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________________ दिन्न-दीविग दिन्न [दत्त] जी० ३१३७२ ३६३,३७३,३८३,३६६,६४७,६६६,६७३, दिप्पंत [दीप्यमान] ओ० ६३. रा० १३३. ६७४,६८४,७२३,८८२,८८५,८८८८६५, जी० ३।३०३,५८६,५६०,११२२ ६१०,६१४ से ६१६,६१६ से १२२ दिप्पमाण [दीप्यमान ] ओ० ६५. जी० ३१५६१ दिसिव्वय [दिग्वत] ओ० ७७ दिवड्ड [ द्वयर्ध, व्यपार्ध | जी० २।७३; ३।२३८, दिसौभाग [दिग्भाग रा० १०,१२,१८,५६,६५, २४३ २७६,६७०. जी. ३१४४५ दिवस | दिवस] ओ० १४४. रा०८०२. दिसीभाय [दिग्भाग] ओ० २. रा० २,६७८ जी० ३१८३८।१८,८४१ दीणारमालिया [दीणारमालिका] जी० ३।५६३ दिव्व [दिव्य] ओ० २,४७,६४,७२. रा० ७,६, दीव [द्वीप] ओ० १६,२१,४८,५४,१७०. रा० ७, १०,१२,१७ से १६,२४,३२,४५ से ५०,५६,५७, १०,१२,१३,१५,५६,१२४,२७६,६६८. ६३,६५,७३,७६,७८ से ६५,१०० से ११३. जी० ३१८६,२१७,२१६ से २२३,२२५ से ११८ से १२०,१२२,१७३,२०६,२११,२७६, २२७,२५७,२५६,२६०,२६६.३००,३५१, २८१,२८५,२६३ से २६६,३००,३०५,३१२, ४४५,५६६,५६० से ५७७,६३८,६६०,६६८, ३५१,३५५,५६४,६६७,७५३,७६७. ७०१ से ७०४,७०८,७११,७१५ से ७१६, जी० ३१८६,१७६.१७८,१८०,१८२,२८५, ७२३,७३६,७३६,७४०,७४२,७४५,७५०, ३५०,३७२,४४५,४४६,४५१,४५७ से ४६२, ७५४,७५५,७६०,७६२,७६४ से ७६६,७६८ ४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५४७,५५४, से ७८०,७६५ से ८००,८०२ से ८०४,८०६, ५६३,६४६,८४२,८४५,१०२४,१०२५, ८०८ से ८१०,८१४,८१६,८१७,८२१ से दिव्वा [ दिव्याक ] जी० १११०८ ८२५,८२७,८२६ से ८३१,८३८।२३,२६, विसा [दिशा] ओ० ४७,७२,७६ से ८१. ८४८,८५१,८५६,८५७,८५६,८६२,८६३, रा० २६४,६८८. जी० ३।३६,७५२,७५३, ८६५,८६८,८६६,८७१,८७४,८७५,८७७, १०१८,१०१६,१०२१ ८८० से ८८२,६१८,६२५,६२७ से १३५, दिसाकुमार [दिशाकुमार ओ० ४८ ६३७ से १४०,६४३,६४५, ६५० से १५४, दिसादाह [ दिशादाह ] जी० ३।६२६ ९७२ से ६७५,१००१,१००७,१०२२,१०३६, दिसापोक्खि |दिशाप्रोक्षिन् ] ओ० ६४ १०८०,११११ दिसासोत्थिय | दिशास्वस्तिक] ओ०१६ दोव [दीप] रा० ७७२ दिसासोवत्थिय दिशासौवस्तिक] रा० १४६. दीवग [द्वीपक जी० ३१७७० जी० ३.३१६,५६६ दीवचंपग [दोपचम्पक] रा० ७७२ दिसासोवत्थियासण दिशातौवस्तिकासन] दीवचंपय [ दीवचम्पक] रा० ७७२ रा० १८१,१८३,१८५. जी. ३१२६३,२६५, दीवणिज्ज [दीपनीय] जी० ३।६०२,८६०,८६६, २९७,८५७ ८७२,८७८ दिसि | दिश्] रा० १६,४४,६१,१२०,१७०,१७५, दीवसिहा [ दीपशिखा| जी० ३१५८६ २०२,२१०,२१२,२२४,२३४,६६४,६६४, दीवायण [दी रायन] ओ०६६ ६६७,७१७,७७७,७८७. जी० ११४६,५६, दीविच्चग [द्वीपग] जी० ३१७८० ८२,८७,६६,१०१, ३।३४,३५,२८७,३५८, दीविग [द्वीपिक] जी० ३१६२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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