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________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती तिरिक्खजोणिय उद्देसओ पढमो तं जहा - १३०. से किं तं तिरिक्खजोणिया ? तिरिक्खजोणिया पंचविधा पण्णत्ता, एगिदियतिरिक्खजोगिया बेइंदियतिरिक्खजोणिया तेइंदियतिरिक्खजोणिया चउरिदियतिरिक्खजोणिया पंचिदियतिरिक्खजोणिया य ॥ १३१. से किं तं एगिदियतिरिक्खजोणिया ? एगिदियतिरिक्खजोणिया पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा -- पुढिवकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया जाव वणस्सइकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया || २७६ १३२. .से किं तं पुढविक्काइयएगि दियतिरिक्खजोगिया ? पुढविकाइयएगिदियतिरिक्खया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- सुहुमपुढ विकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया बादरपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया य ॥ १३३, से किं तं सुमपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया ? सुहुमपुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- पज्जत्तसुहुमपुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोया अपज्जत्तमढविकाइयए गिदियतिरिक्खजोणिया । से तं सुहमा || १३४. से कि तं बादरपुढ विकाइयएगि दियतिरिक्खजोणिया ? बादरपुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तबादरपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया अपज्जत्तबादरपुढविका इयएगिंदियतिरिक्खजोणिया । से तं बादरपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया । से तं पुढविकाइयएगिंदिया || १३५. से किं तं उक्काइएगिदियतिरिक्खजोणिया ? आउक्काइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, एवं जहेव पुढविकाइयाणं तहेव आउकायभेदो। एवं जाव वणस्सतिकाइया । से तं वणस्सइकायएगिदियतिरिक्खजोणिया || १३६. से किं तं बेइंदियतिरिक्खजोणिया ? बेइंदियतिरिक्खजोणिया दुविधा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगबेइंदियतिरिकखजोणिया अपज्जत्तगबेइं दियतिरिक्खजोणिया । से तं इंदयतिरिक्खजोणिया । एवं जाव चरिदिया || १३७. से किं तं पंचेंदियतिरिक्खजोगिया ? पंचेंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया || १३८. से किं तं जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - संमुच्छिमजलयर पंचेंदियतिरिक्खजोणिया य गन्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य ।। १३६. से किं तं संमुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? संमुच्छिमजलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगसंमुच्छिमजलय रपंचेंदियतिरिक्खजोणिया अपज्जत्तगसंमुच्छिमजलयरपंचेंदियति रिक्खजोणिया । से तं संमुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया || १४०. से किं तं गब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? गब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविधा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगगब्भवक्कंतियजलयर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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