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________________ मंथ-मज्झंमज्झ ७०५ मंथ | मन्थ ] ओ० १७४ मंद मन्द रा०.७६,१७३,७५८,७५६. जी. ३१२८५,६०१,८६६ मंदगति मन गति ] जी० ३।६८६ मंदर [मन्दर ओ० १४,२७. ग० १२४,२७६, ६७१,६७६,८१३. जी. ३ -१७, १६ से २२१,२२७,३००,४४५,५६६.५६८,५६६. ५७७,६६८,७०१,७३६,७४०,७४२,७४५, ७५०,७५,४,७६२,७६५,७६६,७७५,६३७, १००१,१०३६ मंदरगिरि म द गिरि रा० १७३. जो० ३।२८५ मंदलेस [ मन्द श्थ | जी० ३.८३८।२६ मंदलेस्स मंदलेश जी० ३।८४५ मंदाय | मन्द रा० ४०,११५,१३२,१७३,२८१. जी० ३।२६५,२८५,४४७ भदायवलेस्स मन्दातपलेश्व] जी० ३८४५ मंस [मांस आ० ६२,६३ २०७०३ मंसल मांसल ओ० १६. जी० ३१५६६,५६७ मंसमुह मांससुख ] ओ० ६३ मंसु श्मथु] ओ० १६. जी. ३१४१५,५६६ मकरंडक | मकराण्डक जी० ३।२७७ मगदंतियागुम्म दे० जी० ३१५८० मगर | मकर ओ० १३,४६. रा० १७,१८,२०, ३२,३७.१२६. जी० १६६,११८, ३१२८८, ३००,३११,२७२,५६६,५६७ मगरंडग | मकाण्डक] रा० २४ मगरासण मकरासन] रा० १८१,१८२. जी. ३।२६३ मगरिया मकरिका] रा०७७. जी० ३१५६३ मगुंद | मुकुन्द जी० ३।५८६ मग्ग मार्ग ओ० ४६,६५,७२ मग्गण [मागंण | ओ० ११७,११६,१५६ मग्गतो [पृष्ठतस् ] ० ५५ मग्गदय मार्गदय] औ० १६,२१,५४. रा०८, २६२. जी० ३।४५७ मघमघेत [प्रसरत् ओ० २,५५. रा०६,१२,३२, १३२,२३६,२८१,२६२. जी० ३३०२,३७२, ३९८,४४७ मघव [ मघवन् ] जी० ३।१०६८ मघा [मघा] जी० ३।४ मच्चु [मृत्यु] ओ० ४६ मच्छ [मत्स्य] ओ० १२,४६,६४. रा० २१,४६, १७४,२६१. जी० १११००, ३८८,११८, ११६,२८६,२८६,५६७.६६५,६६६,६६८,६६६ मच्छंडक [ मत्स्याण्डक | जी० ३।२७७ मच्छंडग मत्स्याण्डक रा० ८४ मच्छंडापविभत्ति [ मत्स्याण्डकप्रविभक्ति] रा०६४ मच्छंडामयरंडाजारामारापविभत्ति मत्स्याण्डकमक राण्डकगारकमारकप्रविभक्ति रा०६४ मच्छंडिया मत्स्य ण्डिका जी० ३१६०१,८६६ मच्छंडी मत्स्यण्डी] जी० ३१५६२ मच्छग मत्स्य जी० १६६ मच्छियपत्त [मक्षिकापत्र ] ओ० १६२ मच्छी [मत्स्यी] जी० २।४ भज्ज [मद्य ] ओ० ६२,६३. जी० ३।५६६ भिज्ज मस्ज्-- मज्जावेज्जा. रा० ७७६ मज्जण मज्जन] ओ० ६३ मज्जणघर मज्जनगृह] ओ०६३ मज्जणघरग | मज्जनगृहक रा० १८२,१८३. जी० ३।२६४ मज्जणधाई मज्जनधात्री रा० ८०४ मज्जार [मार्जार] जी० ३१८४ मज्जिय [मज्जित] ओ० ६३ मज्झ मध्य ] ओ० १५,१६,६३,६८. रा० १२५, १२७,२४०,२४५,२८२,६७२,७६६. जी० २४६; ३३५२,५७,८०,२६१,३५२, ५६६,६३२,६६१,६८६,७२३.७२६,७३६,८३६ ८८२ मज्झंभज्झ [मध्यंमध्य] ओ० २०,५२,६७ से ७०. रा० १०,१२,५६,२७६.६८३,६८५,६८७, ६६२,७००,७०६,७०८,७१०,७१६,७२६. जी० ३,४४५,५५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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