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तच्चा चउठिवहपडिवत्ती
३४६ गतिया' देवा दुतं णट्टविधि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा विलंबितं णट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा दुतविलंबितं णाम णट्टविधि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा अंचियं णट्टविधि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा रिभितं णट्टविधि उवदंसेंति, अप्पैगतिया देवा अंचितरिभितं णट्टविधि उवदंसें ति, अप्पेगतिया देवा आरभडं णट्टविधि उवदंसें ति, अप्पेगतिया देवा भसोलं णविधि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा आरभडभसोलं णविधि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा 'उप्पायनिवायपसत्तं संकुचिय-पसारियं रियारियं भंत-संभंतं णाम णट्टविधिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा चउव्विधं वाइयं वादेंति, तं जहा-ततं विततं घणं झुसिरं, अप्पेगतिया देवा चउव्विधं गेयं गायंति, तं जहा-'उक्खित्तं पवत्तं मंदायं रोइयावसाणं, अप्पेगतिया देवा च उविध अभिणयं अभिणयंति, तं जहा-दिलैंतियं 'पाडिसुयं सामन्नतोविणिवातिय लोगमज्झावसाणियं, अप्पेगतिया देवा पीणंति, अप्पेगतिया देवा तंडवेंति, अप्पेगतिया देवा लासेंति, अप्पेगतिया देवा बुक्कारेंति, अप्पेगतिया देवा पीणंति तंडवेंति लासेंति बुक्कारेंति, अप्पेगतिया देवा अप्फोडेंति', अप्पेगतिया देवा वग्गंति, अप्पेगतिया देवा तिवति छिदंति, अप्पेगतिया देवा अप्फोडेंति वग्गंति तिवंति छिदंति, अप्पेगतिया देवा हयहेसियं करेंति, अप्पेगतिया देवा हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, अप्पेगतिया देवा रहघणघणाइयं करेंति अप्पेगतिया देवा हयहेसियं करेंति, हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, रहघणघणाइयं करेंति, ‘अप्पेगतिया देवा उच्छले ति , अप्पगतिया देवा पोच्छलेंति अप्पेगतिया देवा उक्किटुिं करेंति, अप्पेगतिया देवा उच्छलेंति पोच्छलेंति उक्किट्ठि करेंति", अप्पेगतिया देवा सीहनादं नदंति, अप्पेगतिया देवा पाददद्दरयं करेंति, अप्पेगतिया देवा भूमिचवेडं दलयंति", 'अप्पेगतिया देवा सीहनादं पाददारयं भमिचवेडं दलयंति १२ अप्पेगतिया देवा हक्कारेंति, अप्पैगतिया देवा थुक्कारेंति, अप्पेगतिया देवा थक्कारेंति", 'अप्पेगतिया देवा नामाइं साहेति' 'अप्पेगतिया देवा हक्कारेंति थुक्कारेंति थक्कारेंति नामाइं साहेति",
१. द्वात्रिंशतो नाट्यविधीनां मध्ये कांश्चन नाट्य- दृश्यते । विधीनुपन्यस्यति (मवृ)।
८. उच्छोलेति (क,ख,ग,ट,त्रि) अग्रेपि एवमेव । २. उप्पनणिवतपयत्तं संकुचितपसारियरेयारयितं . पच्छोलेंति (क, ख, ग, ट, त्रि) अग्रेपि एवमेव । भंगसंभंग (ता)।
१०. चिन्हाङ्कितः पाठः वृत्तो नास्ति व्याख्यातः । ३. क, ख, ग, ट, आदर्शषु वाद्य-गेयसम्बन्धिनो ११. अतोने 'अप्पेगतिया देवा महता महता सद्देणं
आलापको द्रुतनाट्यविधेः पूर्व विद्यते । राय- रति' इति पाठो वृत्ती व्याख्यातोस्ति । पसेणइय (सू० २८१) सूत्रेपि एवमेव विद्यते। १२. अप्येकका देवाश्चत्वार्यपि सिंहनादादीनि ४. पेज्ज (ता)।
___ कुर्वन्ति (मवृ)। ५. उक्खित्तयं पवत्तयं (क, ख, ग, ट, त्रि)। १३. थक्कारेंति अप्पेगतिया देवा पुक्कारेंति (क,ख, ६. पाउंतियं सामंतोवणिवातियं (क,ख,ग,ट,त्रि)। ग,ट,त्रि)। ७. प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ भिन्नवाचनायाः पाठो १४. X (मयू)। व्याख्यातोस्ति । द्रष्टव्यं वृत्ति पत्र २४७,२४८। १५. अप्येककास्त्रीण्यप्येतानि कुर्वन्ति (मवृ)। रायपसेणयसूत्रे (२८१) पि पदानां व्यत्ययो
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