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________________ ६६५ निव्वुइकर-नोपज्जत्त निव्वुइकर [निर्वृतिकर] रा० १७३. जी० ३।३०५, ६७२ निव्वुतिकर [निर्वृतिकर] रा ३०,१३५ निसण्ण [निषण्ण] ओ० ११७. रा० ७६६. जी० ३१८६६ निसन्न [निषण्ण] रा० २२५ निसम्म [निशम्य रा० १३ निसामित्तए [निशमितुम् ] रा० ७७५ निसिय [निशित) रा० २४६ इनिसिर निसज्]--.निसि रंति. रा० १०--- निसि रति. रा०६५.--निसिरेइ. रा. ७६४ निसिरित्तए [निसष्टुम् ] रा० ७५८ निसीइत्ता [निषद्य] ओ० २१ निसोदण [निषीदन] ओ०४० इनिसीय [ निषद् ]-निसीयइ. ओ०२१-- निसीयंति. रा०४८ -निसीयह. रा० ७५३ निसीहिया [निषीधिका, नैषेधिकी रा० १३१, १३५ निस्ससंकिय (निःशङ्कित] ओ० ५२. रा० ६८७, नीलवंत नीलवत्] जी० ३१४४५,६३२,६५७,६५६ ६६८,७६५ नोलवंतद्दह [नीलवद्रह ] जी० ३।६३६,६४०,६४२ ६५६ से ६६१,६६६ नीलवंता [नीलवती] जी० ३।६५६ नीलुप्पल [नीलोत्पल ] ओ० १३. रा० २६ नीलोभास [नीलावभास ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी० ३।२७३ नीव [नीप] जी० ३३३८८ नीसास | निःश्वास] रा० २८५,७७२. जी० ३१५६८ नोहार [नीहार] रा० ७७२ नूणं [नूनम् ] जी० ३।६८२ नेम [नेम] रा० १७५,१६०. जी० ३।२६४,२८७, ३०० नेयव्व [नेतव्य] जी० २।१५०; ३॥३०६ नेरइय [नरयिक] रा० ७५१. जी० ११५१,५४, ६१,८२,८७,६२,६६,१०१,११६,१२१,१२३, १२८,१३६; २९६,१००,१०८,१२७,१३४, १३५,१३६,१४८,१४६; ३.१,२,७७,८८,६३, ६५,६६,६८,१०३,१०६ से ११२,११८,११६, १२१ से १२३,१२८,१२६४,६,७,८,१५५,१५६ १६२, ६।१,७,१२; ७११ से ३, १६,२२; ६।२१०,२१३,२२० नेरइयत्त [नैरयिकत्व] जी० ३।१२७ नेल [नैल] ओ० १६ नेसज्जिय [नैषधिक] ओ० ३६ नेहाणुराग [स्नेहानुराग] जी० ३।६१३ नो [नो | रा० ६२. जी० १।२४ नोअपज्जत्तग [नोअपर्याप्तक] जी० ६।८८,६४ नोअपरित्त [नोअपरीन] जी० ६७५,८६,८७ नोअभवसिद्धिय [नोअभवसिद्धिक ] जी० ६।१०६ नोअसण्णि नोअसंज्ञिन् जी० १११३३; ४।१०१, १०४,१०८ नोइंदिय [नोइन्द्रिय ] जी० १११३३ नोपज्जत्त [नोपर्याप्त] जी ६१ निस्सास [नि:श्वास] रा० ७६६,८१६ निस्सील [निःशील] रा० ६७१ निस्सेयस [निःश्रेयस] ओ० ५२. रा० २७६,६८७ निहट्ट [निहृत्य] रा०८ निहय [निहत] ओ० १४. रा० ६७१ नीरय [नीरजस्] ओ० १२,१८३,१८४ नील नील ओ० ४,१२. रा० २२,१२८,१७०, ६६४,७०३. जी०१५,५०, ३३२२,४५, २७३,२६०,१०७५,१०७६ नीलच्छाय | नीलच्छाय] ओ० ४. रा० १७०, १७३. जी० ३१२७३ नीललेस नीललेश्य जी० ६।१६३ नीललेसा नीलले श्या जी० ३१६६,१०० नीललेस्स नीललेश्य जी०६१८५,१६६ नीललेस्सा [नीललेश्या] जी० ११२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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