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________________ ६३८ णिग्गह-णियाणमयग णिग्गह [नि ग्रह ] ओ० २५ णिण्हग [निह्नव] ओ० १६० णिग्घात [निर्घात] जी० ३।६२६ ‘णिद्दा [नि --द्रा] -णिदाएज्ज. जी० ३।११८ णिग्याय [ निर्घात ] जी० ११७८ गिद्ध [स्निग्ध] ओ० ४,१३,१६,४७. रा०१७०, णिग्घायण [निर्घातन ] ओ० २६ ७०३. जी० ३।२२,२७३,५८६,५६६,५६७, णिग्घोस [निर्घोष] ओ० ६७. रा० १३. १०६८ जी० ३।४४६,४५७ गिद्धत [निर्मात ] ओ० १६.४७ णिघस [निकष ] ओ० ८२ णिद्धच्छाय [स्निग्धच्छाय ] ओ० ४. रा० १७०, णिचय [निचय ] ओ० २३. जो० ३।२८४ ७०३. जी० ३१२७३ णिचिय [निचित] रा० १२,७५८,७५६. णिद्धोभास [ स्निग्धावभास] ओ० ४. रा० १७०, जी० ३.५६६ ७०३ जी० ३।२७३ णिच्च [नित्य] ओ० ५,८,१०,११. रा० १४५, णिधि [निधि ] जी० ३।६३७ २००. जी० ३।५६,११६,२६८,२७२,२७४, णिप्पंक [निष्पङ्क] ओ० १६४. जी० ३।२६१,२६६ ३५०,६३७,१७०२,७२१,७३८,७६०,७६३, णिब्भय [निर्भय ] ओ० ४६ ८०८,८१६,८२६,८३३,८३६,८३८।१७,८४०, । णिभिज्जमाण [निभिद्यमान] जी० ३।२८३ ८५४,९२३ णिभ [निभ] ओ० ६४. जी० ३.५९६ णिच्चमंडिया [नित्यमण्डिता] जी० ३१६६६ णिमग निमग्न ] ओ० १६. जी० ३:५९६ णिच्चालोय [नित्यालोक] जी० ३।१०७७ णिमिसिय |निमिषित] जी० ३।११८ णिच्चुज्जोय [नित्योद्योत] जी० ३।१०७७ णिम्मच्छ [ निर्मत्स्य ] जी० ३।९६५ णिच्छिड्ड [निश्छिद्र ] रा० ७५५,७७२ जिम्मल [निर्मल ] ओ० १६,४७,१८३,१८४,१६४. णिच्छिण्ण [निच्छिन्न] ओ० १६२१ __जी० ३।२६१,२६६,२६६,३०० णिज्जरण [निर्जरण] ओ० ४६ णिम्मा [नेमा] रा० १६,१३० णिज्जरा [निर्जरा] ओ० ७१,१६६,१७० णिम्माय [ निर्मात] ओ०६३ णिज्जा [निर्-या] ---णिज्जंतु. ओ०६२. णियइपब्वय | नियतिपर्वत ] जी० ३।२६२ णिज्जाहिस्सामि. ओ० ५५ /णियंस [ निवस्---णियंसेइ. जी. ३१४५१ णिज्जाणमग निर्माणमार्ग] ओ० ७२. रा०५६ ।। णियंसण ]निवान] ओ० ४६ णिज्जामय [निर्यामक] ओ० ४६ णियंसेत्ता [निवस्य] जी० ३।४५१ णिज्जास निर्यास] जी० ३।५८६ णियग निजक] ओ० ७०,१५०. रा० १३,७५१, णिज्जत [नियुक्त] ओ० ४८,४६,६४. रा० १७३, ८०२,८११ णियत्थ [दे० ] रा० ६६,७० णिज्जह [नि!ह] जी० ३।५६४ णियम [नियम] ओ० ३२. जी० ११५८,५६,७८, णिज्जोय [नियाग रा० ५४,६६,७० ६१,६६,१३३,१३६, ३.१०४,११०७ णिठुर निष्ठुर] ओ० ४० णियमसा | नियमसात् ] ओ० १६५:१० णिडाल ललाट] ओ० १६. रा० १३३. णियय [लियत रा० २००. जी० ३१५६,३५० जी० ३१५६७,११२२ णियया [नियता] जी० ३।६६६ णिडालपट्टिया ललाटपट्टिका] रा० २५४. णियलबद्धग [निगडबद्धग] ओ०६० जी० ३४१५ णियाणमयग [निदान मृतक] ओ ९० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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