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________________ सू० ४४ ओवाइयं भगवई राय० जंबु. सू० ४३ २५॥६००-६१२ २५२६१३-६१८ सू० ६४ ९।२०४ सू० ४६-५५ ३।१७८ सू० ६५ ३११८० ३३१७६ समर्पण सूत्र संक्षिप्त पद्धति के अनुसार औपपातिक में समर्पण के अनेक रूप मिलते हैं :जाव-उदए जाव झीणे (११७) एवं जाव- अपडिविरया एवं जाव (१६१) सेसं तं चेव--परलोगस्स आराहगा सेसं तं चेव (१५७) एवं-एवं उवज्झायाणं थेराणं (१६) अभिलावेणं-एवं एएणं अभिलावेणं (७३) एवं तं चेव-सगडं वा एवं तं चेव भाणियव्वं जाव णण्णत्थ गंगामट्टियाए (१२३) भाणियध्वं—एवं चेव पसत्थं भाणियव्वं (४०) कंदमंतो एएसि वण्णओ भाणियव्यो जाव सिविय (१०) णेयव्वं-त चेव पसत्थं यध्वं । एवं चेव वइविणओ वि एएहि पएहि चेव णेयध्वो (४०) शब्दान्तर और रूपान्तर व्याकरण और आर्ष-प्रयोग-सिद्ध शब्दान्तर एवं रूपान्तर भाषा-शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। इसलिए उन्हें पाठान्तर से पृथक् रखा है। सूत्र १ कुक्कुड मुसुंढि मुसंढि० (क, ख) वक्क भत्त °हत्त° कीला °खीला (क, ख) °तुरग° 'तुरंग दरिसणिज्जा दरिसणीया (क, ख) कालागरु कालागुरु °कहग °कहक° (क, ख, ग) निकुरंबभूए °णिउरंबभूए (ख) दरिसणिज्जा दरसणिज्जा (क, ख) गुलुइय अभितर अब्भंतर बाहिर बहिर णीवेहि णितेहिं कुंकड ०वंक orrrrrrrrrxxx ururu गुलइय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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