी० ३१८७८ अवणीयउवणीयचरय [अपनीत उपनीतचरक] ओ० ३४ अवणीयचरय [अपनीतचरक] ओ० ३४ अवणेमाण [अपनयत् रा० ७३२ अवण्णकारग [अवर्णकारक] ओ० १५४ अवतासिज्जमाण [अपत्रास्यमान] रा०८०४ अववाल [अव+दलय] ----अवदालेइ ओ०१७० अवदालिय [अवदालित] ओ०१६ अवदालेत्ता [अवदल्य ] ओ० १७० अवधिणाणि ]अवधिज्ञानिन् ] जी० ३३१०४,११०७ अवमाण [अपमान ] रा० ८१६ अवमाणण [अपमानन] ओ०४६ अवयंसग [अवतंसक] रा० १७३, ६८१ ।। अवर [अपर] रा० ४०, १३२, १६३, १६६ जी० ३।२६५, २८५, ३५८, ५६५ अवरज्म [अप्+राध्] - अवरज्झइ रा० ७६७ अवरण्ह [अपराह] रा० ६८५ अवरत्त ] अपरात्र] रा० १७३ अवरविदेह [अपरविदेह ] जी० २।२६,५६,७०, ७२,८५,६६,११५,१२३,१३७, १३८, १४७, १४६;३१४४५, ७६५ अवरविदेहक [अपरविदेहक] जी० २।१३२ अवरविदेहिया [अपर विदेहिका] जी० २१६५ अवराहि [अपराधिन्] रा० ७५१ अवरुत्तर [अपरोत्तर] रा० ४१,६५८. जी० ३१३३६,५५८,६३५,६५७,६८० अवलंबण [अवलम्बन] रा० १६, १७५. जी० ३।२८७, ८६० अवलंबणबाहा [अवलम्बनबाहु] रा० १६,१७५. जी० ३।२८७ अवलद्ध [अपलब्ध] ओ० १५४,१६५,१६६. रा० ८१६ अवलि [अवलि] रा० २६ जी० ३१२८२ अवलिया [अवलिका] रा० २५ जी० ३१२७८ अवव [ अवव] जी० ३८४१ अवसाण [अवसान] ओ० ६३ अवसेस [अवशेष[ ओ० ५२, ७६, १६७ रा० ४८, ५७, १६४ जी०११५६, ६७; ३।२५०, ३४५, ३५६, ६३०, ६६४, ६६५, १०२६ Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ अववहारि-असंखेज्ज १३० अववहारि [अव्यवहारिन्] रा० ७६६ अविसु खलेस्स [अविशुद्धले श्य] जी० ३१६६ से अवहट्ट [अपहृत्य ] ओ०६६ २०४, २०६, २०८ अवहमाणय [अवहमानक] ओ० १११से ११३, अविस्साम [अविश्राम] ओ० ५० १३७,१३८ अवेइय [अवेदित] रा० ७५१ अवहार [अपहार] जी० ३।१२७ अवेवग [अवेदक] जी० ६।२२, २६, २७,१२६, अवहित [अपहृत] जी० ३६० अवहिय [अपहृत ] जी० ३।१०८५, १०८६ अवेदय [अवेदक ] जी० ६।२४, २८ अवहीर [अप+ह ] - अवहीरंति जी० ३६० अवेय [अवेद] जी० १।१३३ अवहीरमाण [अपह्रियमाण] जी० ३।६०, १०८६ अवेयग [अवेदक ] जी० ६.१२१ अवाईण [अवातीन, अवाचीन] ओ० ५, ८ जी० अवेयय ] अवेदक] ६।१२५ ३।२७४ अव्वत्तिय [अव्यक्तिक] ओ० १६० अवाउडय [अप्रावृतक] ओ. ३६ अव्वय [अव्यय ] रा० २०० जी० ३१५६,२७२, अवाय [अवाय] रा० ७४० ३५०, ७६० अवायविजय [अपायविचय] ओ० ४३ अव्यवहारि [अव्यवहारिन् ] रा ७६६ अवायाणुप्पेहा [अपायानुप्रेक्षा] ओ० ४३ अव्वह [अव्यथ] ओ० ४३ अवि [अपि] रा० १२ जी० १११६ अवहित [अव्यथित] जी० ३।६३० अविनोसरणया [अव्युत्सर्जन] ओ० ६६, ७० अव्वाबाह [अव्याबाध] ओ० १६, २१, ५४, रा० ७७८ १६५।१३ रा०८,२६२ जी० ३४५७ अविग्गह [अविग्रह] ओ० १८२ अव्वाहित [अव्याहृत] जी. ३२३६ अविग्ध [अविघ्न] ओ०६८ अस [अस्] -अस्थि, ओ० २८ रा० २०० अवितह [अवितथ] ओ० २६, ६६,७२. जी० ११५२ -अत्थु ओ० २१ रा० ८ जी रा०६६६ ३।४५७-असि रा० ७४७ -आसि रा० अविद्धत्य [अविध्वस्त] जी० ३।११८ २०० जी० ३।२६-आसी ओ० १६५॥३ रा० ६६७-सिय रा० १९८-सिया ओ० अविप्पलोग [अविप्रयोग] ओ० ४३ अवियारि [अविचारिन्] ओ० ४३ ३३ रा०१२ अविरत्त [अविरक्त] ओ० १५ रा ६७२ असई [असकृत्] जी० ३।९७५ असंकिलिट्ठ [असंक्लिष्ट] ओ० ४७ अविरय [अविरत ] ओ० ८४, ८५.८७, ८८ असंकिलिट्रपरिणाम [असंक्लिष्टपरिणाम] अविरल [अविरल] ओ० ५, ८, १६ जी० ओ०६० ३।२७४, ५६६, ५६७ असंख [असंख्य] जी० १३१२८ अविरहिय [अविरहित] जी० ३१८३८। १७ असंखिज्ज [असंख्येय] रा० ५६ जी० ११८०, अविराय [दे० अप्रस्फुटित] जी० ३।११८ १२१, ३१८६ अविरुद्ध [अविरुद्ध ] ओ० ६३ असंखेज्ज [असंख्येय] ओ० १७३,१८२. रा० १० अविलीण [अविलीन] जी० ३।११८ १२,१२४,१२६,२७६,७७२. जी० ११३३,५१ अविसंधि अविसन्धि] ओ०७२ ५५,५६,५८,६१,६२,६४,६५,७३,७७ से ७६ अविसय [अविषय] जी० ११४७ ८१,८२,८७,८८,६०,६६,१०१,१०३,११२, Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असंखेज्जइभाग-असरिस ५६७ ११६,११६,१२३,१२८,१३३,१३६,१३६, जी०६१४१, १४३,१४६,१४७ १४०; २२१२०,१३१, ३।१६,२१,२६,२७, असंत [असत् ] ओ० १६५।१६ ५१,६४,६५,८१,८२,६०,११०,१५५,१६५, असंदिद्ध [असन्दिग्ध ] ओ०६६. रा०६६६ - २५७,२५६,३५१,४४५,६३८,७०१,७१०,७३६, असंनि ह [असन्निधि] जी० ३३५६८ ७४७,७६१,७६४,७६८,७६६,७७६ से ७७६, असंपत्त | असम्प्राप्त ] ओ० ४७,८४,८५,८७. रा० ८१४,८३८१,६४०,६४४,६५२,६५३,१००६, ४०,५६, १३२. जी ११५८, ७३,७८,८१, १०७३,१०७४,१०८३,१०८५,१०८६,११११, ३१२६५ १११५, ५८, ६,२२,२३,२६,४१ से ५० असंबद्ध असम्बद्ध] जी० ३।११०,१११५ ५६,५८, ८।४; ६।४०, ५१,६७,१७१,२५७ असंभंत [असम्भ्रान्त ] रा० १२ असंखेज्जइभाग [असंख्येयतमभाग] रा० ७६६. असंवुड [असंवृत] ओ० ८४,८५,८७ जी० ११६,७४,८६,६४,१०१,१०३,१११, असंसट्टचरय [असंसृष्टचरक] ओ० २४ ११२,११६,११६,१२१,१२३,१२५,१३०, असंसारसमावण्ण [असंसारसमापन्न] जी ११६ से। १३५,१३६; २।२५, ३० से ३४,५३, ५७ से असच्चामोसमणजोग [असत्यमृषामनोयोग] ६१,७३; ६९७, १८६ ओ० १७८ असंखेज्जगुण [असंख्येयगुण] ओ० १८२,१६५।१०. असच्चामोसवइजोग [असत्यमृषावाग्योग] ओ० जी० २१६८, ७१,७२,६५,६६,१३४ से १३६, १७६ १३८,१४३ से १४६; ३।१६५, ११३८; असण [अशन] ओ० ११७,१२०,१४७,१६२. ४।२३,२५; ५१८ से २०, २५,२७,३१ से रा० ६९८,७०४,७१६,७५२,७६५,७७६,७८७ ३६,५२,५६,६०, ६।१२; ७।२०, २२,२३; से ७८६,७६४ से ७६६,८०२,८०८ ८।५; ६।६, ७,५५,१००,१२०,१४०,१४७, असणग [अशनक] ओ० १३ १५८,१६६,१८१,१८४,२०८,२२०,२३१, असणि [अशनि] जी० २।७८ २५० से २५२, २५५,२६६,२८६ से २८८, असण्णि [असंज्ञिन् ] जी० ११२४, ८६,९६,१०१, २६०,२६१,२६३ ११६,१२८,१३६; ३८८; १।१०१,१०३, असंखेज्जजीविय [असंख्येयजीविक] जी० ११७१,७२ . १०६,१०८ अखेज्जतिभाग [असंख्येयतमभाग] जी० २।१३९; असति [अपकृत्] जी० ३।१२७. ३६१, १५६,२१८,४३६,६२६,६६६,१०८६, असब्भावपट्टवणा [असद्भावप्रस्थापना] १०८७,१०८६,११११, १६, २३,२४,२६; जी० ३.१०६,११८,११६ ६४०, ५१,१७१,१८७,१८८ असब्भावभावणा [असद्भावोद्भावना] असंखेज्जभाग [असंख्येयभाग] ओ० १६२. ओ० १५५,१६० जी० ३।६१ असमोहत [असमवहत] जी० १११२८; ३११५८, असंग [असङ्ग] ओ० २० १६८, १९६,२०४,२०५ असंघयण [असंहनन] जी० ३।१२।४ असमोहय [असमवहत] जी० ११५३,६०,८७ असंघयाणि [असंहनिन् ] जी ० १।६५, १३५; असम्मोह [असम्मोह ] ओ०४३ ३।६२,१०६० असरणाणुप्पेहा [अशरणानुप्रेक्षा] ओ० ४३ असंजय [असंयत] ओ० ८४,८५,८७,८८. असरिस [असदृश] जी० ३।११०,१११५ Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ असरीर [अशरीर ] ओ० १५३,१८४, १६५।११. रा० ७७१ असरीरि [अशरीरिन्] जी० ६।६२,१७०,१७५, १८०,१८१ असहिज्ज [असाहाय्य ] रा० ६६८,७५२,७८६ असहेज्ज [असाहाय्य ] ओ० १२०,१६२ असावज्ज [असावद्य] ओ० ४० असि [ असि ] ओ० ६४. जी० ३ ११०,६०७,६३१ असिs [ अशीति ] जी० ३।५ असिद्ध [ असिद्ध ] जो० ६६, ११, १३, १४, १६, २६, ६२ असिपत [ असिपत्र ] जी० ३१८५ असिय [ असित ] रा० १३३. जी० ३।३०३ असिलक्खण [ असिलक्षण ] ओ० १४६. रा ८०६ असिलिट्ठ [ अश्लिष्ट ] रा० ७७४ असीत [ अशीति ] जी० ३।३५५ असोति [ अशीति ] जी० ३ | १७ असीय [ अशीति ] रा० १६३. जी० ३।३३५ असुइ [ अशुचि] ओ० ६८, १४४. रा० ६,१२,७५३, ८०२ जी० ३८४,६२२ असासत [अशाश्वत ] जी० ३।५७,५६ असास [ अशाश्वत ] रा० १६८, १६६. जी० ३।८७ असोगलयापविभत्ति [ अशी कलताप्रविभक्ति ] २७०,२७१,७२४,७२७,१०८१ असुभ [ अशुभ ] रा० ७५३. जी० १२६५; ३ ७७, ११६,१२६४ असीर अहापरूिव असुरद्दार [असुरद्वार] जी०३८८५ असुरद ] असुरेन्द्र ] ओ० ४८. जी० ३।२३५ से २३६,२४३ असुह [अशुभ ] जी० ३ ६२,१२६१० असोग [ अशोक ] ओ०८, ६, १२, १३. रा० ३,४, १३३. जी० १ ७१; ३।३०३,६२७ असोगलया [ अशोकलता ] ओ० ११. रा० १४५.. जी० ३.२६८,५८४ रा० १०१ असोगबडेंस [ अशोकावतंसक ] रा० १२५ असोगवण [ अशोकवन ] रा० १७० जी० ३।३५८ असोय [ अशोक ] रा० १८६. जी० ३३५६,५६० असोयपल्लवपविभत्ति [ अशोकपल्लवप्रविभक्ति ] रा० १०० अस [ अश्व ] जी० ३७६३ अस्कणि [ अश्वकर्णी ] जी० १।७३ अस्साद [ आस्वाद ] जी० ३।६५८ अस्साय [असा] जी० ३।१२६५,१० अस्य [ अश्रुत ] ओ० ५२ अह [ अथ] ओ० २२ अहम्खायचरित विजय [ यथाख्यातचरित्र विनय ] ओ० ४० अहत [ अहत ] जी० ३।४५१ अहमद [ अहमिन्द्र ] जी० ३।१०५६,११२० अ [ अह ] ओ० ६३. रा० ७,२६१. जी० ३।४५७ हर [अधर ] ओ० १६,४७. जी० ३।५६६ अहव [ अथवा ] जी० ३।५६४ अहवा [ अथवा ] जी० १।१३३ असुभाणुप्पेहा [अशुभानुप्रेक्षा ] ओ ४३ असुय [ अश्रुत ] रा० १६ असुर [असुर ] ओ०६८,१२०,१६२. रा० २८२, ६६८, ७५२,७७१, ७८६८१५. जी० ३।२३२, ४४८,८८५ असुरकुमार [असुरकुमार] ओ० ४७. जी० २०१६, अहाणुपुथ्वी [ यथानुपूर्वी ] ओ ६४. रा० ४६ से ३७; ३।२३३,२३४, २४० वणवे [ अथर्ववेद ] ओ० ६७ असुरकुमारराय [असुरकुमारराज ] जी० ३।२३४ से २३६, २४३ असुरकुमारिव [असुरकुमारेन्द्र ] जी० ३।२३४ ५४,७७४ अहा [ अ ] रा० ७२३ अहापडिरूव [ यथाप्रतिरूप ] ओ० २१,२२, ५२. रा० ८,६,६८६,६८७, ६८६,७०६,७११, ७१३ Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहापरिगहिय- आइय अहापरिगहिय [ यथापरिगृहीत] ओ० १२० अहाबायर [ यथाबादर ] रा० १०,१२,१८, ६५, २७. जी० ३।४४५ ओ० १५४. रा० ८१६ अहिला [ अमिलान ] ओ० ६४ अ [ अह ] जी०२८ अ [ अह ] ओ० १५,१४३. रा० ६७२,६७३ ८०१ अहुणा [ अधुना ] जी० ३।४४८ अणवण [ अधुनोपपन्न ] रा० ७५१,७५३ अणोववरण मित्तय [ अधुनोपपन्नमात्रक ] अहाह [ यथासुख ] रा० ६६५,७७५ अहासुम [ यथासूक्ष्म ] रा० १०,१२,१८, ६५, २७६. जी० ३।४४५ अहि [हि ] जी० १ १०५, १०६,१०८, ३१८४,६५,६२५,६३१ अहि [ अभिगत ] रा० ६८८ अहिगरण [ अधिकरण] ओ० १२०,१६२. ० ६६८,७५२,७८६ afar [ अधिक ] ओ० ५७,६३ रा० ७०, १३३, २३८. जी० २।१५१; ३।२२६/२, ५,३०३, ६७२,११२२; ७११६,१८, ६१४, २४४, २४६, २८०,२८२,११२२ अहियर [ अधिकतर ] रा० १३३. जी० ३।३०३, ११२२ आइक्ar [ आख्यायक ] ओ० १,२ √अहियास [अधि+आस्,सह ] -अहियासिज्जति आइक्खगपेच्छा [ आख्यायकप्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५ इक्खमाण [आचक्षाण, आख्यात्] ओ० ७६ से ८१ रा० ७२०, ७३२ रा० २७४ अणोववण्णय [ अधुनोपपन्नक] रा० ७५१,७५३, ७६७ अहे [अधस् ] ओ० १८६ रा० १३२ जी० १/४५ असता [ अधः सप्तमी ] जी० १६२,११६, १२२, २०१३५,१४८, १४९, ३।११ से १३, २७,३२,४३,४७, ४६, ५३.७६, ७७,७६,८०,८२, ८७, ६३ से ६५,६७, १०३, १०४,१०६, १०८, ११५,११७,१२१ से १२३, १२५, १२७,१२८ ५६ अहो [ अहो ] रा ० ६६६ अनिस [ अह ] जी० ३।१२६/८ अहोरत [ अहोरात्र ] ओ० २८ जी० ३८४१ for [aafn] रा० ७३३,७३४,७३६ अहोवा [ अधोवात ] जी० १८ १ अहोसिर [अधः शिरस् ] ओ० ४५,८२ आ आइ [ आदि ] ओ० २३,६३,६६. जी० १११३३; ३। १०२७ आई [ दे० ] रा० ७०५ / आइक्ख [ आ + चक्ष्, ख्या ] - आइक्खइ ओ० ५२. रा० ६८७ - आइक्वंति जी० ३।२१०आइक्खह ओ० ७६ - आइक्खामि जी० ३।२११ – आइक्खिस्सामो रा० ७१६ - आइक्खेज्जा रा० ७१८ आइक्वेज्जाह रा० ७२० आइक्खित्तए [आचक्षितुम्, आख्यातुम् ] ओ० ७६ आइगर [ आदिकर ] ओ० १६,२१,५२,५४ रा०८ आइच [ आदित्य ] जी० ३१८३८|४ आइज्ज [आदेय ] ओ० १६ आइ [आजिन ] रा० ३१ tor [आजिनक] जी० ३ ४०७, ५६५ आपण [आकीर्ण ] ओ० १,१४,१६,६४. रा० १७३,६७१,६७५,६८१,७७४. जी० ३।२८५, ६६५ आइ [आचीर्ण] रा० ११,५६ आपण [ दे० ] जात्यश्व जी० ३।५६६ आइ [ आदिक] ओ० २३,१२०,१४६,१६२ जी० ३।२५६ Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७० आई [ आजिन ] जी० ३।२८४,१०७६ आई [ आजिनक ] ओ० १३ रा० ३७,१८५, २४५. जी० ३।२६७, ३११ आउ [आयुष्] जी० १११२८ आउ [ दे० अप्] जी० २।१३०, १३६, ३।१२३, ६७४ ५८,१२,२०,२७,२६,३३,३६; ६।२५७ काइ [ अकायिक ] जी० १।१२; ३ । १८२, १८४,२५६,२६२,२६६ ५६, १८; ८५ काय [अकाय ] जी० ३।१३५,७२५,७२८ Tears [ अकायिक ] जी० ११६३,६५, -२१०२, १३८, १४६, १४६, ३।१३५, ५।१, १६,२० = १ आक्खय [ आयु:क्षय ] ओ० १४१. रा० ७६६ आज [ आतो ] रा० ७०,७१,७५ आउषागार [ आयुधागार] ओ० १४. रा० ६७१ आउ [ आयुक] ओ० ४४,६१ से ६३, १५७, १७१,१८८. रा० ७५३. जी० १।५१,५५,६१, ८७, १०१,११६, १२७,१३३; ३।१५५,६३० आउर [ आतुर ] रा० ७६०, ७६१. जी० ३ ११८, ११६ आउ [ आकुल ] ओ० ६३. जी० ३१८४ आउस [ आयुष्मत् ] ओ० ७६,१२०,१७०. रा० १३१,१३२,१४७ से १५१,१८५, १६७,६६८, ७५०, ७५२,७८६. जी० १ ५६,६२,६५,८२,६६, १२८, १४०, ३१७६, १७८, १८०, १८२,२५६, २६६, २६७,३०१,३०२,३२१ से ३२४, ५८२, ५८६ से ५६५,५६८,६००,६०३ से ६०७,६०६ से ६१७,६२०,६२२ से ६२५,६२७,६२८,६३०, ६५,१०५६,११२० आउसेस [ आयु:शेष ] रा० ८१६ आउ [ आयुध ] रा० ६६४,६८३. जी० ३।५६२ आज्ज [ आदेव ] जी० ३।५६७ आएस [आदेश ] जी० २ १५०, ६१२२ आओ [आयोग ] ओ० १४,१४१ ० ६७१,७६६ आओस [आक्रोश ] रा० ७६६ आई-आगर आओसित [आक्रोष्टुम् ] रा० ७६६ आकति [आकृति ] रा० १४८ आकारभाव [आकारभाव ] जी० ३।२५६ आकासतल [ आकाशतल ] जी० ३।५६४ आकिति [ आकृति ] जी० ३।४५४ आकोसायंत [आकोशायमान, विकसत् ] जी० ३५६६,५६७ आगइ [ आगति ] जी० १।१४ आइय [ आगतिक ] जी० १।७४,७७,८७,८८,६६, १०१ आगंतुं [आगन्तुम् ] रा० ७५० √ आवच्छ [ आ + गम् ] -- आगच्छइ ओ० १७७ -- आगच्छंति जी० ३।२३६ – आगच्छिज्जा रा० ७०६ - आगच्छेज्ज ओ० १८०.-आगच्छेज्जा ओ० २१. जी० ३१६६आगच्छेह रा० ७६५ आगच्छित्तए [ आगन्तुम् ] रा० ७५९ आगत | आगत ] रा० १७३. जी० ३।२६५,२८५ आगति [ आगति ] रा० ८१५ आगति [ आगतिक ] जी० १ ५६,६२,६४,६५, ६७,७६,८०, ८२, १०३,१११, ११२,११६,११६, १२१,१२३, १२८, १३४,१३६ आगमण [ आगमन ] ओ० ५१. रा० ६८६ आगमणागमणपविभत्ति [ आगमनागमनप्रविभक्ति ] २० ८७ आगमेसिभद्द [ आगमिष्यद्भद्र ] ओ० ७२ आगम्म [आगम्य ] ओ० २ आग [ आगत ] ओ० ५२. रा० ४०,७०,१३२, ६८५,६८७,६५६, ७१३,७६५, ८०२. जी० ११६६ आगर [ आकर ] ओ० ६८,८१ से ३,६५,६६, १५५,१५८ से १६१, १६३,१६८. रा० ६६७. जी० ३१८४१ आगार | आकार ] ओ०१६. जी० ३।४८ से ५०, ३०३,३४६,३५७, ६३७, ६५६, ७३८, ७४३, ७६३,११२२ Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगारभाव - आताडिज्जंत आगारभाव [आकारभाव ] जी० ३।२१८,५७८, ५६६, ५६७ आगास [ आकाश ] ओ० १३,१६ आगासत्यिका [ आकाशास्तिकाय ] रा० ७७१. जी० ११४ आग refथग्गल [ आकाश थिग्गल' ] रा० २५ जी० ३२७८ आगासफलिह [आकाशस्फटिक ] जी० ३।४५१ आगासफालिह [आकाशस्फटिक) । रा० २=५ आगासाsars [ आकाशातिपातिन् ] ओ० २४ आगासिय [ आकाशिक ] ओ० १६ आगिति [ आकृति ] रा० २८८. जी० ३।३२१ / आघव [ आ + ख्या ] - आघविज्जति जी० ३।८४१ आघवण [आख्यान ] रा० ७७४ आघवित्त [आख्यातुम् ] रा० ७७४ आघवेमाण [आख्यात् ] ओ० ६८ आजीवविट्ठत [आजीवदृष्टान्त ] जी० ३ ॥१७४ आजीवय [ आजीवक ] ओ० १५८ √ चाह [ आ + धा] - आडहइ, ओ० ५६ आहिता [ आधा ] ओ० ५६ आढय [आढक ] ओ० ११३,१३८. रा० ७७२ आढा [ आ + दृ] - आढाइ रा० ६४. - आढाति रा० ७५३ आणंदा [ आनन्दा] जी० ३।९१४ आनंदिय [ आनन्दित ] ओ० २०, २१, ५३, ५४,५६, ६२,६३,७८,८०, ८१. रा० ८, १०, १२ से १४, १६ से १५,४७, ६०, ६२, ६३, ७२, ७४, २७७, २७६,२८१,२६०,६५५,६८१,६८३,६६०,६६५. ७००, ७०७,७१०,७१३,७१४, ७१६,७१८, ७२५, ७२६,७७४,७७८. जी० ३।४४३, ४४५, ४४७, ५५५ आणण [ आनन] ओ० ५१,६३,६५ आणत [आनत ] जी० २६२,६६, १४८, १४६; ३३१०८४, १०८६, १०८८ ५७१ आत्तिया [ आज्ञप्तिका ] ओ० ५५ से ६१. रा० ६,१२,१७,४६,७३,११८,६५४,६५५, ६८१, ६८२,६०,६१,७०६, ७१४, ७१५, ७२४, ७२५. जी० ५५४,५५५ आणपाणपज्जत्ति [आनप्राणपर्याप्ति, आनापान - पर्याप्ति ] रा० २७४, ७६७ आपण पज्जत्ति [आनप्राणपर्याप्ति, आनापान - पर्याप्ति ] जी० १/२६ आय [ आनत ] ओ० ५१,१६२. जी० ३।१०३८, १०५३, १०६२, १०६६, १०६८, १०७६, ११११ √ आणव [ आ + ज्ञापय् ] - आणविज्जइ रा० ७६७. - आणवेइ रा० १३. आणवेज्जा रा० ७७६ आणा [ आज्ञा ] ओ० ५६,५७,५६,६१,६८,७६, ७७. रा० १०, १४, १८, ७४, २७६, २८२,६५५, ६८१,७०७. जी० ३।३५०, ४४५, ४४८, ५५५, ५६३,६३७ आणापाणु [ आनापान, आनप्राण ] ३१८४१ ओ० २८. जी ० आणापाणु अपज्जत्ति [आनापानापर्याप्ति, आनाप्राणा पर्याप्ति ] जी० ११२७ आणापाणुपत्ति [आनापानपर्याप्ति, आनप्राणपर्याप्ति ] जी० ३।४४० आमित [आनामित ] जी० ३१५६७ आणामि [ आनामित ] ओ० १६ जी० ३।५९६ आणारुइ [ आज्ञारुचि ] ओ० ४३ आणाविजय ] आज्ञाविचय] ओ० ४३ √ आणी [ आ + नी ] -- आणस्सामि रा० ७२० आगामियत [ आनुगामिकत्व ] ओ० ५२. रा० २७५,२७६,६८७. जी० ३ : ४४१, ४४२ आणुपुव [ आनुपूर्व्य ] रा० १७४. जी० ३।२८६ आणुपुवी [आनुपूर्वी ] जी० ११४८ आतंक [आतङ्क ] जी० ३।६२८ आतंब [आताम्र ] जी० ३ ५६६ आतपत्त [आतपत्र ] जी० ३।४१६ आताडिज्जत [आताड्यमान ] रा० ७७ Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ आतिय-आमंतेत्ता ६१० आतिय [आदिक] रा०६३,६५ ४५७,४५६,४६१,४६२,४६५,४७०,४७७, आतोज्ज [आतोद्य] जी० ३१५८८ ५१६,५२०,५४७,७७५,६३६,११२१ से ११२३ आवंसग [आदर्शक] जी० ३३५५ आभरणचित्त [आभरणचित्र] जी० ३५६५ आदंसमुह [आदर्शमुख] जी० ३।२२६ आभरणविहि [आभरणविधि] ओ० १४६ रा० आदर [आदर] ओ० ६७. रा० १३,६५७ ८०६ आदरिसफलग [आदर्शफलक ] ओ० २७. रा० आभा [आभा] ओ० ५१ ८१३ आभासित [आभाषिक ] जी० ३।२१६ आदि [आदि ] ५२,७०. जी० १२४६२।१३१; आभासिय [आभाषिक] जी० ३।२१६ ३।२२६,२५०,८६६.८.७२,८७५.८७६,८७६, आभासियदीव [आभाषिकद्वीप] जी० ३।२१६, ८५१,६२६,६२७,६३७,६४१,६४८,६४६, २२३ ६५२,१०८४,१०८६, ६।१४६ आभासिया [आभाषिका] जी० २११२ आदिगर | आदिकर] ओ० ५४. रा० ८,२६२. आभिओगिय [आभियोगिक] ओ० १५६. रा० जी० ३।४५७ ६,१०,१२,१३,१७ से १९,२४,३२,४१,४६, आदिय [ आदिक] रा० ७४,८२,११८. जी० ५४,२७८,२७९,२६०,६५४,६५५. जी० ३.६१७ ३।४४४,४४५,४५०,४५३,४५६,५५४,५५५. आदीय [आदिक] जी० ३।२५६,६५० आदेज्ज [आदेय] जी० ३३५६६,५६७ आभिणिबोधियणाणि [आभिनिबोधिकज्ञानिन् | आदेस [आदेश] जी० ११५८,७३,७८,८१,२।२०, जी० ३।१०४,११०७ ४८ आभिणिबोहियणाण [आभिनिबोधिकज्ञान] आधार [आहार] जी० १.१२८ ओ० ४० रा० ७३६ से ७४१,७४६ आधाव आ-धाव]-आवावंति जी०३.४४७ आभिणिबोहियणाणविणय [आभिनिबोधिकज्ञानआपडिपुच्छमाण [आप्रतिपृच्छत् ] ओ० ६६ विनय] ओ० ४० आपुच्छणिज्ज [आपच्छनीय] रा० ६७५ आभिणिबोहियणाणि [आभिनिबोधिकज्ञानिन ] आपूरत [आपूर्यमाण] जी० ३१७३१ ओ० २४. जी० ११८७,६६,११६,१३३; आपूरेमाण [आपूर्यमाण'] रा० ४०,१३२, ६।१५६,१६०,१६५,१६६.१६८,२०४,२०८ १३५,२३६. जी० ३।२६५,३०२,३०५,३६८. आभिणिबोहियनाणि | आभिनिबोधिकज्ञानिन] आबाह [आबाध ] ओ० १६६ जी० ६।१६७ आबाहा [आबाधा] जी० ३.६२०,६२५ आभियोग [आभियोग्य] रा० ४७ आभरण [आभरण] ओ० २०,५२,५३,६३. आभियोग्ग [आभियोग्य] रा १० रा०६६,७०,१५६,१५७,२५८,२७६,२८१, आभिसेक्क [आभिषेक्य ] ओ० ५५ से ५७,६२ २८६,२६१,२६४,२६६,३००,३०५,३१२, से ६४,६६ ३५५,६८५,६८७,६८६,६६२,७००,७१६, आभोएत्ता | आभाग्य] रा० ८१६ ७२६,८०२. जी० ३३२६,४१६,४४७,४५२, अभोएमाण [आभोगयत् ] रा०७ -आपूरयन्ति शत्रन्तस्य शाबिंद रूपम् [जी० आमंत [आ+मन्त्रय] -आमंतेइ ओ० ५५ वृत्ति]। आमंतेत्ता [आमन्त्र्य ओ० ५५. रा० ६६८ Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आमरणंतदोस-आयावणभूमि आमरणंतदोस [आमरणान्तदोष] ओ० ४३ आमलकप्पा [आमलकल्पा] रा० १,२,८ से १०, १३,१५,५६ आमलग [आमलक] रा० ७७१ जी ११७२ आमलय [आमलक] रा० ७७० आमेल [आपीड] ओ० ४६ रा० ६६,७० आमेलग [आपीडक ] रा० १३३ जी० ३।३०३, ५६७ आमेलय [आपीडक ] ओ० ५७ आमोट [आमोट] रा० ७७ आमोडिज्जत [आमोट्यमान] रा० ७७ आमोसहिपत्त [आमषौषधिप्राप्त ] ओ० २४ आय [आत्मन् ] जी० १०५० आयंक [आतङ्क] ओ० ४३,११७. रा० १२,७५८, ७५६,७६६. जी० ३१११८ आयंत आचान्त ] ओ० २१.५४. रा० २७७, २८८,७६५,८०२ जी० ३.४४३ आयंब [आताम्र] ओ० १६ आयंबिलय [आचाम्लक] ओ० ३५ आयंबिलवद्धमाण [आचाम्लवर्धमान] ओ० २४,३५ आयंस [आदर्श] रा० १४६,२५८,२७६, जी० ३१५६७ आयंसग [आदर्शक ] जी० ३ ३२२,४१६,४४५ आयंसघरग [आदर्शगृहक] रा० १८२,१८३. जी० ३।२६४ आयंसघरय [आदर्शगृहक ] जी० ३।२६५ आयंसमंडल [आदर्शमण्डल] रा० २४ जी० ३।२७७ आयंसमुह [आदर्शमुख जी० ३।२१६,२२६१४ आयंसय [आदर्शक ] ओ० १३ आयत [आयत] ओ० १६,४७. रा० १२४. जी० २५, ३१५७७,५६६,६३६,१०३६ आयपच्चइय [आत्मप्रत्ययिक, प्रात्ययिक] रा० ७५४,७५६ आयय [आयत ] जी० ३.२२,५६७ आयर [आदर] जी० ३।४४६ आयरक्ख [आत्मरक्ष] रा० ७,४४,५६,५८,२८०, २८२,२८६,२६१,६५७,६६४. जी० ३।३४५, ३५०,३५६,४४६,४४८,५५७,५६२,५६३, ६३७,६५९,६८०,७००,१०२५,१०३८ आयरिय [आचार्य] ओ० ४०,४१,१५५. रा० ७७६ आयव [आतप] ओ० ८६ आयवत्त [आतपत्र] ओ०६४. रा० ५०,५१,२५५ आयवाभा [आतपाम ] जी० ३।१०२६ आयाए [आदाय] रा० ७७४ ।। आयाण [आदान] ओ० १६. जी० ३१५६६ आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिय [प्रादानभाण्डामत्र निक्षेपणासमित] ओ० २७,१६४ आयाणमंडमत्तनिक्खेवणासमिय [आदानभाण्डामत्र निक्षेपणासमित] ओ० १५२. रा० ८१३ आयाम [आयाम] ओ० १३,१७०,१६२. रा० ३६,१२४,१२६,१२८,१३७,१७०,१८८,२०६, २११,२१८,२२१,२२२,२२४,२२६,२२७, २३०,२३३,२३८,२४२,२४४,२४६,२५१ से २५३,२६१,२६२,२७२. जी० ३५१८१,८२, ८६,२१७,२२२,२२६,२६०,३०७,३१०,३५१, ३५३,३५५,३५८,३५६,३६१,३६४,३६५, ३६८ से ३७२,३७४,३७६,३७७,३८०,३८१, ३८३,३८५,३८६,३६२,३६५,४००,४०४, ४०६,४०८,४१२ से ४१४,४२२,४२५,४२७, ४३७,५७७,५६७,६३२,६३४,६३६,६४२, ६४४.६४६,६४६,६५२,६५५,६६८,६७१,६७३ से ६७५,६७६,६८३,७३६ ७३७,७५४,७५८, ७६२,७६५,७६८,८३५,८८२,८८४,८८७, ८६१,८६३ से ८६५,८६७,८६६,६०१,६०६, १०७,६१०,१०१० से १०१४,१०७३,१०७४ आयामसित्यभोइ [आयामसिक्थभोजिन् ओ० ३५ आयारधर [आचारधर] ओ० ४५ आयारवंत [आकारवत् ] ओ० १ आयावणभूमि [आतापनभूमि] ओ० ११६ Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७४ आयवणा-आवण आयावणा [आताफ्ना] ओ० ६४ आलय [आलय] रा० ८१४ आयावय [आतापक] ओ० ३६ आलवंत [आलपत्] रा० ७७ आयावाय [आत्मवाद] ओ० २६ आलावग [आलापक] जी० ३।६२,५२५१,५८ आयावेमाण [आतापयत् ] ओ० ११६ आलिंग आलिङ्ग] रा० २४,६५,६७,१७१. जी० आयाहिण [आदक्षिण] ओ० ४७,५२,६६,७०,७८, ३।२१८,२७७,३०६,५७८,५८८,६७०,७५५, ८०,८१. रा०६,१०,१२,५६,५८,६५,७३,७४, ८८३ ११८,१२०,६८७,६६२,६६५,७००,७१६, आलिगक [आलिङ्गक] जी० ३।७८ ७१८,७७८ आलिंगणवट्टिय [आलिङ्गनवर्तिक] रा० २४५. आयिण [आजिन] जी० ३।६३७ जी० ३।४०७ आरंभ [आरम्भ ] ओ० ६१ से ६३,१६१,१६३ आलिघरग [आलिगृहक | रा० १८२,१८३. जी. आरंभसमारंभ [आरम्भसमारम्भ ] ओ०६१ से १३३।२६४,८५७ आरण [आरण] ओ० ५१,१६२. जी० ३।१०३८, आलिघरय [आलिगृहक] जो० ३।२६५,८५७ १०५४,१०६६,१०६८,१०७६,१०८८,११११ आलिह [आ+लिख ]-...आलिहइ रा० २६१. आरबी [आरबी] ओ० ७०. रा०८०४ -आलिखति जी० ३।४५७ आरभड [आरभट] रा० १०८,११६,२८१. जी० आलिहिता [आलिख्य ] रा० २६५. जी० ३।४५७ ३।४४७ आलुय [आलुक] जी० ११७३ आलोइय [आलोचित ] ओ० ११७.१४०,१५७, आरभडभसोल [आरभटभसोल] रा० ११०,२८१. १६२,१६४,१६५ रा० ७६६ जी० ३।४४७ आलोय [आलोक] ओ० ६३,६४. रा० ५०,६८, आराम [आराम ] ओ० १,३७. रा० १२,६५४, २६१,३०६. जी० ३।४५७,४७१,५१६ ६५५,७१६. जी० ३१५५४ आलोयणारिह [आलोचनाह ] ओ० ३६ आराह [आ+राध्] --आराहेहिइ रा० ८१६ आवइ [आपत् ] रा० ७५१ आराहग [आराधक] ओ० ८६ से १५,११४,११७, आवइकाल [आपत्काल ] ओ० ११७ १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७ आवकहिय [यावत्कथिक] ओ० ३२ आराहणा [आराधना ओ० ७७ ।। आवज्जीकरण [आवर्जीकरण] ओ० १७३ आराहय [आराधक] ओ०७६,७७. रा०६२।। आवड आवृत्त] रा० २४. जी० ३।२७७ आराहित्ता [आराध्य ] ओ० १५४. रा० ८१६ ।। आवडपच्चावडसेढिपसेढिसोत्थियसोवत्थियप्रसमाणवआरिय [आर्य ] ओ० ५२,७१. रा० ६६७,६८७. वद्धमाणगमच्छंडमगरंडाजारामाराफुल्लावलिजी० ३।२२६ पउमपत्तसागरतरंगवसंतलतापउमलयभत्तिचित्त आरुहण [आरोहण] रा० २६१,२६४,२६६,३००, [आवृत्तप्रत्यावृत्तश्रेणिप्रवेणिस्वस्तिकसौवस्तिक ३०५,३१२,३५५. जी० ३१४५७,४५६,४६१, पुष्यमाण ववर्धमाणकमत्स्याण्डमकराण्डकजारकमार४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५४७,५६४ कफुल्लावलिपद्मपत्रसागरतरङ्गवासन्तीलतापआरोहग [आरोहक] ओ० ६४ मलताभक्तिचित्र] रा० ८१ । आलंकारिय आलङ्कारिक] जी०३१४५० आवडिय [आपतित] रा० १४ आलंबण [आलम्बन ] ओ० ४३. रा० ६७५ आवण [आपन] ओ० १,५५. रा० २८१. जी० आलंबणभूय [आलम्बनभूत] रा० ६७५ ३।४४७,५६४ Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवत्त- आसाय आवत्त [ आवर्त ] रा० ६६. जी० ३।८३८ । १० आवत्तणपेढिया [आवर्तन पीठिका ] रा० १३०. जी० ३१३०० आवबहुल [आपबहुल ] जी० ३ ६, १०, १७, २५, ३०,६३ आवरण [आवरण] ओ० ५७,६४. रा० १७३, ६८१. जी० ३।२८५ आवरणावरणपविभत्ति [आवरणावरणप्रविभक्ति ] रा० ८८ आवरता [ आवृत्य ] रा० ७१६ / आवरिस [ आ + वृष् ] – आवरिसेज्जा रा० १२ आवरेत्ता [ आवृत्य ] रा० ७१६ आवरेत्ताणं [आवृत्य ] रा० ७१६ आवलिपविभत्ति [आवलिप्रविभक्ति ] रा० ८५ आवलियपविट्ठ [ आवलिकाप्रविष्ट ] जी० ३७८ आवलियबाहिर [आवलिकाबाह्य ] जी०३।७८ आवलिया [ आवलिका ] ओ० २८ जी० १।१३६, ३,८४१ आवलियाविट्ठ [आवलिकाप्रविष्ट ] जी० ३।१०७१. आवलियाबाहिर [आवलिकाबाह्य ] जी० ३।१०७१ आवस्य [ आवश्यक ] रा० ७२३ आवास [ आवास ] ओ० १, १६२. रा० ६८४, ६८५, ७००, ७०६. जी० ३।२५७ ७३५ से ७४३, ७४५ से ७४७, ७४० से ७५१, ७७५, ६३७ आवाह [आवाह] जी० ३।६१४ आविद | आद्धविद्ध] ओ० ५२, ६३. रा० ६६, ७०, १३१, १४७, १४८, २५०, ६६४, ६८७ से ६८६, जी० ३।३०१, ४४६ आविल [ आविल ] जी० ३ । ७२१ आवकम् [ आविष्कर्मन् ] रा० ८१५ आस [अश्व] ओ०६६, १०१,१२४. रा० ५७५ ७२०, ७२३, ७२४, ७२६, ७३१, ७३२. जी० २८४, ३६१८, ६३१, १०१५ कण्ण [ अश्वकर्ण] जी० ३।२१६, २२६ आग [ आस्यक ] जी० ३।१०६ आसण [ आसन ] ओ० १४, १४१. रा० १८५, ६७१, ६७५ ७१४, ७६६. जी० ३।२६७ ५७६, ६८३, ११२८, ११३० आसणयाण [आसनप्रदान ] ओ० ४० आसणाभिग्गह [ आसनाभिग्रह ] ओ० ४० आसत [आसक्त ] ओ० २. ५५. रा० ३२, २०१ २६१,२६४,२६६,३००, ३०५,३१२,३५५. जी० ३।३७२, ४४७, ४५६, ४६१, ४६२, ४७०, ४७७, ५१६, ५२० आसघर [ अश्वधर] ओ० ६६ आम [ आश्रम ] ओ०६८, ८ से ६३, ६५ ६६, १५५, १५८ से १६१, १६३, १६८. रा० ६६७ आसमुह [ अश्वमुख ] जी० ३।२१६, २२६ / आसय [ आस् ] -- आसयंति रा० १८५ जी० ३।२१७-- आसयह रा० ७५३ आसरह [ अश्वरथ ] रा० ६८१ से ६८३,६८५/६६० से ६६२, ६६७, ७०६, ७१०, ७१४, ७१६, ७२२,७२४, ७२६ आसल [ आसल ] जी० ३।८१६,८६०, ६५६ आसव [ श्रव] ओ० ७१,१२०,१६२. रा० ६६८, ७५२७८६ आसव [ आसव ] जी० ३।५८६ आसवोद [ आसवोद ] जी० ३ । २८६ आसवोयग [आमवोदक ] रा० १७४ आसा [ आशा ] ओ० २५,४६, रा० ६८६ आसामान [आस्वादयत् ] रा० ७६५, ८०२ आसाद [ आस्वाद ] जी० ३८६०, ८६६, ८७२ ८७८, ५५, ६६० आसादणिज्ज [आस्वादनीय] जी० ३।६०२, ८६० ८६६,८७२,८७८, ६५५,६६० आसाय [आस्वाद ] जी० ३।६०१६०२, ९६१ Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आसालिय-इंदाभिसेग आसालिय [आशालिक] जी० १।१०५, ११०, आहारसण्णा [आहारसंज्ञा] जी० ११२०,१३२; १३३,२।१०५ ३।१२८ आसित्त [आसिक्त] ओ० ५५, ६० से ६२ आहारित्ता [आहार्य] जी० ३।६०३ आसिय [आसिक्त] रा० २८१. जी० ३।४४७ आहारेत्तए [आहर्तुम् ] ओ०६३ आसीत [अशीति ] जी० ३१५ आहारेमाण [आहरत् ] ओ० ३३. रा० ७६५ आसीविस [आसीविष] जी० १३१०७ आहाव [आ+धाव्]-आहावति रा०२८१ V आह [ब्रू]-आहंसु जी० १।१० आहिय [आख्यात] जी० ३।८३८।३ ___ आहिज्जति जी० ११० आहु [आहोत] ओ० २ आहत [आहत] जी०३१८४५ आहुणिज्ज [आहवनीय] ओ०२ आहम्मत [आहन्यमान] रा० ७७ आहुणिय [आहत्य] रा०६ प्राहय [आहत] ओ० ६८ आहेवच्च [आधिपत्य] ओ० ६८. रा० २८२. आहर [आ+ह]---आहरेइ ओ०११८ जी० ३।३५०,३५६,४४८,५६३,६३७,६५६, आहरण [आभरण] ओ० ४६. रा०६८८ ७६०,७६३ आहाकम्मिय [आधार्मिक] ओ० १३४ आहार [आहार] ओ०३३,७३,६२,११७ से ११६. रा० ७३२,७३७,७७२,७६६. जी०१।१४,३३, इ [चित्] ओ०७४।४ ५०,५६,६५,८२,८७,६६,१०१,११६,१३३, इ [इति] जी० ३६५ १३६, ३६७,१२७,१२६,५६६,६००,६०३, इि [इ]-एति जी० ३।१७६-एह रा० ७२३ ६३१६६६ इइ [इति] रा० २४ आहार [आधार] रा० ६७५ इओ [इतस्] ओ० ८८ आहार [आ-हारय]--आहारेइ रा० ७३२-- इंगाल [अङ्गार] रा० ४५. जी० ११७८,३।८५, आहारेति रा० ७०३. जी०१।३३ ११८ आहारअपज्जत्ति [आहारापर्याप्ति ] जी० १२७ इंगालसोल्लिय [अङ्गारपक्व] ओ० ६४ आहारग आहारक] जी०६।३८ से ४०,४६, इंगिय [इङ्गित] ओ० ७०. रा० ८०४ ५०,५५ इंद [इन्द्र ] ओ०६८. रा० २८२. जी० ३।४४८, आहारगमीसासरीर [ आहार कमिश्रक शीर] ओ० ७५५,८४३,८४६,८४७,६३७,१०४८ इंदकील [इन्द्रकील] ओ० १. रा० १३० इंदखील [इन्द्रकील] जी० ३।३०० आहारगसरीर [आहारकशरीर] ओ० १७६ जी० । इंदगोव [इन्द्रगोप] रा० २७ ६।१७८ इंदगोवय [इन्द्रगोपक] जी० ३।२८० आहारगसरीरि [आहारकशरीरिन् ] जी० ६।१७०, इंदग्गह [इन्द्रग्रह] जी० ३१६२८ १७३,१८१ इंवट्ठाण | इन्द्रस्थान] जी०३१८४४,८४७ आहारत्त [आ हा रत्व] जी० ३।११०० इंदषण [इन्द्रधनुष ) जी० ३।६२६,८४१ आहारपज्जत्ति आहारपर्याप्ति ] रा० २७४,७९७ इंदभूइ [इन्द्रभूति ] ओ० ८२ जी० १२६, ३।४४० इंदमह [इन्द्रमह] रा०६८८,६८६ जी० ३१६१५ आहारभूय [आधारभूत ] रा० ६७५ इंदाभिसेग [इन्द्राभिषेक] रा० २८२,२८३. आहारय [आहारक] जी० ६।३६,४१ जी० ३।४४६,४४७ Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इंदाभिसेय-इन्भ ५७७ इंदाभिसेय [इन्द्राभिषेक ] रा० २७८ से २८१ इडि [ऋद्धि ] ओ० ४७,६५,६७,७२,८६ से १५, __ जी० ३१४४४,४४८,४४६ ११४,११७,१५५,१५७ से १६०.१६२,१६७. इंदिय [इन्द्रिय] ओ० ६३. जी० १३१४,२२,८६, रा० १३,१५ से १७,५५,५६,५८,२८०,२६१, ८८,६०,६६,१०१,११६,१२८,१३६, ३।५६२, ६५७,७७२,८०३,८०५. जी० ३१४४६,४४८, ६०२,९७६ ४५७,५५७,६०६ इंदियपज्जत्ति [इन्द्रियपर्याप्ति ] रा० २७४,७६७. इण [एतत् ] जी० ३।५ जी० १।२६; ३।४४० इणं [इदम्] ओ० ७२ इंदियपरिसंलीणया [इन्द्रियप्रतिसंलीनता] ओ० इति [इति] रा० ८. जी० ३।११८ ३७ इतिहास [इतिहास] ओ०६७ इंदु [इन्दु] रा० २५५. जी० ३।४१६ इत्तरिय [इत्वरिक ] ओ० ३२ इक्कमिक्क [एकक] जी० ३।१२७ इत्ति [इति] जी० १।१३६ इक्खाग [इक्ष्वाकु] रा० ६८८ इत्तो [इतस् ] ओ० १६५।१७. रा० २५. इक्खगपरिसा [इक्ष्वाकुपरिषद् ] ग० ६१ जी० ३।२७८ इक्खुवाड [इक्षुवाट] रा० ७८१,७८४,७८६, इत्थ [अत्र] जी० ३।२४४ ७८७ इत्थंठिय [इत्थंस्थित] ओ०७२ इगयालीस [एकचत्वारिंशत् जी० २१७६८ इत्थि [स्त्री जी० २०१०५ इच्छ [इष]-इच्छइ रा० ७५१-इच्छसि इथिकहा [स्त्रीकथा] ओ० १०४,१२७ रा० ७६५-इच्छसी जी० ३।८३८।२६ इत्थिया [स्त्री] ओ० ६२. जी० २।११,१५ से १६, -इच्छामि रा०६३-इच्छेज्ज रा० ७५१ ३७,६७ से ७२,७४,१४४,१४६ से १४८,१५१; -इच्छेज्जा रा० ७५१ ३९८ इच्छा [इच्छा] ओ० ४६ इथिलक्खण [स्त्रीलक्षण] ओ० १४६. रा० ८०६ इच्छापरिमाण [इच्छापरिमाण] ओ० ७७ इस्थिवेद [स्त्रीवेद] जी० १।१३६; २०७३,७४; इच्छिय [इष्ट] ओ० २३,६९. रा० ६६५ ६१२६ इच्छियपरिच्छिय [इष्टप्रतीप्ट ] ओ० ६६. इत्थिवेदग [स्त्रीवेदक] जी०६।१३० रा०६६५ इत्थिवेय [स्त्रीवेद] जी० १२५,१३३ इट्ठावाय [इष्टकापाक] जी० ३१११८ इत्थिवेयग [स्त्रीवेदक] जी० ६।१२१ इट्ठ [इष्ट] ओ० १५,६८,११७. रा० ६७२,६८५, । ओ०१५ ११७. रा० ६७२.४५. इत्थिवेयय [स्त्रीवेदक] जी० ६।१२२ ७१०,७५० से ७५३,७७४,७६६. इत्थी [स्त्री] ओ० ३७. जी०२।१ से ३,६,१०, जी० १११३५, ३१०६०,१०९६,११२४ १४,२० से ३०,३२ से ३६,३६ से ४६,५४, इटुतर [इष्टतर] जी० ३।१०७८, १०७६ ५६ से ६६,७०,७६,७८,८०,८३,८५.८६,६४, इट्ठतराय [इष्टतरक] रा० २५ से ३१,४५. १०५,१४१ से १५१; ३३१४८,१४६,१६४ इत्थीलिंगसिद्ध [स्त्रीलिङ्गसिद्ध] जी०१८ जी० ३१२७८ से २८४,६०१,६०२,८६०,८६६, इदाणि [इदानीम् ] जी० ३१८४३ ८७२,८७८,६५६,६६१ इन्भ [इभ्य ] ओ० २३,५२,६३. रा०६८७ से इड्रग [दे०] रा० ७७२ ६८६,६६५,७०४,७५४,७५६,७६२,७६४. इड्रय [दे०] रा० ७७२ जी० ३१६०९ Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ इन्भपुत्त-उक्कोस इन्भपुत्त [इभ्यपुत्र] रा०६८८,६८६,६६५ इम [इदम् ] ओ० ७. जी० १३१० इयाणि [इदानीम् ] ओ० ११७. रा० ७५३ इरियासमिय [ ईसिमित ] ओ० २७,१५२,१६४ इव [इव] ओ० २३. रा० ७०. जी० ३।४४८ इसिपरिसा [ऋषिपरिषद् ] ओ० ७१. रा० ६१, ७६७ इसिवादिय [ऋषिवादिक] ओ० ४६ इह [इह] ओ० २१. रा०६८७. जी० १११ इहं [इह ] ओ० २१. रा०६८७. जी० ३।११६ इहगत [इहगत ] रा०८ इहगय [इगत] ओ० २१. रा० ७१४ इहभव [इहभव ] ओ० ५२. रा०६८७ इहलोग [इहलोक ] ओ० २६ ईहा [ईहा] ओ० ११६,१५६. रा० ७४० ईहामइ [ईहामति ] रा० ६७५ ईहामिअउसभतुरगनरमगरविहगवालगकिन्नररुरसरभचमरकुंजरवणलयपउमलयभत्तिचिस [ईहामृगवृषभतुरगन रमकरविहग यालककिन्नररुरुसरभचमरकुञ्जरवनलतापद्मलता भक्तिचित्र] रा० ८३ ईहामिय [ईहामृग] ओ० १३. रा० १७,१८,२०, ३२,३७,१२६. जी० ३।२८८,३००,३११,३७२ ईयाल [एकचत्वारिंशत् ] जी० ३।७३६ ईरियासमिय [ ईसिमित] रा० ८१३ ईसस्थ [इष्वस्त्र] ओ० १४६. रा० ८०६ ईसर [ईश्वर] ओ० १८,२२,६३,६८. रा० २८२, ६८७,६८८,७०४,७५४,७५६,७६२,७६४. जी० ३।३५०, ४४८,५६३,६०६,६३७,७२३ ईसा [ईषा] जी० ३।२५४ ईसाण [ईशान] ओ० ५१,१६०, १६२. जी० ११५६; २।१६,४७,६६,१४८,१४६; ३१९१६,६२१,१०३८,१०४३,१०४४,१०५७, १०६५,१०६७,१०७१,१०७३,१०७५,१०७७ से १०८३,१०८५,१०८७,१०६०,१०६१, १०९३, १०६७ से १०६६,११०१,११०५, ११०७,११०६ से १११२,१११४,१११५, १११७,१११६,११२१,११२२,११२४,११२८ ईसाणगईशानक] जी० ३।१०४३ ईसि [ ईषत् ] ओ १३. रा० ४. जी०३।२६५ ईसिणिया [ईशानिका] ओ० ७०. रा० ८०४ ईसी [ईषत् ] ओ० ४७ ईसीपभारा [ईषत्प्रारभारा] ओ० १६१ से १६५ उ [तु] जी० २।१५१ उंबर [उदुम्बर] जी० ११७२ उंबरपुष्फ [उदुम्बरपुष्प] रा० ७५० से ७५३ उक्कंचण [दे०] रा०६७१ उक्कंचणया [दे०] ओ० ७३ उक्कलियावाय [उत्कलिकावात] जी० १८१ उक्कस [उत्कर्ष ] जी० ५।२८ उक्का [उल्का] रा० ७०,१३३. जी० ११७८; ३।११८,३०३,५६०,११२३ उक्कापात [उल्कापात] जी० ३।६२६ उक्कामुह [उल्कामुख] जी०३१२१६,२२६ उक्किट्ठ [उत्कृष्ट ] ओ० ५२. रा० १०,१२,५६, २७६,६८७,६८८. जी० ३.८६,१७६,१७८, १८०,१८७,४४५,८४२,८४५ उक्किट्रि [उत्कृष्टि] जी० ६।४४७ उक्किट्रिया [उत्कृष्टिका] रा० २८१ उक्किरिज्जमाण [उत्कीर्यमाण] रा० ३०. जी० ३।२८३ उक्कुडुयासणिय [उत्कुटुकासनिक] ओ ३६ उक्कोडिय [औल्कोटिक] ओ० १ उक्कोस [ उत्कर्ष ] ओ० ६४,६५,११४,१५५,१५७, १५६,१६०,१६२,१६७,१८७,१८८,१६५।५. जी० १११६,५२.५६,६५,७४,७९,८२,८६ से ८८,६०,६४,६६,१०१,१०३, १११,११२,११६. ११६,१२१,१२३ से १२५,१३०,१३३,१३५ Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्कोसपद-उच्छलंत ५७६ से १४०,१४२; २।२० से २२,२४ से ५०, उग्गत [ उद्गत ] जी० ३।३००,५६५ ५३, से ६१,६३,६५ से ६७, ७३,७६,८२ से उगतव [ उग्रतपस् ] ओ० ८२ ८४,८६ से ८८,६० से ६३,६७ १०० से १११, उग्गपुत्त [उग्रपुत्र ] ओ ० ५२. रा० ६८७ से ६८६, ११३,११४,११६ से १३३,१३६; ३८६,८६, ६१,१०७,११८ से १२०,१२६।२,१३६,१६१, उग्गमणुग्गमणपविभत्ति [उद्गमनोद्गमनप्रविभक्ति | १६२,१६५,१७६,१७८,१८०,१५२,१८६ से रा०८६ १६२.२१८,६२६,८४४,८४७,८६०,६६६, उग्गय [ उद्गत रा० १७,१८,२०,३२,१२६. १०२२,१०२७ से १०३६,१०८३,१०८४, जी० ३।२८८,३७२,५६० १०८७,१०८६,११११,११३१,११३२,११३४ उग्गलच्छाव [दे०]--उग्गलच्छामि रा०७५४ से ११३७; ४१३ से ११,१६.१७; ५।५,७,८, उग्गलच्छाविता [दे०] रा० ७५४ १० से १६,२१ से २४,२८ से ३०; ६।२,३, उग्गह [अवग्रह ] रा० ७४०,७४१ ६,८ से ११; ७।३, ५.६,१०,१२ से १८; . उग्धोसेमाण [उद्घोषयत् ] रा० १३,१५ ६।२ से ४,२३ से२६,३१,३३,३४,३६,४०,४१, उच्च [उच्च ] जी ० ३।३१३ ४३,४७,४६,५१,५२,५७ से ६०,६८ से ७३, उच्चंतग [उच्चन्तक] रा० २६. जी. ३१२७६ ७७,७८,८०,८३,८५,८६,६०,६२,६३,६६,६७, उच्चत्त [उच्चत्व] ओ० १८७. रा० ४०,१२७ से १०२,१०३,१०५,१०६,११४,११५,११७,११८, १२६,१३७,१८६,१८६,२०४ से २१२,२२२, १२३ से १२८,१३२,१३४,१३६,१३८,१४२, २२७,२३१,२३६,२४७,२५१,२५३. १४४,१४६,१४६,१५०,१५२,१५३,१६० से जी०३।१२७,२६१ से २६३,३००,३०७, १६२,१६४,१६५,१७१ से १७३,१७६ से १७८) ३५२ से ३५५,३५६,३६४,३६८ से ३७४, १८६ से १६१,१६३,१६४, १९८ से २००, ३७६,३८१,३८६,३६३,४०१,४१२,४१४, २०२ से २०४,२०६,२०७,२१० से २१४, ५६६,५६७,६३२,६३४,६४६,६४७,६५२६६१. २१६ से २१८,२२२ से २२५,२२८,२२६, ६६३,६७२ से ६७५,६७६,६८६,७०६,७१३, २३४,२३६,२३८,२४१ से २४४,२४६,२५७ ७३६,७३७,७५६,७६५,८३६,८८२,८८४, से २६०,२६२,२६४,२६६,२७१,२७३,२७७ ८८५,८८७,८८८,८६४,८६८,६००,६०७, स २८२ ६११,६१८,१०६७,१०६६,१०७० उक्कोसपद [उत्कर्षपद] जी० ३।१६५ से १९७ उच्चार [उच्चार] रा० ७६६ उक्कोसपय [उत्कर्षपद] जी० ३.१६५ उच्चारण [उच्चारण] ओ० १८२ उक्खित्त [उत्क्षिप्त] रा० ११५. जी० ३।४४७ उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिट्ठावणियासमिय उक्खित्तचरय [उत्क्षिप्तचरक] ओ० ३४ [उच्चारप्रस्रवणक्षवेलसिंघाणजल्लपारिष्ठापनिउक्खित्तणिक्खित्तचरय [उत्क्षिप्तनिक्षिप्तचरक कीसमित ] ओ० २७,१५२,१६४. रा०८१३ ___ ओ० ३४ उच्चावय [उच्चावच] ओ० १४०,१५४,१६५, उक्खित्ताय [उत्क्षिप्तक] रा० १७३,२८१. __ १६६. रा० ७६६,८१६. जी० ३।२३६,६८२ जी० ३।२८५ उच्छंग [उत्सङ्ग] ओ०६४ उक्खु [इक्षु] जी० ३।६२१ उच्छल [उत्+शल्]-उच्छति रा० २८१. उक्खेवण [उत्क्षेपन] ओ० १८० जी० ३।४४७ उग्ग [उन] ओ २३,५२. ग० ६८७ से ६८६,६६५ उच्छलंत [उच्छलत्] ओ०४६ Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८० उच्छायणया-उण्णयासण ७८८ उच्छायणया [उच्छादना] रा० ६७१ Vउट्ठा [उत्+ष्ठा]-उ? इ. ओ०७८. रा०६६५ उच्छु [ इक्षु] ओ० १. जी० ३८७८,६६१ -उ8ति. ओ० ८१.-उठेति. रा० ६० उच्छभ [ उत्+क्षिप[--उच्छुब्भइ. रा० ७८५ उठा [उत्था] ओ० ७८.८०.८१,८३. रा० ६०,६२, उच्छूढ [उत्क्षिप्त] ओ १६. जी० ३१५६६ ६६५,७००,७१८,७८० उच्छढसरोर [उत्क्षिप्तशरीर ] ओ० ८२. रा० ६८६ उद्विय [उत्थित ] ओ० २२. रा० ७७७,७७८, उज्जम [उद्यम ] ओ० ४६ उज्जल [उज्वल ] ओ० ५,८,१६,५७. रा० ३२, उट्ठत्ता [उत्थाय] ओ० ७८. रा०६० ६६,७०,२४६,७६५. जी० ३।११०,१११, उडव [उटज] तापसगृह जी० ३१७८ ११७,२७४,३७२,४१०,५८६ से ५६१,५६६ उडु [दे०-उडुइज्जइ. रा० ७८५ उज्जाण [उद्यान ] ओ० १,३७. रा० १२,६५४, उड़बइ [उडुपति] ओ० १६ ६५५,६७०,७०६,७११,७१३,७१६,७१६, उडुवति [उडुपति] जी० ३।५९६ ७२६. जी० ३१५५४ उड्ड [उर्व] ओ० ११६.१८२,१६२. रा० १२४, . उज्जाणपालग [उद्यान पालक] रा०७०७,७१३,७१४ १२७ से १२६,१३७,१८६,१८६,२०४ से २१२, उज्जाणपालय [उद्यानपालक] रा०७०६ २२२,२२७,२३१,२३६,२४७,२५१,२५३, उज्जाणभूमि [उद्यानभूमि [रा० ७३२,७३७,७४७ ७५३. जी० ११४५; ३.२५७,२६१ से २६३, उज्जालिय [उज्वालित] जी० ३।५८६ ३००,३०७,३५२ से ३५५,३५६.३६४,३६८ उज्ज [ऋजु] ओ० १६,४७. जी० ३।५६६,५६७ से ३७४,३७६,३८१,३८६,३६३,४०१,४१२, उज्जमइ [ऋजुमति ] ओ० २४. रा० ७४४ ४१४,५६६,६३२,६३४,६४६,६४७,६६१, उज्जुय [ऋजुक] ओ० १६. जी० ३।५६६,५६७ ६६३,६७२ से ६७५,६७६,६८६,७०६,७१३, उज्जुसेढी [ऋजुश्रेणी] ओ० १८२ ७३६,७३७,७५६,८३८।१२,८३६,८४२,८४५, उज्जोइय [उयोतित] जी० ३।५६८ ८८२,८८४,८८५,८८७,८८८,८६४,८६८, उज्जोएमाण [उद्द्योतयत् ] जी० ३।३०३ ६००,६०७,६११,६१८,१०३८,१०६७,१०६६, उज्जोय [उद्द्योत] ओ० १२. रा० २१, २३,२४, १०७०,११११ ३२, ३४,३६,१२४,१४५,१५७,२२८,२५७. __ उड्ढंजाणु [उर्ध्वजानु ] ओ० ४५.८२ जी० ३१२६१,२६६,२६६,२७७,३८७,५८६, उड्ढवाय [ऊर्ध्ववात] जी०११८१ ५६०,६७२ उड्ढीमुह [ उद्धी'मुख] जी० ३।८४२ ‘उज्जोव [उद्+द्युत]-उज्जोवेइ. रा० ७७२, उण्णइय [उन्नतिक] ओ०६ जी० ३।२७५,२८६, जी० ३.३२७ ---उज्जोवेति. रा० १५४. जी० ६३६,८५७,८६३ ३१३२७- उज्जोवेति. रा० १५४ जी० ३१७४१ उण्णत [उन्नत] रा० २४५ उज्जोविय [उयोतित] ओ० ५१,६३,६५ Vउण्णम [उत्+नम्]-उण्णमंति. रा० ७५ उज्जोवेमाण [उद्योतयत् ] ओ० ४७,७२. रा०७०, उण्णमित्ता [उन्नम्य] रा०७५ १३३. जी० ३।११२१,११२२ उण्णय [उन्नत ] ओ० १,१६. जी० ३।४०७,५९६, उट्ट [उष्ट्र] ओ०१०१,१२४. जी० ३।६१८ उट्टियासमण [उष्ट्रिकाश्रमण] ओ० १५८ उण्णयासण [उन्नतासन] रा० १८१,१८३, उट्टी [उष्ट्री] जी० ३।६१६ जी० ३।२६३ Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उण्णाम-उद ५८१ उण्णाम[उद्-नामय]---उण्णामिज्जइ. उत्तरपुरथिम [उत्तरपौरस्त्य] ओ० २. रा० २, जी० ३।७२६ १०,१२,१८,४१,५६,६५,२०६,२४६,२५१, उण्ड [उष्ण] ओ० ११७. रा० ७२८,७६६. २६०,२६२,२६५,२६७,२६६,२७२,२७३, जी० ३।११८,११६ २७६,६५८,६७०,६७८. जी० ३।३३६,३७२, उत्तप्प [उत्तप्त] रा० ७३२,७३७ ४०८,४१२,४२१,४२५,४२६,४३१,४३४, उत्तम [उत्तम] ओ० २३,५१. रा० २६२. ४३७,४३८,४४५,५५८,६३५,६५७,६६८, जी० ३।४५७,५६२,५९६ से ५६८ ६८०,६८३,७५० उत्तमंग [उत्तमाङ्ग] जी० ३।५६६ उत्तरपुरथिमिल्ल [उत्तरपौरस्त्य] जी० ३।२१७, उत्तर [उत्तर] ओ० २१. रा० १६,४०,४१,४४. २२२,५५६,६८६,६६८,६१८,९१६. १३२,१७०,१७३,२१०,२१२,२३५,२३६, उत्तरमंदा [उत्तरमन्द्रा, उत्तरमन्दा] रा० १७३. ६५८,६६४,६८५,७६५,८०२. जी० २।४८; जी० ३१२८५ ३५.२२,२७,६३,६६ से ७२,७७,२२६,२२७, उत्तरवेउव्विय [उत्तरवैक्रिय ] रा० १०,४७. २३२,२५७.२६५,२८५,३३६,३४५.३५८, जी० श६४,६६,१३५,१३६, ३।९१,९३,४४६, ३७३,३६७,३६८,५५८,५६२,५६६,५६६, १०८७,१०८८,१०६१,११२१,११२२ ५७७,५६५,५६७,६०१,६६५,६३८,६३६, उत्तरागार [उत्तराकार] रा० १६५ ६४७,६५७,६६०,६६१,६६५,६६६,६७३, उत्तरासंग [उत्तरासङ्ग] ओ० २१,५४. रा० ८, ६८०, ६८२,६८६,६६२,६६५,६६६,७०१, ५ .७०१. ७१४ ७११,७१३,७२२,७३६,७४५,७४७,८१२, ३६.७४५.७४७.८१२, उत्तरासंगकरण [उत्तरासङ्गकरण] ओ०६६. ८३९,८८२,८८५,६०२,१००४,१००६,१०१५ रा० ७७८ उत्तरंग [उत्तरङ्ग] रा० १३०. जी० ३।३०० उत्तरिज्ज [उत्तरीय] ओ० ६३ उत्तरकुरा [उत्तरकुरु] जी० २।१३; ३१५७८, से उत्तरित्तए [उत्तरीतुम्] ओ० १२२ ५९७,६०५ से ६२८,६३१,६३२,६३६,६६६, उत्तरिल्ल [औदीच्य औत्तराह] रा०४८,५६, ६६८,७०२ ५७,२६७,३०२,३०७,३१३ से ३१६,३१८, ३२१ से ३३१,३३६,३४१ ३४६,३७६,३६४, उत्तरकुरा [उत्तरकुरा] जी० ३।६१६६३७ उत्तरकुरु [उत्तरकुरु] जी० २३३,६०,७०,७२, ४३५, ४५३,४६६,५१४,५५६,५७४,६१६, १६,१३७,१३८,१४७,१४९, ३३२१८,२२८, ६३४. जी० ३१३३,३६,३८,२२७,२४०,२४८, ७६५ २५०,२५६,४६२,४६७,४७२ ४७८ से ४८१, उत्तरकुरुद्दह [उत्तरकुरुद्रह ] जी० ३।६६६ ४८३,४८६ से ४६६,५०१,५०६,५११,५२३, उत्तरकूलग [उतरकूलक] ओ० ६४ ५२४,५२६,५३०,५३७,५३८,५४४,५४५, उत्तरतर [उत्तरतर] ओ० ७६ से ८१ ५५१,५५२,६७३,६६७,६६८,६१६ उत्तरपच्चत्थिम [उत्तरपाश्चात्य ] जी० ३।२२५, उत्ताणग [उत्तानक] ओ०१ ६८८,७५३ उत्ताणयछत्त [उत्तानकछत्र] ओ० १६४ उत्तरपच्चथिमिल्ल [उत्तरपाश्चात्य ] जी० ३।२२१, उत्तालिज्जत [उत्ताड्यमान] रा० ७७ ६६६,६६७,६१८,६२२ उत्तासणय [उत्तासनक] जी० ३१८३ उत्तरपासग [उत्तरपार्वक] रा० १३० उत्तिमंग [उत्तमाङ्ग] ओ० १६. जी० ३१५६७ उत्तरपासय [उत्तरपार्श्वक] जी० ३१३०० उद [उद ] जी० ३।२८६ Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५२ उदंक-उप्पतित्ता उवंक [ उदङ्क] जी० ३।५८७ उदक [उदक] रा० २६. जी० ३।८१६ उदकजोणिय [उदकयोनिक] जी० ३७८७ उदग [उदक] ओ०६३,११७. रा० १५१,२७६, २८१. जी० ३।४४५,४४७,७२१,७२६,८५४, ८५७,९४६ उदगत्त [उदकत्व] जी० ३।७८७ उदगमच्छ [उदकमत्स्य ] जी० ३।६२६,८४१ उदगमाल [उदकमाल ] जी० ३।७६२ उदगरस [उदकरस ] रा०२३३. जी० ३।२८६, ८१६,८५४,६५६,६५७,६६४ ।। उदगवारग [उदकवारक] जी० ३।११८ उदग्ग [उदन] जी० ३।८३६ उदधि [उदधि] जी० ३।१०६,५६७ उदय [उदय] ओ० ३७,११६,११७ उदय [उदक] ओ० ६,१११ से ११३,११७,१३७, १३८. रा० ६,२८०,२८२,२६१,३५१. जी० ३।३२४,४४६,४४८,७२६,८६०,८६६, ८७२,८७८,६४६,६५५,६५७,६६१ उदयपत्त [उदयप्राप्त] ओ० ३७ उदर [उदर] जी० ३।५६६ | उदहि [उदधि ] ओ० ४८ उदि [उद्+इ]-उदेति. जी० ३।१७६ उदीण [ उदीची न] रा० १२४. जी० ३१५७७, उद्दा(ण) [दे० ] जी० ३१८७२ उद्दाइत्ता [अवद्राय, अव द्रुत्य] जी० ३।५७५ उद्दाल [अवदाल] रा० २४५. जी० ३।४०७ उद्दाल [उद्दाल] जी० ३।६३१ उद्दालक [उद्दालक] जी० ३१५८२ उद्दिट्ट [उद्दिष्ट] जी० ३१८३८।२५ उद्दिट्ठा [दे० उद्दिष्टा] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८,७५२.७८६. जी० ३१७२३,७२६ उद्देसिय [औद्देशिक ] ओ० १३४ उद्धसणा [उद्धर्षणा] रा० ७६६ उद्धसित्तए [उद्धर्षितुम् ] रा० ७६६ उद्धमत [उद्धमत्] जी० ३।७३१ उद्धम्ममाण [उद्हन्यमान] ओ० ४६ उद्घायमाण [उद्धावत् ] ओ० ४६ उद्धार [उद्धार] जी० ३।६७३ उद्धारसमय [ उद्धारसमय ] जी० ३।९७३ उद्धारसागरोवम[उद्धारसागरोपम] जी० ३।९७३ उधिय [उद्धृत ] ओ० १४. रा० ६७१ उद्ध्य [ उद्धृत] ओ० २,५५,६४. रा० ६,१२३२, ५०,५२,५६,१३२,१३७,२३१,२३६,२४७, २८१. जी० ३।८६,१७६,१७६,१८०,१८२, ३०२,३०७,३७२,३६३,३६८,४४५,४४७, १०३६ उदोणवाय [उदीचीनवात] जी० १८१ उदीर [उद्+ईरय]- उदीरइ. रा० ७७१. -उदीरेंति, जी ३।११० उदीरंत [उदीरयत्] रा० ७७१ उदीरण [उदीरण] ओ० ३७ उदीरिय [उदीरित] रा० १७३,७७१. जी० ३।२८५ उदु [ऋतु] जी० ३।६४१ उद्दडग [उदंडक] ओ० ६४ उद्दवणकर [उद्दवणकर] ओ० ४० उद्दवेत्ता [उद्रुत्य] रा० ७६१ उधुमंत [उद्ध्मायमान] रा०७७ उधुव्वमाण [ उद्धूयमान ] ओ०६५ उद्ध्य [उद्धृत] रा० १०,१२,५६,२७६ उन्नइय [उन्नतिक] जी० ३।११८,११६ उन्नय [उन्नत] ओ० १६ जी० ३।५६७,५६८ उपप्पुय [उपप्लुत] जी० ३।११६ उप्पइत्ता [उत्पत्य ] ओ० १६२. जी० ३.१०३८ उप्पण्ण [उत्पन्न ] ओ० १६६. रा० ७७१ उप्पण्णकोऊहल्ल [उत्पन्न कौतूहल्ल] ओ०८३ उप्पणसंसय [उत्पन्नसंशय ] ओ० ८३ उप्पण्णसड्ढ [उत्पन्नश्रद्ध] ओ० ८३ उप्पतित्ता [उत्पत्य] जी० ३।२५७ Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उप्पत्ति-उराल ५८३ उप्पत्ति [उत्पत्ति] ओ० १८४ उप्फेस [दे०] ओ० ६६ उप्पत्तिया [औत्पत्तिकी] रा० ६७५ उन्भाम [उद्+भ्रामय]-उब्भामेइ. उप्पय [उत्+पत्]-उप्पयंति. रा० २८१. रा० ७२७ जी० ३१४४७ उभिज्जमाण [उद्भिद्यमान] जी० ३।२८३ उप्पल [उत्पल ] ओ० १२,२२,१५०. रा० २३, उभओ [उभतस् ] ओ० ६६,११५. रा० १३१ से १३१,१४७,१४८,१७४,१६७,२७६ से २८१, १३८,२४५,२५६.२७६. जी० ३।३०१ से २८८,२८६,७२३,७७७,७७८,७८८. ३०७,३१५,३५५,४०७,४१७,६३२,६३६, जी० ३।११८, ११६,२५६,२६६,२८६,२६१, ७८८ से ७६०,८३६ ३०१,४४५, ४४७,४५४,४५५,५६८,६३७, उभय [उभय ] जी. ३१४४५ ६५६,६६४,७३८,७४३,७५०,७६३,७६५, उभयओ [उभयतस् ] जी० ३।८८६ ७७५,८४१,९३७ उम्मज्जग [उन्मज्जक] ओ० ६४ उप्पलगुम्म [उत्पलगुल्म] जी० ३१६८६ उम्माण [उन्मान] ओ० १५,१४३. रा० ६७२, उप्पलटिय [उत्पलवन्तिक] ओ० १५८ ६७३,८०१ उप्पला [उत्पला] जी० ३।६८६ उम्मि [मि] रा० ६८७ उप्पलुन्जला [उत्पलोज्वला] जी० ३।६८६ उम्मिलित [उन्मीलित] जी० ३।३०७ उप्पाइत्ता [उत्पाद्य] जी० ११५० उम्मिलिय [उन्मीलित] ओ० २२. रा० १३७, उप्पाइयपव्वय [औत्पातिकपर्वत] ओ० ५७ ७२३,७७७,७७८,७८८ उप्पार [उत्+पाद्य]-उप्पाडेंति ओ० १६६ उम्मिसिय [उन्मिषित] जी० ३।११८,११६ उप्पारणय [उत्पाटना] ओ० १०३,१२६ उम्मुक्क [उन्मुक्त] ओ० १९५२० रा० ८०६, उप्पातपव्वतग [उत्पातपर्वतक] जी० ३१९४८ ८१० उप्पातपन्वय [उत्पातपर्वत] जी० ३३६५७ उयगरस [उदकरस] रा० १७४ उप्पाद [उत्पाद] जी० ३३६१७ उयर [उदर] ओ० १६ उप्पाय [उत्पाद] जी० ३।१२६।१० उर [उरस्] ओ० ७१. रा० ६१,७६ उप्पायनिवायपसत्त [उत्पादनिपातप्रसक्त] उरग [उरग] जी० ३।१८ रा०१११,२८१. जी०३१४४७ उरगपरिसप्प [उरगपरिसर्प] जी० २१११३ उप्पायपव्वत [उत्पातपर्वत] जी० ३।२६३ उरत्थ [उरःस्थ] जी० ३१५६३ उपायपव्वय [उत्पातपर्वत] रा० १८१. जी० उरपरिसप्प [उरःपरिसर्प] जी०१।१०४,१०५, ३।२६२,८५७ १११,१२२ से १२४; २।२४,१२२; ३।१४३, उप्पायपध्वयग [उत्पातपर्वतक] रा० १८० १४४,१६२ उप्पि [उपरि] ओ० १६८. रा० २१. जी० ३८० उरपरिसप्पी [उर:परिसर्पिणी] जी० २१७,८,५२ उप्पिबलभूत [उत्पिञ्जलभूत ] रा० ७८ उरम्भ [उरभ्र ] रा० २४,२७. जी० २।२७७,२८० उिप्पील [उत्पीड़]-उप्पीले ति. जी० उरस्स [औरस्य ] रा० १२,७५८,७५६. ३१७६५ जी० ३।११८ उप्पीलिय [उत्पीडित] ओ० ५७. रा० ६६,६६४, उराल [दे० उदार] रा० ४०,७८,१३२,१७३, ६८३. जी० ३१५६२ ७५३ Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८४ उल्ल-उवणिविट्ठ उल्ल [ आर्द्र ] रा० ७५३ रा० १२, १३३,६८६, ७३२, ७३३, ७३७, ७५८, ७५६,७६१,७६५. जी० ३ ११८ √ उल्लंघ [ उत् + लङ्घ, ] – उल्लंघेज्ज ओ० १८० उल्लंघण [ उल्लङ्घन ] ओ० ४० उवगरण [ उपकरण ] ओ० ३३. रा० ७५६, ७६१ √ उल्लाल [ उत् + लालय् ] -- उल्लालेति. रा० १४ उबगाइज्जमाण [ उपगीयमान ] रा० ६८५,७१०, ८०४ उल्लालिय [ उल्लालित ] रा० १४ उल्लालेमाण [ उल्लालयत् ] रा० १३ उल्लिहिय [ उल्लिखित ] ओ० १५ रा० ६७२ उल्लोइय [दे०] ओ० २,५५. रा० ३२,२८१. जी० ३।३७२, ४४७ उल्लोग [ उल्लोक ] जी० ३।३५५,८८८ उल्लोय [ उल्लोक ] रा० ३४,६६,१३०,१६४, १८६,२०४ से २०७,२१३,२१६,२६७,२५१, २६०. जी० ३३००, ३०८, ३३७, ३५६,३५६, ३६४.३६८ से ३७१, ३७४, ३६६, ४१२, ४२१, ४२६,६३४,६४८, ६७३,६०४ उas [ उपचित] ओ० १६. जी० ३।५६६ उक्त [ उपयुक्त ] ओ० १५२ से १८४, १६५।११. रा० १५. जी० १ ३२,८७,१३२,१३३; ३।१०६,१५४,१११०; ६/३६,३७ उस [ उपदेश ] ओ० ५७. रा० ७४८ से ७५०, ७६५,७६६,७७०,७७३ उबएसरुइ [उपदेशरुचि ] ओ० ४३ उवओग [उपयोग] ओ० ४६. जी० ११४,९६, १०१,११६,१२८, १३३.१३६; ३।१२७ ४, १६०; ६६६ उवकरण [ उपकरण] ओ० ३३ उवकरणत्त उपकरणत्व ] जी० ३।११२८,११३० उवकारियलयण [ उपकारिकालयन ] रा० १८६ / उवक्खड [ उप + स्कृ] – उवक्वडावेस्संति. रा० ८०२ उवक्खड [ उपस्कृत ] जी० ३३५६२ उवक्खडावेत्ता | उपस्कृत्य ] २१० ७८७ उवग [ उपग] जी० ३८३८।२१ उवगत [ उपगत ] रा० ७६०. जी० ३।११६.३०३ उवगय | उपगत | ओ० ६३,७४५, १६५।१३. उवगारियालयण [ उपकारिकालयन ] रा० १८८. जी० ३।३६१ से ३६४ उब गिज्जमाण [ उपगीयमान ] रा० ७७४ उवगूढ [ उपगूढ़ ] रा० ७६,१७३. जी० ३।२८५ उवहिज्जमाण [ उपगूह्यमान ] रा० ८०४ उवचय [ उपचय ] रा० ७५२,७५३ उवचित [ उपचित] जी० ३।२५६ उवचिय [ उपचित ] ओ० २,१६,५५. रा० २०, ३२,३७,१३०,१७४,२८१. जी० ३।११८ ११६,२८६,२८८,३००, ३११,३७२, ४४७,५६६ उच्छड [ उपस्तृत ] रा० ७७४ उवजुंजिऊण [ उपयुज्य ] जी० ३।७७ उवज्झाय [उपाध्याय ] ओ० ४०, १५५ उवज्झायवेयावच्च [उपाध्यायवैयावृत्त्य ] ओ० ४१ / उवट्ठव [ उप + स्थापय् ] – उवट्टवेइ. रा० ७२५ -- उवटुवेंति. रा० २७६. जी० ३।४४५ उववेत्ता [ उपस्थाप्य ] ओ० ५८. रा० ६८१ उवट्ठाणसाला [उपस्थानशाला ] ओ० १८, २०, ५३, ५५,५८,६२,६३. रा० ६८३,६८५,७०८, ७५४,७५६,७६२,७६४ उट्ठावि [ उपस्थापित] ओ० ६२ af [ उपस्थित ] ओ० ७६,७७ उवणगरग्गाम [ उपनगर म] ओ० १६, २० उवणच्चिज्जमाण [ उपनृत्यमान ] रा० ७१०,७७४, ८०४ उवणिग्गय [ उपनिर्गत ] ओ० ५,८ / उवणिमंत [ उप + निमन्त्रय् ] उवणिमंतिज्जाह रा० ७०६ - उवणिमंतिस्संति. रा० ७०४ – उवणिमंतेज्जा. रा० ७७६. उवहिति ओ० १४६. रा० ८१० उवणिविट्ठ | उपनिविष्ट ] रा० १३८. जी० ३।२८८ Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवणी-उववण्णपुत्व २०२ ‘उवणी [उप+नी] ---उवणेइ. रा०६८३ उवयारियालेण [उपकारिकालयन] रा० २०१, ---उवणेति. रा० २८७. जी० ३:४५० -उवणेहि. रा०६८०-उवणेहिइ. रा०८०७ उवरि [उपरि] रा० १३०. जी० ३२६४ - उवणेहिति ओ० १४५. रा०८०५-- उरि [उपरि] ओ० १२. रा० ३७. जी० ३१७७ उवणेहिति ओ० १४६ उवरिचर [उपरिचर] जी० ३।११७ उवणीत [उपनीत] जी० ३।८८६ उवरिम [उपरितन] ओ० १६०. जी० ३।७१,७२, उवणीय [ उपनीत] रा० ७२०,७२३. जी० ३१७, ३४६,३५७ ३॥५६२,६०१ उवरिमगेविज्ज [उपरितन वेय ] जी० २०६६ उवणीयअवणीयचरय [उपनीतअपनीतरचरक] उवरिमगेवेज्ज [उपरितनप्रैवेय] जी० २१४८,१४६ ओ० ३४ उवरिमगेवेज्जग [उपरितनगवेयक ] जी० ३.१०५६ उवणीयचरय [उपनीतचरक ] ओ० ३४ उवरिल्ल [उपरितन] ओ० १६२,१६५. जी० उवणेय [उपनेय] रा० ७२० ३१६० से ७०,७२,६७४,७२५,७२८,१००३ से उववंस [उप+दर्शय --उवदंसिस्सामि. रा० १००७,११११ ७७१ --उवदंसेंति. रा० ७६. जी० ३१४४७ उिवलंभ [उप+लभ]--उवलभेज्जा. जी० -उवदंसेह. रा० ७३ ३३११८--उवलभिस्साम. रा० ७६८ उववंसित्तए [अदर्शयितुम् ] रा० ६३ उवदंसित्ता [उपदर्श्य ] रा० ७३ उवलद्ध [उपलब्ध] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, उवदंसेमाण [उपदर्शयत् ] रा० ५६ ७५२,७८६ उवदिट्ट [उपदिष्ट] ओ० ४६ उवलालिज्जमाण [उपलाल्यमान] रा० ६८५, उबद्दव [उपद्रव] जी० ३।६२४ ७१०,७७४,८०४ उवनच्चिज्जमाण उपनृत्यमान] रा०६८५ उलिप [उप-लिप्] -उवलिप्पइ. ओ० १५०. उवनिमंत [उप +नि- मन्त्रम् ]-उवनिमंतति. रा०८११-उवलिप्पिहिति. ओ० १५०. ८११ रा० ७१३ उवलित्त [उपलिप्त] आ० ५५,६० से ६२. रा० उवनिविट्ठ [उपनिविष्ट] रा० २० २८१,८०२. जी० ३।४४७ उवप्पयाण [उपप्रदान] रा० ६७५ उवलेवण उपलेपन] रा० ७७५ उवभोगपरिभोगपरिमाण | उपभोगपरिभोग- ‘उववज्ज | उप+पद्]-उववज्जइ. ओ० ८७ परिमाण ] ओ० ७७ -उववज्जति. ओ० ७३. जी० १५१ उवमा [उपमा] ओ० १३,२३,१६५।१६. रा० --उववज्जिहिति ओ० १४०--उववज्जिहिसि १५६,७५२,७५४,७५६,७५८,७६०,७६२, रा० ७५० ७६४. जी० ३।१२७,२३२ उववण्ण [उपपन्न ] ओ० ११७. रा० २७६,७५० उवमा (दे०] खाद्य-विशेष जी० ३१६०१ से ७५३,७६६. जी० ३१५३,११७,१२६।५, उवयार [उपचार] ओ०२,१५,५५. रा० १२,३२, ४३६,४४०,४४५,८३८।२१,८४३,८४६ ७०,२८१,२६१,२६३ से २६६,३००,३०५, उबवण्णग | उपान्नक | रा० २७६ से २७८,२८४, ३१२,३५४,६७२,८०६,८१०. जी. ३७२, २८७,६६६. जी० ३।४४३ से ४४५,८४२, ४४७,४५७ से ४६२,४६५.४७०,४७७,५१६, ५२०,५५४,५८०,५६१,५६७ ८४५ उवयारियालयण [उपकारिकालयन] रा० २०३ उववण्णपुष्व [उपपन्नपूर्व] जी० ३१५३,६७५, Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८६ उववत्त-उब्धिग्ग ११२८,११३० उववत्त [उपपत्तृ] ओ० ७२,८६ से ६५,११४, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७ | उववन्नपुव्व [उपपन्नपूर्व ] जी० ३।१२७ उववात [उपपात] जी० १।१२८; ३८८,८४४, ८४७,८५६,८८०,६४६,१०८२ उववातसभा [उपपातसभा] रा० २७४. जी० ३४३६ उववाय [उपपात] ओ० ८६ से १५,११४,११७, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० ८१५. जी० १११४,५१,५६,६५.७६,८२,८७,६६, १०१,११६,१३३,१३६, ३।१२७।३,१२६।६, उववायसभा [उपपातसभा] रा० २६०,२६२, २६६,२७७,४१४ से ४१६,४३५,४५३,४५४, ७६६. जी० ३१४२१,४२४,४२५,४४३,५२६ से ५३१ उवविणिग्गय [उपविनिर्गत] जी० ३१२७४ उवविस [उप+विश्]-उवविसइ. रा०७४८ -उवविसामि. रा. ७४७ उववेत [उपपेत] जी० ३।६०१,६०२,८६०,८६६, ८७२,८७८ उववेय [उपपेत] ओ० १,१५,१४३. रा० ६६,७०, १७३,६७२,६७३,६७५,८०१. जी. ३.२८५, ५८६ से ५६६ उवसंत [उपशान्त] ओ० ६१. रा० ६,१२,२८१. जी० ३।४४७,७६५,८४१ उवसंतया [उपशान्तता] ओ० ११६ उवसंपज्जित्ताणं [उवसंपद्य ] ओ० ३७. रा० ६६६. जी० ३।८४३ f] ओ० ११७,१५४,१६५,१६६. रा. ७०३,७६६,८१६ उवसम [उपशम] ओ० ७६ से २१ उवसम [उप-शम्]- उवसमंति रा० १२ -उवसामंति रा०१२ उवसमित्ता [उपशम्य] रा०१२ उवसामित्ता [उपशाम्य] रा० १२ उवसोभित [उपशोभित] जी० ३।२६५,३०२, ३४६ उवसोभिय [उपशोभित] ओ० ६४. रा० २४,४०, ५१,१२८,१३२,१६५,१७१,२३७. जी० ३१३०६,३५३,३५७,३६० उवसोभेमाण [उपशोभमान] रा० ४०,१३२, १३५,१६१,२३६,७८२. जी० ३।२६५,३०२, ३०५,३१३,३६८,५८०,५८१ उवसोहिय [उपशोभित ] जी० ३।२७७ उवस्सय [उपाधय] रा० ७१६ उवहाण [उपधान ] ओ० ३० उवहिविउस्सग्ग [उपधिव्युत्सर्ग] ओ० ४४ उवागच्छ [उप-आ-गम् -उवागच्छइ. ओ० २०. रा० ४७. जी० ३।४५७ --उवागच्छंति. ओ० ५२. रा० १०. जी० ३।४४२-उवागच्छति रा० १४. जी० ३।४४३--उवागच्छामि. रा० ७५४ उवागच्छिता | उपागम्य ] ओ० २०. रा० १०. जी० ३।४४२ उवागय [उपागत ] ओ० १६,२० उवाय [उपाय ] ओ० १८२ उवायण [उपायन] रा० ७२०,७२३ Vउवालंभ | उप+आ-लम्]-उवालब्भइ. रा० ७६७ उवालभित्ता [उपालभ्य ] रा० ७६७ उवासगदसाधर [उपासकदशाधर] ओ० ४५ उवे उप+६]-उवेइ ओ० ११८.-उति . ओ०७४. जी० ३१६०३ उव्वट्टणा [ उद्वर्तना] जी० ११६६; ३३१२१,१२७। ५,१५६; ६३११३ उम्वट्टित्ता [उद्वर्त्य] जी० ११५४ उव्वट्टिय [उद्वृत्त] जी० ३।११८,११६,१२१ उव्वलण [उद्वलन] ओ० ६३ उब्विग्ग [उद्विग्न ] ओ० ४६. जी० ३।२१६ एक्सपराग गा . " Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उब्विद्ध-ऊसास ५८७ उविध [उद्विद्ध] ओ०१ उसिय [उत्सृत] रा० १३२. जी०३।२०२ उम्वेग [उद्वेग] जी० ३।६२८ उसीर [उशीर] रा० ३०. जी० ३१२८३ उब्वेष [उद्वैध] जी० ३१७३६,७६४,६००,६०१, उसु [इषु] रा० ७५६. जी० ३।६३१ ६१०,६११ उस्सण्ण [दे०] बाहुल्यतः ओ० ८७. जी० ३।९६४ उव्वेह [उद्वेध] रा० २२७,२३१,२३३,२३६,२४७, उस्सप्पिणी [उत्सपिणी] जी०१:१३६,१४०; २६२. जी० ३.३८६,३६३ ३६५,४०१,४२५, २८८,१२० ; ३।६०,१६५,८४१,१०८५; ५८, ६३२,६३६,६४२,६५३,६६१,६७२,६७६, ६,२३,२६, ६२३,४०,६७,२५७ ६८३,६८६,७२३,७२६,७८८,७६४,७६५, उस्सप्पिय [उत्सर्पित] जी० ३१५८९ ८३६,८८२,६१८ उस्सविय [उच्छ्रित] रा० ७५० से ७५३ उसडु [उत्सत] रा० १८० उस्सास [उच्छ्वास] ओ० १५४,१६५,१६६. रा० उसड्डय [उत्सृतक] रा० १८१ ७७२,८१६. जी० ३।१२८ उसत्त [ उत्सत्त] ओ०२,५५. रा० ३२,२८१,२६१, उस्सासत्त [उच्छ्वासत्व] जी० ३।१०६६ २६४,२६६,३००,३०५,३१२,३५५. जी० उस्सिय [उच्छ्रित ] जी० ३।६EE ३।३७२,४४७,४५६,४६१,४६२,४६५,४७०, उस्सुय [उत्सुक ] ओ० ५१ ४७७,५१६,५२० उस्सेष [उत्सेध] जी० ३।६७६,७८६,७६५,८६६ उसभ [ ऋषभ, वृषभ ] ओ० १३,१६,५१. रा० १७. उस्सेह [उत्सेध] ओ० १३,८२. रा० ६,१२,१३०, १८,२०,३२,३७,१२६,१४१,१६२. जी. २२५.२५४,२७६. जी० ३।३००,३८४,४१५, ३।२७७,२८८,३००३११,३१८,३७२,५६३, ४४२,७८६,७६४ ५६५ से ५६७ उसभकंठ [ऋषभकण्ठ ] रा० १५५,२५८. जी. ऊण [ऊन] रा० १८८. जी० २।५७,६१,७३ ; ३.५, ३।३२८ ३४,३६,४१,४३,४४,५६७, ४१६५७,२८%; उसभकंठग [ऋषभकण्ठक ] जी० ३४१६ ७.३,५,६,१०,१२,१५,१७६२ से ४,४०,५१, उसभज्झय [ऋषभध्वज] रा० १६२. जी० ३।३३५ १७१,२३४,२३६,२३८,२४३,२६६,२७१, उसभनाराय [ऋषभनाराच] जी० १।११६ २७३,२७६,२८१ उसभमंडलपविभत्ति [ऋषभम डलप्रविभक्ति ] रा० ऊणग ऊनक] जी० २।३०,३१,५८ से ६०,१३९% ३२१८,६२६ उसमा | ऋषभा] रा० २२५. जी० ३।३८४,८६६ ऊणय [ऊनक] ओ० ३३. जी० २।३२ से ३४ उसिण | उष्ण] जा० ११५, २०२२,११२ से ११५, ऊणिया [ऊनिका] ओ० १६५१६ ११६ ऊरु [ऊरु ] ओ० १६. रा० १२,२५४,७५८,७५६. उसिणभूत [उष्णीभूत ] जी० ३।११६ जी० ३।११८,४११,५९६ से ५६८ उसिणभूय [उष्णीभूत ] जी० ३।११६ ऊरुजाल [ ऊरुजाल] जी० ३१५६३ उसिणवेदणा [उष्णवेदना] जी० ३।११२,११४, ऊसड [ उत्सृत] जी० ३।२६२ ऊसविय [उच्छ्रित] ओ० ६७ उसिणवेदणिज्ज [उष्णवेदनीय] जी ३.११८ ऊसास [उच्छ्वास] ओ० ११७. रा० ७६६. उसिणोदय [उष्णोदक] जी० ११६५ ३३१२७३३ ६१ Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८८ ऊसासत्त-एगत्त ऊसासत्ता [ उच्छ्वासता] जी० ३।६७ एक्केक्क [एकैक] जी० ३१६६७ ऊसित [उच्छित] जी० ३।२१८,३०७,३५५,६३४, एक्केक्कय [एकैकक] जी० ३१८३८।४ ६४२,७५४,७६२,७६८.७७०,७७२.१००८ एक्कोणवीसति [एकोनविंशति] जी० ३.५७७ ऊसितोदग [उच्छितोदक] जी० ३ ७८३,७८४ एक्कोदक [एकोदक] जी० ३.७६५ ऊसिय [उच्छित ] ० ४६,५५,६४,१६२. एक्कोदग [एकोदक] जी० ३७६५ रा० ५०,५२,५६,१३७,१८६,२०४ से २०६, एग [एक ओ० १६. रा० ३. जी. २१० २०८,२८१,७७४,७८६. जी० ३ ३५६,३६४, एगइय एकक ओ० २३,४५,५२,७८,८८,१४०, ३६८ से ३७१,४४७,५६७,५६८,६५३,६७३, १५६,१६५,१६६, रा० १६,१७४,२८१,६८७, ७५४,७६२,७६६ ६८६. जी० १९६,११६ ३३८६,१०४,४४७, ऋच्छज्य [ऋ क्षध्वज ] १० १६२. जी० ३३५ ४५५ एगओ [एकतस् ] रा०८४,१७३ एगओखह [एकतःखह] रा०८४ एइय [एजित] रा० १७३. जी० ३१२८५ एगओचक्कवाल [एकतश्चक्रवाल] रा० ८४ एऊणपण्ण [एकोनपञ्चाशत् ] जी० ३.८३२ एगओवंक [एकतोवक्र] रा० ८४ एक [एक] जी० १९७२ एगंत | एकान्त ] ओ० ११७. रा० ६,१२,१५, एकत्त [एकत्व] जी० ३३११० ७१३,७६५ एकत्तीस [एकत्रिंशत्[ जी० ३.६३४ एगंतवंड एकान्तदण्ड ] ओ०८४,८५,८७ एकाणउति [एकनव त] जी० ३८१२ एगंतबाल [एकान्तबाल] ओ० ८४,८५,८७ एकावलि [एकावलि] जी० ३।४५१ एगतसुत्त एकान्तसुप्त ] ० ८४,८५,८७ एकासीइ [एकाशीति] जी० ३१७०६ एगखुर [एक बुर जी० १११०३,१२१, २१६ एकासोति [एकाशीति ] जी० ३७९४ एगगुण | एकगुण] जी० ११३५,३७,४० एकाह [एकाह] जी० ३ १७६,१७८,१८०,१८२ एगग्ग | एकात्र] रा० १५ एकूणवीसति [एकोनविंशति जी० ३.५७७ एगच्च [एकार्च ] ओ० ७२,१६७ एकोदग [एकोदक] जी० ३७६५ एगच्चाओ एकस्मात् ] ओ० १६१ एक्क [एक ओ०३. रा०४. जी० २।४८ । एगजाय एकजात ओ० २७. रा ८१३ एक्कतीस [एकत्रिंशत् ] ओ० ३३. रा० २०७. एगजीव एकजीव जी० ११७२ जी० ३।६१ एगजीविय एकजीविक] जी० ११७२ एक्कवीस | एकविंशति] जी० ३१७३६ एगट्ट [एपष्टि] जी० ३१७६८ एक्कार [एकादशन् ] जी० ३ १००२ एगट्ठिय [एकास्थिक] जी० १७०,७१ एक्कारस [ एकादशन् [ रा० १७३. जी० ३।२८५ एगतिय [एकक] रा० १७४,१८५,२८१,२८६, एक्कारसम [एकादश] ओ० १४४. रा०८०२ २६०,६८८,६८६. जी० १४१३३; ३८६, एक्कारसमासपरियाय [एक दशमासपर्याय ] १०४,१७६,१७८.१८०,१८२,२८६,२६७, ओ० २३ ४४७,५७५,५७६,७१६,७२०,८०६,८०७, एक्कासीत एकाशीति | जी० ३।६३२ ८५७,१०८० एक्कासीय [एकाशीति] जी० ३.२२६।४ एगतो [एकतस्] रा० २७६. जी० ३।२८५,४४५ एक्किक्किय [एकैकक] रा० ८२ एगत [एकत्व] जी० ३.११०,१११५,१११६ Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगत्तवियक्क-एमेव ५८४ एगत्तवियक्क [एकत्ववितर्क ] ओ० ४३ एगूरुइया [एकोरुकिका] जी० २११२ एगत्ताणुप्पेहा [एकत्यानुप्रेक्षा] ओ० ४३ एगूरुय [एकोरुक] जी० ३।२१६ से २२२,२२७ एगत्तिभावकरण [एकत्वीभावकरण] ओ० ६६,७० एगूरुयदीव [एकोरुकद्वीप जी० ३।२२२,२२७ एमत्तीभावकरण [एकत्वीमावकरण] रा० ७७८ । एगोणचत्तालीस [एकोनचत्वाशित् ] जी० ३।७९६ एगदंत [एकदन्त ] जी० ३।५६६ एगोणवीस [एकोनविंशति] जी० ३।१०५३ एगदिसा [एकदिशा] रा०६८८ एगोदग [एकोदक] जी० ३।७६५ एगपदेसिया एकप्रादेशिक जी० ३१७२३,७२६ एगोरुय [एको रुक] जी० ३१२१६,२१७,२२६ एगभूय [एक भूत्] रा० ११६ एगोरुयदीव [एकोरुक द्वीव] जी० ३२१७,२१८ एगमेग [एकक] रा० १२६,१६२ से १६४,१६१. एज्जमाण [एजमान] रा० ४०,१२३,१३२. जी० ३.१०६,२६५,३५४,३५५,६३२,६६१, जी० ३।२६५ ७२३,७२६,६०१,१०००,१०२३ ‘एड [इल एड्].-.एडेइ. रा० ७६५-एडेति. एगराइया [एक रात्रिकी ओ० २४ रा० १२---एडेइ. रा०६ एगसट्टि [एकषष्टि] जी० ३।११० एडित्ता [एलित्वा,एडित्वा] ओ० ११७. रा० १२ एकसाडिय [एकसाटिक] ओ० २१,५४,६६. एडेत्ता [एलित्वा,एडित्वा] रा०६ रा० ८,७१४,७७८ एणी [ एणी] ओ० १६. जी० ३१५९६ एगसालग | एकश लक] जी. ३१५६४ एतारूव [एतद्रूप] जी० ३।२७८ से २८२,२८४, एगसिद्ध [एकसिद्ध] जी० ११८ २८५,३८७,४४२,८६०,८६६,८७२,८७८ एगागार [एकाकार] जी० १११०६,११६,३१८ से एत्तो [इतस् ] ओ० ३३. रा० २६. जी० ३१८४ ११,२१३,६५४ एत्थ [अत्र] ओ० १३. रा० ३. जी० ३७७ एगाभिमुह [एकाभिमुख रा०६८८ एमहज्जुईय [इयन्महद्युतिक] ० ६६६ एगावलि एकाबलि ] ओ० २४,१०८,१३१. एमहज्जुतीय [स्यामहद्युतिक] जी० ३।५६५ रा० ६६,२८५. जी० ३।५६३ एमहब्बल | इयन्महाबल ] रा० ६६६. एगावलिपविभत्ति [एकावलिप्रविभक्ति ] रा० ८५ जी० ३।५६५ एगासीइ एकाशीति जी० ३७०६ एमहाणुभाग | इयन्नहानुभाग] रा० ६६६. एगाह । एकाह] जी० ३।८६,११८,११६ जी० ३।५६५,६४० एगाहच्च [ एकाहत्य] रा० ७५१,७६७ एमहायस [इयन्महायशस्] रा०६६६. एगाहिय एकाहिक जी० ३१६२८ जी० ३१५६५ एगिदिय एकेन्द्रिय ] जी० ११५५; २।१०१,१०२, एमहालत यन्म त् जी० ३।८६,१७६,१७८ ११०,१११,१२०,१२६,१३६,१३८,१४६,१४६; एमहालय | इयन्महत् ] रा० ७३२,७३७. ३।१३० से १३५,१११५, ४१ से ३, ५ से जी०३।१८२,१०८० ७,१०,११,१६,१६ से २२,२५, ६।२ से ७, एमहासोक्ख यन्महासौख्य रा० ६६६. १६७,१६६,२२१,२२२,२२,२३१ जी० ३।५६५ एगुणयाल एकोनचत्वारिंशत् | जी० ३१७६४ एगणपण्ण एकोनपञ्चाशत् रा० ७१. एमहिड्डिय यन्महधिक] जी० ३।६३८ जी० ११८८ एमहिड्डीय श्यन्महधिक] १० ६६६. जी० ३१५६५, एगूणवीस [एकोनविंशति ] जो० ३।१०५३ ५६८,७०१,७६४ एगणासोति [एकोनाशीति] जी० ३।२१८ एमेव [एवमेव] जी० ३।२२६ Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४० एम्महिड्डीय [ इयन्महधिक ] जी० ३।६६४ एय [ एतत् ] ओ० २१. रा० ६३. जी० १।११ √ एय [ एज् ] – एयइ. रा० ७७१ - एयंति. जी० ३७२६ एयंत [ एजमान ] रा० ७७१ एय [ एतद्रूप ] रा० ६३,६५ एवाब [ एतद्रूप ] ओ० ३०,९२,१४४,१५८, १५६. ० ६, १६, २०, २५ से ३१,३७,४५, १३५, १४९, १७३, १७५, १६०, २२८,२४५, २५४,२७०,२७५,२७६,६८८, ७३२, ७३७, ७३८,७४६, ७५१,७६८, ७७७,७६१, ७६३, ८१६. जी० ३१८४,८५,११८, २६४, २७८ से २८३, २८५,२८७,३०५, ३११,३२२,४०७, ४१५,४३५,४४१,५६७,६०१,६०२, ६४३,६५४ एरणवत [ ऐरण्यवत ] जी० २।१४५ रण्णव [ ऐरण्यवत ] रा० २७६, जी० २।१३, ३१,५८,७०,७२ एरवत [ ऐरवत ] जी० २।६६,१३६, १४७, १४६ एरव [ ऐरवत ] रा० २७६. जी० २०१४,२८, ५५,७०,७२,११५,१२३; ३।२२६, ४४५, ७६५ रावणद्दह [ ऐरावणद्रह ] जी० ३।६६७ एरिस [ ईदृश ] ओ० ७६ से ८१ एरिस | ईदृशक ] जी० ३।१०९ एल [एड ] जी० ३ | ६१८ एला [एला ] रा० ३०, १६१,२५८,२७६. जी० ३।२८३, ३३४, ४१६ एलिगा [ एडिका ] जी० ३।६१६ एलुय [ एलुक ] रा० १३०. जी० ३।३०० एव [एव ] रा० १० एवs [ एतावत् ] जी० ३।१८२,८३८२,३ एवं [ एवम् ] ओ० २०. रा० ८. जी० १।१० एवंभूत [ एवंभूत ] जी० ३।२८५ एवति [ एतावत् ] जी० ३१७६, १७८, १८०, ६७२,६७३ एवमेव [एवमेव ] रा० ७०३. जी० ३।१७४ एम्म हिडीओ मित्ता एवमेव [ एवमेव ] ओ० १५० रा० १२. जी० ३ ११८ सणासमिय [ एषणासमित ] ओ० २७,१५२, १६४. रा० ८१३ एसणिज्ज [ एषणीय] ओ० ३७,१२०,१६२. रा० ६६८,७५२,७७६,७८६ सुम [ इयत्सूक्ष्म ] जी० ३।६६३,६९७ ओ ओइण [ अवतीर्ण ] ओ० ५१ ओगाढ [ अवगाढ] रा० ६८४,६८५,७००, ७०६. जी० १।३३, ४२, ४३, ५०, ३१२२ / ओगाह [ अव + गाह, ] — ओगाहइ. जी० ३।११८ - ओगाहति. जी० ३।११६ - ओगा हेंति. ओ० ११७ antar [ अवगाहना ] ओ० १९५४ से ८. रा० ७६६. जी० १११४, १६,७४,८६,८८, ६०,६४,१०३, १११, ११२, ११६,११६, १२१, १२३ से १२५,१३०, १३५; ३।९१,२३६, ४३६, ६६६, १०८७, १०८६ ओगाहित्तए [ अवगाहितुम् ] ओ० ६६ ओगाहिता [ अवगाह्य ] ओ० ११७. जी० ३ ७७ गाता [ अवगाह्य ] ओ० ११७. रा० २४० ओहिता [ अवगृह्य ] ओ० २१. रा०प ओह [ अवग्रह] ओ० २१,२२, ५२. रा० ८,६, ६८६,६८७६८६९,७०६,७११,७१३ ओग्गिह [ अव + ग्रह ] - ओग्गिहइ. रा० ६८६ ओघ [ ओघ ] रा० १३, १४ ओचूल [ अवचूल ] ओ० ५७ ओच्छण [ अवच्छन्न ] ओ० ६ ओच्छन्न [ अवच्छन्न ] ओ० ६. जी० ३।२७५ ओट्ठ [ ओष्ठ ] ओ० १६,४७. रा० २५४. जी० ३।४१५,५६६, ५६७, ८६० gora [ ओष्ठछिन्नक ] ओ० ६० / ओणम [ अव + नम् ] -- ओणमंति. रा० ७५ ओणमत्ता [ अवनम्य ] रा० ७५ Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओणय-ओहस्सर ५६५ ओवइय [दे०] जी० ११८८ ओवणिहिय [औपनिधिक, औपनिहितिक] ओ० ३४ ओवम्म [औपम्य ] ओ० १६५।१७. जी० ३।१२७।५ ओवय [अव+पत्] —ओवयंति. रा० २८१. जी० ३१४४७ ओवयमाण [अवपतत्] रा० ५६ ओवहिय [औपधिक] ओ० १६१,१६३ ओवासंतर [अवकाशान्तर] जी० ३।१३,१६,२१, २६,२७,३०,३२,६५,६७,१७६,१७८,१८०, १८२,१०६२ से १०६४ मोविय दे०] परिमित ओ०६३. रा० १७, १८,६९,७०. जी० ३३५६३ ओवील [अव+पीड्]-ओवीलेति. जी० ३७६५ ओस [दे० अवश्याय] जी० १०६५ ओसण्णकारण [अवसन्नकारण] जी० ११५०,६५, ओणय [अवनत] ओ०७० ओत्यय [अवस्तृक] ओ० ६३,६५ ओषण [ओदन] जी० ३।५६२ ओषार [अव+धारय] --ओधारेंति. रा० ७१३ ओभास [अव+भास्]-ओभासइ. जी० ३१३२७ ओभासेइ. रा० ७७२ –ओभासेंति. रा० १५४. जी० ३।३२७ -ओभासेति. रा० १५४.जी. ३१७४१ ओभासमाण [अवभासमाण] जी० ३१२५६ ओभिज्जमाण [उद्भिद्यमान] रा० ३० ओमत्त [अवमत्व[ रा० ७६२,७६३ (ओमुय [अव+मुच्] -ओमुयइ. ओ० २१. रा० ७१४ ओमुइत्ता [अवमुच्य] ओ० २१ ओमोदरिया [अवमोदरिका] ओ० ३३ ओमोयरिया [अवमोदरिका] ओ० ३१ ओयंसि [ओजस्विन् ] ओ० २५. रा० ६८६ मओयविय [दे०] ओ० १६,४७. रा० ३७,२४५. जी० ३३३११,४०७,५९६ ओराल [दे० उदार] ओ० ८२. रा० ३०,१३२, १३५,१७३, २३६,६८६. जी० ११७५,८३, १३६; ३।२६५,२८३,२८५,३०२,३०५, ७२६,७८५,७८६,८४१ ।। ओरालिय [औदारिक] ओ० १८२. जी० १११५, ५६,६४,७४,७६,८२,८५,१०१,११६,१२८, १३० ओरालियमीसासरीर [औदारिकमिश्रकशरीर] ओ० १७६ ओरालियसरीर [औदारिकशरीर] ओ० १७६ ओरालियसरीरि औदारिकशरीरिन् ] जी० ६।१७०,१७१,१७६,१८१ ओरोह [अवरोध] ओ०१ ओलंबियग [अवलम्बितक] ओ०६० ओलित्त [दे० उपलिप्त] ओ० ५२. रा० ६८७ से ६८६ -e -vo ओसण्णग [अवसन्नक] ओ०६० ओसण्णदोस [उत्सन्नदोष] ओ० ४३ ओसप्पिणी [अवसर्पिणी] जी० १११३६,१४०; २।१२०, ३६०,१६५,८४१,१०८५; १८, ६,२३,२६, ६।२३,४०,६७,२५७ ‘ओसर [अप+स]- ओसरति. रा० २६२. जी० ३।४५७ ओसरित्ता [अपसृत्य ] रा० २६२. जी० ३।४५७ ओसह [ओषध] ओ० १२०,१६२. रा०६९८, ७५२,७८६ ओसहि [ओषधि] रा० १५२,२७६,२८०. जी० ११६६; ३१३२५,४४५,४४६,४४८ ओसारिय [अवसारित] ओ० ५७ ओहबल [ओघबल] ओ० ७१. रा०६१ ओहय | उपहत, अवहत ] ओ० १४. रा० ६७१, ओहस्सर [ओघस्वर] रा० १३५. जी० ३।३०५, ५९८ Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओहाडणी-कंदणया का ओहाडणी [ दे० अवघाटनी] रा० १३०,१६०. कंचणमय [काञ्चनमय] जी० ३१६६१ जी० ३।२६४,३०० कंचणिया [काञ्चनिका] ओ० ११७ ओहि [अवधि] जी० ३।१०७, ११११ कंचि [ किञ्चित्] ओ० ११६,११७. रा० ७६५ ओहि --ओह [ओघ] रा० ६,१२ कंची काञ्ची] जी० ३१५६३ ओहिणाण [अवधिज्ञान] ओ० ४०. रा० ७३६, कंचुइ [कञ्चुकिन् ] रा०६८८ से ६६०,८०४ ७४३,७४६ कंचुइज्ज कञ्चुकीय ] ओ० ७० ओहिणाणलद्धि [अवधिज्ञानलब्धि ] ओ० ११६ कंचय [कञ्चुक] २६० ६६,७० ओहिणाणविनय [अवधिज्ञानविनय] ओ० ४० कंटक [कष्टक] जी० ३।६६२ ओहिणाणि [अवधिज्ञानिन् ] ओ० २४. कंटय [कण्टक] ओ० १४. रा० ६७१. जी० जी० ११११६,१३३; ६।१६१,१६५,१६६, ३८५,६२२ १६७,१६६,२०४,२०८ कंठ कण्ठ ] ओ० ७१. रा० ६१,६६,७६ ओहिवंसणि [अवधिदर्शनिन् ] जी० १।२६, ८६; कंठमुरवि [ दे० कण्ठमुरवी] ओ० १०८,१३१. ६।१३१,१३४,१३८,१४० रा०२८५ ओहिनाणि [अवधिज्ञानिन् ] जी० ११६६; ६१५६ कंठसुत्त [कण्टसूत्र] जी० ३.५६३ ओहिय [औधिक] जी० २।५१; ५।२४,२६.३० कंठेगुण [कण्ठेगुण] रा० १३१,१४७,१४८,२८०. ओहीनाण [अवधिज्ञान ] जी० ३३११११ जी० ३।