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________________ ५२५ ६६२-६६४ ०. ७१३ ०० १२ ७६४ २१ जाव पज्जुवासइ । धम्मकहाए जाव तए णं ७१६,७१७ करयल जाव कट्ट ७२३ करयल जाव वद्धावेंति करयल जाव वढावेत्ता ७०८ करयलपरिग्गहियं जाव एवं ७०७ करयलपरिग्गहियं जाव कटु ६८३ करयलपरिग्गहियं जाव पच्चप्पिणति करयलपरिग्गहियं जाव पडिसुणेइ करयलपरिग्गहियं जाव वद्धावेत्ता ७२,६८६ करेमि..."णो ७६४ कलकलरवेणं... एगदिसाए जहा उववाइए जाव अप्पेगतिया ६८८ कलसाणं जाव अट्ठसहस्सेणं २८० कल्लं जाव तेयसा ७८८ कालागरुपवर जाव चिट्ठति २३६ किण्हचामरज्झए जाव सुक्किल्लचामरज्झए किण्होभासा"...... १७० किण्होभासे जाव पडिरूवे कुसुमियाओ सव्वरयणामईओ कोडुबियपुरिसा जाव खिप्पामेव कोरव्वा जाव इभा कोहं जाव मिच्छादसणसल्लं खुड्डागमहिंदज्झए तं चेव गिज्जइ जाव णो रमिज्जइ ७८३ गिण्हित्ता तहेव जेणेव २७९ गोसीसचंदणेणं..."पुप्फारुहणं आसत्तोसत्त..."धवं चरमाणे..."समोसढे जाव विहरइ ७१३ चवलाए जाव तिरियमसंखेज्जाणं जाव वीतिवयमाणा २७६ चालेइ जाव णो गंधवो ७७१ चित्तमाणदिए जाव परमसोमणस्सिए छिज्जइ जाव तया णं ७८४ छिडेइ वा जाव अणुपविट्ठा ७५६ छिड्डेइ वा जाव निग्गए ७५४ छिड्डेइ वा जाव राई ७५४ से ७५६ छिड्डेइ वा... जेणं जणसण्णिवाए इ वा जाव परिसा पज्जुवासइ ६८७ ७०३ १४५ वृत्ति, पृष्ठ २८६ २७६ ওওও १३२ वृत्ति, पृष्ठ ८० ओ०४ ओ०४ ओ०५ ६८२ वृत्ति, पृष्ठ २८५ ओ० ११७ ३५२ ७८३ ७६६ ३५४ २७६ २६४ ७१३ १० ७७१ ७८४ ७५६ ७५४ ७५७ ७५४ ओ० ५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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