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________________ ७४८ सण्हपुढवी-सद्द सत्तम [सप्तम] ओ० १७४,१७६,१८६ सत्तमा [सप्तमी] जी० ३१२,४,७२,७५,७७,६१, १७४,२६१. जी० ११५७,५८, ३।२६१,२६२, २६६,२६६,२८६,२६०,३००,३०७,३६५, ४२५,४५७,५६२,६३६,८३६ सहपुढवी [ श्लक्ष्णपृथ्वी] जी० ३।१८५,१८६ सत [शत] रा० १२६. जी० ३८२,१७२,१७३, १६७,२२६,२४६,२५५,२५७,२६०,२८५, ३३५,३५३,३५४,३५७,३५८,३६१ ३७२, ४१५,४१६,४४२,५७७,५६८,६३२,६३६, ६४६,६४७,६४६,६५२,६६१,६६६,६६८, ६७३,६७४.६७६,७०३,७१४,७२४ से ७२६,७२८,७३३,७३६,७५०,७५६,७८८, ७६४,७६५,७६८,८०६,८१२,८१५,८२०, ८२७,८३०,८३२,८३५,८३७,८३६,८४१, ८४५,८८२,८८४,८८७,६०१,६०८,६११, ६१८,६७०,१००० से १००४,१००६,१०१६, १०३०,१०३८,१०४४,११३७; श२६; ६।११,७।१६, ६।८६,१०२,२१७ सतपत्त [शतपत्र] रा० २३. जी० ३।२५६,२६१ सतसहस्म [शतसहस्र ] जी० ११५८; ३।२२,२७, ६७ से ७२,८६,१६१,१६७,१६६,१७४,२५७, २६६,६०२,६५८,७०३,७०६,७१४,७२३, ७६४,७६५,७९८,८२३,८३६,६१०,६६६, ६६८,१०३८,१०८७,१०८८,११२८ सताउ [शतायुष ] जी० ३३५८६ सति [स्मृति ] जी० ३।११८,११६ सतिय [शतिक ] जी० ३।६७३,६७४ सत्त [सप्तन् ] ओ० २१. रा०७. जी० १६५ सत्त [सत्व ] जी० ३।१२७,७२१,६५५,११२८, ११३० सत्तग्ग [शक्त्यग्र] जी० ३८५ सत्तघरंतरिय [सप्तगृहान्तरिक] ओ० १५८ सत्तट्टि [मप्तषष्टि] जी० ३।७२२ सत्तणउय [सप्तनवति] जी० ३।२२६ सत्ततीस [सप्तत्रिंशत् ] जी० ३।३५१ सत्तपण्ण [सप्तपर्ण] रा० १८६ सतमासिया [सप्तमासिकी] ओ० २४ सत्तमी [ सप्तमी] जी० ३१३६,८८,११११।३ सत्तरस [सप्तदशन् ] जी० ३।३५६ सत्तरि | सप्तति] जी० ३।२४६ सत्तवण्णव.सय [सप्तपर्णावतसक] रा० १२५ सत्तवण्णवण [सप्तपर्णवन] रा० १७०. जी० ३।५८१ सत्तविष [सप्तविध] जी०२।१००, ३।२६।१८२ सत्तविह [सप्तविध] ओ० ४०. जी० १११०,५८, ____६२, ६।१,१२, ६।१८५,१६६ सत्तसत्तमिया | सप्तसप्तकिका] ओ० २४ सत्तसिक्खावइय [सप्तशिक्षावतिक] ओ० ५२,७८ सत्ताणउति [सप्तनवति ] जी० ३।१०३८ सत्तावीस [सप्तविंशति ] ओ० १७०. रा० १८८. जी० ३८२ सत्तावीसतिगुण [सप्तविंशतिगुण] जी० २।१५१ सत्तावीसय [सप्तविंशति] जी० २।१५१ सत्ति [शक्ति] ओ०६४। सत्तिवण्ण [सप्तपर्ण ] ओ०६,१०. जी० ३१३५६, ३८८,५८३ सत्तिवण्णवण [सप्तपर्णवन] जी० ३।३५८ सत्तु [शत्रु] ओ० १४. रा० ६७१ सत्तुपक्ख [ शत्रुपक्ष] जी० ३।४४८ सत्य [शास्त्र] ओ०६७ सत्य [शस्त्र] रा ० ७६१ सत्थवाह [सार्थवाह] ओ० १८,४६,५२. रा० ६८७,६८८,७०४,७५४,७५६,७६२,७६४. जी० ३।६०६ सत्थोवाडियग | शस्त्रावपाटितक] ओ०६० सदारसंतोस [स्वदारसन्तोष] ओ० ७७ सदेस [स्वदेश] ओ० ७०. रा० ८०४ सद्द [शब्द] ओ० ६,१५,६३,६४,६७,६८,१६१, १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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