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________________ बंत-जणबोल ६२१ ५६६,५६७ अंबूफल [जम्बूफल ] ओ० १३. रा० २५.. जंत [यन्त्र] ओ०१४ रा० १७,१८, २०,३२, ___ जी० ३।२७८ १२६,६७१. जी० ३।२८८,३००,३७२ जंबूफलकालिया [जम्बूफलकालिया] जी० ३१८६० जंतकम्म [ यन्त्रकर्मन् ] ओ० ६४. रा० १७३,६८१. जंबूरुक्ख [जम्बूरूक्ष ] जी० ३७०२ जी० ३।२८५ जंबूवण [जम्बूवन] जी० ३१७०२ जंतवारचुल्ली [यन्त्रपाटचुल्ली] जी० ३।११८ जंबूसंड [जम्बूषण्ड] जी० ३।७०२ जंबुद्दीव [जम्बूद्वीप] ओ० १७०. रा० ७ से १०, जंभाइत्ता [जृम्भयित्वा] जी० ३१६३० १३,१५,५६,१२४,६६८. जी. ३८६,२१७, जक्ख [यक्ष ] ओ० ४६,१२०,१६२. रा०६९८, २१६ से २२१,२२७.२५६,२६०,२६६. ७५२,७८६. जी० ३१७८०,६४७,६५० ३००,३५१,४४५,५६६,५६८ से ५७७,६३८, जक्खग्गह [यक्षग्रह ] जी० ३।६२८ ६६०,६६५,६६६,६६८,७०१ से ७०४,७०८, जक्खपडिमा [यक्षप्रतिमा] रा०२५७. जी० ३।४१. ७२३,७३६,७४०,७४२,७४५,७५०,७५४, । जक्खमंडलपविभत्ति [यक्षमण्डलप्रविभक्ति] रा०६० ७६२,७६४ से ७६६,७७५,७६५,६१६ से १२२, जक्खमह [यक्षमह ] रा० ६८८. जी० ३।६१५ ६५३,१०३६,१०७४,१०८० जक्खालित्त [यक्षादीप्त] जी० ३।६२६ जंबुद्दीवग [जम्बूद्वीपक] जी० ३७०६,७१०, जगईपव्यय [जगतीपर्वत] रा० १८१ ७६२,७६४ से ७६६,८१४ जगईपव्ययग [जगतीपर्वतक] रा० १८० जंबुद्दीवाहिवति [जम्बूद्वीपाधिपति] जी० ३।७६५ जगती [जगती] जी० ३।२६० से २६३,२७३, अंबुपेढ ]जम्बूपीठ] जी० ३।६६८,६६६ २६८ जंबू [जम्बू] जी० २७१, ३।६६८,६७२,६७३, जगतीपश्वयग [जगतीपर्वतक] जी० ३।२६२ ६७८ से ६८३,६८८,६८६,६६२ से ७००, जघण [जघन] ओ० १५ ७६५ जच्च [जात्य] ओ० १६,६४. जी० ३१५९६,५६७, जंबूणदमय [जाम्बूनदमय] जी० ३।३२३ ८५४,८७८ जंबूणय [जाम्बूनद] रा० १५६,२२८. जच्चकणग [जात्यकनक] ओ० २७. रा० ८१३ जी० ३।३३२,३८७,६७२ जच्चहिंगुलुय [जात्यहिंगुलुक ] जी० ३१५६० जंबूणयमय [जाम्बूनदमय] रा० ३७,१५०. जज्जरिय [जर्जरित] रा० ७६०,७६१ जी० ३।३११,४०७,६४३ जडि [जटिन् ] ओ० ६४ जंबूणयामय [जाम्बूनदमय] रा० १३५,१८८, जड्ड [जाड्य] रा० ७३२,७३५,७६५ २४५. जी० ३१३०५,३६१,६६६,६८६, जण [जन] ओ० १,६,६८,११६. रा० १२३, ८३६ ७६६ जंबूदीव [जम्बूद्वीप] जी० ३।७००,७५४,१००१, जणइत्ता [जनयित्वा] ओ० ६६ १००७,१०२२ जणउम्मि [जनोमि] रा० ६८७,७१२ जंबूदीवाहिवति [जम्बूद्वीपाधिपति] जी० ३१७०० जणकलकल [जनकलकल] ओ० ५२. रा०६८७, जंबूपल्लवपविभत्ति [जम्बूपल्लवप्रविभक्ति] ६८८,७१२ रा० १०० जणक्खय [जनक्षय ] जी० ३।६२८ जंबूपेढ [जम्बूपीठ] जी० ३।६६८,६७० जणबोल [जनबोल] ओ० ५२. रा० ६८७,७१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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