३०१,४४६ कंठमालकड [कृतकण्ठेमाल] ओ० ५२. रा० ६८७ से ६८६ क [क] रा० ६५ कंड [काण्ड ] रा० ६६४. जी० ३१६,७,९,१०,१६, कइ [ कति ] ओ० १७३. रा० ७६९,७७६. १७,२४,२५,६० से ६३,५६२ जी० १६१५,२१ से २३,२६,२७,६४; ३।७६, कंडग [काण्डक] रा० ७५८,७५६ १६६ से १७१,७४८,८०६ कंडय [काण्डक] रा० ७५८,७५६ कइसमइय [कतिसामयिक] ओ० १७४ कंडु [कण्डु] ओ०६६ कओ[कुतस्] जी० ११५१; ३।१५५,१०८२ कंडु [कन्दु] जी० ३१७८ कंक [क] जी. ३१५६८ कंत [कान्त ] ओ० १५,४६,६८,११७ १४३. कंकड [कङ्कट] ओ० ६४. रा० १७३,६८१. रा० १७,१८,६७२,६७३,७५० से ७५३, जी० ३।२८५ ७७४,७६६,८०१. जी० १११३५,३१५६७, कंख काङ् ] ---कखइ. रा० ७१३ -कखंति. ८७२,१०६०,१०६६ ओ० २०.रा० ७१३ कंततराय कान्ततरक] रा०२५ से ३१,४५. कंखिय [काङ्क्षित] रा० ७७४ जी० ३१२७८ से २८४,६०१ कंचण [काञ्चन] ओ० २६,६४. रा० ३२,१५६, कंतारभत्त [कान्तारभक्त] ओ० १३४ २६२. जी० ३:३३२,३७२,४५७,४८७,५८६, कतारभयग [कान्तारभृतक] ओ०६० कंति [कान्ति ] ओ० २३,६६.७१. रा० ६१ कंचणकोसी [काञ्चनकोशी] ओ० ६४ कंद [कन्द] ओ०६४,१३५. रा० २२८. कंचणग [काञ्चनक] जी० ३।६६१,६६२,६६४, जी० ११७१, ३।३८७,६४३,६७२ कंबणया [क्रन्दन ओ० ४३ ५६३,५६७ ९७ Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कंदप्प-कडुच्छ्य कंदप्प [कन्दर्प] ओ० ४६ ३।११८,११६,२८६,६६५ कंवप्पिय [कान्दपिक] ओ० ६४,६५ कच्छभी कच्छपी] रा० ७७. जी० ३१५८८ कंदमंत [कन्दवत् ] ओ० ५,८,१०. जी० ३।२७४, कच्छु [कच्छू ] जी० ३।६२८ ३८६,५८१ किज्ज [कृ] - कज्जति. ओ० १६१ कंदरा [कन्दरा] रा०८०४ कज्ज [कार्य] रा० ६७५. जी० ३।२३६,१११५ कंदाहार [कन्दाहार] ओ ० ६४ कज्जल [कज्जल ] ओ० १६. रा० २५. कंदिय [क्रन्दित] ओ० ४६,४६ जी० ३।२७८,५६५,५६६ कंदुसोल्लिय [ कन्दुपक्व ] ओ० ६४ कज्जलंगी [कज्जलाङ्गी] ओ० १३ कंपिय [कम्पित] रा० १७३. जी० ३।२८५ कज्जलप्पभा कज्जल प्रभा] जी० ३१६८७ कंपिल्लपुर [ काम्पिल्यपुर] ओ० ११५,११८ कज्जहेउ [क यहेतु] ओ० ४० कंपेमाण [कम्पमान ] ओ० ५२ कट्ट [कृत्वा ] ओ० २०. रा० ८. जी० ३८६ कंबल [कम्बल ] ओ० १२०,१६२. रा० २७, कट्ठ [काष्ठ] रा० ६,१२,७६५ ६६८,७५२,७५२,७८६. जी० ३।२८०,५६५ कट्ठसेज्जा [काष्ठ शय्या] ओ० १५४,१६५,१६६ कंबिया [कम्बिका] रा० २७०. जी० ३।४३५ कट्टसोल्लिय [काष्ठपक्व] ओ० ६४ कंबू [कम्बु] ओ० १६. जी० ३१५६६,५६७ कड [कृत] ओ० ७४१६ रा० १८५,१८७,८१५ जी० ३।२१७,२६७,२६८,३५८ कंबोय [कम्बोज] रा० ७२०,७२३ कंस [कांस्य] जी० ३।६०८ कडंब [कडम्ब] रा ० ७७ कंसताल [कांस्यताल] रा० ७७. जी० ३।५८८ कडक्ख [कटाक्ष] रा० १३३. जी० ३।३०३ कंसपाई [कांस्य पात्री] ओ० २७ रा० ८१३ कडग [कटक] ओ २१,४७,५४,६३,७२. रा०८, कंसलोह [पाय] [कांस्यलोहपात्र] ओ० १०५, ६६,७०,२८५,७१४. जी० ३४५१,५६३ १२८ कडगच्छेज्ज [कटकच्छेद्य ] ओ० १४६. रा० ८०६ कसलोह [बंधण] [कांस्यलोहबन्धन ] ओ० १०६, कडच्छाय [कटच्छाय] ओ०४. रा० १७०,७०३. जी० ३।२७३ कउच्छ्य [दे०] रा० ७५३ ककारखकारगकारघकारङकारपविभत्ति [ककारख कडय [कटक] ओ० १०८,१३१. रा०८. कारगकारघकारङकारप्रविभक्ति] रा०६५ जी० ३।४५७ ककारपविभत्ति [ककारप्रविभक्ति] रा० ६५ कडाह [कटाह] जी० ३।७८ कक्करी [कर्करी] जी० ३।५८७ कडि [कटि] ओ० १६,६४. जी० ३१५९६ कक्कस [कर्कश] रा० ७६५. जी० ३.११० कडिय कटित] ओ० ४. रा० १७०,७०३. कक्कोड [कर्कोट] जी० ३७५० जी० ३।२७३ कक्कोडग [कर्कोटक ] ३७५० कडिसुत्त [कटिसूत्र] ओ० ५२,६३ १०८,१३१. कक्कोडय [कर्कोटक] जी० ३।७४८ से ७५० रा० ६८७,६८६ कक्ख [कक्ष] ओ० ६२ जी० ३।५६७ कडिसुत्तग [कटिसूत्रक] रा० २८५ कक्खा [कवखट] जी० ११५,३६,४०,५०, ३३२२ कडिसुत्तय [कटिसूत्रक] रा०६८८ कच्छ [ कक्ष] ओ० ५७. जी० ३ ६३७ कडुच्छुग दे०] जी० ३।६०८ कच्छभ [कच्छप] रा० १७४. जी० ११६६,११८; कडुच्छ्य [दे०] रा० २५८,२७६,२८१,२६०, १२६ Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ कडुय-कतिविध २६२. जी० ३।४१६,४४५,४४७,४५६,४५७, कण्णवेहण [कर्णवेधन ] रा०८०३ ६७६ कणिका [कणिका] जी० ३१३३२ कडुय [कटुक ] ओ० ४०. रा० ७६५. जी० १५; कष्णिया [कणिका] ओ० १७०. रा० १५६. ३३२२,११०,७२१,८६०,६५५ जी० ३।६४३ से ६४५,६५४ से ६५६ कड्डिज्जमाण [कृष्यमान] रा० ५६ कणियार [कणिकार] जी० ३१८७२ कढिण [कठिन] ओ० ४६,६४ कण्ह [कृष्ण] ओ० ६६. जी० ३।२७८,३४८ कढिय [क्वथित] जी० ३।५६२,६०१ कण्हकंद [कृष्णकन्द] जी० १७३ कणइर [कणवीर] जी० ३१५६७ कण्हकेसर [कृष्णकेसर] जी० ३।२७८ कणइरगुम्म [कणवीरगुल्म] जी० ३१५८० कण्हपरिवाया [कृष्णपरिव्राजक] ओ० ६६ कणग [कनक] ओ० १६,२३,५०,६३,६४,८२. कण्हबंधुजीव [कृष्णबन्धुजीव] जी० ३।२७८ रा० २८,३२,६९,७०,१२६,१३०,१३७,१७३, कण्हमत्तिया [कृष्णमृत्तिका] जी० ११५८ २१०,२१२,२८५,६८१,६६५. जी. ३।२८१, कण्हराई [कृष्णराजी, कृष्णराज्ञी] जी० ३।६१६ २८५,३००,३०७,३५४,३७२,३७३,४५१, कण्हलेस [कृष्णले श्य] जी० ६।१८६,१६३ ५८६,५६३,५६६,५६७.६४७,७४७,८६६, कण्हलेसा [कृष्णलेश्या] जी० १११३३; ३।१५० ८८५,६३६ . कण्हलेस्स [कृष्णले श्य] जी० ६।१८५,१६६ कणगजाल [कनकजाल] रा० १६१. जी० ३।२६५ कण्हलेस्सा [कृष्णलेश्या] जी० ११२१ कणगजालग [कनकजालक] जी० ३५९३ कण्हसप्प [कृष्णसर्प] जी० ३१२७८ कणगत्तयरत्ताभ [कनकत्वग्रक्ताभ] कण्हासोय [कृष्णाशोक] जी० ३।२७८ जी० ३।१०६३ कत [कृत] जी० ३१५६१ कणगप्पभ [कनकप्रभ] जी० ३१८६६ कतमाल [कृतमाल] जी० ३१५८२ कणगमय [कनकमय] जी० ३।४१५,६४३,६४४, कतर [कतर] जी० २।६८ से ७२,६५,६६,१३४ ८६६ से १३८,१४१ से १४६; ३।११३८; १५२, कणगामय [कनकमय] रा० २५४. जी० ३।३५२, ५६; ७।२०; ६।२५३,२८६ से २६१,२६३ ४१५,६३२,६४३,६५४,६५५,७३६ कति [कति] रा० ७६७. जी० १३१६,२०,५६, कणगावलि [कनकावलि ] ओ० २४,१०८,१३१. ५६,६२,७४,७६,८२,८५, ६०,६३,१०१,११६, जी० ३।४५१ १२८,१३०,१३४; ३१७७,६८,१०८,१५०, कणगावलिपविभत्ति [कनकावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ १५७,१६०,१६५,१६७,१७२ से १७४,२३५ कणिया [क्वणिता] जी० ३।५८८ से २३७,२४१,२४२,२४५,२४६,२४६,२५४, कण्ण [कर्ण] रा० १५,४०,१३२,१३५,१७३. २५५,२५८,२६६.७०३,७०७,७२२,७३३ से जी० ३।२६५,२८५,३०५ ७३५,७४६,७६६,८०६,८१३,८२०,८२४, कण्णछिण्णग [कर्णछिन्नक] ओ०६० ८३७,८५१,८५५,६६३ से ६६६,१०१५, कण्णपाउरण [कर्णप्रावरण] जी० ३।२१६ १०१७,१०२३,१०२६,१०४०,१०४१,१०४४, कण्णपीढ [कर्णपीठ] ओ० ४७,७२ १०७५,११०१,१११२ कण्णपूर [कर्णपूर] ओ० ५७,१०६,१३२ कतिक्खुत्तो [कतिकृत्वस् ] जी० ३।७३० कण्णवाली [कर्णवाली] जी० ३।५६३ कतिविष [कतिविध] जी० ३।६ से ११,३७,३८, कण्णवेयणा [कर्णवेदना] जी० ३।६२८ १४७,१६१,१८५, ६३१; ५॥३७ Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कतिविह-कम्मभूमिया १६५ कतिविह [कतिविध] जी०३।१८३,६७६,६७७%; कप्पोवग [कल्पोपग] ओ०७२ ५॥३८,३६,५३ से ५५ कम्बड [कर्बट] ओ० ६८,८६ से ६३,६५,६६, कतो [कुतस्] जी० ३८८ १५५,१५८ से १६१,१६३,१६८. रा० ६६७ कत्तिया [कृत्तिका] जी० ३।६३७ कम [क्रम] जी० ३१७७८,८३८:१४ कत्थ [कुत्र] ओ० १६५१ कमंडलु [कमण्डलु] जी० ३।५६७ कत्थ [कथ्य] रा० १७३. जी० ३२८५ कमल [कमल ] ओ० २१,२२,५४. रा०८,१३१, कत्थइ [कुत्रचित् ] ओ० २८ १४७,१४८,१७४,२८०,७१४,७२३,७७७,७७८, कत्थलगुम्म [कस्तुलगुल्म] जी० ३।५८० ७८८. जी० ३।११८,११६,२८६,३२१,४४६, कदंब [कदम्ब] जी० ३१५८३ ४४८,५६७ कद्दम [कर्दम जी० ३।७५१ कमलागर [कमलाकर] ओ० २२. रा० ७७७, कद्दमय [कर्दमक] जी० ३१७४८ ७७८,७८८ कद्दमोदय [कर्दमोदक ] ओ० १११ से ११३,१३७, कम्म [कर्मन् ] ओ० २६,४६,७१ से ७४१५,७६ से १३८ ८१,८६,११६,१५६,१६७,१७१,१८२,१८४, कपिहसिय [कपिहसित] जी० ३।८४१ १६५२०. रा० १८५,१८७,७५०,७५१,७७१, ७७२. जी० २.७३,६७,१३९ ३३१२६६, कप्प [कल्प] ओ० २६,६५,६५,६७,११४,११७, २१७,२६७,२६८ १४०,१५५,१५७ से १५६,१६२,१६०. कम्मंत [दे० कर्मान्त] ओ० १६१,१६३ रा० ७,१२,५६,१२४,२७६,७६६. कम्मंस [कर्माश] मो० १७१,१८२ जी० २।१६,४६,६६,१४८,१४६; ३१७७५, कम्मकर [कर्मकर] ओ० ६४ ८४२,८४५,६३७,१०३६,१०५७ से १०५६, कम्मग [कर्मक] जी० ६।१७६ १०६२,१०६५,१०६७,१०७१,१०७३,१०७७ कम्मगसरीर [कर्मकशरीर] ओ० १७६ से १०८३,१०८५ से १०८७,१०६०,१०६१, कम्मगसरीरि कर्मकशरीरिन् ] जी०६।१७०,१७४ १०९३,१०६७ से १०६६,११०१,११०५, कम्मठिति [कर्मस्थिति] जी० २।७३,६७,१३६ ११०७,११०९ से १११२,१११४,१११५, कम्मणिसेग [कर्मनिषेक] जी० २।१३६ १११७,१११६,११२१,११२२,११२४,११२८ कम्मणिसेय [कर्मनिषक] जी० २।७३,९७ किप्प [कृप्] - कप्पइ. ओ०६६.--कप्पंति. ओ० कम्मपयडि [कर्मप्रकृति] ओ० १६८ ६३. -कप्पेज्जा. रा० ७७६ कम्मभूमक [कर्मभूमक] जी० २।८६,१३२ कप्पणा [कल्पना] ओ० ५७ कम्मभूमग [कर्मभूमक] जी० १।१५६; २।१४,२८, कप्परक्ख [कल्परूक्ष] ओ० ६३ २६,७७,८५,९६,१०६,११५,१२३,१३८,१४७, कप्परुक्खग [कल्परूक्षक] रा० २८५ १४६; ३२१२,२२६,८३६ कप्परक्खय [कल्परक्षक] रा० ३।४५१ कम्मभूमय [कर्मभूमज] जी० २।२७ कप्पिय [कल्पित ओ० ५२,६२,६३. रा० ६८७ कम्मभूमि [कर्मभूमि] जी० २।१३७ से ६८९ कम्मभूमिग [कर्मभूमिज] जी० २१७०,७२,१३८, कप्पूर [कर्पूर] रा० ३०. जी० ३।२८३ १४७,१४६ कप्पेमाण [कल्पमान] ओ० ६१ से ६३,१६१,१६३. कम्मभूमिय [कर्मभूमिज] जी० १३१०१ रा० ६७१,७५२ कम्मभूमिया [कर्मभूमिजा] जी० २१११,१४,५५, Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९६ कम्मय-करयल ७०,७२,१४७,१४६ कम्मय [कर्मक] जी० १।१५,५६,६४,७४,७६,८,२ ५,६३,१०१,११६,१२८,१३०,१३५ कम्मया [कर्मजा] रा० ६७५ ।। कम्मविउस्सग्ग [कर्मा र र्ग] ओ० ४४ कम्मसरीर [कर्म शरीर] ओः १७६. जी० ३।१२६६ कम्मसरीरि कर्मशरीरिन् ] जी० ६।१८१ कम्मार [दे०] जी० ३।११८,११६ कम्मारय [दे० ] जी० ३।६१० कम्हा [कस्मात् ] ओ० १७१. रा० ७०३. जी० ३।७२३ कय [कृत ओ० २,२०,५२,५३,५७,६२,६३,७०, १२. रा० १५,१३१,१४७,१४८,२८०,६८३, ६८५,६८७ से ६८६,६६२,७००,७१०,७१६, ७२३,७२६,७५१,७५३,७६५,७७४,७६४, ८०२,८०५. जी० ३१३०१,४४६ कय [कच ] ओ० ६३. रा० १२,२६१,२६३ से २६६,३००,३०५,३१२,३५५. जी० ३४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५५४ कयंब [कदम्ब] जी० ३१३८८ कयपडिकिरिया [कृतप्रतिक्रिया] ओ० ४० कयर [कतर ओ० १८५ से १८८, रा०६६७. जी० १११४३; ३११००७,१०२०,१०२१, १०३७,४।१६,२२,२५,५११६,२०,२६,२७, ३२ से ३६,६०, ७१२२,२३, ६७,१४,५५, २५० से २५२,२५५,२६२ कयलिघरग [कदलीगृहक ] रा० १८२,१८३. जी० ३।२६४ कयली [कदली] जी ० ३।५६७ कयवर [कचवर ] जी० ३।६२२ कया [कदा] जी० ३.२७२ कयाइ [कदाचित् ] ओ० ११६. रा० ६८०. जी० ३१५६ कयाइं [कदाचित्] रा ० ७५४ कयाति [कदाचित् रा० २०० कयावि [कदापि, कदाचित् ] जी० ३७०२ कर [कर] ओ० १५. जी० ३१५८६,५६७ कर [क]-.. करावेंति रा० ७७४.-... करिस्सइ रा० ७७१-- करिस्संति रा०८०३ -करिस्सामि रा० ७८७.--- करिस्सामो. ओ० ५२. रा०६८७.---करेइ. ओ० २१. रा० ५६. जी० ३।४६१.-करेंति. ओ० ४७. रा० १०. जी० ११२७.-करेज्ज. जी० ३।६६७. --करेज्जा . ओ० १८०. रा० १२.--.-करेति. रा० ८. जी० ३।४४३.--.-करेमि. रा० ७६४. करेस्संति.रा०८०२. –करेह.रा० ६.- करेहि. ओ० ५५. रा०६६५.-करेहिति. ओ० १४४. —करेहिति ओ० १५४. रा०८१६. -कारवेति. रा० १२... कारवेह. रा० ६. कारवेहि. ओ० ५५. -काहिति. ओ० १४४. -कीरइ. ओ० १५४. रा० ७६७ करंडग [करण्डक] ओ० ११७. रा० ७६६ करकंट [करकण्ट ] ओ०६६ करग [करक] जी० ३१५८७ करड [क रट] रा० ७७ करडी करटी] जी० ३।५८८ करण [करण] ओ० १६,२५.४६,६३,१४४,१४५, १६१,१६३. रा० ७६,१७३,६८६,८०२,८०३, ८०५. जी० ३।२८५,५६६,८५४ करणओ [करणतस् ] ओ० १४५. रा० ८०६,८०७ करणया [करणता] ओ० १७१ करणिज्ज करणीय] रा० ११,५६,२७५,२७६. जी० ३।४४१,४४२ करतल [करतल] रा० २४. जी० ३।२७७,४४५, ४४६,४४८,४५८ से ४६२,४६५,४७०,४७७, ५१६,५२०,५५४,५५५ करभरवित्ति [करभरवृत्ति] रा० ६७१,७०३,७१८, ७५०,७५१ करय [करक] जी० ११६५ करयल [करतल] ओ० १५,२०,२१,५३,५४,५६, Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करवत-कवल ५६७ ६२,११७. रा० ८,१०,१२,१४,१८,४६,७२ कलायरिय [कलाचार्य ] ओ० १४५ से १४७. रा० ७४,११८,२७६,२७६,२८०,२८२,२६१ से ७७६,८०५ से ८०८ २६६,३००,३०५,३१२,३५५,६५५,६७२, कलाव [कलाप] ओ० २,५५. रा० ३२,१३२, ६८१,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४, २३५,२८१,२६१,२६४,२६६,३००,३०५,३१२, ७२३,७६५,७७०,७७१,७६६. जी० ३।४४२ ३५५,६६४. जी० ३।३०२,३७२,३६७,४४७, ४५७ ४५६,४६१,४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०, ५६३,५६३ करवत [करपत्र] जी० ३३११० कलिंग [कलिङ्ग] जी० ३।५६५ करित्तए [कर्तुम् ] ओ० १०३ कलिकलुस [कलिकलुष] रा० ७५०,७५१ करिय [कृत्वा] रा० २९२. जी० ३।४५७ कलित [कलित] जी० ३।३७२,४४७,४५७,४५६, करेत्ता [कृत्वा] ओ० २१. रा० ६. जी० ३।४४३ ४६०,५६४,५६५ करेमाण[ कुर्वाण] ओ ० ५२,६४,६४,११६,१५६. कलित्त [कटित्र] ओ० १३ रा०६८७,६८.८. जी० ३१४४३,४४५,८४२, कलिय [कलित] ओ ० १,२,१५,४६,५५ से ५७, २४५,६१७: ६२,६५. रा० १२,१७,१८,२०,३२,५२,५६, करोडिया [करोटिका] ओ० ११७ १२६,१३७,२३१,२४७,२८१,२६१,२६३ से करोडो [करोटी] जी० ३।५८७ २६६,३००,३०५,३१२,३५५. जी. ३१२८८, कलंक [कलङ्क] जी० ३।५६५ ३००,३०७,३७२,३६३,४५८,४६०,४६२, कलंकलीभाव [कललीभाव] ओ० १६५ ४६५,४७०,४७७,५१६,५५०,५५४,५८०, कलंब [कदम्ब ओ०६,१० ५६१,५६७ कलंबचीरियापत्त [कदम्बचीरिकापत्र] जी० ३।८५. कलुस [कलुष] बो० ४६ कलंबय [कदम्बक] जी० ३॥८३८।२,१५,८४२ ..... __कलेवर [कलेवर] रा० १६०. जी० ३।२६४ कलकल [कलकल] ओ० ५२. रा० ६८७,६८८.। कल्ल [कल्य] ओ० २२. रा० ७२३,७७७,७७८, जी० ३८४२,८४५ कलकलेत [कलकलायमान] ओ० ४६ कलण [कलन ] ओ० ४६ कल्लाण [कल्याण] ओ० २,५२,७१,१३६. रा० ६, १०,५८,१८५,१८७,२४०,२७६,६८७,७०४, कलमसालि [कलमशालि ] जी० ३।५६२ ७१९,७७६. जी. ३२१७,२६७,२६८,३५८, कलस [कलश] ओ० २,१२,६४. रा० २१,४६, ४०२,४४२,५७६,६०२ २७६,२८०,२६१. जी० ३।२८६,४४५,४४६, ४४८,५८७,५६७ कल्लाणग [कल्याणक] बो० ४७,६३,७२. जी० कलसिया [कल शिका] रा०७७ ॥५६५ कलह [कलह] ओ० ४६,७१,११७,१६१,१६३ कल्लोल [कल्लोल] ओ० ४६ रा० ७६६. जी०. ३६२७ कवइय [कवचिक ] ओ०५७ कलहंस [कलहंस] ओ० ६. जी० ३।२७५ कवड [कपट] रा० ६७१ कलहविवेग [कलहविवेक ] ओ०७१ : कवय [कवच] ओ० १६५।२०. रा० ६६४,६८३. कला [कला] ओ० १४६.१४८,१४६. रा० ८०६, ८०७,८०६.१० कवल [कवल ] ओ० ३३ ७८८ Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९८ कवाड-काय कवाड [कपाट] ओ० १,१७४. रा० १३०. जी० । काइय [कायिक] ओ० ६६ ३।३०० काउं [कृत्वा] ओ० १३७ कविट्ठ [कपित्थ] जी० ११७२ काउंबरीय [काकोदुम्बरिका] जी० ११७२ कवियच्छू [कपिकच्छ्] जी० ३।८५ फाउलेस [कापोतलेश्य] जी० ६।१६३ कविल [कपिल] ओ० ६. जी० ३।२७५ काउलेसा [कापोतलेश्या] जी० ६६८,६६ कविसीसग [कपिशीर्षक] ओ० १. रा० १२८. काउलेस्स [कापोतलेश्य] जी० ६।१८५,१८८,१६६ जी० ३।३५३ काउलेस्सा [कापोतलेश्या] जी० ११२१ कविसीसय [कपिशीर्षक] रा० १२८. जी० ३।३५३ काऊ [कापोती] जी० ३७७ कविहसिय [कपिहसित] जी० ३।६२६ काकणिलक्खण [काकिणीलक्षण] ओ० १४६ कवेल्लुयावाय [कवेल्लुकापाक ] जी० ३३११८ कागणिलक्खण [काकिणीलक्षण] रा० ८०६ कवोत [कपोत] जी० ३३५६८ कागणिमंसक्खावियग [काकिणीमांसखादितक] ओ०६० कवोल [कपोल] ओ० १६. रा० २५४. जी० ३।४१५,५६६,५६७ काणण [कानन] रा० ६५४,६५५. जी० ३१५५४ कापिसायण [कापिशायन] जी० ३।८६० कसाय [कषाय ] ओ०४४,४६. जी. ११५,१४, काम [काम] ओ०१५,४३,१४६,१५०,१६८ १६,८६,६६,१०१,११६,१२८,१३६; ३।२२; रा०६७२,६८५,७१०,७५१,७५३,७७४,७६१, ६।६६ कसायपडिसंलोणया [कषायप्रतिसंलीनता] ८११. जी० ३।१७६,११२४ ओ० ३६ कामकंत [कामकान्त] जी० ३।१७६ कसायविउस्सग्ग [कषायव्युत्सर्ग] ओ० ४४ कामकूड [कामकूट] जी० ३३१७६ कसायसमुग्धाय [कषायसमुद्घात] जी० १।२३, कामगम [कामकम] ओ० ४६,५१ ८५३।१०८,१११२,१११३ कामगामि [कामकामिन्] जी० ३३५६८,६०६ कसिण [कृष्ण] ओ० १६,४७. जी० ३।५९६,५६७ काममय [कामध्वज] जी० ३।१७६ कसिण [कृत्सन] ओ० १५३,१६५,१६६. कामस्थिय [कामार्थिक ] ओ०६८ रा० ८१४ कामप्पभ [कामप्रभ] जी० ३३१७६ कह [कथय]-कहंति. ओ० ४५- कहेइ. कामरय [कामरजस्] ओ० १५०. रा० ८११ रा० ६६३ कामरूवषारि [कामरूपधारिन्] ओ० ४६ कह [कथम् ] ओ० ११८. रा० ७०३. कामलेस्स [कामलेश्य] जी० ३।१७६ जी० ३।२११ कामवण्ण [कामवर्ण] जी० ३३१७६ कहकहभूत [कहकहभूत ] रा० ७८ कामसिंग [कामशृङ्ग] जी० ३३१७६ कहग [कयक] ओ० १,२ कामसिट्ट [कामशिष्ट ] जी० ३।१७९ कहगपेच्छा [कथकप्रेक्षा] ओ० १०२, १२५. कामावत [कामावर्त] जी० ३।१७६ जी० ३।६१६ कामुत्तरडिसय [कामावतंसक] जी० ३११७६ कहा [कथा] ओ० २०,४५,५३. रा० ७१३ काय [काय] ओ० २४. रा० १४६,८१५. कहि [क्व] जी० १३१२७. ___ जी० ३।११०,१११,१७४; ६६६ कहिं [क्व, कुत्र] ओ० १४०. रा० १२२. काय [काचय] -कायावेमि रा० ७५४ जी० ११५४ काय [पाय] [काचपात्र] ओ० १०५.१२८ Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काय-कालमेह काय [बंधण] [काचबन्धन] ओ० १०६,१२६ ६६,७३,७६,८६,८८,९२,६७,१०७ से १०६, कायअपरित्त [कायापरीत] जी०६७६,८० १११,११३,११४,११६,१२०,१२१,१२५, कायकिलेस [कायक्लेश] ओ० ३१,३६ १२६,१३१ से १३३,१३६,१५०; ३.१२,२२,४५, कायगुत्त [कायगुप्त ] ओ० २७,१५२,१६४. ८३,९०,६४,११७ से १२०,१५६,१८६,१६२, रा०८१३ १६५ से १९७,२१४,२३८,२४३,२४७,२५०, कायजोग [काययोग] ओ० ३७, १७५ से १७७, २५२ से २५६,२५८,४३६,५६४,५६५५८६, १८०,१८२ ५६६,६२६,६३०,७२४,८१६,८३८ । १६,१८, कायजोगि [काययोगिन् ] जी० १३१,८७,१३३; २०,८४४,८४७,१०२७,१०४२,१०८५,१०८६, ३।१०५,१५२,११०६, ६।११३,११५,११८, ११३१,११३६,११३७,४३,५,८,१६,१७; १२० ५।५,८,९,२१ से २४,२८ से ३०, ७।२; कायट्ठिति [कायस्थिति] जी० ३।११३३; ६।१२२ ८।३।४; ६।२,३,१२,२३,२५,२६,३३,४०, कायपरित्त [कायपरीत] जी० ६।७६,७७,८३ ४६,५१,५२,५६.६६,७१,७३,७८,६७,१६४, कायबलिय [कायबलिक] ओ० २४ १७१,१७८,२०२,२०४,२५७ से २५६ कायव्व [कर्तव्य] रा० ७२,७०४. जी० ३॥१२७; कालओ [कालतस्] ओ० २८. रा० २००. ४६ जी० ॥३३,१३६,१४०; २।४८,४६,५४,५७ कायविणय [कायविनय] ओ० ४० से ६२,८२,८३, ३२२७२, ४१७ से ११,०८, कायसमिय [कायसमित] ओ० १६४ ६,१२ से १६,२३,२६६८७६१०,११, कायापरित [कायापरीत] जी० ६८५ २३,२४,३१,३६ से ४८,५७.५८,६८,७८,७६, कारंरक [कारण्डक] ओ० ६. जी० ३।२७५ ८६,६०,६६,६७,१०२,१०३,११४,११५,१२२, कारण [कारण] रा० १६,६७५,७१६,७२०,७५२, १३२,१४२,१६० से १६३, १७१,१८६ से ७५४,७५६,७५८,७६०,७६२,७६४,७६८ १६१,१६३,१६५,१६८ से २०७,२१० से कारवाहिय कारवाहिक, कारबाधित] ओ०६८ २१२,२१४,२१६,२२२ से २२५,२२७ से कारवेत्ता [कारयित्वा] ओ० ५५. रा०६ २३०,२३३ से २३८,२४० से २४४,२४६, कारावण [कारण] ओ० १६१,१६३ २४६,२५७ से २६३,२६५,२६८ से २७३, कारेमाण [कारयत्] ओ० ६८. रा० २८२,७६१. २७५ से २८२,२८४,२८५ जी० ३१३५०,४४८,५६३,६३७ कालतो [कालतस्] जी० २०८४,११७ से १२०, कारोडिय [कारोटिक] ओ० ६८ १२२ से १२४; ३३५६,१६३,१६४,११३३ से ११३५:५८,१०,२२६।१६,२३,६४,७६,७७ काल [काल] ओ० १,१८,२३ से २५,२७,२८,४५, कालधम्म [कालधर्म] रा० ७५३ ४७ से ५१,८२,८७,८६ से १५,११४,११७, कालपोर [दे० कालपर्वन्] जी० ३८७८ १४०,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. कालमास [कालमास] ओ०८७,८६ से १५,११४, रा० १,७,६३,६५,१७३,२७४,६६५,६६६, ११७,१४०,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. ६६८,६७६,६८५,६८६,७५०,७५१ से ७५३, रा० ७५० से ७५३,७६६. जी० ३।११७, ७७१,७९६,७९८,८१५. जी० १५,३४,३५, ५०,५२,६६,१२७,१३७ से १४२, २०२० से. कालमिगपट्ट [कालमृगपट्ट] जी० ३१५६५ २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,६३,६५, कालमेह [कालमेघ ] ओ० ५७ Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०० कालय [ कालक ] जी० ३८१६. कालसंघिय [कालसन्धित] जी० ३१५८६ कालागरु [कालागुरु ] रा०, ९,१२,३२,१३२, २३६, २८१, २६२. जी० ३।३०२,३७२, ३६८, ४४७,४५७ कालागुरु [कालागुरु ] ओ० २,५५ कालाभिग्गहचरय [ कालाभिग्रहचरक ] ओ० ३४ कालायस [ कालायस ] ओ० ६४. रा० १७३, ६८१, जी० ३।२८५ कालोद [कालोद ] जी० ३।७७५,८१० से ८१२, १४,८१६,८१८ कालोभास [ कालावभास ] जी० ३१८३,६४ कालो [कालोद ] जी० ३।७७० से ७७३, ८.००, ८०३ से ८०७,८१३,८१५,८१६ से ८२१, ५६, ६६४, ६६५, ६६७,६७० कालो [कालोदक ] जी० ३७७२ कावपेच्छा [ का प्रेक्षा ] जी० ३।६१६ काविल [ कापिल ] ओ० ६६ काविसायण [ कापिशायन ] जी० ३।५८६ कास [काश ] जी० ३।६२८ fear [काशित्वा ] जी० ३।६३० freeम्म [ कितिकर्मन् ] ओ० ४० किं [ किम् ] रा० ६२. जी० ११२ free [ किङ्कर ] ओ० ६४. रा० ५१ किंकरभूत [ किङ्करभूत ] जी० -२/५६२ किंकरभूय [ किङ्करभूत ] रा० ६६४ किंचि [ किञ्चित्.] ओ० १६० रा० ६० जी० ३१८२ किणोमोदरिय [ किञ्चिदूनावमोदरिक ] ओ० ३३ किंपागफल [ किम्पाकफल ] ओ० २३ किंपुरिस [ किम्पुरुष ] ओ० ४६, १२०, १६२... A रा० १४१, १७३, १६२, ६६८, ७५२, ७७१ ७६. जी० ३ २६६, २८५, ३१८fiograp [ किम्पुरुष कण्ठ ] रा० ११५, २५८. जी० ३।३२८ किंपुरिसकंठ [ किम्पुरुषकण्ठक ] जी० ३ | ४१६ किमय [ किमय ] जी० ३८७, १०८१ कालय - क्रित्तिय किसु [ किंशुक ] ओ० २२. रा० २७,७७७,७७८, ७८८. जी० ३।११८, २८०, ५६० किच्च [ कृत्य ] रा० ३१, ५६ किच्चा [ कृत्वा ] ओ० ८७. रा० ६६७, जी० ३ | ११७ कट्टिया [ कृष्टिका ] जी० १।७३ किडुकर [ क्रीडाकर ] ओ० ६४ किfor [ किणित ] रा० ७७ किण्णर [ किन्नर ] ओ० १३,४६. ० ६६८, ७५२, ७७१, ७८६. जी० ३।२६६, २८५, २८८, ३००, ३१८, ३७२ किण्णरकंठ [ किन्नर कण्ठ ] जी० ३।३२६ किण्णरकंठग | किन्नरकण्ठक ] जी० ३।४१६ [ किण्ण [ कथम् ] रा० ६६७ किण्ह [ कृष्ण ] ओ० ४, १२, १३, १६. रा० २२, २४, २५,१२८, १३२, १५३, १६७, १७०, १७८, २३५, ७०३. जी० ३७८१, २७३, २७७, २७८, २६०, २६८, ३०२, ३२६, ३५.३, ३५८, ३८२, ३६७, ५८५, ५६७, ८३८१७ १०७५ frustrate [कृष्णकणवार] रा० २५. जी० ३।२७८ किण्हकेसर [कृष्ण के सर ] रा० २५ किण्हच्छाय [कृष्ण च्छाय ] ओ० ४. रा० १७०, - ७०३. जी० ३।२७३ किण्हबंधुजीव [ कृष्ण बन्धुजीव ] रा० २५ कण्हलेस [कृष्णलेश्य ] जी० ३।१०१ किण्हलेस्सा [ कृष्णलेश्या ] जी० ३।१०१, १०२ किण्हसप्प [कृष्णसर्प ] रा० २५ किण्हासोय [ कृष्णाशोक ] रा० २५ किण्होभास [कृष्णावभास ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी० ३।२७३, २६८, ३५८,५८५ √ कि [ कीर्तम् ] - कितति. रा० १५५ कित्तिय [ कीति ] ओ० २ १. अगरु, भल्लातके, अर्जुन (आप्टे) Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किन्नर-कुंभिक्क किन्नर [किन्नर] ओ० १२०,१६२. रा० १७, कुंडधारपडिमा [कुण्डधारप्रतिमा] रा० २५७ १८, २०, ३२, ३७, १२६, १४१, १७३,१६२. जी० ३१४१८ जी० ३३११ कुंडल [कुण्डल] ओ० १५, २१, ४७, ४६, ५१, किन्नरकंठ [किन्नरकण्ठ] रा० १५५, २५८ ५४, ६३, ६५, ७२, १०८, १३१. ग० ८, किमंग [किमङ्ग] ओ० ५२. रा०६८७ २८५, ६७२, ७१४. जी० ३।४५१, ५६३, किमि [कृमि] जी० ३८४ ७७५, ६३३ किमिकुंभी [कृमिकुम्भी] रा० ७५६ कुंडलभद्द [कुण्डलभद्र ] जी० ३।६३३ किमिय [कृमिक] जी० ३।१११ कुंडलमहाभद्द [कुण्डलमहाभद्र] जी० ३।९३३ किमिराग ] कृमिराग] रा० २७. जी० ३।२८० कुंडलमहावर [कुण्डलमहावर] जी० ३।६३३ किर [किल] जी० ३।१२६।१ कुंडलवर [कुण्डलवर] जी० ३।६३३ किरण [किरण] ओ० १६. जी० ३।५६०,५९६, कुंडलवरभद्द [कुण्डलवरभद्र ] जी० ३।९३३ कुंडलवरमहाभद्द [कुण्डलवरमहाभद्र ] जी० ३९३३ किरिया [ क्रिया] ओ० ४०.१२०.१६२. रा०६६८. कुंडलवरोभास [कुण्डलवराबभास | जी. ३१३३ ७५२, ७८६. जी० ३।२१०,२११ कुंडलवरोभासमहावर [कुण्डलांवरावभासमहावर | किलंत [क्लान्त] जी० ३।११८, ११६ जी ३९३३ किलाम [क्लम] रा० ७२६, ७३१, ७३२ कुंडलवरोभासवर [कुण्डलवरावभासवर] * जी० ३१६३३ फिलेस [क्लेश] ओ० ४६ किविसिय [किल्विषिक] ओ० ६८ .. कुंडिया [कुण्डिका] ओ०.११७ कंडियालंछणय [कुण्डिकालाञ्छणक] रा०.७६७ किसलय [किसलय] ओ० ५, ८. रा० १३६. ___ जी० ३।२७४, ३०६ कुंत [कुन्त ] ओ०.६४. जी० ३।११० किसि [कृषि] जी० ३।६०७ कुंतग्ग [कुन्ताग्र] जी० ३८५ किसिय [कृशित ] रा० ७६०, ७६१ कुंतग्गाह [कुन्तग्राह] ओ०६४ कुंथु [कुन्थु] रा० ७७२. जी० ३.१११ कोड [क्रीड्]-कीडंति जी० ३।२६८ कुंद कुन्द] ओ० १६. रा० २६, ३८, १६०, २२२, कोयगड [क्रीतकृत] ओ० १३४ २५५, २५६. जी० ३२८२,३१२,३३३, कील [क्रीड्]-कोलंति रा० १८५. जी० ३।२१७ ३८१, ४१६, ४१७, ५६६, ५६७, ८६४ कोलग [कीलक] रा० २४. जी० ३।२७७ कुंदगुम्म [कुन्दगुल्म] जी० ३।५८० कीलण [क्रीडन] ओ०४६ कुंदलया [कुन्दलता] ओ० ११. रा० १४५,३।२६८, कोलिया [कीलिका] जी० ११११६ ५८४ कुंकुम [कुङ कुम] ओ० ११०, १३३. रा० ३०. कंदलयापविभत्ति [कुन्दलताप्रवि भक्ति] रा० १०१ जी० ३१२८३ कुंदुरुक्क [कुन्दुरुक] ओ० २, ५५. रा० ६, १२, कुंचस्सर [क्रोञ्चस्वर] रा० १३५ ३२, १३२, २३६,२८१, २६२. जी० ३।३०२, कुंचिय [कुञ्चित] ओ० १६. जी० ३।५६६,५६६ ३७२, ३६८, ४४७, ४५७ कुंजर [कुञ्जर] ओ० १, १३, २७. रा० १७, १८, कुंभ [कुम्भ ] जी० ३।५६७ २०, ३२, ३७, १२६, ८१३. जी० ३।११८, कुंभारावाय [कुम्भकारोपाक ] जी० ३।११८ ११६, २८८, ३००, ३११, ३७२ कुंभिक्क[कौम्भिक, कुम्भाग्र] रा० ४०. जी० ३।३१३ Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ कुंभी [कुम्भी ] रा० ७५६ कुक्कुइय [ कोकुचिक ] ओ० ९५ कुक्कुड [ कुक्कुट ] ओ० १, ३३ कुक्कुडलक्खण [कुक्कुटलक्षण ] ओ० १४६. रा० ८०६ कुच्छि [ कुक्षि ] ओ० १६. जी० ३।५६६ से ५६८, ७८८ कुच्छिल [ कुक्षिशूल ] जी० ३।६२८ कुज्जायगुम्म [कुब्ज+गुल्म ] जी० ३।५८० कुट्टिज्जंत [कुट्टमान ] रा० ७७ कुट्टिमतल [कुट्टिमतल] ओ० ६३ कुट्ठ [ कुष्ठ ] जी० ३।६२८ कुडभी [कुडभी] रा० ५२,५६, २३१, २४७. जी० ३।३६३ कुडय [कुटज ] ओ० ६,१०. जी० ३।३८८,५८३ कुटिल [ कुटिल ] ओ०१, ४६. जी० ३ । ५६७ कुटुंब [ कुटुम्ब ] रा० ६७५ कुड [ कुट्य] जी० ३।७२४, ७२७ कुणाला [कुणाला ] रा० ६७६, ६७७, ६८३, ७०६ कुणिम [ दे० कुणप ] ओ० ७३. जी० ३।८४ कुतुंब [कुस्तुम्ब] रा० ७७ कुतुंबर [ कुस्तुम्बर ] रा० ७७ कुत्तियावण [ कुत्रिकापण ] ओ० २६ कुत्तुंबक [ कुस्तुम्बक ] जी० ३।७८ कुमार [ कुमार ] रा० ६७३, ६७४, ७६१ से ७६३ कुमारग्गह [कुमारग्रह ] जी० ३१६२८ कुमारसमण [कुमारश्रमण ] रा० ६८६, ६८७, ६८६,६६२ से ६९७, ७०० से ७०६, ७११, ७१३,७१४, ७१६ से ७२२,७३१ से ७३३, ७३६ से ७३६ ७४७ से ७८१, ७८७, ७६६ कुमुद [ कुमुद ] रा० २६, ३१. जी० ३।११८, ११६, २५६, २८२, २८४,५६७ कुमुदप्पभा [ कुमुदप्रभा ] जी० ३।६८३ कुमुदा [कुमुदा] जी० ३१६८३,६१५ कुमुय [ कुमुद ] [ कुमुद ] ओ० १२,१५०. कुंभी- कुसुम रा० १७४, १६७, २७६,२८१,२८८,८११. जी० ३।२८२,२८६ कुम्म [ कूर्म ] ओ० १६,२७,३७. रा० ८१३. जी० ३५६६, ५६७ कुरा [ कुरु, कुर] जी० ३।५७८ से ५६६,६०५ से ६२८,६३९,६३२,६३९,६६६, ६६८,७०२, कुरु [ कुरु ] जी० ३।७७५।३ कुरुविंद [ कुरुविन्द] ओ० १६. जी० ३५६६ कुल [ कुल ] ओ० १४,२३,४०, १४१,१५५. रा० ७६६. जी० ३।१६० कुलकोडि [कुलकोट ] जी० ३ | १६० से १६२, १६५ से १६६,१७१,१७४,६६६,६६८ कुलक्खय [ कुलक्षय ] जी० ३।६२६,६२८ कुलघररक्खिया [कुलगृह्ररक्षिता ] मो० ६२ कुलणिस्सिय [ कुलनिश्रित ] रा० ७७३ कुलरोग [कुलरोग ] जी० ३।६२८ कुलव [ कुडव ] रा० ७७२ कुलवेयावच्च [ कुलवैयावृत्य ] ओ० ४१ कुल संपण्ण [ कुलसम्पन्न ] ओ० २५. रा० ६८६ कुब्विय [ कुटीव्रत] ओ० ९६ कुवलय [ कुवलय ] ओ० १३. जी० ३।५६७ कुस [ कुश ] ओ० ८,१०. रा० ३७. जी० ३ | ३११, ३८६,५८१ से ५८३, ५८६, से ५६५ कुसग्ग [ कुशाग्र ] ओ० २३ कुसल [ कुशल ] ओ० १५,३७,६३,६४,१२० १४८, १४६, १६२. रा० १२,७०,१७३, ६७२,६८१, ६६८, ७५२, ७५८, ७५६, ७६५, ७६६, ७७०, ७८६,८०४, ५०६,८१०. जी०३।११८,२८५, ५८८,५६७ कुसुम [ कुसुम ] ओ० १३,४७, ४६. रा० ६, १२,२६ से २८,३१,२२८,२६१,२६३ से २९६,३००, ३०५, ३१२,३५५. जी० ३।२७६ से २८१, २८४,३८७,४५७ से ४६२, ४६५, ४७०, ४७७, ५१६,५२०,५५४,५८०, ५०, ६७२ √ कुसुम [ कुसुमय् ] – कुसुमति. जी० ३२५८० Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुसुमघरग केवतिय ६०३ कुसुमघरग [कुसुमगृहक] रा० १५२,१८३. जी० ३१२६४,८५७ कुसुमघरय [कुसुमगृहक] जी० ३१८५७ कुसुमदाम [कुसुमदामन्] जी० ३१५६१ कुसुमासव [कुसुमासव] ओ० ६. जी० ३।२७४ कुसुमित [कुसुमित ] जी० ३।५८६ कुसुमिय [कुसुमित] ओ० ५,८,१०,११. रा० १४५. जी० ३।२६८,२७४,३६०,५८४, ७०२,८०८,८२६ कुहंड [कूष्माण्ड ] ओ० ४६ कुहंडिया [कूष्माण्डो] रा० २८. जी० ३।२८१ कुहणा [कुहणा] जी० ११६६,७२ कुहर [कुहर] रा० ७६,१७ ३. जी० ३।२८५ कुहिय [कुथित ] जी० ३१८४ कूड [कूट] ओ०६३. रा० १३०, १७१. जी० ३।११६,३००,६८६,६६०,६६२ से ६६८, ७७५,८४५,६३७ कूडागार [कुटाकार] ओ० १६. जी० ३।५६४, ५६६,६०४ कूडागारसाला [ कूटाकारशाला] रा० १२३,७५५, ७७२,७८७,७८८ कूडाहच्च [कूटाहत्य] रा० ७५१,७६७ कूणिय [कूणिक ] ओ० १४,२०,२१,५३ से ५६, ६२ से ७१,८०. रा० ७७८ कुल [कूल] ओ० ११५. रा० १७४,२७६. जी० ३२८६,४४५,६३२,६३६,६६८ कूलषम्मग [कूलध्मायक ] ओ० ६४ कूवरगाह [कूपग्राह] ओ० ६४ कूवमह [कूपमह] जी० ३।६१५ कूवय [कूपक] ओ० ४६ केउ केतु] ओ०६ से ८,१०,५०. रा० १६२, १६३. जी० ३।२७५,२७६,३३५,३५५ केउकर [केतुकर] ओ० १४. रा० ६७१ केऊर [केयूर ] ओ० २१,५४,१०८,१३१. रा० ८,७१४ केकय [केकय] रा० ७०६ केतकी [ केतकी] जी० ३।२८३ केतगी [केतकी] रा० ३० केयह केकय] रा० ६६८, ६६६,६८३,७११ केमहालत [कियन्महत्] जी० ३११७६,१७८,१८२ केमहालय [कियन्महत्] जी० १३१६,३।८६ ६१, ६४,१८०,२५६,७६० से ७६२,९६६,१०८०, १०८७,१०८८ केयुय [केतुक] जी० ३।७२३ केयूर [केयूर] रा० २८५. जी० ३।४५१,५६३ केरिसग [कीदृशक ] जो० ३।६४,१११६ केरिसय [कीदृशक] रा० १७३. जी० ३।८३ से ८५,६५ से ६७,१०६,११६,११८,११६,१२२, १२३,१२८,२१८,२८३, से २८५,५७६,५९६. ५६७,६०१,६०२,६५५,६५८,६६१,१०७७ से १०७६,१०६३,१०६७ से १०६६,१११४, १११७,११२१ से ११२४ केरिसिय (कीदृशक) जो० ३३११२२ केलास [कैलाश] जी० ३।७४८,७४६,७५२,६२३ केलासा [कैलाशा] जी० ३।७५२ केली [ केली] ओ० ४६ केवइ [कियत्] जी० ११४१,१४२ केवइय [कियत्] ओ० ८६ से ६५,११४,११७, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० ६५५, ६६६. जी० १२५२, ३।७७,८१,२५६,७६८, ८०२,८३०,१००४,१०४२,१०६२,१०६७, १०६६; ४।३ केवचिरं [कियच्चिरम् ] रा० २०० जी० ४१७ केवच्चिरं [कियच्चिरम् ] जी० १११३६ केवति [कियत्] जी० ३।६०,१६२,१६५ से १६७, ५६६,६२६,११३१,११३६. ११३७ ; ६।१२, ५६ केवतिय [कियत्] रा० ७६८ जी० १११३७,१३८; २।२० से २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६, ६३,६६,७३,७६,८६,८८,६२,६७,१०७ से Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केवल-कोक्कुइय १०६,१११,११३,११४, ११६,१२५,१२६, जी० ३।४५२ १३३,१३६,१५०; ३।५,१२,१४ से २१,३३, केसंतकेसभूमी [ केशान्तकेशभूमी ] ओ० १६. ३४,३६,४०,४२,४४,५१,६० से ६३,६६,७७, रा० २५४. जी० ३.४१५,५६६ ८०,८१,८६,१०७,१२०,१५६,१८६,१६२, केसर [केसर] रा०२५,३७,१७४. जी० ३।११८, २३८,२४३,२४७,२५०,२५६,५६४,५६५, .. ११६,२५६ २७८,२८६,३११,६४३ ५७०,७०६,७१४,७३२,७८८,५८६,७६४, केसरिदह केसरिद्रह] जी० ३।४४५ ८१२,८१५,८२३,८२७,८३२,८३४,८३५, केसरिहह [केसरिद्रह] रा० २७६ ८३६,८४४,८४७,८५०,६५३,६५४,६७२, केसरिया [केसरिका] ओ० ११७ ९७३,१००० से १००६,१०१०,१०२२,१०२७, केसलोय [केशलोच] ओ० १५४,१६५,१६६. १०७३,१०८३,१०८५,११११; ४१५,१६,१७, रा० ८१६ ५॥५,२१,२३,२४,२९,३०,७१२,६।२,४, केसव [ केशव ] जी० ३।१२६ २५,२६,३३,४६,५२ केसि [केशि] रा०६८६,६८७,६८६,६६२ से केवल [केवल] ओ० १५१,१५३,१६०,१६५, ६६७,७०० से ७०६,७११,७१३,७१४,७१६ १६६. रा० ८१२,८१४. जी० ३।१०२५ से ७२२,७३१ से ७३३,७३६ से ७३६,७४७ केवलकप्प [केवल कल्प] ओ० १६६. रा० ७. से ७८१,७८७,७६६ जी०.३८६. केसि [केशिन् ] रा० १३३. जी० ३।३०३ केवलणाण [ केवलज्ञान] ओ० ४०,१६५।१२. रा० केसुयं [किंशुक ] रा० ४५ ७३९,७४५,५४६ कोइल [कोकिल] ओ० ६. जी० ३।२७५,५६७ केवलणाणविणय [ केवलज्ञानविनय ] ओ० ४० कोउय [कौतुकं ] ओ० २०,५२,५३,६३,७०. केवलणाणि [ केवलज्ञानिन् ] ओ० २४. जी०६।१६३, रा० ६८३,६८५,६८७ से ६८६,६६२,७००, १६५,१६६,१६७,२०१,२०५,२०८ ७१६,७२६,७५१,७५३,७६५,६७४,८०२, केवलवंसणि [केवलदर्शनिनु ] जी० १।२९,८६; ८०५ ६।१३१,१३५,१३६,१४० केवलदिट्टि [केवलदृष्टि] ओ० १६५।१२ कोउयकारग [कौतुककारक] ओ० १५६ केवलनाणि [ केवलज्ञानिन् ] जी० १६१३३ कोउहल्ल [कौतुहल] जी० ३।६१६ ६।१५६,१६३ कोऊहल [कोतुहल ] ओ० ५२. रा० १५,१६.६८७, केवलपरियाग [ केवलपर्याय ] ओ० १६५ ६८६ केवलि [केवलिन् ओ० ७२,१५४,१७१,१७२. कोंच क्रौञ्च | रा० २६. जॉ० ३१२८२ रा० ७१६,७७१,७७५,८१५,८१६. कोंचणिग्घोस | क्रौञ्चनिर्घोष ] ओ०७१. रा०६१ जी० १११२६ ; ६।३६,४१,४२,४४ से ४८,५०, कोंचस्सर क्रौञ्चस्वर जी० ३३०५,५६८ ५२ से ५४ कोंचासण [क्रोञ्वासन | रा० १८१,१८३. केवलिपरियाग [ केवलिपर्याय ] ओ० १५४. ___जी० ३।२६३ रा० ८१६ कोंडलग [कोण्डलक] ओ० ६. जी० ३।२७५ केवलिसमुग्धाय [ केवलिसमुद्घात ] ओ० १६९, कोकंतिय [कोकन्तिक] जी० ३।६२० १७४. जी० १११३३ कोकासित [दे०] जी० ३।५६६ केस [केश] ओ० १३,४७,६२. रा० २८६. कोक्कुइय [कौकुचिक] ओ० ६४ Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कौट्टण-कोह कोट्टण [ कुट्टन ] ओ० १६१,१६३ कोट्टिज्जमाण [ कुट्टमान ] रा० ३० कोट्टिमतल [ कुट्टिमतल ] रा० १३०,१७३,८०४. जी० ३।२८५,३०० कोट्टिय [कुट्टयित्वा ] जी० ३।११८,११६ कोट्ठेज्जमाण [ कुट्टमान ] जी० ३।२८३ कोट [कोष्ठ ] रा० ३०,१६१,२५८,२७६. जी० ३।२३४, २८३, ४१६,६३७, १०७८ कोga [ कोष्ठक ] रा० ७११. जो० ३५६४ बुद्धि [कोष्ठबुद्धि] ओ० २४ higa [ कोष्ठक ] रा० ६७८,६८६,६८७,६८६, ६६२,७००,७०६ agri [ कोष्ठागार] ओ० १४,२३. रा० ६७१,६६५,७८७, ७८८, ७६०,७६१ कोद्वार [कोष्ठागार] रा० ६७४ कोडकोडी [कोटकोटी ] जी० ३१७०३, ७२२,८०६, ८२०,८३०,८३४,८३७,८३८१३१,८५५, १००० कोडाकोfs [ कोटाकोटि ] ओ० १६२. रा० १२४ nisteist [कोटाकोटी] जी० २०७३,६७, १३६; ३७०३, ५०६, १०३८; ५२६ कोड [कोटि ] ओ० १,१६२. रा० १२४ कोडिकोडी [कोटिकोटी ] जी० ३।१००० कोडी | कोटीं ] रा० ६६४. जी० ३।२३२,५६२, ५७७,६५८,८२३,८३२,८३५, ८३६, १०३८ कोडी | कोटीक ] रा० २३६. जी० ३१४०१ कोडुंब [ कौटुम्ब ] जी० ३।२३९ fa [ कौटुम्बिन् ] जी० ३।१२६ डुंबिय [ कौटुम्बिक ] ओ० १,१८,५२,६३. रा० ६०१ से ६८३,६८७.६८८, ६६०, ६६१, ७०४,७०६,७१४ से ७१६,७५४,७५६, ७६२, ७६४. जी० ३।६०६ कोण [ दे०कोण ] रा० १७३. जी० ३।२८५ कोणिय ] कोणिक ] ओ० १५, १६,१८,२०,६२ star [ कोत्रिक ] ओ० ६४ कोद्दालक [ कुद्दालक ] जी० ३।५८२ कोमल [कोमल ] ओ० ५,८,१६,२२,६३ रा० ७२३,७७७,७७८,७८८. जी० ३।२७४, ५६६, ५६७ कोई [ कौमुदी ] ओ० १५. रा० ६७२. जी० ३१५६७ ६०५ कोयासिय [ विकसित' ] ओ० १६ कोरंट [कोरण्ट ] ओ० ६३,६४. रा० ५१,२५५ कोरंटक [कोरण्टक ] रा० २८. जी० ३।२८१ कोरंट गुम्म [कोरण्टक गुल्म ] जी० ३२५८० कोरक [ कोरक ] जी० ३।२७५ कोरव्व [ कौरव्य ] ओ० २३. रा० ६८८. जी० ३।११७ कोरव्यपरिसा [ कौरव्यपरिषद् ] रा० ६१ कोरिल्लय [ दे० ] रा० ७५६ कोरेंट [कोरण्ट ] ओ० ६५. रा० ६८३,६९२, ७००,७१६. जी० ३।४१६ कालसुण [कोलशुनक ] जी० ३।६२० कोलाहल [कोलाहल ] ओ०४६ कोव [कोप ] जी० ३।१२८ ate [] १४,२३,१७० रा० १८८, २०७, २०८, २३१,२४७,६७१,६७४, ६६५, ७६०, ७६१. जी० ३।४३,४४,८२,२६०, ३५२ से ३५५,३५६,३६१,३६४३६८, ३६६, ३७२,३७४, ३६३३६५, ४०१,४०२, ४१२, ४२५,६३४, ६४२,६४४,६४६,६५३,६५५,६६३, ६६८, ६७३,६७४,६७६, ६८३,६८५, ६६१, ७१४, ७३६,७५४,७५६,७६२,७६५ से ७७०,७७२, ८०२,८१५,८३६,१०१२ से १०१४ aria [ कोशाम्र ] जी० १/७१ कोसंब पल्लवपविभत्ति [कोशाम्रपल्लवप्रविभक्ति ] रा० १०० कोसेज्ज [ कौशेय ] ओ० १३. जी० ३।५९५ कोह [ क्रोध ] ओ० २८,३७,४४,७१,६१,११७, ११६,१६१,१६३,१६८. रा० ७६६. जी० ३१२८, ५६८,७६५,८४१ १. हे० ४।१६५ Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोहंगक-खलु कोहंगक [कोभङ्गक] ओ०६ कोहकसाइ [क्रोधकथायिन् ] जी० १३१३१; ६।१४८,१४६,१५२,१५५ कोहकसाय [क्रोधकषाय ] जी० १११६ कोहविवेग [क्रोधविवेक] ओ० ७१ ख [ख] रा० ६५ खइय [क्षायिक] रा० ७६१,८१५ खइय [खचित] जी० ३।३७२ खओवसम [क्षयोपशम] ओ० ११६,१५६ खंजण [खञ्जन] ओ० १३. रा० २५. __ जी० ३।२७८ खंड [खण्ड] जी० ३३५९२,६०१,८६६ खंडरक्स [खण्डरक्ष] ओ० १ खंडिय [खण्डिक] ओ० ६८ खंति [क्षान्ति] ओ० २५,४३. रा० ६८६,८१४ खंतिखम [क्षान्तिक्षम[ ओ० १६४ खंदग्गह [स्कन्दग्रह] जी० ३ ६२८ खंदमह [स्कन्दमह] रा०६८८. जी० ३१६१५ खंघ [स्कन्ध] ओ० ५,८,१३,१६. रा० ४,१२, २२७,२२८,७५८,७५६. जी० ११५,७१,७२; ३।२७४,३८६,३८७,५६६,६७२,६७६,७६३ खंषमंत [स्कन्धवत् ] ओ० ५,८. जी० ३२७४ खंधावारमाण [स्कन्धावारमान ] ओ० १४६. रा० ८०६ खंधि [स्कन्धिन् ] जी० ३।२७४ खंभ [स्तम्भ] रा० १७ से २०,३२,६६,१२६, १३०,१३८,१७५,१६०,१६७,२०६,२११, २७६,२६७,३०२,३२५,३३०,३३५,३४०. जी० ३।२६४,२६६,२८७,२८८,३००,३७२, ३७४,४६२,४६७,४६०,४६५,५००,५०५, ५९७,६४६,६७३,६७४,७५६,८८४,८८७, ११२८,११३० खंभपुडन्तर [स्तम्भपुटान्तर] रा० १६७. जी० ३।२६६ खंभबाहा स्तम्भबाहु] रा० १६७. जी० ३।२६६ खंभसीस [स्तम्भशीर्ष ] रा० १६७. जी० ३।२६६ खकारपविभत्ति [खकारप्रविभक्ति] रा० ६५ खग्ग [खड्ग] ओ० २७,५१,६६. रा० २४६,६६४, ८१३. जी० ३१५६२ खग्गपाणि [खड्गपाणि] रा०६६४. जी० ३१५६२ खचित [खचित] जी० ३।४१० खचिय [खचित] रा० ३२,१६०,२५६,२८५. जी० ३३३३३,४५१ खज्जूर (सार) [खर्जूरसार] जी० ३६५८६ खजूरसार [खर्जूरसार] जी० ३।८६० खजूरिवण [खर्जूरीवन] जी० ३१५८१ खट्टोदय [खट्टोदक] जी० १६५ बडहडग [दे०] जी० ३।२६२ खण [क्षण] रा० ११६,७५१,७५३ खत्तिय क्षत्रिय ] ओ० १४,२३,५२. रा० ६७१,६८७ खत्तियपरिव्वाय [क्षत्रियपरिव्राजक] ओ०६६ खत्तियपरिसा [क्षत्रियपरिषद् ] रा०६१,७६७ खन्न (दे० ] जी० ३।७८१,७८२ खम [क्षम] ओ० ५२. रा० २७५,२७६,६८७. जी० ३।४४१,४४२ खय [क्षय ] रा० ७६६ खयर [खदिर रा० ४५ खर [खर] ओ० १०१,१२४. जी० ११५७,५८; ३९६.६१८ खरकंड [खरकाण्ड] जी० ३.६,७,१४,२३,२६ खरपुढवी [खरपृथ्वी] जी० ३।१८५,१६१ खरमुहिवाय [खरमुखीवादक] रा० ७१ खरमही खरमुखी ] ओ० ६७. रा० १३,७१,७७, ६५७. जी० ३।४४६,५८८ खल [खल ] ओ० २८ खलवाड [खलवाट] रा० ७८१,७८५ से ७८७ खलु [खलु] ओ० ५२. रा० ६. जी० १०१ Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'खव - खुड्डाय / खव [ क्षपय् ] - खवेइ ओ० १८२. जी० ३३८३८११८ खवयंत [ क्षपयत् ] ओ० १८२ खवेत्ता [ क्षयित्वा ] श्र० १६८ खस [ खसर] जी० ३।६२८ खयर [ खेचर] ओ० १५६. जो० ११६८, ११३, ११६,११७,१२५, २२५,६६,७२, ७६,८३, ८७,६६,१०४,११३,१३१,१३६,१३८, १४६, १४९, ३. १३७,१४५ से १४७, १६१ खयरी [ खेचरी ] जी० २ ३,१०,५३,६६,७२, १४४, १४६ खा [ खाद् ] - खज्जइ. रा० ७८४ - खाइ. रा० ७३२ खाइ [ दे०] ओ० १९२ खाइम [ खाद्य ] ओ० ११७,१२०,१४७,१६२. रा० ६६८, ७०४,७१६,७५२,७६५, ७७६, ७८७ से ७८६,७६४,७६६,८०२,८०८ खाओसमय [ क्षायोपशमिक ] रा० ७४३ खाणु [स्थाणु ] जी० ३।६२५,६३१ √ खाम [ क्षमय् ] -- खामेइ. रा० ७७७ खामित्त [ क्षमयितुम् ] रा० ७७७ खाय [खात] ओ० १ खायमाण [खादत् ] जी० ३।१११ खार [क्षार] जी० ३।६२७,६५५ खारय [क्षारक ] जी० ३।७३१ खारवत्तिय [ क्षारवर्तित ] ओ० ६० खारा [खारा ] जी० २६ खारोदय [क्षारोदक ] जी० १०६५ खिखिणिजाल [ किङ्किणीजाल ] रा० १६१. जी० ३।२६५,३०२ ffort [off ] ओ० ६४. रा० १३२, १७३, ६८१. जी० ३।२८५,५६३ खिस [ खिस ] ओ० ४६ सिणा [खिसना ] ओ० १५४, १६५, १६६. रा० ८ १६ ६०७ विजमाण [ खिद्यमान ] ओ० १३३. जी० ३।३०३ खित [क्षिप्त ] जी० ३६८६ farपामेव [ क्षिप्रमेव ] ओ० ५५. रा० ६. जी० ३।४४४ खिविता [क्षिप्त्वा ] जी० ३६८८ खीण [ क्षीण] ओ० १६८ खीर [क्षीर] ओ० ६२,६३,. रा० २६. जी० ३२८२,७७५ खीरबाई [ क्षीरधात्री ] रा० ८०४ खीरपूर [ क्षीरपूर ] रा० २६. जी० ३।२८२ खरवर [ क्षीरवर ] जी० ३१८६२,८६३,८६५ खीरासव [ क्षीराश्रव] ओ० २४ खीरोद [ क्षीरोद] जी० ३१२८६,४४५, ८६५,८६६ ८६८,५६,६६३ खीरोदग [ क्षीरोदक ] जी० ३।४४५,६६३ खीरोदय [ क्षीरोदक ] जी० ११६५ खीरोयग [ क्षीरोदक ] रा० १७४, २७६ खु [क्षुघ् ] जी० ३ । १२७, ५६२ खुज [ कुब्ज ] जी० १।११६ खुज्जा [ कुब्जा ] ओ० ७०. रा० ८०४ खड्ड [ क्षुद्र ] रा० १७४, १७५, १८० जी० ३१२६६, २८७,२६२,४१०,५७६,६३७, ७३८, ७४३, ७६३,८५७,८६३,८६६,८७५,८८१ खुडखुड्डुग [ क्षुद्रक्षुद्रक] रा० १८० खुडखुड्डय [ क्षुद्रक्षुद्रक ] रा० १८१ खुड्डय [क्षुद्रक ] रा० २४७. जी० ३।४०६ खुड्डा [क्षुद्रक] रा० २४८, २४६. जी० ७ १७ खुड्डा [ क्षुद्रक ] ओ० २४. रा० ३५४. जी० ३५१६, ७५,६,१०, १२, १५, १६, १८ ६२ से ४,४०,५१,१७१,२३६,२३८,२४३,२४४, २४६, २७१, २७३, २७६ से २८२ खुड्डापाताल [ क्षुद्रकपाताल ] जी० ३१७२६,७२८, ७२६ खुड्डापायाल [ क्षुद्रकपाताल ] जी० ३।७२६,७२७, ७२६ खुड्डा [ क्षुद्रक] ओ० १७०. जी० ३।८६,२६० Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खुड्डालिजर-गंडलेहा खुडालिंजर [दे० क्षुद्रकालिजर] जी० ३।७२६ खोतोदय [क्षोदोदक ] जी० ११६५ खुड्डिय [क्षुद्रिक] जी० ३५९३ खोद क्षोद] जी ३१६३१,६४६ खुड्डिया [क्षुद्रिका] ओ० २४. रा० १७४,१७५, खोदरस [क्षोदरस] जी० ३८७८ १८०,७७२. जी० ३।१२४,१२५,२८६,२८७, खोदवर [क्षोदवर] जी० ३।८७४,८७५,८७७,६२७ २६२,५७६,६३७,७३८,७४३,७६३,८५७,८६३, खोदोद [क्षोदोद] जी० ३१८७७,८७८ ८८०,६२५, ८६६,८७५,८८१ ६२८,९३२ खुत्तग [दे०] ओ० ६० खोदोदग [क्षोदोदक] जी० ३१८७५,८८१, ६१० खुद्द [क्षुद्र ] रा० ६७१ खोदोय [क्षोदोद] जी० ३।२८६ खुब्भ [क्षुभ् ]----खुम्भंति जी० ३।७२६ खोदोयग [क्षोदोदक ] रा० १७४ खुभियजल [क्षुभितजल] जी० ३।७८३,७८४ खोमिय क्षोमित] रा० १७३. जी० ३।२८५ खुरपत्त [क्षुरपत्र] जी० ३८५ खोम [क्षौम] रा० ३७,२४५ जी० ३।३११ खुहा [क्षुधा] ओ० ११७. रा० ७६६. जी० ४०७,५६५ ३३१०६,११८,११६,१२८,१११४ खोय [क्षोद] जी० ३१७७५ खेड [खेट ] ओ०६८,८४ से ६३,६५,६६,१५५, खोयरस [क्षोदरस] जी० ३।५८६ १५८ से १६१,१६३,१६८. रा०६६७ खेत्त [क्षेत्र] ओ०२८,१६२. जी० ११५०; २।२६ से २६,५४ से ५६,६५,८४,८८,११४,१२३, ग[ग] रा०६५ १३२ ; ३।१०७, ७४१,७६१,८३८।२५, गइ [गति ] ओ० १६,२१,२७,४६,५०,५४,८६ से ११११ ६५, ११४,११७, १५५, १५७ से १६०, खेत्तओ [क्षेत्रतस्] ओ० २८. जी० ११३३,१३९, १६२,१६७,१७२. रा० ७५५,७५७,८१३ १४०; २।१२०, ५८,९,२३.२६, ६२३, जी० १११४; ३।८३८२२ ४०,६७,२५७ गइय [गतिक] जी० ११६४,७४,७७,८७,८८, खेत्तच्छेद [क्षेत्रछेद] जी० ३।४६,४७ ६६,१०१ खेत्तच्छेय [क्षेत्रछेद] जी० ३।२१ से २७,४५ गइरइय [ गति रतिक] ओ० ५० खेत्ताभिग्गहचरय [क्षेत्राभिग्रहचरक] ओ० ३४ गंगा [गङ्गा] ओ० ११५,११७. रा० २४५,२७९. खेम [क्षेम | ओ० १,१४. १० ६७१ जी० ३।४०७,४४५,६३७ खेमंकर [क्षेमङ्कर] ओ० १४. रा० ६७१ गंगाकूला [गङ्गाकूलक] ओ० ६४ खेमंधर [क्षेमधर ] ओ० १४. रा० ६७१ गंगामट्टिया [ गङ्गामृत्तिका] ओ० ११०,१३३ खेय [खेद] ओ० ६३ गंगावतग [गङ्गावर्तक] ओ० १६ खेलूड [दे० ] जी० १।७३ गंगावत्तय [गङ्गावर्तक] जी० ३।५६६,५६७ खेलोसहिपत्त [श्वेलौषधिप्राप्त ] ओ० २४ गंठि [ ग्रन्थि ] ओ० १. रा० २७०. जी० ३।४३५, खोखुन्भमाण | चोक्षुभ्यमान] ओ० ४६ ____८७८,६६३,६६७ खोत [क्षोद जी० ३।६६२ गंड [गण्ड] ओ० ४७,६४,७२ खोतरस [क्षोदरस] जी० ३।६६४ गंडमाणिया [गण्डमानिका] रा० ७७२ खोतोद [क्षोदोद] जी०३।६६१ गंडलेहा [ गण्डलेखा] ओ० १५. रा० ६७२. जी० खोतोदग [क्षोदोदक] जी० ३१९४८ ३१५६७ Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गंडीपम-गज्ज ६०१ गंडीपय [गण्डीपद] जी० १११०३ मंडोवहाणय [गण्डोपधानक] रा० २४५ गंडोवहाणिया [गन्डोपधानिका] जी० ३।४०७ ।। गंता [गत्वा] ओ० १८२ जी० ३७८८ गतूंण [गत्वा] ओ० १६५ गंय [ग्रन्थ] रा० २६२. जी० ३।४५७ गंथिम [ग्रन्थिम] ओ० १०६,१३२. रा० २८५. जी० ३४५१,५६१ गंध [गन्ध ] ओ०२,१५,४७,५१,५५,६३,६७,७२. ६२,१४७,१६१,१६३,१६६,१७०. रा०६. १२,१३,३०,३२,४५,१३२,१५६,१५७,१७२, १६६,२३६,२५८,२७६ से २८१,२६१,२६२, ३५१,५६४,६५७,६७२,६८५,७१०,७१४, ७५१,७५३,७७१,७७४,७६४,८०२,८०८. जी० ११५,३६,५०,५८,७३,७८,८१:३।२२, ५८,८४,८७,६५,१२७,२७१,२८३,३०२,३०६, ३२६,३७२,३६८,४१६,४४५ से ४४७,४५१, ४५७,५१६,५४७,५७८,५८६,५६२,५९८,६०१, ६०२,६४५,६४८,६५६,७७.५,८६०,८६६, ८७२,८७८,६३७,६७२,६८२,१०७८,१०८१; १०६७,१११७,१११८,११२४ गंधओ [गन्धतस् ] जौ० ११३७,५० गंधकासाइ [गन्धकाषायिन्] ओ० ६३. रा० २८५. जी० ३१४५१ गंधग [गन्धाङ्ग] जी० ३११७० गंधजत्ति [गन्धयुक्ति] ओ० १४६ गंधतो [गन्धतस् ] जी० ३।२२ गंधद्धाणि [गन्धघ्राणि] ओ०७,८,१०. जी० ३।२७६ . गंधमंत [गन्धवत् ] जी ० १।३३, ३६, ३।५६२ गंधमादण [गन्धमादन] जी० ३।६६८ गंधमायण [गन्धमादन] जी० ३।५७७ गंधवट्टि [गन्धवति] ओ० २,५५,६२. रा० ६, १२,३२,१३२,२३६,२८१ जी० ३।३०२, ३७२, ४४७ .. गंधव [गन्धर्व] ओ० ४६.१२०.१४८.१४६. १६२. रा० १४१,१७३,१६२,६८५,६६८, ७५२,७७१,७८६. जी० २।१७; ३।२६६, २८५,३१८,५८८ गंधष्वकंठ [गन्धर्वकण्ठ] रा० १५५,२५८ जी० ३३२८ गंधव्वकंठग [गन्धर्वकण्ठक] जी० ३।४१६ गंधव्वघरग गन्धर्वगृहक] रा० १८२,१८३ जी. ३२६४ गंधव्वणट्ट [गन्धर्वनृत्य] रा० ८०६,८१० गंधवनगर [गन्धर्वनगर] जी० ३।६२८ गंधवाणिय [गन्धर्वानीक] रा० ४७,५६ गंधहत्थि [गन्ध हस्तिन् ] ओ०१४,१६,२१,५४ रा०८,२६२,६७१. जी० ३।४५७ गंधावति [गन्धापातिन् ] जी० ३३७९५ . गंधावाति [गन्धापातिन् | रा० २७६. जी. ३।४४५ गंधिय [गन्धिक] ओ०२,५५. रा०६,१२,२२,३२, १३२,२३६,२८१,२८५. जी० ३।३०२,३७२, ४४७,४५१ गंधीय [गन्धिक] जी० ३।२६० गंभीर [गम्भीर] ओ० १,५,८,१९,२७,४६,४६, ७१. रा० १३,१४,६१,१७४,२४५,८१३. जी० ३।८३,११८,११६,२७४,२८६,४०७, ५६६,५६७ गकारपविभत्ति [गकारप्रविभक्ति। रा०६५ गगण [गगन] ओ० २७,६४. रा० ५०,५२,५६, १३७,२३१,२४७,८१३. जी० ३।३०७,३६३ गच्छ [गम्]--गच्छ. रा०६८०.-गच्छइ. रा० १५-गच्छंति. ओ० १७१. जी० १५४. --गच्छति. रा० १३. जी० ३।४४०-गच्छह रा०९.-गच्छामि. रा० १६.-गच्छामो. ओ० ५२. रा०६८७.-गच्छाहि. रा० ६६६. - गच्छिहिति. ओ० १४० गच्छंत [गच्छत् ] ओ० ४० . गच्छित्तए [गन्तुम्] ओ० १०० गज्ज [गद्य] रा० १७३. जी० ३।२८५ गिज्ज [गर्ज]-गजंति. रा० २८१. Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१० गज्जित-गयलक्षण जी० ३.४४७ गन्भत्थ [गर्भस्थ ] ओ० १४२,१४४ गज्जित [गजित] जी० ३।६२६ गम्भवक्कंतिय [गर्भावक्रान्तिक] जी० ११६७,११७, गड्ड [गतं ] जी० ३।६२३,६३१.३ १२५,१२६,१२६; ३।१३८,१४०,१४२,१४५, गिढ़ [ग्र]-- गढेज्जा. जी० ३९६३ १४६,२१२,२१५,२२६ गढित्तए [ग्रथयितुम् ] जी० ३१६६० गम्भवास [गर्भवास] ओ० १६५ गढिय [ग्रथित] रा० ७५३ गम्भाहाण [गर्भाधान ] रा०८०३ गण [गण] ओ० ६,१६,४०,४१,४६,५०,६३,६८, गम [गम्-गमिस्सामो. ओ ६८.—गमिहिति. १५५,१६२,१६२. रा० ३२,२०६,२११. रा०७६६.--गम्मती. ओ०७४ जी०३ ११८,११६,२७५,३७२,५८२,५८६ से गम [गम] जी. ३२१८,६६६,७१३,७४२,७४४, ५६६, ६००,६०३ से ६१७,६२०,६२५,६२७, ७४५,६२८,६२६,१०४५,१०४८ ६२८,६३०,६३६,७४६,११२० गमण [गमन] ओ० ४०,४६,६५,९६,१२२, गणग [गणक] ओ० १८. रा० ७५४,७५६,७६२, रा० १७,१८,२८८,६५६,६६७,७७५,७७६, ७६४ ७८०. जी० ३।४५४,५५६ गणणायक [गणनायक] ओ०१८ गमय [गमक] रा० २५१,२६५. जी० ३।७५१ गणनायक [गणनायक ] ओ० ६३. रा० ७५४,७५६, गमित्तए [गन्तुम् ] ओ० १०० ७६२,७६४ गय [गज] ओ० १६,४८,५२,५५ से ५७,६२,६४, गणविउस्सग्ग [गणव्युत्सर्ग] ओ० ४४ ६५. रा०२५,१४१,१४८,१९२,६८७ से ६८६. गणिय [गणित] ओ० १४६. रा० ८०६,८०७ जी० ३१२६६,२७८,३१८,३२१,३५५,४५४, गणवेयावच्च [गणवैयावृत्य] ओ० ४१ ५८६,५६६,५६७,१०१५ गत्तिया [दे०] ओ० ११७ गय [गत] ओ०१५,१६,२१,४६ से ४६,६५,१७२, गत [गत] रा० १२२,२८३,२८६. जी० ३।४४३, १७५,१७७,१६५।२२. रा०८,४७,६८,१२२, ४४७,४४६,४५६,५५७,७४६ १२३,१७३,२७५,२७७,२८१,२८६,२६०, गता [गदा] जी० ३।११० ६५७,६७२,६८७ से ६८६,७१०,७१६,७५३, गति [गति] रा०८१५. जी. ३१५६७,८४२,८४५ ७६५,७७४,७६४,८००,८०२,८०६,८१०. गतिकल्लाण [गतिकल्याण] ओ० ७२ जी. ३१२८५,४४१,४५५,५६६,५६७ गतिय [गतिक] जी० ११५६,६२,६५,६७,७९,८०, गयकंठ [गजकण्ड ] रा० १५५,२५८. जी० ३।३२८ ८२,१०३,१११,११२,११६,११६,१२३,१२८, गयकंठग [गजकण्ठक] जी० ३।४१६ १३४,१३६ गयकण्ण [गजकर्ण] जी० ३१२१६,२२३ गयकण्णदीव [गजकर्णद्वीप ] जी० ३.२२३ गत्त गात्र] ओ० ४७,६३. रा० १२,३७,७५८ से गयकलभ [गजकलभ] रा० २५. जी० ३.२७८ ७६१ जी० ३।११८,३११,४०७ गयजोहि [गजयोधिन् ] ओ० १४८,१४६. गत्तग [गात्रक] रा० २४५ रा० ८१०,८११ गम्भ [गर्भ ] रा० ८००,८०२. जी० ३.५९२ गयदंत [गजदन्त] रा० २६,१३२. जी० ३।२८२, गब्भघर [गर्भगृह ] जी० ३५९४ ३०२ गन्भघरग [गर्भगृहक ] रा० १८२,१८३. गयवइया [गतपतिका] ओ० ६२ जी० ३।२६४ गयलक्खण [गतलक्षण] ओ० १४६. रा० ८०६ Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ . गयवइ-गामरोग गयवह [गजपति] ओ० ५१,६३ गहणया [ग्रहणता] ओ० ५२. रा० ६८७ गयविलंबिय [गजविडम्बित] रा० ६१ गहणी [ग्रहणी] जी० ३१५९८ गयविलसिय [गजविलसित] रा० ६१ गहदंड [ग्रहदण्ड ] जी० ३।६२६ गया [गदा] ओ० १. रा० २४६ गहमुसल [ग्रहमुसल] जी० ३।६२६ गरहणा [गर्हणा] ओ० १५४,१६५,१६६. गहविमाण [ग्रहविमान] जी० २।४२; ३॥१००६, रा०८१६ १०१२,१०१७,१०३१ गरुडजाय [गरुडध्वज] रा० १६२. जी. ३१३३५ गहसंघाडग [ग्रहशृङ्गाटक] जी० ३।६२६ गल्य [गरुक] जी० ११५; ३।२२ गहाय [गृहीत्वा] रा० १२. जी० ३।११८ गरुयत्त [गरुकत्व] रा० ७६२,७६३ गहित [गृहीत] जी० ३।३०३,४५७,४५६,४६१ गल [गरुड] ओ० १६,४७,४८,१२०,१६२. रा० ६६८,७५२,७८६. जी० ३१५६६ गहिय [गृहीत] ओ० ४६,४६,७०,११६,१२०,१६२. गलवूह [गरुडव्यूह ] ओ० १४६. रा०८०६ रा० १२,६९,७०,१३३,२६१,२६३ से २६६, गरलासण [गरुडासन] रा० १८१,१८३. ३००,३०५,३१२,३५५.६६४,६८३,६८६,६६८, जी० ३१२६३ ७५२,७८६,८०४. जी ३४५८,४६०,४६२, गल [गल] ओ० ५७. जी० ३१५६७ ५२०,५५४,५६२ गवक्ख [गवाक्ष] जी० ३।६०४ +गा [ग]-गायंति. रा० ११५. जी० ३।४४७. गवाखजाल [गवाक्षजाल] रा० १३२,१६१. --गिज्जइ. रा० ७८३ जी० ३।२६५,३०२ गाउय [गव्यूत, गव्यूति] ओ० १६५. गवच्छिय [दे० आच्छादनम्] रा० १५३. जी० ११८८,६०,१०३,१२१,१२४,१३०; जी० ३१३२६ ३।१०७,७८८,६१८,१०२२ गवल [गवल] ओ० ४७. रा० २५. जी० ३।२७८ गाढ [गाढ] रा० ७७४ गवेलग [गवेलक] ओ० १,१४,१४१. गात [गात्र] जी० ३४५१,४५७,६०२,८६०,८६६, ___ रा० ६७१,७४४,७६६ ८७२,८७८ गवेसण [गवेषण] ओ० ११७,११६,१५६ गातलटि [गात्रयष्टि] जी० ३।५६७ गवेसणया [गवेषणा] रा० ७६५,७७४ गाया [गाथा] जी० ३८८ गवेसि [गवेषिन्] रा० ७७४ गाषा [गाथा] जी० ३।६३१ गह [ग्रह ] ओ०५०,६३,१६२. रा० १२,७६,१७३, २६१,२६३ से २६६,३००,३०५,३१२,३५५. गाम [ग्राम] ओ १,२८,२६,४६,६८,८६ से ६३, ९५,९६,१५५.१५८ से १६१,१६३,१६८. जी०२।१८; ३।२८५,६३१,७०३,८०६, रा० ६६७,७८७,७८८. जी० ३१६०६,६३१, ८३८१३,६,६,२२,२६,३०,८४५,१०२०,१०२१, १०२६,१०३७,१०३८ ८४१ गहअवसव्व [ग्रहापसव्य] जी० ३१६२६ गामकंटग [ग्रामकण्टक] ओ० १५४,१६५,१६६. गहगज्जित [ग्रहगजित] जी० ३१६२६ रा०८१६ गहगण [ग्रहगण] रा०१२४. जी० ३१५८६, गामदाह [ग्रामदाह] जी० ३१६२६ ८३८।१०,२१,८४१,८४२,१०२० गाममारी [ग्राममारी] जी० ३।६२८ गहजुद्ध [ग्रहयुद्ध] जी० ३।६२६ गामरोग [ग्रामरोग] जी० ३१६२८ सार Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१२ गामाणुगाम [ग्रामाणुग्राम ] ओ० १६,२०,५२,५३. रा० ६८६,६८७,६८६,७०६,७११,७१३ गाय [गात्र] ओ० १,३६,३७,५२,६३,७०,६४, ११०,१३३. रा०२८५,२६१,६८७ से ६८६. जी० ३।११८ गाय [गो] जी० ३।६३१ गायंत [गाग्रत् ] ओ०६४ गायलट्टि [गात्रयष्टि] ओ० ७०. रा० २५४. जी० ३।४१५ गावी [गो] जी० ३।६१६ गाह [ग्राह ] जी० ११६६,११८; ३१४५७. से ४६२, ४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५५४ /गाह [ग्राहय् ] - गाहेइ. ओ० ५६ गाहा [गाथा] ओ० १४६. रा०८०६. जी० ३१५, १२,१२७,३५५ गाहावइपरिसा [गृहपतिपरिषद् ] रा० ७६७ ... गाहेत्ता [ग्राहयित्वा] ०५६ V गिज्झ [गृध्] --गिज्झिहिति ओ० १५०. ... रा०८११. .. - गिण्ह [ग्रह,]--गिण्हइ. ओ १७०.:-गिण्हंति. रा० २८१. जी० ३.४४५.-गिण्हति. . रा०२८८-गिण्हामो. ओ० ११७ गिहित्तए [ग्रहीतुम् ] ओ० ११७. जी० ३।६८८ गिण्हित्ता [गृहीत्वा] ओ १७०. रा० २८१. जी० ३।४४५ गिद्ध [गृद्ध] रा० ७५३ गिम्ह [ग्रीष्म] ओ० २६ गिम्हकाल [ग्रीष्मकाल] ओ० ११५ गिरा [गिर्] जी० ३।५९७. . गिरि [गिरि रा० ८०४. जी० ३।५६७,८३६ गिरिपक्खंदोलग [गिरिपक्षान्दोलक] ओ०६० गिरिपडियग [ गिरिपतितक] ओ० ६० गिरिमह [गिरिमह] रा० ६८८ .... गिलाणभत्त [ग्लान भक्त] ओ० १३४ . .. गिलाणवेयावच्च [ग्लान वैयावृत्य] ओ० ४१ गामाणुगाम-गुण गिलाय [ग्लै]-गिलाएज्जाह. रा० ७२० । गिल्लि [दे०] ओ० १००,१२३. जी० ३१५८१, ५८५,६१० । गिह [गृह ] ओ० २०,५३. रा०६८१,६८३,७०८, ___७१०,७१३,७२३,७२६ गिहिधम्म [गृहिधर्म ] ओ० ५२,७८,६३. रा०६८७, ३.६८६,६६५,६६६.७७५ गिहिलिंगसिद्ध [गृहिलिङ्गसिद्ध] जी० १८." गीइया (गीतिका] ओ० १४६. रा० ८०६ . . गीत [गीत ] जी० ३।८४२,८४५ गीय [गीत] ओ० ४६.६८,१४६. रा०७,७८, ८०६. जी० ३ ३५०,५६३,१०२३ गीयजस [ गीतयशस् ] जी ० ३।२५६ गीयरइ [गीतरति ] ओ० १४८,१४६. रा० १७३, ८०६,८१० गीयरइप्पिय [गीत रतिप्रिय] ओ० ६५ गीयरति [गीतरति] जी०३।२८५ गोवा [ग्रीवा ] ओ० १६. रा० २६. जी ०३।२७६, ४१५,५६६,५६७ : गुंजत [गुञ्जत् ] ओ० ६ रा० ७६,१७३... , जी०३।२७५,२८५ ... . गुंजद्धराग [गुजार्धराग] ओ० २२. रा ० २७,७७८ ७७८,७८८. जी. ३२८०. . गुंजा [गुजा] रा० ७६,१७३. जी० ३।२८५ गुंजालिया [गुजालिका] ओ० ६६. रा० १७४, . १७५,१८०. जी० ३।२८६ गुंजावाय [गुजावात] जी० १८१ गुज्झ [गुच्छ ] ओ०.६ से ८,१०. जी० ११६६; .... ३।२७५ गुज्झ [गुह्य ] रा० ६७५ : गुज्झदेस [गुह्यदेश ] जी० ३।५६६ गुड [गुड] जी० ३६५६२ गुण [ गुण] ओ० १,१४,१५,२३,२५,६३,६६,१२० १४०,१४३, १५७. रा० ६६७९,१७३,६७१२ ६७३,६८६,६६८,७५२,७८६,८०१. Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण-गोक्खीर जी० १५० ३२२८५, ५०६, ५६७ गुण [ गुणनिष्पन्न ] ओ० १४४ गुणतर [ गुणतर] रा० ७१८ गुणभाव [ गुणभाव ] ओ० १६५/१२ गुणयालीस [ एकोनचत्वारिंशत् ] रा० १२६ गुणव्वय [ गुणव्रत ] ओ० ७७. रा० ७८७ गुणसेढिया [ गुणश्रेणिका ] ओ० १८२ गुणिय [ गुणित ] जी० ३८३८२६ [ गुप्त ] ओ० २७,१५२,१६४. रा० १२३, ६६४,७७५,७७२,८१३. जी० ३।५६२ गुत्तदुवार [गुप्तद्वार] रा० १२३, ७५५,७७२ गुत्तपालित [गुप्तपालिक] जी० ३।५६२ गुत्तपालिय [गुप्तपालिक] रा० ६६४ गुत्तभयारि [गुप्तब्रह्मचारिन्] ओ० २७,१५२, १६४. रा० ८१३ गुति [ गुप्ति ] रा० ६८६,८१४ गुत्तिदि [ गुप्तेन्द्रिय ] ओ० २७,३७,१५२,१६४. रा० ८१३ गुप्पमाण [ गुप्यत् ] ओ० ४६ गुफ [गुल्फ] ओ० १६. जी० ३५६६ गुमगुमंत [ गुमगुमायमान ] ओ० ६. जी० ३।२७५ गुम्म [ गुल्म] ओ० ६ से ८,१०. जी० १६६; ३।२७५,५८०,६३१ गुरु [गुरु] रा० ६७१ गुल [ गुड ] ओ० ६२. जी० ३।६०१, ८६६ लय [०] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. जी० ३१२६८,२७४ गुलगुलंत [ गुलगुलामान ] ओ० ५७ गुलिका [ गुलिका ] ओ० ४७. रा० २५, २६, २८. जी० ३।२७८, २७६,२८१ गुहा [ गुहा ] रा० १७३. जी० ३/२८५ गूढ [ गूढ ] ओ० १६. जी० ३।५६६ गूढदंत [ गूढदन्त ] जी० ३।२१६ गेज्म [ ग्राह्य ] रा० १३३. जी० ३।३०३ वह [ ग्रह ] - गेहइ. रा० ७०८. जी० ३।४५६ – गेहंति. रा० ७५. जी० ३।४४५ त्ति [ ग्रहीतुम् ] जी० ३६८६ गेण्हित्ता [ गृहीत्वा ] रा० ७५. जी० ३।४४५ पग [ गृपृष्ठक ] ओ० ६० गेय [य] रा० ७६, ११५,१७३,२८१. जी० ३।२८५,४४७ ६१३ विज्ज [ ग्रैवेय] रा० ६६४,६८३ विज्जविमाण [ ग्रैवेयविमान ] ओ० १९२ वेज्ज [ ग्रैवेय ] ओ० ५७, १६०. रा० ६६,७०. जी० २६२ ३१५६२, ५३, १०३८, ११०३, ११०५, ११०७,१११६,१११७,११२०, ११२३, ११२४, ११२६ वेज्जक [ ग्रैवेयक ] जी० २ १४८, १४९ गेवेज्जक [ ग्रैवेयक ] ओ० ६३ वेज्ज विमाण [ ग्रैवेयविमान ] ओ० १६०. जी ० ३ १०६३, १०६६, १०६६, १०७१, १०७३, १०७६ गेवेज्जा [ ग्रैवेयक ] जी० ३।१०८४, १०५६, १०२, १०६५.११०३, ११०५, ११०७, १११६,१११७, ११२०, ११२३,११२४, ११२६ गेह [ गेह ] जी० ३।६०५, ६३१, ८४१ हागार [गेहाकार ] जी० ३५६४ गेहाययण [गेहायतन ] जी० ३।६०५ गेहाव [य ? ] ण [गेहायतन ] जी० ३१८४१ गो [ गो] ओ० १,१४,१४१. रा० ६७१,७७४, ७६६. जी० ३८४ गोकण [ गोकर्ण ] जी० ३।२१६, २२४ गोदी [ गोकर्णद्वीप ] जी० ३।२२४ गोलग [ गोकिलिञ्जक ] रा० १५१. जी० ३।३२४ गोकिलिज [ गोकिलिञ्ज ] रा० ७७२ गोक्खी [ गोक्षीर] ओ० १६, १६४ जी० ३४६०१, Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१४ ८६६, ६५६ गोखीर [ गोक्षीर] ओ० ४७ रा० १३०. जी० ३ ३००, ५६६ गोवर [ गोघृतवर ] जी० ३८७२,६६० गोच्छिय [ गुच्छित ] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. जी० ३।२६८,२७४ गोण [ गो] ओ० १०१,१२४, १४४. जी० ३१६१८ गोलक्खण [ गोलक्षण ] ओ० १४६ रा० ८०६ गोणस [ गोनस ] जी० ११०८ गोदीव [गौतमद्वीप ] जी० ३।७६२ far [ गोतीर्थ ] जी० ३ ७६०, ७६१,७९३ गोथूम [ गोस्तूप ] जी० ३।७३४ से ७४०, ७४२, ७४५, ७५० गोभा [ गोस्तूपा ] जो० ३ ७३८,६१०,९२१ गोधूम [ गोधूम ] जी० ३।६२१ गोपुच्छ [ गोपुच्छ ] रा० १२७. जी० ३।२६१, ३५२,५६७, ६३२, ६६१, ६८६, ७३६, ८८२ गोपुर [ गोपुर ] ओ० १. रा० ६५४,६५५. जी० ३।५५४, ५६४, ६०४ गोफ [ गुल्फ ] जी० ३।४१५ गोमयकts [गोमयीट ] जी० ११८६; ३|१११ गोमासिया [ गोपाका ] रा० १३०,२३६, २५१,२६५. जी० ३।३००, ४१२,६०३ गोमाणसी [ गोपानसी ] जी० ३।३६८,४१२, ४२१, ४२६ गोमुह [ गोमुख ] जी० ३।२१६ गोमुही [ गोमुखी ] रा० ७७ गोमेज्जमय [ गोमेदमय ] रा० १३०. जी० ३।३०० गोय [गोत्र ] ओ० २०,४४,५२, ५३. रा० ६,११, ६८७,७१३. जी० ३।१२८ गोयम [ गौतम] ओ० ८३,८६,८८ से ६५, ११४, ११७ से १२०,१४०,१४१,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७,१७०, १७१,१७३ से १७६, गोखीर- गोयम १७८, १७६, १८४ से १८८, १६२. रा० ६३, ६५,७३,७४, ११८, १२१, १२३, १२४, १७३, १६७ से २००,६६५,६६६,६६८,७९७ से ७६६,८१७. जी० १।१५ से ३७, ३ से ४६, ५१ से ५६, ५० से ६२,६४, ७४, ७, ८२, ८५ से ८७, ६०,६३ से ६६,१०१,११६,१२७, १२८, १३० से १३४,१३७ से १४३; २।२० से २४, २६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६, ४८, ४९, ५४, ५७ से ६३,६६,६८ से ७४.७६, ८२ से ८४,८६,८८, ६२,६५ से ६८,१०७ से १०६,११३,११४, ११६ से ११६, १२२ से १२६, १३३ से १४० ; ३॥३ से १२,१४ से २१,२८ से ३५, ३७ से ४४, ४८ से ६३,६६,७३,७६ से ८, १०१ से १०४,१०६ से ११०,११२ से ११६,११८ से १२०,१२२ से १२८,१४७,१५० से १६१, १६३,१६७ से १७४, १७६, १७८, १८०, १८२, १८३,१८५ से २०३,२११, २१४,२१७ से २२३, २२७,२३२,२३५ से २३६,२४१ से २४३, २४५ से २४७,२४६,२५०,२५५ से २५६, २६ से २७२,२७८, २८५, २६६, ३००, ३५०, ३५१,५६४ से ५६६,५६८ से ५७०,५७२, ५७४ से ५ ८,५६६,५६७, ५६६ से ६०४, ६२ से ६३२,६३७ से ६३६, ६५६, ६६०, ६६४,६६६,६६८,७०० से ७०३, ७०५ से ७०८,७१०,७११,७१४ से ७१६,७१८ से ७२३, ७२६,७३० से ७३६,७३८ से ७४३,७४५, ७४६,७४८ से ७५०, ७५४,७६० से ७६६, ७६८ से ७७०,७७२, ७७६ से ७७८, ७८३, ७८४,७८७ से ७६५,७६७ से ८००, ८०२, ८०४,८०६,८०८, ८०६,८११ से ८१५, ८१६, ८२०,८२२ से ८२५,८२७, ८२६,८३०, ८३२ से ८३६, ८३, ८४०, ८४२ से ८४७, ८४६ से ८५१,८५४,८५७,८६०,८६३, ८६६,८६६, ८७२८७५, ८७८,८१,८८२,६१८,१३६, ६४०,६४४,६५३ से ६६१,६६३ से ६६६, Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोयमदीव-घण ६६६,६७२ से ६७६,६८२ से ६८७,८६, ६६ से १००८,१०१०,१०११,१०१५, १०१७,१०२० से १०२३,१०२५ से १०२७, १०३७ से १०४२, १०४४,१०५७, १०५८, १०६३, १०६५, १०६७, १०६६, १०७१, १०७३ से १०७५,१०७७ से १०८१,१०८३, १०८५ से १०८७,१०८६ से १०६३, १०६५, १०६८, १०६६, ११०१,११०५, ११०६ से ११२४,११२८ से ११३१,११३४ से १९३८; ४३,५ से ११, १६, १७, १६, २२, २३, २५, ५५,८,१०,१२ से १७,१६ से २४,२८ से ३०, ३४, ३५, ३७ से ३६, ४१ से ५०, ५२ से ५६, ५८ से ६०, ६८, ७ २, ६, २०; ६२, ४, १० से १४,१६,२३ से २६,३१,३३,३९,४१ से ४७,४६, ५२, ५५,५७,५८,६४,६८,७७,७८, ८६, ६०, ६६, ६७, १०२, १०३, ११४,११५, १२२, १३२, १४२, १६० से १६३, १७१, १८६ से १६१, १६३, १६५,१६८ से २०७,२१० से २१२, २१४ से २१६,२२२ से २२५, २२७ से २३०,२३३ से २३८,२४० से २४४, २४६, २४६ से २५३,२५५,२५७ से २६३,२६५, २६८ से २७३,२७५ से २८२,२८४ से २६३ गोयमदीव [गौतमद्वीप ] जी० ३।७५४, ७५५, ७६०, ७६१ गोयरा [ गोचरा ] रा० ७१६ गोर [गौर] ओ० ८२ गोलवट्ट [ गोलवृत्त ] रा० २४०, २७६,३५१. जी० ३।४०२,४४२,५१६,१०२५ गोलिया [ गोलिकालिञ्छ | जी० ३।११८ toas [ गोव्रतिक ] ओ० ६३ गोसीस [ गोशीर्ष ] ओ० २,५५,६३. रा० ३२, २७६,२८१, २८५,२६१, २६३ से २६६,३००, ३०५,३१२,३५१,३५५,५६४. जी० ३:३७२, ४४५,४४७,४५१,४५७, ४६२, ४६५, ४७०, ४७७, ५१६,५२०,५४७,५५४ गोहा [ गोधा ] जी० १ ११२ गोही [गोधी ] जी० २६ [घ] घ [घ] रा० ६५ ओद [ घृतोद ] जी० ३।२८६ car [ घृतोदक ] जी० ११६५ ओग [ घृतोदक ] रा० १७४ ६१५ घंट [ घण्टाक] जी० ३।२८५ घंटा [ घण्टा ] ओ० २,१२,५७,६४. रा० १३.१५, _२३,३२,१३५,१७३, २५८,६८० जी० ३:२६१,३०५,३७२, ४१६ घंटाजाल [ घण्टाजाल ] रा० १३२,१६१. जी० ३।२६५,३०२ घंटापास [ घण्टा पार्श्व ] रा० १३५. जी० ३१३०५ घटावलि [ घण्टावलि ] रा० १७,१८,२० घंटिया [ घण्टिका ] रा० १७,१८. जी० ३।५६३ धंस [घर्ष ] जी० ३ । ६२३ सिग [ घर्षितक ] ओ० ६० घकारपविभत्ति [धकारप्रविभक्ति ] रा० १५ √ घट्ट [ घट्ट् ] घट्टइ. रा० ७७१ -- घट्टति जी० ३।७२६ घट्टत [ घट्टयत् ] रा० ७७१ घट्टया [ घट्टन ] ओ० १०३, १२६ घट्टिज्जंत ] घट्टयमान ] रा० ७७ घट्ट [ घट्टित ] रा० १७३. जी० ३।२८५ घट्ट [ घृष्ट ] ओ० १२,१६४. रा० २१,२३,३२, ३४,३६,१२४,१४५,१५७. जी० ३।२६१, २६६,२६६ [ घटक ] जी० ३।५८७ घडत [ घटत्व ] जी० ३।२२,२७,७८४,७८७ घण [धन ] ओ० १, ४, ५, ८, १३, १६,४७,६८. रा० ७,१२,११४,१३३,१७०,२८१,७०३.७५५, ७५८, ७५६,७७२. जी० ३६७,८०, ११८, २७३,२७४,३००, ३०३, ३५०, ४४७, ५६३, Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घणदंत-चउद्दस ६१६ ५८६,५९६,८४२,८४५,१०२५,११२२ घणदंत [घनदन्त ] जी० ३।२१६,२२६ घणवंतहीव [घनदन्तद्वीप] जी० ३।२२६६ घणवात [घनवात] जी० ३।१३,१६,२१,२६,२७, ३७,४७,४६,५०,६४ घणवाय घनवात] जी० ११८१; ३१३०,३८,४२, १०५८,१०५६ घणोदधि [घनोदधि ] जी० ३।१३,२६,३०,३२, ३७ से ४०, ४५,४६,४८,४६,६० से ७२ घणोदहि [घनोदधि ] जी० ३।१८,२०,२७,६३, १०५७ घम्मा [घर्मा] जी० ३।३ घय [घृत] जी० ३।५६२,७७५ घयवर [धृतवर] जी० ३।८६८,८६६,८७१ घयोद [घृतोद] जी० ३।८७१,८७२,८७४,६६०, घुण [घुण] रा० ७६१ धुम्मंत [घूर्ण्यमान] ओ० ४६ घोड [घोट] जी० ३।६१८ घोर [घोर] ओ० ४६,८२ रा० ६८६ घोरगुण [घोरगुण] ओ० ८२. रा०६८६ घोरतवस्सि [घोरतपस्विन् ] ओ० ८२. रा०६८६ घोरबंभचेरवासि [घोरब्रह्मचर्यवासिन् ] ओ० ८२. रा० ६८६ घोलंत [घोलयत् ओ० २१,५४. रा०८,७१४ घोलियग [घोलितक] ओ० ६० घोस [घोष] ओ० ६६ घोसण [ घोषण] रा० १५ घोसाडिया [कोशातकी] रा० २८. जी० ३।२८१ घोसेयव्व [घोषयितव्य] जी० ३।८८ ङ [ङ] रा०६५ कारपविभत्ति [ङकारप्रविभक्ति] रा० ६५ घयोदग [घृतोदक] जी० ३।८६६ घर [गृह ] ओ० २८,११८,११६,१५४,१६२, १६५,१६६. रा० ६६८,७५२,७८६. जी० ३१५६४ घरग [गृहक ] जी० ३।५७६ घरय [गृहक ] ओ०७,८,१०. रा० १८३. जी० ३१५७६,८६३ घरसमुदाणिय [गृहसामुदानिक ] ओ० १५८ घरह [गृहक ] जी० ३।८६३ घरोलिया [गृहकोकिला] जी० २६ घाइ [घातिन् ] ओ० ८७ घाण [घ्राण ] ओ० १७०. रा० ३०,१३२,२३६. जी० ३।२८३,३०२,३९८ घाणिदिय [घ्राणेन्द्रिय ] ओ० ३७. जी० ३१९७६ घातक [घातक ] जी० ३।६१२ घाय [घात ] रा० ६७१ घास [ग्रास ] ओ०३३ च [च ] ओ० ७. रा० ७. जी० २१ चइत्ता [त्यक्त्वा, चित्वा] ओ० २३. रा० ७६९ चइत्ताणं [त्यक्त्वा ] ओ० १६५।१ चउ [चतुर] ओ० १६. रा० ७. जी० १११६ चउपक [चतुष्क] ओ० १,५२,५५. रा०६५४,६८७, ७१२. जी० ३१२२६ ५५४ चउक्कत [चतुष्कक] जी० ३।१४२,१४४ चउक्कय [चतुष्कक] रा० ६५५ चउणउय चतुर्नवति ] जी० ३।८२३ चउत्थ [चतुर्थ ] ओ० १७४,१७६. जी० १।१२१ चउत्थग [ चतुर्थक ] जी० ६.१४६ चउत्थभत्त [चतुर्थभक्त ] ओ० ३२ चउत्था [ चतुर्थी] जी० ३२ चउत्थी चतुर्थी ] जी० २११४८,१४६; ३.४, ६६,८८,६१,१६५,११११ चउदसपुस्वि [चतुर्दशपूर्विन् ] रा० ६८६ चउद्दस [चतुर्दशन् ] ओ० १६. जी० २।४८ Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउद्दसी-चंददीव ६१७ चउद्दसी [चतुर्दशी] ओ० १२० चउद्दसभत्त [चतुर्दशभक्त] ओ० ३२ चउप्पई [चतुष्पदी] जी० २।५,६ चउप्पद [चतुष्पद] जी० २।११३,१२२; ३।१४२ चउप्पय [चतुष्पद] रा०६७१,७०३,७१८. जी० १।१०१ से १०३,१२०,१२१; २।१,२३, ५१; ३८८,१४१,१४२,१६३,७२१ चउप्पाइया [चतुष्पादिका] जी० २६ चउभाग [ चतुर्भाग] जी० ३।२४७,२५०,२५६, १०२७ से १०३५ चउभाग [चतुर्भाग] जी० २।४० से ४३; ३।२४७ चउमासिय चातुर्मासिक | ओ० ३२ चउम्मुह [चतुर्मुख ] ओ० ५२,५५. रा० ६५४, ६५५,६८७,७१२. जी० ३।५५४ चउरंगल [चतुरङ्गुल] रा० ५६. जी० ३।५६६, ८३८११७ चउरंत [चतुरंत] ओ० ४६ चउरंस [चतुरस्र ] जी० ११५; ३।२२,७७,७८, ३५२,५६४,५६७,१०७१ चउरकप्प [चतुष्कल्प] जी० ३.५६२ चउरासीइ | चतुरशीति ] ओ० ६३. जी० ११०३ चउरासीति [ चतुरशीति] जी० ३।१६ ।। चउरिदिय [चतुरिन्द्रिय ] जी० १।८३,६०; । २।१०१,१०३,११२,१२१,१३६,१४६,१४६; ३।१३०,१३६,१६७,४।१,४,८,१४,१८ से २०,२४,२५, ८।१,३,५,६।१,३,५,७,१६७, १६६,२२१,२२३,२२९,२३१,२५६,२५६, २६४,२६६ चउविसाण [चतुर्विषाण] रा० १६२. जी० ३।३३५ चउवीस [चतुर्विंशति ] ओ० ३३. जी० ३।२३६ चउविध [ चतुविध] जी० ३।१,४४७ चउन्विह [चतुर्विध ] ओ०२८,३७,४५,६३,११७. रा० ११४ से ११७, २८१,२८५,२८६,६७५, ७४०,७४६,७६६. जी० ११५,१०,८३,६१, १०३,१०५,११३,१२१,१२५,१३५; २।६, १०,१५,७८; ३।२३०,४५१,४५२,५८८, ११३८, ९।११३,१२१,१३१,१४१,१४७ चउसट्टि [चतुष्पष्टि] ओ० ६२. जी० ३।६११ चउसट्ठिया [चतुष्पष्टिका] रा० ७७२ चउसालग [चतुःशालक] जी० ३।५६४ चउहा [चतुर्धा] रा० ७६४,७६५ चंकमंत [चंक्रम्यमाण] ओ० ५७ चंगेरी चङ्गेरी रा० १५६,२५८.२७६. जी० ३।३२६,३५५,४१६,४४५ चंचल [चञ्चल ] ओ० २३,४६,४६ चंड [चण्ड] ओ० ४६. रा० १०,१२,५६,२७६, ६७१,७६५. जी० ३८६,११०,१७६,१७८, १८०,१८२,४४५ चंडा | चण्डा] जी० ३१२३५,२३६,२४१,१०४०, १०४४ चंद [चन्द्र] ओ० १६,२७,५०,६४ ६८,१७०. रा० २६,७०,१३३,२८२,८०२,८०३,८१३. जी० ११८, ३३२५८,२८२,३०३,४४८,५६६, ५६७,७०३,७२२,७६२ से ७६४,७६६,७६८, ७७०,७७२,७७४ से ७७६,७७८,८०६,८२०, ८३०,८३४,८३७,८३८४,७,१०.१५ से २३, २५ से २७.२६,३२,८४५,८७३,८७६,८७६, ६२६,६३७,६५३,१०१७,१०२०,१०२१, १०२३ से १०२६,११२२ चंदण | चन्दन] ओ०६,१०,२६,४७,५२,६३, ११०,१३३. रा० ३०,१३१,१४७,१४८, १७३,२५८,२७६,२८०,२८५,२६१,२६३ से २६८,३००,३०५,३१२,३५१,३५५,५६४, ६८७ से ६८६. जी० ३।२८३,२८५,३०१, ४४५,४५१,४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७, ५१६,५२०,५४७,५५४,५८३,८३८।२६ चंदत्थमणपविभत्ति [चन्द्रास्तमनविभक्ति। रा० ८६ चंददीव [चन्द्रद्वीप] जी० ३।७६२,७६३,७६६, Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ १८ ७६८, ७७०, ७७२, ७७४, ७७६,७७८ चंद [ चन्द्रद्रह ] जी० ३।६६७ चंदद्दी [ चन्द्रद्वीप ] जी० ३।७६३ चंदद्ध [ चन्द्रार्ध ] ओ० १६. रा० ७०,१३३. जी० ३।३०३,५६६, ११२२ चंदपडिमा [ चन्द्रप्रतिमा ] ओ० २४ चंदfree [ चन्द्रपरिवेश ] जी० ३।८४१ चंदपरिवेस [ चन्द्रपरिवेश ] जी० ३४६२६ चंदप्पभ [ चन्द्रप्रभ] रा० १६०,२६२. जी० ३।३३३,४५७ चंदप्पा [ चन्द्रप्रभा ] जी० ३१५८६,७६३,८६०, ६५८,१०२३ चंदप्पह [ चन्द्रप्रभ ] रा० २५६ जी ० ३।४१७ चंदमंडल [ चन्द्रमण्डल ] रा० २४,५१, १४६. जी० ३।२७७,३२२ चंदमंडलपविभत्ति [ चन्द्रमण्डल प्रविभक्ति ] रा० चंदवडेंस [ चन्द्रावतंसक ] जी० ३।१०२४, १०२५ चंदवण्ण [ चन्द्रवर्ण ] जी० ३।७६३ चंदवण्णाभ [ चन्द्रवर्णाभ ] जी० ३।७६३,१००८, १०१०१०१५ चंदविमाण [ चन्द्रविमान ] जी० २।१८, ४० ; ३१००३ से १००६, १०२७ चंदविलासिणी [ चन्द्रविलासिनी ] रा० १३३. जी० ३।३०३, ११२२ चंदसालिया [ चन्द्रशालिका ] जी० ३।५६४ चंदसूरदंसणग [ चन्द्रसूरदर्शनक ] रा० ८०२ चंदसूरदंसिणया [ चन्द्रसूरदर्शनिका ] ओ० १४४ चंदा [ चन्द्रा ] जी० ३।७६४,७७६,७७८ चंदागमणपविभत्ति [ चन्द्रागमनप्रविभक्ति ] T० ८७ ० चंदागार [ चन्द्राकार ] रा० १५६. जी० ३।३३२, ७६३ चंदाणणा [ चन्द्रानना ] रा० ७०,१३३,२२५. चंद चक्कट्ट जी० ३।३०३,३८४, ८६६, ११२२ चंदावरणपविभत्ति [ चन्द्रावरणप्रविभक्ति ] रा० ८८ चंदावलि [ चन्द्रावलि ] रा० २६ चंदावलिपविभत्ति [ चन्द्रावलिप्रविभक्ति ] रा० ८५ चंदिम [ चन्द्रनस् ] ओ० १६२. रा० १२४. जी० ३।२५७,८४१, ८४२,८४५,६६८ से १०००,१०२०,१०२१,१०३८ चन्दुग्गमणपविभत्ति ] चन्द्रोद्गमनप्रविभक्ति ] रा० ८६ चंपक [ चम्परु ] जी० ३।२८१ चंपग [ चम्पक ] रा० २८,८०४. जी० ३।२८१ चंपग [लया ] [ चम्पकलता ] जी० ३।२६८ चंपगलया [ चम्पकलता ] ओ० ११. रा० १४५. जी० ३५६४ चंपगलयापविभत्ति [ चम्पकलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ चंपगवडेंसय | चम्पकावतंसक ] रा० १२५ चंपगवण [ चम्पकवन ] रा० १७० जी० ३।३५८. चंपय [ चम्पक ] रा० २८, १८६. जी० ३।२८१, ३५६ चंपा [ चम्पक] रा० २८, ३० जी० ३।