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________________ दगविइय-दलइत्ता दगबिइय [दकद्वितीय] ओ० ६३ दधिषण [दधिघन] रा० १३०. जी० ३।३०० दगमंचग [दकमञ्चक] रा० १८०. जी० ३।२६२ दधिमुह दिधिमुख ] जी० ३।६११,९१२ वगमंचय [दकमञ्चक] रा० १८१ दधिवासुयमंडवग [दधिवासुकामण्डपक] जी० दगमंडय [दकमण्डप] रा० १८१ ३।२६६ दगमंडव [दकमण्डप] रा० १८० दप्पण [दर्पण] ओ० १२,१६. रा० २१,४६,२६१. दगमंडवग [दकमण्डपक] जी० ३।२६२ जी० ३।२८६,३४७,५६६ दगमट्रिया [दकमृत्तिका] ओ० १४६. रा० ८०६ दप्पणय दर्पणक] ओ० ६४ वगमालग [दकमालक] रा० १८०. जी० ३।२६२ दप्पणिज्ज [दर्पनीय] ओ० ६३. जी० ३.६०२, दगमालय [दकमालक ] रा० १८१ ८६०,८६६,८७२,८७८ दगरय [दकरजस्] ओ० १६,४६,४७,१६४. रा० दब्भसंथारग [दर्भसंस्तारक] रा० ७६६ ३८,१६०,२२२,२५६. जी० ३१२८२,३१२, दमणा [ दमनक] रा० ३०. जी० ३।२८२ ३३३,३८१,४१७,५७६,५६७,८६४ दमिला [ द्रविडा, द्रमिला] रा० ८०४ दगवार [दकवार] जी० ३।११६ दमिली [द्रविडा, द्रमिला] ओ०७० दयपत्त [दयाप्राप्त ओ० १४.१ रा० ६७१ दगवारक [दकवारक] जी० ३१५८७ दयरय दकरजस्] रा० २६ दगवारग [दकवारक] रा० १२ दरिमह [दरीमत् ] रा०६८८ दगसत्तम [दकसप्तम] ओ० ६३ दरिय [दृप्त ] ओ० ६. जी० ३१२७५ दगसीम [दकसीम] जी० ३।७३५,७४५ से ७४७ दरिसण [दर्शन] रा० ८०३ दच्चा [दत्वा] रा०६६७ दरिसणावरणिज्ज [दर्शनावरणीय ] ओ० ४४ दड्ड [दग्ध ] ओ० १८४ दरिसणिज्ज [दर्शनीय] ओ० १,५,७,८,१० से १३ दढ [दृढ] ओ० १,१४२,१४४. रा० १२,७५८, १५,४६,६४,७२,१६४. रा०१७ से २३,३२,३४ ७५६,८००,८०२. जी० ३.११८ ३६ से ३८,५०,१२४,१३०,१३१,१३६,१३७, दढपइण्ण [दृढप्रतिज्ञ] ओ० १४४ से १५०, १५४. १४५,१५७,१७४,१७५,२२८,२३१,२३३, रा० ८०२,८०५ से ८११,८१६ २४५,२४७,२४६,६६८,६७०,६७२,६७६, वढपतिण्ण [दृढप्रतिज्ञ ] रा०८०४ ७००,७०२. जी० ३।८४,२३२,२६१,२६६, दढरहा [दृढरथा] जी० ३।२५४ २६६,२७४,२७६,२८६ से २८८,२६०,३००, दढाउ [दृढायुष्] जी० ३।११७ ३०३,३०६,३०७,३११,३८७,३६३,४०७,४१०, दद्दर [ दे० दर्दर] ओ० २,५२,५५. रा० ३२,१५६, ५८१,५८४,५८५,५६६,५६७,६३६,६७२, २७६,२८१,२८५. जी० ३३३२,३७२,४४५, ८३६८५७,८६३,११२१,११२२ ४४७,४५१,५६४ दरिसणीय [दर्शनीय] रा० १ बद्दरग [दे० दर्द रक] रा०७७. जी० ३।५८७ दरी [दरी] जी० ३।६२३ दहरय [दे० दर्दरक] रा० २८१. जी० ३.७८, दल [दल] जी० ३।२८२,५६७ ४४७ दलइत्ता दत्वा ] ओ० २१. रा० २६३. दद्दरिगा [दे० दर्दरिका] रा० ७७ जी० ३१४५८ ददुर [दर्दुर] ओ० ५१. जी० ३।१०३८ १. प्राप्तकरुणागुणः []। दयाप्राप्तः स्वभावतः वधि [दधि] जी० ३१५६७ शुद्धजीवद्रव्यत्वात् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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