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________________ भूमिका प्रस्तुत पुस्तक का नाम उवंगसुत्ताणि है । इसमें बारह उपांगों का पाठान्तर तथा संक्षिप्तपाठ सहित मूलपाठ है । इसके दो खण्ड हैं । प्रथम खण्ड में तीन उपांग हैं: १. ओवाइयं २. रायपसेणियं ३. जीवाजीवाभिगमे । द्वितीय खंड में नौ उपांग हैं १. पण्णवणा ५. निरयावलियाओ [ कप्पियाओ ] ८. पुष्पचू लियाओ प्राचीन व्यवस्था के अनुसार आगम के दो वर्गीकरण मिलते हैं । १. अंगप्रविष्ट २. जंबुद्दीवपण्णत्ती ३. चंदपण्णत्ती ६. कप्पवडिसियाओ ७. पुल्फियाओ ६. वहिदाओ २. अंगबाह्य उपांग नाम का वर्गीकरण प्राचीनकाल में नहीं था । नन्दीसूत्र में उपांग का उल्लेख नहीं है । उससे पहले के किसी आगम में उपांग की कोई चर्चा नहीं है । तत्वार्थभाष्य में उपांग का प्रयोग मिलता है । उपलब्ध प्रयोगों में सम्भवतः यह सर्वाधिक प्राचीन है । ' अंग और उपांग को संबन्ध योजना तत्वार्थ भाष्य में उपांग शब्द का उल्लेख है, किन्तु उसमें अंगों और उपांगों का सम्वन्ध चर्चित नहीं है । इसकी चर्चा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति तथा निरयावलिका के वृत्तिकार श्रीचन्द्रसूरि द्वारा रचित सुखबोधा सामाचारी नामक ग्रन्थ में मिलती है । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति के अनुसार अंगों और उपांगों की सम्बन्ध-योजना इस प्रकार है: - अंग आचारांग सूत्रकृतांग स्थानांग समवायांग भगवती Jain Education International उपांग औपपातिक राजप्रश्वीय जीवाजीवाभिगम प्रज्ञापना जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति १. तत्त्वार्थ भाष्य १/ २० : तस्य च महाविषयत्वात्तस्तानर्थानधिकृत्य प्रकरणसामत्यपेक्ष मंगोपांगनानात्वम् । २. सुखबोधा सामाचारी, पृष्ठ ३४ । ४. सूरपण्णत्ती For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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