२८१,२८३ चंपा [ चम्पा ] ओ० १, २, १४,१९ से २२, ५२, ५३ ५५, ६० से ६२,६७, ६८, ७० चंपापविभत्ति | चम्पकप्रविभक्ति ] रा० ६३ चकारवग्ग [ चकारवर्ग ] रा० ६६ चक्क [ चक्र ] ओ० १६, १६. T० १५०,१५१ जी० ३।११०, ३२३, ३२४,५६६,५६७ चक्कग | चक्रक | जी० ३।५६३ चक्कज्झय [ चक्रध्वज | रा० १६२. जी० ३।३३५ चक्कद्धचक्कवाल [ चक्रार्धचक्रवाल] रा० ८४ चक्कपाणिलेहा | चक्रपाणिरेखा ] जी० ३।५९६ चक्कल [ दे० ] रा० ३७. जी० ३।३११ चक्कलक्खण [ चक्रलक्षण ] रा० ८०६ चक्कवट्टि [ चक्रवर्तिन् ] ओ० १६,२१,५४, ७१. Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चक्कवाग-चरमणाणुप्पायनिबद्ध ६१६ चम्म [चर्मन] रा०८,१५४,२७६,२६२. जी० ३।३२७,४४५, ४५७,५६२,६०२,७६५,८४१,८६६,६५६ चक्कवाग [चक्रवाक ] ओ० ६. जी० ३।२७५ चक्कवाल [चक्रवाल ओ० ७०,१७०. रा० २०१, ८०४. जी० ३८६,२६०,२७३,३६२,५८६, ७०५,७०६,७३२,७६४,७६५,७९७,७९८, ८११,८१२,८२२,८२३,८३२,८४६,८५०, ८८२,६१८ चक्कवूह [चक्रव्यूह ] ओ०१४६. रा० ८०६ चक्किय [चक्रिक] ओ०६८ चक्खिदिय [चक्षुरिन्द्रिय] ओ० ३७. जी० ३।६७८ चक्ख [चक्षुष्] रा० ६७५. जी० ३।६३३ चक्खुवंसणि [चक्षुर्दर्श निन् ] जी० ११२६,८६,६०; ____।१३१,१३२,१३६,१४० चक्खुदय [चक्षुर्दय] ओ० १६,२१,५४. रा० ८, २६२. जी० ३।४५७ चक्खुप्फास [चक्षुस्स्पर्श ] ओ० ६६,७०. रा० ७७८ चक्खुभूय [चक्षुर्भूत] रा० ६७५ चक्खुल्लोयणलेस [चक्षुर्लोकनलेश] रा० १७,१८, २०,३२,१२६,१३३. जी० ३।२८८,३००,३०३, ३७२ चक्खुहर [चक्षुहर] रा० २८५. जी० ३।४५१ चच्चय [चर्चक] रा० २६४,२६६,३००,३०५, ३१२,३५१,३५५,५६४. जी० ३४५६,४६१, ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५४७ चच्चर [चत्वर] ओ० १,५२,५५. रा०६५४, ६५५,६८७,७१२. जी० ३३५५४ चच्चाग | दे० चर्चाक ] रा० १३१,१४७,१४८. जी० ३१३०१ चच्चाय | दे० चर्चाक] रा०२८०. जी० ३।४४६ चडगर [दे०] रा० ५३,६८३,६६२,७१६ चत्तालीस [चत्वारिंशत् ] जी० ३।६६ चतुरासीति [चतुरशीति | जी० ३।८८२ चतुरिदिय [चतुरिन्द्रिय ] जी० २।१३८,१४६; । ३२,३७,१२६,२८२. जी० ३.२३४ से २३६, २४३,२४५,२४७,२५०,२५६,२५८,२८८, ३००,३११,३७२,४४८ चमस [चमस] ओ० १११ से ११३,१३७,१३८ मन] रा० २४,६६४. जी० ३।२७७,५६२, चम्म [पाय] [चर्मपात्र ] ओ० १०५,१२८ चम्म [बंधण] [चर्मबन्धन] ओ० १०६,१२६ चम्मपक्खि [चमपक्षिन्] जी० ११११३,११४,१२५ चम्मपक्खी [चर्मपक्षिणी) जी० २०१० चम्मपाणि [चर्मपाणि रा०६६४. जी० ३१५६२ चम्मेट्ठग [ चर्मेष्टक] रा० १२, ७५८, ७५६. जी० ३।११८ चय [चय, च्यव] ओ० १४१. रा० ७६६. जी० ३।११२७ चय [शक्] -चएइ. ओ० १६५।१६ चय च्यु]--चयंति. जी. ३८७ चय [त्यज्]-चयइ. जी० ३।१२६।५ चयंत [त्यजत् ] ओ० १६५।३ चयण [च्यवन] जी० ३।१६० चिर चर]--चरइ. जी० ३१८३८॥२ --चरंति. ओ० ४६. जी० ३७०३-चरति जी० ३३१००१-चरिसु. जी० ३१७०३ -चरिस्संति जी० ३१७०३ चरण [चरण] ओ० १५, २५. रा० ६८६. जी० ३१५६७ चरमअभिसेयनिबद्ध [चरपाभिषेकनिबद्ध ] रा० ११३ चरमंत [चरमान्त] जी० ३।६६८ चरमकामभोगनिबद्ध [चरमकामभोगनिबद्ध] रा० ११३ चरमचवणनिबद्ध [चरमच्यवननिबद्ध रा० ११३ चरमजम्मणनिबद्ध चरम जन्मनिबद्ध र ० ११३ चरमजोवणनिबद्ध | चरम यौवननिबद्ध रा० ११३ चरमणाणुप्पायनिबद्ध [चरमज्ञानोत्पादनिबद्ध] रा० ११३ ४।२१ चमर [चमर] ओ० १३,६८. रा० १७,१८,२०, Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२० चरमतयचरणनिबद्ध [ चरमतपश्चरणनिबद्ध ] रा० ११३ चरमतित्यपवतण निबद्ध [ चरमतीर्थ प्रवर्तन निबद्ध ] रा० ११३ चरमनिक्मणनिबद्ध [ चरम निष्क्रमणनिवद्ध ] रा० ११३ चरमनिदाघकाल [ चरम निदाघकाल ] जी० ३।११८, ११६ चरमनिबद्ध [ चरम निबद्ध ] रा० ११३ चरमपरिनिव्वाणनिबद्ध [ चरमपरिनिर्वाणनिबद्ध ] रा० ११३ चरमपुष्वभवनिबद्ध [ चरमपूर्व भवनिबद्ध ] रा० ११३ चरमबालभावनिबद्ध [ चरमबालभावनिबद्ध ] रा० ११३ चरमसाहरणनिबद्ध [चरमसंहरणनिबद्ध ] रा० ११३ चरमाण [ चरत् ] ओ० १६, २०, ५२, ५३. रा० ६८६, ६८७, ७०६, ७११, ७१३ चरित [ चरित्र ] रा० ६८६, ८१४ चरितविणय [ चरित्रविनय ] ओ० ४० चरितसंपण्ण [ चरित्र सम्पन्न ] ओ० २५. रा० ६८६ चरिम [ चरम ] ओ० ११७, १५४, १६२, १६५३. रा० ६२, ७६६, ८१६. जी० ६६३,६४,६६ चरिमंत | चरमान्त ] जी० ३।३३, ३४, ३७, ३८, ६० से ६८,२१७,२१६ से २२५, २२७,६३२, ६३९, ६६६, ११११ चरिमभव [ चरमभव ] ओ० १९५४ चरिममोहणिज्ज [ चरममोहनीय] ओ० ८६ afra [ चरित] ओ० ४६ चरिया [ चरिका ] ओ० १, १६०. रा० ६५४, ६५५. जी० ३।५५४, ५६४ चरियालिंगसामण्ण [ चर्यालिङ्गसामान्य ] ओ० १६० Par [ चरु ] ओ० १११ से ११३, १३७, १३८ चल [ चल् ] - चलइ. रा० ७७१ - चलंति. जी० ३।७२६ - चालेइ. रा० ७७१ चलंत [ चलत् ] ओ० ५, ८, ४६. रा० ७७१ चरमतवचरणनिबद्ध-चामर जी० ३।२७४ चलण [ चरण] ओ० १६. जी० ३।५६६, ५६७ चलणमालिया | चरणमालिका ] जी० ३।५६३ चलणी | चलनी | जी० ३।६२३ चलिय | चलित ] रा० १७, १८, २० √ चव [ च्यु ] - चवति जी० ३१८४३ चवण [ च्यवन ] रा० ८६१५. जी० १।१४ चवल [ चपल ] ओ० २१, ४६, ४६, ५४. रा०८, १०, १२ १५, ३२, ५६, १७६, ७१४. जी० ३१८६, १७६, १७८, १८०, १८२, ४४५ चवलायत [ चलायमान ] जी० ३।५६७ चवलिय [ चपलित ] जी० ३।५८७ चसग [ चषक ] जी० ३।५८७ चाइ [ त्यागिन् ] ओ० १६४ चाउक्कोण | चतुष्कोण ] रा० १७४. जी० ३।११८, ११६, २८६ चाउग्घंट [ चतुर्घण्ट ] रा० ६८१ से ६८३, ६८५, ६६० से ६२, ६६७, ७०६, ७१०, ७१४, ७१६, ७२२, ७२४, ७२६ चाज्जातग [ चतुर्जातक ] जी० ३१८७८ चायाम [ चातुर्याम ] रा० ६६३,७१७,७७६ चाज्जामिय [ चातुर्यामिक ] रा० ६६५,६६६ चात्यगाहिय | चातुकाहिक ] जी० ३।६२८ चाउस [ चतुर्दश ] रा० ७७४ चाउदसी [ चतुर्दशी ] ओ० १६२. रा० ६६८, ७५२,७८६ चाउ भाइया [ चातुर्भागका ] रा० ७७२ चाउमासि [ चानुमनिक ] जी० ३।६१७ चाउरंगणी [ चतुरङ्गिणी] ओ० ५५ से ५७,६२, ६५ चाउरंत [ चतुरन्त ] ओ० १६,२१,५४. रा०८, १५४,२६२. जी० ३।३२७,४५७,६०२,८६६, ६५ह चाउरक्क [ चातुरक्य ] जी० ३।६०१,८६६ चाडुकर [ चाटुकर ] ओ० ६४ चामर [ चामर] ओ० १२,१६,६३ से ६५. Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चामरग्गाह-चियत्त ६२१ रा० २२,२३,५०,१६०,१६७,१७८,२५६, चिक्खल [दे०] ओ० ४६ २७६. जी० ३।२६०,२६१,३३३,३४८,३५५, चिच्चा [ त्यक्त्वा] ओ० २३. रा० ६६५ ३८२,४१७,४१६,४४५,५६७ चिट्ट [ष्ठा]-चिट्ठइ. ओ० ३७. रा० १२३. चामरग्गाह [चामरग्राह] ओ०६४ जी० ३।४८.-चिट्ठति ओ० १८३. रा० ४०. चामरधारपडिमा [चामरधारप्रतिभा] रा० २५६. जी० ३१२२.-चिट्टति. रा० २७६. जी०३१४८. जी० ३।४१७ - चिट्ठह. रा० ७५३.-चिट्ठज्ज. ओ० १८० चार [चार] ओ० ५०,१४६. रा० ८०६. चिट्ठ ]दे०] रा० ७२३ । जी० ३।७०३,७२२,८०६,८२०,८३०,८३४, चिट्ठित [चेष्टित] रा० १३३ ८३७,८३८।२,१३,२०,२२,८४२,८४५,१००१, चिट्ठिय [चेष्टित ] रा० ७०,८०६,८१० १००३ से १००७ चित्त [चित्त] ओ० २०,२१,४६,५३,५४,५६,६२, चारगबद्धग [चारकबद्धक] ओ० ६० ६३,७८,८०,८१. रा० ८,१०,१२ से १८,२०, चारण [चारण] ओ० २४. जी० ३७९५,८४०, २४,३२,३४,३७,४७,६०,६२,६३,७२,७४, १२६,२७७,२७६,२८१,२६०,६५५,६८१, चारि [चारिन् ] ओ० ५०. जी० ३१५६७ ६८३,६६०,६६५,७००,७०७,७१०,७१३, चारु [चारु] ओ० १५,१६,२५,४६. रा०७०,७६, ७१४,७१६,७१८,७२५,७२६,७७४,७७८ १३३,१७३,६६४,६७२,८०६,८१०. चित्त | चित्र, चित्त] रा० ६७५,६८०,६८१,६८३ जी० ३।२८५,३०३,५६२,५८७,५९६,५६७, से ६८५,६८६,६६०,६६२,६६३,६६५ से ११२२ ७१०,७१३,७१४,७१६ से ७३६,७४८ चारुपाणि चारुपाणि] रा० ६६४. जी० ३।५६२ चित्त [ चित्र] ओ० १६,४६,५७,६४. रा०६६, चालिय [चालित ] रा० १७३. जी० ३१२८५ १३०,१३७,१५४,१६०,१७३,२५६,२५८, चालेमाण [चालयत् ] जी० ३।१११ २७६,२८५,६८१. जी० ३।२८५,३००,३०७, चाव [चाप] ओ० १६,६४. रा० १७३,६६४, ३२७,३३३,३५५,४१६,४४३,४४५,४४७, ६८१. जी० ३।२८५,५६२,५६६,५६७ ४५१,५५५,५६६ चावग्गाह [ चापगाह] ओ० ६४ चित्तंग [ चित्राङ्ग] जी० ३१५६१ चावपाणि [चापपाणि] रा० ६६४. जी० ३१५६२ चित्तंगय [चित्राङ्गक] जी० ३।५६१ चास [चाष] रा० २६. जी० ३।२७६ चित्तंतरलेस [चित्रान्तरलेश्य | जी० ३।८४५ चासपिच्छ [चापिच्छ ] रा० २६. जी० ३।२७६ चित्तंतरलेसाग [ चित्रान्तरलेश्याक] जी० ३१८३८१२ चिउर | चिकूर रा० २८. जी. ३१२८१ चित्तघरग [चित्रगृहक] रा० १८२,१८३. चिउरंगराग [चिकुराङ्गराग] जी० ३१२८१ जी० ३।२६४ चिउरंगरात [चिकुराङ्गराग] रा० २८ चित्तपट्ट [चित्रपट्ट] रा० ६६ चिता | चिन्ता] ओ० ४६. जी० ३।६४८,६४६ चित्तरस [चित्र रस] जी० ३१५६२ चितिय [ चिन्तित [ ओ० ७०. रा० ६,२७५,२७६, चित्तल [चित्रल ] जी० ३।६२० ६८८,७३२,७३७,७३८,७४६,७६८,७७७, चित्तवीणा [चित्रवीणा] रा० ७७ ७६१,७६३,८०४. जी० ३।४४१,४४२ चित्तसाल [चित्रशाल ] जी० ३।५६४ चिध [चिह्न] ओ० ४७ से ५१. रा० ६६४,६८३. चियत्त [दे० प्रीत, सम्मत] ओ० ३३, १६२. जी०३१५६२ रा०६६८, ७५२, ७८६ Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ चिरदिइय-चोयग चिरद्विइय [चिरस्थितिक] ओ० ७२ १३, १५, ५६, ५८, २४०,२७६, ६७८,६८६, चिराईय [चिरादिक, चिरातीत ] ओ० २. रा० २ । ६८७,६८६,६६२, ७००, ७०४, ७०६,७११, चिराहड [विराहृत] रा० ७७४ ७१६, ७७६ चिलाइया | किरातिका] रा०८०४ चेइयखंभ [चैत्यस्तम्भ] रा० २३६ से २४२,२४४, चिलाई [किराती] ओ० ७० ३५१. जी० ३।४०१ चिल्लय [दे० ओ० ४६. जी ० ३१५८६ चेइयथूम [चैत्यस्तू।] रा० २२२ से २२४, २२६, चिल्ललग | दे०रा० ६६. जी० ३१६८२ ३०५,३१६,३४३. जी०३,३८१,३८२,३८५, चीणंसुय [चीनांशुक ] जी० ३१५६५ ।। ४७०, ४८१, ५०८ चीणपिट | चीनपृष्ट ] रा० २७. जी० ३।२८० चेइयमह [चैत्यमह] रा०६८८. जी. ३१६१५ चण्ण चूर्ण] रा० १५६, १५७, २५८, २७६, चेइयरक्ख चैत्यरूक्ष रा० २२७ से २३०, ३१०, २८१,२६१. जी० ३।३२६, ४१६, ४४७,४५७ ३१५, ३४८. जी० ३।३८६ से ३८८, ३६१, चुण्णजत्ति [चूर्णयुक्ति] ओ० १४६ ३६२,४१२, ४७५. ४८०, ५१३ चुय [च्युत ] ओ० ८८ चेट्ठिय [चेष्टित ] जी० ३।३०३, ५६७ चुलणिसुत [चुलनीसुत] जी० ३।११७ चेड [चेट] ओ० १८. रा० ७५४, ७५६, ७६२, ७६४ चुलसीत [चतुरसीति] जी० ३१७२८ चुल्लहिमवंत [क्षुल्ल हिमवत् रा० २७६. चेडिया [चेटिका] ओ० ७०. रा०८०४ जी० ३।२१७, २१६ से २२१, ४४५, ७६५, चेतिय [चत्य ] जी० ३।४०२, ४४२ चेतियखंभ [चैत्यस्तम्भ ] जी० ३।४०२ से ४०४, चूचुय [चूचुक] रा० २५४. जी० ३।४१५, ५६७ ४०६, ४४२, ५१६, १०२५ चूडामणि [चूडामणि] रा० २८५. जी० ३।४५१ चेतियथूभ [चैत्यस्तूप] जी० ३३८३, ४८१,८६४, चूत [चूत ] जी० ३।३५६ ८६५, ८६७ चूतवण [चूतवन] जी० ३।३५८ चेतियरुक्ख [चैत्यरूक्ष] जी० ३।८६८, ८६६ चूय [चूत] रा० १८६ चेल (पाय) [चेलपात्र] ओ० १०५, १२८ चय (लया) [चूतलता] जी० ३।२६८ चेल (बंधण) [चेलबन्धन] ओ० १०६, १२६ चूयलया [चूतलता ओ० ११. रा० १४५. चेलुक्खेव [चेलोत्क्षेप] रा० २८१. जी० ३।४४७ जी० ३.५८४ चोउट्ठि [चतुष्पष्टि] जी० ३।२१८ चूयलयापविभत्ति [चूतलताप्रविभक्ति] रा० १०१ चोक्ख [चोक्ष] ओ० २१, ५४, ६८. रा० २७७, चूयवडेंसय [चूतावतंसक] रा० १२५ २८८, ७६५, ८०२. जी० ३।४४३ चूयवण [चूतन रा० १७०. जी० ३।३५८ चोक्खायार [चोक्षाचार] ओ०१८ चूलामणि | चूडामणि] ओ० ४७, १०८. चोत्तीस [चतुस्त्रिशत् ] जी० ३।६६६ जी० ३।५६३ चोद्दस [चतुर्दशन् ] जी० ३।३६ चूलिया चूलिका ० ३।८४१ चोपाल [चोप्पाल] रा० २४६ जी० ३१४१०, चूलोवणय [चूडोपनय ] रा०८०३ ५२०,६०४ चूलोवणयण [ चूडोनयन] जी० ३।६१४ चोप्पालय [चोप्पालक] रा० ३५५ चेइय [चैत्य ] ओ० १ से ३,१६ से २२, ५२, ५३, चोय [दे० रा० ३०. जी० ३।२८३,३३४,४१६,५८६ ६५, ६६, ७०, १३६. रा० २, ८ से १०,१२, चोयग [दे०] रा० १६१,२५८,२७६ Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोयाल-छरु चोयाल [चतुश्वत्वारिंशत् ] जी० ३,८३० चोयासव [दे० चोयासव] जी० ३१८६० चोर [चोर] ओ० ११७ रा० ७५४,७५६,७६२ छत्त [छत्र] ओ० २,१६,५२,५७,६३ से ६५, ६७,६६,७०. रा० १५६,१७३,२७६,६८१ से ६८३,६६१,६६२,७००,७१५,७१६,७१६. जी० ३।२६६,२८५,३३२,३५५,४१६,४४५. ५६६,५९७,६०४ छत्तज्झय [छत्रध्वज] रा० १६२. जी० ३१३३५ छत्तधारपडिमा [छत्रधारप्रतिमा] जी० ३१४१६ छत्तधारगपडिमा [छत्रधारकप्रतिमा ] रा०२५५ छत्तय [छत्रक] ओ० ११७ छत्तलक्खण [छत्रलक्षण औ० १४६. रा० ८०६ छत्ताइच्छत्त [छत्रातिछत्र] रा० २०२,२०४, २०५ चोरकहा चोरकथा] ओ० १०४,१२७ चोवत्तरि [चतु.सप्तति ] जी० ३१७३३ (छ) छ [षष् ] रा० १७३ जी० ११४६ छउमत्थ [छद्मस्थ] ओ० १६६,१७०. रा० ७७१. जी० १११२६; ३।६६३,३।६६७; ६,३६,४२ से ४४,४६,५१ छउमत्थपरियाग [छद्मस्थपर्याय ] ओ० १६६ छंद [छन्द] ओ० ६७ रा० ७२० छकोडीय [षट्कोटीक] जी० ३।४०१ छगल [छगल ] ओ० ५१ जी० ३.१०३८ छज्जीवणिया [षट्जीवनिका ] ओ० ७४।३ छ? [षष्ठ ] ओ०६७,१४४,१७४,१७६, रा. ८०२ छळंछ? [षष्ठंषष्ठ] ओ० ११६ छट्ठभक्त [षष्ठभक्त] ओ० ३२ छट्ठा [षष्ठी ] जी० २।१३५,१३८; ३।२,६१ छट्ठिया[षष्ठिका] जी० ३।१२५ छट्ठी [षष्ठी] जी० २११४,१४६ ; ३।४,३६.७१ ७४,७५,७७,८८,११११ छडिय [छटित] रा० १५० जी० ३।३२३ छिड्ड [छर्दय्, मुच्] - छड्डेति. रा० ७७४ छड्डेस्सामि. रा०७७३-छड्डेहि रा० ७७४ छड्डियल्लिया [छदिता ] ओ० ६२ छडेत्तए [छर्दयितुम् ] रा० ७७४ छड्डत्ता [छदित्वा] H० ७७४ छण्ण |छन्न ] जी० ३।२७५ छण्णउय [षण्णवति ] जी० ३१८२० छण्णालय [दे० षण्णालक] ओ० ११७ छत्ताइछत्त [छत्रातिछत्र] ओ० १२. रा० १३७, २२६. जी० ३।२६१,३१४,३५७,३७१,३७५, ४३३ छतातिच्छत्त [छत्रातिछत्र] रा० ५२,५६,२०६, २३१,२४७,२४८,२५०,२५६ छत्तातिछत्त [छत्रातिछत्र] रा० २३,१६८,१७६, २०७,२०८,२२०,२२३,२३२,२३४,२६१, जी० ३३०७,३४६,३५६,३६७ से ३७०, ३७६,३८२,३६१,३६३,३६४,३६६,४०३, ४११,४२०,४२४,४३०,४३६,६६६ छत्तीस [षत्रिंशत् ] ओ० १६. रा० २४०. जी० ३७१० छत्तोव [छत्रोप] ओ० ६,१०. जी० ३१५८३ छत्तोवग [छत्रोपक] जी० ३।३८८ छप्पण्ण [षट्पञ्चाशत् जी० ३।३०० छप्पन्न [षट्पञ्चाशत् रा० १३० जी० ३।५६८ छप्पय [षट्पद] ओ० ६. रा० १३६,१७४. जी० ३।११८,११६,२७५,२८६,३०६ छब्भाग षड्भाग] ओ० १६५ छब्भामरी [षड्भ्रामरी रा० ७७ छम्मासिय [पाण्मासिक ओ० ३२ छयाल [षट्च वाशित्] जी० ३८१५ छरु सरु ] ओ० १६. जी. ३५६६ Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२४ छरुप्पवाद-जंघा छरुप्पवाद [त्सरुप्रवाद] ओ० १४६ छिप्पंत [स्पृश्यमान] रा० ७७ छरुप्पवाय [त्सरुप्रवाद] रा० ८०६ छिरा [शिरा] जी० १६५,१३५; ३।९२,१०६० छरह [त्सरुक] जी० ३।३२२ छिरिया [दे० ] जी० ११७३ छलंस [पडंस्र ] जी० ३।४०१ छिवाडी [दे० ] रा० २६. जी० ३।२८२ छलसीत [षडशीति] जी० ३।७३६ छोइत्ता [क्षुत्वा] जी० ३१६३० छल्ली [दे०] रा० २८. जी० ३।२८१ छोरबिरालिया [क्षी रबिडालिका] जी० २६ छवि [छवि जी० ३।९६,५६८ छोरविरलिया [क्षीरबिडालिका] जी० १७३ छविग्गहित | पविग्रहिक] जी० ३१४०१ छुभ [क्षिप्]-छुभइ रा० ७८८.-छुभिस्सामि छविच्छेद [छविच्छेद] जी० ३१६२० रा० ७८७ छविच्छेय [छविच्छेद ] रा०७६२. जी० ३१६२५ छुहा [क्षुध्ओ० १६०१८ छविह [षड्विध] ओ० ३०,३१,३८. जी० १।१०, छुहिय [क्षुधित] जी० ३११६ ११६, ३।१८३,१८५,६३१; ५।१,६०, ६।१५६, छेत्ता [छित्त्वा] जी० ३।६६१ १६७,१७०,१८१ इछेद [छिद् ] --छेदेंति ओ० ११७ छव्वीस [षड्विंशति] जी० ३।१०६६ छेदारिह [छेदाह ] ओ० ३६ छाउमस्थिय [छाद्मस्थिक] रा० १४६ छेदित्ता [छित्वा] ओ० ११७ छादण [छादन] रा० २७०. जी० ६।२६४,३००, छेदेत्ता [छित्त्वा] ओ० १६२ ४३५ छेदोवद्वावणियचरित्तविणय [छेदोपस्थापनीय छायण [छादन] रा० १३०,१६० चरित्रविनय] ओ० ४० छाया [छाया] ओ० १२,४७,७२,१६४. रा० २१, छेय [छेदय् ]-छेइस्सइ. रा० ८१६ य [छेक] ओ०६३,६४. रा० १२,१७३,६८१, २३,२४,३२,३४,३६,१२४,१४६,१५६,१७०, २२८,६७०,७०३. जी० ३।२६१,२६६,२६६, ७५८,७५६,७६५,७६६,७७०. जी. ३८६, २७७,३२२,३३२,३८७,५६८,६०४,६७२ ११८,१७६,१७८,१८०,१८२,२८५,४४५, ५६१ छाव? [षट्पष्टि] जी० ३।१०२२ छावट्टि [षट्षष्टि ] जी० ३८३८।४ छेयकर [छेदकर] ओ० ४० छेयारिय [छेकाचार्य] ओ० १,५७ छावत्तर [षट्सप्तति] जी० ३१७०३ -छिद | छिद] -छिद. रा०६७१. छिदति. रा० छवट्ट [ सेवात्त] जी० ११७,८६,१०१.११६ २८१. जी० ३।४४७ छोडिय [छोटित ] जी० ३।५६६ पछिज्ज [छिद् ]-छिज्जइ. रा० ७८४ छिज्जमाण [छिद्यमान ] जी० ३।२२ से २५,२७, ज [यत् ] ओ० ३७. रा० ६. जी० ११५ ४५ से ४७ जइ [यदि] ओ० ५७. रा० ७१८. जी०२५५ छिड्ड [छि.] रा० ७५४ से ७५७ जइण [जविन् ] ओ० ५७. रा० १२,७५८,७५६. छिण्णावाय छिन्नापात] ओ० ११६,११७. जी० ३ ८६,१७६.१७८,१८०,१८२,४४५ रा० ७६५,७७४ जइपरिसा यतिपरिषद् ] ओ० ७१ छित्त [क्षेत्र] ओ०१ जओ [यतस् ] रा० ७५४,७५५. जी० १९६ छिद्द [छिद्र] रा० ७६३ जंघा [जङ्घा] ओ०१६. रा०२५४. जी० ३१४१५, ज Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बंत-जणबोल ६२१ ५६६,५६७ अंबूफल [जम्बूफल ] ओ० १३. रा० २५.. जंत [यन्त्र] ओ०१४ रा० १७,१८, २०,३२, ___ जी० ३।२७८ १२६,६७१. जी० ३।२८८,३००,३७२ जंबूफलकालिया [जम्बूफलकालिया] जी० ३१८६० जंतकम्म [ यन्त्रकर्मन् ] ओ० ६४. रा० १७३,६८१. जंबूरुक्ख [जम्बूरूक्ष ] जी० ३७०२ जी० ३।२८५ जंबूवण [जम्बूवन] जी० ३१७०२ जंतवारचुल्ली [यन्त्रपाटचुल्ली] जी० ३।११८ जंबूसंड [जम्बूषण्ड] जी० ३।७०२ जंबुद्दीव [जम्बूद्वीप] ओ० १७०. रा० ७ से १०, जंभाइत्ता [जृम्भयित्वा] जी० ३१६३० १३,१५,५६,१२४,६६८. जी. ३८६,२१७, जक्ख [यक्ष ] ओ० ४६,१२०,१६२. रा०६९८, २१६ से २२१,२२७.२५६,२६०,२६६. ७५२,७८६. जी० ३१७८०,६४७,६५० ३००,३५१,४४५,५६६,५६८ से ५७७,६३८, जक्खग्गह [यक्षग्रह ] जी० ३।६२८ ६६०,६६५,६६६,६६८,७०१ से ७०४,७०८, जक्खपडिमा [यक्षप्रतिमा] रा०२५७. जी० ३।४१. ७२३,७३६,७४०,७४२,७४५,७५०,७५४, । जक्खमंडलपविभत्ति [यक्षमण्डलप्रविभक्ति] रा०६० ७६२,७६४ से ७६६,७७५,७६५,६१६ से १२२, जक्खमह [यक्षमह ] रा० ६८८. जी० ३।६१५ ६५३,१०३६,१०७४,१०८० जक्खालित्त [यक्षादीप्त] जी० ३।६२६ जंबुद्दीवग [जम्बूद्वीपक] जी० ३७०६,७१०, जगईपव्यय [जगतीपर्वत] रा० १८१ ७६२,७६४ से ७६६,८१४ जगईपव्ययग [जगतीपर्वतक] रा० १८० जंबुद्दीवाहिवति [जम्बूद्वीपाधिपति] जी० ३।७६५ जगती [जगती] जी० ३।२६० से २६३,२७३, अंबुपेढ ]जम्बूपीठ] जी० ३।६६८,६६६ २६८ जंबू [जम्बू] जी० २७१, ३।६६८,६७२,६७३, जगतीपश्वयग [जगतीपर्वतक] जी० ३।२६२ ६७८ से ६८३,६८८,६८६,६६२ से ७००, जघण [जघन] ओ० १५ ७६५ जच्च [जात्य] ओ० १६,६४. जी० ३१५९६,५६७, जंबूणदमय [जाम्बूनदमय] जी० ३।३२३ ८५४,८७८ जंबूणय [जाम्बूनद] रा० १५६,२२८. जच्चकणग [जात्यकनक] ओ० २७. रा० ८१३ जी० ३।३३२,३८७,६७२ जच्चहिंगुलुय [जात्यहिंगुलुक ] जी० ३१५६० जंबूणयमय [जाम्बूनदमय] रा० ३७,१५०. जज्जरिय [जर्जरित] रा० ७६०,७६१ जी० ३।३११,४०७,६४३ जडि [जटिन् ] ओ० ६४ जंबूणयामय [जाम्बूनदमय] रा० १३५,१८८, जड्ड [जाड्य] रा० ७३२,७३५,७६५ २४५. जी० ३१३०५,३६१,६६६,६८६, जण [जन] ओ० १,६,६८,११६. रा० १२३, ८३६ ७६६ जंबूदीव [जम्बूद्वीप] जी० ३।७००,७५४,१००१, जणइत्ता [जनयित्वा] ओ० ६६ १००७,१०२२ जणउम्मि [जनोमि] रा० ६८७,७१२ जंबूदीवाहिवति [जम्बूद्वीपाधिपति] जी० ३१७०० जणकलकल [जनकलकल] ओ० ५२. रा०६८७, जंबूपल्लवपविभत्ति [जम्बूपल्लवप्रविभक्ति] ६८८,७१२ रा० १०० जणक्खय [जनक्षय ] जी० ३।६२८ जंबूपेढ [जम्बूपीठ] जी० ३।६६८,६७० जणबोल [जनबोल] ओ० ५२. रा० ६८७,७१२ Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२६ जणवय [ जनपद ] ओ० १४६. रा० ६६८,६६६, ६७१,६७६,६६३,७०६,७११,७१८, ७५०, ७७४, ७६०,७६१ जणवयका [ जनपदकथा] ओ० १०४, १२७ जणवयपाल [ जनपदपाल ] ओ० १४. रा० ६७१ traft [ जनपदप्रिय ] ओ० १४. रा० ६७१ जणवयपुरोहिय [ जनपदपुरोहित ] ओ० १४ रा० ६७१ जवा [ जनवाद ] ओ० १४६. रा० ८०६ वह [ जनव्यूह ] ओ० ५२. रा० ६८७,७१२ जणण्णिवाय [जनसन्निपात ] ओ० ५२. रा० ६८७,७१२ जणसद्द [ जनशब्द ] ओ० ५२. रा० ६८७,६८८, ७१२ af [ जनित ] ओ० ५१ कलिया [ जनोत्कलिका ] ओ० ५२ जणुम्मि [ जनोमि ] ओ० ५२ tors [ याज्ञिक ] ओ० ६४ जण [जानु ] रा० १२ जति [ यदि ] रा० ७५० जतिपरिसा [तिपरिषद् ] रा० ६१ जतो [ यतस् ] रा० ७५६ ताहि [ यात्राभिमुख ] ओ० ५५,५८,६२,७० जत्तिय [ यावत् ] जी० ३।७७, १२७ जत्थ [ यत्र ] रा० ७१६. जी० १५८ जा [ यथा ] जी० ३।६८ जन्न [ यज्ञ ] जी० ३।६१४ जन्नु [जानु ] रा० जपभिs [ यत्प्रभृति ] रा० ७६०,७६१ जमइत्ता [ दे० ' ] ओ० २६ मग [ यमक ] जी० ३।६३२,६३३,६३५,६३७ से ६३६ जगप्पा [ यमकप्रभा ] जी० ३।६३७ १. पुनरावर्तनेनातिपरिचितं कृत्वा ( वृ० ) । जणवय-जल जमगवण्ण [ यमक वर्ण ] जी० ३।६३७ जमगवण्णाभ [ यमकवर्णाभ ] जी० ३।६३७ जमगसमग [ दे० ] ओ० ६७. रा० १३,६५७ जी० ३।४४६ जमगा [ यमका ] जी० ३।६३७ से ६३६ जगागार [ यमकाकार ] जी० ३।६३७ जगत [ जमदग्निपुत्र ] जी० ३।११७ जमल [ यमल] ओ० १,५७. रा० १२,१७,१८,२०, ३२,१२६,१३३, ७५८, ७५६. जी० ३।११८,२२८, ३००, ३०३, ३७२, ५६७ जमलिय [ यमलित ] ओ० ५,८,१० रा० १४५. जी० ३।२६८,२७४ जम्म [ जन्मन् ] ओ० १८४ जम्मण [ जन्मन् ] ओ० ४६. रा० ८०३. जी० २।३० से ३४, ५७ से ६१,६६, ११६, १२४, १३३; ३ । ६१७ जम्हा [ यस्मात् ] रा० ७५० जय [ जय ] ओ० २०,५३,६२ से ६४,६८. रा० १२,४६,७२,११८, २७६, २७६, २८२, ६५५,६८३, ६८६,७०७,७०८,७१३, ७२३. जी० ३।४४२, ४४५, ४४८ जयंत [ जयन्त ] ओ० १६२. जी० ३।१८१,२६६, ५६८, ७०७, ७१२,७६६, ८१३,८१४,६४१ जयंती [ जयन्ती ] जी० ३।९१६,१०२६ जयणा [ यतना ] ओ० ४६ जया [ यदा] ओ० २१. रा० ७०६. ३।७२६ जर [जरा ] ओ० ४६, १७२ जर [ज्वर ] जी० ३।११८, ११६,६२८ जरढ [जरठ ] ओ० ५,८. जी० ३।२७४ जरा [जरा ] ओ०७४, १६५,१६५८,२१. रा० ७६०, ७६१ जल [ जल ] ओ० १,२३, ४६, ६८, १११ से ११३, १२२, १३७, १३८, १५० रा० १७४,८११. जी ० ३ । ११८, ११६, २८६, ६४२, ६५३, ७५४, ७६२, ७६८, ७७०, ७७२ √ जल [ ज्वल् ] - जलंति. रा० २८१, जी० ३।४४७ Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२७ जलंत-जहण्ण जलंत [ज्वलत् ] ओ० २२,२७. रा० ७२३,७७७, ७७८,७८८,८१३ जलकिड्डा जिलक्रीडा] रा० २७७. जी० ३।४४३ जलचर [जलचर] जी० ३.१२६।१,१६६ जलज [जलज] जी० ३।१७१ जलणपवेसि [ज्वलनप्रवेशिन् ] ओ०६० जलपवेसि [जलप्रवेशिन् ] ओ० ६० जलमज्जण [जलमज्जन] रा० २७७. जी० ३४४३ जलय [जलज] ओ० १२. रा० ६,१२,२२. जी० ३।२६० जलयर [जलचर] ओ०१५६. जी० १६८,६६, १०१,१०३,११२,११३,११६ से ११६,१२१, १२३,१२५, २।२२,६९,७२,७६,६६,१०४, १०५,११३,१२२,१३६,१३८,१४६,१४६; ३॥१३७ से १४०,१४२,१४४ जलयरी [जलचरी] जी० २।३,४,५०,५३,६६, ७२,१४६,१४६ जलरय [जलरजस्] ओ० १५०. रा० ८११ जलरुह [ जलरुह ] जी० ११६६ । जलवासि [जलवासिन्] ओ० ६४ जलसमूह [जलसमूह ] ओ० ४६ जलाभिसेय [जलाभिषेक ] ओ० ६४. रा० २७७ जलावगाह [जलावगाह] रा० २७७ जलिय [ज्वलित] जी० ३।५६० जल्ल [दे०] ओ० १, २, ८६,६२. जी० ३१५६८ जल्लपेच्छा [ 'जल्ल' प्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. जी० ३।६१६ जल्लोसहिपत्त [जल्लोषधिप्राप्त] ओ० २४ जव [यव] ओ० १. जी० ३१५६७, ६२१, ७८८, जवलिय [यवलित] जी० ३।२६८ जवाकुसुस [जपाकुसुम] रा० ४५ जस [ यशस्] ओ० ८६ से १५, ११४, ११७, १५५, १५७ से १६०, १६२, १६७ जसंसि [यशस्विन् ] ओ० २५. रा० ६८६ जसोधरा [यशोधरा] जी० ३,६६६ जह [यथा] ओ० ७४. जी० १७२ जहक्कम [ यथाक्रम ] रा० १७२ जहण [जघन] जी० ३।५९७ जहण्ण [जघन्य ] ओ० १८७, १८८, १६५. जी० १११६, ५२, ५६, ६५, ७४, ७६, ८२, ८६ से ८८, ६४, ६६, १०१, १०३, १११, ११२, ११६, ११६, १२१, १२३ से १२५, १३०, १३३, १३५ से १४०, १४२; २।२० से २२, २४ से ५०, ५३ से ६१, ६३, ६५ से ६७, ७३, ७६, ८२ से ८४, ८६ से ८८, E01 से ६३, ६७, १०७ से १११, ११३, ११४, ११६ से १३३, १३६; ३३८६, ८६, ६१, १०७, १२०, १५६, १६१, १६२, १६५, १७६, १७८, १८०, १८२, १८६ से १६०,' २१८, ६२६, ८४४, ८४७, ६६६, १०२१, १०२७ से १०३६, १०८३, १०८४, १०८७, १०८६, ११११, ११३१, ११३२, ११३४ से ११३७; ४१३, ४,६ से ११, १६, १७; ५५, ७, ८, १० से १६, २१ से २४, २८ से ३०; ६।२, ३, ६, ८ से ११; ७१३, ५, ६, १०, १२ से १८; ६२ से ४,२३ से २६, ३१, ३३, ३४, ३६, ४०, ४१, ४३, ४७, ४६,५१,५२, ५७ से ६०, ६८ से ७३, ७७, ७८, ८०, ८३, ८५,८६,६०,६२,६३,६६, ६७,१०२, १०३, १०५, १०६, ११४, ११५, ११७, ११८,१२३ से १२८, १३२, १३४, १३६, १३८, १४२, १४४, १४६, १४६, १५०, १५२, १५३,१६० से १६२, १६४, १६५, १७१ से १७३, १७६ से १७८, १८६ से १६१, १६३, १९४, १९८ से २००, २०२ से २०४, २०६, २०७, २१० ८३६ जवण [जवन] रा० १०, १२, ५६, २७६. जी० ३।११८ जवमा [यवमध्य ] जी०३७८८ जवमन्मा [यवमध्या] ओ० २४ Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ जहण्णजोगि-जाय से २१२, २१४, २१६ से २१८, २२२, २२५, २२८, २२६, २३४, २३६, २३८, २४१ से २४४, २४६, २५७ से २६०, २६२, २६४, २६६, २७१, २७३, २७७ से २८२ जहण्णजोगि [जघन्ययोगिन् ] ओ० १८२ जहण्णपद [जघन्यपद] जी० ३।१६५ से १६७ जहा [यथा] ओ० ६६. रा० १०. जी० ११४ जहाणामत [यथानामक ] जी० ३६६० जहाणामय [ यथानामक ] ओ० १५०,१६४, १८४. रा० १२, २४, २५, २७, २८, ३०, १५४, १७३, ७०३, ७३७, ७५५, ७५८ से ७६१, ७६५, ७७२, ७५४, ८११. जी० ३।८४,११८, ११६,२१८,२८०,२८१,२८३ से २८५,३०६, ३२७, ५७८, ६०१, ६७०, ८८३ जहानामय [यथानामक] रा० २६, २६,३१, ४५, ६५, १२३, १७१, १७३. जी० ३८५, ६५, २७७ से २७६, २८२, ६०२, ७५५, ८६०, ८६६, ८७२, ८७८, ६५८, ६५६, ६६१, १०७८, १०७६ जहाभणिय [यथाभणित] रा० ६६६ जहासंभव [यथासम्भव ] जी० १३१३६ जहिं [यत्र] जी ० ३।११२७ जहिच्छित [यथेप्सित] जी० ३३१११५ जहिच्छिय [यथेप्सित ] जी० ३१५६८, ६०६ इजा [या] - जंति. जी० ३८३८।१ जाइ [जाति ओ०२३, १६५, १६५२१ जाइमंडवग [जातिमण्डपक] रा० १८४ जाइमंडवय [जातिमण्डपक] रा० १८५ जाइसंपण्ण [जातिसम्पन्न ] ओ० २५ जाइसरण [जातिस्मरण] ओ० १५६, १५७ जाइहिंगुलय [जातिहिङ्गुलक] रा० २७ जाईमंडवग [जातिमण्डपक ] जी० ३।२६६ आईमंडवय [जातिमण्डपक] जी० ३।२६७ जाग [याग] ओ० २ 1 जागर [जाग] - जागरिस्संति. रा०८०२ जागरिया [जागरिका] ओ० १४४. रा० ८०२, ८०३ बाण [यान] ओ० १,७,८,१०,१४,५२,५५,५८, ५६,६२,७०,१००,१२३,१४१. रा० ६७१, ६७५,६८७,७६६. जी० ३।२७६,५८१,५८५, ६१७ आिण [ज्ञा]-जाणइ. ओ० १६६. रा० ७७१. जी० ३।१९८-जाणंति. रा०६३. जी. ३।१०७ जाणंती... ओ० १६५१२--जाणति, जी०३।२०० --जाणह. रा० ६३--जाणामि. रा० ७४६-जाणासि. रा० ७६७ ---जाणि स्सामो. रा० ७२१- जाणिहिति. रा० ८१५ जाणमाण [जानान, जानत् ] रा०८१५ जाणय [ज्ञ] ओ० १६,२१,५४. रा० ७४७ जाणविमाण [यानविमान] रा० १३,१७ से १६, २४,३२,४५ से ४६,५६,५७,१२० जाणसाला [यानशाला] ओ० ५६ जाणसालिय यानशालिक] ओ० ५८,५९ जाणित्ता [ज्ञात्वा] ओ० १४५. रा० ७६४ जाणु [जानु] ओ० १६,२१,५४. रा० २५४,२६२. __ जी० ३४१५,४५७,५६६,५६७ जात [जात] रा० ११६,८११ जातरूव [ जातरूप] रा० ७६६. जी० ३७,३८७ जातरूवमय [जातरूपमय ] जी० ३।२६४ जाता [जाता] जी० ३।१०४०,१०४४ जाति [जाति] रा० ३०. जी० ३।१६० से १६२, १६६ से १६६,१७१,१७४,२८३,२६७.६६६ ९६८ जातिगुम्म [जातिगुल्म] जी० ३।५८० जातिपसन्ना [जातिप्रसन्ना] जी० ३।८६० जातिमंडवग [जातिमण्डपक] जी ३।८५७ जातिमंडवय [जातिमण्डपक] जी० ३।८५७ जातिसंपण्ण [जातिसम्पन्न] रा० ६८६,६८७, ६८६,७३३ जातिहिंगुलय [जातिहिङ्गुलक] जी० ३।२८० जाय [जात ] ओ० २७,१५०. रा० १४,६६८, ७६०,७६१,८०२,८११ Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जायकम्म-जियपरीसह जायकम् [ जातकर्मन् ] ओ० १४४ जायको हल्ल [ जातकौतूहल्ल] ओ ८३ जाग [ जातक ] ओ० १४५. रा० ८०५ जायत्थाम [ जातस्थामन् ] रा० ८१३ रूप [ जातरूप] ओ० १४,२७,१४१. रा० १०, १२,१८,६५,१३०, १६५, २२८, २७६,६७१, ८१३. जी० ३।३००, ६७२ जारूप [पाय ] [ जातरूपपात्र ] ओ० १०५, १२८ tra [बंत्रण ] [ जातरूपबन्धन ] ओ० १०६, १२६ जायख्वमय [ जातरूपमय ] रा० १३०, १६०. जी० ३।३०० जायसंसय [ जातसंशय ] ओ० ८३ जायसड्ढ [जातश्रद्ध] ओ० ८३ जाया [ जाता ] जी० ३ २३५, २३६,२४१ जार [जार ] रा० २४. जी० ३।२७७ जारापविभत्ति [जारकप्रविभक्ति ] रा० ६४ जारिस [ यादृशक ] रा० ७७२ जाल [ जाल ] ओ० १६,६३,६४. रा० १७,१८. जी० ३१८४,५६६ जालंतर [ जालान्तर] रा० १३७. जी० ३।३०७ जालकडग [जालकटक] रा० १३४. जी० ३।३०४ जालक्कड [जालकटक ] जी० ३।२६२ जालघरग [ जालगृहक] रा० १८२,१८३. जी० ३।२७५, २६४ जालपंजर | जालपञ्जर] रा० १३०. जी० ३।३०० जावंद [ जालवृन्द ] जी० ३१५६४ जालहर | जालगृहक] ओ० ६ जाला [ ज्वाला ] जी० १७८ २२६८ ३२८५ ११८, ११६,५८६ Sata [ यावत् ] ओ० ६० रा० १ जी० ११३४ जावय [ यावत् ] जी० ३ १७६,१७८, १८०, १८२ जावं [ यावत् ] ी ३८४१ जावज्जीव [ यावज्जीव] ओ० ११७, १२१, १३६, १६१,१६३ जावतिय [ यावत् ] जी० ३१६७२,६७३ atar [ जापक] ओ० २१,५४. रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ जासूअण [जपासुमनस्] रा० २७ जासुयण [जपासुमनस्] जी० ३३२८०,५६० जाहिया [ जाहिका ] जी० २६ जाहे [ यदा] रा० ७७४. जी० ३ ८४३ जिइंदिय [ जितेन्द्रिय ] ओ० २५,४६,१६४ जिण [ जिन ] ओ० १६, २१, २६, ५१, ५२, ५४, १७२. रा० ८,१६,२२५, २५४, २६२,७७१, ८१५, ८१७. जी० १११ ; ३।३८४, ४१५, ४४२, ४५७, ८३८११,८६६, ६१७ जिण [ज] - जिणाहि ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३।४४८ जिणपडिमा [जिनप्रतिमा ] रा० २२५, २५४ से २५८,२७३, २६१,३०६ से ३०९,३१७ से ३२०,३४४ से ३४७. जी० ३।३८४,४१५ से ४१९, ४४२.४५७,४७१ से ४७४,४५२ से ४८५५०६ से ५१२,६७६,८६६,६०८ जिणमय [जिनमत ] जी० १।१ जिणवर [ जिनवर ] ओ० ४६. रा० २६२. जी० ३।४५७ ६२ε जिसका [दे० जिण 'सकहा' ] रा० २४०, २७६, ३५१. जी० ३।४०२,४४२,५१६,१०२५ जिवि [ जिनेन्द्र ] रा० ४७ जित [जित ] जी० ३।४४८ जितिदि [ जितेन्द्रिय ] रा० ६८६ जिन्भछिण्णग [ जिह्वा छिन्नक ] ओ० ६० जिब्भिंदिय [जिह्वन्द्रिय ] ओ० ३७ जिमिय [ जिमित ] रा० ६८५,७६५,८०२ जिय [जित ] ओ० ६८. रा० २८२,६८६. जी० ३।४४८ जियकोह [ जितक्रोध ] ओ० २५. रा० ६८६ जिद्द [ जितनिद्र ] ओ० २५. रा० ६८६ जिपसह [जित परीषह ] ओ० २५. रा० ६८६ Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३० जियभय-जुत्तपालित जीवपएसिय [जीवप्रदेशिक] ओ० १६० जीवा [जीवा] रा० ७५६. जी० ३।५७७,६३१ जीवाजीवाभिगम [जीवाजीवाभिगम] जी १:१,२ जीवाभिगम [जीवाभिगम] जी० १।२,६ से १०; ___६७,८,२६३ जीविय [जीवित] ओ० २३,२५. रा० ६८६,७५० से ७५३,७५६,७६२,७६७ जीविया [जीविका] ओ० १४७. रा० ७१४,७७६, जियभय [जितभय] रा० ८१७ जियमाण [जितमान] ओ० २५. रा० ६८६ जियमाय [जितमाय] ओ० २५. रा० ६८६ जियलोभाजितलोभ] ओ० २५ जियलोह [जितलोभ] रा० ६८६ जियसत्तु [जित शत्रु] रा०६७६,६८०,६८३ से ६८५,६६८ से ७००,७०२ जीमूत [जीमूत] जी० ३।२७८ जीमूतय [जीमूतक] रा० २५ जीय [जीत] ओ० ५२. रा० ११,१६,५६,६८७, ६८६ जीव [जीव ] ओ० २७,७१ से ७३,७४|४,५,८४ से ८६,१२०,१३७,१३८,१६२,१८५ से १८८. रा०६९८,७१६,७४८ से ७६४,७६८,७७० से ७७३,७८६,८१३,८१५. जी० ११०,११, १५ स २२,५१ स २४,२६,५६ स ६२,६०, ७४,७६,८२,८५ से ८७,६०,६३ से ६६,१०१, ११६,१२८,१३० से १३४,१४३,२।१,१५१, ३।१,५३,५४,८७,११८,१२६,१२७,१२७१२, ५,१२६।५,९,१५० से १६०,१८३,१६२,२१०, २११,५७५,५७६,७१६,७२०,७२४.७२७, ७८७,८०६,८१८,८२८,८५३,८५६,८८०, १४६,६७४,६७५,१०८१,११२८,११३०, ११३८,४।१,२५,५।१,६०,६।१,१२,७१, २३,८१,५,६।१,७ से ८,१५,१८,२१,२२, २८ से ३०,३६,३८,५६,६२,६३,६६,६७, ७५,८८,६५,१०१,१०६,११२,११३,१२१, १३१,१४१,१४७,१४८,१५६,१५८,१५६, १६७,१७०,१८१,१८२,१८५,१६६,१६७, २०८,२०६,२२०,२२१,२३२,२५५,२५६, २६७,२६३ जीवंजीवग[जीवंजीवक ] ओ० ६. जी० ३।२७५ जीवंत [जीवत् ] रा० ७५४,७६२,७६३ जीवंतग [ जीवत्क] रा० ७६२ जीवघण [जीवघन] ओ० १८३,१८४,१६५।११ जीवदय [जीवदय] ओ० १६,२१,५४. रा०८ जीवोवलंभ [जीवोपलम्भ] रा० ७६८ जोहा [जिह्वा] ओ० १६,४७. रा० २५४. जी. ३ १४१५,५६६,५६७ जुह [द्युति] ओ० ४७,७२,८६ से ६५,११४, ११७,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० १३,६५७ जिंज [युज-जुजइ. ओ०१७५ जुजमाण [युञ्जान ] ओ० १७६,१७८ से १८० जुग [ युग] ओ० १६. जी० ३।५६६,८४१ जुगल [युगल] रा० २३. जी० ३१५६७ जगव [युगपत् ओ० १८२ जुगव [युगवत्] रा० १२,७५८,७५६. जी० ३।११८,११६ जुग्ग [युग्य] ओ० १,७,८,१०,१००,१२३. जी० ३३२७६,५८१,५८५,६१७ जन्मसज्ज [युद्धसज्ज] रा० १७३,६८१ जुण्ण [जीर्ण] रा० ७६०,७६१,७८२ जण्णय [जीर्णक] रा० ७६१ जुति [ द्युति] रा० १३,१२१,६५७. जी० ३।४४६, ४५७ जुत्त [युक्त] ओ० १५,१६,२३,५५,५७,५८,६२, ७०,७१. रा० १७,१८,२०,३२,६१,७०, १२६,२८५,२६२,६६४,६७२,६८१,६८२, ६६०,६६१,७०६, ७१४,७२४,८०६,८१०. जी० ३२२८८,३००,३७२,४५१,४५७,५६२, ५८६,५६२,५६६,५६७,२३८।३२ जुत्तपालित [युक्तपालिक] जी० ३१५६२ Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जुत्तपालिय-जोतिस ६३१ जुत्तपालिय [युक्तपालिक] रा० ६६४ जोइभायण ज्योतिर्भाजन] रा० ७६५ जुत्तय [युक्तक] रा० ७७६ जोइस [ज्योतिस्, ज्योतिष] ओ० ५०. रा० ५६. जुत्तामेव [युक्तमेव] रा० ७०६ जी० ३१८३८२ जत्ति [युक्ति] ओ०६७ जोइसामयण [ज्यौतिषायण] ओ०६७ जुद्ध [युद्ध] ओ० १४६. रा० ८०६. जोइसिणी [ज्यौतिषी] जी० २१७१,७२,१४८ जी० ३१६३१ जोइसिय [ज्योतिष्क, ज्योतिषिक] ओ० ५०,६४. जुद्धजुद्ध [युद्धयुद्ध] रा० ८०६ रा० ११. जी० १११३५; २०१५,१८,३६ से जुद्धसज्ज [युद्धसज्ज] ओ०५७,६४. रा० ६८२, ४४,७१७२,६६; ३।२३०,८३८।२१,६१७ ६६१. जी० ३।२८५ जोईरस [ज्योतीरस] रा० १०,१२,१८,६५,१६५, जुद्धाइजुद्ध [ युद्धातियुद्ध ] ओ० १४६ २७६ जुम्ह [युष्मत् ] रा०६ जोईरसमय [ज्योतीरसमय] रा० १३०,१६० जयल [गल] ओ० १२.५७. रा० १२.१७,१८, जोएत्ता [योजयित्वा] ओ०५९ २०,३२,१२६,१३३,२८५.२६१,७५८,७५६. जोग [योग] ओ० ११७. रा०८१५. जी० १.३४, जी० ३।११८,२८८,२६१,३००,३०३,३७२, ६६,१०१,११६,१२८,१३६, ३११२७,१६०, ४५१,४५५,५६७ ७०३,७२२,८०६,८२०,८३०,८३४,८३७, जुयलग [ युगलक] जी० ३१६३० ८३८।१०,३२ जुवइ [युवति] ओ० १ जोगनिरोह [योगनिरोध] ओ० १८२ जुवराय [युवराज] रा० ६७४. जी० ३६०६ जोगपडिसंलोणया [योगप्रतिसंलीनता] ओ० ३६ जुवलिय [युगलित] ओ०५,८,१०. रा० १४५. जोगि [योगिन् ] ओ० ६६ जी० ३।२६८,२७४ जोग्ग [योग्य] ओ० ६३. रा० ६,१२,४७ जुवाण [युवन् ] रा० १२,७५८,७५६. जी० ३।११८ जोणि [योनि] ओ० १६५ जूय [द्यूत] ओ० १४६. रा० ८०६ जोणिप्पमुह [योनिप्रमुख] जी० ११५८,७३,७८, जूयय [यूपक] जी० ३१७२३ जूया [यूका] जी० ३१७८६ जोगिया [योनिका] ओ० ७०. रा० ५०४ जूव [यूप] जी० ३।५९७ जोणिसंगह [योनिसंग्रह] जी० ३।१४७ जूवय [यूपक] जी० ३।६२६ जोणिसूल [योनिशूल] जी० ३।६२८ जूवा [यूका ] जी० ३।६२४ जोणीपमुह [योनिप्रमुख ] जी० ३।१६० से १६२, जहिया [यूथिका] रा० ३०. जी० ३।२८३ १६६ से १६६, १७१, १७४, ६६६, ६६८ जूहियागुम्म [यूथिकागुल्म] जी० ३।५८० जोणीसंगह [योनिसङ्ग्रह] जी० ३।१६०, १६१, जूहियामंडवग [यूथिकामण्डपक] रा० १८४. जी० ३.२६६ जोह [ज्योत्स्न] जी० ३१८३८।१६, २० जूहियामंडवय [यूथिकामण्डपक ] रा० १८५ जोति [ज्योतिस्] रा० ७६५ जे? [ज्येष्ठ] ओ० ८२. रा० ६७३,६७५ जोतिभायण [ज्योतिर्भाजन] रा० ७६५ जेट्ठामूल [जेष्ठामूल] ओ० ११५ जोतिरस [ज्योतीरस] जी० ३१७ जेणामेव [यत्रंब ] रा० ७५४. जी० ३।४४३ जोतिरसमय [ज्योतीरसमय] जी० ३।२६४, ३०० जोइ [ज्योतिस्] रा० ७५७,७६५,७७२ जोतिस [ज्योतिस्, ज्यौतिष] जी० ३।८५८,८६१, Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३२ जोतिसराय-झय ८६४, ८६७, ८७०, ६२४, ६४२, ६५२, ४४५, ५६६, ५६८ से ५७०, ५७७, ६३२, १००१, १००२, १००६ । ६३४, ६३८, ६३६, ६४२, ६४४,६५३,६५६, जोतिसराय [ज्योतीराज] जी० ३।२५७, २५८, ६६०,६६१, ६६३, ६६६,६६८, ६७१,६७८, १०२३ से १०२६ ६७६ ६८२, ६८३, ६८६ से ६८६, ७०६, जोतिसविसय [ज्योति विषय ] जी० ३।१००६ ७१०, ७१४, ७२३ से ७२८, ७३२, ७३६, जोतिसिंद [ज्यौतिरिन्द्र, ज्यौतिषेन्द्र ] जी० ३।२५७, ७३७, ७३६ से ७४२, ७४५, ७५०, ७५४, २५८, १०२३ से १०२६ ७५६, ७५८, ७६१, ७६२, ७६४ से ७७६, जोतिसिणी [ज्यौतिषी] जी० २११४६ ७८८ से ७६२, ७६४, ७६५, ७६८, ८०२, जोतिसिय [ज्योतिष्क, ज्योतिषिक] जी० २।९५, ८१२ ८१४, ८१५, ८२३, ८२७, ८३२, ९६, १४८, १४६; ३।२५७, ५६०, ७६३, ८३५, ८३८।२७, २८, ८३६, ८४२, ८४५, १०२५ ८५०, ८५२, ८८२,८८४, ८८५, ८८७, जोय [ योग] ओ० ६४. रा० ५१, ७६६. ८८८, ८६१, ८६३ से ८६५, ८६७ से १०१, जी० ३७०३; ६६६ ६०६, ६०७, ६१०, ६११,६१८, ६४०,६४४, १६६ से १७१, १००१ से १००६, १०१० से (जोय [योजय् ] —-जोइंसु. जी० ३७०३-- १०१२, १०३८, १०६५ से १०७०, १०७३, जोइस्संति. जी० ३१७०३-जोएइ. ओ०५६जोएस्संति. जी० ३७०३-जोयंति. ३१७०३। १०७४, १०८७. १०८८ जोयणय [योजनक] जी० ३।२२६, ६६३ जोयण [योजन ] ओ० ७१, १७०, १९२, १६५. जोयणिय [योजनिक] ओ० १६२ रा०६, १०, १२, १४, १७, १८, ३६, ५२, जोव्वण [यौवन ] ओ० ४७. रा०६६, ७०. ५६, ६१, ६५, १२४, १२६ से १२६, १३७, जा० ३१५६७ १७०, १८६, १८८, १८६, २०१, २०४ से जोव्वणग [यौवनक] रा०८०६, ८१० २१२, २१८, २२१, २२२, २२४, २२६, जोह [योध] ओ० २३, ५२, ५५ से ५७,६२,६५. २२७, २३०, २३१, २३३, २३८ से २४०, रा० १७३, ६८१, ६८७,६८८. जी० ३।२८५ २४२, २४४, २४६, २४७, २५१ से २५३, २६१, २६२, २६७, २७२,२७६, ७२७,७५३. झंझा [झञ्झा रा० ७७ जी० १।७४, ८६. १०१, १११, ११६, १२३, झंझावाय [झञ्झावात ] जी० १।८१ १३५; ३१५, १४ से २१, २५ से २७, ३३ से झड [दे० ] रा० ७८२ ३६, ३६ से ४३, ४७, ६० से ७२, ७७, ८० झय [ध्वज] ओ० २,१२,५५, ५७, ६५. रा० २२, से ८२, ८६, १२६७, २१७, २१६ से २२७, १६७, १७३, १७८, २०२, २०४ से २०८, २३२, २५७, २६० से २६३, २७३, २६८, २१४, २२०, २२३, २२६, २३२, २३४, ३००, ३०७, ३१०, ३५१, ३५२, ३५४, २४१, २४८, २५०, २५८, २५६,२६१,२७६, ३५५, ३५८, ३५६, ३६१, ३६२, ३६४, २८१,६८१, ७१५. जी० ३।२८५, २६०, ३६५, ३६८ से ३७४, ३७६, ३७७, ३८०, ३४८, ३५६, ३६७ से ३७१, ३७५, ३७६, ३८१, ३८३, ३८५, ३८६, ३६२, ३६३, ३८२, ३६१, ३६४, ४०३, ४१२,४१६,४२०, ३६५, ४०० से ४०२, ४०४, ४०६, ४०८, ४२४, ४३०,४३३, ४३६, ४४५,४४७,५८६ ४१२ से ४१४, ४२२, ४२५, ४२७,४३७, ५६७,६०४ Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झल्लरी-ठियलेस झल्लरी [झल्लरी] ओ०६७. रा० १३,७७,६५७. जी० ३।२८ से ३२, ७८, ४४६, ६१८ सस [झष ] ओ० १६. जी. ३१५९६ झाण [ध्यान ] ओ० ३८, ४३, ४६ झाणकोट्ठोवगय [ध्यानकोष्ठोपगत ] ओ० ४५,८२ झाम [दग्ध] जी० ३६६ -झाम [दह] झामिज्जइ रा० ७६७ ‘झिया [ध्यै] -झियाइ रा० ७६५ --झियामि । रा० ७६५--झियायसि रा० ७६५ झियायमाण [ध्यायत् ] रा० ७६५ झीण क्षीण] ओ० ११६,११७. रा० ७७४ झीणोदग [क्षीणोदक ] ओ० ११७ झुसिय [शुषित] जी० ३।११८,११६ झुसिर [शुषिर] जी० ३।८०,६६,४४७,५८८ झूसणा [जूषणा] ओ० ७७ सूसित्ता [जुषित्वा] आ० १४० सूसिय [जुष्ट, शुषित] ओ० ११७ ट ठाणपय स्थानपद] जी० ३।१०४८,१०५६ ठाणप्पय [स्थानपद] जी० ३।७७ ठाणमग्गण [स्थानमार्गण] जी० ११३४,३६,३६ ठिइ [स्थिति] ओ० ८६ से ६५,११४,११७,१४०, १५५,१५७ से १६०, १६२,१६७,१७१. रा० ६६५,६६६.जी०१।१४,५२,५६,६०; २११५१ ३।१२७१५,१२६।५,१६०,६३१,१०४२ ठिइक्खय [स्थितिक्षय ] ओ० १४१ रा० ७६६ ठिइय [स्थितिक] ओ० ७०. जी० ११३३ ठिइवडिया [स्थितिपतिता] ओ० १४४ ठिईय [स्थितिक] जी० ३।७२१ ठिच्चा [स्थित्वा] रा० ७३६ ठित [स्थित] जी० ३।३०३,८४५ ठिति [स्थिति] रा० ७६८,८१५. जी० १६६५, ७४,८२,८७,८८,६६,१०३,१११,११२,११६, ११६,१२०,१२३ से १२५,१२८,१३३,१३६ से १३८, २।२० से २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,७६ से ८१,८५,१०७ से १०६, १११ से ११४,११६,११८,१५०; ३।१२०, १५६,१६२,१६५,१८६,१६२,२१८,२३८, २४३,२४७,२५०,२५६,२५८,५६४,५६५, ६२६,१०२७,१०४२,१०४४,१०४६,१०४७, १०४६,१०५०,१०५२,१०५३,१०५५,११२६, ११३१४॥३,५,६,५२५,७,२१,२८, ६२,५, ७; ७।२,८,८।२६।२ ठितिपद [स्थितिपद] जी०३।१६२ ठितिवडिया | स्थितिपतिता] रा० ८०२,८०३ ठितीय [स्थितिक] रा० १८६. जी० ३।३५०, ३५६,६३७,६५६,७००,७२४,७२७,७३८, ७६०,७६३,७६५,८०८,८१६,८२६,८४२, ८४५,८५४,८५७,८६३,८६६,८६६,८७२, ८७५,८७८,८८५,६२३,९२५ ठिय स्थित] ओ० ४०. रा० १७,१८,१३०,१३३, ७०३. जी० ३।३०० ठियलेस [स्थितलेश्य] ओ० ५० टकारवग्ग [टकारवर्ग] रा० ६७ (ठ) कठव [स्थापय]-ठवेइ रा० ६८१-ठवेई रा०५६-ठवेंति ओ० ५२. रा०६८७ -ठवेति ओ०६६. रा०६८३ ठवित्ता [ स्थापयित्वा] रा० ७६१ ठविय [ स्थापित ] ओ० १३४ . ठवेत्ता [स्थापयित्वा] ओ० ५२. रा० ५६ ठाण स्थान] ओ० १६,२१,४०,५४,७३,६५, ११७,१५५,१५६. रा० ८,७६,१७३,२६२, ६७५.७१४,७१६,७५१,७५३,७७१,७६६. जी० १११२४; ३।२८५,४५७,८४३,८४५, ८४६ ठाणट्ठिइय [स्थानास्थतिक] ओ० ३६ ठाणधर | स्थानधर] ओ०४५ ठाणपब [स्थानपद] जी० ३।२३३,२३४,२४८, २५० से २५२,२५७,१०४५ Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डंड-णग्गोहपरिमंडल जी० ३।२८५, ३०५ डंड [दण्ड] रा० ७५१ णंदिजणण [नन्दिजनन] रा० ७५० डझंत दह्यमान] जी० ३।४४७ णं दियावत्त [नन्द्यावर्त ] ओ० ५१,६४. रा० २१, डमर [डमर] ओ० १४. रा ० ६७१. ४६. जी० ३।२८६,५६४ णंविरुक्ख [नन्दिरूक्ष] ओ०६,१०. जी० ३१५८३ __ जी० ३।६२७ गंदिवद्धणा [नन्दिवर्धना जी० ३।६१४ उमरकर [डमरकर] ओ०६४ डिडिम [डिण्डिम] रा० ७७. जी० ३।५८८ णं दिसेणा [नन्दिषणा] जी० ३।६१० डिब [डिम्ब ] ओ० १४. रा० ६७१. जी०३।६२७ णंदिस्सर [नन्दिस्वर] रा० १३५. जी. ३३०५ विस्सर नन्दीश्वर] जी० ३।६४८, ६४६ णंदिस्सरवर [नन्दीश्वरवर] जी० ३।८८० से ढंक [दे० ढङ्क] जी० ११११५ ८८२,६१८,६२५ ढिकुण [दे० ] जी० ३।६२४ गंदिस्सरोद [नन्दीश्वरोद] जी० ३।६२५,९२७ णंदी [नन्दी] जी० ३१७७५ ण [न] ओ० ४७. रा०६. जी. १८२ गंदीमुह [नन्दीमुख ] ओ०६ णउत [नयुत] जी० ३।८४१ णंदुत्तरा नन्दोतरा] जी० ३।६१४,६१६ णउत [नवति] जी० ३३१००३ णक्ख [नख] ओ० १६. जी० ४१५,५६६ णउति [नवति] जी० ३११००४ णक्खत्त नक्षत्र ] ओ० ५०,१४५,१६२. णउय [नवति] जी० ३।२५७ रा०८०५. जी० ३७७५,८०६,८२०,८३०, णउल [नकुल] जी० ११११२ ८३४, ८३७,८४१,८४२,८४५,६३७,१०००, णउली [नकुली] जी० २६ १००७,१०२०,१०२१,१०३७,१०३८ णं [दे०] ओ० १. रा० २. जी० १११० णक्वत्तविमाण [नक्षत्रविमान] जी० २।४३, णंगलिय [लाङ्गलिक ] जी० ३।२१६ ३।१०१३,१०१८,१०३३ गंगूलियदीव [लाङ्गुलिकद्वीप] जी० ३।२२४ ।। णख [नख] जी० ३३५६७ गंगोलिय [लाङ्गलिक] जी० ३।२२० णगर नगर] ओ०४६. जी० ३।६०६ गंगोलियदीव [लागू लिकद्वीप] जी० ३।२२० । णगरगुत्तिय [नगर गुप्तिक] रा० ७५४,७५६, गंदणवण [नन्दनवन] रा० २७६. जी० ३।४४५ ७६२.७६४ गंदा [नन्दक'] ओ० ६८ गरमाण निगरमान रा०८०६ गंदा [नन्दा] रा० २३४,२८८,३१३,३७६,४३५, जगररोग [नगररोग] जी० ३।६२८ ४६६,५५६,६१६. जी० ३।३६५. ३६६,४१२, णगरी निगरी] ओ० २०,५३. रा० ६७१,६८६, ४२५,४३८,४५४,४७७,४७८,५१५,५२३, ६६२,७००,७०२,७०६,७०८,७१३,७१६, ५२६,५३७,५४४,५५१,५५६,६८३,६८५, ७५० ६८६,६८८,६०१,६१०,६१४ से ६१६,६१६ गंदिघोस [नन्दिघोष | ओ०६४. रा० १३५. णग्गभाव | नग्नभाव ] रा० ८१६ णग्गोह [न्यग्रोध] जी० १७२ १. नन्दति--समृद्धौ भवतीति नन्दस्तस्यामन्त्र णग्गोहपरिमंडल न्यग्रोधपरिमण्डल णमिदम्, इह च दीर्घत्वं प्राकृतत्वात् (व)। जी० ११११६ Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवंत - णव णच्चंत [ नृत्यत् ] ओ० ६४ णच्चण [ नर्तन ] ओ० ४६ [ नाट्य ] ओ० १४६, १४८, १४९. जी० ३६३१, १०२५ दृग [ नाट्यक] ओ० १,२ पेच्छा [ नाट्यप्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५ पेच्छा [ नाट्यप्रेक्षा ] जी० ३।६१६ माल [ नृत्तमाल ] जी० ३।५८२ विधि [ नाटयविधि ] जी० ३।४४७ विहि [ नाट्यविधि ] रा० ७३,८१ से १५,१०० से १११, ११३, ११६,२८१. जी० ३।४४७ सज्ज [ नाट्यसज्ज ] रा० ७६,१७३ णसाला [ नाट्यशाला ] रा० ७८१,७८३,७८६, ७८७ ट्टाणिय [ नाट्यानीक ] रा० ४७,५६ [ नष्ट ] रा० ६, १२. जी० ३।४४७ डपेच्छा [नटप्रेक्षा ] जी० ३।६१६ [ नप्तृक ] रा० ७५० से ७५३ त्थभाव [ नास्तिभाव ] ओ० ७१ मिह [ नदीमह ] जी० ३।६१५ पुंसंग [ नपुंसक ] जी० १११२८ २ १३ १४८, १४६,१६४ पुंगवेय [ नपुंसक वेद ] जी० १४२५, १०१ पुंगवे [ नपुंसक वेदक ] जी० १।८६ म [नम् ] - मेइ. जी० ३।४५७ / मंस [ नमस्य् ] -- मंसइ. ओ० २१ - णमंसंति. ओ० ४७. रा० ६८७. जी० ३।४५७ - मंसति रा० ८ - णमंसह. रा० ६ - णमंसामो. ओ० ५२. रा० १० - णमंसेज्जा. रा० ७७६ सण [ नमस्यन ] ओ० ५२ णमंसमाण [ नमस्यत् ] ओ० ४७,५२,६६,८३. रा० ६०, ६८७, ६६२,७१६ rice [ नमस्तुम् ] ओ० १३६ णमंसित्ता [ नमस्थित्वा ] ओ० २१. रा०८ जी० ३।४५७ णमिय [ नमित ] जी० ३।३८७,५६७ णमेत्ता [नमयित्वा ] जी० ३।४५७ णमो [नमस् ] ओ० २१. रा० ८१७. जी० ३।४५७ णय [नत ] रा० २४५,६६४. जी० ३।४०७, ५६२ यण [ नयन ] ओ० १६,२१,४७,५४. रा० ८. ७१४. जी० ३३८७,५६७ tarata रासि [ नयनकीकाराशि) ओ० १३ जयप्पांडियन [ उत्पाटितकनयन ] ओ० १० यर [ नगर] ओ० २८,२६,६८,८६ से १३,६५, ६,११५, ११८, ११६, १५५, १५८ से १६१, १६३,१६८ ६३५ यरगुत्तिय [ नगरगुप्तिक ] ओ० ६०, ६१ जयरी [ नगरी ] ओ० २,१४,२० से २२, ५२, ५५, ६० से ६२,६७,६८,७० रा० १०,१३,६८७ से ६८६,७००,७०३, ७५०, ७५३ जर [नर] ओ० १३,४६. रा० १२६,१७३,६८१, ७५३. जी० ३।२८५,२८८, ३११,३१८, ३७२ रक [ नरक ] जी० ३।७८ से ५१,५४ कंठक [नरकण्ठक ] जी० ३।३५५। ३ रग | नरक ] ओ० ७४१, ३. जी० ३।१२,७७, ८५ से ८७, १२७ पवर [ नरप्रवर] ओ० १४ रय [ नरक ] ओ० ७४. जी० ३।७७,८५,११७ से ११६ as [ नरपति ] ओ० १,२३,६३,६५ वसभ [ नरवृषभ ] ओ० ६५ रसीह [ नरसिंह] ओ० ६५ रिंद [ नरेन्द्र ] ओ० ६५ लागणि [ नलाग्नि] जी० ३।११८ ण लिण [ नलिन ] रा० २३, १६७,२७६,२८८. जी० ३।११८,११६, २५६, २८६,२६१,८४१ [ नलिनी] ओ० १. रा० ७७७,७७८, ७८८ णव [नवन् ] ओ० १४३. रा० ८०१. जी० १।१० Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णव-णातिय णव [नब] ओ० १,५,८,७१. रा०६१. जी०३,२७४,५६७ णवंग [नवाङ्ग] रा० ८०६,८१० णवण वमिया [नवनवकिका] ओ० २४ णवणीइयागुम्म नवनीतिकागुल्म] जी० ३१५८० णवणीत [नवनीत ] जी० २८४,२९७ ण वणीय [नवनीत] ओ० १३,६२,६३. रा० ३१, ____३७,१८५,२४५. जी० ३।४०७ णवनीय [नवनीत ] जी० ३।३११ णवतय [नवत्वक् ] रा० ३७ णवमिया [नवमिका] जी० ३।६२१ णवय [नवक] रा० ७५६,७६१ णवरं [दे०] जी० ११५६ णवरि [दे०] जी० ११६६ णवविध [नव विध] जी० ८।१,५; ६।२२१,२३२ णह निख] ओ० ६२. रा० ८,१०,१२,१४,१८, ४६,७२,७४,११८,१५०,२७६,६५५,६८१, ६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४,७२३. जी० ३१५९७ णाइ [ज्ञाति] ओ० १५०. रा० ७५१,७७४,८०२, ८११ णाइय नादित ] ओ० ६,६७. रा० १३,५६,५८. जी० ३।२७५,२८६,४५७.५५७ णाऊण [ज्ञात्वा] ओ० २३ । णाग [ नाग] ओ० ६६,१२०,१६२. रा० ६६८, __७५२,७७१,७८६. जी०३।३३५,५९६,७३३, ८८५,६४४,६४५,९४७ णागग्गह नागग्रह ] जी० ३१६२८ णागदंत [नागदन्त] रा० १३२,२४०. जी० ३।३०२,३१७,४०२ णागवंतग [ नागदन्तक] जी० ३।३०२,३१७,३२६, ३९७ णागदंतय [नागदन्तक] रा० १३२,१५३,२३५, २३६. जी० ३।३०२,३२६,३५५ णागदीव नागद्वीप] जी० ३१९४४,६४५ णागद्दार [नागद्वार] जी० ३।८८५ णागधर [ नागधर] ओ०६६ णागपइ [नागपति ] ओ० ४८ णागफड [नागस्फटा] ओ० ४८ णागमह [नागमह] जी० ३।६१५ णागराय | नागराज] जी० ३।७३४ से ७३६, ७४०,७४२,७४५,७४८ से ७५०,७८१,७८२ णागरुक्ख [नागरूक्ष] जी० १७१ णागलया [ नागलता] ओ०११. जी० ३१५८४ णागलयामंडवग [नागलतामण्डपक] रा० १८४. जी० ३।२६६ णागलयामंडवय [नागलतामण्डपक] रा० १८५ णाङग [नाटक ] रा० ६८५ णाण [ज्ञान ] ओ० ४६,५४,१५३,१६५,१६६, १८३,१८४,१६५।११. रा० २६२,६८६,७३३, ७३६,७४६,७७१,८१४. जी. ३११५२,४५७, ६१७ णाणत्त [नानात्व] जी० १।११६ ; ३।१६१,१६५, २१८ णाणविणय [ज्ञानविनय ] ओ० ४० णाणसंपण्ण [ज्ञानसम्पन्न] ओ० २५ णाणा [नाना] ओ० ५०,६३,७०. रा० १६,२०, ३२,३७,४०,१३०,१३३,१३५,१३६,१३८, १७५,१६०,२४५,८०४. जी० ३१७८,२६४, २६५.२८६ से २८८,३००,३०२,३०५, ३०६,३११,३२२,३७२,४३५,६५४,१०७१, १०६१ णाणावरणिज्ज [ज्ञानावरणीय ] ओ० ४४ णाणाविह नानाविध] ओ०६ से ८,१०,४६,५५, १०७,१३०. रा० २४,३२,१२८,१३३,१५१, १५२,१७१,२८१. जी० ३।२७५,२७७,३०३, ३२४,३२५,३५३,४४७ णाणि | जानिन् ] जी० ११८७,६६,११६,१३३, १३६; ३।१०४,१५२,११०७,११०८६।३०, णातिय [नादित] रा० २६१ Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाभि - णिग्गय नाभि [ नाभि ] ओ० १६. जी० ३।४१५, ५६६, ५६७ णाम [नामन् ] ओ० १४, १५,२०,४४,५२, ५३,८२, १४४,१७१,१६२,१६५११६. रा० ११,१७, १८,७६, ८१, ८३ से ६५, १०० से १११, ११३, २८१,६६६ से ६७२,६७५,६८७,७१३,७५१, ८०२. जी० १११,३३,४,१२८, २१७,२१६ से २२३, २२५, २२७, २६०, ३००, ३५०, ३५१, ४०१,५६६,५६८,५६६,५७७,५८२,५८६ से ५६२,५५,६३२६३८,६३९,७००,७०१, ७०४,७०८,७१०,७११, ७३६, ७४०, ७४२, ७४५,७५०,७५४,७६१, ७६२,७६५,७६६, ७६८ से ७७०,७७२,७७५ से ७७८,७६५, ७६६,८००,८१०,८१४, ८२१,८२५, ८२६, ८४८८५६,८५६,८६२,८६५,८६८,८७१, ८७४,८७७,८८०,६२५,६२७ से ६३२ ६३८ से ६४१,६४३, ६४४, ६७२, १०३६, ११२० जामंक [ नामाङ्क ] ओ० ५० मज्ज [नामधेय ] ओ० १६,२१,५१,५४, १४४,१६३. जी० ३।३५०,६६६,७०२,७६०, ८३६ मधे [नामधे ] ओ० ११७. रा० २६२. जी० ३।४५७ णामय [ नामक ] रा० ६६७. जी० ३।७७५ ta [ज्ञात] ओ० २. रा० ६८८ णाय [ज्ञात, नाग] ओ० २३ णायव्व [ ज्ञातव्य ] रा० १७२ नाराय [नाराच ] जी० ३०११० णारी | नारी ] जी० ३।२८५ नालबद्ध | नालबद्ध | जी० ३।१७४ लिएरिवण [ नालिकेरीवन ] जी० ३।५८१ लियाखेड [नालिका खेल ] ओ० १४६. रा० ८०६ नासा [नासा ] ओ० १६, ४७. जी० ३५६६,५६७ सिया [ नासिका ] जी० ३।४१५ ६३७ णिउण [ निपुण] ओ० १५,४६,६३. रा० १२,१७, १८,७५८,७५६, ८०६,८१०. जी० ३।११६, ५८८,५६२,५६७ णिओग [ निगोद ] जी० ५। ३३ णिओत [ निगोद ] जी० ५।१६ णिओब [निगोद ] जी० ५।२८ से ३०,३७,३८,४१ से ४३,५०,५२,५६ जिओदजीव [निगोदजीव ] जी० ५।३७, ५३, ५८ से ६० णिकरिय [निकरित] ओ० १६ णिकाय [निकाय ] ओ० ४६ कुरंब [निकुरम्ब] ओ० ४. रा० १७०. जी० ३ । ५६६ freens [ निष्कङ्कट ] जीं० ३।२६१,२३६ furifar | निष्काङ्क्षित ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८,७५२,७८६ णि क्खित्तउक्खितचरय [निक्षिप्त उत्क्षिप्तचरक ओ० ३४ णि क्खित्तचरय [निक्षिप्तचरक ] ओ० ३४ त्रिखुड [ निष्कुट ] रा० १४ णिगर [ निकर ] रा० १३०. जी० ३।३००, ५६०, ५६७ णिगरण [ निगरण ] जी० ३।५८६ गिरित [ निकरित] जी० ३१५६७ णिगलमालिया [ निगडमालिका ] जी० ३१५६३ √णि गिह [ नि + ग्रह ] - णिगिण्ठ्इ रा० ६ε३ fuगोदजीव [निगोदजीव ] जी० ५।५६ णि ग्रंथ [ निर्ग्रन्थ] ओ० २५,३३,७२,७६. रा० ६६८, ७४५ से ७५०, ७५२,७८६ [ निग्रन्थी ] ओ० ७६ णिग्गच्छ [निर् + गम् ] - णिग्गच्छइ. रा० ६६. जी० ३।४४३ - णिग्गच्छंति. ओ० ५२. रा० ६८७. जी० ३।४४५ णिग्गच्छित्ता [निर्गत्य ] ओ० ५२. रा० ६८७. जी० ३।४४३ निग्गय [निर्गत ] ओ० ६३. रा० ७५४,७५५ Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८ णिग्गह-णियाणमयग णिग्गह [नि ग्रह ] ओ० २५ णिण्हग [निह्नव] ओ० १६० णिग्घात [निर्घात] जी० ३।६२६ ‘णिद्दा [नि --द्रा] -णिदाएज्ज. जी० ३।११८ णिग्याय [ निर्घात ] जी० ११७८ गिद्ध [स्निग्ध] ओ० ४,१३,१६,४७. रा०१७०, णिग्घायण [निर्घातन ] ओ० २६ ७०३. जी० ३।२२,२७३,५८६,५६६,५६७, णिग्घोस [निर्घोष] ओ० ६७. रा० १३. १०६८ जी० ३।४४६,४५७ गिद्धत [निर्मात ] ओ० १६.४७ णिघस [निकष ] ओ० ८२ णिद्धच्छाय [स्निग्धच्छाय ] ओ० ४. रा० १७०, णिचय [निचय ] ओ० २३. जो० ३।२८४ ७०३. जी० ३१२७३ णिचिय [निचित] रा० १२,७५८,७५६. णिद्धोभास [ स्निग्धावभास] ओ० ४. रा० १७०, जी० ३.५६६ ७०३ जी० ३।२७३ णिच्च [नित्य] ओ० ५,८,१०,११. रा० १४५, णिधि [निधि ] जी० ३।६३७ २००. जी० ३।५६,११६,२६८,२७२,२७४, णिप्पंक [निष्पङ्क] ओ० १६४. जी० ३।२६१,२६६ ३५०,६३७,१७०२,७२१,७३८,७६०,७६३, णिब्भय [निर्भय ] ओ० ४६ ८०८,८१६,८२६,८३३,८३६,८३८।१७,८४०, । णिभिज्जमाण [निभिद्यमान] जी० ३।२८३ ८५४,९२३ णिभ [निभ] ओ० ६४. जी० ३.५९६ णिच्चमंडिया [नित्यमण्डिता] जी० ३१६६६ णिमग निमग्न ] ओ० १६. जी० ३:५९६ णिच्चालोय [नित्यालोक] जी० ३।१०७७ णिमिसिय |निमिषित] जी० ३।११८ णिच्चुज्जोय [नित्योद्योत] जी० ३।१०७७ णिम्मच्छ [ निर्मत्स्य ] जी० ३।९६५ णिच्छिड्ड [निश्छिद्र ] रा० ७५५,७७२ जिम्मल [निर्मल ] ओ० १६,४७,१८३,१८४,१६४. णिच्छिण्ण [निच्छिन्न] ओ० १६२१ __जी० ३।२६१,२६६,२६६,३०० णिज्जरण [निर्जरण] ओ० ४६ णिम्मा [नेमा] रा० १६,१३० णिज्जरा [निर्जरा] ओ० ७१,१६६,१७० णिम्माय [ निर्मात] ओ०६३ णिज्जा [निर्-या] ---णिज्जंतु. ओ०६२. णियइपब्वय | नियतिपर्वत ] जी० ३।२६२ णिज्जाहिस्सामि. ओ० ५५ /णियंस [ निवस्---णियंसेइ. जी. ३१४५१ णिज्जाणमग निर्माणमार्ग] ओ० ७२. रा०५६ ।। णियंसण ]निवान] ओ० ४६ णिज्जामय [निर्यामक] ओ० ४६ णियंसेत्ता [निवस्य] जी० ३।४५१ णिज्जास निर्यास] जी० ३।५८६ णियग निजक] ओ० ७०,१५०. रा० १३,७५१, णिज्जत [नियुक्त] ओ० ४८,४६,६४. रा० १७३, ८०२,८११ णियत्थ [दे० ] रा० ६६,७० णिज्जह [नि!ह] जी० ३।५६४ णियम [नियम] ओ० ३२. जी० ११५८,५६,७८, णिज्जोय [नियाग रा० ५४,६६,७० ६१,६६,१३३,१३६, ३.१०४,११०७ णिठुर निष्ठुर] ओ० ४० णियमसा | नियमसात् ] ओ० १६५:१० णिडाल ललाट] ओ० १६. रा० १३३. णियय [लियत रा० २००. जी० ३१५६,३५० जी० ३१५६७,११२२ णियया [नियता] जी० ३।६६६ णिडालपट्टिया ललाटपट्टिका] रा० २५४. णियलबद्धग [निगडबद्धग] ओ०६० जी० ३४१५ णियाणमयग [निदान मृतक] ओ ९० Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३६ णिरंतर-णिहि णिरंतर [निरन्तर] ओ० १४. रा० ६७१ ७५२,७८६ जी० ३.२५६,५६७ णिध्वइकर [निर्वृतिकर] रा० २८८. जी० ३।३०२, णिरंतरित [निरन्तरित | जी० ३।३०० णिरय [निरय] ओ० ४६. जी० ३।११६ णिवुतिकर [निर्वृतिकर] रा० ४०,१३२. णिरयावास [निरयावास] जी० ३।१२ ___जी० ३।२८३, २८५.३८७ णिरयुद्देस [निरयोद्देश ] जी० ३।१०८० णिन्वय [ निर्वृत] ओ०१ णिरवयव [निरवयव ] जी० ३ २५० णिव्वेयणी [निर्वेदनी] ओ० ४५ णिरवकंख | निरवकांक्ष ] i० ४६ णिसंत [निशान्त ] रा० १५ णिरातंक [निरातङ्क] जी० ३३५६८ णिसग्गरुड [निसर्गरुचि] ओ० ४३ णिरावरण [निरावरण] रा० ८१४ णिसढ [ निषध] रा० २७६. जी० ३१७९५ णिरुवद्दव [ निरुपद्रव] ओ० १ णिसण्ण [निषण्ण] ओ० ६३. जी० ३।३८४ णिरुवलेव [ निरुपलेप] ओ० १६. जी० ३।५६६ णिसम्म [निशम्य ] ओ० २१. रा० १६. णिरुवहत [निरुपहत] जी० ३।५६२ ___ जी० ३।४४३ णिरुवहय [निरुपहत ] जी० ३।५६७ णिसह [निषध] जी० ३।४४५ णिरोह निरोध | ओ० ३७ इणिसिर [नि-|-सृज] ----णिसिरंति. जी० ३।४४५ णिल्लेव [निर्लेप ] जी० ३।१६५ णिसीइत्ता [निषद्य) ओ० ५४ इणिवाड [नि--पात ].--णिवाडेद. जी० ३।४५७ णिसीद | निषद् -निसंदति. जी० ३१३५८ णिवाय [निपात ] ओ० १७० णिसीधिया [निषीधिका, नैषेधिकी] जी० ३।३०३. णिवाय [निवात] रा० १२३,७५५,७७२ ३०५,३०६,८८६ णिवायगंभीर [ निवातगम्भीर] रा० १२३,७५५, इणिसीय [निषद् ]-णिसीएज्ज. ओ. १८० -णिसीयइ. ओ० ५४---णिसीयंति. णिवुड्डि { निवृद्धि] जी० ३।८४१ । रा० ४८. जी० ३१२१७ इणिवेद | नि । वेदय ]--णिवेदे इ. ओ० १६ .... णिसीहिया [निषीधिका, नैषेधिकी। रा० १३२ णिवेदेति. ओ०१७--णिवेदेमि. ओ० २० से १३४,१३६,१३७. जी. ३।३०१,३०२, णिध्वण | निव्रण] ओ० १६. जी० ३।५६७ ३०४,३०७,३१५,३५५ णिवत्त [निवृत्त ] ओ० १४४. रा० ८०२ णिस्संकिय [निःशङ्कित] ओ० १२०,१६२. Vणिवत्त निर-वर्तय् --णिवत्तेइ. रा० ७७२ रा०६९८,७५२,७८९ णिव्वत्तिय [निवतित ] जी० ३।५६२ णिस्सा | निश्रा] जी०१:५८, ७३,७८,८१ णिवाघातिम | नियाघातिन् निर्व्याघातिम] हिस्सास [निःश्वास] ओ० १५४,१६५,१६६ जी० ३।१०२२ णिस्सिय [निःसृत] जी० १७८ णिव्वाघाय [निर्व्याघात] ओ० १५३,१६५,१६६. णिस्सेयस [निःश्रेयस्] ग० २७५. जी० ३१४४१, रा० ८०४,८१४. जी. १८२ ४४२ णिव्वाणमग [निर्वाणमार्ग] अं० ७२. रा० ८१४ णिहत निहत] जी० ३।४४७ णिव्वादित [निर्वाटिन] जी० ३।८७८ ।। णिहय [निहत रा० ६,१२ णिव्वितिगिच्छ निविचिकिला] रा०६६८, णिहि [निधि] जी० ३१७७५,८४१ ७७२ Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० णिहुय [निभृत ] ओ०४६ णीण [णी] –णीणेइ. ओ० ५६ णोणेत्ता [नीत्वा] ओ० ५६ गोरय [नीरजस्] ओ० १६४. रा० २१,२३,३२, ३४,३६,१२४,१४५,१५७. जी ०३।२६१,२६६, २६६ गोल [नील] ओ० ४७. रा० २४,२६,१३२,१५३, ६६४. जी० ३।३२६,५६२,५६५,५६६ णीलकणवीर नीलकणवीर] रा० २६. जी० ३।२७६ णीलग नीलक] जी० ३।२७६ णीलपाणि नीलपाणि] रा०६६४. जी० ३.५६२ णीलबंधजीव (नीलबन्धुजीव] रा० २६. जी० ३३२७६ गोललेस्स [नीलले श्य] जी० ६।१८७ गोललेस्सा नीलले श्या] जी० ३६६ णीलवंत [नीलवत् ] रा० २७६. जी० ३ ५७७, णिहुय-णोभवसिद्धिय उर [नूपुर] जी० ३१५६३ णेग [नैक ] रा० ७२७ णेमि [नेमि] ओ० ६४. रा० १७३,६८१. जी० ३२८५ तव्व | नेतव्य ] जी० ३।२१८,६६६,८८६,१०४८ यव्व [नेतव्य] जी० ११४०; ३।२६८,६६७,७६१ याउय [नर्यात्रिक ] ओ०७२ रइय [नैरयिक] ओ० ४४,७१,७३,८७. जी. १।१०,१२८,२१११८,१२६,१३४,१३५,१३८, १४४,१४५,१४८, ३.८६ से ६२,६४,९७, १०४,११६,११८ से १२१,११३१ से ११३३, ११३६,११३८, ६।२,५,१०, ७७,८,१३,१४, २० से २३, ६।१५६,१५८,२०६,२१०, २१६,२२१,२२४,२२६,२२६,२३१ से २३४, २३६,२४१,२४२,२४७,२५० से २५२, २५४,२५५,२६७ से २६९,२७४,२७७,२७८, २८३,२८६ से २८८,२६३ रइयत्त [नैरयिकत्व] ओ० ७३. रा० ७५०, ७५१. जी० ३।११७,११३३ वच्छ [नेपथ्य] ओ० ४६ णेवस्थ [नेपथ्य ] ओ० ७०. रा० ५३,५४,८०४ वत्थि [नेपथ्य ] ओ० ५७ णेवतिकर निर्वृतिकर] जी० ३।२६५ णेह [स्नेह ] जी० ३।५८६ णो [नो] ओ० ३३. रा०२५. जी. श२५ णोअपज्जत्तग | नोअपर्याप्तक] जी० ६९३ णोअपज्जत्तय [ नोअपर्याप्तक] जी० ६६१ णोअपरित्त [नोअपरीत] जी० ४८२ णोअभवसिद्धिय [नोअभवसिद्धिक] जी०६।११० से ११२ णोअसंजत [नोअसंयत ] जी० ६.१४५ णोअसंजय [नोअसंयत ] जी० ६।१४१,१४७ णोअसणि नोअसं जन्] जी० ६।१०७ णोपज्जत्तग नोपर्याप्तक] जी० ६६३ णोपरित्त [नोपरीत] जी० ६८२,८६,८७ णोभवसिद्धिय [नोभवसिद्धिक] जी० ९।११० से णीलवंतद्दह | नीलवद्रह ] जी० ३१६५६,६६६ णीलासोग नीलाशोक रा० २६ णीलासोय | नीलाशोक] जी० ३।२७६ णीली [नीली] रा० २६. जी० ३।२७६ णीलीगुलिया [ नीलीगुलिका] रा० २६. जी० ३२७६ णीलीभेद [नीलीभेद] रा० २६. जी० ३।२७६ णीलुप्पल [नीलोत्पल ओ० १३. रा० २६. जी० ३२७६ णीव [नीप] ओ० ६,१०. जी० ३ ५८३ णीसास नि:श्वास ओ० ११७. जी० ३.४५१ णीहारि निर्हारिन् ] ओ० ७१. रा० ६१ णीहारिम [निर्हारिन् ] ओ० ७,८,१०. जी० ३२७६ णीहु [स्तिहु] जी० ११७३ णूम [नूनम् ] ओ० १६६. रा० ७०३. जी. ३१९८३ Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णोमालिया-तच्च ६४१ ७७४ ११२ तउयभंड [त्रपुकभाण्ड] रा० ७७४ णोमालिया [नवमालिका] रा०३०. जी० ३।२८३ तउयभारग [त्रपुकभारक] रा० ७६०,७६१, णोमालियागुम्म [नवमालिकागुल्म] जी० ३।५८० णोमालियामंडवग [नवमालिकामण्डपक ] रा० तउयभारय [त्रपुकभारक] र ० ७७४ १८४. जी० ३.२९६ तउयागर [त्रपुकाकर] जी० ३।११८ णोमालियामंडवय [नवमालिका मण्डपक] रा० तए [ततम्] ओ० ५२. रा० ६. जी० ३।४४० १८५ तओ [ततस् ] रा० ११,५६,७०,८०२. णोसंजत [नोसंयत] जी० ६।१४५ ___जी० ३।६८६ णोसंजतासंजत [नोसंयतासंयत जी० ६।१४५ Vतंडव ताण्डवय ]-----तंडवेति. २०२८१. णोसंजय [नोसंयत] जी० ६।१४१,१४७ जी० ३१४४७ णोसंजयासंजय [नोसंयतासंयत] जी० ६।१४१, तंत [तान्त] रा० ७६५ १४७ तंती [तन्त्री] ओ०६८. रा० ७,७६,१७३. णोसणि [नोसंज्ञिन् ] जी० ६।१०७ जी० ३।२८५,३५०,५६३,८४२,८४५, व्हाइत्ता [स्पनयित्वा] रा० २६१ १०२५ व्हाण [स्नान] ओ० १६१,१६३ तंतुमय [तन्तुमय ] जी० ३१५६५ पहाणपीढ [स्नानपीठ] ओ० ६३ तंदुल [तण्डुल] रा० १५०,२६१. जी० ३।३२३, व्हाणमंडव [स्नानमण्डप] ओ० ६३ ४५७,५६२ ण्हाणमल्लिया [स्नानमल्लिका] रा० ३०. तंदुलछिण्णग [तण्डुलछिन्नक] ओ०६० जी० ३।२८३ तंब [ताम्र] ओ० १६,४७. जी० ३१५६६, हाय [स्नात] ओ० २०,५२,५३,७०. रा०६८३, तंबच्छि [ताम्राक्षि] जी० ३।८६० ६८५,६८७ से ६८६,६६२,७००,७१०, ७१६,७२६,७५१,७५३,७६५,७७४,७६४, तंबपाय [ताम्रपात्र] ओ० १०५,१२८ तंबबंधण [ताम्रबन्धन] ओ० १०६,१२६ ८०२,८०५ तंबागर [ताम्राकर] रा० ७७४. जो० ३।११८ हाय [स्नपय] -हाएइ. रा० २६१ तंबिय [ताम्रिक ] ओ० १०८,१३१ ण्हारु [स्नायु] जी० ११६५,१०५; ३।६२, तंबोलिमंडवग [ताम्बूलीमण्डपक] रा० १८४ १०६० तंबोलिमंडवय ताम्बूलीमण्डपका रा०१८५ इण्हाव [स्नपय-हावेति. जी०३१४५७ तंबोलीमंडवग ताम्बूलीमण्डपक] जी० ३।२६६ व्हावेत्ता [स्नपयित्वा] जी० ३।४५७ तंस [व्यस्र] जी० ११५, ३१२२,७८,७६,५६४, १०७१,१०७५ त तत् ] ओ० १. रा०१. जी. १११ तकारवग्ग [तकारवर्ग] रा०६८ तइय [ तृतीय] ओ० १४४,१७४,१७६,१८२ तक्क [तर्क] रा० ८१५ तउआगर [वपुकाकर रा० ७७४ तक्कर तस्कर] ओ० १ तउय [ क] रा० ७५४,७५६,७७४ तगर [तगर] रा० ३०,१६१,२५८,२७६. तउयपाय [त्रपुकात्र ओ० १०५,१२८ जी० ३,२८३,३३४,४१६ तउयबंधण [वपुकबन्धन ] ओ० १०६,१२६ तच्च [तृतीय] रा० १२,६५,७०२,७०३ Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२ तच्चसत्तराइंदिया-तरुणी तच्चसत्तराईदिया [तृतीयसप्त रात्रिंदिवा] तत्ततव [तप्ततपस् ] ओ० ८२ ओ० २४ तत्तिय [तावत् ] रा० १३०. जी० ३।३०० तच्चा | तृतीया] जी० १६१२५२।१४८,१४६% तत्तो [नतस्] जी० ३।१२७ ३।२,४,६८,७४,६१,१२५,११११ तत्थ [तत्र ओ० १४. रा० ८. जी० ११११ तज्जण [तर्जन] ० १६१,१६३ तत्थ [त्रस्त ] जी० ३।११६ तज्जणा [तर्जना] ओ० १५४,१६५,१६६. तत्थगत [तत्रगत ] रा०८ रा० ८१६ तत्थगय तत्रगत ] ओ०२१,५४. रा० ७१४, तज्जायसंसट्ठचरय [तज्जातसंसृष्टचरक] ओ० ३४ ७६६ तज्जोणिय [तद्योनिक] जी० ३१७२१,६१५ ।। तदावरणिज्ज [तदावरणीय] ओ० ११६,१५६ तड [तट] जी० ३।४४५ तदुभय [तदुभय] ओ० १५५,१६०. तडवडा | दे०] रा० २८. जी. ३।२८३ ___जी० ३।१०६०,१०६१ तण तण] रा० ६,१२,१७१,१७३,७६७. तदुभयारिह [तदुभयाई ] ओ० ३६ भी० १६६ ; ३३२७७ से २८५,२६८,३६०, तद्देवसिय [तद्देवसिक] ओ० १६,१७ ५७८,६२२,६६० तप्पढमया [तत्प्रथमता] ओ० ६४. रा०६६, तणवणस्सइकाइय [तृणवनस्पतिकायिक] २८५. जी० ३।४५० रा० ७७१ तप्पभिइ [तत्प्रभृति ] रा० ७६०,७६१ तणु [तनु] ओ० १६. जी० ३३५६६ से ५९८ । तमतमप्पभा [तमस्तमःप्रभा] जी० ३।४१ तणुय [तनुक) रा० १२७. जी० ३।२६१,३५२, तमतमा [तमस्तमा] जी० ३।४ ५६५५६७,६३२,६६१,६८६,७३६,८३६, तमप्पभा [तमःप्रभा] जी० ३।४१,४३,४४ ८५४,८८२ तमा [तमा] जी० ३।७८,८१,१०२,११५ तणुयतर [तनुकतर] ओ० १६२ तमाल [तमाल] ओ० ६,१०. जी०३।३८८, तणुयरी [तनुतरी] ओ० १६३ ५८३ तणु वात [तनुवात ] जी० ३।१३,१६,२१,२६, तम्हा [तस्मात् ] रा० ७५० __३७,५०,६५,६७ तय [त्वच्] जी० ३।३११ तणु वाय [तनुवात ] जा० ११८१, ३।३०,३८,४४, तया [तदा] ओ० २१. रा० २६२ ४७ तया [त्वच] ओ० ६४. रा० ७६१. जी० १७१ तणू [तनू ] ओ० १९३ तयामंत ] त्वग्वत् [ ओ० ५,८. जी० ३।२७४ तण्हा तृष्णा] ओ० ११७,१६५।१८. रा० ७२८, तयासह [त्वक सुख ] ओ०६३ जी० ३।११८,११६ तयाहार [त्वगाहार] ओ० ६४ तत तत] रा० ११४,२८१. जी० ३।४४७,५८८ तिर त --तरंति. ओ० ४६ ततिय [तृतीय] रा० ८०२ तरंग तरङ्ग] ओ० १६,४६. रा० २४,८१. ततिया [तृतीया] जी० ३।६८ जी० ३२७७,५६६,५६७ तते [ततस् ] जी० ३:५५५ तरमिल्लहायण [त रोमल्लिहायन] ओ० ६४ ततो [ततस् ] ओ० १४१. जी० ३.१०२३ तरुण [तरुण] ओ० ५,८,१६,६४. रा० १२,७५८ तत्त [तप्त] ओ० १६,४७,५०. जी० ३।११८, से ७६१. जी० ३.११८,११६,२७४,५६६,५६७ ५६०,५६६ ... तरुणी [तरणी] रा० ७१०,७७४,८०४ Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तरुणीपडिकम्म-तारारूव ६४३ तरुणीपडिकम्म [तरुणीप्रतिकर्मन् ] ओ० १४६. रा० ८०६ तरुपक्खंदोलग [तरुपक्षान्दोलक] ओ०६० तरुपडियग [तरुपतितक] ओ० ६० तल तल] ओ० १३,१६,६३,६४,६८,१६४. रा० ७,१२.५०,५२,५६,७६,७७,१३७,१७३, १७४,२३१,२४८,७५८,७५६,७७४. जी० ३।२८५,२८६,३०७,३५०,३६३,५६३, ५८८,५६६,६०४,८४२,८४५,१०२५ तलभंगय [तलभङ्गक ओ० ४७. रा० ३१५६३ तलवर [दे०] ओ० १८,५२,६३. रा० ६८७, ६८८,७०४,७५४,७५६,७६२,७६४. जी० ३६०६ तलाग [तडाग] ओ० १ तलागमह [तडागमह] जी० ३।६१५ तलाय [तडाग] ओ०६६ तलिण [तलिन] ओ० १६. जी० ३१५९६,५६७ तव [तपस् ] ओ०२१ से २४,२६,३०,३८,४५, ४६,५२,८२,११७. रा०८,६,६८६,६८७, ६८६,७११,७१३,८१४,८१७. जी० ३IREE तव [तप्]-तवंति. रा० २८१. जी० ३।४४७ -तविंसु. जी० ३१७०३-तविस्सति. जी० ३६७०३–तवेति. जी० ३१८४५ तवणिज्ज [तपनीय] ओ० १६,४७,५०. रा० ४०, १३०,१३२,१३७,१७४,१६१,२८८. जी० ३।२६५,२८६,३००,३०२,३०७,३१३, ३८७,३६७,५६०,५६६,६७२ तवणिज्जमय [तपनीयमय] रा० १३०,१४६, २४५,२५४,२७०. जी. ३।३००,३०५,३०८, ३११,३२२,३३७,३६६,४०७,४१५,४३५, ६४३,६०४ तवणिज्जामय [तपनीयमय] रा० ३७ तवस्सि [तपस्विन् ओ० २५ तवस्सिवेयावच्च [तपस्विवैयावृत्य] ओ० ४१ तवारिह [तपोर्ह ] ओ० ३६ तवोकम्म तपःकर्मन्] ओ० २४,११६,१२० तस [स] ओ० ८७. जी० ११११,७५,८३,१३६, १३८,१४० से १४३; ५।१७ तसकाइय [त्रसकायिक] जी०३११८३,१६४, १६७,५१,४,६,१०,१६,१८ से २०६।१८२, १८४ तसकाय [त्रसकाय] जी० ३.१७४ तसिय [त्रासित] जी० ३।११६ तह [तथा ओ० ६६. रा० १०. जी० १।१४ तहप्पगार तथा प्रकार ओ० ४०,१०५,१०६, १२८,१२६,१४१,१६१,१६३. जी० १६५, ७१ से ७३,७८,८१,८४,८८,८६,१००.१०३, १११,११२,११४ से ११६,११८,१२१ तहा [ तथा] ओ० १७७. रा० १०. जी०११४ तहारूव [तथारूप] ओ० ५२,१५१. रा०६६७, ६८७,८१२ तहि [तत्र] ओ० ८६. रा० १७४. जी० ३।२६६ ताडना [ताडना] रा० ८१६ ताडिज्जंत [ताड्यमान] रा०७७ ताण [त्राण] ओ० १६,२१,५४ तार [तार] रा०७६ तारग [तारक] जी० ३८३८।११ तारग्ग [ताराग्र] जी० ३३८३८२,२६ तारय [तारक] ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२६२, जी० ३।४५७ तारयग्ग [तारकाग्र] जी० ३।८३८।२६ तारा [तारा] ओ० ५०,६३,६८,१६२. रा० २५४,२८२. जी० ३१४१५,४४८, ८३८।१,२१,३०,१०२०,१०३७ तारागण तारागण] जी० ३१७०३,७२२,८०६, ८२०,८३०,८३४,८३७,८३८॥३१,८५५, १००० तारापिंड [तारापिण्ड] जी० ३८३८।१ तारारूव [तारारूप] रा०२०,१२४. जी० ३२८८,८४१,८४२,८४५,६६८,१००३ से १००६,१०२० से १०२२,१०३७,१०३८ Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४४ तारावलिपविभत्ति [ तारावलिप्रविभक्ति ] रा० ८५ ताराविमाण [ता विमान ] जी० २०१८, ४४; ३।१००६,१०१४,१०१६,१०३५ ताल [ ताल ] ओ० ६,१०,६८. रा० ७,७६,७७, १७३. जी० १।७२ ३२८५,३५०, ३८८, ५६३,५८८,८४२,८४५, १०२५ V ताल [ ताडय् ] तालेज्जा. रा० ७५५ ताण [ ताडन ] ओ० १६१,१६३ ताणा [ ताडना ] ओ० १५४, १६५,१६६ तालायर [ तालाचर] ओ० १ तालिज्जत [ ताड्यमान ] रा० ७७ तालियंत [ तालवृन्त ] ओ० ६७ तालु [तालु] ओ० १६,४७. जी० ३।५६६,५६७ तालु [तालुक ] रा० २५४ जी० ३ | ४१५ ताव [ तावत् ] ओ० ७६. रा० ७५१. जी० २८१ ताव [ तापय् ] इ. जी० ३।३२७ - तावेंति. रा० १५४ जी० ३।३२७ - तावेति. रा० १५४ जी० ३७४१ तावs [ तावत् ] रा० १२६. जी० ३।३७३ तावं [ तावत् ] जी० ३८४१ तावक्खेत [तापक्षेत्र ] जी० ३१८३८ ११४, १५,८४२, ८४५ तावतिय [ तावत् ] रा० २१०, २१२ जी ३१३००, ३५४,६४७, ८८५ तास [ तापस ] ओ० ६४ ताविय [तापयित्वा ] जी० ३ ११८ ताहे [तदा] जी० ३८४३ ति [त्रि ] ओ० ७७. रा० ७. जी० १।१७ ति [ इति ] रा० ७०३ [ ] ओ० २१, ४७,५२,५४,६६,७०,७८, ८०,८१,८३. रा० ८ से १०, १२, से १४,५६,५८, ६५,७३,७४, ११८, १२०, २६२, ६८७, ६६२, ६६५,७००,७१६,७१८, ७७८. जी० ३।४५७ far [त्रिक ] ओ० १,५२ तिमिच्छि [तिगिच्छि ] रा० २७६ तारावलिपविभत्ति-तिय तिrिच्छिदह [तिगिच्छिद्रह ] जी० ३१४४५ तिगुण [ त्रिगुण] जी० २।१५१३ । १०१० से १०१४ तिगुणिय [ त्रिगुणित ] जी० ३१८३८|२४ तिघरंतरिय [त्रिगृहान्तरिक ] ओ० १५८ तिण [ इदम् ] रा० ७५१. जी० ३।२७८ तिणिस [तिनिश ] ओ० ६४० रा० १७३,६८१ तिण [तीर्ण ] ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ तित्त [ तृप्त ] ओ० १६५।१८, १६. जी० ३।१०६ तित्त [ तिक्त ] जी० १५, ५०, ३२२ तिथ [ तीर्थ ] रा० १७४, २७६. जी० ३।२८६, ४४५ तित्थगर [ तीर्थकर ] ओ० १६, २१, ५२, ५४. रा०८, २६२. जी० ३४५७ तित्थगरसिद्ध [ तीर्थंकरसिद्ध ] जी० १८ तित्राभिह [ तीर्थकराभिमुख ] ओ० २१,५४ तित्थयर [ तीर्थकर ] ओ० ६६,७००८ तित्थयराभिमुह [ तीर्थकराभिमुख ] रा० ८,६८ सिद्ध [ तीर्थ सिद्ध ] जी० ११८ तिस्थाभिसे [ तीर्थाभिषेक ] ओ०६८ तित्थोद [ तीर्थोदक ] रा० २७६. जी० ३।४४५ दिंडय [ त्रिदण्डक] ओ०११७ तिपडोगार [त्रियावतार, त्रिपदावतार ] जी० ३६४७ तिपडोया [ त्रिप्रत्यावतार, त्रिपदावतार ] जी० ३:६३६६३८, ६५० तिष्पणयार | तेपन, तेवन ] ओ० ४३ तिभाग [ त्रिभाग ] ओ० १६५५४ से ६,८ जी० ३।३४ से ३६,४०, ४१, ४४, ४६, ७२५, ७२८, ७२६,८७८ तिमासपरियाय [त्रिमासपर्याय ] ओ० २३ तिमिर [ तिमिर ] जी० ३।५८६ तिय [त्रिक] ओ० ५५. रा० ६५४,६५५,६८७, ७१२. जी० ३।५५४ Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तियाह-तिसालग तियाह [ यह ] जी ३८६,११८,११६ तिरिक्ख [ तिर्यच् ] जी० ११५१, १२३, २०२५,६४, १२२; ६।१ तिरिक्ख जोणि [ तिर्यग्योनि ] ओ०७४ १, ३ जी० २१२,३,६,१०,२१ से २४,४६,६८,६६, ७२,१४२, १४५, १४६, १४६, १५१ तिरिक्खजोणिणी [ तिर्यग्योनिकी ] ओ० ७१. जी० ६ १, ४, ६, १२, ६।२०६,२१२,२१८.२२२ तिरिक्खजोणिय [ तिर्यग्योनिक ] अं० ७१,७३, १५६. जी० ११५१,५४, ५५५६. ६१, ६१, ६७, ८,१०१ से १०३, ११६,११७,११६,१२५; २१७५,७६, ८२, ८३,८८,६६,६६, १०१ से १०५, १०७ से १११,११३, ११६, १२२, ११८, १२६, १३८,१३६,१३८,१४२, १४५, १४६, १४६, १५१; ३ १,१२१,१३० से १४७, १५५, १५६,१६१ से १६३,१६६,११३२, ११३४, ११३७,११३८; ६/३, ८, १० से १२; ७११, ५, ६, १०, १५, १६, २० से २३; ६।