________________
२२
मतुड
हंत
शब्दान्तर और रूपांतर व्याकरण और आर्ष-प्रयोग-सिद्ध शब्दान्तर एवं रूपान्तर भाषा शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं; इसलिए उन्हें पाठान्तर से पृथक् रखा है। सूत्र संख्या ८
मउड °धेयं
°धेज्ज णाई
णादि
(क,ख,ग,च) उकिट्ठाए
ओकिट्ठाए पढ़े
वढे (ख,ग); मट्ठ (च) णाइय
णातिय (क,ख,ग,घ,च,छ)
(च) अभिवंदए
अभिवंदते
(छ) आयंस'
आतंस
(घ,च) मिउ
मउ
(क,ख,ग) पासाईए
पासातीए (क,ख,ग,घ) अतीव
अतीत तिसोवाण
तिसोमाण (क,ख,ग,च) महालतेणं
महालएणं (ख,ग,घ) वेमाणिएहि
वेमाणितेहिं (क,ख,ग,घ) विरचिय
विरतिय (क,ख,ग,च) वायाणं
वाइयाण (क,ख,ग,छ) वाययाणं
(घ) ओणमंति
तोनमंति
(क,घ) मउ
(क्वचित्) 'टाणं
'ताणं
(क,च,छ) ११८ मत्थए
(क,ख,ग,घ) जएणं विजएणं
जतेणं विजतेणं (क,ख,ग,घ) बहुईओ
बहुगीओ (क,ख,ग,घ)
बहुगीतो " १२६ दार
वार (क,ख,ग,च,छ;) बार
(घ) १३० 'कवेल्लुयाओ
'कवेलुयातो (क,ख,ग,घ) १३५ संकलाओ
संखलाओ (क्वचित्) १३७ पगंठगा
पकंठगा (घ,च) साए पहाए पएसे
साते पहाते पतेसे (क,ख,ग,घ,
मिउ
७७
मत्थते
१२४
(च,छ)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org