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________________ १८८ रायपसेणइयं पण्णओ उवमा, इमेणं पुण' कारणेणं णो उवागच्छतिएवं खलु भंते! अहंअण्णया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अणेगगणणायक-दंडणायगराईसर-तलवर- माडंबिय-कोडुबिय- इब्भ-सेट्टि - सेणावइ- सत्थवाह-मंति- महामंति-गणगदोवारिय-अमच्च-चेड-पीढमद्द-नगर-निगम-दूय-संधिवालेहिं सद्धि संपरिवडे विहरामि। तए णं मम गगरगुत्तिया ससक्खं 'सहोढं सलोइं” सगेवेज्ज अवउडगबंधणबद्धं चोरं उवणेति । तए णं अहं तं पुरिसं जीवंतं चेव अओकुंभीए पक्खिवावेमि, अओमएणं पिहाणएणं पिहावेमि, अएण य तउएण य कायावेमि, आयपच्चइएहिं पुरिसेहिं रक्खावेमि।। तए णं अहं अण्णया कयाइं जेणामेव सा अओकुंभी तेणामेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता तं अओकभि उग्गलच्छावेमि', उग्गलच्छावित्ता तं पुरिसं सयमेव पासामि, णो चेव णं तीसे अओकुंभीए केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जओ णं से जीवे अंतोहितो बहिया णिग्गए । जइ णं भंते ! तीसे अओकुंभीए होज्ज केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जओ णं से जीवे अंतोहितो बहिया णिग्गए, तो णं अहं सहहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा- अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं। जम्हा णं भंते ! तीसे अओकुंभीए णत्थि केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा, राई वा, जओ णं से जीवे अंतोहितो बहिया निग्गए, तम्हा सुपतिट्ठिया मे पइण्णा जहातज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं ॥ जीव-सरीर-अण्णत्त-पदं ७५५. तए णं केसी कुमार-समणे पएसिं रायं एवं वयासी पएसी ! से जहाणामए कडागारसाला सिया-दुहओ लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा णिवाया णिवायगंभीरा । अह णं केइ परिसे भेरि च दंडं च गहाय कूडागारसालाए अंतो-अंतो अणुप्पविसति, अणुप्प विसित्ता तीसे कडागारसालाए सव्वतो समंता घण-निचिय-निरंतर-णिच्छिड्डाइं दुवारवयणाई पिहेइ। तीसे कडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए ठिच्चा तं भेरि दंडएणं महया-महया सद्देणं तालेज्जा। से णणं पएसी ! से सद्दे णं अंतोहितो वहिया णिग्गच्छइ ? हंता णिग्गच्छइ। अत्थि णं पएसी ! तीसे कूडागारसालाए केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जओ णं से सद्दे अंतोहितो वहिया णिग्गए ? नो 'तिणठे समलैं१२ । एवामेव पएसी! जीवे वि अप्पडिहयगई पुढवि भिच्चा सिलं भिच्चा पव्वयं भिच्चा अंतोहितो बहिया णिग्गच्छइ, तं सद्दहाहि णं तुमं पएसी ! अण्णो जीवो" •अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं ॥ १. पुण मे (क, ख, ग, च, छ) । ८. सं० पा०—छिड्डे इ वा जाव निग्गए। २. ४ (क, च)। ६. पन्ना (क, ख, ग, घ, च, छ)। ३. ईसर (क, ख, ग, घ, च, छ) । १०. दुवारणयणाई (ख, ग)। ४. सहोढं (क, ख, ग, घ, छ); सहोट (च)। ११. सं० पा०---छिड्डे इ वा जाव राई। ५. उल्लंछावेमि (घ)। १२. इणमठे (क)। ६. अयोकभीए (क, ख, ग); अयकुंभीए (घ)। १३. सं० पा०-जीवो तं चेव । ७. सं० पा०-छिडडे इ वा जाव राई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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