१५६,२०६, २११, २१७, २२०, २२१, _२२५,२२६,२३१,२३२,२३५, २३६,२४३, से _२४५,२५०,२५१,२५३,२५५, २६७,२७०, २७१, २७६,२८०,२८६, २८७, २८६,२६३ तिरिक्ख जोणियत्त [ तिर्यग्योनिकत्व ] ओ० ७३. जो० ३ ११३४ ११११; तिरियक्खेवण | तिर्यक्क्षेपण ] ओ० १८० तिरियलोय [ तिर्यग्लोक ] जी० ३ २५६ तिरियवाय [तिर्यग्दात ] जी० ११८१ तिरोड [ किरीट ] ओ० ५१ तिरुव [ त्रिरूप ] जी० २।१५१ तिल [ तिल ] जी० १।७२; ३।६२१ तिलकरयण [ तिलकरत्न ] जी० ३।३०७ तिलग [ तिलक ] जी० ३।५६३,६३१ तिलगरयण [ तिलकरत्न ] रा० १३०,१३७. जी० ३।३०० तिलपप्पाडिया [तिलपर्पटिका ] जी० १।७२।३ तिलय [ तिलक ] ओ० ६ से ११. रा० ६६,७०. जी० ११७२; ३।३८८ से ३६०,५८३,७७५/२ तिलागणि [ तिलाग्नि] जी० ३।११८ तिवs [ त्रिपदी ] रा० २८१ तिवति [ त्रिपदी ] जी० ३।४४७ ६४५ तिल [ त्रिवलि ] ओ० १५. रा० ६७२. जी० ३।५६७ तिवासपरियाय [त्रिवर्षपर्याय ] ओ० २३ तिविध [ त्रिविध ] जी० २।१०४,१०६, १५१ ; ३।३८, १४८, १४९,१५३, १६४,२१५, ८३६; ५।५७ ६ ११२ तिरिय [तर्यच् ] ओ० ४४, ४६. रा० १०,१२,५६, १२६,१३२,२७६. जी० १/४५, ७६८७,६६, १०१,१३६; ३।१२६२, २५७, ३०२, ३५१, ४४५,६३८,७०१,७१०, ७३६, ७४७, ७६१,७६४, ७६८,७६६,८१४,८३८।१२,६४०, ६४४,१००६, तिव्वोभास | तीव्रावभास ] ओ० ४. रा० १७०, १५८ ७०३. जी० ३।२७३ तिविह् [त्रिविध] ओ० ३३,३७,६९,७०,७८. रा० ७६. जी० १११०, १२, ७५,६६, ११७, ११६,१२६,१३३,१३६, २१ से ३,८,११, ७५ से ७७,६६,१५१; ३।३७,७८, १३७, १६१.१०७१ ६२३,३२,६७,६६, ७५, ८८, ६५,१०१, १०६,१६४,२०२ तिव्व [ तीव्र ] ओ० ४,४६, ६६. रा० १७०, ७०३, ७६५. जी० ३०११०,२७३,६०८,६११ तिब्वच्छाय [ तीव्रच्छाय ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३ जी० ३।२७३ तिसत्तक्खुत्तो [त्रिसप्तकृत्वस् ] ओ० १७०. जी० ३१८६ तिसर [त्रिसर ] ओ० ५२, ६३. रा० ६८७ से ६८६ तिसरय [रिक ] ओ०१०८, १३१ तिसालग त्रिशालक ] जी० ३२५६४ Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिहा-तुसार तिहा [त्रिधा] रा० ७६४,७६५ तुडियंग [दे०] जी० ३१५८८,८४१ तिहि [तिथि ] ओ० १४५. रा० ८०५ तुडिया [त्रुटिता] जी० ३।२५४,२५८ तीर [तीर] रा० १७४. जी० ३।११८,११६,२८६, Vतुयट्ट [त्वग् + वृत्]- तुयति. रा० १८५. जी० ३१२१७-तुयट्टह. रा० ७५३. तीस [त्रिंशत् ] ओ० १६२. जी० ३।१२ --- तुयटेज्ज. ओ० १८० तीसतिविह [त्रिंशद्विध] जी० २।१३ तुयट्टण [त्वग्वर्तन] ओ० ४० तीसविध [त्रिंशद्विध] जी० ३।२२८ तुरक्क [तुरुष्क] ओ० २,५५ तु [तु] जी० ३।८३८५ तुरग [तुरग] ओ० १,१३,१६,६४. रा० १७,१८, तुंग [तुङ्ग] ओ० १६,४६,४७,६४. रा०५२,५६, २०,३२,३७,१२६,१७३,६८१. जी०३।२८५, १३७,२३१,२४७. जी० ३१३०७,३६३,५६६, २८८,३००,३११,३७२,५९६ ५६७ तुरय [तुरग] रा०६८३,६८५,६६२,७०८,७१०, तुंड [तुण्ड ] जी० ३।१११ तुंबवीणपेच्छा [तुम्बवीणाप्रेक्षा] जी० ३।६१६ ___७१६,७३१ तुंबवीणा [तुम्बवीणा] रा०७७ तुरित [त्वरित ] जी० ३८६ तुंववीणिय [तुम्बवीणिक] ओ० १,२ तरिय [तूर्य ] जी० ३।४४६ तुंबवीणियपेच्छा [तुम्बवीणिकप्रेक्षा] ओ० १०२, सुरिय [त्वरित] ओ० २१,४६,५४. रा० ८,१०, १२५ १२,१५,५६,२७६,७१४. जी० ३११७६,१७८, तुंबा [तुम्बा] जी० ३।२५८ १८०,१८२,४४५,६८६ तुच्छतराय [तुच्छतरक] रा० ७६५ तुरियगति [त्वरितगति ] जी० ३।६८९ तुच्छत्त [तुच्छत्व ] रा० ७६२,७६३ ।। सुरुक्क [तुरुष्क] रा० ६,१२,३२,१३२,२३६,२८१, तुट्ट [तुष्ट] ओ० २०,२१,५३,५४,५६,६२,६३, २६२. जी० ३।३०२,३७२,३९८,४४७,४५७ ६८,७८,८०,८१. रा. ८,१०,१२ से १४,१६ तुल [तोलय]-तुलेमि. रा० ७६२ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४,२७७,२७६, तुला [तुला] रा० ७४८ से ७५०,७७३ २८१,२६०,६५५,६८१,६८३,६६०,६६५,७००, तुलिय [तुलित] रा० ७६२,७६३ ७०७,७१०,७१३,७१४,७१६,७१८,७२५,७२६. तुलेत्ता [तोलयित्वा] रा० ७६२ ७७४,७७८. जी० ३१४४३,४४५,४४७,५५५ तल्ल [तुल्य ] ओ०१६. जी० १३१४३; २।६८ से तुडिय [टित ] ओ० २१,४७,५४,६३,७२,१०८, ७२,६५,६६,१३४ से १३८,१४१ से १४६; १३१. रा०८,६६,७०,२८५,७१४. जी० ३१७३ से ७५,५६६.६६८,६६६,१०३७,११३८ ३१४५१,४५७,५६३ ४११६ से २३,२५; ५११६,२०,२६,२७,३२ से तडिय | तुर्य] ओ०६७,६८. रा० ७,१३,३२,२०६, ३६,५२,५६,६८; ७२०,२२,२३, ६७,१४, २११,६५७. जी० ३१३५०,३७२,४४६,५६३, ६४६,८४२,८४५ ५५,१६६,१८१,२०८,२५० से २५३,२५५, २८६ से २६३ तुडिय [ दे०] जी० ३८४१ तुडिय [तुटिक]' जी० ३।१०२३ से १०२५ तुल्लत्त [तुल्यत्व] जी० ३।६६६ तुवर [तूबर] जी० ३।४४५,४४६,४४८ १. आर चूणिकृत्-'तुटिकमन्तपुरमुपदिश्यते' तुसागणि [तुपाग्नि] जी० ३।११८ [वृत्ति पत्र ३८४] । सुसार [तुषार] ओ० १६४. जी० ३।११६ Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुसारकूड-तोरण तुसारकूड [ तुषारकूट ] जी० ३।११६ तुसारपडल [ तुषारपटल ] जी० ३।११६ तुसारपुंज [ तुषारपुञ्ज ] जी० ३।११६ तुसिणीय [ तुष्णीक ] रा० ६४,७०१, ७६२ तूण [तुण] रा० ७७ तूणइल्ल [ तूणावत् ] ओ० १,२ तूणइल्लपेच्छा [ तूणावत्प्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५. जी० ३।६१६ तूयर [ तूबर] रा० २७६,२८० तूल [तुल ] ओ० १३. रा० ३७,१८५,२४५. जी० ३।२६७, ३११, ४०७ तूली [ तुली ] रा० २४५. जी० ३।४०७ इंदिय [त्रीन्द्रिय ] जी० १२८३,८८, ६० २ १०१ १०३,११२,१२१,१३६, १३६, १४६, १४६; ३।१३०,१६८; ४।१, ४, १३, १८ से २१, २४, २५; ८ ११,३,५, ६११,३,५,६,१६६,२२३,२३१, २५६,२६४,२६६ ते [तेजस्] जी० ११२८, १३३; २।१३०; ५८ ६ १६४,२५७ काय [तेजस्कायिक ] जी० ५६,२६; १८२, १८४,२५६,२६२,२६६ काय [तेजस्कायिक ] जी० १४७५,७६,७६, ८०; २।१००,१३६,१३८,१४६, १४९, ५४१, १३ १८,२०,८१,५ उलेस्स [तेजोलेश्य ] जी०६।१८५, १८६,१६६ तेउलेस्सा [तेजोलेश्या ] जी० ३।११०१ तेंदिय [त्रीन्द्रिय ] जी० ६ १६७, २२१,२२६,२५६ तेंदु [तिन्दुक ] जी० १।७२ तेजससमुग्धाय [ तैजससमुद्घात ] जी० ३ १११२, १११३ तेणानुबंधि [ स्तेनानुबन्धिन् ] ओ० ४३ तेणामेव [ तत्रैव ] रा० ७५४ जी० ३।४४३ तेस [ तैनिस ] जी० ३।२८५ तेतलि [तेजस्तलिन, तेतलिन् ] जी ३।६३१ तेत्तीस [ त्रयत्रिशत् ] ओ० १६७. जी० १६६ तेत्तीसम [ त्रयस्त्रिश ] रा० १६४ मासि [ त्रैमासिक ] ओ० ३२ मासिया [ त्रैमासिक ] ओ० २४ तेय [तेजस्] ओ० २२,४७, ५७, ६५, ७१,७२, १८२. रा० ६१, १३३, ७२३, ७७७,७७८, ७८८,८१३. जी० ३।३०३,५८६, ११२२ तेयंसि [तेजस्विन् ] ओ० २५. रा० ६८६ यग [ तैजस ] जी० | १७६ तेयगसरोरि [ तैजसशरीरिन् ] जी० ६।१७०,१७४ यय [ तैजस ] जी० १ १५,५६,६४,७४,७६,८२, ८५,६३,१०१,११६, १२८,१३५ तेया [ तैजस ] जी० ३।१२६६; ६।१८१ तेयासमुग्धात [ तैजससमुद्घात ] जी० ३।१११३ तेयासमुग्धाय [ तैजसस मुद्धात ] जी० ३ । १५७ याहि [त्र्याहिक ] जी० ३ ६२८ तेर [ त्रयोदशन् ] जी० ३।२६६।५ तेरस [ त्रयोदशन् ] ओ० १५५. रा० १८८. जी० ३।३४ तेरासिय [ त्रैराशिक ] ओ० १६० ૬૪૭ तेल्ल [तेल ] ओ० ६३, ६२, ६३. रा० १६१,२५८, २७६. जी० ३।३३४, ४१६, ४४५ तेलग [ तैलक ] जी० ३।५८६ तेल्लापूय [ तैलापूप] ओ० १७०. जी० २।२६० तेल्लापूव [ तैलापूर ] जी० ३।८६ daण [ त्रिपञ्चाशत् ] जी० १।१११ date [ त्रयोविंशति ] जी० ३।७३६ तोण [ तूण] ओ० ६४. रा० १७३,६८१. जी० ३.२८५ तोमर [ तोमर ] ओ० ६४. जी० ३।११० तोमरग्ग [ तोमराग्र ] जी० ३८५ [ तो ] ओ० २७ तो [ तोयपृष्ठ ] ओ० ४६ तोरण [ तोरण] ओ० १, २, ५५,६४. रा० २० से २३,३२,१३८ से १६१, १७३, १७६, २०२, २३४, २७७,२८१,२८८, ३१२, ४७३, ६४५, ६५५,६८१ Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४८ त्ति-थेरवेयावच्च जी० ३.२८५,२८८ से २६१,३१५ से ३३४, ३५५,३६३,३७२,३६६,४२५,५४३,४४७, ४५४,४७७,५३२,५५४,५५६,५७६,५६७, ६०४,६४१,६६६,६८४,८५७,६०१ त्ति [इति] रा०६ थंभ [स्तम्भ] रा० २० यंभणया [स्तम्भन] ओ० १०३,१२६ थंभिय [स्तम्भित ] ओ० २१,४७,५४,६३,७२. रा० ८. जी. ३:४५७ थिक्कार [दे०] -थक्कारेंति. रा० २८१. जी० ३१४४७ थण स्तन] ओ० १५. जी० ३।५६७ थणिय [स्तनित ] ओ० ४८,७१. रा० ६१ थणियकुमार [स्तनितकुमार] जी० २।१६ थणियकुमारी [स्तनितकुमारी] जी० २।३७ थणियसद्द [स्तनितशब्द] जी० ३।८४१ थलचर [स्थलचर] जी० २।१२२ थलज [स्थलज] जी० ३।१७१ थलय [स्थलज] रा० ६,१२ थलयर [स्थलचर] ओ० १५६. जी० ११९७,१०२ से १०४,११२,११७,१२०,१२४, २१६,२३, २४,६६,७२,७६,६६,१०४,११३,१३६,१३८, १४६,१४६; ३।१३७,१४१ से १४४,१६१ से थालिपाग [स्थालीपाक] जी० ३।६१४ थाली [स्थाली] जी० ३७८ पावर [स्थावर] जी०१।११,१२,७४,१३७,१३६, १४१,१४३ थावरकाय [स्थावरकाय] जी० ३६१७४ यासग [स्थासक] ओ० ६४ थिबुग [स्तिबुक] जी० ११६४,६५ थिभुग [स्तिबुक] जी० ३१६५६ थिभुय [स्थिबुक ] जी० ३.६४३ थिमिओदय [दे० स्तिमितोदक] ओ० १११ से ११३,१३७,१३८ थिमिय [दे० स्तिमित ] ओ०१. रा० १,७५, ६६८,६६६,६७६,६७७ पिर [स्थिर ओ० १६. रा० १२,७५८,७५६. जी० ३।११८,५९६,१०६८ | पिल्लि [दे०] ओ० १००,१२३. जी० ३।५८१, ५८५,६१७ ची? [दे०] जी० ११७३ थुिक्कार [थूत्कारय]-थुक्कारेंति. रा० २८१. जी० ३।४४७ थम स्तूप] जी० ३।४१२,५६७,६०४ थूभमह [स्तूपमह ] रा०६६८. जी० ३१६१५ पभाभिमुह [स्तूपाभिमुख ] रा० २२५. जी० ३।३८४,८६६ यूभियग्ग [स्तूपिकान] ओ० १६२ थूभियाग [स्तूपिकाक] रा० ३२,१२६, १३०, १३७,२१०,२१२. जी० ३१३००,३०७,३५४, ३७२,३७३,६४७,८८५ थूभियाय [स्तूपिकाक] जी० ३।३०० थूल [स्थूल] ओ० ७७ थूलय [स्थूलक ] ओ० ११७,१२१. रा० ७९६ थेज्ज [स्थैर्य] रा० ७५० से ७५३ थेर [स्थविर] ओ० २५,४०,१५१. रा० ६८७, ८१२. जी० १११; ३१ थेरवेयावच्च [स्थविरवैयावृत्य] ओ० ४१ थलचरी [स्थलचरी] जी० २।३,५,५१,६९,७२, १४६,१४६ थवइय [स्तबकित] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. जी० ३।२६८,२७४ थाम [स्थामन् ] ओ० २७ थारुइणिया [थारुकिनिका] ओ० ७०. रा. ८०४ थाल [स्थाल] रा० १५०,२५८,२७६. जी० ॥३२३,३५५,४१६,४४५,५८७,५६७ थालइ [स्थालकिन् ] ओ०६४ थालिपाक [स्थालीपाक] जी० ३।६१४ Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोव-दगपासायय ६४६ थोव [स्त क] ओ० २८,१७१. जी० १।१४३; दंत [बंधण] [दन्तबन्धन] ओ० १०६,१२६ २०६८ से ७३,६५,६६,१३४ से १३८,१४१ दंतमाल [दन्तमाल] जी० ३.५८२ से १४६; ३१५६७.८४१,१०३७,११३८; दंतवेदणा [दन्तवेदना] जी० ३।६२८ ४.१६ से २३,२५; ५॥१८ से २०,२५ से २७, दंतुक्खलिय [दन्तोलूखलिक] ओ० ६४ ३१ से ३६,५२,५६,६०, ६.१२; ७।२०,२२, दस [दंश] ओ० ८६,११७. रा० ७६६. जी. २३, ८।५, ६।५ से ७,१४,१७,२०,२७ से २६, ३६२४,६३२३ ३५,३७,५५,६१,६२,६६,७४,८७,६४,१००, सण [दर्शन] ओ० १५,१६ से २१,४६,५१ से १०८,११२,१२०,१३०,१४०,१४७,१५५, ५४,६४,१४३,१५३,१६५,१६६,१८३,१८४. १५८,१६६,१६६,१८१,१८४,१६६,२०८, रा० ८,५०,७०,१३३,२६२,६८६,६८७,६८६, २२०,२३१,२५० से २५३,२५५,२६६,२८६ ७१३,७३८,७६८,७७१,८१४. जी० १२१४, से २६३ ६६,१०१,११६,१२८,१३३,१३६,३।३०३, थोवतरक [स्तोकतरक] जी० ३।१०१,११४ ४५७,११२२ थोवतरग [स्तोकत रक] जी० ३।६६,११३ दसणविणय [दर्शनविनय ] ओ० ४० वंसणसंपण्ण [दर्शनसम्पन्न | ओ० २५. रा० ६८६ वंसणोवलंभ [दर्शनोपलम्भ] रा० ७६८ दओभास [दकावभास ] जी० ३।७३५,७४०,७४१, दक्ख [दक्ष] ओ० ६३. स० १२,७५८,७५६, दंड [दण्ड | ओ० १२,६४,१७४. रा० १०,१२,१८, ७६५,७६६,७७०. जी० ३।११८ २२,५१,६५,१५६,१६०,२५६,२७६,२६२, दक्षिण [दक्षिण] जी० ३१५६०,५६६,६३६,६७३, ६६४,६७५,७५५,७६०,७६१,७६७,७६८, ७४०,७४१ ७७६,७७७. जी० ३।११७,२६०,३३२,३३३, दक्षिणकूलग [दक्षिणकूलग ] ओ० ६४ ४१७,४४५,४५७,५६२,५८६ दक्षिणपच्चस्थिम [दक्षिणपाश्चात्य जी० ३१६८७ वंडणायक दण्डनायक ओ० १८ दक्षिणपुरथिम [दक्षिणपौरस्त्य] जी० ३।६८६ दंडणायग [दण्डनायक] रा० ७५४,७५६,७६२, दक्खिणिल्ल [दाक्षिणात्य ] जी० ३।४८६ ७६४ दंडणीइ [दण्डनाति ] रा० ७६७ दग [दक ] रा० १२. जी० ३१७४१ वगएक्कारसम [दकैकादश] ओ० ६३ दंडनायग [ दण्डनायक] ओ० ६३ दगकलसग [दककलशक] रा० १२ दंडपाणि [दण्डपाणि] रा० ६६४ दंडय [दण्डक] रा० ७५५ दगकुंभग [दककुम्भक] रा० १२ दंडलक्खण [दण्डलक्षण ] ओ० १४६. रा० ८०६ वगतइय [दकतृतीय ] ओ० ६३ दगथालग [दकस्थालक] रा० १२ दंडसंपुच्छणी [दे० दण्डसंपुच्छणी, दण्डसम्पुसनी] दगधारा [दकधारा रा० २६३ से २६६,३००, रा० १२ ३०५,३१२.३५१,३५५,५६४. जी० ३४५७ दंडि [दण्डिन् | ओ० ६४ से ४६२,४६५,४७०,४७७,५१७,५२०,५४७, दंत दन्त ] ओ० १६.२५,४७,६४. रा० २५४, ७६०,७६१. जी० ३।४१५,५९६ दगपासायग [दकप्रासादक ] रा० १८०. जी० दंत [दान्त] ओ० १६४ ३।२६२ दंत [पाय] [दन्तपात्र] ओ० १०५,१२८ दगपासायय [दकप्रासादक] रा० १८१ Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दगविइय-दलइत्ता दगबिइय [दकद्वितीय] ओ० ६३ दधिषण [दधिघन] रा० १३०. जी० ३।३०० दगमंचग [दकमञ्चक] रा० १८०. जी० ३।२६२ दधिमुह दिधिमुख ] जी० ३।६११,९१२ वगमंचय [दकमञ्चक] रा० १८१ दधिवासुयमंडवग [दधिवासुकामण्डपक] जी० दगमंडय [दकमण्डप] रा० १८१ ३।२६६ दगमंडव [दकमण्डप] रा० १८० दप्पण [दर्पण] ओ० १२,१६. रा० २१,४६,२६१. दगमंडवग [दकमण्डपक] जी० ३।२६२ जी० ३।२८६,३४७,५६६ दगमट्रिया [दकमृत्तिका] ओ० १४६. रा० ८०६ दप्पणय दर्पणक] ओ० ६४ वगमालग [दकमालक] रा० १८०. जी० ३।२६२ दप्पणिज्ज [दर्पनीय] ओ० ६३. जी० ३.६०२, दगमालय [दकमालक ] रा० १८१ ८६०,८६६,८७२,८७८ दगरय [दकरजस्] ओ० १६,४६,४७,१६४. रा० दब्भसंथारग [दर्भसंस्तारक] रा० ७६६ ३८,१६०,२२२,२५६. जी० ३१२८२,३१२, दमणा [ दमनक] रा० ३०. जी० ३।२८२ ३३३,३८१,४१७,५७६,५६७,८६४ दमिला [ द्रविडा, द्रमिला] रा० ८०४ दगवार [दकवार] जी० ३।११६ दमिली [द्रविडा, द्रमिला] ओ०७० दयपत्त [दयाप्राप्त ओ० १४.१ रा० ६७१ दगवारक [दकवारक] जी० ३१५८७ दयरय दकरजस्] रा० २६ दगवारग [दकवारक] रा० १२ दरिमह [दरीमत् ] रा०६८८ दगसत्तम [दकसप्तम] ओ० ६३ दरिय [दृप्त ] ओ० ६. जी० ३१२७५ दगसीम [दकसीम] जी० ३।७३५,७४५ से ७४७ दरिसण [दर्शन] रा० ८०३ दच्चा [दत्वा] रा०६६७ दरिसणावरणिज्ज [दर्शनावरणीय ] ओ० ४४ दड्ड [दग्ध ] ओ० १८४ दरिसणिज्ज [दर्शनीय] ओ० १,५,७,८,१० से १३ दढ [दृढ] ओ० १,१४२,१४४. रा० १२,७५८, १५,४६,६४,७२,१६४. रा०१७ से २३,३२,३४ ७५६,८००,८०२. जी० ३.११८ ३६ से ३८,५०,१२४,१३०,१३१,१३६,१३७, दढपइण्ण [दृढप्रतिज्ञ] ओ० १४४ से १५०, १५४. १४५,१५७,१७४,१७५,२२८,२३१,२३३, रा० ८०२,८०५ से ८११,८१६ २४५,२४७,२४६,६६८,६७०,६७२,६७६, वढपतिण्ण [दृढप्रतिज्ञ ] रा०८०४ ७००,७०२. जी० ३।८४,२३२,२६१,२६६, दढरहा [दृढरथा] जी० ३।२५४ २६६,२७४,२७६,२८६ से २८८,२६०,३००, दढाउ [दृढायुष्] जी० ३।११७ ३०३,३०६,३०७,३११,३८७,३६३,४०७,४१०, दद्दर [ दे० दर्दर] ओ० २,५२,५५. रा० ३२,१५६, ५८१,५८४,५८५,५६६,५६७,६३६,६७२, २७६,२८१,२८५. जी० ३३३२,३७२,४४५, ८३६८५७,८६३,११२१,११२२ ४४७,४५१,५६४ दरिसणीय [दर्शनीय] रा० १ बद्दरग [दे० दर्द रक] रा०७७. जी० ३।५८७ दरी [दरी] जी० ३।६२३ दहरय [दे० दर्दरक] रा० २८१. जी० ३.७८, दल [दल] जी० ३।२८२,५६७ ४४७ दलइत्ता दत्वा ] ओ० २१. रा० २६३. दद्दरिगा [दे० दर्दरिका] रा० ७७ जी० ३१४५८ ददुर [दर्दुर] ओ० ५१. जी० ३।१०३८ १. प्राप्तकरुणागुणः []। दयाप्राप्तः स्वभावतः वधि [दधि] जी० ३१५६७ शुद्धजीवद्रव्यत्वात् । Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दलय-दार वलय [दलक] रा० २६ दहित्ता [दग्ध्वा] जी० ३।५१६ दिलय [दा]--दलइस्संति. ओ० १४७. रा० दहिवण्ण [दधिपर्ण | ओ०६,१०. जी० ३३८८ ८०८-दलइस्लामि. रा० ७८७ -- दलएज्जा. दहिवासुयमंडवग [दधिवासुकामंडपक] रा० १८४ रा० ७७६---दलयइ. ओ० २१. रा० २६३ दहिवासुयमंडवय [दधिवासुकामण्डवक] रा. १८५ जी० ३१५१५...दलयंति. रा०२८१. जीदा ] दा] --दिज्जइ र ०७८४... देइ रा० ७६६ ३।४४७.--दल यति. जी० ३।४५८ दाइय [दायिक] ओ० २३. रा० ६९५ दलयित्ता [दत्वा] रा० २६३ दाऊण [दत्वा] रा० २९२. जी० ३।४५७ दवकर [द्रवकर] ओ० ६४ दाडिम [दाडिम] ओ० ६,१०. जी० ११७२; दवग्गि [दवाग्नि] जी०२।१८३:११८,११६ ३१५६६,५६७ दवग्गिवड्ढग [दवाग्निदग्धक] ओ०६० दाण [दान] ओ० २३. रा० ६६५ दवप्पिय [द्रवप्रिय ] ओ० ४६ दाणधम्म [दान धर्म] ओ०६८ दव [द्रव्य ] ओ० २८,४६,६६,७०. रा० ७७८. दातु [दातृ] ओ० ११७ जी० ११३३, ३३२२,२३,२७,४५,५०६,५६२; ५५१ १३२,१३७,१४०,१५८, २३५,२५५,२६५, दव्वओ [द्रव्यतस् ] ओ० २८. जी०१३३ २८१,२६१,२६४,२६६,३००,३०५,३१२, दवट्ठ [द्रव्यार्थ ] जी० ५।५२,५६,६० ३५५,६८३,६६२,७००,७१६. जी० ३।२८१, दव्वया [द्रव्यार्थ] रा० १६६. जी० ३१५८,८७, ३००,३०२,३१३,३३१,३३८,३५५,३५६, २७१,७२४,७२७,१०८१ ३६७,४१२,६३४,८६२ दम्वविउसग [द्रव्यव्युत्सर्ग] ओ० ४४ दामिणि [दामिनी] जी० ३१५६७ दव्वभिग्गहचरय [ द्रव्याभिग्रहच रक] ओ० ३४ वामिल [द्राविड] जी० ३।५६५ दव्वीकर [दर्वी कर] जी० १११०६,१०७ ।। दार [द्वार] ओ० १,१६२. रा ० १२६ से १३८, दव्योमोदरिया [द्रव्यावमोदरिका] ओ० ३३ १६२ से १६६,२१० से २१२,२१५,२७७, दस [दशन्] ओ०४७. रा० ८. जी० १७४ २८३,२८६.२८८,२६१,२६४ से २६६,३०१ से दसण [दशन] जी० ३.५६७ ३०४,३२२ से ३२४,३२७ से ३२६,३३१ से दसणुप्पडियग [उत्पाटितकदशन] ओ०६० ३३४,३३६,३३७,३३६,३४१,३४२,३५१,३५७, दसदसमिका [दशदशकिका] ओ० २४ ३६४,३९५,४१४,४१६,४५३,४५४,४७४, दसद्ध [दशार्ध] रा० ६. जी० ३१४५७ ४७७,५१४,५१५,५३४,५३७,५७४,५७५, दसमभत्त [दशमभक्त] ओ० ३२ ५६४,५६७,६३४,६३५,६५४,६५५,६५७. जी० दसविध [दशविध] जी० ६।१,२५६ ३२२६६ से ३०७,३१५,३३५,३३६,३४६ से दसविह दशविध] ओ० ३६,४१. जी० ११४,१०; ३५१,३५४ से ३५७,३७३,३७४,४१२,४२१, २११६; ३।२३१६८,२६७,२६३ ४४३,४४५,४४६,४५२,४५४,४५७,४५६ से दह [द्रह] रा० २७६. जी० ३१४४५,६३६,६४०, ४६१,४६३,४६४,४६६,४६८,४६६,४७५, ६६६,७७५,६३७ ४७६,४८७ से ४८६,४६१ से ४६४,४९६ से वहमह [द्रहमह] जी० ३१६१५ ४६६,५०१,५०२,५०४,५०६,५०७,५१६, दहि [दधि] ओ० ६२,६३ ५१७,५२२,५२४ से ५२६,५२८,५३०,५३१, दहिघण [दधिधन] रा० २६. जी० ३।२८२ ५३३,५३६,५३८ से ५४०,५४३,५४५ से Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५२ दारग-दित्ततेय ५४७,५५०,५५२ से ५५४,५५७,५६३,५६६, ५६८ से ५७०,५६४,६४७,६७३,६७४,७०७ से ७११,७१३,७१४,७६६ से ८०२,८१३ से ८१५,८२४ से ८२७,८५१,८५२,८८५ से ८८८,६३९,६४०,६४४,६५५ दारग [दारक] ओ० १४२,१४४ से १४७, रा० ८००,८०२,८०४ से ८१० दारचेडा [द्वारचेटा] रा० १३०,२६४,२६६.२६८ २६६ जी० ३।३०० दारचेडी [द्वारचेटी] जी० ३।४५६,४६१ दारय [दारक] ओ० १४३,१४४,१४८, से १५० रा० १२,८०१,८०२,८०६,८११ जी० ३११८,११६ दारुइज्जपव्वय [दारुकीयपर्वत रा० १८१ दारुइज्जपव्वयग [दारुकीयपर्वतक] रा० १८० दारुपव्वयग [दारुपर्वतक] जी० ३।२६२ दारुपाय [दारुपात्र] ओ० १०५,१२८ दारुय [दारुक] आ०६४ दारुयाग [दारुकक] जी० ३।२८५ दारुयाय [दारुकक] रा०१७३,६०१ दालिम | दाडिम] ओ० १६ दास दास] ओ० १४,१४१. रा०६७१,७७४, ___७६६. जी० ३।६१०,६३१।२ दासी [दासी] ओ० १४,१४१. रा० ६७१,७७४, ७६६ दाह | दाह ] रा० ७६५. जी० २।१४०,३।११८, ११६,६२८ दाहिण [दक्षिण] ओ० २१,५४. रा० ८,१६,४०, ४३,४४,६६,१२४,१३२,१७०,१७३,२१०, २१२, २३५,२३६,२६२,६६१,६६४. जी० ३।२१७,२१६ से २२१,२६५,२८५,३४२, ३४५,३५८,३७३,३६७,३६८,४५७,५६२,५६६, ५६७,५६६,५७७,६४७,६६८,६५२,६८९ ६६२,६६५,६९६,७११,८८२,८८५,६०२, १०१५,१०३६ दाहिणपच्चत्थिम [दक्षिणाश्चात्य ] रा० ४३, ६६२. जी० ३।२२४,३४३,५६०,७५२ दाहिणपच्चथिमिल्ल [दक्षिणपाश्चात्य] जी० ३।२२०,६६४,६६५,६१८,६२१ दाहिणपुरस्थिम [दक्षिणपौरस्त्य | रा० ४३,६६०. जी० ३३४१,५६०,७५१ | दाहिणपुरथिमिल्ल [दक्षिणपौरस्त्य] रा० ५६ जी० ३२१६,२२३,६६२,६६३,६१८,६२० दाहिणवाय | दक्षिणवात ] जी० १८१ दाहिणहत्थ दक्षिणहस्त] ओ०६६ दाहिणिल्ल दाक्षिणात्य ] रा०४८,५७,२६४ से ३०५,३०६ से ३१२,३२०,३२१,३२५,३३४, ३३६,३४४,३५७,४१६,४७७,५३७,५६७. जी० ३।३३,३८,२१७,२१६ से २२३,२२५, २३४,२४४,२५०,२५३,४५६ से ४७०,४७४ से ४७७,४८५,४६०,४६५,४६८,५०४,५०६, ५२२,५२,५३६,५४३,५५०,६३२,६३६, ६६६,६७३,६६३,६६४,६१४ दिलैंतिय [दार्दान्तिक] रा० ११७,२८१. जी० ३।४४७ दिदुलाभिय दृष्टलाभिक ओ० ३४ दिट्टि [दृष्टि रा० ७४८ से ७५०,७७३. जी०११४,६६,१०१,११६,१२८,१३३,१३६; ३।१२७,१६० दिट्ठिय दृष्टिक] रा० ७६५ दिट्टिवाय दृष्टिाद] रा० ७४२ दिणयर दिनक] ओ० २२. रा० ७२३,७७७, ७७८,७८८. जी० ३८३८।१२,१३,२६ दिण्ण दत्त ओ०२,१७,५५,१११ से ११३, १३७,१३८. रा० १५,३२,२८१,७८७,७८८. जी०३४८७ दित्त [दृप्त, बाप्त ] ओ० १४,१४१. रा० ६७१, ६७५,७६१ दित्त | दीप्त ओ०६३,६५ जी० ३१८३८१२६ दित्ततव [वीप्ततपस्] ओ० ८२ दित्ततेय दीप्ततेजस्] ओ० २७. रा० ८१३ Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिन्न-दीविग दिन्न [दत्त] जी० ३१३७२ ३६३,३७३,३८३,३६६,६४७,६६६,६७३, दिप्पंत [दीप्यमान] ओ० ६३. रा० १३३. ६७४,६८४,७२३,८८२,८८५,८८८८६५, जी० ३।३०३,५८६,५६०,११२२ ६१०,६१४ से ६१६,६१६ से १२२ दिप्पमाण [दीप्यमान ] ओ० ६५. जी० ३१५६१ दिसिव्वय [दिग्वत] ओ० ७७ दिवड्ड [ द्वयर्ध, व्यपार्ध | जी० २।७३; ३।२३८, दिसौभाग [दिग्भाग रा० १०,१२,१८,५६,६५, २४३ २७६,६७०. जी. ३१४४५ दिवस | दिवस] ओ० १४४. रा०८०२. दिसीभाय [दिग्भाग] ओ० २. रा० २,६७८ जी० ३१८३८।१८,८४१ दीणारमालिया [दीणारमालिका] जी० ३।५६३ दिव्व [दिव्य] ओ० २,४७,६४,७२. रा० ७,६, दीव [द्वीप] ओ० १६,२१,४८,५४,१७०. रा० ७, १०,१२,१७ से १६,२४,३२,४५ से ५०,५६,५७, १०,१२,१३,१५,५६,१२४,२७६,६६८. ६३,६५,७३,७६,७८ से ६५,१०० से ११३. जी० ३१८६,२१७,२१६ से २२३,२२५ से ११८ से १२०,१२२,१७३,२०६,२११,२७६, २२७,२५७,२५६,२६०,२६६.३००,३५१, २८१,२८५,२६३ से २६६,३००,३०५,३१२, ४४५,५६६,५६० से ५७७,६३८,६६०,६६८, ३५१,३५५,५६४,६६७,७५३,७६७. ७०१ से ७०४,७०८,७११,७१५ से ७१६, जी० ३१८६,१७६.१७८,१८०,१८२,२८५, ७२३,७३६,७३६,७४०,७४२,७४५,७५०, ३५०,३७२,४४५,४४६,४५१,४५७ से ४६२, ७५४,७५५,७६०,७६२,७६४ से ७६६,७६८ ४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५४७,५५४, से ७८०,७६५ से ८००,८०२ से ८०४,८०६, ५६३,६४६,८४२,८४५,१०२४,१०२५, ८०८ से ८१०,८१४,८१६,८१७,८२१ से दिव्वा [ दिव्याक ] जी० १११०८ ८२५,८२७,८२६ से ८३१,८३८।२३,२६, विसा [दिशा] ओ० ४७,७२,७६ से ८१. ८४८,८५१,८५६,८५७,८५६,८६२,८६३, रा० २६४,६८८. जी० ३।३६,७५२,७५३, ८६५,८६८,८६६,८७१,८७४,८७५,८७७, १०१८,१०१६,१०२१ ८८० से ८८२,६१८,६२५,६२७ से १३५, दिसाकुमार [दिशाकुमार ओ० ४८ ६३७ से १४०,६४३,६४५, ६५० से १५४, दिसादाह [ दिशादाह ] जी० ३।६२६ ९७२ से ६७५,१००१,१००७,१०२२,१०३६, दिसापोक्खि |दिशाप्रोक्षिन् ] ओ० ६४ १०८०,११११ दिसासोत्थिय | दिशास्वस्तिक] ओ०१६ दोव [दीप] रा० ७७२ दिसासोवत्थिय दिशासौवस्तिक] रा० १४६. दीवग [द्वीपक जी० ३१७७० जी० ३.३१६,५६६ दीवचंपग [दोपचम्पक] रा० ७७२ दिसासोवत्थियासण दिशातौवस्तिकासन] दीवचंपय [ दीवचम्पक] रा० ७७२ रा० १८१,१८३,१८५. जी. ३१२६३,२६५, दीवणिज्ज [दीपनीय] जी० ३।६०२,८६०,८६६, २९७,८५७ ८७२,८७८ दिसि | दिश्] रा० १६,४४,६१,१२०,१७०,१७५, दीवसिहा [ दीपशिखा| जी० ३१५८६ २०२,२१०,२१२,२२४,२३४,६६४,६६४, दीवायण [दी रायन] ओ०६६ ६६७,७१७,७७७,७८७. जी० ११४६,५६, दीविच्चग [द्वीपग] जी० ३१७८० ८२,८७,६६,१०१, ३।३४,३५,२८७,३५८, दीविग [द्वीपिक] जी० ३१६२० Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५४ दीविय-दुय दीविय [द्वीपिक] रा० २४. जी० ३।८४,२७७ । दीविया [दीपिका] जी० ३,५८६ दीविल्लग [द्वीपग] जी० ३।७७५ वीह [दीर्घ ] ओ० १४,१६,२८,११६,११७, १६५४. रा० १६०,२५६,६७१,७६५,७७४. जी० ३३३३३,४१७,५६६,५६७ दोहासण [दीर्घासन] रा० १८१,१८३. जी० ३।२६३ दोहिया [दीपिका ओ० १,६,६६. रा० १७४, १७५,१८०. जी० ३।२७५,२८६ दीहोकर [दी:- कृ-दोहीकरेज्जा. जी० ३१६६७ दोहोकरित्तए [दीर्थीकतुभ् ] जी. ३१६६४ से ६६७ दु [द्वि] रा० ४७. जी० ११६ दुंदुभिस्सर [दुन्दुभिस्वर] ओ० ७१. रा० ६१ बुंदुहिणिग्घोस [ दुन्दुभिनिर्घोष] ओ०६७. रा० १३,१३५. जी० ३।४४६,५५७ दुदुहिनिग्धोस [ दुन्दुभिनिर्घोष] रा० ६५७. जी० ३३५५७ दुंदुहिस्सर [दुन्दुभिस्वर] रा० १३५. जी० ३।३०५ दुंदुही [दुन्दुभी] रा० ७७ दुक्ख | दुःख] ओ० २६,४६,७२,७४११,४,५, १५४,१६५,१६६,१७७,१८१,१६५२१. रा० ७७१,७६५,८१६. जो० १११३३; ३।११०; १२६७,८,८३८।१३ दुक्खुत्तो [द्विम् ] जी० ३।७३०,७३१ दुखुर [द्विखुर] जी० १।१०३ दुगुण द्विगुण] जी० ३१२५६ दुगुणित द्विगुणित] जी० ३१५६७ दुगुणिय द्विगुणित | जी० ३८३४।२४ दुगुल्ल दुकूल] रा० ३७,२४५. जी० ३।३११, ४०७,५६५ दुग्ग [दुर्ग] रा० ७६५. जी० ३।११० दुग्गंध [दुर्गन्ध] रा० ७५३ दुघण [द्रुघण] रा० १२,७५८,७५६. जी० ३।११८ दुघरंतरिय [द्विगृहान्तरिक ओ० १५८ दुच्चिण्ण [दुश्चीर्ण] ओ०७१ दुट्ट [दुष्ट] ओ० ४६ दुत द्रुत] जी० ३।४४७ दुतविलंबित [द्रुतविलम्बित | जी० ३।४४७ दुद्ध [दुग्ध ] जी० ३।५६२ बुद्धजाति [दुग्धजाति ] जी० ३।५८६ दुरिस [दुर्धर्ष ] ओ० २७. रा० ८१३ दुपडोयार | द्विप्रत्यावतार, द्विपदावतार] ओ०५२. रा० ६८७ दुपय [द्विपद] रा० ७०३,७१८ दुपाय [द्विपक] जी० ३१११८,११६ दुप्पय [द्विपदं] रा० ६७१ दुप्पवेस [दुष्प्रवेश] बो०१ दुफास [दुःस्पर्श ] जी० ३।९८१ दुफासत्त [दुःस्पर्शत्व] जी० ३१६८७ दुब्बल [ दुर्बल ] ओ० १४. रा० ६७१,७६०,७६१. __ जी० ३।११८,११६ दुब्बलय [ दुर्बलक] रा० ७६१ दुभिक्ख [भिक्ष] ओ० १४. रा० ६७१ दुभिक्खभत्त [दुर्भिक्षभक्त] ओ० १३४ दुभिखमयग [ दुर्भिक्षमृतक] ओ० ६० दुभिगंध [दुर्गन्ध] रा० ६,१२. जी० ११५,३६, ३७,५०; ३।२२,६२२,६७६,६८५ दुब्भिगंधत्त [दुर्गन्धत्व] जी० ३।९८५ दुन्भिसद्द [दुःशब्द] जी० ३।६७७,६८३ बुब्भसद्दत्त [दुःशब्दत्व] जी० ३१६६३ दुब्भूय [दुर्भूत ] जी० ३।६२८ दुभागपत्तोमोवरिय द्विभाग प्राप्तावमोदरिक] ओ० ३३ तुम [द्रुम] रा० १३६. जी० ३।३०६,५८२,५८६ से ५६५,६०४ दुमासपरियाय द्विमापपर्याय ] ओ० २३ दुय [द्रुत रा० १०२,२८१ Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुयविलंबिय-देव ६५५ दुयविलंबिय [द्रुतविलम्बित ] रा० ६१,१०४, २८१ दुयाह [यह ] जी० ३।८६,११८,११६,१७६, १७८,१८०,१८२ दुरंत [दुरन्त] रा० ७७४ दुरभि [दुरभि] जी० ३८४ दुरस ] दूरस] जी० ३।६८० दुरहियास [ दुरध्यास, दुरधिसह] रा० ७६५. जी० ३।११०,१११,११७ दुरुह [आ+ रुह]-दुरुह इ. रा० ६८५-- दुरुहंति. रा० ४८. --दुरुहति. रा० ४७ दुरुहेति. रा०६८३ दुरुहित्ता [आरुह्य ] रा० ४७ दुरुहेत्ता [आरुह्य] रा०६८३ दुरुढ [आरूढ ] ओ० ६३,६४. रा० १३,४६ दुरूव [दूरूप] जी० ३।६७८,९८४ -दुरूह [आ--- रुह |--.दुरूहति. ओ०७० दुरूहित्ता [ आरुह्य ] ओ० ७० दुरूहित्ताणं [आरुह्य ] ओ० १०१ दुल्लभ [दुर्लभ ] रा० ७५० से ७५३ दुल्लभबोहिय [ दुर्लभबोधिक ] रा० ६२ दुव [द्वि] जी० ३१२५१ दुवारवयण [द्वारबदन] रा० ७५५,७७२ दुवालस [द्वादशन् ] ओ० ३३. जी० ३३३३ दुवालसंगि [ द्वादशाङ्गिन् ] ओ० २६ दुवालसविह [द्वादशविध] रा० ५२७७,७८. जी० ११६६ दुवासपरियाय [द्विवर्षपर्याय ] ओ० २३ दुविध [द्विविध] जी० ३।१३६,१४०,१४१,१६३, ११२२; ६।१३७ दुविह [द्विविध] ओ० ३२,४०,७४. रा० ७४१ से ७४५. जी० १:२,३,५ से ७,१०,११,१३,१४, ५७,५८,६३,६५ से ६८,७०,७६,८०,८१,८४, ८८,८६,६२,६४,६६,६७,१०० से १०४, १०६,१११,११२,११६,११८ से १२२,१२६, १२६,१३३,१३५,१३६,१४३, २५,७,१६ ३.७८,७६,८१,८२,६१,६३,१२७१५,१३२ से १३५,१३८,१३६,१४२ से १४६,२१२,२२६, ९७७ से १८१,१०२२,१०७१ से १०७४, १०८७,१०६१,१११०,११२१,४।२; ॥२ से ४,३७ से ४०,५३ से ५५, ६८,९,११, १५,१६,१८,२१,२२,२४,२८ से ३१,३६, ३८,३६,४२,४४,४६,५६,५८,६२,६३,६५, ६६,६८,७६,७६,८१,१२५,१३३,१५१, १७४ दुव्वण्ण [दुर्वर्ण ] जी० ३।५६७ दुहओ [द्वितस्, द्वय] रा०६६,७०,१३१ से १३८, २४५,७५५,७७२. जी० ३।३०१ से ३०३, ३०५ से ३०७,३१५,३५५,४०७,५७७ दुहओखहा [द्वितःखहा] रा०८४ दुहओचक्कवाल [द्वितश्चक्रवाल] रा०८४ दुहतो [द्वितस्, द्वय रा० १२३. जी० ३।३०४ दुहा [द्विधा] रा० ७६४,७६५. जी० ३।८३१ दूइज्जंत [द्रूयमाण ] ओ० ४६ दूइज्जमाण [द्रूयमाण] ओ० १९,२०,५२,५३. रा० ६८६,६८७,६८६,७०६,७११,७१३ दूय [दूत] ओ०१८,६३. रा० ७५४,७५६,७६२, ७६४ दूर [दूर] ओ० १६२. रा० १२४. जी० ३३१०३८ दूरंगइय [दुरंगतिक] ओ० ७२ दूरसत्त [दूरसत्व ] जी० ३।६८६ दूराहड [दूशहत ] रा० ७७४ दूरूवत्त [दूरूपत्व] जी० ३१९८४ दूस [दूध्य ] ओ० ५६. जी० ३।६०८ दूसरयण [दुष्यरत्न] ओ०६३ देव देव] ओ० ४४,४७ से ५१,६८,७१,७३,७४, ८८ से १५,११४,११७,१२०,१४०,१४१, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७,१७०, १९५१३,१४, रा० ७,६ से १६,२४,३२,४१ Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५६ से ४४,४६ से ४६, ५४ से ६५, ६८, ६६, ७१ से ७४, ११८ से १२०, १२२, १२४,१२६, १८५ से १८७, २४०, २४६.२६६, २६८,२७०, २७४ से २६१,६५४ से ६६७, ६६८,७५२, ७५३, '७७१,७८६,७६७ से ७६६, १५. जी० १ ५१, ५४,५६,६१,६५,८२,८७,६१,१०१,११६, १२३,१२८,१३५,१३६, २।२, १५ से १६, ३५ से ३५, ३० से ४७, ६२, ६७,६८,७१,७२, ७५,७८,८१,६० से ६३, ६५, ६६, १४४, १४५, १४८, १४९, १५१: ३।१,८६,१२७, १२६२, १७६, १७८, १८०, १८२, १८४, १६४, १६८ से २०६,२१७,२३० से २३४,२३६,२३८,२३६, २४२ से २४४,२४६,२४७,२४६ से २५२, २५५ से २५७,२६७, २६८, ३३६ से ३४५, ३५०,३५१,३५८ से ३६०,३७२, ४०२, ४१०, ४२६,४३२,४३५, ४३६ से ४५७,५५४ से ५६५, ५६७, ५६८,६३५,६३७, ६३८, ६५६, ६६४, ६६६,६८०,७००,७०१,७१०, ७२१, ७२४, ७३८,७४१: ७४३,७४६, ७६०, ७६३,७६५, १७७८,७६५,८०८, ८१६,८२६, ८४०, ८४२, ८४३,८४५,८४६,८५४,८५७,८६०,८६३, ८६६,८७२८७५,८८५, ६१७, ६२३, ६२५, ६२७ से १३५, ६३८ से ६४०, ९४२ से ६४५, ६४७,६५०,६५१,६५४,६८८ से ६६७,६६, १०१५, १०१७,१०२५,१०२७,१०२६, १०३१, १०३३,१०३५,१०३८,१०३६,१०४१ से १०४४,१०४६,१०४७,१०४६ से १०५६, १०८२,१०८३,१०८५ से १०८७,१०८६ से १०६३,१०६७ से १०६६, ११०१,११०५, ११०७,११०६ से १११२,१११४ से १११७, १११६ से ११२४, ११३२, ११३३, ११३७, ११३८, ६१, ५, ७, ८, १२ ७ १,७,८,१६ से २१,२३; ६।१५६,१५८,२०६, २१३,२१८, २२०, २२१,२२६,२२६,२३१,२३२, २४८, २५४,२६७, २७४, २८३,२८६,२६१,२६३ देवकलिया देवत्त देवउक्क लिया [ देवोत्कलिका ] जी० ३।४४७ देवल [ देवकुल ] रा० १२ देवकज्ज [ देवकार्य ] जी० ३ ६१७ देवकम्म [ देवकर्मन् ] जी० ३।१२६।६,८४० देवकहकह [देवकहकह] जी० ३।४४७ देवकहकहग [ देवकहकहक] रा० २८१ देवसिय [ देव किल्विधिक] ओ० १५५ देवबिसियत्त [ देवकिल्विषिकत्व ] ओ० १५५ देवकुमार [ देवकुमार ] रा० ६६, ७१ से ७५,७६ से ८१,८३,११२ से ११८ देवकुमारिया [ देवकुमारिका ] रा० ८३, ११५ से ११८ देवकुमारी [ देवकुमारी ] रा० ७० से ७५, ७६ से ८१,११२ से ११४ देवकुरा [ देवकुरु ] जी० २।१३, ३।६१६,६३७ वेवकुरु [ देवकुरु ] जी० २२३३,६०,७०,७२,६६, १३७, १३८, १४७, १४६; ३१२२८,७६५ देवकुल [ देवकुल ] ओ० ३७. रा० ७५३ das [ देवगति ] रा० १०, १२,५६,२७६ देवगण [ देवगण ] रा० ६६८,७५२,७८६. जी० ३।११२० देवगति [ देवगति ] जी० ३६६, १७६,१७८, १८०, १८२,४४५ देव [ देवगुप्त ] ओ० ६६ देवच्छंदग] [ देवच्छन्दक ] जी० ३।६०७ देवच्छंद [ देवच्छन्दक ] रा० २५३, २५८,२६१. जी० ३।४१४, ४१५,४१६, ४५७, ६७५, ६७६, ६०७,६०८ देवजु [ देवद्युति ] रा० ६३,६५,११६ देवजुति [ देवद्युति] रा० ५६,७३,११८,७६७ देवज्जु | देवयुति ] रा ० ६६७ देवज्जुति [ देवद्युति ] रा० १२२ देवत्त [ देवत्व ] ओ०७२, ७३,८६ से ६५,११४, देवता [देवता ] जी० ३।७३७ ११७,१४०, १५७ से १६०,१६२,१६७. रा० ७५२,७५३. जी० ३ ११२८, ११३० Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवदीव-देस ६५७ देवदीव [देवद्वीप] जी० ३७७६,७७७) देवदीवग [देवद्वीपक] जी० ३१७७६,७७७ देवदुहदुहग देवदुहदुहक] रा० २८१. जी० ३१४४७ देवदूस देवदूष्य रा० २७४,२८५,२६१,७५६. ___ जी० ३।४३६,४४३,४५१,४५७ देवदार [देवद्वार] जी० ३.८८५ देवद्दीवग देवद्वीपक] जी० ३७७६,७७७ देवपरिसा [देवपरिषद् ] ओ० ७१. रा०६१ देवभद्द [देवभद्र ] जी० ३१९४२.६५१ देवमहाभद्द [देवमहाभद्र] जी० ३।६४२,६५१ देवमहावर [देवमहावर जी० ३१९५१ देवय [दैवत ] ओ० २,५२,१३६. रा० ६,१०,५८, २४०,२७६,६८७,७०४,७१६,७७६. जी० ३।४०२,४४२ देवया [देवता] ओ० १३६ देवरमण [देवरमण] रा० ७८,८०,८२,११२ देवराय [देवराज] जी० ३।६१६ से ६२२,१०३६ से १०४४ देवलोग [देवलोक ] ओ० ७४१२,१४१. रा० ७६६. जी० ३।६३० देवलोय [ देवलोक] ओ० ७१,७२,७४१२,८६ से ६३. रा० ७५२,७५३. जी० ३१६३० देववर [देवव र] जी० ३।६५१ देवविमाण [देवविमान] रा० १८७ देवसण्णिवाय [देवसन्निपात] रा० २८१ देवसन्निवाय [देवसन्निपात ] जी० ३।४४७ देवसमवाय [देवसमवाय] जी० ३।६१७ देवसमिति [ देवसमिति ] जी० ३।६१७ देवसमुदय [देवसमुदय] जी० ३।९१७ देवसमुद्दग [देवसमुद्रक] जी० ३।७७८ देवसयणिज्ज [देवशयनीय ] रा० २४५,२४६,२६१, ३५३,४१४,७६६. जी० ३।४०७,४०८,४२३, ४३६,४४३,५१६,५२६,६५०,६७३,७५६ देवसोक्ख [देवसौख्य ] ओ० ७४१२ देवाणु प्पिय [देवानुप्रिय] २०,२१,५२,५३,५५, ५६,५८,६०,६२,११७,११८,१२०. रा० ६,१०. १३,१४,१७,५८,६३,६५,७२,७३,२७६,२७८, ६ ५४,६८१,६८७ से ६६०,६६५,७०४,७०६, ७१३,७१४,७१८,७२०,७२३,७५१,७६५, ७६८,७७४,७७५,७७७,८०२. जी. ३१४४२, ४४४,५५४ देवाणुभाग [ देवानुभाग] रा ० ६६७ देवाणुभाव [ देवानुभाव ] ० ५६,६३,६५,७३, ११८,११६,१२२.७६७ देविंद [देवेन्द्र ] 'जी० ३।६१६ से १२३,१०३६ से १०४४,१०५५ देविट्टि [देवधि] ओ० ७४।२. रा० ५६,६३ ६५, ७३,११८,११६,१२२,६६७७६७ देवित्त [देवीत्व ] जी० ३।११२८ से ११३० देवी [देवी] ओ० १५,५५,५८,६२,७०,७१,८१. रा० ५,७,१५ से १७,४८,५४ से ५८,१८५, १८७,२४०,२७६,२८०,२८२,२८६ से २६१, ६५७,६७२,६७३,७५१,७७६,७६१ से ७६४, ७६६. जी० ३३१९८ से २०६,२१७,२३७, २३८,२४३,२४६,२४७,२४६,२५०,२५६,२६७, २६८,३५०,३५८३६०,४०२,४४२,४४६,४४८, ४५५ से ४५७,५५७,५६३,६३७,६५६,७६०, ७६३,१०२३,१०२५,१०२८,१०३.,१०३२, १०३४,१०३६,१०४१,१०४२,१०४४,११२२, ११२६ ; ६।१,६,७,१२,६।२०६,२१४,२१८, २२० देषुक्कलिया [देवोत्कलिका] रा० २८१ देवुज्जोय [देव द्योत] रा० २८१. जी० ३।४४७ देवोद [देवोद जी० ३।७७६,७७७,६४३,६४४ देवोदग देवोदक ] जी० ३१७७८,७७६ देस [देश] ओ० १६,१६५।१०. रा० १७४,१८०, १८२,१८४,१८८,१६२ से १६७,७६५,७७४, ८०४. जी० ११४,५; ३।२६६ से २६६,२८६, २६२,२६४,२६६,५७६ से ५६६,६४०,६५६, ६६४,७०२,७२६,८०८,८२९,८५७,८६३, ८६९,८७५,८८१ Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५८ देसंतर-धणुवेय देसंतर [देशान्तर] ओ० ११६,११७ ६५,२७६,७०२,७०३. जी० ३।१२४,४४५ देसकहा [ देशकथा] ओ० १०४,१२७ दोच्चा | द्वितीया] जी० १११२४,२।१३५,१३८, देसकालण्णया [ देशकालज्ञता] ओ० ४० १४८,१४६; ३१२,४,६६,६७,७३,७४,८८,६१ देसभाग देशभाग] रा० ३२,३६,३६,६६,१६४, १२५,१६१,११११ २१८,२६१,२८१,३००,३२१,३३३. जी० दोणमुह द्रोणमुख ] ओ०६८,८९ से १३,६५, ३।२७५,३६५,३७२,४४७,४६०,४६५,५५४, ९६,१५५१५८ से १६१,१६३,१६८. ५६६,७५६,७६२,७८२,८८२,६१३ रा० ६६७ देसभाय [देशभाग] ओ० २,६,८,१६,५५,१६२. दोभग्ग [दौर्भाग्य | जी० ३।५६७ रा० ३,३५.१२५,१८६,२०४,२१७,२२७,२३८, दोमासिय द्वैमासिक] ओ० ३२ २५२,२६३,२६५,३२६,३३८,३५६,४१५, दोनासिया [ द्वैमासिकी ओ०२४ ४७६,५३६,५६६,७५५,७७२. जी० ३।२६३, दोर दवरक] रा० २७०. जी० ३।४३५ ३१०,३१३,३३८,३५६,३५६,३६१,३६४, दोवारिय [दौवारिक] ओ० १८. रा० ७५४,७५६, ३६८,३६६,७७,३८६,४००,४१३,४२२, ७६२,७६४ ४२७,४५८,४६०,४८६,४६१,४६८,५०३, दोस [दोष] ओ० ३७,७१,११७,१६१,१६३. ५२१,५२७,५३५,५४२,५४६,६३४,६३६, रा० १७३,७६६. जी० ३,२८५,५६८ ६४२,६४६,६४६,६६३,६६८,६७१ से ६७३, दोसिणाभा [दे० ज्योत्स्नाभा] जी० ३३१०२३ ६७६,६८५,६६१,७३७,७५८,८३१,८८४, ८६०,८६१,६०६,६११,६१८,१०२३,१०३६ देसावयासिय [देशावका शिक] ओ० ७७ घंत [ध्मात] रा० २६,७५७. जी० ३।२८२ देसिय [देशित] जी० १११ धंतपुष्व [ध्मातपूर्व] रा० ७५७,७६३ देसी [देशी] ओ० ४६,७०. रा० ८०६,८१० यण [धन] ओ० ५,१४,२३,१४१. रा० ६७१, देसीभासा [देशीभाषा] ओ० १४८,१४६ ६६५,७६६ देसूण [देशोन] रा० १२८,२०१. जी० २।२६ से । घणक्खय [धनक्षय] जी० ३१६२८ धणिय दे०] ओ० ४६. रा० ७७४. ३४,३७,५४ से ६१,६५,८४,८८, ११४.११६, जी० ३३५८६ १२३,१२४,१३२, ३।२४७,२५०,२५६,२७३, २६८,३६२,३६६ से ३७१,५७०,६२६,६४६, घणु [धनुष्] ओ० १,६४,१७०,१८७,१६५५. रा० १८८,१८६.२४६,६६४,७५६. ६७३,६७४,७०६,७३२,८८२; ६।२३,२६,३३, जी०११६४,११२,११६,१२५, ३१८२,६२, ४१,६९,७३,७८,१४२,१४४,१४६,१६२,१६४, २१८,२६०,२६३.३५३,५६२,५६८,६४७, १६५,१७८,२००,२०२ से २०४ देसोण [देशोन] जी० ३१३५३ ६४६,६७३ से ६७५,६८३,७०६,७८८, देह [देह] रा० ७६०,७६१. जी० ३१५६६ १०१४,१०२२ देहधारि [देहधारिन् ] ओ० १६ धणग्गह [धनुर्ग्रह] जी० ३।६२८ दो [द्वि] ओ० १७० धणुपट्ट [धनुष्पृष्ठ] जी० ३।५५७,६३१ दोकिरिय [द्वेक्रिय] ओ० १६० घणुवेद [धनुर्वेद ] ओ० १४६ दोच्च [द्वितीय] ओ० ११७. रा० १०,१२,१८, धणुवेय [धनुर्वेद] रा० ८०६ Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धण्ण-धायतिसंड ६५६ घण्ण [धान्य] ओ० २३ पम्मिय [धार्मिक] ओ० ५२,५७,१६१,१६३. रा० धन्न [धन्य] ओ० १६४. रा० ६६५ २७०,२८८,६६७,६८७,७५२,७५३. जी. धमावियपुव्व [मापितपूर्व ] रा० ७५७,७६३ ।। ३।४३५,४५४ धम्म [धर्म ] ओ० १६,२१,४०,४६,५४,६९,७१, धम्मोबदेसग धर्मोपदेशक] ओ० २१,५४,११७. ७२७४ से ७७,७६ से ८१,१४२,१४४,१६१, रा० ७१४,७६६ १६३. रा० ८,१६,६१,६२,२६२,६६३ से घिर []--धरंति जी० ३१७३३ ६६५,७००,७१७ से ७२०,७३२,७५२,७७५, घर [धर] ओ० ५,८,१६,२१,४७,४६,५४,७२. ७७६,७८०,८००,८०२. जी० ३.४५७ रा०८,२२,१४५,२६२,६६४,७७१. जी० ३।२६८,२७४,३८७,४५७,५६२,५८४,६७२ धम्मकहा [धर्मकथा] ओ० ४२,४३. रा० ७७५ ७०२,८०८,८२६ धम्म [झाण] [धर्म्य ध्यान] ओ० ४३ धरण [धरण] ऑ०६८. रा० २८२. जी०३२४४ धम्मक्खाइ [धर्माख्यायिन् ] ओ० १६१,१६३. से २४७,२५०,४४८ रा० ७५२ धरणितल [धरणितल] ओ० २१,५४. रा०८, धम्मचरण [धर्मचरण] जी० २.२६ से २६,५४ ५६,२६२. जी० ३।४५७ से ५७,६५,८४,८८,८६,११४,१२३,१३२ धरणियल [धरणितल] जी० ३४५७,८८२ धम्मचितग धर्मचिन्तक] ओ०६३ परिज्जमाण [ध्रियमाण] ओ० ६३,६५. रा० धम्मज्मय [धर्मध्वज] ओ० १६ ६६२,७००,७१६ धम्मणायग [धर्मनायक] रा० २६२. जी० ३।४५७ घरिसणा [धर्षणा] ओ० ४६ धम्मत्थिकाय [धर्मास्तिकाय] रा० ७७१. जी० घरेज्जमाण [ध्रियमाण] रा० ६८३ १४ धव [धव ओ० ६,१०. जी० ११७२; ३।३८८ धम्मदय [धर्मदय] रा० ८,२६२. जी० ३.४५१ ५८३ धम्मदेसय [धर्मदेशक] रा०८,२६२. जी. ३१४५७ धवल [धवल] ओ० १६,४६,४७.६३,६४. रा० धम्मनायग [धर्मनायक ] रा०८ २५५,२५६,२८५. जी० ३।३७२,४१६,४१७, धम्मपलज्जण ] धर्मप्ररञ्जन] ओ० १६१,१६३. ४५१,५६६,५६७ रा० ७५२ धवलहर [धवलगृह ] जी० ३३५९४ धम्मपलोइ [धर्मप्रलोकिन्] रा० ७५२ धाई [धात्री] रा० ८०४ धम्मप्पलोइ [धर्मप्रलोकिन् ] ओ० १६१,१६३ ।। घाउरत्त [धातुरक्त] ओ० १०७,११७,१३० धम्मसमुदायार [धर्मसमुदाचार] ओ० १६१,१६३ धातइसंड [धातकीपण्ड ] जी. ३७११ धम्मसारहि [धर्मसारथिन् ] रा० ८,२६२. जी० धायइरुक्ख [धातकीरूक्ष] जी० ३।८०८ ३१४५७ धायइवण [धातकीवन ] जी० ३.८०८ धम्मसीलसमुयाचार [धर्मशीलसमुदाचार] रा० धायइसंड [धातकीषण्ड] जी० ३१७०८,७१५ ७५२ से ७२०,७६८,७७०,७७१,७६६ से ८००, धम्माणुय [धर्मानुग] ओ० १६१,१६३. रा० ७५२ ८०२ से ८०४,८०६,८०८,८०६,८३८।२३,२५ धम्मायरिय [धर्माचार्य ] ओ० २१,५४,११७. रा० धायई [धातकी ] जी ० ३१७७५,८०८ __ ७१४,७७६,७६६ धायईसंड [धातकीपण्ड] जी० ३८०६,८३८।२४ धम्मिट्ठ [धर्मिष्ठ] ओ० १६१,१६३. रा० ७५२ धायतिसंड [धातकीरण्ड] जी० ३७६६ Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६० धार [ धारक ] ओ० ६७ धारणा [ धारणा ] रा० ७४०, ७४१ धारि [धारिन् ] ओ० ४७,५१, ७२. जी० ३।५६७, १०१५ धारिणी [ धारिणी] ओ० १५. रा०५ धारित [ धारयितुम् ] ओ० १०५ धारेमाण [ धारयत् ] रा० २५५. जी० ३।४१६ fus [वृति ] ओ० ४६ जी० ३।११८ धिति [ धृति ] जी० ३।११८,११६ धीर [ धीर] ओ० ४६ घुरा [ धूर्] ओ० ६४ घुराग [ धूष्क ] रा० १७३,६८१. जी० ३।२८५ ध्रुव [ ध्रुव ] रा० २०० जी० ३०५६, २७२,३५०, ७६० धूमकेतु [ धूमकेतु] ओ० ५० धूमप्पभा [ धूमप्रभा ] जी ०३ ०४१, ४३,४४,१०१, ११०,११४ धूमवट्टि [ धूपर्वात ] जी० ३।४५७ धूमिया [ धूमिका ] जी० ३।६२६ धूया [ दुहितृ] जी० ३।६११ धूलि [ धूलि ] जी० ३६२३ घूव [ धूप ] ओ० २,५५. ० ६,१२,३२,१३२, २३६,२५८,२७६,२८१,२६०, २६२ से २६७, ३००,३०५,३१२,३५१,३५५,३५६. जी० ३ । ३०२,३७२,३६८, ४१६, ४४५, ४४८, ४५६ से ४६२, ४६५, ४७०, ४७७, ५१६, ५२०,५५४, ६७६,६०८ धूवघडिया [ धूपघटिका ] रा० २३६. जी०३।३६८, ४१२,६०३ धूवघडी [ धूपघटी ] रा० १३२. ३।३०२ वट्टी [ धूपवत ] रा० २६२ [धीत ] जी० ३५६६ घोय [ धौत] ओ० १६,४७. रा० २६. जी० ३२८२,५६० धारग-नगरगुण न न [न] ओ० ४७. रा० २०० जी० ३।२७२ नई [ नदी ] ओ० १६. जी० ३।७७५ नईम [ नदीमह ] रा० ६८८ नल [ नकुल ] रा० ७७ नंगलिय [लाङ्गलिक ] ओ० ६८ नंदवण [ नन्दनवन ] रा० १७३,६७०. जी० ३१२८५,५६७ नंदा [क] ० २८२. जी० ३ | ४४८ नंदा [ नन्दा] रा० २३३,२७३,२८८, ३१२,३५०, ६५६. जी ३०५५६ नंदाचं पाप विभत्ति [नन्दाचम्पाप्रविभक्ति ] रा० ६३ नंदापविभत्ति [ नन्दाप्रविभक्ति ] रा० ६३ if [दघोष ] रा० ७७,१७३,६८१. जी० ३। ५६८ नंदिमुयंग [ नन्दिमृदङ्ग [ जी ३७८ नंदिया [ नन्द्यावर्त ] ओ० १२. रा० २९१ नंदिक्ख [ नन्दरूक्ष ] जी० ३।३८८ से ३६० नंदस्सर [नन्दस्वर] जी० ३।५६८ नंदी [ नन्दी ] रा० ७४१,७४३ नंदीमुइंग [ नन्दी मृदङ्ग ] रा० ७७ नंदी [ नदीमुख ] जी० ३।२७५ नंदीसरवर [ नन्दीश्वरवर ] रा० ५६ नक्क छिण्णग [नछिन्नक ] ओ० ६० नक्ख [ नख] २५४ नक्खत्त [ नक्षत्र ] रा० १२४. जी २ १८३०७०३, ७२२,८३०,८३८ ३, ५, ८, ११,१३,२२,३०, १००७ नवखत्तविमाण [ नक्षत्र विमान ] जी० २०४३ ; ३|१००६ नखवेदना [नखवेदना ] जी० ३।६२८ नग [ नग ] जी० ३।५६६ नगर [ नगर ] ओ० १८. रा० ६६७, ७५४,७५६ ७६२,७६४,७७४. जी० ३।५६६ नगरगुण [ नगरगुण] ओ० १६५।१६ Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नगरदाह - वलिण नगरदाह [ नगरदाह ] जी० ३।६२६ नगरमाण [नगरमान ] ओ० १४६ नगरी [ नगरी ] ओ० १६. २० ६६६,६७०, ६८०, ६८१,६८३,६८५,६८७, ६८८, ६६६,७००, ७०२ से ७०४,७०६,७०८, ७१० से ७१२, ७२६,७५२,७७५,७७६,७५० नगइ [ नग्नजित् ] ओ० ६६ नागभाव [नग्नभाव ] ओ० १५४, १६५, १६६ / नच्च [ नृत् ] -नचिज्जइ. रा० ७८३ नच्चंत [ नृत्यत् ] ओ० ४६ नच्चणसील [ नृत्यनशील ] ओ० ६५ न [ नाट्य ] ओ० ६८. रा० ७,७८,८०६. जी० ३२८५, ३५० विधि [ नाट्यविधि ] २० ७६ नट्टविहि [ नाट्यविधि ] रा० ६३,६५,११८,२८१ नट्टसज्ज [ नाट्यसज्ज ] रा० ६६,७० न [ नष्ट ] रा० २८१ न [नट ] ओ० १,२ पेच्छा [प्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५ नतु [ नप्तृ] रा० ७५०,७५२ / नद [ नद् ] - नदंति जी० ३।४४७ नवी [ नदी ] जी० ३१८४१ पुंग [ नपुंसक ] जी० २६ से ११६, १२०, १२१, १२३, १२५ से १२६,१३२ से १३८, १४० से १५० नपुंसिद्ध [ नपुंसकलिङ्गसिद्ध ] जी० ११८ नपुंगवेद [ नपुंसकवेद ] जी० २।१३६, १४० ; १२४,१२८ नपुंगवेद [ नपुंसकवेदक ] जी० ६।१३० नपुंगवे [ नपुंसक वेद ] जी० १।६६, १३६ नपुंसगवेग [ नपुंसक वेदक ] जी० ६ । १२१ नपुंसय [ नपुंसक ] जी० २।११७ से ११६, १२२ से १२४ नमंस [ नमस्य् ] -नमंसइ. रा० ७१४नमसंति. रा० १० – नमसति रा० १२० - नमसह. रा० ७३ - - नमसिज्जाह. रा० ७०६ – नमसिस्संति. रा० ७०४ नमसण [ नमस्यन ] रा० ६८७ सज्ज [ नमस्यनीय ] ओ० २ नमंसित्तए [ नमस्यितुम् ] रा० ६ नसत्ता [ नमस्त्विा ] ओ० ६९. रा० १०. जी० ३।४७१ नमिय [ नमित ] रा० २२८. जी० ३।६७२ नमो [नमस्] रा०८ नय [ नय] ओ० २५. रा० ६८६ / नय [ नद्] - नयंति. रा० २८१ ar [ नयन ] ओ० १,१५,६६. रा० २२८. जी० ३।५६६ ६६१ नयरी [ नगरी ] ओ० १,१६,६६. रा० १,२,८, ६,१५,५६,६७७ से ६७६, ६८३, ६८६ से ६८६,७५०, ७५२ नर [नर] ओ० ५,८,६४,६६. रा० १७, १८, २०, ३२,३७,१४१,१७३, १६२. जी० ३।२६६, २७४,३००,५६७ नर ( कंता ) [ नरकान्ता ] रा० २७६ नरक [नरक] जी० ३३८६ नरकंठ [ नरकण्ठ ] रा० १५५, २५८. जी० ३।३२८ नरकंठग [ नरकण्ठक ] जी० ३।४१६ नरकंता [ नरकान्ता ] जी० ३,४४५ नर [ नरक ] ओ० ७१. जी० ३८६, १२७ नरपवर [ नरप्रवर] रा० ६७१ नरय [ नरक ] रा० ७५०,७५१. जी० ३।८३, ८७,११६,१२६२ नरयपाल [ नरकपाल ] रा० ७५१ नयावास [ नरकावास ] जी० ३१७७,१२७ नरवइ [ नरपति ] ओ० १ नरवसभ [ नरवृषभ ] जी० ३।१२६।१ नारद [ नरेन्द्र ] ओ० २१,५४ नलवण [ नलवन ] ओ० २६ afer [ नलिन ] ओ० १२,१५० रा० १७४, ११. जी० ३१५६५ Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ नलिणा-नारिकता नलिणा [नलिना] जी० ३६८६ नाण [ज्ञान] ओ० १६,२६. रा० ८,६८६,७३८, नव [नवन्] ओ० ६३. रा० ८०१. जी० २।२० ७६८. जी० १११४,१०१, ३।१२७,१६०; नव [नव] जी० ३।३११ नवंग [नवाङ्ग] ओ० १४८,१४६ नाणत्त [नानात्व ] रा० ७६२,७६३ नवणिहिपति [नवनिधिपति] जी० ३।५८६ नाणसंपण्ण [ज्ञानसम्पन्न] रा० ६८६ नवम [नवम] जी० ३।३५६ नाणा [नाना] रा०६६,७०,१३०,१३२,१६०, नवय [नवक] रा०७५६ १६०,२२८,२५६,२७०,७६८. जी० १११३६; नवरं [दे०] जी० ११७७ ३।२६४,२८८,३११,३८७,४०७,४१७,६४३, नवविह [नवविध] जी० १।१०; ६.२५५ ६७२ नह [नख] जी० ३।३२३ नाणाविह [नानाविध] जी० ११७२; ३।२७७, ३७२ नाइय [नादित] रा० ५५,२८०,६५७. जी० ३।११८,११६,४४८,८५७,८६३ नाणि [ज्ञानिन् ] जी० २।३०; ३।१०४ नाउं [ज्ञातुम् ] जी० ३।८३८।२६ नाणोवलंभ [ज्ञानोपलम्भ] रा० ७६८ नाग नाग] ओ० १६,६८. रा० १६२,२८२. नातव्य [ज्ञातव्य ] रा० ३।६८८ जी० ३।२३२,४४८,७३३,७८०,६५० नादित [नादित] जी० ३।४४६ नागकुमार [नागकुमार] जी० २।३७; ३१२४४, नाणा [नाना] जी० ३।३३३ २४८ नाभि [नाभि] रा० २५४ नागकुमारराय [नागकुमारराज] जी० ३।२४४ ।। नाम [नामन् ] ओ० १,२. रा० १,२,६,५६,१२४, से २४७,२४६,२५०,६५७,६५६,६६० २४६,२८१,६६८,६७२,६७३,६७६ से ६७६, नागकुमारिद [नागकुमारेन्द्र ] जी० ३।२४४ से ६८६,६८७,६८६,७०३,७०६,७१३,७३२, २४७,२४६,२५०,६५७,६५६,६६० ७६६. जी० ३।३,४,१२८,३००,४१०,४४७, नागवंत [नागदन्त] रा० १३२,२४० ५६३,५६४,६३२,६३८,६३६,६६०,६६६, नागदंतग [नागदन्तक] रा० १४०. ६६८,७११,७५६,७६४,८१४,८३१,८३८।३, जी० ३।३६८ ८५१,६३३,१०५६ नागदंतय [नागदन्तक] रा० १५३,२३६. नामग [नामक] जी० ३।२४ जी० ३।३६७,३९८,४०३ नामाधिज्ज [नामधेय] रा० ८०३ नागपडिमा [नागप्रतिमा] रा० २५७. नामधेज्ज [नामधेय ] जी० ३१६६६,६७२ जी० ३१४१८ नामधेय [नामधेय] रा० ८,७१४,७६६ नागमंडलपविभत्ति [नागमण्डलप्रविभक्ति] नायव्व [ज्ञातव्य ] जी० ३।१२६।३ रा०६० नायाधम्मकहाधर [ज्ञाताधर्मकथाधर] ओ० ४५ नागमह [नागमह] रा०६८८ नारय [नारद] ओ०६६ नागरपविभत्ति [नागर प्रविभक्ति] रा० ६२ नाराय [नाराच] जी० ११११६ नागराय [नागराज] जी० ३।७४८,७५० ।। नारायग्ग [नाराचान] जी० ३१८५ नागलया [नागलता] रा० १४५. जी० ३।२६८ नारि [नारी] ओ० ६६ नागलयापविभत्ति [नागलताप्रविभक्ति] रा० १०१ मारिफंता नारीकान्ता] रा० २७६. नाड्य [नाटक] रा० ७१०,७७४ जी० ३.४४५ Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नारी-निभ नारी [नारी] रा० १७३ निग्गह [निग्रह ] ओ० ३७. रा० ६८६ नाल [नाल] जी० ३१६४३ निग्गुण [निर्गुण] रा० ६७१ नालिएर | नालिकेर] जी० ११७२ निग्घोस [निर्घोष] जी० ३।४४८,५५७ नाली नाडी] जी० ३७८ निघंटु [निघण्टु] ओ० ६७ नावा [नौ] जी० ३७६३ निघस [निकष] रा० २८. जी० ३।२८१ नासा [नासा] रा०२८५. जी० ३।४५१ निचय [निचय रा० ३१ नासिगा [नासिका] रा० २५४ निचिय [निचित ओ० १६. रा० १२,७५५,७५८, निउण [निपुण] ओ० ६३. रा० ६६,७०,६७२, ७५६,७७२. जी० ३।११८,५६६ ७५६ से ७६१,८०४. जी० ३।११८ निच्च [नित्य] ओ० ४६. रा० १५. जी० ३।३६०, निदणा [निन्दना] ओ० १५४,१६५,१६६. ५८४,८३८।१७ रा०८१६ निच्छय [निश्चय] ओ० २५, रा०६७५,६८६ निंब [निम्ब] जी० १७१ निच्छोडणा [ निश्छोटना] रा० ७७६ निकर [निकर] ओ० १३ निच्छोडित्तए [निश्छोटयितुम् ] रा० ७७६ निकुरंब [निकुरम्ब ] रा० ७०३. जी० ३।२७३ । निजुद्ध | नियुद्ध] ओ० १४६. जी० ८०६ निकुरुब [निकुरुम्ब ] ओ० १६ निज्जरा | निर्जरा] ओ० १२०,१६२,१६६. निक्कंकड [निष्कङ्कट] ओ० १२,१६४. रा० २१, रा० ६६८,७५२,७८६ निज्जिय [निजित] ओ० १४. रा० ६७१ २३,३२,३४,३६,१२४,१४५,१५७. निज्जीव निर्जीव ओ० १४६. रा०८०६ जी० ३१२६६ निक्कोह | निष्क्रोध ] ओ० १६८ निज्जुत्त [निर्युक्त ] जी० ३।२८५ निक्खमंत [निष्क्रामत्] जी० ३।८३८।१४ निट्टिय [निष्ठित ] ओ० १८३,१८४. रा ० ७७४ निक्खमण [निष्क्रमण] जी० ३१५६४,६१७ निठुर निष्ठुर] रा० ७६५. जी० ३।११० निडाल लिलाट] जी० ३.३०३,५६६ निगम [निगम] ओ० १८,६८,८९ से १३,६५, निदा नि+द्रा] --निहाएज्ज. जी० ३।११६ १६,१५५,१५८ से १६१,१६३,१६८. निद्ध स्निग्ध ] जी० ११५,५०, ३।२७५,५९६ रा० ६६७,७५४,७५६,७६२,७६४ निद्धत [निर्मात ] जी० ३३५६०,५६६ इनिगिण्ह [नि--ग्रह --निगिण्हइ. रा०६८३ निधूम | निर्धूम] जी० ३१५६० निग्गंथ निर्ग्रन्थ ] ओ० २४,७६ से ८१,१२०, निध्य [ नि त ] ओ० ५,८. जी० ३।२७४ १६२,१६४. रा०६३,६५,७३,७४,११८, निप्पंक [निष्पङ्क] ओ० १२. रा० २१,२३,३२, ६६५,६६८,७३८,७५२,७८९ ३४,३६,१२४,१४५,१५७. जी० ३।२६६ निगच्छ [निर्+ गम्]-निग्गच्छइ. ओ० ६७. निष्पकंप निष्प्रकम्प] ओ० ४६ रा० २७७-निग्गच्छति. ओ० ७०. रा० ७४ निप्पच्चक्खाण | निष्प्रत्याख्यान | रा०६७१ -निग्गच्छति. रा० २८३ निप्फन्न | निष्पन्न ] जी० ३१६०२ निग्गच्छमाण निगच्छत् ओ०६८ निबद्ध [निबद्ध] रा० ७७२ निग्गच्छित्ता [निर्गत्य] ओ०६६. रा०२८३ निभंछणा [निर्भर्त्सना] रा० ७७६ निग्गमण [निर्गमन] जी० ३८४१ निन्भंछित्तए | निर्भसितुम् ] रा० ७७६ निग्गय [निर्गत] रा० ६,७५४ निभ [निभ] रा०५१ Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६४ निमज्जग-निव्विसय निमज्जग | निमग्नक] ओ०६४ -निरंभ [नि+रुध्] -निरंभइ ओ० १८२ निमित्त [निमित्त] जी० ३।१२६।६ निरूभित्ता [निरुध्य ] ओ० १८२ निमिसिय [निमिषित] जी० ३।११६ निरुत्त [निरुक्त ओ० ६७ निमीलिय [निमीलित] जी० ३।१२६८ निरुवलेव [निरुपलेप] ओ० २७. रा. ८१३. निम्मल [निर्मल ] ओ० १२,१६,४७. रा० २१, जी० ३१५६८ २३,३२,३४,३६,१२४,१३०,१४५,१४६,१५७. निरवसग्ग | निरुपसर्ग] जी० ३१४८८ जी० ३।३२२,५९६,५६७ निरुवहय निरुपहत] ओ० १६. जी० ३१५६६ निम्माण [निर्माण] ओ० १६८ निरयन [निरेजन ] ओ० १८३,१८४ निम्माय [निर्माय] ओ० १६८ निरोदर [निरोदर] जी० ३।५६७ निम्मिय | निर्मित ] रा० १७३. जी० ३।२८५ निरोय [निरोग] जी० ३।२७५ निम्मेर [ निर्मर] रा० ६७१ ।। निरोयय [निरोगक] ओ०६ नियइपटवय [नियतिपर्वत] रा० १८१ निरोह [निरोध] ओ० ३७ नियइपब्वयग | नियतिपर्वतक] रा० १८० निलाड [ललाट ] रा० ७० नियंस [नि+वस् ] —नियंसेइ. रा०२६१ निल्लेव [निर्लेप ] जी० ३१६६,१६७ नियंसेति. रा० २८५ निल्लेवण [ निर्लेपन] जी० ३।१६६ नियंसण [निवसन] रा० ६६ नियंसेत्ता | निवस्य ] रा० २८५ निल्लोह [निर्लोभ] ओ० १६८ नियग [निजक] रा० १२०.७७४ निवाड [नि+पातम्] -निवाडेइ रा० २६२ नियडि [निकृति] रा० ६७१ निवाडित्ता [निपात्य] रा० २६२ निवाय [निपात | जी० ३८६ नियम [नियम] ओ० २५. रा०६८६,७२३. निवेद [नि- वेदय निवेदिज्जासि. ओ० २१ जी० १३०,६५,८७,६६,११६,१३३,१३६; निवेय [नि-- वेदय] -निवेएमो. रा० ७१३ ३।१०४; १२६१३; ८३८॥१४,६६६,११०८ निवेस [ निवेशय ]--निवेसेइ. ओ० २१. नियय [नियत] जी० ३।२७२,७६० रा०८ निरंगण [निरङ्गण] ओ० २७. रा०८१३ निवेसेत्ता [निवेश्य-ओ० २१. रा. ८ निरंतर | निरन्तर रा० १२,७५५,७७२ निव्वण [निर्बण] जी ० ३।५६६ निरंतरिय [निरन्तरित] रा० १३० निव्वत्त [निर्-वर्तय]-निव्वत्तेज्जासि निरय [निरय ] जी० ३।१२६,१२७२ रा० ७५१ निरयभव [निरयभव] जी० ३।११६, १२६५ निव्वय [निर्वत] रा० ६७१ निरयवेयणिज्ज [निरयवेदनीय रा० ७५१ निव्वाघाइम [नियाघातिन्, निर्व्याघातिम] निरयाउय [निरयायुष्क] रा० ७५१ ओ० ३२. जी० ३।१०२२ निरयावास [निरयावास] जी० ३।१२, ७७, १२७ निव्वाण [निर्वाण] ओ० १६५।१६ निरवसेस [निरवशेष ] जी० ३।१८४, ४१२,४२६, निविइय निविकृतिक ] ओ० ३५ निविण्ण | निविण्ण] रा० ७६५ निरालंबण [ निरालम्बन] आं० २७. रा० ८१३ ।। निविण्णाण [निर्विज्ञान] रा० ७३२,७३७,७६५ निरालय [निरालय] ओ० २७. रा ० ८१३ । निवितिगिच्छ [निविचिकित्स] ओ० १२०,१६२ निरावरण [नि सवरण] ओ० १५३,१६५,१६६ निविसय [निविषय ] रा० ७६७ ७५० Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६५ निव्वुइकर-नोपज्जत्त निव्वुइकर [निर्वृतिकर] रा० १७३. जी० ३।३०५, ६७२ निव्वुतिकर [निर्वृतिकर] रा ३०,१३५ निसण्ण [निषण्ण] ओ० ११७. रा० ७६६. जी० ३१८६६ निसन्न [निषण्ण] रा० २२५ निसम्म [निशम्य रा० १३ निसामित्तए [निशमितुम् ] रा० ७७५ निसिय [निशित) रा० २४६ इनिसिर निसज्]--.निसि रंति. रा० १०--- निसि रति. रा०६५.--निसिरेइ. रा. ७६४ निसिरित्तए [निसष्टुम् ] रा० ७५८ निसीइत्ता [निषद्य] ओ० २१ निसोदण [निषीदन] ओ०४० इनिसीय [ निषद् ]-निसीयइ. ओ०२१-- निसीयंति. रा०४८ -निसीयह. रा० ७५३ निसीहिया [निषीधिका, नैषेधिकी रा० १३१, १३५ निस्ससंकिय (निःशङ्कित] ओ० ५२. रा० ६८७, नीलवंत नीलवत्] जी० ३१४४५,६३२,६५७,६५६ ६६८,७६५ नोलवंतद्दह [नीलवद्रह ] जी० ३।६३६,६४०,६४२ ६५६ से ६६१,६६६ नीलवंता [नीलवती] जी० ३।६५६ नीलुप्पल [नीलोत्पल ] ओ० १३. रा० २६ नीलोभास [नीलावभास ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी० ३।२७३ नीव [नीप] जी० ३३३८८ नीसास | निःश्वास] रा० २८५,७७२. जी० ३१५६८ नोहार [नीहार] रा० ७७२ नूणं [नूनम् ] जी० ३।६८२ नेम [नेम] रा० १७५,१६०. जी० ३।२६४,२८७, ३०० नेयव्व [नेतव्य] जी० २।१५०; ३॥३०६ नेरइय [नरयिक] रा० ७५१. जी० ११५१,५४, ६१,८२,८७,६२,६६,१०१,११६,१२१,१२३, १२८,१३६; २९६,१००,१०८,१२७,१३४, १३५,१३६,१४८,१४६; ३.१,२,७७,८८,६३, ६५,६६,६८,१०३,१०६ से ११२,११८,११६, १२१ से १२३,१२८,१२६४,६,७,८,१५५,१५६ १६२, ६।१,७,१२; ७११ से ३, १६,२२; ६।२१०,२१३,२२० नेरइयत्त [नैरयिकत्व] जी० ३।१२७ नेल [नैल] ओ० १६ नेसज्जिय [नैषधिक] ओ० ३६ नेहाणुराग [स्नेहानुराग] जी० ३।६१३ नो [नो | रा० ६२. जी० १।२४ नोअपज्जत्तग [नोअपर्याप्तक] जी० ६।८८,६४ नोअपरित्त [नोअपरीन] जी० ६७५,८६,८७ नोअभवसिद्धिय [नोअभवसिद्धिक ] जी० ६।१०६ नोअसण्णि नोअसंज्ञिन् जी० १११३३; ४।१०१, १०४,१०८ नोइंदिय [नोइन्द्रिय ] जी० १११३३ नोपज्जत्त [नोपर्याप्त] जी ६१ निस्सास [नि:श्वास] रा० ७६६,८१६ निस्सील [निःशील] रा० ६७१ निस्सेयस [निःश्रेयस] ओ० ५२. रा० २७६,६८७ निहट्ट [निहृत्य] रा०८ निहय [निहत] ओ० १४. रा० ६७१ नीरय [नीरजस्] ओ० १२,१८३,१८४ नील नील ओ० ४,१२. रा० २२,१२८,१७०, ६६४,७०३. जी०१५,५०, ३३२२,४५, २७३,२६०,१०७५,१०७६ नीलच्छाय | नीलच्छाय] ओ० ४. रा० १७०, १७३. जी० ३१२७३ नीललेस नीललेश्य जी० ६।१६३ नीललेसा नीलले श्या जी० ३१६६,१०० नीललेस्स नीललेश्य जी०६१८५,१६६ नीललेस्सा [नीललेश्या] जी० ११२१ Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नोपज्जत्तग-पएसघण (प) नोपज्जत्तग [नोपर्याप्तक] जी०६।८८,६४ पउमजाल [पद्मजाल] रा० १६१. जी० ३।२६५ नोपरित [नोपरीत] जी० ९७५ पउमद्दह [पद्मद्रह ] जी० ३।४४५ नोबायर [नोबादर] जी० ६।९५,९८ से १०० पउमपत्त [ पद्मपत्र] रा० २४. जी० ३।२७७ नोभवसिद्धिय [नोभवसिद्धिक] जी० ६।१०६ पउमपम्हगोर [पद्मपक्ष्मगौर] ओ० ५१. जी. नोसण्णा [नोसंज्ञा] जी० १२१३२ ३१०६४ नोसण्णि [नोसंज्ञिन् ] जी० १८६,१३३; 8१०१, पउमप्पभा [पद्मप्रभा] जी० ३१६८३ १०४,१०८ पउमरुक्ख [पद्मरूक्ष] जी० ३।८२६ नोसुहुम [नोसूक्ष्म] जी०६।६५.६८ से १०० पउमलया [पद्मलता] ओ०११,१३. रा० १७,१८, २०,३२,३४,३७,१२६,१४५,१८६. जी० ३।२६८,२७७,२८८,३००,३०८,३११,३१८, पइट्ठा [प्रतिष्ठा | ओ० १६.२१,५४ ३३७,३५६,३७२,३६०,३६६,५८४,६०४ पइड्राण प्रतिष्ठान] ओ० १६८. रा० १३०, पउमलयापविभत्ति [पद्मलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ १३१,१४७,१४८,१६०,२८०. जी० ३ २६४, पउमवण [पद्मवन ] जी० ३१८२६ ३०१,३२१ पउमवरवेइया [पद्मवरवेदिका] रा० १७४,१८६ पइट्ठिय [प्रतिष्ठित ] ओ० १६५।१,२. से १६८,२००,२०१,२३३,२६३. जी. जी० ३।१०५७ से १०६४ ३।२१७,२५६,२६४ से २७०,२७२,२७३, पइण्णा [प्रतिज्ञा] ओ० १४२,१४४. रा० ७४८ से ३६२,३६५,६३२,६३६,६६१,६६८,६७८, ७५०,७५२,७५४,७५६,७५८,७६०,७६२, ६८३,६८६,७०६,७३६,७५४,७६२७६६, ७६४,७७३,८००,८०२ ८५७ पइभय [प्रतिभय] ओ० ४६ पउमवरवेदिया [पद्मवरवेदिका] जी० ३।२१७, पइरक्खिया [पतिरक्षिता] ओ०६२ २६३,२६६,२८६,२६८,७६८,८१२,८२३, पइरिक्क [दे०] जी० ३३५६४ ८३६.८५०,८८२,६११ पइसेज्जा [पति शय्या] ओ० ६२ पउमसंड [पद्मवण्ड] जी० ३१८२६ पईव [प्रदीप] रा० ७७२ पउमा [पद्मा] जी ० ३।६८३,९२० पउंज प्र+युज्]-पउंजइ. रा०६७१. पउमासण पद्मासन] रा० १८१,१८३. जी० -पउंजंति ओ०६८. रा० २८२. जी० ३।४४८ ३२६३,३६६,३७१ पउंजमाण [प्रयुञ्जान ] ओ० ६४ पउमुत्तर पद्मोत्तर] जी० ३१६०१ पउंजियव्व [प्रयोक्तव्य ] रा० ७७६ पउमुप्पल [पद्मोत्पल] रा० ८११ पउट्ट [प्रकोष्ठ ] ओ० १६. जी० ३१५६६ पउर [प्रचुर] ओ० १,१४,४६,७४,१४१. रा० पउत [प्रयुत] जी० ३।८४१ ६७१,७६६ पउम [पद्म] ओ० १२,१६,१५०. रा०२३,१३१, पउसिया [बकुसिका ] ओ० ७० १३८,१४७,१४८, १९७,२७६,२८०,२८८, पएस [प्रदेश] ओ० १६५।१०. रा० ४०, १३२, ८११. जी० ३।२५६,२६९,२६१,३०१,४४६, १५४. जी० ११५,३३,३॥३०२,३६८,५७१, ४५४,५६७,५९८,६४२,६४३,६५२ से ६५४, ७१५,८०८,८१६ ६५७,६५८,८२६,८४१,६३७ पएसघण प्रदेशधन] ओ० १६५॥३ पउमगंध पद्मगन्ध] जी० ३।६३१ १. बउतियाहिं [राय० सू० ८०४] Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पएसि-पंति २६६ पएसि [प्रदेशिन्] रा० ६७१ से ६७५,६७६ से पंचणउइ [पञ्चनवति ] जी० ३१७१४ ६८१,७००,७०२ से ७०४,७०८ से ७१०, पंचणउति [पञ्चनवति] जी० ३।७६८ ७१८ से ७२०,७२३ से ७२६,७२८ से ७३४, पंचनउति [पञ्चनवति] जी० ३१७६६ ७३६ से ७३६, ७४६ से ७८२,७८६ से ७६१, पंचाणउत [पञ्चनवति ] जी० ३१३६१ ७६३ से ७६६ पंचाणउति [पञ्चनवति ] जी० ३१७२३ पओग [प्रयोग] ओ० १४,१४१. रा० ६७१,७६१, पंचाणुव्वइय [पञ्चानुव्रतिक] ओ० ५२,७८ ७६६ पंचिदिय [पञ्चेन्द्रिय ] ओ० १५,७३,१४३,१८२. पओयधर [प्रतोदधर] ओ०५६ रा०६७२,६७३,८०१. जी. ११५५२।१०१, पओयलट्टि [प्रतोदयष्टि ] ओ० ५६ ११३,१२२,१३८,१४६, ३।१३०,४११,४,६, पओहर [पयोधर] रा० १३३. जी० ३।३०३३ ६,१०,१५,१६,२४,२५,८५६।१ से ३,७ पंक [पङ्क] ओ० ८६,६२,१५०. रा० ८११. पंचेंदिय [पञ्चेन्द्रिय जी० श८३,६१,६७,६८, जी० ३१६२३ १०१ से १०३,११६,११७,१२५,१३६; पंकप्पभा [पङ्कप्रभा] जी० ३।३६,४१,४३,४४, २।१०४,१०५,१३६,१३८,१४६,१४६; १००,११३ ३।१३७ से १४७,१६१ से १६३,१६६,१११५; पंकबहुल [पङ्कबहुल] जी० ३१६,६,१६,२५,३०, ४४६,१८,२०,२१; ६।५,७,१६७,१६६,२२१, २२५,२२६,२३१,२५६,२५९,२६०,२६४, पंकरय [पङ्करजस्] ओ० १५०. रा० ८११ पंकोसण्णग [पङ्कावसन्नक] ओ०६० पंजर [पञ्जर] रा० १३७. जी० ३०७ पंच [पञ्चन् ] ओ० ५०. रा० २४. जी० १।३४ पंजलिउड [प्राञ्जलिपुट] ओ० ४७,५२. रा०६०, पंचग्गिताव [पञ्चाग्निताप] ओ० ६४ ६८७,६६२,७१६ पंजलिकड [कृतप्राञ्जलि ] ओ०७० पंचम [पञ्चम] ओ० ६७,१७४,१७६. जी० पंडग [पण्डक] ओ० ३७ ३।३३८ पंडगवण [पण्डकवन ] रा०१७३,२७६. पंचमा [पञ्चमी] जी० १६१२३; २।१४८,१४६; जी० ३२८५,४४५ ३२,३६ पंडरग [पण्डरक] जी० ३८६३ पंचमासिय [पाञ्चमासिक] ओ० ३२ पंडिय [पण्डित] ओ० १४८,१४६. रा० ८०६,८१० पंचमी [पञ्चमी] जी० ३।४,७४,८८,६१,१६२, पंड पाण्डु] ओ० ५,८. रा० ७८२. जी० ३३२७४ १११११२ पंडुर [पाण्डुर] ओ० १,१९,२२,४७. रा० ७२३, पंचविध [पञ्चविध] जी० २।१०१,१०२; ७७७,७७८,७८८. जी० ३३५६६ ३।१३० ,४१२५, ६।१४८ पंडुरतल [हम्मिय] [पाण्डुरतलह→] जी० ३५९४ पंचविह [पञ्चविध] ओ० १५,३७,४०,४२,६९, पंडुरोग [पाण्डुरोग] जी० ३।६२८ ७०. रा० २७४,२७५,६७२,६८५,७१०, पंता T० ७७४ ७३६,७५१,७७४,७७८,७६७. जी० ११५, पंताहार [प्रान्त्याहार ओ० ३५ ६६,११८,२४,१८, ३११३१,४६०,४४१, पंति [पङ्क्ति ] ओ०६६. रा० ७५,२६७,३०२, ८३८।२१,६७६,४।१६१५६,१५८ ३२५,३३०,३३५,३४०. जी० ३१२६७,३१८, पंचसयर [पञ्चसप्तति] जी० ३१८३८१३१ ३५५,४६२,४६७,४६०,४६५,५००,५०५,५६४, Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ पंथ-पम्गहिय ८३८१७ से है पक्खालण [प्रक्षालन] ओ० १११ से ११३,१३७, पंथ [पन्थ,पथिन् ] रा० ७३७ १३८ पंथिय [पाथिक] रा० ७८७,७८८ पक्खालिय [प्रक्षालित] ओ०६८ पंसुविट्टि [पांशुवृष्टि] जी० ३।६२६ पक्खालेत्ता [प्रक्षाल्य] रा० २८८. जी. ३१४५४ पकड्डिज्जमाण [प्रकृष्यमाण] ओ० १९ पक्खासण [पक्ष्यासन, पक्षासन ] रा० १८१,१८३. पिकर [प्रकृ]-पकरेंति. ओ० ७३. जी० ३।२६३ जी० ३।१२४.-पकरेति. जी० ३।२१० पक्खि [पक्षिन् ] रा ६७१,७०३,७१८. पकरेत्ता [प्रकृत्य ] ओ० ७३ जी० १११०१, ३.८८,१६५,७२१ पकरणता [प्रकरण] जी० ३१२१० V पक्खिव [प्र+क्षिप्]-पविखवइ. जी० ३.५१६. पकरणया [प्रकरण] जी० ३।२११ --पक्खिवेज्जा. जी० ३३१०६ पकाम [प्रकाम] रा० ७३२,७३७ पक्खिव [प्र-+क्षेपय]--पक्खिवावेमि. रा० ७५४ पकामरसभोइ [प्रकामरसभोजिन् ] ओ० ३३ पक्खिवित्ता [प्रक्षिप्य] जी० ३३५१६ पकार [प्रकार] जी० २।६८; ३।५६५ पक्खुभित [प्रक्षुभित] जी० ३।८४२,८४५ पकारवग्ग [पकारवर्ग] रा० ६६ पक्खुभिय [प्रक्षुभित] ओ० ४६,५२. रा० ६८७ पक्कणी [पक्कणी] ओ० ७०. रा० ८०४ पगइ [प्रकृति] ओ०७३,६१,११६. रा० १७४, पक्किट्टग [पक्वेष्टक] जी० ३१८४५ २३३. जी० ३१६२५ पक्कोलित [प्रक्रीडित] जी० ३।६१७ पगंठग [प्रकण्ठक] रा० १३७, १४६. जी० ३।३०७, पक्कोलिय [प्रक्रीडित] रा० १७३. जी० ३।२८५ ३५५ पक्ख | पक्ष आं० २८. रा० १३०.१९०.१६७. पगात [प्रकृति | जा० ३१२८६५१८,६२०,७६५. जी० ३।२६४,२६९,३००,८४१ ८१६,८४१,८५४,६५६,६५७,६६४ पक्खंदोलग [पक्ष्यन्दोलक,' पक्षान्दोलकर] रा० १८०. पगतित्थ [प्रकृतिस्थ] जी० ३।११२१ से ११२३ __ जी० ३।२६२,८५७ पगब्भ [प्रगल्भ] जी० ३.५६१ पक्खंदोलय [पक्ष्यन्दोलक, पक्षान्दोलक] रा० १८१. पगाढ [प्रगाढ] रा० ७६५. जी० ३।११० जी० ३।२६३,८५७ पिगाय [प्र-+-गै]-पगाइंसु. रा० ७५ पश्खपुडंतर [पक्षपुटान्तर] रा० १६७ पगार [प्रकार] रा० ८०६,८१०. जी० २०७४, पक्खपेरंत [पक्षपर्यन्त] रा० १६७. जी० ३।२६६ १४०,१५१ पक्खबाहा [पक्षबाहु] रा० १३०,१६०,१६७. पगास प्रकाश] ओ०१३,१६,२२,४७. रा० १३०, जी० ३।२६४,२६६,३०० २५५,६७०,७७७,७७८,७८८. जी० ३३००, पिक्खाल [प्रक्षालय]-पक्खाले इ. रा० ३५१. ४१६,५८६,५६६,५६७ -पक्खाले ति रा० २८८. जी० ३।४५४ पगिज्झ [प्रगृह्य] रा० ६६४ पगिझिय [प्रगृह्य] ओ० ११६ १. यत्र त पक्षिण आगत्यात्मानमन्दोलयन्ति ते पगीय [प्रगीत] रा० ७६,१७३. जी० ३।२८५ पक्ष्यन्दोलकाः [राय० वृ०] । पिगेण्ह [प्र+ग्रह,]-पगेण्हति रा० २८८ २. 'गिरिपक्खंदोलया' गिरिपक्षे--पर्वतपाव छिन्न- पगेण्डित्ता [प्रगहय] रा० २८८ टगिरी वात्मानमन्दोलयन्ति येते तथा पग्गहित्तु [प्रगृहय] जी० ३।४५७ [ओ० वृ॰] । . पग्गहिय [प्रगृह्य] ओ० ६७. रा० २६२ Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचंकमणग-पच्चोत्तर पचंकमणग [प्रचंक्रमणक] रा० ८०३ --पच्चप्पिणह. रा० ६. जी० ३।५५४ पिच्चक्ख, क्खा [प्रति--आ+ख्या]--पच्चक्खंति ____पच्चप्पिणाहि. ओ० ५५. रा० १७ ओ० १५७--पच्चक्खामि. रा०७६६ -पच्चप्पिणज्जा. ओ० १८० -पच्चक्खामो. ओ० ११७ --- पच्चक्खाइस्सइ. -~-पच्चप्पिणेज्जाह. रा० ७०६ रा० ८१६ पच्चमाण [पच्यमान] जी०३।१२६८ पच्चक्खाण [प्रत्याख्यान ] ओ० १२०,१४०,१५७. पच्चामित्त [प्रत्यमित्र] ओ० १४. रा०६७१. रा० ६६८,७५२,७८७,७८६ ___ जी० ३।६१२ पच्चक्खाय [प्रत्याख्यात] ओ० ८४,८५,८७,८८, पिच्चाया [प्रति+आ+जन्]--पच्चाइस्सइ. ११७,१२१,१३६. रा० ७६६ रा० ७६७-पच्चायंति. ओ० ७१. पच्चक्खित्ता [प्रत्याख्याय ] ओ० १५७ जी० ३५७२--पच्चायाहिति. ओ० १४१. पच्चणुब्भवमाण [प्रत्यनुभवत् ] रा० १८५,१८७, पच्चावड [प्रत्यावर्त ] रा० २४. जी. ३१२७७ ७५१. जी. ३।१०६,११८,११६,१२२,१२३, पच्चुण्णम [प्रति + उत्। नम्] -पच्चुण्णमइ २१७,२६७,२६८,५७६ ओ० २१. रा० २६२-पच्चुष्णमति. पच्चणुभवमाण [प्रत्यनुभवत् ] ओ० १५. जी० ३।४५७ रा०६७२,६८५,७१०,७७४. जी० ३।११६, पच्चुण्णमित्ता [प्रत्युन्नम्य ] ओ० २१. रा० २६२. ११८,११६,१२८,३५८,१११४,१११७,१११८, जी० ३।४५७ ११२४ पच्चुत्तर [प्रति-उत्+त]-पच्चुत्तरति. पच्चत्थिम [पाश्चात्य ] रा०४३,४४,१७०,२३५, जी० ३।४४३-पच्चुत्तरेइ. रा० ६५६. जी० ३।४५४ २३६,२४४,२४६,६६३,६६४. जी० ३।३००, ३४४,३४५,३६७,३६८,४०६,४१०,५६१, पच्चुत्तरित्ता [प्रत्युत्तीर्य ] जी० ३।४४३ ५६२,५६८,५७७,६३२,६६१,६६६,६६८, पच्चुत्तरेत्ता [प्रत्युत्तीर्य] रा० ६५६. जी० ३४५४ ६७३,६८२,६६३,६६४,६६७,६६८,७०८, पच्चुत्थत [प्रत्यवस्तृत] जी ० ३।३११ ७१२,७४२,७४४,७५४,७६१,७६५,७६८, पिच्चद्धर [प्रति-|-उद्-+-धृ] ---पच्चुरिस्सामि जी० ३।११८ ७६६,७७१ से ७७३,७७६,७७८,८००,८१४, पच्चुद्धरित्तए प्रत्युद्धर्तुम् ] जी० ३।११८ ८२५,८५१,८८२,८८५,६०१,९३६,६४०, पच्चुन्नम [प्रति उत्-- नम्]--पच्चुन्नमइ. ६४४,१०१५ रा०८ पच्चथिमिल्ल [पाश्चात्य ] रा० २६६,२९७,३०१, पच्चन्नमित्ता [प्रत्युन्नम्य] रा०८ ३०६,३१७,३२२,३२७,३३५,३४०,३४५. पच्चूसकाल [प्रत्यूषकाल ] जी० ३।२८५ जी० ३।३३,२२०,२२१,२२४,२२५,४६१, पिच्वेक्ख [प्रति । उप-+ ईक्ष् ] -पच्चुवेक्खे इ. ४६६,४७१,४८२,४८७,४६२,५००,५०५, __ ओ० ५६ ५१०,५७७,६७३,६६५ से ६६७,७६९,७७१, पच्चुवेक्खमाण [प्रत्युपेक्षमाण] रा० ६७४,६८०, ७७३,७७५,७७७,६१५ ६६८ पच्चत्थुय [प्रत्यवस्तृत] रा० ३७ पच्चुवैक्खेत्ता [प्रत्युपेक्ष्य] ओ० ५६ पिच्चप्पिण [प्रति+अर्पय]-पच्चप्पिणइ. पच्चोणिवयंत [प्रत्यवनिपतत् ] ओ० ४६ ओ० ५७-पच्चप्पिणंति. रा० १२. पिच्चोत्तर [प्रति ---उत्+तु]-पच्चोत्तरइ. जी० ३१५५५-पच्चप्पिणति. रा० ४६ रा०२७७--पच्चोत्तरति. रा०२८८ Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० पच्चीसरिता [ प्रत्युती ] रा० २७७ reates [ दे० ] रा० १५४, १७४. जी० ३।२८६, ३२७ / पचोरभ [ प्रति + अव + रुह ] - पच्चोरुमति. जी० ३१५५६ पच्चोरुभित्ता [प्रत्यवरुह्य ] जी० ३।५५६ पचरुह [ प्रति + अव + रुह ] - पच्चोरुहइ. ओ० २१. रा० २७७. जी० ३०४४३ - पच्चोरुहंति ओ० ५२. रा० ५७ - पच्चोरुहति रा० ८. जी० ३।४४३ पचरहिता [ प्रत्यवरुह्य ] ओ० २१. रा० ८. जी० ३।४४३ पच्छय [प्रच्छद] ओ० ५७ पच्छा [ पश्चात् ] ओ० १६५, १६६,१७७. रा० ५६,६३,६५,२७५, २७६.७८१ से ७८७, ८०२. जी० ३१४४१, ४४२, ६८६, १०४८, १११५ पच्छाताविय [ पश्चादनुतापिक ] रा० ७७४, ७७५ पच्छियापिड [पच्छिकापिटक ] रा० ७६९, ७७२ पजेमणग [ प्रजेमनक ] रा० ८०३ पजोग [ प्रयोग [ रा० ७९४ पज्ज [ पद्य ] रा० १७३. जी० ३।२८५ पज्जत [ पर्याप्त ] जी० ११५१,५५,६३,६५; ३।१३३,१३४; ४।६, २२, २३, २५; ५।१७,२६, २८ से ३०, ३२ से ३६, ३६, ४०, ४३, ४६, ४६, ५२, ५४ से ६० पज्जत्तग [पर्याप्तक] ओ० १८२. जी० ११४,५८, ६७,७३,७८, ८१, ८४, ८८, ८६, ६२, १००, १०३, १११, ११२,११६, ११८, १२१, १२, १३५; ३।१३६, १३६,१४०, १४६, ४२, ६, १८, २१ से २३,२५५३,४,७,१८ से २२, २४, २५, २७, ३१,३३,३४,३६,५०, ६८, ८६.६२, ६४ पज्जत्तय [पर्याप्तक ] ओ० १५६. जी० १११०१; ४|११ ५१२ से १६,२६,५२,६० पञ्जति [ पर्याप्ति ] रा० २७४, २७५,७६७. पच्चोत्तरिता-पट्टिया जी० १११४,२६,८६,९६, १०१,११६, १३३, १३६; ३।४४०, ४४१ पज्जत्तिभाव [ पर्याप्तिभाव ] रा० २७४,२७५, ७६७. जी० ३।४४०, ४४१ जलिय [ प्रज्वलित ] रा० ४५ पज्जव [ पर्यव] रा० १६६. जी० ३।५८,८७, २७१, ७२४, ७२७, १०८१ जवसाण [ पर्यवसान ] ओ० १४६. रा० ८०६, ८०७. जी० ११४६; ३।२५०, २५६,६४८, ४ पज्जालिय [ प्रज्वालित ] जी० ३।५८६ / पज्जुवास [ परि + उप + आस् ] – पज्जुवासइ. ओ० ६६. रा० ६ - पज्जुवासंति. ओ० ४७. रा० ६८७. - पज्जुवासति. रा० ६० - पज्जुवासामि रा० ५८ - पज्जुवासामो रा० १० – पज्जुवा सिस्संति. रा० ७०४ — पज्जुवासेइ. रा० ७१६ – पज्जुवा सेज्जा रा० ७७६ पज्जुवासनया [ पर्युपासना ] ओ० ४०, ५२. रा० ६८७ पज्जुवाणा [ पर्युपासना ] ओ० ६६ पज्जुवाणिज्ज [ पर्युपासनीय] ओ० २. रा० २४०, २७६. जी० ३।४०२, ४४२, १०२५ पज्जुवासमाण [ पर्युपासीन ] ओ० ८३ पज्जुवासित [ पर्युपासितुम् ] ओ० १३९. रा० ६ पज्जोसवणा [ पर्युषणा, पर्युपशमन ] जी० ३।६१७ पझमाण [ पझञ्झमान ] रा० ४०,१३२. जी० ३।२६५ पट्ट [पट्ट ] रा० ३७,२४५,६६४,६८३. जी० ३।३११ पट्टण [ पत्तन ] ओ० ६८,८६ से ९३,६५,६६, १५५, १५८ से १६१,१६३,१६८. रा० ६६७. जी० ३।५६५ पट्टिया [पट्टिका ] रा० १३०,१६०,६६४,६८३. जी० ३।२६४,३००, ५६२ Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०७ पट्ट-पडिपाद ६७१ पट्ट [प्रष्ठ] जी० ३।११८ --पडिच्छए. ओ०२ पड [पट] ओ० २३,६३ पडिच्छण्ण [प्रतिच्छन्न ] जी० ३१५८१ पडत [पतत्] जी० ३।५६० पडिच्छमाण [प्रतीच्छत् ] ओ० ६६ पडग [पटक] रा० ७५३ पडिच्छयण [प्रतिच्छदन] रा० २४५. जी० ३।३११, पडबुद्धि [पटबुद्धि] ओ० २४ पडल [पटल ] रा० १२,१५४,१७४. पडिच्छायण [प्रतिच्छादन] रा० ३७ जी० ३।११६,२८६,३२८,३३०,३५५।३ पडिच्छिय [प्रतीष्ट] ओ० ६६. रा० ६६५ पडलग [पटलक] रा० १२,१५७,२५८,२७६. पडिजागरमाण प्रतिजाग्रत् ] रा० ७६३ जी० ३।४१६,४४५ पडिजागरेमाण [प्रतिजाग्रत्] रा०५६ पडह [पटह] ओ० ६७. रा०१३,७७,६५७. पडिजाण [प्रतियान] ओ० ६२ जी०३।१७८,४४६,५८८ पडिण [प्रतीचीन ] जी० ३३५७७,१०३६ पडागा [पताका] ओ० ५५,६४. रा०३२,५०,५२, पडिणिकास [प्रतिनिकाश] रा० १४६. जी० ५६,१३७,१७३ ,२३१,२४७,६८१.जी०११८०, ३।२२२ । ८२; ३।२८५,३०७,३७२,३६३ पिडिणिक्खम [प्रति+-निस्+क्रम्]-पडिणिपडागाइपडागा [पताकातिपताका] ओ० २,१२, खमइ. ओ०२०. रा०२८६. जी० ३१४५४. ५५. रा० २३,२८१. जी० ३।२६१ ___पडिणिक्खमंति रा० १२. जी० ३।४४५ पडागातिपडागा [पताकातिपताका] पडिणिक्खमित्ता [प्रतिनिष्क्रम्य] ओ०२०. रा० जी० ३।४४७ १२. जी० ३।४४५ पिडिकप्प [प्रति+कल्पय् ]-पडिकप्पेइ. परिणिक्खिव [प्रति---नि-क्षिप्] ---पडिणिओ० ५७–पडिकप्पेहि. ओ० ५५ क्खिवइ. रा० २८८. जी० ३३५१६.-पडिणिपडिकप्पिय [प्रतिकल्पित] ओ० ६२ क्खिवेइ, जी० ३१४५४ पडिकप्पेत्ता [प्रतिकल्प्य ] ओ०५७ पडिणिक्खिवित्ता प्रतिनिक्षिप्य रा०२८८. जी० पडिकूल [प्रतिकूल ] रा० ७५३,७६७,७६८,७७६, ३१५१६ पडिणिविखवेत्ता [प्रतिनिक्षिप्य] जी० ३।४५४ ७७७ पडिक्कत [प्रतिक्रान्त] ओ० ११७,१४०,१५७, पिडिणियत्त प्रति+नि-+वृत्-पडिणियत्तइ. १६२. रा० ७६६ ओ० १७७-पडिणियत्तंति. जी. ३७४६ पडिक्कमणारिह [प्रतिक्रमणार्ह ] ओ० ३६ पडिणियत्तित्ता [प्रतिनिवृत्य] ओ० १७७ पडिणीय [प्रत्यनीक] ओ० १५५. जी० ३।६१२ पडिगय [प्रतिगत ] ओ०७६ से ८१. रा०६१, पडिदुवार [प्रतिद्वार] ओ० २,५५. रा० ३२,२८१. १२०,६६४,६६७,७१७,७२२,७७७,७८७ पडिगाहित्तए [प्रतिग्रहीतुम् ] ओ० १११ जी० ३।३७२,४४७ पडिग्गह [प्रतिग्रह] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, पिडिनिक्खम [प्रति +निस् ---ऋम्]-पडिनिक्ख७५२,७८६ मइ. रा०७१०.-पडिनिक्खमंति. रा० २७६. पडिग्गाहित्तए [प्रतिग्रहीतुम् ] ओ० ११२ -पडिनिक्खमति जी०३१४४६ पडिचंद [प्रतिचन्द्र ] जी० ३१६२६,८४१ पडिनिक्खमित्ता [प्रतिनिष्क्रम्य रा०२७६. जी. पडिचार [प्रतिचार] ओ०१४६. रा० ८०२ ३२४४६ पिडिच्छ [प्रति+इष्]-पडिच्छइ. रा० ६८४ पडि पाद [प्रतिपाद] जी० ३।४०७ Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७२ पडिपाय-पडिविसज्ज पडिपाय [प्रतिपाद] रा० २४५ ३१६,३२३ से ३२६,३२८ से ३३०,३३३, पिडिपिधा [प्रति+पि+धा]-पडिपिधेइ. जी० ३३४,३३७,३४७,३४८,३५२,३५३,३५५,३६१, ३५१६ ३६५,३७२,३७७,३८०,३८१,३८३,३८५,३८७, पडिपिधेत्ता [प्रतिपिधाय] जी० ३।५१६ ३६०,३६२,३६३,३६६,४००,४०१,४०४,४०६ पिडिपुच्छ [प्रति+प्रच्छ] - पडिपुच्छंति. ओ० ४५ ।। से ४०८,४१०,४१३,४१४,४१८,४२२,४२७, पडिपुच्छण [प्रतिप्रच्छन] ओ० ५२. रा० ६८७ ४३७,५८१,५८४,५८५,५६६,५६७,६३२,६३६, पडिपुच्छणा [प्रतिप्रच्छना] ओ० ४२ ६४४,६४६,६४६,६५५,६६१,६६८,६७१,६७२, पडिपुच्छणिज्ज [प्रतिपृच्छनीय रा० ६७५ ६७५,६८६,७२४,७२७,७३६,७५८,८३६,८५७, पडिपुण्ण [प्रतिपूर्ण] ओ० १४,१५,१६,६३,७२, ८६३,८८१,८८२,८६१,८६३ से ८६५,८९७, १२०,१४३,१५३,१६२, १६५,१६६,१७०. ८६६,६०४,६०६,६०७,६११,६१८,१०३८, रा० १३१,१४७,१४८,१५०,१५२,२८०,२८६, १०३६,१०८१,११२१,११२२ ६७१ से ६७३,६६८,७५२,७८६,८०१,८१४. पडिरूवग प्रतिरूपक] रा० १६.२०,१७५ से १७६, जी० ३।३०१,३२३,३२५,४४६,४५२,५६२, २०२,२३४,२६४. जी० ३।२८७,२८८,३६३, ५६६,५६७,६१० ३९६,५७६,६४०,६४१,६६६.६८४ पडिपुण्णचंद [प्रतिपूर्णचन्द्र] जी० ३१८६,२६० पडिरूवय [प्रतिरूपक] रा०१६,४७,४८,५६,५७, पडिपान [प्रतिपूर्ण] जी० ३।५९६ २७७,२८८,३१२,४७३,६५६. जी०३।४४३, पडिबंध [प्रतिबन्ध] ओ० २८. रा० ६६५,७७५ ४५४,४७७,५३२,५५६ पडिबद्ध [प्रतिबद्ध] जी० ३।२२ पिडिलाभ [प्रति+लाभय-पडिलाभिस्संति. पडिबोहण [प्रतिबोधन] रा० १५ रा० ७०४.-- पडिलाभेइ. रा० ७१६. पडिबोहिय [प्रतिबोधित] ओ० १४८,१४६. रा. -पडिलाभेज्जा. रा० ७७६ ८०६,८१० पडिलामेमाण [प्रतिलाभयत् ] ओ० १२०,१६०. पडिमट्ठाइ [प्रतिमास्थायिन् ] ओ० ३६ रा० ६६८,७५२,७८६ पडिमोयण [प्रतिमोचन] जी० ३।२७६,५८१,५८५ पिडिलेह [प्रति + लिख्] —पडिले हेइ. रा० ७६६ पडियाइक्खिय [प्रत्याख्यात ] ओ० ११७ पडिलोम [प्रतिलोम] रा० ७५३,७६७,७६८,७७६, पडिरूव [प्रतिरूप] ओ० ७,१० से १२,१५,७२,१६४. ७७७ रा० १,२,१६ से २३,३२,३४,३६ से ३८, पडिवंसग [प्रतिवंशक] रा० १३०. जी० ३।३०० १२४ से १२८, १३० से १३४,१३६,१३७, पडिवज्ज [प्रति-- पद्] —पडिवज्जइ. १४१,१४५ से १४८,१५० से १५३,१५५ से ओ०१८२. रा० ७७५.--पडिवज्जति. १५७,१६०,१६१,१७४,१७५,१८० से १८५, ओ० १५७...पडिवज्जिस्यामि. रा०६९५. १८८,१६२,१६७,२०६,२११,२१८,२२१,२२२, -पडिवज्जिस्सामो. ओ० ५२. रा०६८७ २२४,२२६,२२८,२३०,२३१,२३३,२३८,२४२, २४४ से २४७,२४६,२५३,२५६,२५७,२६१, " पडिवज्जित्ता [प्रतिपद्य ] ओ० १५७ २७३,६६८ से ६७०,६७२,६७३,६७६,६७७, पडिवण्ण [प्रतिपन्न] ओ० २४,७८,८२,१८२ ७००,७०२,७०३. जी०३।२३२,२६० से २६३, पडिवत्ति [प्रतिपत्ति] जी० ॥१०; ६८ २६६ से २६६,२७६,२८६ से २६७,३०० से पडिविरय [प्रतिविरत] ओ० १६१,१६३ ३०४,३०६ से ३०८,३१० से ३१२,३१८, पिडिविसज्ज [प्रति---वि+सर्जय] Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिवूह - पणाम पडिविसज्जेइ. ओ० ५४. रा० ६८४. -- पडिविसज्जेहिति. ओ० १४७. रा०८०८ डिवूह [ प्रतिव्यूह ] ओ० १४६. रा० ८०६ पडसंखेवेमाण [ प्रतिसंक्षिपत् ] रा० ५६ पडिलीणया [ प्रतिसंलीनता ] ओ० ३१,३७ सिाहया [ प्रतिसंसाधना ] ओ ४० / पडसार [ प्रति + सं + हृ] - डिसाहरइ. ओ० २१. रा०८ साहरिता [ प्रतिसंहृत्य ] ओ० २१ पडसाहरेत्ता [ प्रतिसंहृत्य ] रा०८ पडिसाहरेमाण [ प्रतिसंहरत् ] रा० ५६ / पडिसुण [ प्रति + श्रु ] - डिसुति रा० १०. जी० ३१४४५. - पडिणिज्जासि. रा० ७५३. - पडिसुणेइ. ओ० ५६. रा० १८. -- पडिसुर्णेति ओ० ११७. रा० ७०७. जी० ३।५५५. - पडिसुणेति रा० १४. पडिसुजा सि रा० ७५१ पडिणित्ता [ प्रतिश्रुत्य ] रा० १८. जी० ३।४४५ पडणेत्ता [ प्रतिश्रुत्य ] ओ० ५६. रा० १०. जी० ३।५५५ पडिय [ प्रतिश्रुत ] रा० १४ पsिसूर [ प्रतिसूर ] जी० ३।६२६,८४१ पडसे [ प्रतिषेक ] रा० २५४ डिसेवि [ प्रतिषेवित ] रा० ८१५ डिसेह [ प्रतिषेध ] जी० २।६६,१०१ पति [ प्रतिहत] जी० ३।७४६ पहित्य [ दे० ] रा० १७४. जी० ३ । ३२४,८५७, ८६३,८६६, ८७५, ८८१,६४८ हि [ प्रतिहत ] ओ० १६५ १,२ पण [ प्रतीचीन ] रा० १२४ जी० ३।६३६ पडीवात [ प्रतीचीनवात ] जी० ११८१ पडीवाय [प्रतीचीनवात ] जी० ३।६२६ पडु [ पटु ] ओ० ६८. रा० ७,१३,६५७. जी० ३।३५०, ४४६, ५६३, ८४२, ८४५, १०२५ पडुच्च [ प्रतीत्य ] रा० ७६३. जी० १ ३४ ६७३ पडुप्पन्न [ प्रत्युत्पन्न ] जी० ३३१६५ से १६७ पप्पामाण [ प्रत्युत्पद्यमान ] जी० ३।२५६ पोयार [ प्रत्यवतार ] ओ० ४३. जी० ३।२१८, २५६, ५७८,५६६, ५६७ पढम [प्रथम ] ओ० ४७,१४४,१७४,१७६,१८२. रा० ८०२. जी० ६ २२६,६८२,६८३,६८८ ७।१,२,४,६,११,१३, १५, १७,२०,२२२३; १ से ७,२३२, २३३, २३५, २३७, २४१, २४३, २४५, २४७, २५०, २५२, २५३,२५५,२६७, २६८, २७०,२७२,२७५,२७७, २७६, २८१,२८४,२८६, २८८ से २६३ पढमग [प्रथमक ] रा० २२८. जी० ३।३८७,६७२ पढमसत्त इंदिया [ प्रथम सप्तरात्र दिवा ] ओ० २४ पढमसरयकाल [ प्रथमशरत्काल ] जी० ३।११८, ११६ पढमा [ प्रथमा ] जी० ३१२,३,८८,११११ पढमिल्य [ प्रथम ] रा० ७६८ पणजीव [ पनकजीव ] ओ० १८२ पणच्च [ प्र + नृत्य् ] - पणच्चिसु. रा० ७५ पणतीस [पञ्चत्रिंशत् ] जी० ३१८०२ पणपण्ण [ दे० पञ्चपञ्चाशत् ] जी० ६।६ पपन्न [ दे० पञ्चपञ्चाशत् ] जी० २।२० पणमिय [ प्रणत] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. जी० ३ १२६८,२७४ पणयाल [ पञ्चचत्वारिंशत् ] जी० ३।२२६॥६ पणयालीस [ पञ्चचत्वारिंशत् ] ओ० १६२. जी० ३।३०० पणयालीसहि [ पञ्चचत्वारिंशद्विध] ओ० ४० पण यासण [ प्रणतासन | रा० १८१,१८३. जी० ३।२६३ पणव [पणव] ओ० ६७. रा० १३,७७,६५७. जी० ३७८, ४४६,५८८ वणिय [पणपनिक ] ओ०४६ पणवीस [ पञ्चविंशति ] रा० १२७. जी० ३/६१ पणस [ पनस ] जी० ३।३८८ पणाम [ प्रणाम ] रा० ६८,२९१,३०६. Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ पणि-पत्तियमाण जी० ३४५७,४७१,५१६ पिण्णाय [प्र.-ज्ञा] ----पण्णायति. जी. ३६EE पणि [पण्य ] जी० ३ ६०७ पण्णास [पञ्चाशत् ] रा० २०६. जी० २।३६ पणिय पणित, पण्य ] ओ० १. रा० ७७४ पण्हावागरणवसाधर [प्रश्नव्याकरणदशाधर ] पणियगिह [पणित, पण्यगृह ] ओ० ३७ ओ० ४५ पणियसाला [पणित°, पण्यशाला] ओ० ३७ पतणतणाइत्ता प्रतनतनाय्य] रा० १२ पणिहाय प्रणिवाय, प्रणिहाय जी० ३१७३ से पितणतणाय [प्र-तनतनाय]--पतणतणायंति. ७५, १२४,१२५,७६५,१०२५ रा० १२ पणीत प्रणीत ] जी० १११ पतणु [प्रतनु] ओ० ६१,११६ पणीयरसपरिच्चाय [प्रणीतरसपरित्याग ] ओ० ३५ पतरग [प्रतरक | जी० ३।३०२ पणुवीस [पञ्चविंशति] जी० ३।२२६३५ पतव [प्र.। त]--पतवंति. जी० ३।४४७. पणोल्लिय प्रणोदित] ओ० ४६ -पतवेंति. रा० २८१ पण्णओ [प्रज्ञातस्] रा० ७५२,७५४,७५६,७५८, पतिट्ठाण [प्रतिष्ठान] रा० १६,१७५. ७६०,७६२,७६४ जी० ३२८७,३००,४४६,४४८ पण्णगद्ध [पन्न गार्ध] जी० ३।३०२ पत्त [पत्र] ओ०५,६,८,१३,१६,२७,६४. रा०६, पण्णट्ठ [पञ्चषष्टि] जी० ३।२२२ १२,२६,३१,१६१,१७४,२२८,२५८,२७०, पण्णट्टि [पञ्चषष्टि] रा० १६४ २७६,७८२. जी० ११७१,७२, ३।११८,११६, पण्णत्त [दे०] ओ०१ २७४,२७५,२७६,२८३,२८४,२८६,३३४, पण्णत्त [प्रज्ञप्त ओ० २. रा० ३. जी० १११ ३८७,४१६,४३५,४५४,५८१,५८६,५९६, पण्णत्तर [पञ्चमप्तति] जी० ३।२४६ ६२२,६४३,६७२ पण्णत्तरि [पञ्चसप्तति ] जी० ३।६६१ पत्त [प्राप्त] ओ० ३७,११७,१४०,१५७,१६२, पण्णत्ति [प्रज्ञप्ति] रा० ८१७ १६५।१६,२२. रा० १,६३,६५,६६७,७६६, पण्णरस [पञ्चदशन् ] जी० ३।१२ ७९७. जी० ३८६७ पण्णरसविध [पञ्चदशविध] जी० ३।२२६ पत्तच्छेज्ज [पत्रच्छेद्य ] ओ० १४६. रा० ८०६ पण्णरसविह [पञ्चदशविध ] जी० ११८०; २।१४ पत्तट्ठ (दे० प्राप्तार्थ ] ओ०६३. रा० १२,७५८, पिण्णव [प्र-| ज्ञापय् ] -- ण्णव इंसु. जी० १११. ७५६,७६५ ७६६,७७० -~पण्णवे. ओ० ५२. रा० ६८७. -पण्णवेंति पत्तभार [पत्रभार] ओ० ५,८. जी. ३।२७४ जी० ३।२१०.-पण्णवेहेंति. जी० ३१८३८३ पत्तमंत [पत्रवत् ] ओ०५,८. जी० ३।२७४ पण्णवणा प्रज्ञापना] रा० ७७४. जी० १२५,५८, पत्तल [पत्रल ओ० १६,४७. जी० ३१५९६,५६७ ७२,१००,११०,१११,११६,११८,१२६,१३५; पत्तासव [पत्रानव जी० ३८६० १८६; ३।१८४,२१४,२३२,२३३ पत्ताहार [पत्राहार ओ० ६४ पण्णवणापद [प्रज्ञापनापद] जी० ३।२२०,२३१ पत्तिय [प्रतिइ] ---पत्तिएज्जा. रा. ७५०. पण्णवित्तए [प्रज्ञापयितुम् ] रा० ७७४ ---पत्तियामि. रा० ६६५ पण्णवीस [पञ्चविंशति] जी० ३।१२ पत्तिय [पत्रित रा० ७८२ पण्णवेमाण [प्रज्ञापयत् ] ओ० ६८ पत्तियमाण [प्रतियत् ] जी० १११ १ द्रष्टव्यम् ---निशीथभाष्य ४४३५ । १. अनुकरण वचन । Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्ती-सभास पती [पात्री ] जी० ३।५८७ पत्तेग [ प्रत्येक ] जी० ५२६ पत्तेगसरीर [ प्रत्येकशरीर ] जी० ५।३१ पतेय [ प्रत्येक ] ओ० ५०. रा० २०, ४८, १३७, १६४,१७०,१७४ से १७६, १८६,२११,२१५, २१७ से २१६,२२१,२२२,२२४:२२६,२२७, _२३०,२३१,२३३,२५५, २५६,२८२, ६६४. जी० ३।२५६, २८६ से २८८, ३०७ से ३१३, _३४५,३५५,३५६,३५८, ३५६, ३६३, ३६८, ३६६,३७२ से ३७८, ३८०, ३८१,३८३ से ३८६,३६२,३९३,३६५, ४१६,४१७, ४४८, ५५८ से ५६२,६३२,६३४, ६३५,६३७, ६४१, ६६१,६६२, ६८३ ६८४, ७२५, ७२७,७२८, ७६२,७६३,८५७,८५२ से ८८५,८८७ से ८६१,८६३,६०३,६०६, ६०८, ६१०,६११, १३,१०४८ ५।२८, ३०; ६१७४ पत्तेयजीव [ प्रत्येकजीव ] जी० ११७१ पत्ते बुद्धसिद्ध [ प्रत्येक बुद्धसिद्ध ] जी० ११८ पत्तेरस [ प्रत्येकरस ] जी० ३।९६३ पत्तेयसरीर [प्रत्येकशरीर ] जी० ११६८,६६,७२; ५।३१,३३ से ३६ पत्तोमोरिय [ प्राप्तावमोदरिक] ओ० ३३ √पत्थ [प्र+अर्थय् ] –पत्थं ति. ओ० २० -- पत्थे इ. रा० ७१३ – पत्थति. रा० ७१३ पत्थ [ प्रस्थ ] ओ० १११ पत्थ [ पथ्य ] जी० ३८५४,८७८, ६५७ पत्थड [ प्रस्तट ] रा० १३०, १३७. जी० ३।३००, ३०७ पत्थडोवग [ प्रस्तटोदक ] जी० ३०७८३,७८४ पत्थय [ पथ्यक] रा० ७७२ पत्थयण [ पथ्यदन] रा० ७७४ पत्थर [ प्रस्तर] ओ० ४६ पत्थिज्जमाण [ प्रार्थ्यमान ] ओ० ६६ पत्थिय [प्रार्थित ] ओ० ७०. रा० ६, २७५, २७६, ६८८, ७३२, ७३७, ७३८, ७४६, ७६८, ७७७, ७६१,७९३,८०४. जी० ३।४४१, ४४२ पद [पद ] रा० ७६,२६२. जी० ३ १८४, ४५७ ६३७ दाहिण [ प्रदक्षिण ] जी० ३।४४३ पदाहिणावत्तमंडल [ प्रदक्षिणावर्त मण्डल ] जी० ३१८४२ पदीव [ प्रदीप ] रा० ७७२ पदेस [ प्रदेश ] रा० १३५, २३६, ७७२. जी० ११४; ३।३०५, ३२७,५७३,५७,६६८,७१७, ७८८, ७८६, ८०३,८२८, ८२, ८४५, ८५३, ६४६ ; ५।५१ ६७५ पदेसता [ प्रदेशा] जी० ५१५१, ५२ पदेसया [ प्रदेशार्थ ] जी० ५३५० से ५२,५८ से ६० पन्नगद्ध [ पन्नगार्ध ] रा० १३२ पन्नरस [ पञ्चदशन् ] रा० २०८. जी० ३।३८३ ॥ १६ पन्नरस [ पञ्चदश ] जी० ३१८३८|१६ पन्नरसहि [ पञ्चदशविध ] जी० २।१४ पन्नास [ पञ्चाशत् ] रा० १२७. जी० २०२० पपडमय [ पर्पटमोदक ] जी० ३।६०१ पप्फुल्ल [ प्रफुल्ल ] जी० ३।२५६ पन्भट्ठ [ प्रभ्रष्ट ] रा० १२,२६१,२६३ से २६६, ३००,३०५,३१२,३५५. जी० ३ | ४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७, ५१६, ५२०,५५४ पब्भार [ प्राग्भार] ओ० ४६ पभंकरा [ प्रभङ्करा ] जी० ३।१०२३,१०२६ भंजण [ प्रभञ्जन ] जी० ३।७२४ पभा [ प्रभा ] ओ० ४७, ७२. रा० २१,२३,२४, ३२,३४,३६,१२४,१४५, १५४, १५७,२२८,२७३ ७७७७७८,७८८. जी० ३।२६१, २६६, २६६. ३२७, ३८७,६३७, ६५६,६७२, ७२८, ७४३, ७५०,७६३,७६५,१०७७ et [ प्रभात ] ओ० २२. ०७२३,७७७,७७८, ७८८ पभास प्रभास ] रा० २७६ जी० ३।४४५ Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७६ प्रभास-पयावण प्रभास [प्र--भास्]-पमासिसु. जी० ३१७०३ जी० ३।५९६ -पभासिस्संति. जी० ३१७०३---पभासे इ. पमुच्चमाण [प्रमुञ्चत् ] जी० ३।११८ रा० ७७२. जी. ३।३२७–पभासें ति. पमुदित [प्रमुदित ] जी० ३२८५ रा० १५४. जी० ३।३२७-पभासेति. पमुह [प्रमुख ] ओ० ५५,५८,६२,७०,७१,८१. रा० १५४. जी० ३।७४१ रा० २४६,७७६ पभासेमाण [प्रभासमान] ओ० ४७,७२. पमोकक्ख प्रम क्ष] रा० ६६८,७५२,७८६ जी० ३.११२१ पम्ह [पक्ष्मन् ] ओ० ८२ पभिइ [प्रभृति ] रा० ७६०,७६१ पम्ह [पद्म] जी० ६।१६४ पभिति [प्रभृति | ओ० ५२,६३. रा० ६८७,६८८, पम्हल पक्ष्मल ओ० ६३. रा० २८५. ७०४. जी० ३।८३८।२५ ___ जी० ३।४५१ पभ प्रभ] रा० ७५८ से ७६१. जी० ३।११०, पम्हलेस [पद्यतेश्य | जी० १६० ६८८ से ६६७, १०२३ से १०२५,१११५, पम्हलेस्स [पद्मलेश्य ] जी०६।१८५,१६६ पम्हलेस्सा | पद्मलेश्या] जी. ३।११०२ पभूय [प्रभूत] ओ० १,१४,४६,१४१. रा०६, पय [पद] ी० २१,५४. रा०८,७१४. १२,६७१,७६६. जी० ५८६ जी० ॥२३६,२८५ पिमज्ज [प्र--मृज्]-पमज्जइ. रा०२९१ पयंठग [प्रकण्ठक] जी० ३।३२२ -पमज्जति. जी० ३।४५७ पियच्छ [प्र+यम् ]--पयच्छइ. रा० ७३२ पमज्जित्ता [प्रमृज्य] रा० २६१. जी० ३।४५७ पयण [पचन] ओ० १६१,१६३ पमत्त [प्रमत्त ] रा० १५ । पयण [प्रतनु] जी० ३।५९८,६११,७६५,८४१ पमहण [प्रमर्दन] ओ० २६. रा० १२,७५८.७५६. पयत प्रयत] जी० ३.४५७ जी० ३.११८ पयत्त [प्रयत्न] रा०२६२. जी. ३.६०१,८६६ पमाण [प्रमाण] ओ० १५,१६,३३,१२२,१४३. पयबद्ध [पदबद्ध ] रा० १७३. जी० ३।२८५ रा०६.१२,४०,२०५ से २०८,२२५,२५४, पययदेव पतगदेव,पतकदेव ] ओ० ४६ २७६,६७२,६७३,६७५,७४८ से ७५०,७७३, पयर प्रतर] रा० ४०,१३२ ८०१. जी० ३।३१३,३६८ से ३७१,३८४, पयरग [प्रतरक] जी. ३।२६५,३१३,५६३ ४०६,४१२,४१५,४४२,५६८,५६६,५९६,५६७, पियला [प्र-+-चलाय]-पयलाएज्ज. ६५२,६६६,६७३,६७६,६७६,६८५,६८६, जी०३।११८ ६८८,६६१ से ६६८.७३७,७५०,७५३,७६४, पलिय [प्रचलित] ओ० २१,५४. रा०८, ७६५,८००,८८६,८६६,८६८,६१६ से १२१, ७१४ ६४१,१०७४ पयसंचार | पदसञ्चार] रा० ७६,१७३. जी० ३।२८५ पमाणपत्त [प्रमाणप्राप्त] ओ० ३३ पिया [प्र-जनय] -पयादिइ. रा० ८०१ पमाणभूय प्रमाणभूत ] रा० ६७५ -पयाहिति. ओ० १४३ पमाय [प्रमाद] ओ० ४६ पयाणुसारि [पदानुमारिन् ] ओ० २४ पमावायरिय [प्रमादावरित ] ओ. १३६ पयार [प्रचार] ओ० ३७ पमुइय [प्रमुदित] ओ० १,१६,४६. रा० १७३. पयावण [पाचन] ओ० १६१,१६३ Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पयाहिण-परिक्खित्त ६७७ पयाहिण [प्रदक्षिण] ओ० ४७,५२,६९,७०,७८, ८०,८१,८३. रा०६,१०,१२,५६,५८,६५, ७३,७४,११८,१२०,६८७,६६२,६६५,७००, ७१६,७१८,७७८ पयाहिणावत्त प्रदक्षिणावर्त ] ओ० १६. जी० ३१५६६,५६७,८३८।१०,११ पयोधर [पयोधर] जी० ३१५६७ पर [पर] ओ० १५४,१५५,१६० से १६३,१६५, १६६. रा० ८१६ परं परम् ] जी० ३।८३८।२३ परंगमाण [पर्यङ्गन] रा० ८०४ परंपर [परम्पर] जी० ११४३ परंपरगय [परम्परगत ] ओ० १६२२० परंपरसिद्ध [परम्प सिद्ध ] जी० ११७,६ परक्कम पराक्रम ] ओ० ८६ से ६५,११४,११७, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७ परग [परक] जी० ३।५८७ परघर [परगृह ] रा० ८१६ परच्छंवाणुवत्तिय [परच्छन्दानुवर्तित ] ओ० ४० परपरिवाइय [परपरिवादिक] ओ० १५६ परपरिवाय [परपरिवाद] ओ० ७१,११७,१६१, परमण्ण [परमान्न ] जी० ३।५६२ परमसीय [परमशीत] जी० ३।११५ परमसुक्कलेस्सा [परमशुक्ललेश्या] जी० ११०४ परमसुक्किल [परमशुक्ल[ जी० ३।१०७६, १०६६ परमहंस [परमहंस] ओ०६६ परमाउ [परमायुष्] ओ०६८ परमाणु [परमाणु] जी० ७७१. जी० ११५ परलोग [परलोक] ओ० २६, ८६ से ६५, ११४, ११७, १५५, १५७ से १६०, १६२, १६७ परवाइ [परवादिन् ] ओ० २६ परवाय [परवाद] ओ० २६ ।। परसु [परशु] रा० ७६५ परस्सर [पराशर] जी० ३६२० पराइय [पराजित ] ओ० १४. जी० ६७१ पिरामुस [परा + मृश्] —परामुसइ. रा० २६४. जी० ३।४६०-परामुसति. रा० २६८. जी० ३।४५७ परामुसित्ता [परामृश्य ] रा० २६४. जी० ३।४५७ पिरावर्त [परा+वृत्]-परावत्तेइ. रा० ७२६ -परावत्तेहि. रा० ७२८ परासर [पराशर] ओ० ६६ । परिकच्छिय [परिकक्षित] रा० ५२ परिकम्म [परिकर्मन् ] ओ० ३६ /परिकह [परि--कथय ]-----परिकहेइ ओ० ७१. रा०६१ परिकहे। परिकथयितुम ] ओ० १६५।१६ परिकिलंत परिक्लान्त ] रा० ७२८, ७६०,७६१ परिकिलेस परि-क्लिश्]-परिकिलेसंति ओ०८६ परिकिलेस [परिक्लेश] ओ० १६१,१६३ परिकिलेसित्ता [परिक्लिश्य] ओ० ८६ परिक्खित्त [परिक्षिप्त ओ० १, ५२, ६४, ७०. रा० १७,१८,१३२,१७०,१७४,२३३,६८१, ६८३, ६८७,६८८, ६६२, ७००, ७१६,८०४. जी० ३१२५६,२८६,३०२,३५८,३६५,६३२, ६६१, ६८३, ७६२, ८५७,८८२,६१०,६११ परपरिवायविवेग परपरिवादविवेक ओ० ७१ परपुट्ट [परपुष्ट] रा० २५. जी० ३२७८ परम परम ] ओ० २०, २१, ५३, ५४, ५६, ६२, ६३,७८,८०,८१. रा०८,१०,१२ से १४,१६ से १८, ४७, ६०, ६२, ६३, ७२, ७४, २७७, २७६,२८१,२८८,२६०, ६५५, ६८१,६८३, ६६०, ६६५, ७००, ७०७, ७१०, ७१३,७१४, ७१६, ७१८, ७२५, ७२६, ७६५, ७७४,७७८, ८०२. जी० ३।११६, ४४३, ४४५,४४७,४५५ परमकिण्ह [परमकृष्ण जी० ३।८३, ६४ परमकिण्हलेस्सा | परमकृष्ण श्या] जी० ३.१०२ परमट्ट [परमार्थ ] ओ० १२०, १६२. रा० ६६८, ७५२, ७८६ Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिक्खेव-परिभव परिक्खेव [परिक्षेप ओ० १७०. रा० १२४,१२६, १८८,१८६,२०१. जी० ३।५१,८१,८२,८६, परिणम [परिणम् ] परिणमइ. ओ० ७१. १२७, २१७, २२२, २२६।३ से ६, २६०, रा० ७७१ ---परिणमंति. जी० १६५ २६३, २७३, २६८,३५१, ३६१, ३६२,५७७, परिणमंत | परिणमत् ] रा० ७७१ । ६३२, ६५८, ६६१, ६६८,६८६, ७०६,७३६, परिणममाण [परिणमत जी० ३१९८२ ७५४, ७६२, ७६५, ७७०,७६४, ७६५,७६८, परिणय परिणत] ओ०५,८. रा० १२,७५८,७५६ ८१२, ८२३, ८३२, ८३५, ८५०,८८२,६११, ८०६,८१०. जी० ११५; ३२२,११८,२७४,५८६ ११८, ६५२,१०१० से १०१४,१०७३,१०७४ ५८८ से ५६२,५६४ परिखित्त [परिक्षिप्त] रा० ५६, १७३, ६८१. परिणाम [परिणाम] ओ०७१,६०,११६,१५६. रा० जी० ३।२८५ १३३. जी० ३।१२८,३०३,५८६,५८८,५६२, परिगत [परिगत ] जी० ३।२८८, ३००, ३३२ ६७४,६७६ से १८२ परिगय [परिगत ] ओ० २ रा० १७, १८, २०, परिणाम [परिणामय् ] ----परिणामेइ. रा०७३२ ३२, १२६, १५६, ७६५. जी० ३।३७२ परिणिव्वा [परि--निर्+वा]-परिणिव्वाइ. ओ. परिग्गह [परिग्रह ] ओ०७१, ७६, ७७, ११७, १७७-परिणिव्वायंति. ओ० ७२. जी० १६१३३ १२१, १६१, १६३. रा० ६६, ७१७, ७६६ ---परिणिवाहिति. ओ० १६६ -परिणिव्वा. परिग्गहवेरमण [परिग्रहविरमण ] ओ० ७१ हिति. ओ० १५४ परिग्गहसण्णा [परिग्रहसंज्ञा] जी० १।२०; ३।१२८ परिणिव्वाण [परिनिर्वाण] ओ० ७१ जी० ३।६१८ परिग्गहिय [परिगृहीत] ओ० २०,२१,५३,५४,५६, परिणिन्वय परिनिर्वत] ओ०७१ ६२,६४,११७,१३६. रा० ८,१०,१२,१४,१८, परिताव परिताप] ओ० ८६ ४६,५१,७२,७४,११८,२७६,२७६ से २८२,२६२' परितावणकर [परितापनकर] ओ० ४० ६५५,६८१,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४, परिताविय [परितापित ] ओ० ६२ ७२३,७६०,७६१,७६६. जी० ३।४४२,४४५, परित्त [परीत ] जी० १।२६,६२,६४,६५,७७,७६, ४४६,४४८,४५७,५५५,६३०,७२७ ८०,८२,८७,८८,६६,१०१,१०३,११२,११६, परिघट्रिय [परिघट्टित] रा० १७३. जी० ३।२८५ ११६,१२१,१२३,१२८,१३४,१३६; ६७५, परिषट्ठ [परिघृष्ट ] रा० ५२,५६,२३१,२४७. जी० ७६,८७ ३।३६३,४०१ परित्तसंसारिय [परीतसंसारिक ] रा० ६४ परिचत्त [परित्यक्त] ओ० ६२ परिधाव [परि+ धाव] –परिधावंति. रा० २८१. परिचुंबिज्जमाण [परिचुम्ब्यमान] रा०८०४ जी० २।४४७ परिच्छेय [परिच्छेद ] ओ० ५७ परिनिव्वा [परि + निर्वा ] --परिनिव्वापरिजण [परिजन] ओ० १५०. रा० ७५१,८०२ हिति. रा०८१६ ८११ परिपोलइत्ता [परिपीड्य ] जी० ११५० परिजाण [परि+ज्ञा] -परिजाणाइ. रा० ७०१ परिपुण्ण [परिपूर्ण] रा० २४ __-परिजाणाति. रा० ७५३ परिपूत [परिपुत] जी० ३।८७८ परिजूसिय [परिजुष्ट ] ओ० ४३ परिपूय परिपूत] ओ० १११ से ११३,१३७,१३८ परिणत [परिणत] जी० ११५; ३।५८७,५६३,५६५, परिभव [परिभव] ओ० ४६ Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिभवणा-परिवढि परिभवणा [परिभवना] ओ० १५४,१६५,१६६ ७७८,८०४ परिभाइत्ता परिभाज्य रा०६६५ परियावणकर [परितापनकर] ओ ० १६१,१६३ परिभाएमाण [परिभाजयत् ] रा०७६५,७८७,७८८, । परिरय [परिरय] ओ० १६२. जी० ३।२१६।१, ८०२ २,४,५,८३६,६१० परिभायइत्ता [परि गाज्य ] ओ० २३ परिलित [परिलीयमान] ओ०६२. जी० ३।२७५ परि जमाण [परि भुजान] ओ० ११६,११७ परिलो [दे०] रा० ७७ परिभुजमाण [परिभुजान ] स० ७६५,८०२ परिवंदिज्जमाण [परिवन्द्यमान ] रा० ८०४ परिभुज्जमाण [परिभुज्यमान] रा० ३०,१३६,१७४, परिवच्छिय [परिवस्रित'] ओ० ५७ ८०४. जी० ३।११८,११६,२८३,२८६,३०६ ।। परिवज्जिय [परिवर्जित] जी० ३।६२२ परिभोगत्त [परिभोगत्व | जी० ३१६१८ परिवड्ड [परि-वृध्] -परिवड्ढइ. जी. ६१६,६२१ ३१८३८।१८.--परिवढिस्स इ. रा० ८०४ परिमंडल [परिमण्डल] रा०६,१२,१४. जी. परिवय [परि + वृत्]-परिवयंति. रा० २८१. ११५; ३ २२ जी० ३४४७ परिमंडित [परिमण्डित जी० ३।३७२ परिवस [परि---वस्]-परिवस इ. ओ० १४. परिमंडिय [परिमण्डित | ओ० १,५७,६४,७०, रा० रा० ७०३.---परिवसंति ओ० १८६. ३२,५२,५६,१७३,२३१,२४७,६८१,८०४. रा० १५६. जी० ३१२३२.-परिवसति. जी० ३।३६३ जी० ३।२३४ परिमद्दण [परिमर्दन] ओ० ६३ परिवसण [परिवसन] जी० ३१५६८ परिमाण | परिमाण] जी० ३।१२७१३,२५०,२५८ परिवह [परिवह]-परिवहंति परिमिय [परिमित] ओ० १५. रा० ६७२ जी० ३३१०१५ परिमियपिंडवाइय | परिमितपिण्डपातिक ] ओ० ३४ परिवहितए [परिवोढम् ] रा० ७६० पिरियट्ट [परि+वृत्] - परियट्टयंति ओ० ४५ परिवाइणी [परिवादिनी] जी० ३१५८८ परियट्टणा [परिवर्तना] ओ० ४२,४३ परिवाडी [परिपाटी] रा०१३१ से १३३,१३५, परियत्त [परिवर्त | ओ० ४६ १३६. जी० ३।३०१ से ३०३ परियर [परिकर] रा० ६६,७६५ परिवायणी [परिवादिनी] रा० ७७ परियाइ [परि + आ--दा]-परियाएइ रा० । परिवार [परिवार] ओ० ७०. रा. ७,४२,४७, १५-परियायंति रा० १०.जी० ३।४४५ ५६,५८,६१,६७,१६४,१८६,२०४ से २०६, परियाइत्ता [पर्यादाय] रा० १०. जी० ३।४४५ २१६,२४३,२८०. जी० ३।३४०,३५०,३५६, परियाइय [पत्ति] रा० ६६४. जी० ३।५६२ ३६६,३६८,३७८,४०५,४४६.४४८,५५७, परियाग [पर्याय | ओ० ६४,१५५,१५८ से १६०, ५६३,६३५,६५७,६६३ ६७३,६८०,६८५, ७३७,७४०,७४२,७४५,७५०,७६२,७६५, परियाण [परि--ज्ञा] - परियाणइ रा०६४ ७६८,७७०,१०००,१०२३,१०५४ परियाय पर्याय | ओ० २३,११४,१४०. परिवाल [परिवार रा० १३,१२० ___ रा०८१५ परिविद्धंस इत्ता [परिविद्धवस्य ] जी० ११५० परियारणिडि [परिचारद्धि] जी० ३।१०२५ । परिवुटि [परिवृद्धि] जी० ३१७८८,७८६ परियाल [परिवार] ओ० २३,७०,७१. रा० ७७७, १. परिपक्षितं ---परिगृहोतं परिवृत्तम् (व) । Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८० परिव्यय [ परिव्यय ] रा० ७७४ परिवायr [ परिव्राजक ] ओ० १०१ से १३३ परिव्वाया [ परिव्राजक ] ओ० ६६ से ९६,११७ परिसडिय [ परिशटित ] ओ० १४. रा० ७६०, ७६१,७८२ परिसप्प [ परिसर्प ] जी० १ १०२,१०४,१२०, १२२; ३ । १४१, १४३ परिसप्पी [परिसर्पी ] जी० २।५,७ परिसा [परिषद् ] ओ० ४३, ७६. रा० ६, ७,४३, ५६,५८,६१,२७६ से २८०,२८४,२८७,६६० से ६६२,६६६,६६३, ६६४, ७१२, ७१७, ७३२, ७३७,७६६,७६७,७७६. जी० ३।२३५ से २३६, २४१ से २४३,२४५ से २४७, २४६, २५०, २५४ से २५६, २५८, ३४१ से ३४३, ३५०, ३५६, ४४२ से ४४६,५५७,५६०, ५६३, ८४२, ८४५, १०४० से १०४२,१०४४,१०४६ से १०५३,१०५५ / परिसाड [ परि + शाटय् ] परिसाति जी० ३।४४५ – पडिसाडेइ रा० १८. परिसार्डेति रा० १० परिसाडइत्ता [ परिशाट्य ] जी० ११५० परिसाडित्ता [ परिशाट्य ] रा० १८. जी० ३।४४५ परिसाडेता [ परिशाट्य ] रा० १० परिसामंत [ परिसामन्त ] जी० ३।१२६ परिसेय [ परिषेक ] जी० ३।४१५ परिशोधित [ परिशोधित ] जी० ३८७८ परिस्संत [ परिश्रान्त ] ओ० ६३. रा० ७६५ परिस्सम [ परिश्रम ] ओ० ६३ परिहा [ परि + धा] परिहेइ जी० ३।४४३ परिहत्थ [ दे० ] ओ० ४६. रा० ६६,१५१. जी० ३।११८, ११६, २८६ v परिहा [ परि + हा ] परिहायइ. जी० ३१८३८१६. - परिहायति जी० ३.१०७ परिहाणि [ परिहाणि ] जी० ३६६८,८३८ । १६,२० परिहायमाण [ परिहीयमाण ] ओ० १६२. जी० ३।६६८,८८२ परिव्वय पलिओवम परिहारविसुद्धिचरितविणय [ परिहारविशुद्धिचरित्रविनय ] ओ० ४० परिहित [ परिहित ] रा० ६८५,६२,७००,७१६, ७२६,८०२. जी० ३।११२२ परिहि [ परिहित] ओ० २०,४७,५२,५३,७२. रा० ६८७,६८६ परिहीण [ परिहीण ] ओ० ७४ ६,१८२, १६५८. रा० १३, १५, १७ परिता [ परिधाय ] जी० ३:४४३ परीसह [ परीपह] ओ० ११७,१५४,१६५,१६६ परूढ [प्ररूढ ] ओ० २ √ परुव [ प्र + रूपय् ] - परुवेइ. ओ० ५२. रा० ६८७. परूवेंति. जी० ३।२१०. परूवेमि. जी० ३।२११ रूवि [ प्ररूपित ] जी० १ १ परूमाण [ प्ररूपयत् ] ओ०६८ लंब [ प्रलम्ब ] ओ० ४७,४६,५७,६४,७२. T० ५१,६६,७० लंबमाण [ प्रलम्बमान ] ओ० २१, ५२, ५४,६३. रा०८,४०,१३२,६८७ से ६८६,७१४. जी० ३।२६५ पलाल [पलाल ] रा० ७६७ पलिओम [ पत्योपम ] ओ० ६४,६५. रा० १८६, २८२,६६५,६६६,७६८. जी० १।१२१,१२५, १३३, २२०.२१, २५ से २८, ३० से ४६, ५३ से ५५, ५७ से ६१,७३, ८३, ८४, १३६; ३।१५६, १६५,२१८,२३८,२४३,२४७, २५०, २५६, ३५०, ३५६,४४८,५६४, ५६५, ६२६,६३७, ६५६,७००, ७२१,७२४, ७२७, ७३८, ७६१, ७६३,७६५,८०८,८१६,८२६,८४१,८५४, ८५७,८६०,८६३,८६६,८६६, ८७२, ८७५, ८७८८५६२३,६२५,१०२७ से १०३६, १०४२,१०४४,१०४६, १०४७, १०४६ से १०५३,१०५५,१०८६, ११३२,११३५, ६३, ६, ६, ७ ५, ६, १२, ६ १८७ से १५६,२१२, २१४,२२५,२३८,२७३ Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पलिच्छन्न-पबीइय पलिच्छन्न [परिच्छन्न] ओ०६. जी० ३१२७५ पवला इया [दे०] जी० २६ पलित्त [प्रदीप्त ] जी० ३१५८६ पवहण [प्रवहण] ओ० १००,१२३ पलिय [पलित] जी० ३।५६७ पवा [प्रपा] ओ० ३७ रा० १२ पलियंक [पर्यङ्क] रा० २२५. जी० ३।३८४ पवाइय [प्रवादित] ओ० ६७,६८. रा० १३,६५७. पलिह [परिघ ] ओ० १६ जी० ३।३५०,५६३,१०२५ पिलीव [प्र-+ दीपय]-..पलीवेज्जा. रा० ७७२ पवादित प्रवादित] रा०८४२,८४५.जी० ३।४४६ पल्लंघ [प्र+लंघ]--पल्लंघज्ज. ओ० १८० पवादिय [प्रवादित] रा० ७ पल्लंघण [प्रलङ्कन] ओ० ४० Vपवाय [प्र+वादय]-पवाएंसु. रा० ७५ पल्लग [पल्यक] जी० ३।६११ पवाल [प्रवाल] ओ० ५,८,१६,२३,४७. रा० २७, पल्लत्यमुह [पर्यस्त मुख रा० ७६५ २२८.६६५. जी० ११७१,२७४,२८०,३८७, पल्लव [पल्लव] ओ० ५,८. रा० १३६,२२८. ५६६,६०८,६७२ जी० ३।२७४,३०६,३८७,६७२ पवालमंत [प्रवल बत् ] ओ० ५,८. जी०३१२७४ पल्लवपविभत्ति [पल्लवप्रविभक्ति] रा० १०० पविइण्ण [प्रविकीर्ण ] ओ०१ पल्हविया [पह्लाविका] ओ० ७०. रा० ८०४ पविक्खरमाण [प्रविकिरत] जी० ३।११८ पल्हायणिज्ज [प्रह्लादनीय] ओ० ६३ पविचरित [प्रविचरित] रा० १७४ पवंच [प्रपञ्च] ओ० १६५ | पविचरिय [प्रविचरित] जी० ३।२८६,६३६ पवंचेमाण [प्रपञ्चयत् ] जी० ३।२३६ पविट्ठ [प्रविष्ट] ओ० ६४. जी० ३।५५,७८ पवग [प्लवक] ओ० १,२ पविणो [प्र+वि-नी] —पविणेज्जा. जी. पवगपेच्छा [प्लवकप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. जी० ___३३११८ । __३।६१६ पवित्तय [पवित्रक] ओ० १०८,११७,१३१ पवण [पवन] ओ० ४८,५७ पवित्ति [प्रवृत्ति ] ओ० १६,१७ पवण [प्लवन] रा० १२,७५८,७५९. जी० ३.११८ पवित्तिवाउय [प्रवृत्तिव्यापृत, प्रवृत्तिवादुक] ओ० पवत्त [प्रवृत्त] रा० १८,७८,८०,८२,११२ जी० १६,१७,२०,२१,५३,५४ ३१४४७ पवित्थरमाण [प्रविस्तरत्] जी० ३।२५६ पिवत्त [प्र-वर्तय]-पवत्तेइ. रा० ६७१ पविद्धत्थ [प्रविध्वस्त] जी० ३।११८, ११६ पवत्तेति. रा० ७५० ---पवत्तेमि. रा० ७५०. पविमोयण [प्रविमोचन] ओ०७,८,१० पवत्तेहि. रा० ७५० पवियरितए [प्रविचरितुम्] रा० ७३२,७३७ पवत्तय [प्रवर्तक] रा० ६७१ पविरल [प्रविरल] रा० ६,१२,२८१,७६०,७६१. पवत्ताय [प्रवृत्तक] जी० ३।२८५ ___ जी० ३।४४७,५९१ पवयणणिण्हग [प्रवचननिह्नवक] ओ० १६० पविराय [दे०प्रस्फुटित] जी० ३।११८,११६ पवर [प्रवर] ओ० २,२०,४७, से ५३,५५ से ५७, पविलीण [प्रविलीन] जी० ३।११८,११६ ६३से६५,७२. रा० ६,१२,३२,५१,१३०,१३२, सपा पिविस [प्र+विश्] —पविसइ. रा० ७६६. २३६,२८१,२६२,६८५,६८७६८६,६६२, ___--पविसामो. रा० ७६५ ७००,७१६,७२६,८०२. जी० ३।३००,३०२, पविसंत [प्रविशत् ] जी० ३।८३८।१४ ३७२,३६८,४४७,४५७,५६७,११२२ पवीइय [प्रवीजित] ओ० ६७ Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८२ पवीणी-पहरण पवीणी [प्र+वि-नी] -पवीणेइ ओ० ५६ पसण्णा [प्रसन्ना] जी० ३१८६० पवीणेत्ता [प्रविणीय ] ओ० ५६ पसत्त [प्रसक्त] रा० १५ पिच्च [प्र+वच्] पवुच्चति जी० ३१८४१ पसत्थ प्रशस्त] ओ० १५,१६,४६,५२,११६,१५६. पवेस [प्रवेश ] ओ० १५४,१६२,१६५,१६६. रा० रा० ३३,१३३ ६७२. जी० १११; ३१३०३, १२६,२१०,२१२,६६८,७५२,७८६,८१६. जी. ३७२,५६६ से ५६८ ३१३००,३५४,३७७,५६४,६४३,८८५ पसत्थकायविणय [प्रशस्तकायविनय ] ० ४० पव्वइत्तए [प्रव्रजितुम्] ओ० १२०. रा० ६६५ पसस्थमणविणय [प्रशस्त मनोविनय ] ओ० ४० पब्वइय [प्रवजित] ओं० २३,७६,७८,६५,१५५, पसत्थवइ विणय [प्रशस्तवाग्विनय ] ओ० ४० १५६ पसत्थु प्रशास्तृ] ओ० २३. रा०६८७,६८८ पव्वग [पर्वग] जी० ११६६ पसन्ना [प्रसन्ना जी० ३।५८६ पव्वत [पर्वत] रा० २७६. जी० ३६४४५,६३२, पसर [प्र स]-पसरंति. रा०७५ ६३७,६६१,६६२,६६४,६६६,६६८,७३५,से पसरिय [प्रसृत] ओ० ४६. जी० ३१५८९ ७४३,७४५,७४६,७५०,७६५,८३१,८३३,८३४ पसव [प्रसू]-पसवति. जी० ३.६३० से ६४२,८४५,८६६,८८२,९१० से १२,६१४ पसवित्ता [प्रसूय] जी० ३१६३० से ६१६,६१८से६२३ पसाधण [प्रसाधन] रा० १५२. जी० ३।३२५ पव्वतग [पर्वतक] जी० ३१८६३,८७५,८८१,९२७ पसाधणघरग [प्रसाधनगृहक] रा० १८२,१८३ पव्वतय [पर्वतक] जी० ३८६३ पसार [प्र---सारय-पसारेति. रा०६६ पिन्वय [प्र-व्रज्] -पव्वइस्सति. रा० ८१२. पसासेमाण [प्रशासयत् ] ओ० १४. रा० ६७१,६७६ -पव्वइस्सामो. ओ० ५२. रा०६८७. पसाहणघरग [प्रसाधनगृहक] जी० ३।२६४ -पव्वइहिति. ओ० १५१.-पव्वयंति पसाहा [प्रशाखा] ओ० ५,८. रा० २२८. रा० ६६५. जी० ३।२७४,३८७,६७२ पव्वय [पर्वत] रा० ५६,१२४,२७६,७५५,७५७. पसिढिल [प्रशिथिल] ओ० ५१ जी० ३।२१७,२१६ से २२१,२२७,३००,५६८, पासण |प्रश्ना पसिण [प्रश्न ] ओ० २६. रा० १६,७१६ ५७७,६३२,६३३,६३८,६३६,६६८,७०१, पसु [पशु] ओ० ३७. रा० ६७१,७०३,७१८. ७३६,७३८,७४०,७४२,७४४,७४५,७४७,७४६ जी० ३७२१ ७५०,७५४,७६२,७६५,७६६,७७५,८८३,६३७, पसेढि [प्रश्रेणि] रा० २४. जी० ३१२७७ १००१,१०३६ पस्सा [पश्या रा० ८१७ पव्वयग [पर्वतक] जी० ३।५७६ पस्सवणी [प्रस्रवणी] रा० ८१७ पव्वयमह [पर्वतमह] जी० ३।६१५ पह [पथ ] ओ० ५२,५५. रा०६५४,६५५,६८७, पवयराय [पर्वतराज] जी० ३।८४२ ७१२. जी० ३१५५४,८३८।१५ पव्वहणा [प्रव्यथना] ओ० १५४,१६५,१६६ पहकर [दे०] ओ० १,६. रा० ६८३. जी० ३।२७५ पव्वा [पर्वा ] जी० ३६२५८ पहगर [दे०] रा० ५३ पसंग [प्रसङ्ग] ओ० ४६ पहट्ट [प्रहृष्ट] ओ० १६. जी० ३१५६६ पसंत [प्रशान्त ] ओ० १४. रा० ६,१२,१५,२८१, पहरण [प्रहरण] ओ० ५७,६४. रा० १७३,६६४, ६७१. जी० ३।४४७ ६८१,६८३. जी० ३।२८५,५६२ Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहरणकोस-पाणाइवाय ६८३ पहरणकोस [प्रहरण कोश ] रा०२४६,३५५. पाउब्भवमाण [प्रादुर्भवत् ] रा० १७ जी० ३.४१०,५२० पाउन्भूय [प्रादुर्भूत] ओ० ७६ से८१. रा० ६१, पहरणरयण [प्रहरण रत्न रा० २४६,३५५. १२०,६६४,६६७,७१७,७२२,७७७,७८७,७६५ जी० ३।४१०,५२० पाउया [पादुका] ओ० २१,५४,६४. रा० ५१, पहसित [प्रहसित ] जी० ३।३०७,३६४,६३४,६३६, ७१४ १००८ पाओवगमण [प्रायोपगमन] ओ० ३२ पहसिय प्रहसित] रा० १३७,१८६. जी० ३।३५५, पाओवगय [प्रायोपगत ओ०११७ ३५९,३६८ से ३७१,५८६,६७३ पागडभाव [प्रकट भाव] ओ० २७. रा०८१३ पहा [प्रभा] ओ० १२,२२. ला० १५४. पागडिय [प्रकटित ] ओ० ५०,५१ जी० ३१५८६ पागय [प्राकृत] जी० ३।८३८।३ पहाण [प्रधान] ओ० २३,२५,१४६. ग०६८६, पागसासण [पाकशासन] जी० ३।१०३६ ८०६,८०७. जी० ३६५६२,५६७ पागार [प्राकार] ओ० १. रा० १२७,१२८,१७०, पहार [प्र+धारय् ]-पहारेजा. ओ० ४०. ६५४,६५५. जी० ३१३५२, ३५३,३५८, ____-'महारेत्थ. ६५,२८८. जी० ३।४५४ ५५४,५६४ पहाविय [प्रधावित] ओ० ४६ पाड [पातम्] ---पाडेइ. रा० ७६५ पहिट्ठ [प्रहृष्ट] ओ० ५१ पाडंतिय [प्रात्यान्तिक] रा० ११७,२८१ पहिय [पथिक] रा० ७८७,७८८ पाडलि [पाटलि] ओ० ३०. जी० ३१२८३ पहियकित्ति [प्रथितकीति ] ओ०६५ पाडिसुय [प्रतिश्रुत] जी० ३।४४७ पहीण [प्रहीण] ओ०७२ पाडियक्क [प्रत्येक ] ओ० ५५,५८,६२,७० पहु [प्रभु] ओ० ११६. रा० ७६१ पाडिहारिय [प्रातिहारिक] ओ० १२०,१६२. पहेलिया [प्रहेलिका] ओ० १४६. रा०८०६ रा० ७०४,७०६,७११,७१३,७७६ पाई [पात्री] रा० २५८,२७६ पाडिहेर [प्रातिहार्य ] ओ० २ पाईण [प्राचीन] रा० १२४. जी० ३।५७७,६३६, पाण [पान] ओ० १४,११७,१२०,१४१,१४७, १०३६ १४६,१५०,१६२. रा०६७१,६८६,७०४, पाईणवात [प्राचीनवात ] जी० ११८१ ७१६,७५२,७६५,७७४,७७६,७८७,७८६, पाईणवाय [प्राचीनवात] जी० ३।६२६ ७६४,७६७,७६६,८०२,८०८,८१०,८११ पाउ [प्रादुस्] ओ० २२. रा० ७२३,७७७,७७८, पाण [प्राण] ओ० ८७,१६१,१६३. जी० ३११२७, ७८८ ६७५,१०२८,११३० पाउग्ग प्रायोग्य] रा०६६६ पाणक्खय [प्राणक्षय] जी० ३।६२६,६२८ पाउण [प्र+आप ].-पाउणइ. ओ०१८२. पाणत [प्राणत] जी० ३३१०७६,१०८८ -पाउणंति. ओ०६४...-पाउणिहिति. पाणय [प्राणत] ओ० ५१,१६२. जी० ३३१०३८, ओ० १४०. रा० ८१६ ।। १०५३,१०६६,१०६८ पाउणित्ता [प्राप्य ] ० ६४. रा० ८१६ पाण विहि [पानविधि] ओ० १४६. रा० ८०६ 1 पाउब्भव [प्रादुस्--भू-पाउन्भवति. पाणाइवाय प्राणातिपात] ओ०७१,७६,७७, रा० १६--पाउन्भह. रा०१३ ११७,१२१,१६१,१६३. रा० ६६३,७१७, -पाउभवित्था. ओ०४७ ७६६ Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८४ पाणाइवायवेरमण-पारिणामिया पाणाइवायवैरमण [प्राणातिपातविरमण] ओ० ७१ पायतल [पादतल] रा० २५४. जी० ३।४१५ पाणि [पाणि] ओ० १५,१६,३७,६३,६४,१४३. पायत्त [पादात] ओ० ६४ रा० १२,६६४,६७२,६७३,७५८,७५६,८०१. पायवाणियाहिवइ | पादातानीकाधिपति, पादात्यनीजी० ३३११८,५६२,५६६ काधिपति ] रा० १३,१६ पाणिलेहा | पाणिरेखा] ओ० १६. जी० ३।५९६, पायत्ताणियाहिवति पादातानीकाधिपति, ५६७ पादात्यनीकाधिपति ] रा० १४ पाणि य [पानीय] ओ० ४६ पायत्ताणीय [पादातानीक, पादात्यनीक] पाताल [पाताल जी० ३१७२६,७२८ ओ० ६४ पाती [पात्री] रा० १५१. जी० ३।३२४,३५५, पायत्ताणीयाहिवइ पादातानीकाधिपति, ४१६,४४५ पादात्यनीकाधिपति] रा० १५ पाद [पाद] रा० २८१,२८८. जी० ३१३११, पायत्ताय [प्रवृत्तक, पादान्तक] रा० १७३ ४०७,४१५,४४७,४५४ पायपीढ [पादपीठ] ओ० २१,५४. रा० ८,३७, पादचारविहारि [पादचारविहारिन् ] जी० ३.६१७ ५१,७१४. जी०३:३११ पादपीढ [पादपीठ] ओ० ६४ पायपुंछण पादप्रो छन] ओ० १२०,१६२. पादव [पादप] जी० ३३०३ रा० ६६८,७५२,७८६ पामिच्च [पामृत्य] ओ० १३४ पायबद्ध [पादबद्ध] रा० १७३. जी० ३।२८५ पामोक्ख [प्रमुख, प्रमुख्य] रा० ३५५,७८७,७८८. पायरास [प्रातराश] रा० ६८३ जी० ३१४१०,५२० पायव [पादप] ओ० ५,८,९,१२,१३. रा० ३,४, पाय [पात्र] ओ० ३३ १३३,८०४. जी० ३१२७४ पाय [पाद] ओ० १५,३७,५२,६३,६६,९०,१११ पादविहारचार [पादाविहारचार] ओ० ५२. से ११३,१३७,१३८,१४३. रा० १२,३७, रा०६८७ से ६८६,७०० २४५,६५६,६७२,६७३,७५८,७५६,८०१. पायवीढ [पादपीठ] ओ० १६ जी०३।११८,५५६ पायसीस [पादशीर्ष ] जी० ३।४०७ पायए [पातुम् ] ओ० १३४,१३५ पायसीसग [पादशीर्षक] रा० ३७,२४५. जी० ३।३११ पायंचणी [पादकाञ्चनी] जी० ३।५८७ पायाल [पाताल ] ओ० ४६. जी० ३१७२८, पायंत [प्रवृत्त, पादान्त] रा० ११५ पायंताय [प्रवृत्तक, पादान्तक] रा० २८१ पारंचियारिह [पारञ्चिताह ] ओ० ३६ पायच्छिण्णग [पादच्छिन्नक] रा० ७५१ पारग [पार ग] ओ०६७ पायच्छिण्णय [पादच्छिन्नक] रा० ७६७ पारगय [पारगत ] ओ० १६५।२० पायच्छित्त [प्रायश्चित्त ] ओ० २०,३८,३६,५२, पारगामि [पारगामिन् ] ओ० २६ ५३,७०. रा०६८३,६८५,६८७ से ६८६, पारम्भमाण [प्रारभमान] ओ० ११७ ६६२,७००,७१६,७२६,७५१,७५३,७६५, पारसी [पारती] ओ० ७०. रा० ८०४ ७६४,८०२,८०५ पारावय [पारापत] जी० ३१३८८ पायछिण्णग [पादछिन्नक] ओ०६० पारिजातकवण [पारिजातकवन] जी० ३१५८६ पायजाल [पादजाल ] जी० ३१५६३ पारिणामिया [पारिणामिकी] रा० ६७५ Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पारियाय- पासायवडेंसक पारिया [ पारिजात ] रा० ४५ पारिहेरग [ प्रातिहार्यक] जी० ३।५६३ पारी [ दे० पारी ] जी० ३।५८७ पारवय [ पारापत ] रा० २६. जी० ३।२७६. ५८३ / पाल [ पालय् ] - पालयाहि. ओ० ६८. जी० ३।४४८ – पालेंति. ओ० ६१--पाले हि रा० २८२ पालंब [प्रालम्व ] ओ० २१,५२,५४,६३,१०८, १३१. रा०८, २८५,६८७ से ६८६,७१४. जी० ३१५६३ पालग [ पालक ] ओ० ५१ पालित्ता [ पालयित्वा ] ओ० ६१ पालियाय [पारिजात ] रा० २७. जी० ३।२८० पालेमाण [ पालयत् ] ओ० ६८. रा० २८२,७६१. जी० ३१३५०, ४४८, ५६३,६३७ पाव [ पाप ] ओ० ७१,७६ से ८१,१२०,१६२. रा० ६७१,६६८, ७५२,७८६ पाव [ प्र + आप ] - पावइ ओ० १६५५१४ -- पाविज्जामि रा० ७५१ - पाविज्जिहिह. रा० ७५१ पावकम्म [ पापकर्मन् ] ओ० ८४,८५,८७,८८. रा० ७५०, ७५१ पावकम्मो एस [ पापकर्मोपदेश ] ओ० १३६ पावग [ पापक] ओ०७४/६ पावय [ पापक] ओ० ७१ पावयण [ प्रवचन ] ओ० २५,७२,७६ से ८ १, १२०,१६२,१६४. रा० ६६५, ६६८, ७५२, ७८ ६ पावसउण [ पापशकुन ] रा० ७०३ पास [ पार्श्व ] ओ० १६. रा० १३१ से १३८, २५६,८१७. जी० ३१३५८, ४१५, ५६६, ५६७, ७७५ पास [ पाश ] रा० ६६४. जी० ३।५६२ पास [ दृश् ] - पासइ ओ० ५४. रा० ७१४. जी० ३।११८ - पासंति. ओ० ५२. ६८५ रा० ७६५ जी० ३।१०७ पासति रा० ७. जी० ३।२०० - पाससि. ० ७७१- पासह. रा० ६३ – पासामि रा० ७६६ - पासिज्जा. रा० ७७६ - पासिज्जासि रा० ७५१. - पासेज्जा. जी० ३।११८ पासंत [पश्यत् ] रा० ७६४ पासग [ पाशक] ओ० १४६. रा० ८०६ पासग्गाह [पाशग्राह] ओ० ६४ पासण्या [दर्शन] रा० ७५० से ७५३ पासतो [ पार्श्वतस् ] ० ५५ पासपाणि [ पाशपाणि] रा० ६६४ पासमा [पश्यत् ] रा० ८१५ पासवण [ प्रस्रवण ] रा० ७६६ पासल [ पार्श्वशूल ] जी० ३।६२८ पासाइय [ प्रासादीय, प्रासादिक ] जी० ३।२८६ से २८८,२६० पासाई [ प्रासादीय, प्रासादिक ] ओ० ७२. रा० _२०,३७,१३०,१३३,१३६, २५७. जी० ३।२६६, ३०६,३११,४०७,४१०, ५८५,५६६, ५६७, ६७२,११२१ पासाण [ पाषाण ] रा० १७४. जी० ३।२८६ पासाद [ प्रासाद] जी० ३।७६२ पासादवडेंसग [ प्रासादावतंसक ] जी० ३।७६२ पासादीय [ प्रासादीय, प्रासादिक] ओ० १,७,८, १० से १३,१५,१६४. रा० १,१६,२१ से २३, ३२,३४,३६,३८,१२४, १३७, १४५,१५७, १७४,१७५,२२८,२३१,२३३, २४५,२४७, २४६, ६६८,६७०, ६७२,६७६,६७८, ७००, ७०२. जी० ३३२३२,२६१, २६६, २७६, ३००, ३०३, ३०७, ३८७, ३६३, ५८१, ५८४,६३६, ८५७,८६३,११२२ पासा [प्रासाद] रा० १४,७१०,७७४. जी० ३५६४,६०४ पासावडिय [ प्रासादावतंसक ] जी० ३।७७० पासायवडेंसक [ प्रासादावतंसक ] जी० ३।३६६, ३७० Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८६ पासायवडेंसग-पियंगु पासायवडेंसग [प्रसादावतंसक] रा० १३७,१८६, पिच्छज्य [पिच्छध्वज रा० १६२. जी० ३१३३५ २०५,२०७,२०८,७७४. जी० ३।३०७ से ३०६, पिच्छणघरग [प्रेक्षणगृहक ] रा० १८२,१८३ ३१४,३५५,३५९,३६४,३६७,३६६ से ३७३, पिच्छाघरमंडवप्रेक्षागहमण्डप] रा०३२,३३,६६ ६३४,६३६,६८६,६८६,६६२ से ६६८,७६२ पिट्टण [ पिट्टन] ओ० १६१,१६३ पासायवडेंसत [प्रासादावतंसक] रा० २०४ पिट्ठओ [पृष्ठतस् ] ओ० ६६. जी० ३,४१६ पासायवडेंसय [प्रासादावतंसक] रा० २०४ से पिळंतर [पृष्ठान्तर] रा० १२,७५८,७५६. जी. २०६. जी० ३।३५९,३६४,३६८ से ३७१, ३११८,५६८ ६६३,६७३,६८५,६८८,७३७ पिट्टतो [पृष्ठतस् ] रा० २५५,२८६,२६०. जी. पासावच्चिज्ज [पाश्र्वापत्य ] रा०६८६,६८७, ३।४५५,४५६ ६८६,७०६,७१३,७३३ पिट्ठपयणग [पिष्टपचनक] जी० ३७८ पासिं [पार्श्व] ओ० ६६. जी० ३।३०१ से ३०७, पिट्टिकरंडग [पृष्ठिकरण्डक] जी० ३।२१८,५६८ ३१५,३५५,४१७,६३६,७८८ से ७६०,८३६, पिडग [पिटक] जी०३।८३८।४ से ६ ८८६ पिडय [पिटक] जी० ३१८३८१३,५,६ पासित्तए [द्रष्टुम् ] रा० ७६५ पिणद्ध [पिनद्ध] ओ०१७,६३. रा०६९,७०, पासित्ता [दृष्ट्वा] ओ० ५२. रा० ८. जी० १३३,६६४,६८३. जी० ३१३०३,५६२ ३.११८ पिणद्धय [पिनद्धक] रा० ७६१ पासेत्ता दृष्ट्वा] रा०६८८ पिणय [पीनक] जी० ३१५८७ पाहुड [प्राभृत] रा०६८०,६८१,६८३,६८४, इपिणिद्ध [पि-+ नह ,पि+-नि-+धा]-पिणिद्धेइ. ६६६,७००,७०२,७०८,७०६ ० २८५. जी० ३,४५१.-~-पिणिद्धेति. रा० २८५. जी० ३।४५१ पाहणगभत्त [प्राघुणकभक्त] ओ० १३४ पिणिद्धत्तए [पिनद्धम् ] ओ० १०८ पाहुणिज्ज [प्राहवनीय ] ओ०२ पिणिद्धत्ता [पिनह्य] रा० २८५. जी० ३।४५१ पि [अपि] रा० १० पितिपिंडनिवेदण [पितृपिण्डनिवेदन ] जी० ३१६१४ पिअदंसण [प्रियदर्शन] ओ० ६३ पित्तजर [पित्तज्वर रा० ७६५ पिउ पित] ओ०१४. रा० ६७१,७७३ पिंगल पिङ्गल] ओ०६३ पित्तिय [पैत्तिक] ओ० ११७. रा० ७६६ पिंगलक्ख [पिङ्गलाक्ष] जी० ३।२७५ पिधाण [पिधान रा० १३१,१४७,१४८. जी. पिंगलक्खग [पिङ्गलाक्षक] ओ०६ पिबित्तए [पातुम् ] ओ० १११ पिछि [ पिच्छिन् ] ओ० ६४ पिय [प्रिय] ओ० १५,२०,५३,६८,११७,१४३. पिंजर [पिञ्जर] जी० ३१८७८ रा० ७१३,७५० से ७५३,७७४,७६६. जी० पिंडहलिद्दा [पिण्डहरिद्रा] जी० ११७३ १११३५; ३।१०६०,१०६६ पिडि [पिण्डि] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. जी० पिय पितृ] ओ० ७१. रा० ६७१. जी० ३१६११ ३१२६८,२७४ इपिय [पा]-पिज्जइ. रा० ७८४--पियइ. रा० पिडिम [पिण्डिम ] ओ० ७,८,१०. जी० ३।२७६ ७३२ पिडियग्गसिरय (पिण्डिताग्रशिरस्क] ओ० १६ पियंग [प्रियङ्ग] ओ० ६,१०. जी. ३१३८८, पिडियसिर [पिण्डितशिरस्] जी०३१५६६ ५८३ ३१४४६ Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पियतराय-पुंज ६८७ पियतराय [प्रियत रक] रा० २५ से ३१,४५. जी. २७६,२८१,१०,६५५,६८१,६८३,६६०, ३।२७८ से २८४,६०१ ६६५,७००,७०७,७१०,७१३,७१४,७१६, पियदंसण [प्रियदर्शन] रा० ६७२,६७३,८०१. ७१८,७२५,७२६,७७४,७७८. जी० ३।४४३, जी० ३१८०८ ४४५,४४७,५५५ पियय [प्रियक] ओ० ६,१० पीढ [पीठ] ओ० २७,१२०,१६२. रा०६६८, पियर [पितृ] रा० ८०२,८०३,८०५,८०८,८१० ७०४,७०६,७११,७१३,७५२,७७६,७८६ पियरक्खिया [पितृरक्षिता] ओ० ६२ पोढग्गाह [पीठग्राह] ओ०६४ पियाल [प्रियाल] जी० ३।३८८,५८३ पीढमद्द [ पीढमर्द] ओ० १८. रा० ७५४,७५६, पिरली [पिरली] जी० ३।५८८ ७६२,७६४ पिरिपिरिया/पिरिपिरिया] रा० ५१,७७ पीण [पीन] ओ० १६. रा० १३३. जी० ३.३०३, पिरिपिरियावायग [ पिरिपिरियावादक] रा० ७१ ५६६,५६७ पिव [इव] ओ० २७. रा० १७. जी० ३।४५१ पीण | पीनय् ] —पीणंति. जी० ३।४४७. पिवासा [पिपासा] ओ० ४६,११७. रा० ७६६. ___-पीणेति. रा० २८१ जी० ३३१०६,१२७,१२८,५६२,१११४ पीणणिज्ज [प्रीणणीय ] ओ० ६३ पिवासिय [पिपासित] रा० ७६०,७६१,७७४.. पोत [पीत] जी ० ३।५६५ जी० ३११८,११६ . पीतपाणि [पीतपाणि] रा० ६६४ पिसाय [ पिशाच] ओ० ४६. जी० ३।१७,२५२,२५३ पीय [पीत] रा० ६६४. जी० ३१५६२ पिसायकुमार [पिशाचकुमार] जी० ३१२५३ पीयकणवीर [पीतकणवीर] रा० २८, जी० ३१२८ पिसायकुमारराय [पिशाचकुमारराज | जी० पीयपाणि [पीतपाणि] जी० ३१५६२ ३१२५२ से २५६ पोयबंधुजीव [पीतबन्धुजीव ] रा० २८. पिसायकुमारिद [पिशाचकुमारेन्द्र ] जी० ३।२५३ ___जी० ३।२८१ से २५६ पीयासोय [पीताशोक] रा० २८. जी० ३।२८१ पिहडग | पिठरक] जी० ३१७८ पीलियग [पीडितक] ओ०६० इपिहा [पि+धा]-पिहावेमि. रा०७५४. पोलु [पीलु] जी० ११७१ -पिहेइ. रा० ७५५. --पिहेज्जा. रा०७७२ पोवर [पीवर] ओ० १६. रा० ६६,७०. पिहाण [पिधान] रा०२६०. जी० ३।३०१ जी० ३१५९६,५६७ पिहाणय [पिधानक ] रा० ७५४,७५६ पोह [स्पृह.] --पीहंति. ओ० २०.--पीहेइ. पिहमिजिया [दे० पिहुणमज्जा] रा० २६ - रा० ७१३.--पीहेति. रा० ७१३ पिहुल [पृथुल] ओ० १६. जी० ३।५६६,५६७ पुंछणीपुञ्छणी रा० १३०,१६०. जी० ३२६४. पोइगम [प्रीतिगम] ओ० ५१ ३०० पीइदाण [प्रीतिदान] ओ० २१,५४,१४७. रा० । पुंज [पुज] ओ० २,५५. रा० १२,३२,३८,१६०, ७१४,७७६,८०८ २२२,२५६,२८१,२६१,२६३ से २६६,३००, पीइमण [प्रीतिमनस्] ओ० २०,२१,५३,५४,५६,. .. ३०५,३१२,३५५. जी० ३।३१२,३३३,३७२, ६२,६३,७८,८०,८१. रा० ८,१०,१२ से १४, ३८१,४१७,४४७,४५७ से ४६२,४६५,४७०, १६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४,२७७, ४७७,५१६,५२०,५५४,५८०,५६०,५६१,८६४ Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८८ पुंड [ पुण्ड्रक ] जी० ३८७८ पुंडगी [पुण्डरीकणी ] जी० ३।६१५ पुंडरीय [ पुण्डरीक ] ओ० १२,१६,२१,५४. रा० ८,२७६,२६२. जी० ३।११८, ११६, ४५७, ५६६, ८२६ पुंड [ पुण्डरीद्रह ] जी० ३।४४५ क्खर [ पुष्कर ] ओ० १७० रा० २४,६५,१७१. जी ० ३।२१८,२७७, ३०६, ५७८,६७०, ७५५, ७७५,८१६,८१७,८२१ से ८२५, ८२७,८२६ से ८३१,८४८,८८३ पुवखरकष्णिया [पुष्करकणिका ] जी० ३३८६,२६० पुक्खरगय [ पुष्करगत ] ओ० १४६. रा० ८०६ क्खरणी [ पुष्करणी ] जी० ३।६०१,६१०,६११, १४ से १६ पुवखरत्थभग [ पुष्करस्थिभुक ] जी० ३।६५४ पुवखरत्यय [ पुष्करस्थिभुक ] जी० ३१६४३,६५४ पुषखरद्ध [ पुष्करार्ध ] जी० ३१८३१ से ८३४ खरपत्त [ पु'करपत्र ] ओ० २७. रा० ८१३ पुखरवर [ पुष्करवर ] जी० ३।७७४,७७५ दुक्खश्वर [ पुष्करवरग] जी० ३१७७४ खरिणी [ पु'करिणी] ओ० ६,६६. रा० १७४, ८१६,८२८ पुट्ठ [पुष्ट ] जी० ३१५६७ पुलाभिय [ पृष्टलाभिक ] ओ० ३४ पुट्ठि [ पुष्टि ] जी० ३।५६२ पुड [ पुट ] रा० ३०. जी० ३।२८३,१०७८ १७५,१८०,२३३,२३४,२७३,२८८,३१२,३१३, पुढवि [पृथिवी ] ओ० १८६,१६१ से १६५. ३५०, ३७६, ४३५, ४६६, ५५६, ६१६, ६५६. जी० ३।११८, ११६, २७५, २८६, ३६५, ३६६, ४१२, ४२५४३८, ४५४,४७७,५१५, ५२३, ५२६,५३७,५४४,५५१,५५६,६८३ से ६८६ पुषखरीद [ दुरोद ] जी० ३।४४५, ७७५,८२५, जी० ११६२,१२१ से १२५२।१००,१०८, १३०,१३५, १३८, १४८, १४९, ३।१६१, १६२, १६५, १६६,३०३,७७५, ६३७, ६७४ ५ २०,३३ पुढविकाइय [ पृथ्वीकायिक] जी० १।१२,१३,६२, १२८ २।१०२,१११.१३६,१३८, १४६ ; ३।१३१ से १३५, १८३, १८४,१९४.१६५; ५ १, २, ५, ८, १८ से २० ८१५; ६।१८२, १८४, २५६,२५७,२६२, २६३,२६६ ८४८ से ८५१,८५४ से ८५६,८५६, ८७६, ६४६, ४६६५७, ६६२, ६६४ पुढविकाल [ पृथ्वीकाल ] जी० ५। १७,२२,३०, ८३ ६ ७७, ८५.६६ पुढविक्काइय [ पृथ्वीकायिक ] जी० १२६७; २।१३६,१४६; ३।१२६,१३२ ५ १२,२०१ ८११,३ पुक्खरोदग [ पुष्करोदक ] जी० ३।४४५ क्खरोदय [ पुष्करोदक ] रा० २७६ पुग्गल परियट्ट [ पुद्गलरिवर्त ] जी० १११३६ √ पुच्छ [ प्रच्छ् ] - पुच्छइ. २० ७१६. - पुच्छति. रा० ७१३. - पुच्छसि रा० ७३७. - पुच्छिरसामो रा० १६ पुंग- पुढविकाइय पुच्छणा [ प्रच्छना ] ओ० ४३ पुच्छा [ पृच्छा ] ओ० १९० जी० १।६१; ३\४, १२,३५,४१,४३,८२,६६ से १०२, ११३ से ११५, १२५, १५५, १५६, १६२, १६३, १६६, १६८,१६६,१८७ से १६१, २३३,२३४, २४३, ७२२,७३६; ८२०,८३०, ८३४,८३७, ६५६, ६५७, ६५६, ६६०, ६६८, ६७८, ६७६, १०१११०४१, १०४४,१०४५,१०५२, १०५६, १०६२ से १०६४, १०६६, १०७४, १०८६,१११८, ११२६,११३२; ४१६ ; ५३१७ पुच्छितव्य [ प्रष्टव्य ] जी० ३।३६,७७ पुच्छिय [ पृष्ट ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२७८६ पुच्छिष्य [ प्रष्टव्य ] जी० ३।२४४ पुट्ट [ स्पृष्ट ] ओ० १६५ ६,१०. जी० १/४१; ३।२२,५७१,५७३,५७७,७१५,७१७,८०३, Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुढविसिलापट्ट पुरत्याभिमुह पुढविसिलापट्ट [ पृथ्वीशिलापट्टक] रा० १८५. जी० ३।२६७, ८५७, ८६२ पुढविसिलापट्ट [ पृथ्वीशिलापट्टक ] रा० ४ पुढवी [ पृथिवी ] रा० १२४,१३३, ७५५,७५७. जी० २।१२७, १४८, १४९, ३२ से ६, ११ से ३५,३७ से ४०,४२,४४ से ५७,५६ से ६६, ७३ से ८१,८३ से ६८,१०३,१०४,१०६ से ११२,११६,११७,१२०, १२७, १२८ १६५, १८५ से १६१,२३२,२५७,६००,६०१, १००३,१०३८,१०५७ से १०५६, १०६३, १०६५, १०६६,११११ ; ५।१७ पुढवीकाइयत [ पृथ्वी कायिकत्व ] जी० ३।१२८ ढक्कात्त [ पृथ्वी कायिकत्व ] जी० ३।११२८, ११३० पुढवीसिलापट्टग [ पृथ्वीशिल | पट्टक ] जी० ३।५७६ पुढवीसिलापट्ट [ पृथ्वीशिलापट्टक ] रा० १३ पुण [ पुनर् ] ओ० ५२. रा० ७५० जी० २।१५० √ पुण [I] - पुर्णिज्जइ. रा० ७८५ पुणम्भव [पुनर्भव] ओ० १६५ पुणो [ पुनर् ] ओ० ६३. जी० ३८३८|१४ पुण [पूर्ण ] रा० १७४,२८८,७६३. जी० ३ ११८, ११६,२८६,४५४,५८६,७८४,७८७, ८७८ पुण्ण [पुन्य] ओ० ७१.१२०,१६० रा० ६६८, ७५२,७५३,७७४, ७८६ पुण्णकलस [ पूर्णकलश ] ओ० ४८,६४. रा० ५० पुण्णप्पभ [ पूर्णप्रभ] जी० ३१८७८ पुण्यमाण [ पूर्णप्रमाण ] जी० ३।७८४,७८७ पुण्णभद्द [ पूर्णभद्र ] ओ० २,३,१६ से २२,५२,५३, ६५,६६,७० पुण्णमासिणी [पौर्णमासी, पूर्णमासी ] ओ० १२०, १६२. रा० ६६८,७५२,७८६. जी० ३।७२३, ७२६ पुण्णरता [ पूर्णरक्ता] ओ० ७१. रा० ६१ पुणा [ पुन्नाग] जी० १।७१ ६८६ पुत [पुत्र ] रा० ६७३, ७९१. जी० ३६११ पुत्ताणुपुत्तिय [ पौत्राणुपुत्रिक ] रा० ७७६ पुप्फ [पुष्प ] ओ० २, ६, १६, ४७, ५५,६७, ६२, ६४. रा० १२,१३, २६, ३२, १५६, १५७, २५८,२७९ से २८१,२६१,२६३ से २६६, ३००,३०५, ३१२,३५१,३५५,५६४,६५७, ६७०, ७७६. जी० १।७१ ३ १७१, २७५, २८२,३२६,३३०, ३७२, ४१६,४४५ से ४४८, ४५७ से ४६२, _४६५,४७०,४७७,५१६, ५२०, ५४७, ५५४, ५८०,५८१,५८६,५६१, ५६६, ५६७,६००, ६०२,८३८२, १५, ८४२८७२ पुप्फग [ पुष्पक] ओ० ५१ पुष्फचंगेरिया [ पुष्पचङ्गेरिका ] रा १२ पुप्फछज्जिया [ पुष्पछाधिका ] रा० १२ पुष्पदंत [ पुष्पदन्त ] जी० ३।८६३ पुप्फमंत [ पुष्पवत् ] ओ० ५८. जी० ३।२७४ पुप्फबद्दलय [ पुष्पवादलक] रा० १२ पुप्फासव [ पुष्पाराव ] जी० ३।८६० पुष्पाहार [ पुष्पाहार ] ओ० ६४ पुष्यि [ पुष्पित ] रा० ७८२ पुप्फुत्तर [ पुष्पोत्तर ] जी० ३।६०१ पुप्फोदय [ पुष्पोदक ] ओ० ६३ पुमत [ पुस्त्व ] ओ० १४१. रा० ७८६ पुर [ पुर] ओ० २३. रा० ६७४, ६६५, ७६०, ७६१ पुर [ पुरतस् ] ओ० १६,६४,६६,७०. रा० २०, १२४,१३६ से १६१, १७६, २११,२२१. जी० ३।३२७,३५६, ३७४, ३७६, ३८०, ३८५, ३६२,३६५, ४१६,८७,558 पुरओकाउं [ पुरस्कृत्य ] ओ० २५,१६४ पुरच्छिम [ पौरस्त्य ] जी० ३१३०० पुरतो | पुरतस् ] रा० ४ε से ५६,२१५,२३३, २५७,२५८,२६१,८०२. जी० ३।२८८,३१६ से ३२६, ३६३, ४५७, ६४१,८६३,८७,588, ६०१ पुरत्याभिमुह [ पुरस्तादभिमुख ] ओ० २१, ५४, Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६० ११७. रा० ४७,२७७, २८३, २८६,६५७,७३६, जी० ३१४४३, ४४६, ४५२, ५५७ पुरस्थिम [ पौरस्त्य ] रा० १६,४२,४४,१२६,१७०, २१०,२१२,२३५,२३६,२४२, ६५६. जी० ३।३००.३४०, ३४५, ३५१,३७३.३६७, ३६८, ४०४, ४४३, ४४६,५५६, ५६२, ५६८, ५७७,६३२, ६४७,६६१,६६६, ६६८,६७३, ६८२,६६४,६६७, ६६८, ७०८, ७१०, ७३६, ७३६,७६२,७६४,७६६,७६८ से ७७०,७७२, ७७३,७७७,७७६,८००,८१४,८२,८५१, ८०२,८८५६०२, ६३६, ६४४,१०१५, १०१६ पुरथिमिल्ल [ पौरस्त्य ] रा० ४७,५६,२७७, २८३,२८६,२८८,२६१.२६८, ३०३, ३०८, ३१६,३२४, ३२६,३३२ से ३४३ ३४७ से ३५१,३६५, ४१४,४५४,४७४,५१५,५३४, ५७५,५६४,६३५, ६५६,६५७,६६४. जो० ३।३३ से ३५,३७,२१६.२२२, २२३, २२७,४४३,४४५,४५२, ४५४, ४५७, ४६३, ४६८, ४७३,४८४,४८६,४६४४६७ से ५०८, ५१२ से ५१६,५२५, ५२६,५३१, ५३३, ५३६, ५४०,५४६,५४७,५५३,५५६,५५७,५७७, ६६८, ६७३, ६८६,६६२,६६३,७६८,७७०, ७७२,७७४,७७६, ७७८, ६१० पुरवर [ पुरवर] ओ० १६ जी० ३१५६६ पुरा | पुरा ] रा० १८५, १८७. जी० ३।२१७, २६७,२६८,३५८,५७६ पुरिमताल [ पुरिमताल ] ओ० ११५ पुरिस [पुरुष] ओ० १४,१६,१७,१६,५२,६३,६४, १५१८.०८२८,२६२,६७१,६८१ से ६०३,६८७ से ६६१७००,७०६,७१४ से _७१६,७३२,७३५,७३७, ७५१, ७५३ से ७५६, ७५८ से ७६२,७६४, ७६५, ७६८, ७६६,७७२, ७७४,७७५, ७८७, ७८८. जी०२:१,७५ से ५, ६० से ६३,६५,६६, ६८,१४१ से १५१; पुरत्थिम- पुव्व ३११२७१५, १४८, १४९, १६४, ४५७ पुरिसक्कार [ पुरुषकार ] ओ० ८६ से १५, ११४, ११७,१५५ १५७ से १६०,१६२,१६७ पुरिसपुंडरीय [ पुरुषपुण्डरीक ] ओ० १४. रा० ६७१ पुरिस लक्खण [ लक्षण ] ओ० १४६. रा० ८०६ पुरिसलिंग सिद्ध [ पुरुष लिङ्ग सिद्ध ] जी० ११८ पुरिसवग्ध [ पुरुषव्याघ्र ] ओ० १४. रा० ६७१ पुरिसवर [ पुरुषवर | ओ० १४. रा० ६७१ पुरिसवरगंधहत्थि [ पुरुषवरगन्धहस्तिन् ] ओ० १४, १६,२१,५४. ० ८,२६२,६७१ जी० ३।४५७ पुरिसवरपुंडरीय [ पुरुषवरपुण्डरीक] ओ० १६,२१, ५४. रा०८,२६२. जी० ३।४५७ पुरिसवेद | पुरुषवेद | जी० १ १३६ : २ ६७, ६८ १२३,१२७ पुरिसवेदग [ पुरुषवेदक ] जी० ६।१३० पुरिसवे | पुरुषवेद ] जी० ११२५ पुरिसवेग [ पुरुषवेदक ] जी० ६।१२१ पुरिससीह [ पुरुषसिंह ] ओ० १४, १६, २१, ५४. रा०८, २६२, ६७१. जी० ३।४५७ पुरिसासाविस [ पुरुषाशीविष] ओ० १४. रा० ६७१ पुरिसुत्तम [पुरुषोत्तम ] रा०८ पुरिसोत्तम | पुरुषोत्तम] ओ० १६,२१, ५२, ५४. रा० २६२. जी० ३४५७ पुरोवग [ पुरोपग] ओ० ६, १० पुलंपुल [ दे० ] ओ० ४६ पुलग [ पुलक ] ० ८२. रा० १०,१२,१८, ६५, १६५, २७६ पुलय [ पुलक ] जी० ३।७ पुलाकिमिय | पुलाकृमिक | जी० ११८४ पुलिंदी | पुलिन्दी | ओ० ७०. रा० ८०४ पुलिण | पुलिन ] रा० २४५. जी० ३।४०७ पुव्व | पूर्व ] ओ०७२, ११६, १५६, १६७, १८२. रा० ४०, १३२,१७३,६८५,७७२. Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुव्वंग-पेम ६६१ जी० ३।२६५,२८५,३५८,८४१,८८१,९८८, पुहत्तवियक्क [पृथक्ववितर्क ] ओ० ४३ ९८६ पूइकम्म [पूतिकर्मन् ओ० १३४ पुथ्वंग [पुर्वाङ्ग] जी० ३.८४१ पूइत्तए [पूजयितुम् ] ओ० १३६ पुवकोडि [पूर्व शोटि] जी० १६१०१, ११६,१२३, पूइय [पूजित] ओ० १४. रा० ६७१ १२४, २१२२,२४,२६ से ३४,४८ से ५०, ५३ पूइय पूतिक रा०६,१२. जी० २६२२ से ६१,८३,८४,१०६,११३,११४,११६.१२२ पूय [पूत ] ओ०६८ से १२४; ३।१६१,१६२,११३५; ६६; ७।१२; पूयण [पूजन] ओ० ५२. ० १६,६८७,६८९ ९।४१,१४२,१४४,१४६,१६२,२००,२०३, पूणिज्ज [पूजनीय] ओ० २. रा० २४०, २७६. २१२,२२५,२३८,२७३ जी० ३।४०२, ४४२ पुथ्वकोडिय [पूर्वकोटिक ] ओ० १८८ पूयफलिवण पूगफलीवन जी० ३१५८१ पुष्वक्कम [ पूर्वक्रम] जी० ३१८८० पूर [पूरय]---पूरेइ. ओ० १७४ पुब्वणत्थ | पूर्वन्यस्त रा० ४८. जी० ३१५५८ से पूरिम पूरिम, पूर्य] ओ० १०६,१३२. रा०२८५. ५६०,५६२ __ जी० ३।४५१,५६१ पुवपुरिस [पूर्वपुरुष] ओ० २ पूस पुष्य] जी० ३८३८१३२ पुष्वभणित | पूर्वभणित ] जी० ३।८८१ पूसमाण [पुष्यमाण] जी० ३१२७७ पुत्वभव पूर्वभव ] रा ० ६६७ पूसभाणय [पुष्यमानव ] ओ०६८ पुव्वरत्त [पूर्वरात्र] रा० १७३ पूसमाणव पुष्यमाणव रा० २४ पव्वविदेह [ पूर्व विदेह ] जी० २।२६,५६,६५,७०, पेच्च [प्रेत्य] ओ० ८८ ७२,८५,६६,११५ १२३,१३२,१३७,१३८, पेच्चभव [प्रेत्यभव ] ओ० ५२. रा० ६८७ १४७,१४६; ३।४४५,७६५ पेच्छणघरग [प्रेक्षणगृहक जी. ३।२६४ पुव्वाणुपुन्वी | पूर्वानुपूर्वी ] ओ० १६, २०,५२,५३. पेच्छणिज्ज प्रेक्षणीय | ओ० १. जी. ३।५६७ रा० ६८६, ६८७,७०६,७११, ७१३ पेच्छाघर [प्रेक्षागृह ] जी० ३१५६१,६०४ पुव्वाभिमुह । पूर्वाभिमुख ] रा०८ पेच्छाधरमंडव [प्रेक्षागृहमण्डप] रा० ३४,२१५, पुव्वावर | पूर्वापर रा० १६३,१६६. जी० ३।१७४, २१६,२२०.२२१,३०० से ३०४,३३१ से ३३५,३५५, ३५७,६५८,७२८,७३३,१००६, ३३५,३३८ से ३४२. जी० ३।३७६ ३७६, १०२३ ३८०,४१२,४६५ से ४६६,४८६ से ४६०, पुवि [ पूर्व ] ओ० ११७. रा० ६३, ६५, २७५, ५०३ से ५०७,८८६,८६३ २७६,७८१ से ७८७. जी०२।१५०, ३१४४१, । - पेच्छिज्जमाण [प्रेक्ष्यमाण] ओ०६६ ४४२ पेच्छित्तए प्रेक्षितुम् ] ओ० १०२,१२५ पहत्त [पृथक्त्व | जी० १११०३, १११,११२,११६, पेज्ज प्रेयम् ] ओ० ७१,११७,१६१,१६३. १२४,१२५,२।४८ से ५०, ५३,५४,५६,८२ रा० ७६६ से ८४,६२,६३,१२२ से १२५,१२८, ३१११०, पेज्जबंधण [प्रेय बंधन जी० ३१६११ १६७,११५५,१११६,११३५,११३७,४११५; पेज्जविवेग प्रेयोविवेक ] ओ०७१ पेढ पीढ] जी० ३१६६८ १२३,१२८,२१२,२१७,२२५,२३८,२४४, पेम प्रेमन् ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८,७५२, २७३,२८० ७८९ Page #769 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ पेम्म [प्रेमन् ] रा० ७५३ पेया [पेया ] रा० ७१,७७ पेयावाया [पेयावादक ] रा० ७१ पेरंत [ पर्यन्त ] ओ० १६२. जी० ३।२८५, ३००, ५६६,५६८,५६६,७०८,७११,६००,८१४, ८२५,८५१,६३६, ६४४ पेलव [ पेलव ] रा० २८५. जी० ३।४५१ पेस [ १ ] जी० ३।६१० पेसल [ पेशल ] जी० ३१८१६,८६० पेण | पैशुन्य ] ओ० ७१,११७,१६१,१६३. To ७६६ विवेग | पशुविवेक ] ओ० ७१ पेहुणमजा | दे० पेहुणमज्जा ] जी० ३।२८२ पोंडरीय [ पौण्डरीक ] ओ० १५० रा० २३,२६, १३७, १७४, ११७, २७६,२८८,८११. जी० २/२५६.२८२,२८६,२६१,३०७ पोग्गल [ पुद्गल ] ओ० १६६, १७० रा० १०, १२,१८,६५,२७६,७७१. जी० ११५, ५०, ६५, १३५; ३।५५,५६,८७,६२,६७, १०६, १२७, १२८,१२६३, १०, ४४५, ७२४, ७२७, ७८७, ६७४,६७६,६७७,६८२ से ६८५६८ से ६६७,१०८१,१०६०,१०६६ पोग्गल परियट्ट | पुद्गलपरिवर्त | जी० २६५,८८, १३२; ५६,२६; ६ २३, २६,३३,६६,७१, ७३,७८,१४६,१६४, १६५, १७८,२०२, २०४ V पोच्छल | प्र + उत् + शल् ] - पोच्छलेति. रा० २८१. जी० ३।४४७ पोट्टरोग | दे० ] जी० ३।६२८ पोतय | पोतज ] जी० ३।१४६ पोत्तिय | पोतिक ] ओ० ६४ पोत्तिया | दे० ] जी० १६ पोथयग्गाह | पुस्तकग्राह ] ० ६४ पोरण | पुस्तकरत्न ] २० २७०,२८७, २८८, ५६४. जी० ३।४३५, ४५३, ४५४,५४७ पो [पात] ०४६ पोयय [पोत ] जी० ३।१४७, १६१,१६३,१६४ पेम्म-फलय पोराण [ पुराण ] ओ० २. रा० ११,५६,१८५, १८७,६७८. जी० १ ५० ३।२१७, २६७, २६८, ३५८, ५७६ पोरेकव्व | पुर:काव्य ] ओ० १४६. रा० ८०६ पोरेवच्च [पौरपत्य, पौरोवृत्य ] ओ० ६८. रा० २०२. जी० ३।३५०,५६३,६३७ पोस [पोरा ] जी० ३३५६८ पोसह [पौषध ] ओ० १२०,१६२. रा० ६७१, ६६८, ७५२,७८७,७८६ पोसहसाला | पौधशाला ] रा० ७६६ पोसहोववास [पौषधीपवास ] ओ० ७७, १२०, १४०, १५७. ० ६७१,७५२,७८७, ७८६ (फ) V फंद | स्वन्द् ] -- फंदइ. रा० ७७१ - फंदति. जी० ३७२६ फंवंत [ स्पन्दमान ] रा० ७७१ फंदिय [स्पन्दि] रा० १७३. जी० ३।२८५,५८८ फणस [प] ओ० ६,१०. जी० ११७२; ३।५८२ फरसु [परशु ] रा० ७६५ फरिस [ स्पर्श ] ओ० १५,१६१, १६३. रा० २८५, ६७२,६८५,७१०,७५१,७७४. जी० ३।४५१, ५८६, ५६२ फरस [ ] ओ० ४०, ४६. रा० ७६५. जी० ३६६,११८ फल [ फल ] ओ० ६,७१,१३५. रा० १५१,२२८, २८१,६७०, ८१४. जी० १।७१,७२ ३ १७४, २७४,३२४,३८७,५८६,६००,६०२,६७२ फलग [ फलक ] ओ० ३७, १२०, १६२, १८०. रा० १६,१५३, १७५,१६०, २३५, २३६,२४०, ६६८, ७०४,७०६. जी० ३।२६४,२८७, ३२६, ३६७, ३६८,४०२,६०२ फलगगाह [ फलकवाह । ओ० ६४ फलमंत [ फलवत् ] ओ० ५,८. जी० ३।२७४ फलय | फलक ] रा० ७११,७१३,७५२, ७७६,७८६. जी० ३।३२६, ४०२ Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलवित्ति-बंधण फलवित्ति | कनवृत्ति ] जी० ३।२१७,२६७,२६८, फासमंत [स्पर्शवत् ] जी० १३३,३६ ३५८,५७६ फासिदिय [स्पर्शेन्द्रिय] ओ० ३७. जी० १२२; फलविवाग [ फलविपाक] ओ०७४।६. रा० १८५, ३९७६ १८७ फासुय | प्रासुक, स्पर्शक] ओ० ३७,१२०,१६२. फलहसेज्जा [ फल कशय्या ] ओ० १५४,१६५,१६६. रा०६६८,७५२,७७६,७८६ रा० ८१६ फिडिय [स्फिटित] ओ० २३ फलासव [फलासव | जी० ३।८६० फुफुअग्गि [दे०] जी० २१७४ फलाहार [फलाहार] ओ०६४ फुटमाण [स्फुटत् ] रा० ७१०,७७४ फलिय | फलित] रा० ७८२ फुट्टिज्जंत [स्फोटयमान] रा० ७७ फलिह | परिघ ] ओ० १,१६,१६२. रा० ६६८, फुड [स्पृष्ट] ओ० १६६,१७० ७५२,७८६. जी० ३३५६६ फुड [स्फुट] रा० ७७४ फलिह [स्फटिक ] रा० १०,१२,१८,६५,१६५,२७६. फुडिय [स्फुटित] जी० ३६६ जी० ३।७,४५१,८५४ फुल्ल [फुल्ल] ओ० २२. रा० १७४,७२३,७७७, फलिहरयण परिघरल ] रा० २४६,३५५. ७७८,७८८. जी० ३।११८,११६,२८६ ___ जी० ३१४१०,५२० फुल्लग [फुल्लक] जी० ३१५९३ फलिहा परिखा | ओ० १ फुल्लावलि [फुल्लावलि] रा० २४. जी० ३।२७७ फाणिय [फाणित] ओ०६३ ‘फुस [स्पृश्] - फुसइ. ओ० ७१.-फुसंतु. फालिय स्फाटिक) ओ० १५४,१७४. ओ० ११७. रा० ७६६ __जी० ३१२८६,३२७ फुसित्ता [स्पृष्ट्वा] ओ० १६६ फालिय पाटित, स्फाटित रा० ७६४७६५ फुसिय [स्पृष्ट] रा० ६,१२,२८१. जी० ३।४४६ फालियग [पाटिनक, स्फाटितक ओ० ६० फूमिज्जंत [फूत्क्रियमान ] रा० ७७ फालियमय स्फटिकमय जी० ३.७४७ ० १६,४६,४७. रा० ३८,१३०, फालियामय [स्फटिकमय] आ० १६. रा० २५४. १६०,२२२,२५६. जी० ३।३००,३१२,३३३, जी ३४१५,८५७,६११,१००८ ३८१,४१७,५९६,८६४ फास [स्पर्श ओ० १३,२७,४७,५१,७२,१६६, फेणक [फेनक] रा०६६ १७०. रा० ३१,३३,३७,४५,६५,१७२,१८५, फोडेमाण स्फोटयत् ] ओ० ५२. रा०६८८ १६६,२०३,२३७,२४५,८१३. जी. ११५,३६, ५०,५८,७३,७८,८१, ३१५८,८५,८७,६६, बउसिया [बकुशिका रा०८०४ बिशिकाग बंध [बन्ध | ओ० ४६,७१,१२०,१६१ से १६३. ३११,३३६, ३६४,३७६,३६६,४०७,४१२, ०६९८,७५२,७८९ ४२१,५७८,६०१,६०२,६४५,६४८,६५६, बंध [बन्ध] ---बंध इ. अ० ८६. रा० ७६५. ६७०,७२४,७२७,७५७,८६०,८६६,८७२,८७८, ---बंधति. रा० ७७४......बंधति रा०७५. १७२,९८१,६८२,१०७६,१०८१,१०६८, -बंधाहि. रा० ७७४ १११७,१११८,११२४,११२५ बंधठिति गन्धस्थिति] जी० २१७५,६७,१३६,१५१ फासओ [स्पर्शतम् ] जी० ११४०,५० बंधण [बन्धन ] ओ०१३,४६,१७१,१६।२१. फासतो [स्पर्शतस् ] जी० ३।२२ रा० ७५४,७५६,७६४,७७४ Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६४ बंधित्तए-बहिया बंधित्तए । बद्धम् ] रा० ७७४ बलदेव बलदेव ओ०७१. जी. ३१७६५,८४१ बंधित्ता [ बद्ध्वा] रा० ७५ बलव बलवत् ] ओ० १४. रा० १२,६७१,७५८, बंधुजीवगगुम्भ [बन्धुजीवकगुल्म जी० ३।५८० ७५६. ३।११८,११६ बंभ ब्रहान् ओ० २५.५१,१६२. २०६८६. बलवाउय बलामृत ओ० ५५ से६३ जी० ३।१०४६,१०६६,१०८८,१०६४,१११० बलसंपण्ण ल 'म्पन्न | ओ० २५. रा० ६८६ बंभचेर बहाचर्य ] जी. ३६EE बलागा | बजाका रा० २६ बंभचेरवास | ब्रह्मचर्यवा] ओ० १५४,१६५,१६६. बलाया बल का | जी० ३१२८२ ___ रा० ८१६ बलाभिओग [बलाभियोग] ओ० १०१,१२४ बंभण्णय ब्राह्मण्यक] ओ०६७ बलाहक बला क] जी० ३१७८५,७८६,८४१ बंभदत्त [ बहादत्त जी० ३।११७ बलाय [बलाहक ] 21० २६. जी० ३।२८२ बंभलोग ब्रह्मलोक जी० ३११०७६ बलि [बलि! जी० ३।२४० से २४३ बंभलोय [ब्रह्मलोक ] ओ० ११०,११७,१४०. बलिकम्म [बलि कर्मन् ओ० २०,५२,५३,७०. जी० २।१४८,१४६; ३११०३८,१०५६,११०२ रा०६८३,६८५,६८७ से ६८६,६६२,७००, Vबज्झ बन्ध ---बज्झती. ओ०७४|४ ७१०,७१६,७२६,७५१,७५३,७६५,७७४, बत्तीस | द्वात्रिंशत् ] ओ० ३३. रा० १२४. ७६४,८०२,८०५ जी० ३१५ बलिपीढ बलिपीठ] रा० २७२,२७३,६५४. जी० बत्तीसगुण [द्वात्रिंशद्गुण] जी० २।१५१ ३४३७,४३८,५५४,५५६ बत्तीसइबद्ध [द्वात्रिंशद्बद्ध] रा० ७३,११८ बलिविसज्जण | बलिविसर्जन] रा० ६५४. जी. ३३५५६ बत्तीसइबद्धय [द्वात्रिंशद्बद्धक] रा० ७१०,७७४ बत्तीसतिबद्ध [द्वात्रिंशद्बद्ध] रा०६३,६५ बल्लकी । बल्लका । रा० ७७ बहली बालो ओ० ७०. रा० ८०४ बत्तीसिया [द्वात्रिशिका | रा० ७७२ बहब बहु] अं० १२,१७,२३,४७ से ५२. रा० बद्ध बद्ध आ० ५.८,५७. रा० १३२,२३५,६६४, १६,१७,२२,२३,५४,५५,७१ से ७५,७६ से ६८३,७५४,७५६,७६४,७७१,७७४. ८१,८३,११२ से ११८,१३२,१५३,१६७,१६८, जी० ३।२२,१७४,२७४,३०२,३२६,३६७,५६२ १७८ से १८०,१८२,१८४,१८५,१८७,१९२ बद्धग | बद्धक] रा० ७७ से १६४,१६६,२३५,२३६,२४०,२४६,२८०, बद्धीसा बध्वीसा] रा० ७७ २८२, २८६, ६८७ से ६८६.६६५,७०३, बफ बाष्प] जी० ३१५६२ ७०४. जी० ३८७,२१७,३४८,३५८, ३५६, बब्बरिया बर्बरिका] रा० ८०४ ३६७,३६७,३६८,४०२,४१०,४११,४२०, बब्बरी ! बर्बरी | ओ० ७० ४४६,४४८,४५५,४५६,५७६ से ५८३ ५८६ से बरहिण बनि ओ० ६. जी० ३।२७४ ५६५,६४०,७०२,७२४,७२६,७२७,७२६, बल [बल] आ०२३,६७,७१,८४ से ६६,११४, ७८५ ते ७८७,८०७,८२६,८४१,८५७,६०२, ११७,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. ६१७,१०३०,१०३६,१०८१ ग० १२,१३,६१,६५७,६७४,६६५,७५८,७५६, बहिब रा० १३०. जी० ३।३०० ७८७,७८ १,७६०,७६१ जी० ३।११८,४४६, बहिया बहिस्,बहिस्तात् ] ०२. रा०२. जी० ५८६,५६२ ३८३८१ Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहु-बाणउत बहु [ब] ओ० १४,२३,५२, ६३,६४,६८,७०,६१, ६२,६४,११४,११७, १४०, १४१, १५४, १५५, १५७ से १६०,१६२,१६५, १६६, १६५. रा० ७. १५,५१,५६,५८,१२४, १७४, १८१, १८३, १६५, २४०,२७६,२८२,२६१,६५७,६७१,६७५, ६८३,६८,७१८, ७५२, ७७४, ७८७ से ७८६ ७६६,८०३,८०४, १६. जी० ३।१११, ११८, ११६,२५६, २६६,२८६,२३, २६५,३८८, ३६०, ४०२, ४४२, ४४८, ४५७, ५५७,५६३, ५६६,५८४ से ५६५, ६३७, ६५६, ७२१, ७३८, ७४३,७५०,७६०,७६३, ८५७,८६३, ८६६, ८७५,६०१, ६१७, ६६५, १०२५, १०३८ बहुउदग [ बहूदक ] ओ० ६६ बहुगुणतर [ बहुगुणतर] रा० ७१८ बहुजण | बहुजन ] ० २,१४,५२, ११८, १४९. रा० ६७१, ६७५,६८७ बहुतरक | बहुतरक ] जी० ३।१०१ बहुतरग [ बहुतरक | जी० ३।६६,११३,११४ बदोस [ बहुदोष ] ओ० ४३ बहुप | बहुप्रतिपूर्ण | ओ० १४३. रा० १५१, १५२,८०१. जी० ३।३२४, ३२५ बहुपुरिसपरंपरागय [ बहुपुरुषपरम्परागत ] रा० ७७३ बहुप्पकार [बहुप्रकार ] जी० ३१५६५ बहुपगार [ बहुप्रकार ] जी० ३३५८६ से ५८८, ५.६३ बहुपसन्न [ बहुप्रसन्न ] ओ० १११ से ११३, १३७,१३८ बहुबीय | बहुबीज ] जी० १७०, ७२ बहुवीय [ बहुबीजक ] जी० ११७२ बहुमज्झ [ बहुमध्य ] ओ० ८,१६२. रा० ३,३२, ३५,३६,३६,६६, १२५, १६४,१८६.१८८, २०४, २१७.२१८,२२७,२३८,२५२,२६१, २६३, २६५,३००, ३२१,३२६,३३३,३३८,३५६, ४१५,४७६,५३६,५६६,७३५, ७७२. जी० ३।२६३, ३१०, ३१३,३१८,३३८,३५६, ३५६, ३६१,३६४,३६५, ३६८, ३६६, ३७७, ३८६, ४००,४१३,४२२,४२७, ४६०, ४६५, ४८६, ४६१, ४६८,५०३,५२१, ५२७, ५३५, ५४२,५४६, ५५४,६३४,६३६,६४२, ६४६, ६४९,६६३, ६६८,६७१ से ६७३, ६७६,६८५, ६६१,७३७, ७५६, ७५८, ७६२,८३१,८८२, ८८४,८८७, ८६१,६०६,६११,६१३,६१८, १०३६ बहुम [ बहुमत ] ओ० ११७. रा० ७५० से ७५३, ७६६ हुमाण [ बहुमान ] ओ० १४,४०. रा० ६७१ बहु [ बहु] ओ० १७१. रा० १९७. बहुर बहु ६६५ जी० ११७२, १४३, २०६५ से ७२,६५,६६, १३४ से १३८, १४१ से १४६ ३ | ४०२, ५७६, १०२५,१०३७,१०३८, ४१६, २२, २५ ५।१६, २०,२६,२७,३२ से ३६, ५२, ५६, ६०, ७२०, २२,२३; ६१७,१४,५५,२५० से २५३,२५५, २८६ से २६७ [बहुरत ] ओ० १६० [ बहुल ] ओ० १,७,८,१०,४६,४६. रा० ६७१. जी० ३।११८,११६,२३६,२७५, २७६ बहुविह [ बहुविध ] ओ० १६५।१६ बहुसम [ बहुसम ] रा० २४, ३२, ३३,३५,६५,६६, १२४,१७१,१८६ से १८८, २०३, २०४,२१७, २३७,२३८,२६१. जी० ३।२१८, २५७, २७७, ३०, ३१०,३३६, ३५६ से ३६१,३६४, ३६५, ३६८, ३६६, ३७२,३६६, ४००, ४२२,४२७, ५८०,६२३,६३३,६३४,६४५,६४६,६४८, ६४६, ६५६, ६६२,६६३,६७०,६७१,६७३, ६६०,६ε१,७३७,७५५ से ७५८, ७६८,८८३, ८८४८०, ६०५, ६०६, १२, १३, १००३, १०३८, १०३६ बाण [] ० ३६. जी० ३।२७६ बाणउति [ द्वावति] जी० ३३८१५ Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६६ बाणगुम्म [ बाणगुल्म ] जी० ३.५८० बादर [बादर ] जी० ३३८४१; ५।२६ से ३१,३५, ५१,५२, ५८ से ६० बादरआउकाइय [बादरअप्कायिक ] जी० ५।२८ बादरणिओत [ बादरनिगोद ] जी० ५२६ बादरणिओव [ बादरनिगोद | जी० ५२८ से ३०, ४०, ४७ से ४६,५२ बावरणिओवजीव [ बादरनिगोदजीव ] जी० ५।५३. ५५, ५८ से ६० बादरतेकाइ [ बादरतेजस्कायिक ] जी० ११७८, ७६ ५।२८ बादरपत्तेयवणस्स तिकाइय [ बादरप्रत्येक वनस्पतिकायिक ] जी० ५।२६ बादरपुढवि [ बादरपृथ्वी ] जी० ५।२६ बावरपुढ विकाइ [बादर पृथ्वी कार्यिक ] जी० ११५८३।१३२, १३४, ५२,३, २८ से ३० बादरनियोव | बादरनिगोद ] जी० ५५४० बादरतसकाइय [बादरत्रसकायिक | जी० ५२८ से बायरपुढवि | बादरपृथ्वी ] जी० ५।३१,३३,३५,३६ बायरपुढ विकाइ [ बादर पृथ्वीकायिक ] _३०,३३,३५ जी० १११३, ५७, ६५, ७४ ५३१, ३३, ३४,३६ बारपुढविक्काइ [बादरपृथ्वी कायिक ] जी० १२५७, ५८, ६२ बादरवणस्सइकाइय [वादरवनस्पतिकायिक ] जी ० ५।३० बादरवणस्सति [ बादरवनस्पति ] जी० ५।२६ बादरवणतिकाय [बादरवनस्पतिकायिक ] जी ० ५।२८ से ३१ बादरवाउ [ बादरवायु ] जी० ५।२६ बादरवाकाइय [बादरवायुकायिक ] जी० २८, ३० araratक्काय [बादरवायुकायिक ] जी० ११८१ बार [ बादर ] जी० १४४ ३१८४१ ५ २८, २६, ३१ से ३६, ६५, ६७,६६, १०० बायरआउकाइय [ बादरअप्कायिक ] जी० ५२८ बायरआउक्काइय [बादरअपकायिक ] जी० १४६३,६५ erry - बाल दिवाकर बायरकाल [ बादरकाल ] जी० ६६६ बायरणिओद [ बादरनिगोद ] जी० ५।३८ वायरणिओय [बाद निगोद ] जी० ५।३१,३३,३५, ३६ बायरसकाइय [ बादरत्रसकायिक ] जी० ५।३१ से ३४,३६ बायर उक्काइय [ बादरतेजस्कायिक ] जी० ५।३१,३३,३४ बायर उक्काइ [ बादरतेजस्कायिक ] जी० ११७६, ५।३३, ३४, ३६ बायरवणस्स इकाइय [ बादरवनस्पतिकायिक ] जी० १४६६,६८, ६९, ७२ से ७४ ५।३३, ३४, ३६ बायरवणस्पतिकाइय | बादरवनस्पतिकायिक ] जी० ५।३१, ३३ से ३६ बायरवाजकाइय [बादरवाबुकायिक ] जी० ५॥३४ बायरवाक्काय | बादरवायुकायिक ] जी० ११८०, ८२ बाया [द्वाचत्वारिंशत् ] जी० ३ । १०२२ बयालीस | द्वत्वारिंशत् ] ओ० १६२. जी० १।११२ बारस [ द्वादशन् ] ओ० ६० रा० ४३. जी० ११८६ बारसभत्त [ द्वादशभक्त | ओ० ३२ बारसम [ द्वादश ] रा० ८०२ बारसाह [ द्वादशाह ] ओ० १४४ बाल [बाल ] रा० २७,३१,७५८,७५६. जी० ३३२५०,२८४, ६६० से ६६७ बालतवोकम्म [ बालतपः कर्मन् ] ओ० ७३ बालदिवाकर [ बालदिवाकर ] रा० २७. जी० ३।२८० Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालभाव-बुक्कार ६९७ बालभाव [बालभाव ] रा० ८०६,८१० बाहिरिया [बाहिरिका] ओ० १८,२०,५३,५५, बालविहवा [बालविधवा] ओ० ६२ ५८,६० से ६३ रा०६८३,६८५,७०८,७५४, बालिय [बाल] रा० ४५ ७५६,७६२,७६४ बावट्ठ [द्वाषष्टि] जी० ३।३२ बाहिरिल्ल [बाह्य ] जी० ३।७२३,१००७ बावट्टि [द्वाषष्टि] रा० २०६. जी० ३.६१ बाहु [बाहु] ओ० १६. रा० १२,७५८,७५६. बावण्ण [द्विपञ्चाशत् ] जी० ३३६५ जी० ३।११८,५९६ बावत्तर द्विासप्तति] जी० ३.६३२ बाहुजुद्ध [बाहुशुद्ध] ओ० १४६. रा० ८०६ बावत्तरि [द्वास प्नति रा० २०६. जी० ११११६ बाहुजोहि [ बाहुबोधिन् ] ओ० १४८,१४६. बावन्न [ द्विपञ्चाशत् ] ओ० १२६ रा० ८०६,८१० बावीस [द्वाविंशति] ओ० १५४. रा० ८१६. बाहुप्पमद्दि [बाहुप्रमदिन् ] ओ० १४८,१४६. जी० ११५६ रा० ८०६,८१० बिइय[द्वितीय] ओ० ४७,१७६,१८२. बाहल्ल [बाहल्य] ओ० १६२. रा० ३६,१३७. जी० ३।२२६ १८८,२१८,२२१,२२४,२३०,२३८,२४२, बिट [वृन्त] रा० २२८ २४४,२४६,२५२,२६१,२७२. जी० ३.५,१४ बिदिय [ द्वीन्द्रिय ] ओ० १८२ से २७,३६ से ४७,५२,७३ से ७५,७७,८०, बिदु [बिन्दु] ओ० २३ १२४,१२५,१२७,२३२,२५७,३०७,३१०, बिबफल [बिम्बफल] ओ० १६,४७. जी० ३।५९६ ३५५,३६१,३६५.३७७,३८०,३८३,३८५, बिहणिज्ज [बृहणीय] जी० ३।६०२,८६०,८६६, ३६२,४००,४०४,४०६,४०८,४१३,४२२, ८७२,८७८ ४२७,४३७,६३४,६४२,६४४,६४६.६५३, बिब्बोयण [दे०] रा० २४५. जी० ३।४०७ ६५५,६६८,६७१,७२४,७२५,७२७,७२८, बिलपंतिया [ बिलपंक्तिका] रा० १७४,१७५,१८०. ७५८,८६१,८६३,८६५,८६७,८६६,६०६, जी० ३१२८६,२८७,२६२,५७६,६३७,७३८, १००६,१०१० से १०१४,१०६५,१०६६ ७४३,७६३,८५७,८६३ बाहा बाहु] ओ० ११६. जी०३।३५४,४१५ बिसालग | द्विशालक] जी० ३१५६४ बाहिं [बहिस्] रा० ७७२. जी० ३१७७ बीभच्छ [बीभत्स ] जी० ३।८४ बाहिर बाह्य ] ओ० ६. रा० ४३. जी० ३१७८, बीय [बीज] ओ० १३५,१८४ २३६,२७५,६४३.६८१,७६८,७६९,७७५, बीय [ द्वितीय ] ओ० १७४ ८३१,८३८।१२,८४५,१०५५ बोयग [बीयक] जी० ३।२८१ बाहिरग [बाहिरक, बाक] जी० ३१७८४,७८७ बीयगुम्म [बीजगुल्म] जी० ३।५८० बाहिरय [बाहिरकः, बाह्यक ] ० ३०,३१,३७. बीयबद्धि बीजबद्धि] ओ० २४ जी० ३१६५८,७८२,७८६,७८७.६६० से १६७ बीयमंतबीजवत् ] ओ० ५,८. जी० ३१२७४ बाहिरिय [बाहिरिक, बाह्यक] रा० ६६२. बीयय [बीयक] रा० २८ जी ० ३।२३५ से २३६,२४१ से २४३,२४६, बीयासत्तराई दिया [ द्वितीयसप्तरात्रिदिवा] ओ० २' २४७,२४६,२५०,२५४ से २५६,२५८,३४३, बीयाहर [बीजाहर] ओ० ६४ ४४७,५६०,७३३,८४२,१०४० से १०४२. बुक्कार दि०]--बुक्कारेति. रा०२८१. १०४४,१०४६,१०४७,१०४६ से १०५३ जी० ३।४४७ Page #775 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ बुज्झ-भंत २६२,७७७,७७८,७८८. जी० ३।४५७ बोहि [बोधि] ओ० १५१. रा०८१२ बोहिदय [बोधि दय] रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ बोहिय [बोधित] ओ० १६ बुज्झ [दे०]-- बुज्झइ. ओ० १७७.-बुझंति. ओ० ७२. जी० १११३३.--बुझिहिंति. ओ० १६६.---बुज्झिहिति. ओ० १५४. रा० ८१२ -बुज्झ [बुध्] -बुज्झिहिति. ओ० १५१ बुज्झिहित्ता [बुद्ध्वा] ओ० १५१ बुद्ध [ बुद्ध] ओ० १६,२१,५४.१९५।२०. रा०८, २६२. जी०३१४५७ बुद्धबोहियसिद्ध [बुद्धबोधितसिद्ध] जी० २८ बुद्धि [बुद्धि] रा० ६७५ बुब्बुय [बुबुद] ओ० २३ बुह | बुध] ओ० ५० /बू [ब्र]--बूया. रा० ७३२ बर [बर] ओ० १३. रा०७३२. जी० ३।२८४, २६७,३११,४०७ बेइंदिय [द्वीन्द्रिय] जी० ११८३,८४,८७,८८, १२८, २११०१,१०३,११२,१२१,१३१,१३६, १३८.१४६,१४६; ३३१३०,१३६,१६६ ४११,४,८,१२,१६,२०,२१,२३,२५; ८।१, ३,५; 8॥१,३,५,७,२६४ बॅट [वन्त] जी० ३११७४ बेंटट्ठाइ [वृन्तस्थायिन् ] रा० ६,१२ बंदिय [वीन्द्रिय ] जी० ४।१७, ६।१६७,१६६, २२१,२२३,२६४ बेयाहिय [द्वयाहिक] जी० ३।६२८ बेलंव [बेलम्ब] जी० ३।७२४ बेला बेला] जी० ३।७३३ बोंड [दे०] जी० ३।५६६ बोंदि [दे० ओ० ४७,७२,१६५।१,२. रा० ७७२ बोद्धव्व बोद्धव्य] ओ० १६५॥५,६. ____जी० ३।१२६।१० बोधव्व [बोद्धव्य] जी० ११६६ बोधिय [बोधित] जी० ३।५६६,५६७ बोल [दे ०] ओ ० ४६,४६,५२. रा० १५,६८७, ६८८. जी०३।६२७,८४२,८४५ बोय [बोधक] ओ० १६,२१,२२,५४. रा० ८, भइ [भृति ] रा० ७८७,७८८ भइणी [ भगिनी] जी० ३।६११ भइय [ भक्त्र] ओ० १६५।१५ भइय [भृतिक] रा० १२ भंगुर [भङ्गुर ओ० १६. जी० ३१५६६,५६७ भंजिज्जमाण [भज्यमान] रा० ३० भंड [भाण्ड] ओ० ४६,११७. रा० ३०,१५२, २६६,२६८,२८४,४७५,५३५,७७४,७६६. जी० ३१२८३,३२५,४२६,४३२,४५०,५३४, ५४१,११२८,११३० भंग [दे०] ओ० ५६ भंख्यिालिछ [भण्डिकालिञ्छ] जी० ३।११८ भंत [भदन्त ] ओ०६६,७६,८४ से ६५,११४, ११७,११८,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७, १६६ से १७२,१७४,१७५,१७७,१८१,१८४ से १६२. रा० १०,५८,६२,६३,६५,१२१ से १२४,१७३,१९७ से २००,६६५ से ६६७, ६६५,७००,७०२ से ७०४,७१८,७२०,७३६, ७३८,७४७,७४८,७५० से ७५४,७५६,७५८ से ७६१,७६२,७६४ से ७६७,७७०,७७२ से ७७५,७७७,७८२ से ७८५,७८७,७९८,८१७. जी० ११५ से ३३,४१ से ४६,५१ से ५४, ५६,५६ से ६२,६४,७४,७६,८२,८५ से ८७, १०,१३ से ४६,१०१,११६,१२७,१२८,१३० से १३४,१३७ से १४३,२।२० से २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,४८,४६,५४,५७ से ६३,६६,६८ से ७४,७६,८२ से ८४,८६.८८, ६२,६५ से ६८,१०७ से १०६,१११,११३, ११४,११६ से ११६,१२२ से १२६,१३३ से १५० ३३ से ६,११ से २०,२४ से ३५,३७ Page #776 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंतसंभंत-भति से ३६,४२,४४ से ६६,७३ से १८,१०३ से ११०,११२,११६,११८ से १२८,१४७,१५० से १६२,१६५,१६७,१६६ से १८३,१८५,१८६, १६२ से २११,२१४,२१७ से २२३,२२७, २३२ से २४२,२४४ से २४६,२४८ से २५६, २६६ से २७२,२८३ से २८५,२६६,३००, ३५०,३५१,५६४ से ५७८,५६६,५६७,५९६ से ६३२,६३७ से ६३६,६५६,६६०,६६४,६६६ से ६६८,७००,७०१,७०३,७०५ से ७११, ७१३ से ७२३,७३० से ७३६,७३८,७४० से। ७४३,७४५,७४६,७४८ से ७५०,७५४,७६० ।। से ७६६,७६८ से ७७०,७७२,७७६ से ७७८, ७८१ से ७६५,७६७ से ८००,८०२ से ८०४, ८०८,८०६,८११ से ८१६,८१८ से ८२०, ८२३ से ८२५,८२७,८२६,८३०,८३२ से ८३७,८३६८४०,८४२ से ८४७,८४६,८५०, ८५४,८५५,८५७,८६०,८६३,८६६,८६६, ८७२,८७५,८७८ से ८८१,९३६,६४०,६४४, ९५३ से ६५५,६५८,६६१,६१३ से ६६६, ६६६,६७२ से १७७,६८२ से ६८४,६८८ से १००८,१०१०,१०१५,१०१७,१०२० से १०२७,१०३७ से १०४४,१०५४,१०५६, १०५६,१०६२,१०६३,१०६७,१०६६,१०७१, १०७३,१०७५,१०७७ से १०८३,१०८५, १०८७,१०८६ से १०६३,१०६५,१०६७ से १०६६,११०१,११०५,११०७,११०६ से १११२,१११४,१११५,१११७,१११६,११२१, ११२२,११२४,११२८,११३०,११३१,११३३ से ११३८; ४३,७ से ११,१३,१६,२२,२३, २५; ५।५,८,१०,१२ से १६,१६ से २४,२६ से ३०,३२ से ३५,३७ से ३६,४१ से ५०,५२ से ५६.५८ से ६०; ६१८७२,६,२०; ६।२,७, १० से १४,१६,२३ से २६,३१,३३,३६,४१ से ४८,५२,५५,५७ से ५६,६४,६८,७६ से ७६,८६,६०,६६,६७,१०२,१०३,११४,११५, १२२,१३२,१४२,१६० से १६३,१७१,१८६ से १६३,१६५,१९८ से २०७,२१० से २१२, २१४ से २१६,२२२ से २२५,२२७ से २३०, २३३ से २३८,२४० से २४४,२४६,२४६ से २५३,२५५,२५७ से २६३,२६५,२६८ से २७३,२७५ से २८२.२८४ से २६३ भंतसंभंत [भ्रान्तसंभ्रान्त ] रा० १११,२८१. जी०३१४४७ भंभा दे० भम्भा] रा० ७७. जी. ३१५८८ भंसेउकाम त्रंशयितुकाम रा० ७३७ भगंदल [भगन्दर | जी० ३।६२८ भगव [भगवत् ] ओ० १६,१७,१६ से २५,२७४७ से ५५,६२.६६ से ७१,७८ से ८३,११७. रा०८ से १३,१५,५६,५८ से ६५,६८,७३,७४, ७६,८१,८३,११३,११८,१२०,१२१,६६८, ७१४,७६६.८१४,८१५,८१७ भगवई [भगवती] रा० ८१७ भगवंत [भगवत् ] ओ० १६,२१,२३,२६ से ३०, ५१,५२,५४,११७,१५२,१६५,१६५. रा०८, ६,११,५६,२६२,६८७,७१४,७४६,७६६. जी० १४१, ३४५७ भगवती [ भगवती] रा० ८१७ भग्गइ [भग्नजित् ] ओ०६६ भज्जा [भार्या ] जी० ३१६११ भट्टित्त [भर्तृत्व] ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३१३५०,५६३,६३७ भट्ट [भ्रष्ट] रा० ६,१२,२८१. जी० ३।४४७ भड [भट] ओ० १.२३,५२. रा० ५३,६८३,६८७, ६८८,६६२,७१६ भणित [भणित] जी० ३१८८१ भणिय [भणित] ओ० १५,४६,१६५४ से ७. रा० ७०,६७२,८०६,८१०. जी० २।१५०; ३।१२६,५६७,८३८।१,२,६।१५७ भण्ण [भण् ] ---भण्णंति. जी० ३।९४६ भति [भति] ओ०१७ Page #777 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भत्त-भवग्गहण भत्त [भक्त] ओ०१४,१७,३२,३३,११७,१४०, भमुया [5] ओ० ३४५६७ १४१,१५४,१५७,१६२,१६५,१६६. रा० भमुह [5] ओ० १६. रा०२५४, जी० ३१४१५ ६७१,७७४,७८७,७८८,७६६,८१६ भय [भय] ओ०१४,२५,२८,४६. रा० ६७१, भत्तकहा [भक्तकथा] ओ० १०४,१२७ ६८६. जी० ३:१२७,१२८ भत्तपच्चक्खाण [भक्त प्रत्याख्यान] ओ० ३२ भयंत भदन्त'] ओ० ७२,१६७ भत्तपाणविउस्सग्ग [भक्तपानव्युत्सर्ग] ओ० ४४ ।। भयग [भृतक] जी० ३१६१० भत्ति [भक्ति] ओ० ४०,५२. रा० १६ भयणा [भजना] जी० १११३६ ; ३।१५२ भत्तिघर [भक्तिगृह] जी० ३।५६४ भयव भगवत् ] रा० १२१ भत्तिचित्त [भक्तिचित्त | ओ० १३,६३. ० १७, भयसण्णा [ भयसंज्ञा] जी० ११२० ; ३।१२८ १८,२०,२४,३२,३४,३७,५१,१२६,१३७, भर [भर रा० २२८. जी० ३।३८७,७८४,७८७ १५६,२६२. जी०३।२७७,२८८,३००,३०७, भरणी [ भरणी] जी० ३३१००७ ३०८.३११.३३२,३३७,३५६,३७२,३६६, भरत [भरत जी० २१३२,३ ६७२ ४५७,५६७,५६३,५६५,६०४ भरह [भरत ] ओ०६८. रा० २७६,२८२. जी. भत्तिपुव्वग [भक्तिपूर्वक ] रा० ६३,६५ २।१४,२८,५५,७०,७२,६६,११५,१२२,१४७, भद्द [भद्र ] ओ० ४७,६८,७२. रा० २८२. जी० १४६; ३।२२६,४४५,४४७७६५ ३४४८ भरिय [भरित] ओ० ४६,५७,६४. रा० १७३, भद्दग [भद्रक] जी० ३१५६८,६२०,६२५,७६५,८४१ ६८१ भद्दपडिमा [भद्रप्रतिमा] ओ० २४ भव [भू]-भवइ. ओ० २८. रा० २००. भद्दमोत्था [भद्रमुस्ता] जी० ११७३ जी० ३३५६-भव उ. ओ० २०. रा०७१३. भद्दय [भद्रक] जी० ३।७६५ -भवंति. ओ० २०. रा० १२४. जी. ३१७७ -भवति. रा० १२६. जी० ३१२७२-भवह. भद्दया [भद्रता] ओ० ७३,६१,११६ रा०७१३--भवाहि. रा०७५०-भविस्सइ. भद्दसालवण [भद्र शालवन] रा० १७३,२७६. ___ जी० ३।२८५,४४५ अ.० ५२. रा० २००-- भविस्सति. भद्दा [भद्रक] ओ० ६८. रा०२८२. जी० ३४४८ जी० ३।५६-भविस्सामि. रा० ७७५ भद्दा [भद्रा] जी० ३।६१५ —भवे. रा० २५. जी० ३१८४-भवेज्जासि. भद्दासण [भद्रासन] ओ० १२,६४. रा० २१,४१ रा० ७७४ - वि. रा० २००. जी० ३१५९ से ४४,४८,४६,१८१,१८३,२६१,६५८ से भव [भव ] ओ० ४६,१६५।३,७,८ ६६४. जी० ३.२८६,२६३,३३६ से ३४५, भवंत [भवत् रा० १५ ३६८,३७०,५५८ से ५६०,६३५ भवक्खय [भवक्षय] ओ० १४१,१६५६. रा० ७६६ भमंत [भ्रमत् ] ओ०४६. रा०१७४. जी० भवग्गहण [भवग्रहण] जी० ७.५,६,१०,१२,१५ ३।११८,११६,२८६ से १८६२ से ४,४०,५१,१७१,२३६,२३८, भममाण [भ्राम्यत, भ्रमत्] ओ० ४६ भमर [म्रमर ] ओ०६,१६. रा० २५. जी० १. 'भयंतारो' त्ति भदन्ताः कल्याणिनः भत्तारो वा ३।२७५,२७८,५९६ नग्रन्थ प्रवचनस्य सेवयितारः [वृ० पृ० १५२] भमरपतंगसार [भ्रमरपतङ्गसार] रा० २५. जी० 'भयंतारो' त्ति भक्तार: अनुष्ठान विशेषस्य ३१२७८ सेवयितारो भयत्रातारो वा [वृ० पृ० २०३] । Page #778 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवण भासा २४३,२४४,२४६,२७१, २७३, २७६ से २-२ भवण [ भवन ] ओ० १,१४,६६, १४१ रा० ६७१, ६७५,७६६. जी० ३।२३२ से २३४,२४०, २४४,२४८,५६४,५७,६०४,६४६ से ६४८, ६५१,६७३,६८२,६८,६६२ से ६६८, ७५६ भवणवs [ भवनपति ] रा० ११,५६. जी० २६५ भवणवति [ भवनपति ] जी० ३।६१७ भवजवासि [ भवनवासिन् ] ओ० ४८. जी० १.१३५; २।१५,१६,३६,३७,७१,७२, ६१, ६५, ६६, १४८, १४६; ३।२३० से २३२,१०४२ भवणवासिणी [ भवनवासिनो ] जी० २२७१, ७२, १४८, १४९ भवणावास [ भवनावास ] जी० ३।२३२ भवस्थ [ भवस्थ ] ६।४४ से ४८, ५२, ५३ भवत्थकेवलणाण [ भवस्थकेवलज्ञान ] रा० ७४५ भवधारणिज्ज | भवधारणीय] जी० १६४,६६, १३५,१३६; ३६१,६३,१०८७ से १०८६, १०१, १०२, ११२१ से ११२३ भवच्च [ भवत्ययिक ] रा० ७४३ भवसिद्धिय [भवसिद्धिक] रा० ६२. जी० ६ १०६ भावियप्प [ भावितात्मन् ] ओ० १६६ से १११,११२ भविता [ भूत्वा ] ओ० २३. रा० ६८७ भसोल [भसोल ] रा० १०६,११६,२८१. जी० ३।४४७ भाइलग [भागिक ] जी० ३।६१० भाजय [ भ्रातृक ] रा० ६७५ भाग [भाग ] रा० ७८७,७८८. जी० ३।५७७, ६३२,६३६,८३८।१६,१०१० से १०१४ भाग [ भागिन् ] रा० ८१५ भाजण [भाजन ] जी० ३.५८७ भाणितव्व [ भणितव्य ] जी० २।११२; ३।७४, १२०, १२१,१४४,२२७, ५७८, ६३१६५७, ६४७ भाणियव्व [ भणितव्य ] रा० ८०,१६४,२०१, २०४ से २०६,७४२. जी० ११५१,७२,६६, ११८,१२३, १२६,१३५ २७६,७८,८०,८१, ७०१ १०५, १०८, १११,११८,१२३, ३।७५,७७, १५६, १६२, २३१,२५०, ३५६.३५८, ३५६, ३६,४१२,४६३,६७३, ६७६, ६८२,७५६, ७६६,७६६,७७५,८००,८०१,८१८,८२८, ६३६, ६३६, १०४४, १०५०, ११२६, ११२७; २६ २२६ भामरी [ भ्रामरी ] रा० ७७ भाय [ भ्रातृ ] जी० ३।६११ भाय [आग ] रा० ७८८. जी० ३।५७७ √ भाय [भाज् ] - भाएंति. रा० २८१. जी० ३।४४७ भायरक्खिया [ भ्रातृ रक्षिता] ओ० ६२ भार [ भार] रा० ७७४ भारह [भारत] रा०८ से १०, १३, १५५६, ६६८ भारुंड पक्खि [ भारुण्डपक्षिन् ] ओ० २७. रा० ८१३ भाव [ भाव ] रा० ६३,६५,१३३,७७१,८१५. जी० ३।३०३, ७२६ भावओ [ भावतस् ] ओ० २८. जी० ११३३,३४, ३६,३६ भावविग्ग [भावयुत्सर्ग] ओ० ४४ भावाभिगचर [ भावाभिग्रहचरक ] ओ० ३४ भावेमाण [ भावयत् ] ओ० २१ से २४,२६,४५, ५२,८२,१२०,१४०,१५७. रा० ८,६,६८६, ६८७, ६८६,६८,७११,७१३,७५२, ७५३, ७८७,७८६८१४,८१७ भावोमोदरिया [ भावावमोदरिका ] ओ० ३३ भास् [ भाष्] भासइ. ओ० ५२. रा० ६१ - भायेंति. जी० ३।२१० भास (य) ( भाषक ] जी० ९ ६६ संत [ भाषमाण ] ओ० ६४. जी० ३।५६१ भाग [भाषक ] जी० ३।५६,५६,६१ भासमणपज्जत्ति | भाषा मनः पर्याप्ति ] रा० २७४, ७६७. जी० ३.४४० भासय [भावक ] जी० ६/५७ भासरासि [ अरमराशि ] रा० १२४ भासा [ भाषा ] ओ० ७१. ० ६१,८०६,८१० Page #779 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०२ भासासमिय [भाषासमित] ओ० २७,१५२,१६४. रा० ८१३ भासुर [भासुर ओ० ४७,७२. रा० ६.१२ भिउव्व [भार्गव] ओ० ६६ भिंग [भृङ्ग] ओ० १६. रा० २६. जी० ३:२७६ भिगंगय [भृङ्गाङ्गक] जी० ३.५८७ भिगणिभा [भृङ्गनिभा] जी० ३१६८७ भिंगा [भृङ्गा] जी० ३१६८७ भिगार [भङ्गार] ओ०६४,६७. रा० ५०,१४८, २५८,२७६,२८१,२८८,७५३. जी० ३।४४५, ४५४,५८७ भिंगारक [भृङ्गारक] ओ० ६. जी० ३।२७५, ३२१,३५५,४१६ भिगि [भृङ्गि] जी० ३।५६५,५६६ भिण्डमाल [भिण्डमाल, भिन्दपाल] जी० ३।११० भिडिमाल [भिण्डिमाल, भिन्दिपाल ] ओ० ६४ । भिडिमालग्ग [भिण्डिमालन, भिन्दिपालाग्र] जी० ३८५ -भिव भिद्]-भिंद. रा०६७१-भिज्जइ. रा० ७८४ भिभसारपुत्त [भिम्भसारपुत्र ] ओ० १५,१८,२०, २१,५३ से ५६, ६२ से ६४,६६,६७,६६, ७१,८० भिक्खलाभिय [भिक्षालाभिक] ओ० ३४ भिक्खायरिया [भिक्षाचर्या ] ओ० ३१,३४ भिक्खुपडिमा [भिक्षुप्रतिमा] ओ० २४ भिक्खुय [भिक्षुक] रा० ७१८,७८७,७८८ भिगु [भृगु] जी० ३।६२३ । भिच्चा [भित्वा] रा० ७५५ भित्ति | भित्ति ] रा० १३०. जी० ३१३०० भित्तिगुलिया [ भित्तिगुलिका] रा० १३०. जी० ३१३०० भिन्नमुहुत्त [भिन्नमुहूर्त] जी० ३।१२६।२,१० भिब्भिसमाण [बाभास्थमान] रा० १७,१८,२०, ३२,१२६. जी० ३।२८८, ३००,३७२ भासासमिय-भूइकम्मिय भिलुंग [दे० भिलुङ्ग] रा०७०३ भिस [बिस] रा० २६,१७४. जी० ३३११८,११६, २८२,२८६ भिसंत [भासमान] ओ० ५,८,६४. रा० ५१ जी० ३।२७४ भिसकंद [बिसकन्द] जी० ३।६०१ भिसमाण [भासमाण] रा० १७,१८,२०,३२,१२६. जी० ३।२८८,३००,३७२ भिसिया [वषिका] ओ० ११७ भीत भीत] जी० ३.११६ भीम [भीम] ओ० ४६,५७. जी० ३।६३ भुंजमाण [भुजान] ओ० ६८. रा० ७. जी० ३।३५०,५६३,८४२.८४५,१०२४, १०२५ । भुकुंड [३०] -भुकुंडेति. रा० २८५. जी० ३।४५१ भु कुंडेत्ता [दे०] जी० ३।४५१ भुजंग [ भुजङ्ग ] जी० ३१५९७ भुज्जतर [भूयस्तर] ओ० ८६ भुज्जो [भूयस् ] ओ० १५६. रा० ७५१ भुत्त [भुक्त] रा० ६८५,७६५,८०२,८१५ भुयग [भुजग] ओ० २,५१ भुयगपइ [भुजगपति ] ओ० ४६ भुयगपरिसप्प [भुजगपरिसर्प] जी० २१११३ भुयगपेच्छा [भुजगप्रेक्षा] ओ० १०२, १२५ भुयगीसर [भुजगेश्वर] ओ० १६. जी० ३।५६६ भुयपरिसप्प [भुजपरिसर्प] जी० ११६०४, ११२. १२२, १२४,२७,६,२४,५२,१२२, ३३१४३, १४४, १६१,१६२,१६६ भुयमोयग [भुजमोचक] ओ० १६. जी० ३१५९६ भुया [भुजा] ओ० १६,२१,४७,५४,६३,७२. रा० ८,६६,७०. जी० ३।४५७,५९६ भुया [भ्रू का[ जी० ३१५९६ भुसागणि [बुषाग्नि] जी० ३।११८ भूइकम्मिय [भूतिकर्मिक] ओ० १५६ Page #780 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूओवधाइय-भोम भूओवघाइय [ भूतोपघातिक ] ओ० ४० भूत [ भूत ] रा० ६, १२,३२,२८१. जी० ३३६८, ४४३, ७८०, ८४२, ८४५, ६४७, ६४६, ६५० भूतक्खय [ भूतक्षय ] जी० ३।६२६ भूतग्गह [ भूतग्रह ] जी० ३१६२८ भूतपडिमा [ भूतप्रतिमा [ जी० ३।४१८ भूतमंडलपविभत्ति [ भूतमण्डलप्रविभक्ति ] रा० ० भूतमह [ भूतमह ] जी० ३।६१५ भूतवडेंसा [भूतावतंसा ] जी० ३।६२१ भूता [ भूता] जी० ३।२१ भूतानंद [ भूतानन्द ] जी० ३।२५० भूमि [ भूमि ] ओ० ५२. रा० ७६६ भूमिगय [ भूमिगत ] रा० ७६५ भूमिचवेडा [ भूमिचपेटा ] रा० २८१. जी० ३।४४७ भूमिभाग [ भूमिभाग ] ओ० १६२. रा० २४, ३२, ३३, ३५, ६५,६६,१२४,१६४, १७१, १८६ से १८८२०३ से २०६, २०८,२१३,२१६,२१७, २३७,२३८,२५१,२६१. जी० ३।२१८, २५७, २७७,३०६,३१०,३३६,३५६, ३५६ से ३६१, ३६४,३६५.३६८ से ३७२,३७४, ३६६,४००, ४१२,४२१,४२२,४२७, ५८०, ६२३, ६३३, ६३४,६४५,६४६,६४८, ६४६, ६५६,६६२, ६६३,६७०,६७१,६७३, ६६०, ६६१, ७३७, ७५५ से ७५८,७६२,७६५,७६८,७७०,८८३, ८८४ से ६०, ६०५, ६०६, ६१२, ६१३, १००३,१०३८ भूमिभाय [ भूमिभाग ] जी० ३।४२६ भूमिया [ भूमिका ] रा० ६७५ भूमिसेज्जा [ भूमिशय्या ] ओ० १५४, १६५,१६६. रा०८१६ भूमी [भूमी ] जी० ३।६३१ भूय [ भूत ] ओ० २,४,६,२६,४६,५५,६२. रा० १३२,१७०,२३६,७०३. जी० ३।१२७, २७३,३०२,३७२,४४७, ६७५, ११२८, ११३० भूयपडिमा [ भूतप्रतिमा ] रा० २५७ भूयमह [ भूतमह ] रा० ६८८ ७०३ भूयवादिय [ भूतवादिक ] ओ० ४६ भूयाणंद [ भूतानन्द ] जी० ३।२४६, २५० भू [भूषण] ओ० २१,४७,५४,५७. रा० ६६, ७०. जो० ३।५६३ भूसणधर [ भूषणधर ] रा० ८,७१४ भूसिय [भूषित ] ओ० ६४. ० ५३, ७५१ मत्ता [भित्वा ] जी० ३६६१ भेद [ भेद ] ओ० २६. जी० १।११८, १२१, १२३, १२४,१२६, १३५ २७६,७८, १०५, १०६; _३।१३५,१४२,१४४, २३१,२७६,२८१, ६३६ भेय [ भेद ] ओ० १. रा० २८,६७५,७६३. जी० ११५८ २।१५१; ३।१२६ ६,६५० भेकर [ भेदकर ] ओ० ४० भेरव [भैरव ] ओ०४६ भेरी [ भेरी ] ओ० ६७. रा० १३,७७, ६५७,७५५. जी० ३७८, ४४६ मेड [ भेरुण्ड ] जी० ३१८७८ यालवण [ भेरुतालवन ] जी० ३ ५८१ सज्ज [ भैषज्य ] ओ० १२०,१६२ रा० ६६८, ७५२,७८६ भो [भोस् ] ओ० ५५. रा० १३. जी० ३।४४४ भोग [भोग] ओ० १६,२३,४३,४६, १४८ से १५०. रा० ६७२,७५१,७५३,७६१,८०६ से ८ ११. जी० ३५६, ११२४ भोग [भोज] ओ० ५२. रा० ६८७, ६८८, ६६५ भोत्थिय [भोगार्थक ] ओ०६८ भोगपुत्त [भोजपुत्र ] ओ० ५२. रा० ६८७ भोगभोग [भोग्यभोग] ओ० ६८. रा० ७. जी० ३।३५०, ५६३, ८४२, ८४५, १०२४, १०२५ भोगरय [ भोगरजस्] ओ० १५०. रा० ८११ भोच्चा [भुक्त्वा ] रा० ६६७ भोजण [भोजन ] जी० ३।५६२ भोत्तए [भोक्तुम् ] ओ० १३४ भोण [भुक्त्वा ] ओ० १६५।१८ भोम [ भूम] रा० १३०. जी० ३३०० भोम [भौम ] रा० १६४. जी० ३।३३६ से ३३८, Page #781 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०४ ३४५,३५५,३५६ भोमिज्ज [ भौमेय ] रा० २७६,२८० भोमेज्ज [ भौमेय ] जी० ३।२५१, २५२ भो [भोग] ओ० १५. रा० ६८५,७१०,७७४ भोय [ भोजय् ] - भोयावज्जा. रा० ७७६ भोयण [ भोजन ] ओ० १३५, १९५१८. जी० ३१६०२ भोयणमंडव [ भोजन मण्डप ] रा०८०२ म मइ [मति ] ओ० ४६, ५७ मइअण्णाणि [ मत्यज्ञानिन् ] जी० ११३०, ८७, ६६; २०२,२०६,२०८ मउ [ मृदु ] रा० ७६,१७३ दह [ मुकुन्दमहं ] रा० ६६८ A [ मुकुट ] ओ० २१, ४७, ४० से ५१,५४,६३, ६५,७२,१०८,१३१. रा०८, २८५, ७१४. जी० ३।४५१,५६३ A [ मृदुक ] ओ० १६. रा० २८८. जी० १ ५०; ३।२२,२८५,३८७,५६६,५६७,६७२, १०६८ मडल [ मुकुल ] जी० ३५६७ मउलि [ मुकुलिन् ] जी० १११०६,१०८ उलि [ मौलि] ओ० ४७, ७२ उलिय [ मुकुलित ] ओ० २१,५४. रा० ७१४ मऊर [ मयूर ] जी० ३।५.६७ [म] ओ० १,२ पेच्छा [मप्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५. जी० ३।६१६ मंगल [ मङ्गल] ओ० २,१२,२०,५२, ५३, ६३,६८, ७०, १३६. रा० ६,१०,४६, ५८, १५६,२४०, २७६,२६१,६८३,६८५,६८७ से ६८६, ६६२, ७००,७०४,७१६,७१६, ७२६, ७५१, ७५३, ७६५,७७६, ७९४,८०२,८०५. जी० ३:३३२, ४०२, ४४२ मंगलग [ मङ्गलक ] रा० २१,१६६, १७७,२०२, २०४ से २०८,२१४,२२०, २२३, २२६,२३२, भोमिज्ज-मंति २४१,२४८, २५०,२५६,२६१. जी० ३१२८६, ३१४,३४७, ३५६, ३६७ से ३७१, ३७५३७६, १३८२,३६१,३६४,४०३, ४११, ४२०, ४२४, ४३० ४३३, ४३६६३६,६५१,६७७,७०८, ७५६,८८८८६२८६४, ८६८,६००, ६०६,६१३ मंगल [ मङ्गलक ] ओ० ६४. जी० ३१३५५,४५७ मंगल्ल [ माङ्गल्य ] रा० ६८५,६६२,७००,७१६, ७२६,८०२ मंचाइमंच [मचातिमञ्च ] ओ० ५५. रा० २८१ मंचातिमंच | तिमञ्च ] जी० ३१४४७ मंजरि [ जरी ] ओ० ५,८,१० २०० १४५. जी० ३१२६८,२७४ मंजु [ मञ्जु ] ओ० ६६. रा० १३५. जी० ३/३०५, ५६८ √ मंड [ मण्ड् ] मंडावेज्जा. रा० ७७६ मंड [मण्ड ] जी० ३८७२,६६० मंडणधाई [ण्डधात्री ] रा० ८०४ मंडल [] ० ५०, ६४. रा० १४६. जी० ३।३२२,८३८1१० से १२ मंडलग [ मण्डलक ] रा० २६५. जी० ३।४६० मंडलपविभत्ति [ मण्डलप्रविभक्ति ] रा० १० मंडलरोग [ मण्डलरोग ] जी० ३४६२८ मंडलिय [ माण्डलिक ] जी० ३।१२६११ isar [क वात] जी० ११८१ मंड [ मण्डप ] जी० ३।५६४,८६३ मंडव [ मण्डपक] ओ० ६ से ८,१०. जी० ३१२७५,५७६ मंडय [ मण्डप ] जी० ३१५७६,८६३ मंडित [ मण्डित ] जी० ३.२८५,३०२,४४७ मंडिय [ मण्डित ] ओ० २,४७, ५५.५६, रा० २८१. जी० ३.२६५,३१३ मंडिग [ण्डित ] रा० १३२ मंडियाग [ मण्डलक ] रा० ४० मंत[मन्त्र ] ओ० २५. रा० ६७५,६८६,७९१ मंति [ मन्त्रिन्] ० १८. रा० ७५४,७५६, ७६२, ७६४ Page #782 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंथ-मज्झंमज्झ ७०५ मंथ | मन्थ ] ओ० १७४ मंद मन्द रा०.७६,१७३,७५८,७५६. जी. ३१२८५,६०१,८६६ मंदगति मन गति ] जी० ३।६८६ मंदर [मन्दर ओ० १४,२७. ग० १२४,२७६, ६७१,६७६,८१३. जी. ३ -१७, १६ से २२१,२२७,३००,४४५,५६६.५६८,५६६. ५७७,६६८,७०१,७३६,७४०,७४२,७४५, ७५०,७५,४,७६२,७६५,७६६,७७५,६३७, १००१,१०३६ मंदरगिरि म द गिरि रा० १७३. जो० ३।२८५ मंदलेस [ मन्द श्थ | जी० ३.८३८।२६ मंदलेस्स मंदलेश जी० ३।८४५ मंदाय | मन्द रा० ४०,११५,१३२,१७३,२८१. जी० ३।२६५,२८५,४४७ भदायवलेस्स मन्दातपलेश्व] जी० ३८४५ मंस [मांस आ० ६२,६३ २०७०३ मंसल मांसल ओ० १६. जी० ३१५६६,५६७ मंसमुह मांससुख ] ओ० ६३ मंसु श्मथु] ओ० १६. जी. ३१४१५,५६६ मकरंडक | मकराण्डक जी० ३।२७७ मगदंतियागुम्म दे० जी० ३१५८० मगर | मकर ओ० १३,४६. रा० १७,१८,२०, ३२,३७.१२६. जी० १६६,११८, ३१२८८, ३००,३११,२७२,५६६,५६७ मगरंडग | मकाण्डक] रा० २४ मगरासण मकरासन] रा० १८१,१८२. जी. ३।२६३ मगरिया मकरिका] रा०७७. जी० ३१५६३ मगुंद | मुकुन्द जी० ३।५८६ मग्ग मार्ग ओ० ४६,६५,७२ मग्गण [मागंण | ओ० ११७,११६,१५६ मग्गतो [पृष्ठतस् ] ० ५५ मग्गदय मार्गदय] औ० १६,२१,५४. रा०८, २६२. जी० ३।४५७ मघमघेत [प्रसरत् ओ० २,५५. रा०६,१२,३२, १३२,२३६,२८१,२६२. जी० ३३०२,३७२, ३९८,४४७ मघव [ मघवन् ] जी० ३।१०६८ मघा [मघा] जी० ३।४ मच्चु [मृत्यु] ओ० ४६ मच्छ [मत्स्य] ओ० १२,४६,६४. रा० २१,४६, १७४,२६१. जी० १११००, ३८८,११८, ११६,२८६,२८६,५६७.६६५,६६६,६६८,६६६ मच्छंडक [ मत्स्याण्डक | जी० ३।२७७ मच्छंडग मत्स्याण्डक रा० ८४ मच्छंडापविभत्ति [ मत्स्याण्डकप्रविभक्ति] रा०६४ मच्छंडामयरंडाजारामारापविभत्ति मत्स्याण्डकमक राण्डकगारकमारकप्रविभक्ति रा०६४ मच्छंडिया मत्स्य ण्डिका जी० ३१६०१,८६६ मच्छंडी मत्स्यण्डी] जी० ३१५६२ मच्छग मत्स्य जी० १६६ मच्छियपत्त [मक्षिकापत्र ] ओ० १६२ मच्छी [मत्स्यी] जी० २।४ भज्ज [मद्य ] ओ० ६२,६३. जी० ३।५६६ भिज्ज मस्ज्-- मज्जावेज्जा. रा० ७७६ मज्जण मज्जन] ओ० ६३ मज्जणघर मज्जनगृह] ओ०६३ मज्जणघरग | मज्जनगृहक रा० १८२,१८३. जी० ३।२६४ मज्जणधाई मज्जनधात्री रा० ८०४ मज्जार [मार्जार] जी० ३१८४ मज्जिय [मज्जित] ओ० ६३ मज्झ मध्य ] ओ० १५,१६,६३,६८. रा० १२५, १२७,२४०,२४५,२८२,६७२,७६६. जी० २४६; ३३५२,५७,८०,२६१,३५२, ५६६,६३२,६६१,६८६,७२३.७२६,७३६,८३६ ८८२ मज्झंभज्झ [मध्यंमध्य] ओ० २०,५२,६७ से ७०. रा० १०,१२,५६,२७६.६८३,६८५,६८७, ६६२,७००,७०६,७०८,७१०,७१६,७२६. जी० ३,४४५,५५७ Page #783 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०६ मज्झमय-मणिजाल मज्झगय [ मध्यगत] रा० ७३२ मणपज्जवणाण मनःपर्यवज्ञान] ओ० ४०. मज्झछिण्णक [मध्यछिन्नक] ओ०० र ० ७३६,७४४,७४६ मज्झिम मध्यम] ओ० १६५।६. रा ० ४३,६६१. मणपज्जवणाणविणय [मनःपर्यवज्ञान विनय ] जी० ३७७,२३६,६५८,६८१,१०५५ ओ. ४० मज्झिमगेविज्ज [मध्यम वेय] जी० २।६६ मणपज्जवणाणि [मनःपर्यवज्ञानिन् ] ओ० २४. मज्झिमगेवेज्जा [मध्यमवेयक] जी० ३।१०५६, जी० १४१३३; &१५६,१६२,१६५,१६६, १६७,२०२,२०४,२०८ मज्झिमिय [मध्यमिक] जी. ३१२३५ से २३६, मणबलिय [मनोबलिक] ओ० २४ २४१ से २४३,२४६,२४७,२४६,२५०,२५४ मणविणय [ मनोविनय ] ओ० ४० से २५६,२५८,३४२,५६०,१०४० से १०४२, मणसमिय [ मनःसमित] ओ० १६४ १०४४,१०४६,१०४७१०४६ से १०५३,१०५५ मज्झिय [मध्यक] जी ० ३१५६७ मणहर [मनोहर] ओ०७,८,१०. रा० १७,१८, मज्झिल्ल [ मध्यम ] जी० ३१७२५,७२८ २०,३०४०,७८,१३२,१३५,१७३,२३६. मट्टिया [ मृत्तिका] ओ०६८. रा० ६,१२,२७६ से जी० ३।२७६,२८३,२८५,३०२,३०५ २८१ जी० ३।४४५,४४६,४४८ मणाभिराम [मनोभिराम] ओ०६८ मट्टियापाय [ मृत्तिकापात्र] ओ० १०५,१२८ मणाम [दे०] ओ०६८,११७. रा० ७५० से मट्ठ [मृष्ट] ओ० १२,१६,४७,७२, १६४. रा० २१, ७५३,७७४,७६६. जी० १।१३५; ३।१०६०, २३,३२,३४,३६,५२,५६,१२४,१४५,१५७, १०६६ २३१,२४७. जी० ३.२६१,२६६,२६६,३६३, मणामतराय दे] रा०२५ से ३१, ४५. ४०१,५६६,५६७. जी० ३।२७८ से २८४,६०१,६०२,८६०, मड [मृत] जी० ३,८४,६५ ८६६,८७२,८७८,६६० मडंब [मडम्ब ] ओ०६८,८६ से ६३,६५,६६,१५५, मणि मणि] ओ० २३,४७,४६,५२,६३,६४. १५८ से १६१,१६३,१६८. रा०६६७ रा० १७,१८,२४ से ३३,३७,४०,४५,५१,६५, मड्डय [दे० मड्डक] रा० ७७ ६६,७०,१३०,१३२,१३७,१५४,१६०,१७१, मण [मनस् ] ओ० २४,३७,४०,५७,६६,७० १७३,१७४,२०३,२२८,२३७,२५६,२६२, रा० ३०,४०,१३२,१३५,१७३,२२८,२३६, ६८७ से ६८६,६६५,८०४. जी० ३।२६५, ७६५,७७८,८१५. जी० ३।२६५,२८३,२८५, २७७ से २८६,३००,३०२,३०७,३०६ से ३०२,३०५,३८७,३९८,६७२ ३११,३३३,३३६,३६०,३६४,३७२,३७६, मणगुत्त [मनोगुप्त] ओ० २७,१५२,१६४. ३८७,३६६,४१२,४१७,४२१,४५७,५७८, रा० ८१३ ५८७,५८६,५९०,५९३,६०८,६४५,६४८, मणगुलिया [मनोगुलिका] जी० ३।४१२,४१६,४४५ ६५६,६७०,६७२,६६०,७५७ मणजोग [मनोयोग] ओ० ३७,१७५,१७७,१७८, १८२ मणि (पाय) [मणिपात्र] ओ० १०५,१२८ मणजोगि [मनोयोगिन् ] जी० ११३१,८७,१३३; मणि (बंधण) [मणिबन्धन ] ओ० १०६,१२६ ३।१०५,१५३,११०६; ११३ ११४,११७, मणिजाल [मणिजाल] रा० १६१. जी० ३१२६५, १२० ५६३ Page #784 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणिपेढिया-मणोगय ७०७ मणिपेढिया [मणिपीठिका] रा० ३६,३७,६६,६७, १६३,१६८. रा० २८२,८१५. जी० ११८२; २१८,२१९,२२१,२२२,२२४ से २२७,२३०, ३।८८,१२६,४४८,५५६,५६६,५६८ से ६००, २३१,२३८,२३६,२४२ से २४७,२५२,२५३, ६०३,६०५ से ६२१,६२५, ६२७ से ६३१, २६१,२६५,२६७,२६६,३००,३०५ से ३११, ७६५,८४१,११३७; ६॥२५४ ३१७ से ३२१, ३३८, ३४४ से ३४७,३५२ मणुयरायवसभ [मनुजराजवृषभ ] ओ० ६५ से ३५४,४१४,४७४,५३४,५६५. मणुयलोग [मनुजलोक ] जी० ३१८३८।१,४ से ६ जी० ३।३१०,३११,३६५,३६६,३७७.३७८, मणुयलोय [ मनुजलोक] जी० ३१८३८।३ ३८०,३८१,३८३ से ३८६,३६२,३६३,४००, मणुस्स [ मनुष्य] ओ० ७३,१७०. रा० २७,७३२, ४०१,४०४ से ४०६,४१३,४१४,४२२,४२३, ७३७,७७१. जी० ११५१,५४,५५,५६,६१,६५, ४२७,४२८,४५७,४६५,४७० से ४७४,४८२ ७६,८७,६१,६६,१०१,११६,१२३,१२६,१२६, से ४८६,५०३,५०६ से ५१२, ५१६ से ५१६, १३४,१३६; २।२,११,१४,२६ से ३०, ३२ से ५२६,५३३,५४०,५४८,५५७,६३४,६४६, ३४,५४, ५७ से ६१,६५,६६,६८,७०,७२,७५, ६५०,६६३,६७१ से ६७५,७५८,७५६,७६५, ७७,८०,८४,८५,८८,६६,१०६,११४,११५, ७६८,७७०,८६१ से १००,६०६,६०७ १२३,१२४,१३२ से १३४, १३७,१३८,१४३, मणिमय [मणिमय रा० १६,२०,३६,३७,१३०, १४५, १४७,१४६; ३३१,८४,११८,२१२ से १३५,१३८,१७५,१६०,२१८,२२१,२२४, २१५, २१७ से २२५,२२७ से २२६,२८०, २२६,२२८,२३०,२३८,२४२,२४४ से २४६, ५७६,८३६,८३८।१३,८४०,११३२,११३५, २६१,२७०,२७६,२८०. जी० ३।२६५,२८७, ११३८, ६।१४,६,१२, ७.१,६,१२,१७,१८, २८८,३००,३०५,३११,३१३,३२२,३५३, २०,२३, ६।१५६,१५८,२०६,२१८,२२०, ३६५,३७७,३८०,३८३,३८५,३६२,४००, २३१ ४०४,४०६ से ४०८,४१३,४२२,४२७,४३५, मणुस्सखेत्त [मनुष्यक्षेत्र] जी० १।१२७; ३।२१४, ४४३,४४५,६४६,६४६६५४,६७१,७५८, ८३५ से ८३७,८३८।२१ ८६१,८६३,८६५,८६७,८६६,६०६ मणुस्सजोणिय [मनुष्ययोनिक ] जी० २।६६ मणियंग [मण्यङ्ग] जी० ३३५६३ मणुस्सत्त [मनुष्यत्व] ओ० ७३ मणिलक्खण मणिलक्षण] ओ० १४६. रा० ८०६ । मणुस्सिद [मनुष्येन्द्र] ओ० १४. रा० ६७१ मणिवट्टक [मणिवृत्तक ] जी० ३:५८७ मणुस्सी [मानुषी] जी० ३:५७६; ६।११४,६,१२; मणिसिलागा [ मणिशलाका] जी० ३।५८६,८६० ६।२०६,२१८,२२० मणुई [मनुजी] जी० ३३५६७ मणूस [मनुष्य ] ओ० १. जी० ३।६६३,६६७; मणुण्ण [मनोज्ञ] ओ० ४३,६८,११७. रा० ३०, ६।२१२,२२१,२२५,२२६,२३२,२३७,२३८, ४०,७८,१३२,१३५,१७३,२३६,७५० से २४५,२४६,२५०,२५१,२५५,२६७,२७२, ७५३, ७७४,७९६. जी. १।१३५, ३।२६५, २७३,२८१,२८२,२८६,२८७,२६०,२६३ २८३,२८५,३०२,३०५,१०६०,१०६६,१११७ मणूसपरिसा [मनुष्यपरिषद् ] ओ० ७८ मणुष्णतराय मनोज्ञतरक] रा०२५ से ३१,४५. मणुसी [मानुषी ] जी० ६।२१२ जी० ३।२७५ से २८४, ६०१ मणोगम [मनोगम] ओ० ५१ मणुय [भनुज] ओ० ४४,६८,६०,६१,६३,१६१, मणोगय [मनोगत] रा० ६,२७५,२७६,६८८, Page #785 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०८ ७३२, ७३७,७३८, ७४६, ७६८, ७७७,७६१, ७६३. जी० ३।४४१, ४४२ गुलिया [ मनोगुलिका] रा० १५३, २३५, २५८,२७६. जी० ३।३२६,३५५, ३६७,६०२ मणोज्जगुम्म [ मनोज्जगुल्म ] जी० ३।५८० मणो कूल [ मनोनुकून ] जी० ३१५६४ मण माणस [ मनोमानसिक ] रा० ८१५ मणोरम [ मनोरम ] जी० ३.६३४ मनोरमा [ मनोरमा ] जी० ३६२० मोरह [ मनोरथ ] ओ० ६६ मणोलिक | मनःशिलक ] जी० ७४५ मनोसिल | मनःशिलक [ जी० ७४५ मोसिलय [ मनःशिलक ] जी० ७३४,७४६ मोसिला [ मनःशिला ] रा० १६१,२५८,२७६. जी० ३।३३४,४१६,७४७ मणोसिला ढवी | मनःशिला पृथ्वी ] जी० ३।१८५. १८६ मनोहर | मनोहर ] रा० ७६, १७३. जी० ३।२६५, २८५ मति | मति | जी० ३।११५, ११६ मतिअण्णाणि [ मत्यज्ञानिन् ] जी० ३ १०४,११०७, १६७,२०२ मत्त | अमत्र ] जी० ३ । ११२८, ११३० मत्त | गत ] ० १,६,२६,५७,६४. रा० १४८, २८८. जी० ३।११८, ११६, २७५, ३२१,४५४ मत्तंग [ मत्ता ] जी० ३१५८६ मत्तयविलंबिय] [ माजविलम्बित | रा० ६१ मत्तय विसिय [जविलसित] ० ६१ मत्तह्यविलंबिय | मतह्यविलम्बित ] रा० ६१ मत्तयविलसित | मत्तह्यविलगित | रा० ६१ मत्थगसूल [भस्तकशूल | जी० ३।६२८ मत्थय | मस्तक | ओ० २०, २१, ५३, ५४,५६,६२, ११७.०८, १०, १२, १४,१८,४६,७२,७४, ११८,२७६,२७६.२८२,२६२,६५५,६८१, ६८३, ६५ ६, ७०७,७०८,७१०,७१३, ७१४, मोगुलिया-मल ७२३,७७४,७६६. जी० ३।४४२, ४४५, ४४८, ४५७,५५५ मद [मद ] जी० ३८६० मद्दण [ मर्दन ] ओ० १६१,१६३ मध्य [ मर्दक ] जी० ३।५८६ मद्दल [ मर्दल ] रा० ७७ मद्दव [ मार्दव ] ओ० २५,४३. रा० ६८६,८१४. जी० ३१५६८,७६५, ८४१ मधु [ मधु ] जी० ३:८६० मधुर [ मधुर ] जी० ३।२८५ ममत्तभाव [ ममत्वभाव ] जी० ३३६०८ मम्स | मर्मन् ] रा० ७६३ मय [ मृत ] रा० ७६२. जी० ३१६४ मसाला [ दे० ] ओ० ६. जी० ३।२७५ सयणिज्ज [ गदनीय] ओ० ६३. जी० ३ ६०२, ८६०,८६६,८७२,८७८ House [मृतपतिका ] ओ० ६२ मयर [ मकर] ओ० ४८ मयरंडापविभक्ति | मकराण्डकविभक्ति ] रा० ६४ √ मर (मृ] - - मरंति जी० १५३ [ मरकत ] ओ० १३ मर मरण [ मरण] ओ० २५,४६,७४,१७२.१६५३८, १२. रा० ६८६ is | मीनि] जी० ३११२२ मरोइया | मरीचिका ] रा० २१, २३, २४,३२,३४, ३६,१२४,१४५ मरीचिया | मरीचिका ] ओ० १६४ मरीतिक | मरीचिकत्रच ] रा० ३२ भरुंडी [ मरुण्डी] ओ० ७० मरुपक्खंदोलग [मरुपक्षान्दोलक ] ओ० ६० मरुपडियग [ मरुपतिक ] ओ० ६० मरुया [ महबक, मरुत्तक ] रा० ३० जी० ३२८३ मल | मल | ओ० ८६,६२. जी० ३५६८ √मल [ मृद् ] - मलइज्जइ. रा० ७८५ १. मुरंडी ( रा० ८०४ ) ! Page #786 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मलय-महज्जुईय ७०६ मलय [मलय] ओ० १४. रा० १५६.१७३,२७६, मसीगुलिया [मसीगुलिका] रा० २५. ३८५,६७१,६७६. जी० ३।२८५,३३२,४४५, जी० ३।२०८ ४५१ मसूर [ मसूर] जी० १११८ मलिय [मर्दित] ओ० १४. रा० ६७१ मसूरग [ मसूरक ] रा० ३७. जी० ३।३११ मल्ल [ माल्य] ओ० ४७,५१,६७,७२,६२,१०६, मह [ मथ्] ---महेइ. रा० ७६५ १३२,१४७,१६१,१६३. रा० १३,१३३,१५६, मह [मह] जी० ३।६३११२ १५७,२५८,२७६ से २८१,२८५,२८६,२६१, मह महत्] ओ० ३,७,८,१०,१४,४६,५२,६७ ३५१,५६४,६५७,७००,७१४,७१६,७६४, से ६६. रा० ३,४,१२,१३,१५,३२,३५ से ८०२,८०८. जी० ३।३०३,३२६,४१६,४४५, ३६,५३,१२३,१४८,१८८,२०४,२३८,२४२ ४४६,४५१,४५७,५१६,५४७,५६१ से २४६,२५१ से २५३,२६० से २६२,२६५, २६७,२६६,२७०,२७२,२७३,२८८,६८८, मल्ल [मल्ल ओ० १,२ मल्लइ [मल्लदि] ओ० ५२ रा० ६८७,६८८ ७६०,७६१,७७४. जी० ३।११०,११८,११६, २७३,२७६,२६८,३३८,३६१,३६४ से ३६६, मल्लइपुत्त [मल्लविपुत्र] रा० ६८७,६८८ ४००,४०१,४०४ से ४०८,४१०,४१२ से ४१४, मल्लग [दे० मल्लक] जी० ३।५८७ ४२१ से ४२३,४२५ से ४२८,४३१,४३४, मल्लजुद्ध [मल्लद्ध] ओ० ६३ ४३५,४३७,४३८,४४६ से ४४६,४५४,६४२, मल्लदाम माल्यदामन् ओ० २,५५,६३ से ६५. ६४६,६५०,६७१ से ६७५, ६८२,६८३,६८५, रा० ३२,५१,१३२,२३५,२५५,२६४,२६६३००, ६८६,६६२ से ६६८,७३७,७५६,७५८ ३०५,३१२,३५५,६८३,६६५. जी० ३१२८२, महइ [महती] रा० ७३२. जी० ३१७७,२६२, ३०२,३७२,३६७,४१६,४४७,४५२,४५७,४५६, ७२३ ४६१,४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२० ___ महंत [महत् ] ओ० १४,४६. रा० ६७१,६७६. मल्लपेच्छा [मल्ल प्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. ___ जी० ३।१११,१२४,१२५ ___ जी० ३।६१६ महंती [ महती रा० ७७ मल्लिया [मल्लिका] ० ३०. जी० ३।२८३ महगह [महाग्रह] जी० ३१७०३,७२२.८०६, मल्लियागुम्म [मल्लिकागुल्म] जी० ३५८० ८२०,८३०,८३४,८३७,८३८।६,१३, मल्लियामंडवग [ मल्लिकामण्डपक] रा० १८४. जी० ३१२६६ महग्य [महार्घ ओ० २०,५३. रा० २७८,२७६, मल्लियामंडवय मल्लिकामण्डपक ] रा० १८५ ६८०,६८१,६८३ से ६८५,६६२,६९६,७००, मसग मशव ओ० ८६,११७. रा० ७९६. ७०२,७०८,७०६,७१६,७२६,८०२. जी० ३३६२४ जी० ३।४४४,४४५ मसार मसार] रा० १३ महच्च महाचं, महाN ] रा०६६३,६६४,७१७, मसारगल्ल मसार गल्ल] रा० १०,१२,१८,६५, ७३२,७६६,७७६ १६५,२७६. जी० ३१७ महज्जुइतराय [महाद्युतितरक] रा० ७७२ मसिंहार (मसिंहार ओ० ६६ महज्जुइय [महाद्युतिक] ओ० ४७,७२,१७०. मसी | मसी, मषी] रा० २५,२७०. जी० ३।२७८, रा० १८६,५७२. जी० ३।११६ ४३५,६०७ महज्जईय [महाद्युतिक] रा० ६६६ Page #787 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१० महज्जुतीय [ महाद्युतिक ] जी० ३।४६,३५०, ७२१ महण [ मथन ] जी० ३५६२ महता [ महत्] जी० ३।३०१,३०२,३२१ से ३२३ महति [ महती ] ओ० ७१,७८. रा० ५२,५६,६१, ६६३,६६४,७१७,७७६,७८७ जी० ३।१२, ११७, ११३० महती [ महती ] जी० ३।५८८ महत्तर [ महत्तर ] ओ० ७० महत्तरगत [ महत्तरकत्व ] ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३।३५०, ५६३,६३७ हत्थ [महार्थ ] रा० २७८,२७६,६८०,६८१, ६८३,६८४,६६६,७००,७०२,७०८, ७०६. जी ० ३।४४४, ४४५ महद्वण [ महाधन ] ओ० १०५, १०६,१२८,१२६ महप्पभ [ महाप्रभ ] जी० ३३८८५ महष्फल [ महाफल ] ओ० ५२. रा० ६८७ हब्बल [ महाबल ] ओ० ४७,७१,७२, १७०. रा० ६१,६६६. जी० ३१५६५ महन्भूय [महाभूत ] रा० ७५१ महयर [ महत्तर ] रा० ८०४ महया [ महत्] रा० ७, १३१,१३२,१४७ से १५१, १६७,२५० से २८३, ६५७, ६७१,६७६, ६८३, ६८७ से ६८९,६६२,७००,७१२,७१६,७३२, ७३७,७५५,८०३,८०५. जी० ३।३२४, ३५०, ४४७,५६३, ८४२, ८४५, १०२५ हरिह [महार्ह ] ओ० ६३. रा० ६६,७०,२७८, २७६,६८०,६८१,६८३, ६८४, ६६६, ७००, ७०२,७०८, ७०६. जी० ३।४४४,४४५, ५८६ महल [ महत्] ओ० ४६ महल्लिया [ महती ] ओ० २४ महसवतर [महास्रवतर] जी० ३।१२६ महाउस्सासतराय [महोच्छ्वास तरक ] रा० ७७२ महज्जुतीय- महापउमरुक्ख महाकंदिय [ महाऋन्दित ] ओ०४६ महाकम्मतर [ महाकर्मतर ] जी० ३।१२६ महाकम्मतराय [महाकमंतरक ] रा० ७७२ महाकाय [महाकाय ] ओ० ४६ महाकाल [ महाकाल ] जी० ३।१२,११७,२५२, ७२४ महाकिरियतर [ महाक्रियतर ] जी० ३।१२६ महाकिरियतराय [महाक्रियतरक ] रा० ७७२ महागुम्मिय [ महागुल्मिक ] जी० ३।१७१ महाघोस [ महाघोष ] जी० ३।२५० महाजस [ महायशस् ] ओ० १७० महाजाइगुम्म [ महाजातिगुल्म ] जी० ३।५५० महाजुद्ध [ महायुद्ध ] जी० ३।६२७ महाण [ महानदी ] ओ० ११७. T० २७६. जी० ३।४४५,६३६, माणगर [ महानगर ] जी० २।१४० महानदी [ महानदी ] रा० २७६. जी० ३।३००, ५६८,६३२,६६८,७४६, ८००, ८१४, ६३७ महाणरग [ महानरक ] जी० ३।१२,११७ महाणिरय [ महानरक ] जी० ३।७७ महाणील [महानील] ओ० ४७ महाणुभाग [ महानुभाग ] ओ० ४७,७२,१७०. रा० १८६,६६६. जी० ३८६,६५८ से ६६७, १११६ महाणुभाव [ महानुभाव ] जी० ३।३५०,७२१ महातराय [ महत्तरक ] रा० ७७२ महातव [ महातपस् ] ओ० ८२ महाधाय रुक्ख [ महाबातकीरूक्ष ] जी० ३।८०८ महानई [ महानदी ] ओ० ११५, ११७. रा० २७६ महानीसासतराय [महानिः श्वासतरक ] रा० ७७२ महानीहारतराय [महानीहारत रक] रा० ७७२ महापउम [ महापद्म ] रा० २७६ महापद्दह [महापद्मद्रह ] जी० ३।४४५ महापन रुख [महापद्मरूक्ष ] जी० ३८२६ Page #788 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महापट्टण-महिंदकुंभ महापट्टण [ महापत्तन ] ओ० ४६ महापरिग्गहया [ महापरिग्रहता ] ओ० ७३ महापह [ महापथ ] ओ० ५२, ५५. रा० ६५४, ६५५,६८७,७१२. जी० ३।५५४ महापाताल [ महापाताल ] जी० ३।७२३,७२६ महापाल [महापाताल ] जी० ३।७२३ से ७२५, ७२६ महापुंडरीय [ महापुण्डरीक ] ओ० १२. जी० ३ | ११८, ११६ महापुंडरीयद्दह [ महापुण्डरीकद्रह ] जी० ३।४४५ महापुरिसनिपडण [महापुरुषनिपतन ] जी० ३ ११७,६२७ [ महापौण्डरीक ] ओ० १५०. रा० २३, १६७,२७६,२८८.८११. जी० ३।२५६,२६१ महाबल [ महाबल ] रा० १०६. जी० ३३८६, ३५०, ७२१,१११६ महाभद्दपडिमा [महाभद्रपतिमा ] ओ० २४ महाभरण [ महाभरण] रा० ६६,७० महमद [ महामति ] रा० ७६५,७३६,७७० महमति [ महामन्त्रित्] ओ० १८. रा० ७५४, ७५६,७६२,७६४ महापड महामहतराय [ महामहत्तरक] रा० ७७२ महामहिम [ महामहिमन् ] जी० ३।६१५,६१७ महामुह [ महामुख ] रा० १४८,२८८. जी० ३।३२१,४५४ महामे [महामेघ] ओ० ४,६३. रा० १७०, ७०३. जी० ३।२७३ महायस [ महायशस् ] ओ० ४७,७२. रा० १८६, ६६६. जी० ३८६,३५०,७२१,१११६ महारंभ [ महारम्भ ] जी० ३।१२६ महारंभया [ महारम्भता ] ओ० ७३ महारव [ महारव] ओ० ४६ महारुक्ख [ महारूक्ष ] जी० ३११७१ महारोरुय [ महारोरुक ] जी० ३।१२,११७ महालत [ महत्] रा० ५६० महालय [ महत्] ओ० २४,७१,७८. रा० ५२, ६१,६६३, ६६४,७६६, ७७२, ७७६, ७८७. जी० ३।१२,७७,११७,७२३,११३० महालयत्त [‍ [ महत्त्व ] जी० ३१२७ महालिंजर [ महालिञ्जर] जी० ३।७२३ महालिया [ महती ] रा० ७६६,७७२ महावत [ महावर्त ] ओ० ४६ महावा [ महावात ] रा० १२३ महाविजय [ महाविजय ] जी० ३।६०१ महावित्त [ महावृत ] रा० २९२. जी० ३।४५७ महाविदेह [महाविदेह ओ० १४१. रा० ७६६. जी० २ १४; ३।२२६ महाविमाण [ महाविमान ] ओ० १६७,१६२. रा० १२६ महावीर [महावीर ] ओ० १६ से २५,२७,४५, ४७ से ५३,५५,६२,६६ से ७१,७६ से ८३,११७. रा०८ से १३, १५,५६,५८ से ६५,६८,७३, ७४,७६,८१,८३,११३,११८, १२०, १२१, ७११ ६६८,८१७ महावेयणतर [ महावेदनतर ] जी० ३ । १२६ महासंग्राम [ महासंग्राम [ जी० ३ ६२७ महासत्यनिपडण [ महाशस्त्रनिपतन ] जी० ३।६२७ महासन्नाह [ महासन्नाह ] जी० ३।६२७ महासमुह [ महासमुद्र ] ओ० ५२. रा० ६८७. जी० ३८४२, ८४५ महासवतराय [महास्रवतरक ] रा० ७७२ महासुक्क [महाशुक्र ] ओ० ५१,१९२. जी० २६६, १४८, १४९, ३१०३८, १०५१, १०६१, १०६६, १६८, १०८६, १०८८ महासोक्ख [ महासौख्य ] ओ० ४७,७२,१७०. रा० १८६,६६६ महाहारतराय [महाहारत रक] रा० ७७२ महाहिमवंत [ महाहिमवत् ] रा० २७९. जी० ३।२८५, ४४५, ७६५ हिंद [ महेन्द्र ] ओ० १४. रा० ६७१,६७६ महिंदकुंभ [ महेन्द्रकुम्भ ] रा० १३१,१४७. Page #789 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१२ जी० ३।३०१ मदज्य [ महेन्द्रध्वज ] /०५२,५६,२३१ से २३३,२३६,२४७ से २४९, ३११,३१४,३४६, ३५४. जी० ३।३९३ से ३६५, ४०१, ४०६, ४१०,४१२,४७६, ४७६, ५१४,५१६,६००,६०१ महिच्छ | नहेच्छ ] ओ० ४६ हड्डि [.] ओ० ४० से ५१,७२,१७०. १० १८६ जी० ३।२५३, २५७,६५६, ७६५, ८०८, ८२६,८५७,८६०,८६३,८६६,८६६,८७३, ८७५,८७,६२५, १०२१ महिड्डियतराय [महर्दिकतरक ] रा० ७७२ महिड्डीय | मटक] रा० ६६६. जी० ३२८६, ३५.६, ६३७, ६६४,७००, ७२१,७२४, ७३८, ७४१,७४३,७४६,७६०, ७६३, ७६५,८१६, ८५४,८५५, ६२३, ६८८ से ६६७,१०२१, १११६ महिम [ महिमन् ] जी० ३।६१६ [मति ] रा० ३८,१६०,२२२,२५६. बी० ३।३१२,३३३, ३८१,८६४ महिय | महित ] ओ० २,५५. रा० १२.२८१. जी० ३।३७२, ४४७ महिया [हि] जी० १।६५, ३।६२६ महि | महीपतिपथ ] ओ० १ | | ०१, १४,१६,५१, १०१,१२४, १४१. र ० २७,६७१,७७४, ७६६. जी० ३१८४, २८०, ५६६,६१८, १०३८ महिसी [ महिषी | जी० ३।६१६ म | मधु ] ओ० ६२, ६३. जी० ३।५८६, ५६२ महुयर [ मधुकर ] ओ० ५७ महुयरी [ मधुकरी] ओ० ६. जी० ३।२७५ महासव | मध्वाश्रव] ओ० २४ महर मधुर] ०६,७१. ० १३,१४,१७,१८, २०,६१,७६,१७३. जी० ११५, ५०, ३।२२, ११८,११६,२७५, २८६, ५९७, ६३६, ८५७,८६३ महेला [ महेला ] जी० ३।५६७ मज्झिमाणणिज्ज मक्ख [ महेशाख्य ] जी० ३०६६,३५०, ७२१, १११६ महोरग [ महोरग] ओ० १२०,१६२. रा० १४१, १७३, १६२,६१८,७५२,७७१,७८६. जी ० १ १०५, १२१; ३ २६६, २८५, ३१८, ६२५ महोरगकंठ [ महोरगकण्ठ ] रा० १५५,२५८. जी० ३।३२८ महोरगकंग [ महागकण्डक ] जी० ३.४१६ महोरगी [ महोगी ] जी० २८ मा [ मा] ओ० ११७. रा० ६६५ माइय [ दे० ] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. जी० ३।२६८.२७४ Sita [ मात्रिक ] ओ० १६. जी० ३। ५६६, ५६७ मारखिया [मातृरक्षिता ] ओ० ९२ माइल्लया | मायिता ] ओ० ७३ माउ [मातृ] ओ० १४. रा० ६७१ मागध [ मागध ] जी० ३:४४५ मागह [ मागध ] ओ० २,१११ से ११३. रा० २७६ मागच्छा [ मागधप्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५. जी० ३.६१६ माग [ मागधक] अ० १३७,१३८ for [arathi] ओ० १४६. रा० ८०६ माघवती [ माघवती ] जी० २३४ माबिय | Histon ] ओ० १८,५२,६३. रा० ६८७, ६८८, ७०४, ७५४,७५६, ७६२, ७६४. जी० ३ ६०६ माण | मान] ओ० १५, २८, ३७,४४,७१, ६१, ११७, ११६,१४३, १६१,१६३,१६८. रा० ६७१ से ६७३,७४८ से ७५०,७७३,७६६,८०१,८१६. जी० ३।१२८, ४३८, ५६८,७६५,८४१ माणसा [ मानकषायिन् ] जी० ६ १४८, १४९, १५२, १५५ माणसाय | मानकषाय | जी० १।१६ माणणिज्ज [ माननीय] रा० २४०,२७६. जी० ३।४०२, ४४२ Page #790 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माणवक-माहण ७१३ माणवक [मानवक] जी० ३।४०२,४०४,५१६ मानवग मानवक] रा० २४४,३५१. जी० ३।४०३,४०६,१०२५ मानवय [मानव] रा० २३६,२७६,३५१. जी० ३४०१,४४२,५१६ माणविवेग [मानविवेक] ओ० ७१ माणस [मानस ] ओ० ७४. रा० १५ माणसिय [मान सिक] ओ ० ६६ माणुस [मानुष] ओ० १६५,१३. रा० ७५१, ७५३. जी० ३८३८२ माणुसनग [ मानु नग] जी० ३८३८ २,३२ माणुसभाव [ मानुषभाव ओ० ७४१३ माणुसुत्तर [मानुत्तर जी० ३८३१,८३३. ८३६ से ८४२८४५. माणुस्स [मानुष्य] ० ७४१२. रा० ७५१,७५३. जी० ३११६ माणुस्सत [मानुष्यक] रा० ७५१ माणुस्सय [मानुष्यक] ओ० १५. रा०६८५,७१०, ७५३,७७४,७६१ मातंग [मातङ्ग] ओ० २६. जी०३।११८ माता [मातृ] जी० ३।६११ माता [मात्रा] जी० ३।६६८,८८२ माय [मा]--माएज्जा ओ०१६५।१५ मायंग [मातङ्ग] जी० ३।११६ माया मातृ] ओ०७१,१६२. जी० ३।६३ ११२ माया माया] ओ० २८,३७,४४,७१,६१,११७, ११६,१६१,१६३,१६८. रा०६७१,७६६. जी० ३।१२८,५९८,७६५,८४१ मायाकसाइ मायाकषायिन् ] जी० ६।१४८,१४६, १५२,१५५ मायाकसाय मायाकपाय] जी० १११६ मायामोस [मायामृषा] ओ० ७१,११७,१६१,१६३ मायामोसविवेग [ मायाभूषाविवेक ओ० ७१ मायाविवेगमायाविवेग ओ०७१ मार [ मार] रा० २४. जी० ३।२७७ मारणंतिय मारणान्तिक ओ० ७७. जी० ११८६ मारणं तियसमुग्धात [मारणान्तिक समुद्घात | जी० ३।१११२,१११३ मारणंतियसमुग्धाय [मारणान्तिार.मुद्घात जी० १।२३,५.३,६०,८२,१०१, ३।१०८,१५८ मारापविभत्ति मा क विक्ति रा०६४ मारि [मारि] ओ० १४. ० ६७१ मालणीय मालनीय) 0 १७,१८,२,३२, १२६. जी० ३।२८८,३७२ मालय (दे० मालक जी० ३।५६४ मालवंत माल्यवत् जी० ३१५७७,६६,६६७ मालवंतद्दहमाल्यवद्रहमी० ३१६६७ मालवंतपरियाग माल्यय पर्याय २७६ जी० ३.४४५ मालवंतपरियाय [माल्यवत्पर्याय] जी० ३१७६५ माला माला] ओ० ४७,५२,६३,६६,७२. जी० ३३५६१ मालागार [ मालाकार] रा० १२ मालिघरग [ मालिगृहक] रा० १८२ १८३. जी० ३।२६४ मालिणीय [मालिनीय ] जी० ३।३०० मालुयामंडवग [मालुकामण्डपक रा० १८४. जी. ३२२६६ मालुयामंडवय | मालुकामण्डपक] रा० १८५ मास [माग] ओ० २८,२६.११५,१४३. रा० ८०१. जी० ११८६; ३.११६,१७६,१७८, १८०,१८२,६३०,८४१,८४४,८४७,१०८०; ४१४,१४ मास माप] जी० ३।८१६ मासपरियाय मासपर्याय ] ओ० २३ मासल [मां पल] जी० ३।८१६,८६०,६५६ मासिय [ मासिक ओ० ३२ मासिया | मासिकी] ओ० २४,१४०,१५४ माहण [माहन] ओ० ५२,७६ से ८१. रा०६६७, ६७१,६८७,६८८,७१८,७१६,७८७,७८६ Page #791 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१४ माहणपरिव्वाय-मुएत्ता माहणपरिवाय [माहनपरिव्राजक] ओ०६६ ८०२,८११. जी० ३१६१३,६३१ माहणपरिसा [माहन परिषद् ] रा० ७६७ मित्त [मात्र] रा० २५४,८०६,८१० माहप्प [माहात्म्य ] ओ० ७१. रा०६१ मित्तपक्ख [मित्रपक्ष] जी० ३।४४८ माहिद [माहेन्द्र ] ओ० ५१,१६२. जी० २।६६ मिथुण [मिथुन] जी० ३।६३६ १४८,१४६ ; ३।१०३८,१०४७,१०५८,१०६६, । मिण [मिथुन] जी० ३।३५५ १०६८,१०७६,१०८८,१०६४,११०२,११११।। मिय [मृग] रा०६७१,७०३,७१८ मिउ [मृदु] रा० ३७,१३३. जी० ३।३०३,३११, मिय [मित] ओ० १६ ५६२,५६६,५६८,७६५,८४१ मियगंध [मृगगन्ध] जी० ३।६३१ मिउमद्दवसंपण्ण [मदुमार्दवसम्पन्न] ओ०६१ मियवण [मृगवन ] रा० ७०६,७११,७१३,७१६, मिउमद्दवसंपण्णया [मृदुमार्दवसम्पन्नता] ओ०११६ ७२६ मिजा [मज्जा] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, मिरिय [मरीचि] रा० १३३. जी० ३।२६१,३०३ ७५२,७८६ मिरीइकवच [मरीचिकवच] जी० ३।३७२ मिग [ मृग] ओ० ५१. रा० २४. जी० ३ १०३८ मिरीय [मरीचि] जी० ३१२६६,२६६,२७७ मिगज्य [मृगध्वज] रा० १६२. जी० ३।३३५ मिल [मिल्] -मिलति जी० ३।४४५ मिगलुद्धग [मृगलुब्धक ] ओ०६४ मिलाय [मिल]--मिलायंति. रा० २७६ मिगलोम [ मृगलोम] जी० ३।५६५ मिलाइत्ता [मिलित्वा] रा०२७६ भिगवण [मृगवन] रा० ६७० मिलायमाण [म्लायत्] रा० ७८२ मिच्छ [म्लेच्छ] ओ० १६५।१६ मिलित्ता [मिलित्वा] जी० ३।४४५ मिच्छत्त [मिथ्यात्व] ओ० ४६ मिलेच्छ [म्लेच्छ ] जी० ३।२२६ मिच्छत्तकिरिया [मिथ्यात्वक्रिया] जी० ३।२१०, मिसिमिसंत [दे०] ओ० ६३ २११ मिसिमिसेंत [दे०] रा० १७,१८,६६,७० मिच्छत्ताभिणिवेस [मिथ्यात्वाभिनिवेश] ओ०। मिस्स [मिश्र] जी० ११७१२ १५५,१६० मिहुण [मिथुन] ओ० ६. जी० ३।२७५,२८६ मिच्छदिट्टि [मिथ्यादृष्टि] ओ० १६०. रा० ६२. मिहुणग [मिथुनक] रा० १७४. जी० ३।३१८ जी० ३११०३,१५१ मिहुणय [मिथुनक] जी० ३।११८,११६ मिच्छा [मिथ्या] जी० ३।२११ मोरिय [मरीचि] ओ० १२ मिच्छादसणसल्ल मिथ्यादर्शनशल्य] ओ०७१, मीसजाय [मिश्रजात] ओ० १३४ ११७,१६१,१६३. रा० ७६६ मीसय [मिश्रक] ओ० ४६ मिच्छादसणसल्लविवेग [मिथ्यादर्शनशल्यविवेग] मोसिय [मिश्रित] ओ० २८ ओ० ७१ मुइंग [मृदङ्ग] ओ० ६७,६८. रा० ७,१३,२४,७७, मिच्छादिट्टि [मिथ्यादृष्टि] जी० ११२८,८६; ६५७,७१०,७७४. जी० ३।२७७,३५०,४४६, ३।११०५,११०६, ६।६७,६६ ५६३,५८८,८४२.८४५,१०२५ मिणालिया [ मृणालिका] जी० ३।२८२ मुइत्ता [मुक्त्वा ] रा० २८८ मित [मित] जी० ३१५९६,५६७ मुइय [मुदित] ओ० १४. रा० ६७१ मित्त [मित्र ओ० १५०. रा० ७५१,७७४, मुएत्ता [मुक्त्वा ] जी० ३६४५४ Page #792 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंच-मुय ८१४ मुंच [मुच्] -मुच्चइ. ओ० १७७. मुच्चंति. ओ० मुणिपरिसा [मुनिपरिषद् ] ओ० ७१. रा० ६१ ७२. जी० १११३३. -- मुच्चंती. ओ०७४।४. मुणिय [ज्ञात्वा] ओ० २३ मुच्चिहिति. ओ० १६६. –मुच्चिहिति. ओ० मुणतव्व [ज्ञातव्य ] जी० ३।६३४ १५४. रा० ६१६. मुणेयव्व [ज्ञातव्य ] जी० ३८३८।११,२२ मुंड [मुण्ड] ओ० २३,५२,७६,७८,१२०. रा० मुत्त [ मुक्त] ओ० १६,२१.४६,५४. रा० ८,२६२. ६८७,६८६,६६५,७३२,७३७,८१२ जी० ३।४५७ मुत्ता [मुक्ता] रा० २०. जी० ३।२८८ मुंडभाव [मुण्डभाव] ओ० १५४,१६५,१६६. रा० ८१६ मुत्ताजाल [मुक्त जाल ] ० १३२,१५६,१६१. मुंडमाल [मुण्डमाल ] जी० ३।५६४ जी० ३।२६५,३०२,३३२ मुंडि [मुण्डिन् ] ओ० ६४ मुत्तादाम [ मुक्तादामन्] रा० ४०. जी. ३।३१३, मुक्क [मुक्त] ओ० २,२७,५५. रा० १२.३२, ३५५ २८१. जी० ३।१२९६,३७२,४४७,५८०, मुत्तालय [मुक्तालय] ओ० १६३ ५६१,५६७ मुत्तावलि [मुक्तावलि] ओ० १०८,१३१. र.. २८५. जी० ३।४५१,६३६ मुक्कतोय [मुक्ततोय] रा० ८१३ मुत्तावलिपविभत्ति [मुक्तावलिप्रविभक्ति] रा०८५ मुखछिण्णग [मुखछिन्नक] ओ०६० मुत्ति [ मुक्ति] ओ० २५,४३,१६३. रा०६८६, मुगुंद [ मुकुन्द] रा० ७७ मुगुंदमह [मुकुन्दमह] जी० ३।६१५ मुत्तिमग्ग [ मुक्तिमार्ग] ओ० ७२ मुगुंसिया [दे० ] जी० २६ मुत्तिसुह [ मुक्तिसुख] ओ० १६५।१४ मुच्छिज्जंत [मूर्यमान] रा० ७७ मुद्दा [ मुद्रा] ओ० ४७. रा० २८५ मुच्छिता [ मूच्छिता] जी० ३।२८५ मुद्दिया [ मुद्रिका] ओ० ६३,१०८,१३१. जी० मुच्छिय [मूच्छित] रा० १५,७५३ ३।४५१ मुच्छिया [ मूच्छिता] रा० १७३ मुद्दियामंडवग [मृद्वीकामण्डपक] रा० १८४. जी० मुझ [मुह,]-मुज्झिहिति. ओ० १५०. रा० ३।२६६ ८११ मुद्दियामंडवय [मृद्वीकामण्डपक ] रा० १८५ मुट्ठि [ मुष्टि] रा० १३३. जी० ३१३०३ मुद्दियासार [मृद्वी कासार] जी० ३१५८६,८६० मुट्ठिजुद्ध [मुष्टियुद्ध] ओ० १४६. रा० ८०६ । मुद्ध [ मूर्धन् ] ओ० १६,२१,५४. जी० ३।५६६ मुट्ठिय [ मौष्टिक, मुष्टिक] ओ० १,२. रा० १२, मुद्धज [ मूर्धज] जी० ३।४१५ ७५८,७५६. जी० ३१११८ मुद्धय [ मूर्धज] रा० २५४ मुट्रियपेच्छा मौष्टिकप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. मुद्धाण [मूर्धन् ] रा० ८,२६२ जी० ३।६१६ मुद्धाहिसित्त [ मूर्धाभिषिक्त] ओ० १४. रा० ६७१ मुणाल [मृणाल] ओ० १६४. रा० १७४. जी० मुम्मुर मुर्मर] जी० ११७८; ३८५ ३।११८,११६,२८६ मुय [मृत] रा० ७६२,७६३ मुणालिया [मृणालिका] ओ० १६,४७. रा० २६. मुय [मुच्]-- मुयइ. रा० २८८. मुयति. जी० जी० ३।५९६ ३१४५४ Page #793 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१६ मुयंग-मोयग मुयंग [ मृदङ्ग] जी० ३७८ मुयंत मुञ्चत् ] ओ०७,८,१०. जी० ३.२७६ मुरंडी' [मुरण्डी] रा०८०४ मुरय [मुरज] ओ० ६७. ० १३.७७,६५७ मुरव [मुरज] जी० ३१७८,४४६ मुरवि [दे०] ओ० १०८,१३१. रा० २८५ मुसंढी [दे०] जी० ११७३ मुसल मुसल] ओ० १६. जी० ३।११०,५९६ मुसावाय [मृषावाद] ओ० ७१,७६ ७७,११७, १२१,१६१,१६३. रा० ६६३,७१७,७६६ मुसावायवेरमण [मृषावादविरमण ] ओ०७१ मुसुंढि [दे० ] ओ० १. जी० ३।११० मुहमंगलिय [मुखमाङ्गलिक] ओ० ६८ मुहमंडव [मुखमण्डप] रा० २११ से २१५,२६५ से २६६ ३२६ से ३३०,३३३ से ३३७. जी० ३।३७४ से ३७६,४१२,४२१,४६० से ४६४, ४६१ से ४६५,४६६ से ५०२,८८७ से ८८६ मुहमूल [ मुखमूल] जी० ३।७२३,७२६ मुहुत्त [ मुहूर्त ] ओ० २८,१४५. रा० ७५३,८०५ मुहुत्तंतर [मुहूर्तान्तर] रा० ७६५ मुहुत्ताग [ मुहूर्त रा० ७५१,७५३ मूढ [ मूढ ] रा० ७३२,७३७,७६५ मूढतराय [मूटतरक] रा० ७६५ मूल [मूल | ओ० ६४,१३५. रा० १२७,२०४, २०५,२०६,२२८. जी० ११७१,७२, ३।२६१, ३५२,३६४,३७२,३८७,६३२,६४३,६५४, ६६१,६७२,६७८,६७६,६८६,७२३,७२६, ७३६,७६२,८३६,८७८,८८२,१००७ मूलमंत [मूलबत् ] ओ० ५,८,१०. जी० ३।२७४, ३८६,५८१ मूलय | मूलक ] जी० ११७३ मूलारिह [ मूलार्ह ] ओ० ३६ मूलाहार [ मूलाहार] ओ० ६४ मूसग [ मूषक] जी० ३१८४ १. मरुण्डी [ओ० ७०] मूसिया [ मूषिका] जी० २६ मेइणी [ मेदिनी] जी० ३।५६७ मेंढमुह [ मेषमुख] जी० ३१२१६ मेघ [ मेघ ] रा० १३,१४ मेढि | मेढी'] रा० ६७५ मेढिभूय [ मेढीभूत ] रा० ६७५ मेत्त [मात्र] ओ० ३३,१२२. रा० ६,१२,४०, २०५ से २०८,२२५,२७६ मेत्तय [ मात्रक जी० ३।४४० मेधावि [ मेधाविन रा० १२,७५८,७५६ मेरग | मेरक] जी० ३।५८६ मेरय [मेरक] जी० ३।८६० मेरु [ मेरु ] जी० ३।८३८।१०,११ मेरुयालवण मेरुतालवन जी० ३.५८१ मेलिय [ मेलित] जी० ३:५६२ मेहमुह [ मेघमुख जी० ३।२१६ मेहला [ मेखला] जी० ३१५६३ मेहस्सर [मेघस्वर] रा० १३५. जी० ३।३०५ मेहावि | मेधाविन् ] ओ० ६३. जी० ३।११८ मेहुण [ मैथुन] ओ० ७१,७६,७७,११७,१२१, मेहुणवत्तिय [मैथुनप्रत्यय] जी० ३।१०२५ मेहुणवेरमण [ मैथुन विरमण] ओ० ७१ मेहुणसण्णा [मैथुनसंज्ञा] जी० १।२०; ३१२८ मोक्ख [मोक्ष] ओ० ७१,१२०,१६२ मोग्गर [ मुद्गर] जी० ३।११० मोग्गरगुम्म [ मुद्गरगुल्म] जी० ३।५८० मोणचरय [मौनचरक] ओ० ३४ मोत्तिय [मौक्तिक] ओ० २३. रा० ६६५. जी० ३।६०८ -मोय [मुच्] --मोएति. रा० ७३१ मोयग [मोचक] ओ० २१,५४. रा० ८,२६२. जी० ३।४५६ १. आप्टे, पृष्ठ १२८६- मेठिः, मेढी, मेथिः । Page #794 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोपडिमा रत्तबंधुजीव मोडमा [मय' प्रतिमा] ओ० २४ atra [ मोचक ] ओ० १६ मोर [ मयूर ] रा० २६. जी० ३३२७६ मोल्ल [ मूल्य ] ओ० १०५,१०६ मसणजोग [ मृपामनोयोग ] ओ० १७८ मोसवजोग [ मृषावाग्योग ] ओ० १७६ मोसबंधि [ मृषानुबन्धिन् । ओ० ४३ मोह [ मोह ] ओ० ४६. ० ७७१ / मोह [ मोहय् ] मोहंति. जी० ३।२१७ -मोहेंति. रा० १८५ मोहधर [ मोहनगृह ] जी० ३।५६४ मोह घर [ मोहनगृहक] रा० १८२, १८३. जी० ३।२६४ मोहणिज्ज [ मोहनीय] ओ० ८५,८६ मोहणी [ मोहनीय] ओ० ४४ मोहरिय [ मौखरिक] ओ० ६५ य य [च] ओ० ३२. रा० ७. जी० ११२ यज्जुवेद [ यजुर्वेद ] ओ० ६७ या [च] रा० ७०५ र इ [रति ] ओ० ४६. रा० १५,८०६,८१० [ रचित ] ओ० १,२१,४६,५४,६४,१३४, १८२. रा०८,३२,६६, ७६, १३३, ७१४. जी० ३।३७२, ५६१,५६६,५६७ इ [रतिद] ओ० १६. जी० ३।५६६,५६७ रइय [रतिक ] ओ० ६३,६५ रइल [ रजस्वत् ] जी० ३।७२१ उग्घात [ रजउद्घात ] जी० ३।६२६ रंगत [ रङ्गत्] ओ० ४६ रक्त [ रक्षत् ] ओ० ६४ रक्खस [ राक्षस ] ओ० ४६, १२०, १६२. रा० ६६८, ७५२,७८६ रक्खसमहोरग गंधव्व मंडलपविभत्ति [ राक्षस महोरगगन्धर्वमण्डलप्रविभक्ति ] रा० ९० √ रक्खाव [ रक्षापय् ] - रक्खावेमि. रा० ७५४ रक्खोवग [ रक्षोपग] रा० ६६४ रगसिगा [रगसिका ] जी० ३२५८८ रचि [ रचित ] जी० ३।३०३ रज्ज [राज्य] ओ० १४,२३. रा० ६७१,६७४, ६७६.७६०, ७६१ ७१७ √ रज्ज [ रज्ज् ] -- रज्जिहिति. ओ० १५० रज्जधुराचित [ राज्यश्चिन्तक ] रा० ६७५ रज्जसिरी [राज्यश्री ] रा० ७६१ रज्जु [ रज्जु ] रा० १३५. जी० ३,३०५ रट्ठ [ राष्ट्र ] ओ० २३. रा० ६७४,७६०,७६१ [अरण्य] ओ०२८ रण [ रत्न ] जी० ३।३४६ रतणसंचया [ रत्नसञ्चया ] जी० ३।२२ तणुच्चा [रलोच्चया ] जी० ३।२२ रति [रति ] जी० ३।११८, ११६,५६७ रतिकर [रतिकर ] रा० ५६. जी० ३।६१८ से २२ रतिय [रतिद] जी० ३५६६,५६७ रतिय [रतिक ] जी० ३२८४२,८४५ रत्त [रक्त] ओ० ४७,५१,६६,७१,१०७,१२०, १३०,१६२. रा० २७,७६, १३३, १७३,२२८, ६६४,६८,७५२, ७७७,७७८, ७८८, ७८६. जी० ३।२८०, २८५, ३०३, ३८७, ५६२, ५६५ से ५६७,६७२ रतंय [ रक्तांशुक ] रा० ३७,२४५. जी० ३३११,४०७ रणवीर [ रक्तकणवीर ] रा० २७. जी० ३१२८० रक्तचंदण [ रक्तचन्दन ] ओ० २,५५. रा० ३२, २८१. जी० ३।३७२, ४४७ रततल [ रक्ततल ] ओ० १६,४७. जी० ३।५९६ रक्तपाणि [ रक्तपाणि] रा० ६६४. जी० ३।५६२ रक्तबंधुजीव [ रक्तबन्धुजीव ] रा० २७ जी० ३।२८० Page #795 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्तरयण-रयणामय रत्तरयण [रक्तरत्न ] ओ० २३ रयण [रत्न] ओ० २३,४७,४६,६३,६४. रत्तवई [रक्तवती] रा० २७६ रा० १०,१२,१७,१८,३२,३७,४०,५१,६५, रत्तवती [ रक्तवती] जी० ३।४४५ ६६,७०,१३०,१३२,१३७,१६०,१६५,२२८, रत्ता [ रक्ता] रा० २७६. जी० ३।४४५ २५६,२७६,२८१,२८५,२६२,६६५,७७४. रत्तासोग [रक्ताशोक] ओ० २२. रा० २७,७७७, जी० ३७,२४६० से ६३,२६५,३००,३०२, ७७८,७८८. जी० ३।२८० ३०७,३११,३३३,३४६,३५७,३७२,३८७, रत्ति [रात्रि] रा० ४५ ४१७,४४५,४४७,४५७,५८७,५८६,५६०, रत्तुप्पल [रक्तोत्पल] ओ० १६. रा० २७. ५६३,६७२,७७५,६३६,६३७ जी० ३।२८०,५६६,५६७ रयणकंड [रत्नकाण्ड] जी० ३१८,१५,२० रत्था [रथ्या] ओ० ५५. रा० २८१. रयणकरंडग रत्नकरण्डक] ओ० २६. १० १५४, ___ जी० ३।४४७ २५८,२७६,७५० से ७५३. जी० ३।३२७, रथ [रथ] जी० ३।८६ ४१६,४४५ रद्ध [राद्ध] जी० ३।५६२ रयणकरंडय [ रत्नकरण्डक] रा० १५४. रम [रम्]-- रमंति. रा० १८५. जी०३।२१७. जी० ३।३२७ -रमिज्जइ. रा० ७८३ रयणकरंडा [रत्नकरण्डक] जी० ३।३५५ रमणिज्ज [रमणीय] ओ० १६,४७,६३,१९२. रयणजाल [रत्नजाल] रा० १६१. जी० ३।२६५ रा० २४,३३,३५,६५,६६,१२४,१७१,१८६ रयणप्पभा [रत्नप्रभा] रा० १२४. जी० ११६२; २११००,१२७,१३५,१३८,१४८,१४६ ३३, से १८८,२०३,२०४,२१७,२३७,२३८,२६१, ५ से ६,१२ से १९,२२ से २६,२९,३०,३३, ७८१ से ७८७. जी० ३।२१८,२५७,२७७, ३७ से ३६,४२,४४,४५,४७ से ५७,५६ से ३०६,३१०,३३६,३५६ से ३६१,३६४,३६५, ६५,७३,७६ से ७८,८०,८१,८३ से ४८,१०३ ३६८,३६६,३६६,४००,४२२,४२७,५८०, से ११०,११२,११६,१२० से १२४,१२६ से ५६६,५६७,६२३,६३३,६३४,६४५,६४६, १२८,२३२,२५७,१००३,१०३८,१०३६, ६४८,६४६,६५६,६६२,६६३,६७०,६७१, ६७३,६६०,६६१,७३७,७५५ से ७५८,७६८, ___ रयणप्पहा [रत्नप्रभा] ओ० १८६,१६२. ८८३,८८४,८६०,६०५,६०६,९१२,६१३, जी० १११०१२।१३५ १००३,१०३८ रयणभार [रत्नभार] रा०७७४ रम्म [ रम्य ] ओ० ४,६. रा० १७०,१७३,६७०, रयणभारथ [ रत्नभारक] रा० ७७४ ७०३,८०४. जी० ३।२७३,२७५,२८५,५६१ रयणमय [रत्नमय] जी० ३१७४७ रम्मगवास [रम्यक वर्ष] रा० २७६. जी० २।१३, रयणा [ रत्ना] जी० ३।६७ से ७२,९२२ ३२,५६,७०,७२,६६,१४७,१४६; ३।२२८, रयणागर [रत्नाकर] रा० ७७४ रयणामय [रत्नमय] ओ० १२. रा० २१,२३,३८, रम्मयवास [रम्पकवर्ष] जी० ३।७६५ १२४,१२५,१२७,१२८,१३१,१३४,१४१, रय [रजस्] ओ० २३. रा०६,१२,२८१. १४५,१४८,१५१,१५२,१५५ से १५७,१६०, जी० ३।४४७,५९८ १६१,१८० से १८५,१६२,१६७,२२२,२५३, रय [रय] ओ० ४६ २५६,२५७,२७२. जी० ३।२६२,२६३,२६६, Page #796 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलि-राइंदिय ७१६ २६८,२६६,२८९,२६१ से २६६,३०१,३०४, ३१०,३१२,३१८,३१६,३२४,३२५,३२८ से ३३०,३३३,३३४,३४७,३४८,३८१,४१४, ४१८,४३७,६७५,७५०,७५३,८६३,८६६, ६०७,६१८,१०३८,१०३६,१०८१ रयणावलि [रत्नावलि] ओ० १०८,१३१. रा० २८५. जी० ३:४५१ रयणावलिपविभत्ति [रत्नावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ रयणि [रलि] ओ० १६५॥६ रयणिकर [ रजनिकर] जी० ३।५६७ रणियर [ रजनिकर] ओ० १५. रा० ६७२. जी० ३१८३८/१२,१३ रयणी [रजनी] ओ० २२. रा० ७२३,७७७,७७८, ७८८ रयणी [ रत्नी] ओ० १८७,१९५७. जी० १११३५, ३४६१,७८८,१०८७ से १०८९ रयत [रजत] जी० ३७,३००,३३३,४१७ रयत्ताण [रजस्त्राण] रा० ३७,२४५. जी० ३।३११,४०७ रयय [रजत ] ओ० १४,१४१. रा० १०,१२,१८, ६५,१३०,१६०,१६५,१७४,२२८,२५५, २५६,२७६,६७१,७६६. जी० ३१२८६,३००, ३८७,४१६,६७२,६७६,७४७ रयय [पाय] [रजतपात्र] ओ० १०५,१२८ रयय [बंधण] [रजतबन्धन] ओ० १०६,१२६ रययामय [रजतमय] रा० ३७,१३०,१३२,१३५, १५३,१७४,१६०,२३६,२४०,२४५,२८८, २६१. जी० ३३२६४,२८६,३००,३०२,३०५, ३११,३२४,३२६,३९८,४०२,४०७,४५४, ४५७,६३६ रल्लग (रल्लक] जी० ३१५६५ रव [व] ओ० ४६,५२,६७,६८. रा० ७,१३, १५,५५,५६,५८,२८०,२६१,६५७,६८७, ६८८. जी. ३।३५०,४४६,४५७,५५७,५६३, ८४२,८४५,१०२५ रवंत [रवत्] मो० ४६ रवभूय [रवभूत] ओ० ५२. रा० ६८७,६८८ रवि [रवि] ओ० १६. जी० ३।५९६,५६७,८०६, ८३८।३ रस [रस] ओ० १५,१६१,१६३,१६६,१७०. रा० १७३,१६६,६७२,६८५,७१०,७५१, ७७४. जी० ११५,३८,५८,७३,७८,८१; ३।५८,८७,२७१,२८५,२८६,३८७,५८६,५६२, ६०१,६०२,७२४,७२७,८६०,८६६,८७२, ८७८,६७२,६८०,६८२,१०८१,१११८,११२४ रसओ [रसतस्] जी० ११५० रसतो [रसतस्] जी० ३।२२ रसपरिच्चाय [ रसपरित्याग] ओ० ३१,३५ रसमंत [ रसवत् ] जी० १॥३३ रसविगइ [रसविकृति] ओ०६३ रसिय [रसित] रा०१३,१४ रसोदय [ रसोदक] जी० ११६५ रह [ रथ] ओ० १,७,८,१०,५२,५५ से ५७,६२, ६४ से ६६,१००,१२३,१७०. रा० १५१, १७३,६८३,६८५,६८७ से ६८६,६६२,७०८, ७१०,७१६,७२७ से ७२६,७३१,७३२. जी० ३।२६०,२७६,२८५,३२३,५८१,५८५, ५६७,६१७ रहघणघणाइय [रथघनघनायित] रा० २८१. जी० ३।४४७ रहजोहि [रथयोधिन् ] ओ० १४८,१४६. रा० ८०६,८१० रहवाय [रथवात] रा० ७२८ रहस्स [ रहस्य] ओ०६७. रा० ६७५,७६३ रहित [रहित ] जी० ३।११२१ से ११२३ रहिय [रहित ] ओ० १. जी० ३१५६७ रहोकम्म [रहःकर्मन् ] रा० ८१५ राइ [राजि] ओ० १६. रा० ७५४ से ७५७. जी० ३१५६७ राइंदिय रात्रिदिव] ओ० २४,१४३. रा०८०१. जी० ११७६,८८,३१६३०,४१४,१३, ५।६,१३, २८,२६ Page #797 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२० राइण [ राजन्य ] ओ० २३,५२. रा० ६८७,६८८ राइय [ रात्रिक] ओ० २६ [ एगराइय ( एकरात्रिक) पंचराइय ( पंचरात्रिक) राईभोयण [ रात्रिभोजन ] ओ० ७६ राग [ राग] ओ० ३७,४६, ५२, ५५, ७४ ६, १०७, १३०,१६८. रा० १६,१३३,२८१,७७१. जी० ३।३०३,४४७, ५६५ रातिदिय [ रात्रिदिव ] जी० ३।२१८ राम [ राम ] ओ० ६६. जो० ३।११७ रामरक्खिया [ रामरक्षिता ] जी० ३।९१६ रामा [रामा] जी० ३६१६ राय [राजन् ] ओ० १४ से १६,१८,२०,२१,५२ से ५६,६२ से ६८,७०,७१,८०, ६६. रा० ५, ६,१५४,६४१ से ६७५,६७० से ६८१,६८३ से ६८५,६८७,६८८, ६६८ से ७००,७०२ से ७०४,७०८ से ७१०,७१८ से ७२०, ७२३ से से ७२६,७२८ से ७३४,७३६ से ७३६,७४७ से ७८१,७८८ से ७६१,७६३ से ७६६. जी० ३ १२६, ३२७, ५६२, ६०२, ६०६, ६३१, ७४७, ८६६,६५६ रायंगण [ राजाङ्गण] रा० १२,१७३. जी० ३।२८५ रायंतेउर [ राजान्तःपुर] रा० १२,१७३ रायकउह [राजककुद ] ओ० ६६ रायकज्ज [ राजकार्य ] रा० ६८०,६६८ रायकहा | राजकथा] ओ० १०४, १२७ राय किच्च [राजकृत्य ] रा० ६८०,६६८ रायकुल [ राजकुल ] रा० ६७१ रायणी [ राजनीति ] रा० ६८०,६६८ राधाणी [ राजधानी ] जी० ३१४४६,७००, ७०१ रायमग्ग [ राजमार्ग ] ओ० १. रा० ६८४,६८५, ७००,७०६ रायरुक्ख [ राजरूक्ष ] ओ० ६, १० जी० ३१३८८, ५८३ रायलवखण | राजलक्षण ] रा० ६७१ राइण्ण-रिसि रायववहार [ राजव्यवहार] रा० ६८०,६८ रायहाणी [ राजधानी ] रा० २८२,६६७. जी० ३१३५०, ३५१, ३५४, ३५५,३५७, ३५८, ३६०, ४३६,४४२,४४५,४४७, ४४८,५५४,५५५, ५५७,५६३,५६७ से ५६६, ६३७, ६३८, ६५६, ६६०,६६५,६६६,७०१,७१०,७१२,७१३, ७२१, ७३८, ७३६, ७४१, ७४४, ७४७, ७५१ से ७५३,७६०, ७६ १, ७६३ से ७८०,८००,८१४, ६०२,६१६ से २२, ६४०, ६४५ रायारिह [राजार्ह ] रा० ६८०,६८१,६८३,६८४, ६६६,७००, ७०२,७०८,७०६ रा [राशि ] ओ० १६५।१५ २० २७,२६,३१. जी० ३।२८०, २८२, २८४,८१६,८३६ राहु [राहु] ओ० ५० विमाण [ राहुविमान ] जी० ३८३८ । १७ रिउवेद [ऋग्वेद ] ओ० ६७ रिसिया [ दे० रिङ्गिसिका ] रा० ७७ रिक्ख [ ऋक्ष ] ओ० ६३. जी० ३१८३८१२६ रिट्ठ [रिष्ट ] रा० १०,१२,१८,६५,१६५,२७६. जी० ३७,८,१५,२४,३०,६२,३४६,४४५ रिट्ठमय [रिष्टमय ] जी० ३ | ४३५ [रिष्टक] ओ० १३ रिट्ठा [रिष्टा ] जी० ३।४ रिट्ठाभ [ रिष्टाभ ] जी० ३।५८६ रिट्ठामय [रिष्टमय ] रा० १६,१३०, १७५,१६०, २२८,२५४,२७०. जी० ३।२६४,२८७,३००, ३८७,४१५,४३५,६४३, ६७२ रिद्ध [ ऋद्ध] ओ० १. रा० १,६६८, ६६६, ६७६, ६७७ रिभित [ रिभित] जी० ३ ४४७ रिभिय [रिभित ] रा० ७६,१०६,११६,१७३, २८१. जी० ३।२८५ रियार [रितारित ] रा० १११,२८१. जी० ३०४४७ रिसि [ ऋषि ] ओ० ७१ Page #798 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तया (पाय) - रोग रीतिवा (पाय ) [ रीतिकापात्र ] ओ० १०५, १२८ रीतिया ( बंधण ) [ रीतिकाबन्धन ] ओ० १०६, १२६ रुयगवरोभासभद्द [ रुचकवरावभावभद्र ] जी० ३१६३४ रु | रुचि ] ० ७४५ से ७५०,७७३ रु | रुचिर ] जी० ३।५६६,६७२ रुइल [ रुचिर ] ०५, ८, १६. २०२२८. जी० ३।२७४, ३८७,५६६,५६७ रुंद [ दे० ] विस्तीर्ण ओ० ४६ रुक्ख [ रूक्ष ] रा० ७८२. जी० ११६६, ७०, ७२; ३५८१,६०३,६०४,६३९,६७६, ६३७ रुक्खगेहालय [ रूक्षगेहालय ] जी० ३।६०३,६०५ रुक्मह [ रुक्षमह ] रा० ६८८. जी० ३।६१५ रुक्खमूल [ रुक्षमूल ] ओ० ८,१०. जी० ३।३८६, ५८१ से ५८३,५८६ से ५६५ रुक्मूलिय [ रुक्षमूलिक] ओ० ६४ रुचिज्जमाण [ रुच्यमान] जी० ३।२८३ रुद्द [ रौद्र ] रा० ६७१ रुद्द (शाण ) [ रौद्रध्यान ] ओ० ४३ रुद्दमह [ रुद्रमह] रा० ६८८. जी० ३।६१५ रुपकूला [ रूप्यकूला ] रा० २७६. जी० ३१४४५ रुपच्छद [ रूप्यच्छद | जी० ३।३३२ रुपपट्ट [ रूप्यपट्ट ] रा० २२,२६. जी० ३।२८२, २६० रुपमणिमय | रूप्यमणिमय | रा० २७६,२८० रूप्पमत्र रूप्यमय ] रा० १५६, २७६,२८० रुपागर [ रूपयाकर ] रा० ७७४. जी० ३।११८ रुपामणिमय | रूप्यमणिमय ] जी० ३.४४५ रुपामय [ रूप्यमय ] जी० ३।४४५, ४४६ रुप्पि | रुक्मिन् ] रा० २७६. जी० ३।४४५, ७६५ our [ रुचक] ओ० ४७. जी० ३१५६६, ५६७, ७७५,६४२,६५२ ourer [ रुचकर ] जी० ३।६३४ ourवरभद्द [ रुचकवरभद्र ] जी० ३।६३४ ७२१ रुगवर महाभद्द [ रुचकवरमहाभद्र ] जी० ३।६३४ रुगवरोभास [ रुचरुवरावभात ] जी० ३।३४ गवरोभासमहाभद्द [ रुचकवरावभास महाभद्र ] जी० ३१६३४ ourवरोभासमहावर [ रुचकवरावभासमहावर ] जी० ३।६३४ ourवरोभासवर [ रुचकवरावभासवर ] जी० ३ ६३४ our [ रुचक] ओ० १६. जी० ३।६३४ रुरु [ रुरु ] ओ० १३. रा० १७,१८,२०,३२,३७, १२६. जी० ३३२८८, ३००, ३११,३७२ रुरि [ रुधिर] रा० २७. जी० ३ २८० रूत [ रूत ] जी० ३।४०७ रूय [ रूत ] ओ० १३. रा० ३१,३७,१८५,२४५. जी० ३।२८४,२६७, ३११ रूब [रूप] ओ० १५,२३,४७, ६३, ७२, १४६, १६१, १६३,१६२. रा० १०, ४७,५४, ६६, ७०, ७६, १७३, १६०, ६७२,६८५,७१०, ७५१,७७१, ७७४,८०६,८०६८१०. जी० २।१५१; ३।११०,१११,२६४, २८५, ५०, ५०४, ५६६, ५६७,६८२,१११५, १११७,११२४ वग | रूपक ] रा० १७, १८, २०,३२,१२६, १३२. जी० ३२८८,३००, ३७२ रूव संपण्ण [ रूपसम्पन्न ] ० २५. रा० ६८६ रूवि [रूपिन् ] रा० ७७१. जी० ११३,५ रेणु रेणु ] रा० ६, १२,२८१. जी० ३।४४७ रेयग [ रेचक ] रा० ७६ रेरिज्माण | राराज्यमान | रा० ७५२ रोइयावसाण | रोचितावसान ] रा० ११५,१७३, २८१. जी० ३।४४७ रोएमाण | रोचमान ] जी० १/१ रोचियावसाण | रोचितावतान ] जी० ३२२८५ रोग [ रोग] ओ० ४६,११७. रा० ७६६. जी० ३।६२८,६३१ Page #799 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२२ रोम [ रोमन् ] ओ० ६२. जी० ३१५६७ रोमराइ [ रोमराज ] ओ० १६. रा० २५४. जी० ३,४१५,५६६, ५६७ रोमसुह (रोमसुख ] ओ० ६३ रोव [ रुच्) रोएज्जा रा० ७५० - रोएमि. रा० ६६५ रोरुप [रोरुक ] जी० ३।१२,११७ रोहिणिय [रोहिणिक ] जी० ११८८ रोहिणी [ रोहिणी ] जी० ३६२१ रोहितंसा [रोहितांशा ] जी० ३।४४५ रोहिया [ रोहिता ] रा० २७६. जी० ३४४५ रोहियंसा | रोहितांशा ] २० २७६ ल लउड | लकुट ] जी० ३।११० लय [ लकुच ] ओ० ६ से ११. जी० १।७२; ३।५८३ लडल [ लकुट ] ओ० ६४ लउलग्ग [ लकुटाग्र] जी० ३१८५ उसिया [ लाओसिया, लउसिया | अ० ७०. रा० ८०४ ख [ ] ओ० १,२ लखपेच्छा [लङ्खप्रेक्षा ] ओ० १०२,१२५. जी० ३।६१६ लंघण [ लङ्घन ] रा० १२,७५८,७५६. जी० ३।११८ ias [लान्तक ] ओ० ५१,१६२. जी० ३।१०३८, १०५०, ११११ it [लान्तक ] ओ० १५५. जी० २।१४८, १४६ ३ १०६०, १०६६, १०६८, १०७६, १०८८, १०६५,११०३ लंबत [ लम्बमान ] जी० ३।५६१ बिग | लम्बितक] ओ० ६० लंबूस [लम्बूस ] रा० ४०,१३२,१६१. जी० ३ २६५,३०२.३१३, ३६७ लक्खण [ लक्षण | ओ० १४, १५, १६,४३, १४३, रोम- ललिय १६५।११. रा० १३३,६७२, ६७३,७७४, ८०१. जी० ३।३०३,५६६,५६७ लक्खारसग [ लाक्षारसक ] रा० २७ लक्खारसय [ लाक्षारसक ] जी० ३।२८० लग्ग [ लग्न ] ओ० २३ लच्छी [ लक्ष्मी ] ओ० ६५ लज्जा [ लज्जा ] ओ० २५ लज्जा संपण्ण [ लज्जासम्पन्न ] ओ० २५. रा० ६८६ लज्जु | लज्जावत् ] ओ० १६४ लट्ठ [ लाट ] ओ० १,१६,६३. रा० ३२, ५२, ५६, २३१,२४७. जी० ३ ३७२, ३६३, ४०१, ५६६, ५६७ लट्ठदंत [लष्टदन्त ] जी० ३।२१६ fe [] ओ० ६४ लडह [ दे० ] ओ० १६. जी० ३ । ५६६, ५६७ ह [ श्लक्ष्ण] ओ० १२,१६४. रा० २१,२३, ३२, ३४,३६,१२४, १४५,१५७. जी० ३।२६१, २६६,२६६ लता [लता ] जी० १६६; ३।१७३,३५५ लत्तिया [ दे० ] रा० ७७ लब | लब्ध ] ओ० २०, ४६, ५३, १२०, १५४,१६२, १६५,१६६. रा० ६३, ६५, ६६७, ६६८,७१३, ७५२,७६५, ७६६,७७०,७८६,७६७, ८१६ लद्धपच्चय [ लब्ध प्रत्यय ] रा० ६७५ लभ [लम् ] - लब्भति. रा० ७७४ - लभइ. रा० ७१६. - लभेज्ज. रा० ७१६ लय | लप ] रा० ७६,१७३. जी० ३।२८५ लया [लता ] रा० १३६. जी० ३।३०६,६३९ लयाघरग [ लतागृहक] २१० १५२, १८३. जी० ३२६४ लयाजुद्ध [ लतायुद्ध ] ओ० १४६. रा० ८०६ लयापविभति [ लताप्रविभक्ति ] रा० १०१ √ लल [लल् ] -ललंति. रा० १८५. जी० ३:२१७ ललिय [ ललित ] ओ० १५,५७,६३. रा० ५०,७६, १७३,६७२. जी० ३।२८५,५६७ Page #800 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लव-लेसा ७२३ लव लव ओ० २८. जी० ३८४१ जी० ३६१६ लवइय | दे० लवकित] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. लासिया [ल्हागिका] ओ० ७०. रा०८०४ जी० ३।२६८,२७४ लिंद [लिन्द्र] जी० ३१७२१ लवंग [लवङ्ग] रा० २६,३०. जी० ३ २८२ लिंब [लिम्ब] रा० ३७ लवण लवण] जी० ३।२१७,२१६ से २२७,३००, लिक्खा [लिक्षा] जी० ३।६२४,७८८ ५६६,५६८,५६६.