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________________ चक्कवाग-चरमणाणुप्पायनिबद्ध ६१६ चम्म [चर्मन] रा०८,१५४,२७६,२६२. जी० ३।३२७,४४५, ४५७,५६२,६०२,७६५,८४१,८६६,६५६ चक्कवाग [चक्रवाक ] ओ० ६. जी० ३।२७५ चक्कवाल [चक्रवाल ओ० ७०,१७०. रा० २०१, ८०४. जी० ३८६,२६०,२७३,३६२,५८६, ७०५,७०६,७३२,७६४,७६५,७९७,७९८, ८११,८१२,८२२,८२३,८३२,८४६,८५०, ८८२,६१८ चक्कवूह [चक्रव्यूह ] ओ०१४६. रा० ८०६ चक्किय [चक्रिक] ओ०६८ चक्खिदिय [चक्षुरिन्द्रिय] ओ० ३७. जी० ३।६७८ चक्ख [चक्षुष्] रा० ६७५. जी० ३।६३३ चक्खुवंसणि [चक्षुर्दर्श निन् ] जी० ११२६,८६,६०; ____।१३१,१३२,१३६,१४० चक्खुदय [चक्षुर्दय] ओ० १६,२१,५४. रा० ८, २६२. जी० ३।४५७ चक्खुप्फास [चक्षुस्स्पर्श ] ओ० ६६,७०. रा० ७७८ चक्खुभूय [चक्षुर्भूत] रा० ६७५ चक्खुल्लोयणलेस [चक्षुर्लोकनलेश] रा० १७,१८, २०,३२,१२६,१३३. जी० ३।२८८,३००,३०३, ३७२ चक्खुहर [चक्षुहर] रा० २८५. जी० ३।४५१ चच्चय [चर्चक] रा० २६४,२६६,३००,३०५, ३१२,३५१,३५५,५६४. जी० ३४५६,४६१, ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५४७ चच्चर [चत्वर] ओ० १,५२,५५. रा०६५४, ६५५,६८७,७१२. जी० ३३५५४ चच्चाग | दे० चर्चाक ] रा० १३१,१४७,१४८. जी० ३१३०१ चच्चाय | दे० चर्चाक] रा०२८०. जी० ३।४४६ चडगर [दे०] रा० ५३,६८३,६६२,७१६ चत्तालीस [चत्वारिंशत् ] जी० ३।६६ चतुरासीति [चतुरशीति | जी० ३।८८२ चतुरिदिय [चतुरिन्द्रिय ] जी० २।१३८,१४६; । ३२,३७,१२६,२८२. जी० ३.२३४ से २३६, २४३,२४५,२४७,२५०,२५६,२५८,२८८, ३००,३११,३७२,४४८ चमस [चमस] ओ० १११ से ११३,१३७,१३८ मन] रा० २४,६६४. जी० ३।२७७,५६२, चम्म [पाय] [चर्मपात्र ] ओ० १०५,१२८ चम्म [बंधण] [चर्मबन्धन] ओ० १०६,१२६ चम्मपक्खि [चमपक्षिन्] जी० ११११३,११४,१२५ चम्मपक्खी [चर्मपक्षिणी) जी० २०१० चम्मपाणि [चर्मपाणि रा०६६४. जी० ३१५६२ चम्मेट्ठग [ चर्मेष्टक] रा० १२, ७५८, ७५६. जी० ३।११८ चय [चय, च्यव] ओ० १४१. रा० ७६६. जी० ३।११२७ चय [शक्] -चएइ. ओ० १६५।१६ चय च्यु]--चयंति. जी. ३८७ चय [त्यज्]-चयइ. जी० ३।१२६।५ चयंत [त्यजत् ] ओ० १६५।३ चयण [च्यवन] जी० ३।१६० चिर चर]--चरइ. जी० ३१८३८॥२ --चरंति. ओ० ४६. जी० ३७०३-चरति जी० ३३१००१-चरिसु. जी० ३१७०३ -चरिस्संति जी० ३१७०३ चरण [चरण] ओ० १५, २५. रा० ६८६. जी० ३१५६७ चरमअभिसेयनिबद्ध [चरपाभिषेकनिबद्ध ] रा० ११३ चरमंत [चरमान्त] जी० ३।६६८ चरमकामभोगनिबद्ध [चरमकामभोगनिबद्ध] रा० ११३ चरमचवणनिबद्ध [चरमच्यवननिबद्ध रा० ११३ चरमजम्मणनिबद्ध चरम जन्मनिबद्ध र ० ११३ चरमजोवणनिबद्ध | चरम यौवननिबद्ध रा० ११३ चरमणाणुप्पायनिबद्ध [चरमज्ञानोत्पादनिबद्ध] रा० ११३ ४।२१ चमर [चमर] ओ० १३,६८. रा० १७,१८,२०, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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