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परसि-कहाणगं
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वे पहाणे नय पहाणे नियमप्पहाणे सच्चप्पहाणे सोयप्पहाणे नाणप्पहाणे दंसणप्पहाणे चरित पहाणे ओराले 'घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविपुलतेयले से 'चउदस पुब्वी चउणाणोवगए पंचहि अणगारसहिं सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दृइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव सावत्थी नयरी जेणेव कोट्ठए चेइए तेणेव उवागच्छइ, सावत्थीनयरीए वहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ||
चित्तस्स जिण्णासा-पदं
६८७. तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडग-तिय- चउक्क चच्चर- चउम्मुह महापहप हेसु महा जणसद्दे इ वा जणवूहे' इ वा 'जणवोले इ वा" जणकलकले इ वा 'जणउम्मी इ वा " सणवाए इवा' 'बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खर एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ - एवं खलु देवाणुप्पिया ! पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमार - समणे जातिसंपणे ' पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दृइज्जमाणे इहमा गए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए नगरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापड़िरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पा भावेमाणे विहरइ । तं महत्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-नमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! केसि कुमार - समणं वंदामो णमंसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो ।
एयं णे पेच्चभवे इहभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ ति कट्टु बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा भोगपुत्ता एवं दुपडोयारेणं - राइण्णा खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई लेच्छईपुत्ता, अण्णे य बहवे राईसरतलवर - माडंबिय - कोडुंबिय इब्भ-सेट्ठि- सेणावइ-सत्थवाहप्पभितयो अप्पेगइया वंदणवत्तियं अप्पेगइया पूयणवत्तियं अप्पेगइया सक्कारवत्तियं अप्पेगइया सम्माणवत्तियं अप्पेगइया दंसणवत्तिय अप्पेगइया कोऊहलवत्तियं अप्पेगइया अस्सुयाई सुणेस्सामो सुयाई निस्संकियाई करिस्सामो अप्पेगइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो, अप्पेगइया गिहिधम्मं पडिवज्जिस्सामो, अप्पेगइया जीयमेयंति कट्टु व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगल-पायच्छित्ता सिरसा कंठेमाल कडा आविद्धमणिसुवण्णा कप्पियहारद्धहार-तिसर- पालंब१. x क, ख, ग, घ, च ) ।
२. x (क, ख, ग, घ, च, छ ) ।
३. x (घ) 1
४. सं० पा० ओराले चउदसपुव्वी ।
५. जनसमूहे (छ) ।
६. x ( क, ख, ग, घ ) ।
७. X ( क, ख, ग, घ ) ।
८. सं० पा० जणसण्णिवाए इ वा जाव परिसा
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पज्जुवासइ ।
६. राय० सू० ६८६ ।
१०. अत्र औपपातिके ५२ सूत्रे 'पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं' इति पाठो विद्यते किन्तु अर्थसमीक्षयास्माभिरत्र 'गिहिधम्मं' इत्येव पाठः स्वीकृतः । अर्थ - समीक्षार्थं द्रष्टव्यं ६६५ सूत्रस्य पादटिप्पणम् ।
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