५७१, से ५७६,७०४ से लिच्च [लिच्च] जी० ३।३११ ७०८,७१०,७११,७१३ से ७२३,७२६,७२८ से लित्त [लिप्त रा० १२३,७५५,७७२ ७३१,७३३,७३६,७३६ से ७४१,७४५,७४७, लिप्पासण [लिप्यासन] रा० २७०. जी० ३१४३५ ७५०,७५४,७६१,७६२,७६५ से ७६६,७७५, लीला लीला] रा० १७,१८,१३०,१३३. ७८१ से ७८६,७८८ से ७९६,८३८।२४,६५१, जी० ३१३००,३०३ ६६३,६६६,६६६ लुक्ख रूक्ष] जी० ११५,३६,४०,५०; ३२२ लवणग | लवणक] जी० ३१७१० तुद्धग [ लुब्धक ] रा० ७७४ लवणतोय [लवणतोय] जी० ३१८३८।२३ Vलुय [लू]---लुज्जइ. रा० ७८४ लवणसिहा [लवणशिखा] जी० ३१७३२ लूसणया [लूषण] ओ० १०३,१२६ लवणाहिवइ [लवणाधिपति जी० ३।७२१,७५४, लूसमाण [लूषत् ] रा० १३३ लूसेमाण [लूषत् ] जी. ३३०३ लवणोदय [लवणोदक ] जी० ११६५ इलूह | रूक्षय, मृज्]--लूहेति. रा० २८५. लवय लवक] जी० ३१३८८ जी० ३१४५१ लहु लघु जी० ३१२२ लूहाहार [रूक्षाहार] ओ० ३४ लहुय लघुक] ओ० ४६. जी० ११५; १८७८ लूहिय [रूक्षित] ओ० ६३ लहुयत्त लघुकत्व] रा० ७६२,७६३ लूहेत्ता रूक्षयित्वा] रा० २८५. जी० ३४५१ लाइय [दे०] ओ० २,५५. रा० ३२.२८१. लेक्ख लेख्य] रा० २७०. जी. ३१४३५ जी० ३।३७२,४४७ लेच्छह | लिच्छवि, लेच्छवि ऑ०५२. रा० ६८७. लाघव [ लाघव] ओ० २५. रा० ६८६,८१४ ६८८ लाघवसंपण्ण लाघवसम्पन्न ] ओ० २५. रा० ६८६ लेच्छईपुत्त । लिच्छविपुत्र, लच्छविपुत्र ] ओ० ५२. लाभत्थिय लाभार्थिक ] ओ०६८ रा० ६८७,६८८ लाला लाला] रा० १३५,२८५. जी० ३.३०५, लेच्छतिपुत्त [लिच्छविपुत्र,लच्छविपुत्र ] जी० ३।११७ लेट्ठ लेष्टु] आ० २६ लावणग लावणिक जी० ३१७६६ से ७६६ लेण लयन ओ० १४६,१५०. रा० ८१०,८११. लावणिग लावणिक] जी० ३१८३८।२४ जी० ३१५६४ लावण्ण [लावण्य ] ओ० १५,२३. रा० ६६,७०. जी० ३।५६७ लेस लेश्या] रा ० ७७१ लास [लासय् ]--लामेंति. रा० २८१. लेसणया [लेशन] ओ० १०३,१२६ जी०३:४४७ लेसा लेश्या ओ० ४७,७२,११६ जी०१।१४ लासग लासक] ओ० १,२ २१,५६,८६,६६,१०१,१२८; ३१६८,६९, लासगपेच्छा [लासकप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. १२७।४,१२८,१५०,८४१; ६।६६ ४५१ Page #801 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२४ लेस्सा-लोहियक्ख लेस्सा लेश्या] ओ० १५६. जी० १।२१,७६, ५६४,५६५. जी० ३।४४५,४५७,४६० से ११६,१३६, ३१०१,१२८,१५०,१६०, ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५३२, ११०१ ५४७ लेह [लेख] ओ० १४६. रा० ८०६,८०७ लोमहत्थय [ल महस्तक रा० २६१,२६४ से लेहणी [लेखनी] रा० २७०. जी० ३।४३५ २६७,३००,३०५,३१० से ३१२,३५२ से लोग लक] रा० ७५१,७५३,८१५. जी०१११४०; ३५६,४१४,४७३ से ४७५,५३४,५३५,५६४ ३१७६५,८३८२,६७२, ५९ ५६५. जी० ३४५८ लोगंत [लोकान्त ] ओ० १६५,१६५६ लोमहरिस लोमहर्ष ] जी० ३।८३ लोगद्विति [लोकस्थिति] जी० ३।७६५ लोय [लोक ] ओ० ७१,१६६,१७०,१७४, लोगणाह [लोकनाथ ] रा० २६२. जी० ३.४५७ जी० १६१३६,२१२०,१३१,३।११८,११६, लोगनाली [लोक नाडी, "नाली ] जी० ३।११११ ८४१, ५८,२२, ६।२५७ लोगनाह [लोकनाथ ] रा०८ लोयंत [लोकान्त जी० ३१३३ से ३६, १००२ लोगपईव [लोकप्रदीप] रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ लायग्ग [ लोकाग्र] ओ० १६८,१६३,१६५।२ लोगपज्जोयगर [ल कप्रद्योतकर] रा० ८,२६२. लोयग्गथूभिया [लोकावस्तूपिका] ओ० १६३ जो० २।४५७ लोग्गपडिबुज्झणा [ लोकानप्रतिबोधना] लोगमज्झावसाणिय [लोकमध्यावसानिक | ओ०१६३ रा० ११७,२८१ जी० ३,४४७ लोयण [ले.चन] जी० ३.५६७ लोगहिय [लोकहित] रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ लोल [लोल] ओ० ६. जी० ३।२७५ लोगाणुभाव [लोकानुभाव] जी० ३१७६५ लोव [लोप] ओ० ११७ लोगुत्तम [लोकोत्तम] रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ लोह [ लोभ ] ओ० २८,३७,४४,६१,११७,१६१, लोगोवयारविणय [लोकोपचारविनय ] ओ० ४० १६३,१६८. रा० ७६६. जी० ३११२८ लोण | लवण] ओ०६२. जी० ३१७२१ लोहकसाइ लोभकष यिन् ] जी० ६१५३ लोद्ध लोन ओ० ६,१०. जी. ११७२; ३।३८८, लोहकसाय [लोभकषाय] जी० १११६ ५८३ लोहया [लोभता] ओ० ११६ लोभ लोभ] ओ० ४६,७१. जी० ३:१२८,५६८, लोहारंबरिस लाहकारम्बरीष ] जी० ३।११८ ७९५,८४१ लोहित लोहित] रा० १२८,१३२. जी० ३१२२, लोभकसाइ [लोभकपायिन् ] जी० १११३१ ; ४५ ६।१४८,१५०,१५५ लोहितक्ख लोहिताक्ष ] जी० ३।७,३००,४१५ लोभविवेक [लोभविवेक ] ओ० ७१ लोहितक्खमणि [लोहिताक्षमणि] जी० ३।२८० लोमपक्खि [लोमपक्षिन् ] जी० १:११३,११५ लोहितक्खमय [लोहिताक्षमय] रा० १६,१७५, लोमहत्थ [ल महस्त ] ओ० २. रा० १५६,१५७, १६०. जी० ३।२६४,२८७,३०० २५८,२७६,२६५ से २६६,३५१. जी०३।३२६, लोहितग [ लोहितक] जी० ३।२८० ३३०,४१६,४६० लोहिय | लोहित | ओ० १२. रा० २२,२४,२७, लोमहत्थग [लोमहस्तक] रा० २६१,२६४ से । १५३. जी० १:५०, ३११११,२६०,३२६, २६६,२६८,३००,३०५,३१० से ३१२,३५१ १०७५,१०७६ से ३५६,४१४,४७३ से ८७५,५३४,५३५, लोहियक्ख [लोहिताक्ष] रा० १०,१२,१८,६५, Page #802 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोहियक्खमणि-वंदणकाम ७२५ १३०,१६५,२५४,२७९. जी० ३१४१५ लोहियक्खमणि [लोहिताक्षमणि] रा० २७ लोहियक्खमय [लोहिताक्षमय [ रा० १३०,२४५ __ जी० ३१४०७,४७७ लोहितपाणि [लोहितपाणि] रा० ६७१ लोही [लोही] जी. ११७३ लोही [लौही] जी० ३१७८ व [ इव] ओ० २७ व [च] जी. ३।१२६६ वह [वाच्] ओ० ३७,४० वइकच्छछिण्णग [वैकक्षछिन्नक] ओ०६० वइगुत्त [वाग्गुप्त] ओ० १६४ वइजोग [वाग्योग] ओ० ३७ वइजोगि [वाग्योगिन् ] जी० ११३१,८७,१३३; ३।१०५,१५३,११०६६।११३,११४,११७, ३००,३२१,३३८,३५१. जी० ३८७,१११, २६१,२६४,२८६,२८७,३००,३०२,३०५, ३०७,३११,३१३,३२२,३२६,३५५,३७७, ३८७,३६३,३६७,३६८,४०१,४०२,४०७, ४१०,४१५,४३५,४४२,४६५,४८६,५०३, ५१६,५६२,६४३,६५४,६७२,६७६,७२४, ७२७,८८१,८६१,६००,६२७,६४८,१०२५ वइरोयणराय [वैरोचन राज] जी० ३।२४० से २४३ वइरोणिद [वैरोचनेंद्र ] जी० ३।२४० से २४३ वइरोसभणाराय [वज्रऋषभनाराच] ओ० १८५ वइरोसभनाराय [वज्रऋषभनाराच ] जी० ११११६ वइविणय [वाग्विनय] ओ० ४० वइसमिय [वाक्समित] ओ० १६४ वंक [वक्र] ओ० १ वंग [वङ्ग] जी० ३१५६५ वंग [व्यङ्ग] जी० ३।५६७ वंधण [वञ्चन] रा० ६७१ वंचणया [वञ्चनता] ओ०७३ वंजण [व्यञ्जन] ओ० १५,१४३. रा० ६७२, ६७३,८०१. जी० ३।५९६ बंद [वन्द्]---वंदइ. ओ० २१.--वंदंति ओ० ४७. रा० १०.-वंदति. रा० ८. जी० ३।४५७.---वंदह. रा०६..---वंदामि. ओ० २१. रा० ८.--वंदामो. ओ० ५२. रा० १०.--वंदिज्जाह. रा०७०६. -~-वंदिस्सति रा०६०४.--वंदेज्जा. रा० ७७६ वंद [वृन्द] ओ० ७०,७१. रा० ६१,६६२,७१६, १२० वइर [वज्र] ओ०१२,१६,४८. रा० १०,१२, १७,१८,२०,२२,३२,६५,१२६,१५६,१६०, १६५,२५६,२७६,२८१,२६२,७७४. जी० ३१७,६१ से ६३,२८८,२६०,३००,३३२, ३३३,३४६,३७२,४१७,४५७,५६६ वहरणाभ [वज्रनाभ] जी० ३।३२३ वइरनाभ वज्रनाभ] रा० १५० वइरभंड [वज्रभाण्ड] रा० ७७४ वइरभार [वज्रभार] रा० ७७४ वइरभारय वज्रभारक रा० ७७४ वइरमज्झा [वज्रमध्या ओ० २४ वइररिसहणाराय वज्रऋषभनाराच | ओ० ८२ वइरोगर [वज्राकर रा० ७७४ वइरामय वज्रमय रा० १६,३५,३७,३६,४०, ५२,५६,१३०,१३२,१३५,१३७,१५३,१७५, १६०,२१७,२१८,२२८,२३१,२३५,२३६, २४०,२५,२४७,१४६,२५४,२७०,२७६, ८०४ वंदण [वन्दन] ओ० २,५२. रा० १६,६८७,६८६ वंदणकलस वंदनकलश ओ० २,५५. रा० ३२, १३१,१४७,२५८,२८१,२६०. जी० ३१३०१, ३२०,३५५,३७२,४१६,४४७,४५६,८८६ वंदणकाम | वन्दनकाम] ओ०५१ Page #803 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२६ वंदणघड-बट्टखेड्ड वंदणघड [वन्दनघट [ ओ० २,५५. रा० ३२, ४६५,४७०,४७७,५१६,५२० २८१. जी० ३३७२,४४७ विच्च [व]- वच्चंति. जी० ३।१२६९ वंदणिज्ज [वन्दनीय ओ० २. रा० २४०,२७६. वच्चंसि [वर्चस्विन् ओ० २५. रा० ६८६ जी० ३।४०२,४४२ वच्चग [वच्चक] जी० ३१५८८ वंदावंदय [वृन्दवृन्दक] रा० ६८८,६८६ बच्चघर [व]गृह] रा० ७५३ वदित्तए वन्दितम] ओ० १३६. राह वच्छ [वक्षम् ] ओ० १६, २१, ४७, ५४, ५७, वंदित्ता [वन्दित्वा] ओ० २१. रा० ८. ६३, ६५, ७२. रा०८, ६६, ७१४, जी. जी० ३.४५७ ३.५९६, ११२१ वंस [ वंश] आ० १४. रा० ७६,७७,१३०,१७३, वज्ज [वर्ज] ओ० २६. जी० ११५१, ५५, ६१, १६०,६७१. जी. ३।२६४,२८५,३००,५८८ ८७,१०१,११६,१२३,१२८।३।१५५,६०५; वंसकवेल्लुय [वशकवेल्लुक ] रा० १३०,१६०. ६।१० जी० ३।२६४,३०० वज्ज [वज्र] जी० ३१५९७ वंसग [वंशक] रा० १३०. जी० ३।३०० वज्ज्जकंद [वज्रकन्द ] जी० ११७३ वंसा [वंशा] जी० ३।४ वज्जरिसभनाराय [वज्रऋपभनाराच जी० वक्कंति [अवक्रांति] जी० ११५१, ३।१२१,१५६, ३३५६८ १०८२ यज्जित्ता [वर्जयित्वा ] जी० ३।७७ वक्कंतिय [अवक्रांतिक] रा० ७६५ वज्जिय [वजित] ओ० ४८. रा० ७७४, विक्कम [अव+क्रम]----वक्कमंति. जी० ११५८ जी० ३१५६८ वक्ख | वक्ष] जी० ३१५६७ बज्जेता वर्जयित्वा] रा० २४०. जी० ३४०२ वक्खार [वक्षार, वक्षस्कार] रा० २७६. वझवत्तिय [वर्धवर्तित] ओ०६० जी० ३।४४५,५७७,६६८,७७५,६३७ वट्ट [वृत्त] ओ० १,२,१६,५५,१७०. रा० १२, Vवग्ग विल्ग-वग्गंति. रा० २८१. ३२,५२,५६,२३१,२८१,२६१,२६४,२६६, जी० ३४४७ ३००,३०५,३१२,३५५,७५८,७५६. वग्गण वल्गन] ओ० ६३ जी० १:५; ३३२२,४८ से ५०,७७ से ७६, वग्गवग्गु वर्गवर्ग] जी० १६५।१४ ८६,२६०,२७४,३५२,३७२,३६३,४०१, वगु वाच्] ओ० ६८. रा० ७६७ ४४७,४५९.४६१,४६२,४६५,४७०,४७७, वग्गुरा [वागुरा] ओ० ५२. रा० ६८७,६८८, ५१६.५२०,५६४,५६६,५६७,७०४,७६३, ७०० ७६६,८१०,८२१,८३१,८४८,८५६,८५६, ८६२,८६५,८६८,८७१,८७४,८७७,८८०, वग्गुलि [वल्गुलि ] जी० १.११४ वग्घ [व्याघ्र रा०२४. जी० ३।८४,२७७,६२० ११०,६२५,९२७ से ६३२,६३८,६४३,१०७१, १०७२ वग्धमुह व्याघ्रमुख ] जी. ३।२१६ वग्धारित दे० जी० ३.३०३,३६७,४४७,४५६ वट्ट [वृत्-वट्टसि. रा० ७६७.... वट्टिस्वामि. वग्धारिय [दे० ओ० २,५५. रा० ३२,१३२, रा० ७६८ २३५,२८१,२६१,२९४,२६६,३००,३०५, वट्टक [वर्तक] जी० ३।५८७ ३१२,३५५. जी० ३।३०२,३७२,४६१,४६२. वट्टखेड्ड [वृत्तखेल ] ओ० १४६. रा० ८०६ Page #804 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वट्टभाव-वणस्सतिकाल भाव [ वृत्तभाव ] ओ० ५,८. जी० ३।२७४ मग्ग [ वृत्तमार्ग, वर्त्म मार्ग ] ओ० ५६ वट्टमाण [ वर्तमान ] ओ० ४७. रा० २८१,८१५. जी ० ३ | ४४७ वट्टमाल [ वृत्तमाल ] जी० ३१५८२ लोह [पाय ] [ वृत्त लोहपात्र ] ओ० १०५,१२८ वट्टलोह [ बंधण ] वृत्तलोहबन्धन ] ओ० १०६, १२६ वेत [वृत्तवेताढ्य ] जी० ३।४४५ Made [वृत्तवैताढ्य ] रा० २७६. जी० ३।४४५, ७६५ [] जी० ११७२,३१५८६ वट्टज्ज माणचर [वर्त्यमानचरक ] ओ० ३४ ट्टित्ता [वर्तित्वा ] रा० ७७६ af [र्तित ] ओ० १६७१. रा० ६१,१३३, २४५,७६८,७७७. जी० ३ १७२,३०३,५६६, ५६७ Master [asfer ] रा० ८०४ aभी [ वडभी ] ओ० ७० after [ अवतंसक ] ओ० १० asta [ अवतंसक ] ओ० १२. जी० ३।५८४ डेंस [ अवतंसक ] ओ० ५,८,६४. रा० १२५, १४५. जी० ३।२६८,२७४, २८५,७०२,८०८, ८२६,१०३६ [] रा० १२५ वड्ढइ. जी० ३ ७३१ - वड्ढए. जी० ३८३८११४. बड्ढति जी० ३।७२३ a 1 वड्ड [वृथ्] वण [ वन ] रा० ४५,६५४,६५५,७६५. जी० ३ ५५४,५८१ वण (लया ) [ वनलता ] जी० ३।२६८ वणत्थि [ वनार्थिन् ] ० ७६५ authsers | वनस्पतिकायिक ] जी० ३।१९६ वणष्फति [ वनस्पति ] जी० ३।१२३ aroफतिकाइय [ वनस्पतिकायिक ] जी ३।१२६, १६६ ७२७ वर्णमाला [ वनमाला ] ओ० ४७, ४८, ७२. रा० १३६,२१०, २१२. जी० ३।३०६, ३५४, ३७३, ५६१,६४७,६७३,८८६,८८८ वराइ [ वनराजि] रा० ६५४,६५५. जी० ३।२७६,५५४,५५५,५८५,६३१ वणराति [ वनराजि ] रा० २६ arcar [ वनलता ] ओ० ११,१३. रा० १७, १८, २०, ३२,३७,१२६, १४५. जी० ३।२८८, ३००, ३११, ३७२,५८४ वलयाविभत्ति [ वनलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ aris [ वनषण्ड ] ओ० ३,४, ८. रा० ३,१७०, १७१,१७४, १८२, १८४, १८६, १८६,२०१, २३३,२६३,६५४,६५५,७०३, ७८ १,७८२, ७८६,७८७. जी० ३।२१७, २५६,२७३, २७७, २८६,२६४,२६६, २६८, ३५८,३५६, ३६२, ३६५,५५४,६३२,६३९,६६१,६६८,६८१ से ६८३,६८८,६८६,७०६,७३६,७५४, ७६२, ७६५, ७६८, ७६८,८१२,८२३, ८३६,८५०, ८५७,८८२,६१०,६११ वणस्स [ वनस्पति ] जी०८१३ arrasers | वनस्पतिकायिक ] जी० १११२,६६ से ७४; २।१३८; ३।१३१,१३५, ५०६, १५; ८११; ६६१८४,२६३ arrested [ वनस्पतिकायिकत्व ] जी० ३ १२७ areesकाल [ वनस्पतिकाल ] जी० १११४२ ; २/६३,६५ से ६७, ११७, १२६, १२७, १३०: ४१२७६/११७, १२७, २६४,२७१ वसति [ वनस्पति ] जी० ५।१७ वसतिकाइय [ वनस्पतिकायिक ] जी० २।१०२, १२०,१३१, १३६, १३८, १४६. १४६; ३ । १३५; ५१, ३, ६, १८ से २०८४ ५ ६ १८२, २५६, २५८,२६६ वसतिकाल [ वनस्पतिकाल ] जी० २२८६ से ८८, ६० से ६२, ११६,१३१,१३३, ३।११३४ Page #805 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२८ वणिय-वस्थि ११३७,४१७,५।१७,३०,६८,१०,७।१०, ८५०,८५७,८८२,८८४,८८५,८८७,६१०, १३ से १५,१७,१८,६।३,४,५८,५६,८०,८३, ६११,६३६,१००८ १०३,१०५,११५,१२४,१२६,१३६,१३८, वण्णसंजलणया [वर्णसंज्वलनता] ओ० ४० १७७,१९४,२०७,२११,२१६,२१८,२२२, वण्णाभ[वर्णाभ ] रा १२४. जी. ३१७७.६३७. २२६,२३६,२४१ से २४३,२४६,२६२,२७७ ६५६,६६४,७३८,७४३,७६३,८१६,८५४, से २७६,२८१,२८२ ८७२ वणिय [वज्]ि आ० १ वण्णावास | वर्णावास] रा० १६,२०,२५ से २६, वणोवजीवि वनापजीविन्] रा० ७६५ ३७,४५,१३५,१४६,१७५,१६०,२२८,२४५, वण्ण [वर्ण] ओ० २,१३,२३,२५,४७,४६ से ५१, २५४,२७०. जी० ३।२६४,२७८ से २८२, ५५,७२,१६६,१७०,१६४. रा० ६,१२,२४ २८७,३०५,३११,३२२,३५६,३८७,४०७, से २६,३२,४५,५२,५६,१२८,१३०,१७१,१६६, ४१५,४३५,६४३,६५४,८६८ २३१,२४७,२८१,२८५,२६१,२६३ से २६६, वत्त [वर्त] ओ० १६. जी. ३५६६ ३००,३०५,३१२,३५५. जी० ११५,३४,३८,५०, वत्तमंडल [वृत्तमण्डल] ओ० ६४ ५८,७३,७८,८१, ३१५८,८३,८७,६४,१२७, वत्तव्य वक्तव्य ] ओ० ३३. जी० ६२५,९८२ २७१,२७७ से २८२,३००,३०६,३५३,३६०, वत्तव्वता [वक्तव्यता] जी० ३१५६६,८५६,८८६, ३७२,३६३,४४७,४५१,४५७ से ४६२,४६५, ६१३,६२५,६२७,६३२,६३४,६३५ ४७०,४७७,५१६,५२०,५५४,५७८,५८०, वत्तव्वया [वक्तव्यता] रा० ८२,२१५,३२१,७५० ५८६,५६१,५६२,५६५,५६७,६०१,६०२, से ७५३. जी. ३।३२,२५०,४१२,४३१,४३४, ६३७,६४५,६४८,६५६,६५६,७२४,७२७,७३८, ६७६,६६१,७०१,७१०,७७६,८००,८५६ ७४३,७६३,८६०,८६६,८७२,८७८,६७२, वत्तिय प्रत्यय] ओ० ५२. रा० १६,६८७,६८६ १०७५,१०७६,१०८१,१०६३ से १०६६ वत्थ वस्त्र] ओ० २०,३३,४७,४६,५१ से ५३,७२, वण्णओ [वर्णतस् ] जी० ११३५,५०,६६,१३६ १०७,१२०.१३०,१४७,१४६,१५०,१६२. वण्णग [ वर्णक ] ओ० ६३,१६१,१६३ रा० १५६,१५७,२५८,२७६,२८६,२६१, वण्णत [वर्णक] रा० २४३. जी० ३।२१७ ६८५,६८७,६८६,६६२,६६८,७००,७१४, वण्णतो [वर्णतस् ] ली० ३।२२,२७,४५ ७१६,७१६,७२६,७५२,७८६,७६४,८०२, ८०८,८१०,८११. जी०३।३२६,४१६,४४७, वण्णमंत वर्णवत्] जी० ११३३,३४ ४५२,५६,६७३,७७५,८७८,६३७,११२२ वण्णय वर्णक] रा० ६६,१५६, १६४.१७०,२०१, वत्थंत वस्त्रान्त] रा०६६ २०२,२०४ से २०८,२१६,२३३,२३४,२६१, ___ वयविहि [वस्त्रविधि] ओ० १४६. रा० ८०६ २६३.जी० ३।२६८,३१५ से ३१७,३२०,३२१, वत्थव्व [वास्तव्य] रा० २८२. जी० ३१४४२,४४८, ३३८,३५४,३५५,३५८,३६२,३६३,३६६, ५२७ ३६८,३७३,३७४,३७८,३६५,३६६,४०१४०६, वत्थव्वग वास्तपक जी० ३।३५०,४४६,५६३ ४२३,४२५,४२८,६३२ से ६३४,६३६ से ६४१, वत्थि / वस्ति] रा० ७६३. जी० ३१५६७ ६४६,६४७,६५०,६६१,६६८,६७३,६७४, ६७८,६७६,६८३ से ६८५,६८६,७०६,७३६, १. वत्रं च सूत्रवजनकम् [ओ० वृ०] । ७५४,७५६,७५६,७६२,७६८,८१२,८२३,८३६, वर्त ---सूत्रवलनकम् [जी० वृ०] । Page #806 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वत्य-वरुणोद ७२६ वत्थु [वस्तु,वास्तु] ओ०१ वयजोग [वचोयोग] ओ० १७५,१७७,१७६,१८२ वत्थुलगुम्म [वास्तुलगुल्म] जी० ३।५८० वयण [वचन] ओ० ४६,५६,५७,५६,६१,६६. वत्थुविज्जा [वास्तुविद्या ओ० १४६. रा० ८०६ रा० १०,१४ से १६,१८,७४,२७६,६५५,६८१, Vवद [वद्]-वदह. ओ०६६. रा० ६९५. ६६६,७०७. जी०३।४४५,५५५ -वदेज्जा. रा० ७५१ वयण वदन] ओ०१५,१६,२१,५४. रा०६७२. वदण [वदन] जी० ३१५६६ से ५९८ ___ जी० ३.५६७ वदित्ता [वदित्वा] ओ० ७६ वयबलिय वचोबलिक] ओ० २४ बद्दलियाभत्त [बालिकाभक्त ] ओ० १३४ वयरामय [वज्रभय] रा०१७४ बद्धण [वर्धन] जी० ३।५६२ वर [वर ओ० १,२,५,८ से १०,१२ से १४,१६, बद्धणी [वर्धनी] जी० ३।५८७ २१,४६,४८,४६.५१,५४,५७,५६,६३ से ६५, वद्धमाण [वर्धमान] ओ० ४८,६८ ६७.१०७,१५३,१६५,१६६,१७२. रा० ३,४, वद्धमाणग [वर्धमानक ] ओ० १२,६४. रा० २१, ८,६,१२,१३,२८,३२,४७,५२,५६,६८ से ७०, २४,४६,२६१. जी० ३।२७७,२८६ ७६,१२६,१३१ से १३३,१४७,१४८,१५६, वद्धमाणा [वर्धमाना] रा० २२५. जी० ३ ३८४, १६२,१७३,१८५,२१०,२१२,२२८,२३१,२३६, ८६६ २४७,२७७,२८०,२८३,२८६,२६१,२६२,३५१, विद्धाव [वर्धय]-- वद्धावेइ. ओ० २०. रा० ६८०, ५६४,६५७,६६४,६७१,९८१,६८३,७१०, -वद्धावेति. रा० १२. जी० ३।४४२. ७१४,७६५,७७४,७६४,८०२,८०४,८१४. -वद्धावेति. रा० ४६ जी० ३।२७४,२८१,२८२,२८५,२६७,३०० से वद्धावेत्ता [वर्धयित्वा] ओ० २०. रा० १२. ३०३,३२१,३३२,३३५,३५४,३७२,३७३, __जी० ३१४४२ ३८७,४४३,४४६ से ४४६,४५७,५१६,५४७, वप्प [वप्र] रा० १७४. जी० ३।११८,११९,२८६ ५५७,५६२,५८६,५६१ से ५६३,५६५ से ५६७, वप्पिणी [दे०] ओ० १ ६०४,६४७,६७२,८५७,८६०,८८५ वम्मिय [वमित] रा० ६६४,६८३. जी० ३।५६२ विर [वरय्]-वरइ. जी० ३।८३८,१६ वय [वचस्] ओ० २४. रा० ८१५ वरंग वराङ्ग] जी० ३।३२२ वय [वयस्] ओ० ४७ वरदाम वरदामन् ] रा० २७६. जी. ३१४४५ वय [व्रत] ओ० २५,४६ वरपुरिस वरपुरुष जी० ३।२८१ विय [वद् ]--वइस्संति. रा० ८०२.---वएज्जा. वराह [वराह ] ओ० १६,५१. रा०२४,२७. रा० ७५०.-वयइ. ओ०७१.---वयामि. जी० ३।२७७,२८०,५६६,१०३८ रा० ७३४.-वयासि. ओ० २०. रा० ७३४. जी० ३१४४८.-वयासी. रा० ८. वरिसधर [वर्षधर] ओ० ७०. रा० ८०४ जी० ३.४४२.-वयाहि. रा०१३ वरुण [वरुण] जी० ३१७७५,८५७ विय [वच्-वोच्छं. ओ० १६५।१७. वरुणप्पभ वरुणप्रभ] जी० ३१८५७ ___ जी० ३।२२६ वरुणवर [वरुणवर] जी० ३१८५१,८५६,८५७, ८५६ वयंस [वयस्य] जी० ३।६१३ वयंसय [वयस्थक] रा० ६७५ वरुणोद [वरुणोद] जी० ३।२८५,८५६,८६०, वयगुत्त [वचोगुप्त] ओ० २७,१५२. रा० ८१३ ८६२,६५८,६६३ Page #807 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३० वलक्ख-वा वलक्ख [वलक्ष] जी० ३३३२२,५६३ वलभी [वलभी] जी० ३१६०४,७६३ वलभीघर [वलभीगृह ] जी० ३१५६४ वलय [वलय] जी० ११६६३३३७ से ४०,४२, ४४ से ५०,५६३,७०४,७६३,७६६,८१०, ८२१,८३१,८४८,८५६,८६२,८६५,८६८, ८७१,८७४,८७७,८८०,६२५ वलयमयग [वलयमृतक] ओ०६० वलयामुह [वडवामुख] जी० ३।७२३ वलयावलिपविभत्ति वलयावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ वलि [वलि] जी० ३५९७ वलित [वलित] जी० ३।५६६ वलिय [वलित] ओ०१५,१६. रा० १२,६७२, ७५८ से ७६१. जी. ३१५६७ वल्ली [वल्ली] जी०१।६६,३।१७२ ववगत [व्यपगत ] जी० ३३५६७,६१०,६१२ से ६१६,६२४,६२७,६२८ ववगय [व्यपगत] ओ० १४,६२. रा०६७१. जी० ३।६०७,६०६,६२२ विवरोव [व्यप+रोपय]-ववरोवएज्जा. रा० ७५१-ववरोविज्जइ. रा० ७६७ -बवरोवेमि. रा० ७५६-ववरोवेहि. रा० ७५१ ववरोवेत्ता [व्यपरोप्य ] रा० ७५६ विवस [वि+अव+सो]-ववस इ. रा० २८८. जी० ३।४५४ ववसइत्ता [व्यवसाय] रा० २८८. जी० ३।४५४ ववसाय व्यवसाय ] ओ०४६. रा०२८८. जी० ३४५४ ववसायसभा [व्यवसायसभा] रा० २६६,२७१, २७२,२८६,२८८,५६४,५९६,५६७,६१६, ६३४,६३५. जी० ३।४३४,४३६,४३७,४५२, ४५४,५४७,५४६ से ५५३ ववहार [व्यवहार] रा० ६७५ ववहारग [व्यवहारक] रा० ७६६ ववहारि [व्यवहारिन् रा० ७६६ वस [बश ओ० २०,२१,५३,५४,५६,६२,६३, ७८,८०,८१. रा० ८,१०,१२ से १४,१६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४,२७७,२७६, २८१,२६०,६५५,६८१,६८३,६६०,६६५, ७००,७०७,७१०,७१३,७१४,७१६,७१८, ७२५,७२६,७७४,७७८. जी० ३।४४३,४४५, ४४७,५५५ विस [वस्]-वसाहि. ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३१४४८ वसंतलया [वासन्तीलता] रा० २४ वसट्टमयग [वशार्तमृतक] ओ० ६० वसण [वसन] रा० २६,२८,६६,७०,१३३. जी० ३।२७६,२८१,३०३,११२१ से ११२३ वसणभूत [व्यसनभूत] जी० ३।६२८ वसणुप्पाडियग [उत्पाटितकवृषण] ओ०६० वसभ [वृषभ ] ओ० २७. रा० ८१३. ___ जी० ३३१०१५ वसमाण [वसत्] रा०६८३,७०६ पसह [वृषभ] रा० २४ वसहि [वसति] ओ० ३७,११८,११६,१६५. जी० ३१६०३ वसु [वसु] जी० ३११७ वसुंधरा [वसुन्धरा] ओ० २७. रा० ८१३. जी० ३१६२२ वसुगुत्ता [वसुगुप्ता] जी० ३।६२२ वसुमित्ता [वसुमित्रा] जी० ३।६२२ वसू [वसू] जी० ३।६२२ वह [वध] ओ० ४६,७३,१६१,१६३. रा० ६७१ वहक [वधक] जी० ३।६१२ वहमाणय [वहमानक ] ओ १११ से ११३,१३७, वा [वा] ओ० ५२. रा० ६. जी० ३१११७ Page #808 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाइज्जत-वायणा ७३१ वाइज्जत [वाद्यमान] रा० ७७ वाणमंतर [वानव्यन्तर] ओ० ४६८६ से ६३. वाइत्त [वादित्र] रा० ११४,२८१ रा० ११,५६. जी० १११०१,१३५, २।१५, वाइय [वाद्य] जी० ३।४४७ १६,७१,७२,९५,६६,१४८,१४६ ; ३।२१७, वाइय [वादित] ओ० ६८,१४६. रा०७,७८, २३०,२५१,२६७,२६८,३५८,४०२,४४६, ८०६. जी० ३१३५०,५६३,१०२५ ४४८,४५५,४५७,६३७,६५६,७६०,८५७,६१७ वाइय [वातिक] ओ० ११७. रा० ७६६ वाणमंतरी [वानव्यन्तरी] जी० २।३८,७१,७२, वाइय [वाचिक ] ओ०६६ १४८,१४६ वाउ [वायु] ओ० ४६. जी० १११२८,१३३; वाणिज्ज वाणिज्य] जी० ३१६०७ २.१३०,१३६; ३:३०७,३६३ ; ५।१७,२०,२४, वात [वात] रा० १७३ २५२७ वातकरग [वातकरक] जी० ३।३५५,४१६,४४५ वाउकाइय [ वायुकायिक ] जी० २।१३८; ५॥१,६, वाव [वादय् ] ---वादेति, जी० ३।४४७ २६,३१,३३,३६८1५६।१८२,१८४,२५६, वादित /वादित जी० ३८४२,८४५ २५७,२६२,२६६ वाबाहा [व्याबाधा] जी० ३३६२०,६२५ वाउकाय [वायुकाय] रा० ७७१. जी० ३।१३५, वाम [वाम] ओ० २१,४७,५४. रा०८,७०, ७२५,७२८ १३३,२६२,७६७,७६८,७७६,७७७. जी० ३।४५ वाउक्कलिया [वातोत्कलिका] जी० १८१ वाम [वाम,व्याम'] ओ० ५,८ जी० ३।२७४ वाउक्काइय [वायुकायिक] जी० ११७५,८०,८२; वामण [वामन] जी० ११११६ २।१०२,१४६,१४६; ३।१६५; ५८,१४,२०, बामणिया [वामनिका] रा० ८०४ ८.१,३ वामणी [वामनी] ओ० ७० वाउभाम [वातोभ्राम] जी० ११८१ वामद्दण [व्यामर्दन] ओ० ६३ बाउयाय [वायुकाय] रा० ७७१ वामहत्थ [वामहस्त] जी० ३।३०३ वाउवेग [वायुवेग] जी० ३३५६८ वामुत्तग [दे० वामोत्तक,व्यामोत्तक] जी० ३१५६५ वाएता [वाचयित्वा] रा० २८८. जी० ३।४५४ धाय [वात ] ओ० ४६,६४. रा० ४०,५०,५२,५६, वाकवासि [वल्कवासिन्] ओ०६४ १३२,१३७,२३१,२४७,२८५,७७१. ‘वागर [वि+आ+कृ]-वागरेइ. ओ० ६६ जी०३।२६५,२८५,४५१,५८०,७२६ वागरण [व्याकरण] ओ० २६,६७. रा०१६, Vवाय [वाचय]-वाएति. रा० २८८. ७१६,७६८ जी० ३।४५४. वायंति.--ओ० ४५ वागरमाण [व्याकुर्वाण] ओ० २६ वाय [वादय् ]--वाइज्जइ रा० ७८३-वाएंति वागरेयव्व [व्याकर्तव्य] जी० ३१७७ रा० ११४ वाघाइम [व्याघातिन् व्याघातिम] ओ० ३२. वायंत [वादयतु] ओ० ६४ जी० ३३१०२२ वायकरग [वातकरक] रा० १५३,२५८,२७६. वाघातिम [व्याघातिन्, व्याघातिम] जी० ३।१०२२ जी० ३।३२६ वाघाय [व्याघात] जी० २।४६,८२ वापणा [वाचना] ओ० ४२,४३ वाड [वाड, वाट] जी० ३८७८ १. अनेकाभिर्नरवामाभिः सुप्रसारिताभिः (ओ०३० वाण [वाण] ओ० १३ अनेकन रव्यामः पुरुषव्यामः सुप्रसारितैः वाणपत्थ [वानप्रस्थ] ओ०६४ (जी०व०) Page #809 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३२ वायमंडलिया [ वातमण्डलिका ] जी० ११८१ वायाम [ व्यायाम ] ओ० ६३ वारण [ वारण] ओ० १६ वार [वारक ] जी० ३।५६६ वारि [वरि] रा० १३१, १४७, १४८, १८०. जी० ३।३०१, ४४६ वारिसेणा [वारिषेणा ] रा० २२५. जी० ३१३८४, ८६६ वारुणि [ वारुणी ] जी० ३।८६० वारुणिकंत [ वारुणिकान्त ] जी० ३१८६० वारुणवरोदय [ वारुणीवरोदक ] जी० ३।८५७ वारुणी [ वारुणी ] जी० ३।५८६ वारुणोद [ वारुणोद] जी० ३१२८६ Sarita [ वारुणोदक ] जी० ११६५ arerter [ वारुणोदक ] रा० १७४. जी० ११७४ वाल [ व्याल ] ओ० ११७. रा० ७६६. जी० ३३ ३००,६२५,८२२ वाल [बाल रा० १६०,२५६. जी० ३।३३३, ४१७ वालग [ व्यालक] ओ० १३. रा० १७, १८, २०, ३२,३७,१२६. जी० ३।२८८,३००, ३११, ३७२ [वास] रा० ३०,६८३,७०६. जी० ३।२८३ लग्ग [बाला ] जी० ३७८८,७८६ वालपोतिया [दे० बालाग्रपोतिका ] जी० ३।६०४ वास [ वृष्] - वासंति. रा० १२. जी० ३।४४७ - - वासह. रा० ६ वासंति [ वासन्ती ] जी० ३१५६७ वासंतिकलया [ वासन्तिकलता ] जी० ३१५८४ वासंतिमंडवग [ वासन्तीमण्डपक] रा० १८४ वासंतमंडव [ वासन्तीमण्डपक] रा० १८५ वासंतिय [लया ] [ वासन्तिकलता ] जी० ३।२६८ वासंतियलया [ वासन्तिकलता ] ओ० ११. रा० १४५ वालरूवग [ व्यालरूपक ] रा० १३० वालरूप [ व्याल रूपक ] रा० २६४, २९६ से २६६, ३१२,४७३. जी० ३१४५६, ४६१, ४६२, ४७७,५३२ वालवीय [ वालवीजित ] ओ० ६३ वालवीयणय [ वालवीजनक ] ओ० ६६ वालवणी [ वालवीजनी ] ओ० ६७ वाली [ दे० ] रा० ७७ वालुयप्पा [ बालुकाप्रभा ] जी० ३।३५, ४१, ४३, ४४,६६, ११२ वालुया [ बालुका ] रा० १३०, १३७, १७४, २४५. वायमंडलिया - वासंतिलया जी० ३।२८६,३००, ३०७,४०७ वाढवी [ बालुका पृथ्वी ] जी० ३३१८५, १८८ वालुयासंथारय [ बालुकासंस्तारक ] ओ० ११७ वावण्ण [ व्यापन्न | जी० ३१८४ वातरि [ द्विसप्तति ] ओ० १४६ घावी [ वापी ] ओ० ६, ६६. रा० १७४१७५, १८० जी० ३।२७५, २८६, २८७, २६२, ५७६, ५६७,६६४,८७५, ८८ १,६४८ वास [ वर्ष ] ओ० ६८,८६ से १५, ११४,१४०, १४१, १४५, १५४,१५५,१५७ से १६०, १६५, १६६, १८८, १६२. रा०८ से १०,१२,१३, १५,५६,२७६, २८१, ६६८, ७६६, ८०५, ८१६. जी० ११५१,५५,५६,६१,६५,७४,८२,८७,६६, १०१,१०३,१११,११२, ११६,११६,१३३, १३६, १३७ २०३५ से ३६,४१,६६,७३,६२, ६३,६६,६७, १०८, ११०,१११, ११८, १२६, १३६; ३।१५५,१८६ से १६२,४४५,४४७, ७८५,७८६,७६५,८४१, १०२७ से १०३०, १०३८, ११३१ ४ ३,६,११,१२,१६; ५५, ६,१०,१२,१४,१५,२८,२६; ६ २, ६, ७ ३, १३ ६२, ४,२१०, २१४, २२४,२२८,२३४, २४१,२६६,२७७ वासंतियलयापविभत्ति [ वासन्तिकलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ वासंतियागुम्म [ वासन्तिकागुल्म ] जी० ३।५८० वासंतिलया [ वासन्तीलता ] जी० ३।२७७ Page #810 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वासंतीमंडवग-विक्खंभ ७३३ वासंतीमंडवग [वासन्तीमण्डपक] जी० ३।२९६ वासघर [वर्षधर रा० २७६. जी० ३।२१७,२१६ से २२१,२२७,४४५,६३२,६६८,७६५,८४१, ६३७ वासपरियाय [वर्षपर्याय ] ओ० २३ वासवद्दलय [वर्षबादलक] रा० १२३ वासहर [वर्षधर] रा० २७६. जी० ३।४४५, ७७५,७६५ वासा [वर्षा] रा० ६,१२ वासावास [वर्षावास] ओ० २६ वासिक्क [वार्षिक रा० १६७. जी० ३।२६६ वासित्ता वर्णित्वा] रा०२० वासी [वासी] ओ० २६ वासुदेव [वासुदेव [ ओ० ७१. जी० ३७६५, वासेत्ता [वर्षित्वा] रा० २० वाहण [वाहन ] ओ० १४,२३,५२,५६,६६,१४१. रा०६७१,६७४,६७५,६८७,६६५,७८७,७८८ ७६०,७६१,७६६ वाहणसाला [वाहनशाला] ओ० ५६ वाहणा [उपानह.] ओ० ११७ वाहा [बाहु] जी० ३।५६७ वाहि [व्याधि ] ओ० ७४।२. जी० ३।१२८, ५६७ वाहित [व्याहृत] जी० ३।२३६ वि [अपि] ओ० ६७. रा० २७६ विअट्टच्छउम [विवृत्तछद्मन् ] जी० ३।४५७ विइय [द्वितीय ] ओ० १८२ विउक्कम [वि+उत्+क्रम्]--विउक्कमंति. जी० ३१७ विउल [विपुल ओ०१,२,५,८,१४,१६,२३,४६, ५२,५५,६८,१४१,१४७,१४६,१५०. रा० ७, १५,३२,२२८,२७८,२७६,२८१,२६१,२६४, २६६,३००,३०५,३१२,३५५,६७१,६७५, ६८०,६८१,६८३,६८४,६८७,६६५.६६६, ७००,७०२,७०४,७०८,७०६,७१४,७१६, ७६५,७७४,७७६,७८७,७८८,७६६८०२, ८०८,८१०,८११. जी. ३१११०,११७,२७४, ३७२,४६१,४६२.४६५,४७०,४७७,५१६, ५२०,५६६ विउलकयवित्ति विपुलकृत वृत्तिक] ओ० १६ विउलमइ [विपुलमति] ओ० २४. रा० ७४४ विउव्व वि-+कृ]-विउव्वइ. रा० ३२. -विउवंति. रा०१०. जी०३।११०. -विउव्वति. रा० १६.---विउव्वाहि. रा०१७. -विउविसु. जी० ३।१११६.-विउविस्सति. जी० ३३१११६ विउविणिडिपत्त [विक्रियद्धिप्राप्त] ओ० २४ विउव्वणा [विकरण] जी० ३।१२७४४,१२६।२ से ४ विउवित्तए [विकर्तुम् ] जी० ३।११० विउम्वित्ता [विकृत्य] रा० १० जी० ३।११० विउन्विय [विकृत] ओ० ४६ विउटवेमाण [विकुर्वाण] जी० ३।११०,१११५ विउस्सग्ग [ व्युत्सर्ग] ओ० ३८,४३,४४ विउस्सग्गारिह [ व्युत्सर्हि ] ओ० ३६ विओग [ वियोग] ओ० ४६ विओसरणया [व्युत्सर्जन ] ओ० ६६,७०. रा० ७७८ विद [वृन्द] रा०६८३. जी० ३१५८६ विहणिज्ज [बृहणीय] ओ० ६३ विकच्छसुत्तग [वैकक्षसूत्रक] रा० २८५ विकप्प [विकल्प] ओ० ५७. जी० ३।५६४ विकिट्ठ [विकृष्ट ] ओ० १. रा०६८३ विकुस [विकुश] ओ०८,१०. जी० ३.३८६,५८१ से ५८३, ५८६ से ५६५ विक्कम | विक्रम ] ओ० १६,२३. जी० ३।१७६, १७८,१८०,१८२,५९६ विक्किरिज्जमाण [विकीर्यमाण] रा० ३० विक्खंभ [विष्कम्भ] ओ० १३,१७०,१६२. रा० ३६,१२४,१२६ से १२६,१३७.१७०, १८६,१८८,१८६,२०१,२०४ से २१२,२१८, Page #811 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३४ विक्खरिज्जमाण-विज्जुदंत २२१,२२२,२२४,२२६,२२७,२३०,२३१, विच्छविय [विच्छिविक] जी०३६६ २३३,२३८,२३६,२४२,२४४,२४६,२४७, विच्छिण्ण [विस्तीर्ण] ओ० १४,१६. रा० ६७५, २५१ से २५३,२६१,२६२,२७२. जी० ३१५१ ७७४. जी० ३।२६१,३५२.५६६,५६७,६३२, ८१,८२,८६,१२७,२१७,२२२,२२६,२६० से ६३६,६८६८-२ २६३,२७३,२६८,३००,३०७,३१०,३५१ से विच्छिन्न [विस्तीर्ण] रा०६७१ ३५५,३५८,३५६,३६१,३६२,३६४,३६५, विच्छिप्पमाण [विस्पृश्यमान ओ० ६६ ३६८ से ३७४,३७६,३७७,३८०,३८१,३८३, विच्छ्य [वृश्चिक] जी० ३८५ ३८५,३८६,३६२,३६३,३६५,४००,४०१, विजढ [वित्यक्त] जी. ३३५४,५६ ४०४,४०६,४०८,४१२ से ४१४,४२२,४२५, विजढपृथ्व [वित्वक्तपूर्व] जी. ३३५४,५६ ४२७,४३७,५७७,६३२,६३४,६३६,६४२, विजय [विजय ] ओ० २०,५३,६२,६४,६८,१६२. ६४४,६४६,६४७,६४६,६५३,६५५,६६१, रा० १२,४६,५०,५२,५६,७२,११८,१३७, ६६३,६६८,६७१ से ६७५, ६७६,६८३,६८५, २३१,२४७,२७६,२७६,६६५,६८३,६८६, ६८६,७०६,७२३,७२६,७३२,७३६,७३७, ७०७,७०८.७१३,७२३. जी०३।१८१,२६९ से ७५४,७५६,७५८,७६२,७६५,७६८,७७०, ३०७.३१५,३३५,३३६,३३६ से ३५१,३७२, ७६४,७६५,७६८,८१२,८२३,८३२,८३५, ३६३,४०२,४१०,४२६,४३२,४३५,४३६ से ८३६,८५०,८८२,८८४,८८५,८८७,८८८, ४५७,५५५ से ५६५,६०१,६३८,६६०,६६५, ८६१,८६३ से ८६५,८६७,८६६ से १०१, ७०१,७०७ से ७१०,७१३,७६२,७७५.७६६, १०६,६०७,६१०,६११,६१८,६५२,१०१० से ८००,८१३,८१४,८२४,८२५,८५१,८६८, १०१४,१०७३,१०७४ ६१६,६३७,६३६,६४०,६४४ विक्खरिज्जमाण [विकीर्यमाण] जी० ३।२८३ विजयदूस [विजयदृष्य ] रा० ३८,३६. विक्खेवणी [विक्षेपणी] ओ० ४५ जी० ३।३१२,३१३,३३८,६३४,८९२ विग [वृक] जी० ३२८४,२७७,६२० विगय [विगत ] जी० ३८४ विजया [विजया] जो० ३।३५०,३५१,३५४,३५५, विगसिय [विकसित] रा०८,७१४ ३५७,३५८,३६०,४३६,४४२,४४५ से ४४८, विगोवइत्ता [विगोप्य ] ओ० २३. रा० ६६५ ५५४,५५५,५५७,७०४,७१०,७३६,७४४,९०२ विग्गह [विग्रह ] ओ० ५६ विजाति [विजाति] जी० ३१७८१,७८२ विग्गहिय [विगृहीत] जी० ३।५६८ विज्जा [विद्या] ओ० २५. रा०६८६ विचरिय [विचरित] जी० ३।११८,११६ विज्जाघर [ विद्याधर] जी० ३।७६५ विचिक्की [ दे० ] रा० ७७ विज्जाहर [विद्याधर] ओ० २४. रा० १७,१८, विचित्त [विचित्र] ओ० ६,४७,४८,६३,७२. २०,३२,१२६. जी. ३।२८८,३००,३७२,७६५, रा० १७३,२२८,६८१. जी० ३।२७५,२८५, ८४०,८४१ ३८७,५८७,५८६,५६१,६७२ विज्ज [विद्युत् ] ओ०४८,५७. रा० १३३. विच्छड्डुइत्ता [विच्छz ] ओ० २३ जी०१७८; ३।३०३,५६०,११२२ विच्छड्डित्ता [विच्छद्य ] रा० ६६५ विज्जुकार [विद्युत्कार] जी० ३८४१ विच्छड्डिय [विच्छदित ओ० १४,१४१. रा०६७१, विज्जुत [विद्युत् ] जी० ३।६२६ ७६६ विज्जवंत [विद्युद्दन्त ] जी० ३।२१६ Page #812 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वज्जुप्पभ-विदेह विज्जुप्पभ [विद्युत्प्रभ] जी० ३७४६ जी० ३३७२,४५७ विज्जुप्पभा [विद्युत्प्रभा] जी. ३।७५१ विणिम्मुयमाण [विनिर्मुञ्चत् ] जी० ३३११८ विज्जुमुह [विद्युन्मुख जी० ३।२१६ विणिवाय [विनिपात] ओ० ४६ विजयंतरिय [विद्युदन्तरिक] ओ० १५८ विणीत [विनीत] जी० ३१७६५,८४१ विज्जयाइत्ता [विद्युतायित्वा] रा० १२ विणीय विनीत] ओ०६१. रा० ७६५,७६६, /विज्जुयाय [विद्युताय]-विज्जुयायंति. रा० १२. ७७०,८०४. जी० ३१५६८,७६५,८४१ जी० ३।४४७ विणीयया [विनीतता] ओ० ११६ विज्जुयार [विद्युत्कार] जी० ३।४४७ विण्णय [विज्ञक] रा०८०६,८१० -विज्सव [वि+ध्यापय् ]-विज्झवेज्जा. रा०७६५ /विण्णव [वि+ज्ञपय]---विण्णवेहि. रा० ६६६ विज्झाय [विध्यान] रा० ७६५ विष्णाण [विज्ञान] ओ० २३. रा० ७५८,७५६, विट्ठर [विष्टर] जी० ३१५८७ ७६५,७६६,७७० विडंग [विटङ्क] जी० ३३५९४ वितण्ह [वितृष्ण] जी० ३३१०६ विडाल [बिडाल] जी० ३१६२० वितत [वितत] रा० २४,११४,२८१. विडिम [दे० विटप] ओ० ५,८,५१. रा० २२७, जी० ३।२७७,४४७,५८८ २२८. जी० ३१२७४,३८६,३८७,५६८,६७२, विततपक्खि [विततपक्षिन्] जी० १।११३; ६७४,६७६ २।१० विणइय [विनयित] रा० ७२३ वितार [वितार] रा० ७६ विण? [विनष्ट] जी० ३८४ वितिक्कत [व्यतिक्रान्त] रा० ८०१ विणमिय [विनत] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. वितिमिर [वितिमिर] जी० ३।५८६ जी० ३।२६८,२७४ वित्त [वित्त] ओ० १४,१४१. रा० ६७१,६७५ विणय [विनय] ओ० २,२३,३८,४०,४७,५२,५६, वित्ति [वृत्ति] ओ०६१ से ६३,१६१,१६३. रा० ७५२,७७६ ५७,५६,६१,६६,७०,८३,१३६. रा० १०,१४, १८,६०,७४,२७६,६५५,६७१,६८१,६८७,६६२, वित्थड [विस्तृत] ओ० ७१. रा० ६१. जी० ३८१,५२,८३८।१५,१०७३,१०७४ ७०७,७१६,७३७,७७७,७७८. जी०३१४४५, वित्थरतो [विस्तरतस् ] जी० ३।२५६ विस्थार [विस्तार] जी० ३।७३ विणयओ [विनयतस् ] रा० ६६४ वित्थिण [विस्तीर्ण] ओ० १४१. रा० १७,१८, विणयतो [विनयतस् ] जी० ३१५६२ १२४,१२७,७६६. जी. ३१५७७,६६१,७३६, विणयपडिवत्ति [विनयप्रतिपत्ति] रा० ७७६ १०३६ विणयसंपण्ण [विनयसम्पन्न ] ओ० २५. रा० ६८६ विदिण्णविचार [विदत्तविचार] रा० ६७५ विणासण [विनाशन] रा० ६,१२,२८१. विदित [विदित] ओ० २६ जी० ३।४४७ विदिसा [विदिशा] जी० ३४६१८ विणिच्छय [विनिश्चय ] रा०६८९ विदिसीवाय [विदिग्वात] जी० ११८१ विणिच्छिय [विनिश्चित ] ओ० १२०,१६२. विदुपरिसा [विद्वत्परिषद्] रा० ६१ रा० ६६८,७५२,७८६ विदेस [विदेश] ओ० ७०. रा० ८०४ विणिम्मुयंत [विनिर्मुञ्चत् ] रा० ३२,२९२. विदेह [विदेह ] ओ० ६६. जी० २।८६ Page #813 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३६ विदेहजंबू [विदेहजम्बू ] जी० ३१६६६ विधाण [ विधान ] जी० ३।२५६ विधि [ विधि ] जी० ३।१६०, २५६, ४४७, ५८७ से ५८६,५६५,६३४ विपंची [ विपञ्ची ] रा० ७७. जी० ३१५८८ fares [ विपक्व ] जी० ३।५६२ विपरिणामाणुप्पेहा [ विपरिणामानुप्रेक्षा] ओ० ४३ विपुल [ विपुल ] रा० ६८६,७६५. जी० ३।४४४, ४४५,४४७,४५६,५६६ विप्पट्ट [ विप्रकृष्ट ] जी० ३।५६१ विपओग [ विप्रयोग] ओ० ४३ विपजहणा [विप्रहाणि ] ओ० १५२ विप्पजहिता [ विप्रहाय ] ओ० १८२ विप्पक्क [ विप्रमुक्त] ओ० १४,२५,२७,३६, १७२, १६५८. रा० १२,१७३,२६१,२६३ से २६६,३००,३०५, ३१२, ३५५,६७१,६८६, ८१३. जी० ३।२८५, ४५७ विष्परिणामइत्ता [विपरिणमय्य ] जी० १५० विप्पोसहपत्त [ विप्रुषधिप्राप्त ] ओ० २४ विष्फालिय [ विस्फारित ] जी० ३।५६६ विफलीकरण [ विफलीकरण] ओ० ३७ विभम [ विभ्रम ] जी० ३।५६४ विभंगणाणि [ विभङ्गज्ञानिन् ] जी० १ ९६; ३। १०४,११०७; ६।१६७,२०३,२०७, २०८ विभक्त [ विभक्त ] जी० ३।५६७ विभयमाण [ विभजमान ] जी० ३।८३१ विभक्ति [ विभक्ति ] जी० ३।५६४ विभाग [ विभाग ] जी० ३।५६१ विभासा [विभाषा ] जी० ३।२२७ विभूइ [ विभूति] ओ० ६७. रा० १३,६५७ विभूति [ विभूति] जी० ३।४४६ विभूसण | विभूषण ] ओ०४६ विभूसा [ विभूषा ] ओ० ३६,६७. २०१३, ६५७. जी० ३।४४६, ११२१ से ११२३ विभूसित | विभूषित ] जी० ३।४५१ विदेहजंबू - वियाणय विभूतिय [विभूषित ] ओ० ६३,७० रा० २८५, २८६,८०५. जी० ३।४५२ विमउल [ विमुकुल ] ओ० १ विमउलिय [ विमुकुलित ] जी० ३५६० विमल [ विमल ] आं० १५, १६,४६, ४७,५१, ६३, ६४, १६४. रा० ३२, ५१,६६,७०,१३०, १५६, १७४,२८८, २६२,६६४,६७२,६८३. जी० ३।११८, ११६, २८६३००, ३३२, ३७२, _४५४,४५७,५६२,५८६,५६६, ५६७८६६ विमलप्पभ [ विमलप्रभ ] जी० ३१८६६ विमाण | विमान ] ओ० ५१. रा० ७,१२ से १४, १२४ से १२६,१२६,१६२, १६३, १६६,१७०, २७४,२७६, २७६,२८१,२८२,६५४,६५५, ७६६. जी० ३।१७५ से १८२,२५७,८४२, ८४५,१०२४ से १०२६,१०३८,१०३६, १०४३,१०४८, १०५६ से १०५६,१०६५, १०६७,१०७१,१०७३, १०७५ से १०८१, १०६७,११११ विमाणावास [विमानावास ] रा० १२४. जी० ३ २५७, १०३८, १०३६,११२८ विमुक्क [विमुक्त ] ओ० १६५ ६,१८,२१. जी० ३।४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७, ५१६,५२०,५५४,५६७ विहावण [ विस्मापन ] ओ० ११६ विट्टछउम [ विवृत्तछद्मन् ] ओ० १६,२१,५४. रा० ८ वियड [ विकट ] ओ० १६. जी० ३।५९६,५६७ विडावति [ विकटापातिन् ] जी० ३।७९५ विवाति | विकटापातिन् ] रा० २७६. जी० ३।४४५ वियसंत [ विकसत् ] ओ० ४६ वियसिय [ विकसित ] ओ० २१,४७,५४. रा० १३७. जी० ३३०७ वियागंत [विजानत् ] ओ० १६५।१६ वियाणय | विज्ञायक ] रा० ८०४ Page #814 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वियाणित्ता-विसय ७३७ विवच्चास [विपर्यास | रा. ७६७,७६८,७७६, ७७७ वियाणित्ता [विज्ञाय] ओ० १४६. रा० ८१० वियाणिय [विज्ञात] ओ० ७० वियालचारि [विकालचारिन् ] ओ० १४८,१४६. रा० ८०६,८१० विरइय [विरचित] ओ०६,६३. जी० ३१२७५ विरचिय विरचित रा० ६६,७० विरत [विरत ] ओ० ४६ विरय [विरत ] ओ० १६८ विरल्लिय [विरल्लित] जी० ३।५९१ विरसाहार | विरसाहार] ओ० ३५ विरहित विरहित जी० ३१७६१,८४४ विरहिय विरहित ] ओ० ३७. जी. ३१८४७ विराइय [विराजित] ओ० १४,४७,५७,७२. रा० ७०,६७१. जी० ३१५६७,११२१ विरागया | विरागता] ओ० ४६ विरायंत [विराजत् ] ओ० २१,५४,५७. रा० ८, ७१४ विरायमाण [विराजमान] ओ० १ विराहय [विराधक ] रा० ६२ विरिय [वीर्य] जी० ३।५६२ विरुद्ध विरुद्ध ] ओ०६३ विरूवरूव विरूपरूप] रा० ८१६ विलंबिय बिलम्बित ] १० १०३.२८१. जी० ३।४४७ विलवणया | विलपनता] ओ० ४३ विलविय [विलपित] ओ० ४६ विलसिय विलसित] ओ०१६ विलास | विला] ओ० १५. रा० ७०,६७२, ८०६,८१०. जी० ३१५६७ विलासित | विलाशित ] जी० ३५९६ विलीण विलीन जी० ३८४ विलेवण दिलपन ओ०६३,१६१,१६३,१७० विलेवणविहि [वि पन विधि ] ० १४६. रा०८०६ विव [इव | ओ० १६. रा० १३३. जी० ३३१११ विवणि [विपणि] ओ० १. जी० ३.६०७ विवर | विवर] रा० ७५४ से ७५७,७६३ विवागविजय | विषाकविचय | ओ० ४३ विवागसुयधर [विपाकश्रुतधर | ओ० ४५ विवाह [विवाह ] जी० ३।६३१ विवाहपण्णत्तिधर [व्याख्याप्रज्ञप्तिधर | ओ० ४५ विवित्तसयणासणसेवणया विविक्तशवनासन सेवनता ओ० ३७ विविध [विविध जी० ३।३०२,३८७,५८८,५६४ विविह | विविध | ओ० १,४६,५१,११७. रा० २०, ४०,१३२,१३७,२२८,७६६. जी० ३।२६५, २८८,३०७,३११,५८६.५८७,५८६ से ५६३, ५६५,६७२ विवेग [विवेक] ओ० ४३,७६ से २१ विवेगारिह [विवेकार्ह ] ओ० ३६ विस विष] रा० ७६१,७६४,७६५ विसज्जित [विजित] रा० ६८५ विसज्जिय विजित ] ओ० २१. रा०६८० ६६६,७००,७०२,७१० विसप्पमाण | विसपत्] ओ० २०,२१,५३,५४, ५६,६२,६३ ७८,८०,८१. रा०८,१०,१२, से १४.१६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४, २७७,२७६,२८१,२६०,६५५,६८१,६८३, ६६०,६६५,७००,७०७,७१०,७१३,७१४, ७१६,७१८,७२५,७२६,७७४,७७८. जी० ३१४४३,४४५,४४७,५५५,५६७ विसभक्खियग | विषभक्षितक] ओ०६० विसम | विषम] ओ० १७१. जी० ३।६२३,७०५, ७६७,८११,८२२,८४६ विसय | विशद] रा० १३३. जी० ३१३०३,५६२, ५९६ विसय | विषय] ओ० २३,३७. रा०१५. जी० ३९७६,९७७ Page #815 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३८ विसह-विहि विसह [विषह] ओ० २७. रा० ८१३ विहग विहग] ओ०१३,१६,२७. रा० १७,१८, विसाण | विषाण] ओ० २७. रा० ८१३ २०,३२,३७,१२६,८१३. जी०३।२८८,३००, विसाय [विषाद ] ओ० ४६ ३११,३७२,५९६ विसारय [विशारद] ओ० ६७,१४८,१४६. विहत्थि [विहस्ति] जी० ३७८८ रा०६७५,८०६,८१० विहर | वि-- ह]---विहरइ. ओ० १४. रा० विसाल [विशाल] ओ० ६४. रा० २२८. जी० ६. जी० ३१२३६.--विहरंति ओ० २३. रा० ३।३८७,५६७,६७२ १८५. जी० ३.१०६.-विहरति. रा० ७. विसाला | विशाला] जी०३१६६४,६१५ जी० ३।२३४.--विहरामि. रा०७५२.विसिट पिशिष्ट ] ओ० १६,६३. रा० ३२,५२ विहराहि. ओ०६८. रा० २८२. जी. ३१४४८ ५६,१५,२३१,२४७. जी० ३।२६७,३७२, -----विहरिस्सइ. रा०८१५-विहारस्संति. ३६३,५९२,५६६,५६७,६०४,८५७ रा० ८०२.--विहरिस्तामि. रा० ७८७. विसुज्झमाण [विशुध्यमान] ओ० ११६,१५६ -विहरेज्जा. ओ० २१ विसुद्ध | विशुद्ध] ओ० ८,१०,१४,४६,१८३,१८४. विहरंत [विहरत् रा० ७७४ रा० २६२,६७१. जी० ३।३८६,४५७,५८१ विहरमाण [विहरत्] ओ० १६,३०,७६,७७,६२, से ५८३,५८६ से ५६५ ६५,११४,१५३,१५८,१५६,१६५. रा०६८६, विसुद्धलेस्स [विशुद्धलेश्य] जी० ३।१६६,२०१, ७११,७७४,८१६ . २०३ से २०६ विहरित्तए [विहर्तुम् ] ओ० ११७. रा० ७६१ विसेस विशेष ओ० १६५।१७. रा० ५४,१८८. __ जी० ३।१०२४ जी० ३३१२६।५,२१७,२२६।५,३५८,५७६, विहरित्ता [विहृत्य] ओ० १५५ ८३८।१३ विहव [विभव] रा० ५४ विसेसहीण विशेषहीन] जी० ३।७३ विहस्सति [ वृहस्पति ] ओ० ५० विसेसाधिय | विशेषाधिक] जी० ३१८२ विहाड [वि+घटय]-विहाडेइ. रा०२८८. विसेसाहिय विशेषाधिक ] ओ० १७०,१९२. जी० जी० ३३५१६.-विहा.ति. ओ० ७४१५. १११४३, २.६८ से ७२,६५,६६,१३४ से १३८, -विहाडेति. जी० ३।४५४ १४१ से १४६; ३१७३,७५,८६,१६७,२२२, विहाडित्ता विघटय] रा० २८६ २६०,३५१,३६१,६३२,६६१,६६८,७३६, विहाडेत्ता [विघटच ] रा० ३५१. जी० ३।४५४ ८१२,८३२,८३५,८३६,८८२,१०३७,११३८, विहाण [विधान ] रा० ७१,७५. जी० ११५८,७३, ४११६ से २२,२५,५।१८ से २०,२५ से २७ ७८,८१ ३१ से ३६,५२,५६,६०७१२०,२२,२३, विहाणमग्गण [विधानमार्गण] जी० १।३४,३६, ८.५६।५,७,१४,५५,१५५,१६६,१६६,१८४, ३६ १६६,२०८,२३१,२५० से २५३,२५५,२६६, विहार | विहार] ओ०३०,६२,९५,११४११५, २८६ से २६३ १५३,१५८,१५६,१६५. रा० ८१४,८१६ विस्संत [विश्रान्त] जी० ३१८७२ विहि [विधि] ओ० ६३. रा० २८१. विस्सुयकित्तिय [विश्रुतकीतिक] ओ० २ जी० ३।४७५. ४७६,५८६,५८८,५६० से विहंगिया [विहङ्गिका] रा० ७६१ ५६५,८३८।१३; ५॥३० Page #816 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विहिय-वेउब्वियामुग्घात विहिय [विहित] ओ० १५. रा० ६७२ वीसाएमाण [विस्वादयत् | रा० ७६५,८०२ विहुय विधुन | जी. ३१५८० वीसादणिज्ज [विश्वादनीय] जी० ३१६०२,८६०, विहूण [विहीन ] जी० ३।२६८,३६० ८६६,८७२,८७८ वीइक्कत [अतिक्रान्त मो० १४३,१४४. वीहि [व्रीहि ] जी० ३।६२१ रा० ८०२ वीहि | वीथि ] जी० ३।२६८,३१८ वीईवइत्ता व्यतिबज्य ] ओ० १६२. रा० १२६. वीहिया | वीथिका] ओ० ५५. रा० २८१. जी० ३१६३८ जी० ३१४४७ वीईवयमाण पतिव्रजत्] रा० १०,१२,२७६. वीस [विंशति ] जी० ३११३६ __ जी० ३४४५ बुग्गाहेमाण [व्युद्ग्राहयत् ओ० १५५,१६० वीचि दीचि] ओ० ४६. जी० ३।२५६ Vवुच्च [वच्] —वुच्चइ. ओ० ८६. रा० १२३. वीचिपट्ट [वीचिपट्ट] जी० ३।५६७ जी० ३१२३६-वुच्चंति. जी० ३१५८ वीजेमाण [वीजयत्] श्री० ३।४१७ -वुच्चति. रा० १२३. जी. ३२३६ वीणग्गाह [वीणाग्राह] ओ० ६४ वुड्डसावग [वृद्धश्रावक ] ओ० ६३ वीणा वीणा] रा० ७७,१७३. जी० ३१२८५ वुद्धि वृद्धि] जी० ३७८१,७८२,८४१ धोतसोग [वीतशोक] जी० ३१६२७ वृत्त | उक्त] ओ० ५६. रा० १०,१२,१४,१८, वीतिवइत्ता [व्यतिव्रज्य] जी० ३१७३६ ६०,६३,६४,७४,२७६,६५५,६८१,७०१, वीतिवतित्ता [व्यतिव्रज्य ] जी० ३।३५१ ७०३,७०७,७२५,७६२. जी० ३१४४५,५५५ वीतिवध [वि + अति+व्रज्]-वीतिवइंसु. वुप्पाएमाण [गुत्सादयत् ] ओ० १५५,१६० जी० ३१८४०-वीतिवइस्संति. जी० ३१८४० -वोतिवएज्जा. जी० ३८६-वीतिवयंति. वूह [व्यूह ] ओ० १४६. रा० ८०६ वेइय [व्येजित] रा० १७३. जी० ६।२८५ जी० ३१८४० गेइयपुडंतर [वेदिकापुटान्तर] रा० १६७ वोतिवयमाण [पतिव्रजत्] रा० ५६. जी० ३८६, २।८६, नेइयफलक [वेदिकाफलक] रा० १६७ १७६,१७८,१८०,१८२ नेइया [वेदिका] रा० १७,१८,२०,३२,१२६, वीतीवइत्ता व्यतिबज्य] रा० १२६ १६७. जी० ३॥३७२,६०४,७२३,७७६,७७७, वीषि वीथि] बी० ३।३५५ ७७६,६१० वीरवलय [वीरवलय] ओ० ६३ नेइयावाहा [वेदिकाबाहु] रा० १९७ वीरासणिय वीरासनिक ओ० ३६ वेउवि [विकारिन्] ओ० ५१ वीरिय [वीर्य ] ओ० ७१,८६ से १५,११४,११७, ११.१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० ६१. वेउदिवउं [विकर्तुम् ] रा० १८ जी० ३१५८६ वेउव्विय [वैक्रिय] रा० २७६,२८०. जी० ११८२, वीरिपलद्धि वीर्यलब्धि] ओ० ११६ ६३,११६,१३५; ३३१२६।४,४४५,८४२ वीवाह | विवाह ] जी० ३१६१४ वेउन्विामीसासरीर वैक्रियकमिश्रकशरीर] 1वीसंद [वि+स्यन्द् ] ---वीसंदलि. जी० ३१५८६ ओ० १७६ वीसंदित विस्यन्दित] जी० ३८७२ वेउन्वियलद्धि [वैक्रियलब्धि] ओ० ११६ वीसत्य विश्वस्त ] ओ० १ वेउब्वियसमुग्घात [वैक्रियसमुद्घात] वीससा | विस्रसा] जी० ३०५८६ से ५६५ जी० ३३१११२,१११३ Page #817 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४० वेउब्वियसमुग्घाय-वेराणबंध १४६ वेउब्वियसमुग्धाय [वैक्रियस मुद्घात] रा० १०,१२, वेदिया [वेदिका | जी० ३।२६६,२८८,३००,३७२, १८,६५,२७६. जी० ११८२,३३१०८,४४५ ७६५,७६६ से ७७५,७७८ वेउव्वियसरीर वैक्रियशरीर ] ओ० १७६. वेदियापुडंतर | वेदिकापुटान्तर | जी० ३।२६६ जी० ६।१७० वेदियाबाहा | वेदिकाबाहु ] जी० ३१२६६ वेउब्वियसरीरि [वैक्रियशरीरिन्] जी० ६ १७०, । वेदेमाण | वेदयत् | ओ० ८६. रा० ७५१ १७७,१८१ वेमाणिणी [वैमानिकी] जी० २७१,७२,१४८, वेंट [वृन्त] जी० ३।३८७,६७२ वेग [ वेग] ओ० ४६,५७ वेमाणिय [वैमानिक ओ० ५०. रा० ७,११,१५ वेच्च | व्युत, व्यूत रा० ३७,२४५. जी. ३१३११, से १७,५५,५६,५८,५६,१८५,१८७,२७६, ४०७ २८६,२६१,६५७. जी० १११३५, २।१५,१६, वेजयंत [वैजयन्त] ओ० १६२. जी० ३.१८१, ४५,४६,७१,७२,९५,९६,१४८,१४६; ३।२३०, २६६,५६६,५६७,७०७,७११,७६६,८१३, ६१७,१०३८ ८२४,९४१ वेय [वेद] ओ० २५. रा० ६८६,७७१. वेजयंती [वैजयन्ती] ओ० ६४. रा० ५०,५२,५६, जी० १११४,११६२।१५१:६।६६ १३७,२३१,२४७. जी० ३३०७,३६३,११६, वेय वि. एज्-वेय इ. रा० ७७१.-वेयंति. १०२६ ___जी० ३।७२६ वेयंत [व्ये जमान] रा० ७७१ वेडंतिय (पाय) [दे० ओ० १०५,१२८ वेडंतिय (बंधण) दे० ] ओ० १०६,१२६ वेषण | वेतन ] रा० ७८७,७८८ वेढ [ वेष्ट ] रा० ७६७ वेयण [दे० विक्रय ] रा० ७७४ वेढणग | वेष्टनक] जी० ३.५६३ वेयणा | वेदना] ओ० १७,४६,७१,७४.१६५. वेढित्ता विष्टित्वा ] रा० ७६७ रा० ७५१,७६५. जी० ११८६; ३७७,११०, १२७१४,५,१२८।१,१२६७ वेढिम | वेष्टिम] ओ० १०६,१३२. रा० २८५. वेयणासमुग्धाय वेदनाममुद्घात ] जी० १२३,८२. जी० ३।४५१,५६१ वेणतिया बनयिकी | रा० ६७५ वेयणिज्ज [ वेदनीय ] ओ०८६,१७१ वेणु [वेणु] जी० ३१५८८ वेयणीय [वेदनीय] ओ० ४४ वेणुदेव [वेणुदेव जी० ३।२५० वेयद्दिय [विदिक ] ओ० २ वेणसलाइपा [ वेणुशलाकिकी] रा०१२ वेयालिया [वेवालिकी रा० १७३. वेव | वेद] ओ० ६७. जी० २।१५१ । जी० ३.२८५ /वेद | वेदय]-- वेदेति. जी० ३१११२ वेयावच्च [वैयावृत्य] ओ० ३८,४१ वेदणा [वेदना] जी० ३।१११ से ११५,११७, वेर [वैर] जी० ३।६२७ १२८ वेरग [वैराग्य] ओ० ४६,७४१५ वेदणासमुग्धात [ वेदनासमुद्घात ] जी० ३।१११२, वेरमण [विरमण ] ओ० ७६,७७,७६ से ८१, १११३ १२०,१४०,१५७. रा० ६६३,६९८,७१७, वेदणासमुग्धाय वेदनासमुद्घात] जी० ३।१०८, ७५२,७८७,७८६ वेराणुबंध | वैराणुबन्ध] जी० ३।६१२ Page #818 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेरि-सउणिज्झय ७४१ वोज्झ [उह्य] रा० २८५. जी० ३३४५१ वोलट्टमाण [व्यपलोटत् ] जी० ३१७८४,७८७ वोसट्टमाण [विक मत् ] जी० ३१७८४,७८७ वोसिर [वि+उत्- सृज] -वो सिरामि. ओ० ११७. रा० ७६६ व्य [इव] ओ० १६. रा० १३७. जी० ३।३०७ वेरि [वैरिन् ] जी० ३३६१२ वेरिय [वैरिक ] जी० ३।६३१ वेरुलिय [वैडूर्य ] ओ० ६४. रा० १०,१२,१८, ३२,५१,६५,१५४,१५६,१६०,१६५,१७४, २२८,२५६.२७६,२६२. जी० ३७,३३२, ३३३,३४६,३७२,३८७,४१७,४५७,६७२ वेरुलियमणि [बंडूर्यमणि ] जी० ३१२८६,३२७ वेरुलियमय [वैडूर्यमय ] रा० १३०,१५३,२७०. २६२. जी० ३।३२२,४३५ वेरुलियामय [वैडूर्यमय | रा० १६,१३२,१७५, १६०,२३६. जी० ३.२६४,२८७,३००,३०२, ३२६,३९८,४५७,६४३,८७५ वेलंधर | वेलन्धर] जी० ३।७३४ से ७३६,७४०, ७४२,७४५,७४७,७८१,७८२ वेलंब | वेलम्ब ] जी० ३।७२४ वेलंबग [विडम्बक ] ओ० १,२ वेलंबगपेच्छा [विडम्बकप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. ___ जी० ३१६१६ वेलवासि वेलावासिन् ] ओ० ९४ वेला वेला] ओ० ४६. जी० ३।७३२ वेलु [वेणु] रा० ७७ वेस [वेष ] ओ० १५,४६,५३,७०. रा० ७०, १३३,६७२,८०४. जी० ३१३०३,५९७, ११२२ वेसमण [ वैश्रमण] ओ० ६५ वेसमणमह [वैश्रमणमह] रा० ६८८. जी० ३।६१५ वेसाणिय | वैषाणिक ] जी० ३।२१६,२२१ वेसाणियदीव [वषाणिकद्वीप] जी० ३।२२१, स [स] ओ० २,१२,१५,१६,३०,५४,६० से ६५, ७०,६७,१७०,१६४. रा० ७,८,२१,२४,३२, ३४,३६,३७,४२,४७,५०,५१,५६,५८,६७, ६६,७६,१२४,१४५,१५७,१६३,१६४,१६६, १७३,१८६,२०४ से २०६,२१६,२४३,२४५, २५५,२५६,२८०,६७२,६८१ से ६८३,६६१, ६९२,७००,७०३,७१४ से ७१६,७७१,८१५. जी० ३।३५,३६,४०,४१,४३,४४,४६,१७४, २६१,२६६,२६६,२७७,२८५,२८८,३००, ३०६,३०७:३११,३३५,३४०,३५०,३५२, ३५५,३५६,३६६,३७२,३७४,३७८,३८७, ३६५,४०५,४०७,४१२,४१६,४२५,४४६ से ४४८,५५७,५६३,५६२,५६६,६५८,६६३, ६७२,६७३,६८५,७२८,७३३,७३७,७४०, ७४२,७४५,७५०,७६२,७६५.७६८,७७०, ८३८११२,१००६,१०३३,१०५४ स [स्व] ओ०६४,७१. रा ० ६,११,१३,५६,१५४ २८१,६८३,७२३,७२६,७३२,७३७,७४७, ७७४. जी० ३३२७,३५६ सइ [स्मृति] ओ० ४३ सइंदिय [ सेन्द्रिय ] जी० ६।१५ से १७,६६ सइय [शतिका] ओ० १८७. जी० ३१६८१ सउण [शकुन] ओ० ६. रा० १७४. जी०३।११ ११६,२७५,२८६,६३६ सउणरुय [शकुनरुत] ओ० १४६. रा०८०६,८० सउणि [शकुनि ] जी० ३१५६८ सउणिज्य [शकुनिध्वज] रा० १६२. जी० ३१३३५ २२५ वेसासिय वैश्वासिक ] ओ० ११७. रा० ७५० से ७५३,७६६ वेहाणसिय [वैखानसिक ] ओ० ६० वोच्छिण्णय [व्यवच्छिन्नक] रा० ७५३ Page #819 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४२ संकंत-संगल्लि संकेत [सङ्क्रान्त] रा० ७५३ संकड [ सङ्कट] ओ० ४६. रा० २८५. ____जी० ३।४५१ संकप्प सङ्कल्प] रा०६,२७५,२७६,६८८,७३२, ७३७,७३८,७४६,७४८ से ७५०,७६५,७६८, ७७३,७७७.७६१,७६३ जी० ३१४४१,४४२ संकम [सक्रम ] जी० ३१८३८।१२ संक्रमण [सङ्क्रमण] जी० ३।८३८।१२ संकला [शृङ्खला] रा० १३५,२७०. जी० ३।३०५,४३५ संकसमाण [सङ्कसत] जी० ३।११८,११६ संकिट्ट [सङ्कृष्ट ] ओ० १ संकिलिस्स सं+क्लिश्]---संकिलिस्संति. ओ० ७४१४ संकु [शङ्कु] रा० २४. जी० ३।२७७ संकुइय [शङ्कुचित] ओ० ६६. जी० ३८० संकुचियपसारिय [सङ्कुचितप्रसारित] रा० १११, २८१. जी० ३।४४७ संकुय [सङ्कुच] जी० ३।८३८।१५ संकुल [सङ्कुल] ओ० ४६. रा० १४ संकुसुमिय [सकुसुमित] रा० ४५ संख [शङ्ख] ओ० १६,२३,२७,४७,६७,१६४. रा० १३,२६,३८,७१,७७,१६०,२२२,२५६, ६५७,६६५,८१३. जी० ३।२८२,३१२,३३३, ३८१,४१७,४४६,५९६,५६७,६०८,७३४, ७३५,७४२ से ७४४,८६४ संख साङ्ख्य ] ओ०१६ संख (पाय) [शङ्खपात्र] ओ० १०५,१२८ संख (बंधण) [शङ्खबन्धन] ओ० १०६,१२६ संखतल [शङ्खतल] रा० १३०. जी० ३।३०० संखघमग [शङ्खध्मायक] ओ०६४ संखमाल [शङ्खमाल] जी० ३१५८२ संखवाणिय [ शङ्खवणिज्] रा० ७३७ संखवाय [शङ्खवादक] रा० ७१ संखाण [सङ्ख्यान ] ओ० ६७ संखादतिय [ सङ्ख्यादत्तिक] ओ० ३४ संखिज्ज [सङ्ख्येय] जी० ४।११।। संखित्त [सङ्क्षिप्त ] रा० १२३. जी० ३।२६१, ३५२,६३२,६६१,६८६,७३६,८३६,८८२ संखित्तविउलतेयलेस्स [सक्षिप्तविपुलतेजोलेश्य] ओ० ८२. रा० ६८६ संखिय [शाङ्खिक] ओ०६८ संखियवाय [शङ्खिकावादक ] रा० ७१ संखिया [शङ्खिका] रा० ७१,७७. जी० ३१५८८ संखेज्ज [सङ्ख्येय] रा० १०,१२,१८,६५,२७९. जी० ११५८,७३,७८,८१,१०१,१३४,२।६३, १२१,१२६; ३८१,८२,८६,११०,४४५,८५०, ८५२,८५५,८५८,८६१,८६४,८६७,८७०, ८७६,६२४,६२६,१०७३,१०७४,१०५३, १०८४,१११५,४८,१२ से १४,१६; ५:१०, १२ से १५,२६,४१ से ५०,५६,५८, ८।३; ६३,४,२२३,२२८,२५६ संखेन्जहभाग [सङ्ख्येयतमभाग] जी० १।६४, १२४,१३५ संखेज्जगुण [सङ्ख्येयगुण] जी० २।६६ से ७२, ६५.९६,१३६ से १३८,१४१ से १४६३।७३, ७५,१०३७; ४।२२,२५; ११६,२०,२६,२७, ३५,३६,५२,५८,६०, ६।१२,६।३७,९४,१३०, १९६,२२० संखेज्जतिभाग [सख्येयतमभाग] जी० ३९१, १०८७ संखेज्जभाग [संख्येयभाग] जी० ३६१ संखेज्जहा संख्येयधा] रा० ७६४,७६५ संग [सङ्ग] ओ० १६८ संगत [सङ्गत] जी० ३।५६६,५६७ संगतिय [साङ्गतिक] जी० ३।६१३ संगय [सङ्गत] ओ० १५,१६ रा०६६,७०,७५. ६७२,८०६,८१० जी० ३।५६७ संगामिय [साङ्गामिक ] ओ० ५७ संगल्लि [दे०] ओ० ६६ Page #820 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संगोवंत-संठिति १४७ संजयासंजय [संयतासंयत] जी०६।१४१,१४६, संगोवंग साङ्गोपाङ्ग] ओ० ६७ संघ सङ्क] ओ० ४० रा० ३२,२०६ २११ जी०३७२ संघयण [संहनन] ओ० ८२,१८५ जी० ११४, १७,८६,६५१२८,१३५, ३१६२,१२७।३, ५६८,१०६० संधयणि संनिन् ] जी० ११६५,१०१,११६, १३०. ३।६२,१०६० संघरिससमुद्रिय संघर्षसमुत्थिन] जी० ११७८ संघवेयावच्च [गवैयावृत्य ] ओ० ४१ संघाइम सङ्घातिम] ओ० १०६,१३२, रा० २८५ जो० ३।४५१,५६१ संघाड झाट रा० १४१,१६२ जी० ३।२६४ २६६.३१८,३५५ संघाडग सङ्घाटक ] रा० १६० संघातत्त सङ्घातत्व] जी० ३।१०६० संघाय सात ओ० ४७,७२. जी. ११७२।२,३ संघायत्त सातत्व जी० १११३५; ३।६२ संचय सञ्चय] ओ० ४६ जी० ३१५६८ सिंचाय सं+शक्]---संचाएइ. रा० ७५१ -----संचाएंति. रा० ७७४...संच एज्जा. जी० ३११६ -संचाएति. रा० ७५३ जी० ३।११८.. -संचाएमि रा०६६५ सिंचिट्ठ [सं+ष्ठा ---- संचिट्ठइ. रा० ७०१ -संचिटुति. रा० ६४ जी० ३.७२५ संचिट्ठणा [संस्थान] जी० ११४१ ; २१६२,८३, ८५,१५०,१५१; ५।२६, ६,७, ७८,८१३; ६।३,१६,३६,१५७,१६८,१८३,२६३ संछण्ण सञ्छन्न] जी० ३.११८,११६,२८६ संछन्न सञ्छन्न स० १७४ संजतासंजत | संयतासंयत जी० ६.१४४ संजमालया ओ० २१ से २४,४५,४६,५२,८२ रा० ८,६,६८६,६८७,६८६,७११,७१३,८१४, ८१७ संजमासंजम संयमासंयम ] ओ० ७३ संजय [संयत ] ओ० ४६ जी० ६।१४१,१४२,१४६ संजायकोऊहल्ल [संजातकोतूहल ] ओ० ८३ संजायसंसय [ सजातसंशय ] ओ० ८३ संजायसड्ढ [सञ्जातश्रद्ध] ओ० ८३ संजुत्त संयुक्त रा० ७५३,७६५ जी० ३५९२ संजोग [संय ग] ओ० २८,४६ संझब्भराग [ सन्ध्याभ्रराग] रा०२७ जी० ३.२८० संझा सन्ध्या] जी०३।६२६ संझाविराग सन्व्याविराग] जी ३१५८६ संठाण [संस्थान] ओ० ४७,५०,७२,८२,१७०. १८६,१६४,१६।३,४,८ रा० १२४,१२७, १३२,१८५ जी० ११५,१४,७२,१२८,१३६; ३।२२,४८ से ५०,७८,८६,१२७।१,३,१२६।३, ४,२५७,२६०,२६१,२६७,३०२,३५२,५७७, ५६८,६०४,६३२,६६१,६८६,७०४,७२३, ७२६,७३६,७६६,८१०,८२१,८३१,८३६, ८४१,८४२,८४५,८४८,८५७,८५६,८६२, ८६५,८६८,८७१,८७४,८७७,८९०,८८२, ६११,६१८,६२५,१००८,१०७१,१०६१, १०६२ संठाणओ [स्थानतस्] जी० ३।२५६ संठाणतो [संस्थानतस् ] जी० ३१२२ संठाणविजय [संस्थानविचय ] ओ० ४३ संठित [संस्थित] रा० १२४ जी० ३।२८ से ३२; ४८ से ५०,७८ ७६,८६,६३,२६०,२६१, २६७,३०२,३५२,५७७,५६७,६३२,६६१, ७०४,७०५,७६३,७६६,७९७,८१०,८११. ८२१,८२२,८३१,८३६,८४२,८४५,८४८, ८४६,८५७,८५६,८६२,८६५,८६८,८७१, ८७४,८७७,८८०,८८२,६११,६२५,१००८, १०६१,१०६२ संहिति [संस्थिति] जी० ३।८११ Page #821 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૭૪૪ for | संस्थित | ओ० १,१३,१६,५०,८२, १७०, १०४. रा० ३२, ५२, ५६, १२७, १३२, १३३, १८५,२३१,२४७. जी० १।१८,६४,६५,६७, ७४,७७,७६,८६,६६, ११०, ११६, १३०, १३६; ३।३०,५०,७८,२५७, २५६, २६७, ३०३, ३०७, ३७२,३६३,४०१,५ε४, ५६६ से ५६८,६०४, ६८९, ७२३, ७२६,७३६,७६३, ८३८२, १५, १५, १८, १०७१ संड [ षण्ड ] ओ० २२. रा० ७७७,७७८,७८८ संडास | संदेशक ] जी० ३१११८,११६ संडेय [ षण्डय ] ओ० १ संणिखित | सन्निक्षिप्त ] जी० ३।४१५ संत [ सत् ] ओ० २३. रा० ६६५. जी० ३३६०८ संत [श्रान्त] ओ० ६३. रा० ७६५ संताण | सन्तान ] ओ० ४६ संति [ सत् ] जी० १।७२।३ / संघर [ सं + स्तृ ] —संथरइ. रा० ७६६. - संथरति. ओ० ११७ संथरित्ता | सस्तृत्व ] ओ० ११७ संचार [ संस्तार ] रा० ६६८, ७०४,७०६, ७५२, ७८६ संथारग [ संस्तारक ] ओ० ३७,१२० रा० ७११ संभार [ संस्तारक ] ओ० १६२,१८० रा० ७१३, ७७६ / संण [ सं + स्तु ] - संथ इ. रा० २६२. जी० ३१४५७ संधुणित्ता [ संस्तुत्य ] रा० २९२. जी० ३।४५७ संद [ सन्दष्ट ] जी० ३।३२३ संमाणिया [ स्यन्दमानिका] ओ० १,५२, १००, १२३. रा० ६८७ से ६८६. जी० ३।२७६, ५८१,५८५,६१७ संदमाणी | स्यन्दमानी ] रा० १७३ संदमाणीया | स्यन्दमानिका ] जी० ३।२८५ संदिट्ठ [ सन्दिष्ट ] रा० १५० संविस [ सं + दिश् ] - संदिसंतु रा० ७२ संधि [ सन्धि ] ओ० १६. रा० १६,३७,१३०, संठिय-संपरिक्खित्त १५६,१७५,१६०,२४५,६६४. जी० ३।२६४, २८७,३००, ३११.३३२,४०७, ५६२, ५६६,५६७ संधिवाल | सन्धिपाल ] ओ० १८,६३. रा० ७५४, ७५६,७६२,७६४ Via | i + धुक्षू ] -- संधुक्खे इ. रा० ७६५ निकास [ निकाश ] जी० ३।३०३ संनिक्खित्त | सन्निक्षिप्त ] जी० ३१८०२, ४१०, ४१८, ४१६,४२६, ४३२, ४३५, ४४२ संनिखित्त | सन्निक्षिप्त ] रा० २४०, २४६, २५४, २५७, २५८, २६६,२६८, २७६ संनिवि [ सन्निविष्ट ] जी० ३ २८५,३७२,३७४, ६४६,६७३,६७४,८८४,८८७ संपत [ सम्प्रयुक्त ] ओ० १४,२१,४३,६४,१४१. रा० ६७१,७१०, ७७४, ७६६ संपओग [ प्रयोग ] ओ० ४३. रा० ६७१ ओ० ६४ संपक्खा | सम्प्रक्षाल ] संपगाढ [ सम्प्रगाढ ] जी० ३ १२६१७ पट्टि [ सम्प्रस्थित ] ओ० ६४, ११५ संपणाइय | सम्प्रनादित ] रा० ३२,२०६,२११. जी० ३।३७२,६४६ संपण्ण | सम्पन्न ] जी० ३५६८ संपत्त | सम्प्राप्त ] अ० २१,५२,५४,११७,१४४. रा० ८,२६२,६८७, ६८६,७१३, ७१४,७९६, ८०२. जी० ३।४५७ संपत्ति | सम्पत्ति संप्राप्ति ] जी० ३।१११६ संपत्थिय | सम्प्रस्थित ] रा० ४६ से ५४,७७४ संपन्न [सम्पन्न ] जी० ३७६५, ८४१ / संपमज्ज | संप्र + मृज् ] - संपमज्जइ ओ० ५६. – संपमज्जेज्जा. रा० १२ संपमज्जेत्ता [ सम्प्रमृज्य ] ओ० ५६ संपरिक्खित्त [ सम्परिक्षिप्त ] ओ० ३, ६, ११. रा० १२७, २०१२६३. जी० ३।२१७, २६०, २६२, _२६५,३१३,३५२,३६२,३६८ से ३७१, ३८८, ३६०,६३९, ६५२, ६५८, ६६८, ६७८, ६७६, ६८१,६८६, ७०४, ७०६, ७३६, ७५४, ७६६. Page #822 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपरिक्खित्ताणं संवृत्त ७६८,८१०,८१२,८२१,८२३,८३३, ८३६, ८४८८५०,८५,८६२,८६५,८६८,८७१, ८७४,८७७, ८८०, ६२५ संपरिवखत्ताणं [ सम्परिक्षिप्य ] जी० ३।४८ संपरिखित्त [ सम्परिक्षिप्त ] रा० ४०, १८६, १६१ २०५ से २०८ संपरिवुड [ परिवृत] ओ० १८,१६,६३,६८, ७०. ० ७,१३,४७, ५६, ५८, १२०,२६१, ६५७,६८३, ६८६,७११, ७५४, ७५६ ७६२, ७६४,७७७,७७८,८०४. जी० ३।४५७, ५५७, १०२५ संपल लिय [सम्प्रललित ] ओ० २३ संपलिक [ सम्पर्यङ्क] ओ० ११७. रा० ७६६. जी० ३१८६६ संप | सम्प्रविष्ट ] रा० ७६५ संपाविउकाम [ सम्प्राप्तुकाम ] ओ० १६,२१,५४, ११७. रा०८ पिंड [ सम्पिण्डित ] ओ० ६. जी० ३।२७५ संपुच्छण [ सम्प्रश्न ] जी० ३।२३६ सं [सम्पुट ] जी० ३।७६३ / संपेह [ सं + + ईक्ष् ] — संपेहेइ. रा० & संहिता [ सम्प्रेक्ष्य ] रा० संपेता [ सम्प्रेक्ष्य ] रा० ६८८ संबंधि [ सम्बन्धिन् ] जी० १५० रा० ७५१,८०२ ८११ संबद्ध [ सम्बद्ध ] जी० ३।११०,१११५ बाह ] सम्बाध ] ओ० ८६ से १३,६५,६६, १५५, १५८ से १६१,१६३, १६८. रा० ६६७ बाणा [ सम्बाधना ] ओ० ६३ बाहि [ सम्बधित | ओ० ६३ संबुद्ध [सम्बुद्ध ] रा० ७७५ संभम | सम्भ्रम ] ओ० ६७. ० ८,१३,६५७, ७१४. जी० ३१४४६ संभार [सम्भार ] जी० ३।५८६ संभिण्ण [ सम्भिन्न ] जी० ३।११११।३ भिण्णसोय [सम्भिन्नस्रोतस् ] ओ० २४ संभोग [सम्भोग ] ओ० ४० संमज्जण [ सम्मार्जन ] रा० ७७६ संमज्जिय [सम्मार्जित] रा० २८१,८०२ संमट्ट ( सम्मृष्ट ] रा० २०१ समय [सम्मत ] ओ० ११७. रा० ७६६ v संमुच्छ [ सं + मूर्च्छ ] - संमुच्छंति. जी० ३।१२७ संमुच्छिम [सम्मूच्छिम, सम्मूच्र्छनज ] जी० १६६ से ६८,१०१ से १०५,११२,११६,१२६ से १२८३।१३८,१३६, १४२,१४५ से १४७, १४६,१६१, १६३,१६४,२१२ से २१४ हा [ सम्मुखागत ] जी० ३।२८५ संलद्ध [संलब्ध ] रा० ७६८ संलाव [ संलाप ] ० १५. २०७०, ६७२. जी० ३।५६७ संलेहणा | संलेखना ] ओ० ७७,११७,१४०, १५४ संच्छर [संवत्सर ] जी० ११८७ २२६७; ३|८४१४|४ संवच्छर पडिलेहणग [ संवत्सरप्रति लेखनक ] रा० ८०३ संवट्ट [सं + वर्तय् ] -- संवट्टेइ. ओ० ५६ संवगवा [ संवर्त्तकवात ] जी० ११५१ संवयवा [ संवर्त्तकवात ] रा० १२ संवत्ता [ संवर्त्य ] ओ० ५६ संवडिय [संबंधित ] रा० ८११ संवर [सवर ] ओ० ४६, ७१,१२०, १६२. T० ६६८, ७५२, ७८६ ७४५ संवाह [ संवाह ] ओ० ६८ संविण [ संविकीर्ण ] रा० ३२,२०६,२११. जी० ३।३७२ संवित्ति [ संविधूय ] ओ० २३ संवुड [ संवृद्ध ] ओ० १५०. रा० ८११ संवत [ संवृत ] जी० ३।४०७ संवृत्त [ संवृत्त] रा० ७७१ Page #823 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४६ संवुय-सची सक्कय [संस्कृत] जी० ३ ५६५ सक्करप्पभा [शर्कराप्रभा] जी० २।१०० ; ३।४, ११,२०,२१,२७,३१,३२,३४,४०.४३,४४,४६, ६८,१०७ सक्करा [शर्करा] रा० ६,१२. जी० ३।६०१, ६२२ संवय [संवृत] रा० ३७,२४५. जी० ३।३११ संवेग | संवेग] ओ०६६ संवैयणी [संवेदनी ] ओ० ४५ संवेल्लित [दे०] जी० ३।३०३ संवेल्लिय [दे०] रा० ६६,७०,१७३ संसद्धचरय [संसृष्टचरक ओ० ३४ संसत्त [संसक्त] ओ० ३७. जी० ३१८४ संसार [संसार] ओ० २६,४६,१६५ संसारअपरित्त [संसारापरीत ] जी०६७६ संसारपरित्त [संसारपरीत] जी० ४७६,७८,८४ संसारविउस्सग्ग [संसारव्युत्सर्ग] ओ० ४४ संसारसमावण्ण [संसारसमापन्न ] जी० १।६,१० संसारसमावण्णग संसारसमापन्नक] जी० १११०, ११,१४३; २११,१५१ : ३।१,१८३,११३८ ; ४।१,२५, २१,६०, ६१,१२,७११,२३; ८।१,५; ६३१.७ संसारसमावण्णय ] संसारसमापन्नक] जी० ११० संसाराणुपेहा [संसारानुप्रेक्षा] ओ० ४३ संसारापरित्त [संसीरापरीत] जी०६।८१,८६ ।। संसुद्ध [संशुद्ध] ओ० ७२ सिसेय [सं-+-स्विद् ] -संसेयंति. जी० ३।७२६ संहत [संहत] जी० ३।५६७ संहरण [संहरण] जी० २।३० से ३४,५७ से ६१, ६६,१३३ संहित' [संहित] जी० ११७२।३; ३३५६६,५६७ संहिय [संहित] रा० १७३. जी० ३१५६७ सक [स्वक] ३७६५,७७० । सकक्कस [सकर्कश] ओ० ४० सकसाइ [सकपायिन् ] जी० ६।२८ सकाइय [सकायिक] जी०६।१८ से २० सकिरिय [सक्रिय] ओ० ४०,८४,८५,८७ सक्क [शक] जी० ३।६२०,६२१,६३७,१०३६ से १०४२,११११ १. संहितौ- मध्यकायापेक्षया विरलौ सक्करापुढवी [शर्करापृथ्वी] जी० ३१८५,१६० सिक्कार [सत्+कृ] ...सक्कारिस्संति रा०७०४ --- सक्कारेइ. ओ० २१. रा०६८४ ---सक्कारेज्जा. रा० ७७६ --सक्कारेमि. रा० ५८ ----सक्कारेमो. ओ० ५२. रा० १०..-सक्कारेस्संति. रा०८०२. -सक्कारेहिति. ओ० १४७ सक्कार गत्कार ओ० ४०,५२. रा० १६,६८७, ६८६,८०३,८०५. जी० ३१६०६ सक्कारणिज्ज [सत्कारणीय ] ओ० २. रा० २४० __ २७६. जी० ३।४०२,४४२ सक्कारित्तए [सत्कर्तुम् ] ओ० १३६. रा०६ सक्कारेत्ता [सत्कृत्य] ओ० २१ सक्कुलिकण्ण [शष्कुलिकर्ण] जी० ३।२१६,२२५ सक्कुलिकण्णदीव [शष्कुलिकर्णद्वीप] जी० ३।२२५ सग [स्वक] जी० ३१७६८,७६९,७७२,७७३,७७६ से ६७६,११११ सगड [शकट] ओ०१००,१२३. जी० ३।२७६, ५८१,५८५,६१७,६३१ सगडवूह [शकटब्यूह] ओ० १४६. रा० ८०६ सगल [सकल ] जी० १३७२, ३।५६२ सगल [शक ल] जी० ३।५९६ सगेवेज्ज [सवेय] रा० ७५४,७५६,७६४ सग्ग [सर्ग] ओ०६८ सचित्त [सचित्त] ओ० २८,४६,६९,७०. रा० ७७८ सिचित्तीकर [सचित्तीकृ]- सचित्तीकरेइ. रा० ७७२ सची [शची] जी० ३।९२० Page #824 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सच्च-सह ७४७ सच्च [सत्य ] ओ० २,२५,७२,११८. रा०६८६ सणिच्छर [शनैश्चर] ओ० ५० सच्चमणजोग [ सत्यमनोयोग] ओ० १७८ सण्णद्ध [सन्नद्ध] ओ० ५७. रा० ६६४,६८३ सच्चवइजोग [सत्यवाग्योग] ओ० १७६ सण्णय [सन्नत] ओ० १६. जी० ३१५९६,५६७ सच्चामोसमणजोग [सत्यमृषामनोयोग] मो० १७८ सण्णव [संज्ञापय]-सण्णवेइ. रा० ७६६ सच्चामोसवइजोग [सत्यमृषावाग्योग] ओ० १७६ सण्णा [संज्ञा] रा० ७४८ से ७५०,७७३. सच्चोवात [सत्यावपात] ओ० २ ओ० १११४,२०,८६,६६,१०१,११६,१२८, सच्छंद [स्वच्छन्द] ओ० ४६ २३६; ३।१२८।२ सच्छड [संस्तृत] रा० ७७४ सिण्णाह [सं-नहसण्णाहेहि. ओ०५५ सजोगि [सयोगिन् ] ओ० १८१. जी० ६।२१,४६, सण्णाहिय [सन्नद्ध] ओ० ६२ ४८,५२ सण्णाहेत्ता [संनह्य] ओ० ५६ सज्ज [सज्ज] ओ० ६४. रा० १७,१८,१७३, सण्णि [संज्ञिन्] ओ० १५६,१८२. रा० १।१४, ६८१,६८२,६६१. जी० ३।२८५ २४,८६,६६,१०१,११६,१३३,१३६; ६।१०१, सज्ज [सद्यस्] जी० ३१८७२ १०२,१०५,१०८ सिज्ज [सस्ज् --सज्जावेइ रा०६८०. -सज्जिहिति. ओ० १५०. रा०८११. सणिकास [सन्निकाश] जी० ३।३३३,३८१,४१७, -सज्जेइ. रा० ६६६ ८६४,११२२ सज्जावेत्ता [सज्जयित्वा] रा०६८० सणिखित्त [सन्निक्षिप्त] जी० ३.१०२५ सणिणाय [सन्निनाद] ओ० ६७. रा० १३, सज्जिय [सज्जित] जी० ३।५६२ सज्जीव [सजीव] ओ० १४६. रा० ८०६ ६५७. रा० ३।४४६ सज्जता [सज्जित्वा] रा० ६६६ सण्णिपंचिंबिय [संज्ञिपञ्चेन्द्रिय] ओ० १५६ समाय [स्वाध्याय] ओ० ३८,४२ सण्णिभ [सन्निभ] रा० १६,४७,६३,६५. सट्ठाण [स्वस्थान] जी० ६।१६६,२०८ जी० ३।५९६ सण्णिमहिय [सन्निमहित] ओ० १ सट्टि [षष्टि] ओ० १४०. रा० २३१. सण्णिवाइय [सन्निपातिक] ओ० ७१,११७. जी० ३३११८ रा०६१,७६६ सद्वितंत [षष्ठितन्त्र] ओ० ६७ सण्णिविट्ठ [सन्निविष्ट] ओ० १. रा० १७,१८, सडंगवि [षडङ्गविद् ] ओ० ६७ २०. जी० ३।२८८ सड्डइ [श्राद्धकिन्] ओ० ६४ सण्णिवेस [सन्निवेश] ओ० ६८,८६ से ६३,६५, सण [सन] ओ० १३ ९६,१५५,१५८ से १६१,१६३,१६८. सणंकुमार [सनत्कुमार] ओ० ५१,१६०,१९२. रा० ६६७ जी० २।६६,१४८,१४६; ३।१०३८,१०४५, सण्णिवेसदाह [सन्निवेशदाह] जी० ३।६२६ १०४६,१०५८,१०६६,१०६८,१०८८,१०६४, सण्णिसण्ण [सन्निषण्ण] रा०८,४७,६८,२७७, ११०२,११११,११२६ २८३. जी० ३४४३,४४६,४५२,५५७,८३६ . सणप्फई [सनखपदी] जी० २।६।। सणिहिय [सन्निहित] ओ० २ सणप्फय [सनखपद] जी० ११०३ सण्ह [श्लक्ष्ण] ओ० १२,१६४. रा० २१ से २३, सणिचर [शनैश्चर] जी० ३१६३१ ३२,३४,३६,३८,१२४,१३०,१३७,१४५,१५७, Page #825 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४८ सण्हपुढवी-सद्द सत्तम [सप्तम] ओ० १७४,१७६,१८६ सत्तमा [सप्तमी] जी० ३१२,४,७२,७५,७७,६१, १७४,२६१. जी० ११५७,५८, ३।२६१,२६२, २६६,२६६,२८६,२६०,३००,३०७,३६५, ४२५,४५७,५६२,६३६,८३६ सहपुढवी [ श्लक्ष्णपृथ्वी] जी० ३।१८५,१८६ सत [शत] रा० १२६. जी० ३८२,१७२,१७३, १६७,२२६,२४६,२५५,२५७,२६०,२८५, ३३५,३५३,३५४,३५७,३५८,३६१ ३७२, ४१५,४१६,४४२,५७७,५६८,६३२,६३६, ६४६,६४७,६४६,६५२,६६१,६६६,६६८, ६७३,६७४.६७६,७०३,७१४,७२४ से ७२६,७२८,७३३,७३६,७५०,७५६,७८८, ७६४,७६५,७६८,८०६,८१२,८१५,८२०, ८२७,८३०,८३२,८३५,८३७,८३६,८४१, ८४५,८८२,८८४,८८७,६०१,६०८,६११, ६१८,६७०,१००० से १००४,१००६,१०१६, १०३०,१०३८,१०४४,११३७; श२६; ६।११,७।१६, ६।८६,१०२,२१७ सतपत्त [शतपत्र] रा० २३. जी० ३।२५६,२६१ सतसहस्म [शतसहस्र ] जी० ११५८; ३।२२,२७, ६७ से ७२,८६,१६१,१६७,१६६,१७४,२५७, २६६,६०२,६५८,७०३,७०६,७१४,७२३, ७६४,७६५,७९८,८२३,८३६,६१०,६६६, ६६८,१०३८,१०८७,१०८८,११२८ सताउ [शतायुष ] जी० ३३५८६ सति [स्मृति ] जी० ३।११८,११६ सतिय [शतिक ] जी० ३।६७३,६७४ सत्त [सप्तन् ] ओ० २१. रा०७. जी० १६५ सत्त [सत्व ] जी० ३।१२७,७२१,६५५,११२८, ११३० सत्तग्ग [शक्त्यग्र] जी० ३८५ सत्तघरंतरिय [सप्तगृहान्तरिक] ओ० १५८ सत्तट्टि [मप्तषष्टि] जी० ३।७२२ सत्तणउय [सप्तनवति] जी० ३।२२६ सत्ततीस [सप्तत्रिंशत् ] जी० ३।३५१ सत्तपण्ण [सप्तपर्ण] रा० १८६ सतमासिया [सप्तमासिकी] ओ० २४ सत्तमी [ सप्तमी] जी० ३१३६,८८,११११।३ सत्तरस [सप्तदशन् ] जी० ३।३५६ सत्तरि | सप्तति] जी० ३।२४६ सत्तवण्णव.सय [सप्तपर्णावतसक] रा० १२५ सत्तवण्णवण [सप्तपर्णवन] रा० १७०. जी० ३।५८१ सत्तविष [सप्तविध] जी०२।१००, ३।२६।१८२ सत्तविह [सप्तविध] ओ० ४०. जी० १११०,५८, ____६२, ६।१,१२, ६।१८५,१६६ सत्तसत्तमिया | सप्तसप्तकिका] ओ० २४ सत्तसिक्खावइय [सप्तशिक्षावतिक] ओ० ५२,७८ सत्ताणउति [सप्तनवति ] जी० ३।१०३८ सत्तावीस [सप्तविंशति ] ओ० १७०. रा० १८८. जी० ३८२ सत्तावीसतिगुण [सप्तविंशतिगुण] जी० २।१५१ सत्तावीसय [सप्तविंशति] जी० २।१५१ सत्ति [शक्ति] ओ०६४। सत्तिवण्ण [सप्तपर्ण ] ओ०६,१०. जी० ३१३५६, ३८८,५८३ सत्तिवण्णवण [सप्तपर्णवन] जी० ३।३५८ सत्तु [शत्रु] ओ० १४. रा० ६७१ सत्तुपक्ख [ शत्रुपक्ष] जी० ३।४४८ सत्य [शास्त्र] ओ०६७ सत्य [शस्त्र] रा ० ७६१ सत्थवाह [सार्थवाह] ओ० १८,४६,५२. रा० ६८७,६८८,७०४,७५४,७५६,७६२,७६४. जी० ३।६०६ सत्थोवाडियग | शस्त्रावपाटितक] ओ०६० सदारसंतोस [स्वदारसन्तोष] ओ० ७७ सदेस [स्वदेश] ओ० ७०. रा० ८०४ सद्द [शब्द] ओ० ६,१५,६३,६४,६७,६८,१६१, १८ Page #826 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सह-समउरंस १६३. रा० १३ से १५, ३२,४०, १३२,१३५, १७३,२०६,२११,२८२,६५७, ६७२, ६८५, ७१०,७३२, ७३७,७५१, ७५५, ७७१, ७७४. जी० ३।११८, ११६,२६५, २७५, २८५, २६६, २६८,३०५, ३६०,३७२, ४४६, ४४८, ५७८, ६३६, ६४६,६६०, ८५७,८६३, ६०५, ६७७, ८२,१११७,१११८, ११२४,११२५ √ सद्दह [ श्रत् + धा] - सद्दहामि रा० ६६५. - सद्दहाहि. रा० ७५१. – सद्दहेज्जा. रा० ७५० सद्दहमाण [ श्रद्धान] जी० १।१ सद्दाल' [ दे० ] जी० ३।११२२ √ सद्दाव [ शब्दय् ] -- सद्दावेइ ओ० ५८. रा० ६. - सहावेंति. ओ० ११७. रा० २७८. जी० ३।४४४. - सहावेति. रा० १३. जी० ३।५५४ सद्दावति [ शब्दापातिन् ] जी० ३।७६५ सद्दावाति [ शब्दापातिन् ] रा० २७६. जी० ३।४४५ सद्दाविय [ शब्दायित, शब्दित ] रा० ७२ सहावेत्ता [ शब्दयित्वा ] ओ० ५८. रा० ६. जी० ३।४४४ सहि [ शब्दित] ओ० २ सल [ शार्दूल ] ओ० १६. जी० ३।५६६ सद्ध [ श्राद्ध] जी० ३।६१४ सद्धि [सार्द्धम्] ओ० १५. रा० ७. जी० ३।२३ε सन्नद्ध [ सन्नद्ध ] जी० ३।५६२ सन्निकास [ सन्निकाश ] रा० १३३. जी० ३।३१२ सन्निखित्त [ सन्निक्षिप्त ] जी० ३१४४२ सन्निखित [ सन्निक्षिप्त ] रा० २२५,२७० सन्निगास [ सन्निकाश ] २१०३८, १६०२२२,२५६ सन्निभ [ सन्निभ ] ओ० १६. जी० ३।५६६ सन्निविट्ठ [ सन्निविष्ट ] रा० ३२,६६,१३८,२०६, २११. जी० ३.७५६ सन्निवेस [सन्निवेश ] जी० ३।६०६,८४१ सन्निवेसमारी [सन्निवेशमारी ] जी० ३।