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________________ ४०७ पट्ट-पडिपाद ६७१ पट्ट [प्रष्ठ] जी० ३।११८ --पडिच्छए. ओ०२ पड [पट] ओ० २३,६३ पडिच्छण्ण [प्रतिच्छन्न ] जी० ३१५८१ पडत [पतत्] जी० ३।५६० पडिच्छमाण [प्रतीच्छत् ] ओ० ६६ पडग [पटक] रा० ७५३ पडिच्छयण [प्रतिच्छदन] रा० २४५. जी० ३।३११, पडबुद्धि [पटबुद्धि] ओ० २४ पडल [पटल ] रा० १२,१५४,१७४. पडिच्छायण [प्रतिच्छादन] रा० ३७ जी० ३।११६,२८६,३२८,३३०,३५५।३ पडिच्छिय [प्रतीष्ट] ओ० ६६. रा० ६६५ पडलग [पटलक] रा० १२,१५७,२५८,२७६. पडिजागरमाण प्रतिजाग्रत् ] रा० ७६३ जी० ३।४१६,४४५ पडिजागरेमाण [प्रतिजाग्रत्] रा०५६ पडह [पटह] ओ० ६७. रा०१३,७७,६५७. पडिजाण [प्रतियान] ओ० ६२ जी०३।१७८,४४६,५८८ पडिण [प्रतीचीन ] जी० ३३५७७,१०३६ पडागा [पताका] ओ० ५५,६४. रा०३२,५०,५२, पडिणिकास [प्रतिनिकाश] रा० १४६. जी० ५६,१३७,१७३ ,२३१,२४७,६८१.जी०११८०, ३।२२२ । ८२; ३।२८५,३०७,३७२,३६३ पिडिणिक्खम [प्रति+-निस्+क्रम्]-पडिणिपडागाइपडागा [पताकातिपताका] ओ० २,१२, खमइ. ओ०२०. रा०२८६. जी० ३१४५४. ५५. रा० २३,२८१. जी० ३।२६१ ___पडिणिक्खमंति रा० १२. जी० ३।४४५ पडागातिपडागा [पताकातिपताका] पडिणिक्खमित्ता [प्रतिनिष्क्रम्य] ओ०२०. रा० जी० ३।४४७ १२. जी० ३।४४५ पिडिकप्प [प्रति+कल्पय् ]-पडिकप्पेइ. परिणिक्खिव [प्रति---नि-क्षिप्] ---पडिणिओ० ५७–पडिकप्पेहि. ओ० ५५ क्खिवइ. रा० २८८. जी० ३३५१६.-पडिणिपडिकप्पिय [प्रतिकल्पित] ओ० ६२ क्खिवेइ, जी० ३१४५४ पडिकप्पेत्ता [प्रतिकल्प्य ] ओ०५७ पडिणिक्खिवित्ता प्रतिनिक्षिप्य रा०२८८. जी० पडिकूल [प्रतिकूल ] रा० ७५३,७६७,७६८,७७६, ३१५१६ पडिणिविखवेत्ता [प्रतिनिक्षिप्य] जी० ३।४५४ ७७७ पडिक्कत [प्रतिक्रान्त] ओ० ११७,१४०,१५७, पिडिणियत्त प्रति+नि-+वृत्-पडिणियत्तइ. १६२. रा० ७६६ ओ० १७७-पडिणियत्तंति. जी. ३७४६ पडिक्कमणारिह [प्रतिक्रमणार्ह ] ओ० ३६ पडिणियत्तित्ता [प्रतिनिवृत्य] ओ० १७७ पडिणीय [प्रत्यनीक] ओ० १५५. जी० ३।६१२ पडिगय [प्रतिगत ] ओ०७६ से ८१. रा०६१, पडिदुवार [प्रतिद्वार] ओ० २,५५. रा० ३२,२८१. १२०,६६४,६६७,७१७,७२२,७७७,७८७ पडिगाहित्तए [प्रतिग्रहीतुम् ] ओ० १११ जी० ३।३७२,४४७ पडिग्गह [प्रतिग्रह] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, पिडिनिक्खम [प्रति +निस् ---ऋम्]-पडिनिक्ख७५२,७८६ मइ. रा०७१०.-पडिनिक्खमंति. रा० २७६. पडिग्गाहित्तए [प्रतिग्रहीतुम् ] ओ० ११२ -पडिनिक्खमति जी०३१४४६ पडिचंद [प्रतिचन्द्र ] जी० ३१६२६,८४१ पडिनिक्खमित्ता [प्रतिनिष्क्रम्य रा०२७६. जी. पडिचार [प्रतिचार] ओ०१४६. रा० ८०२ ३२४४६ पिडिच्छ [प्रति+इष्]-पडिच्छइ. रा० ६८४ पडि पाद [प्रतिपाद] जी० ३।४०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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