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________________ अउल-अंजणगिरि अंगुल [अगुल] ओ०१६,१७०,१६२,१६५।७. रा०५६,१८८,७६६. जी०१।१६,७४,८६,९४, १०१,१०३,१११,११२,११६,११६,१२१, १२३ से १२५,१३०,१३५; ३८२,६१,२६०, ४३६,५६६,५६७,७८८,८३८।१७,६६६, १०७४,१०८७,१०८६,११११, ५।२३,२६; ९।४०,५१,६७,१७१ अंगुलक [ अगुलक] जी० ३।२६० अंगुलग [अगुलक] जी० ३।१०७४ अंगुलय [अगुलक ] जी० ३।८२ अंगुलि ] अङ्गुलि] रा० २६२. जी० ३।४५७ अंगुलिज्जग [अगुलीयक] ओ० ६३ अंगुलितल [अगुलितल] ओ० २,५५. रा० ३२, २८१,२६३,२६५. जी० ३३७२,४४७,४५८, ४६०,५५४ अंगुलिय [अङ्गुलिक] ओ० १७० अंगुली [अगुली] ओ० १६ अंगुलीय [अगुलीक] ओ०६३. जी० ३।५९६, अउल [अतुल] ओ० १६५।१६. जी०३।११६ अओकुंभी [अयस्कुम्भी] रा० ७५४,७५६ अओम [अयोध्य] ओ० ५७ अओमय [अयोमय ] रा० ७५४,७५६. जी० ३।११६ अंक [अङ्क] ओ० ४८,५१. रा० १०,१२,१८, २६,३८,६५,१३०,१६०,१६५,१७३,२२२, २५६,२७६,८०४. जी० ३१७,२८२,२८५, ३००,३१२,३३३,३८१,४१७,५६६,८६४ अंक (मय) अङ्कमय ] जी० ३१७४७ अंकधाई [अङ्कधात्री] रा०८०४ अंकमय [अङ्कमय ] रा० १३०,२७०. जी० ३।३००,३२२,४३५ अंकवाणिय [अङ्कवणिज] रा० ७३७ ग्रंकहर [अङ्कधर] जी० ३।५६६ अंकामय [अङ्कमय ] रा० १३०,१४६,१६०,२५४. जी० ३।२६४,३००,४१५ अंकिय [अङ्कित] ओ० १६. जी० ३।५६६,५६७ अंकुर अकुर] ओ० ५,८,१८४. रा० २७, २२८. जी० ३।२७४,२८०,३८७,६७२ अंकुस [अङ्कुश] रा० ३६,४०. जी० ३।३१३, ३३८,५६७,६३४,८६२ अंकुसय [अकुशक] ओ० ११७ अंकोल्ल [अङ्कोठ] जी० ११७४ अंग [अङ्ग] ओ० १५,६३,१४३. रा० ८०६, ८१०. जी० ३१५६६ अंगण [अङ्गन] ओ० २८ अंगपविट्ठ [अङ्गप्रविष्ट] रा० ७४२ अंगबाहिरक [अङ्गबाह्यक] रा० ७४२ अंगमंग [अङ्गाङ्ग] ओ० १४. रा० ७०,६७१. जो०३१५६८ अंगय [अङ्गक ] ओ० ६३ अंगय [अङ्गद ] ओ० ४७,७२,१०८,१३१. रा० २८५. ३१४५१ अंगारक अङ्गारक] ओ० ५० ५६७ अंगुलेज्जग [अगुलोयक] जी० ३।५९३ अंच [कृष्]--अंचेइ ओ० २१. रा.८. ___ जी० ३।४५७ अंचितरिभित [अञ्चितरिभित] जी० ३।४४७ अंचित्ता [कृष्ट्वा] रा० २६२ अंचिय [अञ्चित] रा० १०५.११६,२८१. जी०३।४४७ अंचियरिभिय [अञ्चितरिभित] रा० १०७,२८१ अंचेत्ता [कृष्ट्वा ] ओ० २१. रा० ८. जी. ३१४५५ अंजण [अञ्जन] ओ० ४७. रा० १०,१२,१८,२५, ६५,१६१,१६५,२५८,२७६. जी० ३१७,२७८, ३३४,४१६,४४५ अंजणकेसिगा [अजनकेशिका] जो० ३।२७६ अंजणकेसिया (अजनकेशिका] रा० २६ अंजणग [अञ्जनक] ओ० १३. जी० ३१८८२, ८८३,६१०,६१३ से ६१६ अंजणगिरि [अनगिरि] ओ० ६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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