६२८ सन्निसन्न [ सन्निषण्ण ] रा० १७३ १. नूपुर, किंकिणी । ७४६ सज्जवसित [ सपर्यवसित] जी० ६ २४,३१,६८, ६६, ८१, १२५, १७४,२०२ सपज्जवसिय [सपर्यवसित] जी० ६।११,१३,१६, २३,२५,२६,३१,३३, ३४, ५८, ६०, ६४,६८,६६, ७१,७२, ८६, ११०, १२५, १३३, १४६, १६४, १६५,१७६,२०२,२०६ सडकम् [सप्रतिकर्मन् ] ओ० ३२ सप्प [सर्पिस् ] ओ० ६२, ६३ पियासव [ सर्पिराश्रव] ओ० २४ सफल [ सफल ] ओ० ७१ सबरी [ शबरी ] ओ० ७० रा० ८०४ सभा [सभा ] रा० ७,१२ से १४,२०६,२१०, २३५ से २३७,२५०,२५१,२७६, ३५१,३५६,३५७, ३७६,३९४,३६५,६५६, ६५७. जी० ३।३७२, ३७३,३६७ से ३६६,४११, ४१२, ४२६, ४४२, ५१६,५२१,५२२,५२४,५२५,५५६,५५७, १०२४,१०२५ सभाव [ स्वभाव ] जी० ३।५६७ सम [सम] ओ० १६,२६,५६,१७१, १६२. रा० ७०,७५,७६,८०,११२, १३३, १७३१७४,७७२. जी ० ३ । ५२, ११८, ११६, २८५, २८६, ३०३, ३६२,३८७,५८६, ५६६,५६७, ७०५, ७२४, ७२७,७३२,७८४,७८७,७७,८११, ८२२, ८४६,६१०,६११,६१८,६६८, ११२२ सम [ श्रम ] रा० ७२६,७३१,७३२ समइक्कंत [ समतिक्रान्त ] ओ० ४७ समइच्छमाण' [ समतिक्रामत्] ओ० ६६ म [ सामयिक ] ओ० १७३, १४, १५२. जी० ६१३,५ समंता [ समन्तात् ] ओ० ३. रा० ६. जी० ३।४९ समक्खा [ समाख्यात ] जी० ३ | १६७ से १६६ समग्ग [ समग्र ] ओ०६८ समचउरंस [समचतुरस्र ] ओ० ८२. जी० २ ११६, १३६; ३।५८, १०६१,१०६२ १. हे० ४। १६२ Page #827 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५० समजोतिभूत-समय समजोतिभूत [समज्योतिभूत] जी० ३।११८ समणुबद्ध [समनुबद्ध] रा० १४६,६७०. समज्जिणित्ता [समय॑] रा० ७५० ___ जी० ३।३२२,५६१ समज्जुइय [समद्युतिक] जी० ३।११२० समणोवासग [श्रमणोपासक ] ओ० १६२ समट्ट [समर्थ] ओ० ८६ से १५,११४,११७,१२०, समणोवासय [श्रमणोपासक ] ओ० ७७,१२०,१४०, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७,१६६,१७०, १६२. रा० ६६८,७५२,७८६ से ७६१ १७२,१७७,१८१,१८६ से १६१. रा० २५ से समणोवासिया [श्रमणोपासिका] ओ० ७७. ३१,४५,१७३,७५१,७५३,७५५,७५७,७५६, रा० ७५२ ७६१,७६३,७७१. जी० ३।८४,८५,११८, समण्णागय [समन्वागत ] ओ० ४३. रा० १२, १९८ से २०३,२७८ से २८५,६०१,६०२, ७५८,७५६. जी० ३११८,२८५ ६०५ से ६०७,६०६,६१०,६१२ से ६१७, समतल [समतल ओ० १६. जी० ३१५९६ ६२२ से ६२४,६२६,६२८,७८२,७८६,८६०, समताल [समताल ] ओ० १४६. रा० ८०६ ८६६,८७२,८७८,६६० से ६६२, ६६४ से समतुरंगेमाण [समतुरङ्गायत्] जी० ३।१११ ६६६,१०२४ समत [समस्त ] ओ० ६३. जी० ३७०१ समत्तगणिपिडग समस्तगणिपिटक ओ० २६ समण [श्रमण] ओ० १६ से २५,२७,३३,४६ से समत्थ [समर्थ] ओ० १४८,१४६. रा० १२,७३७, ५३,५५,६२,६६ से ७१,७८ से ८३,९५,११७, ७५८,७५६,७७०,८०६. जी० ३।११८ १२०,१५५,१५६,१६२,१७०. रा० ८ से १३, १५,५६,५८ से ६५,६८,७३,७४,७६.८१.८३. समन्नागय [समन्वागत ] रा० १७३ ११३,११८,१२०,१२१,१३१,१३२, १४७ से समप्पभ [समप्रभ ] रा०२८५. जी. ३१४५१ १५१, १८५,१६७,६६७,६६८,६७१,६६८, समबल [समबल ] जी० ३।११२० ७१८,७१६,७३६,७४८ से ७५०,७५२,७८७ से समभिजाणित्ता [समभिज्ञाय] रा० २७६. ७८६,८१७. जी० २५६,६२,६५,८२,६६, जी० ३।४४२ १२८, २।१४०; ३३१७६,१७८,१८०,१८२, सिमभिलोय [सं+अभि+लोक्]-समभिलोएइ. रा० ७६५—समभिलोएति. रा०७६५. २५६,२६९,२६७,३०१,३०२,३२१ से ३२४, -समभिलोएमि रा० ७६४ ५८२,५८६ से ५६५,५६८,६००,६०३ से समय समय ] ओ० १,१८,१९,२३ से २५,२७, ६०७,६०४ से ६१७,६२०,६२२ से ६२५, २८,४५,४७ से ५१,८२,११५,१७३,१७४, ६२७,६२८,६३०,७६५,८४१,९६५,१०५६, १८२,१६५।३. रा० १,७,७६,१७३,२७४, ११२० ६६८,६७६,६८५,६८६,७७१. जी० १९,३३; समणी [श्रमणी] जी० ३७६५,८४१ २।४८,५४ से ५६,६५,८६,८८,८६,११७, समणुगच्छ [सम् + अनु+ गम्]-समणुगच्छंति १२३,१३२ : ३।८६,६०,११८,११६,२१०, रा० ५५ २११,२८५,४३६,५८८,५८६,८४१,८४४, समणुगम्ममाण [समनुगम्यमान] ओ० ६५. ८४७,६७३,१०८३,१०८५,१०८६;७।१ से ___जी० ३॥१७४ ६, ६ से १८, २० से २३ ; ६१ से ७, २४, समणुगाहिज्जमाण [ समनुग्राह्यमान ] जी० ३ १७४ २५,४०,४३,४८ से ५१,५७,६०,११४,११८, समचितिज्जमाण [समनुचिन्त्यमान ] जी० ३।१७४ १२४,१२५,१२७,१३४,१३८,१४२,१४६, समणुपेहिज्जमाण [समनुप्रेक्ष्यमान ] जी० ३।१७४ ।। १५०,१५२,१६१,१६२,१७१,१७२,१७६, Page #828 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समय-समुग्धाय ७५१ १६६,२००,२०३,२३२ से २३८, २४१ से से ३२४,४५४ २४८, २५० से २५३,२५५, २६७ से २७३, समाणुभाग [समानुभाग] जी० ३।११२० २७५ से २८२,२८४ से २६३ समादाण [समादान] जी० ३।११७ समय [समक] जी० ३।२७३,२६८ समामेव [समकमेव] रा० ७५ समयओ [समयतस् ] रा०६६४ समायर [समा+चर]- समायरह. रा० ७५१ समयखेत्त [समयक्षेत्र रा० २७६. जी० ३।४४५ समायरित्ता [समाचर्य] रा० ६६७ समयग [समयक] जी० ७।४। समायरेत्ता [समाचर्य ] रा० ७५१ समयतो [समयतस ] जी० ३।५६२ समारंभ [समारम्भ] ओ०६१ से ६३,१६१,१६३ समयस [समयशस् ] जी० ३।११२० समावडिय [समापतित] ओ०४६ समयिक [सामयिक] जी० ६।२ से ५ समावण्णग [ समापन्नक ] जी० ३।८४२,८४५ समयिग [सामयिक ] जी० ६।६ समास [समास] जी० ३।८३८।१ समरस [समरस] रा० २२८. जी० ३।३८७ समासओ | समासतस्] जी० ११५,५८,६५,७३, समरसोद [समरसोद] जी० ३२८६ ८४,८८,८६,९२,१००,१०३,१११,११२,११६, सिमलंकर [सं-1-अलं---कृ]--समलंकरेइ. ११८,१२१,१२६,१३५ ओ० ५६ समासतो [समासतस्] जी० २७८,८१, ३।२२६ समलंकरेता [समलङ्कृत्य] ओ०५६ समाहय [समाहत] ओ० ४६. रा० १२,७५८, समल्लीण [समालीन] ओ०१३. रा०४ ७५६. जी० ३।११८ समाहि समाधि] ओ० ११७,१४०,१५७,१६२. समवायधर [समवायधर] ओ० ४५ रा० ७६६ समसोक्ख [समसौख्य ] जी० ३.११२० समिड्ढीय [समधिक] जी० ३१११२० समहिद्विज्जमाण [समधिष्ठीयमान] रा०७५१ समिता [समिता] जी० ३।२३५.१०४०,१०४४, समाइण्ण [समाकीर्ण ] ओ० ७१. रा० ६१ १०४६ समाउत्त [समायुक्त] ओ० ६४. रा० ५१ समिद्ध [समृद्ध] ओ० १,१४. रा० १,६६८ से समाउल [समाकूल] रा० १३६. जी० ३।३०६ ६७१,६७६,६७७ समाण [स] ओ० २०,५२,५६,६३,६४,६८, समिया [समिता] जी० ३।२३६,२४१ ११७,१४२,१४४,१५७. रा० १०,१२ से १५, समग्ग [समुद्ग] ओ० ७४।५. रा० १६१,२५८, १८,४६,६०,६३,६४७२,७४,२७४,२७५, २७६,३५१. जी० ३।३३४,४१६,४४५,५९६ २७६,२८३,२८६,६५५,६८१,६८५,७००, समुग्गक [समुद्गक] जी० ३३४०२,५१६ ७०१,७०३,७०७,७१०,७१३,७२५,७२८, समुग्गग [समुद्गक] जी० ३१३०० ७५७,७६५,७७४,७६२,७६७,८००,८०२. समुग्गपक्खि [समुद्गपक्षिन् ] जी० ११११३,११६ जी० ३।११८,११६,४४०,४४१,४४५,४४६, समग्गय [समुद्गक] ओ० १७०. रा० १३०,२४० ४५२,५५५,६१७,६८६ २७६,३५१. जी० ३।४०२,४४२,५१६,१०२५ समाण समान] ओ० २३,२६,२६,११७. समुग्धात [समुद्घात ] जी० ३।१०८,१५७,१११८ रा० १३१,१३२,१४७ से १५१,१६७,२८८, समुग्धाय [समुद्घात] ओ० १७१,१७२,१७५, ७५० से ७५३,७६६. जी० २।७४,९८,१४०%; १७७. जी० १११४,२३,८२,८६,६६,१०१, ३।१११,११८.११६,२६६,३०१,३०२,३२१ ११६,१३३,१३६, ३।१२७१४,१६० Page #829 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५२ समुच्छिण्णकिरिय-सम्मत्तकिरिया समुच्छिण्णकिरिय [समुच्छिन्नक्रिय] ओ० ४३ समुद्रित [समुत्थित] जी० ३१३०३ समुट्ठिय [समुत्थित रा० १३३,६७१ समुदय [समुदय ] ओ० ६७. रा० १३,४०,१३२, ६५७,८०३,८०५. जी० ३।३०२,४४६,५९१ समुद्द [समुद्र] ओ० १७०. रा० १०,१२,५६, २७६,६८८. जी० ३८६,२१७,२१६ से २२७, २५६,२६०,३००,३५१,४४५,५६६,५६६ ५७१ से ५७६,६३८,७०४ से ७०८,७१०,७११, ७१३ से'७२३,७२६,७२८ से ७३१,७३३,७३६, ७३६ से ७४१,७४५,७४७,७५०,७५४,७६१, ७६२,७६४ से ७६६,७७२ से ७६६,८००, ८०३,८०४,८०६,८१० से ८१६,८१८ से ८२१, ८३८२६,८४८ से ८५१,८५४ से ८५६, ७५६,८६०,८६२,८६५,८६६,८६८,८७१, ८७२,८७४,८७७,८७८,८८०,६२५,६२७, से ६३५,६३८,८३६,६४३ से १४६,६४६ से ६५२,६५५,६५८,६६१,६६३ से ६६६,६६६, ९७२ से ९७५ समुद्दग [समुद्रग] जी० ३१७७५,७७८ समुद्दलिक्खा [ समुद्रलिक्षा] जी० ११८४ समुपविट्ठ [समुपविष्ट ] जी ३।२८५ समुप्पज्ज [सं+उत् + पद्]-समुपज्जित्या. रा०६-समुप्पज्जइ. ओ० १५६–समुप्प- ज्जति. जी० ३३५६६—समुप्पज्जित्था. रा० ६८८. जी ३।४४१.–समुप्पज्जिहिति. ओ० १५३. रा० ८१४ समुप्पण्ण [समुत्पन्न] ओ० ११६ १५७. रा० २७६,७३८,७४६. जी. ३।४४२ समुप्पण्णकोऊहल्ल [समुत्पन्नकौतूहल] ओ०८३ समुप्पण्णसंसय [समुत्पन्नसंशय] ओ० ८३ समुप्पण्णसट्ट [समुत्पन्नश्रद्ध] ओ० ८३ समुप्पन्न[समुत्पन्न ] जी० ३।२३६ समुवागत [समुपागत] जी० ३।६१७ समुग्विट्ठ [समुपविष्ट ] रा० १७३ समुस्सिय [समुत्सृत] रा० ५१ समूसिय [समुच्छ्रित] ओ० ६४ समूह [ समूह] रा० १२३ समोगाढ [समवगाढ ] ओ० १६५९. जी० ३८४५ समोयर [सं-अव-तु]-समोयरंति. जी० ३।१७४ समोसढ [समवसृत] ओ० ५२,५३. रा० ६, ६८७,६८६,७१३ समोसर [सं+अव। स] समोसरह. रा० ७००-समोसरिज्जा. ओ० २१-समोसरिस्सामि. रा० ७०३ समोसरिस्सामो. रा० ७०५ समोसरण [समवसरण] रा० ७५,८०,८२,११२, ७४८ से ७५०,७७३ समोसरिउकाम [समवसर्तुकाम] ओ० १६,२० समोहण [सं-+अव+ हन् ]–समोहणंति, ओ० १७१-समोहणिसु. जी० ३।१११३ -समोहणिस्संति. जी० ३।१११३ समोहणित्ता [समवहत्य] रा० १०. जी० ३।४४५ समोहण्ण [सं-+अवहन-समोहण्णइ. रा० १८-समोहण्णंति. रा० १०. जी० ३१४४५ समोहत [समवहत] जी० १।१२८ ; ३।१५८, २००,२०१,२०६,२०७ समोहतासमोहत [समावहतासमवहत ] जी० ३२०२,२०३,२०८,२०६ समोहय समवहत] ओ०१६६. जी० १५३,६०,८७ सम्म [सम्यक् ] ओ० १६२. रा०६७१,६६८, ७०३,७१८,७२६,७३१,७३२,७३७,७५० से १५२,७७७,८७०,७८६ सम्मज्जग [सम्भग्नक] ओ० ६४ सम्मज्जित [सम्माजित ] जी० ३।४४७ सम्मज्जिय [सम्माजित] ओ० ५५,६० से ६२. जी० ३१४४७ सम्मट्ठ [सम्मृष्ट ] ० ५५. जी० ३।४४७ सम्मत्त [सम्यक्त्व ओ० ४६ सम्मत्तकिरिया [सम्यक्त्वक्रिया] जी० ३१२१० २११ Page #830 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्मदिट्ठि-सयवत्त सम्मदिट्टि [सम्यग्दृष्टि] रा० ६२. जी० ११२८, ८६; ३।१०३,१५१,११०५,११०६, ६।६७, ६८,७१,७४ सम्मय [सम्मत] रा०७५० से ७५३ सम्माण [सम्मान] ओ० ४०,५२. रा० १६,६८७, ६८६ सम्माण [सं--मानय ] -सम्माणिस्संति. रा० ७०४---सम्माणेइ. ओ० २१. ७०६-सम्मा ज्जा. रा०७७६-सम्माणेति. रा०६८४ सम्माणमि. रा०५८---सम्माणे मो. ओ० ५२. रा० १०---सम्माहिति. ओ० १४७ सम्माणणिज्ज [सम्माननीय ] ओ० २. जी० ३।४०२,४४२ सम्माणित्तए [सम्मानयितुम् ] ओ० १३६. रा० सम्माणेत्ता [सम्मान्य] ओ० २१ सम्मामिच्छदिट्टि [सम्यग्मिथ्यादृष्टि ] जी० २२८,८६; ३१११०५,११०६ सम्मामिच्छादिट्टि [सम्यमिथ्यादृष्टि] जी० ३।१०३,१५१; ६।६७,७०,७३,७४ सम्मुइ [सम्मति] जी० ३१२३६ सय [शत ] ओ० ६३,६४,६८,७१,११५,११८, ११६,१७०,१६२,१६५।५. रा०१७,१८,३२, ६१,६६,६६ से ७१,१२४,१२७,१२६,१३७, १६२,१७०,१७३,१८६,१८८,२०४ से २०६, २०६,२११,२३३,२५१,२५४,२५८,२६२, २६२,६८१,६८६,७११,७५३. जी० १६४; २२४१,४८,७३,६२,६७,१२५,१२८; ३८२, ६१,१२६१६,१७४,२१७ से २२६,२२६।१,३, ६,२२७,२३७,२४६,२४६,२५५,२५७,२६०, २६२,२६३,३५१,३५८,३६१,३७४,४१६ ४५७,६३२,६४७,६४६,६७४ से ६७६,६८३, ७०३,७०६,७२२,७३६,७५४,८०२,८०६, ८२०,८२३,८३०,८३४,८३७,८३८.६,६,३१, ८३६,८८७,६०८,६१८,६६६,१००३,१००५, १०१४,१०१६,१०२२,१०४१,१०५२,१०५३, १०५५,१०६५ से १०७०,४११५:५१६,२६; ६६३,१०६,१२३,१२८,१४४ सय [स्वक] ओ० २०,५३. रा० ५४,६७१,६८१, ७१०,७१८,७५०,७७४ सय [शी]-सयंति रा० १८५. जी० ३।२१७ सयंपभा [स्वयंप्रभा] जी० ३।१०७७ सयंबुद्धसिद्ध [स्वयंबुद्धसिद्ध] जी० ११८ सयंभुमहावर [स्वयंभूमहावर] जी० ३।९५१ सयंभुरमण |स्वयंभूरमण] जी० ३।२५६,६४६ से ६५१,६६२,६६४,६६५,६६८ सयंभूवर [स्वयंभूवर] जी० ३।६५१ सयंभूरमण [स्वयंभूरमण] जी० ३।९७१ सयंभूरमणग [स्वयंभूरमणक] जी० ३१७८० सयंसंबुद्ध [स्वयंसंबुद्ध] रा० ८,२९२. जी० ३।४५७ सयग्धि [शतघ्नि ] ओ०१ सयण [शयन] ओ० १४,१४१,१४६,१५०. रा० १८५,६७१,६७५,७६६,८१०,८११. जी० ३।२६७,८५७,११२८,११३० सयण स्विजन] ओ० १५०. रा० ७५१,८०२, ८११ सयणविहि [शयन विधि] ओ० १४६. रा० ८०६ सयणिज्ज [शयनीय] रा०२६१,२७७. जी० ३।६५०,६८२ सयपत्त [शतपत्र] ओ० १२,१५०, रा० ८११. जी० ३।११८,११६,२८६ सयपाग [शतपाक] ओ० ६३ सयपोराग [शतपर्वक] जी० ३११११ सयमेव [स्वयंमेव] रा० ६७४,६८०,६६८,७५४, ७६१ सयराइं [सप्तति] जी० ३११००० सयराह [दे०] अकस्मात् ओ० १२२ सयल [शकल] ओ० १६,४७ सयवत्त [शतपत्र] ओ० ४७. रा० १३७,१७४, १९७,२७६,२८८. जी० ३३३०७ Page #831 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪ सय सहस्स] [ शतसहस्र ] ओ० १,२१,४६,५४,६८, ६४,६५,१७०,१६२. रा० १४, १७, १८, १२४, १२६,१७०,१८८. जी० ११७३,७८,८१,१३५; ३।१२,६३ से ६६,७७, ८२, १२७, १६०, १६२, १६६ से १६८,१७१,२३२,२६०, ७०६, ७१०, ७२२, ७२३,७६४,८०२,८०६,८१२,८१५, ८२०,८२३,८२७,८३०, ८३२,८३४,८३५, ८३७,८३८१२८, ८३६, ८४१,८५०, ८५२, ६४०, ε४४,६६६, १०२७,१०३८, १०३६, १०७४ सय साहस्तिय [ शतसाहस्रिक ] रा० ५६ साहसी [ शतसाहस्री | जी० ३१६५८ सर [शर] ओ० ६४. रा० १७३,६८१,७६५. जी० ३।२८५ सर [स्वर] ओ० ६,७१. रा० १७, १८, २०, ६१. जी० ३।११८, ११६, २७५, २८५, २८६,८५७, ८६३ सर [सरस्] ओ० ६६ सरंधी [ दे० ] जी० २६ सरग [ सरक] जी० ३।५८७ सरग [ स्वरगत ] ओ० १४६. रा० ८०६ सरडी [सरटी ] जी० २६ सरण [ शरण] ओ० १६, २१, ५४. जी० ३।५६४ सरणय [ शरणदय ] ओ० १६,२१,५४. रा०८, २६२. जी० ३।४५७ सरल [ सरस्तल ] रा० २४. जी० ३।२७७ सरपंतिया [ सरः पङ्क्तिका ] रा० १७४, १७५, १८०. जी० ३१२८६ सरभ [ शरभ ] ओ० १३. रा० १७,१८,२०,३२, ३७, १२६. जी० ३।२८८,३००,३११,३७२ सरमह [ सरोमह] रा० ६८८ सरय [ शरद् ] जी० ३५६० सरल [ सरल ] जी० १।७२ सरलवण [ सरलवन ] जी० ३।५८१ सरस [सरस]ओ० २,५५,६३. रा० ३२, २७६,२८१, २८५२६१,२६३ से २६६,३००, ३०५,३१२, ३५१, ३५५, ५६४. जी० ३।३७२, ४४५, ४४७, सयसहस्स- सरीरग ४५१,४५७ से ४६२, ४६५, ४७०, ४७७, ५१६, ५२०,५४७,५५४ सरसरपंतिया [ सरःसरः पङ्क्तिका ] रा० १७४, १७५, १५० जी० ३।२८६ सरसी [सरसी ] रा० १७४, १७५, १८०. जी० ३।२८६ सरस [ सरस्वती ] ओ० ७१. रा० ६१ सरागसंजम [ सरागसंयम ] ओ० ७३ सरासण [ शरासन] रा० ६६४,६८३. जी० ३१५६२ सरि [ सदृश् ] जी० ३३६६६,७७५ सरिता [ सरिता ] जी० ३।४४५ सरित्तय [सदृक्त्वच्] २१० ६६,७० सरिव्वय [सद्ग्वयस् ] रा० ६६,७० सरिस [ सदृश ] ओ० १६,२२,४७. रा० ६६,७०, २७०, ७७७,७७८,७८८. जी० ३।११०,४१२, ५६६ से ५६८,६८२,७०८, ७१०, ८१४९२८, ४६, १११५ सरिसक [ सदृशक ] जी० ३।६६६ सरिस [ सदृशक] रा० ६६,७० जी० ३१६६५, ७६२ सरिसव [सर्षप ] जी० ११७२ सरिसव विगह [सर्षप विकृति ] ओ० ६३ सरिसव [ सरीसृप ] रा० ६७१ सरीर [ शरीर ] ओ० १५, २०, ५२, ५३, ८२.११७, १४३. रा० १२२,१२३, ६७२,६७३, ६८६ से ६८६,६६२,७००,७१६, ७२६, ७२८, ७३२, ७३७,७४८ से ७६४,७७० से ७७३,७६५, ७६६,८०१. जी० १११४,१६ से १८,५०, ७२।२,३,७४,८६,८८,६०,६४ से ६६, १०१, १११,११२,११६,११६, १२१, १२३, १२४, १३०,१३५; ३ ६१ से १३, १२६/४,१०, ५६८, ६६६,१०८७,१०८६ से १०६२ सरीरंग [ शरीरक ] रा० ७६५. जी० १।१५,५६, ७४,७७,७६,८०, ८२, ८५, ६०, ६३, १०१, १०३, ११६, १२८, १३०, १३५; ३/६४, १३६, १०६०, Page #832 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरीरस्थ-सव्वभासाणुगामि १०६१,१०६३,१०६७,१०६८ सरीरत्य ]शरीरस्थ ] ओ० १७४ सरीरपज्जत्ति [शरीरपर्याप्ति] रा० २७४,७६७.. जी० १२२६; ३।४४० सरीरय [शरीरक] जी० ११६४; ३।६२,६५,९६, सरीरविउस्सग्ग [शरीरव्युत्सर्ग] ओ० ४४ सरीरि [शरीरिन] जी० ६।६६ सरोसिव [सरीसृप] जी० ३१८८ सलिल सलिल] ओ० २७,४६. रा० १७४,२८८. जी० ३.११८,११९,२८६,४५४ सलिला [सलिला] रा० २७६. जी० ३।४४५ सलील [सलील] रा० २५५,२५६. जी० ३।४१६, ४१७ सलेस [सलेश्य] जी० ६२६ सलोद्द [सलोप्त्र] रा० ७५४,७५६,७६४ सल्ल [शल्य] ओ० ७२ सल्लई [सल्लकी] जी० ३।८७२ सल्ली [दे०] जी० २६ सवण [श्रवण] ओ० १६. रा० २५४. जी० ३।४१५,५६६,५९७ सवणया [श्रवणता] ओ० २०,५२,५३. रा०६८७, ७१३, ७१६,७५० से ७५३ सवियारि [सविचारिन्] ओ० ४३ सविसय [सविषय] जी० ११४७ सविवेस [सविशेष] जी० ३।१०१०,१०१४ सवेदग सिवेदक] जी० ६२२,२५,२७ सवेदय [सवेदक ] जी० ६.२३,२८,३२ सव्व [सर्व] ओ० २७. रा० ६. जी० ११५० सवओ सर्वतस् ] ओ० ३,६,२७,७६,११७. रा० ६,१२,३०,४०,६३,६५,१२७,१३२, १३५,१५४,१७३,१८६,२०१,२०५ से २०७, २३६,२६३,२८१,६७०,८१३. जी० ३१२१७, ३८८,८१२,८२३,८५० सव्वओभद्द [सर्वतोभद्र] ओ० ५१ सवओभद्दपडिमा [सर्वतोभद्रप्रतिमा ] ओ० २४ सव्वंग [सर्वाङ्ग] ओ० १५. रा० ६७२,६७३, ८०१. जी० ३।५६६,५६७ सव्वकामगुणिय [सर्वकामगुणित ] ओ० १९५॥१८ सव्वकाल [सर्वकाल ] ओ० १६५।१६ सध्वक्खरसण्णिवाइ [सर्वाक्षरसन्निपातिन् ] ओ० २६ सव्वग्ग [सर्वाग्र] रा० २२७. जी० ३।३८६,६४२, ६५३,६७२,६७६,७६४,७६५ सव्वट्ट [सर्वार्थ] जी० ३।६३४ सव्वट्ठसिद्ध [सर्वार्थसिद्ध] ओ० १६७,१९२. जी० २१७८,८१, ३३१८४,१६२ सव्वट्ठसिद्धग [सर्वार्थसिद्धक] जी० २।८५,९६; ३।२३१ सवण्णु [सर्वज्ञ] ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ सव्वतो [ सर्वतस ] रा० १२,४५,१६१,२०८,७५५, ७६४,७६५,७७२,७७४. जी० ३।४६,५०, २६०,२६२,२६५,२८३,२८५.३०२,३०५, ३१३,३२७,३५२,३६२,३६८ से ३७१,३६०, ३६८,४४७,५६१,६३६,६५२,६५८,६६८, ६७८,६७६,६८१,६८६,७०४,७०६,७३६, ७४१,७५४,७७०,७७२,७६६,७६८,८१०, ८२१,८३३,८३६,८४५.८४८,८५९,८६२, ८६५,८६८,८७१,८७४,८७७,८८०,६२५ सव्वत्ता [सर्वता] ओ० ७६ सव्वत्थ [सर्वार्थ ] ओ० ४० सव्वत्य [सर्वत्र] जी० २१८५ सव्वदरिसि [सर्वशिन् ] ओ० १६,२१,५४. रा० ८.२६२. जी० ३१४५७ सव्वद्धपिडिय [सर्वाध्वपिण्डित] ओ० १६५।१४, सम्वद्धा [सर्वाध्व] जी० ३।१६३,१६४ सव्वपाणभूयजीवसत्तसुहावहा [सर्वप्राणभूतजीव सत्त्वसुखावहा] ओ० १६३ सम्वभाव [सर्वभाव] ओ० १६५।१२ सव्वभासाणुगामि [सर्वभाषानुगामिन्] ओ० २६ Page #833 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५६ सव्वभासाणुगामिणी [सर्वभाषानुगामिनी ] ओ० ७१. रा० ६१ सव्वरतणा [सर्वरत्ना ] जी० ३।६२२ सव्वागास [ सर्वाकाश] ओ० १६५।१५ सदिय [ सर्वेन्द्रिय ] जी० ३।६०२,८६०,८६६, ८७२,८७८ सदिकायजोगकुंज या [सर्वेन्द्रिय काययोगयोजना ] ओ० ४० सवय [ सर्वर्तुक ] मो० ४६. रा० १५६,६७०. जी० ३।३३२ सव्वोसहिपत्त [सर्वोषधिप्राप्त ] ओ० २४ सस [शश ] रा० २७ संभम [ससम्भ्रम] ओ० २१,५४ ससक [ शशक ] जी० ३।२५० सक्खं [ससाक्ष्य, ससाक्षात् ] रा० ७५४,७५६, ७६४ ससग [ शशक ] जी० ३।६२० सण [ श्वसन] ओ० १६. जी० ३।५९६ ससरोरि [ सशरीरिन् ] जी० ६।६२ ससि [ शशिन् ] ओ० १५,१६,४७,६३,१४३. रा० ६७२,६७३, ८०१ जी० ३।५६३, ५६६, ५६७, ८०६, ८३८१३,२४,२६,२८,३०.३१, १००० ससुर कुल रक्खिया [ श्वसुरकुल रक्षिता ] ओ० ९२ सिरीय [ श्री ] अ० ६३. रा० १३६,२२८. जी० ३।३०६, ३८७,५६६, ६७२ सस्सिरीयरूव [ सश्रीकरूप] रा० १७, १८, २०,३२, १२६,१३०,१३७. जी० ३१२८८,३००, ३०७, ३७२ सह [सह ] जी० ३।६११ सहसंबुद्ध [ स्वयंसम्बुद्ध ] ओ० १६,२१,५२,५४ सहसा [ सहसा ] जी० ३।५८६ सहस [ सहस्र ] ओ० १६,६८,६६,८६ से ३, १७०,१६२. रा० १७, १८, २०, २४, ३२, ५२, ५६,१२४, १२६,१२६, १५६, १६३, १६६, सव्वभासाणुगामिणी- सहस्ससो १८८, २३१,२४७, २७६, २८०, ७८७, ७८८. जी० ११५८,५६,६५,७३,७४,७८,८१,९४, ६,१०१, १०३,१११, ११२,११६,११६, १२३, १३६,१३७, २ । ३५ से ३६,६६, १०८, ११०,१११, ११८, १२८, १२६,१३६; ३।१४ से २१, २३ से २७,५१,६० से ६३,७७, ८० से ८२,६१,११८,१७४,१५६ से १६२,२२६/६, २४२,२४६,२६०,२७७,२८८, ३००, ३३२, ३३५, ३३६, ३५१,३५५, ३५८, ३६१,३७२, ३९३,३९८,४४५,४४६, ४४८,५६६,५६८ से ५७०,५७७,५६०,५६८,६३२,६३८,६३६, ६६०, ७०३, ७०६, ७१४, ७२२, ७२३, ७२५, _७२६,७२८,७३२,७३३, ७३६,७३६, ७४०, ७४२,७४५,७५०,७५४,७६१, ७६२, ७६४ से ७७६,७८८ से ७६२, ७६४,७६५,७६८, ८०२,८०६, ८१२,८१४,८१५, ८२०,८२३, ८२७,८३०, ८३२,८३४,८३५,८३७,८३८।२७, ३१,८३६, ८४१, ८८२,६११,६१८, ६७१, १०००,१०१५, १०१७ से १०१६, १०२२, १०२३,१०२८, १०२६, १०३८,१०५१, १०७३, १०७४, ११३१, ४३, ६, ९, ११, १६; ५।५,६,१०,१२,१४, १५, २८, २६; ६२, ६, ७/३, १३ ८३ ६ २ से ४,१३२,२१०, २१४,२२४,२२८,२३४, २४१,२६०,२६६, २७७ सहस्तपत्त [ सहस्रपत्र ] ओ० १२,१५० रा० २३, १७४, २२३,२७६,२८१,२८८,२८६,८११. जी० ३।११८, ११६, २५६,२६६.२८६, २६१, ३१५, ४४५, ४४७, ४५४, ४५५, ६३६,६३७, ६५१,६५६,६७७, ७३८, ७४३, ७६३, ८६४ सहस्सपाग [ सहस्रपाक] ओ० ६३ सहभाग [ सहस्रभाग ] ओ० २ सहस्रस्सि [सहस्ररश्मि ] ओ० २२. रा० ७२३, ७७७,७७८,७८८ सहस्वत्त [ सहस्रपत्र ] रा० १६७,२७६ सहस्ससो [सहस्रशस् ] जी० ३१२६ ॥ ६ Page #834 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहस्सार-सामण्णपरियाग ७५७ सहस्सार [सहस्रार] ओ० ५१,१५७,१६२. जी० २११६,१२३,२६१,६६,१४८,१४६%; ३।१०३८,१०५२,१०६१,१०६६,१०६८, १०७६,१०८३,१०८५,१०८८ सहस्सारग सहस्रारक ] जी० ३१११११ सहा [ सभा] ओ० ३७. जी० ३।४१२ सहिणग [ श्लक्ष्णक] जी० ३१५६५ सहित [सहित ] जी० २।१०५; ३१२८५,९२७ सहिय [संहत] ओ० १६ सहिय सहित] रा० ७५. जी. ३८३८१२५ सही [सखी] जी० ३॥६१३ सहोढ [सहोढ] रा० ७५४,७५६,७६४ साइ [साचि] रा० ६७१ साइज्ज [स्वाद्] - साइजामो. ओ० ११७ साइज्जणया [स्वादन] ओ० ३३ साइज्जित्तए [स्वादयितुम् ] ओ० ११७ साइम [ स्वाद्य] ओ० ११७,१२०,१४७,१६२. रा० ६६८,७०४,७१६,७५२,७६५,७७६, ७८७ से ७८६,७६४,७६६,८०२,८०८ साइरेग [सातिरेक] ओ० २३,१४५,१८८. रा० १७०,२११,२२२,२२७,२५३. जी० २।६३, ३।२५०,३५८,३७४,३७६,३८६, ४१४,६५३,६७५,८८२,८८७,८६४; ६।३४, ८६,६३,१३४,१६०,१६१,१६५ साउ [स्वादु] ओ० ६. जी० ३३२७५ सागर [सागर] ओ० २७,४६,७४१५.६६, १६५।२२. रा० २४,७६५,८१३. जी० ३।२७७,५६६,८३८।२३ सागरनागरपविभत्ति [सागरनागरप्रविभक्ति] रा० ६२ सागरपविभत्ति [सागरप्रविभक्ति] रा० ६२ सागरमह [सागरमह] रा० ६८८,६८६ सागरोवम सागरोपम] ओ० ११४,११७, १४०, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० २८२. . जी० २९६,१३६,१३८,२।७३,७६,८२, ९३,९७,१०७,१०८,११८,१२५,१२७,१२६, १३६; ३।१६२,१६७,४४८,८४१,१०४६, १०४७,१०४६ से १०५३,१०५५,११३१, ११३७,४।४,६,१५,१६,१६,१०,१६२८, २६; ६१२,११; ७१३,१६, ८।३।६।२ से ४, ३१,३४,६८,७२,८६,६३,१०२,१०६,१२३, १२८,१३२,१३४,१६०,१६१,१६५,१७२, १७६,१८६ से १६१,१६३,१६८,१६६,२०३, २०६,२१०,२१७,२२४,२२८,२३४,२४४, २६०,२६६,२८० सागार [साकार] ओ० १८२,१६।११. जी० ११३२,८७,३।१०६,१५४,१११०; ६।३६,३७ साणुक्कोसिया [सानुक्रोशता] ओ०७३ सातासोक्ख [सातसौख्य] जी० ३११११७ साति [साचि] जी० १२११६ साति [स्वाति] जी० ३३१००७ सातिरेग [सातिरेक] रा० ८०५. जी० ११७४; २।४३,४४,४७,८२,१२५,१२८, ३१२४७, २५६,३८१,६४२,६७२,६७६,६८६,६०७, १०३४,१०३६,११३७, ४१६,१५, ५।१६, २६; ६।११,७१६,८३,६३,३१,६८,७२, १०२,१०६,१२३,१२८,१३२,१६८,१९६, २०६,२१७,२४४,२६०,२८० सादीय [सादिक] ओ० १८३,१८४,१६५. जी० ६।२४,२५,३१,३३,३४,८२,११०,१२५, १६३,१६२,१६५,२०१,२०२,२०५,२०६, २१५.२१६,२२७,२३०,२४०,२४६,२६१, २६५,२७६,२८५ साभाविय [स्वाभाविक रा० २७९,२८०. जी० ३।४४५,४४६ साम [सामन् ] रा० ६७५ सामंत [सामन्त] रा० ७५३ सामण्णपरियाग [श्रामण्यपर्याय ] ओ० ६५,१५५, १५६,१६० Page #835 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५८ सामन्नओविणिवाइय-साला सामन्नओविणिवाइय [सामान्यतोविनिपातिक] सार [सार] ओ० १४,२३,४६. रा० ३७,१७३, रा० ११७,२८१ ६७१,६७६,६६५. जी० ३।२८५,३११,५८६, सामन्नतोविणिवातिय [सामान्यतोविनिपातिक] जी० ३१४४७ सारहय [शारदिक] जी० ३।२८२,८७२,६६० सामलतामंडवग [श्यामलतामण्डपक] सारक्खणाणुबंधि [सारक्षणानुबन्धिन् ] ओ० ४३ जी० ३१८५७ सारग [सारक, स्मारक'] ओ० ६७ सामलतामंडवय [श्यामलतामण्डपक] सारतिय [शारदिक] रा० २६ जी० ३।८५७ सारय [शारद] ओ० २७,७१. रा० ६१. सामलया [श्यामलता] मो० ११. रा० १४५. ___ जी० ३१५६२,५६७ जी० ३।२६८,३०८,३७७,३६०,५८४ सारयसलिल [शारदसलिल] रा०८१३ सामलयापविभत्ति [श्यामलताप्रविभत्ति] रा० १०१ सारस [सारस ] ओ० ६. जी० ३।२७५ सामलयामंडवग [श्यामलतामण्डपक] जो० ३।२६६ सारहि [सारथि] ओ०६४. रा० १७३,६७५, सामलयामंडवय [श्यामलतामण्डपक] जी० ३।२९७ ६८०६८१,६८३ से ६८५,६८८ से ६६०, सामलि [शाल्मली] जी० ३१५९६ ६६२,६६३,६६५ से ७१०,७१३,७१४,७१६ सामवेद [सामवेद] ओ० ६७ से ७३४,७३६,७४८. जी० ३१२८५ सामाइय [सामायिक ] ओ० ७७ सारा [दे०] जी० २६ सामाइयचरित्तविणय [सामायिकचरित्रविनय] सारिजंत [सार्यमान] रा० ७७ ओ० ४० सारीर [शारीर] ओ०७४ सामाणिय [सामानिक] रा० ७,४१,४८,५६ से साल [शाल] ओ० ६,१०. जी० ११७१; ३१५८३ ५८,२७६ से २८०,२८२,२८४,२८७,२८९, सालघरग [शालागृहक] रा० १८२,१८३. २६१,६५७,६५८,६६६. जी० ३।३३६,३५०, जी० ३।२६४ ३५६,४४२ से ४४६,४४८,४५५,४५७,५५७, सालणग [शालनक] जी० ३।५६२ ५५८,५६३,५६५,६३५,६३७,६५७,६५६,६८०१ सालभंजिया [शालभजिका] रा० १३३,१३६, ७००,७२१,७३८,७६०,७६३,८४३,८४६, २९४,२६६ से २६६,३१२,४७३. जी० ३।३००, १०२५ ३०३,३१६,३५५,३७२,४५६,४६१,४६२, सामाय [श्यामाक] रा० २६. जी० ३।२७६ ४७७,५३२ सामि [स्वामिन् ] ओ० ५६. रा० ६,६८१,७०७, सालभंजियाग [शालभञ्जिकाक] रा० १७,१८, ७२३,७२९,७३१,७३३ से ७३५,७५१,७५३ ३२,१३० सामित्त [स्वामित्व] ओ० ६८. रा० २८२. सालमंत [शाखावत् ] ओ० ५,८. जी० ३।२७४ जी० ३।३५०,५६३,६३७ सालवण [शालवन] जी० ३।५८१ सामुग्ग [समुद्ग] ओ० १६ साला [शाखा] रा० १३३,२२८. जी०३०३,३८७, सामुच्छेइय [सामुच्छेदिक ] ओ० १६० ५८०,६२१,६७२ से ६७४ सामुद्दग [सामुद्रग] जी० ३१७८० साय [सात] जी० ३।१२९६ १. 'सारय' त्ति अध्यापनद्वारेण प्रवर्तकाः स्मारका साया [सात] जी० ३।११८,११६ वा अन्येषां विस्मृतस्य स्मारणात् (व)। Page #836 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सालि-सिंगार सालि [शालि] ओ० १. रा० १५०. जी० ३१६२१, साहरण [संहरण] जी० २१११६,१२४ साहरणसरीर [साधारणशरीर] जी० ११६८,७३ सालिपिट्ठ [शालिपिष्ट] रा० २६. जी० ३१२८२ ।। साहरिज्जमाण [संहियमाण] रा० ३०,८०४. सालिसय [सदृशक] रा० २४५. जी० ३।४०७ जी० ३।२८३ सावएज्ज [स्वापतेय] रा० ६६५. जी० ३६०८ साहरिज्जमाणचरय [संह्रियमाणचरक] ओ० ३४ सावज्ज [सावद्य] ओ० ४०,१३७,१३८ साहरित्ता [संहृत्य ] जी० ३।४५७ सावज्जजोग [सावद्ययोग] ओ० १६१,१६३ साहसिय [साहसिक ] ओ० १४८,१४६. रा० सावतेज्ज [स्वापतेय] ओ० २३ ८०६,८१० सावत्थी [श्रावस्ती] रा० ६७५,६७७ से ६८० साहस्सित साहसिक ] जी० ३१८४२ ६८३,६८५ से ६८६,६६२,७००,७०६, साहस्सिय [साहास्रिक] रा० ५६. जी० ३८४२, ७११ साहस्सी [साहस्री] ओ० १६. रा० ७,४१ से ४४, सावय [स्वापद] ओ० ४६. जी ३।६२० ४८,५६ से ५८,२३५,२३६,२८०,२८२,२८६, सावय [श्रावक ] जी० ३।७६५,८४१ २६१,५६८,६५७,६५८,६६० से ६६२,६६४. सावाणुग्गहसमत्थ [शापानुग्रहसमर्थ] ओ० २४ जी० ३.२३६,२४६,२५५,३३६,३४१ से साविया [श्राविका] जी० ३१७६५,८४१ सावेत [श्रावयत्] ओ०६४ ३४५,३५०,३६७,३६८,४४६,४४८,४५५, ४५७,५५७,५५८,५६०,५६२,५६३,६३५, सास [श्वास] जी० ३१६२८ ६३७,६५७ से ६५९,६८०,७००,७२१,७३३, सासंत [शासत्] ओ०६४ ७३८,७६० से ७६३,६०२,६०३,१०२५, सासत [शाश्वत] जी० ३३५७,५८,८७,७०२, १०३८,१०४१,१०४४,१०४६,१०४६ से ७६० १०५२ सासय [शाश्वत ओ० १८३,१८४,१६५।१६,२१. साहस्सीय [साहस्रिक] रा० ६७१ रा० १३३,१६८ से २००. जी० ३१५६, साहा [शाखा] ओ० ५,८. रा० २२८. १२७२,२७० से २७२,३०३,३५०,७२१, जी० ३१२७४,३८७,६७२ ७२४,७२६,७६०,१०८१ साहित्ता [कथयित्वा] रा०६ सासा [स्वाशा,शास्या] ओ० ४६ साहिय [साधिक] ओ०१६७ सिाह [कथय,शास्]- साहिति. रा० ११ साहिय [सहित] जी० ३।६२५ -~साहेति. रा० २८१. जी० ३१४४७ साहिय साधित] रा० ७६५ -साहेह. रा०६ साहु [साधु] ओ० ४६,१६१,१६३ सिाह [साध्]-साहेइ रा० ७६५-साहेज्जासि. सिंग [शृङ्ग] रा० ७१,७७ रा० ७६५.–साहेमि. रा० ७६५ सिंगबेर [शृङ्गबेर] जी० ११७३ साहटु [संहृत्य ओ० २१ सिंगभेद [शृङ्गभेद] ओ० १३ साहण [स+ हन् ]- साहणेज्जा. जी० ३।११८ ।। सिंगमाल [शृङ्गमाल] जी० ३१५८२ साहम्मि यवेयावच्च [सार्मिकवयावृत्य] ओ० ४१ ।। सिंगवाय [शृङ्गवादक] रा०७१ साहय [संहत] ओ० १६. जी० ३।५९६,५६७ सिंगार शृिङ्गार] ओ०१५. रा०७०,७८,१३३, साहर [सं+ ह]- साहरति जी० ३।४५७ ६७३,८०६,८१०. जी०३१३०३,५६७,११२२ Page #837 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिधा -सिय सिंघाडग [शृङ्गाटक] ओ० १,५२,५५. रा०६८७, सित्थ [सिक्थ] जी० ३१५६२ ७१२. जी० ३।५५४,५५५ सिद्ध [सिद्ध] ओ० ७१,७४१३,६,१८३,१८४, सिंघाडय शृङ्गाटक] रा०६५४,६५५ १८६ से १६२,१६५।१,२,४ से ११,१३,१५, सिंदुवार [सिन्दुवार] जी० ३१२८२ १७,१६ से २१. जी. १९६९,१०,१२, सिंदुवारगुम्म [सिन्दुवारगुल्म ] जी० ३१५८० १४,१६,२६,४४,४५,५४,६२,६६,१५६, सिंधु [सिन्धु ] रा० २७६. जी० ३।४४५,५६५ १५८,२०६,२१५,२१६ से २२१,२२७,२३० ६३७ से २३२,२४०,२४६,२६५,२६७,२७५,२७६, सिभिय श्लैष्मिक ] ओ० ११७. रा० ७६६ २८४ से २८७,२६२.२६३ सिंह [सिंह ] जी० ३.७८१,७८२,१०३८ सिद्धकेवलणाण [मिद्धकेवलज्ञान ] रा० ७४५ सिंहली [सिंहली] ओ० ७०. रा०८०४ सिद्धत्थ [सिद्धार्थ ] रा० १५६,१५७,२५८,२७६ सिक्कग [शिक्यक] रा० १३२,१५३,२३६,२४०. जी० ३१३२६,४१६,४४५ जी० ३।३२६,४०२ सिद्धत्थय [सिद्धार्थक] रा० २७६,२८०. सिक्कय [शिक्यक ] रा० १३२,१४०,७६१. जी. जी० ३।४४५,४४६,४४८,५९३ ३।३०२,३२६,३६८,४०२ सिद्धवसहि सिद्धवराति] ओ० ७४१३ सिक्खा | शिक्षा | ओ० ७६,७७,६७ सिद्धायतण | सिद्धायतन रा० २५१,२५२,२५६, सिक्खाव [शिक्षय ]--सिक्खाविहिति ओ० १४६ २६०,२७६,२८८,२६१,२६३,२६४,३१३, -सिक्खावेहिइ. रा०८०६ ३३१,३३२. जी० ३।४१२,४१३,४२०,४२१, सिक्खावय [शिक्षाव्रत] ओ० ७७ ४५४,४५७ से ४५६,४७८,४६६,४६७,६७४, सिक्खावित्ता [शिक्षयित्वा] ओ० १४६ ६७६,६७७,६६१ से ६६८,८२५,८८४,६०१ सिक्खवेत्ता [शिक्षयित्वा] रा०८०७ से ६०५,६०६,६१३ सिग्घ [शीन] रा० १०,१२,५६,२७६. जी० सिद्धालय [सिद्धालय] ओ०७४।६,१६३ ३८६,१७६,१७८,१८०,१८२,४४५ सिद्धि [सिद्धि] ओ०७१,१७२,१६३ सिग्धगति | शीघ्रगति ] जी० ३।६८६,१०२० सिद्धिगइ [सिद्धिगति ] ओ० १६,२१,५४,११७. सिग्घगमण [शीघ्रगमन] रा० १७,१८ रा० ८,२६२,७१४,७६६. जी० ३।४५७ Vसिज्झ | सिध]--सिज्झइ. ओ० १७७ सिद्धिमग्ग [सिद्धिमार्ग ] ओ० ७२ सिज्झई. ओ० १६५॥१२-सिझति. ओ. सिद्धिमहापट्टणाभिमुह [सिद्धिमहापत्तनाभिमुख ] ७२. जी० १११३३ -सिज्झिहिंति. ओ० ओ०४६ १६६--सिज्झिहिति ओ० १५४ रा० ८१६ सिप्प [शिल्प] ओ० ६३. रा० १२,७५८ से ७६१. सिज्झमाण [सिध्यत् ] ओ० १८५ जी० ३११८,११६ सिढिल [शिथिल] रा० ७६०,७६१ सिप्पायरिय [शिल्पाचार्य] रा० ७७६ सिणाइत्तए [स्तातुम् ] ओ० १११ सिप्पि [शिल्पिन्] ओ० १ सिणेह [स्नेह] ओ० १६८. जी० ३१२२ सिप्पि [शुक्ति] जी० ३१७६३ सिता [स्यात् ] जी० ३।६०,१०६,११८,११६, सिप्पिय शिल्पिक] जी० ३।५६१ १७६,१७८,१८०,१८२.१६५,१६६ सिबिया [शिबिका] ओ० ५२ 'सित्त सिक्त] ओ० ५५. जी० ३३५६२ सिय [सित] ओ० ४६ Page #838 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिय-सीओसिणवेदणा ७६१ सिय [स्यात् ] जी० ११४६,७३,८२, ३।५७,५८, २७० सियरत्त [सित रक्त] ओ० ४७ सिया [स्यात् ] जी० ३।८४,८५,११८,१६७, २७८ से २८५,६०१,६०२,८६०,८६६,८७२ से ८७८,६८२,१०८५,१०८६ सियाल [शृगाल] जी०३१६२० सिर [शिरस् ] ओ० ५२,७१. रा० ६१,७६,६८७ से ६८९ सिरय | शिरोज ओ०१६,५१. रा० १३३. जी० ३१३०३,५६६,५६७ सिरय [शिरस्क] ओ० ६३,६५ सिरसावत्त [शिरसावर्त ] ओ० २०,२१,५३,५४, । ५६,६२,११७. रा०८,१०,१२,१४,१८,४६, ७२,७४,११८,२७६,२७६,२८२,२६२,६५५, ६८१,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४, ७२३,७६६. जी० ३।४४२,४४५,४४८,४५७, जी० ३१२८४,३८८,५८३ सिरीसव [सरीसृप] रा० ७१८. जी. ३१७२१ सिरोसिव [सरीसृप] रा० ७०३ ।। सिरोवेदणा [शिरोवेदना] जी० ३।६२८ सिलप्पवालमय [शिलाप्रवालमय] रा० २५४. सिला [शिला] ओ० १९,२३,४७. रा० २७, ६६५,७५५,७५७. जी० ३।२८०,५६६,६०८ सिलातल [शिलातल] जी० ३३५६६ सिलायल [शिलातल] ओ० १६ सिलिष [सिलिन्ध्र ओ० ४७ सिलेस [श्लेष] जी० ११७२१५ सिलोय [श्लोक] ओ० १४६. रा० ८०६ सिव [शिव] ओ० १४,१६,२१,५४. रा०८, २६२,६७१. जी० ३।४५७ सिवग [शिवक] जी० ३।७४० सिवमह [शिवमह] रा०६८८. जी० ३३६१२ सिवय [शिवक] जी० ३।७३४,७४१ सिवा [शिवा] जी० ३१९२०११,१२: सिविगा [शिविका जी० ३।७४१ सिविया [शिविका] ओ०७,८,१०. रा० ६८७ से ६८६. जी० ३।२८५ सिस्स [शिष्य ] जी० ३१६१० सिस्सिरिली [दे०] जी० ११७३ सिहंडि [शिखण्डिन्] ओ० ६४ सिहर [शिखर] ओ० ५. रा० ५२,५६,१३७, २३१,२४७. जी० ३।२७४,३०७,३७३ सिहरि [शिखरिन्] रा० २७६. जी० ३।२२७, ४४५,७६५ सीउंढी [दे०] जी० ११७३ सीओदा [शीतोदा] जी० ३।५६८,७०८ सीओभास [शीतावभास] ओ० ४. रा० १७०, १७३. जी० ३२७३। सीओया [शीतोदा] जी० ३।४४५ सीओसिणवेदणा [शीतोष्णवेदना] जी० ३।११२, ११३,११४ सिरिकता [श्रीकान्ता] जी० ३६८८ सिरिचंदा [श्रीचन्द्रा] जी० ३६६८८ सिरिणिलया [श्रीनिलया] जी० ३।६८८ सिरिवाम [श्रीदामन्] जी० ३४५६७ सिरिधर [श्रीधर] जी० ३८५४ सिरिप्पभ [श्रीप्रभ] जी० ३।८५४ सिरिमहिया [श्रीमहिता] जी० ३१६८८ सिरिली [दे० श्रीली] जी० १७३ सिरिवच्छ [श्रीवत्स ] ओ० १२,१६,५१,६४. रा० २१,४६,२५४,२६१. जी० ३।२८६, ३४७,४१५,५९६१ सिरी [श्री] रा० ४०,१३२,१३५,२३६,७३२, ७३७,७७४,७८२. जी० ३।२६५,३०२,३०५, ३१३,३६८,५८०,५८१,५६१ सिरीस [शिरीष] ओ० ६,१०. रा० ३१. १. श्रीवृक्षणाङ्कितं-लाञ्छितं वक्षो येषां ते श्रीवृक्षलाञ्छितवक्षसः (वृ० पत्र २७१) । Page #839 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीत-सीहासण ७६२ सीत [शीत] जी० ३१२२,११३,११४,११८, ११६ सीतल [शीतल] जी० ३३११८,११६ सीतवेदणा [शीतवेदना] जी० ३।११२ से ११४, सीता [शीता] रा० २७६. जी० ३१३००,६३२, ६३६,६६८,७४६ सोतीभूय [शीतीभूत] जी० ३३११८ सीतोदय [शीतोदक] जी० ११६२ सीतोदा [शीतोदा] रा० २७६. जी० ३१७४६, । ८१४ तीतोसिण [शीतोष्ण] जी० ३।११२,११५ सीषु [सीधु] जी० ३।५८६,८६० सीमंकर [ सीमङ्कर] ओ० १४. रा० ६७१ सीमंतोवणयण सीमन्नोपनयन] जी० ३१६१४ सीमंधर [सीमन्धर] ओ० १४. रा० ६७१ सीमा [सीमा] ओ०१ सीय शीत ] ओ० ४,८६,११७. रा० १७०,७०३, ७६६. जी० ३.११२,११३,११५,११८,११६, २७३ सीय [सित] ओ० १६५ सीयच्छाय [शीतच्छाय] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी. ३।२७३ सीयकूड [शीतकूट] जी० ३।११६ सीयपडल [शीतपटल] जी० ३।११६ सोयपुंज [शीतपुञ्ज] जी० ३।११६ सोयभूय [शीतीभूत ] जी० ३।११८,११६ सीयल [शीतल] रा० १५६,१७४,६७०. जी० ३१२८६,३३२,६०४ सोयवेदणिज्ज [शीतवेदनीय] जी० ३।११६ सीयवेयणिज्ज [शीतवेदनीय] जी० ३।११६ सीया [शीता] जी० ३।४४५,८०० सीया [शिबिका] ओ० १,१००,१२३. रा० १७३. जी० ३।२७६,५८१,५८५,६१७ सील [शील] ओ० ४६ सीलइ [शीलजित् ] ओ०६६ सीलव्वय [ शीलव्रत] ओ० १२०,१४०,१५७. रा० ६६८,७५२,७८७,७८६ सीवण्णी [श्रीपर्णी] जी० ११७१ सीसगपाय [सीसकपात्र] ओ० १०५,१२८ सीसगबंधणसीसकबन्धन] ओ० १०६,१२६ सीसगभारग [सीसकभारक] रा० ७६०,७६१ सीसघडी [ शीर्षघटी] रा० २५४. जी० ३।४१५ सीसछिण्णग [शीर्षछिन्नक] ओ०६० सीसछिण्णय [ शीर्षछिन्नक] रा ० ७६७ सीसपहेलियंग [ शीर्षप्रहेलिकाङ्ग] जी० ३।८४१ सीसपहेलिया [शीर्षप्रहेलिका] जी० ३।८४१ सीसागर [सीसाकर] जी० ३।११८ सीह [शीघ्र] जी० ३।६८६ सीह [सिंह] ओ० १६,२७,४८. रा० २४,३७, ८१३. जी० ३।८४,८८,२७७,३११,५६६, ५९७,६२०,६३१,७८२,१०१५ सीहकण्ण [सिंहकर्ण] जी० ३।२१६ सीहकण्णी [सिंहकर्णी] जी० ११७३ सोहगति [शीघ्रगति] जी० ३।६८९ सोहघोस [सिंहघोष] जी० ३।५६८ सोहज्य [सिंहध्वज] रा० १६३. जी० ३।३३५ सोहणाय [सिंहनाद] ओ० ५२. रा० ६८७,६८८. जी० ३८४२,८४५ सोहणिक्कीलिय [सिंहनिष्क्रीडित] ओ० २४ सीहणिसाइ [सिंहनिषादिन् ] जी० ३।८३६ सोहनाद [सिंहनाद] जी० ३।४४७ सीहनाय [सिंहनाद] रा० २८१ सीहनिक्कोलिय [सिंहनिष्क्रीडित] ओ० २४ सीहपुच्छियग [सिंहपुच्छितक ओ०६० सोहमंडलपविभत्ति [सिंहमण्डलप्रविभक्ति] रा०६१ सोहमुह [सिंहमुख] जी० ३।२१६ सीहस्सर [सिंहस्वर] रा० १३५. जी० ३।३०५, ५६८ सीहासण [सिंहासन] ओ० १३,१६,२१,५४,६४. रा० ७,८,३७,३६,४१ से ४४,४७,५१,६७, Page #840 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुअक्खाय सुजात ६८, १५८, १६४, १८१,१८३,१८६,२०४ से २०७, २१६, २४३,२६५, २६७, २६६, २७७, २७६, २८३, २८६,२८८,३००, ३२१,३३८, ३५२,४७४,५३४,५६५,६५७. जी० ३।२६३, ३११,३१२,३३१,३३६, ३४५,३५५,३५६, ३५६, ३६६,३६८,३७८, ४०५, ४१६, ४२८, ४३१, ४३४,४४३, ४४५, ४४६, ४५२, ४५४, ४६५, ४८६, ५०३, ५१७, ५३३, ५४०, ५४८, ५५७, ६३४,६३५,६६३, ६७३, ६८५, ७३७, ७४०, ७४२, ७४५, ७५०, ७६२, ७६५, ७६८, ७७०,८६२, १०२४ से १०२६ सुक्खाय [स्वाख्यात] ओ० ७६ से ८१ अति [ स्वलङ्कृत ] जी० ३।३०३ सुअलंकिय [स्वलङ्कृत ] रा० १३३ सुइ [ शुचि ] ओ० १६,५५,६३,६८. रा० १६, २८१. जी० ३/४४७, ५६६, ५१७ सुभूय [ शुचीभूत ] ओ० २१. रा० ७६५,००२ सुइस मायार [ शुचिसमाचार] बो० १८ सुईभूय [ शुचीभूत ] बो० ५४. रा० २७७ सुतार [सुखोत्तार] रा० १७४. जी० ३।२०६ सुउमाल [ सुकुमार] ओ० ६३ सुओयार [ सुखावतार ] रा० १७४ संक [ शुल्क ] रा० ७२७ सुंदर [ सुन्दर ] ओ० १५, १६, १४३. रा० ६७३, ८०१. जी० ३।५६६,५६७ सुंदरंगी [ सुन्दराङ्गी ] ओ० १५. रा० ६७२ सुमार [ शंशुमार, शिशुमार ] जी० ११६६,११८ मारिया [ शिशुमारिका ] रा० ७७ सुमारी [ शुशुमार, शिशुमारी ] जी० २१४ सुक [ शुक] जी० ३।५६७ सुकंत [ सुकान्त ] जी० ३१८७२ सुकठित [ सुक्वथित] जी० ३१८७२ सुकढिय [सुक्वथित] जी० ३१८६६ सुक [ सुकृत] ओ० २,५२,५५,६३ से ५. रा० ३२,१७३,२८१,६८१,६८७,६८६. जी० ३।२८५,३७२, ४४७ ७६३ सुकुमाल [ सुकुमार] ओ० ५,८,१५,१६,६३, १४३. रा० २२८, २८०, ६७२,६७३,८०१. जी० ३।३८७, ४४६, ५६६, ५६७, ६७२, १०६८ सुक्क [ शुक्र ] ओ० ५०. जी० ३।११११ सुक्क [ शुष्क ] रा० २६,७८२ जी० ३।२८२ सुक्क [ शुक्ल ] जी० ६१५४ सुक्क ( झाण) [ शुक्लध्यान ] ओ० ४३ सुक्क पक्ख [ शुक्लपक्ष ] जी० ३१८३८।१८ सुक्कलेस [ शुक्ललेश्य ] जी० ६ १६१ सुक्कलेसा [ शुक्ललेश्या ] जी० ३।१५० सुक्कलेस्स [ शुक्ललेश्य ] जी० ३।१८५, १६६ सुक्कलेस्सा [ शुक्ललेश्या ] जी० ३।११०३ सुक्किल [ शुक्ल ] ओ० १२. रा० २२, २४, २६, १२८,१३२,१५३. जी० १।५, ३४, ३५, ५०, १३६; ३२२,४५,२७८,२८२,२६०,३०२, ३२६, ३५३,३७,५६५, १०७५, १०७६, १०६५ सुक्किलग [ शुक्लक] जी० ३।२८२ सुक्ख [ सौख्य ] ओ० १६५२१ सुगंध [ सुगन्ध ] ओ० २,५५,६३. रा० ६, १२,३२, १३२,२३६,२८१,२८५. जी० ३।३०२,३७२, ४४७,४५१, ५२, ५६६ सुगंधि [ सुगन्धि ] ओ० ७,८,१०. रा० १५६. जी० ३ २७६,३३२ सुगंधिय [सौगन्धिक ] ओ० १५० रा० २७६, ११. जी० ३१४४५ सुझदेस [सुगुह्यदेश] ओ० १६ सुगूढ [ सुगूढ ] जी० ३।५६७ घोसा [ सुघोषा ] रा० ७७. जी० ३२७८,५८८ सुचरिय [सुचरित] रा० ८१४ सुचि [ शुचि ] जी० ३ ५६६ सुचिण्ण [सुचीर्ण ] ओ० ७१. रा० १८५, १८७. जी० ३।२१७, २६७, २६८, ३५८, ५७६ सुजात [ सुजात ] जी० ३।३८७, ५८६, ५६६, ५६७ Page #841 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६४ सुजाय [सुजात] ओ० ५,८,१४,१५,१६,१४३. रा० १७४,२८८,६७१ से ६७३,८०१. जी० ३।११८,११६,२७४,२८६,५६६,५६७, ६७२ सुजाया [सुजाता] जी० ३१६६६०२ सुज्य [दे०] रा० १७४. जी० ३।२८६ सुद्रिय [सुस्थित] जी० ३।५६४,७२१,७५४,७५६, ७६०,७६१ सुट्ठिया [सुस्थिता] जी० ३।७६१ सुण [शृ]--सुणंतु. रा० १५-सुणह. ओ० १६५।१७.-सुणिस्सामो .रा० १६ --सुणस्सामो. ओ० ५२. रा०६८७ सुण [श्वन् ] जो० ३१८४ सुणग [शुनक] जी० ३।६२० सुणति [सुनति] रा० ७६,१७३. जी० ३१२८५ सुणिउण [सुनिपुण] रा० ५७ सुणिद्ध [सुस्निग्ध ] ओ० १६ सुणिम्मिय [सुनिमित] जी० ३१५६७ सुणिसिय [सुनिशित] जी० ३।४१० सुर्णेत [शृण्वत् ] रा० ७७४ सुणेत्ता [श्रुत्वा] रा०६८८ सुण्हा [स्नुषा] जी० ३।६११ सुतिक्खधार [सुतीक्ष्णधार] रा० २४६. जी० ३।४१० सुत्त [ सूत्र] रा० १३२,१५३,२३५. जी० ३।३०२, ३२६,३९७ सुत्त [सुप्त] ओ० १४८,१४६. रा० ८०६,८१० सुत्तओ [सूत्रतस्] ओ० १४६. रा० ८०६,८०७ सुत्तग [ सूत्रक ] जी० ३५९३ सुत्तखेड्ड' [सूत्रखेल] ओ० १४६. रा० ८०६ सुत्तरुइ [सूत्ररुचि ] ओ० ४३ सुत्ति [शुक्ति] जी० ३१५८७ . सुत्थिय [सुस्थित] जी० ३१७६१ सुवंसण [सुदर्शन] जी० ३।८०६ १. सूत्रखेल- सूत्रक्रीडा, अत्र खेलशब्दस्य 'खेड्ड' .. इत्यादेशः (जंबु. वृत्ति) सुजाय-सुपतिट्ठित सुवंसणा [सुदर्शना] जी० ३६६८,६७२.६७३, ६७८ से ६८३,६८८,६८६,६६२ से ७००, ७६५,६१० ६२१ सुदुत्तार [सुदुस्तार] ओ० ४६ सुद्ध [शुद्ध] ओ० २७. रा० ७६,१७३,८१३. जी० ३।२८५,५८८ सुद्धवंत [शुद्धदन्त] जी० ३।२१६ सुद्धदंता [शुद्धदन्ता] जी० २।१२ सुद्धप्पावेस [शुद्धप्रावेश, शुद्धपावेश्य, शुद्धात्मवेश] ओ० २०,५३. रा०६८५,६६२,७००,७१६, ७२६,८०२ सुद्धपुढवी [शुद्धपृथ्वी] जी० ३।१८५,१८७ सुद्धवात [शुद्धवात] जी० ३।६२६ सुद्धवाय [ शुद्धवात जी० १८१ सुद्धागणि [शुद्धाग्नि] जी० ११७८,८५ सुद्धसणिय [शुद्धषणिक ] ओ० ३४ सुद्धोदय [शुद्धोदक ] ओ० ६३. जी० ११६५ सुधम्मा [सुधर्मा] रा० २६७,६५६.जी० ३।३७२, ३९६,४१२,४२१,४२६,४४२,१०२४,१०२५ सुनिउण [सुनिपुण] रा० १२ सुनिवेसिय [सुनिवेशित] ओ० ६. जी० ३।२७५ सुपइट्ठ [सुप्रतिष्ठ] रा० २५८ सुपइट्ठक [सुप्रतिष्ठक] जी० ३।५६७ सुपइट्ठग [सुप्रतिष्ठक] रा० १५२. जी० ३।५८७ सुपइट्ठिय [सुप्रतिष्ठित] रा० १३३,१७३,२२८, ७५०,७५२,७५८. जी ३।२८५,३०३,६७६ सुपक्क [सुपक्व] जी० ३।५८६,८६० सुपडियाणंद [सुप्रत्यानन्द] ओ० १६३ सुपण्णत्त [सुप्रज्ञप्त] ओ० ७६ से ८१ सुपण्ह [सुप्रश्न ] ओ० ४६ सुपति? [सुप्रतिष्ठ] रा० २७६. जी० ३।३५५ सुपतिटक [सुप्रतिष्ठक] जी० ३१४१६,४४५ सुपतिट्ठग [सुप्रतिष्ठक] जी० ३।३२५ सुपतिहित [सुप्रतिष्ठित ] जी० ३।३८७,३६३, ४०१ Page #842 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुपतिट्ठिय-सुरभि सुपतिट्ठिय [सुप्रतिष्ठित] रा० ५२,५६,२३१, सुभद्दा [सुभद्रा] ओ० ५५,५८,६२,७०,७१,८१. २४७,७५४,७५६,७६०,७६२,७६४. जी० ३१६६६ जी० ३१५६६,६७२ सुभाविय [सुभावित] ओ० ७६ से ८१ सुपरक्कंत सुपराक्रान्त ] रा० १८५,१८७. सुभासिय [सुभाषित] ओ० ७६ से ८१ जी० ३।२१७,२६७,२६८,३५८,५७६ सुभिक्ख [सुभिक्ष] ओ० १,१४. रा० ६७१ सुपरिणिट्ठिय [सुपरिनिष्ठित] ओ० ६७ सुभूम [नुभूम] जी० ३।११७ सुपस्सा [सुपश्या] रा० ८१७ समझ [सुमध्य] रा० १३३. जी० ३।३०३ सुपिणद्ध [सुपिनद्ध] जी० ३।२८५ सुमण | सुमनस् ] जी० ३१६२५,६३४ सुप्पइट्ठिय [सुप्रतिष्ठित] ओ० १६ सुमणदाम [सुमनोदामन्] रा ० २७६,२८५. सुप्पडियाणंद [सुप्रत्यानन्द] ओ० १६१ जी० ३।४४५,४५१ सुप्पबुद्धा [सुप्रबुद्धा] जी० ३।६६६ सुमणभद्द [सुमनोभद्र | जी० ३१६२८ सुप्पभ [सुप्रभ] जी० ३८७५ सुमणा [सुमनसी] जी० ३।६६६,६२० सुप्पभा [सुप्रभा] ओ० १६४ सुमहग्ध [सुमहाय॑ ] ओ० ६३ सुप्पमाण [सुप्रमाण] ओ० १३,१६. जी ० ३१५६६, सुय [शुक] ओ० ६. जी० ३।२७५ सुय [श्रुत] ओ० ५२. रा० १६,६८७,६८६ ५६७ सुप्पसारिय [सुप्रसारित ] ओ०५,८. जी. ३१२७४ सुयअण्णाणि [श्रुताज्ञानिन्] जी० ११३०,८७,६६; ३.१०४,११०७; ६।१९७,२०२,२०६,२०८ सुप्पसूय [सुप्रसूत] ओ० १४. रा० ६७१ सुयणाण [श्रुतज्ञान] ओ० ४०. रा० ७३९,७४२, सुफास [सुस्पर्श] जी० ३।६८१,६८७ ७४६ सुबद्ध [सुबद्ध] ओ० १६. रा० १७४. सुयणाणविणय [श्रुतज्ञानविनय] ओ० ४० जी० ३२८६,५६६,५६७ सुयणाणि [श्रुतज्ञानिन् ] ओ० २४. जी० ११७, सुबहु [सुबहु ] रा० २६६,२६८,७५० से ७५३, ६६,११६,१३३; ३।१०४,११०७, ६।१५६, ७७४. जी० ३।४३२,५३४,५४१ १६०,१६५,१६६,१६७,१६८,२०४,२०८ सुभिगंध [सुगन्ध] जी० १२५,३६,३७,५०; सुयदेवया श्रुतदेवता] रा० ८१७ ३.६७६,९८५ सुयनाणि (श्रुतज्ञानिन्] जी० १११३३ सभिगंधत्त [सुगन्धत्व] जी० ३९८५ सुयपिच्छ [शुकपिच्छ] रा० २६. जी० ३।२७६ सुब्भिसद्द [सुशब्द] जी. ३।६७७,६८३ सुयमुह [शुकमुख] ओ० २२. रा० ७७७,७७८, सुन्भिसद्दत्त [सु शब्दत्व] जी० ३९८३ ७८८ सुभ [शुभ] ओ० ५१,११६,१५६. रा० १८५, सुरइ [सुरति] रा० ७६,१७३ १८७,६७० जी० १११३४, ३।२१७,२६७, सुरइय [सुरचित] ओ० ४६ २६८,३५८,५७६,६७२,१०६०,१०६६ सुरति [सुरति] जी० ३।२८५ सुभग [सुभग] ओ० १२,१५०. रा० २३,१७४, सुरभि [सुरभि] ओ० २,७,८,१०,४६,५५. १६७,२७६,२८८,८११. जी० ३।११८,११६, रा० ३२,१३१,१४७,१४८,१५६,२२८,२८०, २५९,२८६,२६१ २८१,२८५,२६१,३५१.६७०. जी० ३३२२, सुभचक्खुकंत [शुभचक्षुःकान्त] जी० ३१६३३ २७६,३०१,३३२,३७२,३८७,४४६,४४७, सुभद्द [सुभद्र] जी० ३१९२८ ४५१,५६८ Page #843 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६६ सुरभिगंध-सुसिर सुरभिगंध [सुरभिगन्ध] रा० ६,१२ सवण्णरुप्पामय [सुवर्णरूप्यमय] रा० १६,१५३, सुरम्म [सुरम्य ] ओ० १,६ से ८,१०,१३. १६०,२३५,२३६,२४०,२७५,२८०. रा० २२,३७,२४५. जी०३।२७५,२७६, जी० ३।२६४,२८७,३२६,३६७,३६८,४४५ ३११,३८६,४०७,५८१,५८५ सवण्णागर [सुवर्णाकर रा० ७७४. जी० ३.११८ सुरवर [सुरवर] रा० ८,६,१२ सुवयण [सुवचन] ओ० ५२. रा० ६६७,६८७ सुरस [सुरस] जी० ३।६८०,९८६ सुवासित [सुवासित] जी० ३८७८ सुरहि [सुरभि ] ओ०६३. जी० ३।६७२ सुविणीय [सुविनीत] रा० ७६ से ८१ सुरा [सुरा] जी० ३१५८६ सुविभत्त [सुविभक्त] ओ० १,५,८,१०,१६. सुरूव [सुरूप] ओ०१५,४७ से ५१,१४३. रा० ३२,१४५. जी० ३।२६८,२७४,३७२, रा० ५३,६७२,६७३,८०१. जी० ३।२६०, ५६६,५६७ ६७८,६८४ सुविरइय [सुविरचित] रा० ३७,२४५. सुरुवग [सुरूपक] जी० ३१५९६ जी० ३।४०७,५६६,५६७ सुविरचित [सुविरचित] जी० ३१३११ सुरूवत्त [सुरूपत्व] जी० ३१९८४ सुलभबोहिय [सुलभबोधिक] रा० ६२ सुविहि सुविधि] जी० ३।५६४ सुललिय [सुललित] रा० १७३. जी० ३।२८५ सुव्वत्त [सुव्यक्त] ओ० ७१. रा० ६१ सुवण्ण [सुवर्ण] ओ० २३,५२,६३. रा० ४०,१३२, सुव्वय [सुव्रत] ओ० १६१,१६३ १७४,२८१,६८७ से ६८६. जी० ३।२६५, सुसंपउत्त [सुसम्प्रयुक्त] ओ० ४६,६४. रा० ७६, २८६,३०२,३१३,४४७,६०८,८४०,८८५, १७३,६८१. जी० ३।२८५,५८८ ११२२ सुसंपग्गहित [सुसम्प्रगृहीत] जी० ३।२८५,३०२ सुसंपग्गहिय [सुसम्प्रगृहीत] ओ० ६४. रा० १३२, सुवण्ण [सुपर्ण] ओ० ४८,१२०,१६२. रा०६९८, ७५२,७८६. जी० ३।२३२ सुसंपरिगहित [सुसम्परिगृहीत] जी० ३।२८५ सुवण्णकूला [सुवर्णकूला] रा० २७६. जी० ३।४४५ सुसंपरिग्गहिय [सुसम्परिगृहीत] रा० १७३,६८१ सुवण्णजुत्ति [सुवर्णयुक्ति] ओ० १४६. रा० ८०६ सुसंपिणद्ध [सुसंपिनद्ध] रा० १७३,६८१ सुवण्णजूहिया [सुवर्णयूथिका] रा० २८. सुसंभास [सुसंभाष] ओ० ४६ ___ जी० ३।२८१ सुसंवुय [सुसंवृत] ओ० ६३ सुवण्णद्दार [सुपर्णद्वार] जी० ३१८८५ सुसंहय [सुसंहत] ओ० १६ सवण्णपाग [सुवर्णपाक] ओ० १४६. रा० ८०६ सुसक्कय [सुसंस्कृत] जी० ३१५६२ सुवण्णमणिमय [सुवर्णमणिमय] रा० २७६,२८०. सुसज्ज [सुसज्ज] ओ० ५७. रा० ५३ जी० ३।४४५ सुसमाहिय [सुसमाहित] ओ० ३७ सुवण्णरुप्पमणिमय [सुवर्णरूप्यमणिमय ] रा० २७६, सुसवण [सुश्रवण] जी० ३।५९६ २८०. जी० ३।४४५ सुसव्व [सुपर्व] रा० १५२. जी० ३१३२५ सुवण्णरुप्पमय [सुवर्णरूप्यमणिमय] रा० १७५. सुसामण्णरय [सुश्रामण्यरत ] ओ० २५,१६४ जी० ३।४०२,६०२ सुसाहत [सुसंहत] जी० ३।५९६ सवण्णरुप्पामणिमय [सुवर्णरूप्यमणिमय] सुसिणिद्ध [सुस्निग्ध] जी० ३।५९७ जी०-३२४४५ सुसिर [शुषिर] रा० ११४,२८१ Page #844 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुसिलिट्ठ-सुहुमवणस्सतिकाइय ७६७ सुसिलिट्ट [सुश्लिष्ट] ओ० १६,६३,६४. रा० ३२, सुहिरण्ण [सुहिरण्य] रा०२८ ५२,५६,२३१,२४७. जी० ३।३७२,३६३,४०१, सुहिरण्णया [सुहिरण्यका] जी० ३।२८१ ५६६ सुहम [सूक्ष्म] ओ० ४७,१७०,१८२. रा० १६०, सुसील [सुशील] ओ० १६१,१६३ २५६. जी० ३।१३३,३३३,४१७,५९६; सुसुइ [सुश्रुति ] ओ०४६ ५।२१ से २३,२५ से २७,३४ से ३६,५१,५२, सुस्सर [सुस्वर] रा० १३५. जी० ३।३०५,५६७, ५७ से ६०; ६६५,६६,६६,१०० ५६८ सुहुमआउ [सूक्ष्माप्] जी० ५।२५ सुस्सरघोस [सुस्वरघोष] रा० १३५. जी० ३।३०५ सुहुमआउकाइय [ सूक्ष्माप्कायिक ] जी० ५।२७,३४ सुस्सरणिग्घोस [सुस्वरनिर्घोष ] जी० ३।५६८ सुहुमआउक्काइय [सूक्ष्माकायिक जी० ११६३,६४ सुस्सरा सुस्वरा] रा० १४ सुहुमकाल | सूक्ष्मकाल जी०६RE सुस्सवण [सुश्रवण | ओ० १६ सुहुमकिरिय [ सूक्ष्मक्रिय ] ओ० ४३ सुस्सूसणाविणय [सुश्रूषणाविनय ] ओ० ४० सुहुमणिओद [सूक्ष्मनि गोद] जी० ५।३८,३६,४४ सुस्सूसमाण [शुश्रूषमाण] ओ० ४७,५२,६६,८३. से ४६,५२,६० रा० ६०,६८७,६६२,७१६ सुहुमणिओदजीव [ सूक्ष्मनिगोदजीव ] जी० ५।५३, ५४,५६,६० सुह [सुख ] ओ० १,२३,२६,५२,१६५।१५,१६, सुहमणिओय [ सूक्ष्मनिगोद] जी० ५।२१,२२,२५, २२. रा० १५,२७५,२७६,६८३,६६७. २७,३४,३५ जी० ३।१२६९,४४१,४४२,५६४,६०४, सुहमणिगोद [ सूक्ष्मनिगोद] जी० ५।४४ ८३८।१३ सुहमणिगोदजीव [सूक्ष्मनिगोदजीव] जी० ५।६० सुह [ शुभ] ओ० ६ से ८,१०. जी० ३।२७५,२७६ सुहुमणिगोय [सूक्ष्मनिगोद] जी० ५।२६,३६ सुहंसुह [सुखंसुख] ओ० १६. रा० ६८६,७११, सुहुमतेउकाइय [सूक्ष्मतेजस्कायिक ] जी० ५।२५, ८०४. जी० ३१९१७ २७,३६ सुहफास [सुखस्पर्श, शुभस्पर्श] रा० १७,१८,२०, सुहुमतेउक्काइय [सूक्ष्मतेजस्कायिक ] जी० ११७६, ३२,१२६,१३०,१३७. जी० ३१२८८,३००, ७७; ५॥३४ ३०७,३७२ सुहमनिओग [ सूक्ष्मनिगोद] जी० ५।२४ सुहम्मा [सुधर्मा] रा०७,१२ से १४,२०६,२१०, __ सुहुमनिओय [ सूक्ष्मनिगोद] जी० ॥३४,३५ २३५ से २३७,२५०,२५१,२७६,३५१,३५६, सुहमनिगोद [सूक्ष्मनिगोद] जी० ५।३४ ३५७,३७६,३९४,३६५,६५७,७६५,७६४, सुहुमपुढविकाइय [सूक्ष्मपृथ्वीकायिक] जी० ॥१३॥ ८०२. जी० ३।३६७,३६८,४११,४१२,५१६, १४,५६; ३।१३२,१३३, ५२,३,२४,२५, ५२१ से ५२५,५५६,५५७ २७,३४ सुहलेसा [शुभलेश्या] जी० ३८३८।२६ सुहमपुढवी [ सूक्ष्मपृथ्वी] जी० ॥२७ सुहलेस्सा [शुभलेश्या] जी० ३।८४५ सुहुमवणस्सइकाइय [ सूक्ष्मवनस्पतिकायिक] सुहविहार [सुखविहार] जी० ३।५९४ जी० ११६६,६७; श२७,३४,३६ सुहासण [सुखासन] रा० ७६५,७६४,८०२ सुहुमवणस्सति [सूक्ष्मवनस्पति ] जी० ५।२४ सुहि सुखिन् ] ओ० १६१६,२२ सुहमवणस्ततिकाइय [सूक्ष्मवनस्पतिकायिक ] सुहिय [सुहृद् ] जी० ३१६१३ जी० ५२२५,२७,३६ Page #845 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुहमवाउकाइय-सूरिल्लिमंडवग सुहुमवाउकाइय [सूक्ष्मवायुकायिक] जी० ५।२७, सूरवीव [सूरद्वीप] जी० ३७६५,७६९,७७१,७७७ सूरद्दीव [सूरद्वीप] जी० ३।६३७ सुहमवाउक्काइय | सूक्ष्मवायुकायिक] जी० ११८० सूरपरिएस [सूरपरिवेश] जी० ३८४१ सुहमसंपरायचरित्तविणय [सूक्ष्मसम्परायचरित्र- सूरपरिवेस [ सूरपरिवेश] जी० ३१६२६ विनय] ओ० ४० सूरप्पभा [ सूरप्रभा] जी० ३।७६५,१०२६ सुहुमसरीर [ सूक्ष्मशरीर] जी० ३३१२६६ सूरमंडल [सूरमण्डल] रा० २४. जी० ३।२७७, सुहुय [सुहुत] ओ० २७. रा० ८१३ ५६० सुहोत्तार [सुखोत्तार] जी० ३।५६४ सूरमंडलपविभत्ति [ सूरमण्डलप्रविभक्ति ] रा०६० सुहोदय | शुभोदक, सुखोदक ] ओ० ६३ सूरवडेंसय [ सूरावतंसक] जी० ३।१०२६ सुहोयार [सुखावतार जी० ३।२८६ सूरवरोभास | सूरवरावभास] जी० ३।६३८ सूइभूत सूचीभूत ] जी० ३।४४३ सूरविमाण [सूरविमान] जी० २।४१; ३३१००३ सई शुवी] रा० १६,१३०,१७५,१८०,१६७. से १००५,१००६,१०११,१०२६ जी० ३।२६४,२६६,२८७,३०० सूरागमणपविभत्ति [सूरागमनप्रविभक्ति] रा०८७ सूईकलाव [शूचीकलाप] जी० ११७७,७६ सूराभिमुह [ सूराभिमुख ] अ० ११६ सूईपुडंतर [शूचोपुटान्तर] रा० १६७. सूरावरणपविभत्ति [सुरावरणप्रविभक्ति रा०८८ जी० ३१२६६ सूरावलिपविभत्ति सूरावलिंप्रविभक्ति रा० ८५. सूईफलय [ शूचीफलक[ रा० १६७. जी० ३।२६६ सूरिय [ सूर्य ] ओ० १६२. रा० ४५,१२४. सूईभूय [ शूचीभूत] रा २८८ जी० ३।१७६,१७८,१८०,१८२,२५७,७०३, सूईमुख [शूचीमुख] रा० १६७ ७२२,८०६,८२०,८३०,८३४,८३७,८४१,८४२. हुईमुह । शूचीमुख ] जी० ३।२६६ ८४५,९८८ से १०००,१०२०,१०३७,१०३८ सूचिकलाव [शूचिकलाप] जी० ३१८५ सरियकंत [सूर्यकान्त ] रा०६७३,६७४,७६१ से ७६३ सूणगलंछणय [सूणालाञ्छणक रा० ७६७ सूरियकता सूर्यकान्ता] रा० ६७२,६७३,७५१, सूमाल [सुकुमार] रा० २८५. जी० ३१२७४,४५१ ७७६,७६१ से ७६४,७६६ सूयगडधर [ सूत्रकृतधर] ओ० ४५ सूरियाभ सूर्याभ] रा० ७,९,१०.१२ से १८,४१ सूयपुरिस [सूपपुरुष] जी० ३।५६२,५६७ से ४४,४६ से ४६.५५ से ६५,६८,६६,७१ से सूर सूर] ओ० १६,२२,२७,५०. रा०१३३, ७४,११८ से १२०,१२२,१२४१२६,१२६, ७७७,७७८,७८८,८०३,८१३. जी० २०१८ १६२,१६३,१६६,१७०,१८७,२४०,२५,२६६ ३१२५८,३०३,५८६,५६३,५६६,७६५,७६७, २६८,२७०,२७४ से २६१,६५४ से ६६७, ७६९,७७१,७७३,७७५,७७७,७७६,८३८१४, ७६६ से ७६६ १०,१५,२१,२३,२४,२७,२८,२६,३२,६३७, सूरियाभविमाणपइ [सूर्याभविमानपति राम ६५०,६५३,१०१६,१०२०,१०२१,१०२६, सूरियाभविमाणवासि [ सूर्याभविमान वासिन्] ११२२ रा० ७,१५ से १७,५५,५६,५८,२८०,२८२, सूरकंतमणि [सूरकान्तमणि] जी० ११७८ २८६,२६१,६५७ सूरणकद [शूरणकन्द] जी० ११७३ सुरिल्लिमंडवग [दे० सूरिल्लिमण्डपक] रा० १८४. सूरत्थमणपविभत्ति [सूरास्तमनप्रविभक्ति] रा० ८६ जी० ३।२६६ Page #846 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरिल्लिमंडवय-सोइंदिय ७८९ सुरिल्लिमंडवय (दे० सूरिल्लिमण्डपक] रा० १८५ सेय [सेक] जी० ३१५६२ सरुग्गमणपविभत्ति [सूरोद्गमनप्रविभक्ति] रा० ८६ सेयकणवीर [श्वेतकणवीर] रा० २६. सूरोवराग [सूरोवराग] जी० ३।६२६,८४१ जी० ३१२८२ सूल | शूल ] ओ० ६४. जी० ३।११० सेयबंधुजीव [ श्वेतबन्धुजीव] रा० २६. सूलग्ग [शूलाग्र ] जी० ३.८५ जी० ३१२८२ सूलभिण्णग [शुलभिन्नक] ओ०६०. रा० ७५१ ।। सेयमाल [श्वेतमाल ] जी० ३१५८२ सूलाइग | शूलातिग] रा० ७५१ सेयविया [श्वेतविका] रा० ६६६ से ६७१,६८१, सूलाइय [शूलातिग] रा० ७६७ ६८३,६६६,७००,७०२ से ७०४,७०६,७०८, सूलाइयग [ शूलाचितक, शूलातिग] ओ०६० ७१० से ७१३,७१६,७२६,७५० से ७५३, से [ दे० ] ओ० ३१. रा० १२. जी० ११२ ७७५,७७६,७८०,७८७,७८८ सेउ सेतु] ओ० १,७,८,१०. जी० ३।२७६ सेयासोग [श्वेताशोक रा० २६ सेउकर [ सेतुकर] ओ० १४. रा० ६७१ सेरियागुम्म [सेरिकागुल्म] जी० ३।५८० सेज्जा [शय्या ] ओ० ३७,१२०,१६२,१८०. सेल [शैल] ओ० ४६. जी० ३।५९४ रा०६६८,७०४,७०६,७११,७१३,७५२,७७६, सेलपाय [शैलपात्र] ओ० १०५,१२८ सेलबंधण [शैलबन्धन] ओ० १०६,१२६ सेट्टि दे० श्रेष्ठिन् ] ओ० १८,२३,५२,६३. रा० ६८७,६८८,७०४,७५४,७५६,७६२, सेला [शैला] जी० ३।४ ७६४. जी. ३१६०६ सेलु [शेलु] जी० ११७१ सेढी [श्रेणी] ओ० १६,४७. रा० २४,७६०,७६१. सेलेसी [शैलेसी] ओ० १८२ जी० ३१२७७,५६६,७२३,७२६ सेवालगुम्म [शैवालगुल्म] जी० ३।५८० सेणा [ सेना] ओ० ५५ से ५७,६२,६५ सेवालभक्खि [शैवालभक्षिन् ] ओ० ६४ सेणावई [सेनापति ] ओ० १८,२३,५२,६३. सेस [शेष] ओ० १२०,१६२. रा० २३६,६६८, रा०६८७,६८८,७०४,७५४,७५६,७६२,७६४ ७५२,७८६. जी० ११६४,६५,७७,७६,८२, सेगावच्च | सेनापत्य ] ओ० ६८. रा० २८२. ८८,९०,१०१,१०३,१११,११२,११६,१२१, जी० ३।३५०,४४८,५६३,६३७ १२३,१२४; २॥३७,८६,१२०, ३.६८ से ७२, सेणावति | सेनापति ] जी० ३१६०६ १६१,१६५,२१६ से २२६,२४३,२५८,३५५, सेत [ श्वेत] जी० ३।३००,३५४,४५४,८८५ ६८७,७०६,७११,७४१,७५०,७६२,७६५, सेतासोय [श्वेताशोक] जी० ३।२८२ ७६६,७६९,७७०,८७२,८३८४२२,८५१, सेषा [दे०] जी० २६ ९१४ से ६१६,६३६,६५०,६६२,११२२, सेय [ श्वेत ओ० ५१,६५,६७,१६४. रा० १२६, ५.३१,३४,६।४,६ १३०,१६२,१६०,२१०,२१२,२२२,२८८. सेहवेयावच्च [शैक्षवैयावृत्य] ओ० ४१ जी० ३।२६४,३००,३१२,३३५,३७३,३८१, महाव [शिक्षय ]-सेहाविहिति. ओ० १४६. --सेहावेहिइ. रा० ८०६ सेय [स्वेद] ओ० ८६,६२. जी० ३।५६८ सेहावित्ता [शिक्षयित्वा] ओ० १४६ सेय श्रेयस् ] ओ० ११७. रा०६,२७५,२७६, सेहावेत्ता [शिक्षयित्वा] रा०८०७ ७७४,७७७,७८१. जी० ३।४४१,४४२ सोइंदिय [श्रोत्रेन्द्रिय] ओ० ३७. जी० १११३३ Page #847 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७० सोडियालिछ-सोमाकार सोंडियालिछ [शुण्डिकालिञ्छ ] जी० ३।११८ सोंडीर [शौण्डीर] ओ० २७. रा० ८१३ सोक्ख [सौख्य] ओ० २३,१६५।१३,१४,१७. जी० ३।११८,११६ सोग [श क] ओ०४६. रा० ७६५. जी०३।१२८ सोगंधिय [सौगन्धिक] ओ० १२. रा० १०,१२, १८,२३,६५,१६५,१७४,१६७,२८८. जी० ३११८,११६,२५६,२८६,२६१ सोच्चा | श्रुत्वा] ओ० २१. रा० १३. जी० ३।४४३ सोणंद [दे०] त्रिपदिका ओ० १६. जी० ३१५९६ सोणि [श्रोणि] जी० ३।५६७ सोणिय [ शोणित] रा० ७०३ सोसुणित्तग धोणिसूत्रक] जी० ३१५६३ सोत [श्रोतस्] जी० ३।७४६ सोतिदिय [श्रोत्रेन्द्रिय] जी० ३।६७६,६७७ सोत्थि स्वस्ति] जी० ३।१७७ सोत्थिकूड [स्वस्तिकूट] जी० ३।१७७ सोत्थिय स्वस्तिक] रा० २१,२४,४६,८१,२६१. जी० ३।२७७,२८६,३१४,३४७,३५५,५६७ सोत्थियकंत [स्वस्तिककान्त] जी० ३।१७७ सोत्थियज्झय [स्वस्तिक ध्वज जी० ३।१७७ सोत्थियपभ [स्वस्तिकप्रभ] जी० ३३१७७ सोत्थियलेस [स्वस्तिकलेश्य ] जी० ३.१७७ सोत्थियवण्ण [स्वस्तिकवर्ण] जी० ३।१७७ सोत्थियसिरिवच्छनंदियावत्तवद्धमाणगभट्टासणकलसमच्छदप्पणमंगलभत्तिचित्त स्विस्तिक श्रीवत्सनन्द्यावर्त्तवर्धमानकभद्रासनकलशमत्स्य दर्पणमङ्गलभक्तिचित्र] रा० ७६ सोत्थियावत्त [स्वस्तिकावर्त] जी० ३।१७७ सोथिसिंग [ स्वस्तिशृङ्ग] जी० ३:१७७ सोत्थिसिट्ठ [स्वस्तिशिष्ट] जी० ३।१७७ सोत्थुत्तरवडिसग [स्वस्त्युत्तरावतंसक जी० ३।१७७ सोधम्म सौधम] रा० ५६०. जी० २।९६,१४८, १४६; ३३१०३८,१०३६ सोधम्मक [ सौधर्मक] जी० २।१४८,१४६ सोधम्मग [सौधर्मक] जी० ३।१०३६ सोधम्मवडेंसग [ सौधर्मावतसक] रा० १२६ सोधम्मव.सय [ सौधर्मावतंसक | रा० १२५ सोपाण [सोपान] जी० ३।४५४,५६४ सोभ | शोभ] ओ० ६३. जी० ३१७२२,८२०,८३०, ८३४,८३७,८५५ सोभ [शोभय]- सोभंति. जी० ३१७०३. सोभिंसु. जी० ३।७०३.-सोभिस्संति. जी० ३१७०३.--सोभेसु. जी. ३१८०५ सोभंत [शोभमान] ओ० ४६. रा० ६६. जी० ३।३०६,५९७ सोभग्ग [मौभाग्य] ओ० २३ सोभण [शोभन ] ओ० १४५. रा० ८०५ सोभमाण [ शोभमान [ जी० ३।५६१ सोभिय [शोभित ] ओ० १ सोभेमाण [शोभमान ] जी० ३।५८६ सोम (सौम्य ] ओ० १५.१६. रा० ७०,१३३, ६७२ जी० ३।३०३,५६६,५६७,११२२ सोमणस [सौमनस] ओ० ५१. जी० ३ ६२५,६३४ सोमणसवण [सामनसवन रा० १७३,२७६. जी० ३।२८५,४४५ सोमणसा सोमनसा जी० ३१६६६,६२० सोमणस्सिय [सोमनस्यित, सौमनस्यिक] ओ०२० २१,५३,५४,५६.६२,६३,७८,८०,८१. रा०८, १०,१२ से १४,१६ से १८,४७,६०,६२,६३, ७२,७४,२७७,२७६,२८१,२६०,६५५,६८१, ६८३,६६०,६६५,७००,७०७,७१०,७१३, ७१४,७१६,७१८,७२५,७२६,७७४,७७८. जी० ३।४४३,४४५,४४७,५५५ सोमलेस सोमलेश्य ] ओ० २७. रा० ८१३ सोमाकार [सौम्याकार] ओ० १५,१४३. रा० ६७२,६७३,८०१ Page #848 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमाण-हत्य ७७१ सोमाण [ सोपान] रा० ४७,१७५ से १७६,६५६... सोहम्मा [सुधर्मा] जी० ३।३७३ जी०३:५५६,६४०,६४१,८५७ सोहि [शोधि ] ओ० २५ सोय [शौच ] ओ० २५. रा० ६८६ सोहिय | शोभित ] ओ० ५,६,८,१६४. जी० ३।२७४, सोय [श्रोतस] ओ० १२२ २७५ सोयंधिय [सौगन्धिक] जी० ३६७ सोयणया [शोचनता] ओ० ४३ सोयधम्म | शौचधर्म] ओ० ६७ हंत |हन्त] रा० १५ सोल [षोडश] जी० ३।२२६।२ हंता [हन्त] ओ० ८४. रा० १७३. जी० ३।१३ सोलस | षोडशन ] ओ० ३३. रा०७. जी. ११४ हस [हस] ओ० ६६. रा० २६. जी० ३।२८२, ५६७ सोलसग [षोडशक ] जी० ३१५ सोलसभत्त [षोडशभक्त] ओ० ३२ हंसगब्भ [हंसगर्भ] रा० १०,१२,१८,६५ १६५, सोलसविध षोडशविध] जी० ३७,३५७ २७६. जी० ३१७,२८४ सोलसविह [षोडशविध] रा० १६५. जी० ३।३४६ हंसगन्भतूलिया हसगभतूलिका ] रा० ३१ सोलसिया [पोडशिका] रा० ७७२ हंसगन्भतूली [हंसगर्भवूली] जी० ३।२८४ सोल्लिय [पक्व ] अं० १६४ हंसगम्भमय हंसगर्भमय ] रा० १३०. जी० ३।३०० सोवणिय सौणिक रा० ३७,२४५,२७६,२८०. हंसस्सर [हंसस्तर] रा० १३५. जी० ३।३०५,५६८ जा० ३।३११,४०७,४४५,४४६,४४८ हंसावलिपविभत्ति [हंसावलिप्रविभक्ति ] रा० ८५ सोवत्थिय सौवस्तिक ओ० १२,६४. रा० २४. हंसासण [हंसासन] रा० १८१,१८३,१८५ जी० ३१२६३,२६५,२६७,८५७ जी० ३।२७७.५६६ हक्कार आ+कारय् ]-हक्कारेति रा०२८१. सोवाण [ सोपान] रा० १९,२० ४८,५६,५७, जो० ३१४४७ २०२,२३४,२६४,२७७,२८८,३१२,४७३. हटु हृष्ट] ओ० २०,२१,५३,५४,५६,६२,६३, जी० ३१२८७.२८५,३६३.३६६,४४३,४४७, ६८,७८,८०,८१. रा०८,१०,१२ से १४, १६ ५३२,५७६,६६६.६८४ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४,२७७,२७६, सोस [शोष] जी० ३६६२८ २८१,२६०,६५५,६८१,६८३,६६०,६६५,७००, सोह [शोभ] ओ० ५२. रा० ६८७ से ६८९ ७०७,७१०,७१३,७१४,७१६,७१८,७२५,७२६, सोहंत [शोभमान] रा० १३६ ७७४,७७८. जी० ३.४४३,४४५,४४७,५५५ सोहग्ग [सौभाग्य] ओ०६६ हडप्पगाह [हडप्पग्राह] ओ० ६४ सोहम्म [ सौधर्म ] ओ० ५१,६५,१६०,१६२. हडिबद्धग [हडिबद्धक ] ओ०६० रा० ७,१२,५६,१२४,२७६,७६६. जी०११५६; हण [घातय].-हण रा० ७६१ २।१६,४६,१४६; ३१६३७,१०३८,१०५७, हणु [हनु] ओ० १६ १०६५,१०६७,१०७१,१०७३,१०७५,१०७७ हणुया [हनुका] जी० ३१५६६,५६७ से १०८३,१०८५,१०८७,१०६०,१०६१, हत्थ [हस्त] ओ० २१,५४,६६,१११ से ११३, १०९३,१०६७ से १०६६,११०१,११०५, १३७,१३८. रा० १३३,२८१,२८८ से २६०, ११०७,११०६ से १११२,१११४,१११७, ६५६,७१६,७५३,८०४. जी० ३।४४७,४५४ ११६,११२१,११२२,११२४,११२८ से ४५६,५६७ Page #849 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७२ हत्थ-हल हत्य [दे०] ओ० ५७ हत्थग [हस्तक] ओ० १२. जी० ३।२६१,३१५, ६३६,६५१,६७७,८६४ हत्थच्छिण्णग [ हस्तच्छिन्न क] रा० ७५१ हस्थच्छिण्णय [हस्तच्छिन्नक] रा० ७६७ हत्यछिण्णग [हस्तच्छिन्नक] ओ०६० हस्थतल [हस्ततल] रा० २५४. जी. ३१४१५ हत्थमालग [इस्तमालक जी० ३१५६३ हत्थय [हस्तक] रा० २३,२२३ । हत्याभरण [हस्ताभरण] ओ० ४७,७२ हत्थि [हस्तिन् ] ओ० १०१, १२४. रा० ७७२.. जी० ३।८४,६१८ हत्थिक्खंघ [हस्तिस्कन्ध ] ओ० ६५ हत्थिगुलगुलाइय [हस्तिगुलगुलायित ] रा० २८१. ___ जी० ३।४४७ हत्थितावस [हस्तितापस] ओ०६४ हत्थिमुह [हस्तिमुख जी० ३।२१६ हत्थिरयण [हस्तिरल ] ओ० ५५ से ५७, ६२ से ६४,६६ हत्थिवाउय [हस्तिव्याप्त] ओ० ५६,५७ हत्थिसोंड [हस्तिशौण्ड] जी० ११८८ हम्मिय [हर्म्य] जी'० ३५९४,६०४ हय हिय ] ओ० १६,४८,५१,५२,५५ से ५७,६२, ६५. रा० १४१ से १४४,१६२ से १६५, २८५,६८७ से ६८६. जी० ३।२६६,२६७, ३१८,३५५,४५१,५६६ हयकंठ [यकण्ठ] रा० १५५,२५८. जी० ३।३२८ हयकंठग [हयकण्ठक] जी० ३।४१६ हयकण्ण [हयकर्ण] जी० ३।२१६,२२२ से २२५, २२६॥३ हयकण्णदीव [यकर्णद्वीप] जी० ३।२२२ हयजोहि [ह्ययोधिन् ] ओ० १४८,१४६. रा० ८०६,८१० हयलक्खण [ह्यलक्षण] ओ० १४६. रा० ८०६ हयविलंबिय हयविलम्बित] रा०६१ हयविलसिय [हपविलसित] रा० ६१ हयहेसिय [हयहेसित] रा० २८१. जी० ३।४४७ हरतणुय [हरतनुक] जी० ११६५ हरय [ह्रद] रा० २६२ से २६५,२७३,२७७, ४७३. जी० ३।४२५,४२६,४३८,४४३,५३२ हरि | हरित् रा० २७६. जी० ३।४४५ हरिओभास [हरितावभाम] रा० १७०,७०३. जी० ३।२७३ हरिकता [हरिकान्ता] रा० २७६. जी० ३१४४५ हरितकाय [हरितकाय ] जी० ३।१७४ हरितग [हरितक] जी० ३।३२४ हरिताभ [हरिताभ | जी० ३१८७८ हरिताल [हरिताल | जी० ३८७८ हरिय [हरित ] ओ० ४,५,८,१०३,१२६.१३५. रा० १७०,७०३. जी० ११६६ : ३।२७३ ,२७४ हरिय [भरित] जी० ३।२८५ हरियकाय [हरितकाय जी० ३।१७४ हरियग हरितक] रा० १५१,७८२ हरियच्छाय [हरितच्छाय ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी० ३।२७३ हरियाल [हरिताल] रा० २८,१६१,२५८,२७६. जी० ३।२८१,३३४,४१६ हरियालिया हरितालिका] रा०२८ हरियोभास हरितावभास] ओ० ४ हरिवास [हरिवर्ष] र:० २७६. जी० २१३,३२, ___५६,७०,७२,९६,१४७,१४६ ; ३:२२८,४४५, ७६५ हरिवाहण [हरिवाहन ] जी० ३।६२३ हरिस [हर्ष ] ओ०२०,२१,५३,५४,५६,६२,६३,७८, ८०,८१. रा० ८,१०,१२ से १४,१६ से १८, ४७,६०,६२,६३,७२,७४,२७७,२७६,२८१, २६०,६६५,६८१,६८३,६६०,६६५,७००,७०७, ७१०,७१३,७१४,७१६,७१८,७२५,७२६,७७४, ७७८. जी. ३१४४३,४४५,४४७,५५५ हरिसय [हर्षक] जी० ३१५६३ हरिसिय [हर्षित] रा० १७३. जी० ३।२८५ हल [हल ] ओ० १. जी० ३।११० °२१,५९६ Page #850 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हलधर-हिययसूल ७७३ हलधर [हलधर] ओ० १३. रा० २६. जी० ३६३५ जी० ३२७६ हारवरोभासमहावर [हारवरावभासमहावर] हलिहा [हरिद्रा] रा० २८. जी० ३।२८१ जी० ३६३५ हव [भू]-हवंति ओ० १८३. जी० ३।१२ हारबरोभासवर [हारवरावभासवर -हवेज्ज ओ० १६५४.--हवेज्जा जी० ३१६३५ ओ० १६५।१५ हालिद्द [हारिद्र] ओ० १२. रा० २२,२४,२८, हव्व [अर्वाच्] ओ० ५७ १२८,१३२,१५३. जी० ११५,१३६, ३२२, हव्वं [अर्वाच्] ओ० १७०. रा० ७२०. जी० ३।८६ ४५,२८१,२६०,३२६,१०७५,१०७६ हिस [हस्]--हसंति रा० १८५.-हसिज्जइ हालिग [हारिद्रक] जी. ३२८१ रा० ७८३ हास [हास] ओ० २८,४६,५१ हसंत [हसत्] ओ० ६४ हास [ह्रस्व जी० ३७८१,७८२ हसिय [हसित] ओ० १५,४६. रा० ७०,६७२, हासकर [हासकर] ओ० ६४ ८०६,८१०. जी० ३।५६७ हिगुंलय [हिङ गुलक] रा० १६१,२५८,२८१. हस्स [ह्रस्व] ओ० १८२,१६५०४ ___ जी० ३।३३४,४१६ हाय हा]---हायइ जी० ३।७३१.---हायति हिंसप्पयाण [हिंस्र प्रदान] ओ० १३६ जी० ३१७२३ हिसाणुबंधि [हिंसानुबन्धिन् ] ओ० ४३ हायण [हायन] जी० ३।११८,११६ हिटिमय [अधस्तन ] जी० ३१५ हार [हार] ओ० २१,४७,५२,५४,६३,६५,७२, हित [हित] जी० ३।४४१,४४२ १०८,१३१,१६४. रा० ८,२६,४०,१३२, हिम [हिम] रा० २५५. जी० ११६५; ३३११६, २८५,६८७ से ६८६,७१४. जी० ३१२६५, २८२,३०२,५६२,६३५,११२१ हिमकूड [हिमकूट] जी० ३।११६ हारपुडय (पाय) [हारपुटकपात्र] ओ० १०५, हिमपडल [हिमपटल] जी० ३।११६ १२८ हिमपुंज [हिमपुञ्ज] जी० ३।११६ हारपुड्य (बंधण) [हारपुटकबन्धन] ओ० १०६, हिमवंत [हिमवत् ] ओ० १४. रा० १७३,६७१, १२६ हारभद्द [हारभद्र] जी० ३।६३५ हियउप्पाडियग [उत्पाटितकहृदय ] ओ० ६० हारमहाभद्द [हारमहाभद्र] जी० ३।६३५ हिय [हित ] ओ० ५२. रा० १५,२७५,२७६,६८७ हारमहावर [हारमहावर] जी० ३।६३५ हियय हृदय] ओ० २०,२१,२७,५३,५४,५६,६२, हारवर [हारवर] जी० ३।६३५ ६३,६६,७८,८०,८१. रा०८,१०,१२ से १४, हारवरभह हारवरभद्र] जी० ३१६३५ १६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४,२७७, हारवरमहाभद्द [हारवरमहाभद्र ] जी० ३।६३५ २७६,२८१,२६०,६५५,६८१,६८३,६६०, हारवरमहावर [हारवरमहावर] जी० ३।६३५ ६६५,७००,७०७,७१०,७१३,७१४,७१६, हारवरोभास [हारवरावभास] जी० ३।६३५ ७१८,७२५,७२६ ७५० से ७५३,७७४,७७८, हारवरोभासभद्द [हारवरावभासभद्र ] ८१३. जी० ३।४४३,४४५,४४७,५५५ जी० ३।६३५ हिययगमणिज्ज [हृदयगमनीय] ओ० ६८ हारवरोभासमहाभद्द [हारवरावभासमहाभद्र ] हिययसूल [हृदयशूल] जी० ३३११६,६२८ Page #851 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७४ हिरण्ण [ हिरण्य] ओ० २३. रा० २८१,६९५. जी० ३ | ४४७,६०८, ६३१ हिरण्णजत्ति [ हिरण्ययुक्ति ] ओ० १४६. रा० ८०६ हिरण्णपाग [ हिरण्यपाक ] ओ० १४६. रा० ८०६ हिरण्णवय [ हिरण्यवत ] जी० ३१२८८ हिरिलि [ दे० ] जी० १/७३ हिरी [ही ] रा० ७३२,७३७,७७४ हीण [ हीन ] ओ० १६५०४. रा० ७७४. जी० ३।७३ हीर [हीर ] जी० ३१६२२ हीरय [ हीरक ] जी० ३।६२२ हीलणा [हीलना ] ओ० १५४,१६५,१६६, रा० ८१६ √हु [भू] - हुंति जी० १।१४ हुंड [हुण्ड ] जी० ११८६, ६५, १०२, ११६; ३६३, १२६३,४ ब] [ दे०] ओ० ९४ हक्क [हुडुक्क] ओ० ६७. रा० १३,६५७. जी० ३ | ४४६ डुक्की [हुडुक्की ] रा० ७७ हुतवह [ हुतवह ] जी० ३१५६६ वह [हुतवह] ओ० १६,४७. जी० ३।५६० हयासण [हुतासन ] ओ० २७. रा० ८१३ हु [ हुहुक ] जी० ३३८४१ हुमाण [ दे० जाज्वल्यमान ] जी० ३।११८ हेउ [ हेतु ] ओ० ११६. रा० १६,७१६,७४८ से ७५०,७७३ [ [ अधस् ] ओ० १३,१८२. रा० ४,२४०. जी० ३१७७,८०,३५६, ४०२ [अस] जी० ३६६८ हेमि [ अधस्तन ] जी० ३।७० से ७२,११११।३ हिरण्ण- हस्सीकरितए ट्टिम विज्ज [ अधस्तनग्रैवेय ] जी० २२६६ हेट्ठिमगेवेज्जग [ अधस्तनग्रैवेयक ] जी० ३॥१०५६ हेट्टिममज्झिमिल्ल [ अधस्तनमध्यम ] जी० ३।७२६ हेट्ठिल्ल [ अधस्तन ] जी० ३१६०,६२ से ७१,७२५, ७२८, ७२६,१००३, १००४,१००७, ११११ हेल्लिम झिल्ल [ अधस्तनमध्यम ] जी० ३।७२६ हिद्विल्लातो [ अधस्तनतस् ] जी० ३।६६,७२ हेमंत [ हैमन्तिक ] ओ० २६. रा० ४५ हेमजाल [ हेमजाल ] रा० १३२,१७३, १६१,६८१. जी० ३।२६५, २८५,३०२, ५१३ हेप्प [ हेमात्मन् ] जी० ३।५६५ हेमवत [ हैमवत ] जी० २२६६, १४७, १४९, ३७६५ Har [ हैमवत ] ओ० ६४. रा० १७३, २७६,६८१. जी० २।१३,३१,५८,७०, ७२ ३१२२८, २८५, ४४५ हेरण्णवत [ हैरण्यवत | जी० २२६६, १४७, ३२७६५ रणवय [ हैरण्यवत ] जी० २११४६; ३।४४५ हे [ हेरु ] जी० ३।६३१ रुयालवण [ हेरुतालवन] जी० ३।५८१ √ हो [भू] - होइ ओ० १६५।५. रा० १३०. जी० १११३६ - होई. जी० ३ | १२६ । ३ --- होउ. ओ० १४४. रा० ७३० - होंति. रा० १३०. जी० १।७२ - होति. ओ० १६५८. जी० ३।१६४ -- होज्ज. रा० ७५४. जी० ३।५६२ - होज्जा. रा० ७१८, होत्या ओ० १. रा० १ होत्तिय [ होत्रिक ] ओ० ६४ होरंभा [होरम्भा ] रा० ७७. जी० ३।५८८ √ हस्सीकर [ ह्रस्वी + कृ] - हस्सीकरेज्ज जी० ३।६६७ ह्रस्सीकरिए [ ह्रस्वीकर्तुम् ] जी० ३१६६४ कुल शब्द ६६३१ Page #852 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुदि-पत्र अशुद्ध बससंडेणं धम्मोप भगवाओ विउसग्मे विहणि तुंबविणिपेच्छा सयमेब जायमेव घोसेडिया पोंडरिय डिडिमाष रुच्छ नुब्बने ऊसित्ता सुब्भ वणसंडेण धम्मोव भगवओ विउस्सग्ने विहणि तुंबविणियपेच्छा सयमेव जीयमेव घोसाडिया पोंडरीय डिडिमाण अच्छ हुब्बभे ११६ २७३ २६७ ३१५ ३१५ ११ टि० १३ का अन्तिम ३२० कसिता सुज्झ 'सुवण्णसुज्झरययवालुयाओ' इति सुवर्ण-पीतकान्तिहेम सुज्झंरूप्यविशेष: रजतं—प्रतीतं तन्मय्यो वालुका यासु ताः सुवर्णसुज्झरजतवालुका (म) °णिव्वुइ° ३१८६६ पत्तेयंउववेता वाघाइमे अणुत्तरो तिरिक्ख पमोक्ख ३७५ पं० ११ टि०१२ पं०१६ पं०६ पं०६ पं०६ ३८१ °विव्वुइ ३१६८६ पत्तयंउबवेता बाघाइमे अणत्तरों तिरक्खि पमोकक्ख ४२६ ४५७ ४६५ पं०४ ४७३ ६७६ Page #853 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #854 -------------------------------------------------------------------------- ________________ :9 3 Jain Education inter ate Personal wwwalnetary