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________________ सच्च-सह ७४७ सच्च [सत्य ] ओ० २,२५,७२,११८. रा०६८६ सणिच्छर [शनैश्चर] ओ० ५० सच्चमणजोग [ सत्यमनोयोग] ओ० १७८ सण्णद्ध [सन्नद्ध] ओ० ५७. रा० ६६४,६८३ सच्चवइजोग [सत्यवाग्योग] ओ० १७६ सण्णय [सन्नत] ओ० १६. जी० ३१५९६,५६७ सच्चामोसमणजोग [सत्यमृषामनोयोग] मो० १७८ सण्णव [संज्ञापय]-सण्णवेइ. रा० ७६६ सच्चामोसवइजोग [सत्यमृषावाग्योग] ओ० १७६ सण्णा [संज्ञा] रा० ७४८ से ७५०,७७३. सच्चोवात [सत्यावपात] ओ० २ ओ० १११४,२०,८६,६६,१०१,११६,१२८, सच्छंद [स्वच्छन्द] ओ० ४६ २३६; ३।१२८।२ सच्छड [संस्तृत] रा० ७७४ सिण्णाह [सं-नहसण्णाहेहि. ओ०५५ सजोगि [सयोगिन् ] ओ० १८१. जी० ६।२१,४६, सण्णाहिय [सन्नद्ध] ओ० ६२ ४८,५२ सण्णाहेत्ता [संनह्य] ओ० ५६ सज्ज [सज्ज] ओ० ६४. रा० १७,१८,१७३, सण्णि [संज्ञिन्] ओ० १५६,१८२. रा० १।१४, ६८१,६८२,६६१. जी० ३।२८५ २४,८६,६६,१०१,११६,१३३,१३६; ६।१०१, सज्ज [सद्यस्] जी० ३१८७२ १०२,१०५,१०८ सिज्ज [सस्ज् --सज्जावेइ रा०६८०. -सज्जिहिति. ओ० १५०. रा०८११. सणिकास [सन्निकाश] जी० ३।३३३,३८१,४१७, -सज्जेइ. रा० ६६६ ८६४,११२२ सज्जावेत्ता [सज्जयित्वा] रा०६८० सणिखित्त [सन्निक्षिप्त] जी० ३.१०२५ सणिणाय [सन्निनाद] ओ० ६७. रा० १३, सज्जिय [सज्जित] जी० ३।५६२ सज्जीव [सजीव] ओ० १४६. रा० ८०६ ६५७. रा० ३।४४६ सज्जता [सज्जित्वा] रा० ६६६ सण्णिपंचिंबिय [संज्ञिपञ्चेन्द्रिय] ओ० १५६ समाय [स्वाध्याय] ओ० ३८,४२ सण्णिभ [सन्निभ] रा० १६,४७,६३,६५. सट्ठाण [स्वस्थान] जी० ६।१६६,२०८ जी० ३।५९६ सण्णिमहिय [सन्निमहित] ओ० १ सट्टि [षष्टि] ओ० १४०. रा० २३१. सण्णिवाइय [सन्निपातिक] ओ० ७१,११७. जी० ३३११८ रा०६१,७६६ सद्वितंत [षष्ठितन्त्र] ओ० ६७ सण्णिविट्ठ [सन्निविष्ट] ओ० १. रा० १७,१८, सडंगवि [षडङ्गविद् ] ओ० ६७ २०. जी० ३।२८८ सड्डइ [श्राद्धकिन्] ओ० ६४ सण्णिवेस [सन्निवेश] ओ० ६८,८६ से ६३,६५, सण [सन] ओ० १३ ९६,१५५,१५८ से १६१,१६३,१६८. सणंकुमार [सनत्कुमार] ओ० ५१,१६०,१९२. रा० ६६७ जी० २।६६,१४८,१४६; ३।१०३८,१०४५, सण्णिवेसदाह [सन्निवेशदाह] जी० ३।६२६ १०४६,१०५८,१०६६,१०६८,१०८८,१०६४, सण्णिसण्ण [सन्निषण्ण] रा०८,४७,६८,२७७, ११०२,११११,११२६ २८३. जी० ३४४३,४४६,४५२,५५७,८३६ . सणप्फई [सनखपदी] जी० २।६।। सणिहिय [सन्निहित] ओ० २ सणप्फय [सनखपद] जी० ११०३ सण्ह [श्लक्ष्ण] ओ० १२,१६४. रा० २१ से २३, सणिचर [शनैश्चर] जी० ३१६३१ ३२,३४,३६,३८,१२४,१३०,१३७,१४५,१५७, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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