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________________ ६३६ णिरंतर-णिहि णिरंतर [निरन्तर] ओ० १४. रा० ६७१ ७५२,७८६ जी० ३.२५६,५६७ णिध्वइकर [निर्वृतिकर] रा० २८८. जी० ३।३०२, णिरंतरित [निरन्तरित | जी० ३।३०० णिरय [निरय] ओ० ४६. जी० ३।११६ णिवुतिकर [निर्वृतिकर] रा० ४०,१३२. णिरयावास [निरयावास] जी० ३।१२ ___जी० ३।२८३, २८५.३८७ णिरयुद्देस [निरयोद्देश ] जी० ३।१०८० णिन्वय [ निर्वृत] ओ०१ णिरवयव [निरवयव ] जी० ३ २५० णिव्वेयणी [निर्वेदनी] ओ० ४५ णिरवकंख | निरवकांक्ष ] i० ४६ णिसंत [निशान्त ] रा० १५ णिरातंक [निरातङ्क] जी० ३३५६८ णिसग्गरुड [निसर्गरुचि] ओ० ४३ णिरावरण [निरावरण] रा० ८१४ णिसढ [ निषध] रा० २७६. जी० ३१७९५ णिरुवद्दव [ निरुपद्रव] ओ० १ णिसण्ण [निषण्ण] ओ० ६३. जी० ३।३८४ णिरुवलेव [ निरुपलेप] ओ० १६. जी० ३।५६६ णिसम्म [निशम्य ] ओ० २१. रा० १६. णिरुवहत [निरुपहत] जी० ३।५६२ ___ जी० ३।४४३ णिरुवहय [निरुपहत ] जी० ३।५६७ णिसह [निषध] जी० ३।४४५ णिरोह निरोध | ओ० ३७ इणिसिर [नि-|-सृज] ----णिसिरंति. जी० ३।४४५ णिल्लेव [निर्लेप ] जी० ३।१६५ णिसीइत्ता [निषद्य) ओ० ५४ इणिवाड [नि--पात ].--णिवाडेद. जी० ३।४५७ णिसीद | निषद् -निसंदति. जी० ३१३५८ णिवाय [निपात ] ओ० १७० णिसीधिया [निषीधिका, नैषेधिकी] जी० ३।३०३. णिवाय [निवात] रा० १२३,७५५,७७२ ३०५,३०६,८८६ णिवायगंभीर [ निवातगम्भीर] रा० १२३,७५५, इणिसीय [निषद् ]-णिसीएज्ज. ओ. १८० -णिसीयइ. ओ० ५४---णिसीयंति. णिवुड्डि { निवृद्धि] जी० ३।८४१ । रा० ४८. जी० ३१२१७ इणिवेद | नि । वेदय ]--णिवेदे इ. ओ० १६ .... णिसीहिया [निषीधिका, नैषेधिकी। रा० १३२ णिवेदेति. ओ०१७--णिवेदेमि. ओ० २० से १३४,१३६,१३७. जी. ३।३०१,३०२, णिध्वण | निव्रण] ओ० १६. जी० ३।५६७ ३०४,३०७,३१५,३५५ णिवत्त [निवृत्त ] ओ० १४४. रा० ८०२ णिस्संकिय [निःशङ्कित] ओ० १२०,१६२. Vणिवत्त निर-वर्तय् --णिवत्तेइ. रा० ७७२ रा०६९८,७५२,७८९ णिव्वत्तिय [निवतित ] जी० ३।५६२ णिस्सा | निश्रा] जी०१:५८, ७३,७८,८१ णिवाघातिम | नियाघातिन् निर्व्याघातिम] हिस्सास [निःश्वास] ओ० १५४,१६५,१६६ जी० ३।१०२२ णिस्सिय [निःसृत] जी० १७८ णिव्वाघाय [निर्व्याघात] ओ० १५३,१६५,१६६. णिस्सेयस [निःश्रेयस्] ग० २७५. जी० ३१४४१, रा० ८०४,८१४. जी. १८२ ४४२ णिव्वाणमग [निर्वाणमार्ग] अं० ७२. रा० ८१४ णिहत निहत] जी० ३।४४७ णिव्वादित [निर्वाटिन] जी० ३।८७८ ।। णिहय [निहत रा० ६,१२ णिव्वितिगिच्छ निविचिकिला] रा०६६८, णिहि [निधि] जी० ३१७७५,८४१ ७७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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