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________________ माणवक-माहण ७१३ माणवक [मानवक] जी० ३।४०२,४०४,५१६ मानवग मानवक] रा० २४४,३५१. जी० ३।४०३,४०६,१०२५ मानवय [मानव] रा० २३६,२७६,३५१. जी० ३४०१,४४२,५१६ माणविवेग [मानविवेक] ओ० ७१ माणस [मानस ] ओ० ७४. रा० १५ माणसिय [मान सिक] ओ ० ६६ माणुस [मानुष] ओ० १६५,१३. रा० ७५१, ७५३. जी० ३८३८२ माणुसनग [ मानु नग] जी० ३८३८ २,३२ माणुसभाव [ मानुषभाव ओ० ७४१३ माणुसुत्तर [मानुत्तर जी० ३८३१,८३३. ८३६ से ८४२८४५. माणुस्स [मानुष्य] ० ७४१२. रा० ७५१,७५३. जी० ३११६ माणुस्सत [मानुष्यक] रा० ७५१ माणुस्सय [मानुष्यक] ओ० १५. रा०६८५,७१०, ७५३,७७४,७६१ मातंग [मातङ्ग] ओ० २६. जी०३।११८ माता [मातृ] जी० ३।६११ माता [मात्रा] जी० ३।६६८,८८२ माय [मा]--माएज्जा ओ०१६५।१५ मायंग [मातङ्ग] जी० ३।११६ माया मातृ] ओ०७१,१६२. जी० ३।६३ ११२ माया माया] ओ० २८,३७,४४,७१,६१,११७, ११६,१६१,१६३,१६८. रा०६७१,७६६. जी० ३।१२८,५९८,७६५,८४१ मायाकसाइ मायाकषायिन् ] जी० ६।१४८,१४६, १५२,१५५ मायाकसाय मायाकपाय] जी० १११६ मायामोस [मायामृषा] ओ० ७१,११७,१६१,१६३ मायामोसविवेग [ मायाभूषाविवेक ओ० ७१ मायाविवेगमायाविवेग ओ०७१ मार [ मार] रा० २४. जी० ३।२७७ मारणंतिय मारणान्तिक ओ० ७७. जी० ११८६ मारणं तियसमुग्धात [मारणान्तिक समुद्घात | जी० ३।१११२,१११३ मारणंतियसमुग्धाय [मारणान्तिार.मुद्घात जी० १।२३,५.३,६०,८२,१०१, ३।१०८,१५८ मारापविभत्ति मा क विक्ति रा०६४ मारि [मारि] ओ० १४. ० ६७१ मालणीय मालनीय) 0 १७,१८,२,३२, १२६. जी० ३।२८८,३७२ मालय (दे० मालक जी० ३।५६४ मालवंत माल्यवत् जी० ३१५७७,६६,६६७ मालवंतद्दहमाल्यवद्रहमी० ३१६६७ मालवंतपरियाग माल्यय पर्याय २७६ जी० ३.४४५ मालवंतपरियाय [माल्यवत्पर्याय] जी० ३१७६५ माला माला] ओ० ४७,५२,६३,६६,७२. जी० ३३५६१ मालागार [ मालाकार] रा० १२ मालिघरग [ मालिगृहक] रा० १८२ १८३. जी० ३।२६४ मालिणीय [मालिनीय ] जी० ३।३०० मालुयामंडवग [मालुकामण्डपक रा० १८४. जी. ३२२६६ मालुयामंडवय | मालुकामण्डपक] रा० १८५ मास [माग] ओ० २८,२६.११५,१४३. रा० ८०१. जी० ११८६; ३.११६,१७६,१७८, १८०,१८२,६३०,८४१,८४४,८४७,१०८०; ४१४,१४ मास माप] जी० ३।८१६ मासपरियाय मासपर्याय ] ओ० २३ मासल [मां पल] जी० ३।८१६,८६०,६५६ मासिय [ मासिक ओ० ३२ मासिया | मासिकी] ओ० २४,१४०,१५४ माहण [माहन] ओ० ५२,७६ से ८१. रा०६६७, ६७१,६८७,६८८,७१८,७१६,७८७,७८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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