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ज्ञाताधर्मकथा
चन्द्रप्रज्ञप्ति उपासकदशा
सूर्यप्रज्ञप्ति अन्तकृतदशा
निरयावलिका [कल्पिका] अनुत्तरोपपातिकदशा
कल्पावतसिका प्रश्नव्याकरण
पुष्पिका विपाकश्रुत
पुष्पचूलिका दृष्टिवाद
वृष्णिदशा
१. ओवाइयं नाम बोध
प्रस्तुत आगम का नाम ओवाइयं [औपपातिक] है। इस का मुख्य प्रतिपाद्य उपपात है। समवसरण इसका प्रासंगिक विषय है। मुख्य प्रतिपाद्य के आधार पर प्रस्तुत सूत्र का नाम 'ओवाइयं' किया गया है। इसका संस्कृत रूप औपपातिक होता है। प्राकृत नियम के अनुसार बकार का लोप करने पर 'ओववाइय' का 'ओवाइय' रूप बन गया। नंदी सूत्र में यही नाम उपलब्ध होता है। विषय-वस्तु
औपपातिक का मुख्य विषय पुनर्जन्म है । उपपात के प्रकरण में अमुक प्रकार के आचरण से अमुक प्रकार का आगामी उपपात होता है, यही विषय चचित है ।
उपोद्घात प्रकरण में अनेक वर्णक हैं—नगरी वर्णक, चैत्य वर्णक, उद्यान वर्णक, राज वर्णक आदि-आदि । इन वर्णकों से प्रस्तुत सूत्र वर्णक सूत्र बन गया। इन्हीं वर्णकों के कारण अनेक समर्पणों में इसका उपयोग हुआ है।
व्याख्या ग्रंथ
औपपातिक का प्रथम व्याख्या ग्रन्थ नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरिकृत वृत्ति है। उसके प्रारम्भिक श्लोक से यह ज्ञात होता है कि अभयदेवसूरि को इस वृत्ति से पूर्व कोई अन्य वृत्ति प्राप्त नहीं थी। उन्होंने अन्य ग्रन्थों का अवलोकन कर इसका निर्माण किया था। स्वयं उन्होंने लिखा है
श्रीवर्द्धमानमानम्य, प्रायोऽन्यग्रन्थवी क्षिता ।
औपपातिकशास्त्रस्य, व्याख्या काचिद्विधीयते ।। वृत्तिकार ने कुछ स्थलों पर पूर्वज आचार्यों के अभिमतों का उल्लेख भी किया है१. स्नानाद्वा पाण्डुरीभुत गात्रा इति वृद्धा: [वृत्ति, पृ० १७१] । २. चणिकारस्त्वाह [वृत्ति पृ० २२४] ३. अस्य च वृद्धोक्तस्याधिकृतगाथाविवरणस्यार्थं भावार्थः । [वृत्ति, पृ० २२५]
१. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, शान्तिचन्द्रीया वृत्ति, पत्र १,२ । २. नन्दी, सूत्र ७६ ।
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