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________________ समोसरण-पयरणं णमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स' धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामो णमसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो। एयं णे पेच्चभवे ‘इहभवे यर हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ त्ति कटु बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा भोगपुत्ता एवं दुपडोयारेणं-राइण्णा' खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई लेच्छईपुत्ता अण्णे य बहवे राईसरतलवर-माडंबिय'-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभितयो अप्पेगइया वंदणवत्तियं अप्पेगइया पूयणवत्तियं अप्पेगइया सक्कारवत्तियं अप्पेगइया सम्माणवत्तियं अप्पेगइया दसणवत्तियं अप्पेगइया कोऊहलवत्तियं अप्पेगइया अस्सुयाइं सुणेस्सामो सुयाइं निस्संकियाइं करिस्सामो' अप्पेगइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो, अप्पेगइया पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामो, अप्पेगइया जिणभत्तिरागेणं अप्पेगइया जीयमेयंति कटु ण्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता सिरसा कंठे मालकडा आविद्धमणि-सुवण्णा कप्पिय-हारद्धहार-तिसर-पालव-पलंबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोहाभरणा पवरवत्थपरिहिया चंदणोलित्तगायसरीरा, अप्पेगइया हयगया अप्पेगइया गयगया अप्पगइया रहगया" अप्पेगइया सिवियागया" अप्पेगइया संदमाणियागया अप्पेगइया पायविहार-चारेणं१३ परिसवग्गरा-परिक्खिता महया उक्किटठसीहणाय-बोल- कलकलरवेणं 'पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयं पिव'५ करेमाणा" चंपाए णयरीए मझंमज्झेणं णिग्गच्छंति, णिग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्तादीए तित्थगराइसेसे पासंति, पासित्ता जाणवाहणाई ठवेंति," ठवेत्ता जाणवाहणेहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता जेणेव १. आयरियस्स (क)। (वृ)। २. ४ (ख, वृ); इहभवे य परभवे य (वृपा)। १२. सीया' (वृ)। ३. क्वचित्पठ्यते 'इक्खागा नाया कोरव्वा' (व)। १३. चारिणो (क, ख, ग)। ४. लच्छइ (क, ख)। १४. वग्गावग्गि गुम्मागुम्मिति क्वचिद् दृश्यते ५. मांडबिय (वृ)। (वृ)। ६. 'प्पभिइओ (ख)। १५. "भूयमिव (क, ख)। ७. कोऊल्ल° (ग)। १६. अतः परं वृत्तौ वाचनान्तरस्य निर्देशः८. अप्पेगइया अट्ठविणिच्छयहेउं (क्वचित्)। क्वचिदिदं पदचतुष्टयं दृश्यते-पायदद्दरेणं ९. 'अट्ठाई हेऊइं कारणाई वागरणा पुच्छिस्सामो' भूमि कंपेमाणा अंबरतलं पिव फोडेमाणा त्ति क्वचिद् दृश्यते (बू)। एगदिसि एगाभिमुहा। भगवत्या (६।१५७) १०. 'उच्छोलणपधोय' त्ति क्वचिद् दृश्यते (वृ)। मेतद् मूलपाठरूपेण उपलभ्यते । ११. वाचनान्तराधीतमथपदपञ्चकम् - जाणगया १७. विट्ठब्भंति (वृपा) । जूग्गगया गिल्लिगया थिल्लिगया पवहणगया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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