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________________ ६२७ जलंत-जहण्ण जलंत [ज्वलत् ] ओ० २२,२७. रा० ७२३,७७७, ७७८,७८८,८१३ जलकिड्डा जिलक्रीडा] रा० २७७. जी० ३।४४३ जलचर [जलचर] जी० ३.१२६।१,१६६ जलज [जलज] जी० ३।१७१ जलणपवेसि [ज्वलनप्रवेशिन् ] ओ०६० जलपवेसि [जलप्रवेशिन् ] ओ० ६० जलमज्जण [जलमज्जन] रा० २७७. जी० ३४४३ जलय [जलज] ओ० १२. रा० ६,१२,२२. जी० ३।२६० जलयर [जलचर] ओ०१५६. जी० १६८,६६, १०१,१०३,११२,११३,११६ से ११६,१२१, १२३,१२५, २।२२,६९,७२,७६,६६,१०४, १०५,११३,१२२,१३६,१३८,१४६,१४६; ३॥१३७ से १४०,१४२,१४४ जलयरी [जलचरी] जी० २।३,४,५०,५३,६६, ७२,१४६,१४६ जलरय [जलरजस्] ओ० १५०. रा० ८११ जलरुह [ जलरुह ] जी० ११६६ । जलवासि [जलवासिन्] ओ० ६४ जलसमूह [जलसमूह ] ओ० ४६ जलाभिसेय [जलाभिषेक ] ओ० ६४. रा० २७७ जलावगाह [जलावगाह] रा० २७७ जलिय [ज्वलित] जी० ३।५६० जल्ल [दे०] ओ० १, २, ८६,६२. जी० ३१५६८ जल्लपेच्छा [ 'जल्ल' प्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. जी० ३।६१६ जल्लोसहिपत्त [जल्लोषधिप्राप्त] ओ० २४ जव [यव] ओ० १. जी० ३१५६७, ६२१, ७८८, जवलिय [यवलित] जी० ३।२६८ जवाकुसुस [जपाकुसुम] रा० ४५ जस [ यशस्] ओ० ८६ से १५, ११४, ११७, १५५, १५७ से १६०, १६२, १६७ जसंसि [यशस्विन् ] ओ० २५. रा० ६८६ जसोधरा [यशोधरा] जी० ३,६६६ जह [यथा] ओ० ७४. जी० १७२ जहक्कम [ यथाक्रम ] रा० १७२ जहण [जघन] जी० ३।५९७ जहण्ण [जघन्य ] ओ० १८७, १८८, १६५. जी० १११६, ५२, ५६, ६५, ७४, ७६, ८२, ८६ से ८८, ६४, ६६, १०१, १०३, १११, ११२, ११६, ११६, १२१, १२३ से १२५, १३०, १३३, १३५ से १४०, १४२; २।२० से २२, २४ से ५०, ५३ से ६१, ६३, ६५ से ६७, ७३, ७६, ८२ से ८४, ८६ से ८८, E01 से ६३, ६७, १०७ से १११, ११३, ११४, ११६ से १३३, १३६; ३३८६, ८६, ६१, १०७, १२०, १५६, १६१, १६२, १६५, १७६, १७८, १८०, १८२, १८६ से १६०,' २१८, ६२६, ८४४, ८४७, ६६६, १०२१, १०२७ से १०३६, १०८३, १०८४, १०८७, १०८६, ११११, ११३१, ११३२, ११३४ से ११३७; ४१३, ४,६ से ११, १६, १७; ५५, ७, ८, १० से १६, २१ से २४, २८ से ३०; ६।२, ३, ६, ८ से ११; ७१३, ५, ६, १०, १२ से १८; ६२ से ४,२३ से २६, ३१, ३३, ३४, ३६, ४०, ४१, ४३, ४७, ४६,५१,५२, ५७ से ६०, ६८ से ७३, ७७, ७८, ८०, ८३, ८५,८६,६०,६२,६३,६६, ६७,१०२, १०३, १०५, १०६, ११४, ११५, ११७, ११८,१२३ से १२८, १३२, १३४, १३६, १३८, १४२, १४४, १४६, १४६, १५०, १५२, १५३,१६० से १६२, १६४, १६५, १७१ से १७३, १७६ से १७८, १८६ से १६१, १६३, १९४, १९८ से २००, २०२ से २०४, २०६, २०७, २१० ८३६ जवण [जवन] रा० १०, १२, ५६, २७६. जी० ३।११८ जवमा [यवमध्य ] जी०३७८८ जवमन्मा [यवमध्या] ओ० २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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