SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 732
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दुयविलंबिय-देव ६५५ दुयविलंबिय [द्रुतविलम्बित ] रा० ६१,१०४, २८१ दुयाह [यह ] जी० ३।८६,११८,११६,१७६, १७८,१८०,१८२ दुरंत [दुरन्त] रा० ७७४ दुरभि [दुरभि] जी० ३८४ दुरस ] दूरस] जी० ३।६८० दुरहियास [ दुरध्यास, दुरधिसह] रा० ७६५. जी० ३।११०,१११,११७ दुरुह [आ+ रुह]-दुरुह इ. रा० ६८५-- दुरुहंति. रा० ४८. --दुरुहति. रा० ४७ दुरुहेति. रा०६८३ दुरुहित्ता [आरुह्य ] रा० ४७ दुरुहेत्ता [आरुह्य] रा०६८३ दुरुढ [आरूढ ] ओ० ६३,६४. रा० १३,४६ दुरूव [दूरूप] जी० ३।६७८,९८४ -दुरूह [आ--- रुह |--.दुरूहति. ओ०७० दुरूहित्ता [ आरुह्य ] ओ० ७० दुरूहित्ताणं [आरुह्य ] ओ० १०१ दुल्लभ [दुर्लभ ] रा० ७५० से ७५३ दुल्लभबोहिय [ दुर्लभबोधिक ] रा० ६२ दुव [द्वि] जी० ३१२५१ दुवारवयण [द्वारबदन] रा० ७५५,७७२ दुवालस [द्वादशन् ] ओ० ३३. जी० ३३३३ दुवालसंगि [ द्वादशाङ्गिन् ] ओ० २६ दुवालसविह [द्वादशविध] रा० ५२७७,७८. जी० ११६६ दुवासपरियाय [द्विवर्षपर्याय ] ओ० २३ दुविध [द्विविध] जी० ३।१३६,१४०,१४१,१६३, ११२२; ६।१३७ दुविह [द्विविध] ओ० ३२,४०,७४. रा० ७४१ से ७४५. जी० १:२,३,५ से ७,१०,११,१३,१४, ५७,५८,६३,६५ से ६८,७०,७६,८०,८१,८४, ८८,८६,६२,६४,६६,६७,१०० से १०४, १०६,१११,११२,११६,११८ से १२२,१२६, १२६,१३३,१३५,१३६,१४३, २५,७,१६ ३.७८,७६,८१,८२,६१,६३,१२७१५,१३२ से १३५,१३८,१३६,१४२ से १४६,२१२,२२६, ९७७ से १८१,१०२२,१०७१ से १०७४, १०८७,१०६१,१११०,११२१,४।२; ॥२ से ४,३७ से ४०,५३ से ५५, ६८,९,११, १५,१६,१८,२१,२२,२४,२८ से ३१,३६, ३८,३६,४२,४४,४६,५६,५८,६२,६३,६५, ६६,६८,७६,७६,८१,१२५,१३३,१५१, १७४ दुव्वण्ण [दुर्वर्ण ] जी० ३।५६७ दुहओ [द्वितस्, द्वय] रा०६६,७०,१३१ से १३८, २४५,७५५,७७२. जी० ३।३०१ से ३०३, ३०५ से ३०७,३१५,३५५,४०७,५७७ दुहओखहा [द्वितःखहा] रा०८४ दुहओचक्कवाल [द्वितश्चक्रवाल] रा०८४ दुहतो [द्वितस्, द्वय रा० १२३. जी० ३।३०४ दुहा [द्विधा] रा० ७६४,७६५. जी० ३।८३१ दूइज्जंत [द्रूयमाण ] ओ० ४६ दूइज्जमाण [द्रूयमाण] ओ० १९,२०,५२,५३. रा० ६८६,६८७,६८६,७०६,७११,७१३ दूय [दूत] ओ०१८,६३. रा० ७५४,७५६,७६२, ७६४ दूर [दूर] ओ० १६२. रा० १२४. जी० ३३१०३८ दूरंगइय [दुरंगतिक] ओ० ७२ दूरसत्त [दूरसत्व ] जी० ३।६८६ दूराहड [दूशहत ] रा० ७७४ दूरूवत्त [दूरूपत्व] जी० ३१९८४ दूस [दूध्य ] ओ० ५६. जी० ३।६०८ दूसरयण [दुष्यरत्न] ओ०६३ देव देव] ओ० ४४,४७ से ५१,६८,७१,७३,७४, ८८ से १५,११४,११७,१२०,१४०,१४१, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७,१७०, १९५१३,१४, रा० ७,६ से १६,२४,३२,४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003554
Book TitleUvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1987
Total Pages854
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy