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रायपसेणइय
पलं माण-क डिसुत्त-सुकयसोहाभरणा पवरवत्थपरिहिया चंदणोलित्तगायसरीरा अप्पेगइया हयगय। अप्पेगइया गयगया अप्पेगइया रहगया अप्पेगइया सिवियागया अप्पेगइया संमाणियागया अप्पेगइया पायविहारचारेणं पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता महया उक्किट्ठसीहणाय- बोल - कलकल वेणं पक्खुभियमहासमुद्दवभूयं पिव करेमाणा सावत्थीए णयरीए मज्झमज्झेणं णिग्गच्छंति, णिग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता केसि - कुमार-समणस्स अदूरसामंते जाणवाहणाई ठवेंति, ठवेत्ता जाणवाहणे हितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता केसिं कुमार-समणं तिक्खुतो आयाहिण -पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणणं पंजलिउडा पज्जुवासंति° ॥
६८८. तए णं तस्स सारहिस्स तं महाजणसद्दं च जणकलकलं च सुणेत्ता य पासेत्ता य shared अज्झथिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - किं णं अज्ज' सावत्थीए यरीए इंदमहे इ वा खंदमहे इ वा रुद्दमहे इ वा मउंदमहे इ वा 'सिवम हे इ वा वेसमणमहे इ वा " नागमहे इ वा 'जक्खमहे इ वा भूयमहे इ वा " थूभमहे इ वा चेइयमहे इ
रुक्म इ वा गिरिमहे इ वा दरिमहे इ वा अगडमहे इ वा 'नईमहे इ वा " सरमहे इ वा सागरमहे इ वा ? जं णं इमे बहवे उग्गा उग्गपुत्ता' भोगा" राइण्णा इक्खागा णाया कोरव्वा' • खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई मल्लइपुत्ता लेच्छई लेच्छइपुत्ता' इब्भा इब्भपुत्ता, अण्णेय बहवे राईसर - तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठि- सेणावइ-सत्थवाहप्पभितयो हाया कलिकम्मा कय कोउय-मंगल-पायच्छित्ता सिरसा कंठेमालकडा आविद्धमणिसुवण्णा कप्पियहार - अद्धहार-तिसर- पालंब - पलंबमाण-कडिसु त्तय कयसोहाहरणा चंदणोलित्तगायसरीरा पुरिसवग्गुरापरिखित्ता महया उक्किट्ठ-सीहणाय- बोल- कलकलरवेणं' "समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा अंबरतलं पिव फोडेमाणा' एगदिसाए एगाभिमुहा अप्पेगतिया हयगया अप्पेगतिया गयगया" अप्पेगतिया रहगया अप्पेगतिया सिवियागया अप्पेगतिया संदमाणियागया अतिया पायविहारचारेण मया महया वंदावंदएहि निग्गच्छति । एवं संपेइ, संपेत्ता
१. सं० पा० - अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था । २. अज्ज जाव (क,च) ।
३. x (क, ख, ग, घ,च) |
४. भूयमहे इ वा जक्खमहे इ वा च, छ) ।
क, ख, ग, घ,
५. X (च) ।
६. x (क, ख, ग, घ, च, छ) ।
७. भोगादिभिः सर्वैः सह पुत्तरूपस्य विकल्पा
बोद्धव्याः ।
८. सं० पा० कोरव्वा जाव इब्भा ।
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६. सं० पा० – कलकल रवेणं एगदिसाए जहा उववाइए जाव अप्पेगतिया । रायपसेणइयवृत्तौ समग्र : पाठो व्याख्यातोस्ति । तत्र औपपातिकस्य समर्पणसूचना नास्ति । आदर्शेषु सा किमर्थं कृतेति न ज्ञायते । औपपातिकस्य वृत्त्यनुसारिपाठे 'अंबरतलपिव' इत्यादि नास्ति, वाचनान्तरे तत् समुपलभ्यते । द्रष्टव्यं - औपपातिकस्य ५२ सूत्रस्य वाचनान्तरम् । १०. सं० पा० - अप्पेगतिया गयगया जाव पायवि
हारचारेणं ।
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