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वृत्ति के प्रारंभ में वृत्तिकार ने भगवान् महावीर को नमस्कार किया है और गुरु के आदेश से राजप्रश्नीय सूत्र के विवरण की सूचना दी है:
वृत्ति की परिसमाप्ति में वृत्तिकार ने गुरु की विजयकामना और पाठक की ज्ञानकामना की है-
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नामबोध
I
प्रस्तुत आगम का नाम जीव जीवाभिगमे है । इसमें जीव और अजीव इन दो मूलभूत तत्त्वों का प्रतिपादन है । इसलिए इसका नाम जीवाजीवाभिगमे रखा गया है । इसमें नो प्रतिपत्तियां [ प्रकरण ] हैं। इनमें जीवों के संख्यापरक वर्गीकरण किए गए हैं।
१.
'संसारीजीव के दो प्रकार त्रस और स्थावर ।
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७.
प्रणमत - वीरजिनेश्वरचरणयुगं परमपाटलच्छायम् । अधरीकृतनतवासव मुकुटस्थितरत्न रुचिचक्रम् ॥ राजप्रश्नीयमहं विवृणोमि यथाऽगमं गुरुनियोगात् । तत्र च शक्तिमशक्ति, गुरवो जानन्ति का चिन्ता ॥१॥
८.
अधकृत चिन्तामणि- कल्पलता- कामधेनुमाहात्म्याः । विजयन्तां गुरुपादाः विमलीकृतशिष्यमतिविभवाः । राजप्रश्नीयमिदं गम्भीरार्थं विवृण्वता कुशलं ॥ यदवापि मलयगिरिणा साधुजनस्तेन भवतु कृती ।
३. जीवाजीवाभिगमे
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संसारी जीव के तीन प्रकार-स्त्री, पुरुष और नपुंसक ।
संसारजीव के चार प्रकार - नैरयिक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव 1
संसारीजीव के पांच प्रकार — एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय । संसारीजीव के छह प्रकार --- पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक वनस्पतिकायिक और कायिक | संसारजीव के सात प्रकार --
--नैरयिक, तिर्यञ्च तिर्यञ्चणी, मनुष्य, मनुष्यणी, देव और देवी । संसारीजीव के आठ प्रकार - प्रथम समय नैरयिक, अप्रथम समय नैरयिक, प्रथम समय तिर्यञ्च, अप्रथम समय तिर्यञ्च ।
प्रथम समय मनुष्य, अप्रथम समय मनुष्य प्रथम समय देव, अप्रथम समय देव |
संसारीजीव के नौ प्रकार – पृथ्वी कायिक अपकायिक, तेजस्कायिक वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय ।
९. संसारीजीव के दस प्रकार - प्रथम समय एकेन्द्रिय, अप्रथम समय एकेन्द्रिय प्रथम समय द्वीन्द्रिय, अप्रथम समय द्रीन्द्रिय ।
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