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________________ ७४६ संवुय-सची सक्कय [संस्कृत] जी० ३ ५६५ सक्करप्पभा [शर्कराप्रभा] जी० २।१०० ; ३।४, ११,२०,२१,२७,३१,३२,३४,४०.४३,४४,४६, ६८,१०७ सक्करा [शर्करा] रा० ६,१२. जी० ३।६०१, ६२२ संवय [संवृत] रा० ३७,२४५. जी० ३।३११ संवेग | संवेग] ओ०६६ संवैयणी [संवेदनी ] ओ० ४५ संवेल्लित [दे०] जी० ३।३०३ संवेल्लिय [दे०] रा० ६६,७०,१७३ संसद्धचरय [संसृष्टचरक ओ० ३४ संसत्त [संसक्त] ओ० ३७. जी० ३१८४ संसार [संसार] ओ० २६,४६,१६५ संसारअपरित्त [संसारापरीत ] जी०६७६ संसारपरित्त [संसारपरीत] जी० ४७६,७८,८४ संसारविउस्सग्ग [संसारव्युत्सर्ग] ओ० ४४ संसारसमावण्ण [संसारसमापन्न ] जी० १।६,१० संसारसमावण्णग संसारसमापन्नक] जी० १११०, ११,१४३; २११,१५१ : ३।१,१८३,११३८ ; ४।१,२५, २१,६०, ६१,१२,७११,२३; ८।१,५; ६३१.७ संसारसमावण्णय ] संसारसमापन्नक] जी० ११० संसाराणुपेहा [संसारानुप्रेक्षा] ओ० ४३ संसारापरित्त [संसीरापरीत] जी०६।८१,८६ ।। संसुद्ध [संशुद्ध] ओ० ७२ सिसेय [सं-+-स्विद् ] -संसेयंति. जी० ३।७२६ संहत [संहत] जी० ३।५६७ संहरण [संहरण] जी० २।३० से ३४,५७ से ६१, ६६,१३३ संहित' [संहित] जी० ११७२।३; ३३५६६,५६७ संहिय [संहित] रा० १७३. जी० ३१५६७ सक [स्वक] ३७६५,७७० । सकक्कस [सकर्कश] ओ० ४० सकसाइ [सकपायिन् ] जी० ६।२८ सकाइय [सकायिक] जी०६।१८ से २० सकिरिय [सक्रिय] ओ० ४०,८४,८५,८७ सक्क [शक] जी० ३।६२०,६२१,६३७,१०३६ से १०४२,११११ १. संहितौ- मध्यकायापेक्षया विरलौ सक्करापुढवी [शर्करापृथ्वी] जी० ३१८५,१६० सिक्कार [सत्+कृ] ...सक्कारिस्संति रा०७०४ --- सक्कारेइ. ओ० २१. रा०६८४ ---सक्कारेज्जा. रा० ७७६ --सक्कारेमि. रा० ५८ ----सक्कारेमो. ओ० ५२. रा० १०..-सक्कारेस्संति. रा०८०२. -सक्कारेहिति. ओ० १४७ सक्कार गत्कार ओ० ४०,५२. रा० १६,६८७, ६८६,८०३,८०५. जी० ३१६०६ सक्कारणिज्ज [सत्कारणीय ] ओ० २. रा० २४० __ २७६. जी० ३।४०२,४४२ सक्कारित्तए [सत्कर्तुम् ] ओ० १३६. रा०६ सक्कारेत्ता [सत्कृत्य] ओ० २१ सक्कुलिकण्ण [शष्कुलिकर्ण] जी० ३।२१६,२२५ सक्कुलिकण्णदीव [शष्कुलिकर्णद्वीप] जी० ३।२२५ सग [स्वक] जी० ३१७६८,७६९,७७२,७७३,७७६ से ६७६,११११ सगड [शकट] ओ०१००,१२३. जी० ३।२७६, ५८१,५८५,६१७,६३१ सगडवूह [शकटब्यूह] ओ० १४६. रा० ८०६ सगल [सकल ] जी० १३७२, ३।५६२ सगल [शक ल] जी० ३।५९६ सगेवेज्ज [सवेय] रा० ७५४,७५६,७६४ सग्ग [सर्ग] ओ०६८ सचित्त [सचित्त] ओ० २८,४६,६९,७०. रा० ७७८ सिचित्तीकर [सचित्तीकृ]- सचित्तीकरेइ. रा० ७७२ सची [शची] जी० ३।९२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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